Book Title: Laghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Author(s): Ratnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

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Page 652
________________ श्री लघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् । बहिखंडंतो बारस-दीहा नव वित्थडा अउज्झपुरी । सा लवणा वेअड्डा, चउदहिसयं चिगारकला ॥ ८८ ॥ चक्किवसनइपवेसे, तित्थदुगं मागहो पभासो अ । ताणंतो वरदामो, इह सवे बिडुत्तरसयंत्ति ॥ ८९ ॥ भरहेरवए छछअर-मयावसाप्पिणिउसप्पिणीरुवं । परिभमइ कालचकं, दुवालसारं सया वि कमा ॥ ९० ॥ सुसमसुसमा य सुसमा, सुसमदुसमा य दुसमैसुसमा य । दुसमा य दुसमंदुसमा, कमुकमा दुसु वि अरछकं ॥ ९१ ॥ पुवुत्तपल्लि समसय-अणुगहणा निट्ठिए हवइ पलिओ ॥ दसकोडिकोडिपलिए-हिं सागरो होइ कालस्स ॥ ९२ ॥ सागरचउतिदुकोडा-कोडिमिए अरतिगे नराण कमा। आऊ तिदुइगपलिआ, तिदुइगकोसा तणुच्चत्तं ॥ ९३ ॥ तिदुइगदिणेहिं तूवरि-बयरामलमित्तु तेसिमाहारो। पिट्ठकरंडा दोसय, छप्पन्ना तद्दलं च दलं ॥ ९४ ॥ गुणवन्नदिणे तह पन-रपनरअहिए अवञ्चपालणया। अवि सयलजिआ जुअला, सुमणसुरूवा य सुरगइआ॥९५॥ तेसि मत्तंग भिंगा, तुडिअंगा जोई दीवं चित्तंगा । चित्तरंसा मणिअंगा, गेहागारा अणिअयक्खा ॥ ९६ ॥ पाणं भायण पिच्छण, रविपहँदीवपहकुसुममाहारो। भूसण गिहवत्थासण, कप्पदुमा दसविहा दिति ॥ ९७ ॥

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