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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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३८०८
BEATEN TE
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जैनप्रबोध पुस्तक
नाग पहेलो
एम
समस्त श्रावक नाइने अवश्य खपमां याववा योग्य एवां स्तवनादिकोने
'यथायोग्य शुद्ध करी
श्रावक भीमसिंह माणकें
श्री मुंबापुरी मध्ये.
निर्णयसागर मुद्रायंत्रमां मुद्रित कराव्यां है. संवत् १९४५ ना सन १८८९. माघशुक्ल ५ मी मंगळवार.
आ ग्रंथ छापवानो हक्क, सन १८६७ ना पचीशमा आकटभुजब मालेकें पोतानें स्वाधीन राखेलो छे.
Yo
2002:
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प्रस्तावना.
या जैनप्रबोध नामक पुस्तकनो प्रथमनाग बा पी जाहेरमां मूकतां समस्त महारा साधर्मि नाइयो ने हुं सविनय प्रार्थना करूं बुं, के केटलाएक न्हाना महोटां स्तवनो, सघायो, प्रजातियां, चोढालीयां, बंदो, लावणीयो, होरीथो अने अनेक प्रकारना तप कर वानो विधि, यादें देइने वीजा पण घणा प्रकारना बूटा बोल, जेवा के प्रत्येक वांचनार साहेबने अवश्य ख मां आवे तेचा तेवा घणी सूक्ष्मताथी शोधीने या पुस्तकमां बामली सुमारें साडा सातों ग्रंथो दाख ल करेला बे. एटने प्रथम अढी रुपैयानी किंमतनो जैनप्रबोध जे में बापेलो हतो, तेमां जे जे स्तवना दिको हतां तें सर्व - पूरे पूरां या पुस्तकमां दाखल करीने वली बीजां पण तेना पोणा जाग जेटलां नविन स्तवनादि वधारे दाखल करेला बे. तेमज अगला पुस्तकमां नारकी व्यादिकनां चित्रोनां काली शाइथी बापेतां मात्र चार ष्टष्ठोज यादिमां नाख्यां हतां, तेने स्थानके हाजमां जूदा जूदा पांचे रंगमां चित्रेलां शोल ष्टष्टों या ग्रंथनी यादिमां हकीगत स हित नाख्यां ने. परंतु ते चित्र हालमां मात्र पांचशोपुस्तकोमांज नाखीने पुठां बंधावेलां बे, माटें जे साहेबो लगभग एक वर्षनी अंदर ए पुस्तक खरीद करशे, ते साहेबाने ते रंगीन चित्र सार्थेनुं पुस्तक मली शकशे.
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(२) तेमज या ग्रंथ, सर्व श्रावक मंमलने नपयोगी होवाथी एमां कांइ पण फायदो थवानी आशा न राखतां पुस्तक बापतां जे खरच लाग्यो , तेटलीज रकम उपजाववा माटें हालमा मात्र एनी किंमत स०३) अंके त्रज राखेली ले. ए वातनो निश्चय करवा माटें प्रथम जे रत्नसार नामें पुस्तकनो बीजो नाग बार रुपैयानी किंमतवालो बपायो हतो, तेमां जेटला लोकसंख्यानो समावेश करेलो , तेटलाज लोकसंख्यानो आमां पण समावेश कस्खा बतां तेना चतुर्थाश जेटली किम्मत राखीने. ते उपरथीज सऊ नोना मनमा महारुं लख, रखरेखलं समजाइ जशे. ___ माटे ढुं आशा राखंबू के जे साहेबो या पुस्तक मां आवेली सर्व बाबतो बांची जशे, तेमने या ग्रंथ अवश्य प्रिय लागशे, तेथी ते उपकारी सऊनो वीजा पण पोताना निकटवर्ती बंधुन्ने या पुस्तक खरीद क रवानीजलामण करी पोतानी सुजनता प्रदर्शित करशे. __ या पुस्तक बापतां आगल माफक अजितनाथन एक स्तवन तथा श्रीपार्श्वनाथनु एक स्तवन वे वखत
पाइ गयेखें , तेमज अफ तपासतां नजरदोषथी तथा स्थल बुदिना प्रसंगथी महाराथी जे कांइ आ ग्रंथमां अशुद्धता रहेली होय, ते गुणझोयें महारा नपर दमा राखी सुधारीने वाचवू. या ग्रंथमां थ येली अशुता संबंधी समस्त वांचक वर्गनी साथें मि हामि मुक्कडं करूं बूं. ते स्वीकारशो.किंबद विलेखनेन.
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॥अथास्य ग्रंथस्यानुक्रमणिका प्रारंनः॥
--- --- ॥ प्रथम चैत्यवंदनादिक ( १७ ) नी अनुक्रमणिका ॥ ग्रंथांक. ग्रंथोनां नाम.
प्टष्टांक. र नरकार पंच मंगलरूप. .... ....... ..... ५ खमासमण. श्वामि खमासमणो०॥ ... ३. जय जय महाप्रनु. चैत्यवंदन. ४ वसग्गहर स्तवनं. ५ अरिहंत चेश्याएं.. .. ६ नमुनुणं वा शकस्तव. 3 जे अश्या तिजयरा. ....
अष्टापदें श्रीयादिजिनवर, काव्य. .... । अशोकरदः सुरपुप्पवृष्टि, काव्य. ..... १० सकल कुशल वनी, काव्य. .... .... ११ एस करेमि पणामं,तथा अन्नाण कोहमय
माण, इत्यादि अरिहंत स्तुतिनी गाथा. १२ जल जरी संपुंट पत्रमां, जिनपूजाना दोहा. ११ १३ जीवडा जिनयर पूजीयें, दोहा....... ..... १२ १४ मंगलं नगवान् वीरो, मांगलिक काव्य...... १३. १५ लोगस्त ॥ कानस्सग्ग करवानो. .... १३ १६ केवलनाणी श्रीनिरवाणी, चैत्यवंदन..... २६२ १७ अरिहंतजीने खमावियें रे, परकोखामणां. ४१३
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(२)
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॥ प्रारति तथा मंगलीक दीपक (G)॥ १ पहेली प्रारति प्रथम जिणंदा. .... .... २ आज घरे नाथ पधास्या,कीजें मंगल चार. ३ दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो. .... .... ४ महोटी भारति. आदिजिननी. .... ...... ५ जय जय प्रारति देवी तुमारी, चक्रेश्वरीनी. २७ ६ जाग नवियां धर्म वाहागुं,प्रनाति मंगल, ४?
सिदारथ नूपति सोहे, चार मंगल. .... ६५ उहविध मंगल आरति कीजें, पंच॥ .... ६१३
॥ श्रीसिमचक्रजीनां स्तवनो (११) ॥ १ गोयम नाणी हो, के कहें सुणोप्राणी म०॥ १६ २ नवपद महिमा सार, सांजलजो नर नार. १३ ३ श्रीवीरजिणंद वखाण्यो. .... .... .... १७ ४ सेवो रे नवि नावें नवकार, जंपे श्री० ॥ ५ नवियां श्रीसिदचक अाराधो. .... .... २० ६ श्री सिक्ष्चक्र ाराधियें. शिवसुख ॥.... २० ७ धाराहो प्राणी साची नवपद सेवा. .... २१ G गौतमपूबत श्रीजिन नाखत, वचन ॥ .... २१
ए नवपद महिमा सांजलो, वीर नाखे॥ २२ १० समरी शारदमाय, प्रणमीनिज गुरुपाय. ७१ ११ श्रीसिचकने वंदोजी मनोहर ॥ सी..... २२१
॥जूटक प्रजातीयां (३२) नी अनुक्रमणिका ॥ १ अब तुं चेतन चेत ले,क्षण साखीयो जाय. १४
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२ जब जिनराज कृपा करे.तब.शिवसुख पावे. ११ ३ विषय वासना त्यागो चेतन, साचे मारग १५ ४ पूरव पुण्य उदय करी चेतन. .... .... १५ ५ जब लगें समकित रत्नकू. पाया नही.... ४० ६ मात पृथ्वीसुत प्रात कती नमो. .... २०६ ७ रे जीव जिनधर्म कीजीयें. धर्मना चा.... २४४ ७ अजब ज्योति मेरे जिनकी, तुम देखो०॥ २४६
ए जब तुम नाथ निरंजना.तव में नक्त तुमारो. २४६ १० हम लोक निरंजन लालके. उरनके नाही. २४ ११ जाग जाग रयण गई,नोर जयो प्यारे..... २५५ १२ रे मन लोनी ताले कोण पतियारो. .... २७१ १३ ओरनसुं रंग न्यारा न्यारा, तुमसुं॥.... १४ वाणी हे विशाल तेरी अगम अगोचरी..... २00 १५ ऐसे सहेर विच कौन दीवान हे रे. .... १६ श्री अरिहंत नमीजें चतुर नर,श्रीअरि॥ २७ १७ परमेष्टी आराधि, सुगुणीजन, परमे० ॥ २॥ १७ आचारिज पदसेवा, चहत मन, प्राचा॥ २॥ १प्रातम गुण अनितारख्यो अनुभवी,आ॥ NG २० में हुँ मुसाफार आया हो प्यारा,नहीं कोई० ३०१ २१ जोबनीयांनी मोजां फोजां, जाय ॥ .... ३०१ २२ आवी रूडी नगति में, पहेलां न जाणी..... ३१ ॥ १३ कहा रे अज्ञानी जीवकू, गुरु ज्ञान बतावे. ३३१ २४ आजको लाहो लीजीयें,काल कोणे रे दीठी.३४४ २५ में परदेशी दूरका, प्रचं दरिसनईं बाया. ३४४
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(४) २६ जागे सो जिनज़क्त कहावे, सोवे सो .... ३५० २७ देव निरंजन नवनय नंजन,तत्त्वज्ञानका ३५२ २० आतम तत्त्व विचारो रे जोगी, आतम. ४१० २ए स्वारथकी सब है रे सगाई, कुण माता० ... ४१२ ३० सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ, बैरन निश० ४१३ ३१ वेशठ शलाका पुरुप, प्रनातीयु. .... ४५७ ३२ जाग जाग जीव तुं,उठ थयो प्रनात रे..... ५५० श्रीशत्रुजयना स्तवनादिक ( २४ )नी अनुक्रमणिका।। १ श्रीरेसिधाचल नेटवा,मुझमनअधिक नमाह्यो३। २ ते दिन क्यारे अावशे श्रीसिदाच न जाशु. ४० ३ सिमाचलगिरि नेट्यां रे,धन्य नाग्य हमारां. ५४ ४ महासं मन मोयुं रे, श्रीसिदार्चने रे. .... ५७ ५ शेजे झपन समोसखा,नना गुण नस्यारे. ६७ ६ आंखडीयें रे में आज शेवंजो दीगो रे..... ६॥ ७ लिगिरि ध्यावो नविका, सिगिरि ध्यावो. ६ ७ श्रीसिमाचल मंमण स्वामी रे.जगजीवन २०७
ए जात्रा नवाणुं करीये शेजा गिरि,जात्रा० २५५ १० संघ पूरे फूलवाडीयें,शेजांनी मालग..... २५२ ११ सिमाचल वंदो रे नर नारी,हारे नर० .... २६० १२ शत्रुजे जश्य ने पावन थश्य, जात्रा० ॥ २७३ १३ चालो सखि सिमाचल जयें, चालो.... १७४ १४ श्री शत्रुजय गिरि तीरथसार, थोर. .... १७६ १५ गिरिराजकू सदा मेरी वंदना, जिनजीकू० २७७
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(५)
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२७३
१६ विवेकी विमलाचल वसीयें,तप जप करी० २७७ १७ अखीयां सफल नइ में, नेट्या नानिकुमार. २० १७ ए तो सकल तीरथनो राय. .... .... ३१७ १ए चालो चालो सिमाचल जश्य रे,रुप .... २० चालोने प्रीतमजी प्यारा शेजेजे जयें..... ३५७ २१ विमलाचल विमला प्राणी, शीतल .... ३६३ २२ सिवाचल सिदिसुहावे,अनंत अनंत.... ३६४ २३. वीरजी आया रे विमलाचलके मेदान..... ५५१ २४ जे कोड सिगिरिराजने अाराधशे रे लो. ५५० ॥ श्री समेत शिवरादि तीर्थोनां स्तवनो (७) ॥ १ चालो चालो शिखरगिरि जश्ये रे. .... २ शिखरजीकी मात्रा क्युं न करे..... .... ? ३ तुंही नमो नमो समेत शिखर गिरि. .... ३३० ४ याबु पवेत रूयडो रे लाल. .... ५ श्रीराणकपुर रलियामां रे लाल.... ६ जगपति जयो जयो रुपनजिणंद,राणकपुरनुं ३३६ ७ अष्टापद अरिहंतजी महारा वालाजी रे..... ५० G तीरथ अष्ठापद नित्य नमीयें. .... .... ७४ ॥ तूटक न्हानां स्तवनो ( १७ ) नी अनुक्रमणिका ॥ १ श्रीगौतम एना करे, विनय करी ॥ .... २३ २ प्रह समे नाव धरी घणो..... ..... ..... ३६ ३ सिघनी शोना रे शी कहूं..... ....
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(६) ४ एक वार वबदेश आवजो जिणंदजी. .... ७५ ५ पंचमी तप तमें करो रे प्राणी..... .... ए० ६ माता त्रिशनायें पुत्ररतन जाश्यो,पालगुं. २०७ ७ माता त्रिशला फुलावे पुत्र पारणे.हालरीयुं. ११ G सुगजो साजन संत पजसण अाव्यां रे. २५४
। प्रनुजीरे प्रनुजी नाम जपुं मन माहरे..... २५७ १० खतरा दूर करनां दूर करना. .... .... २ए ११ अविनाशीनी सेजडीयें रंग लागो॥ ३५६ १२ धन धन संप्रति साचो राजा, जेणे॥ .४११ १३ जेहने जिनवरनो नहीं जाप,तेह पासुं० ४२५ १४ समकित हार गंजारें पेसतां जी..... ... ४७१ १५ लाल तेरे नैनोकी गतं न्यारी. ... ... ४४ १६ चोवीशे जिनगुण गायें.चोवीशीनो कलश. ५३२ १७ रिसह जिनेसर प्रणमी पाय,चोवीश ती० ५६२ ॥ महोटां स्तवनो तथा रास अने चोढाली
यां वगेरे (१७) नी अनुक्रमणिका. १ श्रीमहावीरना पंचकल्याणकनुं चोढालीयु. ४२ २ पुण्यप्रकाशनुं आराधनानुं स्तवन. .... ७४ ३ श्रीगौतम स्वामीनो महोटों रास. .... ४ श्रीगोडीपार्श्वनाथजीनुं चोढालीयु. .... २२७ ५ सुर नर तिरियग योनिमें, ज्ञानपञ्चीशी..... २३३ ६ बालचंद बत्रीशी, अजर अमर पद ॥ ३०३ ७ दान शीयल तप नावनानुं चोढालीयुं..... ३२१
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( ७ )
४०३
हवे राणी पद्मावती, जीवराशि खमावे... ३७४ एए ग्रात्मशिक्षा जावनाना दोहा (१८५) ३७७ १० नतपत्ति जो जो आपणी, जीवोत्पत्ति. ३३ ११ श्रीदर जीव मागुण श्रादर, कमात्रीशी. ३५९ १२ वैकुंठपंथ वीहामणो, दोहिलो बे घाट. १३ जीव विचारनुं स्तवन नव ढालोनुं. १४ नव तत्त्वनुं स्तवन. अगीयार ढालोनुं १.५ चोवीश दंमकनुं स्तवन बवीश ढालोनुं .. १६ बंधकमुनिनुं चोढालीयुं वैराग्यमय. १७ श्रावकने त्रण मनोरथ नाववाना.
....
॥ छंद (ए) नी अनुक्रमणिका ॥
१०
६०
६ १
१ प्रभु पासजी ताहेरुं नाम मीतुं ..... २ वीर जिनेसर केरो शिष्य गौतमजीनो..... ३ वंचित पूरे विविध परें, नवकारनो. ४ आदिनाथ आदिजिनवर वंदि, शोलसतीनो ६३ ५ शारद मायं नमुं शिर नामी शांतिजिननो.....२२५ ६ आपण घर वेगं लील करो, पार्श्वजिननो. २३२ ७ जय जय जगनायक पार्श्वजिनं .....
४ १५
४२५
४५१
५३३
५४ १
२३६
सकल सुखाकर जिनवर राय, पार्श्व जिननो. ३५० ए श्री सुमतिदायक ॥ चोत्रीश अतिशयनो. ३७२
|| संघाने (४५) नी अनुक्रमणिका ॥
१ लोन न करीयें प्राणीया रे.
२ शीलनी नववाडो. उदयरत्नजीकृत.
१८
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३ 'प्रीतमसेंती वीनवे, तमाकुनी. .... .... ३४ ४ पुण्य संयोगें नरनव लाधो,रात्रिनोजननी. २१३ पनिंदामकरजोकोश्नीपारकीरे, निंदावारकनी. २१५ ६ सुण सुण कंता रे शीख सोहामणी. .... २१५ 3 एक अगेपम शीखामण खरी..... .... २१७ G कडवां फन ने क्रोधनां,क्रोधनी...... ...
ए रे जीव मान न कीजियें. माननी.... १० समकितनुं वीज जागीय जी,मायानी, २२१
" तुमें लक्षण जो जो लोजना रे, लोनी, २२२ १५ श्रावक तुं नते परजात, श्रावक करणीनी. १२३ १३ पीयुजी रे पीयुजी नाम, जपुंदिन रानीयां.ए २२५ १४ निडी वेरए हुई रही, निइंडीनी. बी. २२ १५ अरणिक मुनिनी सद्याय..... ... ..... २३५ १६ मेघकुमारनी सद्याय, धारणी मनावे रे॥ २३॥ १७ समकेतना शडशठ बोलनी. .... ..... २६७ १७ शामाटे बंधव मुखथी न बोलो, वलनश्नी. २७७ १॥ सुण चतुर सुजाण, परनारीशुं प्रीत॥ २७० २० नूलो मन नमरातुं क्या जम्यो,मननमरान .श६ २१ कर पडिक्कमणुं जावरां, प्रतिक्रमणफलनी. ३३३ २२ प्रनु सायें जो प्रीत वंडो तो नारीसंग निवा०३३३ २३ चोत्रीश अतिशयवंत, दाननी. .... .... ३ २४ शीयल समुं सुख को नही, शीयननी..... ३५० २५ कीयां कर्म निकंदवां रे, तपनी..... .... २६ रे नवि नाव हृदय धरो, नावनी. ....
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२७ श्रीमहावीरें नाखीया, दानादिक चारनी.३४२ २७ हक मरना हक जानां यारो,मत को करो० ३४७
ए हो प्रीतमजी प्रीतकी रीत अनीत० ॥ ३५१ ३० या मेवासमें बे मरदो मगन जया मेवासी. ३५० ३१ देव दानव तीर्थकर गणधर, कर्मनी. .... ३६५ ३२ जीव कोध म करजे,लोज म धरजे शीखाम०३६७ ३३ कानस्सग्गथकी रे रहे नेम राजुन ॥ ३६७ ३४. प्रथम गोवालीयातणेनवेंजीरे,शालिनश्नी.३६॥ ३५. देखो वे यारो कूडो कलियुग आयो,कलियु० ४७३ ३६ सरसत सामिणि वीन, जंबुस्वामीनी..... ४७४ ३७ अाज मारे एकादशी रे, एकादशीनी..... ४७५ ३७ नंचा मंदिर मालीयां, सोड्यबालीने सूतो. ४७६ ३॥ अमल वन स्वाध्याय. .... .... .... ४७७ ४० वीर कहे गौतम सुणो, पांचमा पारानी. ४७॥ ४१ तुक साथें नही वोलुं रे पनजी,तें मुकम्॥ ४? ४२ श्रीगुरु चरण पसाउने, शीखामणनी..... पण ४३ पडजो कुमति गढनां कांगरां,नपदेशनी..... ५०४ ४४ महारुं महाकै म कर जीव तुं,उपदेशन...... ५५५ ४५ अंगस्फुरकण शुनागुन फल सद्याय, ४६ बीकविचारनी सद्याय तथा तेना फलनो यंत्र६३ ४७ अष्ट महासिदिनी स्वाध्याय. .... .... ४७ जुवटुं नही रमवा आश्रयी उपदेशनी.....' ४ए रहनेमी अने राजिमतीजीनी.. .... . .... ६७०
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( १० )
॥ श्रीया दिजिननां स्तवनो (२१) नी अनुक्रमणिका ॥
१ प्रादिजिनं वंदे गुणसदनं .....
३७
२ आज तो वधाई राजा नानिके दरबार रे. ३ जीरे सफल दिवस आज माहरो .
३८
१ ४
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8 प्रथम जिनेसर प्रणमीयें, जास सुगंधीरे काय. ५० ५ जगजीवन जगवालहो. मरुने तीनो नंद .. ६ कूपन जिणंदा के जिणंदा, तु दरिसन० १२ ७ निगडी प्रादिनाथनी जो कांड कीजें ० २४७ जपणे आपण ससनेही, रमता नव० ६० एए प्रथम तीर्थकर सेवन साहिबा नदित १६ १० यादीसर जगदीसरू से, अवधारो र २०२ ११ प्रथम जिणंद प्रणमुं पाया. जननी मरु० २०० १२ श्राज नजम ने रे अधिको, जोवा दरिसंन० २४६ १३ मोसें नेह धरी महाराज आज राज० ॥ १४ जाग जाग मुकुटमणि नानीजी के नंदा. १५ नवत प्रजात नाम जिनजीको गाइयें. १६ जयो जयो नायक जगगुरु रे. यादीसर ३१३ १७ अंग नमाहो मुकने प्रति घणो:
२५८
२८५
१९३
३३१
४६०
१८ नेनां सफल नइ में निरख्या नानिकुमार..... ३६२ १५ कूपन जिनेसर प्रीतम माहरा रे.... २० वृपनलंबन दिन एटला, अतिपावन० ५०० २१ कपन जिणंद प्रीतडी, किम कीजें हो० ५०७
64.9
प
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( ११ )
॥ केशरीयाजीनां स्तवनो ( ६ ) ॥ १ प्रथम तीर्थंकर कपन जिणंदा..... २ व्याज सफल दिन माहरो रे. ३ केशरीयामें लाएं मारुं ध्यान रे.
२४२
१६०
१७६
४ घणुं मधुं नाम ले रे, महारे तो कसरीया० ३४६ ५ केसरीया वाला, जो लक्का राखगा तो रहेशे. ३४७ ६ प्रजुनी सूरति मोहनवेलडी, जी तुमारी० ५०४
|| श्री अजितनाथनां स्तवनो ( ११ ) ॥
१ अजितं जिणंदसुं प्रीतडी.
११४
१३०
१५८
५ अजित जिनेसर चरणनी सेवा..... ३ अजित जिनेसर साहेबा रे लो,वीनतडी० १४८ ४ लग प्रजित जिणंदनी, माहारे मन० ५ अजित जितजिन अंतरजामी. ६ प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदरां. ७ पंडो निहालुं रे वीजा जिन तणो रे. ८ नलग अजित जिणंदनी, नवि कीधी हो० ए अजित जिणंद जुहारीयें, साहेबा विज० १० ज्ञानादिकं गुण संपदा रे, तुक अनंत० ॥ ११ सरसति सांमिली वीनवुं. ५०१
....
....
॥ श्री संजवजिननां स्तवनो (१०) |
१ हुं तो जानं रे जिनदरबार, प्रमुख जोवानें. २ साहेब सांगलो रे, संजव अरज हमारी.
१७१
१००
४ ६१
४५०
५०१
५०७
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५८
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(१२) ३ संनव जि र वानति. .... .... ४ साहिब स जनो वीनंति, तुं बो चतुर॥ १३ ॥ ५ मने संनव जिनगुं प्रोत, अविहड लागी रे..." ६ समकित दाता समकित आपो,मन मागे । १२ ७ समज जा गुमानी हो दिल जानी..... .... २०५ ७ मोहन तारा मुखडाने मटके, मोहन० ३३
ए संनव देव ते धुर सेवो सवे रे. .... .... ४६' १० श्रीसंनवजिन राजजी रे, ताहाँ अकल ५०
॥ श्री अनिनंदन जिननां स्तवनो (. ॥ १ दीठी हो प्रनु दीठी जगगुरु तुक..... ... ? १६ २ प्रनु मुक दरिसन मलियो अलवे,मन थ७ १३ ३ श्री अजिनंदनजिन स्वामीने रे,सेवे.सुरकु० १५५ ४ अकलकला अविरु६, ध्यान धरे प्रतिबु६. १७: ५ अनिनंदन नाथ जुहारुंजी, तीरथनाए ३२५ ६ अनिनंदन जिन दरिसन तरसीयें. ... .... ४६२ ७ क्युं जाणुं क्युं बनीअावशे,अनिनंदनरस० एy
॥ श्री सुमतिनाथनां स्तवनो (७)॥ र सुमतिनाथ गुणगुं मलीजी,वाधे मुझ.... ११७ २ रूपयनूप निहाली सुमति जिन ताहरूं हो १३२ ३ पंचम सुमतिजिनेसर सामी के, सुगजि० १५१ ४ महारा प्रमुगुं बांधि प्रीतडी, ए तो जीवन १७४ ५ वाहाला सुमति जिनेसर सेवीयें रे. .... २४॥
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(१३) ६ सुमप्ति चरन कज बातम अरपण.... ४६३ ७ अहो सिरीसुमति जिन गुड़ता ताहरी..... ५१०
॥ श्री पद्म प्रनजिननां स्तवनो (G)॥ १ पद्मप्रनजिन जइ अलगा रह्या... .... ११७ २ श्रीपद्मप्रनना नामने,ढुंजाळं बलिहार..... १३३ ३ पद्मप्रनजिन सेवीयें रे, शिवसुंदरी ना.... १५२ ४ पद्मप्रन तुम सेवना, साहेबजी..... .... १७५ ५ परमरसनीनो महारो,निपुणनगीनो मा० १७५ ६ कागलीयो किरतार जणी शी परें लखुं रे. ३५७ ७ पद्मग्रनजिन तुऊ मुफ अंतरं रे. .... .... ४६४ G पद्मप्रन जिन गुणनिधि रे लाल..... .... ५१२
॥ श्रय पार्थ जिननां स्तवनो ( C )॥ १ श्री सुपार्श्वजिनराज,तुं त्रिनुवन शिरताज. ११७ २ निरवी निरखी तुफ विंबने, हरवित हो १३४ ३ मेवजो रे सामी सुपास जिनेसरु रे, लाल. १५३ ४ वाव्हा मेह बपीयडा, अहिकुलने मृग.... १७६ ५ मुऊ मन नमरो प्रनुगुण फूल. रे. .... २w ६ श्री सुपास जीन वंदीयें,सुखसंपतिने हेतु १६५ 9 श्री सुणास आनंदमें, गुण अनंतनो कंद ० ५१३
॥ श्रीचंप्रनजिननां स्तवनो (७)॥ १ चंप्रनजिन साहेबा रे,तुमें बो चतुर सुजा० ११७
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(१४) २ तूंही साहिबा रे मन मान्या,तूंतो अकल १३५ ३ जिनजी चश्मन अवधारो के,नाथ निहा० १५४ ४ श्री शंकर चंप्रनुं रेलो, तुं ध्याता जग •१७७ ५ चंदा प्रनुजीसे लाल रे मोरी लागी लगनवा.३४७ ६ देखण दे रे सखी मुने देखण दे..... .... ४६५ 9 श्री चंप्रन जिनपद सेवा, हेदायें जे० ५१४
॥श्री सुविधि जिननां स्तवनो (१०)॥ . १ लघु पण ढुं तुम मन नवि मावु रे...... ..... १ (0 २ तुज सेवा सारी रे, शिवसुरखनी त्यारी रे.... १३६ ३ सुविधि जिनेसर जागतो,जग मोहनसामी. १५५ ४ अरज सुणो एक सुविधि जिनेसर. .... १७७ ए लागो लागो रे प्रनुगुं नेह,वसीयो हीयडामां.२७५ ६ मुजरा साहेब मुजरा साहेब, साहेब० ३३१ उ अच्चो असीं गमण वेंधा, वंजे पेर पौधा, ३४३ 5 सूरत सुविधि जिणंदनी रेलोज़...... .... ३५५ ( सुविधि जिनेसर पाय नमीने. .... .... ४६६ १० दीठो सुविधि जिनंद,समाधिरमें जयो हो० ५१५
॥श्री शीतलनाथनां स्तवनों (१०)॥ १ वारी प्रनु दशमा शीतलनाथ, सुणो एक ३ २ शीतल जिननी सेवा कीजें. .... .... ५५ ३ श्री शीतलजिन नेटीयें, करी चोखं न १२० ४ तुफ मुख सनमुख निरखतां,मुफ लोचन० १३६
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(१५)
५ श्रीनदिलपुरना वासी रे,साहेब माहरा रे. १५५ ६ शीतल जिनवर सेवना साहेबजी, शीतल १७॥ ७ महारे शीतलजिनगुं,लागी पूरण प्रीत जो. २४७ G शीतल जिनवर सांजलो रे, गुणनिधि० ३१७ ए शीतल जिनपति ललितत्रिनंगी. १० शीतल जिनपति प्रनुता प्रनुनी. ....
- ॥श्री श्रेयांसजिननां स्तवनो (७) । १ तुमें वेहु मित्री रे साहेवा,महारे तो मन १२० २ श्री श्रेयांस जिणंद, घनाघन गहगह्यो रे..... १३७ ३ तारक विरुद सुगी करी, ढुंबावी ननो द० १५६ ४ श्रेयांस जिन सुएगो साहिबा रे, जिनजी० १७० ५ सहेर बंडा संसारका, दरवाजे जसु चार० ३०० ६ श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी. .... .... ४६७ ७ श्री श्रेयांस प्रनु तणो, अतिशतसहे॥ ५१७
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॥श्रीवासुपूज्य जिननां स्तबनो (६)॥ १ स्वामी तुमें कां कामण कीg..... .... ११ २ वासुपूज्य तुं साहिब साचो,जेहवो होये ही० १३७ ३ श्रीवासुपूज्य नरिंदना,नंदनजन नयणा० १५७ ४ प्रनुजीगुंलागी हो पूरण प्रीतडी, जीवन ११ ५ वासुपूज्य जिन त्रिभुवनस्वामी. .... ४६ ६ पूजना तो कीजें रे बारमा जिनं तणी रे..... ५१७
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(१६) ॥ श्री विमनजिननां स्तवनो (७)॥ १ विमल विमल गुण राजता. ......... ३ २ सेवो नवियां विमलजिनेसर, उनहा ॥ १२१ ३ जीहो विमल जिनेसर सुंदरु, लाला विम १३७ त जिन विमल वदन रलियामj,जाणे कन० १५७ ५ विमल जिणंद सुग्यानविनोदी, मुख बबी० १७२ ६ दुःख दोहग दरें टख्यां रे, सुख संपदगुं नेट. १६॥ 3 विमलजिन विमलता ताहरी जी...... ... ५१ए
॥श्री अनंत नाथनां स्तवनो (१०)॥ १ श्रीअनंतजिनगुं करो, साहेलडीयां. .... १२२
झान अनंतुं ताहरे रे, दरिसन ताहरे० १३॥ ३ सुजसानंदन जगदानंदन नाथ जो..... १५॥ ४ अनंत जिणंदमुं वीनति,में तो कोधी हो १७३ ५ अनंत. जिणंद अवधारीयें, मेवकनी १७४ ६ प्रोतडी अनंत जिन राजनी, दर्शन ७ चिन लागो अनंतजिन चरननमें. G हारे लाल चतुर शिरोमणी चौदमा. ...
ए धार तरवारनी सोहेली दोहेली.. .... १० मूरति हो प्रनु मूरति अनंत जिणंद. .... ५२०
॥ श्रीधर्मजिनना स्तवनो (1) ॥ १ था{प्रेम बन्यो राज,निरवहेशो तो लेखे. १२३ २ श्रीधर्मजिणंद दयालजी, धर्म तणो दाता. १४०
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( १७ )
३ श्रीधर्मजिनेसर सेवायें रें, जानु नरेशर ० ॥ १६० ४ हांरे महारे धर्मजिणंदचं लागी पूरण प्री०॥१८६ ५ इम करियें रे नेडो इम करीये रे, सुगुणागुं० ॥२०५ ६ धर्म जिनेसर गानं रंगसुं, जंग म पडशो० ॥ ४७१ ७ धर्मजिणंदा हो, में तुक बंदा महारा लाल. ५०५ धर्म जगनाथनो धर्मशुचि गाइयें.
५११
५
५४
१४१
१६०
॥ श्रीशांतिनाथनां स्तवनो ॥ २१ ॥ १- शांतिजीनुं मुखडुं जोवा नणीजी, मुऊ म० २ शांति प्रभु वीनति एक मोर रे..... ३ बेकर जोडी वीनवुं, सुपो जिनवर श्री शांति. ५६ 8 धन दिन वेला धन घडी तेह, अचिरारो० १२३ ५ श्री शांति- जिनेसर साहिबा, तुऊ नावे केम० ६ सुंदर शांति जिंदनी, बबि बाजे बे. ७ शोलमा श्री जिनराज, नलग सुगो श्रम तणी. १८७ ८ शांतिजिणंद सोहामणा रे जोजो, शोलमा० १८८ ए शांति जिणंद महाराज, जगतगुरु शांति० १८७ १० तुं मेरे मनमें तुं मेरे दिलमें, नाम जपुं० २५७ ११ प्रभुजी शांति जिपंदने नेटीयें, शांतिरस० २७८ १२ शांतिकरण प्रभु शांति जिनेश्वर, शांतिकर० २०१ १३ शांति जिणंद सुखकारी सकलजन! शांति ॥ ३०२ १४ शांति जिणंद नजो सदा, नवियण बहु नावें. ३०३ १५ सेवो जवि शांति जिणंद सनेहा, शांतरस०॥ ३४७ १६ शांति जिनेसर साहिबा रे, शांतितणोदातार ०३५३
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(१७)
१७ संकल सुखाकर, शांतिजिनेसर राय. .... ३ १७ शांति मिलनकी प्राश हो जीया मानुवे..... ३६ १ए गांतिजन एक मुक वीनति,सुणो त्रिनु०॥ ४७२ २० जगत वाकर जगत कृपानिधि. .... ५२२ २१ शांतिजिनेसर साहेब वंदो, अनुनवरस ॥ ५६५
॥ श्रीकुंथु ननां स्तवनों ॥ ७ ॥ १ कुंथुजिनेरवदव,रत्नदीपक तिदीपत' हो) १२: श्कुंथुजिनेसरजामजो रे,मुझमननोअनि ायरे.१४६ ३ रसीया कुंथु जिनेसर केसर, नीनी देहडी १६९ भकुंथुजिणंद करुणा कर ,जाणीपोताना दास १ एक ५ मुफअरज सुलो मुफ प्यारा, साची नति ११ ६ कुंथुजिन मनडु किमहीन बाजे. ... .... ७४ ७ समवसरण वेसी करी रे, बारह परखद० २३
॥ श्री अरनाथ जिननां स्तवनो ॥ ६ ॥ १ श्रीअरजिन नवजलनो तारु.मुकमनलागे० १२५ २ श्रीअरनाथ नपासना, गुनबासना मून. १४५ ३ गायजो रे धरी नन्नास, अरजिन वर० १६५ ४ अरनाथ अविनाशी हो, सुबिलासी खा० ११ ५ धरम परम अरनाथनो, केम जाणुं न० ॥ ४७५ ६ प्रणामो श्रीधरनाथ, शिवपुरसाथ खरोरी. ५२४
श्री मनिजिननां स्तवनो ॥ १० ॥ १ तुम मुफ रीजनीरीज,अटपट एह खरीरी. १२५
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(१५) २ महिमा मनिजिणंदनो, एके जीनें कह्यो १४३ ३ मिथिला नयरी रे अवतस्या, याने कुंन ॥ १६३ ४ सुगी सुगुरु उपदेश. ध्यायो दिलमें धरी० १५३ ५ चित्त को न गमे रे चित्त को न गमे,मनि॥२७६ ६ मोदे कैसें तारोगे दीनदयाल ॥मोहे॥.... २७५
जीरे मदिमा. मनिजि दिनी. .... .... ३५० 5 सेवक किम अवगणीयें हो मनिजिन ॥४७६
ए मनमोहन मल्लीनाथको, जस बोलेंगे. .... ५०६ १७ महिननाथ जगनाथ चरणयुग ध्याश्ये. .... ५२६
॥श्रीमुनिसुव्रतजिननां स्तवनो ॥ ६ ॥ १ मुनिसुव्रत जिन वंदतां, अति ननसित त १२६ २ मुनि सुव्रत कीजें मया रे, मनमांही ध० १४३ ३ आवों रे बाबो रे सखी देहरे जयें. .... १६४ ४ हो प्रमुफ प्यारा,न्यारा थया केरीत जो. १७४ ५ मुनि सुव्रत जिनराय, एक मुफ विनति ॥ १७७ ६ लंगडी लंगडी तो कीजें श्रीमुनि सुव्रत०॥ ५२७
॥ श्रीन मिजिननां स्तवनो ॥६॥ १ श्रीन मिजिननी सेवा करतां, अलिय विघ० १२६ २ श्रीनमिनाथ जिणंदने रे,चरणकमल॥.... १४४ ३ कांश विजयनरेशर नंदन लाल, वप्रा०॥ .... १६५ ४ आज नमिजिनराजने कहीयें, मीते॥... १ एए ५ षटदरिसण जिन अंग जणीजें,न्यासपडंग॥४७G ६ श्री नमिजिनवर सेव,घनाघन ऊनम्यो. ॥ ५२
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(१०) ॥ श्री अरिष्ट नेमिनाथनां स्तवनो ॥ २५ ॥ १ जश्ने रहेजो माहारा वालाजी रे. .... 50 २ तोरण आवी रथ फेरी गया रे हां,पशुयां दे.० १२७ ३ नेमिजिणंद निरंजणो, जइ मोहथलें .... १४५ ४ राजुल कहे पिया नेमजी,गुण जाणो बो के० १६५ ५ कां रथ वालो हो राज,साहामुं निहालो०१६ ६ राजुल कहे रथ वालो हो, नणदीरा वीरा १७ ७ यादवजी हो समुविजय कुल सेहरो हो० २७३ ७ नेमजिणंद जुहारीयें,उज्ज्वलगढ गिरनारे.१४० ए माहारा सम जाउँमां रे वाला.चोमांसं.... २४३ १० घरेश्रावोने नेम वरणागिया रे. .... .... २४५ ११ नां करिये रे नेडो नां करियें, निगुणागुं॥२a १२ नेम मिले तो वातां कीजीयें,वो प्यारो ॥४१० १३ सखि नमीये ते नेम जिनराज,गढगिरनारें रे.४१३ १४ अष्ट नवंतर वालही रे, तुंमुफातग० ॥ ४७ए १५ सुनो मेरे नेमजी प्यारे,गनसें मत रहो॥४ १६ मत जा रे पिया तुमें पाहाडमां. .... ४ए १७ महारा सामलीयानी वात रे,दु केहने पूडं. एप १७ तोरण यावी कंत,पाडा वलीयां रे. .... ५०३ १ए संयम लेगी साथ,पीया में तो संयम॥ ५०६ २० नेमि जिणेसर निज कारज कपुं. .... .... ५२
१ चैत्र मासें ते चतुरा चिंते रे. बार मास. ५५६ २२ रविवारे ते हो रढीयाला रे, साते वार. ५५७ २३ पडवे.पियु प्रीतज पालो रे. पंदरतिथि..... ५५७
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( ११ )
२४ घरें वो तो पूढं एक वातडली रे. ५६४ २५ तोरण धावी रथ पाठो किम फेरो रे वा ॥ ५६४
॥ श्रीपार्श्व जिननां स्तवनो ॥ ४६ ॥
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१ चिंतामणि चिंता सवि चूरे, पूरे मनकी० ॥ २ परमातम परमेंसरू, जगदीसर जिनराज. ५१ ३ जिनपति अविनाशी काशीधणी रे. ४ सुगुण सोनागी रे साहेब माहेरा. ५ लाखो सोहावे जिनजी, फुलांनो गले हार. ५६ ६ वामानंदन जिनवर मुनिमांहे वडो रे, के मु०१२८ 9 श्रीपासजी प्रगट प्रभावी, तुज मूरति० १४६ ७ सेवो जविजन जिन त्रेवीशमा, लंबन० ॥ १६६ ९ वामानंदन हो प्राणथकी बो प्यारा. १० प्राणथकी प्यारो मुने रे ॥ साहेबा० ॥ २०१ ११ बांजी हांजी बांजी बंदा बांजी, में तो ना० २०२ १२ पास जिनंदा माता वामाजीके नंदा रे. २०४ १३ प्रभु जगजीवन जगबंधु रे, सांई सयालो रे. २०५ १४ शामाटे साहिब सामुं न जूवो. नीडनंजननुं . २४२ १५ हो जिनराया जिनेसर, शिववधूना तमें जोगी . २४५ १६ घृतकल्लोल प्रभु पास जिणंद, अश्वसेन ॥ २५५ १७ लयलागी रेलयलागीरे, गोडीपास जिणंद ० २५७ १८ तुंही नाथ हमारो रे जिनपति, तुंही नाथ० २५९ १ पंथीडा पंथ चलेगो, प्रभु नज से दिन चार. २७७ २० सहसफणा रे मोरा साहेबा, तेरी सामरी० २८२
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( 22 )
२१ तुमही जाके अश्व खेलावो, राजकी रीत० २०७२ १२ प्रभुजीको दरिसन पायोरी याज में प्रनु० २९३ २३को न गमे रे चित्त को न गमे, प्रजु पासजी वि०२०४ २४ जिनजी गोडी मंमपास के, विनति सां० २००० २५ वहाणां वाह्यां रे प्रभु, वहाणलां वाह्यां. ३१५ २६ मेरे ए प्रभु चाइयें नित नवी दरिसण पानं. ३१६ २७ सुघड पास प्रभु रे दरिसन वेलडोनीदि. ३१८ २८ पास जिद सदाशिवगामी, बालोजी" ३५० ० प्रभु तोरी ठकुराइकूं, गट तीन बिराजे ३३५ ३० तुम बिना कौन मेरी शुद्ध बेनहार हे. ३३२ ३१ कृपाकरोने गोडीपासजिनेसर. तुम सा० ॥ ३३४ ३२ तें मुऊ मोह महामद पायो, तेणें हुं थयो० ३४२ ३३ मां यानं नेहडो कंधी, गोडीचे पेर वेंधी, ३४४ ३४ याजरे में मुख देख्यो गोडी पारसको..... ३५ प्रगट्या ते पूरण अविनाशी जीरे....... ३६ जीरे आज दिवस नजें नगीयो, जीरे या० ३५२ ३७ सगुरुने चरणे नमी, गायचं गोडीराय ॥ ३५४ ३८ उठो ठो रे मोरा यातमराम, जिन मुख० ३५७ ३ रातां जेवां फूलडां ने सामल जेवो रंग... ३६० ४० लागो मेरो पारस प्रभुजीसें ध्यान. ४१ पास शंखेश्वरा सार कर सेवका, देव कां० ४२ निर्मल होइ नज ले प्रभु प्यारे, सबरे० ॥ ४ ३ सहस फणा रे मोरा साहेबा, तोरी सा०॥ ४१२ ४४ जिनराज जोवानी तक जाय बे रे.
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(२३) ४५ साहेबा श्रीसंखेसर पासजी. .... .... ५० ४६ सहज गुण अागरो स्वामी सुख सागरो. ५३०
॥अथ महावीर जिननां स्तवनो ॥२७॥ १ सिहारथना रे नंदन वीन,वीनतडी० ॥ ३॥ २ जय जिनवर जग हितकारी रे.दीवालीन. १३ ३ मारग देशक मोदनो रे, दीवाली,. .... ए० ४ गिरुवा रे गुण तुम तणा, श्रीवईमान॥ १२७ ५ शासन नायक साहिब साचो,अतुनी॥१४६ ६ चरण नमी जिनराजनां रे, मागु एक ॥ १६७
उर्तन नवलहि दोहिलो रे, कहो तरी०॥ १ए। G प्रतजी वीर जिणंदने वंदीये,चोवीशमा॥ २४० ए महारी वीर प्रनुजीने वंदना रे..... .... २४४ १ रायरेसिधारयघस्पटराणी.चौदसुपननुंस्तवन२४७ ११ नारे प्रनुनहीमार्नु,नहीमा-रेथवरनीयाण.२५० १२ वीरकुमरनी वातडी केने कहियें.......... २५३ १३ में नही जाण्यो रे नाथजी,मोसूं दूर पठाया. १६१ १४ वंदो महावीर जिनेसर राया,माता त्रि०॥ २७ए १५ आज महारे आनंद थयो,प्रेमनां वादल॥ २७१ १६ रे मन क्युं जिननाम विसायो. ... .... २७५ १७ आदि अंत जानुं नही,तुम हो अविनाशी. ए १७ चनमासी पारणुं आवे, करि वीनति ॥ ३१२ १ए वीर जिणेसर साहिब मेरा,पार न लढुं० ॥ ३१५ २० महावीर स्वामी मुगतें पहोता, गौतम ॥ ३२१
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२१ जगपति तारक श्रीजिनदेव, दासनो० ॥ ३३६ २२ रे बंदन आयो, बाजत नेरी जुंगलः ॥ ३५४ २३ मुने ते दिननो वीशवास ने प्रभुजी० ॥ ४०८ २४ श्रीसिधारय नंदन देवा, प्रभु सेव करूँ० ॥ ४८१ २५ त्रिशला नंदन रे देहें, रचीयें पूजा क० ४९६४ २६ तार हो तार प्रभु मुऊ सेवक जणी
५३
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श्री सीमंधरप्रमुखवीश विहरमानजिननां स्तवनां ॥ २५॥ १ सुलोचंदाजी सीमंधर परमातम पासें जाजो ४ २ मनडुं ते महारुं मोकले, माहारा बालाजी रे. २ पुरकजव विजयें जयो रे, नयरी पुंमरी ४ चित्त संदेशो मोकले महारा वालाजं । रे. ३०२ ५ धनधनखेत्र माहाविदेहजी धनपुंमरीगि ० 1: ३१४ ६ श्री युगमंधरने केजो, के दधिसुत वीनतडीसु० ८० ७ श्री युगमंधर साहिबा रे, तुमचं विहड० १०० साहेब बाहु जिनेसर वीनवुं, वीनत० ॥ १०० ए चतुर सनेही मोहना. १० साचो स्वामी सुजात, पूरव परधजयोरी, १०२ ११ स्वामी स्वयंप्रन सुंदरू रे मित्र !! १०१ १२ श्री कूपजानन गुणनीलो. सोहे मृग० ॥ १०३ १३ जिममधुकर मन मालती रे. जिमकुमुदि० ॥ १०४ १४ सूरप्रन जिनवर धातकी, पवित्र्य जय० १०५ १५ धातकी में दो के, पश्चिम ६ नलो.....१०५ १६ शंखलंबन वज्रंधर स्वामी. मातासरस ०.... १०६
१० १
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(२५) १७ नलिनावति विजयें जयकारी.चंशनन २०१७ १७ देवानंदन नरिंदनो रे॥ जिनरंजना लाल. १०७ १ए जुजंगदेव नावें नजो,रायमहाबलनंदाला १०० २० नृपगजसेन यशोदामात, .... .... .... १०॥ २१ पुरकरवर पूर्व अई विराजे राजे रे साहे० १० २२ पश्चिम अई पुरकरवरे. नंदनईश्वर .... ११ २३ देवरायनो नंद, माता उमा मनचंद. .... १११ २४. देवयशा जिनराजीयो ॥ मनमोहन मेरे ॥ ११२ २५ दीव पुस्करवर पश्चिम अरधे, विजयनलिए ११३
॥लावणीयो १७नी अनुक्रमणिका ॥ १० श्रीजिनदासजी कृतजूदां जूदां धन दश. ४४० ११ चल चेतन अब उठ कर अपने जिनमंदि०॥४४२ १२ तुम नजों जिनेसर देव,मुगतिपद पाइ. .... १४२ १३ कब देवु जिनवर देव,जगत गुरु ग्यानी..... १४५ १४ एक जिनवरका निज नाम,हियामें सेना..... ४४६ १५ खबर नही आ जुगमें पलकी रे,खबर ॥ ४४७ १६ हारे तुं कुमति कलेसण नार लगी क्युं केडे. ४४ १७ तुम तजो जगतका ख्याल इसका गानां..... ४४ १७ सुगुरुकी शीख. हिये धरनां रे, सुगुरुकी॥ ४५० ॥ होरी वसंत वगेरे ॥ ११ ॥ नी अनुक्रमणिका. १ ए ऋतु रूडी रूडी माहारा वाला. .... ५४४ २ सुमति सदा सुखदाई हो,खेलन आये हो.५४४ ३ होरी खेलावत कानश्या,नेमीसर संगें॥ ५४५
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(२६) ४ नंहीरे नाहार नवरंग बनायो. .... ४६ ५ वामा नंदन अंतरजामी, जीवन प्राण ॥ ५४६ ६ नयरी वणारसी जाएगीयें हो. अबसेन ५४७ 9 श्री चिंतामणि पास प्रनु तारा मंदिर ॥ ५४ Gऐसें होरी त होय रही चंपा नगरीमें..... ५४७
। अादि जिनेसर पनुजी,साहेबंरी हो ॥ ५४७ १० नमि निरंजन ध्यावो रे वनमें पकीनो. ५४ ११ मोगपुर नगर : हामणुं हो. समुइ. .... ५४।
अथ प्रास्ताविक कवित, दोहा, चोपाइ वगेरे. १ सत्य म बोडीश चतुरनर या देक दोदा?. ५५२ २ पहेलु सुरव जे दीने नरा,ए पांच चोपाइ. ५२ ३ ते अजाण्यां माणसां रूपें जे रचंत,१२. ५५४ ४ सये न सबजुग सरस है. ए दोहो॥ .... ५६४ ५ योगी सिह कलंदर तापस इत्यायनेक ६६५ ६ सऊन हीरामें अधिक. इत्यादि सात दोहा ६७१ ___ अथ बूटक बोलोनी अनुक्रमणिका. १ आवे कर्मनां नत्तरप्रकृति सहित नाम. ५६५ २ नवतत्त्वनां उत्तर नेद सहित नाम कह्यां ने. एदए ३ चोवीश दमकनां नुत्तर नेद संहित नाम. ५७७ ४ प्रत्येक दमकें विचारवाना चोवीश हारनां
नुत्तर नेद सहित नाम कह्यां . .... ५७२ ५ चौदमार्गणानां नुत्तर नेदसहित नाम. ए७६ ६ बत्रीश अनंत काय अने वावीश अनदय० ए०७
or
mr
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(२७) ७ जुदा जुदा जीवोना आयुनुं प्रमाण कमु जे. ए. Gजिननुवने थतीचोराशी आशातनानां नाम. ५ए? ए सात नय, तर निदेप, आठ मद,आठ मांग लिक, बार व्रत, चौद गुणताणां, संमूर्बिम मनुष्यने उपजवानां चौद स्थानक, साधु ना सत्तावीश गुण, अकर्मनूमि कर्मनूमि
देत्र, सिना गुण, सात जय, सात सुख, · दर्शन, जापा, चक्रवर्तीनां चोद रत्न. एए३ १० चारे गतिना जीवोना नेद अनेकरीतें देखा
डीने पी तेमनांबायु देहमानादिक कह्यां
,तथा अढीहीप वर्णन,सिना पन्नर नेद. ५g ११ समयादिक कालनांप्रमाण संदेपथी. .... ६०७ १२ चौद नियम, दश पञ्चरकाण, बार पर्पदा,
पांच समकेत, चार विकथा, पांच ममवा य, दश श्रावक तथा तेमना ग्रामादिकनां नाम, तेर काठीया, पांच मिथ्यात्व, पांच सद्याय,पांच देवाधिदेव, पांच प्रमाद,पांच अनिगम,पांच स्थानथी जीव निकले,सुल नबोधी, फुलेनबोधि थवानां कारण, त्रण मुश,त्रण आहार,साडा पसीश आर्यदेश नां नाम तथा ग्रामनी संख्या,दश दृष्टांत,
बार वानां पामवां उनन,लूटक शीरखामण.६०७ १३ पांचमे बारे त्रीश बोल प्रवतो तेनां नाम. ६१७ १४ पञ्चीश राजघर तथा राजस्थानादि कह्यांबे. ६१ए
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१५ चोराशी गवनां तथा सात निह्नवनां नाम ६२१ १६ अयोध्यानुं प्रमाण प्रमाणांगुलादिनां स्वरूप. ६२४ १७ व बेश्या तथा माता पितादिना उपकार० ६२८ १७ चक्रवर्तीनी विनुं प्रमाण कह्युं छे. ६३५ १० पल्लीपतन फल नक्षत्र, वार, तिथि फल. ६३० २० श्रदार वर्ण तथा १०८व लिकजातिनां नाम. ६४० २१ सूतक संबंधि सविस्तर विचार कह्यो बे...... ६४३ २२ पीस्तालीश श्रागमनां नाम मूल तथा टीका, निर्युक्ति, यादिकनी संख्या सहित एमां के . टाएक टीका प्रमुखनां कर्त्ता मदान या चार्यादिकोनां नाम पण दर्शाव्यांबे. २३ नारकीनी वेदनानुं संदेपथी वर्णन. ६५८ २४ पुरुष, तथा स्त्रीना शोल शणगारनां नाम ६६५ २५ त्रिपष्टिशिलाका पुरुषना नामादिकनो यंत्र. ६७२ २६ नवपद आयंबिल तपनी जीनो विधि. ६७५ २७ श्रीवीश स्थानक तपनो विधि सामान्यथी. ६०४ २८ नव्यजीवोने श्रादरवा योग्य १२३ प्रकारनां
६४५
6.3.
...5
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4*44
तप तथा तेना वजमणादिकनो विधि. १०६ २७ अनव्यजीव कये कये स्थानकें न उपजे ? ७४७ ३० पूर्वोक्त तपमांहेनां केटलाएक तपना यंत्र. ७४७ ३१ पुस्तक समाप्त करयुं छे.
७५६
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ए पुस्तकमां सर्वमली (909) बाबतो बे. ॥ इत्यनुक्रमणिका समाप्ता ॥
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सढी दीपवर्णनम् ॥ तीर्णलोभानसंध्यातादीपस रछतेनामध्यमा पीस्तालीश लाज.यानन प्रभागनदीदीपने विषेभनुष्यनी यस्तिछेते. सहीद्दीपना पागप्रेयभराजुद्दीप मध्यमांगोष थालीने मार लानयोग्नुंछतेमासातवास क्षेत्रछतिहां पहेझुघसिएराशिातानेमांमापरणेवसीयें छैयेते नरत क्षेत्रछेतेनीयमांचेताब्य पर्वतछे, ते पर्वतनीट क्षिगजान्नुत्रराजंडनथापीत्तरपाड्नुत्रगण भलीछ मंउगंगासने सिंधूनहीथीय्येवाईतेछने अंडमानत्रीशन्न रशछ. मेमरत क्षेत्रनी सीमायुलहिमवंत पर्वत सूचीछे. हिमवंतपर्वत पछी हिमवंतनायुगतिया नुक्षेत्र छै तेपछी भहाहिमवंत पर्वत छेतेपछीवाली हरिवनाभंयुगलीयान क्षेत्रछे.ते पछी निषाद पर्वतछे, पंछी पूर्व पश्चिम सेवाजविलागेवहेयाएंथमहावि. हक्षेत्रछेतेनी वयभामेइपर्वत छसनेमेइजी तरह क्षिण् दे॒वाइ तथागनर श्रेजे.युगलीयानाक्षेत्रोतः थायार महोटागनला पर्वन्छे पछी नीवंत पर्वतछपछोरभ्या नामें युगलीयानुक्षेत्रछे मछी पी पर्वतछेते पछी हिरण्यवंतनाने युगलीयान क्षेत्रात पछी रिज री पर्वतछपछी छोरीत्तर तरवतं क्षेत्रछेश्यनेननुद्दीपने शरतोलेसाजयोनन पहोलो सवएगसमुह छेतेने तो थारखाज योनन पहोलो पातहीजं यूडीने मागरेंछेतेने तो मारतानयोतन पोहोणो जालोर समुरछेतेने इतो शोषखान यानन पहोलोपुषरद्दीप छेतेनेमध्यमाणे जाहलाज योजनुसुधीभां मनुष्य छे, तेरसोनागभानुषोत्तर पर्वतेउसी वीदेसी छे, पूर्वनेषुद्दीप माने पर्वत तथा वास क्षेत्र उत्पा, तेथीणभाएगाघातमीणं उमा छ। सने पुष्टरार्धदीपभा पराजभागांछे.ति.t
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॥मेव पर्वत संक्षेप वर्शनम्॥ मेइपर्वत उनभयनारपोछेलेनीयाला योलननीछे * तेमा मेहन्नर योनननोड पृथ्वीमाहे छे, मने गिपर नवाएयुहन्नर योनन छे तथा ते शिजरने विषे जेहन्नर योजन पहोलो छ, मने नीचे धरनीमांतलीये शहन्नर नेवूयो बननी परवती ज्योवनना मगीयार लागउरीयेंतेवा दृश लागनेटलो पहोलाछे, नेपाल योजनना पीया मेश्नी उपिर वषी यापीरायोनननी यीनिहाछेतेयूपिनी तीपर मेऊ शाश्वत बिनभाटिर छः
ते भइना शिजरन विधेयूलिहानातलीयानां पंडाचन छे, तेभा पार हिशाये यार बिन लुबनछे.तिहाथी नीयवली * छत्रीश हन्नर योजन मावीये तेवार भेजताने विष सोभनस्य 'बन छे, तेमांपए यार शाश्वत चैत्य छे. तेसोमनस्य वनथी
साजणासठहन्नर योनन हेडस यावीये नेवारें भालुनन ' वनछे, तेमां पग यार हिशायं पार लिन लुबन पछी , 'तेनंनवनथी पांगरों योन्न हे मावीये तिहां समाभूत पृथ्वी छ, निहांलशाल वनछेतेने विष परा पारनिन प्रा. साहछे, मेभसर्व भाती सत्तर निन् प्रासा छे.. * मेश्नो पहेलो अंडहन्नर योजननो घरदीमा माटी पाषाएगवनरलतथाऽरानो छे, तेथी पर जीन्ने सोमन स्य वन सुधी एउ००० योनननो अंड ते सहाटिक रत्न,संह प्रत्नपा तथा सोनानो छे. तेथीरीपर छत्रीशहनार योन. ननोत्रीने अंड ते रतवर्ग उनानो छेति
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।। अथ नर: होहा प्रारंभः ॥
तिहां मथम स्यी नरड पृथ्वी सुवी ज्या प्रहारनी बेहना छेते संबंधी होड़ा
पापायी पाशिया, डीपन्या नरः मळार। परमाधामी परस्पर, बेहन क्षेत्र विचार ॥। १॥ त्रिहुं नरडें गए। बेहना, पी न्न ञिङमां होय ॥ सातमियें क्षेत्र जोथी, क्षएा जेम्सुमन हिं होय॥शा साठी जंगर मेरडा, थाजड तुगा प्रहार। नउड परजांधिने, भुहगरनी भार॥आ साडें घासी सामटा, मारे विविध प्रकार।घोर संधारे घालिया, पडिया उरे पु.
असामा
॥ मथ पहेला संम्नां यित्र संबंधी होहा।। तीक्ष्ण रोड परिणामधी, घणा लव संहाराावेर घिनेी पना, नरगतीने द्वार ।ना परमा धामी घेरियो, सांसें घाल्यो सोया शस्त्र डीघाडा तोसिने मारएा सागा नोय ॥ ५ ॥
व हिंसा पापें उरी, शिपल्यो नरः मजार परमानामीते हने, हावा रे होअर ।।। ल न नडता यपत्र स्वलावील ॥ माथे मुहगर पाडना, पहली पांडेरीव राणा अनुमित द्वारन ने उरे, तेहना खेह वासरा
॥ श्रीन्यांना चित्रनाहोड़ा ।।
रागतएगा रसियाहूता, सुगि सुगि उरतातान | धर्मस्थानविसां लसी, तेहना अपेोन ला
।। श्रीन्न मांडना यित्रनाहोड़ा ।। पर रमणीना उपनो, विषय बनाएयो ले ।। हेव गुइ निरज्या नही, डाडे सांयो होणा
•
तस्मांडीपना,
!! योधामांना त्रिनांतेहा ॥ गयी उलियां तोडता, न गएयो रातने हीड़ ।। डाटे ना अभीड़ ||१|| रीछाडि बनलवने, साहेडी पाडया इंछ नाविधारीनाथिया, तेहना करत निउंट।१शासुरलीगंध संध्या घएा, गुच्छा ङ्गूल इशम् ॥ अतरसेल पडाबीयां, छेहेते हुनो नाई ।। आ
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• पांयमाम्नायित्रनाहा।।. नृठयपना मोख्या घए उपटनी पाएपरमायामीतहनी,छ रमडाडताएगेज रेलमुमणोलतालिएगरीनरेमग सायो अघिय नमोलता, छलगातारा
हाउनायितनाघहा।। घर घरमारन्नुता घगानापियो घk लगारपिवसरतोयिंत्यो नहीं गले धूसर सहेमारा गाठीभासिने, मध्धेगव्या बाटायग्नि तपाची धूसरोहळावेघाट गायन होएसीरेनभा रोडावे हेर्छमारजहिलोडाव्या वाटभांतेदना हार पालाउडी लेई भारताचगा घागराढोराापरभाघाभी तेहनेमांचे लडाइनेडाडापापी पाप पूराउऱ्या, माव्योपभारीपासमांध घोसरो मेवीनेनारे सांसनरासाजाप्मांधेसांउल मेलडीपर भारेमारा पापीरयमज्याघागालोगवरजनोयाराct
सातमा नायित्रनाघोहा॥ रत्ते सूटघा राउने उरी ओपनन्याया मांसउभाश्या तेहने पीड्या घाएगी मायड आया उरता खनज्यांगानर मूलाधेिभाथ नाप्निने, पीयां उरे माहरामा गरिनवन मारता उरला जहुंभ न्याया न्यूँलिन पण मारी घणी पीच्या घागीमांयारा
॥साहमामंडनायित्रना पड़ा। वनस्पति छन न्युमाप्या तश्वनरायाघा भूखा राठिया,पतेएनी डायातायटयर यूरेयाभडी, टंत्रत्रिोमांस तरा माहे तन्नभां, नगे उसीया सपणा मालपोलां सेखरां, न्या पडता वा नसीहाले मोरतांजरेनरम्रीव tatre
॥नवमा नायित्रनामोहा। . हनुवारनवने विषेरमा पापलेघाशापमाघाभीतेने रेडामामोला।
रा उसाधनेलवस्या , हिंसाममघोरामुनीभांपना, उरता मुंभारोतारामख्यां धान्यनस्या घरात नान्या लवली. मोहेपनोपडयोउरेछेरीवानासाहसियन भारता मसलानेवसिरोलालीमा राईपनपनमले परने मोम पाएनपी पारवालाती यायावाविशेषानीमांमई रावतस्याडी पाडे ग्रीशाली पोहायती,असनांगरमाहोया। यज्ञोभीवा घगातेहना रखनमेय हालांयखूयमाधी घएगी करतानोरान्यायाउली माहे नाप्रिया परजीवाय
शिमा संगना चित्रनादर ! . इतनवासताउना सरावेगए गोरगंटावीघे मंगमा बानियालेलेर पालनवाराढाउतांदूलासेन भिछाया सुप्मालोग वियाहने, टेंयांपेगमपरगा सूध्यांसहनतपादिने, तीमासीयांतोराायांपे. ते एना मंगभां उरतो सौरपोरrt
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।। जगी सारभा यित्रनाोहा ॥
भुष कलिया सनी, तोडी गुंध्या द्वारा ।। सामजी वृक्षे जाधिने, हे या जङनी भार ॥था होंडे घएगान है। उनां, तो ड्या तश्वर इस जघ्या वृक्ष सामजी, हेजा न्यारा सूस।। न्नन्भन्नड बनेरीया, तो ज्या तश्वर पान ।। आधे मस्तक जोधाने, ताऐं। कुरेदेशन आउट सामसी भोटहूं जाये तरखर डा.ज ।। तीजां मेहनो पानडा, भैंसी जांडाधार
॥ जायिवना होहा।।.
मा जाप सुतमोथी, पोठो डीपो पोष ।। नारा बराधी नी बज्यो, दुः महार्घ हम शोष॥॥ छाती उगपर सात हे, लांगे हेईला मात पिता गुएा खोर ते सहता दृष्ट छापार ॥ सुखरता माहोढुं जीयु, हीया छातीरे पादता साते हरीने लिहता, नीसरे दिसे उीपाया। ओ
|| तेरभावांना त्रिनाोहा।। डोल भरोसा हेर्छने, उपट करया घणी वार ! पर्वत पडता सह डीपर तरवारांरी भार !!था वचन यूंगले नर हुवे,गाया उपने पटक पछाडी पवर्ते, जंड अंड उरे हेहोश लूटा सोंग पावता, उ ता युगली था। मेशवर यमदूत ते, उरल पेछारपछा
।। थोहमा चित्रना छोड़ा ।।
साली नइनें छाडे, पापी जेठी न्नय।। पान रूप शस्त्र न पड 'जड होय गयाशा सासु बहु संताप ति, डरती तोए उपह॥ परमा पामी तहुने हेवे हुन् स्पह ॥शा करता यावत रागा, घर घर भाजपा उता लाई उपेसणी, ते सहे दु:ज खपानामा, नर महिथीनाशता र सामसी लया। उपरथी पडे पानडा, न्मयी मोरया धोया भा ॥ पन्नरमा त्रिना होहा ।। सप्सु वटु संतापति, पुज हेती हिनरात ॥ लहानरमा पनी न्यारी छातीपर सातारा शोक्च तएगा सुत पीपरें, घमडी घण घरना। पाटु महारे खाइएगी, पर लार लरंत आ पडती पोया सासरे, देती सजस् सुराया डूडा उसके घढावती, जवगुहा गाली आप ॥४॥ घात करे विश्वास हे, छेस करती छङ माहार निल्न नारा पहने. हे वे एन थाह पाए रमनुमित अरम ने इरे, तेहना खेड़हवालासा मी धर्मा पहरे, पामे सुज रसाल ॥जा सडती पोयर सासरे, करती उसेश हुरूप ॥ वातैबात खसावती, लिएर लूं हीसे रुपए
॥ शोलमा चित्रना होहा।।
म्हारे उरी कापियां, सीसा महोटा लड ॥ परमा धामी तेहनो, मस्त 5 छोटे झडा था मेरा मेहाला पावला, भूमि विहारण नेहा पु थ्वी गये सारंमथी, पामेष्ट खछेद गा
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। सत्तरमा यित्रनाऐहा।। लतां लड्नंनेरता यपल स्चत्माची व माथेरसी पाडता, पहलीपाडे शव नेत्रमाहेनता धडांन्नसंपनांन्ना परमाधामी तेहने मारेरसी मारारारा
॥ यतारमा यित्रना चाहा। पूल्य की पूनवतो उरतो मनरथ नूला डोमग ठरी गर्नु गमावता नेहने प्रोयुं त्रिशूज गुइरोही येलोवेवेषविराघानहामार गोपी मत्तियोपामेष्ट पछेहारा मानवनोनयपामिने.णि या राजयरलवाघ्यानरमाएी विमा उरतो, पापहीबारागा निवछरा उर्मीया घगा पाप उरचा तिहाा परमायामी तेहने शुजें परोयाशापग्नि मारलामिया घागर घा हिंसाधर्म। "ते. त्रिशूछातीयाप्पोमायां मापा उसंगत सीधी घएीने हसेवी परनार घेशूखें पराध्यादतिरीपरमारापा
मोगएशमा यित्रनाहा।। पापप्रमावधी डीपनोरंनी पाऊनीमायाजीपुरेपूट मागडा,माहे जीराजाय पावतीडीपर यूंटे गडात्रटरटāटेयी माहर ऽयोथो,सहतोषापायारा
"वीशमा यिनाघंहा।। योरीरीने पारसी,लेता घननोराशिप्पथावे यांचा मरीमहुजी त्राशावाधर्मी धने पूतिया उरी हगाराापरमाधामी ने ताउट वरपरा पाएं पेशो मेलतांपगाछीया यांगाना नरउमें पनीमरठापाडे संवा •
. ॥ मावीशमारित्रनाघेहा।। वैर विछोहापाडीयांच्या सामानायकाममाीमरीयें पटक पछाडे अपाशा गपालरी घरेगा लीयाजालहत्याउ रीमा पटोबरछी परोछने,देवररानिम पराडीयानिखंछन टोरने, संल्यानापीमांधागगडावी गिरिडीपरें देतेहनीसांधा पाउ हासीदगानयने पिणे, ज्या घरती पेट परमायामी तेईनेमारेपर सीनेटामा
॥जावीरामायित्रनाहा।। होगा पीता होंशांदोग्यासएगवनीगांतातूंत्रामुपावतापीठेमहुली पीरमा हिंसाधर्मननाच्योपागोसम जाफरमाधामी तेहने, मुममें शी[रेडागाणिया हुआ पीवतां पग्नितालिबा तातुंलोह तपापीने मुजयान्याउरेरीवाउारीसंगार माग्नितए, यमनरीयोलग्नतमान पीये,पामेनरसनीपोषागा
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।। ग्रेवीशमा मित्रता होहा ॥
सम सोगुह सर्व भांलयां, सेव्या व्यसनन जागा सास योज गोजी कुरी, यांपे मुजमें कार ! ॥ डीपर मुहगर, मारता, भूड़े मछोटी पोड करता किस यत्यो नही खेम आहे यम् सांआशा योधुव्रतन साहरी, जीयो शीसनो एंड ए पमाधामी तेहने मारे मुदर हंड।। 31 मेवा व्यसनने संवता: पामे पेड़ हवास ॥
।। योबीशमाथित्रना होता ।।
हा रोड़ कर हंडिया रान हुकुम मह छोता। नई नरामा उपन्यो, माथे घरी कशेन ॥था खग्नी तपाँवी घर नियें, अर्ध्य जसाडी धार । बेना ताएगे ताकिने, पापी करत पोडार ॥ासा
॥ पशमा सित्रना होहा ॥
रसनाधार जति सेवतो, करतो घशा पन्याय ।। वन तथा डाटाकुरी, वीर्या लागा पाय प्रथा गस डे शसी होरडे, होडावे देह मार। हिंडतो हेडे पडे, पगनी पीड उप्पार ।। धरती घुंजी खग्नि न्युं, तीजी दरवेतघार तिएा डीपर सदावतां, उरतो बहु पौहार ।। ॥ साधु ने संतापता पन उद्या रजनि घोर ।। परमाधामी हुने शंसी हेर्छ डोशा मा
॥ छवीशमामित्रना होहा ॥
उसास धर्धने पढीयां हाई लड़ी हाड़ा। पापा लयी पायीयें, नवनि वासड़ी छाड़ !!!॥ इधिर रूप में हिरा की, प्यासी खग्नि तपाया। सुमश डीने पावना, पेहन, सदीन लेयाशा मधु पाघु मानवलवे, उडचा रहेन छपत्र । तरपी पाचे लास उरी, तोहिन छूटे गयल ।आ
। सत्तावीशभागित्रनाहोहा।। -
निम्नारीने परिहरि, पर रमणीसें लर ।। सुला मेरे साधरे, घसे पाय संलार ॥शा न्युन्युं सूला जल जले यु ट्युं मेरे पुकार ।। प्रमाधामी जोलीया, ताहारा नृत्य संभार या पेजी परार्थ गोरडी, ने अनुराग घरंत ।। सूठे हाडे धन निम, जानें पेट लरंत एशा हिंसा उरीने ठूलता, लगे मशुं भाक्ष।। जेहने हिंसक गुर भन्या, पोहोच्या नरडे गोक्ष ने गुइ साली संपटी, तेहना मान्या वेए।।। लघु नरम्भां डीपनाबा शाम नहीं दोए।।। अंश पाबड़ गया घएगा, ढोंख्या जएगगज नीशा परभाधामी तेहने पण पकडीने पीर ॥
.!! सहावीशमा चित्रनाहोहा।।
सूस जर्धने लांनिया, ना सोया गुइ पास !! नही नवकमा उपन्या, जड खंडे उ-या तास !! था विष हर्ष भएरोस मारिया, रि रि क्रोधमयं ।॥ परमाधामी तेहनु, शरीर उरेशन जंडपशा
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मोगरतीसमारित्रनाला साधुबन संनापिया निघमिधीसपाररातातिथंलेंजाधिनेोमु. हरीलारापालाजी थरहरेपगलागेहाहाहांमुळना. गोरधन रातारा
त्रीसमाथित्रनाघेहा।। यार स्नान फियानही यंतरंगतंभन सोयराएगगल पाएगी दोषिया पया नरममा नयालढोणीनेभतां घ्यामीघा
याललाव माग्नि मतमा पर पापीना पाय राराा साघुतगी निंघमरा पूरे घघी गाजप धिनस्ततहणालेमग्नान लामघु पूग पाया घएगालाम लानने तारामानीटे तेरने हमेठीयारलगा रंगर व घाख्या घगा जान्यावनयरमेह ॥ परमापामीनेनी जाल जग्नि एपिप •
एमत्रीसमायिनाघहा।। तलयुरलब विराचिया रिसानग्गी अंया परभाधामी पटस्ता, नतिरपी भामाहावरा घोगरा पहरिया ढोल्यापागल नीर उसी मारी रोलिरानसरोवर तीर पराानटिवैतरणीनीर नुजोष्ट स्वरूपारसी घिरने पागनो उत्तोरपाडा जर तुर्णधिजिन मावाटे घाया नाजे पाणेसाहिने परभाधामी नाभिया, पगी मरावेरखापा वकुमुपपा,
मिनरंवार मारो गारं। उधेमस्त नाघिने पर देवरिनारा
अत्रीशुभा चित्रनादा. • वेश्याविषय विधारथी अतिसेवी मनागारमिनिम्माीपनी सेहती चपार धूर्तपणे घनलेन वपीनन्लूवे वाटाहावे लाव नितु हेजी मेषवि नेरुनिराट वेश्याहुमाया री, सुजविससे संसारातईनरममा जीपनी घएगो सहे.यभभारागा
पायगामायीनवभरच्यामानायरतालवावेतरागीमा
तेत्रिशभाायेत्रनाहा। पष्ट पिंउरमोहियो संगरियो परनाराजग्नितपावा पूतणीसो. ठेगती मार नहुंभमुमहारावलमतधोमोटो त्रासारण ओशंसो उंगनोनिमायोडो श्वासराए परनारीने छूटोनहीं तो लागे मोटो धागापरनारीने परिहरा पर जारी नागाउ। रानडे सोलंगनमयततानिएने.यंशेजारमोदिने परनाराशंपीतामा परनारीनानेहमी पाएगीतरीनयाधिोड़ा सुरिने गरएकभार रनंतोप्नायापार घरहाएगीहासाबएगासुले नसूये जायालयाने योभारमोपरनारीघरमय पर
योत्रिशमाथित्रनाघेस।। पटरी जोवी परथाएगधनराशीविश्वासनेशिया, सहेनरममावास्या हिंसाधर्म माघरी हाथे यूंट्यानंताननिर में सौपन्यानो एगरांताशा
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।। पात्रीशमा यित्रनाडुहा ।।
धन देता ने चारना, उरता रागने द्वेष । परमा धामी तेड़ने मुपमां मारे मेष । शा
॥ छत्रीशमा यित्रनाडुहा ।।
वस्तु वेया ग्य्यापियां, गाडा पोढी डींट!! साह उड़ीने तो जतां, सटे मांडी खूंट ।।१।। मेधाए। परां ने मारता, हेता घडी उडाय ।। डूडा जन मज्ञावतां पोहता नरड महाराशा धगी धगीशुं विगनता, मेला हेएारा सोर ।। प्रिया प्यारा पापना, ठ्यू कुरि छूटे शेर || ताड़ी नीर छुटारिया,आ मासामी जाय । पाप दिया लव पाछले, डोराछुड़ावे । य!!मा पूरव बयर संबंधथी, मेरे परस्पर घात शस्त्र ञटोकट मारता, इपें कसा दिला त।पा। पापी पारानी परें, मसी मलीने लय | उडावचनम्ही घएगा, पीपर मेले घायाधा।
॥ सात्रीशमा चित्रनांही ॥
घेरैया होजीना हसता पाएगी ढोल ।। परमाधामी बोलिया, घी उडावो रोल ।। ।। तया तेल उडालिने, जाएगीशेप
पार॥ पियारी लरि छांटिने, डीपर छांटे मार ॥शा सो छे पाएगी माछली, तरइड करती तेह।। लरडो सीने मेंउता, घळे त्यांरी हेह । आ परमाधामी खागथी, तेज तप्त उरेहा मरी पियारी तेहुने, छांटे बेहन खछेह ।। ४।। सावोरेबडघेरिया पापउरमहुशियारसा छांट्यो ताता तेज, उपर लगाव्योमार ॥ माय सुलगिनी सुएगे, सुगे पनि जोड अन्नर || गावे उघाडी गाजिया, साने नहिंयलगार ।। होली उत्सहनुंमूलछे, सान हीएानर थाया। जालतो खोरे रहे, पाखामुढानीलया
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परमात्रीशभायित्नाहा. हराएगा रागाने जोरा, उरनाममनी नागरिजलवारे भारता, ब्यारेवाग्यो पावर पा लिया सिरसाउडाडाबालरनायर सगलवितनेगरसेएरलगायासंगासिंह सिघरघाघएगा, माध्या वयर नथागए पापभयी पाभियो,नरं निगोलगप परमायानी वाघना परी विशलाउस.ताजाया राडीने संन्टस जनविशारामा सिंहनगलनसावन्न मान्यवनपरहवाहिस उलय हिंसिया तेजरताज रीव गापा
योगगगाणीसभायिवनापहा॥ तुंतोता शीररी, मनीजहोतवारी र रलवारी घातपाड़यो नरमझारछिपारा मासवदवार सूनाइरन जयावारपतरा रहरलालपडपापीने पावार या
याणीसभायित्रना चहा पाप्नीने लव पोर्षिया वाइवस्तरवेशानियलवदिए। सिशाम एएगपनीर मशेषनरमवासप्रलावधी नरवास.टीभाडान उपजयमहततेसरत पाउ पछाडपराधाजीउपाधीवाडेरे, शिक्षा पीपरपाडेत्युपरभाघाभा पगपायक, पापीने पछाडेरे अजेनी प्रत भारोरेभागरिजनेताशेरे वारवार हुंतुभ जागेरे मनुतारों विनंती भारीरेयातनाले यमरायारे पापाना सवाधारेशातुनर तएनजीरे मोदंम्युं विनायरामारा हिसभास्थानमाएर, पापंरीनोन्नभाएगीर पतुनरमा पउयोर परमवनी चिंतानन्नागीर एडा प्रने घासको पाउतारीकरियाडीरसान्गेणी शिलागिपरेलानिम्न्यायन्यूगागा पथ्थर पर पार्डियोछुटेसोही धारा जागा यूंट्रेतेस्ने घोनीनोपवतार पापाय परपोजतां जमाठाइप शिलोनापियामारछल्लरपूगा
___ ऊतालीसमायित्रना, घडा।... भामांसलतए विपाडा पशु लयभराधारभघुमांसतेपायारे।। तेर्भध्ये मायारे म्युरो पापीलवुडारपतवजोगरत्नेडीरे मजयो भाइछोडीशानरलवभन्नशुरे श्री निनभगाधरशुरा॥ डीयोपकारनवीसारशुरातनतटमीमाल्यारयुपकारहमा हत्यारे नरनात्लव पायोरेतायुही गमायोरेगाउ घायोरोट्या शुंना विसर गयोरेगजाणेसागरानडीतारे या विएर नही सरतारेनेंतो हरिनत्यागीरे षांवाने लय जागोरेगांव घरी जालणतारोरेडीपरमार संयारोरेपहवेभांडी मोघर मुशलारे वीघोतेने त्रिशुखारे पास भूगर काररतारेहीये. रोपव रतारे त्यारे घऽघडजागा पापीघूनवारियांपरभनेजवारे पछीपाना लरने विष सवारंगपासा परमापाभीते हने घरो पभाडेत्रास
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॥ नापिसमा मित्रनाद्दोहा ॥
हारो बने घरो पारेरे, रमने परभाषाभार ॥विक्रियसख्ये जनाबारे होत्युं संकुल गायारे ॥ था ठिक होय उंडासारे, लुजनृष्णा कासारे ॥ तोडे पापाने खापरे, लांबी सांय अनायरेशा
।। त्रेतानिसमा भित्रूना होहा।। पौत्री पाण्या पासभा, तेतर भोर समेर ।। नही नरम्भों जपन्यो, जमतो ट उठोर राशा कों को डरता अण्डा, घट घट तोडी जाय ॥ परमाधामी पापनि, धमकी लार घाय॥श! नीयनो लव नाजिया, नहीं सरोवरन्नसा ध्यान जाएगी स्त्रियां, पोहतो नरक विचास ॥ आ नी जायाया बुंडना, 5255रिरिशेपाचलग्या गृधने पंजिया उत्कट रशिया टोप॥ टोप अरि को घुसे हमहार ।। श्रीमलयंकर नरम्मा, नाणे नरमा।पा। भूगू कर दूराज़ीरे, जो जास विक्राजीरे । जाही यायेंरे, नाज हेह बिहाररे ।।६।। खगोपांगे विजय रे, सायना हे। कारे ।। बहन बहुती धायरे, थर थर पे डायशाणा ।। युभाषिसमायित्रना छोड़ा ।।
सूयरहोय डुं मालारे, डौलाने विशलारे ।। झंडे पापाने घ्याय, करि करि कुंडलीतारेाशानानी देखु धजधजे, तू माहे नाजे पाट॥ पर भाषामी तेहनानं हाथ ॥शा सूबर सावरे कोडा, हरिगोहिडालवार मसल्या मान्या महोनिशकरतो पाप सहीब आ परभाधाम! तेहने, डरी वरनाइ ॥ एाना हर्षधरीषएयो, उरी महुकोष कुरामा
पिस्तातीसमायित्रनाहोहा ॥
पाएगा डाव्या घोडामाऱ्या जरछी जाए। ।। उरे शिक्षरा सामरी, नगएकी धर्मनी भाग 1111 पीसे बसों सोनेरीरे, कालि सीएएस डेरीरे ॥ उरी बाधना उपरे, शाई ससी विश्परा पापदर्भमा मारिया मरीनम्मा नया प्रभा धामी वाघनी उपराजड़ीछलता योडासारे, गान करे खसरासारे।। खस्रो कोर्स याहारारे, पापीने पकडो पछाडारे ॥ ना जंजता परसाणारे मतवालालागारेगा ल्युपरमधामीराय, होडी जाएग बुलगारे ।पा। हिन् दूसराष्ट्रष्यारे, नगे जागने दुष्पारे पण कोर्घ रमाथ छुडावारे पड्यो कुहुखा करे पीडाबोरे शाসजनदि सौड़ि छोडरे, मेरे साउने कोडरे ।। परवश पडियो सायरे, मारे होडा होडराजा मांसभच्छर माया धागा, डेनी न मानी वात ॥ महरिले ते नरम्भा, घएगी पाने छेत्रासा
॥ छेतासिशमा चित्रना टोहा ॥
सिंह शिकार कियाषएगा, जांध्यांवर धमधागा पाप पुराने पन्या, महेन लांगााशा परभाषात्री वाघनां रूप की विराल ॥ संगोपांगे बेहना, सदेवजह लहना २ || सुता जिसमा त्रिना घेड़ा ।।
मार हेये यमरायारे, तप तेने सवायारे ॥। इस वैदि ये सरप, थित्ता सरपलगा यारे ॥ ॥ तबकरे हाय हाबारे, तोडला जागा कायारे ॥ मुने सुज नहीं घरे ये घएगा खारे ॥ स्युडर होशे सुजरे, प्रवमे ही जपतें तो धर्मनी घोरे श्रीनगुनाथनोरे ॥आ राज म्युक्ष रोबेरे कीघांजर्मन लेवेरे गखजद्दीन पशु लाजेरे, पापी लुबडारे ।। ।। उरतो महारो महारोगे, कुटंजने परिवारोरे ॥ सजतोकिएारों को नहीरे, नहीं मेघ ताहरोरे ॥ मुसलमान तो लवे, मान्य बीछी साप पापथी पाभियौ, नरक उष्ट महालाप ॥झाइएगा टॉप कर कोष मा. देवे होम महारालीय लयंकर नरकमा, ना जेनर कमळार ॥णा सात व्यसन बे सेवता, अपना मोटा पाप॥नर्धनरकुमांडीपन्या, तेहने वाट्या सापाता भात पिताने पीडतो, करतोळगडा पापा न उपन्यो, पीटीबजगासापा
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।। खुडतानिसमा यित्रनाहोहा ।।
सापटुंने आरो, उन्या मेडि प्यारल ॥ माया मतिही ड्रेस बी, रोप्यो पापनो थल || ।। ऊर्म मशुल लारे सरी, लबमधो गतिलयारा रोहन लेहन बहु सह, कोर्घ सहाय नयाय ॥श
।। सोगएापयारामा यित्रनाहोहा ।।
पीछे पछताबो मे, कुमति मुजीया जाय। मोटे गेलें घालियो सूच्यो बस्ती मायाशा माहों माहें जडाविया, उरि हाडोटा होडे आ गयेडा मीठा मलग, सांड रीवाताजागा
॥ पयाशमा यित्रना होहा ।।
हायमें पापी शुज्युं, हारी मनुषा हेछ ।। थोडा अर्धनावि यां, उरता घणो सनेहरा शा
॥ मेाधनमा चित्रनाहोड़ा ।।
सहनिश पर निंघ ठरे, धर्मवयन न सुहाय ॥ पर परिवाहना योगयी, मरी नरम्मा लय ।।।। पर माधामी तेहने, बेहना मेरे अपार । यहि वीछी बजगाडिने, हिये वलि डीपर मारारा सड़ा हीठी मएा सांलणी, मे परार्ध बाता खाम पिंड पायें लरे, ते यंडाल उहात आ अतुली भूल निंघ नपुं, सायं व्यसन छेशठतणी पुत्रीपरे, पामेय्यनरयते गांडगंगूंगांछेहतो, मान्य गरिजा रंगानी नउमाणिपन्या, तोडी जाये। याडी जाधी योतरें, उरत घोरा पाप मर्धनमा जीपन्या, गटे वीछू साप धा
॥ भवनमा चित्रना घेड़ा ।।
मन मेलो मीठी मुर्जे, डूड उपटनी हमेशा पाप उरम पोतेरी परना अढे होष था दुर्बन सन्नन पूर्य म लें, पोलेमघरी वार्ननडुटिलाई पशुं, नवी तने उरे हाए एसपापमा रे सेवतो, पहोतो नरम् मकार ।। परमाधामी बेहना उरे उदघारी मार ॥ लीड्यो घासी बाथमा, खाराणी कोध उटारी मास्ता, अंर्धन याने मोरा
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॥पनमा चित्रना उहा। छत्रीरा मारेरसपती, निपन्नवेशियारशाऊपाउणकुसा ताप, नित मारोगे सारालमतगारसियायानहरे धर्मगारालसालानमोगणे, मानेघन्यमवतारारा पोतानो पिंड पोषियो, न टियुसुपात्रे घना रसगारबरियन यियो, माय्योमनधरिमानाजासतांजाधाहोशथी,उंट मूल पशु मांसा लोमनडीधारात्रिनां, नगएयोषधसांसारा छेडीजुमली डाडी, पायांमक्ष समता परमा धामी तेहने, नेपालमा पाप सेवी नरगयो, मरारएर थयो मनाया परमा धामीनेहने दुर्गध उदन हायtrit
योपनमाथित्रना हा मेगा माछी मेगडा, मेखि वाघीनेहा श्वाना शिडार घे. डाविने, लरएाव्याते तारीमायातिर, वि. विध वनयर वा हत्याउरिने पन्यो मलेमतो रीव
राा परमाधामीवाननांग परी विज्राला उसतारा रयाशडिने तडतानतरजागा पूरव पापप्रभावथी, उ. रतासोर पोर परवरा पडिया मापा ममताउटहोर पाप उरीने लता, पगारनपाएीलान प. रमाधामी तेहने, उरतातीरन मापा वारें न्नड नेरता, घएराने उरतापीडा परमाधामीनेइने,नाही मारे तीरा। T॥ तांडी देतां नीरा, नडइमरताना विट्याते पाप समां, शोथेरेसहीसाणा
ति नरहनावानहासभात.
