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( २६ ) संय्यम लेते वाले उपाध्याय देवफदपजी को उत्पति हुई । श्री देवभदजोसे जगत्चन्दजी हुए उन्होंने उपसम्पदा विधिसे उन के भारको बहन किया। श्री विजयचन्दजी देवभदजी इनके दो शिष्य हुए । इनसे और भो मृरि हुए।
श्री वृहत्कल्पको टोका प्रशस्ति में लिखा है कि श्रीदेव भदजीके तीन शिष्य थे। उनके नाप क्रमशः (क) श्री क्षेप कीर्ति मूरिजो(ख)जैन शासन रूपो आकाशके सूर्य समान पद्गन्तर जी और(ग) कृत पदम जो थे। अपनी ज्योतिसे दिगदिव्याप्त श्रीमान् धनेश्वरसूरिजी इनके गुरु थे चैत्रपुरके भूषणा खरूप तथा मूर्य रूप प्रबोधक श्री महावीरजोकी प्रतिष्ठाकारक श्री भुवनेन्द्र सूरिजो श्री चैत्रवाल गच्छमें इनके गुरू हुए। ___ कुछ समय बाद इनसे प्रकाश स्वरूप श्री गुणा रत्न जो तथा श्री रोहणोजो की उत्पत्ति हुई। कामक्रोधादि शत्र ओंके जेता, शद्ध. संयमी, सच्चरित्र, सद्गुणो तया शास्त्र कुशलो श्री देवभद्रजो इनके गुरु हुए । इनके तीन प्रसिद्ध शिष्य थे। जिनके नाम क्रमशः (अ) श्री जगत्चन्द्रजी (प्रा) देवेन्द्रसूरि भी तया (इ) श्री विजयेन्द्र मुरिजो थे। दिगंत इनको उज्वल कीर्तिसे धवलित होगया। इनकी प्रतिष्ठा, विजय-कीर्ति, संयम, सद्गुण, ज्योति तथा प्रखर विद्वत्ता जगत प्रसिद्ध थो। इनके महत्व में इनके गुणांस मुग्ध होकर सभी देवताओंने
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