Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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प्रभावी व्यक्तित्व के कतिपय प्रसंग
अजमेर सम्मेलन के लगभग ३ वर्ष पश्चात् जेठाना ग्राम में आपका पूज्य श्री जवाहरलाल जी म.सा. के साथ पुन: कुछ समय विराजना हुआ। पूज्य जवाहराचार्य आपसे उम्र, दीक्षा, अनुभव आदि सभी दृष्टियों से बहुत वरिष्ठ थे। किन्तु आपकी विद्वत्ता और क्रियापालना से बड़े प्रभावित थे और सदैव आपको मान देते थे। 'जेठाना' गाँव से श्री जवाहराचार्य जी गुजरात की ओर विहार करने का मानस बना चुके थे। जब दोनों आचार्य अलग होने लगे और विहार का समय आया तो पूज्य श्री जवाहरलाल जी म.सा. ने आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. से मांगलिक सुनाने को कहा। आचार्य श्री हस्ती चौंक गए। इतने बड़े, इतने अनुभवी आचार्य मुझसे मांगलिक सुनाने को कह रहे हैं। जब श्री जवाहराचार्य ने उनके संकोच का अनुभव किया तो कहा कि 'यदि आचार्य ही आचार्य को मांगलिक नहीं सुनाएगा तो कौन सुनाएगा?" अत: आप तो मुझे मांगलिक सुनाएं। अन्त में आपसे मांगलिक सुनकर ही उन्होंने विहार किया। संवत् २०२३ के चातुर्मास में आचार्य श्री अहमदाबाद के बुधा भाई आश्रम में विराजित थे। उसी दौरान एक बार | आपका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया। अस्वस्थता के बावजूद आप दिन भर अपनी दिनचर्या में लगे रहते । चिकित्सकों ने आपको पूर्ण विश्राम की अर्थात् दिन भर लेटे रहने की सलाह दी। मगर आपने तो समग्र जीवन में कभी क्षण भर भी व्यर्थ नहीं खोया था। विश्राम समय के सदुपयोग का भी उपाय आपने खोज ही निकाला। कहने लगे कि कोई संत मेरे पास बैठ कर शास्त्रों का वाचन करे तो मुझे चिकित्सकों की राय के अनुसार कोई श्रम भी न होगा और साथ ही साथ स्वाध्याय भी होता रहेगा। ३० दिसम्बर १९९० को आपकी जन्मजयंती का अवसर आया। आप उस समय पाली में विराजमान थे। इस प्रसंग को भक्तों द्वारा दिल्ली में भी समारोहपूर्वक मनाया गया, जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर, कई केन्द्रीय मंत्रियों व अनेक गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही। भावुक भक्तों ने बड़े-बड़े पोस्टर भी छपवाए। जब आचार्य श्री की निगाहों में ये पोस्टर आए तो उन्हें देखकर स्पष्ट शब्दों में तुरन्त अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए बोले, “यह क्या आडम्बर है? इन मेले-ठेले में मुझे विश्वास नहीं और इन सब में सामायिक-स्वाध्याय का उल्लेख तक नहीं, खुशी तो मुझे तब होती जब मेरे नाम के बजाय सामायिक-स्वाध्याय की प्रेरणा में आपका पुरुषार्थ होता। अपने समग्र जीवनकाल में आपने एक भी संस्था अपने नाम से नहीं खुलने दी। आचार्य विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, जैन रत्न विद्यालय, भूधर-कुशल कल्याण कोष, अमर जैन रिलीफ सोसायटी जैसी अनेकानेक संस्थाएँ प्रमाण हैं उनकी निस्पृहता की कि अपने ही जीवन काल में खुलने वाली ऐसी पचासों संस्थाओं में से एक का नाम भी उन्होंने खुद के नाम से नहीं जुड़ने दिया। हालांकि भक्तों ने कई बार ऐसी चेष्टाएं की। अपने जीवन की समस्त सफलताओं, उपलब्धियों का श्रेय स्वयं न लेकर 'गुरुकृपा' को देते रहे । जीवनकाल में अपना जीवनचरित्र न छपने देने के पीछे भी उनकी यह निष्काम वृत्ति रही। श्रद्धालुओं द्वारा जब आपकी जय जयकार की जाती तब कई बार आप उसे रोककर अन्य महापुरुषों या तीर्थंकरों की जय करने की ही बात करते। स्मरण आता है संवत् २०२० का अजमेर में सम्पन्न अधिकारी मुनि सम्मेलन । श्रमण-वर्ग ने जब पं. रत्न श्री