Book Title: Laghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Author(s): Ratnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

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Page 645
________________ श्री लघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् । नाणामणिमयदेहाल-कवाडपरिघाइदारसोहाहि । जगईहिं ते सवे, दीवोदहिणो परिरिकत्ता ॥ १८॥ वरतिणतोरणज्झयछत्त-वाविपासायसेलसिलवहे। वेइवणे वरमंडव-गिहासणेसुं रमति सुरा ॥ १९ ॥ इह अहिगारो जेसिं, सुराण देवीण ताणमुप्पत्ती । नियदीवोदहिनामे, असंखइमे सनयरीसु ॥ २० ॥ जंबूद्दीवो छहिं कुल-गिरिहिं सत्तहिं तहेव वासेहिं । पुवावरदीहेहि, परिछिन्नो ते इमे कमसो ॥ २१ ॥ हिमवंसिहरी महहिम-वरुप्पिनिसढो य नीलवंतो य । बाहिरओ दुदुगिरिणो, उभओ वि सवेइया सव्वे ॥ २२ ॥ भरहेरवय त्ति दुगं, दुगं च हेमवयरण्णवयरूवं । हरिवासरम्मयदुर्ग, मज्झि विदेहु त्ति सग वासा ॥ २३ ॥ दो दीहा चउ वहा, वेअड्डा खित्तछक्कमज्झम्मि।। मेरू विदेहमज्झे, पमाणमित्तो कुलगिरीणं ॥ २४ ॥ इगदोचउसयउच्चा, कणगमया कणगरायया कमसो । तवणिजसुवेरुलिया, बहिमज्झभिंतरा दो दो ॥ २५ ॥ दुग अड दुतीस अंका, लक्खगुणा कमेण नउअसयभइया । मूलोवरि समरूवं, वित्थारं बिंति जुअलतिगे ॥ २६ ॥ बावण्णहिओ सहसो, बारकला बाहिराण वित्थारो। मज्झिमगाण दसुत्तर-बायालसया दस कला य ॥२७॥

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