Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
(द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
४६१ परिग्रह बढ़ाने की होड़ समाप्त हो सकती है और येन-केन प्रकारेण अधिकाधिक परिग्रह उपार्जन के पाप से समाज काफी अंशों में बच सकता है। आज प्राय: यह देखा जाता है कि समाज में परिग्रह-प्रदर्शन, आडम्बर और दिखावे में धन का अपव्यय किया जाता है। परिग्रह-प्रदर्शन की सर्वत्र होड़ सी लगी हुई है, जो वस्तुत: साधारण स्थिति के स्वधर्मी बन्धुओं को परेशानी में डालने वाली, दुःखदायी और उन पर अनावश्यक भार डालने वाली है। यही होड़ यदि सामाजिक सुधार, धार्मिक अभ्युत्थान और धार्मिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार में लगे, तो कितने सुखद परिणाम निकल सकते हैं? एक अति सुन्दर आदर्श समाज का निर्माण हो सकता है, जन-जन के मानस में धार्मिक चेतना की अमिट लहर उत्पन्न हो सकती है। समाज का धार्मिक और नैतिक स्तर उन्नत हो सकता है। साधक को स्तुति के अमृत की तरह विष के प्याले भी पीने पड़ते हैं। जरा-सा भी सामाजिक कार्य में चूका कि लोग उसकी अच्छाइयाँ भूलकर निन्दा करने लग जाते हैं, सामाजिक जीवन का यह दूषण है। साधारण कार्यकर्ता ऐसी स्थिति में आगे नहीं बढ़ता। अत: शास्त्र में कहा है - महिमा-पूजा और निन्दा-स्तुति की अपेक्षा छोड़कर साधना या कार्य करो। किसी राहगीर को कोई बच्चा भी कहे कि आगे काँटे या गड्डा है, तो वह बुरा नहीं मानकर राजी होगा। आप भी
आलोचक की बात में लेने जैसा हो तो ग्रहण कीजिए। • समाज-व्यवस्था के लिये सबमें भाईचारा हो तो घर की बात घर में ही निपट जायेगी। बाहर किसी को खेल देखने का मौका न देवें। समाज में कितने ही ऐसे गलत रिवाज होंगे, जिनमें धनहानि, मानहानि, धर्महानि एवं ज्ञानहानि भोगकर भी लोग उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं होते। माता-पिता के जीते जी चुल्लू भर पानी नहीं देने वाले व्यक्ति मरने के बाद मृत्युभोज कर उनकी गति करना चाहते हैं। कैसी हँसी की बात है, घर में शोक-रुलाई और आपके मुँह में मिठाई, कितना लज्जास्पद दृश्य है। समाज में नीति धर्म के शिक्षण के लिए व्यवस्था नहीं, फिर भी मौसर में खर्च किया जायेगा। यह ऐसी ही स्थिति है, जैसे एक किसान के क्यारे तो सूख रहे हैं, पानी नहीं, पर नाली में भरपूर बहा रहा है। समाज-सेवा/सेवा समाज-सेवा करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है। धन वाले धन देकर सेवा करें, दिमाग वाले दिमाग से सेवा करें। जो बोलना और प्रचार करना जानते हों वे शुभ कार्य का प्रचार करें। ऐसी मिली-जुली ताकत से आप अपनी शक्ति का दान करेंगे तो समाज सुखी रहेगा। अहिंसक संस्कृति सही रूप में बढ़ेगी तो भगवान की सच्ची सेवा होगी, हमारे जैसे संत को भी प्रमोद होगा। आप लोग गद्दी पर बैठ कर काम चलाते हैं, लेकिन महाजनों की लड़कियाँ दूसरों के यहाँ पानी भरती हैं। दूसरों के यहाँ सिलाई का काम करती हैं, आटा पीसती हैं। कई ऐसी बहिनें हैं जो गाँवों में गोबर चुन कर लाती हैं।
और अपना गुजर चलाती हैं। पहले घर-घर दी जाने वाली हाँती से कमजोर स्थिति वालों की गुजर चलती थी। समाज में जब उसका वितरण होता था तब किसी बुढ़िया के घर पहुँचते ही लापसी के नीचे मुहर रख कर | लापसी के बहाने मुहर उसके घर पर पहुँचा दी जाती थी।