Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ ॥अथास्य ग्रंथस्यानुक्रमणिका प्रारंनः॥ --- --- ॥ प्रथम चैत्यवंदनादिक ( १७ ) नी अनुक्रमणिका ॥ ग्रंथांक. ग्रंथोनां नाम. प्टष्टांक. र नरकार पंच मंगलरूप. .... ....... ..... ५ खमासमण. श्वामि खमासमणो०॥ ... ३. जय जय महाप्रनु. चैत्यवंदन. ४ वसग्गहर स्तवनं. ५ अरिहंत चेश्याएं.. .. ६ नमुनुणं वा शकस्तव. 3 जे अश्या तिजयरा. .... अष्टापदें श्रीयादिजिनवर, काव्य. .... । अशोकरदः सुरपुप्पवृष्टि, काव्य. ..... १० सकल कुशल वनी, काव्य. .... .... ११ एस करेमि पणामं,तथा अन्नाण कोहमय माण, इत्यादि अरिहंत स्तुतिनी गाथा. १२ जल जरी संपुंट पत्रमां, जिनपूजाना दोहा. ११ १३ जीवडा जिनयर पूजीयें, दोहा....... ..... १२ १४ मंगलं नगवान् वीरो, मांगलिक काव्य...... १३. १५ लोगस्त ॥ कानस्सग्ग करवानो. .... १३ १६ केवलनाणी श्रीनिरवाणी, चैत्यवंदन..... २६२ १७ अरिहंतजीने खमावियें रे, परकोखामणां. ४१३ ~ ~ MPSurur D D

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