Book Title: Laghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Author(s): Ratnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

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Page 655
________________ श्री लघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् । १३ जिणहरबहिदिसि जोअण-पणसयदीहद्धपिहुल चउउच्चा । अद्धससिसमा चउरो, सिअकणगासिला सवेईआ ॥ ११७ ॥ सिलमाणडुसहस्सं - समाणसी हासणेहि दोहि जुआ । सिल पंडुकंबला रत्त - कंबला पुव्वपच्छिमओ ॥ ११८ ॥ जामुत्तराओ ताओ, इगेगसीहासणाओ अइपुव्वा । चउसु वि तासु नियासण-दिसिभवजिणमजणं होई ॥ ११९ ॥ सिहराछत्तीसहि, सहसेोहिं मेहलाइ पंचसए । पिहुलं सोमणसवणं सिलविणु पंडगवणसरिच्छं ॥ १२० ॥ तब्बाहिरि विक्खभो, बायालसयाई दुसयरिजुआई । अट्ठेगारसभागा, मज्झे तं चैव सहसूणं ॥ १२१ ॥ ॥१२२॥ तत्तो सङ्घसट्ठी - सहस्सेहिं नंदणं पि तह चेव । नवरि भवणपासायं-तरद्वदिसि कुमरिकूडा वि नवसहस नवसयाई, चउपण्णा छच्चिगारभागा य । नंदणबहिविक्खंभो, सहसूणो होइ मज्झमि ॥ १२३ ॥ तदहो पंचसएहि, महिअलि तह चैव भद्दसालवणं । नवरमिह दिग्गय च्चिय, कूडा वणवित्थरं तु इमं ॥ १२४ ॥ बावीससहरसाई, मेरुओ पुव्वओ अ पच्छिमओ । तं चाडसीविहतं, वणमाणं दाहिणुत्तरओ ॥ १२५ ॥ छव्वीससहस चउसय, पणहत्तरि गंतु कुरुनइपवाया । उभओ विनिग्गया गय-दंता मेरुम्मुहा चउरो ॥ १२६ ॥

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