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वस्तुपाप तेनपाल मंत्रीश्चरे नेते धर्मार्थयाछन नो रूपवान विक्रम संवत् रटना वर्षमा पडिते साजेलेले नी प्रभाग सजीयें . '१३० • नेरशे श्री निन्मासाहशिनरघुराव्याः ७२.०२ नगरुन्नर.जरोनेनासाह गोध्यारराव्या. २३* • जहन्नरनेत्रगशें महेश्वरनांपासाहअराव्या. १०५० ०० "मसामने पायाभरनवीननिन जिंजलराव्या. ६. .... सऊसाज महेश्वरना लिंग स्थाप्यां. ... योराशी पाषागजय सरोवर जराव्या. ४.४ "नवरोनेयोशशी पौष शाखाऊरावी.
८२ माशेने ज्याशी वेशाला रावी. ७.१ तपस्वीयाने वा सारं सातशेने मेहमाराव्या.
४.. चारशे पाएगानां पराव्याः । । ३१००००० "छत्रीशलाजरव्य जरयीनेज्ञान पुस्तसेना भंडारा
उराव्या. अगलामरव्यानरयीने नवायतमांश नामंजर
ग्राच्या १८८५.... मढार फोऽनेछन्नु लाजव्यशचॅनयतीर्धन विष
जरल्या.. १८८३ ०.००० जहार क्रोउने त्र्याशी लाजरव्यनो श्रीगिरनार
तीर्थ व्ययीयो. १२.५७ ००.०० जारकोडने त्रेपन साजरव्यमानाजुतीर्थ जर
संवतपरत्नावर्षेयाजुयें पायोनायो तेसंवत् . रश्ना वर्षे माजुये ध्यन्नयहावी . ५०. पायरों सिंघासनाधीशतनाऊराव्याः ५०५ पांग्यों ने 'न्य सरें। सरएर उराव्यां. ७० सालोनीसमरावा भार उरावी. ७०६ सार घर्भशासारावी . ७०६ सान शभुमार मंडाव्या,मेरलेसघान्द्रत
राध्या ५०० पांजरों ब्राम्हाधारहनान्नएरा नित्यप्रत्ये बेटे
लगताहता.. वर्ष प्रत्ये त्रगंवार संघपूनसा
हामो बाससउरताहता. १.०० बजे हम अपडी हिनं प्रत्ये घन शालामाहार * हताहता १.२१ सालीनार यात्रा श्री.शत्रुनयनी सीधी...
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२१ खेम्वीश मायार्योने पाधापनारी - . १००० मेगहमर सिंहासन महात्मा निमि ने शव्याः 3५०० त्रएलरने पांयरों नपोधन गछसन्यासीनी पा
पुनारी.
ते रहे
१००० मेहनर संघ पून उरावी. १८०० जठारसें साघुजो मेला महात्मा गाहारयोहोरता.
८४ योराशी मसीत तुरऊलोसेमी इरावी. ३००००० वरालाजरय परपी पाशत्रुनयेतोरराषशव्युः
१०० यारशेपरउन्या परगाव्या.. 3००००० त्रासाजरव्य परयीहतोरगमवाव्यु. ७००... एगलाजरव्यमरयीने द्वारिकायेंतोरएजधाव्यं.
४५४ यारशेयोशठ दाव्य ऊरारी.
८०० नवशेड्या उराव्या. 3939२१८८०० सर्व भीत्ररामजतहोंनर कोउनहोतेर लाज
ढारहन्नर शारों शोललोहीयेंडीए सेटमुरव्यू पुएर भाटे सरय्यु संवत परमां वसूपाने स्वर्गा रोएर ज्यु
हवे तीर्थयात्रायें गया तेवारे साधे ते परिवार जीयो २४ योवीरा रथहाथीतना संघमा हतां. ४५.० यारहन्नरने पापशे सहेन वाला संघमाहता. १५०० यारहबरने पांयशेंगांडला संघमांतां. ११०० जगीमारशे वाल. ५०५ पांयशेने पांय पालोजी सायेहती. २००० जेहलर पीठीर हताः ७०. सानशं सुजासन् २२०० जहन्नर परोंश्चनांजर साघु साथैहता. ११०० सगीयारों गिम्मर वेषधारी साघुरुता ४०८ यारशे नेमाहटसाथेहता. ४५. न्यारशेने पाय्याशतेन गायन उरनाराकोलार
घमा हता. ., १००० मेहन्नर ही भीडा ऊरनारासाहता. 33०० वामहंन्दर ने एशेयारा साथेहता. 3.3०० बरा हन्नरनेत्रएशेलाट साथे हता.. १२५० मार मारीना वासरगजनावनारासाचे पीघा. ४००० यारहबर घोरासाथें हताः
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सात साज माएास साधें हता. ५०० पाय सुतार सांधें हता. ३५० भागशेने पय्याशहीबूटियां साधे हता. १... खेडएलर बुहार साथ हता.
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भेटला संघना परिवार सहित यात्रायें इश्यां हवे जीन्न पएग महोटा महोटा संसारी अमखां ते सजीयें छैयें.
३५ छत्रीशगढ उराव्या.
5.3 प्रेशर वारसदार्थ ठरवा भाटे संग्रामं यडीनेजस
शेरव्युं
२४ मोवीश मिश्शाच जी जोलावी.
१८ जठार वर्ष व्यापार उथ्यो. खेडहन्नर वर्षासन खाप्यां
४ सार राज्य सेवा करता हता. १८०० खदार बहाए। उराव्याहता.
वस्तुपाल तुम पानी पीहारता खो पुस्तस्यां मा मानाजी छे ने जन्य यवनाशिना स्थानमेषांव्यव्यय ते पानैनने ही पाववा माटेन छे से खेमनो यरित्र बांयवाची सम नशे वस्तुपाल संवत पुर७८ मा स्वर्गारोहए। धया ने नेपाल संवत १७०८ मां स्वर्गारोहला थया छे. ऐति श्रेयं.
॥ रजथ लेश्या स्वभाव होहा ॥
परजेश्या उहि लबने, दृष्ण नील अपोता। ते न्ने पछी रास, परिए।। में सज होत ॥था कुडियारा षट खेला, आठ लाडान लूज लगी नज साम्नतर 'हेज्यो सम्स समानणारा कृष्णाधड घटए। उहे, डासा अटए। नीस।। उहे अपोति लघु सिइ ज्योतेनस सीन ॥गा पंच म्हे पहुँच इस सियो, शुडस करे सना लधरती पड़ियां पड़ा इस, स्यो जावो उहे जागा निनही जैसी ऐसिया, तैसा जाये हमे ।। सङ्गुर की गम ने मिसेलव जगतओ लभीपार घति षट्लेश्या स्वरूप होड़ा ।। समाप्त
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॥ अ५॥ ॥ श्री नवकार मांगलिकरूप ॥
॥ नमो अरिहंताणं॥१॥ नमो सिधाणं ॥२॥ नमो प्रावरियाणं ॥३॥ नमो ज्वप्नायाणं ॥ ४ ॥ नमो लोए सब सादणं ॥ ५ ॥ एसो पंच नमुक्कारो ॥ ६ ॥ सब पावप्पणासणो ॥ ७ ॥ मंगलाणं च स वेसिं ॥ ७ ॥ पढमं हो। मंगनं ॥ए । ति पंच प रमेष्ठि मंगलम् ॥ एमां पद नव , संपदा आठ ले ॥
॥अथ खमासमण अथवा प्रणिपात ॥ ॥ नामि खमासमणो वंदिनं जावणिजाए ॥ नितीदियाए ॥ मबएण वंदामि ॥
॥अथ चैत्यवंदन॥ ॥जाकारेण संदिसह नगवन् चैत्यवंदन कर ॥ इलं, जय जय महाप्रनु ॥ देवाधिदेव, सर्वज्ञ श्रीवी तराग देव ॥ मुह दिठं परमेसर, सुंदर सोम सहाव, नूरि नवंतर संचिठ, नहो सो सवि पाव ॥१॥ जे में पाप कियां बाला पणे, अहवा अन्नाणे ॥ अमन वंतर ॥ सो सो खंग, जयो परमेसर ॥ तुह मुह दि सिरि पास.जिरोसर॥ २ ॥ पास पसी पसाठक रि, वीनतडी अवधार ॥ संसारडो बिहामणो, सामी
आवागमण निवार ॥ ३ ॥ हबडा ले सुलरकणा, जे जिनवर पूजंत ॥ एके पुरमें बाहिरा, परघर काम करं
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( 2 )
त ॥ ४ ॥ कव वाडी वावीयां, कवणें गूंच्यां फूल ॥ कवणें जिनवर चढावियां, नाव सरीसां मूल ॥ ५ ॥ वाडी वेलो मोहोरीन, सोवन कुंपली एल. ॥ पास जिसेसर पूजियें, पंचे अंगुलीए ॥ ६ ॥ दो धोला दो सामला, दो रत्तोप्पलवन्न ॥ मरगयवन्ना पुन्नि जिल, सोलस कंचनवन्न ॥ ७ ॥ नियनियमान क राविया नरहेसनयणानंद ॥ ते में जावें वंदिया, ए चवीस जिद ॥ ८ ॥ वतु ॥ कम्म नूमिहिं, कम्म चूमिहिं, पढम संघयपि, नक्कोसो सत्तरिस जिणवरा
विहरंत लग्न, नव कोडी केवली, कोडि सदस्स नव साहु गमइ || संपइ जिएमवर वीस मुणे ॥ विदु कोडीहिं वरना, समाह कोडी सहस्स हुआ, धु
सुं नित्र विहाणि ॥ जयन सामी.जयन सामी, रिसह सिरि सत्तुंजि, नविंत पहु नेमिजिए ॥ जयन वीर सच्चरिमंण ॥ रुवहिं मुपि सुन्वय, मुहरि पास हरिय खंमण, अवर विदेहिं तिबयरा, चिहुं दिसि विदिसि जिं के वि, तीच्णागयसंपई, वडुं जि सवेवि || सत्तावर सहस्सा, लरका उप्पन्न ग्रह को डी ॥ पंचसयं चतिसा, तियलोए चेइए वंदे ॥ इति ॥ ॥ अथ आदिजिन स्तवन ॥
॥ ते तरिया रे नाई ते तरिया || . ए देशी ॥ || श्रादिजिनं वंदे गुणसदनं सदनंतामलबोधं रे ॥ बोधंतागुण. विस्तृतकीर्ति, कीर्तितपथम विरो धं रे || यदि जि० ॥ १ ॥ रोधरहित विस्फुरडुपयो
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(३) गं, योगं दधतमनंगं रे ॥ नंगं नय व्रजपेशलवाचं, वाचं यमसुरव संगं रे ॥ आदि० ॥ २ ॥ संगत पद शुचिवचनतरंगं, रंगं जगति ददानं रे ॥ दान सुरफुम मंजुल हृदयं, हृदयंगम गुणनानं रे ॥ आदि० ॥ ३ ॥ जानंदित सुरवर पुन्नागं, नागर मानसहंसं रे ॥ हंसगति पंचमगति वासं, वासव विहितारांसं रे ॥ श्रा० ॥ ४ ॥ शंसंतं नयवचनम नवमं, नवमंगल दातारं रे ॥ तार स्वरमघघनपव मानं, मानसुनट जेतारं रे ॥ आ० ॥ ५ ॥ वं स्तुतः प्रथमतीर्थपतिः प्रमोदा, श्रीमद्यशोविजयवाच कपुंगवेन ॥ श्रीपुंगरीकगिरिराज विराजमानो, मा नोन्मुखानि वितनोतु सतां सुखानि ॥ ६॥इति संपूर्ण
॥अथ शीतलजिन स्तवन । ॥ वारि प्रजु दशमा शीतल नाथ, सुणो एक वीन ति रे लोल ॥ के वारि प्रनु माहारे तुमझुं प्रीत, के अवरझुं पाखडी रे लोल ॥१॥ के वारिप्रनु नदिल पुर अवतार, के दृढरथ राजियो रे लोल ॥ के वारि प्रनु नंदा मात मलार, के कुलमां गाजीयो रे लोल ॥ २ ॥ के वारि प्रनु श्रीवह संबन पाय, के प्रनुजी ने दीपतुं रे लोल । के वारि प्रनु चंद कहे कर जोड, के अविहड रंगा रे लोल ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ विमल जिनस्तवन ॥ कुंबखडानी देशी ॥
॥ विमल विमल गुण राजता, बाह्य अन्यंतर नेद ॥ जिणंद जुहारीएं ॥ सूची पुला दृष्टांतथी,
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(४)
मन वंच काय निवेद ॥ जि० ॥ १ ॥ स्पष्ट बह नि धत्त ने, नीकाचित अतिशेष ॥ जि ॥ आत्मप्रदे शमांह मल्या, मल ते कर्म प्रदेश ॥ जि ॥ २ ॥ असंख प्रदेशी चिन्मयी, चेतन गुण संनार॥जि०॥ प्रदेश प्रदेशे रमी रही, वर्गणा कर्म अपार ॥ जिन ॥३॥ पंच रसारन नावना, नावित आतम त जि० ॥ नपलता नझी कनकता. पामे नत्तम सत्त्व ॥ जि० ॥ ४ ॥ प्रथम नावना अततणी, पीजी लप तिय सत्त्व ॥ जि० ॥ तुरीय एकता नावना, पंचम नाव सुसत्त्व ॥ जि० ॥ ५ ॥ एम करी सर्व प्रदेशने, विमल कस्या जिनराय ॥ ज० ॥ नाम यथार्थ विचा रीने, नमे स्वरूप नित्य पाय ॥ जि० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥अथ सीमंधर जिन स्तवन । ॥सुणो चंदाजी, सीमंधर परमातम पामें जाजो ॥ मुज वीनतडी, प्रेम धरीने इणि परें 'तुमें संनना वजो ॥ ए अांकणी।। जे त्रण्य नुवननो नायक , जस चोश इंदर पायक डे, नाण दरिसण जेहनें खायक ॥ सुणो० ॥ १ ॥ जेनी कंचन वरणी काया , जस धोरी संबन पाया , पुमरीगिणि नग रीनो राया ॥ सुणो० ॥ २ ॥ बार पर्षदामांहि विराजे , जस चोत्रीश अतिशय बाजे ने, गुण पां त्रीश वाणीयें गाजे ॥ सुणो० ॥ ३ ॥ नविजनने ते पडिबोहे , तुम अधिक शीतल गुण शोहे , रूप देखी नविजन मोहे २ ॥ सुणो० ॥ ४ ॥ तुम
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(५) सेवा करवा रसीयो चं, पण जरतमां दूरें वसीयो
, महा मोह राय कर फसीयो _ ॥ सुणो० ॥५॥ पण साहिब चित्तमां धरीयो , तुम आणा खडग कर ग्रदियो , पण कांक मुजथी मरियो ॥ सुणो० ॥ ६ ॥ जिन उत्तम पूंठ हवे पूरो, कहे पद्मवि जय था शूरो, तो वाधे मुज मन अति नूरो ॥ सुगो० ॥ 3 ॥ इति ।।
॥अथ उपसर्गहरस्तवनम् ॥ || नवसग्ग हरं पासं, पासं वदामि कम्मघण मुक्कं ॥ विसहर विस निन्नासं, मंगल कन्नाण श्रा वासं ॥ १ ॥ विसहर फुलिंग मंतं, कंते धारे जो सया मणु ॥ तस्स गह रोगमारी, उठ जरा जति नवसामं ॥ २ ॥ चिहन दूरे मंतो, तुऊ पणामोवि बढुफलो दोइ ।। नर तिरिएसवि जीवा, पावंति न पुरक दोगचं ॥ ३ ॥ तुद सम्मत्ते लमे, चिंतामणि कप्पपायवप्नहिए ॥ पावंति अविग्घेणं, जीवा अय रामरं ठाणं ॥ ४ ॥ श्र संथु महा जस, नत्तिजर निप्नरेण हिआएण ॥ ता देव दिऊ बोहिं, नवे नवे पास जिणचंद ॥ ५ ॥ जिंकिंचि नाम तिबं, सग्गे पायालि तिरिय लोगंमि ॥ जाई जिण बिंबाइं, ताई सवाई वंदामि ॥ ॥ इति ॥
॥अथ अरिहंत चेत्राणं ॥ ॥अरिहंत चेत्राणं ॥ करेमि. कानस्सग्गं ॥ १ ॥ वंदण वत्तिाए ॥ पूषण वत्तियाए ॥ सकार वत्ति
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( ६ )
ए । सम्माण वत्तित्र्याए । बोहिलान वत्तिश्राए । निरुवसग्ग वत्तित्र्याए ॥ २ ॥ साए मेहाए धिईए ॥ धार पाए अणुप्पेहाए ॥ वडूमालीए वामि काउस्सग्गं ॥ ३ ॥ अन्न उससीए ॥ इति ॥
॥ अथ नमुडु वा शक्रस्तव ॥
॥ नमुतुणं, अरिहंताणं, जगवंताणं ॥ १ ॥ श्राइ गराणं, तियराणं, सगं संबुदाणं ॥ २ ॥ पुरिसन माणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर पुंमरीप्राणं पुरिस वर गंधहीणं ॥ ३ ॥ लोगुत्तमाणं, लोग नाहाणं, लोग हित्र्याणं, लोग पईवाएं, लोग एकांगरा ॥ ४ ॥ अजय दयाणं, चस्कु दयाां, मग्ग 'दयाणं, सरण दयाणं, बोहि दयाणं ॥ ५ ॥ धम्म दया, धम्म देसिया, धम्म नायगाणं, धम्म सारहीणं. धम्म वर चादरंत चक्क वट्टीणं ॥ ६ ॥ पहिय वरनापदंसण धराणं, विग्रह बकमाएं ॥ ७ ॥ जि पाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुधाणं बोह याणं, मुत्ताणं मोगाणं ॥ ८ ॥ सवनूपं मन्वदरि सिणं, सिव मयल मरु मांत मरकय महाबाह मपुरावित्ति सिद्धि गइ नामधेयं, ठाणं संपत्ताणं. नमो जिलाणं ॥ ए ॥ इति ॥
॥ अथ तीर्थस्तुति ॥ . ॥ जे अश्या तिबयरा, जे नविस्संति लागए काजे ॥ जे श्रावि वट्टमाला, ते सबे नाव नमिमो ॥ १ ॥ सुरकय मणुयकथं वा, जुवतिगे सासयं च जं
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(७)
ति ॥ तं सयलमिह सिवि दु, मण वयण ताहिं पणमामि ॥ २ ॥ जब य जिणाणं जम्मो, दिरका नाणं च निसिहिया जब ॥ जायं च समोसरणा, ता नूमि वंदामि ॥ ३ ॥ एवमसासय सासय, पडिमा थुणिया जिणंद चंदाणं ॥ सिरिमं महिंद नुवणिंद, चंदमुणि विंद थुत्र महिया॥ ४ ॥ इति ॥
॥अथ काव्यानि ॥ ॥ अष्टापदें श्री आदि जिनवर, वीर पावा पुरि वरू ॥ वासु पूज्य चंपा नयरसिका, नेम रेवागिरिवरु ॥ समेत शिखरें वीश जिनवर, मोद पहोता मुनिवर ॥ चोवीश जिनवर नित्य वंडं, सयल संघ सुहंकरु ॥ २ ॥ इति ॥
॥ अशोकरदः सुर पुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनिश्चामर मासनं च । नामंमलं इंजिरातपत्रं, सत्प्राति हार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥१॥ सकलकरमवारी मोद मार्गाधिकारी, त्रिनुवनउपकारी केवलझानधारी ॥ नवियण नित सेवो देव ए नक्ति नावें, ए जिन नजंतां सर्व संपत्ति आवे ॥२॥ इति काव्यानि संपूर्णानि ॥
॥अथ स्तुतिकाव्यानि ॥ ॥ सकल कुशल वन्नी पुष्करावर्त्तमेघो, उरित तिमिर जानुः कल्पदोपमानः ॥ नवजलनिधि पोतः सर्व संपत्तिहेतुः, स नवतु नवतां जो श्रेयसे पार्श्वनाथः ॥ १ ॥ दशावतारो नुवनैकमन्नो, गोपां गनासे वितपादपद्मः ॥ श्रीपार्श्वनाथः पुरुपोत्तमोऽयं,
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(७) ददातु वः सर्वसमीहितानि । २ ॥ श्रीपार्य नाथो जवपापताप, प्रशांतधाराधरचाररूपं ॥ विघ्नो घहंता प्रणतोरगेंः, समस्तकल्याणकरो . जिनः ॥ ३ ॥ वीरः सर्व सुरासुरेंड्महितो वीरं उधाः सं श्रिताः, वीरेणानिहतश्च कर्मनिचयो वीय निर नमः ॥ वीरातीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं वीर य घोर तपो, वीरे च धृति कीर्ति कांति निचय श्रीर नई दिश ॥ ४ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीअरिहंत स्तुति ॥ ॥ एस करेमि पणा , जिणवर वसहस्स वहमा एगस्स ॥ सेसाणंच जिणाणं, सगणहराण मन्वसि ॥१॥ जग मबय बीयाणं, वियंसिय वर नाण देगा धराणं ॥ नाणुकोयगराणं. लोगंमि नमो.जियवराण ॥॥ तिबयरे जगवंते,अणुत्तरे परक्कमे अमिय नाणी॥ तिन्ने सुगइ गगए, सिपिह देसियं वंदे ॥३॥ वंदामि महा नागं, महामुणिं महायसं महावीरं ॥ अमर नर राय महियं, तिबयरे मिमस्स तिबस्स ॥४॥ वयणा मएण नुवणं. निवावंता गुगणेसु हावंता ॥ जिय लोग मुरंता, अरिहंता ढुंतु मेसरणं ॥ ५॥ नङिय जर म रणाणं, सम्मत्तदोसत्त सत्तसरणाणं॥ तिदुयण जिण सुहियाणं, अरिहंताणं नमोत्ताणं ॥६॥.एवा श्रीअरि हंतने महारो नमस्कार होजो. श्रीअरिहंत कहेवाने तो के जेणे राग क्षेप रूपीया वैरी जीत्या अने अढार दोपर हित थया ते अढार दोपनां नाम गाथायें करी कहे जे.
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(त)
॥ अन्ना कोह मय माण, लोह माया रश्य रश्य || निंदा सोग अलिय वयण, चोरिया महर जयाय ॥ १ ॥ पाणीवह पेम कीला, पसंग हा साय जस्स ए दोसा ॥ श्रहारस विपराठा, नमामि देवाहिदेवं तं ॥ २ ॥ एहवा देवाधिदेव, सुरासुर विहितसेव, सर्वज्ञ नगवंत, जगन्नाथ जगज्जीवना तारक, कुगति मार्ग निवारक, निरीह निरहंकार, निःसंग निम शांत दांत करुणा समु, विश्वोपकार सागर, अनंत गुणना श्रागर, चोराठ इंना पूजनी क, वज्रकपननाराचसंघयण, समचतुरस्र संस्थान, एक हजारने या वर प्रधान पुरुष लक्षणना धरण हार, समुनी परें गंजीर, मेरुपर्वतनी परें धीर, शंखनी पेरें. निरंजन, वायुनी परें प्रति ब६ विहार, प्रकाशनी परें निरालंब, जीवनी परें अप्रतिहतगति, कूम्र्मनी परें गुप्तेंयि, खड्गी जीवना शृंगनी परें एक, नारंग पंखीनी परें अप्रमत्त, सिंहनी परें दुर्धर्ष, तृप जनी परें दार सहस्स सीलांगरथना धुरंधर धोरी, चंदमानी परें सौम्यकांति, सूर्यनी परें सतेज, पंखीनी पेरेंविप्रमुक्त, कुछी संबल, वसुंधरानी परे सर्व सहे, नंतज्ञान, अनंतदर्शन, चोत्रीश प्रतिशयें करी संयुक्त पां त्रीश नापा गुण परिकलित, अष्ट महा प्रातिहार्ये विरा जमान, पादपीठिकासहित सिंहासनासन, बत्रत्रय चामर शोभायमान, पूंठ पाउल नामंगल दीपे, तेजें करी श्रीसूर्यने जपे, श्री अरिहंत उपर अशोक वृद
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(१०) बाया करतो संघातें चाले, धर्मध्वजा आगन्ने बतील हलहे, आकाश गतधर्मचक फल हले, देवउंऽनि स्वा मीके आगे वाजे, श्री अरिहंतनी वाणी मेघनी परें गाजे, जोजन हारिणी वाणी अमृत समाणी, सर्व जा पानुगामिनी, सर्व लोकना संशयहरे, त्रिनुवनज ननां मनने नहाह करे, मुक्ति नगरी प्रतें सार्थवाह. एहवा देवाधिदेव ऐहंत गुणवंत, नगवंत. वीतराग वीतस्टन्ही परमात्म. परमेश्वर परम निरंजन, तेही नी गुण स्तुति नपुं ॥इति अरिहंत स्तुतिः समाप्ता
॥ अथ श्रीअंतरिक पार्श्वनाथ स्तुति बंद ॥
॥ प्रनु पासजी ताहरूं नाम मीतुं, त्रित लोकमां एटलुं सार दीतुं ॥ सदा संमरतां सेवतां पाप नावं, मन माहरे ताहरूं ध्यान वेतूं ॥ १ ॥ मन तुम्न पा सें वसे रात दीमें, मुखपंकज निरखवा हंस ही से ॥ धन्य ते घडी जे घडी नयण दीसे, नली नक्ति जावें करी वीनवीसे ॥ २ ॥ अहो एह संसार ने फुःख दोरी, इंजालमा चित्त लागी गोरी ।। प्रनु मानियें विनती एक मोरी, मुंफ तार तुं तार बलिहा र तोरी ॥ ३ ॥ सही सुपन जंजालमां सत्व मोह्यो, घडीयालमां काल रमतो न जोयो ॥ मुधा एम सं सारमा जन्म खोयो, अहो घृत तणे .कारणें जल वि लोयो ॥ ४ ॥ एतो नमरलो केसुशां ब्रांति धायो, जई शुक तणी चंचुमांहे जरायो ॥ शुकें जंबु जाणी गले दुःख पायो,प्रनु लालचं जीवडो एम वाह्यो॥५॥
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(११) जम्यो नर्म नलो रम्यो कर्म नारी, दयाधर्मनीश र्म में नवि विचारी ॥ तोरी नर्मवाणी परम सुरक कारी, त्रिढुंज कना नाथ में नवि संजारी॥ ६ ॥ वि षय वेलडी सेलडी करिय जाणी, नजी मोह तृमा तजी तुऊ वाणी ॥ एहवोनलो नूंमो निज दास जा गी, प्रनु राखीयें बांहिनी बांहि प्राण। ॥ ७ ॥ माहा रा विविध अपराधनी कोडि सहीयें, प्रनु शरण या व्या तए। लाज वहीयें ॥ वली घणी घणी वीनतिए म कहीयें, मुफ मानसरें परम हंस रहीयें ॥ ७ ॥ कल श॥ ए कृपा मूरति पास स्वामी, मुगतिगामी ध्याईयें ॥अति नक नावें विपति जावे, परम संपद पायें। प्रनु महिम सागर गुण विरागर,पास अंतरिक जे स्तवे॥ तस सकल मंगल जय जयारव,आनंद वईन वीनवे ।। ॥ अथ नगवंतनी पूजा करवा समये नवे अं॥ ॥ में तिलक करतां जे पाठ नचारवो, ते कहे ॥
॥ दोहा ॥ जल नरि संपुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत ॥ झपन चरण अंगुग्डो, दायक जवजल अंत ॥ १ ॥ जानु बलें कासग्ग रह्या, विचस्या दे श विदेश ॥ खडां खडां केवल लद्यु, पूजो जान नरे श ॥ २ ॥ लोकांतिक वचनें करी, वरस्या वरसी दा न ॥ करकांमे प्रनु पूजना, पूजो नवि बदु मान ॥३॥ मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत ॥ नुजा बलें नवजल तस्या, पूजो खंद महंत ॥ ४ ॥ रत्न त्रयि गुण कजली, सकल सुगुण विशराम ॥ नानि
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( १२ )
कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ ५॥ हृ दय कमल उपशम बनें, बाब्या रागने रोप | हिम दहे वन खंनें, हृदय तिलक संतोष ॥ ६ ॥ शोल पोहोर दे देशना, कंठ विवर वर्तूल ॥ मधुर ध्वनि सु रनर सुणे, तिणे गजें तिलक अमूल ॥ ७ ॥ तीर्थ कर पद पुण्यथी, हुय जन सेवंत || त्रिभुवन तिलक समा प्रनु, ल तिलक जयवंत ॥ ८ ॥ सि 5 शिला गुण कजल लोकांतें जगवंत ॥ वसिया तिल कारण नवि, शिर शिखा पूजंत ॥ ए ॥ उपदेश क नव तत्त्वना. तिणे नव अंग जिणंद ॥ पूजो बहु विव जावथी, कहे गुन वीर मुलिंद ॥ १७ ॥ इति ॥ अथ दोहा ॥
|| जीवडा जिनवर पूजियें, पूजानां फल जोष ॥ राजा नमे प्रजा नमे, आण न लोपे कोय ॥ १ ॥ कुंनें बांधयुं जल रहे, जल विना कुंन न होय॥ ज्ञानें बांध्यं मन रहे, गुरु विना ज्ञान न होय ॥ २ ॥ गुरु दीवो गुरु देवता, गुरु बिना घोर अंधार ॥ जे गुरु वाणी वेगजा, ते रडवडिया संसार ॥ ३ ॥ जावें जावना जावियें, नावें दीजें दान || जावें जिनवर पूजियें, नावें केंद ल ज्ञान ॥ ४ ॥ प्रभु नामकी उपधी, खरे मन खाय ॥ रोग पीडा व्यापे नही, महा दोष मिट जाय ॥ ५ ॥ प्रभुजी पूजन हुं चल्यो, केसर चंदन घनसा र ॥ नव अंगें पूजा करी, जव सायर पार उतार ॥ ६ ॥ पांच कोडीनें फूलडे, पाम्या देश ढार ॥ कुमारपाल
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( १३ )
राजा थयो, त्यों जय जय कार ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ मांगलिक काव्यानि ॥
॥ मंगलं जगवान वीरो, मंगलं गौतमः प्रभुः ॥ मं गलं स्यूलिनशद्या, जैनो धर्मोऽस्तु मंगलं ॥ १ ॥ एक जंबु जग जाणियें, बीजा नेम कुमार ॥ त्रीजा वयर वखापियें, चोथा गौतम धार ॥ २ ॥ अंगूठे अमृत वसे, लब्धि तणो नंमार ॥ जे गुरु गौतम समरियें, मन वंचित फल दातार ॥ ३ ॥ प्रहीण महानिशि लब्धिः, केवलश्राः करांबुजे ॥ नामनीर्मुखे वाणी, तमहं गौतमं स्तुवे ॥ ४ ॥ इति काव्यानि ॥ लोगस्स काउस्सग्ग करवानो ॥
॥
|| लोगस्स नकोगरे, धम्म तिबयरे जिसे ॥ अरिहंते कित्तइस्स; चनवीसंपि केवली ॥ १ ॥ उस नमजियं च बंद, संनवमनिणंदणं च सुमई च ॥ पचमप्पदं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥ २ ॥ सुविहिं च पुष्पदंतं, सील सिद्धांस वासुपुऊं च ॥ विमलमांतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥ ३ ॥ कुंथुं परं च मत्रिं वंदे मुणिसुवयं नमिजिणं च ॥ वंदामि रिहने मिं, पासं तह व माणं च ॥ ४ ॥ एवं म अनिथुआ, विदुयरयभला पहीण जरमर या ॥ चनवीसंपि जिवरा, तिबयरा मे पसीयंतु ॥ ५ ॥ कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्त मा सिद्धा ॥ आरुग्ग बोहिलानं समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥ ६ ॥ चंदेसुनिम्मलयरा, बेसु हियं
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(१४) पयालयग ॥सागर वर गंजीरा, सिमा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ 9 ॥ इति ॥ लोगस्स समाप्तः ॥
॥ अथ प्रनाति स्तवन ॥ . ॥ अव तुं चेतन चेतने, लाविणो जाहि ॥ या जुगमें तेरो को नही, तुं किनको नांहि ॥ अब० ॥ ॥ ॥ जननी कामिनीने पिता, वेटा वेटीने नाई॥ ज्युं पंखी टोलुं मिले, पीने कमी ते जाई ॥ अव ॥ २ ॥ अंजलि जल सम थान, फरत कयुं जग दीमें ॥ संध्यारंग सम यौवनवय, अनित्य ए विसवा वीमें ॥ अब० ॥ ३ ॥ जिनदास कहे उन कारणे, बोडो मोहको संग ॥ अनुनवकुं चित्त यादरीकर ल्यो सयगुरु संग ॥ अब० ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ अथ प्रनाती स्तवन ॥ ॥ जब जिनराज कृपा करे, तव शिब सुख पावे ॥ अक्ष्य अनुपम संपदा, नव निधि घर आवे ॥जब०॥ ॥ १ ॥ ऐसी वस्तु न जगतमें, दिल शाता यावे ॥ सुरतरु रवि शशि प्रमुख जे, जिन तेजें डिपावे ॥ ज०॥ ॥ २ ॥ जनम जरा मरणा तणां,फुःख दूर गमावे॥ मन वनमां जिन ध्याननो, जलधर वरसावे ॥ज ॥ ॥ ३ ॥ चिंतामणि रयणे करी, कोण.काग उडावे॥ तिम मूरख जिन बोडीने, अवरां कू ध्यावे ॥ ज०॥ ॥४॥ईली नमरी संगथी, नमरी पद पावे ॥ झान विमल प्रनु ध्यानथी, जिन उपमा आवे ॥ ज॥५॥
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(१५) ॥ अथ प्रजाती स्तवन । ॥ विषय वासना त्यागो चेतन, साचे मारग ला गो रे ॥ ए आंकणी ॥ तप जप संयम दानादिक सद, गिनति एक न आवे रे ॥ इंडिय सुखमां जों सौ ए मन, वक्र तुरंग जिम धावे रे ॥ विष ॥१॥ एक एकके कारण चेतन, बहुत बहुत दुःख पावे रं॥ तेतो प्रगट पणे जगदीसें,ऽणि विध नाव लखा वे रे ॥ विष० ॥ ॥ मन्मथ वश मातंग जगतमें, परवशता दुःख पावे रे ॥ रसना लुब्ध होय फख मूरख, जाल पड्यो परतावे रे ॥ विष० ॥ ३ ॥ घ्राण सुवास काज सुन जमरा, संपुटमांहे बंधावे रे ॥ ते सरोज संपुट संयुत फुन, करटीके मुख जावे रे ।। विप॥४॥ रूप मनोहर देख पतंगा, पडत दीपमा जाई रे ॥ देखो याको उख कारनमें, नयन नये हे सहाई रे ॥ विप० ॥ ५ ॥ श्रोतेंयि बासक्त मिर गलां, बिनमें शीश कटावे रे ॥ एक एक आसक्त जीव श्म, नानाविध दुःख पावे रे ॥ विष ॥ ६ ॥ पंच प्रबल वर्ने नित जाकुं, ताकुं कहा जु कहीये रे ॥ चिदानंद ए वचन सुणीने, निज स्वनावमें रहीयें रे ॥ विप० ॥ ७ ॥ इति प्रजाती ॥
॥अथ प्रनाती स्तवन ॥ ॥ पूरवपुण्य उदय करी चेतन, नीका नरनव पा या रे॥ए आंकणी ॥ दीनानाथ.दयाल दयानिधि, पुर्नन अधिक बताया रे ॥ दश दृष्टांतें दोहिला जाकुं,
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(१६) उत्तराध्ययनें गाया रे ॥ पु० ॥ ॥ अवसर पाय विपय रस राचत, ते तो मूढ कहाया रे ॥ काग नझावन काज विप्र जिम, मार मणि पबताया रे ॥ पु० ॥ २ ॥ नदी घोल पापाण न्याय कर, अवाट तुं आया रे ॥ अई सुगम आगल रही तिनकुं, जिन का मोह घटाया रे ॥ पु० ॥३॥ चेतन चारग तिमें निथें, मोद हार ए काया रे ॥ करत कामना मरपति याकुं, जिनकं अनर्गल साया रे ।। पुon४॥ रोहणगिरि जिम रतन खाग तिम, गुण सद् यामें समाया रे । महिमा मुरवयी वर्णत जाकी, सुम्पति मन शंकाया रे ॥ पु० ॥ ४ ॥ कल्पद सम संज म केरी, अति शीतल जिहां बाया रे ॥ चरण कर ग गुण धार महामुनि, मधुकर मन लोनाया रे । पु० ॥ ६ ॥ या तन बिन तिढुं काल कहो किम, ताचा सुख निपजाया रे ॥ अवसर पाय न चूक चेदानंद, सदगुरु यो दरमाया रे ॥ पु० ॥ ॥ इति ॥ अथ अांविलनी उत्तीनां नव स्तवन प्रारंनः ॥
॥तत्र प्रथम स्तवनम् ॥ ॥ केशर वरणो हो, के काढ कसंबो माहारा लान॥ । ए देशी ॥ गोयम नाणी हो, के कहे सुणो प्राणी गाहारा लाल ॥ जिनवर वाणी हो, केहियडे आणी । मा० ॥ आसोमासें हो, के गुरुने पासें ॥म ॥ नव पद ध्यासे हो, के अंग उन्नासें ॥ माम् ॥१॥ प्रांबिल कीजें हो, के जिन पूजीजें ॥ मा० ॥ जाप
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(१७) जपीजें हो, के देव वांदीजें ॥ मा ॥ नावना नावो हो, के सिचक ध्यावो । मा० ॥ जिनगुण गावो हो, के शिव सुख पावो ॥ मा० ॥ २ ॥ श्रीश्रीपाने हो, के मयणा वालें ॥ मा० ॥ ध्यानरसालें हो, के रोग ज टाले ॥ मा० ॥ सिक्ष्चक्र ध्यायो हो, के रोग गमायो ॥ मा० ॥ मंत्र ाराह्यो हो, के नवपद पा यो । मा० ॥ ३ ॥नाननी जोली हो, के पेहेरि प टोली॥ मा ॥ स हियर टोली हो, के कुंकुम घोली ॥ मा० ॥ थाल कचोली हो, के जिनवर खोली ॥ मा० ॥ पूजी प्रणमी हो, के कीजें उत्ती॥मा ॥४॥ चैत्र प्राप्तो हो, के मनने नहलासें ॥ मा० ॥ नवपद ध्याशे हो, के शिवसुख पासें ॥ मा० ॥ उत्तम साग र हो, के पंमितराया ॥ मा० ॥ सेवक कांतें हो, के बहु सुख पाया ॥ मा० ॥ ५ ॥ इति समाप्त ॥ १ ॥
॥अथ दितीय स्तवनम् ॥ ॥आ लालनी देशी॥ नवपद महिमा सार, सांजलजो नर नार ॥ आडे लाल ॥ हेज धरी आरा धीयें ॥ तो पामो नवपार, पुत्र कलत्र परिवार ॥आ॥ नवपद मंत्र आराधी यें ॥१॥ आंकणी ॥ पासोमास विचार, नव आंबिल निरधार॥या॥विधियुं जिनवर पूजीयें ॥ अरिहंत सिह पद सार, गणणुं जी तेर ह जार ॥ श्रा०॥ नवपदनुं ईम कीजीयें ॥ २ ॥ म यण सुंदरी श्रीपाल, आराध्यो ततकाल ॥ आ० ॥ फल दायक तेहने थयो ॥ कंचन वरणी काय, देही
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(१७)
तेहनी थाय || श्रा० ॥ श्रीसिचक्र महिमा कह्यो ॥३॥सांनलि सदु नर नार, अाराध्यो नवकार ॥ या ॥ हेज धरी हियडे घj॥चैत्र मासे वली एह. नवपदमु धरो नेह ॥ आ० ॥ पूज्यो ये शिवसुख घj॥ ४ ॥ इणिपरें गौतम स्वाम, नव निधि जेह ने नाम ॥ श्रा॥ नवपद महिमा वखाणीयो॥ उत्तम सागर शिप्य, प्रणमे ते निश दीस ॥ ० ॥ नव पद महिमा जाणीयो॥५॥ इतिहनीयस्तवनं ।।
॥ अथ तृतीय स्तवनं ॥ सीतातो रूपें रूड़ी ॥ए देशी: श्री वीर जिणंद बखाण्यो, तिहां गौतम गणधर जाण्यो हो । नवपद ध्याईयें ॥ श्री श्रीपाल नरेश, मयणाय गु रु उपदेशे हो ॥ नव ॥ ॥ श्रीसि चक आरा ध्यो, तो सयल पदारथ साध्यो हो॥न ॥धासो मा सें कीजें, शुदि सातमे जिन पूजी हो । नव ॥२॥ अष्ट कमल दल थापी, महिमा जस त्रिभुवन व्या पी हो ।। न० ॥ मध्यदलें जिन ध्याने, ध्यावो नवि धवने वाने हो ॥ न॥३॥ पूरव दिशें सि६ बा जे, राते तनु तेज विराजे हो ॥ न० ॥ आचारिज पद त्रीजे, जिम सोवन वान करीजें हो ॥ न ॥४॥ पश्चिम दिश नवझाया, नीले तनु वान. सोहाया हो ॥ न० ॥ साधु सकल घनवानें, उत्तर दिशि ध्यावो ध्याने हो ॥ न०.॥ ५ ॥ नाण अग्नि कोणें ध्यावो, जिम अत्यंत सुख तुमें पावो हो ॥ न ॥ दंसण
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(१ ) बाराहो प्राणी, नैरुत विदिशे मन प्राणी हो ॥न॥ ॥ ६ ॥ वायव्यकोणें कहीजें, चारित्र ध्यायी सुख ती जें हो ॥ न० ॥ ईशाने तप ध्यावो, उजाल समकित सुख पावो हो । न० ॥ ७ ॥ आसो चैत्रज मामें, जपतां कमि आवे पासें हो ॥ न० ॥ विधिगुं देव वंदीजें, श्रीजिनवर पूजा रचीजें हो ॥ न० ॥ ७ ॥ नव पद जाप जपीजें,यांविल तप नव दिन कीजें हो ॥न७॥ श्रीसिदचक सेवीजें, पंचामृत न्हवण करीजें हो ॥ न० ॥ ५ ॥ चन्द पूरवनो सार, ए मंत्र वडो नवकार हो ॥ न० ॥ बुध नत्तम सागर राया, शिष्य कांतिसागर सुखपाया हो ॥ न ॥ १० ॥ इति ॥४॥
॥अथ चतुर्थ स्तवनं ॥ ॥ किसके.चेने किसके पूत ॥ ए देशी ॥ सेवो रे नवि नावें नवकार, जंपे श्रीगौतम गणधार ॥ नवि सांजलो ॥ हारे संपद थाय ॥ न ॥ हारे संकट जाय ॥ ज० ॥ आशोने चैत्रं हरप अपार, प्राणी गणगुं किजें तेर हजार ॥न ॥१॥ चार वरसने वली पट् मास, ध्यान धरो जावें धरी विश्वास ॥न॥ ध्यायो रे मयासुंदरी श्रीपाल, तेहनो रोग गयो तत काल ॥नम् ॥ २ ।। अष्टकमल दल पूजा रसाल, करी न्हवण बांटयु ततकाल ॥ न० ॥ सातशे मही पति तेहनें रे ध्यान, देही पामी कंचन वान ॥न॥ ॥३॥ महिमा कहेतां एनो नावे पार, समरो तिणे कारण नवकार ॥ ज० ॥ इह नव परजव ये सुख
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। २० ) वास, बहु पामे नही लील विलास ॥ न० ॥ ४ ॥ जाणी रे प्राणी लान अनंत, सेवो सुखदायक ए मंत ॥ ज० ॥ उत्तमसागर पंमित शिष्य, सेवे कांतिसागर निशदीस ॥ न ॥ ५॥ इति चतुर्थस्तवनं ॥ ४ ॥
॥ अथ पंचम स्तवनं ॥ ॥ नवियां श्रीसिदचक अाराधो, तुमें मुक्ति मार गर्ने साधो, इह नर ना उर्लन लाधो हो जात । ॥ नवपद जाए जपीजें ॥त्रण टंक देव बांदी जें, त्रिदुं कालें जिन पूजीजें, आंबिल तण नव दिन कीजें हो लाल ॥ २० ॥ ५ ॥ हदि यासोचे त्रज मासे, तप सातमथी अन्यामें, पद मेव्यां पा तक नासे हो लाल ॥न ॥ ३ ॥ मयगाने नृप श्रीपालें, आराध्यो मंत्र नजमालें, एह दुःख दोह गनें टाले हो लाल ॥ न ॥ ४ ॥ एहनी जे सेवा सारे, तस मयगल गाजे बारें, इति मीति अनीति निवारे हो साल ॥ ना ॥ ५॥ मिथ्यात्व विकार अनिष्ट, क्य जाये दोषी उष्ट, इणे सेव्या समकित पुष्ट हो लाल ॥ न० ॥ ६ ॥ जसवंत जिनंसु साखें, नवि सिहचकना गुण नांखे, ते ज्ञान विनोद रस चाखे हो लाल ॥ न ॥ ७ ॥ इति ॥ ५ ॥
॥अथ षष्ठस्तवनं ॥ ॥ जग जीवन जग वालहो ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीसि चक्र ाराधीयें, शिव सुख फल सह कार लाल रे ॥ ज्ञानादिक त्रण रत्ननु, तेज चढा
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(११) वण हार लाल रे ॥ पागंतरें॥ श्री सि ॥१॥ गौतमें पूबंता कह्यो, वीर जिणंद विचार लाल रे ॥ नवपद मंत्र आराधतां, फल लहे नविक अपार लाल रे ॥ श्रीसि ॥ २ ॥ धर्मरथनां चार चक्र , उपशमनें सुविवेक लाल रे ॥ संवर त्रीजुं जाणीयें, चोधुं सिचक्र लेक लाल रे ॥ श्रीसि ॥३॥ चकी चक्र रयण बलें, साधे सयल ब खेमलाल रे ॥ तिम सिमचक्र प्रनावथी. तेज प्रताप अखंम लाल रे ॥ श्रीसि ॥ ४ ॥ मयणाने श्रीपाल जी, जपतां बदु फल लीध लाल रे ॥ गुण जसवंत जिनेश्नों, झान विनोद प्रसि६ लाल रे ॥ श्रीसि६० ॥ ५ ॥
॥ अथ सप्तम स्तवनं ॥ ॥ चिंतामणि स्वामी सच्चा साहेब मेरा ॥ ए देशी॥
॥राहो प्राणी साची नवपद सेवा ॥ ए आंकणी ॥ नव निधि आपे नवपद सेवे, इम नांखे श्रीजिनदे वा ॥ा० ॥ १॥ श्रीसिचक धरो नित्य दिलमें, जैसे गज मन रेवा ॥ आ० ॥ २ ॥ अरिहंतादिक एक पद जपतां, हारे लहीयें सुख सदैवा ॥ श्रा० ॥ ३ ॥ समुदित जपतां किम करी न करे, सुरसुख जुम फल लेवा ॥आ॥४॥ जिनें कहे श्म, झान वि नोदे, हर्पित द्यो नित मेवा ॥ श्रा० ॥ ५ ॥
॥अथ अष्टम स्तवनं ॥ ॥राग सारंग ॥ गौतम प्रबत श्रीजिन नाखत, व
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(२२) चन सुधारस पनका ॥ बलिहारी नवपद ध्यान ॥ १ ॥ नवपद सवे नवमे स्वर्गे, पावत दि विमा नकी ॥ब० ॥ २ ॥ याकी महिमा वचन हमकुं,जे में जसोदा कानकी ॥ब० ॥३॥ पावे रूप सरू प मदनसो, देही वपन वानकी ॥ ब० ॥ ४ । याको ध्यान हृदय जय आवत, नपजत लदेगी। नकी ॥ब० ॥ ५॥ समकित ज्योति होवे दल नी तर, जेसें लोकनमें जानकी ॥ब॥६॥ जिनं झान विनोद प्रसंगें, नक्ति करो नगवानकी ॥ ॥ ७ ॥
॥अथ नः म स्तवनं ॥ ॥ पूज्य पधारो मरुदेशे ॥ ए देशी॥ ॥ नवपद महिमा सांजलो, वीर नांखे हो सुणो पर्षदा बार के ॥ ए सरीखो जग को नहीं, यारा ध्यो हो शिवपद दातार के ॥ न ॥१॥ नद ली आंबिल तणी, नवी करीये हो मनने मनास के ॥ नू मी शयन ब्रह्म व्रत धरो, नित सुपीयें हो श्रीपालनो रास के॥ न ॥२॥ नव विधि पूर्वक तप करी, क जमगुं दो कीजें विस्तार के ॥ साहामी सामिणी पोपियें, जेम लहीयें हो नवनो निस्तार के ॥ ॥ न ॥३॥नरसुख सुरसुख पामीयें, वली पामे हो नव जव जिनधर्म के ॥ अनुक्रमें शिवपद पण लहे. जिहां मोहोटां हो अक्ष्य सुख शर्म के ॥न ॥४॥ सांजली नवियण दिल धरो, सुखदायी हो नव पद अधिका र के ॥ वचन विनोद जिनेंनो, मुज होजो हो न
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(२३) व जव आधार के ॥ नव० ॥ ५ ॥ इति ॥ ५ ॥
॥ अथ सिहपद स्तवनं ॥ ॥ श्रीगौतम एना करे, विन। करी शीश नमाय प्रनुजी ॥ अविचल स्थानक रे सुण्यं, कृपा करी मोय बताय प्रचुजी ॥ शिवपुर न. सोहामणुं ॥१॥ ए अांकणी ॥ आठ कर्म अलगां करी, सास्यां आतम काम हो ॥प्र० ॥ बूटा संसारनां पुःखथकी, तेणे रहे वार्नु किहां ठाम हो ॥ प्र॥ शि॥॥ वीर कहे ऊर्ध्व लोकमां, सिह शिलातणुं गम हो गौतम ॥ स्वर्ग बचाशनी नपरें, तेहनां बारे नाम हो ॥ गौ०॥ शि॥३॥लाख पिस्तालीश जोजना, लांबी पोहोली जाण हो॥ गौ ॥ आठ जोजन जाडी विचं, बेडे मंख पंख ज्यं जाश हो ॥ गौ॥ शि॥ ४ ॥ उज्ज्वल हार मोती तामो, गोमुग्धशंख वखाण हो॥ गौ ॥ ते थकी कजली अति घणी, ननट उत्र संठाण हो ॥ गो० ॥ शि० ॥ ५ ॥ अर्जुन स्वर्णसम दीपती, गठारी मठारी जाण हो । गौ० ॥ फटक रत्न थकी निर्मली, सुंधाली अत्यंत वरवाण हो ॥गौ॥ शि॥ ॥ ६ ॥ सिमशिला उलंघी गया, अधर रह्या सिम राज हो ॥ गौ० ॥ अलोकगुं जाई अड्या, सायां प्रातम काज हो ॥ गौ० ॥ शि० ॥ ७ ॥ जन्म नहीं मरण नहीं, नहीं जरा नहीं रोग हो ॥ गौ० ॥ वैरी नहीं मित्रज नहीं, नहीं संजोग विजोग हो ॥ गौ ॥ शिक || G ॥ नूरख नहीं तरषा नहीं, नहीं हर्ष नहीं
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( २४ )
सोग हो । गो० ॥ कर्म नहीं काया नहीं, नदी वि या रस योग हो । गौ० ॥ शि० ॥ ए ॥ शब्द रूप रम गंध नहीं, नहीं फरस नहीं वेद हो । गौ० ॥ बाजे नहीं चाले नहीं, मौनपणुं नहीं खेद हो । गो० ॥ ॥ शि० ॥ १० ॥ गाम नगर तिहां कोई नहीं, नहीं वसती न उजाड हो । गौ० ॥ काल सुगाल बने नहीं, रात दिवस तिथि वार हो । गौ० ॥ शि० ॥ ॥ ११ ॥ राजा नहीं पर जा नहीं, नहीं ठाकुर नहीं दास हो । गौ ॥ मुकिमा गुरु चेला नहीं, नहीं लघु वडाई तास हो ॥ गो० ॥ शि० ॥ १२ ॥ अनंता सुखम जीली रह्या, रूपी ज्योति प्रकाश हो । गो० ॥ सतु कोईनें सुख सारीखां, सघलानें अविचल बाम हो । गौ० ॥ शि० ॥ १३ ॥ अनंत सि६ मुगत गया, वली अनंता जाय हो । गौ० ॥ अवर जग्या रुंधे नही, ज्योतिमां ज्योति समाय हो । गौ० ॥ शि० ॥ १४ ॥ केवल ज्ञान सहित बे, केवल दर्शन खास हो || गौ० ॥ खायक समकित दीपतुं कदीय न होवे उदास हो । गौ० ॥ शि० ॥ १५ ॥ सिद्ध स्वरूप जे उलखे, आणी मन वैराग हो । गौ० ॥ शिवसुंदरी वेगें वरे, नय कहें सुख प्रयाग हो ॥ गौ० ॥ शिव० ॥ १६ ॥ इति श्री सिद्धस्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ अथ पंचतीर्थनी यारति लिख्यते ॥
॥ पेहेली प्रारती प्रथम जिणंदा, शेत्रुंजा मंम पण कषन जिणंदा ॥ श्रीसिद्धाचल तीर्थे याव्या, पूर्व
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(२५) नवाणुं नविक मन जाव्या ॥ आरती कीजें श्रीजि नवरकी ॥ १ ॥ उसरी भारती शांति जिणंदकी, शांति करे प्रनु शिव मारगकी॥ पारेवो जिरो शर णे राख्यो, केवल पामीने धर्म प्रकाश्यो । प्रा० ॥ २ ॥ तीसरी मरती श्रीनेमनाथ, राजुल नारी तारी निज हाथ ॥ सहस पुरुषगुं संयम लीधो, करी नि ज प्रातम कारज सीधो ॥ आ ॥३॥ चोथी आरति चिहुँ गति वारी, पारसनाथ नविक हितका री॥ गोडी पास शंखेश्वरो पास. नविजनन। पूरे मन याश ॥ था० ॥४॥ पांचमी आरती श्रीमहावीर, मेरु परें.म रह्या धीर ॥ साडा बार वरस तप तपीया, कर्म खपावीने शिव पुर वसिया ॥ आ॥ ॥ ५ ॥ इणि परें प्रनुजीनी आरती करतो, शुन परिणामे शिवपुर वरशे ॥ इणि परें जिनजी नी आरती गावे, गुन परिणामें शिवपुर जावे ॥ आ० ॥ ६ ॥ कर जोडी सेवक इम बोले, नहीं कोई माहारा जिनजीने तोले ॥ श्रा० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ चार मंगल ॥ ॥ आज घरे नाथ पधास्या, कीजें मंगल चार ॥ आ० ॥ पहिले मंगल प्रनुजीने पूजें, घसी केसर घ नसार ॥ श्रा० ॥१॥ बीजे मंगल अगर नखे,, कंठे ठq फूल हार ॥ श्रा० ॥ त्रीजे मंगल आर तो उतारूं, घंट वजावं रणकार ॥ था० ॥ २ ॥ चोथे मंगल प्रमुगुण गाऊं ॥ नाटक थर थर कार
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(२६)
॥ या ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, चरण कमल जानं वार ॥ श्रा० ॥ ३ ॥ इति चारमंगल ॥
॥अथ मंगलिक दीपक ॥ . ॥दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो ॥ आरती उतारी ने बद्ध चिरंजीवो ॥ दी० ॥ सोहामणुं घर पर्व दिवा ली, अंबर खेले अबला वाली ॥ दी० ॥ देपाल न णे णे देव अजुधाली. नावें जगतें विघ्न निवारी ॥ दी० ॥ देपाल जागे णे कती कालें, आरती न तारी राजा कुंअरपालें ॥ दी० ॥ ते घर मंगलिक जे घर मंगलिक, चतुर्विध संघ घर मंगलिक दीवो ॥ दी० ॥ इति मंगलिक दीपक संपूर्ण ॥
॥अथ मोटी आरती ॥ ॥ पेहेली रे आरती प्रथम जिणंदा, शत्रुजा में मण झपन जिणंदा ॥ जय जय आरती आदिजिणंद की।ए अांकणी॥दूसरी आरती मरुदेवी नंदा,जुगला रे धरम निवार करंदा ॥ ज ॥ १ ॥ तीसरी आरती त्रिनुवन मोहे, रत्न सिंहासन मारा प्रचुजीने मोहे ॥ ज० ॥ चोथी आरती नित नवी पूजा, देव झपन देव अवर न दूजा ॥ ज० ॥ ३ ॥ पांचमी आरती प्रनुजीने नावे, प्रनुजीना गुण सेवक श्म गावे ॥ ज० ॥ ३ ॥ आरती कीजें प्रनुशांति जिणंदकी, मृगलंउनकी में जावं बलिहारी ॥ जय जय आरती शांति तुमारी, विश्वसेन अचिरादेवीको नंदा, शांति जिणंद मुख पूनम चंदा ॥ ज० ॥ ४ ॥ आरती की
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(२७) जे प्रनु नेम जिणंदकी, शंखलंबनकी में जावं बलि हारी ॥ बा० ॥ समुइविजय शिवादेवीको नंदा, नेमजिएंद मुख पूनमचंदा ॥ श्रा० ॥ ५ ॥ आरती कीजें प्रनु पास जिणंदकी, फणिंद बनकी में जावं बलिहारी ॥ आ० ॥ अश्वसेन वामा देवीको नंदा, पास जिणंद मुख पूनम चंदा ॥आ ॥ ६ ॥ आरती कीजें महावीर जिणंदकी, सिंह उनकी में जानें बलिहारी ॥ प्रा० ॥ सिदारथराय त्रिशला देवीको नंदा, वीरजिणंद मुख पूनमचंदा ॥या॥॥आरती कीजें प्रनु चोवीश जिणंदकी, चोवीशे जिणंदकी में जा बलिहारी ॥ चोवीशे जिणंद मुख पूनमचंदा ॥ आ॥॥ कर जोडी सेवक श्म बोले,नही कोइमाहारा प्रनुजीने तोले ॥ श्रा० ॥॥ इति आरती संपूर्णा ॥
॥अथ श्रीचक्केसरीमातानी आरती ॥ ॥ जय जय भारती देवी तुमारी, नित प्रणमुं हुं तुम चरणारी ॥ ज० ॥ १ ॥ श्रीसिदाचल गिरि रखवाली, नाम चक्केसरी जग सौख्याती ॥ ज० ॥ ॥ २ ॥ विधि पगबनी शासन देवी, सकल श्रोसं घने सुख करेवी ॥ ज ॥३॥ नीलवट टीलडी रत्न बिराजे, कानें कुंमल दोय रवि शशि बाजे ॥ ज० ॥ ॥ ४ ॥ बांहे बाजुबंध बेरखा सोहे, नीलवरण सु चके मन मोहे ॥ ज० ॥ ५ ॥ सोवन मय नित चू नडी खलके, पाये घुघरडा घम .घम घमके ॥ ज० ॥ ६ ॥ वाहन गरुड चड्यां बढ़ प्रेमें, तुज गुण
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(२७) पार न पा के ॥ ज०॥ ७ ॥ चूनडी जडामां देह अति दीपे, नवसरा हारें जग सा फीपे॥ ज० ॥ ॥ ७ ॥ नित नित मानी आरती उतारे, रोग शोग जय दूर निवारे ॥ ज० ॥ ए ॥ तस घर पुत्र पौत्रा दिक बाजे, मनवंडित सुख संपद गजे ॥ ज०॥ १० ॥ देवचं मुनि श्रारती गावे, जया जयो मंगल नित्य वधावे ॥ ज० ॥ ११ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥अथ लोननी सद्याय ॥ ॥ इमर अांबा अांबली रे ॥ ए देशी ।। ॥लोन न करीएं प्राणाया रे, लोन बुरो संसार । लोन समो जगमा नही रे, मुर्गतिनो दातार ॥ नविक जन, लोन बुरो रे संसार ॥१॥ करजो तुमें निरधार ॥ज ॥ जिम पामो नवपार ॥न ॥ लोन बूरो रे संसार ॥ ए आंकणी ॥ अति लोनें लखमी पति रे, सागरनामें शेठ । पूर पयोनिधिमां पड्यो रे, जई बेगे तस हेठ ॥ न । लो० ॥ ॥ सोवन मृगना लोनथी रे, दशरथ सुत श्रीराम ॥ सीता नारि गमावीने रे, जमीयो ठामो ठाम ॥ नम्।। ॥ लो० ॥ ३ ॥ दशमा गुणगा लगे रे, लोन तणुं ने जोर ॥ शिवपुर जातां जीवने रे, एहज मोहोटो चोर ॥ न ॥ लो० ॥ ४ ॥ कोध मान माया लोनथी रे, मुर्गति पामे जीव ॥ परवश प डीयो बापडो रे, अहोनिश पाडे रीव ॥न लो ॥ ५ ॥ परिग्रहना परिहारथी रे, नदी शिवसव
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( ए) सार ॥ देव दाणव नरपति थई रे, जाशे मुक्ति मजार ॥ न ॥ लो० ॥ ६ ॥ जावसागर पंमित जणे रे, वीरसागरबुध शिष्य ॥ लोन तणे त्यागें करी रे, पहोंचे सयल जगीश ॥ न ॥ लो० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ शीयलनी नववाड प्रारंजः ॥ ॥ दोहा ॥ श्रीगुरुने चरणे नमी, समरी शारद माय ॥ नवविध शीलनी वाडनो, नत्तम कदं नपाय ॥ १ ॥ ढाल पहेली ॥ वधावानी ॥ पहेलाने पासो होजी ॥ देशी ॥ पहेलीने वाडें होजी वीर जिनवरें कह्यो, सेवो सेवो हो वस्ति विचारीने जी ॥ स्त्री पशु पमंग होजी वासो वसे जिहां, तिहां न रहेवू हो शीलव्रत धारीने जी ॥ २ ॥ जिम तरूमालें होजी वसतो वानरो, मनमां बिये रखे नई पडं जी । मंजारी देखी होजी पिंजरमांहेथी, पोपट चिंते हों रखे मोटें चडूं जी ॥३॥ जिम सिंहलंकी होजी सुंदरी शिर धरी, जलनु बेडं हो जुगतिमु जालवे जी॥तिम मुनि मनमें होजी राखे जालवी, नारीने निरखी होजी चित्त नवि चालवे जी ॥ ४ ॥ जिहां होवे वासो होजी सेहेजें मंजारनो, जोखम लागे हो मुषकनी जातने जी ॥ तेम ब्रह्मचारी होजी नारी नी संगतें, हारे हो हारे रे शीयल सूधातने जी॥ ५॥ त्रुटक ॥ एम वाड विघटे विषय प्रगटे, शंका के खा नीपजे ॥ तीव्र कामें धातु बिगडे,रोग बहुविध न पजे॥मन्नमांहे विषय व्यापे, विषयगुं मन रहे मली।
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(३०) नदय रत्न कहे तिणे कारण,नव वाड राखो निर्मली॥६
। ढाल बोजी॥ ॥ विदर्नदेश कुमन पुर नयरी ॥ ए देशी ॥
॥ सुरपति सेवित त्रिनुवन धर्ण अज्ञान तिमि र हर दिनमणि ॥ शील रत्ननां जनन तंत. नाड जांखी वीजी जगवंतें ॥ १ ॥ त्रुटक । नगवंत नवे संघ साम्वें, शीयल सुरतरु राखवा ॥ पुक्ति माह फ ल हेतु अवत, चारित्रनो रस चाखवा । ॥ मी व चने माननीशं. कथा । करे कामनी ॥ वाड वि धियुं जेह पाले, बलिहारी तस नामनी ॥ ३ । वात व्रतने घात कारी, पवन जिम तरूपातनें ॥ वात करतां विषय जागे, तेमाटें तजो ए वात ॥ ४ ॥ लांबु देखी दूरथी जिम, खटाशे.माढा गले । गगनें गर्जारव सुणीने, हडकवा जिम नबजे ५॥ तिम ब्रह्मचारीना चित्त विणसे, वयण सुंदरीनां सुणी ॥ कथा तजो हिरो कारण, एम प्रकाशे त्रि नुवन धणी ॥ ६ ॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ त्रट जमुनानु रे अति रलीयामणुं रे ॥ ए देशी ।।
॥त्रीजीने वा. रे त्रिनुवन राजीयो रे ॥ एणी प रें दीये नुपदेश ॥ आसन बंमोरे साधुजी नारीनो रे, मुहर्त लगें सुविशेष ॥ ढुं बलिहारी रे जावं तेहनी रे॥१॥ धन्य धन्य तेहनी हो मात ॥ शील सुरंगी रे रंगाणी रंगशुं रे, जेहनी साते हो धात ॥ ढुं० ॥
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( ३१ )
॥ २ ॥ शयनासनें रे पाटीनें पाटले रे, जिहां जिहां बेसे होनार ॥ बेड लगे रे तिहां बेसे नहीं रे, शील व्रत राखाहार ॥ हुँ० ॥ ३ ॥ कोहेला केरीरे गंधसंजो गयी रे, जैम जाये कणकनो वाक || तिम बलानुं रे सण सेवां रे, विणसे शियल सुपाक ॥ हुं० ॥ ४ ॥ ॥ दाल चं यी ॥ हुं वारी रंगढोलणा ॥ ए देशी ॥ ॥ चोथीनी वाडे चेतजो हो राज, इम जांखे श्री जिन नूप रे ॥ संवेगी सुधा साधु जी ॥ नया कमल विकासीनें हो राज, रखे निरखो रमणीनुं रूप रे ॥ सं० ॥ १ ॥ रूप जोतां रढ लागशे हो राज, देव ननसशे अनंग रे ॥ सं० ॥ मनमांहे जागो मोहनी हो राज, त्यारें होशे व्रतनो नंग रे ॥ सं० ॥ २ ॥ दिनकर साहामुं देखेतां हो राज, नयए. घटे जिम तेज रे || सं० ॥ तिम तरुणी तन पेखतां हो राज, हीणुं याये शीयलचं हेज रे ॥ सं० ॥ ३ ॥ || ढाल पांचमी ॥
॥ यांपरवारी मारा साहिबा कंवल मतचालो ॥ ए देशी ॥ पंचमी वाडी परमेसरें, वखाणी हो वारू ॥ सांजलजो श्रोता में, धर्मीव्रत धारू ॥ १ ॥ कूडांतर वरकामिनी, रमे जिहां रागें ॥ स्वरकंकणादिकनो सुणी, तिहां मन्मय जागे ॥ २ ॥ तिहां वसवुं ब्रह्म चारीनें, नकह्युं वीतरागें । वाड नांगे शील रत्ननी, जिहां लांबन लागे ॥ ३ ॥ निपासें जिम उगले, नाजनमांहे नरिया || लाखने मील जाए गली, न
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(३२) रहे रस नरिया ॥ ४॥ तिम हाव नाव नारी तणा, वली हांसुंने रुदना ॥ सांजलतां शीयल वीघरे, मन वधे हो मदना ॥ ५ ॥
॥ ढाल नही॥ ॥ सहीयां मारा नयण समारो ॥ ए देशी ॥
॥ बहीने वाडे बयल बीलो, गुण रत्ने गाढो नयो जी॥ सिदारथ कल नंद नगीनो, वीर जिणंद इम नचयो जी ॥ १ ॥ अवतीपणे जे होय आगे, काम क्रीडा बहुविध करी जी ॥ व्रत नेनें विलसि त पेहेलां, रखे संजारो दिल धरी जी॥ २ ॥ अनि नयां जिम नपर पूलो, मेने जिम ज्वाना वमे जी । वरस दिवसें जिम विपधरनुं. शंकाये विप संक्रमे जी ॥३॥ विपय सुख जे विलसित पेहलां, तिम शियल व्रती संजारतो जी ॥ व्याकुल थइनें शीयल विराधे, प थाय वलि उरतो जी ॥ ४ ॥ ॥ ढाल सातमी । गढ बुंदीरा वाला ॥ ए देशी ॥
॥ सातमी वाडे वीर पयंपे, सुणो संजमना रागी हो ॥ शीलरथना हो धोरी ॥ सूधा साधु वैरागी, मुफ आणाकारी, विषय रसना हो त्यागी॥ सू॥ ॥ १ ॥ सरस आहार तजजो सेहेजें, विगय थोडी वावरजो हो ॥ शी० ॥ सू० ॥॥ मादक आहारें मन्मथ जागे, ते जागी परिहरजो हो ॥ शी० ॥ ॥ सू० ॥ ३ ॥ सन्निपातें जिम घृत जोगें, अधिक करे उत्ताला हो ॥ शी ॥ सू० ॥ ४ ॥ पांचे इंघिय
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(३३) तिम रस पोखे,चारित्रमा करे चाला होशीस ॥५
॥ ढाल याठमी ॥ ॥.गोठण खोलो कमाड ॥ ए देशी ॥ ॥ त्रिशला सुत हो त्रिगडे वेशी एम, आवमी वाड वखाणी शीलनी जी ॥ अतिमात्रा हो थाहा र तजो अपगार, लालच राखो संयम शीलनी जी ॥ १ ॥ अतियाहारें हो कावे नंघ अपार, स्वपनमा हे हो थाये शील विराधना जी ॥ वली थाये हो ते णे मदवंत देह, संजमनी हो नवि थाये आराधना जी ॥२॥ जिम शेरना हो मापमांहि दोढ शेर, उरीने कपर दीजें ढांक' जी। जांजे तोलडी हो खीचडी खरु थाय, तेम अतिमात्राएं व्रत बिगडे घj जी॥३॥
॥ढाल नवमी॥ गरबानी देशी ॥ ॥ नवमी वाडे निवारजो रे, साधुजी शणगार ॥ शरीर शोनाएं शोने नही, अवनीतलें अणगार ॥ १ ॥ एम उपदेशे वीरजी, मुनिवर धरजो रे मन ॥ शीखामण ए माहरी, करजो शील जतन्न ॥२॥ स्नान विलेपन वासना, उत्तम वस्त्र अपार ॥ तेल तं बोल आदें तजी, नजट वेश म धार ॥ ३ ॥ धोई में धरणी धस्यो, जिम रत्न हास्यो कुंजार ॥ तिम शीलरत्नने हारशो, जो करशो सिणगार ॥ ४ ॥
॥ ढाल दशमी॥नटीयाणी नी देशी ॥ ॥ एकली नारी साथें, मारगें. नवि जावं हो, वली वात विशेष न कीजियें ॥ एक सेजें नर दोय,
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(३४) शीलवंत नवि सुवे हो, वली सहेजें गाल न दीजियें ॥ १ ॥ न सुवारे निज पास, साडा ब वरसनी हो कांक्ष, पुत्रीने पण हेजमां ॥ सात वरस नपरांत, सुतने पण न सूवारे हो, कांश शीलवंति तेम सेजमां ॥२॥ स्त्रीसंगें नव लाख, जीव पंचेंदिहणाये हो, जगवंतें नांरव्युं इस्युं ॥ असंख्याता पण जीव, संमूर्तिम पंचेंश्यि हणाये हो, वली घणुं कहीएं किस्युं ॥३॥ इम जाणी नर नार. शीयजनी मदहणा दो. सूधी दिलमां धारजो ॥ एह उर्गतिनुं मूल, अब्रह्म सेवा मांहि हो, जातां दिलने वारजो॥४॥ तपगन गयण दिणंद, मन वंबित फल दाता हो, श्री हीरत्नसूरी श्वर ॥ पामी तास पसाय, वाडो एम वखाणी हो. शीयलनी मनोहरु ॥ ५ ॥ खनात रही चोमास, सत्त रशे वेश हो, श्रावण वदि बीज बुधे जगे ॥ उदय रत्न कहे कर जोड, शियलवंत नर नारी हो, तेहनें जाऊं नामणे ॥ ६ ॥ इति श्री नववाड सपूर्ण ।।
॥ अथ श्रीतमाकूनी सजाय लिरव्यते ॥ ॥ प्रीतमसेंती वीनवे, प्रेमदा गुणनी खाण ॥ मेरे लाल ॥ मन मोहन एकण चित्तें, सांजलो चतुर सु जाण ॥ मे ॥ १ ॥ कंत तमाकू परिहरो ॥ ए यां कणी ॥ मूको एहनो संग ॥ मे ॥ पंचमांहे जस तीजीयें, मीलें वाधे रंग ॥ मे ॥ कं० ॥ २ ॥ तमाकू ते जाणियें, खुरासाणीनी आक ॥ मे ॥ उ त्तम जन ते श्म कहे, पीवानी तलाक ॥मे०॥ ॥३॥
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(३५) ॥ दूध दहीं ते पीजियें, वलि पीजियें साकर खां ॥ मे ॥ घृत पीधे तन ननसे, तमाक् परि बांग ॥ मे ॥ ॥ ४ ॥ मोहोटा साथे बोलतां, मन मां आवे लाज ॥ मे ॥ दिन पण एलें नीगमे, वि
साडे निज काज ॥ मे ॥ कं० ॥ ५॥ होठ लि हाला सारिखा, श्वास गंधाये जेण ॥ मे० ।। दांत ते दीसे श्यामला, हैयहुंदके तेण ॥ मे ॥ ८ ॥ ॥ ६ ॥ एन पियारी आचरे, विटलावे निज जात ॥ मे ॥ व्यसनी वायो नवि रहे, न गणे जात पर जात ॥ में ॥ कं० ॥ ७ ॥ एके फूंकें जेटला, वा युकाय हणाय ॥ मे० ॥ खस खस सम काया करे, तो जंबु दीप न माय ॥ मे ॥ कं० ॥७॥ गुडाकू करी जे पीये; ते नर मूढ गमार ॥ मे ॥ जल नाखे जे जिहां कने, माखीनो संहार । मे ॥ ॥ कं० ॥ ए॥ चोमासाना कुंथुआ, ते किम शुरु ज थाय ॥ मे० ॥ तमाकू पीतां थकां. पापें पिंकन राय ॥मे॥०॥१०॥ तलव तमाकू वापस्यां, परोणा ने नाग ॥ मे ॥ आगे करता लापसी, पबीतीकरूं ने
आग ॥ मे ॥ कं०॥११॥ पाणी एकने बिंयें, जीव कह्या जिनराय ॥ मे० ॥ वडबीज सम काया करे, जंबुद्धीप न माय ॥ मे० ॥ कं० ॥१२॥ अनि एक ने खोडले, जीव कह्या जिनराय ॥ मे० ॥ सरशव सम काया करे, तो जंबूदीप न. माय ॥ मे० ॥ ॥०॥१३॥ y• संमूर्डिम ऊपजे, नर पचेंशिय जीव
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( ३६ )
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॥ मे० ॥ एपल संख्याता कह्या, श्री जगदीश स दैव ॥ मे० ॥ कं० ॥ १४ ॥ जलमां जीव कहा घणा, संख्य असंख्य अनंत ॥ मे० ॥ नील फूल तिहां कपजे, अग्नि प्रजाने जंत ॥ मे० ॥ कं० ॥ ॥ १५ ॥ तमा पीतां थकां ए बक्काय हणाय ॥ मे० ॥ ज्योति घटे नयणा तणी, श्वासें पिंग न राय ॥ ० ॥ ० ॥ ६ ॥ घडी दोय जे व्रत करो. मे मेवो श्रीभगवान ॥ ये० ॥ दया धर्म जाली करी, सेवो चतुर सुजाण ॥ मे० ॥ कं० ॥ १७ ॥ चतुर विचारी समजीयें, धरीएं धर्मनुं ध्यान मे० ॥ श्रा नंद मुनि एम उच्चरे, ते हे कोडि कल्याण ॥ मे० ॥ कं० ॥ १८ ॥ इति श्री तमाकूनी सजाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ चोवीशजिन स्तवनं ॥
