Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२७ श्रीमहावीरें नाखीया, दानादिक चारनी.३४२ २७ हक मरना हक जानां यारो,मत को करो० ३४७
ए हो प्रीतमजी प्रीतकी रीत अनीत० ॥ ३५१ ३० या मेवासमें बे मरदो मगन जया मेवासी. ३५० ३१ देव दानव तीर्थकर गणधर, कर्मनी. .... ३६५ ३२ जीव कोध म करजे,लोज म धरजे शीखाम०३६७ ३३ कानस्सग्गथकी रे रहे नेम राजुन ॥ ३६७ ३४. प्रथम गोवालीयातणेनवेंजीरे,शालिनश्नी.३६॥ ३५. देखो वे यारो कूडो कलियुग आयो,कलियु० ४७३ ३६ सरसत सामिणि वीन, जंबुस्वामीनी..... ४७४ ३७ अाज मारे एकादशी रे, एकादशीनी..... ४७५ ३७ नंचा मंदिर मालीयां, सोड्यबालीने सूतो. ४७६ ३॥ अमल वन स्वाध्याय. .... .... .... ४७७ ४० वीर कहे गौतम सुणो, पांचमा पारानी. ४७॥ ४१ तुक साथें नही वोलुं रे पनजी,तें मुकम्॥ ४? ४२ श्रीगुरु चरण पसाउने, शीखामणनी..... पण ४३ पडजो कुमति गढनां कांगरां,नपदेशनी..... ५०४ ४४ महारुं महाकै म कर जीव तुं,उपदेशन...... ५५५ ४५ अंगस्फुरकण शुनागुन फल सद्याय, ४६ बीकविचारनी सद्याय तथा तेना फलनो यंत्र६३ ४७ अष्ट महासिदिनी स्वाध्याय. .... .... ४७ जुवटुं नही रमवा आश्रयी उपदेशनी.....' ४ए रहनेमी अने राजिमतीजीनी.. .... . .... ६७०
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