Book Title: Laghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Author(s): Ratnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

View full book text
Previous | Next

Page 653
________________ श्री लघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् । मणुआउसम गयाई, हयाइ चउरंसऽजाइ अटुंसा । गोमहिसुट्टखराई, पणंस साणाइ दसमंसा ॥ ९८ ॥ इच्चाइ तिरच्छाण वि, पायं सवारएसु सारिच्छं । तइआरसेसि कुलगर-नयजिणधम्माइ उप्पत्ती ॥ ९९ ॥ कालदुगे तिचउत्था-रगेसु एगणनवइपक्खेसु । सोस गएसु सिझंति, हुंति पढमंतिमजिणिंदा ॥ १०० ॥ बायालसहसवरिसू-णिगकोडाकोडिअयरमाणाए। तुरिए नराउ पुवा-ण कोडि तणु कोसचउरंसं ॥ १०१ ॥ वरिसेगवीससहस-प्पमाणपंचमरए सगकरुच्चा । तीसहियेसयाउ नरा, तयंति धम्माइयाणंतो ॥ १०२ ॥ [सुअसूरिसंघधम्मो, पुव्वण्हे छिजिही अगणिसायं । निवविमलवाहणो सुह-ममति तद्धम्म मज्झण्हे ॥ १॥] खारग्गिविसाईहिं, हाहाभूआकयाइ पुहवीए । खगीयं विअड्डाइसु, नराइबीयं बिलाईसु ॥ १०३ ॥ बहुमच्छचक्कवहनइ-चउक्कपासेसु नव नव बिलाई। वेअड्डोभयपासे, चउआल सयं बिलाणेवं ॥ १०४ ॥ पंचमसमछट्ठारे, दुकरुच्चा वीसवरिसआउ नरा । मच्छासिणो कुरूवा, कूरा बिलवासि कुगइगमा ॥ १०५ ॥ निल्लज्जा निव्वसणा, खरवयणा पिअसुआइठिइराहिया । थीओ छवरिसगब्भा, अइदुहपसवा बहुसुआ य ॥ १०६ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669