Book Title: Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Mahakavi, Virsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 80
________________ जैन शतक जोलौं देह तेरी... ज्ञानजिहाज बैठि... ज्ञानमय रूप... ज्ञानमहावत डारि ज्यौं बजाज.... ढई-सी सराय... तीन भवन मैं... तीरथनाथ प्रनाम तू नित चाहत तेज तुरंग... दश दिन विषय दिढ़ कर्माचल.. दिढ़ शील शिरोमनि... दिवि दीपक लोय.. दृष्टि घटी पलटी.. देखहु जोर जरा.... देखो भर जोबन... देव-गुरु साँचे दोय पक्ष.... धनकारन पापिनी.. ध्यान-हुताशन.... पहले भव... पाप नाम नरपति प्रथम पांडवा... बाय लगी कि... बालपनैं न संभार बालपनैं बाल.... मत-गुमानगिरि... महिमा जिनवर... २६ | मात-पिता रज... १ | मिथ्यामत के मद.. | भूल नदी के... ६७ | मोह-से महान ऊँचे... या जगमन्दिर ये ही छहविधि... रहौ दूर अंतर राग उदै जग अंध... राग उदै भोगभाव... ३३ | राय यशोधर... | रूप को न खोज लोहमई कोट... विप्रपूत मरुभूतः वीरहिमाचल ते.... शांति जिनेश शीतरितु जोर.. ३५ | शीत सहैं तन... शोभित प्रियंग... श्रीवर्म भूपतिः सकल पाप संकेत | सज्जन जो रचे... सतरह सै इक्यासिया... साँचो देव सोई... सार नर देह.... ३१ सिरीसेन आरज.... सीझे सी.... २८ | सुमतिहिं तजि. ९८ | सौ हि वरष आयु.. .

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