Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ प्रस्तावना. या जैनप्रबोध नामक पुस्तकनो प्रथमनाग बा पी जाहेरमां मूकतां समस्त महारा साधर्मि नाइयो ने हुं सविनय प्रार्थना करूं बुं, के केटलाएक न्हाना महोटां स्तवनो, सघायो, प्रजातियां, चोढालीयां, बंदो, लावणीयो, होरीथो अने अनेक प्रकारना तप कर वानो विधि, यादें देइने वीजा पण घणा प्रकारना बूटा बोल, जेवा के प्रत्येक वांचनार साहेबने अवश्य ख मां आवे तेचा तेवा घणी सूक्ष्मताथी शोधीने या पुस्तकमां बामली सुमारें साडा सातों ग्रंथो दाख ल करेला बे. एटने प्रथम अढी रुपैयानी किंमतनो जैनप्रबोध जे में बापेलो हतो, तेमां जे जे स्तवना दिको हतां तें सर्व - पूरे पूरां या पुस्तकमां दाखल करीने वली बीजां पण तेना पोणा जाग जेटलां नविन स्तवनादि वधारे दाखल करेला बे. तेमज अगला पुस्तकमां नारकी व्यादिकनां चित्रोनां काली शाइथी बापेतां मात्र चार ष्टष्ठोज यादिमां नाख्यां हतां, तेने स्थानके हाजमां जूदा जूदा पांचे रंगमां चित्रेलां शोल ष्टष्टों या ग्रंथनी यादिमां हकीगत स हित नाख्यां ने. परंतु ते चित्र हालमां मात्र पांचशोपुस्तकोमांज नाखीने पुठां बंधावेलां बे, माटें जे साहेबो लगभग एक वर्षनी अंदर ए पुस्तक खरीद करशे, ते साहेबाने ते रंगीन चित्र सार्थेनुं पुस्तक मली शकशे.

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