Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं इच्छा हो, तुम दया पाला करो। जब तक हम यहाँ हैं, जितना सीख सकते हो, उतना सीख लो। बालक हस्ती ने भी सुदृढ़ स्वर में तत्काल निवेदन किया-"गुरुदेव एक बार चरण शरण ग्रहण कर लेने के पश्चात् , छोड़ना मुझे मेरी माँ ने नहीं सिखाया है। अब मैं कभी आपका साथ छोड़ने वाला नहीं हूँ। अब तो जहाँ आप जायेंगे, मैं भी साथ चलूँगा।"
स्वामीजी विचार करने लगे, सच ही कहा है कि माता सहस्रों अध्यापकों से भी श्रेष्ठ अध्यापिका है। माता द्वारा डाली गई संस्कारों की नींव पर यदि किसी महान् आध्यात्मिक कुशल शिल्पी का सुयोग मिल जाए तो निश्चय ही यह बालक आगे चल कर शासन को दिपाने वाला हो सकता है। आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी महाराज वस्तुतः इस युग के एक महान् आध्यात्मिक शिल्पी हैं। उन्हें इस विलक्षण बालक के सम्बंध में सूचित किया जाए तो सभी प्रकार से श्रेयस्कर होगा।
बालक हस्ती को स्वामीजी के रूप में अभीष्ट आध्यात्मिक ज्ञान का अक्षय भंडार मिल गया। श्रद्धालु श्रावक-श्राविका वर्ग इन दोनों को एक साथ देखकर आश्चर्याभिभूत थे। कहाँ तो एक आठ वर्ष का बालक और कहाँ साठ वर्ष के तपोपूत योगी। उम्र में कितना अन्तर, तथापि परस्पर एक दूसरे के कितने पास । परस्पर एक दूसरे से लौ लगते ही भौतिक और आध्यात्मिक दूरियां कितनी सन्निकट हो आती हैं। स्वामीजी को यह देखकर संतोष था कि सभी प्रकार के शुभ लक्षणों और सुसंस्कारों से सम्पन्न कुशाग्रबुद्धि बालक पूर्ण निष्ठा एवं लगन के साथ आवश्यक ज्ञान के अर्जन में प्रगति कर रहा है। • शोभा गुरु की सेवा में
इसी दौरान माता और पुत्र दोनों के जीवन में पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र के समान आध्यात्मिक आलोक की शुभ छटा प्रकट कर देने वाले आचार्य श्री शोभाचन्द जी महाराज साहब बड़लू से विहार कर ठाणा ३ से पीपाड़ नगर में पधारे एवं गाढमल जी चौधरी की पोल में विराजे । स्वामीजी ने आचार्य श्री से निवेदन किया-“यही है वह बालक । इसने इन थोड़े से दिनों में ही अनेक बोल-संग्रह कंठस्थ करने के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा में भी संतोषप्रद प्रगति की है।' आचार्य श्री बालक की प्रगति के समाचार सुनकर प्रमुदित हुए। __बालक के लक्षण, चेष्टाएँ, आँखों की चमक, विनय एवं वाणी की माधुरी से आचार्य श्री को यह समझने में | देर नहीं लगी कि यह बालक आगे चलकर जिनशासन का महान् सेवक बनेगा।
स्वामी श्री हरखचन्द जी म.सा. ने गुरुदेव आचार्यप्रवर श्री शोभाचन्द्र जी. म.सा. के चरणारविन्दों में निवेदन करते हुए इंगित किया कि बालक हस्ती एवं विरक्ता रूपादेवी मुमुक्षु हैं एवं उनके निरन्तर अध्ययन की महती आवश्यकता है, जो पीपाड़ में सम्भव नहीं है। आचार्यप्रवर ने श्रावकों को संकेत किया कि सुयोग्य बालक हस्ती के अध्ययन की समुचित व्यवस्था हो सके, ऐसा चिन्तन अपेक्षित है। • अजमेर में अध्ययन-व्यवस्था
श्रद्धालु एवं विवेकशील श्रावकों ने शिक्षा की दृष्टि से प्रसिद्ध अजमेर नगर को उपयुक्त समझा। अजमेर में श्रेष्ठिवर श्री छगनमल जी मुणोत रियां वालों ने दोनों विरक्तात्माओं के शिक्षण एवं ज्ञानाराधन की व्यवस्था करते हुए उन्हें मोती कटला स्थित अपने विशाल भवन में परिवार के सदस्यों की भांति अपने साथ रखा। यहाँ पर पं. श्रीरामचन्द्र जी को तेजस्वी बालक हस्ती को संस्कृत एवं हिन्दी का शिक्षण देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पंडित जी