॥ प्रह समे नाव घरी घणो, प्रणमुं मन रे प्राणं दा ॥ धन वेला धन ते घडी, निरखुं प्रभु मुख चंदा ॥ प्र० ॥ १ ॥ कूपन अजित संभव जला, अनिनं दन वं ॥ सुमति पद्मप्रन जिनवरा, श्रीसुपार्श्व जिनेंडु ॥ प्र० ॥ २ ॥ चंप्रन सुविधि नमुं, शीतल श्रेयांस ॥ वासुपूज्य विमल प्रभु, अनंत धर्म जिनेश ॥ प्र० ॥ ३ ॥ शांति कुंथु र जिनवरा, ए त्र चक्री कहीजें ॥ मल्ली मुनि सुव्रत प्रभु, नमि नेम नमीजें ॥ प्र० ॥ ४ ॥ पार्श्व वीर नित्य वंदिएं, एहवा जिन चोवीश ॥ ज्ञानविमल सूरि प्रणमतां नित्य होए जगीश ॥ प्र० ॥ ५ ॥ इति ॥
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(३७) ॥ अथ षनजिन स्तवनं ॥ ॥ आज तो वधाई राजा, नानीके दरबार रे॥ मरु देवायें बेटो जायो, षन कुमार रे ॥ श्रा० ॥१॥ अयोध्यामें उबव होवे, मुख बोले जयकार रे ॥ घननन घननन घंटा वाजे, देव करे थेश्कार रे ॥ श्रा० ॥ २ ॥ इंशणी मली मंगल गावे, सावे मोतीमाल रे ॥ चंदन चरच। पाए लागे, प्रनु जीवो चिरकाल रे ॥ आ० ॥३॥ नानीराजा दानज देवे, वरसे अवंम धार रे ॥ गाम नगर पुर पाटण देवे, देवे मणि नंमार रे ॥ा ॥४॥ हाथी देवे साथी देवे, देवे. रथ तूरवार रे । हीर चीर पीतांबर देवे, देवे सवि शणगार रे ॥ ॥ ५ ॥ तिन लोकमें दिनकर प्रगट्यो, घर घर मंगल माल रे ॥ केवल कमलारूप निरंजन, आदीश्वर दयाल रे ॥आ॥६॥
॥ अथ श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवनं ॥
॥ चिंतामणि चिंता सवि चूरे, पूरे मनकी बाशा रे ॥ नाव नक्तियुं जे नर ध्यावे, पावे शिव सुख वासा रे ॥ चिंता० ॥ पूरे ॥ ॥ ए आंकणी॥ नर देव सब दूर कीए हे, प्रनु गुनका में प्यासा रे ॥ दिलनर दरिसण यो प्रनु प्यारे, दोहग दूर पलासा रे ॥ चिंता० ॥ २ ॥ प्रनुजी\ मेरो चित्त चाहे, चकवा दिनकर जैसा रे ॥ चरणकमलकी गंध सुगंधे, मुफ मन चमरा वैसा रे ॥ चिं० ॥ ३ ॥ जिन मुख वाणी गंग तरंगें, पाप पंकका नासा रे ॥ देखतहिं
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(३७) मन विकसित होवें, एहि अजब तमासा रे ॥ चिं० ।। ॥४॥ पास जिनेसर पल न विसारूं, जब जग तनमें सासा रे ॥ ग्यानमहोदय चरण सरोजे, करूणोदधि हे दासा रे ॥ चिं० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ क्यानजिन स्तवनं ॥ ॥ जीरे सफल दिवस आज माहरो, दंगे प्रनु नो देदार ॥ लय लागी जिनजीथकी, प्रगट्यो प्रम अपार ॥ घडी एक विसरो नहिं साहिवा, ताहिका घणो रे सनेह ॥ अंतरजामी दो महरा, मरुदं वीना नंद ॥ १०॥ १ ॥ जीरे लघु थक्ने मनटुं रही, प्रनु सेवाने काज ॥ ते दिन क्यारें आवशे, शिव सुखना दातार ॥ १० ॥ २ ॥ जीरे प्राणेसर प्रनुजी तुमें, प्रातमना आधार ॥ माहारे मन प्रनु तुमें एक बो, जाणजो जगदाधार ॥ १०॥ ३ ॥ जीरे एक घडी प्रनु तुम विना, जाए वरस समान ॥ प्रेम विरह तुऊ केम खमुं, जाणो वचन प्रमाण ॥ १० ॥४॥ जीरे अंतरगतनी वातडी, कहो केने कहेवाय ॥ वालेसर विशवासीने, कहेतां दुःख जाय ॥ १० ॥ ५ ॥ जीरे देव अनेक जगमांहे , तेहनी रीत अनेक ॥ तुऊ विना अवरनें नही न{. एवी मुक मन टेक ॥ १० ॥ ६ ॥ जीरे पंमित विवेकवि जय तणो, नमे शुन मन जाय ॥ हर्ष विजय श्री षनना, जुगतें गुण गाय ॥ १० ॥ ७ ॥ इति ॥
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( ३९ )
॥ अथ श्री शत्रुंजय स्तवनं ॥
॥ श्रीरे सिद्धाचल नेटवा, मुफ मन अधिक उमा हो । कपन जिणंद जुहारीनें, लीजें नव तपो लाहो ॥ श्री० ॥ १ ॥ मणिमय मूरति कूपजनी, निपाई अभिराम ॥ उवन कराव्युं कनकमय, राख्युं नरतें नाम ॥ श्री० ॥ २ ॥ इा गिरि कूपन समोसखा, पूर्व नवाणुं वार || राम पांव मुगतें गया, पाम्या जवनो पार ॥ श्री० ॥ ३ ॥ नेम विना त्रेवीश जिना, श्राव्या सि६ खेत्र जाणी || शत्रुंजा समुं तीरथ नही, बोल्या सीमंधर वाणी ॥ श्री० ॥ ४ ॥ पूरव पुष्य पसायथी, विमलाचल पायो || कांतिविजय हरपें करी, विमला चल गायां ॥ श्री० ॥ ॥ इति ॥
॥ अथ वीरजिन स्तवनं ॥
॥ नोलीडा हंसा रे विषय न राचीयें ॥ ए देशी ॥ ॥ सिद्धारथना रे नंदन वीनवुं, वीनतडी अवधा र ॥ जवमंरुपमां रे नाटक नाचियो, हवे मुऊ दान देव राव ॥ हवे मुज पारउतार ॥ सिद्धा० ॥ १ ॥ त्रण रतन मुफ थापो तातजी, जेम नावे रे संताप ॥ दान देयंतां रे प्रभुजी कसुर किसी, खापो पदवी रे याप ॥ सिद्धा॥ ॥ २ ॥ चरण अंगुठडे मेरु कंपावियो, सुरनुं मोड्युं रे मान ॥ ष्टकर्मनो रे ऊगडो जीतियो, दीधुं वरसीरे दान ॥ सिद्धा० ॥ ३ ॥ शासन नायक सवि सुख दायक, त्रिशला कूखें रतन्न || सिद्धारथनो रे वंश दीपावियो, प्रभुजी तमें धन्य धन्य ॥ साहेब तुमें धन्य धन्य
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( ४० )
॥ सि० ॥ ४॥ वाचकशेखर की र्तिविजय गुरु, पामी तास पसाय धर्म तो रमें जिन चोवीशना, वि नय विजय गुए। गाय ॥ सि० ॥ ५ ॥ इतिवीर जिन ॥ ॥ अथ प्रजाती ॥ रागवेलावल ॥
| जब लगें समकित रत्नकुं पाया नही प्राणी ॥ तब लगे निज गुण नवि वधे तरुविण जैम पाणी ॥ ज० ॥ १ ॥ त संयम किरिया करो. चित्त राखो गम ॥ दर्शन विण निष्फल होय, जिम व्योमें चि त्राम ॥ ज० ॥ २ ॥ समकित विरहित जीवनें, शिव सुख होये केम ॥ विण हेतु कार्य न नमजे, मृदवि ए घट जेम ॥ ज० ॥ ३ ॥ परंपर कारण मोको, ए वे समकित मूल ॥ श्रेणिक प्रमुख तणी परें, होय सिद्धि अनुकूल ॥ ज० ॥ ४ ॥ चार अनंतानुबंधी या, त्रिक दर्शन मोह || ज्ञान कहे जे दय करे, वं दूं ते जितकोह ॥ ज० ॥ ॥ ५ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ प्रजाति स्तवनं ॥ राग वेलावल ॥ ॥ तेदिन क्यारें यावशे, श्रीसिद्धाचल जाएं ॥ कपन जिणंदने पूजवा, सूरज कुंममां न्हाशुं ॥ ते० ॥ १ ॥ समवसरणमां बेसीनें, जिनवरनी वाणी ॥ सांजल साचे मनें, परमारथ जाली ॥ ते० ॥ २ ॥ समकित व्रत सुधां धरी, सद गुरुने वंदी ॥ पाप स रव लोइनें, निज प्रातम निंदी ॥ ते० ॥ ३ ॥ प डिक्कमणा दोय टंकनां, करशुं मन कोडें ॥ विषय क पाय वीसारीनें, तप करशुं होडें ॥ ते ० ॥ ४ ॥ वाहा
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(४१) साने वैरी विचें, नवि करघु वेहेरो ॥ परना अवगुण देखीने, नवि करयुं चेहेरो ॥ ते ॥ ५॥ धरम स्था नक धन वावरी, बकायने हेतें ॥ पंच महाव्रत ले नें, पालगुं मन प्रीतें ॥ ते ॥ ६ ॥ कायानी माया मेलीने, परीसहने सहेगुं ॥ सुख दुःख सघला विसा रीने, समनावें रहेगुं॥ ते० ॥॥ अरिहंत देवनें उतरवी, गुण नेहना गायुं ॥ उदय रतन इम नचरे, त्यारे निरमल थारां ॥ ते ॥ ७ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ प्रनातें मंगल राग जैरव ॥ ॥ जाग नविया धर्म वाहाणुं, साद सद्गुरुनो सु एगी ॥ काज कर जीव पुण्य केरा, मोह निश पर हरी॥ जा ॥१॥पूरव दिशें जिनतणी वाणी, झान दिनकर नगीयोहर्ष हईडा कमल विकस्यां, पाप तिमिर वही गयो ॥ जा ॥ २ ॥ धर्म मारग दु परगट, हृदय.नयण निहालीएं । ध्यान जल नव कार दातण, करी वदन पखालीएं ॥ जा ॥ ३ ॥ सूरजकुंम जई स्नान कीजें, निरमल धोती पेहेरीएं ॥ श्रीआदिनाथ युगादि वंदी, अष्ठ कर्म निवारीएं॥ ॥ जा ॥४॥ शीयल समकित धोति पेहेरी, कुसुम करणी कर धरी ॥ प्रह उठी प्रासाद जाएं, श्रीजिन पूजा श्म करी ॥ जा० ॥ ५॥ सत्य वचन तंबोलना रंग, शीत सिणगार पेहेरीएं ॥ माय बाप देव गुरु तेहनां, चरणकमल जुहाररिएं ॥ जा० ॥ ६ ॥ गं नारे जइ पूजा रचीएं, रंग मंझप रलियामणो ॥
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(४२) नयणें निरखी नाथ निहालो, नावना इमविएं ॥ जा ॥ ७ ॥ पहिले मंगल जिनचोवीशे, बीजे गोयम गणहरू ॥ त्रीजे मंगल सहगुरु नामें, चोथो जिन शासनवरू ॥ ॥ मूलगां ए चार मंगल, सुप्र जातें सोहामणां ॥नणे नंदीसर सयल लखकर,दीन हरष वधामणां ॥ जा० ॥ए । इति मंगलम् ॥ ॥ अथ श्री महावीर स्वामीनां पांच कल्या ॥
॥गिक, चोढालीयुं प्रारंजः ।। ॥ दोहा ॥ प्रेमें प्रणमुं सरसती, मागुं अविरल वाणि ॥वीर तणा गुण गाया, पंच कल्यारिक जाणि ॥१॥गुण गातां जिनजी तणा, लहीए नवनो पार ।। सुख समाधि होए जीवनें, सुणजो सदु नर नार ॥॥ ॥ ढाल पहेली ॥ चालो गरबो रमीएं रूडा ॥
॥रामगुं जो॥ ए देशी॥ ॥ जंबूहीपना जरतमां जो, रुडूं माहणकुंम ले गाम जो ॥ पनदत्त माहग तिहां वसे जो, तस नारी देवानंदा नाम जो॥१॥ चरित्र सुगो जिनजी तणां जो ॥ ए आंकणी ॥ जेम समकित निर्मल थाय जो ॥ अष्ट माहासिदि संपजे जो, वली पा तक दूर पलाय जो ॥ च ॥ २॥ उजलीबह आषा ढनी जो, योगें उत्तराफाल्गुनी सार जो ॥ पुप्फोत्तर सुविमानथी जो, चवी कूखें लीयो अवतार जो॥च॥ ॥३॥ देवानंदा तेणी रयपीएं जो, सूतां सुपन लह्यां दश चार जो ॥ फल पूछे निज कंतने जो,
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(४३) कहे ऋषनदत्त मन धार जो ।।च॥॥नोग अरथ सुख पामा जो, तमें लेहेशो पुत्र रतन्न जो ॥ देवा नंदा ते सांजली जो, कीg मनमा तहत्ति वचन्न जो ॥ च० ॥ ५॥सांसारिक सुख जोगवे जो, सुणो अच रिज इन ति वार जो ॥ सुंधर्म इंश तिहां कणे जो, जो अवधि तणे अनुसार जो ॥च॥६॥च रम जिणेसर कपना जो, देखी हरष्यो इंइ माहाराज जो ॥ सात आठ पग साहामोज जो,एम वंदन करे शुन साज जो ॥ च ॥ ७ ॥ शकस्तव विधियुं करी तो, फरीको सिंहासन जाम जो ॥ मन विमासण मां पडयं जो, चित्त चिंतवे सुरपति ताम जो ॥च॥ ॥ ७ ॥ जिन चक्री हरि रामजी जो, अंतपंत माहण कुनें जोय जो ॥ याव्या नही नही थावगे जो, एतो उग्रनोग राजकुलं होय जो॥च० ॥ए ॥ अंतिम जि गेसर आविया जो, एतो माहणकुलमा जेण जो ॥ ए तो अनेरा जूत ने जो॥थयुं हुंमाअवसर्पिणी तेण जो ॥ च ॥ १० ॥ काल अनंत जाते थके जो, ए हवां दश अबेरां थाय जो॥ण अवसर पिणीमां थया जो, ते कहीये जे चित्त लाय जो॥ च ॥११॥ गर्न हरण उपसर्गनो जो, मूल रूपें आव्या रवि चंद जो ॥ निष्फल देशना जे थई जो, गयो सौधर्में चमरें जो ॥ च ॥ १२ ॥ ए श्री वीरनी वारमा जो, कृम अमर कंका गया जाण जो ॥ नेम नाथने वारे सही जो, स्त्री तीर्थ मन्नी गुण खाण जो ॥च०॥
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(४४) ॥ १३ ॥ एक शो साठ सिमा षनने जो, वारें सु विधिने असंया: जो ॥ शीतल नाथ वारें थयुं जो, कुल हरिवंशनी उतपत्ति जो । च ॥ १६ ॥ एम विचार करे इंदलो जो, प्रनु नच कुलें अवतार जो ॥ तेहy कारण युं अडे जा. इम चिंतवे हृदय मकार जो ॥ च० । १५ ॥
॥ ढाल बीजां॥आशोमासे शरद पू ।
॥ नमनी रात जो॥ ए देशी॥ ॥नव मोहोटा कहीएं प्रलुना सत्तावीश जो,मरिच! त्रिदंमी तेमांहे त्रीजे नवें रे जो ॥ तिहां जरत चक्रीस र वांदे ावी जोय जो, कुलनो मद करी नीच गोत्र बांध्यु तेहवे रे जो ॥ १ ॥ एतो माहण कुलमा
आव्या जिनवर देव जो, अति अजुगतुं एह थयुं थाशे नही रे जो ॥ जे जिनवर चकी नीच कुलमांहे जो, माहारो आचार धरूं नत्तम कुठे सही रे जो ॥ २ ॥ एम चिंतवी तेड्यो हरिणगमेषी देव जो, कहे माहण कुंमें जश्ने ए कारज करो रे जो ॥ देवानं दानी कूखें चरम जिणंद जो, हर्ष धरीने प्रनुनें तिहां थी संहरो रे जो ॥३॥ नयर दत्रीकुंम राय सिमा रथ गेह जो, त्रिशलाराणी तेहनी के रूपें नली रे जो ॥ तस कुखें जश् संक्रमावो प्रनुनें आज जो, त्रिश लानो जे गर्न अले ते माहणकुलें रे जो ॥ ४ ॥ जेम इंई कयुं तेम कीधुं ततदण तेण जो, व्याशी रातने अंतरे प्रनुनें संहस्यो रे जो ॥ माहणी सुपनां
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(४५) जाणे त्रिशला हरीने लीध जो, त्रिशला देवी चौद सुपन मनमा धयां रे जो ॥ ५ ॥ गज वृषन अने सिंह लक्ष्मी फूलनी माल जो, चंदो सूरज ध्वज कुंन पद्मसरोवर रे जो ॥ सागरने देव विमानज रत्ननी रा शि जो, चौदमे सुपने देखी अग्नि मनोहरू रे जो ॥६॥ शुन सुहणा देवी हरख त्रिशला नार जो, परजातें नतीने पीयु पागल कहे रे जो ॥ ते सांजली दिलमां राय सिहारथ नेह जो, सुपन पाठक तेडीने पूछे फल लहे रे जो ॥ ७ ॥ तुम होशे राज अरथने सुत सुख जोग जो, सुणी त्रिशला देवी सुखें गर्न पो पण करे जो ॥ तव माता हेतें प्रनुजी रह्या सं लीन जो, ते जाणीने त्रिशला उख दिलमां धरे रे जो ॥ ७ ॥ में कीधां पाप अघोर जवो नव जेह जो, देव अटारो दोषी देखी नवि शके रे जो ॥ मुफ गर्न हस्यो जे किम पामुंहवे तेह जो, रांक तणे घर रत्न चिंतामणि किम टके रे जो ॥ ॥ प्रनुजीएं जाणी ततविण दुःखनी वात जो, मोह विटंबन जालिम जगमा जे लहुँ रे जो ॥ जुन दीठा विण पण एवडो जागे मोह जो, नजरें बांध्या प्रेमनुं कारण झुं कहूं रे जो ॥ १० ॥ प्रजुगर्नथकी हवें अनियह लीधो एह जो, मात पिता जीवतां संमय लेगुं नही रे जो ॥ एम करुणा आणी तुरत हलाव्युं अंग जो, माता ने मन रुपनो हर्ष घणो सही रे जो ॥ ११ ॥ अहो नाग्य अमारूं जाग्युं सहियर आज जो, गर्न अमा
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(४६) रो हाल्यो सद्ध चिंता गई रे जो ॥ एम सुखचर रहे तां पूरण दुवा नव मास जो, ते कपर वली साडी सात रयणी थई रे जो ॥ १२ ॥ तव चैत्र तणी शुदि तेरस उत्तरा रिरक जो ॥ जनम्या श्रीजिन वीर दुई वधामणी रे जो ॥ सदु धरणी विकसी जगमां थयो प्रकाश जो. सुर नरपति घर ऋष्टि करे सोवन तणी रे जो ॥ १३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ माहरी सही रे समारणी ॥ देशी ।।
॥ जनम समय श्रीवीरनो जार्ण , श्रावी तप्पन कुमारी रे॥ जग जीवन जिनजी॥ जनम महात्म्य करी गीतज गाये, प्रनुजीनी जावं वतिहार। ॥ ज ॥ १ ॥ ततदए इंद सिंहासण हाल्युं, घोप घंटा वडावी रे ॥ ज० ॥ मलिया कोडि सुरासुर देवा, मेरु पर्वतें आवी रे ॥ ज० ॥ ॥ इंदो पंच रूपें प्रनुजीने, सुरगिरि ऊपर लावे रे ज ॥ यत्न करी हियडामा राखे, प्रचुन शीश नमावे रे ॥ज॥ ॥३॥ एक कोडी शाठ लाख कलशला, निरमल नीरें नरिया रे ॥ ज० ॥ नाहानो बालक ए किम सहेशे, इं३ संशय धरिया रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ अतुलि बल जिन अवधे जोई, मेरु अंगुठे चंप्यो रे ॥ ज०॥ दृथिवी हाल कनोल थई तव, धरणीधर तिहां कंप्यो रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ जिननुं बल देखीने सुरपति, नक्ति करीने खमावे रे ॥ ज० ॥ चार वृषननां रूप धरीने, जिनवरने नवरावे रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ अमृत अंगुठे
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(४७) थापीनें, माता पासें मेले रे ॥ ज० ॥ देव स दु नंदीसर जाए, आवतां पातक तेले रे ॥ ज०॥ ॥ ७ ॥ हवे प्रजातें सिधारथ राजा. अति घणां उबव मंमावे रे ॥ ज० ॥ चकले चकले नाच करावे, जगतना दाण मावे रे ॥ ज ॥॥ बारमे दि वमें सऊन संतापी, नाम दी, वर्षमान रे ॥ ज० ॥ अनुक्रमें वधता आठ वरपना, दुधा श्रीनगवान रे ॥ ज० ॥ ए ॥ एक दिन प्रनुजी रमवा चाल्या, तेव तेवडा संघाती रे ॥ ज० ॥ ५ मुखें परशंसा निसुणी, व्यो सुर मिथ्याती रे ॥ ज० ॥ १० ॥ पन्नगरू' जाडें वलगो, प्रचुंजीएं नारख्यो काली रे ॥ ज० ॥ ताड समान वली रूप कीधुं, मुठीएं नारच्यो नबाली रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ चरणे नमीने खमावे ते सुर, नाम धरे महावीर रे ॥ ज० ॥ जेहवा तुमनें इं३ वखाण्या, तेहवा बो प्रनु धीर रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ मात पिता नीशालें जणवा, मूके बालक जाणी रे ॥ ज० ॥ इं५ आवी तिहां प्रश्नज पूबे, प्रनु कहे अर्थ वखाणी रे ॥ ज० ॥१३॥ जोबन वय जागी प्रनु परण्या, नारी जशोदा नामें रे ॥ज॥ अव्यावीशे वरचे प्रनुना, मात पिता स्वर्ग पामे रे ॥ ज० ॥१४॥ नाजीनो आग्रह जाणी, दोय बरस घर वासी रे ॥ ज० ॥ ते हवे लोकांतिक सुर बोले, प्रनु कहो धर्म प्रकाशी रे ॥ ज० १५ ॥
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(४७)
॥ ढाल चोथी॥ ॥तारेमाथेपंचरंगीपाग,सोनारो बोगलोमारुजीएदेशी
॥ प्रनु अापी वरसी दान नखं रवि गते॥ जिनव रजी॥ एक कोडीने आठ लाख सोनश्या दिन प्रते॥ जि॥मागशिरवदि दशमी उत्तरा योगें मन धर॥जिन जाईनी अनुमति मागी नंतीदा वरी॥जि॥१॥ नेह दिवमथकी चननाणी प्रनुजी थया ॥ जि ॥ धिक एक वरसते चीवर धारी प्रनु रह्या ॥ जि० ॥ पनें दी धुं बंजणने बे वार खंमो खंमें करी ॥ जि ॥ प्रवि हार करे एकाकी अनिग्रहभित धरी॥ जि ॥२॥सा डाबार वर्षमां घोर परीसह जे सह्या । जि॥ शूलपा णीने संगम देव गोशालाना कह्या ॥ जि ॥ चमको शीने गोवालें खीर रांधी पग परें ।जि ॥काने खी ला खोस्या ते कुष्ट सदु प्रनु नहरे ॥ जि॥३॥लेश अडदना बाकला चंदन बाला तारियां ॥ जि ॥ प्रनु पर नपगारी सुरक उरक सम धारिया ॥ जि ॥ उमासी बेनें नव चोमासी कहीएं रे ॥ जि० ॥ अढीमास त्रि मास मोढमास ए बे वेलहीएं रे ॥ जि॥४॥ पट कीधा वे वे मास प्रनु सोहामणा जि॥ बार मासने परक बहोतर ते रलीयामणा ॥ जि ॥ बह बसें नंग पत्रीश बार अहम वखाणीयें ॥ जि ॥ जादिक प्र तिमा दिन वे चौदश जाणीयें ॥जि॥॥ साडा बार वर तप कीधां विण पाणीयें ॥ जि०॥ पारणा त्रण में जंगण पंचास ते जाणीयें ॥जि॥ तव कर्म खपावी
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( ए) ध्यान गुंकल मन ध्यावता ॥ नि ॥ वैशाख गु दि दशमी उत्तरा जोगें सोहावता ॥ जि० ॥ ६ ॥ शालि वृद तलें प्रनु पाम्या केवल नाय रे ॥जि०॥ लोकालोक तणां परकाशी थया प्रनु जाण रे॥जि॥ इंश्नति प्रमुख प्रतिबोधी गए पर कीध रे ॥ जि०॥ सं घ थापना करीने धर्मनी देशना दोध रे ॥ जि॥७॥ चौद सहस जला अणगार प्रमुनें शोजता ॥ जि० ॥ वली साधवी सहस बनीश कही निर्लोजता ॥ जि०॥ उंगणशात सहस एकलाख ते श्रावक संपदा ॥जि०॥ तिन लाखने सहस अढार ते श्राविका संमुदा ।। जि० ॥. ॥ चौद पूर्वधारी त्रगशे संव्या जागीय ॥जि० ॥ तेरशे महिनाएंगी सातरों केवली वखाणी यें। जि॥लब्किधारी सातशे विपुलमति वली प चशे ॥
जिवली चारशे वादी ते प्रनुजी पासें वसे ।। जि० ॥ ए॥ शिष्य सातशेने वली चौदरों साधवी सिद थया । जि० ॥ ए प्रनुजीनो परिवार कहेतां मन गहगह्यां ॥ जि ॥प्रनुजीयें त्रीश वरस घरवासें जोगव्यां ॥ जि०॥ बदमस्थ पणामां बार वरस ते जो गव्यां ॥ जि० ॥ १०॥ त्रीश वरस केवल बेंहेंतालीश वरस संजम पणुं ॥ जि० ॥ संपूरण बहोंत्तर वरस आयु श्रीवीर तj॥ जि० ॥ दीवाली दिवसें स्वाती न दत्र सोहंकर ॥ जि० ॥ मध्यरातें मुक्ति पहोता प्रनु जी मनोहरु ॥जि०॥११॥ ए पांच कल्याणक चोवी शमा जिनवर तणां। जि० ॥ ते जगतां गुणतां हर
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(५०)
ख होये मनघणा ॥ जि ॥ जिनशासन नायक त्रिशला सुत चित्त रंजणो ॥ ॥ नवियएने शिव सुख कारी जवलय नंजणो ॥ ज० ॥१२॥ कानश ।। जय वीरजिनवर संघ मुम्वकर, शुण्यो अति नत्राक री॥ संवत स्नर क्याशायें, सूरन चोमासुं करी।।श्र सहजसुंदर तणो मेवक, नति३ पणी पर क प नुजीगुंपूरण प्रेम पायो, नित्यलान वंतिल ॥१६॥
॥अथ आदिनाथस्तवनं ॥ ॥प्रथम जिगेसर प्रणमीयें, जास सुगंधीरे का कल्पवृद परें तास इंशणी जयण जे, नंग परेंलपटा य ॥१॥ रोग नरग तुज नविनडे, अमृत जे प्रावा द ॥ तेहथी प्रतिहत तेह मानुं कोई नवि करे, जगना तुमयुं वाद ॥२॥ वगर धोई तुक निर्मली, काया कं चन वान ॥ नही प्रस्वेद लगार तारे तुं तेहने,जे घरे ताहरु ध्यान ॥३॥ राग गयो तुझ मन यकी, तेहमां चित्त न कोई ॥ रुधिर अार्म.पी रोग गयो तुज जन्म थी, दूध सहोदर होई॥ ४ ॥ श्वासोश्वास कमजस मो, तुज लोकोत्तर वात ॥ देखे न पाहार निहार चर्म चदुधणी, एहवा तुफ अवदात ॥५॥ चार अतिशय मूलथी, उगणीश देवना कीध ॥ कर्म खप्याथी ग्यार चोत्रोश, एम अतिशय समवायंगें प्रसिद ॥ ६ ॥ जिन उत्तम गुण गावतां, गुण थावे निज अंग ॥प द्मविजय कहे एम समय प्रनु पालजो, जिम था अवय अनंग ॥॥इति यादिनाथ स्तवनं संपूर्ण॥
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( ५१ )
॥ अथ पार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥ परमातम परमेसरू, जगदीसर जिनराज ॥ ज गबंधव जगनाए बलिहारी तुम तणी, जव जलधिमा रे जिहाज ॥ १ ॥ तारक वारक मोहनो. धारक निज गुण ऋषि ॥ श्रतिशय वंत नदंत रूपाजी शिव वधू. परणी लही निज सिद्धि ॥ २ ॥ ज्ञान दर्शन अनंत बे, वली तु चरण अनंत ॥ इम दानादि अनंत कायि कजावें थया, गुण ते अनंतानंत ॥ ३ ॥ वत्रीश वर्ण समाबे, एकज श्लोक मजार || एक वर्ण प्रभु तुक न माये जगतमां. केम करी थुणीएं उदार ॥ ४ ॥ तु गुण कोण गणी शके, जो पण केवल होय ॥ याविनावें तुक सयल गुण माहरे, प्रबन्न नावथी जोय ॥ ५ ॥ श्रीपंचाशरा पासजी, अरज करूं एक तु ॥ श्राविजवियी थाय दयाल कृपानिधि, करु एगा कीजें जी मुझ ॥ ६ ॥ श्रीजिन उत्तम ताहरी, याशा अधिक माहाराज ॥ पद्मविजय कहे एम लहुँ, शिव नगरीनुं, अय अविचल राज ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ पार्श्वजिनस्तवनं ॥
|| जिनपति अविनाशी काशी धणी रे, मननी आशा पूरणहार हो || जिनपति चिंतामणि रे ॥ जि नपति श्वसेन कुल चंदलो रे, वालो वामा मात मलार हो ॥ जि० ॥ १ ॥ जि० ॥ तीन भुवन शिर सेह रोरे, सेवे चोरात सुरपति पाय हो । जि० ॥ जि० ॥ नाटक नव नव दथी रे, सुरवधू मधुर स्वरें गुण
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(42)
गाय हो । जि० ॥ २ ॥ जि० ॥ तुज रूपें रतिपति धसे रे, अंगथी लाजी रह्यो अनंग हो । जि० ॥ जि० ॥ तुज उपमा कोई जग नहिं रे, तुं वे गुणराशिनो संग हो ॥ जि० ॥ ३ ॥ जि० ॥ नागपति धरणीने रे, करु या करीने दीधो नवकार हो । जि० ॥ जि० ॥ शोल सहस अणगारना रे, सादुणी पडत्रीश सहस वि स्तार हो ॥ जि० ॥ ४ ॥ जि० ॥ जादवनी नाठी जरा रे, तो हवे मनें करो सुपसाय हो । जि० ॥ जि० ॥ धरणीधर पद्मावती रे, सेवे पार्श्वयक वनि पाय हो ॥ जि० ॥ ५ ॥ ज० ॥ पास आाश मुज पूरवा रे, साचो शंखेश्वर महाराज हो । जि० ॥ जि० ॥ श्रीगु रुपद्मविजय तो रे, मागे रूपविजय शिवराज हो ॥ जि० ॥ ६ ॥ इति पार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥ अथ शांतिजिनस्तवनं ॥
|| शांतिजीनुं मुखडुं जोवा जणी जी, मुफ मनडुं रे लोनाय ॥ चितडुं जाणे रे कडी मनुं जो, पण प्रभु किम रे मलाय || शां० ॥ १ ॥ देव न दीधी मु जने पांखड जी, या हुं किम रे हज़र ॥ पण प्रभु जाणजो वंदना जी, तमराम सनूर ॥ शां० ॥ २ ॥ गजपुरी नगरीनो राजीयो जी, चिरा देवी नंदन एह ॥ जिम रे पारेवडं राखीयुं जी, तिम प्रभु राखजो नेह ॥ शां० ॥ ३ ॥ मस्तकें मुकुट सोहामणो जी, कानें कुंमल श्रीकार ॥ बांहे बाजूबंध वेरखा जी, कंठ डे नवसरो हार ॥ शां० ॥ ४ ॥ आज नजें रे दिन
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(५३) कगीयो जी, दूधडे वूठडा मेह ॥ वाचक सहज सुंदर तणो जी, नित्यलान प्रनु गुणगेह॥शां॥५॥इति ॥
॥ अथ पार्वजिनस्तवनं ॥ ॥ सुगुण सोनागी रे के साहेब माहेरा, श्रीचिंता मणि पाश ॥ पूरव पुण्ये रे के दरिसण देखीयें,पूगीमा रा मनडानी आश ॥ हुँ बलिहारी रे के जावं तारा नामनी ॥ १ ॥ काशी देवों रे के नगरी वाराणसी, अ श्वमेम राया कुलचंद ॥ माता वामा रे के प्रनुजीने ज नमीया, दीठडे परमानंद ॥ढुं॥२॥ मूरत सूरत रे के निरखीने हरखीएं, सांजल मोरा स्वाम ॥ वान वधा " रणरे के.जगमां सुरतरु, तुं मुफ बातम राम ॥ढुं०॥ ॥ ३ ॥ लाल सुरंगी रे के अंगी शोनती, सोहे सोहे प्रनुजीने अंग ॥ शिखर बनाव्यु रे के सुंदर कोरणी, दिसे दिसे नव नवा रंग ॥ ढुं० ॥ ४ ॥ शिरपर सो हे रे के मुकुट जडावनो, काने कुंमल श्रीकार ॥ के. कणदोरो रे के बांहे वेरखा, कंठडे नवसरो हार ॥ ढुं० ॥ ५॥ विधिपद देहरे रे के मूल नायक प्रन, लुज मंझण जिनराज ॥ नाविक श्रावक रे के नावे नावना, साहेब गरीब निवाज ॥ ढुं० ॥ ६ ॥ कोई कुमतिया रे के प्रजुने माने नहिं, ते रडवडो संसार ॥ नव दमकमांहे रे के गति ने तेहनें, नहिं तीये नवनो पार ॥ ढुं० ॥ ७ ॥ सूत्र सिमातें रेके जिनप्रतिमा कही, जिन सरखी निरधार ॥ प्रजो प्र रामो रे के नवियण नावगुं, जिम पामो शिव सुख
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(५४) सार ॥ ढुं० ॥ ७ ॥ संवत सत्तर रे के बरस चोराएं ए, रूडो रूडो नाचमास ॥ स्तवना कीधी रे के पर व पंजसणे, नित्यनान प्रचुजीनो दास ॥ढुंगा
॥अथ शांतिजिनस्तवनं ॥ ॥ शांति प्रन वीनति एक मोरी रे,नारी अखडी कामणगारी॥ शांति ॥ विश्वसेन राजा तुज ताय रे, राणी अचिरा देवी माय रे ॥ तुंगोजपुर नगरी नो राय ॥ शां० ॥ १ ॥ प्रनु सोवन कांति विराजे रे, मुकुटे हीरा मणि बाजे रे ॥ तारी वाणी गंगापूर गाजे॥ शां० ॥ २ ॥ प्रच चालीश धनुपनी काया रे, नवि जनना दिलमां नाया रे ॥ कांई राज राजे सर राया ॥ शां० ॥ ३ ॥ प्रनु माहारा बो अंतर जामी रे, करुं वीनति हुँ शिर नामी रे॥ चन्द रा जना बो तुमें स्वामी॥ शां० ॥ ४ ॥प्रनु पर्षदा बारे माहे रे, दीए देशना अधिक नन्हाहें रे. ॥ प्रज अंगी एं नेट्या नमाहे ॥ शां० ॥ ५ ॥ श्रावक श्राविका बहु पुण्यवंतां रे, शुन करणी करे महंता रे ॥ शांति नाथना दरिसण करता ॥ शां० ॥ ६ ॥ संवत अढा र अहा सार रे, मास कल्प कयो तिणि वार रे॥ सूरि मुक्तिपदना धार ॥ शां० ॥ ७ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥अथ सिहाचलस्तवनं ।। ॥ सिमाचल गिरि नेटया रे, धन्य नाग्य हमारां ॥ विमलाचल गिरि नेटया रे, धन्य नाग्य हमारां ॥ एगिरिवरनो महिमा मोहोटो, कहेतांनावे पार ॥राय
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(५५) । रूख समोसया स्वामी, पूर्व नवाणु वार रे ॥ध० ॥ ॥ १ ॥ मूल नायक श्रीआदि जिनेसर, चन्मुख प्र तिमा चार ॥ अष्ट व्यगुं पूजो नावें, समकित मूल आधार रे॥ध ॥ २ ॥ नाव जगतिगुं प्रजुगुण गावे, आपणा जनम सधास्था ॥ यात्रा करी नवि जन शुन नावें, निरय तिर्यच गति वास्या रे ॥ध ॥३॥ दूर देशांतरथी हुँ आव्यो, श्रवण सुणी गुण तारा ॥ पतिप्त नहारण विरुद तुमारूं, ए तीरथ जग सारा रे ॥ध०। ४ ॥ संवत अढार व्यासीएं मास आषा ढे, वदि आठम नोमवारा ॥ प्रनुजीके चरणे प्रता पके संघमें. खेम रतन प्रनु प्यारा रे ॥ १० ॥ ५ ॥
॥अथ शीतलजिनस्तवनं ॥ ॥ शीतल जिननी सेवा कीजें, लीजें संपदा सारी रे ॥ इव्य नाव जिन पूजा करतां, नासे दूरगति जारी.रे ॥ १.॥ संसारी प्राणी देव पूजो, देव पूजो हित आणी रे ॥ झान अनंतुं रूप अनंतुं, शक्ति अ नंती कहीएं रे ॥ लोकालोक तणा परकाशी, तेहनी आज वहीएं रे॥ संसा० ॥ २ ॥ नक्ति प्रचुनी ह इडे धरतां, नव नव पातक हरीएं रे ॥ एहवो निथें माहारा मनमां, प्रनु तारे तो तरीएं रे ॥ संसा ॥३॥ कर जोडी मद मबर मूकी, प्रनुजीने शिर नामं रे ॥ अनुनव पदनीलालच अमनें, ते जिनव रथी पा{ रे ॥ संसा० ॥ ४ ॥ सेवक ऊपर करुणा करजो, वीनतडी चित्त धारी रे ॥ कहे नित्यलान प्र
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( ५६ )
चुने प्रणमी, देजो सेव तुमारी रे || संसा० ॥ ५॥ ॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥
॥ लाखीयो सोहावे जिनजी, फुलांनो गले हार ।। ग्राणीने सोहावे जिनजी, अंगीयां जडाव । मोरा पासजी हो लाल, संकट बोडाव स्वामी विघ्न निवा र ॥ १ ॥ एकणी ॥ पदमणी चाली पूजवाने, करी शोल सिणगार ॥ पाए धमके घूघराने, नेतरनो ऊपकार ॥ मोरा० ॥ २ ॥ मेघमाली देवताने, कीधो घमघोर || गाजे गगन वीजलीने, पाणी वरपे जोर ॥ मो० ॥ ३ ॥ ध्यानथकी नवी चूका, प्रतु पास जिद || देही कष्ट निवारवाने, आसावे धर लिंद ॥ मो० ॥ ४ ॥ गोडी पारस पूजो जिम, होए रंग रेल || देखी मूर्ति पासजीनी, जाणीएं मोहन वेल ॥ मो० ॥ ५ ॥ तमक उमक चालतीने, घूघर डी घमकार || तातायेई ताल वाजे, देवतानी चाल ॥ मो० ॥ ६ ॥ केशर चंदन वशी घणाने, कस्तूरी घनसार ॥ जे नर नावें पूजशेने, उतारे नवपार ॥ मो० ॥ ७ ॥ तुंहीं मारो साहेबो ने तुंहीं जीवन प्राण || तुमने माने देवताने, मोहोटा राणो राण ॥ मो० ॥ ८ ॥ पंमितमांहे शिरोमणिने, कनक वि मल गुरु हीर ॥ चरण कमल सेवे सदाने, केसर क वियण धीर ॥ मो० ॥ ए ॥ इति पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥ अथ शांतिजिन स्तवनं ॥
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॥ दोहा ॥ वे कर जोडी वीनवुं, सुपो जिनवर श्रीशां
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( ५७ )
ति ॥ पाप खमावुं खापणां, जे कीधां एकांत ॥ १ ॥ ढा ल ॥ एकांत कटुं सुगोस्वामी, डुंतो चरण तुमारा पामी ॥ मुज मांहे कपट बे बहुलां, तेतो सुणतां मन थाये मदुलां ॥ २॥ परबि प्रगट में कीधां ॥ पाठांतरे ॥ प्रछन्न प्रगट में कीधां, कूडां त्राल में परने दीघां ॥ तेथी बोडावो मुजतात, शांतिनाथ सुष्णो मोरी वात ॥ ३ ॥ दोहा ॥ नव अनंत नमी वियो, चरण तुमारे देव ॥ जि म राख्युं पारेवहुँ, तिम राखो मुज हेव ॥ ४ ॥ ॥ ढाल || हवे एकेंदियादिक जीव, उहव्या करता प्रति रीव ॥ तस लाख चोराशी नेद, राग द्वेष प माड्या खेद ॥ ५ ॥ मृपा बोलंतां नावी लाज, तो किम सरशे यातम काज ॥ चोरी इए जव परजव की धी, पररमणीशुं दृष्टिज दीधी ॥ ६ ॥ दोहा ॥ मधु विंडसम विषय सुख, दुख तो मेरु समान ॥ मान वि मन चिंते. नही, करतो कोड अज्ञान ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ॥ अज्ञान पणे ऋषि मेली, व्रतवाडि नली परें जेली || हवे सार करो प्रभु मोरी, रात दिवस से वा करूं तो ॥ ८ ॥ बहु गुनही बुं श्रीशांति, मु ज टालो जवनी चांति ॥ ढुंतो मागुं हुं अविचल रा ज, इम पनले श्रीजिनराज ॥ ए ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ श्रथ सिद्धाचल स्तवनं ॥
॥ महारुं मन मोह्युं रे श्री सिद्धाचजें रे, देखीने ह रषित थाय ॥ विधिशुं कीजें रे यात्रा एहनी रे, जव नवनां दुःख जाय ॥ मा० ॥ १ ॥ पांचमे खरे रे पा
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(५७) वन कारणे रे, ए समुं तीर्थ न कोय ॥ मोहाटो म हिमा रे महियल एहनो रे, आ जरतें इहां जोय ॥ ॥ मा० ॥ ५॥णे गिरि आव्या रे जिनवर गणधरा रे, सीधा साधु अनंत ॥ कठिन करम पण इण गिरि फरसतां रे, होये कर्मनी शांत ।। मा० ॥३॥ जैन धरमनो जाचो जागीयें रे,मानव तीर्थ ए यंन।। सुर नर किन्नर नृप विद्याधरा रे, करता नाटारंन । ॥ मा० ॥४॥ धन धन दाहाडो रे धन धन ए घडी रे, धरीयें हृदय मकार ॥ ज्ञानविमा प्रनुहना गुण घणारे, कहेतां ना पार ॥ मा० ॥५॥ इति ।।
॥अथ संजवजिन स्तवनं ।। . ॥ हुँ तो जाग्रे जिन दरबार, प्रनु मुख जोवाने॥ प्रनु आपे रे समकित सार, शिव सुख होवाने ॥१॥ साथें लीधां रे निरमल नीर, प्रनुने पखालवा रे ॥ शुरू कीधां रे प्रनुनां शरीर, नव दुःख टालवा रे ॥ ॥ २ ॥ घसा घसी रे केशर कपूर, नवे अंगें पूजिये। हसी हसी रे आणंद पूर, शिव सुख लीजियें ॥३॥ एहवे आवी रे अमरनी नार, प्रनुजीने वीनवे ।। साथें लावी रे फूलडानो हार, प्रनुने कंठे ग्वे॥४॥
आगल नाचे रे थर थकार, सदु टोले मली। दिल साचेरे करी शणगार,प्रणमे ललीलली ॥ ५ ॥ हाथ जोडी रे प्रचुजीनी पास, नक्ति घणी करे ॥मान मोडी रे गावे जास, प्रलु मनमां धरे ॥ ६ ॥ पालो पालो रे मुगतिनो वास,प्रनु करुणा करी ॥ टालो टालो रे न
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(५ए ) वनो पास, विनति चित्त धरी॥ ७॥ सेनाराणीना नं दन देव, गुणरत्नाकरू ॥ एवो जागीरे कीधी में सेव, जयो जयो जिनवरू ॥ ॥ सोहे सोहे रे सूरत म कार, विधिपद देहरे ॥ मोहे मोहे रे बहु नर नार, देखी नयणां रे ॥ ए ॥ नामें नामें रे संनव नाथ, जिन रलियानणां ॥ पामे पामे रे सुख नित्य लान, खेडं नित्य बामणां ॥१०॥ इति संपूर्ण ॥
अथ अष्टापदगिरि स्तवनं ॥ ॥ अष्टापद अरिहंत जी, माहारा वालाजी रे ॥ आदेशर अवधार, नमीये नेहमु ॥ मारा ॥ दश हजार मुणिंदरां ॥ मारा ॥ वस्या शिव वधू सार ॥ नमी० ॥ १ ॥ जरतनूप नावें कस्या ॥ मारा ॥ चिटुं मुरव चैत्य नदार ॥ नमी० ॥ जिनवर चोवीशे जिहां ॥ मारा ॥ थाप्या अति मनोहार ॥ नमी० ॥ ॥ २ ॥ वर्ण प्रमाणे विराजता ॥ मारा ॥ सहन ने अलंकार ॥ नमी० ॥ सम नासारण शोजता ॥ ॥ मारा ॥ चिटुं दिशि चार प्रकार ॥ नमी ॥३॥ मंदोदरी रावण तिहां ॥ मारा० ॥ नाटक करतां विचाल ॥ नमी० ॥ त्रूटी तांत तिहां कणे॥मारा॥ निज कर वीणा ततकाल ॥ नमी० ॥ ४ ॥ करी व जावी तिणे समे ॥ मारा ॥ पण नवि तोडथु ते तान ॥ नमी० ॥ तीर्थकर पद बांधीयुं ॥ मारा ॥ अनुत ध्यान सुगान ॥ नमी ॥ ५॥ निज लब्धं गौ तम गुरु ॥ मारा॥ करवा आव्या ते यात्र ॥नमी॥
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(६०) जगचिंतामणि तिणे कस्यो ॥ मारा० ॥ तापस बोध विख्यात ॥ नम्मी० ॥ ६ ॥ ए गिरि महिमा मोटको ॥ मारा ॥ तिण नव पामीजें सिदि ॥ नमी० ॥ निज लब्धं जिनवर नमी ॥मारा ॥ पामे शाश्व त ६ ॥ नमी० ॥ ७ ॥ पद्मविजय कहे एहनां ॥ मारा ॥ केतां करूं रे वखाण ॥ नमी । वीरें स्वयंमुख वरणव्या ॥ मारा । नमता कोड कल्या एग ॥ नमी० ॥ ७ ॥ इति अष्टापद नवनं संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री गौतमाष्ठक बंद ॥ ॥ वीर जिणेसर केरो शिष्य, गौतम नाम जपो निशिदीस ॥ जो कीजें गौतमनुं ध्यान, तो. घर विल से नवे निधान ॥ १ ॥ गौतमनामे गिरुअरि चढे. मनवंबितहेला संपजे ॥ गौतम नामें नावे रोग, गौतम नामें सर्व संजोग ॥॥ जे वैरी विरूवा वंकडा, जस नामें नावे दकडा ॥ नूत प्रेत नवि मंमे.प्राण, ते गौतमनां करूं वरखाण ॥ ३ ॥ गौतम नामें निर्म ल काय, गौतमनामें वाधे आय ॥ गौतम जिनशा सन शणगार, गौतमनामें जय जयकार ॥ ४ ॥ शाल दाल सुरहा घृत गोल, मनवंडित कापड तंबो ल॥ घरगुं घरणी निर्मल चित्त, गौतम नामें पुत्र विनीत ॥ ५ ॥ गौतम उदयो अविचल नाण, गौत म नाम जपो जग जाण ॥ मोहोटां मंदिर मेरु स मान, गौतम नामें सफल विहाण ॥ ६ ॥ घर मय गल घोडानी जोड, वारू पोहोंचे वंबित कोड ॥ म
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(६१) हियल माने मोहोटा राय, जो तूने गौतमना पाय ॥ ७॥ गौतम प्रणम्यां पातक टले, उत्तम नरनी संगति मले ॥ गौतम नामें निर्मल झान, गौतम ना में वाधे वान ॥ ७ ॥ पुण्यवंत अवधारो सदु, गुरु गौतमना गुण ने बहु ॥ कहे लावण्य समय कर जो ड, गौतम तूठे संपति कोड ॥ ए ॥ इति ॥
॥अथ नवकारनो बंद ॥ ॥ दोहा ॥ वंबित पूरे विविध परें, श्री जिन शा सन सार । निश्चं श्री नवकार नित, जपतां जय जयकार ॥ १ ॥ अडसह अदर अधिक फल, नव पद नवे निधान ॥ वीतराग स्वयं मुख वदे, पंच पर मेष्टि प्रधान ॥ २ ॥ एकज अदर एक चित्त, समस्या संपति थाय ॥ संचित सागर सातनां, पातक दूर प लाय ॥३॥ सकल मंत्र शिर मुकुटमणि, सदगुरु ना पित सार ॥ सो नविया मन गुरुलं, नित जपीएं नवकार ॥॥ बंद हाटकी॥ नवकारथकी श्रीपाल नरे शर, पाम्यो राज्य प्रसि६॥ समशान विपे शिव नाम कुमरनें, सोवन पुरिसो सिम ॥ नव लाख जपंतां न रक निवारे, पामे नवनो पार ॥ सो नवियां न चोखें चित्तें, नित्य जपीयें नवकार ॥ ५॥ बांधि वड शाखा शिंके बेसि, हेवल कुंम हुताश ॥ तस्करने में त्र समर्यो श्रावकें, कम्यो ते आकाश ॥ विधिरीत जप्यो विषधर विष टाले, ढाले अमृत धार ॥ सो ॥ ६ ॥ बीजोरां कारण राय महाबल, व्यंतर उष्ट
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(६२) विरोध ॥ जेणें नवकारें हत्या टाली, पाम्यो यद प्र तिबोध ॥ नव लाख जपंतां थाए जिनवर, इस्यो ने अधिकार ॥ सो० ॥ ७ ॥ पत्रिपति शिख्यो मुनिवर पामें, महा मंत्र मन शुरू ॥ परनव ते राजसिंह ष्ट थिवीपति, पाम्यो परिगल २६ ॥ ए मंत्रथकी अम रापुर पोहोतो, चारुदत्त सुविचार ॥ सो० ॥ ७ ॥ संन्यासी काशी तप साधंतो. पंचाग्नि परजाल ॥ ढीठो श्रीपास कुमारे पन्नग, अधवलतो ते टाल ।। संन लाव्यो श्री नवकार स्वयंमुख, इंश्नुवन अवतार ॥ सो० ॥ ए ॥ मनशुढे जातां मयणासुंदरी, पामो प्रिय संयोग ॥ण ध्याने कट टल्यु बरनु, रक्त पित्तनो रोग ॥ निशुं जपतां नवनिधि थाये, धर्म तणो आधार ॥ सो० ॥ १० ॥ घटमांहि कृष्ण नुज गम घाल्यो, घरणी करवा घात ॥ परमेष्ठि प्रनावें हार फूलनो, वसुधामांहि विख्यात ॥ कमलावतीये पिंगल कीधो, पाप तणो परिहार ॥ सो० ॥ ११ ॥ गयणांगण जाति राखी ग्रहिने, पाडी बाण प्रहार ॥ पद पंच सुपंतां पांमुपति घर, ते था कुंता नार ॥ ए मंत्र अमूलक महिमा मंदिर, नव दुःख भंजण हार ॥ सो० ॥ १२ ॥ कंबलने संबल कादव काढयां, शकट पांचशे मान ॥ दीधे नवकारें गया देव लोकें, विलसे अमर विमान ॥ ए मंत्रथकी संपति वसुधातलें, विलसे जैन विहार ॥ सो० ॥ १३ ॥ आगें चोवीशी दुश् अनंती, होशे वार अनंत ॥ नव
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(६३) कार तणी कोई आदि न जाणे, श्म नांखे अरि हंत ॥ पूरव दिशि चारे आदि प्रपंचे, समस्यां संपति सार ॥ सो० ॥ १४ ॥ परमेष्टि सुरपद ते पण पामे, जे कृतकर्म कठोर ॥ पुंमरगिरि कपर प्रत्यद पेख्यो, मणिधरने एक मोर ॥ सह गुरुने सन्मुख विधि सम रंतां, सफल जनम संसार । सो॥ १५ ॥ शूलिका रोपण तस्कर कीयो, लोहखरो परसिह ॥ तिहां शेनें नवकार सुणाव्यो, पाम्यो अमरनी २६॥ शेठने घर यावी विघ्न निवास्यां, सुरें करी मनोहार ॥सो॥१६॥ पंच परमेष्टि झानज पंचह, पंच दान चारित्र ॥ पंच सद्याय महाव्रत पंचह, पंच सुमति समकित्त ॥ पंच प्रमादह विषय तजो पंच, पालो पंचाचार ॥ सो॥ ॥ १७ ॥ कलश उप्पय ॥ नित जपीयें नवकार, सारसंपति सुखदायक ॥ शु६ मंत्र ए शाश्वतो, इम जंपे श्री जगनायक ॥ श्री अरिहंत सुसिह, शुरु
आचार्य नणीजें ॥ श्री नवद्याय सुसाधु, पंच पर मेष्ठि शुगीजें ॥ नवकार सार संसार , कुशल लान वाचक कहे ॥ एक चित्तें आराधतां, विविध ऋदि वंबित लहे ॥ १७ ॥ इति नवकार बंद ॥
॥अथ श्री शोल सतीनो बंद ॥ ॥ आदि नाथ यादें जिनवर वंदी, सफल मनो रथ कीजियें ए॥ प्रनातें उठी मंगलिक कामें, शोल सतीनां नाम लीजीयें ए॥ १ ॥ बाल कुमारी जग हितकारी, ब्राह्मी जरतनी बेहेनडी ए ॥ घट घट
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( ६४ )
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व्यापक र रूपें शोल सतीमांहि जे वडी ए ॥ २ ॥ बाहुबल नगिनी सतीय शिरोमणि, सुंदरी नामें कृषन सुता ए ॥ श्रंग स्वरूपी त्रिभुवनमांहि, जेह अनुपम गुणजुता ए ॥ ३ ॥ चंदनबाला बालपणाची, शीन वती शुद्ध श्राविका ए ॥ प्रडदना बाकुला वीर प्रति लाच्या, केवल लही व्रत नाविका ए ॥ ४ ॥ उग्र सेन प्रा धारिणी नंदनी, राजिमती नम वल्लना ए ॥ जोबन वेशें कामनें जीत्यो, संयम लेइ देव उना ए ॥ ५ ॥ पंच जरतारी पांव नारी डुपदतनया वखाणीएं ए ॥ एक शो आठे चीर पूराणां, गियल महिमा तस जाणीएं ए ॥ ६ ॥ दशरथ नृपनी नारी निरुपम, कौशल्या कुलचंडिका ए ॥ शियल सलूणी राम जनेता, पुष्य ती परनालिका ए ॥ ७ ॥ कोशं त्रिक में संतानिक नामें, राज्य करे रंग राजीयो ए । तस घर घरणी मृगावती सती, सुरनुवनें जश गाजीयो ए ॥ ८ ॥ सुलसा साची शियजें न काची, राची नही विषयारसें ए ॥ मुखडुं जोतां पाप पलाए, नाम तां मन उनसे ए ॥ ए ॥ राम रघुवंश । तेहनी कामिनी, जनकसुता सीता सती ए ॥ जग सर्दु जाणे धीज करंतां, अनल शीतल थयो शीय लयी ए ॥ १० ॥ काचे तांतणे चालणी बांधी, कूवा थकी जल काढीयुं ए ॥ कलंक उतारवा सतीय सुना, चंपा बार नघाडीयुं ए ॥ ११ ॥ सुरनर वंदित शियल खंमित, शीवा शिवपदगामिनी ए ॥ जेहने नामें
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(६५) निर्मल थयें, बलिहारी तस नामनी ए ॥१२॥ हस्तिनागपुरें पांमुरायनी, कुंता नामें कामिनी ए॥ पांव माता दशे दशारनी,बेहिन पतिव्रता पदमिनी ए॥ १३॥ शीलवती नामें शीलवतधारिणी, त्रिवि तेहने वंदीयें ए ॥ नाम जपंतां पातक जाए, दरिमण उरित निकंदीयें ए ॥ १४ ॥ निषिधा नगरी नलह नरिंदनी, दमयंती तस गेहिनी ए ॥ संकट पडतां शीलज राग्व्यु, त्रिनुवन कीर्ती जेहनी ए॥ १५॥ अनंग अजिता जगजन पूजिता, पुष्पचूला ने प्रना वती ए॥ विश्वविख्याता कामित दाता, शोलमी सती पदमावती ए॥ १६ ॥ वीरें नांवी शास्त्रे साखी, नद यरतन नांखे मुदा ए॥ वाहाणुं वातां जे नर नशे, तेलेदेशे सुरव संपदा ए ॥१७॥इति शोलसतीनो बंद ॥
॥अथ चार मंगल ॥ ॥सिदार्थ नूपति शोहे क्षत्रियकुंमें, तस घेर त्रि शला कामिनी ए॥ गजवर गामिनी पोढीय नामिनी, चन्द सुपन लहे जामिनी ए ॥१॥त्रुटक ॥ जामिनी मध्ये शोलतां रे, सुपन देखे बाल ॥ मयगल वृष नने केसरी, कमला कुसुमनी माल ॥२॥ इंछ दिन कर ध्वजा सुंदर, कलश मंगल रूप ॥ पद्म सर जल निधि उत्तम, अमर विमान अनूप ॥३॥ रत्ननो अंबार उज्ज्वल, वन्हि निर्धूम ज्योत ॥ कल्याण मं गलकारी माहा, करत जग उद्योत. ॥४॥ चन्द सु पन सूचित विश्व पूजित, सकल सुख दातार ॥ मं
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(६६) गल पेहेलुं बोलीएं, श्री वीर जगदाधार ॥ ५॥ म गध देशमां नयरी राजगृही, श्रेणिक नामें नरेसरू ए ॥ धणवर गोवर गाम वसे तिहां, वसुनूति विप्र मनोहरु ए॥ ६ ॥ त्रुटक ॥ मनोहरु तस मानिनो रे, प्टथिवी नामें नार ॥ इति श्रादेय , त्रण पुत्र तेहने सार ॥ ७ ॥ यज्ञकर्म तेणें यादयुं, बदु विप्र ने समुदाय ॥ तिणे समे सिहां समोसस्या, चोवीशमा जिनराय ॥ ७ ॥ नपदेश तेहनो सांजली, लीथो सं जम नार ॥ अगीयार गणधर थापीया, श्री वीरें तेणी वार ॥ए ॥ इंश्नति गुरुनक्तं थयो, महा लब्धिनो नंमार ॥ मंगल बीजु बोलीयें, श्री गौतम प्रथम गणधार ॥ १० ॥ नंद नरिंदनो पामली पुरव रें, सकमाल नामें मंत्रीसरू ए॥ 'लाबलदे तस नारी अनुपम, शीलवती बदुसुखकरू ए ॥ ११॥ त्रुटक॥ सुखकरू संतान नव दोय, पुत्र पुत्री सात ॥ शील वंतमां शिरोमणि, यूलिन जग विख्यात ॥ १२ ॥ कर्मवशे वेश्या मंदिर, वस्या वर्षज बार ॥ जोग नली पेरें जोगव्या, ते जाणे सदु संसार ॥ १३ ॥ शुभ संयम पामी विषय वामी, पामी गुरु आदेश ॥ कोश्या आवासें रह्या निश्चल, मग्या नहीं लवलेश ॥ १४ ॥ गुरू शियल पाले विषय टाले, जगमा जे नर नार ॥ मंगल त्रीजुं बोलीएं, श्री थूलिन अण गार ॥ १५ ॥ हेम मणि रूप मय घडित अनुपम, ज डित कोशीसां तेजें ऊगे ए ॥ सुरपति निर्मित त्रण
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(६७) गढ शोनित, मध्ये सिंहासने जगमगे ए॥ १६ ॥त्रु टक ॥ जगमगे जिन सिंहासने ए, वाजिन कोडा कोड ॥ चार निकायना देवता, ते सेवे बिदूं कर जोड ॥ १७ ॥ प्रातिहारज बाग्गुं रे, चोत्रीश अतिशयवंत ॥ समवसरणें विश्वनायक, शोने श्रीजगवंत ॥१७॥ सुर नर किन्नर मानवी, वेठी ते पर्षदा बार ॥ नपदे श दे अरिहंत जी, धर्मना चार प्रकार ॥ १ए ॥ दान शील तप नावना रे, टाले सघलां कर्म ॥ मंगल चोथु बोलीयें, जगमांहे श्री जिनधर्म ॥ २० ॥ ए चार मंगल गावशे जे, प्रनातें धरी प्रेम ॥ ते कोडि मंगल पामशे, नदयरत्न नांखे एम ॥ २१ ॥ इति ॥
॥अथ श्री तीर्थमाला स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ शत्रुजे पन समोसया, नला गुण नया रे ॥ सीधा साधु अनंत ॥ तीरथ ते नमुं रे ॥त्रण कल्या णिक तिहां थयां, मुगतें गया रे ॥ नेमीसर गिरनार ॥ ती॥ ॥ अष्टापद एक देहरो, गिरि सेहरो रे॥ जरतें जराव्यां बिंब ॥ ती० ॥ आबु चौमुख अतिन लो,त्रिवन तिलो रे ॥ विमल वसहि वस्तुपाल॥ता ॥ २ ॥ समेतशिखर सोहामणो, रलीयामणो रे ॥ सीधा तीर्थकर वीश ॥ ती० ॥ नयरी चंपा निरखी यें, हैये हरखीये रे ॥ सीधा श्री वासुपूज्य ॥ तो॥ ॥ ३ ॥ पूर्वदिशे पावा पुरी, कमें नरी रे ॥ मुक्ति गया महावीर ॥ ती० ॥ जेसलमेर.जुहारीयें, दुःख वारीयें रे ॥ अरिहंत बिंब अनेक ॥ ती० ॥ ४ ॥
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(६७) विकानेरज वंदीयें, चिरनंदी रे ॥ अरिहंत देहरां
आठ॥ ती० ॥ सोरिसरो संखेसरो, पंचासरो रे॥फ लोधी थंनापास ॥ ती० ॥ ५॥ अंतरिक अजाव रो, अमीकरो रे ॥ जीरावलो जगनाथ ॥ ती० ॥त्रै लोक्य दीपक देहरो, जात्रा करो रे ॥ राणपुरें रिस हेस ॥ ती० ॥ ६ ॥ सारंगे अजित जुहारियें, दुःख वारिये रे ॥ थराधे श्रीमहावीर ॥ ती॥ नवा रे नग रनां देहरां, बावन नलां रे ॥शा रायसी वईमानन राव्यां बिंब ॥ती० ॥७॥श्रीनामुलाइजादवो,गोडि स्त वो रे॥ श्रीवरकागो पास ॥ ती० ॥ नंदीश्वरनां देह रां, बावन जला रे ॥रुचक कुंमलें चार चार ॥ ती ॥ ७॥ शाश्वती अशाश्वती, प्रतिमा बती रे॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल ॥ ती० ॥ तीरथ जात्रा फल तिहां, होजो मुज इहां रे ॥ समयसुंदर कहे एम॥ ती॥॥
॥अथ श्री सिमाचलजीनुं स्तवन लिख्यते ॥
॥अांखडीये रे में आज शेठेजो दीठो रे, सवा लाख टकानो दाहाडो रे, लागे मुने मीठो रे ॥ ए यांकणी ॥ सफल थयो रे महारा मननो उमाहो, वाहला मारा नवनो सांसो नांग्यो रे ॥ नरक तिर्यच गति दूर निवारी, चरणे प्रनुजीने लाग्यो रे ॥ शेत्रं जो दीगो रे ॥१॥ मानव नवनो लाहो लीजें ॥ वा ॥ देहडी पावन कीजे रे ॥ सोना रूपाने फू लडे वधावी, प्रेमें प्रदक्षिणा दीजे रे ॥ शे० ॥ २ ॥ उघडे परखालीने केशरें घोली॥ वा० ॥ श्री यादीस
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(६५) र पूज्या रे ॥ श्री सिमाचल नयरों जोतां, पाप में वासी 5ज्या रे॥ शेतुं० ॥३॥ श्री मुख सौधर्मा सुरपति आगें ॥ वा० ॥ वीर जिणंद श्म बोले रे ॥ त्रण्य नुवनमां तीरथ महोटुं, नहिं को शेर्बुजा तोले रे ॥ शेg ॥ ४ ॥ इंश सरीखा ए तीरथनी ॥ वा० ॥ चाकरी चित्तमां चाहे रे ॥ कायानी तो कासल काढी, मूरज कुंममां नाहे रे ॥शे० ॥ ५ ॥ कांकरे कांकरे श्री सिध्देत्रे ॥वा ॥ साधु अनंता सीधा रे ॥ ते माटे ए तीरथ महोढे, नदार अनं ता कीधा रे ॥ शेजे ॥ ६ ॥ नाजिराया सुत नय एवं जोतां.॥ वा० ॥ मेह अमीरस व्रता रे ॥ उदय रतन कहे आज म्हारे पोतें, श्री आदीसर तूना रे ॥ ॥ शेव्रु० ॥ सवा.॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ सिमाचलजीनुं स्तवन । . . ॥ देशी लालननी ॥ ॥ सिगिरि ध्यावो नविका, सिगिरि ध्यावो ॥ घेर बेठां पण बद फल पावो नविका, बद फल पावो ॥ए आंकणी॥नंदीसर जात्रायें जे फल होवे, तेथी बमणेरुं फल घुमगिरि होवे॥न॥ पुं० ॥१॥तिगणुं रुचकगिरि चोगणुं गजदंता, तेथी बमरोरुं फल जंबु महंता॥न ॥ जं० ॥ खटगपुंधातकीचेत्य जुहारे, बतीश गणेलं फल पुरकल विहारें ॥ न ॥ पु० ॥ ॥ ॥ तेथी तेरसगणुं फल मेरु चैत्य जूहारे, सहस गणेरुं फल समेत शिखरें ॥न ॥ स ॥ लाख गणे
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रुं फल अंजन गिरि जूहारें, दश लाख गणेलं फल अष्टापद गिरनारें ॥ ॥ अ॥३॥ कोडि गणेलं फल श्री सिमाचल नेटे, जेम रे अनादिनां धरित नमेटें॥ ॥१० ॥ नाव अनंतें अनंत फल पावे, झान विमल सूरि म गुण गावे ॥ ज०॥३०॥४॥
॥ अथ श्री राणकपुरजीतुं स्तवन ॥ ॥ श्री राणकपुर रलीयामणुं रे लाल ॥ श्री या दीसर देव ॥ मन मोह्यु रे ॥ उत्तंग तोरण देहरुं रे लाल, नीरखीजें नित्यमेव म ।। श्री ॥१॥ चन विस मंम्प चिटुं दिशे रे लाल, चरमुख प्रतिमा चार ॥ म ॥ त्रिनुवन दीपक देहरुं रे लाल, समोवड नहीं संसार ॥म ॥ श्री० ॥ २॥ देहरी चोराशी दीपती रे लाल, मांझयो अष्टापद मेर ॥ म॥ जलें जुहास्यां नोयरां रे लाल, सूतां उठी. सवेर ॥ म ॥ श्री० ॥ ३ ॥ देश जाणीतुं देहरुं रे लाल, मोहोटो देश मेवाड ॥ म ॥ लरक नवाणुं लगावीयां रे लाल, धन धरणें पोरवाड ॥ म ॥ श्री० ॥ ४ ॥ खरतर वसही खांतरां रे लाल, निरखंतां सुख थाय ॥ म ॥ पांच प्रासाद बीजां वली रे लाल, जोतां पातक जाय ॥ म ॥ श्री० ॥ ५ ॥ आज कतारथ ढुं थयो रे लाल, आज थयो याणंद ॥म । यात्रा करी जिनवर तणी रेलाल, दूरें गयुं कुःख दंद ॥म॥ ॥ श्री० ॥ ६ ॥ संवत शोलने डोंतरे रे लाल, माग
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( ७१ )
शिर मास मजार ॥ म० ॥ राणकपुरें यात्रा करी रे लाल, समयसुंदर सुखकार ॥ म० ॥ श्री० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सिदचक्रजीनुं स्तवन ॥ खाबे लालनी देशी ॥
॥ समरी शारदा माय, प्रणमी निजगुरु पाय ॥ या लाल || सिद्धचक्र गुण गायशुं जी ॥ एसि६ चक्र याधार, नवि उतरे जव पार ॥ ० ॥ ते जणी नवपद ध्यायशुं जी ॥ १ ॥ सिद्धचक्र गुणगेह, जस गुण अनंत अवेद ॥ या० ॥ समस्यां संकट उपशमे जी ॥ लहियें वंडित जोग, पामी सवि सं जोग ॥ ०॥ सुरनर आवी बहु नमे जी ॥ २॥ कष्ट निवारे एह, रोगरहित करे देह ॥ श्रा० ॥ मयला सुंदरी श्रीपालने जी ॥ ए सिञ्चत्र पसाय, आपढ़ा दूरें जाय ॥ ० ॥ श्रापे मंगलमालने जी ॥ ३ ॥ ए सम अवर न कोय, सेवे ते सुखीयो होय ॥ ॥ आ० ॥ मन वच काया वश करी जी ॥ नव
विल तप सार, पडिक्कमणुं दोय वार ॥ ० ॥ देववंदन ऋण टंकनां जी ॥ ४ ॥ देव पूजो त्रण वार, गणणुं ते दोय हजार ॥ या० ॥ स्नान करी निर्मलपणे जी || राधे सिश्चक, सान्निध्य करे तेन शक्र ॥ ० ॥ जिनवर जन ागें नणे जी ॥ ॥ ५ ॥ ए सेवो निशि दीस, कहीयें वीशवा वीश ॥ ॥ प्रा० ॥ यान जंजाल सवि परिहरो जी ॥ ए चिंतामणि रत्न, एहनां कीजें जन ॥ श्र० ॥ मंत्र नही एह नपरें जी ॥ ६ ॥ श्री विमजेसर जछ,
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( ७२ )
॥
॥
होजो मुऊ परत ० ॥ ढुं किंकर बुं ताहरो जी ॥ पाम्यो तुंहिज देव, निरंतर करूं हवे सेव ० ॥ दिवस वव्यो हवे माहरो जी ॥ ७ ॥ विनति करूं बुं एह, धरजो मुजसुं नेह ॥ ० ॥ तमनें शुं कहियें वली वली जी ॥ श्रीलक्ष्मी विजय गुरु राय, शिष्य केसर गुण गाय ॥ ० ॥ अमर नमे तुज लली लली जी ॥ ८ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री संजवनाथजीनुं स्तवन ॥ ॥ साहिब सांगलो रे, संभव अरज हमारी ॥ नवोजव हुं जम्यो रे, न नही सेवा तुमारी ॥ नरय निगोदमां रे, तिहां हुं बहु जब जमीयो ॥ तुम विना ख सह्यां रे, होनिशि क्रोधें धमधमियो ॥ सा० ॥ ॥ १ ॥ इंडियवश पड्यो रे, पाल्यां व्रत नवि सुसें ॥ स पप नवि गण्या रे, हणीया यावर ढुंगें ॥ व्रत चित्त नवि धयां रे, बीजुं साधुं न बोल्युं ॥ पापनी गोठडी रे, तिहां में हइडलुं खोक्युं ॥ सा० ॥ २ ॥ चोर में करी रे, चनविह अदत्त न टाल्युं ॥ श्री जिन
शुं रे, में नवि संयम पाल्युं ॥ मधुकर तली परें रे, शुद्ध न आहार गवेख्यो ॥ रसना लालचें रे, नीर स पिंक नवेख्यो ॥ सा० ॥ ३ ॥ नर नव दोहिलो रे, पामी मोह वश बडियो || परस्त्री देखिने रे, मुफ मन तिहां जइ अडियो । काम न को सखां रे, पापें पिंक में जरी ॥ सुध बुद्ध नवि रही रे, तेणें नवि
तम तरी ॥ सा० ॥ ४ ॥ लक्ष्मीनी लालचें रे,
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में बहु दीनता दाखी ॥ तोपण नवि मली रे, मनी तो नवि रही राखी ॥ जे जन अनिलखे रे, ते तो तेहथी नासे ॥ तृण सम जे गणे रे, तेहनी नित्य रहे पासे ॥सा० ॥ ५॥ धन्य धन्य ते नरा रे, एहनो मोह विबोडी ॥ विषय निवारीने रे, जेहने धर्ममां जोडी ॥ अनक्ष्य ते में जख्यां रे, रात्रिनोजन काधां ॥ व्रत नवि पालियां रे, जेहवां मूलथी सीधां ॥ सा ॥ ६ ॥ अनंत नव हुँ जम्यो रे, जमतां सा हिब मलियो ।। तुम विना कोण दीये रे, बोध रयण मुफ बलियो ॥ संनव अापजो रे, चरण कमल तुम्ह सेवा ॥ नय एम वीनवे रे, सुणजो देवाधि देवा ॥ सा० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ श्री दीवालीनु स्तवन ॥ ॥ वाल्हाजीनी वाटडी अमें जोतां रे ॥ ए देशी॥
॥ जय जिनवर जग हितकारी रे, करे सेवा सुर अवतारी रे, गौतम पमुहा गणधारी ॥ १ ॥ सनेही वीरजी जयकारी रे ॥ ए अांकणी ॥ अंतरंग रिपुने त्रासे रे, तप कोपाटो वासे रे, लघु केवल नाण उनासें ॥ २ ॥ स ॥ कटिसकें वाद वदाय रे, पण जिनसाथें न घटाय रे, तेणें हरिलंबन प्रनु पाय ॥३॥ स० ॥ सवि सुरवढू येथे कारा रे, जलपंकजनी परें न्यारा रे, तजी तृष्णा जोग विकारा॥ ४ ॥स० ॥ प्रनुदेशना अमृत धारा रे, जिनधर्म विषे रथकारा रे, जेणे तास्या मेघकुमारा ॥ ५ ॥ स ॥ गौतमने
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(७४) केवल आली रे, वस्या स्वातियें शिव वरमाली रे, करे उत्तम लोक दीवाली ॥ ६ ॥ स ॥ अंतरंग अलब निवारी रे, सुन सऊनने उपगारी रे, कहे वीर विनु हितकारी ॥ ७ ॥ स ॥ इति ॥ .
