Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
६४९ फतेहगढ़ स्थानकवासी जैन संघ में २०-२५ वर्षों से मनमुटाव चल रहा था तथा समाज व्यवस्था दो भागों में विभक्त थी। इस कारण कई तरह से विद्वेष-विवाद एवं तनाव की स्थिति रहती थी। आचार्य भगवन्त ने वहाँ के माहौल को देखकर पारस्परिक प्रेम-संवर्धन की प्रबल प्रेरणा दी। आचार्य भगवन्त की वाणी के प्रभाव से संघ का वर्षों पुराना विवाद शान्त हो गया तथा समाज में प्रेम की सरिता फिर बहने लगी। वह प्रेम की सरिता आज तक अबाध रूप से बह रही है। सरवाड़, २१ फरवरी १९९८
प्रेषक-नारायणसिंह लोढ़ा, वर्द्धमान वस्त्र भण्डार, सरवाड़ (राज.)