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(३३: ) है कि दीक्षो, तथा प्राचार्य सभी एक समय साबित नहीं हो सकते । उस सयय जगश्चन्द्रजीको कोई जानता भी न. था। पाठक इसकी सत्यता स्वयं विचारले । यदि आपको विदितहो तो कृपया साफ २ बतानेका कष्ट उठावें कि किस पक्ष, मास, तिथि, दिन और वर्षमें ये सभी घटनायें घटित हुई। राजाओंसे विरुद किस समय प्राप्त हुआ ।ये सभी वातें कपोल कल्पित सिद्ध होती हैं । आप इसका ठीक २ उता, अन्यथा आपकी समी याने झूठी मानी जायगी। ___ कोई मनुष्य देबेन्द्र सूरिके शिष्य विद्यानन्दजी का सम्वत् मानता है तो दूसरा देवेन्द्रजीके पद मिलनेका समय एक सम्वत १३२३ वै क्रम वर्ष बतलाता है तो दूसरा सम्वत् १३०५ वैक्रमवर्ष इस प्रकार परस्पर विरुद्धता पाई जाती है। अतएव ये सभी वातें कपोल कल्पित सिद्ध होती है। पश्चात् कालीन सूरियोंने भले ही इसकी सत्यता स्वीकार की हो। परन्तु पूर्वकालिक निदान इसे कदापि स्वीकार नहीं कर सकते। .. ..
इस प्रकार तपा शाखाके शिष्योंकी उत्पति बताई है कालक्रम से इनकी अनेकों शाखाये हो गई। सेनामें विरुद्ध प्रास करने वाले कुभटके सद्दश अहंकारी होने के कारण ये सब आपस में पादा-विवाद किया करते हैं।
इस प्रकार देव सरिजीसे ऊंट घसेड़िया शाखा हुई । इन तपा गच्छके प्रवर्तक विजयदेवजी हुए । उंट घसेडिया शाखाकी कथा निम्नाडिन्त रित्यानुसार बताई गई है:
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