॥ अथ श्री सिम नगवाननुं स्तवन ॥ ॥ सिनी शोना रे शी कहुँ । ए अांकणी ॥ सिम जगत शिर शोनता, रमता पातमराम ॥ लदन लीलानी लेहेरमां, सुखिया ने शिव गम ॥ मि ॥ ॥१॥ महानंद अमृतपद नमो, सिदि कैवल्य नाम ॥ अपुनर्नव ब्रह्मपद वली, अक्ष्य सुख विशराम ॥ ॥ सि० ॥ ॥ संश्रेय निःश्रेय अक्षरा, दुःख सम स्तनीहाण ॥ निवृत्ति अपवर्गता, मोद मुक्ति निर वाण ॥ सि ॥३॥ अचल महोदय पद लयुं, जोतां जगतना गत ॥ निज निजरूपें रे जूजूयां, वीत्यां कर्म ते आत ॥ सि ॥४॥ अगुरुलघु अवगाहना, नामें विकसे वदन ॥ श्री शुनवीरने वंदतां, रहियें सुखमां मगन्न ॥ सि ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्री आराधनानुं स्तवन प्रारंन ॥ ॥ दोहा ॥ सकल सिदि दायक सदा, चोवीशे जिनराय ॥ सहगुरु सामिनि सरसति, प्रेमें प्रणमूं पाय ॥१॥ त्रिनुवनपति त्रिशला तणो, नंदन गुण गंजीर ॥ शासन नायक जग जयो, वर्षमान वड वीर ॥ ॥ इक दिन वीर जिणंदने, चरणे करि प रणाम ॥ नविक जीवना हित नणी, पूछे गौतम
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(७५)
स्वाम ॥ ३ ॥ मुक्तिमार्ग याराधियें, कहो कि परें अरिहंत || सुधा सरस तव वचन रस, नांखे श्री न गवंत || ४ || अतिचार खालोइयें, व्रत धरीयें गुरु साख ॥ जीव खमावो सयल जे, योनि चोराशी ला ख ॥ ५ ॥ विधिशुं वली वोसिरावियें, पापस्थान अ ढार || चार शरण नित्य अनुसरो, निंदो इरित या चार ॥ ६ ॥ शुनकरणी अनुभादियें, नाव ननो मन या एए ॥ सण अवसर खादरी, नवपद जपो सुजाण ॥ ७ ॥ शुनगति आराधन तणा, ए वे दश अधिकार ॥ चित्त प्राणीने यादरो, जिम पामो जवपार ॥ ८ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥
॥ ए बिंमि कहां राखी ॥ ए देशी ॥
|| ज्ञान दरिसण चारित्र तप वीरज, ए पांचे या चार || एह तणा इह जव परजवना, श्रालोइयें x तिचार- रे || १॥ प्राणी ज्ञान जो गुणखाणी ॥ वीर वदे एम वाणी रे || प्राणी ॥ ज्ञा० ॥ ए आंकणी ॥ गुरु उ लवीयें नहिं गुरु विनयें, काळें घर बहुमान ।। सूत्र अर्थ तनय करी सुधां, नणीयें वही उपधान रे ॥ २ ॥ प्राणी ज्ञा०॥ ज्ञानोपकरण पाटी पोथी, ठवणी नोकर वाली ॥ तेह तणी कीधी यशातना, ज्ञान नक्ति न संभाली रे ॥ ३ ॥ प्राणी ॥ ज्ञा० ॥ इत्यादिक विपरीतपणाथी, ज्ञान विराध्युं जेह ॥ या नव परजव वलिय नवोजव, मिaises तेह रे ॥ ४ ॥ प्राणी समकित ल्यो शुद्ध जाणी ॥ ए यांकणी ॥ जिनवचनें शंका नवि की
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(७६) जें, नवि परमत अनिलाख ॥ साधुतणी निंदा परिह रजो, फलसंदेह म राख रे ॥५॥प्राणीस॥ मूढपणुं बंमो परशंसा, गुणवंतने आदरिये ॥साहामीने धौ करी थिरता,नक्ति प्रजावना करीयें रे॥ ६ ॥ प्राणी ॥ स० ॥ संघचैत्य प्रसाद तणो जे, अवर्णवाद मन लेख्यो ॥ इव्य देवको जे विणसाड्यो, विणसंतांट वेख्यो रे ॥ ७ ॥ प्राणी ॥ स ॥ इत्यादिक विपरीत पणाथी, समकित खंमधु जेह ॥श्रा जवामिहा॥ जाप्राणाचारित्र व्यो चित्त आणी॥ए आंकणी॥पांच समिति त्रण गुप्ति विराधि, आवे प्रवचन माय ॥ सा धुतणे धर्मे परमादें, अशुद्ध वचन मन काय रे ॥ ॥ ए॥ प्राणी ॥ चा० ॥ श्रावकने धर्मे सामायिक, पोसहमां मन वाली॥ जे जयणापूर्वक जे आते, प्रवचनमाय न पाली रे ॥ १० ॥ प्राणी ॥ चा० ॥ इत्यादिक विपरीतपणाथी, चारित्र मोल्युं जेह ॥ या जव ॥ मिहा० ॥ ११ ॥ प्रा० ॥ चा० ॥ बारे ने दें तप नवि कीg, बते योगें निज शक्ते ॥ धर्मे मन वच काया वीरज, नवि फोर विनं नगा रे ॥ १२ ॥ ॥ प्राणी ॥ चा० ॥ तपवीरज आचारें एणि परें, वि विध विराध्या जेह ॥ आ नव ॥ मिला०॥ १३ ॥ ॥ प्राणी ॥ चा॥ वलीय विशेषे चारित्र केरा, अति चार बालोय ॥ वीर जिरोसर वयण सुगीने, पाप मयल सवि धोये रे ॥ १४ ॥ प्राणी ॥ चा० ॥
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(७७) ॥ ढाल बीजी॥पामी सुगुरु पसाय ॥ ए देशी॥
॥ दृथिवी पाणी तेन, वान वनसपति ॥ ए पांचे थावर कहां ए॥ करि करसण आरंन, खेत्र जे खे डियां ॥ कूवा तलाव खणावीया ए॥ १ ॥ घर या रंन अनेक, टांकां नोंयरां ॥ मेडी माल चणावीया ए॥ लीपण धुंपण काज, इणी परं परपरें ॥ दृथिवी काय विराधिया ए ॥ ३ ॥धोयण नाहण पाणी, जीलंण अपकाय॥ बोती धोती करी हव्यां ए॥ना ठीगर कुंनार, लोद सोवनगरा॥नाडनूंजा सिहालाग रा ए॥ ३॥ तापण शेकण काज, वस्त्र निवारण ॥ रंगण रांधण रसवती ए ॥णी परें कर्मादान, परें परें केलव। ॥ तेन वान विराधिया ए॥ ४ ॥ वाडी वन आराम, वावि वनस्पति ॥पान फूल फल चूंटीयां ए॥पोहोंक पापडी शाक,शेक्यां शूकव्यां ॥ बुंद्यांबद्यां आणीयां ए ॥ ५ ॥ अलसीने एरंम, घाणी घालीने ॥ घणा तिलादिक पीलीया ए ॥ घाली कोलुमांहि, पीली शेलडी ॥ कंद मूल फल वेचीयां ए ॥ ६ ॥ एम एकेश्यि जीव, हण्या हणावीया ॥ हणतां जे अनुमोदीया ए॥आजव परनव जेह, वलिय नवोन वें ॥ ते मुफ मिजामि उक्कडं ए॥७॥कमी सरमीयां कीडा,गामर गंमोला॥श्यल पूरा अलसीयां ए॥ वाला जलो चूडेल,विचलित रसतगा॥ वलीअथाणांप्रमुख नांए ॥ ७ ॥ एम बे इंडिय जीव, जे में दूहव्या ॥ ते मुफ० ॥ उद्देही जूलीख, मांकड मंकोडा ॥ चांच
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( 36 ) ड कीडी कुंथुया ए ॥ ॥ गद्दहीयां घीमेल, कान खजूरडा ॥ गींगोडा धनेडीयां ए॥ एम ते इंडिय जीव, जे में हव्या ते मुंफ० ॥१०॥मारखी मत्सर मांस, मसा पतंगीया । कंसारी कोलिया वडा ए॥ ढी कए विंबू तीड, नमर नमरीयो । कोंता बग खड मांकडी ए॥ ११॥ एष चौरिश्यि जीव, जे में दूहव्या ॥ ते मुफ० ॥ जलमां नाखी जाल, जलचर दू हव्या ॥ वनमां मृग शंतापीया ए॥ १२॥ पीड्या पंखी जीव, पाडी पाशमां ॥ पोपट घाल्या पांजरे ए॥ एम पंचेंघिय जीव, जे में दूहव्या॥ते मुम्॥१३॥
॥ ढाल त्राजी॥ ॥ प्रथम गोवाला तणे नवें जी॥ ए देशी॥
॥क्रोध लोन जय हासथी जी, बोल्यां वचन अ सत्य ॥ कूड कर धन पारकां जी, लीधां जेह अदत्त रे ॥ जिनजी॥ १ ॥ मिनाउक्कड आज ॥ तुम साखें महाराज रे॥ जिनजी॥ दे सारूं काज रे॥ जिनजी॥ ॥ मि० ॥ ए आंकणी ॥ देव मनुज तीर्यचनां जी, मैथुन सेव्यां जेह ॥ विषयारस संपटपणे जी, घj विब्यो देह रे ॥ जि० ॥ ॥ मि० ॥परिग्रहनी मम ता करी जी, नव नव मेली आथ ॥ जे जिहांनी ते तिहां रही जी, कोइ न आवी साथ रे ॥ जि. ॥३॥ मि ॥ रयणीनोजन जे कस्यां जी, कीधां न क्ष्य अनदय ॥ रसना रसनी लाल जी, पाप क स्वां प्रत्यद रे ॥ जि० ॥ ४ ॥ मि० ॥ व्रत ले। वी
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( ए) सारियां जीवलीनांग्यां पच्चरकाण॥ कपटहेतु किरिया करी जी, कीधां आप वखाण रे॥
जियामि॥त्रण ढाल आठे उहें जी, आलोया अतिचार ।। शिवगति आराधन तणो जी, ए पहेलो अधिकार रे ॥जि०॥६॥
॥ ढाल चोथी॥ साहेलडीनी देशी ॥ ॥ पंच महाव्रत धादरो ॥ साहेलडी रे ॥ अथ वा व्यो व्रत बार तो ॥ यथाशक्ति व्रत श्रादरी॥ सा ॥ पालो निरतिचार तो ॥ १ ॥ व्रत सीधा संनारीयें ॥ सा० ॥ हियडे धरिय विचार तो ॥ शिवगति या राधन तणा॥ सा० ॥ ए बीजो अधिकार तो ॥ २॥ जीव सके खमावियें ॥ सा ॥ योनि चोराशी लाख तो ॥ मन शुई करो खामणां ॥ सा० ॥ कोश्गुं रो पन राख तो॥३॥ सर्व मित्र करी चिंतवो॥सा॥ को न जाणो शत्रु तो ॥ राग शेष एम परिहरो ॥ सा॥ कीजें जन्म पवित्र तो ॥ ४ ॥ सामी संघ खमावियें ॥ सा ॥ जे उपनी अप्रीति तो ॥ सज न कुटुंब करी खामगां ॥ सा० ॥ ए जिनशासन री ति तो॥ ५॥ खमियें अने खमावियें ॥ सा० ॥ एह ज धर्मनो सार तो॥ शिगवति अाराधन तणो ॥सा॥ ए त्रीजो अधिकार तो ॥ ६ ॥ मृषावाद हिंसा चो री॥ सा० ॥धन मूळ मेदुन्न तो ॥ क्रोध मान मा या तृष्णा ॥ सा० ॥ प्रेम ष पैशुन्य तो ॥ ७ ॥ निंदा कलह न किजीयें ॥ सा ॥ कूडां न दीजें आ ल तो ॥ रति अरति मिथ्या तजो ॥ सा० ॥ माया
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( ८० )
मोस जंजाल तो ॥ ८ ॥ त्रिविध त्रिविध वोसिरावि यें ॥ सा० ॥ पापस्थान अढार तो ॥ शिवगति श्रा राधन तणी ॥ सा० ॥ ए चोथो अधिकार तो ॥ एए ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥
॥ हवे निसुष्णो इहां यवीयाए । ए देशी ॥ ॥ जनम जरा मरणें करी ए, ए संसार असार तो ॥ कस्यां कर्म सहु अनुत्तवें ए, कोइ न राखणहार तो ॥ १ ॥ शरण एक अरिहंतनुं ए, शरण सि६ न गवंत तो ॥ शरण धर्म श्रीजैननो ए, साधु शरण गु सवंत तो ॥ २ ॥ अवर मोह सवि परिहरी ए, चा र शरण चित्त धार तो ॥ शिवगति आराधन तणो ए ए पांचमो अधिकार तो ॥ ३ ॥ या नव परजव जे करयां ए, पाप कर्म के5 लाख तो ॥ श्रात्मसाखें ते निंदीयें ए, पडिक्कमियें गुरु साख तो ॥ ४ ॥ मि यामति वर्त्तावियां ए, जे नांख्यां उत्सूत्र तो ॥ क्रुमति कदाग्रहने वरों ए, वली थाप्यां उत्सूत्र तो ॥ ५ ॥ घड्यां घडाव्यां जे घणां ए, घंटी हल हश्रीया र तो ॥ जव जव मेली मूकीयां ए, करता जीव सं हार तो ॥ ६ ॥ पाप करीनें पोषिया ए, जनम जनम परिवार तो ॥ जनमांतर पोहोता पढी ए, कोई न कीधी सार तो ॥ ७ ॥ या नव परजव जे कलां ए, म अधिकरण अनेक तो ॥ त्रिविध त्रिविध वोसि रावीयें ए, आणी हृदय विवेक तो ॥ ८ ॥ डुकृत निंदा एम करी ए, पाप कस्यां परिहार तो ॥ शिवग
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(७१)
ति आराधन तो ए, ए हो अधिकार तो ॥ ५ ॥
॥ ढाल बही॥ ॥ आदि तुं जोश्ने आपणी ॥ ए देशी ॥ ॥ धन धन ते दिन माहरो, जिहां कीधो धर्म॥ दान शीयल तप आदरी, टाव्यां पुष्कर्म ॥ध ॥१॥ शेर्बुजादिक तीर्थनी, जे कीधी यात्र ॥ युगतें जिन वर पूजीया, वली पोख्यां पात्र ॥ध ॥ २॥ पुस्तक झान लखावीयां, जिणहर जिणचैत्य ॥ संघ चतुर्विध साचव्या, ए साते खेत्र ॥ ध० ॥३॥ पडिक्कमणां सुपरें कस्या, अनुकंपा दान ॥ साधु सूरि नवजायनें, दीधां बदुमान ॥ध० ॥ ४ ॥ धर्मकारज अनुमोदियें, इम वारोवार ॥ शिवगति आराधन तणो, ए सातमो अधिकार ॥ध ॥५॥ नाव नलो मन आणीयें, चित्त आणी गम ॥ समता जावें नावीये, ए आत मराम ॥ध० ॥ ६ ॥ सुख सुख कारण जीवने, को अवर न होय ॥ कर्म आप जे याचयां, जोगवियें सोय ॥ध ॥ ७ ॥ समता विण जे अनुसरे, प्राणी पुण्यनां काम ॥ बार उपर ते लीप', फांखर चित्राम ॥धानानाव नली परें नावीयें, ए धर्मनो सार॥शि वगति आराधन तणो, ए पाठमो अधिकार ॥ध॥॥
॥ ढाल सातमी ॥ रेवतगिरि नपरें ॥ ए देशी॥ ॥ हवे अवसर जाणी, करिये संलेषण सार ॥ अ सण आदरीयें,पञ्चरकी.चार आहार ।। ललुता सवि मूकी, बांकी ममता अंग ॥ ए आतम खेले, समता
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(७२)
झान तरंग ॥ १ ॥ गति चारे कीधा, आहार अनंत निःशंक ॥ पण तृप्ति न पाम्यो, जीव लालची रंक ॥ उत्तहो ए वली वली, अणसानो परिणाम ॥ एथी पामीजें, शिवपद सुरपद गम ॥ ३ ॥ धन धना शालिनइ, खंधो मचकुमार ॥ अगसण आराधी, पाम्या नवनो पार । शिवमंदिर जाशे, करी एक अवतार ॥ आराधन केरो, ए नवमो अधिकार । ३॥ दशमे अधिकारें, महामंत्र नवकार ॥ मनथी नवि मूको, शिवसुख फल सरकार ॥ ए जपतां जाए, मुरगति दोष विकार ॥ सुपर ए समरो,चनद पूरवनो सार ॥ ४ ॥ जन्मांतरें जातां, जो पामे नवकार ॥ तो पातक गाली, पामे सुर अवतार । ए नव पद सरिखो, मंत्र न को संसार ॥ इह नव ने परनवें,सुख संपति दातार ॥ ५ ॥ जुन नीलने नीलडी, राजा राणी थाय ॥ नवपद महिमाथी, राजसिंह महा राय ॥राणी रत्नवती बेदु, पाम्यां ने सुरजोग ॥ एक जवथी लेशे, सिध्वधू संयोग ॥ ६ ॥ श्रीमतीने ए वली, मंत्र फल्यो ततकाल ॥ फणिधर फीटीने, प्रगट था फुलमाल ॥ शिवकुमरें योगी, सोवन पुरुसो कीध ॥ इम एणे मंत्रे, काज घणानां सीध ॥ ७ ॥ ए दश अधिकारें, वीर जिणेसर नांरख्यो ॥ अाराधन केरो, विधि जिणें चितमा राख्यो । तिणे पाप पखाली, नव जय दूरे नारख्यो ॥ जिन विनय करंतां, सुमति अमृत रस चाख्यो ॥ ॥ इति ॥
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(७३) ॥ ढाल बातमी॥ नमो नवि नावा ए॥ ए देशी॥
॥ सिदारथ राय कुलतिलो ए, त्रिशला मात म व्हार तो ॥ अवनीतलें तुमें अवतस्या ए, करवा अम नपकार ॥१॥ जयो जिन वीरजी ए ॥ ए आंकणी ॥ में अपराध करया घणा ए, केहेतां न लडं पार तो ॥ तुम चरणे आव्या जणी ए, जो तारे तो तार ॥ ॥ज॥ प्राश करीने प्रावीयो ए, तुम चरणे महाराज तो॥ याव्याने उवे शो ए, तो किम रहेशे लाज ॥ ३ ॥ ज॥ कर्म अनूजण आकरांए, जनम मरण जंजाल तो ॥ ढुं एहथी उनग्यो ए, बोडावो देवदयाल ॥ १ ॥ ज० । आज मनोरथ मुज फल्या ए, नाठां मुख दमोल तो ॥ तूतो जिन चोवीशमो ए, प्रगट्यो पुण्य कनोल ॥ ५॥ ज० ॥ नव नव विनय तुमा रडो ए, नाव नगति तुम पाय तो ॥ देव दया करी दीजीयें ए, बोध बीज सुपसाय ॥ ६ ॥ ज० ॥ इति ॥
॥ कलश ॥श्य तरण तारण सुगति कारण, कुःख निवारण जग जयो॥ श्रीवीर जिनवर चरण थुणतां, अधिक मन उलट थयो ॥१॥ श्री विजयदेव सुरिंद पटधर, तीर्थ जंगम इणि जगें । तप गडपति श्री विजयप्रन सूरि, सूरितेजें जगमगे ॥२॥ श्रीहीरविजय सूरि शिष्य वाचक, कीर्ति विजय सुर गुरु समो ॥ तस शिष्य वाचक विनय विजयें, शुण्यो जिन चोवीशमो ॥३॥ सय सत्तर संवत उगण त्रीशें, रही रांदेर चौमास ए॥ विजय दशमी विजय
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( ४) कारण, कियो गुणअन्यास ए॥४॥ नरनव ारा धन सिदि साधन, सुस्त लीलविलास ए॥ निर्जरा हेतें तवन रचियु,नामें पुण्य प्रकाश ए॥५॥इति श्र! आराधना रूप पुण्य प्रकाशस्तवनं संपूर्ण॥ श्लोक १२७
॥ अथ अष्टापद तीर्थ स्तवन ॥ ॥ तीरथ अष्टापद नित नमीयें, जिहां जिनवर चो वीश जी ॥ मणिमय विंब जराव्यां जरतें, ते वंद्रं नित दीस जी ॥ ती ॥ १ ॥ निजनिज देह प्रमाणे मूरति, दीगडे मनटुं मोहे जी ॥ चत्तारि अह दश दोय इणि परें, जिनचोवीशे सोहे जी ॥ती० ॥२॥ बत्रीश कोशनो पर्वत चंचो, आठ तिहां पावडीयो जी ॥ एकेकी चनकोश प्रमाणे, नवि जाये कोई च डीयो जी॥ ती॥३॥ गौतमस्वामी चडीया लब्धे, वांद्या जिन चोवीश जी ॥ जगचिंतामणि स्तवन त्यां कीg, पूगी मननी जगीश जी ॥ ती॥४॥ तदन वमोदगामी जे मानव, ए तीरथने वांदे जी॥ जंघा विद्याचारण वांदे, तेतो लब्धिप्रसादें जी॥ ती॥ ५॥ शात सहस सुत सगर चक्रीना, ए तीरथ सेवंता जी ॥ बारमा देवलोकें ते पोहोता, लेहेशे सुख अनंतां जी ॥ ती० ॥ ६ ॥ कंचनमय प्रासाद इहां बे, वंदन करवा योग्य जी ॥ ए अधिकार ने आव श्यकसूत्रे, जो ज्यो दश् उपयोग जी ॥ ती० ॥ ७ ॥ जिहां आदोसर मुक्ते पोहोता, अविचल तीरथ एह
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(GU)
जी ॥ जसवंतसागर शिष्य परंपे, जिनें वधते नेह जी ॥ ती० ॥ ८ ॥ इति श्रष्टापद स्तवनं ॥ ॥ अथ समवसरणनुं स्तवन ॥
॥ एक वार गोकुल श्रावजो गोविंदजी ॥ ए देशी ॥ || एक वार व देश आवजो, जिणंद जी, एक वार देश जो ॥ दरिसरा नयन तेराव जो ॥ जिणंद जी, एकवार व देश यावज ॥ जयंतीने पाय नमाव जो ॥ जि० ॥ एक ० ॥ वली समोसरण देखावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ ए कणी ॥ समोवसरण शोना जे दीवी, कण कण सांभरी श्रावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ नूतन सुगंधी जल वरसावे, फूलना पगर जरावशे ॥ जि० ॥ ॥ एक० ॥ १ ॥ कनक रतननो पीठ करीने, त्रिगडा नी शोजा रचावशे । जि० ॥ एक० ॥ रूपानो गढने कनक कोशीशां, बच्चें रतन जडावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ २ ॥ रतनगढ़ें मणिनां कोशीशां, जगमग ज्योति दीपावजो || जि० ॥ एक० ॥ चारे वारें एंशी हजा रा, शिव सोपान चढावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ ३ ॥ देव चार कर आयु-६ धारी, द्वारें खडा करे चाकरी ॥ जि० ॥ एक० ॥ दूर पासथी एक समे वंदे, जरं तीने लघु बोकरी ॥ जि० ॥ एक० ॥ ४ ॥ सहस्स योजन ध्वज चार ते उंचा, तोरण चन ग्रह वावडी ॥ जि० ॥ एक० ॥ मंगल ग्राउने धूप घटाली, फूलमाल कर पूतली ॥ जि० ॥ एक० ॥ ५ ॥ आठ सुरी बीजे गढ छारें, रत्न गढें चल देवता ॥ जि० ॥ एक० ॥ जाति
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(७६) वैर बंमी पशु पंखी, तुज पद कमलने सेवता । जि० ॥ एक० ॥ ६ ॥ पंचवरणमयी जल थल केरां, फूल अमर वरसावता ॥ जि० ॥ एक० ॥ परखदा सात ते ऊपर बेसे, मुनि नर नारी देवता ॥ जि० ॥ एक ॥ ७॥ यावश्यक टीकायें पण उत्तर, थाये न कुसुम किलाम। ॥ जि ॥ एकः ॥ साधवी वैमा निकनी देवी, उनी सुमो दोय चूरणी॥जि०॥एका ॥ ७ ॥ बत्रीश धनुष अशोक ते चंचो चामर छत्र ध रावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ चनमुख रयण सिंहासन बेसी, अमृत वयण सुगावजो ॥ जि॥ एकाए॥ धर्मचक नामंगल तेजें, मिथ्या तिमिर हरावजोजि० ॥ एक ॥ गणधर वाणी जब अमें सुणीयें, तर देवबंदें सुहावजो॥जि ॥ एक ॥ १० ॥ देवतासुरि कवि साचुं बोले, जिहां जाशो तिहां पावशे ॥ जिन ॥ एक०॥ रंजादिक अपबरनी टोली, वंदी नमी गुण गावशे ॥ जि ॥ एका ॥ ११ ॥ अंतरयामी दरें विचरो, मुमचित्त जीनुं ज्ञानगुं ॥ जि ॥ एक० ॥ हृदयथकी जो दूरें जाउ, तो अमें कौतुक मानगुं ॥ जि ॥ एक० ॥ १२ ॥ सुलसादिक नव जिनपद दीg, अमयुं अंतर एवडो॥ जि ॥ एक ॥ वीत राग जो नाम धरावो, सदुने सरिखा तेवडो ॥ जि ॥ एक० ॥१३ ॥ ज्ञाननजरथी वात विचारो, रागद शा अम रूअडी॥ जि० ॥ एक० ॥सेवक रागें साहेब रीजो, धन धन त्रिशला मावडी ॥ जि ॥ एक
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( ८७ )
॥ १४ ॥ तुजविण सुरपति मधला तूसे, पण में श्रमण दूमणां ॥ ज० ॥ एक० ॥ श्रीशुनवीर हजूरें रहेतां, नवव रंग वधामणां ॥ जि० ॥ एक० ॥ ॥ १५ ॥ इति श्र। समवसरण स्तवनं ॥ संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री सीमंधर जिन स्तवनं ॥ रुपैय्यो ते पालुं रोकडो, माहारा वाहालाजी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ मनडुं ते माहारुं मोकजे, महारा वाहालाजी रे ॥ ससिहर साथै संदेश, जश्ने कहेजो महारा बालाजी रे ॥ एकणी ॥ जरतना जक्कने तारवा ॥ मा० ॥ एकवार प्रवीने या देश ॥ ज० ॥ १ ॥ प्रभुजी वसो पुष्कलावती ॥ मा० ॥ महाविदेह खेत्र मजार ॥ ज० ॥ पुरी राजे पुमरिगिली ॥ मा० ॥ जिहां प्रजुनो अवतार ॥ नइ० ॥ २ ॥ श्रीसीमंधर साहिबा ॥ मा० ॥ विचरता वीतराग ॥ ज० ॥ पडिवोहो बहु प्राणीने ॥ मा० ॥ तेहनो पामे कुण ताग ॥ ज० ॥ ३ ॥ मन जाणे कमी मनुं ॥ मा० ॥ पण पोतें नहीं पांख ॥ ज० ॥ नगवंत तुम जोवा नली ॥ मा० ॥ अलजो धरे बे बेदु ख ॥ ज० ॥ ४ ॥ दुर्गम महोटा मंगरा ॥ मा० ॥ नदी नालानो नही पा र ॥ ज० ॥ घांटीनी आंटी घणी ॥ मा० ॥ श्रटवी पंथ अपार ॥ ज० ॥ ५ ॥ कोडी सोनैये काशीदी ॥ मा० ॥ करनारो नहीं कोय | ज५० ॥ कागलीयो केम मोक लुं ॥ मा० ॥ होंश तो नित्य नवली होय ॥ ज० ॥ ६ ॥ लखं जे जे लेखमां ॥ मा० ॥ लाख गमे x
·
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(GG)
निलाप || जइ ॥ तमें लेजामां ते लहो ॥ मा० ॥ समय पूरे बेसाख ॥ ज० ॥ ७ ॥ लोकालोक सरूपना | मा० ॥ जगमां तुमें बो जाण ॥ ज० ॥ जाण आगें शुं जणावियें ॥ मा० ॥ श्राखर में अजाण ॥ ज० ॥ ८ ॥ वाचक उदयनी वीनति ॥ मा० ॥ ससिदर का संदेश ॥ ज० ॥ मानी जो माहरी ॥ मा० ॥ वसतां दूर विदेश ॥ ज० ॥ ॥ ॥ अथ श्री युगमधर जिन स्तवनं ॥ ॥ मधुकरनी देशीमां ॥
॥ श्रीयुगमंधरने केजो, के दधिसुत वीनतडी सुप जो रे ॥ श्रीयुग ॥ यांकी। काया पामी प्रति कूडी, पांख नहीं रे या नडी, लब्धि नहीं कोये रूडी रे || श्रीयुग० ॥ १ ॥ तुम सेवामांहि सुर कोडी, ते इहां यावे एक दोडी, यश फले पातक मोडी रे || श्री युग० ॥ २ ॥ खम समयमां इणें भरतें, अतिशय नाणी नवि वरते, कहीयें कहो कोण सांभलते रे ॥ श्रीयुग० ॥ ३ ॥ श्रवणें सुखीया तुम नामें, नयणां दरिस नवि पामे, ए तो ऊगडाने ठगमें रे ॥ श्रीयु ग० ॥ ४ ॥ चार आंगल अंतर रहेतुं, शोकडलीनी परें दुख सहेनुं, प्रभु विना कोण आागल कहेतुं रे ॥ श्रीयुग० ॥ ५ ॥ महोटा मेल करी खापे, बेहुने तोल करी थापे, सऊन जस जगमां व्यापे रे ॥ श्रीयु ग० ॥ ६ ॥ बेदुनो एक मतो थावे, केवल नाग जुग ल पावे, तो सविंवात बनी आवे रे || श्रीयुग ० ॥ ७ ॥
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(नए) गजलंडन गजगतिगामी, विचरे विप्रविजय स्वामी, नयरी विजया गुणधामी रे ॥ श्रीयुग ॥ ७॥ मात सुतारायें जायो, सुदृढ नरपति कुल आयो, पंमित जिनविजयें गायो रे ॥ श्रीयुग ॥ ए ॥ इति ॥
॥ अथ नेमिजिनस्तवनं ॥ गरबानी देशीमां ॥
॥ जश्ने रहेजो माहारा वालाजीरे, श्रीगिरनारने गोंख ॥ जश्ने॥ए आंकणअमें पण तिहां आवद्यु ॥माहा॥जिहारें पामीरां जोख ॥ज॥१॥जान ले इजूने गढें ॥ माहा॥आवी तोरण आप ॥ जय०॥ पशुयां पेखी पाढा वट्या ॥ माहा ॥ जातां न दीधो जबाप ॥ज॥॥ सुंदर आपण सारिखा ॥ माहा॥ जोतां नहीं मले जोड ॥ जय० ॥ बोल्यां अबोल्यां करो ॥ माहा॥.ए वातें तमने खोड ॥ जय० ॥३॥ ढुं रागी तुं वेरागी ॥ माहा ॥ जगमां जाणे सदु कोय ॥ ज०॥ रागी तो लागी रहे ॥माहा॥ वेरागी रागी न होय ॥ जय० ॥ ४ ॥ वर बीजो ढुं नवि वरूं ॥ माहा०॥सघला मेहेली सवाद ॥ जय० ॥ मोहनी याने जमली॥ माहा० ॥ महोटा साथें श्यो वाद ॥ जय० ॥५॥ गढ तो एक गिरनार ३ ॥ माहा० ॥नर तो वे एक श्री नेम ॥ जय० ॥रमणी एक राजीमती ॥ मादा॥पूरो पाड्यो जेणें प्रेम ॥ जय० ॥ ६ ॥ वा चक उदयनी वंदना ॥ माहा ॥ मानी लेजो माहा राज ॥ जय० ॥ नेम राजुल मुक्तं मल्यां ॥ माहा॥ सास्यां आतमकाज ॥ जय० ॥ ७ ॥ इति स्तवनं
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( ए० )
॥ अथ पंचमीनुं लघु स्तवन लिख्यते ॥ ॥ पंचमीतप तमें करो रे प्राणी, जिम पामो निर्म ल ज्ञान रे || पहेनुं कानने पी किरिया, नहिं कोई ज्ञान समान रे | पंच पी० ॥ १ ॥ नंदीसूत्रमां ज्ञान वखायं ज्ञानना पांच प्रकार रे ॥ मति श्रुत श्रवधिने मनः पर्यव, केवल ज्ञान दार रे ||पंचमी० ॥ शाति अहावीश श्रुत चनदह वीश, अवधि के असंख्य प्र कार रे || दोय नेर्दे मनःपर्यव दाख्युं, केवल एक न दार रे || पंचमी० ॥ ३ ॥ चं सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा, ऐसो तेज श्राकाश रे । केवल ज्ञान उद्योत नयो जब, लोकालोक प्रकाश रे || पंचमी० ॥ ४ ॥ पारसनाथ प्रसाद करीने, म्हारी पूरो उमेद रे ॥ समय सुंदर कहे डुं पण पामुं, ज्ञाननो पंचमो नेद रे ॥ पंचमी० ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्रीवीरप्रनुनुं दीवालीनुं स्तवन लिख्यते ॥ ॥ मारग देसक मोनो रे, केवल ज्ञान निधान ॥ नाव दया सागरप्रभु रे, पर नपगारी प्रधानो रे || १ || वीर प्रभु सि-६ यया ॥ संघ सकल आधारो रे, हवे इस नरतमां ॥ कोण करशे उपगारो रे ॥ वी० ॥ ॥ २ ॥ नाथ विद्वणुं सैन्य ज्युं रे, वीर विद्वणो रे संघ ॥ साधे कोण आधारथी रे, परमानंद नंगो रे || वीर० ॥ ३ ॥ माता विदूयो बाल ज्युं रे, अ रहो परहो अथाय ॥ वीर विणा जीवडा रे, खा कुल व्याकुल थाय रे ॥ वीर० ॥ ४ ॥ संशय बेदक वीरनो रे, विरह ते केम खमाय ॥ जे दीवे सुख
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(ए१) ऊपजे रे, ते विण केम रहेवायो रे ॥ वीर० ॥ ५॥ निर्यामक नव समुनो रे, नवअडवि सबवाह ॥ ते परमेश्वर विण मले रे, केम वाधे नत्साहो रे ॥ ॥ वीर० ॥ ६ ॥ वीरथकां पण श्रुत तणो रे, हतो परम आधार ॥ हवे इहां श्रुत आधार डे रे, अहो जिनमुश सारो रे ॥ वीर० ॥ ९ ॥त्रण कालें सवि जीवने रे, आगमथी आणंद ॥ सेवो ध्यावो नवि जना रे, जिनपडिमा सुखदो रे ॥ वीर ॥ ७ ॥ गणधर आचारज मुनि रे, सदुने णी परें सिम ॥ जव जव यागम संगथी रे, देवचं पद लीध रे॥ए॥
॥ अथ श्री गौतमस्वामीनो रास प्रारंजः ॥ ॥ वीर जिणेसर चरणकमल,कमला कयवासो ॥ प रामवि पनणि सुसामिसाल, गोयम गुरु रासो॥मणु तषु वणय एकंत करवि,निसुणो जोनवियां। जिम नि वसे तुम्ह देद गेह, गुण गण गहगहिया॥१॥ जंबूदीव सिरिजरह खित्त, खोणीतल मंझण ॥ मगधदेस सेणिय नरेस, रिनदल बल खंमण ॥ धणवर गुव्वर गाम नाम, जिहां गुणगणसजा ॥ विप्प वसे वसुनू त ब, जसु पुहवी नगा ॥ २ ॥ ताण पुत्त सिरि इंद नूइ, नवलय प्पसिको ॥ चनदह विद्या विविह रूव, नारीरस लुको ॥ विनय विवेक विचार सार, गुण गणद मनोहर ॥ सात हाथ सुप्रमाण देह, रूवहिं रंजावर ॥ ३ ॥ नयण वयण कर चरण जिवि, पंकऊल पाडिय ॥ तेजें ताराचंद सूर, आका
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(ए ) स नमाडिय ॥ रूवें मयण अनंग करवि, मेव्हि न निर धाडिय ॥धीरम मेरु गंजीर सिंधु, चंगम चयचाडिय ॥ ४ ॥ पेखवि निरुवम रूव जास, जिण ऊंपे किंचिय ॥ एकाकी किल नीत ब, गुण मेव्हा संचिय ॥ अहवा निचे पुत्व जम्म, जिवर इण अं चित्र ॥ रंना पनमा गवरी गंगा, रतिहा विधि वंचिय ॥ ५ ॥ नहिं बुध नहिं गुरु कवि न कोइ, जसु श्रा गल रहि ॥ पंचसया गुगपात्र बात्र, हीं परवरि
॥ करय निरंतर यज्ञकर्म, मिथ्यामति मोहिय ॥ ए बल होसे चरम नाण, दंसह विसोहि ॥ ६ ॥ ॥वस्तु॥जंबूदीवह जंबूदीवहनरह वासंमि, खोणीतल मंमणो॥मगध देस सेणिय नरेसर, धण वरगुब्बर गा तिहां ॥ विप्प वसे वसुनू सुंदर, तसु नका पुहवी सयल, गुण गण रूव निहाण ॥ ताण पुत्त विद्यानि ल, गोयम अतिहि सुजाण ॥ ७ ॥ जषा ॥.चरम जिरोसर केवलनाणी, चनविह संघपश्छा जाणी॥ पावापुर सामी संपत्तो, चनविह देवनिकायें जुत्तो ॥ ७ ॥ देवें समवसरण तिहां कीजें, जिण दीठे मि थ्यामति बीजें ॥ त्रिनुवनगुरु सिंहासण बश्शो, तत विण मोह दिगंतें पश्ो ॥ ए॥क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा ॥ देवउंहि आकासें वाजी, धर्म नरेसर आव्यो गाजी ॥१०॥ कुसुमवृष्टि विरचे तिहां देवा, चोसह इंश्ज मागे सेवा ॥ चामर उत्रं सिरोवरि सोहे, रूपें ते जिणवर
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जग सहु मोहे ॥ ११ ॥ उवसम रस नर जरी वरसं ता, जोजन वाणी वखाण करंता ॥ जाणवि वर्षमा एग जिरा पाया, सुर नर किन्नर आवे राया ॥१२॥ कतिसमूहें ऊलफलकंता, गयण विमाणे रण रणकं ता ॥ पेख वि इंदनू मन चिंते, सुर आवे अम ज गन होवंते ॥ १३ ॥ तीर मक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गह गहता । तो अनिमानें गोय म ऊंपे, इणि अवसरें को तए कंपे ॥ १४ ॥ मूढा लोक अजाणिलं बोले, सुर जाणंता श्म कांइ मोले॥ मू आगल को जाण जणीजें, मेरु अवर किम उप मा दीजें ॥ १५ ॥ वस्तु बंद ॥ वीर जिपवर वीर जिपवर नाण संपन्न ।। पावा पुरिसुर महिय, पत्तना ह संसार तारण ॥ तिहिं देवेहिं निम्मविय समवर रण बहु सुरक. कारण ॥ जिणवर जग उद्योय करे, तेजें करि दिनकार ॥ सिंहासण सामिय विळ, दुई सुजय जयकार ॥ १६ ॥ जापा ॥ तो चढिन घण माग गजें, इंदनूइ नूयदेव तो ॥ ढुंकारो करी संच रिज, कवण सुजिणवर देव तो ॥ जोजन नूमि स मोसरण, पखवी प्रथमारंन तो ॥ दह दिसि देखे वि बुधवधू, आवंती सुररंन तो ॥ १७ ॥ मणिमय तो रण दंम धजा, कोसीसें नव घाट तो ॥ वैर विवर्जि त जंतुगण, प्रातिहारज आठ तो ।। सुर नर किन्नर असुरवर, इंश इंशणी राय तो ॥ चित्त चमक्किय चिं तवे ए, सेवंतां प्रनुपाय तो॥१॥ सहसकिरण सम
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( ए४ )
वीर जिएल, पेखवी रूप विशाल तो ॥ एह असंभव संभव ए, साचो इंड्जाल तो ॥ तो बोलावे त्रिजग गुरु, इंदजु नामे तो ॥ श्रीमुख संसाय सामि सवे, फेडे वेदपण तो ॥ १७ ॥ मान मेल्हि मद वेलि करे, जगतें नामें सीन तो ॥ पंचख्यासुं व्रत लियो ए, गोयम पहिलो सांस तो ॥ बंधव संजम तुणवि करे. निवे तो ॥ नाम लेइ यानास करें, तं पुण प्रतिबोधे तो ॥ २० ॥ इणि अनुक्रमें गण हररयण, थाप्या वीर ग्यार तो ॥ तो उपदेशे नु वन गुरु, संयमचं व्रत बार तो ॥ बिहु उपवासें पा रं ए, आपण विहरंत तो ॥ गोयम संयम जग सयल, जय जयकार करत तो ॥ २१ ॥ वस्तु तं ॥ इंदनूइ इंदनूइ चढिय बहुमान ॥ हुंकारो करि संच रिन्, समवसरण पुहतो तुरंतो ॥ इह संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंतो || बोधबीज सजाय मने, गोयम वह विरत्त || दिरक लेइ सिरका सहिय, ग
हर पय संपत्त ॥ २२ ॥ जाषा ॥ श्राज हुने सुविहा एए, प्राज पचेलिमां पुष्म नरो ॥ दीता गोयम सामि, जो नियनयणें अमिय जरो || सिरिगोयम गणधार, पंचसया मुनि परवरिय ॥ नृमिय करय विहार, न वियां जन पडिबोह करे ॥ समवसरण मजार, जे जे संसा उपजे ए ॥ ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनि पवरो ॥ २३ ॥ जिहां जिहां दीजें दिरक, तिहां तिहां केवल उपजे ए ॥ आप कन्हे अण ढुंत, गोयम दीजें
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(ए) दान श्म ॥ गुरु ऊपर गुरुनत्ति, सामी गोयम नप नीय ॥ अण चल केवल नारा, रागज राखे रंग नरें ॥ २४ ॥ जो अष्टापद शैल. वंदे चढि चवीस जि ण ॥ आतम लब्धि वसेण, चरमसरीरी सोमुनि ॥ श्य देसण निसुणे, गोयम गणहर संचलि ॥ तापस पन्नरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए॥ ॥ २५॥ तवसोसिय निय अंग, अम्ह सक्ति नवि ऊपजे ए ॥ किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गा जतो ए ॥ गिरु ए अनिमान, तापस जो मन चिं तवे ए॥ तो मुनि चढिन वेग, आतंबवि दिनकर किरण ॥ ६ ॥ कंचण मणि निप्पन्न, दंम कलस धज वड सहिय ॥ पेखवि परमाणंद, जिणहर जर हेसर महिथ ।। निय निय काय प्रमाण, चिटुंदिसि संठिय जिगहबिंब ॥ पणमवि मन ननास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥ २७ ॥ वयर सामीनो जीव, तिर्यक जूनक देव तिहां॥प्रतिबोधे पुमरिक,कंमरिक अ ध्ययन जणी ॥ वलता गोयम सामि,सवि तापस प्रति बोध करे ॥ लेापणे साथ,चाले जिम जृथाधिपति ॥२॥ खीर खंम घृत आणि,अमित्र वून अंगूठ वे ॥ गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवे ॥ पंचसया सुन जाव, उऊल नरिज खीरमीसें ॥ साचा गुरुसंजोग, कवल ते केवल रूप दुधा ॥ श्ए । पंचसया जिण नाह, समवसरण प्राकार त्रय ॥ पेख वि केवल नाण, नप्पन्नो उजोय करे ॥ जाणे जिगह पीयूष, गाजंती
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(ए६)
घण मेघ जिम ॥ जिवाणी निसुरोश, नागी दूया पंचसया ॥ ३० ॥ वस्तु बंद ॥ण अनुक्रमें शण अनुक्रमें नाण संपन्न । पन्नरह सय परवरिय हरिय उरिय जिगनाह वंदे ।। जागवि जगगुरु वयण तिह नाण अप्पाण निंदे ॥ चरम जिणेसर इम नणे. गो मय म करिस खेन ॥ह जई आपण सनी, होसुं सुना बेन ॥३१॥ नापा ॥ सामि ए वीर जिणंद, पूनिम चंद जिम उनसित्र॥ विहरिए नरवासम्मि, वरिस बहुत्तर संवसिय ॥ठवतो ए कणय परमेश, पाय कमल संघे सहिथ ॥ प्रावि ए नयगाणंद, नयर पावापुरिसुर महिय ॥३२॥ पेखिन ए गोयम सामी, देवशर्मा प्रतिबोध करे ॥ आपणो ए त्रिशला देवि, नंदन पहोतो परम पए ॥ घलतो ए देव आ कास, पेखवि जाण्यो जिसमे ए॥ तो मुनि ए मन विखवाद, नाद नेद जिम नपनो ए॥ ३३ ॥ इण समे ए सामिय देखि, आप कन्हे दुं टालिन ए॥ जाणंतो ए तिहुश्रण नाह, लोक विवहार न पालि ए ॥ अति नलु ए कीधखं सामि, जाणिनं केवल मागशे ए॥चिंतविलं ए बालक जेम, अहवा केडे लागशे ए ॥ ३४ ॥ किम ए वीर जिणंद, जगतें जोलो नोलव्यो ए ॥ आपणो ए अविहल नेह, नाह न संपे साचव्यो ए ॥ साचो ए इह वीत राग, नेह न जेणें सालि ए॥ण समे ए गोयम चित्त, राग वैरागें वालि ए ॥ ३५ ॥ आवतो ए
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( एस )
जो कलट, रहेतो रागें साहिन ए ॥ केवलु ए नाल उप्पन्न, गोयम सेहेजें नमाहिन ए ॥ तिदुखण ए जय जयकार, केवल महिमा सुर करे ए ॥ गणहरु ए करय वखाण, नवियण जव जिम निस्तरु ए ॥ ॥ ३६ ॥ वस्तु छंद || पढम गएणहर पढम गणहर वरस पंचास, गिहिवासें संवसिय ॥ तीस वरिस संजम विसिय ॥ सिरिकेवल नाण पुरा बार वरिस तिदुण नमसिय ॥ रायगिरि नयरीहिं विश्र वाल वइ वरिसा ॥ सामी गोयम गुण निलो होसे शिवपुर ठाउँ ॥ ३७ ॥ जापा ॥ जिम सहकारें कोयल टहुके, जिम कुसुमवनें परिमल महके, जिम चंदन सुगंध निधि || जिम गंगाजल लहेरें लहके, जिम कराया चल तेजें फलके ॥ तिम गोयम सोनागनिधि ॥ ३८ ॥ जिम मानसरोवर निवसे हंसा, जिम सुरवर सिरि कणयवतंसा, जिम मदुयर राजीववनी ॥ जिम रय पायर रयणें विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम गुण केलि बनी ॥ ३५ ॥ पूनिम निसि जिम ससिहर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जग मोहे, पूरव दिसि जिम सहसकरो || पंचानन जिम गिरि वर राजे, नरवइ घर जिम मयगल गाजे, तिम जिन शासन मुनि पवरो ॥ ४० ॥ जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तम मुख मधुरी नाखा, जिम वनके तकी महमहे ए ॥ जिम भूमिपति जुयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गोयमलब्धें गह
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(ए ) गहे ए॥ ४१ ॥ चिंतामणि कर चढिन आज, सुर तरु सारे वंबिय काज, कामकुंन सवि वश दु ए॥ कामगवी पूरे मनकामिय, अष्ट महासिदि आवे धा मिय, सामिय गोयम अणुसरो ए॥ ४२ ॥ पणव स्कर पहेलो पजणीजें, मायाबीज श्रवण निसुणीजें, श्रीमती शोना संजवो ए ॥ देवह धुरि अरिहंत नमीजें, विनयपदु नवप्नाय थुणीजें, इण मंत्र गोयम नमो ए॥ ४३ ॥ पुर पुर वसतां कांइ करीजें, देश देशां तर कां नमीजें, कवण काज आयास करो ॥ प्रह कती गोयम समरीजें, काज समग्गल ततविण सीके, नवनिधि विलसे तास घरे ॥ ४५ ॥ चटदह सय बारोत्तर वरसें, गोयम गणहर केवल दिवसें, किन कवित नपगार करो ॥ आदिहिं मंगल एह पनपीजें, परव महोबव पहिलो लीजें, ऋदि वृद्धि कनाण करो ॥ ४५ ॥ धन माता जिणें नयधरिया, धन पिता जिण कुल अवतरिया, धन सहगुरु जिण दि रिकया ए॥ विनयवंत विद्यानंमार, जस गुण को न लप्ने पार, वड जिम साखा विस्तरो ए ॥४६॥ गौतमस्वामीनो रास नणीजें, चनविद संघ रलिया यत कीजें, सयल संघ आणंद करो ॥ कुंकुम चंदन बडो देवरावो, माणक मोतीना चोक पुरावो, रयण सिंहासण बेसणुं ए॥४७॥ तिहां बेसी गुरु देसना देसे, नविक जीवनां काज सरीसे ॥ उदयवंत मुनि इम जरो ए॥ गौतमस्वामी तणो ए रास, जगतां
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(एए) सुणतां लील विलास ॥ सासय सुख निधि संपजे ए ॥ ४ ॥ एह रास जे नणे नणावे, वर मयगल लब घर आवे । मनवंडित आशा फले ए॥४॥ इति श्री गौतमस्वामीनो रास संपूर्ण ॥ ५० ॥
अथ श्रीमयशोविजयजी उपाध्याकृत श्री वीश विदरमानजिन स्तवन प्रारंनः ॥
तत्र प्रथम श्री सीमंधरजिन स्तवनं ॥ भर आंबा आंबली रे ॥ ए देशी ॥ ॥ पुरकलवा विजयें जयो रे, नयरी पुंगरी गिणि सार ।। श्री सीमंधर साहिबा रे, राय श्रेयांस कुमार ॥ जिणंदराय धरजो धर्म सनेह ॥ ए आंकणी॥१॥ मोहोटा नाहना अांतरो रे, गिरुया नवि दाखंत ॥ शशि दर्शन सायर वधे रे, कैरव वन विकसंत ॥ ॥ जि० ॥ २ ॥ ठाम कुठाम नवि लेखवे रे, जग वर संत जलधार ॥ कर दोइ कुसुमें वासीयें रे, गया सवि आधार ॥ जि ॥ ३ ॥ राय रंक सरिखा गणे रे, उद्योतें शशि सूर ॥ गंगाजल ते बिदु तणो रे, ताप करे सवि दूर ॥ जि० ॥ ४ ॥ सरिखा सदुने तारवा रे, तिम तुम्हें बो महाराज ॥ मुफगुं अंतर किम करो रे, बांहे ग्रह्यानी लाज ॥ जि० ॥ ५ ॥ मुख देखी टीखं करे रे, ते नवि होय प्रमाण ॥ मु जरो माने सवि तणो रे, साहिब तेह सुजाण ॥जिन
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(१००) ॥ ६ ॥ वृषनलंबन माता सत्यकी रे, नंदन रुक्मि पी कंत ॥ वाचक जस श्म वीनवे रे,नवनंजन नग वंत ॥ जिणंदराय धरजो धर्म सनेह ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री युगमंधर जिन स्तवनं ॥ ॥ धारा ढोला ॥ ए देशी॥ श्री युगमंधर साहि बा रे, तुमगुं अविहड रंग ॥ मनना मान्या ॥ चोल मजीठ तणी परें रे, ते तो अचल अनंग ॥ गुणना गेहा ॥१॥ नविजन मन त्रांबूं करे रे, वेधक कंच न वान ॥ म ॥ फरि त्रांबूं ते नवि होये रे, ते तुम नेह प्रमाण ॥ गु० ॥ २ ॥ एक नहक लव जि म नव्यो रे, अखय जलधिमां होय ॥ म ॥ तिम तुमगुं गुण नेहलो रे, तुम सम जग नहिं कोय ॥गु० ॥३॥ तुमगुं मुफ मन नेहलो रे, चंदन गंध समान ॥ म ॥ मेल दु ए मूलगो रे, सहज स्वनाव नि दान ॥ गु० ॥ ४ ॥ विप्र विजय विजयापुरी रे, मात सुतारा नंद ॥ म ॥ गजलंडन प्रिय मंगला रे, राणी मन आणंद ॥ गु० ॥ ५ ॥ सुदृढ राय कुल दिनमणि रे,जयो जयो तुं जिनराज ॥ म ॥ श्रीनय विजय विबुध तणो रे,शिष्यने दियो शिवराज ॥गुण॥६॥
॥ अथ श्री बादुजिन स्तवनं ॥ ॥ नणदलनी देशी ॥ साहिब बादुजिनेसर वीन वु, वीनतडी अवधार हो ॥ साहिब नवनयथी हुँ उनग्यो, हवे जव पार उतार हो ॥सा॥१॥सा॥ तुम सरिखा मुफ शिर बते, कर्म करे केम जोर
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(१०१) हो ॥ सा ॥ नुजंग तणो नय तिहां नहीं, जिहां वन विचरे मोर हो ॥ सा ॥ २ ॥ सा ॥ जिहां रवि तेजें फल हले, तिहां किम रहे अंधकार हो । ॥ सा० ॥ केशरी जिहां क्रीडा करे, तिहां नहिं गज नो प्रचार हो ॥ सा० ॥ ३ ॥ सा ॥ तिम जो तुमें मुफ मन रमो, तो नासे उरित संसार हो ॥ सा० ॥ वह विजय सुसिमा पुरी, राय सुग्रीव मल्हार हो । ॥सा॥४॥सा ॥ हरिण लंबन श्म में स्तव्यो, मो हना राणीनो कंत हो ॥ सा ॥ विजया रे नंदन मुफ दीयो,जस कहे सुख अनंत हो ॥ सा ॥५॥ इति।
॥ अथ श्री सुवादुजिन स्तवनं ॥ ॥ चतुर सनेही मोहना ॥ ए देशी ॥ स्वामी सुबा दु सुहंकरु, नूनंदामंदन प्यारो रे ॥ निसढ नरेसर कुलतिलो, किंपुरुपानो जरतारो रे ॥ स्वा० ॥ १ ॥ कपि संलन नलिनावती, विप्रविजय अयोध्यानाहो रे ॥ रंगें मिलिए तेहगुं, एह मणुथ जनमनो लाहो रे ॥ स्वा०॥ ॥ ते दिन सवि एलें गया. जिहां प्रनु गुं गोठ न बांधी रे ॥ नक्ति दूतिकाएं मन हस्यं, पण वात कही आधी रे ॥ स्वा० ॥ ३ ॥ अनुनव मित्त जो मोकलो, तो ते सघनी वात जणावे रे ॥ पण तेह विण मुफ नवि सरे, कहो तो पुत्र विचार ते आवे रे ॥स्वा० ॥ ४ ॥ तेणे जर वात सवे कही, प्रनु मव्या ते ध्यानने टाणे रे ॥ श्री नय विजय विबु ध तणो, म सेवक सुजस वखाणे रेस्वा०॥॥ति॥
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(१०५) ॥अथ श्री सुजातजिन स्तवनं ॥ ॥ रामचंदके बाग, चांपो महोरी रह्योरी॥ ए देश।।
॥ साचो स्वामी सुजात, पूरव अरध जयो री॥ धातकी खंम मजार पुस्कलव विजयो री॥१॥ नयरी पुंगरीगिणिना, देवसेन वंश तिलोरी ॥ देव सेनानो पुत्र, संडन जानु नतोरी॥॥ जयसेनानो कंत, तेहगुं प्रेम धयो री ॥ अवर : था। दाय, तेरों वश चित्त कस्यो र ॥ ३ ॥ तुमें मत जाणो दूर, जइ परदेश रह्यो री॥ मुफ चित्त हजूर, गुण संके त ग्रह्यो री ॥ ४ ॥ नगे नानु आकाश, सरवर कम ल हस्यो री ॥ देखी चंद चकोर, पोवा अमिय यस्यो री॥ ५॥ दूर थकी पण प्रेम, प्रनु' चित्त मिल्यो री॥ श्री नय विजय सुशिष्य, कहे गुण हेज हि ल्यो री॥६॥ इति ॥
॥अथ श्री स्वयंप्रन जिन स्तरनं ॥. ॥ पारधीयानी देशी स्वामी स्वयंप्रन सुंदरू रे, मित्रनृपति कुल हंस रे ॥ गुण रसिया।।मात सुमंगला जनमीया रे, शशि लंडन सुप्रशंस रे ॥ मन बसिया ॥१॥ वप्र विजय विजया पुरी रे, धातकी पूरव अई रे ॥गु० ॥ प्रियसेना प्रियपुण्यथी रे,तुक सेवा में लम रे ॥ म० ॥॥ चाखवी समकित सूखडी रे, हेलवीयो ढुं बाल रे ॥ गु० ॥ केवल रतन दिया वि ना रे, न तनुं चरण त्रिकाल रे॥ म॥३॥ एकने ललचावी रहो रे, एकने आपो राज रे ॥गुण॥ ए तु
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(१०३) म करवो किम घटे रे, पंति नेद जिनराज रे॥ ॥ म० ॥ ४ ॥ केड न बगहुं ताहरी रे, बाप्या विण शिव सूख रे ॥ गु० ॥ नोजन विण नांजे नहीं रे, नामण्डे जिम नूख रे ॥ म० ॥ ५ ॥ यासंगाय त जे दुशे रे, ते केहेशे सो वार रे ॥ गु० ॥ जोली जगतें रीफ रे, साहिब पण निरधार रे ॥ म० ॥ ॥ ६ ॥ सवि जाणे थोडं कहे रे, प्रनु तुंचतुर सुजा ए रे॥ गु० ॥ वाचक जस कहे दीजियें रे, वंबित सुख निर्वाण रे ॥ म० ॥ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री ऋषनानन जिन स्तवनं ॥ ॥ बनो रे कुंअरजीनो सेहरो ॥ ए देशी ॥ ॥श्रीषनानन गुणनीलो,सोहे मृगपति लंडन पा य हो ॥ जिणंद ।। मोहे मन तुं जग तणां, नलि वीर सेना तुफ मात्र हो । जिणंद ॥१॥ श्री ॥ वह वि जय सुसीमा पुरी,वंम धातकी पूरव नाग हो ।जि०॥ राणी जयावती नाहलो, कीरति नृपसुत वडनाग हो ॥जि॥॥श्री॥ढुंपू कहो तुमें किणि परें,दीयो जगतने मुगति संकेत हो । जि० ॥ रुसो नहिं निं दा कारणे, तुसो नहिं पूजिया हेत हो ॥ जि० ॥३ ॥श्री॥समकित विण फल को नविलहे,ए ग्रंथें अव दात हो ॥ जि० ॥ तोय शाबासी तुमने चढे, तुमें कहेवा जगतात हो। जि॥॥श्री॥ हवे जाण्यं मन वंडित दिये, चिंतामणिने सुरकुंन हो ॥ जि० ॥ अग्नि मिटावे शीतने,जे सेवे थइ थिरं थंन हो ॥जि०॥
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( १०४)
॥ श्री ॥ जिम ए वस्तु गुण स्वभावथी, निम तुमथी मुक्ति उपाय हो ॥ जि० ॥ दायक नायक कपमा, नक्ति इम साची कहाय हो | जि० ॥ ६ ॥ श्री० ॥ तप जप किरिया जे फल दिये, ते तुम गुण ध्यान निमित्त हो ॥ जि० ॥ श्री नयविजय विबुध तणो, सेवकने परम तुं मित्त हो । जि० ॥ ७ ॥ श्री० ॥ इति ॥
॥ अथ श्री अनंतवीर्य जिन स्तवनं ॥
|| नारायणानी देशी || जिम मधुकर मन मालती रे, जिम कुमुदिनी चित्त चंद रे || जिणंदराय || जि म गजमन रेवा नदी रे, कमला मन गोविंद रे ॥ जि० ॥ १ ॥ त्युं मेरे मन तुं वस्यो रे ॥ जि० ॥ ए यांक एली । चातक चित्त जिम मेहलो रे, जिम पंथी मन गे ह रे ॥ जि० ॥ हंसा मन मानसरोवरु रे, तिम मुफ तुजगुं नेह रे ॥ जि० ॥ २ ॥ जिम नंदन वन इंडने रे, सीताने वालो राम रे ॥ जि० ॥ जिम धर्मी मन संव रु रे, व्यापारी मन दाम रे || जि० ॥ ३ ॥ अनंत वीर्य गुण सागरु रे, धातकी खंग मकार रे ॥ जि० ॥ पूर्व अर्ध नलिनावती रे, विजय अयोध्या धार रे ॥ ॥ जि० ॥ ४ ॥ मेघराय मंगलावती रे, सुत विजयाव ती कंत रे || जि० ॥ गज लंबन योगीसरु रे, जिम स मरुं महामंत रे ॥ जि० ॥ ५ ॥ चाहे चतुर चूडामणि रे, कविता अमृतनी केल रे ॥ जि० ॥ वाचक जस कहे सुख दीयो रे, मुफ तुऊ गुण रंग रेल रे ॥ जि० ॥६
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(१०५) ॥ अथ श्री सुरप्रन जिन स्तवनं ॥ ॥रामपुरा बाजारमा॥ ए देशी ॥ सुर प्रन जिनवर धातकी, पत्रिम अर| जयकार ॥ मेरे लाल ॥ पुरक लव विजय सुहामणो, पुरी पुंमरीगिणी सिणगार ॥ मेरे ॥ १ ॥ चतुर शिरोमणि साहिवो ॥ ए आंक णी ॥ नंदसेनानो नाहलो, हय संबन विजय मल्हा र ॥ मे० ॥ विजयवती कुग्ने रुपनो, त्रिजुवननो श्रा धार ॥ मे॥ च ॥ २ ॥ अलवे जस साहामुं जुए, क रुणानर नयन विलास ॥ मे ॥ ते पामे प्रनुता जग तणी, एडवो के प्रनु सुख वास ॥ मे०॥ च॥३॥ मुख मढके जग जन वश करे, लोयण लटके हरे चित्त ॥ मे ॥ चारित्र चटके पातक हरे, अटके नहिं करतो हित ।। मे।। च ॥ ४ ॥ उवयारी शिर सेह रो, गुणनो नवि अावे पार ॥मे॥ श्री नय विजय सुशि ष्यने, होजो नित मंगल माल॥मे०॥च॥ ५॥ इति
॥ अथ श्री विशाल जिन स्तवनं ॥ ॥ लूहारीनी देशी ॥ धातकी खंमें हो के पश्चिम अ रथ जलो, विजया नयरी हो के वप्र ते विजयतिलो ॥ तिहां जिन विचरे हो के स्वामी विशाल सदा, नित नित वं, हो के विमला कंत मुदा ॥ १ ॥ नाग नरेसर हो के वंश ऊद्योत करु, नशनो जायो हो के प्रत्यद देव तरु ॥ नानु संबन हो के मलवा मन तरसे, तस गुण सुणियें हो के श्रवण अमिय वरसे ॥ ॥ अांखडी दीधी हो के जो मुफ होय मनने, पांखडी दीधी हो के
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(१०६) अथवा जो तनने ॥ मनह मनोरथ हो के तो सवि तु रत फले,तुज मुख देखी हो के हरखने हेज मिले ॥३॥ प्राडा मुंगर हो के दरिया नदीय घणी, शकति न तेहवी हो के आईं तुऊ जणी॥ तुझ पाय सेवा हो के सुरवर कोडि करे, जो एक यावे हो के तो मुफ पुःख हरे ॥४॥अति घणुं राति हो के अगनि मजीठ स हे, घणयुं हणियें हो के देश वियोग लहे ॥ पण गिरु आयु हो के राग ते उरित हरे, वाचक जस कहे हो के धरीयें चिन खरे ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीवजंधर जिन स्तवनं ॥ ॥ देशी बिंदलीनी ॥ शंख संबन वज्रधर स्वामी, माता सरसती सुत शिवगामी हो, नावें नवि वंदो ॥ नरनाथ पदमरथ जायो, विजयावती चित्त सुहायो हो ॥ ना० ॥ १ ॥ खंम धातकी पछिम नागें, प्रनु धरम धुरंधर जागे हो ॥ ना० ॥ वह विजयमां नय री सुसीमा, तिहां थापे धर्मनी सीमा हो ॥ना० ॥ ॥ २ ॥ प्रनु मन अमें वसवू जेह, स्वपने पण फुलन तेह हो ॥ ना० ॥ पण अम मन जो प्रनु वसशे, तो धर्मनी वेलि ननसशे हो ॥ना०॥ ३ ॥ स्वपने प्रमुखें निरखंतां, अमें पामुं सुख हरखंता हो ॥ना ॥ जेह स्वप्न रहित कह्या देवा, तेहथी अमें अधिक कहेवा हो ॥ ना० ॥४॥ मणि माणिक कनकनी कोडी, राणिम इधि रमणी जोडी हो ॥ना॥प्रनु दर्शनना सुख आगे, कहोंयधिकेलं कोण मागे हो॥ना॥५॥
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(१०७) ॥ प्रनु दूरथकी पण नेट्या, तेणे प्रेमें फुःख सवि मेट्यां हो ॥ ना० ॥ गुरु श्रीनय विजय सुशिष्य, प्रनुध्याने रमे निस दीश हो ॥ जा॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री चंशनन जिन स्तवनं ॥ ॥ माहारी सहीरे समाणी ॥ ए देशी॥ ॥ नलिनावती विजयें जगकारी,चंशनन नपकारी रे॥ मुगो वीनती मोरी॥पहिस अर, धातकी खंमें, नयरी अयोध्या मंमे रे ॥ सु०॥ १ ॥ राणी लीलाव ती चित्त मुहायो, पदमावतीनो जायो रे ॥सु०॥ नृप वाल्मिककुलें तुं दीवो, वृषन लंडन चिरंजीवो रे ॥ सु ॥ २ ॥ केवलझान अनंत खजानो, नहिं तुऊ जगमांहे बानो रे ॥ सु०॥ तेहनो लव देतांगुं नासे. मनमांहि कांश विमासे रे ॥ सु०॥ ३ ॥ रयण एक दिये रयणे चरियो, जो गाजतो दरीयो रे ॥ सु० ॥ तो तेहने का हाणी न आवे, लोक ते संपत्ति पावे रे ॥ सु॥ ४ ॥ अलि माचे परिमल लव पामी, पंक जवनें नहिं खामी रे ॥ सु० ॥ अंब खुंव कोडी नवि बीजे, एके पिक सुख दीजे रे ॥ सु० ॥ ५ ॥ चं किरण विस्तारे बोळ, नवि होय अमियमा अोळ रे॥ सु० ॥ आशानर करे बहुत निहोरा, ते होये सुखि त चकोरा रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ तेम जो गुगलव दियो तुमें हेजें, तो अमें दीपं तेजें रे ॥ सु० ॥ वाचक जस कहे वंबित देशो, धर्मनेह निर्वहेशो रे ॥सु॥७॥
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(१०८) चंबाहुजिन स्तवनं ॥
॥ अथ ॥ मन मोहना लाल ॥ ए देशी ॥ देवानंदन न रिंदनो रे ॥ जन रंजना लाल ॥ नंदन चंदन वा रे ॥ डुख जंजना लाल ॥ राणी सुगंधा वा नहो रे ॥ ज० ॥ कमल लंबन सुख खाए रे ॥ 5० ॥ १ ॥ पुरकर दीन पुरकला व रे ॥ ज० ॥ विजय विजय जयकारी रे ॥ 50 || चंड्बादु पुंमरी गिली रे ॥ ज० ॥ नगरीयें करे बिहा ररे ॥ 5 ॥ २ ॥ तस गुणगण गंगाज रे ॥ ज० ॥ मुक मन पावन कीध रे 5० ॥ फरि ने मेल किम ! 50 हुवे रे ॥ ज० ॥ प्रकरण नियम प्रसिद्ध रे || 50 ॥ ३ ॥ अंतरंग गुण गोठडी रे ॥ ज० ॥ निश्वय समकित तेह रे ॥ ० ॥ विरला कोइक जायो रे ॥ ज० ॥ तेतां ग म बेह रे || 5 || ४ || नागर जननी चातुरी रे ! ॥ ज० ॥ पामर जाणे केम रे ॥ ० ॥ तिम कुण जागे सांशुं रे ॥ ज० ॥ श्रम निश्चय नय प्रेम रे ॥ ० ॥ ५ ॥ स्वाद सुधानो जागतो रे ॥ ज० ॥ जाजित होय एक दिन्न रे || 5 || पण अवसरें जो जे लहे रे ॥ ज० ॥ ते दिन माने धन्न रे ॥ ६० ॥ ६ ॥ श्रीनय विजय विबुध तो रे ॥ ज० ॥ सेवक कहे सुष्णो देव रे ॥ 5० ॥ चंबा मुऊ दीजियें रे ॥ ज० ॥ निज पय पंकज सेव रे ॥ मुख० ॥ ७ ॥
॥ अथ श्री नुजंगजिन स्तवनं ॥
॥ महाविदेह क्षेत्र सोहामणुं ॥ ए देशी ॥ भुजं गदेव नावें नजो, राय महाबलनंद || लाल रे ॥ म
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(१०९)
हिमा कुखें हंसलो, कमल लंडन सुखकंद ॥ लाल रें ॥ ० ॥ १ ॥ वप्र विजय विजया पुरी, करे विहार नहा ह || लाल रे ॥ पूरव अरधें पुरकरें, गंधसेनानो नाह ॥ लाल रे ॥ ० ॥ २ ॥ कागल लिखवो कारमो, यावे जो दुर्जन हाथ || लाल रे ॥ श्रण मलवुं रं तरें, चित्त फि तुम साथ ॥ लाल रे ॥ जु० ॥ ३ ॥ किसी इसारत कीजियें, तुमें जाणो बो जग जाव ला ल रे || साहिब जाए जानें, साहामुं करे प्रस्ताव ॥ लाल रे ॥ ० ॥ ४ ॥ खिजमतमां खामी नहिं, मेल न मनमां कोय ॥ लाल रे ॥ करुणा पूरण लोयणें, साहामुं कांति न जोय ॥ लाल रे ॥ ॥ ५ ॥ संगो मोहोटा तणो, कुंजर ग्रहेवो कान ॥ लाल रे ॥ वाचकज स कहे वीनति जति वशें मुऊ मान ॥ लाल रे ॥ जु० श्री ईश्वर जिनस्तवनं ॥
॥
॥ किसके चेले किसके पूत || ए देशी ॥ नृप ग जसेन जशोदा मात, नंदन ईश्वर गुण अवदात ॥ स्वामी सेवयें ॥ पुरकरवर पूर्वारिध कब, विजय सु सीमा नयरी अब ॥ स्वा० ॥ १ ॥ शशि लंबन प्रभु करे रे विहार, राणी नावतीनो नरतार ॥ स्वा० ॥ जे पामे प्रजुनो दीदार, धन धन ते नरनो अवतार ॥ स्वा० ॥ २ ॥ धन ते तन जिन नमियें पाय, धन ते मन जे प्रभु गुण ध्याय ॥ स्वा० ॥ धन जे जिहां प्रजुना गुण गाय, धन ते वेला जब वंदन थाय ॥ स्वा० ॥ ३ ॥ ण मिलवे उत्कंठा जोर, मिलवे विरह तपो
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जय सोर ॥ स्वा० ॥ अंतरंग मिलवेजी उजाय, शोक विरह जिम दूर पलाय ॥ स्वा० ॥ ४ ॥ तुं माता तुं बांधव मुज, तुंही पिता तुफरां मुफ गुफ ॥ स्वा० ॥ श्रीनय विजय विबुधनो शिष्य, वाचक जस कहे पूरो जगीश ॥ स्वा० ॥ ५ ॥
॥ अथ श्रीनमि प्रनुजिन स्तवनं ॥ ॥ थारे माथे पंचरंगी पाग, सोनारो बो
गलो मारु जी ॥ ए देशी॥ ॥ पुरकरवर पूरव अरथ दिवाजे राजे रे ॥ साहि बजी॥ नलिनावती विजयें नयरी आयो या बाजे रे॥ सा ॥ प्रनु वीर नरेंसर वंश दिणेसर ध्याएं रे ॥ सा॥ सेना सुत साचो गुणगुं जाचो गाइएं रे ॥ सा ॥ १ ॥ मोहनी मन वन दर्शन उर्जन जास रे ॥ सा० ॥ रवि चरण नपासी किरण विला सी खास रे ॥सा ॥ नविजनमन रंजन नव नंज न जगवंत रे ॥ सा० ॥ नेमिप्रनु वंदं पाप निकंदूं तंत रे ॥ सा० ॥ २ ॥ घर सुरतरु फलियो सुरमणि मलियो हाथ रे ॥ सा ॥ करि करुणा पूरी अघ चूरी जग नाथ रे ॥ सा ॥ अमिएं घन वृता वली तूता सवि देव रे ॥ सा० ॥ शिवगामी पामी जो में तुफ पय सेव रे ॥ सा० ॥३॥ गंगाजलें नाह्यो ढुं नमाह्यो आज रे ॥सा० ॥ गुरु संगति सारी मुफ अवधारी लाज रे ॥ सा ॥ मुह माग्या जाग्या पूर्व पुण्य अंकूर रे ॥ सा० ॥ मन लीनो
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( १११ )
कीनो तुक गुण प्रेम पहूर रे ॥ सा० ॥ ४ ॥ तुं दोलत दाता तुंहिज त्राता महाराज रे ॥ सा० ॥ न व सायर तारो सारो वंबित काज रे ॥ सा० ॥ ख चरण पूरण कीजें सयल जगीश रे ॥ सा० ॥ अरदास प्रकाशे श्रीनयविजय सुशिष्य रे ॥ सा० ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्री वीरसेनजिन स्तवनं ॥
॥ ऋपननो वंश रयणायरु ॥ ए देशी ॥ पश्चिम रथ पुरकर वरें, विजय पुरकल वइ दीपें रे ॥ नयरी पुंमरीगिणी विहरता, प्रभु तेजें रवि जीपे रे ॥ श्री वीरसेन सुरु ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ नानुसेन नू मिपालनो, अंगज गजगति वंदो रे || राजसेना मन वालहो, वृपन लंबन जिन चंदो रे ॥ श्री० ॥ २ ॥ म शिवि जे लिखुं तु गुणें, अक्षर प्रेमना चित्तें रे ॥ धोइएं तिम तिम ऊघडे, जगति जलें तेह नित्त रे ॥ श्री० ॥ -३ ॥ चक्रवर्ति मनें सुख धरे, कूपन कूटें ल खि नामो रे || अधिकारें तुम गुण तेहथी, प्रगट हु या गम गमो रे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ निज गुण गुंथित तें करी, कीर्ति मोतिनी माला रे ॥ ते मुक्त कंठें आरोप तां, दीसे जाक ऊमाला रे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ प्रगट हुए जिम जगतमां, शोना सेवक केरी रे ॥ वाचक जस कहे तिम करो, साहिब प्रीति घोरी रे ॥ श्री ॥ ६ ॥ इति ॥ अथ श्री महान जिन स्तवनं ॥
॥ लाबलदे मात मल्हार ॥ ए देशी ॥ देवरायनो नंद, माता उमा मनचंद | आज हो राणी रे सूरी
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(११२)
कंताकत सुहामणो जी ॥ १ ॥ पुरकर पश्चिम, विजय ते वप्र सुब-६ ॥ याज हो नगरी रे विजयायें विहरे गुणनिलो जी ॥ २ ॥ माहान जिनराय, गय लंबन जस पाय | आज हो सोहे रे मोहे मन लट काले लोयणें जी ॥ ३ ॥ तेनुं मुफ प्रति प्रेम, पर सुर नमवा नेम || आज हो रंजे रे डख जे प्रभु मुऊ ते गुणें जी ॥ ४ ॥ धर्मजोबन नवरंग, समकित पाम्यो चंग ॥ श्राज हो लाखिणी लाडी हवे मुक्तिने मेलशे जी ॥ ५ ॥ चरण धर्म अवदात. ते कन्यानो तात ॥ श्राज हो माहारा रे प्रभुजीने ते बे वश सदा जी ॥६॥ श्रीनय विजय सुशिप, जस कहे सुशो जगदी श। श्राज हो ताहरो रे हुं सेवक देव करो दयाजी ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्री देवजसाजिन स्तवनं ॥
॥ कुमरी रोवे कंद करे ॥ ए देशी ॥ देवयशा जिन राजीयो ॥ मनमोहन मेरे || पुरकर दीप मकार ॥०॥ परिध सोहामणो ॥ म० ॥ वब विजय संचार ॥ म० ॥ १ ॥ नय । सुसीमा विचरता ॥ म० ॥ सर्वभूति कुलचंद ॥ म० ॥ शशि लंबन पदमा वती ॥ ० ॥ वल्लन गंगानंद ॥ म० ॥ २ ॥ कटि लीलायें केशरी ॥ म० ॥ ते हास्यो गयो रान ॥ म०॥ हास्यो हिमकर तु मुखें ॥ म० ॥ हजिय वजे नहिं वान ॥ ० ॥ ३ ॥ तुऊ लोचनथी लाजिया ॥ म० ॥ कमल गयां जल मांहि ॥ म० ॥ श्रहिपति पातालें गयो । म० ॥ जींत्यो ललित तुऊ बांहि ॥ म० ॥ ४ ॥
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( ११३ )
जीत्यो दिनकर तेजशुं ॥ म० ॥ फिरतो रहे ते याकाश ॥ म० ॥ निंद न यावे तेहने ॥ म० ॥ जेह मन खेद अन्यास || म० ॥ ५ ॥ इम जीत्यो तुमें जगतनो ॥ म० ॥ हरि लियो चित्त रतन्न ॥ म० ॥ बंधु क हावो जगतना ॥ म० ॥ ते किम होय उपमन्न ॥ ॥ म० ॥ ६ ॥ गति तुम्हें जाणो तुम तणी ॥ म० ॥ डुं सेतुं तुम्ह पाय ॥ म० ॥ शरण करे बलिया तं ॥ ० ॥ जस कहे तस सुख थाय ॥ म० ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्री अजित वीर्य जिन स्तवनं ॥ ॥ ए बिंकी किहां राखी ॥ ए देशी ॥
॥ राग धन्याश्री ॥ दीव पुरकर वर परिधें, विज य नलिनावर सोहे ॥ नयरि अयोध्या मंरुन स्वस्तिक, लंबन जिन जगमोहे रे ॥ जविया अजितवीरिय जिन वंदो ॥ एकणी ॥ १ ॥ राजपाल कुल मुकुट नगी नो, मात कनीनिका जायो ॥ रत्नमाला राणीनो वत्र न, प्रत्यक्ष सुरमणि पायो रे ॥ ज० ॥ २ ॥ इरिजनस्तुति करिजें हुई दूषण, हुए तस शोषण ईहा ॥ एहवा सा बिना गुण गाइ, पवित्र करुं हुं जीहा रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ प्रभु गुण गए गंगाजल नाही, कीयो करम मल दूर ॥ स्नातक पद जिन नगति लहियें, चिदानंद जर पूर रें ॥ ज० ॥ ४ ॥ जे संसर्ग अनेदारोपें, समापति मुनि माने ॥ ते जिनवर गुण थुणतां लहियें, ज्ञान ध्यान लयताने रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ स्पर्श ज्ञान इणि परें अनुन वतां, देखीजें निज रूप ॥ सकल जोग जीवन ते पामी,
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( ११४ )
निस्तरीयें नवकूप रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ शरण त्राण या लंबन जिनजी, कोई नहीं तस तोले || श्री नयविज विबुध पय सेवक, वाचक जस इम बोलें रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्रीमद्यशोविजयजी उपाध्याय ॥ ॥ कृत चोवीशजिन स्तुति प्रारंभः ॥
॥ तत्र ॥
॥ प्रथम श्री रूपनदेव जिन स्तवनं ॥
॥ महा विदेह क्षेत्र सोहामणो ॥ ए देशी ॥ जगजीव न जगवालहो, मरुदेवीनो नंद लाल रे ॥ मुख दीठे सुख उपजे, दर्शन अतिहि श्रानंद लाल रे ॥ जग० ॥ १ ॥ खडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशि सम नाल लाल रे ॥ वदन ते शारद चंदलो, वाणी प्रतिहि रसाल लाल रे ॥ जग० ॥ २ ॥ लक्षण अंगें विराजता, डहिय सहस उदार लाल रे ॥ रेखा कर चरणादिकें, अभ्यंतर नहिं पार लाल रे ॥ जग० ॥ ३ ॥ इंड् चं रवि गिरि तला, गुण लइ घडियुं अंग ला लरे ॥ नाग्य किहां की आवियुं त्र्यचरिज एह उत्तं ग लाल रे ॥ जग० ॥ ४ ॥ गुण सघला अंगें करया, दूर कथा सवि दोष लाल रे ॥ वाचक यशविजयें थुम्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे ॥ जग० ॥ ५ ॥
॥ अथ श्री अजितजिन स्तवनं ॥
|| निंड्डी वेरण होइ र५ ॥ ए देशी ॥ अजित जि दशं प्रीतडी, मुंज न गमे हो बीजानो संग के ॥ मा
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( ११५) लती फूलें मोहीयो, किम बेसे दो बावल तरु बंग के ॥अजित ॥१॥ गंगा जलमां जे रम्या, किम बिन्न र हो रति पामे मराल के॥ सरोवर जलधर जल विना, नवि चाहे हो जग चातक बाल के ॥अ॥२॥ कोकिल कल कूजित करे, पामी मंजरि हो पंजरी सहकार के ॥ उबां तरुवर नवि गमे, गिरुघायुं हो होये गुणनो प्यार के ॥ अ० ॥३॥ कमलिनी दिन कर कर ग्रहे, वली कुमुदिनी हो धरे चंदरांप्रीत के॥गौ री गिरीश गिरिधर विना, नवि चाहे हो कमला निज चित्त के॥ ॥॥तिम प्रनुगुं मुफ मन रम्यु,बीजा शुं हो नवि आवे दाय के ॥ श्रीनय विजय विबुध त गो, वाचक जस हो नित नित गुण गाय के ॥॥॥
॥अथ श्री संनव जिन स्तवनं ॥ ॥ मन मधुकर मोही रह्यो ॥ ए देशी ॥ संभव जिन वर वीनती, अवधारो गुण ग्याता रे ॥ खामी नहीं मुफ खिजमतें, कदीय होशो फल दाता रे ॥ संजव०॥१॥ कर जोडी ननो रदं, रात दिवस तुम ध्यानो रे ॥ जो मनमां आणो नहीं, तो गुं कहिये बानो रे ॥ सं० ॥ २ ॥ खोट खजाने को नहीं, दी जें वंडित दानो रे ॥ करुणा नजर प्रनुजी तणी,वा धे सेवक वानो रे ॥ सं० ॥३॥ काल लबध नहिं मति गणो, नाव सबध तुम हाथें रे ॥ लडथडतुं प ए गय बचुं, गाजे गयवर साथें रे ॥ सं० ॥४॥ दे
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(११६) शो तो तुमही नलु, जीजा तो नवि जाचूं रे ॥ वाचक यश कहे सांगं, फलशे ए मुफ साचूं रे ॥सं० ॥५॥
