Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ (४) २६ जागे सो जिनज़क्त कहावे, सोवे सो .... ३५० २७ देव निरंजन नवनय नंजन,तत्त्वज्ञानका ३५२ २० आतम तत्त्व विचारो रे जोगी, आतम. ४१० २ए स्वारथकी सब है रे सगाई, कुण माता० ... ४१२ ३० सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ, बैरन निश० ४१३ ३१ वेशठ शलाका पुरुप, प्रनातीयु. .... ४५७ ३२ जाग जाग जीव तुं,उठ थयो प्रनात रे..... ५५० श्रीशत्रुजयना स्तवनादिक ( २४ )नी अनुक्रमणिका।। १ श्रीरेसिधाचल नेटवा,मुझमनअधिक नमाह्यो३। २ ते दिन क्यारे अावशे श्रीसिदाच न जाशु. ४० ३ सिमाचलगिरि नेट्यां रे,धन्य नाग्य हमारां. ५४ ४ महासं मन मोयुं रे, श्रीसिदार्चने रे. .... ५७ ५ शेजे झपन समोसखा,नना गुण नस्यारे. ६७ ६ आंखडीयें रे में आज शेवंजो दीगो रे..... ६॥ ७ लिगिरि ध्यावो नविका, सिगिरि ध्यावो. ६ ७ श्रीसिमाचल मंमण स्वामी रे.जगजीवन २०७ ए जात्रा नवाणुं करीये शेजा गिरि,जात्रा० २५५ १० संघ पूरे फूलवाडीयें,शेजांनी मालग..... २५२ ११ सिमाचल वंदो रे नर नारी,हारे नर० .... २६० १२ शत्रुजे जश्य ने पावन थश्य, जात्रा० ॥ २७३ १३ चालो सखि सिमाचल जयें, चालो.... १७४ १४ श्री शत्रुजय गिरि तीरथसार, थोर. .... १७६ १५ गिरिराजकू सदा मेरी वंदना, जिनजीकू० २७७

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