Book Title: Laghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Author(s): Ratnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

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Page 658
________________ श्री लघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् । विजयाण पित्ति सग - ट्ठभाग बारुत्तरा दुवीससया । सेलाणं पंचसए, सवेइनइ पन्नवसिसयं ॥ १४७ ॥ सोलससहस्स पणसय, बाणउआ तह य दो कलाओ य । एएसिं सव्वेसिं, आयामो वणमुहाणं च ॥ १४८ ॥ गयदंतगिरिच्चा, वक्खारा ताणमंतरनईणं । विजयाणं च भिहाणा - इं मालवंता पयाहिणओ ॥ १४९ ॥ चिंत्ते य बंभेकूडे, नलिणीकूडे य एगॅसेले य । तिउंडे वेसर्मणे विय, अंजणमयंजणे चेव ॥ १५० ॥ अंकोवइ, पम्हावं, औसीविस तह सुहावहे 'चंदे | सूरे नौगे देवे", सोलस वक्खारगिरिनामा ॥ १५१ ॥ गाहावइ, देहवई, वेगवई तत्त मंत उम्मत्ता । खीरोय सीसोया, तह अंतोवांहिणी चेव ॥ १५२ ॥ उम्मीमालिणि गंभी-रेमालिणी फेणेमालिणी चेव । सव्वत्थ वि दसजोयण-उंडा कुंडुब्भवा एया ॥ १५३ ॥ केच्छु सुकच्छो य महा- कच्छो कच्छावई तहा । आवन्तो मंगलवत्तो, पुक्खलो पुक्खलावई ॥ १५४ ॥ वच्छु सुवच्छो य मही- वच्छो वच्छावई विय। रम्भाय रम्मैओ चेव, रमैणिजो मंगलावई ॥ १५५ ॥ पम्हुँ सुप हो य महीं - पम्हो पहावई तओ । संखो नलिनामा य, कुमुओ नलिणीवई ॥ १५६ ॥

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