॥अथ श्रीअनिनंदन जिन स्तवनं ॥ ॥सुणजो हो प्रनु० ॥ ए देशी ॥ दीठी हो प्रनु दीठी जग गुरु तुज ॥रति हो प्रनु, मूरति मोहन वेलडीजी॥ मीठी हो प्रनु, मीठी ताहरी वाणी॥लागे हो प्रनु, लागे जेसी सेलडी जी॥१॥ जाणुं हो प्रनु, जाणुं जन्म कयब ॥ जो हो प्रनु, जो तुम साथें मिल्योजी ॥ सुरमणि हो प्रनु, सुरमणि पाम्यो हा॥
आंगणे हो प्रनु, आंगणे मुफ सुरतरु फल्यो जी॥२॥ जाग्यां हो प्रनु, जाग्यां पुण्य अंकूर ॥ माग्या हो प्रनु, मुह माग्या पासा ढव्याजी॥ वूठा हो प्रनु, वूता अमि रस मेह ॥ नाना हो प्रनु, नाठा अगुन शुज दिन व ल्याजी ॥३॥ नूरख्यां हो प्रनु, नृख्यां मल्यां घृत पूर ॥ तरश्यां हो प्रनु, तरश्यां दिव्य उदक-मिल्यां जी॥ थाक्यां हो प्रनु, थाक्यां मिव्या सुख पाल ॥ चाहतां हो प्रनु, चाहतां सजन हेजें हल्या जी॥ ४ ॥ दीवो हो प्रनु, दीवो निशाविन गेह॥साथी हो प्रनु, साथी थलें जलनौका मलि जी ॥ कति जुगें दो प्रजु, कलि जुगें उनहो मुफ ॥ दरिसन हो प्रनु, दरिसन सह्यु आशा फली जी॥ ५ ॥ वाचक हो प्रनु, वाचक यश तुम दास ॥ वीनवे हो प्रनु, वीनवे अनिनंदन सुणो जी ॥ कहिये हो प्रचु, कहियें म देशो लेह ॥ देजो हो प्रनु, देजो सुख दरिसण तणो जी ॥ ६॥ इति ॥
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(११७)
॥ अथ श्रीसुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ झांकरीया मुनिवरनी देशी ॥ सुमति नाथ गुणा मिलीजी, वाधे मुफ मन प्रीति : तेल बिंड जिम वि स्तरे जी, जलमांहे नलि री ॥ सोजागी जिनगुं लागो अविहलरंग ॥१॥ जनमु जे प्रीतडीजी, बानी ते न रखाय ॥ परिमल कस्तूरी तणो जी, महि माहें महकाय ॥ सोनागी ॥५॥ आंगलियें नवि मेरु ढकायें, बावडियें रवि तेज ॥ अंजलिमां जिम गंग न माहे, मुफ मन तिम प्रनु हेज ॥ सो ॥३॥दु लिपे नहिं अधर अरुण, जिम खातां पानसुरंग ॥ पीवत जरजर प्रनु गुणप्याला, तिम मुफ प्रेम अनंग ॥ सो ॥ ४ ॥ ढांकी इदु पलालगुं जी, न रहे लहि विस्तार ॥ वाचक यश कहे प्रनु तणोजी, तिम मुक प्रेम प्रकार ॥ सो० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पद्मप्रन जिन स्तवनं ॥ ॥ सहज सलूणा हो साधुजी ॥ ए देशी ॥ पद्म प्रन प्रनु जिन जअलगा रह्या,जिहांथी नावे खोजी ॥कागलने मशि तिहां नवि संपजे,न चले वाट विशेषो जी॥ सुगुण सनेहा रे कदिय न वीसरे ॥ ए यांक गी॥१॥ इहांथी तिहां जई को आवे नही, जेह कहे संदेशो जी ॥ जेहनुं मिलतुं रे दोहिर्बु तेहगुं, ने ह ते आप किलेशो जी ॥सुगुण॥॥ वीतरागगुं रे राग ते एकपखो, कोजें कवण प्रकारो जी॥ घोडो दोडे रे साहेब वाजमां, मन नारों असवारो जी॥
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(११७) सु० ॥३॥ साची नक्ति रे जावन रस कह्यो, रस होय तिहां दोय रीजेजी॥होडा हो. रे बिहुँ रसरीजथी, मनना मनोरथ सीफे जी ॥सु॥४॥ पण गुणवंता रे गोतें गाजियें, मोहोटा ते विश्रामजी ॥ वाचक यर कहे एहज आशरे, सुख नहुँ तामो गमजी ॥सु॥५॥
॥ अथ श्रीसुपास जिन स्तवनं ॥ ॥ लालदे मात मलार ॥ए देशी ॥ श्री सुपा स जिन राज, तुं त्रिनुवन शिर ताज ॥ आज हो बा जेरे ठकुराइ, प्रनु तुऊ पद तणीजी ॥१॥ दिव्य ध्व नि सुर कूल, चामर बत्र समूल ॥ आज हो राजे रे नामंगल, गाजे उंनिजी ॥ ॥अतिशय सहजना चार, कर्म खप्याथी अग्यार ॥ आज हो कीधा रे । गणीशे, सुर गण जासुरें जी ॥ ३ ॥ वाणी गुण पां त्रीश, प्रातिहारज जगदीश ॥ आज हो राजे रे दी वाजे, बाजे आग्गुंजी॥ ४ ॥ सिंहासन अशोक, वे नामांहें लोक ॥ आज हो स्वामी रे शिवगामीरे, वा चक यश थुण्योजी ॥ ५॥ इति ॥
॥ अथ श्री चंप्रन जिन स्तवनं ॥ ॥ धणरा ढोला ॥ए देशी ॥ चंप्रन जिन साहेबा रे, तुमें बो चतुर सुजाण ॥ मनना मान्या ॥ सेवा जाणो दासनी रे,देशो पद निरवाण॥मनना मान्या। श्रावो आवोरे चतुर सुख नोगी, कीजें वात एकांत अनोगी, गुण गोठे प्रगटे प्रेम ॥ मनना मान्या ॥१॥ ए आंकणी ॥j अधिकुं पण कहे रे, आसंगायत
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( ११ )
जेह ॥ ० ॥ श्रापे फल जेण कहे रे, गिरुन सा हेब तेह ॥ ० ॥ २ ॥ दीन कह्या विण दानथी रे, दातानी वाघे माम ॥ म० ॥ जल दीये चातक खी जवी रे मेघ हुआ तिणें श्याम ॥ ॥ ३ ॥ पीउ पीच करी तुमने जपुं रे, ढुं चातक तुमें मेह ॥ म० ॥ एक लहेरमा दुःख हरो रे, वाधे बमणो नेह ॥ म०॥॥४॥ मोडुं वलुं प्राप रे, तो शी ढील कराय ॥ म०॥ वाच क यश कहे जग धणी रे, तुम तूते सुख थाय ॥५॥ ॥ अथ श्री सुविधि जिन स्तवनं ॥
॥ सुण मेरी सजनी रजनी न जावे रे ॥ए देश || लघु पए हुं तुम मन नवि मावुं रे, जगगुरु तुमने दिलमां लावुं रे ॥ कुणनें ए दीजें शाबासी रे, कहो श्री सुविधि जिव विमासी रे ॥ १ ॥ ल० ॥ मुङ मन मांहें क्ति बे जाऊी रे, तेह दरीनो तुं बे माजी रे | योगी पण जे वात न जाणे रे, तेह अ चरिज कुलथी दुई टाणे रे ॥ २ ॥ ज० ॥ अथवा थिरमांहि थिरन मावे रे, मोहोटो गज दर्पणमां श्रावे रे || जेहने ते जे बुद्धि प्रकाशी रे, तेहने दीजें ए शा बासी रे ॥ ३ ॥ ० ॥ ऊर्ध्व मूल तरुबर अर्ध शाखा रे, बंद पुराणे एहवी ने नाखा रे ॥ चरिज वाले चरिज कीधुं रे, न सेवक कारज सीधुं रे ॥ ४ ॥ ल० ॥ लाड करी जे बालक बोले रे, मातपिता मन अमियने तोले रे || श्री नयविजय विबुधनो शिशो रे, यश कहे इम जाणो जगदीशो रे ॥ ५ ॥ ज० ॥
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(१२०) ॥ अथ श्री शीतल जिन स्तवनं ॥ ॥ अति अलिकें कदि आवेगो ॥ ए देशी ॥ श्री शीतल जिन नेटियें, करी चोखू नक् चित्त हो । ते हथी कहो बानुं किरयु, जेहने सोंग्य तन मन वित्त हो ॥ श्री० ॥ १ ॥ दायक नामें ले घणा, पण तुं सायर ते कूप हो ॥ ते बदु खजुवा तग तगे, तु दिन कर तेजसरूप हो ॥श्री॥॥ मोहोटो जाणी आ दखो, दालिश् जांजो जगतात हो ॥ तुं करपावंत शिरोमणि, दुं करुणा पात्र विख्यात हो ॥ श्री ।। ॥३॥ अंतरजामी सवि जहो, अम मननी जे जे वात हो॥ मा आगल मोसालना,श्या वरगववा अ वदात हो ॥ श्री० ॥ ४ ॥ जाणो तो ताणो किश्यु, सेवा फल दीजें देव हो ॥ वाचक यश कहे ढीलनी, ए न गमे मुफ मन टेव हो श्री० ॥ ५॥ इति ॥
॥ अथ श्री श्रेयांस जिन स्तवतं ॥ ॥ कर्म न छूटे रे प्रणिया ।। ए देशी ॥ तुमें बद्ध मित्री रे साहेबा, मारे तो मन एक ॥ तुम विण बीजो रे नवि गमे,ए मुफ मोहोटी रे टेक हो॥ श्री श्रेयांस कृपा करो॥१॥ मन राखो रे तुमें सवि तणां, पण किहां एक मलि जाउललचावो लख लोकने, शाथी सहेज न था॥ श्री०॥ ॥ राग नरें जन मन रहो, पण तिढुं काल वैराग ॥ चित्त तुमारो रे समुनो, कोय न पामे ताग ॥ श्री॥३॥ एवा झुं चित्त मेलव्यु, केलव्यु पहेलां न कां॥सेवक निपट अब्रज ने, निर्व
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(११) हेशो तुमें सा॥श्री॥४॥ नीरागीशुं रे किम मले, पण मलवानो एकंत ॥ वाचक यश कहे मुज मिल्यो, नतें कामण तंत ॥ श्री० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्री वासुपूज्य जिन स्तवनं ॥ ॥साहेबा मोतीडो हमारो ॥ ए देशी ।। स्वामी तुमें कां कामण कीg, चित्तहुं अमारुं चोरी लीधं ॥ साहेबा वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य ॥ ए यांकणी॥ अमें पण तुमगुंकामण करगुं, नक्ति ग्रही मन घरमा धरघु ॥ साहेबा० ॥ ॥ मन घरमां धरीया घरशोना, देखत नित्य रहेशो थिरथोना ॥ मन वैकुंव अकुंठित नक्, योगी नांखे अनुनव युक्तं ॥ सा० ॥२॥ क्लेशे वासित मन संसार, क्वेश रहित मन ते नवपार ॥ जो विशुद मनघर तुमें आव्या, प्रनु तो अमें नव निधि दिपाव्या ॥ सा ॥३॥ सात राज अलगा जइ बेठा, पण जगतें अम म नमा पेठा ॥ अलगाने वलगा जे रहेg, ते नाणा खड खड फुःख सहेवू ॥ सा० ॥ ४ ॥ ध्या यक ध्येय ध्यान गुण एकें, नेद वेद करा हवे टेकें॥ खीर नीर परें तुमगुं मला, वाचक यश कहे हेजें हलगुं ॥ सा० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री विमल जिन स्तवनं ।। ॥ नमो रे नमो श्री शेजा गिरिवर ॥ ए देशी॥
॥ सेवो नविया विमल जिरोसर, उनहा सऊन संगाजी ॥ एवा प्रजुनु दरिसन लेवं, ते मालसमांहे
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( १२२ )
गंगाजी || सेवो० ॥ १ ॥ अवसर पामी खालस क रशे, ते मूरखमां पेहेलोजी ॥ नूख्याने जेम घेवर देतां, हाथ न मांगे घेलोजी ॥ सेवो० ॥ २ ॥ नव अनंत मां दर्शन दीठं, प्रभु एहवा देखाडेजी ॥ विकट ग्रंथ जे पोलि पोलियो, कर्म विवर उघाडेजी ॥ सेवो० ॥ ३ ॥ तत्त्व प्रीति करि पाणी पाए, विमला लोके यांजी जी || लोयण गुरु परमान्न दिए तव, नर्म ना खे सवि जांजी जी ॥ सेवो० ॥ ४ ॥ जर्म जागो तव प्रभुशुं प्रेमें, वात करुं मन खोलीजी ॥ सरल तणे जे हरडे यावे, तेह जगावे बोलो जी ॥ सेवो ॥ ५ ॥ श्री नय विजय विबुध पय सेवक, वाचक. यश कहे साचुंजी | कोडि कपट जो कोई दिखावे, तो प्रभु वि नहिं राचुंजी ॥ सेवो० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री अनंत जिन स्तवनं ॥
॥ साहेजडियां ॥ ए देशी ॥ श्री अनंत जिनशुं करो || साहेलडियां ॥ चोल मजीवनो रंग रे ॥ गुण वेलडियां ॥ साचो रंग ते धर्मनो । साहेलडियां ॥ बीजो रंग पतंगरे || गुण वेलडियां ॥ १ ॥ धर्म रंग जीरण नही ॥ सा० ॥ देह ते जीरण थाय रे ॥ गु० ॥ सोनुं ते विसे नहिं ॥ सा० ॥ घाट घडामण जाय रें ॥ गुo॥ २ ॥ त्रांबुं जे रस वेधिनं ॥ सा० ॥ ते होय जाचुं हेम रे ॥ गु० ॥ फरित्रांबूं ते नवि हुए ॥ सा० ॥ एहेवो जग गुरु प्रेम रे ॥ गु० ॥ ३ ॥ उत्तम गुण अनुरागयी || सां० ॥ लहियें उत्तम ठाम रे ॥ गु० ॥
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( १२३ )
उत्तम निज महिमा वधे ॥ सा० ॥ दीपे उत्तम धाम रे ॥ गु० ॥ ४ ॥ नदक बिंड सायर जल्यो || सा० ॥ जिम होय अखय अनंग रे ॥ गु० ॥ वाचक यश कहे प्रभु गुणें ॥ सा० ॥ तिम मुफ प्रेम प्रसंग रे ॥ गु० ॥ ५ ॥
॥ अथ श्री धर्मनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ बेडले चारघणो वे राज, वांता केम करो बो ॥ देश ॥ ॥ ॥ थाशुं प्रेम बन्यो बे राज, निरवदेशो तो लेखे ॥ रागी थे बोनीरागी, प्रण जुडते होये हांसी ॥ एक पखो जे नेह निवहिशो, तेहमांशी साबाशी ॥यां० ॥ १ ॥ न्रीरागी सेवे कांइ होवे, इम मनमां नवि या शुं ॥ फले अचेतन पण जिम सुरमणि, तिम तुम नक्ति प्रमाणुं ॥ था० ॥ २ ॥ चंदन शीतलता उपजावे, अनि ते शीत मिटावें ॥ सेवकनां तिम डख गमावे, प्रभु गुण प्रेम स्वनावें ॥ था० ॥ ३ ॥ व्यसन उदय जे जलधि अणु हरे, शशीनुं तेज संबंधें ॥ अणुसंबंधें कुमुद अणु हरे, शुद्ध स्वनाव प्रबंधे ॥ था० ॥ ४ ॥ देव अनेरा तुमची बोटा, थें जगमां अधिकेरा ॥ यश कहे धर्म जिनेश्वर यांशुं, दिल मान्या है मेरा ॥ था॥५॥ ॥ अथ श्री शांतिनाथ जिन स्तवनं ॥
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॥ रह्यो रे आवास ज्वार ॥ ए देशी ॥ धन दिन वेला धन घडि तेह, अचिरारी नंदन जिन जदि ने शुंजी || लहि रे सुख देखी मुखचंद, विरह व्य थानां दुःख सवि मेनुं जी ॥ १ ॥ जांएयो रे जेणें तुऊ
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(१२४) गुण लेश, बीजा रे रस तेहने मन नवि गमे जी॥ चाख्यो रे जेणें अमिलवलेश, बाकश बुकश तस न रुचे किमे जी ॥ २ ॥ तुझ समकित रस स्वादनो जाण, पाप कुनक्तं बदु दिन सेवीयु जी ॥ सेवे जो कर्मने जोगें तोहि,वां ते समकित अमृत धुरे लिख्यु जी॥३॥ताहरूं ध्यान ते समकित रूप, तेहज झा न ने चारित्र तेहज जी॥ तेहथी रे जाए सघलां पाप, ध्याता रे ध्येय स्वरूप होय प जी ॥ ॥ दे खी रे अदनुत ताहरूं रूप, अचरिज नविक अरूपी पद वरे जी ॥ ताह मत तुं जाणे देव, स्मरण न जन ते वाचक यश करे जी॥ ५॥ ॥इति ।
॥ अथ श्री कुंथुनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ साहेला हे ॥ ए देशी ॥ साहेलांहे ।। कुंथु जिने श्वर देव, रत्न दीपक अति दीपतो हो लाल ॥ सा ॥ मुज मन मंदिरमांहि, आवे जो अरिबल कीपतो हो लाल ॥१॥ सा ॥ मिटे तो मोह अंधार, अनु जव तेजें फल हले हो लाल ॥ सा ॥ धूम कषाय न रेख, चरण चित्रामण नवि चले हो लाल ॥२॥ ॥सा०॥ पात्र करे नहिं हे, सूर्य तेजें नवि लिपे हो लाल ॥ सा ॥ सर्व तेजनुं तेज, पहेलाथी वाधे प. हो लाल ॥ ३ ॥ सा ॥ जेह न मरुतने गम्य, चंच लता जे नवि लहे हो लाल ॥ सा ॥ जेह सदा डे रम्य, पृष्ठ गुणे नवि कुश रहे हो लाल ॥ ४ ॥सा॥ पुजत तेल न खेप, तेह न शुभ दशा दहे हो लाल ॥
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(१२५)
सा० ॥श्री नयविजय सुशिष्य, वाचक यश इणि परें कहे हो लाल ॥ ५ ॥ सा० ॥ इति ॥
॥अथ श्री अरनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ आसपरा जोगी ॥ ए देशी ॥ श्री अर जिन जवजलनो तारु, मुफ मन लागे वारु रे ॥ मन मो हन स्वामी ॥ बांह ग्रही ए नविजन तारे, आणे शिवपुर थारे रे ॥ मनः॥१॥ तप जप मोह महा तोफाने, नाव न चालें माने रे॥ मन०॥ पण नवि जय मुफ हाथो हाथें, तारे ते में साथे रे ॥ मन ॥ ॥ २ ॥ जगतने स्वर्ग स्वर्गथी अधिकुं, ज्ञानीने फल दे रे ॥ मन ॥ काया कष्ट विना फल लहियें, म नमा ध्यान धरे रे । मन॥३॥ जे उपाय बहु विधनी रचना, योग माया ते जाणो रे ॥ मन ॥ शुक्ष् इव्य गुण पर्याय ध्यानें, शिव दिये प्रनु सप राणो रे ॥ मन ॥४॥प्रनु पद वलग्या ते रह्या ताजा, अलगा अंग न साजा रे ॥ मन ॥ वाचक यश कहे अवर न ध्यावं, ए प्रजुना गुण गानं रे ॥ मन ॥ ५॥ इति ॥
॥ अथ श्रीमनिजिन स्तवनं ॥ ॥ नानि रायांके बाग ।। ए देशी ॥ तुज मुफ री जनी रीज,अटपट एह खरी री॥लटपट नावे काम, खटपट नांज परीरी॥१॥ मलिनाथ तुऊरीज, जन रीजें न हुए री॥ दोय रीजण नो उपाय,साहामुं कांश न जुए री॥२॥राराध्य लोक, सहुने समन श
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(१२६) रीरी ॥ एक उहवाए गाढ, एक जो बोले हसीरी॥ ॥ ३ ॥ लोक लोकोत्तर वात, रीजवे दाय जुरी ॥ तात चक्रधर पूज्य, चिंता एह दुरी ॥४॥रीजववो एक सांश, लोक ते वात करे री॥ श्री नय विजय सुशिष्य, एहिज चित्त धरे री ॥ ५ ॥ इति ।
॥अथ श्री मुनि सुव्रत जिन स्तवनं ॥ ॥ पांव पांचे वंदतां । ए देशी ॥ मुनि सुव्रत जिन वंदतां, अति नन्नसित तन मन थाय रे ॥ व दन अनोपम निरखतां, माहारां नव नवनां व जाय रे ॥१॥ माहारां नव नवनां उख जाय जग तगुरु जागतो ।। सुख कंद रे ॥ सुख कंद अमंद या पंद, परमगुरु जागतो ॥ सुः ॥ ए आंकणी॥ निशि दिन सूतां जागतां, हाडाथी न रहे दूर रे॥ जब नपगार संजारियें, तव उपजे आनंद पूर रे ॥ त० ॥ ज० ॥ सु० ॥२॥प्रनु उपकार गुणे जया, मन अ वगुण एक न समाय रे ॥ गुण गुण अनुबंधी दुथा, तेतो अक्ष्य नाव कहाय रे ॥ ते॥ ज०॥ सु॥३॥ अक्ष्य पद दीये प्रेम जे, प्रनुन ते अनुभव रूप रे॥ अदर स्वर गोचर नही, ए तो अकल अमात्य अरूप रे॥ए॥ज०॥सु०॥४॥ अदर थोडा गुण घणा, सऊनना ते न लिखाय रे ॥ वाचक यश कहे प्रेमथी, पण मनमांहे परखाय रे॥१०॥ ज० ॥ सु० ॥ ५ ॥
॥ अथ श्री नमिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥श्रीनमि जिननी सेवा करतां,अलिय विधन सविदूरे
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(१२) नासे जी॥ अष्ट महासिदि नव निधि लीला, आवे बदु महमूर पासें जी ॥ श्री० ॥ ॥ मयमत्ता अं गण गज गाजे, राजे तेजी तुरखार ते चंगा जी ॥ बेटा बेटी बंधव जोडी, लहियें बदु अधिकार रंगा जी ॥ श्री० ॥ ॥ वलन संगम रंग सहीजें, अण वाहला होय दूर सहेजें जी॥ वांडा तणो विलंबन न दूजो, कारज सीके नूरि सहेजें जी॥श्री० ॥३॥ चं किरण उज्ज्क्स यश उलसे, सूरज तुल्य प्रतापी दीपे जी॥ जे प्रनु नक्ति करे नित्य विनये, ते अरियण बहु प्र तापी जीपे जी ॥ श्री० ॥ ४॥ मंगल माला सही विशाला, बाला बटुले प्रेम रंगें जी॥ श्रीनय विजय विबुध पय सेवक,कहे लहियें सुख प्रेम अंगें जी॥५॥
॥ अथ श्री नेमिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ बाटला दिन हुँ जाणतो रे हां ॥ ए देशी ॥ तोरण यावी.रथ फेरि गया रेहां, पगुयां दे दोश ॥ मेरे वालमा ॥ नव जवनेह निवारियो रे हां, श्यो जो आव्या जोश ॥मे॥१॥ चंद कलंकी जेहथी रें हां, रामने सीता वियोग मे॥ तेह कुरंगने वयगडे रे हां, पति आवे कुण लोग ॥ मे॥॥ उतारी हुँ चित्तथी रे हां, मुक्ति धूतारी हेत ॥ मे० ॥ सि६ अ नंतें जोगवी रे हां, तेहा कवण संकेत ॥ मे ॥३॥ प्रीत करतां सोहिली रे हां, निरवहेतां जंजाल ॥मे॥ जेहवो व्याल खेलाववो रेहां,जेहवी अगननी जाल ॥मे॥४॥ जो विवाह अवसरे दिन रे हां, हाथ उ
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( १२८ )
पर नवि हाथ ॥ मे ॥ दीक्षा अवसर दीजियें रे हां, शिर उपर जगनः ॥ मे० ॥ ५ ॥ इम वलवलती राजुल गइ रे हां, नेम कने व्रत लीध ॥ मे० ॥ वाचक यश कहे प्रमियें रे हां ए दंपती दोय सि६ ॥ मे० ॥६॥
॥ अथ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवनं ॥
|| देखी कामनी दोइ ॥ ए देशी ॥ वामा नंदन जिनवर मुनिमांहें वडो रे, के मुनिमांहे वडो ॥ जिम सुरमांहि सोहे सुरपति परवडो रे के । सुर ॥ निम गिरमांहि सुराचल मृगमांहे केसरी रे ॥ मृग० ॥ जिम चंदन तरुमांहि सुनटमांहिं शूरपरि रे ॥ १ ॥ सु० ॥ नदीय मांहि जिम गंग अनंग सुरूपमां रे ॥ अनं० ॥ फूलमांहिं अरविंद नरत पति नूपमां रे || नर० ॥ ऐरावण गजमांहिं गरुड खगमां यथा रे ॥ गरुड० ॥ तेजवंतमांहि जाण वखाणमांहिं जिन कथा रे ॥ व० ॥ २ ॥ मंत्र मांहि नवकार रत्नमांहि सुरमणि रे ॥ २०॥ सागरमांहि स्वयं रमण शिरोमणि रे ॥ रम० ॥ शुक्ल ध्यान जिम ध्यानमां प्रति निर्मल पणे रे ॥ ति० ॥ श्रीनय विजय विबुध पय सेवक इम नऐ रे ॥ सेवक० ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री वर्धमान जिन स्तवनं ॥
॥ राग धन्याश्री ॥ गिरुया रे गुण तुम तथा, श्री वर्धमान जिनराया रे ॥ सुणता श्रवणें मी ऊरे, माहारी निर्मल थायें काया रे ॥ गि० ॥ १ ॥ तुम गुण गए। गंगा जलें, हुँ जीली निर्मल थानं रे ॥ अवर न
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( १२५)
धंधो यादरुं, निशि दिन तोरा गुण गानं रे ॥ गि० ॥ ॥ २ ॥ जीव्या जे गंगाजलें, ते बिल्वर जल नवि पेसे रे ॥ जे मालती फूलें मोहीया, ते बावल ज नवि बेसे रे || गि० ॥ ३ ॥ एम में तुम गुण गो वसुं, रंगें राच्या ने वली माच्या रे ॥ ते केम परसुर आदरूं, जे परनारी वश राच्या रे ॥ गि० ॥ ४ ॥ तुं गति तुं मति यारो, तुं यानंबन मुऊ प्यारो रे ॥ वाचक यश कहे माहरे, तुं जीवन जीव आधारो रे ॥ गि०॥ ॥ ५ ॥ इति ॥ उपाध्याय श्री मद्यशोविजयजी कृत चोवीश जिन स्तवनं संपूर्णम् ॥
॥ अथ उपाध्याय श्री मानविजयजी कृत ॥ ॥ चतुर्विंशति जिन स्तवनानि ॥
॥ तत्र ॥
|| प्रथम श्रीकृषन देव जिन स्तवनं ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ रूपन जिांदा कषन जिणंदा, तुम दरिस दुवे परमाणंदा ॥ यह निशि चानं तुम दीदा रा, महिर करीने करजो प्यारा ॥ १ ॥ ० ॥ आप रानी पुंठे जे वलगा, किम सरे तेहने करतां लगा ॥ अलगा कीधा पण रहे वलगा, मोर पीठ परें न हुए उनगा ॥ २ ॥ ० ॥ तुम्ह पण लगे थये किम सरशे, क्ति नलिकर्षी लेशे ॥ गगनें उसे दूर पड़ा, दोर बलें हाथे रहे थाइ ॥ ३ ॥ ०॥ मुऊ मनडुं बेच पल स्वनावें, तोहे अंतर मुहूर्त्त प्रस्तावें ॥ तूं तो समय
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(१३) समय बदलाये, म किम प्रीति निवाहो थाये ॥४॥ ३० ॥ ते माटे तूं साहिब माहारो, ढुं बु सेवक नव जव ताहारो॥ एह संबंधमां महोजो खामी,वाचक मान कहे शिर नामी ॥ ५ ॥ ऋषन ॥ इति॥ १ ॥
॥ अथ श्रीअजित जिन स्तवनं ॥ ॥ आघा आम पधार प्रज्य० ॥ ए देशी॥अजित जिणेसर चरणनी सेवा. हेवायें दुं दलियो ॥ कहि एं अणचाख्यो पण अनुनव, रसनो टाणो मलियो ॥ १ ॥ प्रनुज। महिर करीने आज, काज़ हमारां सारो ॥ मुकाव्यो पण ढुं नवि मूकुं, चूकुं.ए नवि टाणो॥नक्ति नाव कम्यो जे अंतर,ते किम रहे शरमा गो॥ २ ॥ प्र० ॥ लोचन शांति सुधारस सुनंगा, मु ख मटकालुं प्रसन्न ॥ योगमुनो लटको चटको, अतिशयनो अति धन्न ॥३॥ प्र० ॥ पिंम पदस्थ रू पस्थें लीनो, चरण कमल तुऊयहीयां ॥ जमर परें रसस्वाद चखावो, विरसो कां करो महीयां ॥४॥प्र० ॥ बाल कालमां वार अनंती, सामग्रीयें नवि जा ग्यो॥ यौवनकालें ते रस चाखण, तुं समरथ प्रनु मा ग्यो ॥५॥०॥ तूं अनुनव रस देवा समरथ, हूं पण अरथी तेहनो।चित्त वित्तने पात्र संबधे, अजर रह्यो हवे केहनो ॥ ६ ॥ ॥प्रनुनी महेरें ते रस चा ख्यो, अंतरंग सुख पाम्यो ॥ मानविजय वाचक श्म जपे, दू मुफ मन काम्यो ॥ ७ ॥ प्र० ॥ इति ॥
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(१३१ )
॥ अथ श्रीसंभव जिन स्तवनं ॥
॥ सुमति सदा दिनमें धरो ॥ ए देशी ॥ साहिब सांगलो वीनति, तूं बो चतुर सुजाण ॥ सनेही ॥ की धि सुजाने वीनती, प्रायें चढे ते प्रमाण ॥ स० ॥ १ ॥ संभव जिन अवधारीयें, महेर करी मेहेरबा न ॥ स० ॥ नवनय नाव नंजणो, नक्त वत्सल न गवान ॥ स० ॥ २ ॥ सं० ॥ तुं जाणे विणु वीनवे, तोहे में न रहाय ॥ स० ॥ श्ररथी होए उतावलो. दण वरसां सो थाय ॥ स० ॥ ३॥ सं० ॥ तूंतो मो टपमां रहे, विनव्यो पण विलंबाय ॥ स० ॥ एक धीरो एक कुलो, इम किम कारज थाय ॥ स० ॥ ४ ॥ सं० ॥ मन मान्यानी वातडी, सघले दीसे नेट ॥ स०॥ एक अंतर पेशी रहे, एक न पामे नेट | स० ॥ ५ ॥ सं० ॥ योग्य अयोग्य जे जोश्वा, ते अपू रणनुं काम स० ॥ खाइना जलने पण करे, गंगा जलनिज नाम ॥स० ॥ ६ ॥ सं० ॥ काल गयो बहु वा यदे, तेतो हवे न खमाय ॥ स० ॥ योगवाई ए फिरि फिरि, पामवि डर्लन थाय ॥ स० ॥ ७ ॥ सं० ॥ नेद नाव मूकी परो, मुशुं रमो एक मेक ॥ स०॥ मान विजय वाचक तणी, ए वीनति बे बेक ॥ स ० ॥ ॥सिं० ॥
॥ अथ श्री अभिनंदन जिनस्तवनं ॥
॥ ढाल ॥ मोतीडानी देशी ॥ प्रभु मुंऊ दरिसन म लियो लवे, मन थयुं हवे हलवे हलवे || साहिबा अजिनंदन देवा, मोहना अभिनंदन ॥ पुण्योदय
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(१३५) एह मोहोटो माहारो, अचिंत्यो थयो दरिसण ता हारो॥१॥सा॥ देखत देव हरी मन सीधुं, काम रागारे कामण कीg ॥ सा॥ मनई जाये नही को पासें, रात दिवस रहे ताहरी आसें ॥ २ ॥ सा॥ पहिर्बु तो जाण्यं हतुं सोहि,पण मोहोटामु मिलतुं दोहिनूं । सा० । सोहिनू जाणि मनडुं वल गू, थाये नही हवे कीधुं अलगू ॥३॥ सा० ॥ रूप देखाडी तुं होय अरूपी, किम ग्रहिवाये अकलस रूपी ॥ सा ॥ ताहरी धात न जाणी जाये, कहो मनडानी शी गति थाये॥४॥ सा॥ पहिलु जागी पडे करे किरिया, ते परमारथ सुखना दरीया॥सा॥ वस्तु अजाणे मन दोडावे, तेतो मूरख बदु पितावे ॥५॥ सा ॥ ते माटे तूं रूपी अरूपी, गुड़बुझने सिम सरूपी ॥सा॥ एह स्वरूप ग्रहीयुं जब तहालं, तव चम रहित थडे मन महारुं ॥६॥सा॥तुज गुण ग्यान ध्यानमा रहीयें, इम हिलवू पण सुलनज क हीयें ॥ सा ॥ मानविजय वाचक प्रनु ध्याने, अनु जव रसमां हल्यो एकताने ॥ ७ ॥ सा ॥ इति ॥
॥ अथ श्री सुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ थारा मोहोला उपर मे ॥ ए देशी ॥ रूप अ नुप निहालि, सुमति जिन ताहीं॥हो लाल ।। सु॥ बंमी चपल स्वनाव, तमु मन माहीं॥हो लाल ॥3॥ रूपी सरूप न होत जो, जग तुज दीसतूं ॥हो लाल ॥ जो० ॥ तो कुण उपर मन्न, कहो यम हींसतूं ॥ हो
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लाल ॥क० ॥१॥हीस्या विण किम गुरू, स्वनावनें बता॥ हो लाल ॥स्व०॥ हा विण तुफ नाव, प्र गट किम प्रीबता ॥हो लाल ॥प्र॥ प्रीव्या विणु कि म ध्यान, दिशामांहि लावता॥ हो लालादि॥ लाव्या विण रस स्वाद, कहो किम पावता॥हो लाल ॥क०॥ ॥२॥ नक्ति विना नवि मुक्ति, दुईको नक्तने ॥ हो लाल ॥ दु० ॥ रूपी विना तो तेह, दुवे किम व्यक्तने ॥हो लाल ॥ दु० ॥न्हवण विलेपन माल, प्रदीपनें धू पणां ॥होलाल ॥प्र०॥ नव नव नूषण नाल, तिलक सिर खूपणा ॥ हो लाल ॥ ति ॥३॥ अम सत्य पु एयने योगे, तुमें रूपी थया ॥ हो लाल ॥ तु०॥थ मिय समाणी वाणी, धर्मनी कहो गया॥हो लाल ॥ ध०॥ तेह आलंबने जीव, घणाये बूजीया॥हो लाल।। घ॥ नावि नावने झाने,अमो पण रीजीया॥होला ल॥॥ते माटे तुऊ पिम,घणा गुण कारणो॥ हो लाल ॥ १० ॥ सेव्यो ध्यायो दुबे, महानय वा रगो॥हो लाल॥म० ॥शांतिविजय बुध शिष्य, कहे नविका जना॥हो लालक०॥प्रनुनुं पिमस्थ ध्यान, करो थकमना ॥हो लाल ॥ क० ॥ ५॥ इति ॥
॥ अथ श्री पद्मप्रनजिन स्तवनं ॥ ॥ वारि हुँ गोडी पासनी ॥ ए देशी ॥ श्रीपदम प्रनना नामने, ढुं जावं बलिहार ॥ नविजन ॥ नाम जपंतां दीहा गमुं, नवजय नंजन हार ॥ न ॥१॥ श्री० ॥ ए आंकणी ॥ नाम सुगत मन उनसे, तो
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(१३४) चन विकसित होय ॥नम् ॥ रोमांचित दुवे देहडी, जाणे मिलियो सोय ॥ न० ॥ २ ॥ श्री० ॥ पंचम कालें पाम, उर्लन प्रजु दीदार ॥ ॥ तोहे तेहना नामनो, बे मोहोटो आधार ॥ ज० ॥३॥ श्री० ॥ नाम ग्रहे आवी मिले, मर निंतर जगवान ॥ज॥ मंत्रवलें जिम देवता, वहेलो कीधे आह्वान ॥ ज० ॥ ॥ ४ ॥ श्री० ॥ ध्यान पदस्थ प्रनाथी, चाख्यो अनु नव स्वाद ॥न ॥ मान विजय वाचक कहे. मूको बीजो वाद ॥नम् ॥ ५॥ श्री० ॥ इति ॥ ६ ॥
॥अथ श्री सुपार्श्व जिन स्तवनं ॥ रंगीले आतमा॥ ए देशी॥निरखी निरखि तुऊ बिंबने, हर खित होय मुक मन्न ॥ सुपास सोहामणा ॥ निर्वि कारता नयनमां, मुखडूं सदा सुप्रसन्न ॥ १ ॥ सु॥ नाव अवस्था सांजरे, प्रातिहारजनी शोन ॥ सु॥ कोडि गमे देवा सेवा, करता मूकी लोन. ॥ २ ॥ सु० ॥ लोकालोकना सवि नावा, प्रतिनासे परतद ॥ सु॥ तोहे न राचे नवि रुसे, नवि अविरतिनो पद ॥३॥ सु० ॥ हास्य न रति अरति नहीं, नहीं जय शोक उगंज ।। सु०॥ नहीं कंदर्प कदर्थना, नही अंत रायनो संच ॥ ४ ॥सु०॥ मोह मिथ्यात निा गइ, नाठा दोष अढार ॥ सु०॥ चोत्रीश अतिशय राजता, मूलातिशय चार ॥ ५ ॥ सु० ॥ पांत्रीश वाणी गुणें करी, देता नवि उपदेश ॥ सु० ॥ श्म तुऊ बिंबें ता हरो, जेदनो नहिं लवलेश ॥ ६ ॥ सु॥ रूपथी प्रनु
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(१३५)
गुण सांभरे, ध्यान रूपस्थ विचार ॥ सु० ॥ मानवि जय वाचक वढ़ें, जिन प्रतिमा जयकार ॥ ७ ॥ सु० ॥ ॥ अथ श्री चंप्रन जिन स्तवनं ॥
॥ लगी रेहेंने ॥ ए देशी || तूंही साहिबारे मन मान्या ॥ तूं तो कल स्वरूपी जगतमां, मनमां केणे न पायो ॥ शब्दे बोलावी नलखायो, शब्दातीत ठहरायो ॥ १ ॥ तूं ॥ रूप निहाली परिचय कीनो, रुपमांहि नहिं आयो || प्रातिहारज अतिशय यहि नाणे, शास्त्रमां बुधें न लखायो ॥ २ ॥ तूं ॥ शब्द न रूप न गंधन रस नहीं, फरस न वरण न वेद ॥ नहिं संज्ञा बेदन जेदन नहिं, हास्य नहिं नहीं खेद ॥ ३ ॥ तूं ॥ सुख नहीं दुःख नहीं वली वांडा नहीं, नहीं रोग योग ने जोग ॥ नहीं गति नहीं स्थि ति नहीं रति रति, नहीं तुम हरषने शोग ॥ ४ ॥ तूं ॥ पुष्य न पाप न बंधन देह न, जनम मरण नहीं व्रीडा ॥ राग न द्वेष न कलह न जय नहीं, नहीं संता पन क्रीडा ॥ ५ ॥ ० ॥ अलख यगोचर x x विनाशी, अविकारी निरुपाधि ॥ पूरण ब्रह्म चिदानंद साहिब, ध्यानं सहज समाधि ॥ ६ ॥ तूं ॥ जे जे पूजा ते ते अंगें, तूं तो अंगथी दूरें ॥ ते माटे पूजा उपचा रिक, न घटे ध्यानने पूरें ॥ ७ ॥ तूं ॥ चिदानंद घन के पूजा, निर्विकल्प उपयोग || यतम परमा तमने दें, नहीं कोइ जडनो जोग ॥ ८ ॥ तूंο ॥ रूपातीत ध्यानमा रहेतां, चंप्रन जिनराय ॥ मान
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(१३६) विजय वाचक श्म बोले, प्रनु सरिखाइ थाय॥तूं॥
॥ अथ श्रीसुविधि जिन स्तवनं ॥ ॥ राग सिंधुडो ॥चित्रोडा राजा रे॥ए देशी ॥तु ऊ सेवा सारी रे, शिव सुखनी त्यारी रे ॥ मुफ लागे प्यारी रे, पण न्यारी ने ताहरी प्रकृति सुविधिजिना रे॥१॥ हेजें नवि बोले रे, स्तवीयो नवि मोले रे ॥हीयडु नवि खोले रे, तुज तोले त्रिजगमा निःसं गी को नहीं रे ॥ २॥ न जूवे जोताने रे, न रीफे श्रोताने रे ॥ रहे मेलें पोताने रे, श्रोताने जोताने तोहे वालहो रे ॥ ३ ॥ नवि तुसे न रूसे रे, न वखा ऐ न दूसे रे ॥ नवि आपे न मूसे रे, नवि नूंसे न मंमे रे कोश्ने कदा रे ॥ ४॥ न जणा ए धात रे, ते हगुं शी वात रे ॥ एह जाणुं कहेवात रे, रहिवात न तोहे तुफ विषु मानने रे ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्रीशीतल जिन स्तवनूं ॥. ॥ मन रंग धरी० ए देशी ॥ तुज मुख सनमुख निरखतां,मुफ लोचन अमीय तरंतां हो ॥शीतल जि नवरजी॥ तेहनी शीतलता व्यापे, किम रहेवायें कहो तहो ॥ १ ॥ शी॥ तुज नाम सुण्यं जव कानें, हि यडु यावे तव शानें हो ॥ शी० ॥ मूरबायो माणस वाटें, जिम सज दुये अमृत बांटे हो ॥ २ ॥ शी० ॥ गुनगंधने तरतम योगें,आकुलता दुश्नोगें हो॥शी॥ तुज अदनुत देह सुवासें,तेह मिटिग रहत उदासें हो ॥३॥शो० ॥ तुज गुण संस्तवने रसना, बांके अन्य
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(१३७) सवनी तृषना हो॥शी॥पूजायें तुज तनु फरसे, फरस त शीतल थइ ननसे हो॥धाशी॥मननी चंचलता जागी, सवि बंमी थयो तुज रागी हो॥शी ॥ कवि मान कहे तुज संगें, शीतलता थश्चंगो अंगें हो॥५॥
॥ अथ श्री श्रेयांस जिन स्तवनं ॥ ॥ देशी वांहाणनी॥ राग मल्हार ॥ श्रीश्रेयांस जिणंद. घनाघन गहगह्यो रे ॥घना॥ वृद्ध अशोक नी डायें, सुनर बाइ रह्यो रे ॥ स ॥ नामंगलनी फलक, ऊबूके वीजली रे ॥ ज० ॥ उन्नत गढ तिगई इ, धनुष शोना मली रे ॥ध ॥ १ ॥ देवउंकुहिनो नाद, गुदिर गाजे घणु रे॥ गु० ॥ नाविक जननां नाटिक, मोर क्रीडा नऐ रे ॥ मो० ॥ चामर केरी हार, चलंती बगतति रे॥ च॥ देशना सरस सुधारस, वरसे जिनपति रे॥व०॥ २॥समकिती चातक वृंद, तृपति पामे तिहां रे ॥ १० ॥ सकल कषाय दवानल, शांत दुवे जिहां रे ॥ शां० ॥ जन चित्तवृत्ति सुनू मि, त्रेहाली थइ रही रे ॥ ॥ तिणे रोमांच अं कूर, वती काया लही रे ॥व० ॥३॥ श्रमण कृषी बल सऊ, दुवे तव कजमीरे ॥ दु० ॥गुणवंत जन मनदेत्र, समारे संजमी रे ॥ स ॥ करता बीजाधा न, सुधान नीपावता रे ॥ सु॥ जेणें जगना लोक, रहे सवि जीवता रे ॥र० ॥ ४ ॥ गणधर गिरितट सं ग, थासूत्र गुंथना रे ॥ थ० ॥ तेह नदी परवाहें, दुश बदु पावना रे ॥दु०॥ एहज मोहोटोबाधार, विषम
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(१३७) कालें लह्यो रे ॥ वि० ॥ मानविजय नवजाय, कहें में सद्दह्यो रे ॥ क० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्री वासुपूज्य जिन स्तवनं ॥ ॥सीता तो रूपें रूडी॥ ए देशी॥ वासुपूज्य तुं साहिब साचो, जेहवो दुवे हीरो जाचो ॥ सुंदर सो जागी॥ जस होये विरोधी वाचो, तेहनी करे मेवा काचो हो ॥ सुं० ॥ १ ॥अबति वात उपावे, वलि नाव बताने बिपावे हो ॥ सुं० ॥ कांगें कांइ बोले, परनें निंदा करी मोले हो ॥ सुं० ॥ २ ॥ श्म चन विह मिथ्या नांखी, तेव देवनी कुण नरे साखी हो ॥सुं॥ प्राणीना मर्मनः धाती, हाडामां मोटी कातः हो ॥ सुं॥ ३ ॥ गुण विण रह्या उंचे ठाणे, किम देव ठहराय प्रमाणें हो ॥ सुं०॥ प्रासाद शिखर रह्यो काग, किम पामे गरुड जस लाग हो ॥ सुं॥ ॥ ४ ॥ तुं तो वीतराग नीरीह, तुऊ वचन. यथारथ लीह हो ॥ सुं॥ कहे मानविजय नवजाय, तुं साचो देव ठहराय हो ॥ सुं० ॥ ५ ॥इति ॥ १२ ॥
॥ अथ श्री विमल जिन स्तवनं ॥ ॥ राग मल्हारनी देशी ॥ जिहो विमल जिनेसर सुंदरु, लाता विमल वदन तुज दिह॥ जिहो विमल दु मुफ ातमा, लाला तेणें तुं अंतर पश् ॥१॥ जिनेसर तुं मुफ प्राण आधार ॥ जिहो सकल जंतु हितकार, जिनेसर तूं मुफ प्राण आधार ॥ ए आंकणी ॥ जिहो विमल रहे विमलें था, लाला समतें समल
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(१३ए) रमेय ॥ जिहो मानसरें रमे हंसलो,लाला वायस खाइ जलेय ॥ जि०॥ २ ॥ जिहो तिम मिथ्यात्वी चित्तमां, साता तुज किम होये आनास ॥ जिहो तिहां कुदेव रंगें रमे, लाला समकित मन तुज वास ॥ जि॥३॥ जिहो हीरो कुंदनगुं जडे, लाला दूधने साकर यो ग॥ जिहो पलटे योगें वस्तुनो, लाला न होये गुण आनोग ॥ जि० ॥ ॥ जिहो विमल पुरुष रहेवा तणुं, लाला थानक विमल करेय ॥ जिहो गृहपतिने तिहां शी तृपा, लाला नाटक नचित ग्रहेय ॥ जि॥ ॥ ५ ॥ जिहो तिम तें मुफ मन निर्मलु, लाला कीg करते रेवास ॥ जिहो पुष्टि गुदि नाटक ग्रही, ला ला हूं सुखीयो थयो खास ॥६॥ जिहो विमले विमल मिली रह्या,लाला नेद जाव रह्यो नांहिं॥ जिहो मानविजय उवकायने, लाला अनुनव सुख थयो त्यांहिं॥.जि० ॥॥ ॥ इति ॥ १३ ॥
॥ अथ श्री अनंत जिन स्तवनं ॥
॥राग मारु ॥ देशी करे लडानी॥ ॥झान अनंतूं ताहरे रे, दरिसन ताहरे अनंत ॥ सुख अनंतमय साहिबा रे, विरज पण ननस्युं अनं त ॥ १ ॥ अनंत जिन आपजो रे ॥ मुफ एह अनंता चार ।। अ० ॥ मुझने नही अवरघू प्यार ॥०॥ तुऊने आपंतां शी वार ॥ अ॥ एह डे तुक यशनो गर ॥ अ० ॥ ए बांकणी ॥ आप खजीनो न खो लवो रे, नही मलवानी चिंत ॥ मारे पोते ने सवे
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(१४०) रे, पण विचे आवरणनी निंत ॥ १०॥ ॥ तप जप किरिया मोघरें रे, नांजी पण नांगी न जाय । एक तुज बाण लगे थकी रे, हेलामां परही थाय ॥ अगा॥ मातजणी मरुदेवीने रे, जिन षनें मां दीध ॥ श्राप पियारुं विचारतां रे, श्म किम वीतरा गता सि ॥ अ॥ ४ ॥ तेमाटे तस अरथीया रे, तुझ प्रार्थता जे को लोक ॥ तेहने आपो आपणी रे, तिहां न घटे कराववी टोक ॥ अ॥ ५॥ तेहनें तेहगें आपरे, तिहां श्यो नपजे जे खेद ॥ प्रार्थना करते ताहरे रे, प्रनुताश्नो पण नही छेद ॥॥६॥ पाम्या पामे पामशेरे,झानादिक जेह अनंत.॥ ते तुक आणाथी सवे रे, कहे मानविजय उन्नसंत ॥अ॥७॥
॥अथ श्री धर्म जिन.स्तवनं ॥ । ॥ मुरखने मरकलडे ॥ ए दशी ॥ श्री धर्म जिणंद दयाल जी॥धरम तणो दाता ॥ सविजंतु तणो रख वाल जी॥ धर्म तणो त्राता ॥ जस अमीय समाणी वाणी जी ॥१०॥ जेह निसुणे नवि प्राणी जी ॥ध ॥१॥ तेहना चित्तनो मल जाय जी॥ ध० ॥ जिम कतकफलें जल थाय जी॥ ध०॥ निर्मलता तेहजध में जी ॥ ध० ॥ कलुषा मिट्यानो मर्म जी ॥ध० ॥ ॥ २ ॥ निज धर्म तो सहज सनाव जी ॥ध ॥ तो हि तुऊ निमित्त प्रनाव जी॥ ध० ॥ वनराजी फूल न शक्ति जी॥ध० ॥ पण तुराजे होई व्यक्ति जी ॥ध० ॥३॥ कमलाकरें कमल विकास जी॥ ध०॥
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( १४१ )
सौरता जखमी वास जी ॥ ५० ॥ ते दिनकर करणी जोय जी ॥ ध० ॥ इम धर्मदायक तुं होय जी ॥ ध० ॥ ४ ॥ ते माटे धर्मना रागी जी ॥ ६० ॥ तुऊ पद सेवे बडनागी जी ॥ ध० ॥ कहे मान विजय नवजाय जी ॥ ध० । निज अनुभव ज्ञान पसाय जी ॥ ध० ॥ ५ ॥ ॥ इति ॥ १५ ॥ ॥ अथ श्री शांति जिन स्तवनं ॥
॥ घरे आवो जी आंबो मोरियो ॥ ए देशी ॥ श्री शांति जिनेसर साहिबा, तुऊ नावे किम लूटाशे ॥ में लोधी केडज ताहरी, तेह प्रसन्न थये मूकाशे ॥ श्री० ॥ १ ॥ तूं वीतरागपणुं दाखवी, जोला जनने नूजावे ॥ जाणी में कीधी प्रतिगन्या, तेहथी कहो को ए मोजावे ॥ श्री ॥ २ ॥ कोइ कोइ ने केडें मत पडो, केडें पड्यां या वाज || नीरागी पण प्रभु खेंचीयो, नतें करने में सातराज ॥ श्री० ॥ ३ ॥ मनमांहि आणी वासियो, हवे किम निसरवा देवाय ॥ जो नेदरहित मुऊशुं मिले, तो पलकमांहि बूटाय ॥ श्री० ॥ ४ ॥ कबजे याव्या किम बूटशो, कीधा विप क हे कृपाल ॥ तोशुं हतवाद ले रह्या, कहे मान क रो खुशीयाल ॥ श्री० ॥ ५ ॥ ॥ इति ॥ १६ ॥ ॥ अथ श्री कुंथु जिन स्तवनं ॥
॥ योगीसर चेला ॥ ए देशी ॥ कुंथु जिनेसर जाणजो रे, मुफ मननो अभिप्राय रे ॥ तुं यतम लवेसरु हो लाल, रखे तु
जिनेसर ॥ विरहो थाय
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(१४२)
रे ॥ जि० ॥ १ ॥ तु विरहो किम वेतीयें हो लाल, तुम विरहो दुःखदाय रे || जि० ॥ तुम विरहो न ख माय रे ॥ जि० ॥ खिय वरसां शो थाय रे ॥ ज० ॥ विरहो मोहोटी बलाय रे ॥ जि० ॥ कुं० ॥ एत्रांक ली ॥ ताहररी पासें खाववुं रे, पहिलां भावे तुं दाय रे ॥ जि० ॥ याव्या पढ़ी तो जायवुं दो नाल, तु ऊ गुण वसे न सुहाय रे ॥ जि० ॥ कुं ॥ २ ॥ न मल्यानो धोखो नहीं रे, उस गुणनूं नहीं नाप रे ॥ जि० ॥ मलिया गुण कलिया पढें हो लाल, विठरत जाये प्राण रे || जि० ॥ कुं० ॥ ३ ॥ जातित्र्यंधने 5: ख नही रे, न लहे नयननो स्वाद रे ॥ जि० ॥ नय ण सवाद नही करी हो लाज, दायां ने विवाद रे || जि० ॥ कुं० ॥ ४ ॥ बीजे पण किहां नवि गमे रे. जिसे तुम विरह वंचाय रे || जि० ॥ मालति कुसुमें माल्हीयो हो लाल, मधुप करीरें न जाय रे ॥ जि० ॥ कुं० ॥ ५ ॥ वनदव दाधां रूंखडां रे, पाल्हवे वली वरसात रे ॥ जि० ॥ तुऊ विरहानलना बल्या हो लाल, काल अनंत गमात रे ॥ जि० ॥ कुं० ॥ ६ ॥ ताढक रहे तुऊ संगमें रे, प्राकुलता मिटि जाय रे ॥ जि० ॥ तुज संगें सुखीयो सदा हो लाल, मान विजय नवजाय रे ॥ जि० ॥ कुं० ॥ ७ ॥ इति ॥ १७ ॥ ॥ अथ श्री रजिन स्तवनं ॥
॥ उधव माधवने कहेजो ॥ ए देशी ॥ श्री अरना य उपासना, गुनंवासना मूल ॥ हरिहर देव खाशास
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(१४३)
ना कुण खावे शूल || श्री ॥ १ ॥ दासना चित्तनी कुवा सना, उदघासना कीध ॥ देवानासनी जासना, वीसारी दधि ॥ श्री० ॥ २ ॥ वली मिथ्या वासनतणावासनारा जेह ॥ तेह कुगुरुनी शासना, हश्ये न धरेह ॥ श्री ॥ ३ ॥ सांसारिक प्रशंसना, तुशुं न कराय ॥ चिंतामणि देहारने, किम काच मगाय ॥ श्री० ॥ ४ ॥ तिम क ल्पित वासना, वासना प्रतिबंध ॥ मान कहे एक जिन तणो, साचो संबंध ॥ श्री० ॥ ५ ॥ इति ॥ १८ ॥ ॥ अथ श्री मनि जिन स्तवनं ॥
॥ सासू पूबे हे वढू ॥ ए देशी ॥ महिमा मन्त्रि जिणंदनो, एकें जीनें कह्यो किम जाय ॥ योग धरे निन्न योगशुं, चाला पण योगना देखाय ॥ म० ॥ १ ॥ वयणे समजावे सना मन समजावे अनुत्तर देव ॥
दारिक काया प्रत्यें, देव समीपें करावे सेव ॥ म० ॥ २ ॥ जापा पण सवि श्रोताने, निज निज भाषायें समाय ॥ हरखे निज निज रीऊमां, प्रभु तो निर विकार कहाय ॥ म० ॥ ३ ॥ योग अवस्था जिनत एपी, ज्ञाता हुये तिणे समजाय ॥ चतुरनी वात चतु र लहे, मूढ बिचारा देखी मुंजाय ॥ म० ॥ ४ ॥ मू रख जन पामे नहिं, प्रभु गुणनो अनुभव रस स्वाद ॥ मानविजय उवजायने, ते रसस्वादें गयो वि खवाद ॥ ० ॥ ५ ॥ इति ॥ १९ ॥
॥ अथ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवनं ॥ ॥ इमर यांबा यांवली रे ॥ ए देंशी ॥ मुनि सुत्र
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(१४४) त कीजें मया रे, मनमांहि धरी महेर ॥ महेर विढू णा मानवी रे, कविण जणायें कहेर ॥१॥ जिणेसर तुं जगन्नायक देव ॥ तुज जगहित करवा टेव ।।जि०॥ बीजा जूवें करता सेव ॥ जितुं ॥ए यांकणी ॥ अरहट खेत्रनी नूमिका रे, सींचे कतारथ होय ॥धा राधर सघली धरा रे, नववा सऊजोय ॥ २ ॥ जि ॥ ते माटे अश्व कारें रे,आणी मनमां महेर ॥
आ आव्या आफणी रे, बोधवा जरुयच सहेर ॥ ॥३॥ जि० ॥ अण प्रारथता नइया रे, या करी य उपाय ॥ प्रारथता रहे विलवता रे, एकुण कहीयें न्याय ॥ ४ ॥ जि० ॥ संबंध पण तुफ मुफ विचें , स्वामी सेवक नाव ॥ मान कहे हवे महेरनो रे, न रह्यो अजर प्रस्ताव ॥ ५ ॥ जि ॥ इति ॥ २० ॥
॥ अथ श्री नमि जिन स्तवनं ॥ ॥कपूर होवे अति उजलो रे ॥ ए देशी ॥श्रीन मिनाथ जिएंदने रे, चरण कमल लय लाय ॥ मूकी
आपणी चपलता रे, तुब कुसुमें मत जाय रे॥१॥ सुण मनमधुकर माहरी वात॥म कर फोकट विलुपात रे॥सु० ॥ए आंकणी ॥ विषम काल वरषाऋतु रे, क में कमें दुळ व्यतीत ॥ हलो पुग्गल परियहो रे, या व्यो शरद प्रतीत रे ॥ २ ॥ सु० ॥ ग्यानावरण वादल फटे रे, ग्यान सूरज परकाश ॥ ध्यान सरोवर विक शीयां रे, केवल लक्ष्मी वास रे ॥३॥ सु० ॥ नामें ललचावे कोरे, कोश्क नव नव राग ॥ एहवी वास
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(१४५)
ना नही बीजे रे, शुभ अनुजव सुपराग रे ॥४॥ जमत जमत कहावियें रे, मधुकरनो रसस्वाद ॥ मा नविजय मनने कहे रे, रस चाखो आल्हाद रे॥५॥
॥ अथ श्री नेमिजिन स्तवनं ॥ ॥ अब प्रनुगुं इतनी कद्रं॥ ए देशी ॥ नेमिजिणं द निरंजगो, ज मोहथलें जलकेली रे ॥ मोहना नद नटगोपी, एकलमल्ने नारख्या तेली रे ॥ १ ॥ सामि सलूणा साहिबा ॥ अतुलीबल तुं वडवीर रे ॥ सा॥ ए अांकणी ॥ कोश्क ताकी मूकती, अति तीखां कटा टनां बाण ॥ वेधक वयण बंधूक गोली, जे लागे जाये प्राप र ॥२॥सा०॥ अंगुली कटारी घोंचती, नबालति वेणी रुपाण रे ॥ सिंथो नालां नगामती, सिंगी जलनरे कोकवाण रे ॥३॥सा ॥ फूलदडा गोला नाखे, ज सत्त्व गढ़ें करे चोट रे ॥ कुचर्यु ग करि कुंजस्था , प्रहरती हृदयकपाट रे ॥४॥ सा० ॥ शील सन्नाह उन्नत सत्त्वे, अरि शस्त्रना गोला न लागा रे ॥ सोर करी मिय्या सवे, मोह सुनट दहो दीसे नागा रे ॥ ५॥ सा० ॥ तव नव नव योको मं मयो, सजी विवाह मंझप कोट रे ॥ प्रचु पण तस स न मुख गयो, नीसाणे देतो चोट रे ॥ ६ ॥सा ॥चा करी मोहनी बोडवी, राजुलने शिवपुर दीध रे ॥ापे रैवत गिरि चढी, नीतर संयम गढ लीध रे ॥ ७ ॥ सा० ॥ श्रमणधरम योमा लडे, संवेग खड्ग धृति ढा सरे ॥जाल केश नखाडतो, गुन नावना गडगडे
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(१४६) नाल रे ॥ ७ ॥ सा० ॥ ध्यान धाराशर वर्षतो. हणी मोह थयो जगनाथ रे ॥ मान विजय वाचक वद. में ग्रह्यो ताहरो साथ रे ॥ ए॥ सा० ॥ इति ॥ . ॥ अथ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवनं ॥
॥ देदु देदु नणद हठीली ॥ ए देशी ॥ श्री पा सजी प्रगट प्रनावी, तुक मूरति मुफ मन नावी रे॥ मनमोहना जिनराया। नर नर किन्नर गुण गाया रे॥ म० ॥ जे दिनथी मूर। दीती, ते दिनथी आपद नीठी रे ॥ १ ॥ म ॥ मुख मटकालुं सुप्रसन्न, देख तरीके नविमन्न रे॥ म॥ समतारस केरां कचोलां, नयणां दी। रंगरोलां रे ॥ २ ॥ म० ॥ हायें न धरे हथीयार, नही जपमालान! प्रचार रे ॥ म० ॥ न त्संगें न धरे वामा, जेहथी उपमे सवि कामा रे । ॥३॥ म० ॥ न करे गीत नृत्यना चाला, एतो प्र त्यद नटना ख्यालो रे ॥ म० ॥ न चजाचे या वाजां, न धरे वस्त्र जीरण नाजां रे ॥ ४ ॥ म० ॥ इम मूरति तुफ निरुपाधि, वीतरागपणे करी साधी रे॥म ॥ कहे मानविजय उवकाया, में अवलंव्या तुऊ पाया रे ॥ ५ ॥ म० ॥ २३ ॥ इति ॥
॥अथ श्री महावीर जिन स्तवनं ॥ ॥ हेमराज जग जस जीत्यो ॥ ए देशी ॥ शा सन नायक साहिव साचो, अतुली बल अरिहंत ॥ कर्म अरिवल सबल निवारी, मारीय मोह महंत ॥ ॥ १ ॥ महावीर जगमां जीत्यो जी॥ हांजी जीत्यो
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( १४७ )
जीत्यो श्राप सहाय, हांजी जीत्यो जीत्यो ग्यान प साय, हांजी जीत्यो जीत्यो ध्यान दशाय, हांजी जीत्यो जीत्यो जग सुखदाय ॥ म०॥ अनंतानुबंधी वड योवा, हणीया पहिली चोट || मंत्री मिथ्यात पढें तिगरूपी, तव करी यागल दोट ॥ २ ॥ म०॥ नांजि हेड आयुष तिग केरी, इग विगलिंदिय जाति ॥ एह मेवासि जांज्यो चिरकाली, नरकयुगल संघाति ॥ ३ ॥ म० ॥ यावर तिरि डुगजांसि कटावी, साहारण हणी धाडी ॥ श्री श्रीतिग मदिरा वयरी, यातप उद्योत न खाडी ॥ ४ ॥ म० ॥ पञ्चरकाणा ने पञ्चरकाला, हणीया यो श्राव || वेद नपुंसक स्त्री सेनानी, प्रति बिंबित गया नाठ ॥ ५ ॥ ० ॥ हास्य रति परति शोक गंबा, जय एद् मोह खवास ॥ हणीया पुरुष वेद फोज दारा, पढ़ें संजलनो नाश ॥ ६ ॥ म०॥ निश दोय मोह पटराणी, वरमांथी संहारी। अंतराय दरिसणने ग्याना, वरणीय लडतां मारी ॥ ७ ॥ म० ॥ जय जय दु मोहज मुने, हू तूं जगनाथ ॥ लोकालोक प्रकाश थयो तव, मोह चलावे साथ ॥ ८ ॥ म० ॥ जीत्यो तिम जगतने जीतावे, मूकायो मूकावे ॥ तरण तारण सम रथ बे तूंही, मानविजय नित्य ध्यावे ॥ ए ॥ म०॥ ॥ इति महावीर जिन स्तवनम् समाप्तम् ॥ तत्समा तोयं उपाध्याय श्री मानविजयजी कृत चोवीशी संपूर्णा ॥
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(१४८ )
॥ अथ श्री रामविजयजीकृत चोवीश जिन ॥ ॥ स्तवन प्रारंभः ॥
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॥ तत्र ॥
॥ प्रथम श्री कृपन जिन स्तवन ॥
॥ योग माया गरवे मे जो ॥ ए देशी ॥ उलगडी यादिनाथनी जो, कांइ कीजियें मनने कोम जो ॥ ats करे को नाथनी जो, जेहना पाय नमे सुर कोड जो ॥ ० ॥ १ ॥ वादालो मरुदेवीनां नाडलो जो, राणी सुनंदाना हयानो हार जो ॥ त्रस्य नुव ननो नाहलो जो, महारा प्राण तपो आधार जो ॥ ० ॥ २ ॥ वाहाले वीश पूरव लख जोगव्युं जो, रूडुं कुमरपणुं रंगरेल जो ॥ मन मोलुं रे जिन रूपशुं जो, जाणे जगमां मोहन वेज जो ॥ ल० ॥ ३ ॥ प्रजुनी पांचों धनुषनी देहडी जो, लख पूरव त्रेशवराज जो ॥ लाख पूरव समता वरी जो, थया शिव सुंदरीवरराज जो ॥ उल० ॥ ४ ॥ एना नामथी नव निधि संपजे जो, वली अलिय विधन सवि जाय जो ॥ श्री सुमतिविजय कविराजनो जो, एम रामविजय गुण गाय जो ॥ उल० ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ श्री अजित जिन स्तवनं ॥ ॥ सोना ते केंरुं महारुं बेडलुं रेलो, रूपला इंढोली
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( १ ४५)
हाथ, महारा वाहालाजी रे || हवे नहीं जाउं मही dear रेलो || ए देशी ॥
॥ अजित जिनेसर साहिबा रेलो, वीनतडी अव धार ॥ महारा वाहालाजी रे ॥ दवे नहीं बोडुं तारी चाकरी रेलो ॥ तुं मनरंजन महारो रेलो, दील डानो जापहार || महा० ॥ ६० ॥ १ ॥ लाख चो राशीहुं नम्या रेलो, काल अनंत अनंत ॥ ० ॥ ञ लग लीधी में ताहेरी रेलो, जांगी बे जव ती जांत ॥ माह॥२॥ करि सुनजर हवे साहिबा रेलो, दास धरो दीलमांहि ॥ म० ॥ लाख गुण हीन पण ता हरो रेलो, सेवक हुं महाराज ॥ म०॥ ६० ॥ ३ ॥ अव गुण गणतां माहरा रेलो, नही यावे प्रभु पार ॥ म० ॥ पण जिन प्रवहणनी परें रेलो, तुमें बो तारण हार ||माह ॥४॥ नयरी अजोध्यानो धणी रेलो, विजया जयरें सरहंस ॥ म० ॥ जितशत्रु रा यनो नंदनो रेलो, धन इक्ष्वाकुनो वंश ॥माह ॥ ॥ ५ ॥ धनु सय साढा चारनी रेलो, देहडी रंग स नूर ॥ म० ॥ बोहोंतेर पूरव लाखनुं रेलो, आयु अ धिक सुख पूर ॥ ० ॥ ० ॥ ६ ॥ पंचम यारे तुं मल्यो रेलो, प्रगट्या बे पुण्य निधान ॥ म० ॥ सुमति सुगुरु पद सेवतां रेलो, राम अधिक तनुवान ॥मनाह ॥ ॥ ॥ अथ श्री संभव जिन स्तवनं ॥
॥ तुने गोकुल बोलावे कहान, गोविंद गोर । रे ॥ यालोने महीनां दाग, न करो चोरी रे ॥ ए देशी ॥
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(१५०) ॥ मने संनव जिन' प्रीत, अविहड लागी रे॥ कां देखत प्रनु मुखचंद, जावत नागी रे ॥ १ ॥ जिन सेनानंदन देव, दीलडे वसीया रे॥प्रनु चरण नमे कर जोड, अनुनव रसीया रे ॥ २ ॥ तोरी धनुसय चार प्रमाण, उंची काया रे ॥ मनमोहन कंचन वान, तागी तोरी माया रे ॥ ३ ॥ प्रजु राय जितारी नंद, नयरों दीठो रे ॥ सावजी पुर शणगार, लागे मुने मीठो रे ॥ ४ ॥ प्रनु ब्रह्मचारी नगवान, नाम सुणा वे रे॥ पण मुक्तिवधू वशी मंत्र, पाठ जणाव रे ।। मुफ रढ लागी मनमांहे, तुफ गुण केरी र ॥ नहीं तुज मूर तिने तोल, सुरत गलेरी रे ॥ ६ ॥ ज़िन मदेर करी जगवान, वान वधारो रे ॥ श्री सुमति विजय गुरु शिष्य, दिलमां धारो रे ॥ ७॥ इति ॥
॥अथ श्री अनिनंदन जिन स्तवनं ॥ ॥ घम घम घमके घूघरा रे, घूघरे दीरन दो रके घमके० ॥ ए देशी। श्री अनिनंदन जिन स्वा मीने रे, सेवे सुर कुमरीनी कोड के ॥प्रनुनी चाकरी रे ॥ मुख मटके मोही रहो रे, उनी आगल बे कर जोड के॥प्रनु० ॥ १ ॥ स्वर जीणे आलापती रे, गाती जिन गुण गीत रसाल के ॥प्रनु० ॥ ताल मृदं ग वजावती रे, देती अमरी जमरी बाल के॥प्रनु० ॥२॥ घम घम घमके घूघरी रे, खलके कटिमेखल सार के ॥ प्रनु० ॥ नाटिक नव नव नाचती रे, बो ले प्रनु गुण गीत उच्चार के ॥प्र० ॥३॥ सुत सिमा
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(१५१) रथ मातनो रे, संवर नूपति कुल शणगार के ॥ प्र० ॥ धनु शत साडा त्रणनी रे, प्रजुजीनी दीपे देह थ पार के ॥प्र० ॥ ४ ॥ पूरव लाख पचासनुं रे, पाली प्राय लयुं गुन गण के ॥प्र॥ नयरी अयोध्यानो राजीयो रे,दरिसण नाण रयण गुण खाण के ॥प्र० ॥ ५ ॥ सेवो समरथ साहिबो रे, साचो शिवरमणीनो साथ के ॥प्र। मुफ हीयडा मांहि वस्यो रे, वाहा लो तीन नुवननो नाथ के॥ प्र० ॥ ६ ॥णी परें जिन गुण गवतां रे, लहिएं अनुनव सुख रसात के ॥प्र० ॥ रामविजय प्रनु सेवता रे, करतां नित नित मंगलमान के ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ श्री सुमतिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ गरबो कोणेने कोराव्यो के, नंदजीना लाल रे॥ ए देशी ॥ पंचम सुमति जिनेसर सामी के ॥ सुण जिन राय रे॥ तुमथी नवनिधि ऋदि में पामी के॥ शिव सुख दाय रे ॥ तुं तो पावन परम नगीनो के ॥सु ॥ अहनिश समता रसमां नीनो के ॥ सुरगुस गाय रे ॥ १ ॥ मंगला मावडीयें प्रनु जाया के ॥ सु॥ बप्पन दिशि कुंमरी दुलराया के॥ हरख न माय रे ॥ ताहरूं मुख जखमीनो वीरो के ॥ सु० ॥ तुं तो मेघनृपति कुल हीरो के ॥ हरि नत पाय रे ॥ २ ॥ त्रणशे धनुषनी नंची काया के ॥ सु०॥ चा सीश पूरव लाखनुं आयु के ॥ नागर राय रे ॥ तहा री सेव करे सुरसामी के॥ सु० ॥ तुंतो शिव सुंदरी
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(१५२) सुखकामी के ॥ निर्मल काय रे ॥ ३ ॥ तुंतो नक्त वत्सल जय टाने के ॥ सु० ॥ तुं तो त्रण नुवन अ जूयाले के ।। जिम दिनराय रे ॥ तुं तो मुनिजन मा नस दीवो के ॥ सु० ॥ अविचल ध्रुवमंगल चिरंजी वो के ॥ जिम गिरिराय रे ॥ ४ ॥ प्रनुजीनी वाणी अमीरस मीठी के ॥ सु०॥ जिनजीनी मोहन मूर्ति दीती के ॥ अति सुख थाय रे ॥ श्री गुरु सुमतिवि जय कविराया के ॥ सु० ॥ सेवकः रामविजय गुण गाया के ॥ जयो जिन राय रे ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पद्मप्रनजिन स्तवनं । फूंबखाडानी देशी॥ श्री पद्मप्रन जिन सेपियें रे, शिवसुंदरी जरतार ॥ कमल दल अांखडीयां ॥ मो हनगुं मन मोही रयुं रे,रूप तणो नहिं पार ॥ जमुह धनु वांकडियां ॥ १ ॥ अरुण कमलसम देहडी रे, जगजीवन जिनाय।।वयण रस शेलडियां॥त्रीश पूरव लख पाक रे,सारे वंडित काज ॥ मोहन सुरवेल डि यां॥२॥ सहियरो सवि टोलें थरे, शोले सजी शण गार ॥ मिलि सखि शेरडियां ॥ गुण गातो घुमरी दी ये रे, करी चूडी खलकार ॥ कमलमुख गोरडियां॥३॥ मात सुसीमा नरें धस्यो रे, मुफ दिलडामांहे देव ॥ वस्यो दिनरातडियां ॥ कोसंबी नयरी तणो रे, नाथ नमो नित्यमेव ॥ सुणो सखि वातडीयां ॥ ॥ धनुष अढीशय शोनिती रे,नंच पणे जगदीश ॥ नमो साहे
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(१५३)
लडियां ॥ रामविजय प्रभु सेवतां रे, लहियें सयल जगी || वधे सुख वेलडियां ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सुपार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥ नायता रे तुमें चाव्या गढ खागरे रे लाल ॥ ए देश ॥
॥ सेवजो रे सामी सुपास जिणेसरु रे ॥ लाल, पू जीयें धरी म रंग रे लाल || मोरे मन मान्यो सा हेबो- रे लाल, प्रेमथी रे प्रीति बनी जिन राजनुं रे ॥ लाल || जेहवो चोलनो रंग रे लाल ॥ १ ॥ मोरे मन नान्यो सहिवो रे लाल || ए की ॥ धरजो रे धन पृथिव। राणी सती रे || लाल ॥ जायो जेणें रतन्न रे लाल ॥ मोरे० || दीपती रे दिसिकुमरी यावी तिहां रे ॥ लाल, करती कोडी जतन रे लाल ॥मो० ॥ ॥ २ ॥ जोरथी रे जिनमुख निरखी नाचती रे ॥ ला ल, हर्ष दीये आशीष रे लाल || मो० ॥ चाहती रे चिरंजीवो तुं बाजुडा रे ॥ लाल, त्रण जुवनना ईश रे लाल || मो० ॥ ३ ॥ फावती रे फरती फूदडली दीये रे || लाल, मदनर माती जेह रे लाल || मो० ॥ नाथने रे नेह नयण नरी जोवती रे || लाल, गुण गाती ससनेह रे लाल ॥ ४ ॥ दरें रे एम दुल रावी बालने रे लाल, पोहोती ते निज गेह रे ला ल || मो० ॥ प्रेमचं रे प्रभु वाधे मन मोहता रे ॥ लाल, दोयसें धनुषनी देह रे लाल || मो० ॥ ५ ॥ रागथी रे राजकुमरी रलीयामणी रे ॥ लाल, परण्या
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(१५४) प्रनु सुविलास रे लाल ॥ मो० ॥ मानजो रे मोह तणे वशे माहरो रे लाल, नाथ रहे गृहवास रे ॥ साल ॥ मो० ॥ ६ ॥ नावथी रे नोग तजी दीदा वरी रे॥ लाल, वीश पूरव लेख आय रे लाल मो॥ जागतो रे ज्योति सरूपी जगदीसरू रे॥लाल, रामवि जय गुण गाय रे लाल ॥ मो० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री चंयन जिनजीनुं स्तवन ॥ ॥रायजी अमें तो हिंाएगी के, राय गराशीया रे लो॥ ए देशी॥ जिनजी चंप्रन अवधारो के, नाथ नीहालजो रे जो ॥ के बमणी बिरुद गरीब नीवाजनी, वाचा पालजो रे लो॥१॥.हरखें हूं तुम शरणें आयो के, मुफदे राखजो रे लो ॥ चो रटा चार चुगल जे गंमा, ते दूरें नाखजो रे लो ॥ ॥ ॥ प्रनुजी पंचतणी परशंसा के, रूडी थापजो रे लो ॥ मोहन महेर करीने दरिसन, मुफ़ने .आपजो रे लो ॥ ३ ॥ तारक तुम पालव में काल्यो के, हवे मुने तारजो रे जो ॥ कुतरी कुमति थले के. के, तेहने वारजो रे लो॥ ४ ॥ सुंदरी सुमति सोहागण सारी के, प्यारी ने घणु रे लो॥ तातजी तेविण जीवें चन्द, नुवन का आंगणुं रे लो ॥ ५ ॥ लख गुण लवमा राणीना जाया के, मुफ मन आवजो रे लो ॥ अनुपम अनुनव अमृत मीठी के, सुखडी लावजो रे लो॥ ६ ॥ दीपती दोढशो धनुष प्रमाण के, प्रनुजीनी देहडी रे लो ॥ देवनी दश पूरव
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(१५५) लखमान के, आयुष्य वेलडी रेलो ॥ ७ ॥ निर्गुण निरागी पण ढुं रागी के, मनमाहे रह्यो रे लो॥ शुनगुरु सुमति विजय सुपसाय के, रामें सुख सह्यो रे लोल ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री सुविधि जिन स्तवनं ॥ ॥ सोवन लोटा जलें जया कुडाली दोरी॥ शां शां दात लेश रे, व्योने राम ल्योने दोरी ॥ए देशी॥
॥ सुविधि जिणेसर जागतो, जग मोहन सामी॥ राय सुग्रीवनो नंद रे, वंदो लाल अंतरजामी॥१॥ जरीय कचोली कुमकुमें, मांहे मृगमद घोली॥पूजो प्रनु नव, अंग रे, रंगें लाल सहीयर टोली ॥ २ ॥ केशरनी आंगी रची, मांहे हीरा दीपे ॥ जोर बन्यो जिनराज रे, तेजें लाल सूरज जीपे ॥ ३ ॥ मुकुट धस्यो शिर शोलतो, मणि रयण विराजे ॥ फलके कुं मल जोडी रे, हैयडे हार निर्मल बाजे॥ ४ ॥ करी पूजा मन नावगुं, प्रनु हैयडे धरती ॥ धरती ग्वती पाय रे, जोवे लाल जिनमुख फरती ॥ ५ ॥ काकंदी नयरी धणी, शत धनुषनी काया ॥ लाख पूरव दोय
आय रे, नवमो लाल ए जिनराया ॥६॥ श्री सुमति विजय गुरुनामथी, नित्य मंगल माला ॥ रामविजय जयकार रे, जपतां लाल जिनगुण माला॥ ७॥इति ॥
॥अथ श्री शीतल जिन स्तवनं ॥ ॥ पाटणनी पटोली रे, राजिंद लावजो रे लो॥ ए देशी॥श्रीनहिलपुरना वासी रे, साहेब माहेरा रे॥
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(१५६) श्रवणे ने सुणिया रे, गुण बहु ताहेरा रे ॥ सुण मोरा मीठडा सिरि जगवंत, केवल कमलाना हो कंत, सेवकने निज चरणे रे राजिंद राखजो रे॥१॥साते ने वली राज रे, राजिंद अल्गो वसे रे॥ तिहां किण ने श्रावणने रे, मनहं ननस रे ॥ सुण मोरा साहे ब लाल गुलाल, सेवकह नयणं निहाल, नय नीलीला रे तारी तारशे रे ॥ २ ॥ श्री शीतल जिन मुफ मन, मंदिर भावजो रे ॥ शिवरमणीना रसीया रे, दिलमा लावजो रे॥प्रनुजी मोरा ताहरं अकल सरूप, तुऊयी अगम नहिं मनरूप जीवडलो लल चाणो रे, प्रनुजीनी सूरतें रे ॥३॥ नेवं धनुप परिमारों रे, नंदा मातनो रे॥ श्रीवलंबन रे, दृढरथ तातनो रे॥प्रनु मोरा अवधारो गुए। गेह, जिनजी तुजगुं मुज मन नेह, नेहडलानी वातो रे, राजिंद दोहली रे ॥ ४ ॥ वीनतडी सांजलीने रे, साहामुंजालजो रे ॥ नव नवनां पातकडा रे, अलगां टालजो रे ॥ प्रनु मोरा तुमें बो गरीब नीवाज, श्री गुरु सुमति विजय कविराज, बालक सेवकने रे, लेखे आगजो रे ॥ ५॥ इति शीतल जिन स्तवनं ॥
॥अथ श्री श्रेयांस जिन स्तवनं॥ ॥ विजल वोलावा ढुंग, कांई उनी सेरी विच ॥
विजल वालमा ॥ ए देशी ॥ ॥ तारक बिरुद सुगी करी, हुँ यावी ननो दरबा र ॥ श्रेयांस साहेबा ॥ प्रनु ताणो ताण नकी
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(१५७) जिएं ॥ मुज उतारो नवपार ॥१॥ श्रेयांस साहेबा ॥ कालादिक दूषण दाखतां, दातारपणुं कम थाय ।। श्रे० ॥ जो विण अवलंबन तारीएं, तो जग सघर्बु जश गाय ॥ श्रे॥२॥ श्रेयांस ॥ बालकने समजा ववा, कहेशो नोलामणे वा ॥ श्रेयांस॥ पण हत लीधो मुकीश नही, विणतारे त्रिभुवन तात ॥ श्रे ॥३॥ श्रे॥ जो मन तारण- बने, तो ढील तणुं गुं काम ॥ श्रे० ॥ चातक निरमुख दूपणे, थर मेघ घटा जग श्याम ॥ श्रे० ॥ ४ ॥ श्रे० ॥ तुज दरि सनथी ताहेरो, हुँ कहेवाणो जगमांहे ॥ श्रे॥ ॥ हवे मुफ कोण लोपी शके, बलीयानी झाली बांह ॥ श्रे० ॥ ५ ॥ श्रे० ॥ विष्णुकुमर वाले सरू, प्रनु सिंहपुरीनो राय ॥ श्रे० ॥ लाख चोराशी वरसनुं, प्रनु पाल्युं पूरण आय ॥ श्रे० ॥ ६ ॥ श्रे० ॥ धनुष एंशी तनु शोनतुं, खडगी संबन जगदीश ॥ श्रे० ॥ हरख धरीने वीनवे, श्री सुमतिविजय गुरु शिष्य ॥ श्रे० ॥ ७ ॥ इति ॥ श्रेयांस स्तवनं
॥अथ श्री वासुपूज्य जिन स्तवनं ॥ ॥ नंदना गोवालीया ।। ए देशी ॥ श्री वासुपूज्य नरिंदना, नंदन जन नयणानंद ॥ श्री जिन वालहा॥ प्रनु किम यावं तुम उलगें, मारे कूडो कुटुंबनो फंद ॥ १ ॥ श्री जिन सांनलो ॥ कुमति रमणी मोहनं दनी, मुज केड न मूके तेह ॥ श्री जि० ॥ मित्र मिल्यो ते लोनी, लागो तेहगुं बहुनेह ॥ ॥ श्री जिन॥
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(१५७) त्रेवीश मिव्या धूतारडा,तेहना वली नव नवा रंग ।। श्री जिन॥अह निश तेरो हुँ जोलव्यो, न धयो प्रनु साथें रंग ॥३॥ श्री जिन ॥ प्रनु दरशनें तरसे घj, जिन मुज मनडुं दिन रात ॥ श्री जिन ॥ पण दश त्रण आमा रहे, जे नीच घणुं कमजात ॥४॥ श्री जिन ॥ कूडो कलियुग आजनो, बहु गामरीयो पर वाह ॥ श्री० ॥ ताहरूं रूरा न उलखे, नही शुद्ध धर मनी चाह ॥ ५ ॥ श्री० । प्रनु दरशन विण जीव डा, करता दीसे व्यवहार ॥ श्री० ॥ तेणे नरमे नूला घणा, प्रनु दोहिलो लोकाचार ॥ ६ । श्री जिन ॥ वरस बहोंतेर लख ान, नोरी सीतेर धनुष्य तन सार ॥ श्री० ॥ श्री रामविजय करजोडीने, कहे न तारो नवपार ॥ ७ ॥ श्री जिन.॥ ॥ इति ॥
