Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं स्फूर्ति घटी, तप साधन और क्षुधा-पिपासा सहने की शक्ति घटी। फिर भी मैं वही हूँ जो पहले था, व आगे भी रहूँगा। मेरा कभी नाश होने वाला नहीं है, स्वभाव एवं गुण की अपेक्षा मैं ध्रुव हूँ, मेरे में ध्रुवता है। पर्याय क्षणिक है, बदलती रहती है । पर्याय में स्थायित्व नहीं, प्रतिपल परिवर्तन होता है। फिर राग और रोष किस बात
का, निश्चित बिगड़ने वाली वस्तु के लिये खेद क्या ? यह तो उसका स्वभाव है। - धन और धर्म • लोग गरीबी, बीमारी या संकटकाल में धर्म और भगवान का जितना आदर करते हैं, सुख-शान्ति के दिनों में
वैसा नहीं करते। लोग कहते हैं-धन होगा तो धर्म आराम से (सोरा) करेंगे, किन्तु ऐसा नियत नहीं है। एक भक्त के हाथ में बाबाजी ने १ अंक लिख दिया। भक्त अनायास रुपया कमाने लगा। बाबाजी ने एक के बाद बिन्दी लगा दी तो १० और २ बिन्दी लगाने पर प्रतिदिन १०० रुपये की आय होने लगी। भक्त की त्रिकाल साधना ढीली हो गई। बाबाजी ने तीन बिन्दी और लगाकर एक पर पाँच बिन्दी कर दी। दैनिक आय एक लाख की हो गई। भक्तजी का आना बन्द हो गया। खाना एवं सोना भी मुश्किल हो गया। एक दिन बाबाजी पहुंचे और बोले “भक्त ! मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारी सारी परेशानी दूर कर दूंगा।" उन्होंने पीछे का अंक मिटा दिया। भक्त जहाँ थे वहीं आ गए। आप लोग धन की पूजा करते हैं, परन्तु धन सदा मानव के मन में एक प्रकार की चंचलता पैदा करता है। प्रायः धन से प्रभावित मानव त्याग, तप और वैराग्य की ओर नहीं बढ़ता। इसके विपरीत इनकी ओर से मन को खींचता है। जब तक आपके पास अल्प परिमाण में द्रव्य हैं, तब तक आप समझते होंगे कि अभी और धन का संग्रह करना चाहिए क्योंकि धन के बिना धर्म नहीं होता, पर आप अन्ततोगत्वा अनुभव करके देखेंगे कि परिग्रह में वस्तुतः दूसरी ही दशा होती है। मुश्किल से ही कोई ऐसा परिवार मिलेगा, जिसमें धन के प्रति आसक्ति नहीं हो। क्या भरत चक्रवर्ती जैसा अनासक्त परिवार आज कहीं एक भी मिल सकता है? भरत महाराज के परिवार में लगातार आठ पीढ़ी तक मोक्ष गये। छह खंडों का एकछत्र साम्राज्य पाकर भी भरत चक्रवर्ती के मन में आसक्ति नहीं आयी। उनकी सन्तान के मन में भी आसक्ति अथवा विपल ऐश्वर्य-सम्पत्ति का घमण्ड नहीं आया, निरन्तर आठ पीढ़ी तक । क्या इस प्रकार का उदाहरण अन्य कुटुम्बों में मिल सकता है? लक्ष्मी के लिए लोग लालायित रहते हैं। उसे प्राप्त करने के लिए उसकी पूजा करते हैं, किन्तु सन्तों ने कहा कि लक्ष्मी की, धन की पूजा करते हुए भी लक्ष्मी आपको छोड़ सकती है। ऐसे सेठ और जमींदार बहुत से हैं , जिन्होंने प्रतिवर्ष ब्राह्मणों को बुलाकर घंटों तक लक्ष्मी की पूजा करवाई, फिर भी उन सेठों की सेठाई (सम्पत्ति)
और जमींदारों की जमींदारी चली गई। दूसरी ओर अमेरिका, रूस और पश्चिमी देशों के निवासी तथा हिन्दुस्तान के भी हजारों-लाखों लोग ऐसे हैं, जो लक्ष्मी को पूजते नहीं, फिर भी उन लोगों के पास पैसा है।
और लक्ष्मी पूजन करने वाले लक्ष्मी की पूजा करते-करते भी लक्ष्मी से वंचित हैं। ये दोनों प्रकार के प्रत्यक्ष दृष्टान्त बताते हैं कि वास्तव में आदमी की समझ की यह भ्रान्ति है कि इस प्रकार लक्ष्मी की पूजा करेंगे, तभी
लक्ष्मी रहेगी। • धन से भोग-उपभोग की आवश्यक वस्तुएँ मिलाई जाती हैं और उनसे वस्तुओं के अभाव के कारण जो