Book Title: Laghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Author(s): Ratnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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सप्रकरणम् ।
सुपसत्थवत्थुणामा, तिपडोआरा तहाऽरुणाईया । इगणामेऽवि असंखा, जाव य सूरावभास त्ति ॥८॥ तत्तो देवे नागे, जक्खे भूए अ सयंभुरमणे य। एए पंच वि दीवा, इगेगणामा मुणेयवा ॥९॥ पढमे लवणो बीए,कालोदहि सेसएसु सव्वेसु । दीवसमणामया जा, सयंभुरमणोदही चरमो ॥१०॥ बीओ तइओ चरमो, उदगरसा पढमचउत्थपंचमगा। छट्ठोऽविसणामरसा,इक्खुरसा,सेसजलनिहिणो।११॥ जंबूद्दीवपमाणं-गुलजोअणलक्खवट्टविक्खंभो । लवणाईया सेसा, वलयाभा दुगुणदुगुणा य ॥१२॥ वयरामईहिं नियनिय-दीवोदहिमज्झगणियमूलाहिं। अदुचाहिं बारस-चउमूलेउवरिरुंदाहिं ॥१३॥ वित्थारदुगविसेसो, उस्सेहविभत्तखओ चओ होइ । इअ चूलागिरिकूडाइ-तुल्लविक्खंभकरणाहिं ॥१४॥ गाउदुगुच्चाइ तय-ट्ठभागरुंदाइ पउमवेईए। देसूणदुजोयणवरवणाइ परिमंडियसिराहिं ॥१५॥ वेईसमेण महया, गवक्खकडएण संपरित्ताहि । अट्ठारसूणचउभत्त-परिहिदारंतराहिं च ॥१६॥ अट्ठच्चचउसुवित्त्थर-दुपाससक्कोसकुड्डदाराहिं । पुवाइमहाड्डियदेव-दारविजयाइनामाहिं ॥१७॥
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