॥अथ श्री विमलनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ फूल बारीयां बारीयां शुं करो, फूल जोजन करता ॥
॥जाउ रे ॥ बारीयां फूलजी॥ ए देशी॥ ॥ जिन विमलवदन रतीयामj, जाणे कनक कमलनो राय रे ॥ विमल जिणंदजी ॥ जिन अधर अमीरस नमिनो, प्रतिबिंबित बिंब सुहाय रे ॥१॥ विमल जिणंदजी ॥ जिन अनुपम रूपनी रेखमां, नवि आवे सुरना इंदरे ॥ विमल ॥ जिन मुख टी को नीको बन्यो, मानुं नग्यो उज्ज्वल चंद रे ॥ २ ॥ विमल ॥ जिन दाडिम कली जेम उपती, अति दीपे दंतनी उन रे ॥ विमल ॥ ए अरुण अधर बबीथी
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(१५५)
मल्या, मानुं मुक्ताफल समतोल रे ॥ ३ ॥ विमल० ॥ जिन कल रूपी रूप ले, पण सकल सरूपी जाए रे ॥ विमल० ॥ जिन अगणित गुणना दोरथी, मन मांकडुं बांध्युं ताए रे ॥ ४ ॥ विमल० ॥ जिन शिव सुखदायक सांजली, दुं दरख्यो हैडा मांहे रे ॥ विमल० ॥ जिन इकतारी तुज शुं करी, जिम चंदचकोरी चाहे रे ॥ ५ ॥ विमल ॥ प्रभु एवडी विमास शुं करो, नही खोट खजाने तु रे ॥ विमल० ॥ जो नापो तो सहामुं जून, तो वंबित फलशे मुऊ रे ॥ ६ ॥ विमल ॥ सुत कृतवर्मा श्यामा तणो, शाठ लाख धनुष तनु याय रे || विमल० ॥ श्री सुमतिविजय कविरायनो, एम रामविजय गुण गाय रे || विमल० ॥ ७ ॥ इति विमल० ॥ ॥ अथ श्री अनंत जिन स्तवनं ॥
॥ सावर मलीयें याव्या बे जरपूर जो ॥ ए देश ॥
॥ सुजसा नंदन जगदानंदन नाथ जो, नेहें रे नव रंगें नित नित जेटीयें रेलो || जेट्याथी गुं थाये मोरी सहीयो जो, जव नवनां पातिकडां जगां मेटीयें रेलो ॥ १ ॥ सुंदर साडी पेहेरी चरणा चीर जो, प्रावोने चतुवटडे जिनगुण गाइयें रेलो ॥ जिन गुण गाये गुं थाय मोरी बहेनी जो, परजव रे सुरपदवी सुंदर पामीयें रेलो ॥ २ ॥ सहीयर टोली जोली परिगल नावें जो, गावे रे गुणवंती हैयडे गह गही रेलो || जय जग नायक शिव सुखदायक देव
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जो, लायक रे तुज सरिखो जगमां को नही रेलो ॥ ॥ ३ ॥ परम निरंजन निर्जित जय जगवंत जो, पा वन रे परमातम श्रवणें सांनव्यो रेलो || पामी हवे में तुऊ शासन परतीत जो, ध्यानें रे एकतानें प्रभु यावी मव्यो रेलो ॥ ४ ॥ उंचपणे पंचाश धनुपनुं मान जो, पाल्युं रे वली आयुष लाखज त्रीशनुं रे लो ॥ श्रीगुरु सुमति विजय कविराय पसायें जो हो निश रे दिल ध्यान वसे जगदीशनुं रेलो ॥ ५॥ इति ॥ ॥ अथ श्री धर्म जिन स्तवनं ॥
॥ वाइ रे गरबडो ॥ ए देशी ॥ धर्म जिनेसर सेवी यें रे, नानु नरेशर नंद || बाइ रे जिन वडो ॥ जिन ध्यानें दुःख वीस रे, हुं पामी परमानंद ॥ वा० ॥ ॥ १ ॥ रत्नजडित सिंहासनें रे, चेसे श्री जगवान ॥ वा० ॥ मुह श्रागत नाचे सुररी रे, इंड् करे गुण गान ॥ बा० ॥ २ ॥ प्रभु वरसे तिहां देशना रे, जिम
पाढो मेह ॥ बा०॥ ताप टले तननो परो रे, वाधे वमणो नेह ॥ वा ॥ ३ ॥ अणवायां गयणे घुरे रे, वाजित्र कोडा कोड ॥ बा० ॥ ताथेइ नाचे किन्नरी रे, ह्रीं मोडामोड || बा० ॥ ४ ॥ श्रायु वरप दश लाखनुं रे, धनु पण चालिश मान वा० ॥ रामविजय जिन नामथी रे, लहीयें नवे निधान || बा० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री शांति जिन स्तवनं ॥
॥ सुंदर शांति जिणंदनी, बबि बाजे बे ॥ प्रनुं गंगा
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जल गंजीर, कीर्त्ति गाजे बे ॥ गजपुर नयर सोहामणुं, घणुं दीपे बे || विश्वसेन नरिंदनो नंद, कंदर्प कीपे बे ॥ १ ॥ चिरा मातायें वर धस्यो, मन रंजे बे ॥ मृगलंबन कंचन वान, जावत जंजे ले ॥ २ ॥ प्रनुं लाख वरस चोथे जागें, व्रत लीधुं वे ॥ प्रभु पाम्या केवल ज्ञान, कारज सीधुं बे ॥ ३ ॥ धनुष चालीशनुं ईशनुं, तनु सोहे बे ॥ प्रभु देशना धुनि वरसंत, नवि पडिवो बे ॥ ४ ॥ नक्तवत्सल प्रभुता नली, जन तारे
॥ बूतां नवजल मांहि, पार उतारे बे ॥ ५ ॥ श्री सु मति विजय गुरुनामथी, दुःख नासे बे ॥ कहे रामवि जय जिन ध्यान, नवनिधि पासें बे ॥ ६ ॥ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री कुंथुनाथ स्तवनं ॥ || देशी रसीयाना गीतनी ते ॥ रसीया कुंथु जिने सर केसर, चीनी देहडी रे लो || मारा नाथजी रे लो ॥ रसीया मन पंडित वर पूरण, सुरतरु वेलडी रे लो ॥ महारा० ॥ रसीया अंजन रहित निरंजन, नाम हइए धरो रे लो ॥ महारा०॥ रसीया जुगतें करी मन जगतें, प्रभु पूजा करो रे लो ॥ १ ॥ महारा ॥ रसीया श्री नंदन यानंदन, चंदनथी सिरे रे लो || महारा० ॥ रसीया ताप निवारण तारण तरण तरीपरें रे लो ॥ महा रा० ॥ रसीया मनमोहन जग सोहन, कोह नहि कि स्यो रे जो ॥ महारा० ॥ रसिया कूडा कलियुग मांहे, अवर न को इस्यो रे जो ॥ महारा० ॥ २ ॥ रसीया गुण संचारी जावं, बलिहारी नाथनें रे लो ॥ महारा॥
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(१६२) रसीया कोण प्रसादें बांझे, शिवपुर साथने रे लो ॥ महारा॥ रसीया काच तणे कोण कारण, नाखे सुर मणि रेलो॥महारा० ॥ रसीया कोण चाखे विष फल ने, मेवा अवगणी रे लो॥३॥ महारा० ॥ रसीया सूर नृपति सुत ठावो, चावो चिटुं दिशे रे लो। महारा०॥ रसीया बरस सहस पंचागुं, जिन पुहवी वसे रे लो॥ महाराणा रसीया त्रीश धनुष पण नपर, नंचपणे प्रनु रे लो॥ महाराज ॥ रसीया त्रण नुवन नो नाथ के, थइ बेगो विनु रेलो॥४॥ महारा० ॥ रसीया अजलंडन गत लंबन, कंचनवान डे रे लो। महारा० ॥ रसीया इदि पूरे दुःख चूरे, जेहने ध्या न रे लो॥ महाराण ॥ रसीया बुध श्री सुमति विज य कवि, सेवक वीनवे रे लो ॥ महारा० ॥ रसीया राम कहे जिनशासन, नवि मुकुं हवे रे लो ॥ ५ ॥
॥ अथ श्री अरनाथ जिन स्तवनं ।। ॥ सींचजो रे वाडीमांनी वेल,सींचजो कटारो केवडो॥
॥रे॥ए देशी ॥ ॥ गायजो रे धरी नन्नास, अर जिनवर जगदीस रू रे ॥मानजो रे एह महंत, महीयल मांहे वालेस रू रे ॥ १ ॥ ध्याइजो रे दृढ करी चित्त, मन वंडित फल पूरशे रे॥ वारजो रे अवरनी सेव, एहिज शंका चूरशे रे ॥ ॥ सींचजो रे सुमतीनी वेल, जिन गुण ध्यान नीरें घj रे ॥ संपजे रे समकित फूल, के वल फल रलियामणुं रे॥३॥ पुण्यथी रे देवी नंद, नय
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. (१६३) एवं निरख्यो नेहथी रे ॥ उपनो रे अति आनंद, दुःख अलगां थयां जेहथी रे ॥ ४ ॥ शोजती रे त्रीश धनु पनी काय, राय सुदर्शन वंशनो रे ॥ आनखं रे जि नजी, सार, सहस चोराशी वरसनुं रे ॥ ५॥ जिन राजने रे करूं परणाम, काज सरे सवि आपणुं रे॥ नावथी रे नक्ति प्रमाण, दरिसन फल पामे घj रे॥ ६ ॥ सेवजो रे अरपद अरविंद, जो शिव सुख नी कामना रे ॥ राखजो रे प्रनु हृदय मोकार, राम वधे जग नामना रे ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ श्री मनीनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ एक अंधारी रे रातडी ॥ ए देशी ॥ मिथिला नयरी रे अवतस्या,. याने कुंन नरेशर नंद ॥ संबन शोहे रे कलश तणुं, ने नील वरण सुखकंद ॥ १ ॥ मनी जिनेसर- मन वस्यो ॥ ने गणीशमो अरिहंत, कपट धर्मना रे कारणथी, प्रनु कुमरी रूप धरंत ॥ म ॥ २ ॥ सहस पंचावन रे वरस सुणो, ने आ युतणुं परिमाण ॥ मात प्रनावती रे तर धस्यो, पण वीश धनुषतनु मान ॥ म० ॥३॥ सहस पंचावन रे साधवीयो, ने मुनि चालीस हजार ॥ समेतशिखरें रे मुगतें गया, ने त्रण नुवन आधार ॥ म० ॥ ४ ॥ अड जय टाली रे बापथकी, ने जेणे बांधी अवि हड प्रीत ॥ रामविजयना रे साहेबनी, अविच ल एहज रीत ॥ म ॥ ५॥ इति मनिजिन ॥
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(१६४) ॥ अथ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवनं ॥ ॥ हरनी हमची रे॥ए देशी ॥ यावो रे बावो रे सखी देहरे जाएं, प्रनु दरिसन करी निरमल थ एं ॥ गावो गावो रे हरख अपार, जिन गुण गरबो रे ।। तुमें पेहेरो शोल शणगार ॥ जिन गुण गरवो रे ॥ मारे लाखेणो ए वार ॥ जिन ॥ दोहेलो मानव य वतार ॥ जिन ॥ १ ॥ पदमा देवी नंदन नीको. प्रनु राय सुमित्र कुल टीको ॥ नमो नमो र एही ज नाथ ॥ जिन ॥ फोगट शी करवी वात ॥ जिन॥ कूडो लागे नेहनी लात ॥ जिन ॥२॥ कडप लंडन प्रनु पाया डे, जिन वीश धनुषनी काया वे ॥ त्री सहस वरसनु आय ॥ जिन ॥ मारे हाडे हरख न माय ॥ जिन॥ एहनी सेवाथी सुख थाय ॥ जिन ॥ मारा कुःखडां दूरें जाय ॥ जिन ॥३॥ प्रंनु श्याम वर्ण विराजे बे, मुखडं देखी विधु लाजे ने ॥ एने मोही मोही हरिनी नार ॥ जिन ॥ जे करे खंबगडां सार ॥ जिन ॥ प्रनु नयण तणे मटकार ॥ जिन ॥ तेथी लागो प्रेम अपार ॥ जिन ॥ ४ ॥ प्रनु हृदय कमलनो वासी ,शिवरमणी जेहनी दासी ॥ ढुंतो तेह तणो दास ॥ जिन ॥ मारी पूरे मन डानी अाश ॥ जिन ॥ प्रनु अविचल लीलविलास॥ जिन ॥ रामविजय कहे नन्नास ॥ जिन ॥ ५ ॥
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(१६५)
॥ अथ श्री नमी जिन स्तवनं ॥ ॥ दोशीडाने हाटें जाजो लाल, लाल कबो ॥ ॥ जींजे बे ॥ ए देशी ॥
॥ कांई विजय नरेशर नंदन लाल, विप्रा सुत मन मोहे बे ॥ निलुत्पललंबन पाए लाल, सोवन वान तनुं शांहे बे || १ || मिथिला नयरीनो वासी लाल, शिवपुरनो मेवासी बे ॥ मुनि वीशसहस जश पासें लाल. तेज कला सुविलासी बे ॥ २ ॥ प्रनुं पंदर धनुप परिमाणे लाल, जगमां कीरति व्यापी बे ॥ प्रन जीवदयाने आणे लाल, सुमति लता जिणें थापी वे ॥ ३ ॥ नमीनाथ नमो गुण खाणी लाल, दय वली अविनाशी बे | तेणें वात सकल ए जाएगी ला ल, जेहने प्राशा दासी बे ॥ ४॥ श्री सुमति विजय गुरु नामें लाल, कीर्ति कमला बाधी बे ॥ कहे रामविजय जिन ध्यानें वाल, अविचल लोला लाधी बे ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्री नेमीनाथ जिन स्तवनं ॥
॥ में तुमारा बोरुडां गुण जाणोबो के ना ॥ ॥ ए देशी ॥
॥ राजुल कहे पिया नेमजी, गुण जानो बो के ना || केम बोडी चाव्या निरधार, हे गुण मानो बो के ना ॥ पुरुष अनंते जोगवी ॥ गुण० ॥ पीयु शुं मोही रह्या तेरो नार, हे गुण० ॥ १ ॥ कोडी गमे जेहने चाहे ॥ गुण० ॥ श्यो ते नारीथी रंग । हे गु
० ॥ पण जग नखाणो को ॥ गुण० ॥ होवे
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( १६६)
सरिसा सरिसो संग ॥ हे गुण ॥ २ ॥ ढुंगुल वंती गोरडी || गुण० ॥ ते निर्गुण निहेजी नार ॥ हे गुण० ॥ हुं सेवक बुं राजली रे ॥ गुण ० ॥ ते साभुं न जुवे लगार ॥ हे गुण० ॥ ३ ॥ जगमां ते गुण आगली ॥ गुण० ॥ जेणे वश कीधो जरतार ॥ हे गुण० ॥ मन वैरागें वालीयुं ॥ गुण० ॥ रा जुल संजम नार ॥ हे गुंण० ॥ ४ ॥ बहेनीने मलवा जणी ॥ गुण० ॥ पीयु पेहेली तेह जाय । हे गु
० ॥ संग लइ ते नारने ॥ गुण० ॥ रही अनुभव शुं लयलाय || हे गुण० ॥ ५ ॥ समु विजय कुल चंदलो || गुण० ॥ शिवादेवी मात मलार ॥ हे गु
० ॥ वरस सहस एक यानखं ॥ गुण० ॥ सोरी पुरनो सिणगार || हे गुण ॥ ६ ॥ देह धनुष दश दीपती॥ गुण० ॥ प्रभु ब्रह्मचारी भगवंत ॥ हे गुण० ॥ राजु लवर मुने वालहो ॥ गुण ० ॥ कहे रामविजय, जयवंत ॥ हे गुण० ॥ ७ ॥ इति नेमिजिनस्तवनं ॥
॥ अथ श्री पारसनाथ जिन स्तवनं ॥
॥ ऊटणीना गीतनी देशी ॥ सेवो नविजन जिन त्रेवीशमा, लंबन नाग विख्यात ॥ जलधर सुंदर प्रभुजीनी देहडी, वामा राणीनो जात ॥ सेवो नवि जन जिन वशमा ॥ १ ॥ चिहुँ दिशें घोरघटा घनशुं मल्यो, कमतें रच्यो जलधार ॥ मुशल धारें जल वरसे घणुं, जल थल न लडुंजी पार ॥ सेवो० ॥ २ ॥ वड हेल वाहानो काउस्सग्ग रह्यो, मेरुतणी परें
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(१६७)
धीर ॥ (ध्यान शुकल बीजं पद ध्यावतो) ध्यान तणी धारा वाधे तिहां, चढियां चांजी नीर ॥ से वो ॥३॥ अचल न चलियो प्रनुजी माहरो, पाम्यो केवल झान ॥ समवसरण सुरकोडी मिल्या तिहां, वाज्यां जीत निशाण ॥ सेवो० ॥ ४ ॥ नव कर ऊंच पणे प्रनु शोजता, अश्वसेन रायनो नंद ॥ प्रगट पर ता पूरण पासजी, दीवे होवे आनंद ॥ सेवो ॥५॥ एक शत वरसनुं आनखं जोगवी,पाम्या अविचल २६ ॥ श्रीसुमतिविजय गुरु नामथी, राम लहे वर सि॥ सेवो० ॥ ६ ॥ इति पार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥अथ श्री महावीर जिन स्तवनं ॥ ॥ गरबी पूछे रे महारा गरबडा रे ॥ ए देशी ॥
॥ चरण नमी जिनराजनां रे, मागुं एक पारा य ।। महारा लाखेणा स्वामी रे तुने वीनवु रे । म हेर करो,मारा नाथजी रे, दास धरो दिलमांहे ॥ महारा० ॥ १ ॥ पतित घणा तें नया रे, बिरुद गरीब निवाज ॥ महारा० ॥ एक मुजने वीसारतां रे, शे नावे प्रनु लाज ॥ महारा० ॥ २ ॥ उत्तम जन घनसारीखा रे, नवि जोवे गाम कुनाम । म हारा ॥ प्रनु सुनजरें करुणाथकी रे, जहीयें अ विचल धाम ॥ महारा० ॥ ३ ॥ सुत सिदारथ रा यनो रे, त्रिशलानंदन वोर ॥ महारा० ॥ वरस बोहोंतेर आउ रे, कंचनवान शरीर ॥ महारा० ॥ ॥ ४ ॥ मुख देवी प्रनु ताहरूं रे, पाम्यो परमा
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(१६७) नंद ॥ महारा० ॥ हृदय कमलनो हंसलोरे, मुनिजन कैरव चंद ॥ महारा० ॥५॥तुं समरथ शिर नाहलो रे, तो वाधे जशपूर ॥ महारा० ॥ जीत निशानना नादची रे, नाठा उशमन दूर ॥ म हारा ॥ ६ ॥ श्री सुमति सुगुरु पद सेवना रे, कल्प तरुनी बांहे ॥ महाराा ॥ रामप्रनु जिन वीरजी रे. ने अवलंबन बांहे॥ महारा० ॥ ॥ इति । कलश ।। एम नुवन नाषण दुरित नाशन, विमल शासन जिनवरू ॥ नव नीति चूरण बाशपूरण, सुमति का रण शंकरू ॥ में शुण्यो नगर्ने विविध जुगतें, नगर म हीराणे रही ॥ श्रीसुमति विजय गुरु चरण सानि धि, रामविजय जयश्री लही ॥ १ ॥ इति पंमित श्री रामविजय रूत चोवीशी संपूर्ण ॥. ॥ अथ पंमित श्री मोहनविजयजीकृत चोवीस जिनस्तवनं प्रारंनः ॥
-->o<= > ॥ तत्र प्रथम ॥ श्रीकानजिन स्तवनं ॥ त्रीजे नव वरथानक तप करी ॥ ए देशी॥ बालपणे आपण ससनेही, रमता नव नव वेशे ॥ आज तुमें पाम्या प्रनुताइ, अमें संसार निवे शेहो प्रनुजीयोलंनो मत खीजो ॥ ए आंकणी॥ ॥ १ ॥ जो तुम ध्यातां शिव सुख लहीयें, तो तुमने केश ध्यावे ॥ पण नव स्थिति परिपाक
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( १६५)
थया विण, कोइ न मुगति जावे हो ॥ २ ॥ प्र० ॥ सिद्ध निवास लहे नवि सिद्धि, तेमां शो पाड तुमा रो ॥ तो उपगार तुमारो वहिएं अजव्य सिने तारो हो ॥ ३ ॥ प्र० ॥ नाण रयण मी एकंतें, थइ बेठा मेवासी ॥ ते मांहेलो एक अंश जो थापो, तें वातें शा वासी हो ॥ ४ ॥ प्र० ॥ श्रय पद देतां नवि जनने, संकीर्णता नवि थाय ॥ शिव पद देवा जो समरथ बो, तो जस लेतां शुं जाय हो ॥ ५ ॥ प्र० ॥ सेवा गुण रंज्यो नविजनने, जो तुमें करो वडनागी ॥ तो तुमें स्वामी केम कहावो, निरमम ने नीरागी हो ॥ ६ ॥ प्र० ॥ नानिनंदन जनवंदन प्यारो, जग गुरु जग ज कारी ॥ रूपविबुधनो मोहन पनणे, वृपन लंबन ब बिहारी हो ॥ ७ ॥ प्र० ॥ इति ॥
॥ अथ श्री कूपन जिन स्तवनं ॥
॥ आज हजारी ढोलो प्रादुणो ॥ ए देशी ॥ प्रथम तीर्थकर सेवना, साहिबा उदित हृदय ससने ह ॥ जिणंद मोरा हे ॥ प्रीत पुरातन सांजरे, साहिबा रोमांचित शुचिदेह ॥ जि० ॥ १ ॥ यदिजिणंद जुहारीयें ॥ साहि बा रुपनजी ० ॥ ए क ॥ अगम अलौकिक पंथडो, साहिबा कागल पण न लखाय ॥ जि० ॥ अंतरगत नी वातडी, साहिबा जग जानें न कहाय ॥ जि० ॥ यादि० ॥ २ ॥ कोडि टकानी हो चाकरी, साहिबा प्रा पति वि न लहाय ॥ जि० ॥ मनडुंजी मलवाने न महे, साहिबा किम की मेलो थाय ॥ जि० ॥ श्र०
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(१७०) ॥ ३ ॥ दूरथकां पण साजनां, साहिबा. सांबरे नव रंग रीत ॥जि०॥ पूरवपुण्यें पामियें, साहिबा परम पुरु पशुं प्रीत ॥ जि० प्रा० ॥४॥ मत मत नय नय कल्पना, साहिबा इतरेतर परिमाण ॥ जि ॥ रूप अगोचर नवि लहे, साहिबा विवदे म हि अयाण ॥ जि० ॥ आ० ॥ ५ ॥ सम दम शुभ वनावमां. सा हिबा प्रनु तुम रूप अखंग ॥ जि० ॥ नगत वंदित संलीनता, साहिबा एहथी प्रगट प्रचंग; जि ॥ द्या ॥ ६ ॥ करुणा रस संज गथी, साहिबा दीगे नवल दिदार ॥ जि० ॥ रूप विबुध कविराजनो, साहिवा मोहन जय जय कार ॥ जि० ॥ श्रा० ॥ ॥ इति
॥ अथ श्री अजित जिन स्तवनं । ॥कांवल रोपाणी लागणो॥ ए देशी॥ ॥ उत्लग अजित जिणंदनी, माहारे मन मानी ॥ मालती मधुकरनी परें, बनी प्रीत अबानी.॥ १ ॥ वारी हुँ जित शत्रु सुत तणा, मुखडाने मटके ॥ ए आंकणी ॥ अवर को जाचूं नही, विण सामी सुरं गा ॥ चातक जिम जलधर विना, नवि सेवे गंगा ॥ २ ॥ वा० ॥ ए गुण प्रनु केम वीसरे, सुगी अन्य प्रशंसा ॥ बीलर जल किणविध रति धरे, मान सरना हंसा ॥३॥ वा० ॥ शिव एक चंदकला थकी, लही ईश्वरता ॥ अनंत कलाधर में धस्यो, मुज अधिक पुण्याई ॥४॥ वा० ॥ तुं धन तुं मन तन तुंही, ससमेहा स्वामी ॥ मोहन कहे कवि
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( १७१ )
रूपनो, जिन अंतरजामी ॥ वा० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री अजित जिन स्तवनं ॥ ॥ मोतिडानी देशी
॥ अजित जित जिन अंतर जामि, अरज करूं बुं प्रभु शिर नामि ॥ साहिबा ससनेही सुगुनी, वा तडी कहुं केही ॥ आपण बालपणाना स्वदेशी, तो हवे किम था बो विदेशी ॥ सा० ॥ १ ॥ पुष्य अधिक तुमें हुआ जिणंदा, यादि अनादि में तो बंदा ॥ सा० ॥ जो प्रनुपाम्या बो प्रभुताई, दास निवाजियें तो बेव डाइ ॥ सा० ॥ २ ॥ ताहरे याज मला बे शानी, तुंहिजली लावंत तुं ज्ञानी ॥ सा० ॥ तुजविण अन्यने कां नथी ध्याता, तो जो तुंबे लोक विख्याता ॥ सा० ॥ ३ ॥ एकने दर एकने अनादर, इम किम घटे तुमने करू गाकर ॥ सा० ॥ दचिए वाम नयन बिहुं सरखी, कुण
कुरा अधिक परखी ॥ सा० ॥ ४॥ सामता मुकथी न राखो स्वामी, शी सेवकमां देखो वो खामी ॥ सा० ॥ जे न जहे सनमान स्वामिनो, तो तेहने कहे सहुको कमिनो ॥ सा० ॥ ५ ॥ रूपातीत जो मुऊथी याशो, ध्याशुं रूप करी किहां जाशो ॥ सा० ॥ जडपरमाणु
रूपी कहीयें, महत संजोगेंशुं, रूपी न थश्यें ॥ सा० ॥ ६ ॥ धन जो लगे किमपि न देवे, जो दिन मणि कनकाचल सेवे ॥ सा० ॥ एहवुं जाएगीढुं तुऊने सेवुं, ताहरे हाथ बे फलनुं देवं ॥ सा० ॥ ७ ॥ तुफ पय पंकज मुऊ मन वलगुं, जाये किहां बंमीने अ
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________________ (172) लगुं ॥सा॥ मकर मयगलमद पीराचे, पण शुने मुखें लालच नवि माचे ॥साना तारक बिरुद क हावो बो मोहोटा, तो मुफथी किम था जो खोटा॥ सा० // रूपविबुधनो मोहन नांखे, अनुनव रस आ पंदयुं चाखे // सा० // // इति // ॥अथ श्री संजय जिन स्तवनं // // आघा याम पधारो पूज्य // ए देश // // समकितदाता समकित आपो, मन मागे.थ धीतुं // बति वस्तु देतां युं शोचो, मी जे सहुएं दीतुं // 1 // प्यारा प्राण की डो राज, संनव जिन वर मुझने ॥ए आंकणी॥ श्म जाणो जे आ लहीएं, ते लाधुं युं लेबु // पण परमारथ प्रीबी आये, तेहज कहीयें देवं // प्या० // 2 // अर्थी हुँ तुं अर्थ सम प्र्पक, श्म मत करजो हांसुं // प्रगट न हतुं तुमने पण पहिला, ए हासानु पासुं। प्या० // 3. // परम पुरुप तुमें प्रथम नजीने, पाम्या ए प्रनुताई, तिण रूपें तुमने इम नजीयें, तिणें तुम हाथ वडाइ / प्या० // 4 // तुमे स्वामी हुँ सेवा कामी, मुफरे स्वामी निवाजे, नहि तो हठ मामी मागतां, किणविध सेवक लाजे // प्या० // 5 // ज्योतें ज्योति मिले मत प्रीबो, कुण लहेशे कुरा जजशे // साची नक्ति ते हंसतणी परें, खीर नीरमय करशे // प्या० // 6 // उलग कीधी जे लेखें ावी, चरण नेट प्रनु दीधी॥ रूपविबुधिनो मोहन पनणे, रसना पावन कीधी // प्या० // 7 //
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(१७३) ॥ अथ श्री अनिनंदन जिन स्तवनं ॥
॥ आळे लालनी देशी ॥ ॥ अकल कला अविरुद, ध्यान धरे प्रतिबु६ ॥ याने लाल, अनिनंदन जिन चंदना जी॥रोमांचित थइ देह, प्रगट्यो पूरण नेह ॥ आ० ॥चं ज्युं वन अरवंदना जी॥ १ ॥ एको खिण मन रंग, परम पुरुपनो संग ॥ आ ॥ प्राप्ति होवे तो पामीयें जी। सुगुण सलूणी गोठ, जिम साकर नरी पोठ ॥ आ० ॥ विण दाम विवसाय जी ॥ ॥ स्वामी गुण मणि तुऊ, निवसे मनडे मुफ ॥ आ० ॥ पण कहिये ख टके नहीं जी॥ जिम रज नयणे विलग्ग, नीर करे निर वग्ग ॥ आ० ॥ पण प्रतिबिंब रहे सासही जी॥३॥ में जाच्या के जद, तारक जो प्रत्यद ॥ ॥ पण को साच नाव्यो वगें जी ॥ मुफ बटु मैत्री देख, प्रनु मत मूको नवेख ॥ आ॥ आतुर जन बहु उलगे जी ॥४॥ जग जोतां जगनाथ, जिम तिम आव्या हाथ ॥ आ० ॥ पण रखे हवे कुमया करो जी॥ बीजा स्वारथी देव, तुं परमारथ हेव ॥ आ० ॥ पा म्यो हवे हुँ पटतरो जी ॥ ५ ॥ तें तास्या के कोड, तो मुफथी शी होड ॥ श्रा० ॥ में एवडं गुं अलेहां जी ॥ मुफ अरदास अनंत, नविनी डे जगवंत ॥ या ॥ जाणने युं कहेQ घणुं जी ॥ ६ ॥ सेवाफल यो आज, नुलवो कां माहाराज ॥ आ० ॥ नख न जांगे जामणे जी॥ रूपविबुध सुपसाय, मोहन ए
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(१७४) जिनराय ॥ आ ॥ नखे मन नमहे घणे जी॥ ७॥
॥ अथ श्री मुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ वारी हुँ उदयापुर रणे ॥ ए देशी॥ ॥ महारा प्रजुजीगुंवाधी प्रोतडी, ए तो जीवन ज गदाधार ॥ सनेही ॥ साचो ते साहिब सांबरे, खी। माहे कोटिक वार ॥ सनेही ॥ १ ॥ वारी हूँ मुमति जिणंदनी ॥ ए अांकगी॥प्रनु थाडाबोला ने गुण घगा, एतो काज अनंत करनार ॥ स० ॥ नग जेहनी जेवडी, फल तेहा तस देनार ॥ स ॥ २॥ वा० ॥ प्रनु अति धीरो लाजें जयो, जिम सिं च्यो सुरुत घनसार ॥ स । एकज करुणालेहेरमां, सुनिवाजे करे निहाल ॥ स० ॥३॥ वा ॥ प्रनुनव स्थिति पाकें नक्तने, प्रनु कहे त्यो सुपसाय ॥ स० ॥ ऋतु विण कहो किम तरुवरें, फल पाकीने सुं दर थाय ॥ स ॥ ॥ वा ॥ अति नूरख्यो पण गुं करे, कांश बेदु हाथे न जमाय ॥ स ॥ दास त एगी उतावलें, प्रनु किणविध रीऊयो जाय ॥ स० ॥ ॥ ५ ॥ वा ॥ प्रनु लखित होय तो जानीयें, मन मान्यो माहाराज ॥ स० ॥ फल तो सेवाथी संपजे, विण खणण न नांजे खाज ॥ स ॥ ६ ॥ वा० ॥ प्रनु वीसास्या नवि वीसरो, साहामुं अधिक होवे ने नेह ॥ स० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो, मुफ वालो डे जिनवर एह ॥ सं० ॥ ७ ॥ इति ॥
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(१७५) ॥ अथ श्री सुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ घोडी तो आइ थारा देशमां मारुजी॥ ए देशी॥
॥ पदमप्रन तुम सेवना॥हेबजी॥ तेहज सम कित बीज हो ॥ ससनेहा ॥ अरज सुणो एक मा हरी ॥ सा०॥ ए आंकणी ए तो मेलो दोहिलो, सा० ॥ जिम तेरशने त्रीज हो ॥ सा ॥१॥अ॥ प्रनुविण अवर देवाथकी ॥सा॥ किम मन पूगे कोड हो । सन् ॥ सतणे कणे किम दूवे, सा० ॥ मुक्ताफलनी दोड हो ॥ स० ॥ २ ॥ अ० ॥ दूर थकी पण सांनरो, सा॥ समयमें सो सो वार हो। स० ॥ दर्शणीयानो उमाहलो, सा० ॥ पूरे तुं किर तार हो ॥ स ॥ ३॥ अ० ॥ बंधाणुं मन नक्तिथी, सा ॥ ते अलगुं नवि थाय हो ॥ स० ॥ विमल कमल मकरंद है, सा० ॥ तजी मधुकर किम जाय हो ॥ स ॥ ॥ अ०॥ प्रनु सुपसायथी पामीयें, सा० ॥ झानसदन गुणगेह हो ॥ स० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो, सा० ॥ निर्वहेशो साचो नेह हो। स० ॥ ५॥ अ० ॥ इति ॥
॥अथ श्री पद्मप्रन जिन स्तवनं ॥ ॥ ढोला मारु घडी एक करहो फुकाव हो॥ए देशी ।।
॥परमरस नीनो माहारो, निपुण नगीनो माहरो साहेबो, प्रलु मोरा पदम प्रन प्राणाधार हो ॥ ए अांकणी ॥ ज्योति रमा थालिंगीने ॥ प्र० ॥ अबक बक्यो दिन रात हो, उलग पण नविं सांजले ॥प्र॥
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(१७६) तो शी दरिसण वात हो ॥१॥१०॥नी ॥ प्र०॥ निरनय पद पाम्या पबी ॥ प्र० ॥ जाण्यं न हो। तेह हो ॥ तो नेह लागे पागले ॥प्र० ॥ अलगा ते निसनेह हो ॥२॥
प ने ॥ ॥ पद लेहतां तो सयुं विनु ॥ प्र० ॥ पण निज इव्य कहाय हो । अमें सुव्य सुगुण घाणु ! प्र० ॥ सहि तो तिणे सर माय हो ॥३॥०॥नि॥ प्रतिहां रह्यां करुणा नयणथी ॥ प्र० ॥ जोतां गुंउ थाय हो । जिहां तिहां जीत लावण्यता ।।प्र॥ दोहली दीपक न्याय हो ॥ ४ ॥ १० ॥ नि ॥ प्र० ॥ जो प्रनुता अमें पामता ॥ प्र० ॥ केह, निपट न पडे एम हो, जो देशो तो जाणुं अमें ॥ प्र० ॥ दरिसण दरिश्ता कम हो ॥ ५॥ ५० ॥ नि ॥ प्र० ॥ हाथे तो नावि शको प्र॥ न करो कोश्नो विश्वास हो ॥ पण जो लपीयें जो नक्तिथी ॥०॥ कहेजो तो शाबास हो । ॥६॥१०॥नि ॥प्र॥ कमल संबन कीधी मया ॥ प्र० ॥ गुनह करी बगसीस हो ॥ रूपविबुधना मो हन तगी ॥प्र० ॥ पूरजो सकल जगीस हो ॥ ७ ॥ प० ॥ नि ॥ प्र० ॥ इति ।
॥अथ श्री सुपास जिन स्तवनं ॥ ॥ जीणा मारुजीनी करहलडी॥ए देशी॥ ॥ वाल्हामेह बपीयडा, अहिकुलने मृगकुलने ति म वलि नादें वाह्या हो राज ॥ मधुकरने नवमनिका, तिम मुझने घणी वाहली सातमा जिननी सेवा हो
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(१७७) राज ॥ १ ॥ अन्य नजिक सुर ले घणा, पण मुफ मनडं तेहथी नावे एकण रागें हो राज ॥ राच्यो हुँ रूपातीतथी, कारण मन मान्यानुं गुंकोग्नु शहां लागे हो राज ॥ ॥ मूलनी नक्तं रीजशे, नहि तो अव रनी रीतें क्यारे पण नवि खीजे हो राज ॥ उल गडी मोंघी थशे, कंबल बोवे जारी जिम जिम ज लथी जीजें हो राज ॥ ३ ॥ मनथी निवाजस नहि करे, जो कर ग्रहिने लीजें यावशे ते लेखें हो राज ॥ मोहोटानें कहेतुं किस्युं, पगदोडी अनुचरनी अंतर जामी देखे हो राज ॥ ४ ॥ एहथी झुं अधिकुं अने,
आवी मनडे वसीयो साहामो सुगुण सनेही हो रा ज ॥ जे वश अाव्या आपणे, तेहने माग्युं देतां अ जर रहे कहो केही.हो राज ॥५॥ अति परचे विरचे नही, नित नित नवलो नवलो प्रनुजी मुऊयी नासे हो राज ॥ ए प्रचुता ए निपुणता, परम पुरुष जे जेहवा तेहवा किहांथी को पासें हो राज ॥६॥ नीनो परम महारसें, माहारो नाथ नगीनो तेहने कहो कुण निंदे हो राज ॥ समकित दृढता कारणे, रूपविबुधनो मोहनस्वामी सुपासने वंदे हो राज ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री चंप्रन जिन स्तवनं ॥ ॥ नंदसलूणा नंदना रेलो ॥ ए देशी ॥ ॥ श्री शंकरचं प्रनु रे लो, तुं ध्याता जगनो चिल रेलो ॥ तुं परब्रह्म तुं श्रीपति रे लो, तुं अविनाशी अ विगति रे लो॥१॥ समकित तत्त्व जगावीयो रेलो,
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(१७७) तिणे ढुं नलगें श्रावियो रे लो॥ तुमें पण मुझने म या करी रे लो, दीधी चरणनी चाकरी रे लो ॥ २ ॥ हुँ सेयूँ हर करी रे लो, ध्यानं तुमने दील धरी रे लो॥ साहिब साहामुं नीहालजो रेलो, नव समुथी तारजो रेलो॥३॥ अगणित गुण गणवा तणी रेलो, मुफ मन होंश धरे घणी रे लो॥ जिम नजने पाम्या पंखी रे लो, दाखे बालक करथी लखी रे लो॥४॥ जो जिन तुं ले पांशरो रेलो, करम तणो शो आशरो रे लो ॥ जो तुमें राखशो गोदमां रे लो, तो किम जागं निगोदमां रेलों ॥ ५ ॥ जब ताहरी करुणा था रे लो, कुमति कुगति दूरें गई रे लो॥ अध्यातम रवि नगीयो रेलो, पाप तिमिर किहां पूगीयो रे लो॥ ॥६॥ तुज मूरति माया जिसी रे लो, नर्वशी थइ नयरें वसी रे लो ॥ शुं जिनवादल बांहडी रेलो, रखे प्रनु टालो एक घडी रे लो ॥ ७ ॥ ताहरी नक्ति नली बनी रेलो, जिम औषधि संजीविनी रेलो॥ तन मन आणंद उपनो रे लो, कहे मोहन कवि रूपनो रे लो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्रीसुविधि जिनस्तवनं ॥
॥ मोतीडानी देशी॥ ॥अरज सुणो एक सुविधि जिरोसर,परम कृपानिधि तुमें परमेसर ॥ साहिबा सुग्यानी जोवो तो, वात ने मान्यानी ॥ए आंकणी॥ कहेवा पंचम चरणना धारी, किम आदंरी अश्वनी असवारी ॥सा०॥१॥
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(१७) बो त्यागी शिव वास वसो बो, दृढरथसुत रथें केम बेसो बो ॥ सा ॥ आंगी प्रमुख परिग्रहमां जो पडशो, हरिहरादिकने किण विध नडशो ॥ २ ॥ सा० ॥ धुरथी सकल संसार निवास्यो, किम फरि देवश्व्यादिक धाखो॥ सा ॥ तजी संयमनें थाशो गृहवासी, कुण आशातना तजशे चोराशीसा॥३॥ समकित मिथ्यामतिमें निरंतर, श्म किम जांजशे प्र नुजी अंतर ॥ सा० ॥ लोक तो देखशे तेहq कहेशे, श्म जिनता तुम किण विध रहेशे ॥ सा० ॥ ४ ॥ पण हवे शास्त्रगतें मति पोहोंची, तेहथी जोयुं में नहुं आलोची ॥ सा ॥ इम कीधे तुम प्रनुताई न घटे, साहामो श्म अनुजव गुण प्रगटे ॥सा ॥५॥ हयगय यद्यपि तुंआरोपाए, तोपण सिपणुं न लो पाए ॥ सा० ॥ जिम मुकुटादिक नूषण कहेवाए, प । कंचनती कंचनता न जाए ॥ सा० ॥ ६ ॥ नक्त नीकरणीयें दोष न तुमने, अघटित केह, अजुक्त ते अमने ॥ सा ॥ लोपाए नहि तुं कोईथी स्वामी, मो हनविजय कहे शिर नामी ॥ सा ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ श्री शितलजिन स्तवनं ॥ ॥घोडी तो आइ थारा देशमां मारूजी ॥ ए देशी॥
॥ शीतल जिनवर सेवना साहेबजी, शीतल जिम शशिबिंब हो ॥ससनेही॥ मूरत माहरे मन वसी। सा॥शा पुरुषांगुं गोठडी ॥सा॥ मोहोटो ते आला खूब हो॥स॥१॥ दण एक मुऊने नवीसरे ॥ सा॥
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( १८० )
तुज गुए परम अनंत हो ॥ स०॥ देव अवरने शुं करूं ॥ सा० ॥ नेट थइ जगवंत हो ॥ स०॥२॥ तुमें बो मुकुट त्रिहुं लोकना ॥ सा० ॥ हुं तुम पगनी खेह हो ॥ स ० ॥ तुमें बो सघन तु मेहूला ॥ सा० ॥ हुं पश्चिमदिशि त्रे ह हो ॥ स० ॥ ३ ॥ नीरागी प्रनु रीऊवुं ॥ सा० ॥ ते गुण नहि मुक्रमांहि हो ॥ स० ॥ गुरु गुरुता सा हामुं जू ॥ सा० ॥ गुरुता ते सके नांहि हो ॥सु॥ ४ ॥ मोहोटासेंती बरोबरी ॥ सा० ॥ सेवकें किस विध थाय हो । स० ॥ संगो किम कीजिये ॥ ० ॥ जिहां रह्या श्रालुंनाय हो ॥ स० ॥ ५ ॥ जगगुरु क रुणा कीजियें ॥ सा० ॥ न लहो याचार विचार हो ॥ स० ॥ मुजनें जो राज निवाजशो ॥ सा० ॥ तो कुण वारणहार हो ॥ स ॥ ६ ॥ . उलग अनुभव नाव थी ॥ सा० ॥ जागो जाए सुजाण हो ॥ स० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो ॥ सा० ॥ जिनजी जीवन प्राण हो । स० ॥ 9 ॥ इति ॥
॥ अथ श्री श्रेयांस जिनस्तवनं ॥ ॥ कंकण मोही रह्यो । ए देशी ॥
|| श्रेयांस जिन सुपो साहिबा रे, जिनजी दास ती अरदास || दिलडे वसी रह्यो । दूर रह्यां जाणुं नदि रे, प्रभु तुं माहरे पास || दि० ॥ १ ॥ हांरे मृगने ज्युं म धुर आलाप || दि० || मोरनें पिकलाप | दि०॥ दूर रह्या जाणुं नही रे, प्रभु तुं माहरे पास । दि० ॥ जल थलमहियल जोवतां रे ॥ जि० ॥ चिंतामणि चढ्यो
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( १०१ )
हाथ || दि० ॥ उपशी हवे महरे रे ॥ जि०॥ निर ख्यो नयणें नाथ ॥ दि० ॥ २ चरणे तेहने विलं बीयें रे ॥ जि० ॥ जेहथी सी काम | दि० ॥ फो कट गुंफेरो तिहां रे ॥ जि० ॥ पूछे नहि पण नाम ॥ दि० ॥ ३ ॥ कूडो कलियुग बोडिने रे ॥ जि० ॥ श्रा परह्या एकंत ॥ दि० ॥ पोपुं राखे घणा रे ॥ जि० ॥ पर राखे ते संत ॥ दि० ॥ ४ ॥ देव घा में देखिया रे || जि० ॥ श्रामंबर पटराय ॥ दि० ॥ निगय नहि पण सोडथी रे ॥ जि० ॥ श्राघा पसा रे पाय || दि० ॥ ५ ॥ सेवकने जो निवाजीयें रे ॥ जि० ॥ तो तिहां शानें जाय ॥ दि० ॥ निपट नीरागी हो वतां रे || जि० ॥ स्वामिप किम थाय ॥ दि० ॥ ६ ॥ मेंतो तुमने प्रदस्यो रे ॥ जि० ॥ नावें तुं जाल म जाण ॥ ० ॥ रूपविजय कविरायनो रे ॥ जि० ॥ मोहनवचन प्रमाण || दि० ॥ ७ ॥ इति ॥
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॥ अथ श्री वासुपूज्य जिन स्तवनं ॥ ॥ चूनडी तो जींजे हो साहिबाजी प्रेमनी ॥ ए देशी ॥ ॥ प्रभुजीगुं लागी हो पूरण प्रीतडी, जीवन प्रा ए आधार || गिरुप्रा जिनजी हो राज, साहिब सुल जो हो माहरी वीनति ॥ दरिसण देजो हो दिल नरी, श्यामजी हो जगगुरु शिरदार ॥ १ ॥ सा० ॥ चा हीने दीजें दो चरणोनी चाकरी, यो अनुभव श्रम साज ॥ गि० ॥ इम नवि कीजें हो साहिबाजी सां नलो, कांइ सेवकने शिवराज ॥ २ ॥ गि० ॥ चूपसुं
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(१२) बाना हो साहिबा न बेसीयें, कां शोना न लहेशो कोय ॥ गि० ॥ दास नदारो हो साहिबाजी आपणो, ज्युं होवे सुजस सवाय ॥ गि० ॥३॥ सा० ॥ अरुण जो नगे हो साहिबाजी अंबरें, नासे तिमर अंधार ॥ गि ॥ अवरदेव हो साहिबाजी किंकरा, मिलियो तुं देव मुनें सार ॥ गि०॥४॥सा॥ अवर न चाहुं हो साहिबाजी तुम बते, जिम चातक जलधार ॥ गि०॥ खटपद नीनो हो साहिबाजी प्रेमा, तिम तुं हृदय मकार ॥ गि० ॥ ५॥ सा० ॥ सात राजने हो माहि बाजी अंतें ज वस्या, ६ कहियें तुम प्रीत ॥ गि० ॥ निपट नीरागी हो जिनवर तुं सही, ए तुम खोटी रीति ॥ गि० ॥ ६ ॥सा॥ दिलनी जे वातां हो कि
ने दाखवू, श्री वासुपूज्य जिनराय ॥ गि। खीरा एक आवि हो पंजी सांजलो, कांश मोहन आवेजी दाय ॥ गि० ॥ ७ ॥ सा० ॥ इति ॥ · ..
॥अथ श्री विमल जिन स्तवनं ॥ ॥ ते तरीया ना ते तरीया ॥ ए देशी॥ ॥ विमलजिणंद सुग्यान विनोदी, मुख बबिशशी अविहेलें जी ॥ सुरवर निरखी रूप अनुपम, हजीय निमेष न मेले जी॥वि०॥१॥ विष्णु वराह थइधर वसु धा, एहवू कोश्क केहे ने जी॥ तो वराह लंबन मिशे प्रनुने,चरणे शरण रहे जी॥॥वि०॥लीला अकल ललित पुरुषोत्तम, सिम वधू रसनीनो जी ॥ वेधक स्वामीथी मलq सोहिलं, जे कोइ टाले कीनो जी॥
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( १८३ )
॥ ३ ॥ वि० ॥ प्रसन्न था जगनाथ पधाया, मन मं दिर मुऊ सुधरयो जी ॥ हुं नटनवल विविध गति जाणुं, खि एक तो ल्यो मुजरो जी ॥ ४ ॥ वि० ॥ चोरा शीलख वेश हुं खाएं, कर्म प्रतीत प्रमाणे जी ॥ जो अनुभव दान गमे तो, ना रुचे तो कहो मत्राणे जी ॥ ५ ॥ वि० ॥ जे प्रजुनक्ति विमुख नर जगमें, ते
म मूल्यो जटके जी ॥ संगत तेह न विगत नहीयें, पूजादिकथी जे चटके जी ॥ ६ ॥ वि० ॥ कीजें प्रसाद उचित ठकुराई, स्वामी अखय खजानो जी ॥ रूपवि बुधनो मोहन पनणे, सेवक विनति मानोजी ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्री अनंतनाथ जिनस्तवनं ॥
॥ वीर सुणो मोरी वीनति ॥ ए देशी ॥ ॥ अनंत जिणंद वीनति, में तो कीधी हो त्रिकरण थी आज के ॥ मिलता निज साहेबनणी, कुण खाणे हो मूरख मन लाज के ॥ १ ॥ ० ॥ मुखपंकजमनम धुकरु, रह्यो लुब्धि हो गुणग्यानें लीए के ॥ हरि हर यावल फूल ज्यों, ते देख्यां हो किम चित्त होवे प्रीण के ॥ २ ॥ ० ॥ जव फरीयो दरीयो तस्यो, पण कोइ हो सयोन द्वीप के || हवे मन प्रवहण माहरु, तुम पद जेटें हो में राख्युं बीप के ॥ ३ ॥ ० ॥ अं तरजामी मिले थके, फले माह हो सहि करीने नाग के || हवे वाही जावा तणी, नथी प्रभुजी हो कोइ इहां लाग के ॥ ४ ॥ ० ॥ पालव यही रढ लेयशुं, नही में लो हो ज्यारें तुमें मीट के ॥ श्रातम बरें जो थई, किम
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(१४) नवटे हो करारी बीट के ॥ ५ ॥ आ॥ नायक न जरें निवाजीयें, हवे लाजीयें हो करता रस लूंट के । अध्यातम पद आपतां, कांश नही पडे हो खजाने खूट के ॥ ६ ॥ अ०॥ जिम तुमें तस्या तिम तारजा,
वेसे हो तुमने का दाम के॥ नदी तारो जो मुझने, तो किम तुम हो तारक कहेशे नाम के ॥ ७ । अ॥ दं तो जिन रूपस्थथी, रहुँ होइ हां हो अहोनिश अनुकूल के॥ चरण तजी जय किहां, ले मादारी हो वातडली, मूल के ॥ ७ ॥ ॥ अष्टापद पदमा करे, अन्य तीरथ हो जा- जिम हेड के॥ मोहन कहे कवि रूपनो, विण उपशम हो नवि मूकुं केड के ॥ ॥ ए ॥ अ० ॥ इति ॥
॥ अथ श्री अनंतजिन स्तवनं ॥ ॥ सुमति सदा दलमें धरो ॥ ए देशी ।। ॥ अनंत जिणंद अवधारीयें, सेवकनी अरदास ।। जिनजी॥ अनंत अनंत गुण तुम तणा, सांजरे सा सो सास ॥ जि ॥ १ ॥ सुरमणिसम तुम सेवना, पामी में पुण्य पमूर ॥ जि०॥ किम प्रमाद तणे वशे, मूकुं अधविण दूर ॥ जि ॥ ॥ जगति जुगति म नमें वस्यो, मनरंजन महाराज ॥ जि० ॥ सेवकनी तुमने अजे, बांह ग्रह्यानी लाज ॥ जि० ॥३॥ मुह मीठा धीठा हीये, तेहवो नहि हूं दास ॥जि०॥ साचो सेवक संनवी, कीजें ज्ञान प्रकाश ॥ जि० ॥ ४ ॥
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(१५) जाणने झुं कहे घj, एक वचनमें लाख ॥ जि ॥ मोहन कहे कवि रूपनो, नक्ति मधुर जिम ाख ॥ जि० ॥ ५॥ इति अनंतनाथ जिन स्तवनं ॥
॥ अथ अनंतजिन स्तवन प्रारंजः ॥ ॥ वालम वेहेला रे आवजो ॥ ए देशी ॥ ॥प्रोतडी अनंत जिनराजनी, दर्शन जावथी नावे रे ॥ पयडी बंधादि स्वनावथी, अनुनव परम रस आवे रे॥ प्री० ॥१॥ स्मृतिव्यतिरिक्त प्रास्वादमां, प्रगट चिदुनूप अतिरु६ रे ॥ सांख्य बोधादि संबो धथी, निन्न प्रनुरूप अतिशुभ रे ॥प्री०॥ २ ॥ विमुख सोपाधि अन्यासथी, संमुख अनुपाधि अनुयोग रे ॥ लीनता साध्य जे सहजथी, नावट परिपाक अजिनो ग रे ॥ प्री० ॥३॥ सिसंस्कार संसारमें, अनिमत ए किस्यो ख्याल रे ॥ निन्न अनिन्न बिटुं किम घटे, के हेनो सेंथो केहेनी टाल रे ॥प्रा०॥४॥ नव्य ताया प्रनुने घणु, हुँ नवि सबढुं वाच रे ॥ तारे जो मुफ तृपातीतने, तारक विरुद तो साच रे ॥ प्रा० ॥ ५॥ दान अथ हरण हिंसा दया, जोगके नोग अनिराम रे ॥ इम किम तुमने संनवे, कीजिये जेम ते काम रे॥ प्री० ॥ ६ ॥ अनंत पयथी नपपत्तिनो, असंख्य ले यात्मप्रदेश रे ॥ तेह रे स्वामीने संनव्यो, जाणवू एह विशेष रे॥ ॥ ७॥ चतुरप्रतें तुज पद क्रिया, दुती होये बंध निबंध रे ॥ प्रकृति ध्रुवबंध लहे वक्रता, होय वली अनुगमखंध रे ।। प्री० ॥ ७ ॥ सप्तनय
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(१७६ ) चारुनिरीक्षण, इनरव्यो परम जिनराज रे ॥ मोहन कहे कविरूपनो, सफल दुवां आज सवि काज रे ।। प्री० ॥ ए ॥ इति अनंत जिन स्तवनं ॥
॥अथ श्री धर्म जिन स्तवनं ॥ ॥ हारे मारे जोबनीयांनो लटको दहाडा
चार जो॥ ए देशी॥ ॥हारे मारे धर्मजिणंदमुलागी पूरण जीत जो,जी वडलो ललचायो जिनजीनी उलगें रेला ॥ हारे मुने थाशे कोश्क समय प्रनुजी प्रसन्न जो, वातडली तव माहारी सवि थाशे नगें रेलो ॥ १ ॥ हारे को मुरिजननो नंनेखो माहारो नाथ जो, लाशे नही क्यारें कीधी चाकरी रेलोटांरे माहारा स्वामी सरिखो कुण ने उनीयांमांहि जो, जश्ये रे जिम तेहने घर याझा करी रेलो॥॥ हारे जस सेवासेंती स्वारथ न होवे सिम जो, नाली रे शी करवी तेहथी गोठडी रे लो॥ हारे कोई जूतुं खाये ते मीठाश्ने माट जो, कोइरे परमारथविण नही प्रीतडी रेलो॥३॥ हारे प्र नु अंतरजामी जीवन प्राण आधार जो, वाह्यो रे न वि जाणे कलियुग वायरो रे लो॥ हारे माहारा लायल नायक नगत वत्सल जगवान जो, वारु रे गुणकेरो सा हिब सायरो रे लो ॥ ४ ॥ हारे प्रनु लागी मुझने ताहरी माया जोर जो, अलगारे रह्याथी होय । सिंगलो रे लो ॥ हारे कुण जाणे अंतर्गतनी विण महाराज जो, हेजें रे हसी बोलो बगंमी आमलो
ताहरी मायानो ॥ हार
बोलो बॉम
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(१७) रेलो॥५॥ हारे तहारे मुखने मटके अटक्यु माहारु मन जो, आंखडली अणीयाली कामणगारीयुं रेलो ॥हारे मारे नयणां संपट जो खिण खिण तुऊ जो, रातां रे प्रनुरूपें न रहे वा युं रेलो ॥६॥ हारे प्रनु अलगा तो पण जाणजी करीने हजूर जो, ताहा रीरे बलिहारी हुँ जानं वारणे रे लो॥ हारे कवि रूप विबुधनो मोहन करे अरदास जो, गिरुयाथी मन आणी उलट अति घणे रे लो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ण सरवरीयारी पा० ॥ ए देशी ॥ शोलमा श्री जिनराज, उलग सुणो अम तणी॥ ललना ॥ नगतथी एवडी केम, करो डो नोलाम पील॥ चरणे विलग्यो जेह, आवीने थइ खगे। ल० ॥ निपट तेहथी कोण, राखे रस अंतरो ॥ल ॥ १ ॥ में तुफ कारण स्वामी, नवेख्या सुर घणा ॥ लम् ॥ माहरी दिशाथी में तो, न राखी कां मणा ॥ लम् ॥ तो तुमें मुफथी केम, अपूग थरहो ॥ल॥ चूक होवे जो कोय,सुखें मुखथी कहोल॥शा तुझ्थी अवर न कोय, अधिक जगतीतलें ॥ लम् ॥ जेहथी चित्तनी वृत्ति, एकांगी जा मले ॥ल ॥ दीजें दरि सन वार, घणी न लगावीएं ॥ लम् ॥ वातडली अ ति मीठीयें, किम विरमावीएं ॥ लम् ॥३॥ तुं जो जल तो हुँ कमल, कमल तो ढुं वासना ॥ लम् ॥ वासना तो हुँ नमर, न मूकुं आसना ॥ल०॥ तुं बगे
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( १८८ )
डे पण हुं केम, बोडीश तुऊ नणी ॥ ज० ॥ नो तर कोइ प्रीति, प्रावी तुऊथी बनी ॥ ल॥४॥ र श्री शाने समकित देने नोलव्यो ॥ ०॥ हवे किम जानं खोटे, दिलासे उलव्यो || ल० ॥ जाली खा सो दास, विमासो बो किस्युं ॥ ज० ॥ में पण खिजमतमांहि, के खोटा किम यशुं ॥ ल० ॥ ५ ॥ बीजी खोटी वातें, में राधुं नही ॥ ल० ॥ में तुम आगल माहरा, मनवाली कही ॥ ल० ॥ राखो पूरण प्रीति, विमासो शुं नमें ॥ ल॥ अवसर नही एकांत. विनवीएं वे में || ल० ॥ ६ ॥ अंतरजामी स्वामी, अचिरानंदना || ल० ॥ शांतिकरण श्रीशांतिजी, मा नजो वंदना || ल० ॥ तु स्तवनाथी तन मन, श्रा द उपन्यो || ल ॥ कहे मोहनसनरंग, सुपंमितरूप नो ॥ ल० ॥ ७ ॥ इति शांति जिनस्तवनं ॥
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॥ अथ श्री शांतिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ नंदसनूणा नंदनारे लो ॥ ए देशी ॥
॥ शांति जिणंद सोहामणा रे जोजो, शोजमा श्री जिनराय ॥ मोरा साहिबा रे || ठकुराइ त्रिलोकनी रे जोजो, सेवे सुरनर पाय ॥ १ ॥ मो० ॥ शां० ॥ मुख शारदको चंदलो रे जोजो, हसत ललित निश दीस || मो० ॥ खडी अमीय कचोलडी रे जोजो, पूरवो सकल जगीश ॥ मो० ॥ २ ॥ शां० ॥ श्रांगी अनुपम हेमनी रे जोजो, ऊगमग विविध जडाव ॥ मो० ॥ देखी मूरति सुंदरु रे जोजो, नजे अनिमिषता
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(१७) नाव ॥ मो० ॥ ३ ॥ शां० ॥ बत्रत्रय शिर शोनतां रे जोजो, महिमानो अवस ।। मो॥ अजूयाल्युं ती रथ आपणुं रे जोजो, विश्वसेननृपनो वंश ॥ मो० ॥ ॥४॥ शां० ॥ अकलकला जिनजी तणी रे जोजो, मनोहररूप प्रमीत ॥ मो० ॥ शांतलपुरवर शोनतुं रे जोजो, जगवित्तवत्सल जगवंत ॥मो॥॥ शां॥ केवलनाण दीवाकर रे जोजो, समकित गुणनंमार ॥ मो॥ पारेवु ते नगारीयुं रे जोजो, एम अनेक उप गार ॥ मो० ॥ ६ ॥ शां० ॥ हूं बलिहारी ताहरी रे जोजो, जिन तुमें देवाधिदेव ॥ मो० ॥ मोहन कहे कवि रूपलो रे जोजो, नवोजव देजो सेव ॥ मो० ॥ ॥ ७ ॥ शां० ॥ इति शांति जिन स्तवनं ॥
॥अथ श्री शांतिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ राग सारंग ॥ शांतिजिणंद महाराज ॥ जगत गुरु शांविजिशंद महाराज ॥ अचिरानंदन नवि मन रंजन, गुणनिधि गरीब निवाज ॥ ज० ॥ ॥ गर्न थकी जिरो ईति निवारी, हर्षित सुरनर कोडी ॥ ज नम थये चोश इंशदिक, पद प्रणमे कर जोडी ॥ ज० ॥ २ ॥ मृगतंडन नविकतुषगंजन, कंचन वान शरीर ॥ पंचमनाणी पंचम चकी, सोलशमो जिन धीर ॥ ज० ॥ ३ ॥ रत्नजडित नृषण अति सुंदर, प्रांगी अंग नदार ॥ अति उबरंग नगतिनौतन गति, नपशमरस दातार ॥ ज० ॥ ४ ॥ करुणा निधि जग वान कृपाकर, अनुजव नदित आवास ॥ रूपविबु
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(१०) धनो मोहन पनणे, दीजें ज्ञान विलास ॥ ज० ॥ ५॥
॥ अथ श्री कुंथुनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ चंदनरी कटकी नली ॥ ए देशी ॥ ॥ कुंथुजिणंद. करुणा करो, जाणी पोतानो मास ॥साहिबा मोरा॥ शुं जाणीअलगा रहा, जाण्यं को
आवशे पास ॥सा॥१॥ अजब रंगीला प्यार, अ कल अलद न्यारा, परम ससनेही माह री विनती ॥ ए अांकणी ॥ अंतरजामी वाहाला, जोवो मीट मिना य॥सा॥ खिण महसो खणमां हमो, श्म प्रीत नि वाहो किम थाय ।। सा० ॥ २ ॥ प० ॥ रूपी दुवो तो पालव ग्रहूं, अरूपीने शं कहेवाय ॥ सा॥ कान मांच्या विना वारता, कहोने जी केम बकाय ॥सा॥ ॥३॥ प० ॥ देव घणा सुनीयामां अडे, पण दिल मेलो नवि थाय ॥ सा० ॥ जिण गामें जाएं नही, ते वाट कहो झुं पूबाय ॥ सा ॥ ४ ॥ १० ॥ मुफ मन अंतर मुहूर्तनो, में ग्रह्यो चपलता दाव ॥सा॥ प्रीतिसमे तो जुन कहो, ए शो स्वामी स्वजाव ॥ सा० ॥ ५॥ प० ॥ अंतरसोमलीयां प., नवि म लीयें प्रनु मूल ॥ सा ॥ कुमया किम करवी घटे, जे थयो निज अनुकूल ॥ सा ॥ ६ ॥१०॥ जागी हवे अनुनवदिशा, लागी प्रजुगुं प्रीति ॥ सा० ॥ रूप विजय कविरायनो, कहे मोहन रस रीति ॥ सा ॥ ॥ ७ ॥ प० ॥ इति श्री कुंथुजिन स्तवनं ।
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(११) ॥ अथ श्री कुंथुजिन स्तवनं ॥ ॥ जादवपति तोरण आव्या ॥ ए देशी ॥
॥ मुफ अरज सुणो मुफ प्यारा, साची नगतिथी किम रहो न्यारा रे ॥ सनेही मोरा ॥ कुंथुजिणंद क रो करुणा ॥ १ ॥ हुँ तो तुम दरिसणनो अर्थी, घटे किम करी शके करथी रे ॥स॥ थइ गिरा एम जे विमासो, तेतो मुझने होये ने तमासो रे ॥ स० ॥ ॥॥ ललचाविनें जे कीजें, किम दासने चित्त पतीजें रे ॥ स० ॥ पद मोहोटे कहावो मोहोटा, जिणतिण वातें न दु खोटा रे ॥ स० ॥३॥ मुफ नाव महे लमें आवो, उपशमरस प्यालो चखावो रे ॥ स॥ सेवकनुं तो मन रीजे, जो सेवक कारज सीफे रे ॥ स० ॥ ४ ॥ मनमेनु थई मन मेलो, ग्रहे आव) मग अवहेलो रे ॥ स ॥ तुमें जाणो बो ए करूं लोला, पण अर्थी सर्दहे करी शिला रे ॥ स० ॥५॥ प्रनुचरण सरोरुह सेहवं, फल प्रापति लेहा लेवं रे॥ स० ॥ कवि रूपविबुध जयकारी, कहे मोहन जिन बलिहारी ।। स० ॥ ६ ॥ इति कुंथुजिन ॥ ॥ अथ श्री अरनाथ जिन स्तवनं ॥
॥ नटीयाणीनी देशी ॥ ॥ अरनाथ अविनाशी हो, सुविलासी खासी चाकरी ॥कां चाहूं अमें निशदीस ॥ अंतरायने रागें दो अनुरागें किणपरें कीजीयें ॥ कां गुननावें सुज गीश ॥ १ ॥ ॥ सिम स्वरूपी स्वामी हो, गुण
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(१२) धामी अलख अगोचरु ॥ कां दीठा विण दीदार ॥ केम पतीजे कीजें हो किम लीजें फल सेवा तणुं ॥ कां दीसे न प्राण बाधार ॥ अ॥ ॥ ज्ञानवि नाकू पेखे हो संखे सूत्रं सांजव्यो । कांइ अथवा प्रतिमारूप ॥ सांगें जो संपेखं हो प्रनु देखुं दिलनर लोयणें, कां तो मन महचे चूप ॥३॥ अ ॥ जगनायक जिनराया हो मन जाया मुज आवी म व्या, कांश महेर करी महाराज, सेवक तो ससनेही हो निसनेही प्रनु किम कीजियें॥कांश सडोइवहीयें रे लाज ॥ ४ ॥ अ० ॥ नक्तिगुणें जरमावी हो सम जावी प्रनुजीने जोलवी, कांइ रा हृदयमकार ॥ तो कहेजो शाबासी हो प्रनु नासी जाणी सेवना. कांइ ए अमचो एक तार ॥ ५॥ अ० ॥ पाणी नी रने मेले हो किण खेले एकंत होइ रहूं, कांश नहिरे मीलनो जोग ॥ जो प्रनु दे नयरों हों कहि व यण समजावू सहि, कांइ ते न मिले संजोग ॥ ६ ॥ अ० ॥ मनमेनु किम रीफ हो कीजें अंतर एव डो, कांद निपट निहेजा नाथ ॥ सात राजने अंतें हो किण पाखे ते आवीने मिटुं, कांश विकट तुमारो जी साथ ॥ ७ ॥ अ० ॥ उलग ए अनुनवनी हो मुफ मननी वातां सांजली, कांश कीजें आज निवाज ॥ रूपविबुधनो मोहन हो मनमोहन सांजल वीनति, कां दीजें शिवपुरराज ॥ ७ ॥ अ॥ इति ॥
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(१९३) ॥ अथ श्रीमन्निनाथस्तवनं ॥ ॥ थारा मोहोला ऊपर मेह० ॥ए देशी॥ ॥ सुणी सुगुरु नपदेश, ध्यायो दिलमें धरी ॥ हो लाल ॥ ध्या॥ कीधी नगति अनंत, चवि चवि चा तुरी॥हो लाल ॥च० ॥सेव्यो विशवावीश, उलट धरी उलग्यो ॥ हो लाल ॥१०॥ दीठो नवि दीदार, कान कीगही लग्यो होलाल ॥का॥ १ ॥ परमे सरगुं प्रीत, कहो किम कीजीयें ॥ हो लाल॥क० ॥ निमिष न मेले मीट, दोष किरा दीजीयें ॥ हो ला ल॥दो०॥ कोण करी तकसीर,सेवामां साहिबा ॥ हो लाल ॥से॥कीजें न बोकरवाद, जगत नरमायवा ॥ हो लाल ॥ न० ॥ ॥ जाण्युं तमालं जाण, पुरुष ना पारि ॥ हो लाल ॥पुण॥ सुगुण नीगुणनो न्या य, करो झुं सारि ॥ हो लाल ॥ क० ॥ दीधो दी लासो दीन, दयाल कहावशो ॥ हो लाल ॥ द० ॥ करुणारस नंमार, बिरुद किम पावशो ॥ हो० ॥ बि० ॥३॥ शुं निवस्या तुमें सिह, सेवकने अव गुणी ॥ हो० ॥ से० ॥ राखो अविहड प्रीति, जावा यो नोलामणी॥हो जा॥ जो कोइ राखे राग, नीराग न राखीएं ॥ हो॥ नी० ॥ गुण अवगुणनी वात, कही प्रनु नांखीएं ॥ हो० ॥क० ॥ ४ ॥ अ मचा दोष हजार,तिके मत नालजो॥ हो ॥ ति ॥ तुमें बो चतुर सुजाण, प्रीति गुण पालजो ॥ हो । प्री० ॥ मन्निनाथ महाराज, म राखों अांतरो॥हो॥
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( १०४ )
म० ॥ द्यो दरिसिए दिल धार, मिटे ज्यूं खांतरो ॥ हो० ॥ मि० ॥ ५ ॥ मनमंदिर महाराज, बिराजो दिल मली । हो० ॥ बि० ॥ चंद्रातप जिम कमल, हृदय विकसे कली ॥ हो० ॥ हृ० ॥ कविरूप विबुधसुप साय, करो अमरंग रली " हो० ॥ कहे मोहन कवि राय, सकल आशा फली ॥ हो० ॥ स०॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री मुनिसुव्रत जिनस्तवनं ॥ || हो पीयु पंखीडा ॥ ए देशी ॥
॥ हो प्रभु मुऊ प्यारा न्यारा थया के रीत जो, लग्याने यालालुंबन नाहरो रे लो ॥ हो० ॥ नक्तिवबल जगवंत जो, प्राय वस्यो मन मंदिर सा हिब माहरो रे जो ॥ १ ॥ हो० ॥ खिए न विसारं तुऊ जो, तंबोलीना पान ती मरें फेरतो रे लो ॥ हो० ॥ लागी मुने माया जोर जो, दियरवासी सुसाहिब तुमने हेरतो रे जो ॥ २ ॥ हो० ॥ तुं नि सनेही जिनराय जो, एकपख। प्रीतलडी किल परें राखीयें रे लो ॥ हो० ॥ अंतर्गतनी महाराज जो, वातडली विए साहिब केहते दाखीयें रे लो ॥ ३ ॥ हो० ॥ अलख रूप य याप जो, जाइ वस्यो शिव मंदिरमांहे तुं जई रे लो ॥ हो० ॥ लाधो तुमारो नेद जो, सूत्र सिद्धांतें गति में साहिब तुम लइ रे लो ॥ ४ ॥ हो० ॥ जग जीवन जिनराय जो, मुनि सुव्रत जिन मुजरो मानजो माहरो रे जो ॥ हो० ॥ पय प्रणमी जिंनराय जो, जब नवसरलो साहिब
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(१एए) स्वामी ताहरो रे लो ॥ ५ ॥ हो ॥ राखरां हृदय मकार जो, आपोने शामलीया पदवी ताहरी रे लो। हो ॥ रूपविजयनो शिष्य जो, मोहनने मन लागी माया ताहरी रे लो॥ हो० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री नमिनाथ जिनस्तवनं ।
॥ आसगरा योगी ॥ ए देशी ॥ ॥आज नमिजिनराजने कहीयें, मीठे वचने प्रनु मन लहीयें रे ॥ सुखकारी साहेबजी॥प्रनु निपट निसनेही नगीना, अमें बूं सेवक प्राधीना रे ॥सु०॥ ॥ १ ॥ सूनजर करशो तो वरशो वडाई, सुकदि शे प्रठने लडाइ रे ॥ सु० ॥ तुमें अमने करशो मोहो टो, कुण कहेशे प्रनु तुने खोटो रे ॥ सु० ॥२॥ निः शंक थश्गुनवचन कहेशो, जगशोना अधिकी जेहे शो रे ॥ सु० ॥ अमें तो रह्या बुं तुमने राची, रखे आप रहो मन खांची रे ॥ सु० ॥ ३ ॥ अम्हें तो किस्युं अंतर नवि रावं, जे होवे हृदय कही दाखं रे ॥ सु० ॥ गुणियल आगल गुण कहेवाये, ज्यारे प्रीत प्रमाणे थाये रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ विषधर शहृदय लपटागो, तेहवो अमने मिल्यो ने टायो रे ॥ सु॥५॥ निरवहेशो जोप्रीत हमारी, कली कीरत थाशे तुमारी रे॥सु॥धूर्ताई चित्तडे नवि धरश्यो,कांश अवलो विचार न करशो रे ॥ सु॥ जिम तिम जागी सेवक जाणेजो, अवसर लही सुधि लहेजो रे ॥ सुप ॥६॥यासंगें कहीएं तुमने,प्रनु दीजें दिलासो अमनें
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(१९६) रे॥ सु० ॥ मोहन विजय सदामन रंगें, चित्त लाग्यु प्रनुने संगें रे ॥ सु ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री नेमिनाथ जिनस्तवनं ॥
॥ दक्षिण दोहिलो हो राज॥ए देशी ॥ ॥कांश रथ वालो हो राज.साहामुं नीहालो हो राज, प्रीति संजालो रे वाल्हा यउकुलसेहरा ॥जीवन मीठा हो राज, मत होजो धीठा हो राज, दीठा अलजे रे वाहला निवहो नेहरा ॥ १ ॥ नव नव ना हो राज, तिहां शी सजा हो राज, तजत नजा रे कांसें रणका वाजीया ॥ शिवादेवी जाया हो राज,मां मेलो माया हो राज,किमहिक पाया रे वाहला मधुकर रा जीया ॥ २ ॥ सुणी हरणीनां हो राज, वचन कामी नां हो राज, सही तो बीना रे वाहला आघा या वतां ॥ कुरंग कहाणो हो राज,चूके न टाणो हो राज, जाणो वाहला रे देखी वर्ग वरंगनो॥३॥ विण गुन्हे चटकी होराज,बांगो मां बटकीहोराज,कटकी न कीजें रे वाहला कीडीथीघj॥ रोष निवारो हो राज,महेल पधारो दो राज, कां विचारो रे वाहला माबुजीम ॥४॥ एसी हांसी हो राज, होए विखासी हो राज,जुन विमासी रे अतिही रोष न कीजियें ॥ाचि
शाली हो राज,सेज सुंधाली हो राज,वात ताली रे वाहला महारस पीजीयें ॥ ५॥ मुगतिवहिता हो राज, शाम वीता हो राज, तजी परिणीता रे वाह
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( १७७ )
ला कां तुमें यादरो ॥ तुमने जे जावे हो राज, कुल समजावे हो राज, किम करी आवे रे ताएयो कुंजर पाधरो ॥ ६ ॥ वचनें न जीनो हो राज, नेम नगीनो हो राज, परम खजीनो रे वाहला नारा अनूपनो ॥ व्रतशिरसामी दो राज, राजुल पामी हो राज, कहे हितकामी रे मोहन पंमित रूपनो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ द्वितीयं श्रीनेमिनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ अंबरीयोनें गाजे हो जटियाणी वड चूए ॥ ए देशी ॥ ॥ राजुल कहे रथवालो हो, नादीरा वीरा हव तजो, कां पालो पूरव प्रीत | मूको किम वि गुनहे हो नए दीरा वीरा विलपतां, कांइ ए शी शीख्या रीत ॥रा० ॥ १ ॥ ढुंतो तुम चरणारी हो, नादीरा वीरा मोजडी, कां सांगलो यातमराम ॥ तो मुऊने नवेखो हो नणदीरा वीरा शा वती, कां नहीं ए सुगुणनां काम ॥रा० ॥ ॥ पशुचाने. क. करुणा हो, नादीरा वीरा मूकीया, कां में शो चोरी की ॥ पशुथी शुं हीणी हो, नए दीरा वीरा त्रेवडी, कांई मुऊनें विबोहो दीध ॥रा०॥३॥ एह तुम मन खोटं हो, नादीरा वीरा जो हतुं, तो पाडी कां नेहने फंद ॥ नलके ते नवि सुलके हो, नादी रा वीरा मनहुँ, कां कोडि मिले जो इंड् ॥ रा० ॥ ॥ ४ ॥ मुऊ उपर कांई थान हो, नणदीरा वीरा निर्दयी, कांइ नजर न मेलो केम | तेलीजें नहि पाये हो, न दीरा वीरा वलगती, कां नेह न गाले हेम ॥ स ॥५॥ तो कहो कि वातें हो, नगदीरा वीरा दूहव्या,
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( १९८ )
ते कांइ राखो बो रोप || महारे तो हशे तुमचं हो, न दीरा वीरा हयं. तो केहने दाखुं दोष ॥रा०॥ ॥ ६ ॥ तांत त्रृट्यानी परें हो, नणदीरा वीरा जो डीयें, कतुयारीनी जेम | तेल जें नहि पाये हो, न दीरा वीरा वजगतां, कांइ नेह न चाले एम ॥ रा० ॥ ७ ॥ इम कहेती व्रत खेती हो, नादीरा वीरा ज 5 चढ, कां शिवमहोने कीयो वास ॥ धन धन ते जग मांहे हो, नादीरा तीरा प्रीती, कांइ मोहन कहे शाबास ॥ रा० ॥ ८ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवनं ॥
|| कानुडो वीण वजावे रे, कालिंदीने कांठे ॥ . ए देशी ॥ ॥ वामानंदन हो प्राणथकी हो प्यारा, नांही कीजें हो नयrथकी पण न्यारा ॥ कृणी ॥ पुरिसा दाल। शामल वरणो, शुद्धसम कितने नासे ॥ शुद्ध पुंज जिणें कीधो तेहने, उज्ज्वलवरण प्रकासे ॥ १ ॥ वा॥ तु मचरणे विषधर पण निरविष, दंसणे थाए वीडो ॥ तो श्रम शुद्ध स्वभाव न दूवे, ए में ग्रह्यो निवीडो ॥ २ ॥ वा० ॥ कमठ राय मद किए गएणतीमां, मोह तया मद जोतां ॥ ताहरी शक्ति अनंती आागल, केई तरि गया गोता ॥ ३ ॥ वा०॥ तें जिम तारखा ति म कुण तारे, कुण तारक कहूं एहवो ॥ सायरमान ते सायर सरिखुं, तिम तुं पण तुं जेहवो ॥ ४ ॥ वा०॥ किमपि न बेसे करुणा करते, पण मुऊ प्राप्ति यनंती ॥ जेम पडे कण कुंजर मुखथी, कीडी बहु धनवंती
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(१एए) ॥ ५ ॥ वा० ॥ एक आवे एक मोजां पावे, एक करे उलगडी ॥ निजगुण अनुनव देवा आगल, पडखे नही तुंबे घडी ॥ ६ ॥ वा ॥ जेहवी तुमथी माह रीमाया, तेहवी तुमें पण धरजो ॥ मोहन कहे क विरूपविबुधनो, परतद करुगा करजो ॥ ७॥वा०॥ ॥ अथ श्री महारस्वामिस्तवनं ॥
॥ पठेवडानी देशी ॥ ॥ उर्लन नव लही दोहिलो रे,कहो तरी केण न पाय रे॥प्रनुजी ने वीनवु रे ॥ ए आंकणी॥ समकित साचुं साचवु रे, ते करणी किम थाय रे ॥प्र० ॥१॥ अशुनमोह जो मेटीयें रे, कांश गुनप्रनुकने जाय रे ॥प्र॥ नीरागें प्रनु ध्याश्य रे, कांई तो पण रागें क हाय रे ॥प्र० ॥॥ नाम ध्याता जो ध्याश्ये रे, कां प्रेम विना नवि तान रे ॥प्र॥ मोहविकार जि हां तिहां रे, कांइ किम तरी गुणधाम रे ॥ प्र० ॥३॥ मोहबंध जगबंधियो रे,कांइबंध जिहां नही शोष रे ॥०॥ कर्मबंध न कीजीयें रे, कर्मबंधन गये जो श रे ॥ प्र० ॥४॥ तेहमां शो पाड चढावीयें रे, कां इ तुमें श्रीमहाराज रे ॥ प्र० ॥ विण करणी जो ता रशो रे, कां तो साचा श्रीजिनराज रे ॥ प्र० ॥५॥ प्रेममगननीनावना रे, कां नाव तिहां नववार रे॥ प्र ॥ जाव तिहां जगवंत ने रे, कांश उत्तसे बातम सार रे ॥प्र०॥६॥ पूरघट नीतर नयो रे, कां अ नुनव अनुहार रे ॥प्र० ॥ आतमध्याने उत्तरखी रे,
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(२००) कांश तरयुंजवनो पार रे ॥३०॥७॥ वईमान मु ज वीनति रे, कांई मानेजो निशदीस रे ॥ प्र० ॥ मोहन कहे मनमंदिरें रे, कांश वसियो तुं विशवावी श रे ॥ प्र० ॥ ८ ॥ इति श्री मोहनविजजीकृत चोवीशी आदिकना स्तवनं संपूर्ण ॥
॥अथ अति जिन स्तवनं ॥ ॥ प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदा, कांड प्रनु पाखे कण एके मन न सुहाय जो ॥ ध्याननी ताली रे लागी नेहरुं, जलद घटा जिम शिवसुतवाहन दाय जो ॥ प्रो० ॥ १ ॥ नेह घेयूँ मन माहारुं रे प्रनु अलजे रहे, तन धन मन ए कारगथीप्रनु मुफ जो॥ मारे तो आधार रे साहिब रावालो, अंतर्गतनुं प्रनु पागल कहुँ गुरु जो ॥जी॥॥ साहेब ते साचो रे जगमां जाणीएं.सेवकनां जे सहेजें सधारे काज जो॥ एहवे रे आचरणे किम करीने रहूं, बिरुद तुमारो ता रण तरण जिहाज जो॥प्री० ॥ ३ ॥ तारकता तुक माहे रे श्रवणें सांजली, ते जणी हुँ आयो दीन दयाल जो ॥ तुज करुणानी लेहरे रे मुफ कारज सरे, शुं घणुं कहीएं जाण आगल कपाल जो॥प्री० ॥४॥ करुणादिक कीधी रे सेवक नपरें, नव जय नावट नांगी नक्ति प्रसन्न जोमन वंबित फलियां रे जिन या लंबने,कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो॥जी॥५॥
