Book Title: Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Mahakavi, Virsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 17
________________ जैन शतक ४. श्री नेमिनाथ स्तुति (कवित्त मनहर) शोभिंत प्रियंग अंग देखें दुख हाय मंग, . लाजत अनंग जैसैं दीप भानुभास तैं। बालब्रह्मचारी उग्रसेन की कुमारी जादो - नाथ ! तें निकारी जन्मकादो-दुखरास तैं। भीम भवकानन मैं आन न सहाय स्वामी, अहो नेमि नामी तकि आयौ तुम तास तैं। जैसैं कृपाकंद वनजीवन की बन्द छोरी, त्यौंही दास को खलास कीजे भवपास तैं॥७॥ हे भगवान नेमिनाथ ! आपका शरीर प्रियंगु के फूल के समान श्याम वर्ण से सुशोभित है, आपके दर्शन से सारा दुःख दूर हो जाता है। और जिसप्रकार सूर्य की प्रभा के सामने दीपक लज्जित होता है, उसीप्रकार आपके सामने कामदेव लज्जित होता है। हे यादवनाथ ! आप बालब्रह्मचारी हैं। आपने सांसारिक कीचड़ के अनन्त दुःखों में से महाराजा उग्रसेन की कन्या (राजुल) को भी निकाला है। __ हे सुप्रसिद्ध नेमिनाथ स्वामी ! अब मैंने यह भली प्रकार समझ लिया है कि इस भयानक संसाररूपी जंगल में मुझे आपके अतिरिक्त अन्य कोई शरण नहीं है, इसलिए मैं आपकी ही शरण में आया हूँ। हे कृपाकंद ! जिस प्रकार आपने पशुओं को बन्धन से मुक्त किया था, उसी प्रकार मुझ सेवक को भी संसार-जाल से मुक्त कर दीजिये। विशेष :-१. प्रस्तुत छन्द में कवि ने श्री नेमिनाथ के विवाह-प्रसंग की और संकेत किया है, अत: इस छन्द का अर्थ समझने के लिए उसे जानना आवश्यक है। श्री नेमिनाथ का विवाह महाराजा उग्रसेन की पुत्री राजुल से होना तय हुआ था, किन्तु जब बारात जा रही थी तभी पशुओं के बन्धन देखकर नेमिनाथ को वैराग्य हो गया और उन्होंने मुनिदीक्षा धारण कर ली। इससे पशुओं को तो बन्धनमुक्त कर ही दिया गया, राजुल ने भी विरक्त होकर आर्यिका के व्रत को अंगीकार कर लिया। २. 'प्रियंग अंग' का अर्थ ऐसा भी हो सकता है कि जिनका अंग-अंग प्रिय है अथवा प्रत्येक अंग सुन्दर है।

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