Book Title: Sagarotpatti
Author(s): Suryamal Maharaj
Publisher: Naubatrai Badaliya

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८ ) सरिजीने प्रात्पीय परकीय उपकारार्थ श्री धर्म रब की टोका सुखवोधके लिए प्रकाशित को। श्री देवेन्द्र रि आदिने अपने २ ग्रन्थोंमें अपनो २ गुरु परम्परा लिखो जो उस समय विद्यमान थे। इन्होंने श्री चैत्रवाल गच्छोय श्री जग चन्द्रजी को तथा इनके गुरुदेव भद्रनी उपाय्याय को इसीसे बताया। मुनि सुन्दर सूरिजी ने अपनी कल्पित पटावलिमें इस प्रकार लिखा है कि समस्त जगत भूषणवत श्री मुनिन्द्र गच्छमें श्री (क) श्री देवेन्द्र सूरि (ख) श्री विजयेन्द्र -सूरि (ग) श्री देवभद्र सूरिजो पैदा हुए। लोक प्रसिद्ध कीर्तिवान् श्री देवभद्रजी, गणीके राज्यमें असधिक सम्मानित हुए इसने विद्वान, सपरिच्छद श्री जगद चन्द्र जी को गुरू बनाया और सेवा की। ___ इस लेखमें पाश्चात्य कालीन सूरियों ने श्री जगञ्चन्द्र जी को श्री देवभद्रादिकोंका गुरू नियुक्त किया है। दूसरी जगह लिखा है कि श्री देवभद्र जो से दीक्षा लेकर यति हुए थे। श्रादेवभद्रजीके उपदेशसे श्री जगच्चन्द जीने क्रियोद्धार किया। जिस प्रकार ब्राह्मणोके ब्रह्म पूज्य हैं और ब्राह्मण । तदनुसार गुरू पूज्य शिष्य और शिष्य पूज्य गुरू हुए। हो For Private And Personal Use Only

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