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(२०१) ॥ अथ गोमी पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥राणीजीना देशमां रे ! ए देशी॥ ॥ प्राणथकी प्यारो मुने रे । साहेबा ॥ पुरुषादा पी पास ॥ प्रनुनें उलगुं रे ।' अंतरजामी आगलें रे ॥ साहेबा ॥ ननो करूं उदास ॥ प्रचु० ॥ १ ॥ मनमंदिर अंदर वस्यो रे ॥ साहेवा ॥ मुऊरो त्यो महाराज ॥ प्रनु० ॥ रहेशो जो टालो करी रे॥ साहेबा ॥ तो केम सरशे काज ॥ प्रनु० ॥२॥उनां उलगडी करुं रे ॥ साहेबा ॥ यो दरिसगनुं दान ॥प्रनु० ॥नीपट कां करीने रह्या रे ॥ साहेबा ॥ यां खो प्राडो कान ॥ प्रनु ॥३॥ श्म नानां केम टशे रे ॥ साहेबा ॥ दासथी दीनदयाल ॥प्रनु० ॥ में पालव पकड्यो खरो रे ॥ साहेबा ॥ करुणावंत कृपाल ॥.प्रनु०॥ ४ ॥ हुँतो रागी ताहेरो रे ॥ सा हेबा॥ नीरागी ने लोक ॥प्रनु० ॥ हवे तुम अम मेलावडो रे ॥ साहेबा ॥ नाव नदी संयोग ॥ प्रनु० ॥ ५॥ अकलकला कांई ताहरी रे ॥ साहेबा ॥ मुफथी तो न कलाय ॥ प्रनु० ॥ पूर्व हुं शीखवतां कला रे ॥ साहेबा ॥ मुफथी तो न शीखाय ॥ प्रनु० ॥ ६ ॥ तुं पण एक न वीसरे रे ॥ साहेबा ॥ थलप ति प्राण आधार ॥ प्रनु० ॥ मोहन कहे कवि रूप नो रे ॥ साहेबा ॥ बाशरो इणे संसार ॥ प्रनु० ॥ ७ ॥ इति गोडी पार्श्वनाथ स्तवनं ॥
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(२०२) ॥अथ आदि जिन स्तवनं ॥ फुमखडानी देशीमां॥
॥आदीसर जगदीसरू रे,अवधारोअरदास।मनोह र साहेबा ॥ साचो मनमेलो मल्यो रे, पलक न बो डं पास ॥ मनो० ॥१॥ उहव्यो पण खीजे नही रे, प्रनु तुं गिरिमा महंत ॥ मनो० ॥ नयनबेगा सङको कहे रे, खंत सूरा अरिहंत ॥ मनो० ॥ २ ॥ नयन अंतर प्रनु ताहरे रे, अविगत खेल अनंत ।। मनो॥ ज्ञानीथी कांइ बानी नही रे, अनंतिमा नहितवंत ॥ मनो० ॥ ॥ जाणपणुं तो जाणुं खलं रे, अहो मरुदेवाजात ॥ मनो० ॥ दीजें समकित वा सना रे, शो वातें एक वात ॥ मनो॥४॥ ऊर्तन नेट सुलन थइ रे, नमन नमत संसार ॥ मनो० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो रे, जिनतूं प्राण आधा र ॥ मनो० ॥ ५॥ इति ॥
॥ अथ पंचासराजीनुं स्तवन ॥. ॥ बांजी बांजी बांजी बंदा बांजी, मेंतो खासी दाढीवाला ॥ बंदा० ॥ मेंतो अनुजवरस मतवाला ॥ बंदा० ॥ ए आंकणी ॥ चंइकिरणसम तुम गुण स्तवना, गंगा रंग तरंगा॥अम मन बाल मराल तिहां जीले, नलिनी नक्ति प्रसंगा॥बंदा॥१॥ जागी शुद्ध दिशा नयो रागी, नागी नवनय डेड ॥ लागी लगन मगन नयो तोरां, नारखी कुगति नखेड ॥बंदा॥२॥ झान अनंतुं शक्ति अनंती, लीला सहेज अनंती ॥ देजो मुझने एहवा तुमनें, राख्या हृदय एकंती॥
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(२०३) बंदा० ॥३॥ परम मूरति को प्रनुनी कहेशे, हियडे केम न समाणी ॥ जेम मुकुरमें कुंजर काया, तेम वली मणिमय माणी ॥ बंदा० ॥ ४ ॥ तुं घटप्रनृति प दार्थथी न्यारो, तो कम सदुनें प्यारो ॥ कोश्क यक लकला तुम पासें, तुं जसवेली क्यारो ॥ बंदा ॥ ॥ ५ ॥ कृपाकटादनी कणिका ताहरी, निरखी ह रख्यो हूं तो ॥ तुं अविनाशी ज्योति विलासी. प्रगट जिहां तिहां तूंतो ॥ बंदा०॥ ६ ॥ पंचासर श्रीपास प्रनाकर, ध्याताध्येयें ध्यायो॥रूपविबुधनी करुणायें स्वामी, मोहनविजयें गायो॥ बंदा० ॥ ७ ॥इति ॥
. ॥ अथ नेम जिन स्तवनं ॥
॥ वीजा सेण मारु ॥ ए देशी ॥ ॥यादवजी हो।समुविजय कुल सेहरो हो।साहेबा माहारी वीनतडी अवधार ॥ मीठा सेण वारु आया॥ विण अक्युग केम बांझियें हो. साहेबान वनव निरुप म नार ॥ मीठा० ॥१॥ या० ॥ तुमथी रूडा पारे वडां हो, साहेबा जोड न खंमे किवार ॥ मीठा० ॥ या॥ उलंनडे लाजो नही हो, साहेबा एहवा श्या नितुर विचार ॥ मीग ॥ २ ॥ या० ॥ विषमा मूंगर सेववा हो ॥ साहेबा परिहरि सुंदरी सेज ॥मी ठा० ॥ या० ॥ मोहोटा पण खोटा सही हो ॥ सा हेबा निपट न तजीयें हेज ॥ मीठा ॥३॥या॥ पावस ऋतुपरें तोरणें हो।साहेबा याव्या करिय अमं ग ॥ मीठा० ॥ या० ॥ पण थया शारद मेदुला हो ।
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( २०४ )
D
साहेबा ए श्या सूरिजन ढंग || मीठा ॥ ४ ॥ या० ॥ निसुया कहीयें प्रसंगमें हो ॥ साहेबा तुम सरिखा निसनेह ॥ मीठा ॥ या० ॥ एम पशुखाने कारणें हो ॥ सा ear को गयो परिहरि गेह|| मीगणाणाया ॥ वीसरी गया तुमने खरा हो । साहेबा पूरव विविध विनो ढ़ || मीठा० ॥ ० ॥ श्रावो प्रीतम पातला हो ॥ साहेबा कहुं हुं बिवी गोद || मीठा ॥ ६ ॥ या० ॥ नेम पहेलां राजीमती हो ॥ साहेबा पोहोती सुगति डवार || मीठा० ॥ या० ॥ मोहन कदे कवि रुपना हो | साहेबा शिवादेवी मात मलार ॥ मी० ॥ ७ ॥
०
॥ अथ ख्याल ॥
॥समज जा गुमानी हो दिलजानी ॥ हांरे तुं तो सं व जिनने जज ले, हांरे तुं तो क्रोध कषायनें तज लें ॥ सम॥१॥ हारे तुंतो फरि पदवी नवि पावे, हांरे तुक मूरख कुन समजावे ॥ सम० ॥ २ ॥ हांरे - मोहननो माणक बोले, नही कोई जैनधरमने तोलें ॥ स०॥३॥ | अथ ख्याल ॥
॥ पास जिनंदा माता वामाजीके नंदा रे, तुम पर वारी जानं खोल खोल रे ।। हांरे दरवाजे टेडे खोल खोल रे, हम दरसन खाये तोल तोल रे ॥ दर० ॥ ॥ १ ॥ पूजा करूंगी मेंतो धूप धरूंगी रे, फूल चडा नंगी बहु मोल मोल रे || दर० ॥ २ ॥ तें मेरा ठा कर में तेरा चाकर, एकवार मोतुं बोल बोल रे ॥ दर०॥३॥ सुरतमंकण सुंदर मूरत, मुखडुं ते काकम
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(१०५)
जोल जोल रे ॥ दर० ॥ ४ ॥ रूप विबुधनो मोहन पनणे, रंग लागो चित चोल चोल रे ॥ दर०॥॥
॥अथ शंखेश्वरस्तवनं ॥ ॥आंखडीये में आज शेठेजो दीठो रे ॥ ए देशी॥
॥ प्रनु जगजीवन जगबंधु रे, सांई सयाणो रे ॥ ताहारी मुशयें मन मान्युं रे, जूठ न जाणो रे॥ ए अांकणी ॥ तुं परमातम तुं पुरुषोत्तम, वाला मारा तुं परब्रह्म सरूपी रे ॥ सिसाधक सिद्धांत सनातन, तुं त्रय नावें प्ररूपी रे॥ सांई सयागो रे ॥ ॥१॥ ताहरी प्रनुता त्रिढुं जगमांहे ॥ वा० ॥ पण मुफ प्रचंता महोटी रे ॥ तुज सरिखो महारे महा राजा, ताहरे नही कांश खोटी रे ॥ सांइं० ॥ २ ॥ तुं निरव्य परमपद वासी ॥ वा० ॥ हुँतो ऽव्यर्नु जोगी रे तुं.निरगुण हूंतो गुणधारी ॥ ढुं करमी तुं अनोगी रे ॥ सांइं०॥३॥ तुंतो अरूपी ढूंतो रूपी॥ वा० ॥ हुँ रागी तुं निरागी रे ॥ तुं निरविष हूं तो विषधारी, ढूं संग्रही तुं त्यागी रे ॥ सांइं० ॥ ४ ॥ ताहरे राज नही कोई एके । वा० ॥ चन्दराज ने माहरे रे ॥ माहरी लीला जोतां प्रनुजी, अधिकुं झुं हे ताहरे रे ॥ सांई० ॥५॥ पण तुं महोटो हूं तो बोटो ॥ वा० ॥ फोकट फूले गुं थाय रे ॥ खमजो ए अपराध अमारो, नक्तिवशे कहेवाय रे ।। सांइं० ॥ ॥ ६ ॥ श्री शंखेश्वर वामानंदन ॥ वा० ॥ उना
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(२०६) उलग कीजें रे ॥ रूपविबुधनो मोहन पनणे. चरणनी सेवा दीजें रे ॥ सांइं० ॥ ७ ॥ इति शंखेश्वर ॥
॥ अथ गौतम प्रनातिस्तवनं ॥ प्रारंजः ॥
॥राग प्रजाती॥ मात पृथ्वीसुत प्रात ऊठी नमो, गणधर गौतम नाम गेलें ॥प्रह समे प्रेमगुंजेह ध्या तां सदा, चढती कला होय वंशवेले ॥ मा० ॥१॥ वसुनूति नंदन विश्वजन वंदन, उरित निकंदन नाम जेहन ॥ अनेद करी नविजन जे नजे, पूर्ण पोहोंचे सही नाग्य तेहy ॥ मा० ॥ ॥ सुरमणि जेह चिंतामणि सुरतरु, कामित पूरण कामधेनु । एहज गौतमतणुं ध्यान दयें धरो, जेहथर्की अधि क नहीं माहात्म्य केहेनुं ! मा० ॥३॥झान बन तेज ने सकल सुखसंपदा, गौतमनामथी सिदि पामे ॥ अखंम प्रचंग प्रताप होय अवनिमां, सुर नर जेह में शीश नामे ॥ मा० ॥४॥ प्रणव या घरी माया बीजें करी, स्वमुखें गौतमनाम ध्याये ॥ कोडि मनका मना सफल वेगें फले, विघन वैरी सवे दूर जाये ॥ मा० ॥ ५ ॥ उष्ट दूरेंटले स्वजन मेलो मले, प्राधि उपाधि ने व्याधि नासे॥ नूतनां प्रेतनां जोर नांजे व ली, गौतमनाम जपतां नन्नासें ॥ मा० ॥ ६ ॥ तीर्थ अष्टापदें आप लब्धं जश,पन्नरशें त्रए ने दिरक दीधी। अहम पारणे तापस कारणें, दीरलब्धे करी अखु ट कीधी ॥ मा० ॥ ७ ॥ वरस पच्चास लगे गृहवासें वस्या, वरस वली त्रीश करी वीरसेवा ॥ बार वरसां
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(२०७)
लगें केवल जोगव्यु, नक्ति जेहनी करे नित्य देवा ॥ मा० ॥ ॥ महियल गौतम गोत्रमहिमा निधि, गु एनिधि दिने सिदि दाई॥ उदय जस नामथी य धिक लीला लहे, सुजस सौनाग्य दोलत सवाई॥ मा० ॥ ए ॥ इति गौतम प्रनातिस्तवनं ॥ ॥ अथ श्रीसिक्षाचलस्तवनं ॥ गरबानी देशीमां ॥
॥ श्रीसिमाचल मंझण स्वामी रे, जगजीवन अं तर आमी रे, एतो प्रणमुं हुं शिरनामी ॥ जात्रीडा जात्रा नवाणुं करिये रे, करियें तो नवजल तरिये ॥ जात्री० ॥ ॥ श्रीषन जिनेश्वरराया रे, जिहां पू र्व नवाणुं. आया रे, प्रनु समवसस्या सुखदाया ॥ जात्री० ॥ २ ॥ चैत्री पूनम दिन्न वखाणुं रे, पांच कोडी पुंगरीक जाणुं रे, जे पाम्या पद निरवाएं। जात्री० ॥ ३ ॥ नमि विनमि राजा सुख सातें रे, बे कोडी साधु संघातें रे, एतो पहोता पद लोकांतें ॥ जात्री० ॥४॥ काति पूनिमें कर्मने तोडी रे, जिहां सीधा मुनि दश कोडी रे, तेतो वंदो बे कर जोडी॥ जात्री० ॥ ५ ॥ एम नरतेसरने पाटें रे, असंख्याता मुनि वाटें रे, पाम्या मुगतिरमणी ए वाटें।जात्री॥ ॥६॥दोय सहस मुनि परिवार रे,यावच्चा सुत सुखकार रे, सयपंच सेलंग अणगार ॥ जात्री० ॥ ७ ॥ वली देवकीसुत सुजगीश रे, सीधा बदु यादववंश रे, ते प्रणमो रे मन हंस ॥ जात्री० ॥ ७ ॥ पांच पांम व गिरि आव्या रे, सिमा नव नारद ऋषि राया
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(१०८) रे, वली सांब प्रद्युम्न कहाया ॥जात्री॥॥ ए ती रथ महिमावंत रे, जिहां सीधा साधु अनंत रे, श्म नांखे श्रीनगवंत ॥ जात्री० ॥ १० ॥ उज्ज्वल गिरि समो नहीं कोय रे,तीरथ सघला में जोय रे, जे फर स्यां पाप न होय ॥ जात्री० ॥ ११ ॥ (१) एकल
आहारी (२) सचित्त परिहारी रे, (३) पदचारी ने (४) नूमि संथारी २ (५) शुभ समकित ने ( ६ ) ब्रह्मचारी ॥ जात्री० ॥ १२ ॥ एम लहरी जे नर पाले रे, बहुदान सुपात्र आले रे, ते जनम मरण न य टाले ॥ जात्री० ॥१३॥ धन्य धन्य ते नरने नारी रे, नेटे विमलाचल एक नारी रे, जातं तेहनी टुंब लिहारी । जात्री० ॥१०॥ श्रीजिनचंइसरि सुपसा ये रे, जिनहर्ष होय नजायें रे, इम विमलाचल गुण गाये ॥ जात्री० ॥ १५ ॥ इति विमलाचल॥ ॥ अथ श्रीमहावीर स्वामीनुं पालj प्रारंजः॥
॥ माता त्रिशलायें पुत्र रतन जाश्न, चोशठ इंश नां आसन कंपे सार ॥ अवधिज्ञानें जो धायो श्री जिन वीरने, आवे क्षत्रियकुंम नयर मकार ।। माता ॥१॥ वीर प्रतिबिंब मूकी माता कने, अवसर्पिणी निश दीए सार ॥ एम मेरुशिखरें जिनने सावे न क्ति', हरि पंच रूप करी मनोहार ॥ माता० ॥२॥ एम असंख्य कोटा कोटी मली देवता, प्रजुने उडव मंमाणे लइ जाय ॥ पांमुक वन शिलायें जिनने लावे नक्तिशृं, हरि उलंगें थापे इंश घणुं उबाय ॥ माता
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(२० ) ॥ ३ ॥ एक कोडी शाठ लाख कलशें करी, वीरनो सनात्र महोत्सव करे सार ॥ अनुक्रमें वीर कुमरने लावे जननी मंदिरे, दासी प्रियंवदा जई तेणी वार ॥ माता ॥४॥ राजा सिहारथने दीधी वधामणी, दासीने दान बने बहु मान दिए मनोहार ॥ दत्रिय कुंममाहे उन्लव मंमावियो, प्रजा लोकने हरष अपार ॥माता॥५॥ घर घर श्रीफल तोरण त्राटज बांधियां, गोरी गावे मंगल गीत रसाल ॥ राजा सिक्षारथें जनम महोत्सव कयो, माता त्रिशला थई उजमाल ॥ मा ता० ॥ ६ ॥ माता त्रिशला फूलावे पुत्र पारणे ॥ ए आंकणी ।। फूले लाडकडा प्रनुजी आनंद नेर ॥ हर खी निरखिने इंशणीयो जाए वारणे, आज आनंद श्रीवीरकुमरने घेर ॥ माता ॥ ७ ॥ वीरना मुख डा उपर वारु कोटी चश्मा, पंकज लोचन सुंदर वि शाल कपोल.॥ शुकचंचू सरिखी दीसे निर्मल नासि का, कोमल अधर अरुण रंगरोल ॥माता ॥७॥
औषधि सोवनमढी रे शोने हालरे, नाजुक आन रण सघलां कंचन मोतीहार ॥ कर अंगुगे धावे वी रकुमर हर्षे करी, कांई बोलावतां करे किलकार ॥ मा ताम् ॥ ए॥ वीरने लिला. कीधो ने कुंकुम चांदलो, शोने जडित मर्कत मणिमां दीसे लाल॥ त्रिशलायें जुगतें अांजी अणियाली बेदु अांखडी, सुंदर कस्तू रीनुं टबकुं कीधुं गाल ॥ माता० ॥ १० ॥ कंचन शो ले जातनां रत्ने जडियुं पालघू, फुलावती वेला थाए
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(१०) घूघरनो घमकार ॥ त्रिशला विविध वचनें हरखी गा ये हालरूं, खेंचे फुमतिवाली कंचन दोरी सार ॥ मा ताम् ॥ ११ ॥ मारो लाडकवायो सरखा संगें रमवा जशे, मनोहर सुखडली ढुं आपिश एहने हाथ ॥ जोजन वेला रम जम रम ऊम करतो आवशे, दुं तो धाइने नीडावीश हृदया साथ ॥ माता० ॥१२॥ हंस कारंभव कोकिल पोपट पारेवडा, मांही बप्पैया ने सारस चकोर ॥ मेनां मोर मेव्यां ले रमकडां रमवा तणां, घम घम घुघरा वजावे त्रिशला कि शोर ॥ माता ॥ १३ ॥ मारो वीरकुमर निशालें न गवा जायशे, साथें सऊन कुटुंब परिवार ॥ हाथी रथ घोडा पालायें नलुं शोनतुं, करी निशालगर' अति मनोहार ॥ माता ॥ ११ ॥ मारा वीर समा णी कन्या सारीलावगुं, मारा कुमरने परणावीश मोहोटे घेर ॥ मारो लाडकडो वर राजा घोडे बेसशे, मारो वीर करशे.सदाय लीला लहेर ॥ माता॥ ॥१५॥ माता त्रिशला गावे वार कुमरनुं हालरु, मा रो नंदन जीवजो कोडी वरीस ॥ ए तो राजराजेसर थाशे नलो दीपतो, मारा मनना मनोरथ पूरशे जगी श॥ माता० ॥ १६॥ धन्य धन्य दत्रीकुंम गाम म नोहरु, जिहां वीरकुमरनो जनम गवाय ॥ राजा सि हारथना कुलमांहे दिनमणि, धन्य धन्य त्रिशला राणी जेहनी माय ॥ माता ॥ १७ ॥ एम सहीयर टोली नोली गावे हाललं, थाशे मनना मनोरथ तेहने घेर॥
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११)
अनुक्रमें महोदय पदवी रूपविजय पद पामशे, गाए अमिय विजय कहे थाशे लीला लहेर माता॥१॥ ॥ अथ श्री महावीर स्वामीनु हालरियुं प्रारंनः॥
॥ माता त्रिशला फुलावे पुत्र पालणे, गावे हालो हालो हालरुवानां गीत ॥ सोना रूपाने वली रत्ने जडियुं पालगुं, रेशम दोरी घूघरी वागे बम बम री त ॥ हालो हालो हालो हालो मारा नंदने ॥१॥ जिनजी पास प्रनुथी वरस अढीशे अंतरें, होशे चो वीशमो तीर्थकर जितपरिमाण ॥ केशी स्वामी मुख थी एवी वाणी सांजली, साची साची दुइ ते मारे अमृत वाण ॥हा॥२॥ चौदे स्वपनें होवे चका के जिनराज, वीता बारे चक्री नहिं हवे चकी राज, जि नजी पास प्रजुना श्री केशी गण धार, तेहने वचनें जाण्या चोवीशमा जिन राज, मारी कूखें ाव्या ता रण तरण जहाज, मारी कूरखें याव्या त्रएय नुवन शिरताज, मारी कूखें अाव्या संघ तीरथनी लाज, हुँतो पुण्य पनोती इंशाणी था आज ॥ हा० ॥ ॥३॥ मुझने दोहोलो उपन्यो जे बेसुं गज अंबा डीयें, सिंहासनपर बेसुं चामर बत्र धराय ॥ सद्ध लक्षण मुऊने नंदन ताहारा तेजनां, ते दिन संजालं ने आनंद अंग न माय ॥हा॥४॥ करतल पगतल लहाण एक हजारने आठ , तेहथी निश्चय जाण्या जिनवर श्री जगदीश ॥ नंदन जमणी जंचें लंबन . सिंह बिराजतो, में पहेले सुपनें दीठो विशवा वीश ॥
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(१२) हा ॥ ५ ॥ नंदन नवला बंधव नंदीवईनना तमें, नंदन जोजाश्योना देयर बो सुकुमाल ॥ हसशे नो जाश्यो कही दीयर माहारा लाडका, हसशे रमशे ने वली चूंटी खणशे गाल, हसशे रमशे ने वली तुं सा देशे गाल ॥ हा ॥ ६ ॥ नंदन नवला चेडा रा जाना नाणेज बो, नंदन नवला पांचशे मामीना नाणेज बो, नंदन मामलीयाना नाणेजा सुकुमाल ॥ हसशे हाथे नबाली कहीने नाहाना नाणेजा,
आंरख्यो अांजी ने वली टबकुं करशे गाल ॥ हा ॥ ७ ॥ नंदन मामा मामी लावशे टोपी आंगला, रत ने जडीयां कालर मोती कशबी कोर ॥ नीलां पीला ने वली रातां सरवे जातिनां, पहेरावशे मामी माहारा नं दकिशोर ॥ हा० ॥ ७ ॥ नंदन मामा मामी सूखड ली सदु लावशे, नंदन गजुवे नरशे लाडु मोतीचूर ॥ नंदन मुखडा जोड्ने नेशे मामी नामां, नंदन मामी कहेशे जीवो सुख नरपूर ॥ हा० ॥ ए ॥ नंद न नवला चेडा मामानी साते सती,मारी नत्रीजी ने बेन तमारी नंद ॥ ते पण गुंजे नरवा लाखणसाई सावशे, तुमने जो जो होशे अधिको परमानंद ॥ ॥ हा० ॥ १० ॥ रमवा काजें लावशे लाख टकानो घूघरो, वली शूडा मेनां पोपट ने गजराज ॥ सारस हंस कोयल तीतरने वली मोर जी, मामी लावशे रमवा नंद तमारे काज ॥हा॥११॥ बप्प न कुमरी अमरी जलकलशे नवराविया, नंदन तमने
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( २१३ )
मने केलीघरनी मांहे ॥ फूलनी वृष्टि कीधी योजन ए कने मंमलें, बहु चिरंजीवो आशीष दीधी तुमने त्यांहे ॥ हा० ॥ १२ ॥ तमने मेरुगिरि पर सुरपतियें नवरा विया, निरखी निरखी हरखी सुकृत लान कमाय ॥ मुखडा उपर वारुं कोटि कोटि चंड्मा, वली तन पर वारुं ग्रहगणनो समुदाय ॥ हा ॥ १३ ॥ नंदन नव ला जणवा नीशाजें पण मूकशुं, गजपर अंबाडी वे साडी मोहोटे साज ॥ पसली नरशुं श्रीफल फोफल नागरवेलशुं, सुखडली लेशुं नीशालीयाने काज ॥ हा० ॥ १४ ॥ नंदन नवला मोहोटा थाशो ने परणा वसुं, वहूवर सरखी जोडी लावगुं राजकुमार ॥ स रखा वेवाई वेवाणुंने पधरावसुं वरवहु पोंखी लेशुं जोइ जोडने देदार ॥ हा० ॥ १५ ॥ पीर सासर माहारा बेदु पख नंदन कजला, महारी कूखें याव्या तात पनोता नंद ॥ महारे प्रांगण वृता अमृत दूधें मेदुला, महारे प्रांगण फलिया सुरतरु सुखना कंद ॥ हा० ॥ १६ ॥ इणि परें गायुं माता त्रिशला सुतनुं पालणं, जे कोइ गाशे नेशे पुत्र तथा साम्राज ॥ बीलीमोरा नगरें वरणव्युं वीरनुं हालरुं, जय जय मंगल होजो दीपविजय कविराज ॥ हा ० ॥ १७ ॥ इति ॥
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॥ अथ रात्रिभोजननी सधाय प्रारंभः ॥
॥ पुण्यसंजोगें नरजव लाधो, साधो यातम का ज ॥ विषया रस जाणो विष सरिखो, एम नांखे जिनराज रे || प्राणी रात्रीभोजन वारो || आगम
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( २ : ४ )
वाणी साची जाणी, समकित गुण सही नाणी रे ॥ प्राणी ॥ रात्री० ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ अनक्ष्य बावी शमां रयणीनोजन, दोष कह्या परधान | तेणें कार
रातें मत जमजो, जो दुवे हइडे शान रे ॥ प्रा० ॥ २ ॥ दान स्नान प्रायुध ने जोजन, एटलां रातें न कीजें ॥ ए करवां सूरजनी साखें, नीतिवचन न मजीजें रे ॥ प्रा० ॥ ३ ॥ उत्तम पशु खी पण रा तें, टाले जोजन टाणो ॥ तुमें तो मानवी नाम धरा वो, केम संतोष न आए रे ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ माखी जू कं । डी कोलीयावडो, नोजनमां जो श्रावे ॥ कोढ जलोदर वमन विकलता, एवा रोग उपावे रे ॥ प्रा०॥ ५ ॥ तन्नुं जव जीवहत्या करतां, पानक जेह उपाव्युं । एक त लाव फोडतां तेटलुं, दूषण सुगुरु बताव्युं रे ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ ॥ एकलोत्तर जव सर फोड्या सम, एक दव दे तां पाप । ग्लोत्तर जव दव दीधा जिम, एक कुव लिज संताप रे ॥ प्रा० ॥ 9 ॥ एक शो चुम्मालीश जव लगें कीधा, कुवणिजना जे दोष ॥ कूडं एक कलंक दियंतां, तेहवो पापनो पोप रे ॥ प्रा० ॥ ८ ॥ एकशो एकावन नव लगें दीघां, कूडां कलंक अपार ॥ तेवुं रे एक शीयल खंमयामां, दोष कह्यो निरधार रे ॥ प्रा० ॥ ए ॥ एक शो नवाणुं नव लगें खंमया, शीयल विषय संबंध ॥ तेहवो एक रात्रि जमवामां, कर्म निकाचित बंध रे ॥ प्रा० ॥ १० ॥ रात्रिभोजन मां दोष घणा बें, कहेतां नावे पार ॥ केवली कहेतां
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( २१५ )
पार न पावे, पूरव कोडी मजार रे ॥ प्रा० ॥ ११ ॥ एवं जाणीने जनम प्राणी, नित चौविहार करीजें ॥ मासें मासें पासखमणनो, लान एणें विधें लीजें रे ॥ प्रा० ॥ १२ ॥ मुनि वसतानी एह शिखामण, जे पाले नर नारी ॥ सुर नर सुख विलसीनें होवें, मोद ता अधिकारी रे || प्रा० ॥ १३ ॥ इति ॥
॥ अथ निंदावारकसझाय ॥
॥ निंदा म करजो कोइनी पारकी रे, निंदानां बो व्यां महापाप रे ॥ वैर विरोध वाघे घणो रे, निंदा करतो न गणे माय बाप रे || निं० ॥ १ ॥ दूर बलंती कां देखो तुम्हें रे, पगमां बलती देखो सदु कोय रे ॥ परना मेलमां धोयां लूगडां रे, कहो केम कजलां हो य रे ॥ निं० ॥ २ ॥ आप संजालो सहुको आपणो रे, निंदानी मूको पडी ठेव रे ॥ थोडे घणे अवगु णें सहु ना रे, केहनां नलियां चुए केहनां नेव रे ॥ निं० ॥ ३ ॥ निंदा करे ते थाये नारकी रे, तप जप कीधुं सह जाय रे || निंदा करो तो क रजो आपली रे, जेम बुटकबारो थाय रे ॥ निं० ॥ ॥ ४ ॥ गुण ग्रहेजो सदु को तथा रे, जेहमां देखो एक विचार रे ॥ कृष्णपरे सुख पामशो रे, समयसुं दर सुखकार रे || निंदा० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ शीयलविषे पुरुषने शिखामणनी सझाय ॥ ॥ चाल ॥ सुण सुए कंता रे, शीख सोहामणी ॥ प्रीत न कीजें रे, परनारी तणी ॥ उथलो ॥ परनारी
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( २१६) साथें प्रीत पियुडा, कहो किण परें कीजीयें ॥ कंघ वेची पापणी, उजागरो केम लीजीयें ॥ काबडी बूटो कहे लंपट, लोकमांहे लाजीयें ॥ कुल विषय खंपण रखे लागे, सगामां केम गाजीयें ॥ १ ॥ ॥ चाल ॥ प्रीति करंतां रे, पेहेला बाहीजीयें ॥ रखे कोइ जाणे रे, मनगुं 5जीयें ॥ उथलो ॥ पूजीयें म नशुं फरीये पण, जोग मलवो ने नदी । रात दिन विलपंतां जाये, अवटाई मरदुं सही। निज नारीयो संतोप न वव्यो, परनारीथी कहो युं हशे ॥ जो नरे जाणे तृप्ति न वली. तो एJ चाटे गुं हशे ॥ २ ॥ ॥ चाल ॥ मृगतृष्णाथी रे, तृष्णा नवि टले ॥ वेलु पील्यां रे, तेल न नीसरे :। नथलो ॥ न नीसरे पाणी वलोवतां, लव लेश मावागनो वली॥ बूडतां बाचक नरीया केणे, ते तस्या वात न सांजली ॥ तेम नार रमतां परतणी, संतोष न वट्यो एक घडी ॥ चित चटपटी उच्चाट थाये. नयों नावे निश्डी॥३॥ ॥ चाल ॥ जेवो खोटो रे, रंग पतंगनो ॥ तेवो चटको रे, परस्त्रीसंगनो ॥ नथलो ॥ परनारी साथे प्रेम पि युडा, रखे तुं जाणे खरो॥ दिन चार रंग सुरंग रूडो, पबी नही रहे निर्धरो ॥ जे घणा साथे नेह मामे, गंम तेहगुं वातडी ॥ एम जाणी म म कर नाह सा, परनारी साथें प्रीतडी ॥४॥ चाल ॥ जे पति वाहालो रे, वंचे पापिणी ॥ परशुं प्रेमें रे, राचे सा पिणी ॥ नथलो ।। सापिणी सरखी वेण निरखी, रखे
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(१७) शियलयकी चले ॥ आंखने मटके यंग लटके, देव दानवने बले ॥ मनमांहे काली अति रसाली, वाणि मीठी शेलडी ॥ सांजली जोला रखे नूलो, जाजो विषवेलडी ॥ ५ ॥ चाल ॥ संग निवारो रे, पररामा तणो ॥ शोक न कीजें रे, मन मलवा तणो ॥ न थलो ॥ शोक शान करो फोगट, देख, पण दोदिनु॥ कण मेडिये कण शेरीयें, जमतां न लागे सोहिटुं॥ नवासने निःश्वास आवे, अंग जांजे मन मे ।। वली कामिनी देखी देह दाफे, अन्न दीतुं नवि गमे ॥ ६ ॥ चाल ॥ जाये कलामी रे, मनगुं कल मले ॥ उन्मत्त थऽनें रे, अलल पलल लवे ॥ नथलो ॥ लवे अलल पलल जाणो, मोहघेलो मन रडे ॥ महाम दन वेदन कठिन जागी, मरण वारु त्रेवडे ॥ ए दश अवस्था काम केरी, कंत कायाने दहे ।। एम चित्त जाणी तजे राणी, पारकी ते सुख लहे॥ ७ ॥ चाल ॥ परनारीना रे, परानव सांजलो॥ कंता कीजें रे, नाव ते निर्मलो ॥ उथलो ॥ निर्मलें नावें नाह समजो, परवधूरस परिहरो ॥ चांपीयो कीचक नीमसेनें, शि ला हेग्ल सांजरो ॥रण पड्यां रावण दशे मस्तक, रडवड्यां ग्रंथें कह्यां ॥ तेम मूंजपति सुःखपुंज पा म्यो, अपजश जगमांहे लह्या ॥ ७ ॥ चाल ॥ शिय ल सलूणा रे, माणस सोहीयें ॥ विण आनरणे रे, जग मन मोहीयें ॥ उथलो ॥ मोहीयें सुर नर करे सेवा, विष अमिय थइ संचरे ॥ केसरी सिंह शियाल
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(१७) थाये, अनल अति शीतल करे ॥ माप थाए फूल माला, लही घर पाणी नरे ॥ परनारी परिहरी शि यल मन धरी, मुक्ति वधू हेला वरे ॥ ए ॥ चाल । ते माटे हुँ रे, वालम वीनतुं ॥ पाय लागीने रे, म धुर वयणें स्तवं ॥ नथलो ॥ वयण महारुं मानीयें, परनारीथी रहो वेगला ॥ अपवाद माथे चढे मोहो टा, नरकें थश्य दोहिला ॥ धन्य धन्य ते नर नारी जे जग, शियल पाले कुलतिलो, ते पामशे यश लगत मांही, कुमुदचंद सम ऊजलो ॥ १० ॥ इति ॥ ॥अथ शियलविषे नारीने शीखामनी सद्याय ।।
॥चाल ।। एक अनोपम, शीखामण वरी ॥ सम जी लेजो रे, सघली सुंदर । नथलो ।। सुंदरी सहेजें हृदय हेजें, पर सेजें नवि वेसी ॥ चित्तथकी चूकी ताज मूकी, पर मंदिर नवि पेसीयें ॥ बहु घेर हीमी नार निर्लज, शास्त्रे पण तजवी कही ॥जेम प्रेत दृष्ठं पड्युं जोजन, जमवू ते जुगतुं नही ॥ १ ॥ चाल । परशुं प्रेमें रे, हसीय न बोलीयें ॥ दांत देखाडी रे, गुह्य न खोलीयें ॥ नुथलो ॥ गुह्य घरनुं परनी आगे, कहोने केम प्रकाशीयें ॥ वली वात जे विपरीत ना से, तेहथी दूरें नाशीयें ॥ असुर सवारा अने अगो चर, एकलां नवि जायें ॥ सहसातकारें काम कर तां, सहेजें शियल गमावीयें ॥ २ ॥ चाल ॥ नट विट नरगुं रे, नयण न जोडीयें ॥ मारग जातां रे, आधु बुढीयें। मथलो ॥ आधु ते उढी वात करतां,
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(२१ए) घगुंज रूडा शोजीयें। सासू थने माना जण्या विण, पलक पास न थोनीय ॥ सुख उख सरज्युं पामीयें पण, कुलाचार न मूकीयें ॥ परवश वसतां प्राण तज तां, शियलथी नवि चूकीयें ॥३॥ चाल ॥ व्यसनी साथें रे, वात न कीजीयें ॥ हाथो हाथे रे, तालि न लीजीयें ॥ नथलो ॥ ताली न लीजें नजर न दीजें, चंचल चाल न चालीयें ॥ एक विषय बुई वस्तु केह नी, हाथे पण नवि कालीयें। कोटि कंदर्प रूप सुंदर, पुरुष पेखी न मोहियें ॥ तृणखलां तोले गणी तेहने, फरिय सामुं न जोश्यें ॥ ४ ॥ चाल ॥ पुरुष पियारो रे, वलि न वखाणीयें। वृक्ष ते पिता रे, सरखो जाणी यें ॥ उथलो ॥ जाणीयें पियु विण पुरुष सघला, स होदर समोवडे ॥ पतिव्रतानो धर्म जोतां, नावे को तडोवडें ॥ कुरुप कुष्ठी कूबडो ने, उष्ट उर्बल निर्गु गो ॥ जरतार पामी नामिनी ते, इंश्थी अधिको गु णो ॥ ५ ॥ चाल ॥ अमर कुमार रे, तजी सुरसुंद री॥ पवनंजयें रे, अंजना परिहरी ॥ नथलो ।। परि हरि सीता रामें वनमां, नले दमयंती वली ॥ महा सती माथे कष्ट पड्यां पण,शियलथी ते नवि चली। कसोटीनी परें कसीय जोतां, कंता विहडे नही ॥ तन मन वचनें शियल राखे,सती ते जाणो सही॥६॥ ॥ चाल॥ रूप देखाडी रे, पुरुष न पाडीयें ॥ व्याकुल थइने रे, मन न बगाडीयें॥उथलो॥मन न बगाडीयें पर पुरुषy, जोग जोतां नवि मले॥ कलंक माथे चढे
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(२२०) कूडां, सगां सदु दरें टले ॥ असरज्यो उच्चाट था ये, प्राण तिहां लागी रहे ॥ इह लोक पामे आप दा, परलोक पीडा बदु सहे ॥ ७ ॥ चाल ॥ रामने रूपें रे, शूर्पनखा मोही ॥ काज न सीधुं रे, अने ईज त खोई ॥ नथलो ॥ ईजत खोइ देख अनया, सु दर्शन नवि चल्यो ।। जरतार आगल पडी नों।. अ पवाद सघले नबल्यो । कामनी बुझे कामिनी, वं कचूल वाह्यो घणुं ॥ पण शियलथी चूकी नहीं ह ष्टांत एम केतां जणुं ॥ ॥ चाल ॥ शियल प्रनावें रे, जुवो शोले सती ॥ त्रिनुवनमांहे रे, जे थई बती ॥ नथलो ॥ बती थश्ने शियल राख्यु, कल्पना की धी नही ॥ नाम तेहनां जगत जाणे, विश्वमांकगी रही ॥ विविध रत्ने जडित नूपण, रूपसुंदरी किन्नरी ॥ एक शियल विण शोने नही. ते सत्य गगजो सुं दरी ॥ ए ॥ चान ॥ शियल प्रजावें रे, सतु सेवा क रे ॥ नवे वाडें रे, जेह निर्मल धरे ॥ उथलो ॥ धरे निर्मल शियल उऊल, तास कीर्ति फलदले ॥ मन कामना सवि सिदि पामे, अष्ट जय दूरे टलें ॥धन्य धन्य ते जाणो धरा, जे शियल चोऱ्या आदरे, आनं दना ते उघ पामे, उदय महाजस विस्तरे ॥१०॥
॥अथ कोधनी ससाय ॥ ॥ कडुवां फल ले क्रोधनां, झानी एम बोले ॥री शतणो रस जाणीयें, हालाहल तोलें ॥ ग ॥ १ ॥ कोधे कोड पूरव तणु, संजम फल जाय ॥ क्रोध स
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( २२१ )
हित तप जे करे, ते तो लेखें न थाय ॥ क० ॥ २ ॥ साधु घणो तपीयो हुतो, धरतो मन वैराग ॥ शिष्य ने क्रोधथकी थयो, चंमकोशियो नाग ॥ क० ॥ ३ ॥ याग उठे जे वरथकी, पहेलुं ते घर बाजे ॥ जलनो जोग जो नवि मजे, तो पासेंनुं प्रजाले ॥ क० ॥४॥ क्रोध तणी गति एहवी, कहे केवलनाली ॥ हाल क रे जे हेतनी, जालवजो प्राणी ॥ क० ॥ ५ ॥ उद यरतन कहे कोधने, काढजो गले साई ॥ का या करजो निर्मली, उपशम रस नाई ॥ क० ॥ ६ ॥ ॥ अथ माननी सझाय ॥
॥ रे जीव मान न कीजीयें, मानें विनय न यावे रे ॥ विनय विना विद्या नहीं, तो किम समकित पावे रे ॥ २० ॥ १ ॥ समकित विण चारित्र नहीं, चारित्र विण नहीं मुक्ति रे ॥ मुक्ति विना सुख शाश्वतां, केम ल हि यें युक्ति रे || रे० ॥ २ ॥ विनय वडो संसारमां, गुण मां अधिकारी रे || गर्दै गुएा जाये गली, चित्त जूने विचा री रे ॥ रे ० ॥ ३ ॥ मान कखुं जो रावणें, ते तो रामें मायो रे || दुर्योधन गरखें करी, अंतें सवि हास्यो रे ॥ रे० ॥ ४ ॥ शूकां लाकडां सारिखो, दुखदायी ए खो टो रे ॥ उदयरत्न कहे मानने, देजो देशोटो रे ॥ रे० ॥ ५ ॥ अथ मायानी संझाय ॥
॥ समकितनुं बीज जाएगीयें जी, सत्य वचन सा दात ॥ साचामां समकित वसे जी, कूडामां मिथ्या तरे ॥ प्राणी ॥ मकरो माया लगार ॥ १ ॥ ए
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(२२२) यांकणी ॥ मुख मीठो जूठगे मनें जी, कूड कपटनो रे कोट ॥ जीनें तो जी जी करे जी, चित्तमांहे ताके चोट रे ॥ प्रा० ॥ २ ॥ आप गरजें बाघो पडे जी, पण न धरे विश्वास ॥मेल न बांझे मन तणो जी, ए मायानो पास रे ॥ प्रा० ॥३॥ जेहगुं मांमे प्रीतडी जी, तेहगुं रहे प्रतिकूल ॥मन नवि मूके आमलो जी, ए मायानुं मूल रे ॥प्रा० ॥ ४ ॥ तप कीधुं माया करी जी, मित्रराख्यो रे नेद ॥ मन्नी जिने श्वर जाणजो जी, तो पाम्या स्त्रीवेद रे ॥प्रा० ॥ ॥ ५ ॥ उदयरत्न कहे सांगतो जी, मेलो मायानी बु६ ॥ मुक्तिपुरी जावा तणो जी, ए मारग़ ने गु६ रे ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ इति मायानी सशाय॥
॥अथ लोननी सजाय ॥ ॥ तुमें लक्षण जो जो लोननां रे, लोनें जन पामें दोजना रे ॥ लोनें माह्या मन मोल्या करे रे, लोनें उर्घट पंथें संचरे रे ।। तु० ॥ १ ॥ तजे लोन तेहनां ले जामणां रे, वली पाय नमीने करूं खा मणां रे ॥लोनें मर्यादा न रहे केहनी रे, तुमें संगत मेलो तेहनी रे ॥ तु० ॥॥ लोनें घर मेहली रणमा मरे रे, लोनें कंच ते नीचुं आचरे रे ॥ लोनें पाप नणी पगलां नरे रे, लोनें अकारज करतां न उसरे रे ॥ तु० ॥ ३ ॥ लोनें मनडुं न रहे निर्मलु रे, लोने सगपण नासे वेगलं रे ॥ लोनें न रहे प्री ति ने पावतुं रे, लोनें धन मेले बहु एकतुं रे ॥तु॥
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(२३) ॥ ४ ॥ लोनें पुत्र प्रत्ये पिता हणे रे, लोनें हत्या पातक नवि गणे रे ॥ ते तो दाम तणे लोनें करी रे, नपर मणिधर याये ते मरी रे ॥ तु० ॥ ५ ॥ जोतां लोननो थोन दिसे नहीं रे, एवं सूत्र सिमांतें कडं सही रे ॥ लोनें चक्री सनम नामें जुट रे, ते तो समुश्माहे मूबी मुवो रे ॥ तु० ॥ ६ ॥ एम जा पीने लोनने बंमजो रे, एक धर्मग्रं ममता मंमजो रे ॥ कवि उदयरत्न नांखे मुदा रे, वंदू लोन तजे तेहने सदा रे ॥तु ॥ ७ ॥ इति लोननी सद्याय ॥
॥अथ श्री श्रावक करणीनी सद्याय ॥ ॥ चोपाई ॥ श्रावक तुं कठे परजात, चार घडी ले पाबली रात ॥ मनमां समरे श्री नवकार, जिम पामे नव सायर पार ॥ १ ॥ कवण देव कवण गुरु धर्म, कवण अमारुं में कुलकर्म ॥ कवण अमारो ने व्यवसाय, एवं चिंतवजे मन मांय ॥२॥ सामा यिक लेजे मन शुद्ध, धर्मनी हैडे धरजे बु६ ॥ पडिक्क मणुं करे रयणी तणुं, पातक लोई आपणुं ॥३॥ कायाशक्तं करे पच्चरकाण, सुधीपाले जिननी आण ॥ नजे गुणजे स्तवन सद्याय, जिगहुँती निस्तारो थाय ॥ ४ ॥ चीतारे नित्य चनदे नीम, पाले दया जीवंतां सीम ॥ देहरे जाई जुहारे देव, इव्यनावथी करजे सेव ॥ ५ ॥ पूजा करतां लान अपार, प्रनु जी महोटा मुक्ति दातार ॥ जे उबापे जिनवर देव, तेहने नव झमकनी टेव ॥ ६ ॥ पोशालें गुरु वंदजे
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( २४) जाय, सुणजे वखाण सदा चित्त लाय ॥ निषण सू जंतो आहार,साधुने देजे सुविचार ॥७॥साहामिवत्स ल करजे घj,सगपण मोहोटूं सहामीतj॥ःखीया हीणा दीनने देख, करजे तास दया सुविशेष ॥ ७ ॥ घर अनुसारें देजे दान, मोहोटामु म करे अनिमा न ॥ गुरुने मुख लेजे मारवडी, धर्म न मूकीश एके घडी ॥ ए ॥ वारु शुरू करे व्यापार, उना अधिका नो परिहार ॥ म नरजे केनी कूडी साख, कूडा ज न' कथन म जांख ॥ १० ॥ अनंतकाय कह्या बत्री श, अनय बावीशे विश्वावीश ॥ ते नक्षण नवि कीजें किमे, काचां कूणां फल मत जिमे ॥ ११ ॥रा त्रीनोजनना बहु दोष, जाणीने करजे संतोष ॥ सा जी साबू लोह ने गली, मधु धावडी मत वेचो वली ॥ १२ ॥ वली म करावे रंगण पास, दूपण घणां कह्यां ने तास ॥ पाणी गलने बे बे वार, अगल पीतां दोप अपार ॥ १३ ॥ जीवाणीनां करजें यत्न, पातक बंमी करजे पुण्य ॥ बाणां इंधण चूलो जोय, वावरजे जिम पाप न होय ॥ १४ ॥ घृतनी परें वा वरजे नीर, अगल नीर म धोश्श चीर ॥ बारे व्रत सूधां पालजे, अतीचार सघला टालजे ॥ १५॥ क ह्या पन्नरे कर्मादान, पापतणी परहरजे खाण ॥ मा थे म लेजे अनरथ दम, मिथ्या मेल म नरजे पिंक ॥ १६ ॥ समकित शुरू हैडे राखजे, बोल विचारी ने नांवजे ॥ पांच तिथि म करो आरंन, पालो
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( २२४ ) ए
शीयल तजो मन दंन ॥ १७ ॥ तेल तक घृत दूध ने दहिं, उघाडां मत मेलो सही || उत्तम ठामें खर चो वित्त, पर उपगार करो शुनचित्त ॥ १८ ॥ दिव स चरिम करजे चोविहार, चारे आहार तणो परि हार || दिवस तणां खालोए पाप, जिम नांजे सघ ला संताप ॥ १९ ॥ संध्यायें आवश्यक साचवे, जि नवर चरण शरण नवनवे ॥ चारे शरण करी दृढ होय, सागरी अणसण जे सोय ॥ २० ॥ करे म नोरथ मन एहवा, तीरथ शेजे जायवा ॥ समेत शिखर बाबू गिरनार, नेटीश हुं धन धन अवतार ॥ २१ ॥ श्रावकनी करणी बे एह, एहथी थाये न वनो बेह ॥ याठे कर्म पडे पातलां, पाप तथा छूटे यामला ॥ २२ ॥ वारु लहियें अमर विमान, अनु कमें पामे शिवपुर ठाम ॥ कहे जिनदर्ष घणे ससने ह, करणी दुःखहरणी ने एह ॥ २३ ॥ इति ॥ ॥ श्रीनेम राजुलनी सवाय ॥
॥ नदी जमुनाके तीर, उमे दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥ || पियुज | पियुजी रे नाम, जपुं दिन रातियां ॥ पियुजी चाव्या परदेश, तपे मोरी बातीयां ॥ पग प ग जोती वाट, वालेसर कब मिले | नीर विबोयां मीन, के ते ज्युं टलवले ॥ १ ॥ सुंदर मंदिर सेज, साहिब विल नवि गमे ॥ जिहां रे वालेसर नेम, तिहां मारुं मन जमे ॥ जो होवे सऊन दूर, तोही पासें वसे ॥ किहां पंकज किहां चंद, देखी मन उनसे
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बी ( २२४ )
॥ २ ॥ निःस्नेही प्रीत, म करजो को सही ॥ पतंग जलावे देह, दीपक मनमें नही | वाहाला माणस नो विजोग, म होजो केहने ॥ साले रे साल समा न, हश्यामां तेहने || ३ || विरह व्यथानी पीड, जो बन व प्रति दहे ॥ जेनो पियु परदेश, ते माणस डुःख सहे ॥ कुरि कुरि पंजर कीध, काया कमलज जिसी ॥ हजिय न श्राव्यो नेम, मनि न नयणें ह सी ॥ ४ ॥ जेहने जेहगुं राग, टाल्यो ते नवि टजे ॥ चकवा रयणी विजोग, ते तो दिवसें मजे । यांवा केरो स्वाद, लिंबू ते नवि करे || जे नाह्या गंगा नी र, ते बिल्लर किम तरे ॥ ५ ॥ जे रम्या मानती फ्र ल, धतूरे किम रमे ॥ जेहने घृतशुं प्रेम ते, तेजें किम जिमे ॥ जेहने चतुरगुं नेह ते, अवर ने शुं करे || नवजोबन तजी नेम, वैरागी थ फरे | ॥ ६ ॥ राजुल रूपनिधान, पहोती सहसाव ने ॥ जइ वांद्या प्रभु नेम, संजम लेइ एक मनें ॥ पा म्यां केवल ज्ञान के, पहोती मननी रली ॥ रूपविजय प्रभु नेम, नेटे याशा फली ॥ ७ ॥ इति ॥
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॥
॥ अथ निड्डीनी सिवाय प्रारंभः ॥
॥ निड्डी वेर हुइ रही, किम कीजें हो सा पु रुप निदान के ॥ चोर फरे चिहुं पासथी, किम सूता हो कां दिन ने रात के ॥ नि० ॥ १ ॥ वीर कहे सु यो गोयमा, मत करजो हो एक समय प्रमाद के ॥ जरा यावे यौवन गले, किम सूता हो कां कवण
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(२२४) सी सवाद के ॥ नि० ॥ ॥ चनद पूरवधर मुनिवरा, निश करता हो गया नरक निगोद के ॥ अनंतोष नंत काल तिहां रहे, इम बगडे हो कांइधरमनो मो द के ॥ नि० ॥३॥ जोरावर घणा जालमी, यमरा जा हो कांइ सबल करूर के ॥ निजसेन्या लश् चिटुं दिशे, किम जागता हो नर कहीयें शूर के ॥ नि॥ ॥४॥ जागतडां गंजे नही, तराये हो नर सूतो नेट के ॥ सूतारिण। पामा जण्या, किम कीजें हो शा पुरुपनी नेट के ॥नि ॥ ५ ॥ श्रीवीरें इम नारवीयुं, पंखी नारंम हो न करे परमाद के ॥ तेह तणीपरें विचरजो, परिहरजो हो गोयम परमाद के ॥नि ॥ ६ ॥ वीर वचन श्म सांजली, परिहरियो हो गोयमें परमाद के ॥ लीला सुख लाधां घणां. थि र रहियो हो जगमा जसवाद के ॥ नि०॥ ७ ॥ निंद निंडी मंत आणजो, सुश रहेजो हो सदुको सा वधान के ॥ ध्यान धरम हिये धारजो, इम नारखे हो मुनि कनकनिदान के ॥ नि ॥ ॥ इति ॥
॥अथ सिचक्रजीतुं स्तवन ॥ ॥ तुमें पीतांबर पहेयां जी, मुखने मरकलडे ॥ए देशी॥
॥श्रीसिदचकने वंदोजी, मनोहर मनगमता ॥ जे अविचल सुखनो कंदोजी ॥ मनो० ॥ मास या शोयें मधुरें सोहावे जी ॥ मनो० ॥ नवि यादरो तमें जने नावें जी ॥ मनो॥१॥ नव यांबिल तप कीजें जी ॥म ॥ तो अविचल सुखडां लीजें जी॥
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मी (२२४) ॥म ॥ गुदि सातमथी तमें मांगो जी ॥ मनो० ॥ घरनां आरंन सवि बांको जी ॥म० ॥ ॥ पहेले पदें अरिहंत सेवो जी ॥म ॥ यापे मुक्तिनो मेवो जी॥म० ॥ बीजे पर्ने सिम सोहावे जी॥मनो॥ मनगुडे पूजो नले नावें जी ॥ म ॥३॥ प्राचार्य तीजे पदें नमो जी ॥म०॥ तमें कोध कषायने दमो जी॥म० ॥ नवजाय ते चोथा वंदो जी ॥मनो॥ साधु पांचमे देखी आणंदो जी ॥म ॥ ४ ॥ बछे दरिसन पद जाणो जी ॥ म० ॥ श्रीझानने सातमे वखाणो जी ॥ म ॥ चारित्र पद याम्मे सोहे जी ॥ म ॥ वली नवमे तप मन मोहे जी ॥'सनो० ॥ ॥ ५॥ रस गारव आंबिल कीजें जी ॥म० ॥ तो मुक्ति तणां फल लीजें जी ॥म ॥ संवत्सर युगषट मासें जी ॥म ॥ तप कीजे मनने नन्नासें जी॥ ॥म ॥ ६ ॥ ए तो मया ने श्रीपाल जी॥ म० ॥ तप कीg था नजमाल जी ॥ म ॥ तेनो कोढ श रीरनो टाल्यो जी ॥ म०॥ जगमां जस वास प्रगटा यो जी ॥म ॥ ७ ॥ पंचम काले तुमें जाणो जी॥ ॥ म० ॥ परगट परतो परमाणो जी ॥म ॥ एर्नु गणगुं तेर हजार जी ॥म० ॥ तमें धारो हृदय म कार जी ॥ म० ॥ ७ ॥ नरनारी ए पद ध्यावे जी॥ ॥ मनो० ॥ तेतो संपद सघली पावे जी ॥ मनो॥ मुनि रत्नसुंदर सुपसाय जी ॥म ॥ सेवक मोहन गुण गाय जी ॥ मनो० ॥ ॥ इति ॥
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(१२५) ॥ अथ श्री शांतिजिन विनतिरूप बंद ॥ ॥ शारद माय नमुं शिर नामि, दुं गावं त्रिनुव नको स्वामी ॥ शांति शांति जपे सब कोइ, ता घर शांति सदा सुख हो ॥ १ ॥ शांति जपी जे कीजें काम, सोइ काम होवे अनिराम ॥ शांति जपी पर देश सिधावे, ते कुशनें कमला ले आवे ॥ २॥ गर्न थकी प्रनु मारि निवारी, शांतिजी नाम दियो हित कारी ॥ जे नर शांति तणा गुण गावे, रुधि अचिं ती ते नर पावे ॥ ३ ॥ जा नरकू प्रनु शांति सहाइ, ता नरकू क्या प्रारति जाइ ॥ जो कबु वं सोई पूरे, दारि पुरख मिथ्यामति चूरे ॥ ४ ॥ अलख निरं जन ज्योत प्रकाशी, घट घट अंतरके प्रनु वासी ॥ स्वामी स्वरूप कह्यु नवि जाय, कहेतां मोमन अच रिज थाय ॥ ५॥ मार दीए सवहीं हथियारा, जी त्यां मोह तसा दल सारां ॥ नारि तजी शिवगुं रंग राचे, राज तज्युं पण साहेव साचे ॥ ६ ॥ महा बलवंत कहिले देवा, कायर कुंथु न एक हणेवा । ऋदि सयल प्रनु पास लहीजें, निदा आहारी नाम कहीजें ॥ ७ ॥ निंदक पूजककू सम नायक, पण सेवकहीकू सुख दायक ॥ तजी परिग्रह नये जगना यक, नाम अतिथि सवि सिदिलायक ॥ ७ ॥ शत्रु मित्र सम चित्त गणीजें, नामदेव अरिहंत जणीजें ॥ सयल जीव हितवंत कहीजें, सेवक जाणी माहापद दीजें ॥॥ सायर जैसा होत गंजीरा, दूषण एक
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(२२६) न मांहे शरीरा ॥ मेरु अचल जिम अंतरजामी, पण न रहे प्रनु एकण ठामी ॥ १० ॥ लोक कहे जिन जी सब देखे, पण सुपनांतर कबहुं न पेखे ॥रीश विना वावीश परीसा, सेना जीती ते जगदीशा॥११॥ मान विना जग आण मनाई, माया विना शिवगुं लय लाई ॥ लोन विना गुणराशि ग्रहीजें, निरकु जये त्रिगडो सेवीजें ॥ १३ ॥ निथपणे शिर बत्र धरावे, नाम यति पण चमर ढलावे ॥ अनयदान दाना सुख कारण, आगल चक्र चले अरिहारण ॥ १३ ॥ श्रीजिनराज दयाल जणीजें, करम सवें को मूल खणीजें ॥ चनविद संघह तथ थापे, जही घणी देखे नवि आपे ॥ १४ ॥ विनयवंत जगवं त कहावे, न काढूकू शीश नमगवे ॥ अकिंचनको बिरु द धरावे, पण सोवनपद पंकज गवे ॥ १५॥ राग नहीं पण सेवक तारे, क्षेप नहीं निगुणा संग वारे॥ तजी आरंन निज आतम ध्यावे, शिव रमणीको साथ चलावे ॥ १६ ॥ तेरो महिमा अनुत कहि यें, तोरा गुनको पार न सहीयें ॥ तुं प्रनु समरथ साहेब मेरा, ढुं मनमोहन सेवक तेरा ॥ १७ ॥ तूं रे त्रिलोकतणो प्रतिपाल, हूं रे अनाथी तुं रे द याल ॥ तुं शरणागत राखणधीरा, तुं प्रनु तारक बो वड वीरा ॥ १७ ॥ तुंदि समोवड नागज पायो, तो मेरो काज चड्यो रे सवायो ॥ कर जोडी प्रनु विनवू तोसुं, करो कृपा जिनवरजी मोसुं ॥१॥॥ जनम
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(१२७) मरणना दोष निवारो, जव सागरथी पार उतारा ॥ श्री हबिगानरमंमण सोहे, तिहां श्री शांति सदा मन मोहे ॥ २० ॥ पद्मसागर गुरुराज पसाया, श्री गुणसागरके मन जाया ॥ नरनारी जे चितें गावे, ते मनोवंडित निथे पावे ॥ २१ ॥ इति ॥
॥अथ॥ ॥ श्री गोडीपार्श्वनाथजी, चोढालीयुं प्रारंनः॥
॥पास जिणंद प्रसिभ सिह, गोडीपुरमंमण ॥ महिमामंदिर मोह मयण, मिथ्यात विहंमण ॥ ए कल मन अनेक रूप, अगणित गुण आगर ॥ त्रिनु वन बंधव धवलाधिंग, करुणा रस सागर ॥१॥ जिन तुम अजब सरूप सकल, कल अकल अगोचर ॥न लहे अलहे उतपति थगित, थिति नटके जो चर ॥ वृक्ष वचन- जीरण लिखित, अनुसारें जाणी॥थुणा स्वामीनिरीह पणे, सुगजो नवि प्राणी ॥ २ ॥ वि धिपद गल महेंसूरि, गलेश निर्देशे ॥ शारखाचारज अनय सिंह, सूरि नपदेशे ॥ गोत्र मीडीया उसवंश, पाटणपुरवासी ॥ शाह मेघो जेणें सात धात, जिण धर्मे वासी ॥३॥ चौद बत्रीशे फागणशुदि, बीजने जूगुवारें ॥ खेता नोडी तात मात, निज सुरूत सा रे ॥ तेणें पश्तो पास बिंब, सेहवा नरजव फल ॥ चनविह संघ हजूर हरखें, खरची धन परिगल ॥४॥ जक्ति युक्ति अति थकित चित्त, नित्य निर्मल
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() सारी ॥ पण पसताले तुरक जयें, प्रतिमा नंमारी॥ मलक महाबल दुसन खान, कीधो उतारो ॥ पांशवे तेणें नाम जोर, गुजराती वारो ॥ ५ ॥ तरल तुरंग किशोर असुर, करता हय हणता ॥ केश एराकी नबलंत, खुरीयें । खणता ॥ बांधण त्यांहि घोडार मांहि, खीसी खोसंतां ॥ प्रगट थया तिहां पास विं ब, सुख दायक संता ॥ ६ ॥ विजमत गार नफर फजर, नजरें गुजरावे। हो खुशाल निहाल मलक, या कोण कहेलावे ॥ बान पडिल कोइ वणिक सु ता, तसुदुरम नणे इम ॥कीजें इसकू दंमव्रत, सदा ताजिम दाजिम ॥ ७ ॥ यद मजबूत बहुत कोत, हे नूत हिंङका ॥ धरिये इस शिर जाफरान, सिंदलका जूका ॥णी परें रहेतां तेणे. ठामें, वोहोड्या दिन के ॥ सिंतेरे जे वात दुइ, सुगजो मन दे ॥ ७ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ चूनडीनी देशीमां ॥ ॥णे अवसरें पुर पारकरें, राणो खंगार राजान रे ॥ तेहने दरबारें दीपतो, संघवी काजल परधान रे ॥णे ॥१॥ तस बन्हेवी निज कुलतिलो, देवा वंद शा बेदयाल रे॥ मेघो खेताउत पाटणे, व्यापार करे धूताल रे ॥णे ॥ २ ॥ सुपनंतर सुर कहें शाहने, छे म्लेव महोल जिनबिंब रे ॥ तस दाम सवासो देश्ने, लेजो म करजो विलंब रे॥णे॥३॥ प्रतिमा ले आवे गुरु कन्हे, जोइ कहे श्रीमेरुतुंग रे॥ तुम देशे ए अति अतिशयी,तीरथ थाशे उत्तंग रे
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(१२५)
॥ ० ॥ ४ ॥ करियाएं लइ पोहोंचे घरें, मूरति राखे रू मांहे रे ॥ पंथें कोइ न गणे पोठीया, वाध्यो घणो मोह बाहें रे ॥ इणे० ॥ ५ ॥ समजावे नामुं शे उने, जंपे देजो मुऊ रास रे ॥ मांगो ए नामें महारे, प्रतिमा रहेशे श्रम पास रे || इ० ॥ ६ ॥ मेघो कहे लेखो राख, पण ते सबलो तिल ठाम रे ॥ गाडुं जरी चाले यल दिशें, वासो वसे गोडी गाम रे ॥ इणे० ॥ ७ ॥ सुहणे सुंर कहे गहुंली जिहां, मांमो प्रासाद मंमाण रे ॥ नाएं तिहां धन श्रीफल तजें, मीतुं जल पाहाएपनी खाण रे ॥ इणे० ॥ ८ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ निड्डी वेरा हुइ रही ।। ए देशी ॥
॥ हांजी उदयपाल ठाकुर तिहां, जोरावर हो खे तशी लूंगीत के ॥ हां रहो निरजय शाहजी, याद रशुं हो कहे दे महोत के ॥ धन धन गोडी जग ध णी, पोहकी पाले हो प्राजो जस पीठ के ॥ धन० ॥ १ ॥ ए क ॥ वे शिलाट देशांतरी, यह प्रेयो हो करे प्रथम तैयार के ॥ भूमि करुं प्रभु वेसवा, रहे चिहुं दिशि हो लशकर दुशीयार के ॥ धन० ॥ २ ॥ पुखतीबंधावी पीठिका, वर दिवसें हो जाणे हि नाग के ॥ सखर गंजारो शिखरशुं, मध्य मंरुप हो सवि मोह मंमाण के ॥ धन० ॥ ३ ॥ पवासणें वेठा पासजी, नरेन करी हो पूजे नवें नाव के ॥ सजल मधुरजल लहकती, वरदायी हो बंधावी वाव्य के ॥ धन० || ४ || एहवे चन्द चोराणुयें; श्रायुयोगें हो
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(२३०) कस्यो मे काल के नाणेजो आणी घरे, काजलशा हो करे चैत्यनी चाल के ॥ धन ॥ ५ ॥ रंग मंम्प रचना बनी, अति कंचा हो थंन नामोठाम के ॥ कोमें करावे कोरणी, वित्त वावरी हो थिर कीg डे नाम के ॥ धन ॥ ६ ॥ वली रे महाजनना सहा यगुं, मेघना हो सुत च तवे काम के ॥ मुख्य मंझप शुन मांझणी, करी जिनहर हो बो बंध अनिराम के धन ॥ ॥ चोवीशवट्टो पंचाणुए. तेणे थाप्यो हो आगल रही जेह के ।। चोवीश गोत्रनी देहरी, महा जननी हो फरती ने तेह के ॥ धन ॥ ७ ॥
॥ ढाल त्रीजी॥धणर ढोला॥ ए देशी ॥ ॥णी परें वः बेतुने रें, मांहो मांहे विवाद ॥ गिरुन घोडी ॥ घोडी गाजेजी जिणंद, तेजें दीपे जी दिणंद, जग महिमा अगम अपार ॥ गिरु० ॥ ए अांकणी ॥ पण सरखा राखे प्रनु रे, वधवा न दीए विपवाद ॥ गिरु ॥ १ ॥ बनेवी महोटो हशे रे, ए
पूजक प्राय ॥ गिरु० ॥ मेघानां संतत हजी रे, ते एवं गोठी कहेवाय ॥ गिरु० ॥२॥ शिखर दंम वडी ध्व जा रे, चढतां करे रे कलेश ॥ गिरु० ॥ आज लगें बे एहने रे, श्म बहु वचन विशेष ॥ गिरु० ॥ ३ ॥ अंगुली बांधी एकठी रे, पूजन लीजें कदाप ॥ गिरु०॥ ठाकुर ले नही मूंमर्छ रे, ए बिछर्नु अद्याप ॥ गिरु० ॥ ॥ ४॥ उदयवंत अति कजला रे, विधिपद श्रावक वेह ॥ गिरु० ॥ तेखदार दिल दोलती रे, प्रनुजीगुं
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(२३१) पूरण सनेह ॥ गिरु० ॥ ५॥ सम्मकेतधारी जागतो रे, धिंग धवल धर धीर ॥ गिरु० ॥ साह्य करी आग ल रह्यो रे, खगधर खेतलवीर ॥गिरु॥६॥ अधिकुं बुं जे कडं रे, ते खमजो महाराज ॥ गिरु०॥ काणा बंध पण खरी रे, वात गरिब निवाज ॥ गिरु० ॥ ॥ ७॥ पहेलां तवन नण्यांणां रे, तिहां जाजा सं वाद ॥ गिरु० ॥ सऊन साचा सदहजो रे, श्यो रे जू तामां सवाद ॥ गिरु० ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पांचमी॥ राग धन्याश्री अथवा अशावरी॥
॥जयो जयो गोडीपास जिनेसर,नक्तवत्सल जगवा न रे ॥ देवल बार ने बीजी रे प्रतिमा, विषमा थल विच थान रे ॥ जयो० ॥ ॥ आयुध धारी नीने घोडे, आप थई असवार रे ॥ किहां रे बालक अवधू त नुयंगम, देखाडे दीदार रे ॥ जयो ॥ २ ॥ आवे संघ अनेक विदेशी, निरुपम महिमा माट रे ॥ चोर चरडनुं कांही न चाले, विघ्न निवारे वाट रे ॥ जयोग ॥ ३ ॥ जंगल नूला रात्र जात्र, ततदण लेता नाम रे ॥ देवी रे धरी मार्ग देखाडे, मूके चिंतित ठाम रे॥ जयो० ॥ ४ ॥ दरिया विचमांहे वाहाण मोलंता, समरंता दीये साद रे ॥ सयल असुर सुर नरवर से वे, नविलोपे मरजाद रे ॥ जयो० ॥ ५ ॥॥ विष हर वैरी व्याधि वैश्वानर, जय जांजे हरि ब्रांत रे ।। प्रायें केहने अधिक न राखे, पंच दिवस उपरांत रे॥ जयो० ॥ ६ ॥ या नवें वंडित सकल होवे पण, क
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( २३२ )
र्म निबबंध कोय रे || ध्यान शुड़ें समकित निर्मल ता, स्वर्ग मुगति फल होय रे ॥ जय० ॥ ७ ॥ इव्य नाव विधि पूजो प्रणमो, नाम जपो नर नार रे ॥ स्तव न जाणो मद मन्त्र मूकी, उतपति साची मन धार रे ॥ जय० ॥ ८ ॥ कलश | इस खुल्यो गोडीपास स्वामी, हुकुम पाम जेहनो ॥ दिशदिशें पसरतो रति हरतो, प्रगट परतो जेहनो ॥ श्री अमरसागर सरि अंचल, गढपतिराय पसाउ ॥ पय नमी लखमीचं वाचक, शिष्य लावण्य इम नये ॥ ए ॥ इति श्री गोडी पारसनाथजीनुं चोढालीयुं संपूर्ण ॥
॥ अथ पारसनाथनो बंद प्रारंभः ॥
॥ आपण घर वेठा लील करो, निज पुत्र कलत्र शुं प्रेम धरो ॥ तमें देश देशांतर कां दोडो, नित्य पास जपो श्रीजिन रूडो ॥ १ ॥ मनोवंबित संघलां काज सरे, शिर उपर चामर बत्र धरे ॥ कलमल चाले प्रागल घोडो, नित्य पास जपो श्रीजिन रुडो ॥ २ ॥ नूतने प्रेत पिशाच वली, साय ने दायणी जाय ट ली ॥ बल बिड् न कोइ लागे जूडो ॥ नित्य० ॥ ३ ॥ एकांतर ताव सीयो दाह, उपध विण जाये खणमांद ॥ नवि दुःखे मायुं पग गूडो ॥ नित्य० ॥ ४ ॥ कंठमा ला गडबड सबला, तस उदर रोग टले सघला ॥ पीडा न करे फिन गल फोडो ॥ नित्य० ॥ ५ ॥ जा गतो तीर्थकर पास बहू एम जाणे सघलो जगत सदू ॥ ततक्षण प्रशुंन कर्म तोडो ॥ नित्य० ॥ ६ ॥
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(२३३) पास वारसि पुरि नगरी, तिहां उदयो जिनवर उदय करी ॥ समयसुंदर कहे कर जोडो॥ नित्य० ॥ ७ ॥
॥अथ झानपच्चीशी प्रारंजः ॥ ॥ सुर नर तिरि जग योनिमें, नरक निगोद जमं त ॥ महामोहकी निंदमें, सोवे काल अनंत ॥१॥ जैसे ज्वरके जोरसें, जोजनकी रुचि जाय ॥ तैसें कुकर्मके उदय, धर्मबचन न सुहाय ॥ ॥ लगे नूख ज्वरके गये, सचिगुं लेत आहार ॥ अगुनहीन शुनके जगे, सो जाने धर्म बिचार ॥ ३ ॥ जैसे पवन फकोलथें, जलमें नवे तरंग ॥ त्युं मनसा चंचल जये, परिग्रहके परसंग ॥ ४ ॥ जिहां पवन नहि संचरे, तिहां नही जलकबोल ॥ त्युं सब परिग्रह त्यागथें, मनसा होय अमोल ॥ ५ ॥ ज्युं कादु वि पधर मसे, रुचिगुं निंब चबाय ॥ त्युं तुम ममता झुं मढे, मगम विषय सुख थाय ॥ ६ ॥ निंबरस फरसे नही, निर्विषतनु जव होय ॥ मोह घटे ममता मिटे, विषय न वंजे कोय ॥ ७ ॥ ज्यूं सबि नौका चढे, ब्रूडे अंध अदेख ॥ त्युं तुम नवजलमें पडे, बिनु विवेक धरी नेख ॥ ७ ॥ जिहां अखंमित गुण लगें, खेवट शु६ विचार ॥ आतमरुचि नौका चढे, पावही नवजल पार ॥ ५ ॥ ज्युं अंकुश माने नही, महा मतंग गजराज ॥ त्युं मन तृष्णामें फिरे, गिने न काज अकाज ॥ १० ॥ ज्युं नर दाय नपाय करि, गही आने गजराज ॥ त्युं मन या वश करनकू, नि
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(२३४) मल ग्यान समाज ॥ ११ ॥ तिमिर रोगसें नयन ज्युं, लखे उरकी उर ॥ त्युं मन संशयमें परे, मिथ्या मतकी दोर ॥ १२ ॥ ज्यु औषध अंजन कीए, ति मिर रोग मिट जाय ॥ त्युं सदगुरु उपदेशथें, संशय वेग पलाय ॥ १३ ॥ जैसें सब जाऊ जरे,धारामति की आग ॥ त्युं मायामें तुम पडे, कहां जागे नाग ॥ १४ ॥ पायनसों ते बचे, जे तपसी निर्यथ ॥ तजी माया समता ग्रहो, एह मुगतको पंथ ॥ १५ ॥ ज्युं कुधातुके नेटा, घटवध कंचन कंत ॥ पाप पुण्य करतो नवें, मूढमति बहु नंत ॥ १६ ॥ कंचन निज गुण नही तजे, वान हीन नही होत ॥ घट घट अं तर अातमा, सहज स्वजाव उद्योत ॥ १७ ॥ पना पीठ पक्काश्य, शुरू कनक ज्यु होय ॥ त्युं परगट प रमातमा, पुण्य पाप मल धोय ॥ १७ ॥ पर्व राके गहनसें, सूरसोमबवि बीन ॥ संगत पाइ कुसाधुकी, सऊन होत मलीन ॥ १५ ॥ निंबादिक चंदन करे, मलयाचलकी बास ॥ उऊन थें सऊन नये, रहत साधुके पास ॥ २० ॥ जैसें तलाव सदा जरे, जल
आवत चिहुँ उर ॥ तैसें आश्रव हारथें, करम बंधको जोर ॥ २१ ॥ ज्युं जल आवत मूदीयें, सूके सरवर पानातैसें संवरके कीये, करम निरजरा जान ॥२॥ ज्युं ब्रटी संयोगथें, पारा मूडित होय ॥ त्युं पुजला तुम मिले, आतमशक्ति समोय ॥ २३ ॥ मेल खटा मांजीयें, पारा परगट रूप ॥ शुकल ध्यान अन्यास
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( २३५)
थें, दर्शन ज्ञान अनूप ॥ २४ ॥ कहे उपदेश बनार सी, चेतन अब कबु चेत ॥ याप बुजावत आपकूं, उदय करनके हेत ॥ २५ ॥ इति ज्ञानपच्चीशी ॥ ॥ अथ रणिक मुनिनी सझाय ॥
॥ अरणिक मुनिवर चाव्या गोचरी, तडके दाजे शीशो जी ॥ पाय वाणे रे वेलू परजने, तनु सुकु माल मुनीशो जी ॥ अर० ॥ १ ॥ मुख करमाणुं रे मालती फूल ज्युं, उनो गोंखनी हेगे जी ॥ खरेरे ब पोरें रे दीवो एकलो, मोही माननी दीगे जी ॥ अर लि० ॥ २ ॥ वयण रंगीली रे नयरों वेधियो, ऋषि थं यो तेणें गमो जी ॥ दासीने कहे जारे उतावली, ए ऋषि तेडी आणो जी ॥ अरणि ॥ ३ ॥ पावन कीजें रे ऋषि घर यागणुं, वोहोरो मोदक सारो जी ॥ नवयौवनरस काया कां दहो, सफल करो संसारो जी ॥ रशि० ॥ ४ ॥ चंशवदनी रे चारित्र चूकव्युं, सुख विलसे दिन रातो जी ॥ बेठगे गोंखें रे रमतो सों गठे, तव दीवी निज मातो जी ॥ अरणि० ॥ ५ ॥ अरकिरणिक करती मा फिरे, गलियें गलियें तिवारी जी ॥ कहो केरों दीठो रे महारो अरणीलो, पूछें लोक हजारो जी || अरणि ॥ ६ ॥ उतस्यो ति हांथी रे जननी पाय पड्यो, मनशुं लाज्यो पा रो जी ॥ वव तुज न घटे रे चारित्र चूकवुं, जेहथी शिवसुख सारो जी ॥ अरणि ॥ ७ ॥ एम समजावी रे पाढो वालीयो, खाएयो गुरुने पासो जी ॥ सह
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(२३६) गुरु दीए रे शीख नली पर वैरागें मन जास्यो जी॥ अरणि ॥ ७ ॥ अग्नि ती रे शिला ऊपरें, अर णि अणसण कीधो ज, रूपविजय कहे अन्य ते मुनिवरू, जिणें मनवंदित लीधो जी॥०॥ ५ ॥
॥अथ पार्श्वनाथनो बंद ॥ ॥ जय जय जगनायक पाश्वजिनं, प्रणताखिल मानवदेवगनं ॥ जिनशासन मंझन स्वामि जयो, तम दरिसन देखी आनंद जयो ॥ १ ॥ अश्वसेन कुलं बरजानुनिनं, नव हस्तशरीर हरितप्रतिनं ॥ भर पिंड सुसेवित पादयुगं, जर जासुरकांति सदा मुनगं ॥ २ ॥ निज रूपविनिर्जित रंनपति, वदनोद्यति शा रद सौमततिं ।। नयनांबुज दीप्ति विशालतरा, तिल कुसुम सन्निन नासा प्रवरा ॥ ३ ॥ रसनामृत कंद समान सदा, दशनावलि अनार कली सुखदा ॥ अ धरारुण विजुम रंगधनं, जय शंखपुरानिध पार्श्व जिनं ॥ ४ ॥ अतिचारु मुकट मस्तक दीपे, कानें कुंमल रवि शशि जीपे ॥ तुम महिमा महि मंगल गाजे, नित्य पंच शब्द वाजां वाजे ॥ ५ ॥ सुर किन्नर विद्याधर आवे, नर नारी तोरा गुण गावे ॥ तुज सेवे चोशन इंश सदा, तुज नामें नावे कष्ट कदा ॥ ६ ॥ जे सेवे तुऊने नाव घणे, नवनिधि थाये घर तेह तणे ॥ अडवडियां तुं आधार कह्यो, समरथ साहिब में आज लह्यो ॥ ७ ॥ उखीयाने सुखडां तुं दा खे, अशरणने शरणे तुं राखे ॥ तुक नामें संकट
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(२३७) विकट टले, वीबडीयां वाला प्रावि मले ॥७॥ नट विट संपट दूरें नासे, तुऊ नामें चोर चरड त्रासे ।। रण राउल जय तुज नाम थकी, सघले आगल तुज सेवथकी ॥ए ॥ यद राक्स किन्नर सवि नरगा, करी केशरी दावानल विहगा ॥ वध बंधन जय सघ लां जाये, जे एक मनां तुनने ध्याये ॥ १० ॥ नूत प्रेत पिशाच बनी न शके, जगदीश तवानिध जाप थके ॥ महोटा जोटिंग रहे दूरे, दैत्यादिकना तुं मद चूरे ॥ ११ ॥ मायणी सायणी जाए हटकी, नगवं त थाय तुफ नजनथकी ॥ कपटी तुऊ नाम लीया कंप, उर्जन मुखथी जीजी जंपे ॥ १२ ॥ मानी मन राला मुह मोडे, तेपण आगलथी कर जोडे ॥ उर्मु ख उष्टादिक तुंही दमे, तुफ जापे महोटा मनेब नमे ॥ १३ ॥ तुक नामें माने नृप सबला, तुज जश उज्ज्वल जेम चंकला ॥ तुऊ नामें पामे झदि घणी, जय जय जगदीश्वर त्रिजग धणी ॥ १४ ॥ चिंताम णि कामगवी पामे, हयगय रथ पायक तुक नामें ॥ जन पद ठकुराई तुं आपे, उर्जन जननां दारि कापे ॥ १५ ॥ निर्धनने तुं धनवंत करे, तूठो कोठार नंमा र नरे ॥ घर पुत्र कलत्र परिवार घणो, ते सदु मदि मा तुम नाम तयो॥ १६ ॥ मणि माणक मोती रत्न जड्या, सोवन नूषण बहु सुघड घड्या ॥ वली पेहे रण नवरंग वेश घणा, तुम नामें नवि रहे काम या ॥ १५ ॥ वैरी विरु नवि ताकि सके, वली चा
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ड चुगल मनथी चमके || बल बि कदा केहनो न लगे, जिनराज सदा तु ज्योति जगे ॥ १८ ॥ उग ठाकुर सवि थर हर कंप, पाखंमी पण को नवि फर के || लूंटादिक सहु नामी जाए, मारग तुऊ जपतां जय थाए ॥ १९ ॥ जड मूरख जे मति होन बनी, अज्ञान तिमिर तसु नाय टली || तुज समरणथी माह्या थाये, पंमित पद पामी पूजाये ॥ २० ॥ ख स खांश खयन पीडा नासे, दुर्बल मुख दीनपणुं त्रासे ॥ गड मुंड कुष्ठ जिके सबलां, तुज कापें रोग समे सघला ॥ २१ ॥ गहिला गूगा बहिरा य जिके, तु ध्यानें गतडुख याय तिके ॥ तनु कांति कला सुविशेष वधे, तुज समरणां नवनिधि सधे ॥ २२ ॥ करि केसरी हिरण बंध सया, जल जलण जलोद रष्ट नया ॥ रांगण पमुहा सबि जाय टली, तुज ना में पामे रंग रली ॥ २३ ॥ झी ग्रह श्रीपार्श्व नमो, नमिक जपंतां ष्ट दमो में चिंतामणि मंत्र जिके ध्याये, ति घर दिन दिन दोलत थाये ॥ २४ ॥ त्रि करण शुद्धे जे राधे, तस जश कीर्ति जगमां वा धे ॥ वली कामित काम सर्वे साधे, समहित चिंता मणि तुम लाधे ॥ २५ ॥ मद मन्वर मनथी दूर त जे, जगवंत जली परें जेह नजे ॥ तसघर कमला कत्रो ल करे, वली राज्य रमणी बहु लील वरे ॥ २६ ॥ जय वारक तारक तुं त्राता, सकन मन गति मतिनो दाता ॥ मात तात सहोदर तं स्वामी, शिवदायक
