Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
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. हिंसा का विरोध __ अहिंसा के प्रेमी यदि यह सोचकर चुप रह जाएं कि सरकार कत्लखाना खोल रही है। उसके सामने हमारी क्या
चलेगी? तो यह उचित नहीं है। प्रजातन्त्री सरकार प्रजा की इच्छा से चलती है और उसे चलना चाहिए । यदि प्रजा की आवाज में बल होगा तो सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ेगा। कतिपय अहिंसा प्रेमियों ने कत्लखाने के खिलाफ आवाज उठाई है और वे आवाज को बुलन्द करना चाहते हैं। केन्द्र में भी विरोध हुआ है और देश के दूसरे-दूसरे हिस्सों में भी । अहिंसा प्रेमियों का चाहे वे किसी भी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय के अनुयायी हों, कर्तव्य हो जाता है कि वे संगठित होकर और डटकर हिंसा का विरोध करें । उस विरोध को सरकार के कानों तक पहुंचावें । सामूहिक मिलन के अवसर भी इसके लिए उपयुक्त हो सकते हैं। अगर आपकी यह आवाज कि आप देशवासी ऐसे हिंसाकृत्यों को देश के लिए अभिशाप समझते हैं, मानवता के लिए अभिशाप समझते हैं, बुलन्द होकर सरकार के कानों तक आवाज पहुँचायेंगे तो सरकार को विवश होकर सोचना पड़ेगा। कुछ लोग सरकार के इस प्रकार के कृत्यों का विरोध करना 'विरुद्धरज्जाइक्कमे' अर्थात् राज्य के विरुद्ध कार्य करना समझते हैं, किन्तु यह भ्रम मात्र है। प्रजाहित की दृष्टि से राज्य ने जो मर्यादायें बनाई हैं, उनका अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर अवैधानिक रूप से उल्लंघन करना दोष है। भारत-चीन संघर्ष में भारतीय हितों के विरुद्ध चीन का साथ देना और इस प्रकार देश द्रोह करना दोष है, मगर भारतीय संविधान के अनुसार जब आपको सरकार के किसी प्रस्ताव या कानून का विरोध करने का अधिकार प्राप्त है और आप अपने उस अधिकार का सदुपयोग करते हैं, देश, समाज और संस्कृति की रक्षा की पवित्र भावना से विरोध करते हैं तो आप 'विरुद्धरज्जाइकम्मे' दोष के भागी नहीं होते। यही नहीं, जिस विधान को आप देश हित के, धर्म के व संस्कृति के विरुद्ध समझते हैं
और जिसका विरोध करने के आप अधिकारी हैं, उसका भी अगर आप विरोध नहीं करते और उसे चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं तो यह आपकी दुर्बलता है, आप के लिए कलंक की बात है।