Book Title: Laghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Author(s): Ratnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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श्री लघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् । ॥ अथ तृतीयधातकीखंडद्वीपाधिकारः॥. जामुत्तरदाहणं, दससयसम पिहुलपणसयुच्चेणं । उसुयारगिरिजुगेणं, धायइसंडो दुहविहत्तो ॥ २२५ ॥ खंडदुगे छ छ गिरिणो, सग सग वासा य अरविवररूवा । धुरि अंतिसमा गिरिणो, वासा पुण पिछलपिङलयरा ॥ २२६ ॥ दहकुंडंडत्तममे-कमुस्सयं वित्थरं वियड्डाणं ।। वट्टगिरीणं च सुमे-रुवजमिह जाण पुवसमं ॥ २२७ ॥ मेरुदुर्गपि तह चिय, नवरं सोमणसहि?वरिदेसे । सगअडसहस्सऊणुत्ति सहसपणसीइ उच्चत्ते ॥ २२८ ॥ तह पणनवई चउणेउँ, अद्धचणेऊ य अटुंतीसा य । देसय सयाइ कमेणं, पणठाण पिहुत्ति हिट्ठाओ ॥ २२९ ॥ नईकुंडेदीवैवर्णमुह-दहेंदीहरसेलकमलवित्थारं । नइउंडत्तं च तहा, दहदीहत्तं च इह दुगुणं ॥ २३० ॥ इगलक्खु सत्तसहसा, अडसय गुणसीइ भद्दसालवणं । पुवावरदीहंतं, जामुत्तर अट्ठसीभइयं ॥ २३१ ॥ बहिगयदंता दीहा, पणलक्खूणसयरिसहस दुगुणट्ठा । इयरे तिलक्ख छप्प-ण्णसहस सय दुन्नि सगवीसा ॥ २३२ ॥ खित्ताणुमाणओ से-ससेलनेई विजयवर्णमुहायामो । चउलक्खदीहवासा, वासविजयवित्थरो उ इमो ॥ २३३ ॥ खिसकगुणधुवंके, दोसयवारुत्तरोहिं पविभत्ते । सवत्थ वासवासो, हवेइ इह पुण इय धुवंका ॥ २३४ ॥
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