Book Title: Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Mahakavi, Virsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 23
________________ जैन शतक १०. जिनवाणी और मिथ्यावाणी (कवित्त मनहर) कैसे करि केतकी-कनेर एक कहि जाय, __ आकदूध-गायदूध अन्तर घनेर है। पीरी होत रीरी पै न रीस करै कंचन की, कहाँ काग-वानी कहाँ कोयल की टेर है॥ कहाँ भान भारौ कहाँ आगिया बिचारौ कहाँ, पूनी को उजारी कहाँ मावस-अंधेर है। पच्छ छोरि पारखी निहारौ नेक नीके करि, जैनबैन-औरबन इतनौं ही फेर है॥१६॥ केतकी और कनेर को एक समान कैसे कहा जा सकता है? उन दोनों में तो बहुत अन्तर है। आक के दूध और गाय के दूध को एक समान कैसे कहा जा सकता है? उन दोनों में तो बहुत अन्तर है। इसीप्रकार यद्यपि पीतल भी पीला होता है, पर वह कंचन की समानता नहीं कर सकता है। हे भाई ! जरा तुम ही विचारो! कहाँ कौए की आवाज और कहाँ कोयल की टेर! कहाँ दैदीप्यमान सूर्य और कहाँ बेचारा जुगनू ! कहाँ पूर्णिमा का प्रकाश और कहाँ अमावस्या का अन्धकार ! हे पारखी ! अपना पक्ष (दुराग्रह) छोड़कर जरा सावधानीपूर्वक देखो, जिनवाणी और अन्यवाणी में उपर्युक्त उदाहरणों की भाँति बहुत अन्तर है। विशेष :-१. केतकी' एक ऐसे वृक्ष विशेष का नाम है जिस पर अत्यन्त सुगन्धित पुष्प आते हैं और जिसे सामान्य भाषा में केवड़ा' भी कहते हैं । तथा 'कनेर' यद्यपि देखने में केतकी' जैसा ही लगता है, पर वस्तुतः वह एक विषवृक्ष होता है और उसके पुष्प सुगन्धादि गुणों से हीन होते हैं। २. 'जुगनू' एक उड़नेवाला छोटा कीड़ा होता है जिसका पिछला भाग आग की चिनगारी की तरह चमकता रहता है। ३. प्रस्तुत छन्द में कवि का परीक्षाप्रधानी व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से उजागर होता है।

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