Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 898
________________ (૮૨૮ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं • महासती श्री रतनकंवर जी म.सा. व्याख्यात्री महासती श्री रतनकंवरजी म.सा. का जन्म गीजगढ निवासी प्रियधर्मी सुश्रावक श्रीमान् कुन्दनमलजी चोरड़िया की धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती रूपवती जी चोरड़िया की कुक्षि से वि.सं. १९९६ श्रावण शुक्ला पंचमी को हुआ। माता-पिता ने बचपन में ही आपको धार्मिक संस्कारों से सिंचित किया। आपकी धार्मिक रुचि दिनोंदिन बढ़ती रही। जब आपको शासन प्रभाविका परम विदुषी महासती श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. का पावन सान्निध्य मिला तो आपकी वैराग्य भावना पुष्ट होने लगी। परिणामत: जयपुर में वि.सं. २०२४ वैशाख शुक्ला षष्ठी को आपने जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की। गुरुणीजी के पूर्ण अनुशासन में रहते हुए आपने आगम-शास्त्रों एवं थोकड़ों का गहन अध्ययन प्रारंभ किया। त्याग-तप एवं सेवा के क्षेत्र में भी अपने चरण आगे बढाये। वर्तमान में आप व्याख्यात्री महासती जी के रूप में जिनशासन की प्रभावना में निर्मल संयम-पालन के साथ तत्पर हैं। आपने जयपुर में रहकर अपने से कनिष्ठ एवं अस्वस्थ महासती श्री चन्द्रकला जी म.सा. की प्रमुदित भावों से सेवा की है, जो प्रशंसनीय है। आपने अब तक मुख्य रूप से जयपुर, जोधपुर, भोपालगढ़, अजमेर, बिलाड़ा, गुलाबपुरा, ब्यावर, चौथ का बरवाड़ा, टोंक, बीजापुर, गजेन्द्रगढ, बैंगलोर, मद्रास, रायचूर, बालकेश्वर (मुम्बई) जलगाँव, पाली, सवाई माधोपुर , | हिण्डौन, कानपुर, कोटा, उज्जैन, अहमदाबाद आदि क्षेत्रों में चातुर्मास किये हैं। ___ आपके प्रवचन ओजस्वी एवं सरस होते हैं। युवावर्ग को धर्म से जोड़ने में आपकी सदैव सक्रिय भूमिका रहती है। • महासती श्री सुशीलाकंवर जी म.सा. विदुषी महासती श्री सुशीलाकंवरजी म.सा. का जन्म सूर्यनगरी जोधपुर के सुश्रावक श्रीमान् भेरूसिंहजी मेहता की धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती उगमकंवरजी मेहता की कुक्षि से वि.सं. २००९ में वैशाख कृष्णा त्रयोदशी को हुआ। ___ माता-पिता एवं परिजनों ने अपने धार्मिक संस्कारों से आपका पालन-पोषण किया। बचपन से ही आप घोड़ों | के चौक स्थानक में सन्त-सतियों की सेवा में अपने माताजी के साथ आती रहती थीं। जब आपको शासनप्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ तो आपके | धार्मिक संस्कार एवं वैराग्य भावना बढ़ने लगी। परिणामस्वरूप आपने सरदार स्कूल जोधपुर में वि.सं. २०२६ को ज्येष्ठ शुक्ला षष्ठी को श्रमणी दीक्षा अंगीकार की तभी से आप सुशीलाकंवर जी म.सा. के रूप में जानी जाती हैं। आपने हिन्दी, संस्कृत, आगम, थोकड़े आदि का बहत अच्छा अध्ययन किया। आपकी वाणी में ओज एवं माधुर्य है। आपके प्रवचन सरल एवं सरस होने से श्रोताओं के लिये विशेष प्रभावोत्पादक होते हैं। ____ आपने अब तक कोसाणा, अजमेर, जोधपुर, बिलाड़ा, गुलाबपुरा, भीलवाड़ा, ब्यावर, चौथ का बरवाड़ा, टोंक, इन्दौर, जयपुर, यादगिरी, बीजापुर पाचोरा, भरतपुर, भोपालगढ, टांटोटी, किशनगढ़, सवाई माधोपुर, दूणी, खण्डप, मसूदा, खेरली, पाली, केकड़ी , देई, करही , धुळे ताहराबाद आदि स्थानों पर चातुर्मास सम्पन्न किये हैं। ___ आप विदुषी व्याख्यात्री महासती के रूप में रत्न संघ में विश्रुत हैं। आपने महिलाओं, युवतियों एवं युवकों में|

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