Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड • जिस व्यक्ति में विवेक का प्रकाश फैल जाता है, चाहे वह राजा हो या रंक अथवा किसी भी स्थिति का हो,
श्रावक-धर्म का पालन कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति ने प्रपंच नहीं त्यागा, जीवन संयत नहीं बनाया, जीने की दिशा में कोई सीमा निर्धारित नहीं की, तो वह सर्व-विरति या देश-विरति श्रावक-धर्म का साधक नहीं बन सकता। बहुत से लोग सोचा करते हैं कि धर्म-स्थान में साधना करना वृद्धों का काम है, किन्तु ऐसा सोचना गलत है और इसी भ्रम के कारण, सर्वसाधारण का मन, इस ओर नहीं बढ़ पाता । इतिहास साक्षी है कि राजघराने के लोगों ने
भरी जवानी में राजवैभव, सुख-विलास, आमोद-प्रमोद आदि को छोड़कर साधनाएँ प्रारम्भ की। • संसार में वही आदमी प्रशंसा के योग्य है, जो किसी काम को पकड़ कर उसे उत्साह के साथ आगे बढ़ाता है।
रोते-झींकते हुए काम करने वाले की तारीफ नहीं होती। आज आप धर्म का कार्य जिस उमंग से करना चाहिए। उस उमंग से नहीं करते और यह देखते हैं कि नहीं करूँगा तो महाराज नाराज होंगे। व्याख्यान में देरी से गया, सामायिक नहीं की, तो महाराज देखेंगे। यह सोचकर धर्म-क्रिया करना सही तरीका नहीं है। कोई भी काम करना है तो उसे हर्षित मन से करना चाहिए रोते-झींकते नहीं । जबरदस्ती, लोगों के दबाव से, महाराज के दबाव से व्रत किया है, तो उसकी कीमत या चमक कम हो जाती है। इसलिए बंधुओं ! जीवन में उल्लास और उमंग से धर्म की साधना करो। ऐसा करने से आत्मा का कल्याण निश्चित है। धर्म-सेना जैसे वीर सैनिक देश की रक्षा के लिए तोप और टैंक के गोलों के सामने छाती खोलकर खड़े रहते हैं तभी वे सच्चे सैनिक कहलाते हैं। इसी तरह से धर्म की सेना में भर्ती होने वाले सैनिक अपने द्वारा लिए गए व्रतों की रक्षा के लिये छाती खोल कर खड़े रहते हैं और मोर्चे से एक इंच भी पीछे नहीं हटते। हम संत लोगों ने जिन व्रतों को जीवन भर के लिये लिया है, उनका पालन करने के लिये हम यदि इस मार्ग पर चलें तो इसमें ताज्जुब की बात नहीं है। यह तो कर्तव्य और नियम निभाने की बात है। धर्मस्थान में अनुशासन
• दिमाग में प्रवचन की बात घुसे कैसे? घंटा, आधा घंटा सुनने के लिए आते हैं, तब भी ध्यान दूसरी तरफ रहता है तो संतों की वाणी का क्या असर हो सकता है? माताएँ व्याख्यान सुनते-सुनते जब देखती हैं कि पास बैठी
औरत के लड़का है और अपनी लड़की है। संयोग बैठे जैसा है, तो वहीं पर बातचीत शुरु कर देती हैं। अपना सम्बंध बिठाने के लिए वे दूर की रिश्तेदारी निकाल लेंगी, कुशल पूछेगी और व्याख्यान उठने से पहले ही बातचीत शुरु कर देंगी। अब भला बताइए आपके विषय-कषाय घटे तो कैसे और ज्ञान की ज्योति जलती रहे तो कैसे ? यदि आप चाहते हैं कि ज्ञान की ज्योति कुछ देर तक टिकी रहे तो वैसा वातावरण रखना पड़ेगा। आपने देखा होगा ईसाई लोगों को, वे जब-जब भी गिरजाघर में जायेंगे तो नजदीक पहुँचते ही गाड़ी से उतर जायेंगे और दूसरी सारी बातें छोड़ देंगे। उन्होंने नियम बना लिया है कि गाड़ी का हार्न चर्च की अमुक सीमा में ही बजायेंगे। प्रार्थना के बीच या प्रवचन के बीच कोई बात नहीं करेंगे। जब आप नहीं बोलेंगे तो दूसरे, पास वाले भी नहीं बोलेंगे। व्याख्यान हो रहा है, शास्त्र का वाचन चल रहा है तो बैठकर बातें करना उचित नहीं।