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- (२३ए) नायक हितकामी ॥ २७ ॥ करुणाकर ठाकुर तुं म हारो, निशिवासर नाम जपु ताहारो ॥ सेवकां पर म कृपा करजो, वालेसर वंबित फल देजो ॥ २ ॥ जिनराज सदा तुं जयकारी, तुज मूर्ति अति मोहन गारी ॥ गुर्जर जनपदमाहे राजे, त्रिनुवन ठकुराई तुझ बाजे ॥ २ए श्म नाव नले जिनवर गायो, वामासुत देखी बहु सुख पायो ॥ रवि मुनि शशि संवबर रंगें, जयदेवसूरमां सुख संगें ॥ ३० ॥ जय शंखपुरानिध पार्श्व प्रनो, सकलार्थ समीहित देहि विनो ॥ बुध हर्षरुचि विजयाय मुदा, तप लब्धि रुचि सुख दाय सदा ॥ ३१ ॥ कलश ॥ श्वं स्तुतः सकलकामितसिदिदाता, यदाधिराजनतशंखपुराधि राजः ॥ स्वस्ति श्रीहर्षरुचिपंकजसुप्रसादात्, शिष्येण लब्धरुचिनेति मुदा प्रसन्नः ॥ ३२ ॥ इति पाई ॥
॥अभ मेघ कुमारनी ससाय प्रारंजः ॥ ॥ धारणी मनावे रे मेघकुमारने रे, तुं मुफ ए कज पुत्त ॥ तुऊ विण सुनां रे मंदिर मालियां रे, राखो राखो घर तणां सूत ॥ धारणी॥ १ ॥ तुमने परणावू रे आठ कुमारिका रे, सुंदर अति सुकुमा ल ॥ मलपति चाले रे वन जेम हाथणी रे, नयण वयण सुविशाल ॥धारणी० ॥ ॥ मुज मन आशा रे पुत्र हती घणी रे, रमाडीश वढूनां रे बाल ॥ देव अटारो रे देखी नवि शक्यो रे, उपायो एह जंजाल ॥ धारणी ॥३॥ धण कण कंचन रेशमि
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(२४०) घणी अडे रे, जोगवो नोग संसार ॥ बती इति विलसो रे जाया घर आपणे रे, पलें लेजो संयम जार ॥ धारणी ॥ ॥ मेघकुमार रे माता प्रत्ये ब्रवी रे, दीक्षा लीधी वीरजीनी पान ॥ प्रीतिवि मल रे इणि परें उच्चरे रे, पोहोती महारा मनडानी आश ॥ धारणी० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्री महावीर स्वामी स्तवनं ॥ ॥ प्रनुजी वीरजिणंदने वंदियें, चोव शमा जिन राय हो ॥ त्रिशलाना जारः ॥प्रनुजीने तामें तं नव निधि संपजे, जवख सवि मिटि जाय हो ॥ त्रिश लाना जाया ॥ १ ॥ ए अांकणी ॥ प्रनुजी कंचन वान कर सातनुं, जग तातनं. एटलुं मान हो ॥ त्रि प्रनुजी मृगपति संडन गाजतो, जांजतो मदगज मा न हो ॥ त्रि० ॥ २ ॥ प्रनुजी सिदारथ जगवंत नो, सिदारथ कुल चंद हो । त्रि० ॥ प्रनुजी चक्तवत्सल जव कुःखहरु, सुरतरु सम सुखकंद हो । त्रि० ॥ ॥३॥प्रचुजी गंधार बंदर गुणनिलो, जगतिलो जिहां जगदीस हो ॥ त्रि० ॥ प्रनुजीनु दर्शण देखिने चित्त तस्युं, सयुं मुफ वंबित ईश हो ॥ त्रि० ॥४॥प्रनुजी शिवनगरीनो राजीयो,जगतारण जिन देव हो॥त्रि०॥ प्रनुजी रंगविजयने आपजो, नवोनव तुम पाये सेव हो ॥ त्रि० ॥ ५ ॥ इति श्रीवीरजिनस्तवनं संपूर्णम् ॥
॥ अथ नेमनाथ स्तवनं ॥ ॥ नेम जिणंद जुहारीयें, नज्ज्वल गढ गिरनारो
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( २४१ )
जी ॥ बलवंत जिन बावीशमो, नवें नेट्यो भगवंतो जी ॥ नेम० ॥ १ ॥ श्यामलवर्ण सोहामणो, मुख सोहे पूनमचंद जी ॥ यादववंशी जग जयो, जेहने सेवे सुर नर दो जी ॥ नेम० ॥ २ ॥ पशु देखी पाठा वव्या, दिल दया बहु आणी जी ॥ जाल वि षय ऊंपी करें।, तजी राजिमती राणी जी ॥ नेम ० ॥ ॥ ३ ॥ समु विजयसुत सुखकरु, माता शिवादेवी मलारो जी ॥ दान संवत्सरी देई करी, पोहोता गढ गिरनारो जी ॥ नेम० ॥ ४ ॥ चोपन दिन चोखे चितें, प्रभु मौनपरों तप कीधो जी ॥ कर्म खपावी केवल नदी, जगमां बहु जश लीधो जी ॥ नेम० ॥ ॥ ५ ॥ समवसरण सुरपति रच्यो, प्राणी मन आणंदो जी ॥ त्रिगडो तेजें जगमगे, तिहां नाटक नव नव बंदो जी ॥ नेम॥ ६ ॥ योजन भूमि जगतगुरू, नचरे मृत वाणी जी ॥ नवोदधिशोषण जयहरु, जेहना गुण गावे इंझणी जी ॥ नेम ॥ ७ ॥ इम महीमंमल विचरता, अनेक जीव उद्धारया जी ॥ पोहोता बहु प रिवारj, मुक्ति मोहोल पधारया जी ॥ नेम० ॥ ८ ॥ विघ्नहरण नित वंदियें, राणी राजिमती जरतारो जी ॥ डुःख दारि दूरें हरे, कतारे नवपारो जी ॥ नेम० ॥ ए ॥ संवत सत्तर अग्यारोत्तरें, आशो बीज
जुखाली जी ॥ कहे जिनदास यात्रा करी, नेम हसी दीयो ताली जी ॥ नेम ॥१०॥ इति श्रीनेमिनाथ० ॥
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( २४२ )
॥ अथ केसरियाजीनुं स्तवन ॥
॥ प्रथम तीर्थकर कूपन जिणंदा, नाजिराया मरुदे वीको नंदा ॥ सो श्यामला गुणवंता ॥ लाख चोराशी पूरवनुं रे याय, धनुष पांचो सोवनमय काय ॥ सो० ॥ १ ॥ जुगला रे धर्म निवारण स्वामी, नगर धूजेवे वसे घननामी ॥ सो० ॥ रखतें रे वेठा केसरी योजी सोहे, दरिसण देखीने मनडुं मोहे | सो० ॥ १ ॥ मुखडुं रे सोहे पूनमकेशे चंदा, सुर नर मुनिवर सेवे वृंदा ॥ सो० ॥ मुकुट कुंमल शिर बत्र विराजे, ठकुराई केसरीयाने बाजे ॥ सो० ॥ ३ ॥ देश देशना संघ यावे, वस्तु मूलक नेटणं लावे ॥ सो० ॥ पूजा जणावे ने अंगी रचावे. केसरकेरा कींच मचा वे ॥ सो० ॥ ४ ॥ अगरबत्तीना धूप करावे, फूलडां केरा मुकुट जरावे ॥ सो० ॥ नाटक नाचे ने जावना जावे, हरखें केसरीयाना गुण गावे ॥ स्त्रो० ॥ ५ ॥ जिहाज तारे वालो वेडीयो कापे, मुह माग्यां वंबित फल आपे ॥ सो० ॥ रोग सोग जय दूर निवारे, नव सायरथ पार उतारे ॥ सो० ॥ ६ ॥ जे कोई गाशे ने जे सांजलशे, तेहना मनना मनोरथ फल शे ॥ सो० ॥ कपूर कहे तमें प्रत्यक्ष देवा, नवोजव मागुं हूं तुम पय सेवा ॥ सो० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ नीडनंजनपार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥ शामाटे साहिब सामुं न जूवो, हुं तो रह्यो बुं तु म गुण हेरी ॥ प्रभुजी रे ॥ बीजा रे सायें बोल न
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(२४३)
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बोलुं, मुने न गमे वात खनेरी ॥ प्रभुजी रे || शा० ॥ ॥ १ ॥ जोरे पोतानो करीने रे जाणो, तो मुज स मकित वासो ॥ प्रभुजी रे | चलो नूंमो पण नक्त बुं ताहारो, एवं जाणीने देउ दिलासो ॥ प्रभुजी रे ॥ शा० ॥ २ ॥ बेल बबीलो में देव बोगालो, अलवे सर अंतरजामी ॥ प्रभुजी रे | हृदयनो वासी प्रभु मुऊने मलियो, तेहने नित्य नमुं गिर नामी ॥ प्रभु जीरे || शा० ॥ ३॥ हजूर सेवानी रे होंश हैयामां, डुंतो राखुं हुं गुणरागी ॥ प्रभुजी रे ॥ नीडनंजन प्रभु नकिने जोरें, जालम वासना जागी ॥ प्रभुजी रे ॥ शा० ॥ ४ ॥ श्राप स्वरूप देखाडो ने श्राबो, पडदो खो लीने पाठो || प्रभुजी रे || प्रेमवदय पद पगतीये चढ तां, तिहां न रह्यो लाऩनो लाबो ॥ प्रभुजी रे ॥ शा ० ॥ ५ ॥ ॥ अथ नेमप्रनुनुं चोमासुं ॥
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॥ माहरा सम जाने मां रे वाला, लालच लागी तु मशुं लाला, लालच लागी नेम लटकाला ॥ लालच लागी केशरीया वाला || मा० ॥ श्रावण वरसे रे स्वामी, मेली म जाशो अंतरजामी ॥ मा० ॥ १ ॥ माथे मेदुलारे वरसे, एसी ऋतु प्रीतम किम पर व रसे ॥ नावडो रे जडानड गाजे, नदीयें नीर खडा खड वाजे || मा० ॥ २ ॥ धरती सोहियें रे नीला व रणी, साहिबा संजम ब्रेजो परणी ॥ श्रासोयें श्राश घरी अमने, जीवन जावुं न घटे तुमने ॥ मा० ॥ ॥ ३ ॥ यानूषण पेरीने परवरजो, सलुणा साहिबा रंग
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( २४४ )
नर रमजो | कार्तिकें कंतजी कां मूको बो, चतुर थ ईने गुं नृको हो ॥ मा० ॥ ४ ॥ जेठजीने शोलों रे रा णी, तुमची एक नहि निर्वाणी ॥ रूपचंद गाएबे रे चोमासुं, नेमजीगुं मलवानुं दिल ने साधुं ॥ मा० ॥ ॥ ५ ॥ इति श्री चतुर्मास संपूर्ण ॥
॥ अथ दान, शील, त्याने जावनुं प्रजातियुं ॥
॥ रे जीव जैन धर्म कीजीयें, धर्मना चार प्रकार ॥ दान शीयल तप नावना, जगमां एटलुं सार ॥ रे जी० ॥ १ ॥ ॥ वरस दिवसने पारणे, प्रादीसर सु खकार || शेलडी रस वोरानियो, श्रीश्रेयांस कुमार || रे जी० ॥ २ ॥ चंपापोल उघाडवा, चारिणीयें कायां नीर ॥ सतीय सुनकर जरा थयो, गियजें मु र नर धीर ॥ रे जी० ॥ ३ ॥ तृप करि काया शोष वी, सरस नीरस आहार || वीरजिणंद वखालियो, धन धन्नो अणगार ॥ रे जी० ॥४॥ नित्य नावना जावतां, धरतां निर्मल यान ॥ जरत यारीसा वनमां, पाम्या केवल ज्ञान | रे जी० ॥ ५ ॥ जैन धर्म सुरतरु समो, जेहनी शीतल छाया ॥ समय सुं दर कहे सेवतां, वंबित फल पाया ॥ रे जी० ॥ ६ ॥ ॥ अथ श्री महावीर जिन गीत |
॥ माहारी वीर प्रभुजीने वंदना रे, एनी वंदना ते पापनिकंदना रे ॥ मा० ॥ हांरे हुंतो कलश नरूं ते गंगानीरना रे, हुं तो नवण करूं महावीरनां रे ॥ ॥ मा० ॥ १ ॥ डुं तो प्याला नरुं केसर घोलना रे,
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(२४५) माहे मृगमद नेटुंबदु मूलना रे ॥मा०॥॥ हुँ तो तिलक करुं नवे अंगनां रे. दुतो फूल चढावं पंचरंग नां रे ॥ मा ॥ ३ ॥ हुँ तो पूजा करीने था पाव ना रे, दुं तो जावू ते आगल नावना रे ॥मा०॥॥ ए वा नाव नला मुंदरा शेहेरना रे, तिहां वीर बिराजे ज य जय कारना रे ॥मा०॥ तिहां संघ सदा आनंद नारे, तिहां करे कल्याण नित्य वंदना रे ॥६॥ इति ॥
॥अथ नेमजिनस्तवनं ॥ ॥ घरे आवोने नेम वरणागिया रे, घरे आवोने श्याम वरणागिया रे ॥ ए आंकणी ॥ गुं कहीयें ते मोहोटा.नूपने रे, ढुं तो मोही लुं तमारा रूपने रे ॥ ॥ १० ॥ १ ॥ वालाना मुखनां ते मीठां वेण ने रे, वालानी अांखडलीमा चेन ले रे ॥ १० ॥२॥ वा लो चित्ततणो ते चोर ने रे, मारा कानजडानी कोर बे रे ॥ १० ॥३॥ वाहाले पशु नपर करुणा करी रे, वाहाने जीवदया मनमां धरी रे ॥ १०॥४॥ वाहा ला तोरणथी पाना वव्या रे, वाहाला गढगिरनारे जर चढया रे ॥ ५० ॥ ५॥ वाहाला गढ निरनारना घाटमां रे, मुनें नेमजी मल्या ले वाटमां रे ॥ १० ॥ ॥ ६ ॥ एहवा रूपचंद रंगें मव्या रे, माहारा मनना मनोरथ सवि फव्या रे ॥ १० ॥ ७ ॥ इति संपूर्ण ।
॥ अथ घृतकनोल पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥ हो जिनराया जिनेसर, शिव वधूना तमें जो गी॥ पास जिनेसर अति अनवेसर, संसार सुखना
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(२४६) त्यागी॥दो जिनराया जिनेसर, शिव वधूना'तमें नो गी। एयांकणी॥१॥ वंडित पूरण चिंता चूरण.मन शु 5 समरे लोगी ॥ राग इष टाली कर्मने गाली, शिव पंथें थया योगी॥ हो ॥२॥ नविजन नावें यात्रा
आवे,प्रणमे लती पाय लागी॥ नवि पर मेहेरें करणा लेहेरें, जाग्य दशा जस जागी ॥ हो ॥३॥ सुथरी गामें वसे गुन गमें तस चरणांघुज रागी । मेघ लान कहे प्रनु घृत कनोलजीने, नामें नवनिधि जागी॥ हो० ॥ ४ ॥ इति ॥
॥अथ प्रनानि स्तवनं ॥ ॥ राग रामकली ॥ अजब ज्योति मेरे. जिनकी, तुम देखो माई ॥अजव ज्योति ॥ ए टेक ॥ कोडी सूरज जब एकता कीजें, होड न.आवे मेरे जिनकी ।। तुम दे० ॥ १ ॥ जगमग ज्योति फलामल फलके, काया नील वरणकी। तुम दे॥॥ हीर विजय प्रनु पास शंखेश्वर, आशा पूरो मेरे मनकी॥तुम दे॥३॥
॥अथ प्रनाति स्तवनं ॥ ॥ राग वेलावल ॥ जब तुम नाथ निरंजना, तब में नक्त तुमारो ॥ कल्पद जब तुम नए, युगला धर्म हमारो ॥ जब तु० ॥ ॥ जब तुम सायर साहि वा, तब ढुं सरिता समाना ॥ तुं दाता हूं याचका, बोले बिरुदिवाना॥जब तु० ॥ २ ॥ तुं तीरथ महिमा वडो, तब हुँ यात्रा हो आयो ॥ तुं हीरो मेरे कर चड्यो, तो हूं जवेरी कहायो । जब तु० ॥ ३ ॥ जब
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( २४७ )
तुं तखत त्रिभुवन तणो, हुं टंकशाली रूपैया ॥ दीया बाप रूपचंद शिरें, गया शिक्का लहिया || जब ० ॥ ४ ॥ ॥ अथ प्रजाति स्तवनं ॥
॥ राग वेलावल ॥ हम लोक निरंजन लालके, न रनके नांही ॥ देश वसुं मेरे नाथके, नक्ति नगरी मांही ॥ हम० ॥ १ ॥ बनज करूं प्रनु नामको, जि तनो मुख खावे ॥ सबही नाम सोढ़ा करूं, पाठो फेर न यावे ॥ हम० ॥ २ ॥ निशिदिन नाम सोदा करे, साचो सो व्यापारी ॥ हृदय कमल मंजूपमें, राखे गुण धारी ॥ हम० ॥ ३ ॥ रूपचंद कहे राम कूं, बनज दूजो न जावे ॥ नाथ निरंजन नामके, ह रखें गुण गावे ॥ हम० ॥ ४ ॥ इति
॥ अथ वीरजीन चनद सुपननुं स्तवनं ॥ ॥ राय रे सीधारथ घर पटराणी, नामें त्रिशला सु लक्षणी ए ॥ राज जुवनमांहे पलंगें पोढंतां, चन्द सु पन राणीयें लह्या ए ॥ १ ॥ पहेले रे सुपनमें गयवर दीवो, बीजे वृषन सोहामणो ए ॥ त्राजे सिंह सुलह यो दीठो, चोथे लखमी देवता ए ॥ २ ॥ पांचमे पां च वरानी माला, बहे चंद अमिय करे ए ॥ सातमे सूरज ठमे ध्वजा, नवमे कलश अमिय नयो ए ॥ ३ ॥ पद्मसरोवर दशमे दीठो, कीर समु दीठो अग्यार
॥ देव विमान ते बारमे दीठं, रणजण घंटा वाज तां ए ॥ ४ ॥ रतननो राशि ते तेरमे दीगे, अग्निशिखा दीवी चनदमे ए ॥ चनद सुपन लइ राणीजी जाग्यां,
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(२४) राय समोवड पोहोतला ए॥५॥ सुणो रे स्वामी मेंतो सुहणला लाधां, पाबली रात रतीयामणी ए॥ रायरे सिदारथ पंमित तेड्या, कहो रे पंमित फल एहनुं ए॥ ६ ॥ अम कुल मंमण तुम कुलदीवो, धन रेम हावीर स्वामी अवतस्या ए॥जे नर गावे ते सुख पावे, आनंद रंग वधामणां ए ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ शीतलनाथजीनुं स्तवन ॥ ॥ माहारे शीतल जि. युं लागी पूरए प्रीत जो. सा हिबजीनी सेवा नपख नांजशे रे जो ॥ हारे जिन प्रतिमा जिनवर सरखी दिलमा जोय जो, नक्ति कर तां प्रनुजी खूब निवाजशे रे जो ॥१॥ जेण जोतां लाधो रत्नचिंतामणि हाथ जो, तेहने रे मूकीने कुण ग्रहे काचनें रे जो ॥ जेणे मनसुं कोधां जगनां प चरकाण जो, ते नर बोले सो बातें पण साचने रे जो ॥ २ ॥ जे पाम्या परिगल प्रीतें अमृत पान जो, खारूं जल ते पीवा कहो कुण मन करे रे जो ॥ जे घरमां वेठां पाम्यां लखमी जोर जो, धनने काजें दे श देशांतर कोण फरे रे जो ॥ ३ ॥ जेणें सेव्या पूर ण चित्तें अरिहंत देव जो, तेहना रे मनमांहे केम बीजा गमे रे जो ॥ ए तो दोष रहित निकलंकी गुण नंमार जो, मनई रे अमारुं प्रनु साथें रमे रे जो ॥ ४ ॥ मुने मलिया पूरण नाग्ये शीतल नाथ जो, देखीने ढूं हरख्यो तन मन रंजियो रे जो॥ एतो दो लतदायी प्रनुजीनो देदार जो, में तो जोतां प्रचने क
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(२४ए) मैदल गंजीयो रे जो॥५॥ श्रीविधिपदें देहरे मुंदरा नयर मकार जो, प्रांगी रे नवरंगी शिखर सोहा मणी रे जो॥ ए तो तेजें दीपे जग मग ज्योति विशा ल जो, सोहें रे मनमोहे मूर्ति रलियामणी रे जो ॥ ६ ॥ श्रीसत्तरएकाशीएं रूडो नाश्व मास जो, स्तवन रच्यु ए प्रेमें पर्व पजूसणे रे जो ॥ श्रीसहज सुंदर शिष्य बोले एणी परें वाणी जो, नावें रे नित्य लान कहे हरपे घणे रे जो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ सुमतिजिन स्तवनं ॥ ॥ वाला मुमति जिणेसर सेवीएं रे, वाला सुम ति तणा.टो दातार रे ॥ वाजां रे वाजे धर्मनां रे ॥वा ला मेघराया सुत सुंदरू रे, वाला मंगला मात म व्हार रे ॥ वाजां रे वाजे धर्मनां रे ॥ ए आंकणी॥ ॥ १ ॥ वाला मंगलवेल वधारवा रे, वाला नमह्यो ने ए जलधार रे ॥ वा ॥ वाला रूप अनोपम जि नत' रे, वाला मनमोहन सुखकार रे ॥ वा० ॥ २ ॥ वाला सोवन वान शरीरनो रे, वाला श्वा कुवंश वधार रे॥ वा० ॥ वाला देई प्रनुदान संवबरी रे, वाला सीधो ने संजमनार रे ॥ वा० ॥ ३ ॥ वाला आठ करम अरि जीतिने रे, वाला पोहोताचे मुक्तिमकार रे ॥ वा० ॥ वाला पूरव लाख चालीश नुं रे, वाला जीवित जेहन सार रे ॥ वा० ॥ ४ ॥ वाला माणक मुनिमन रंगगुं रे, वाला चाहे डे सुमति देदार रे ॥ वा ॥ वाला एहवा प्रनु गुण गायवा
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(२५०) रे, वाला उपजे ही अपार रे ॥वा ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्रीवीर जिन स्तवनं ॥ ॥ नारे प्रनु नही मानु ॥ नही मानुं रे अवरनी आण॥नारे प्रण ॥ महारे ताहारं वचन प्रमाण ।। ना रे प्रनु ॥ ए आंकणी ॥ हरिहरादिक देव अनेरा, ते दीठा जगमाय रे ॥नामिनी नरम नृकुटीयें नूल्या, ते मुजने न सुहाय ॥ नारे ॥ १ ॥ केश्क रागीने केश्क हेपी, केशक लोनी देव रे ॥ केशक मदनाया मां नरिया, केम करीएं तसु सेव ॥ नारे ॥ २ ॥ मुश पण तेमां नवि दीसे प्रनु, तुजमांहेली तिल मा त रे ॥ ते देखी दिलडं नवि रीके, शी करवी तेहनी वात ॥ नारे ॥३॥तुं गलि तुं मति तुं मुफ प्रीतम, जीव जीवन आधार रे ॥ रात दिवस स्वपनांतर तुंही, तुं माहारे निरधार ॥ नारे ॥ ४ ॥ अवगुण सद् नवेखीने प्रनु, सेवक करीने निहाल रे ॥ जग बंधव ए विनती मोरी, माहारां सवि कुःख दूरें टाल ॥ नारे ॥ ५ ॥ चोवीशमा प्रनु त्रिनुवन स्वामी, सि दारथना नंद रे ॥ त्रिशलाजीना न्हानडीया प्रनु, तुम दी। अति आणंद ॥ नारे ॥ ६ ॥ सुमति विजय कवि रायनो रे, रामविजय कर जोड रे ॥ उपगारी अरिहंतजी, माहारा नव नवना बंध बोड ॥नारे॥७॥
॥ अथ षन देवजीनो वारमासो ॥ ॥प्रथम जिणंद प्रणमुं पाया, जननी मरुदेवी जाया ॥ षनजी धूलेवा नगर राया, जगत गुरु
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(२५१) जिनवरने नजीएं॥ विषय कषाय कपट तजीएं। ज गत ॥ १॥ ए बांकणी ॥ कार्तिकें केसरीयो मलशे, जनम जनमनां उःख टलशे, माहारा मन वंबित फलशे॥जगण॥॥ मागशिरे मन मोडुं माहारूं,के तुरत दरिसण थयुं ताहालं, ताहरी सूरत पर वारु वारु॥ज ग ॥ ३ ॥ पोपें प्रीतडली पालो, त्रण नुवनमाहे अजुआलो, तुमे बो दीन तणा दयालो ॥ जगण॥३॥ माहा शुदि पंचमी दिन आवे, मोरली सदुको बंधावे, गुणी जन राग वसंत गावे ॥ जग ॥५॥ फागुणे फा ग खेलूं तुमयुं, केसर कस्तूरी रमगुं, विलेपन करी सदा नमसुं॥ जग ॥ ६ ॥ चैत्रे चित्त लागुं चर णे, फूल गुलाल मुगट जरणे, सेवा तारण ने तरणे ॥ जग ॥ ७ ॥ वैशाखें फूली वनराई, त्रीजनी अारखा त्रीज आई, केशरीयागुं साची सगाई ॥ जग ॥ ७ ॥ जेजें जिन पासें आवं, के शीतल जल लई न्हवरा वू, पंखो करतां पुण्य पावें ॥ जग ॥ ॥ आपाढें मे घ घणा गाजे, ढोल मृदंग तिहां वाजे, एणे दरवारें सदा बाजे ॥ जग ॥१०॥ श्रावण वरसे अति सारो, बपैया मोर दाउर प्यारो, गुणीयल गाये मली सारो ॥ जग ॥ ११ ॥ श्रावणे सरव डियां वरसे, बपेया मोर दाउर पीसे, गुणिजन राग मन्हार गाशे ॥ जग ॥१॥ नाश्वे नविक करो जगति, परव पजू सण करो जुगति,पूजा जणावो नलि युगति ॥ जग ॥ ॥१३॥ आशोयें पूरीजें आशा, घर घर दीपक बदु था
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( २५२ )
शा, हरपें गाये रूपजदासा ॥ जग० ॥ १४ ॥ बारे मास करूं सेवा, कपनदेव मार्ग मेवा, देजो दीनत गा देवा || जग० ॥ १५ ॥ इति बारमासो संपूर्ण ॥ ॥ अथ सिद्धाचल स्तवनं ॥
॥ जात्रा नवाणुं करीएं शेत्रुंजा गिरि, जात्रा न वाणुं करीएं ॥ सहस कोडि जव पातक लूटे, शेत्रुंजा सामो मग नरीएं ॥ शे० ॥ जा० ॥ पूरव नवाणुं वार ॥ शे० ॥ जा० ॥ कूपन जिणंद समोसरीएं, पुंमगिरि ॥ जा० ॥ १ ॥ ए प्रकरणी । पुंमरीक पद जपी मन हर खे, अध्यवसाय शुन धरीयें ॥ शे० ॥ जा० ॥ सात बह दोय हम तपस्या, करी चटीए गिरिवरीयें || शे० ॥ जा० ॥ २ ॥ पडिक्कमणां दोय विधिशुं करीएं, पाप पफल परिहरीएं || शे० ॥ जा ० ॥ भूमि संथारो ना री तो संग, दूरथकी परिहरीएं || शे० ॥ जा० ॥ ३ ॥ एकल आहारी ने सचित्त परिहारी, गुरु सायें पद चरीएं || शे० ॥ जा० ॥ कलिकायें ए तीरथ मो हो, प्रवहण जेम जर दरीए || शे० ॥ जा० ॥ ४ ॥ उत्तम ए गिरिवर सेवंतां, पद्म कहे जव तरीएं ॥ शे० ॥ जा० ॥ ५ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ मालानुं गीत प्रारंभः ॥
॥ संघ पूछे फूल वाडीयें, माला कवण सो मा गनां फूल ॥ कवण सुगंधा जाणीएं, माला कवण सो फूलनुं मूल ॥ तुंबे माला कोण राजनी ॥१॥ चंपक केतकी केवडो, मालण सेवंत्री ने जासूल ॥ मा
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(२५३) लती मलकंतो मोघरो, मालण जाई अशोक अ मूल ॥ तुं मालम् ॥ ॥ कवणे रे चंपो वावीयो, मालए कवणे गुंथ्यां एनां फूल ॥ कवण मला रें लइ मूलव्यां, मालण केणे चढाव्यां अमूल ॥ सा ची मालण जिनराजनी॥ ए आंकणी ॥३॥ मा लिये चंपो वावीयो, मालण चतुरें गुंथ्यां एनां फूल ॥ नविक मलारें लश् मूलव्यां, मालण प्रनुने चडाव्यां अमूल ॥ सा ॥४॥ कहे रे मालण सुगो नविजनो, एणी वाडीए ने बदु फूल ॥ सरस सुगंधां जाणीएं, तेहमां चंपक कली ले अमूल ॥ सा ॥ ५ ॥ शेवं जा गिरिवर नेटवा, मालण श्राव्यो बे कबनो संघ॥ देशावडी श्रावक वसे, तेहमां संघमुखी मानसिंघ ॥ सा० ॥ ६ ॥ नरनव दोहिलो पामीने, मालण पूज वा आदि जिणंद ॥ सफल जनम करी सुबहो, माल ए लेशे परमानंद ॥ सा ॥ ७ ॥ सत्तरनेद सुविधे करी, मालण साहामिवत्सल सोनाय ॥ सौजाग चं सुगुरु लही, मालण स्वरूपचं गुण गाय ॥सा॥७॥
॥ अथमहावीर जिनस्तवनं ॥ ॥ वीर कुमरनी वातडी,केने कहियें। हारे केने क हियें रे केने कहियें ॥नवि मंदिर बेसी रहियें, हारे सु कुमार शरीर ॥ वी० ॥१॥ए अांकणी ॥ बालपणा थीलामको नृप जाव्यो, हारे मत्ती चोशन इंडें मल्हा व्यो । इंशाणी मली दुलराव्यो, हारे गयो रमवा काज ॥ वी० ॥॥ बोरु नबग बलां लोकनां केम र
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(२५४) हियें, हारे एनी मावर्ड नि शुं कहियें ॥ कहियें तो अ देवां थश्य, हारे नाशि अाव्यां बाल ॥ वी० ॥३॥
आमलकी क्रीडा वशे वीं गयो, हारे मोटो नोरिंग रो पें नराणो ॥ वीरें हाथे बाजीने ताण्यो, हारे काढी नाख्यो दूर ॥ वी० ॥४॥ रूप पिशाच- देवता करी चलियो, हारे मुफ पुत्रने ले उनलियो । वीर मु ष्टि प्रहारें वलियो, हार पांजलीयें एम ॥ वी० ॥ ५ ॥ त्रिशला माता मोजमां एम कहेती, हारे सखीयोने उलंना देती ॥ दणाण प्रनु नाभज ले ती, हारे तेडावे बाल ॥ वी० ॥ ६ ॥ वाट जोवंतां वीरजी घरे आव्या, हारे माता त्रिशलाएं नवरा व्या ॥ खोले वेसारि दुलराव्या, हारे आलिंगन दे त ॥ वी० ॥ ७॥ यौवन दर प्रनु पामतां परणावे, हारे पनी संजमगुं दील लावे ॥ उपसर्गनी फोज ह ठावे, हारे लीधुं केवल नाण ॥ वी ॥ कर्म सूडन तप नांखियुं जिनराजें, हारे त्रण लोकनीत कुराई बाजे ॥ फूल पूजा कही शिव काजें, हारे न विने नपगार ॥ वी० ॥ ॥ शाता अशाता वेदनीद य कीg, हारे या अक्ष्य पद लीधुं ॥ शुनवीरनुं कारज सीधुं, हारे नांगे सादि अनंत ॥ वी० १०॥
॥अथ श्रीपर्युषण स्तवन ॥ ॥ अांखडीयें अमें आज शजो दीगो रे ॥ ए दे शी॥ सुजो साजन संत, पजूसण आव्यां रे । तुमें पुण्य करो पुण्यवंत, नविक मन जाव्यां रे॥वीर जिरो
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(२५५) सर अतिथलवेशर ॥ वाला मारा। परमेश्वर एम बोले रे ॥ पर्वमांहे पजूसण मोहोटां, अवर न आवे तोलें रे ॥पातुमें नि॥१॥चौपगमांहे जेम केशरी मो होटो॥वा॥ खगमांगरुड ते कहियें रे।नदीमांहे जेम गंगा मोहोटी,नगमां मेरु लहिये रे ॥पनातुन ॥२॥ नृपतिमांजरतेसर नांख्यो॥वा०॥ देवमांहे सुरें रे॥ तीरथमां शेठेजो दाख्यो, हगणमा जेम चं रे॥ प जू॥तु ॥न॥३॥ दसरा दीवालीने होली॥वा॥ अखात्रीज दीवासो रे॥ बलेव प्रमुख बदुलाले बीजा, पण ए मुक्तिनो वासो रे ॥पजू॥तु॥न॥३॥ ते मा टेअमार पलावो॥वा ॥अहा महोचव कीजें रे॥ अहम तपं अधिकांश्यें करीने, नरनव लाहो लीजें रे ॥पजू॥तु॥न०५॥ ढोल ददामा नेरी नफेरी ॥वा॥ कल्पसूत्रने जगावो रे ॥ फांऊरना ऊमकार करीने, गो रीनी टोली.मत्ती आवो रे ॥पजू० ॥ तु॥नम् ॥६॥ सोनारूपाने फूलडे वधावो ॥ वा० ॥ कल्पसूत्रने पूजो रे ॥ नव वखाण विधियें सांजलतां, पापमेवासी 5जो रे ॥पजू॥७॥ तु० ॥ ज० ॥ ए अहाश्नो मेहोत्सव करतां ॥ वा० ॥ बहु जिन जगनदृस्या रे ॥ विबुध विनीत वर सेवक एहथी,नवनिधि दि सिदि वस्या रे ॥ पजू ॥ तु ॥न ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ घृतकनोल पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥ घृतकनोल प्रनु पास जिणंद, अश्वसेनरायाकु ल उपना दिणंद ॥ मोरा पासजी हो लाल, प्रमुख
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( २५६) देखी मारो मन हीसे राज ॥ ए आंकणी ॥ माता वामादेवि जायो पुत्र रतन, जेणें नाग नागणीना कीधांडे जतन ॥ मोरा० ॥ प्रनु० ॥१॥ कमठनो मद गाल्यो वाले कीधारुडां काज, कलिकालमांहे जेनो परतो वे आज ॥ मो० ॥ मारग नूलाने वालो आपे ने साद, वली यापे संपदाने टाले विषवाद ॥ मो० ॥ प्रनु० ॥ २ ॥ वेडीयो कापेने वालो तारे जिहा ज, समस्यां आपे वालो दंडित काज ॥मो० ॥ देशी विदेशी आवे संघ अनेक, सुथरीमा वास कीधो राखी वाले टेक ॥ मो० ॥ प्रनु० ॥ ३ ॥ मोणसी अंचल जीनुं जात्रानुं मन. संघ लाग्ने आव्या सुथरी प्रसन्न ॥ मो० ॥ संवत अढार बेधासीये जाण, फागुण वदि चोथे गायो गुणखाण । मो० ॥ प्रनु० ॥ ४ ॥ नेट्या श्री घृत कनोल जिनराज, पूजा सत्तर नेदी करे शुन काज ॥ मो० ॥ मेघ शेखर गुरुना सुपसाय, शिष्य गुलाब शेखर गुण गाय॥ मो॥प्रनु०॥इति॥
॥ अथ षनजिन स्तवनं ॥ ॥ आज नजम डे रे अधिको, जोवा दरिसणा दीसरको ॥ ते मुने लागे रे मीतुं, प्रनुजीनुं ज्यारें द रिसण दी ॥ आज ॥ केशर चंदन रे लीजें, घसी करी जिनजीनी पूजा कीजें ॥आज ॥१॥ पूजानां फल रे रूडां, तेहथी आठ कर्म खपे कूडां ॥ नावें नावना रे जावो, वली प्रनुना गुण रंगें गावो ॥ आज ॥२॥ बाजूनी आंगीनो रे लटको,
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(२५७) माहारा प्रनुजीना मुखनो मटको ॥ मटकें मोह्या रे दा, वदन कमल जाणे पूनम चंदा ॥ आज ॥३॥ मिडी मूरति रे तारी, ते घणुं मुझने लागे प्यारी॥ नानिराया नंदन रे नीको, माहारा प्रनुजीनो सबलो टीको ॥आज॥४॥ विवेक विजयनो रे शिष्य, हर्षे ढुं प्रणमुं निश दीस ॥ पूर्व पुण्ये रे पामी, नेट्यो बु मोरा अंतरजामी ॥आज० ॥ ॥ इति ॥
॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥ लय लागी रे लय लागी रे, गोडी पासजिणंदां लय लागी॥ आतम रूपीने अकल सरूपी,लोकालोक प्रकाशी रे ॥ गो० ॥१॥ चोशन इंश करे तोरी सेवा, इंशणी ललितति पाय लागी रे ॥गो॥॥ ज्ञानविम लसूरीशणी परें बोले,प्रनुयावागमण निवारी रे॥३॥
॥अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ तुं मेरेमनमें तुं मेरे दिलमें, नाम जपूंपल पल में हो ॥ प्रनुजी ॥ तुं० ॥ शांतिजिणेसर साहेब सा चो, शांतिकरण एक पलमें हो ॥ प्रनुजी॥ तुं० ॥१॥ निर्मल ज्योति वदन पर सोहे, निकस्यो ज्युं चंद बा दलमें हो ॥ प्रनुजी ॥तुं॥ मेरो तो मन प्रनु तुमसें तीनो, मीन वसत जिम जलमें हो ॥ प्रजुजी॥ तुं० ॥॥ नव नव जमतां में दरिसण पायो, बाशा प्ररो एक पलमें हो ॥ प्रचुजी ॥ तुं०॥ जिनरंग कहे प्रनु शांतिजिणेसर, देख्यो ज्युं देव सकलमें हो ॥ प्रनुजी ॥ तुं० ॥३॥ इति शांतिजिन स्तवनं ॥
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( २५८ )
॥ अथ अरिहंत स्तवनं ॥
॥ प्रभुजी रे प्रभुजी नाम जपुं मन माहरे, पण सेवकनी चित्त नहीं को ताहरे || नीरागी जिनराज निरागीगुं मले, तुमसेंती एक वार याये नवडख टले ॥ १ ॥ रूपरहित जिनराज कहो किहीं देखी एं, वि देखे दोय नेत्र सफल केम लेखिएं ॥ जेहने रे नेत्र हजार ते नर पर ताहरो, देखे नहीं देदार किस्यो बल माहरो ॥ २ ॥ पंचम ज्ञान प्रकाश शु.६ होय जेहने, अरिगंजन अरिहंत प्रगट बे तेहने ॥ तेहनो तो लव लेश नहीं को इस समे, एहवो को न उपाय जे जिन तुमची मजे ॥ ३ ॥ कुंगुरु कुदेव कुधर्म तणे वश हूं पड्यो, जग गुरु ताहरो धर्म महा रे कर नवि चड्यो | आपण. अहंकार तणे वश वा हियो, तेणे करी तुम दरिसण, उदय नवि यावियो ॥ ४ ॥ तरण तारण जिहाज समो जिनजी मल्यो, नागी मननी चांति सद्दु संशय टव्यो | क्रिया डक्कर कार न थाए याजने, सद्गति नहींएं ताम प्रसादें राजने ॥ ५ ॥ मची विनति एह तमें अवधारजो, कठिन ते याठे कर्मने दूरें वारजो ॥ वीनति वाचक नक्ति सागरनी जाणवी, तिम करो त्रिभुवन स्वामी, सेवा तारी पामवी ॥ ६ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ कूपनजिन स्तवनं ॥
॥ मोसें नेह घरी महाराज श्राज राजराज दर्श दीजीए, दर्श दीजीएं रे जव इख बीजीएं ॥ मो० ॥
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( २५५ )
ए टेक ॥ रे तुम ज्ञानी जगत तात जात तुम सरन री जीएं, शरन रीजीएं तो जव इख बीजीएं । मो० ॥ १ ॥ नरप नानिजीके नंद चाहत इंद चंद विंद, जयो जयो जिणंद नित्य बंद कीजीएं || मो० ॥ २ ॥ तुम धूलेवा नाथ मोद साथ अचल यादिब्रह्म, य ही हाथ प्रभु रतनको उद्धार कीजीएं ॥ मो० ॥ ३ ॥ ॥ अथ प्रजाति स्तवनं ॥
॥ जाग जाग रयण गई, जोर नयो प्यारे ॥ पंच कूं प्रपंच कर, वशकर यारे ॥ जाग जाग रयण गर, जोर नयो प्यारे ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ तृपानामें मी न मरे, जोगमें मत्तंगा ॥ श्रवणमें कुरंग मरे, नयन में पतंगा ॥ जा० ॥ २ ॥ वासनामें नमर मरे, नासा रस लेतां ॥ एक एक इंडीसंग, मरे जिन केता | जा० ॥ ३ ॥ पंचके पढ्यो तुं फंद, क्युं कर वश आवे || मार तुं मन वा नूत, ज्युं निरंजन पावे ॥ जा० ॥ ४ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ प्रजाति स्तवनं ॥
॥ तुं हि नाथ हमारो रे । जिनपति ॥ तूंहि नाथ हमा रो | योग देमंकर नविक सकलके, सेवक हैयामांदे धारो रे ॥ जि० ॥ तूं ॥ १ ॥ ए टेक ॥ जो गुन पाए नही सो मिलावत ॥ पाए गुनकूं सुधारो ॥ अननि राम कलिमल करो दूरें, अब मोहे पार उतारो रे ॥ जि० ॥ तूं ॥ २ ॥ त्रिभुवन नाथ सार करो मोरी, करुणा नजर निहालो || पास चिंतामण जानुचंदकी,
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( २६० )
एहि विनति अवधारो रे || जि० ॥ तूं हि० ॥ ३ ॥ ॥ अथ सिद्धाचल स्तवनं ॥
॥ सिद्धाचल वंदोरे नर नारी, हांरे नरनारी हो नर नारी, सिद्धाचल वंदो रे नर नारी ॥ नानिराया मरु देवा नंदन, कूपनदेव सुखकारी ॥ सि० ॥ १ ॥ पुंमरिक पमुहा मुनिवर सीधा, आत्मतत्त्व विचारी ॥ सि० ॥ २ ॥ शिवसुखकारण नवडुख वारण, त्रिवन जग हितकारी ॥ सि० ॥ ३ ॥ समकित शुद्ध कर ए तीरथ, मोह मिथ्यात निवारी ॥ सि० ॥ ४ ॥ ज्ञान नद्योत प्रह केवल धारी, नक्ति करुं एक तारी ॥ सि० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ केशरीयाजीनुं स्तवन ॥
॥ नमरो उमेरे रंग मोहोनमांरे ॥ ए देशी ॥ श्रा ज सफल दिन माहरो रे, वांद्यां श्री धूलेवा राय रे ॥ केशरी योजी नेटियो रे || मेवाड वागड विच्चें शो तो रे, बावन जिनालो प्रासाद रे || के० ॥ १ ॥ मे रु सम उत्तंग देहरो रे, कोरणी प्रतिदि श्रीकार रे ॥ के० ॥ यं यंने शोने पूतली रे, जालीयें देव विमान रे ॥ ० ॥ २ ॥ सुवर्णनो दंग कलश बे रे, रूप्प कपाट जोडि दोय रे || के० ॥ रत्नें जडित सुवर्ण अंगिका रे, तेजें ऊलामल जाए रे ॥ के० ॥ ॥ ३ ॥ प्रभुजोनी मूरति मोहनी रे, तृप्ति न पामे नय ए रे ॥ के० ॥ महिमावंत मोहोटा तुमें रे, जग सदु नमे जस, पाय रे ॥ के० ॥ ४ ॥ नित पूजे प्रभु नाव
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(२६१) गुंरे, वंबित फल लहे ताम रे ॥ के ॥ आशा धरी ने हुँ श्रावीयो रे, यो दरिसण महाराज रे ॥ के० ॥ ५ ॥ देशावरी संघ आवे घणा रे, यात्रा करण नि तमेव रे ॥ के० ॥ केशरना कीच मची रह्या रे, नि त होए मंगलमाल रे ॥ के० ॥ ६ ॥ गोमुख यद च केसरी रे, शासन देवता एद ॥के ॥कलियुगमा साचो धणी रे, परता पूरणहार रे ॥ के ॥ ७ ॥ शेत नरसिंहनाथाना संघमां रे, वर्ते ने जयजयकार रे ॥ के० ॥ संवत उगणीश बारोत्तरे रे, वैशाख वदि बीज सार रे । के० ॥७॥ तिणे दिन प्रनुजीने वां दिया रे, संघ सर्वे गहघट रे॥ के० ॥ पूजा साहामि वबल नित प्रतें रे, खरचीने लादो सीध रे । के ॥ ए॥ आठ दिवस.करी जातरा रे, संघ सद हर्षे ए रे ।। के० ॥ सौनाग्येउशिष्य देवचंश्ने रे, यात्रा थई सुखकार रे ॥ के० ॥ १० ॥ इति संपूर्ण ॥
॥अथ वीरजिन स्तवनं ॥ ॥ में नही जाएयो नाथजी, मोसुं दूर पठाया ॥ पीसें वर्षमान जी, शिवमेहेल सधाया ॥ में० ॥ ॥१॥ वचन तुमारो मानकें, में दीदा लीन।लो क लाज सब त्यागके, घर घर निदा कीनी ॥ में ॥ ॥ दरस तुमारो देखतो, रहेतो रंग रातो॥ व चन तुमारो शिर धरी, गुण तोरा गातो।। में ॥३॥ जिहां जिहां संशय उपजे, तो झुं पूजी लीजें ॥ ज्ञान सुधारसकी कथा, कहो कोणगुं कीजें ॥ में ॥४॥
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(२६२). सही सही तूं वीतराग हे, नही रागकी रेखा ॥ शत्रु मित्र ते रे सम नए, सो में नजरें देखा ॥ में ॥ ॥ ५ ॥ शुकलध्यान श्रेणें चढ्या, गुरु गौतम राया ॥ अनित्य नावना नावतां, केवल पद पाया में । ॥६॥ पूरन ब्रह्म प्रगट जया, नवि जाये बिपाया। रूपचंद नक्ते करी, चरणे शिर लाया ॥ में० ॥ ७ ॥
॥ अथ श्रीचैन्यवंदन प्रारंजः॥ ॥ ढाल पेहेली। केवलनाणी श्रीनिरवाणी, सा गर महाजस विमल ते जाणी॥ सर्वानुनूति श्रीधर गुण खाणी, दत्त दामोदर नंदूं प्राणी ॥ १ ॥ सुतेज स्वामी मुनिसुव्रत जाणी, सुमतिने शिवगति,पंचम ना णी॥अस्तांग नेमीसर अनित ते जाणी, यशोधर से वो मनमांहि त्राणी ॥ ॥ तारथ जपतां नवि हो य हाणी, धमीसर पाम्या शिवपुर राणी ॥ शुझमति शिवकर स्यंदन ठाणी, संप्रतिना गुण गाए इंाणी ॥३॥ वाचक मूला कहे नगते नाणी, तवन जणो जिम था नाणी ॥ ए चोवीशी नित नित गाणी, मुक्ति तणां सुख जिम व्यो ताणी॥४॥ ढाल बीजी॥
आदें अजितज रे, संनव अनिनंदन नपुं ॥ श्री सु मतिज रे, पद्मप्रनजीना गुण थुगुं ॥ श्री सुपारस रे, चंप्रन जग जाणीयें ॥ सुविधि शीतल रे, श्रेयांस ह रखें वखाणीयें ॥ १ ॥ त्रुटक ॥ वखाणी श्री वासपू ज्य, विमल अनंत धर्म शांति ए॥ कुंथु अर मनि मु नि सुव्रत, नमि नेम ध्यावं चित्त ए॥ सूर धीर पार्श्व
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(२६३) वीर, वर्तमानें जिनवरा ॥ कर जोडी वाचक जणे मूला, स्वामी सेवक सुखकरा ॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ पद्मनान सूरदेव, सुपार्श्व स्वयंप्रन हो॥सर्वानुभूति देवसुत, उदय पेढालज जो॥ १॥ पोटिल सत्की र्ति, मुनिसुव्रत अमम निःकषाय ॥ निपुलायक निर्म म, चित्रगुप्ति वंदूं पाय ॥ २ ॥ समाधि सुसंवर, यशो धर विजय मन्त्री देव ॥ अनंत वीरज नश्कत, तेहनी कीजें सेव ॥३॥ अनागत जिनवर, होशे तेहनां ना म॥ नणे वाचक मूला, तेहने करुं प्रणाम ॥४॥ ॥ ढाल चोथी॥ महाविदेह पंच मकार, प्रत्येकें जि न चार ॥ सीमंधर जुगमंधर, बाहु सुबाहु अ सुखक र ॥१॥ सुजात स्वयंप्रन स्वामी, नसजानन ले ढुंना मी॥ अनंतवीरज देव, सरप्रनु करुं अ सेव ॥२॥ विशाल वजंधर सादु, चंशनन चंवादु ॥ नुजंग ई श्वर गावं; नेमी प्रनु चित्त ए सावं ॥ ३ ॥ वीरसेन महान वंदूं, देव जसा दी आनंदूं ॥ अजितवीर य वंदन, शाश्वता खनाचंशनन ॥ ४ ॥ वईमान वारिषेण ईश, ए दुथा जिनचोवीश ॥ एवा बन्नु ए जिनवर, वाचक मूला कहे सुरखकर ॥ ५ ॥ ढाल पां चमी॥ हवे पायालें लोक मद्य, जिहां असुर कुमार ॥ लाख चोश जिननुवन अडे, तिहां करूं जूहार ॥ ॥१॥ नागकुमारमांहि कह्या, तिहां लाख चोराशी ॥ एता जिनहर तिहां नर्मु, थाउं समकितवासी ॥ ॥॥ सोवन कुमार मद्य लाख, बलुतेर प्रासाद ॥
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(१६४) बन्नु लाख वायुमद्य, सुणियें सुरनाद ॥३॥ दीपकु मार दिशाकुमार, वली उदधिकुमार ॥ विद्युत स्तनितकु मार अने, वलीअग्निकुमार ॥४ाए गए स्थानक जाणि ये,प्रत्येकें जिनहर ॥ बहुंतेर बढुंतेर लाख तिहां, नवि अण जिनसुरखकर ॥ ५॥ एवंकारें सवि मली, बहु तेर तिहां लाख ॥ साठ कोडि जिनहर नमुं, श्री जि नवर नांख ॥ ६॥ लाख साठ निव्यासी कोडी, अने तेरशे कोडी॥ जिन पडिमा श्रीजिन तणी, वंदूं वे कर जोडी ॥ ७ ॥ असंख्या व्यंतर जोशी, असं ख्या जिनहर ॥ असंख्य पडिमा जिन तणी, नमिय नहिं उर्गति मर ॥ ७ ॥ वाचकमूला कहे देव, दे सुमति सदा मुफ ॥ जिनवचनें दुं लीन थइ, गाउँ जिनजी तुज ॥ ए ॥ ढाल बही ॥ सोहम ईशान स नतकुमार ए, माहिंद बंजरे लांतक सार ए॥त्रुटक ॥ सार शुक्र अने सहसारह, आनत प्राणत धारण ॥ अजुत नवौवेयक त्रिक तिहां, पंच अनुत्तर तार ग ॥ अनुक्रमें प्रासाद कहीयें, लाख सहस शत सं खया ॥ बत्तीस अहावीस बारह, अह चन लख य रकया ॥१॥चाल ॥ पन्नास चालीश सहस जिनहरा, दोदो दोढज दोढज सतवरा ॥ त्रुटक ॥ वरा सत्तवर श्यारोत्तर, सत्तोत्तर शो जागीयें ॥ एकशो ऊपर पंच अनुत्तर, अनुक्रमें वखाणीयें ॥ सवे मलि जि नहर जिनहर, लाख चोराशी साख ए ॥ सहस स त्ता' आगला, तिहां वीश ने त्रण दाख ए॥२॥ चा
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(२६५) ल॥ एक सो कोडी रे, बावन कोडी ए॥ लाख चोरा पुं रे, संख्या जोडीएं ॥ त्रुटक ॥ जोडीएं चोश स हस एकशो, चालीशे तिहां आगली ॥ जिनप्रासाद एकसो असिथ लेखें, वंदूं प्रतिमा उऊली ॥ चैत्यसं रख्या ऊर्ध्व लोकें, वीर वचनविरव्यात ए॥ वाचक मू ला कहे जगजो, स्तवन ए परमात ए ॥३॥ ॥ ढाल सातमी ॥ वेयढगिरि सितिर सय जिनहर, वृषधरना तिहां त्रीश जी ॥ कुरुडुमनां दश जिनहर बोल्या, गजदंतें तिहां वीशजी ॥ १ ॥ असिथ ते जिनहर कुरुशुम परिधे, असिअ वखारे जाणुं जी॥ मेरुतणा पंचाशी जिनहर, खुकारें चार वखाणुं जी ॥ २॥ मानुषोत्तर पर्वत तिहां चारज, नंदीसरना वी श जी॥ कुंमल रुचक तिहां चार चार जिनहर. इष नादिक तिहां ईश जी ॥३॥ पंचसया श्यारें अ धिका, जिनहर तिर्ने लोकें जी॥ पडिमा एकशठ स हस चारसें, बोली सघले थोकें जी॥ ४ ॥ अधो कने ति लोकें, सवे मली कोडी बातें जी ॥ ला ख उप्पन्न ने सहस सत्ता', पणसय चोत्रीश पाठे जी ॥ ५ ॥ जिन पडिमा पन्नरसें कोडी, बेंतातीश वली कोडी जी ॥ लाख पंचावन सहस पणविस, प
सय चालीश जोडी जी ॥ ६॥ एतां तवन नणे जे नावें, प्रह उगमते सूरे जी ॥ वाचकमूला कहे गुण गातां, उर्गति नासे दूरे जी ॥ ७॥ ढाल आठ मी ॥ अवय समेत शिखरगिरि । साजनजिथ ॥
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( २६६ )
रेवत गिरि सितुंज ॥ गजपद धम्म चक्क कहुं ॥ सा०॥ वैभारगिरि उत्तंग ॥ १ ॥ रावते कुंजरावते ॥ सा० ॥ तिहुं प्रणगिरि ग्वालेर ॥ काशी अवंती जाणीयें ॥ सा० ॥ नागोर जेसलमेर ॥ २ ॥ सोरिपुर दबिणान रें ॥ सा० ॥ अवल ईरावण पास ॥ पीरोज पुरें नू ड नलो ॥ सा० ॥ फलो पूरे याश ॥ ३ ॥ वि कानेरने मेडते ॥ सा० ॥ सीरोही याबू श्रृंग ॥ राण ग पुरने सादडी ॥ सा० ॥ वरकाणे मनरंग ॥ ४ ॥ निन्नमालने कोटडे ॥ सा० ॥ बाहडमेर मोजार ! रायणपुर रजिया मणुं ॥ सा० ॥ शांतिनाथ दयो जूहार ॥ ५ ॥ साचोर जालोर राडरें ॥ सा० ॥ गो डीपुरवर पास ॥ पाटण अमदावाद वली ॥ सा० ॥ संखे सर दीजें नास ॥ ६ ॥ श्रमी ऊरे नवपल्लवे ॥ सा० ॥ नवखं लायें ठाम ॥ तारंगे बुरहानपुरें ॥ सा० ॥ वंदूं माणक शाम ॥ ७ ॥ खंजायतने तारापुरें ॥ सा० ॥ मातर ने गंधार ॥ लोमण चिंतामणि व रुं ॥ सा० ॥ सूरत मनोई जूहार ॥ ८ ॥ देवक पा ट देवगिरि ॥ सा० ॥ नवे नगर वंदी जोय ॥ दीवा दिक सवि बंदरे ॥ सा अंतरिक सिरिपुर होय ॥ ॥ ए ॥ वडनगरने मुंगरपुरें ॥ सा० ॥ इमर मालव दे श || कल्याणक जिहां जिन तयुं ॥ सा० ॥ मन सूधे प्रणमेश ॥ १० ॥ गाम नगर पुर पाटणे ॥ सा० ॥ जि न मूरति जिहां होय ॥ वाचकमूला कहे मुऊ ॥ सा० ॥ वंदता शिवसुख होय ॥ ११ ॥ कलश ॥ बन्नुए जिन
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( २६७ )
वर बन्नु जिनवर, अधो ऊर्ध्वने लोक ती जाएं ए ॥ सासय सासय जैनपडिमा ते सर्व वखाएं ए || विधिप पूज्य परगट, श्री धर्ममूर्ति सूरांड ए ॥ वाचकमूला कहे नातां, ऋद्धि वृद्धि is ए ॥ १ ॥ इति वृद्ध चैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥
॥ अथ सम्यक्त्वना सडशठ बोलनी सजाय प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ सुकृतवल्लिकादंबिनी, समरी सर सति मात ॥ समकित सडशत बोलनी, कहिगुं मधु रीवात ॥ १ ॥ समकित दायक गुरुतणों, पच्चवया र न थाय ॥ जव कोडाकोडें करी, करतां सर्व उपा य ॥ २ ॥ दानादिक किरिया न दिये, समकित वि ए शिवशर्म ॥ तेमाटे समकित वहूं, जाणो प्रवचन मर्म ॥ ३ ॥ दर्शन मोह विनाशथी, जे निर्मल गुण ठाण ॥ ते निश्चय समकित कह्यो, तेहनां ए यहि ठगा ॥ ४ ॥ ढाल || देइ देइ दरिसण आपणं ॥ ए देशी ॥ चन सदहणा तिलिंग बे, दशविध विनय विचारो रे ॥ त्रण शुद्धि पण दूषण, आठ प्रजाविक धारो रे ॥ ५ ॥ त्रुटक ॥ प्रजाविक घड पंच चूषण, पंच लक्षण जाणियें ॥ पट जयण पट आगार ना वन, बविहा मन आणियें ॥ पट गए समकित त या सडसठ, नेद एह उदार ए ॥ एहनुं तत्त्व वि चार करतां, लहीजें नवपार ए ॥ ६ ॥ ढाल ॥ चहु विह सद्दहणा तिहां, जीवादिक परमबो रे || प्रव चनमां जे नांखिया, लीजे तेहनो बो रे ॥ ७ ॥
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(२६७) ॥ त्रुटक ॥ तेहनो अर्थ विचार करियें, प्रथम सहह या खरी ।। बीजी सदहणा तेहना जे, जाण मुनि गुण जवहरी ॥ संवेग रंग तरंग जीले, मार्ग शुरू कहे बुधा, तेहनी मेवा कीजियें जिम, पीजियें समता सुधा ॥ ७ ॥ ढाल ॥ समकेत जेणे ग्रही वमिरां, नि न्हव न अहाबंदा रे ॥ पासबा ने कुशीलिया, वेष वि मंबक मंदा रे ॥ ५॥ त्रुटक ॥ मंदा अनाणी दूर ढमो, त्रीजी सदहणा यहो ॥ परदर्शनीनो संगत जिये, चोथी सदहणा कही । हीणातणो जे संग न तजे, तेहनो गुण नवि रहे ॥ ज्यूं जलधि जलमां जदयूं गंगा, नीर लूणपए लहे॥ १० ॥ ढाल ॥ क पूर होवे अति कजलो रे ॥ ए देशी॥त्रण लिंग सम कित तणां रे, पहिलो श्रुत अभिलाष ॥ जेहथी श्रो ता रस लहे रे, जेहवी साकर शख रे॥प्राणी धरिये समकित रंग, जिम लहियें सुख अनंग रे॥वाणीधo ॥ ए टेक ॥११॥ तरुण सुरखी स्त्री परिवस्यो रे, चतुर सुणे सुरगीत ॥ तेहथी रागें अति घणो रे, धर्म सु एयानी रीत रे ॥ प्राणी ॥१॥ नूरख्यो अटवी कत यो रे, जिम हिज गेवर चंग ॥ ले तिम जे धर्मने रे, तेहिज बीजुं लिंग रे ॥प्राणी ॥ १३ ॥ वैयाव च गुरु देव रे, त्रीजुं लिंग उदार ॥ विद्या साधक तणि परें रे, आलस नविय लगार रे ॥प्राणी॥ ॥ १४ ॥ ढाल ॥प्रथम गोवालातणे नवेंजी॥ए देशी॥ ॥अरिहंत ते जिन विचरता जी, कर्म खपी दुधा
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जा दरिसण नयी जी, जी,
(२६ए ) सिम ॥ चेश्य जिण पडिमा कही जी, सूत्र सिहां त प्रसि ॥ चतुर नर समजो विनय प्रकार, जिम लहियें समकित सार ॥ चतुर ॥ १५॥ धर्म खिमा दिक नांखि जी, साधु तेहना रे गेह ॥ आचारय
आचारना जी, दायक नायक जेह ॥ चतुर ॥१६॥ उपाध्याय ते शिष्यने जी, सूत्र नणावणहार ॥ प्र वचन संघ वखाणियें जी. दरिसण समकित सार ॥ चतुर ॥ १७ ॥ नक्ति बाह्य प्रतिपत्तिथी जी, हृद य प्रेम बहुमान ॥ गुण थुति अवगुण ढांकवा जी,
आशातननी हाण ॥ चतुर० ॥ १७ ॥ पांच नेद ए दश तणो जी, विनय करे अनुकूल ॥ सीचे तेह सु धारसें जी, धर्म वृदनूं मूल ॥ चतुर० ॥ १५ ॥ ढाल ॥धोबीडा तूं धोये मन, धोतीयूं रे ॥ ए देशी ॥ त्र ण शुदि समकित तण) रे, तिहां पहेली मन शुद्धि रे ॥ श्री-जिनने जिनमत विना रे, जूठ सकल ए बुदिरे ॥ चतुर विचारो चित्तमां रे ॥ ए टेक॥२०॥ जिन जगते जे नवि थयुं रे, ते बीजाथी नवि थाय रे॥ एवं जे मुख जांखियें रे, ते वचन शुक्षि कहेवाय रे ॥ चतुर ॥ १॥ यो नेद्यो वेदनारे, जे सहतो अनेक प्रकार रे ॥ जिण विण पर सुर नवि नमे रे, तेहनी काया शुरू उदार रे ॥ चतुर ॥ २२॥ ॥ ढाल ॥ मुनि जन मारगनी ॥ ए देशी॥ समकित दूषण परिहरो, तेमां पहिली ने शंका रे ॥ ते जिनव चनमा मत करो।जेहने सम नृप रंका रे॥ समकित
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(५७०) दूषण परि हरो॥ ए टेक ॥ २३ ॥ कंवा कुमतनी वांना, बीजुं दूषण तजियें॥ पामी सुरतरु परगडो, किम बाग्ल नजियें ॥ समकित ॥२४॥ संशय ध मैना फल तणो, वितिगिजा नामें ॥ त्रीजूं दूषण प रिहरो, निज गुन परिणामें ॥ समकित ॥ २५॥ मिथ्यामति गुण वर्णनो, टालो चोथो दोष ॥ गन्मा ी थुगतां दुवे, ननमारग पोष ॥समकित ॥६॥ पांचमो दोष मिथ्यामति, परिचय नवि कीजें । इम शुन मति अरविंदनी, नली वासना लीजें ॥ सम कित ॥ २७ ॥ ढाल ॥ जोलीडा हंसा र विषय न राचीयें ॥ ए देशी.॥ आठ प्रनाविक प्रवचनना कह्यां, पावयणी धुर जाण ॥ वर्तमान श्रुतना जे अर्थनो, पार लहे गुण खाण ॥धन धन शासन मंझन मुनि वरा ॥ ए टेक ॥ २७॥ धर्मकथी ते बीजो जाणीयें, नंदिखेण परि जेह ॥ निज उपदेशे रे रंजेलोकने,नं जे हृदय संदेह ।। धन धनम् ॥ २॥ वादी त्रीजो रे तर्क निपुण नएयो, मन्नवादि परि जेह ॥ राज छारें रे जयकमला वरे, गाजतो जिम मेह ॥ धन धन ॥ ३० ॥ नइबादु परें जेह निमित्त कहे, परमत कि पण काज ॥ तेह निमित्ती रे चोयो जापीयें, श्री जिनशासन राज ॥धन घन ॥ ३१ ॥ तप गुण नपर रोपे धर्मने, गोपे नवि जिन आण ॥आश्रय लो पेरे नविकोपे कदा,पंचम तपसी जाण ॥ धनधन ॥ ॥३॥बहो विद्यारे मंत्र तपोबली, जिम श्रीवयर मुणिं
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(२७१) द॥सिमसातमोरेंअंजन योगथी, जिम कालिक मुनि चंद ॥ धन धन ॥ ३३ ॥ काव्य सुधारस मधुर अ रथ जस्खा, धर्म हेतु करे जेह ॥ सिक्सेनपरें नरपति रीजवे, अच्म वर कवि तेह ॥धन धन ॥ ३४॥ ज व नवि होवे प्रनाविक एहवा, तव विधि पूर्व अने क ॥ जात्रा पूजादिक करणी करे, तेह प्रनाविक लेक ॥धन धन ॥३५॥ ढाल ॥ सतीय सुनशनी देशी ॥ सोहे समकित जेहथी, सखि जिम ानर णे देह ॥ नूषण पांच ते मन वस्यां, सखी मन व स्यां, तेहमां नही संदेह ॥ मुज समकित रंग अचल होयो ॥ ए टेक ॥३६॥ पहिखं कुशलपणुं तिहां, स खी वंदन ने पच्चखाण ॥ किरियानो विधि अति घ पो, सखी आचरे तेह सुजाण ॥मुफ॥३७॥बी जूं तीरथ सेवना, सखी तीरथ तारे जेह ॥ ते गीता रथ मुनिवस, सखी तेहगुं कीजें नेह ॥मुफ॥३७॥ नक्ति करे गुरुदेवनी, सखी त्रीजें जूषण होय ॥ किणहि चलाव्यो नवि चले, सखि चोथु नूषण जो य ॥ मुक० ॥३ए। जिनशासन अनुमोदना, सखी जेहथी बहुजन हुँत ॥ कीजें तेह प्रनावना, सखी पांच जूषणनी खंत ॥ मुक० ॥ ४० ॥ ढाल॥ इम नवि कीजें हो ॥ ए देशी ॥ लक्षण पांच कह्यां सम कित तणां, धुर उपशम अनुकूल ।। सुगुण नर ॥ अ पराधीशुं पण नवि चित्तथकी, चिंतवियें प्रतिकूल ॥ सुगुण नर॥ श्रीजिननाषित वचन विचारिये ॥ ए टेक
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(२७३) ॥४१॥ सुरनर सुख जे दुःख करि लेखवे, वंचे शि वसुख एक ॥ सु० ॥ बीजूं लक्षण ते अंगीकरे, सार संवेगगुंटेक ॥ सु०॥ श्रीजिन॥४२॥ नारक चा रक समनव कनग्यो, तारक जाणिने धर्म ॥ सु० ॥ चाहे निकलवु निर्वेद ते, त्रीजुं सदण मर्म ॥ सु०॥ श्रीजिन ॥४३॥ इव्यथकी मुखियानी जे दया, धर्महीणानी नाव ॥ सु०॥ चोथु लक्षण अनुकंपा कही, निज शकतें मन व्याव ॥सु॥ श्रीजिनम्॥४४॥ जे जिन जांरव्युं ते नहि अन्यथा, एहवो जे दृढ रंग ॥सु०॥ ते आस्तिकता सदण पांचमुं, करे कुमति नो ए नंग ॥ सु०॥ श्रीजिल०॥४५॥ ढाल ॥ जिन जिन प्रति वंदन दिसे ।। ए देशी॥ परतीर्थी परना सुर तेणे, चैत्य ग्रह्यां वलि जेद ॥ वंदन प्रमुख ति . हां नवि करवं, ते जयणा षट नेय रे॥ नविका सम कित यतना कीजें ॥ ए टेक ॥ ४६ ॥ वंदन ते कर जोडन कहिये, नमन ते शीश नमाडे ॥ दान श्ष्ट अ नादिक देवं, गौरव जगत्ति देखाडे रे ॥ नविका० ॥ ४७ ॥ अनुप्रदान ते तेहने कहिये, वारवार जे दा न ॥ दोष कुपात्रे पात्रमतियें, नहि अनुकंपा मान रे ॥ नविका० ॥४७॥ अणबोलावे जेह जांखतुं, ते कहियें पालाप ॥ वारंवार बालाप जे करवो,ते कहिये संलाप रे ॥ नविका० ॥ ४ ॥ ए जयणाथी.समक त दीपे, वलि दीपे व्यवहार ॥ एमां पण कारणथीज यणा, तेना अनेक प्रकार रे॥ नविका० ॥ ५० ॥ ढा
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( २७३ )
ल ॥ ललनानी देशी ॥ शुद्ध धरमथी नवि चले, अति दृढ गुण आधार ॥ ललना ॥ तो पण जे नवि तेहवा, तेहने एह आगार ॥ ललना ॥ ५१ ॥ बोल्युं तेहवं पालिये, दंतिदंत सम बोल ॥ ललना ॥ सऊनना डुर्जन तणा, कप कोटने तोल ॥ ललना ॥ बो० ॥ ५२ ॥ राजा नगरादिक धणी, तस शासन नियो ग' ॥ ललना || तेहथी कार्तिकनी परें, नहि मिय्या त संयोग ॥ जलना ॥ बो० ॥ ५३ ॥ मेलों जननो घण कह्यो, बल चोरादिक जाण ॥ ललना ॥ खेत्र पालादिकता, तातादिक गुरु वाण ॥ ललना ॥ बो० ॥ ५४ ॥ वृत्ति दुर्लन आजीविका, ते नीखण कंतार ॥ ललना ॥ ते देतें दूषण नहीं, करतां अ न्य याचार ॥ ललना ॥ बो० ॥ ५५ ॥ ढाल ॥ रा ग मल्हार ॥ नावीर्जे रे समकित जेहथी रूयडूं, ते जावना रे चावो मन करि परवडूं ॥ जो समकित रे ताजुं साजुं मूल रे, तो व्रततरु रे दीये शिवपद नुकूल रे ॥ ५६ ॥ त्रुटक || अनुकूल मूल रसाल समकित तेह विण मति अंध रे ॥ जे करे किरिया गर्व नरिया, तेह जूठो धंध रे ॥ ए प्रथम भावना गु यो रुडी, सुणो बीजी भावना ॥ वारं समकि त धर्मपुरनुं, एहवी ते पावना ॥ ५७ ॥ ढाल ॥ त्री जी नावना रे समकित पीठ जो दृढ सही, तो मोहो टो रे धर्म प्रासाद मगे नही ॥ पाइयें खोटे रे मोहोटुं मंमाण न शोजीयें, तेह कारण रे समकित चित्त
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(२७४) थोनीयें ॥ ५७ ॥ त्रुटक ॥ थोनियें चित्त नित एम जावी, चोथीनावना नावियें ॥ समकित निधान स मस्त गुणन, एहq मन लावियें ॥ तेह विण बूटा र त्न सरिखा, मूल नुत्तर गण सवे ॥ किम रहे ताके जेह हरवा, चोर जोर नवे नवे ॥ एए ॥ ढाल ॥ना वो पंचमी रे नावना शम दम सार रे,एथिवी परें रेस मकित तसु आधार रे ।। रही नावना रे नाजन सम कित जो मले, श्रुत शीजनो रे तो रस तेहमां नावि ढ से ॥६॥त्रुटक॥ नवि ढले समकित नावना रस, अमि य सम संवर तणो॥पट जावना एकही एहमां, करो यादर अति घणो || श्म नावतां परमार्थ जलनिधि, होय निनु फकफोल ए॥धन पवन पुण्य प्रमाण प्रगटे, चिदानंद कनोल ए ॥ ६१ ॥ ढाल ॥ जे मुनिवेष शके नवि बंमी॥ ए देशी ॥ ठरे जिहां समकित ते था नक, तेहना पट विध कहियें रे ॥ तिहाँ पहेलुं था नक ने चेतन, लक्षण प्रातम सहियें रे ॥ खीर नीर परें पुजलमिश्रित, पण एहथी ले अलगो रे ॥ अनुनव हंस चंच जो लागे, तो नवि दीसे वलगो रे ॥ ६२ ॥ बीजें थानक नित्य आतमा, जे अनुनूत संजारे रे॥ बालकने स्तनपान वासना, पूरव नव अ नुसारें रे ॥ देव मनुज नरकादिक तेहना, ने अनि त पर्याय रे ॥ इव्यथकी अविचलित अखंमित, निज गुण प्रातमराय रे ॥ ६३ ॥ त्रीजुं थानक चेतन कर्ता, कर्म तणे ने योगें रे ॥ कुंनकार जिम कुंन त
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(२७५) यो जे, दमादिक संयोगें रे ॥ निश्चयथी निज गुण नो कर्ता, अनुपचरित व्यवहारें रे॥ व्यकर्मनो मग रादिकनो, ते उपचार प्रकारे रे ॥ ६४॥ चोथु थानक में ते नोक्ता, पुण्य पाप फल केरो रे ॥ व्यवहारें नि श्रय नय दृप्टें, मुंजे निज गुण नेरो रे ॥ पंचम थानक ने परम पद, अचल अनंत सुख वासो रे ॥ आधि व्याधि तन मनथी लहिये, तसु अनावें सुख खासो रे ॥६५॥ बहुं थानक मोद तणु ,संयम झान उपायो रे ।। जो सहिजें लहियें तो सघने, कारण निःफल था यो रे ॥ कहे ज्ञान नय झानज साचुं,ते विण फूठी कि रिया रे॥ न लहे रूपू रूपूं जाणी, शीप जणी जे फरि या रे॥६६॥कहे किरियानय किरिया विण जे, ज्ञान तेह युं करशे रे ॥ जल पेसी कर पद न हलावे, तारू ते किम तरशे रे ॥ दूपण नूपण ने इहां बदुलां, नय ए केकने वादे रे ॥ सिद्धांती ते वेदु नय साधे, झानवंत अप्रमादें रे॥६७ ॥ एणि परें सडशठ बोल विचारी, जे समकित पाराहे रे॥राग देष टाली मन वाली, ते स म सुख अवगाहे रे ॥ जेहनुं मन समकितमा निश्चल, कोइ नही तस तोले रे ॥ श्री नय विजय विबुध पय सेवक, वाचक जस इम बोले रे ॥ ६ ॥ इति श्रीस म्यक्त्वना सडशठ बोलनी सद्याय संपूर्ण ॥
॥अथ श्रीसुविधिजिन स्तवन प्रारंजः॥ ॥ लागो लागो रे प्रनुगुं नेह, वसीयो हडामां॥ महारो साहिबो अतिहि सनेह ॥ वसी० ॥ दर्शन
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(१७६ )
प्रनुजीनुं देखतां रे. जोतां मुखनी ज्योति रे॥ उरित पमल दूरें कस्यां रे वारी, प्रगट्यो शान उद्योत ॥ ॥ वसी० ॥ १ ॥ सूरत मनडामां वसी रे, कागल जिम चित्राम रे॥ रात दिवस सुतां जागतां रे हुँतो, नित समलं प्रनुनाम ॥ वसी० ॥ २ ॥ जेहना मन मां जे वस्या रे, तेहने तेहयुं नेह रे ॥ मधुकरने मन मालती रे जिम, मोर तणे मन मेह ॥ वसी ।। ॥ ३ ॥ देव अवर देखी घणा रे, किहां न माने म न रे ॥ प्रमुगुण सांकलें सांकल्यो रे तेतो, अालोचे नही अन्न ॥ वसी० ॥ १ ॥ साहेब सुविधि जिणं दनी रे ढुं, चाहूं नवोनव सेव रे ॥ हंसरतन कहे माहरे रे कांइ, लागी एहज टेव ॥ वसी॥५॥इति॥
॥अथ केशरियाजीनुं स्तवन । ॥ केशरीयासें लाग्युं मारुं ध्यान रे, बीजुमुने कांड न गमे ॥के ॥ नानिनूप मरुदेवीको मंदन, तुम पर जीया खुरवान रे ॥ बीजुं० ॥ केश ॥ १ ॥ध नुप पांचशे मान मनोहर, काया कंचनवान रे ॥ ॥ बीजुं० ॥ के० ॥ २ ॥ जुगला रे धर्म निवारण साहिब, राजेश्वर राजान रे ॥ बीजुंग ॥ केशम् ॥ ॥३॥ षनदासकी आशा पूरजो, सेवक अपना जान रे ॥ बीजं ॥ केश ॥ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीमनीनाथ जिन स्नवनं ।। ॥चित्त को न गमे रे चित्त को न गमे, मस्निनाथ वि ना चित्त को न गमे ॥माता प्रनावती राणीको जायो,
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(२७७) कुंन नृपतिसुत काम दमे ॥म॥१॥कामकुंन जिम का मित पूरे, कुंनलंबन जिन सहुने गमे।म॥॥ मिथि ला नयरीमें जन्म प्रनुको,दरिसन खो कुःख शमे म॥ ॥३॥ घेवर नोजन सरसा पिररे, बाकस बूकस कोन जमे ॥ म०॥४॥ नीलवरण बनु कांति अंगें, मरक तमणि बबी दूर नमे ॥ म०॥५॥ न्यायसागर प्रनु जक्तनो स्वामी, हरि हर ब्रह्मा कोन नमे ॥म॥६॥
॥अथ अयवंती पार्श्व स्तवनं ॥ राग काफी॥
॥पंथीडा पंथ चलेंगो, प्रनु नजले दिन चार ।। ॥पंथी। क्या ले आया क्या ले जासी, पाप पुण्य दोनुं लार. ॥ पंथी॥१॥बालपनो तें तो खेल गमा यो, यौवन माया जालपंथी॥बूढापो आयो धर्म न पायो, पीछे करत पुकार ॥ पंथी॥शा ती माया फू ठी काया,तो सब परिवार ॥ पंथी० ॥दया मया कर पास अवंती, अब तेरो आधार ॥ पंथी॥३॥ इति ।।
॥अथ बनिनमुनिनी सद्याय ।। ॥शा माटे बंधव मुखयी न बोलो, अांसुडे या नन धोतां मुरारी रे॥ पुण्यजोगें दडियो एक पाणी, जड्यो ले जंगल जोतां मुरारी रे ॥ शा० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ त्रिकम रीश चढी छे तुऊने, वनमा हे वनमाली मुरारी रे ॥ वडीरे वारनो मनाईं बूं वाला, तुं तो वचन न बोले फरी वाली मुरारी रे ॥ शा॥२॥नगरी रे दाधी ने गुड़ न साधी, महारी वाणी निसुण वाला मुरारी रे॥ा वेलामां लीधो
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( २७८ )
अबोलो, कानजी कां थया काला मुरारी रे ॥ शा० ॥ ३ ॥ शीशी वात करूं शामलीया, विघ्न जी या वेला मुरारी रे || शाने काजें मुजने संतापे, हरि हसी बोलोने हेला मुरारी रे || शा० ॥ ४ ॥ ॥ प्राण महारां जाशे पाणी विण, अथ घडीने प्रण बोजे मुरारी रे ॥ आरति सघली जाये अलगी, बांधव जो तुं बोले मुरारी रे || शा० ॥ ५ ॥ पटमा स लगे पाल्यो बबीनो, हैया उपर प्रति दितें मु रारी रे || सिंधु तटें सुरने संकेतें, हरि दहन करम गुजरीतें मुरारी रे ॥ शा० ॥ ॥ ६ ॥ संयम लइ गयो सुरलोकें, कवि उदयरतन इम बोले मुरारी रे ॥ सं सारमांहि बलदेव मुनिने, कोइ नव यावे तोले मुरारी रे || शा० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ प्रभुजी वीरजिणं दने वंदीचें ॥ ए देशी ॥
॥ प्रभुजी शांति जिणंदने नेटीयें, शांतिरसनो दा तार हो । अचिराना जाया ॥ प्रभुजी शांति जलधर उनह्यो, वरसे जवि वित्त धार हो । अचिरा० ॥ ॥ प्रभुजी ॥१॥ प्रभुजी गजपुर नयर द|पावीयुं, प्र गट्यो ज्ञानदिणंद हो ॥ ० ॥ प्रभुजी कर्म दल मल चूरवा, समेत गिरि दीपे जिणंद हो ॥ ० ॥ ॥ प्र० ॥ २ ॥ प्रभुजी कर्म कलंक निराकरी, सिद्ध थया निज जाव हो ॥ ० ॥ प्रभुजी प्रगटावी निज रूपने, चरिज रूपानाव हो ॥ ० ॥ प्र० ॥
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(२७) ॥ ३ ॥ प्रचुजी सादि अनंतें थिर रह्या, एक तिहां अ अनेक हो ॥ अ॥ प्रनुजी लोकांतें आदि अ लोकने, एहवो तिहां विवेक हो ॥ अ० ॥ प्र० ॥ ॥ ४ ॥ प्रनुजी तिहां अपूर्व आनंद लहे, वचन अगोचर जेह हो ॥ अ० ॥ प्रभुजी सिम स्वरूपनी वानगी, गुरू श्रमाने जाणो तेह हो ॥०॥॥ ॥ ५॥ प्रनुजी दर्शन लदी जिन देवर्नु, नावो एहि ज नाव हो ॥ अ० ॥ प्रनुजी एहिज नाव अनुसरी, नवजल तरवा नाव हो ॥ अ० ॥ प्र० ॥ ६ ॥ प्रनु जी एहिज ध्याने नित रही, चाहीयें शिव सुख राज हो ॥ अ॥प्रनुजी श्रीजय जिनवर ध्यानथी, नाय क अनुनव काज हो ॥ अ० ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीमहावीर जिन स्तवनं ॥ गिरूवा रे
॥ गुण तुम तणा ॥ ए देशी ॥ ॥ वंदो महावीर जिनेसर राया, माता त्रिशला राणीना जाया रे ॥ हरिलंडन कंचन वर काया, अ मर वधू दुलराया रे ॥ वंदो० ॥ १ ॥ बालपणे सु रगिरि मोलाया, अहि वेताल हराया रे ॥ इंश कहे व्याकरण निपाया, पंमित विस्मय पाया रे ॥ वंदो ॥ २ ॥ दायिक ऋदि अनंती पाया, अतिशय अधि क सुहाया रे ॥ चार रूप करि धर्म बताया, चनवि ह सुर गुण गाया रे ॥ वंदो० ॥३॥त्रीश वरस गृ हवासे रहिया, संयमगुं दिल लाया रे ॥ बार वरस तपि कर्म खपाया, केवलनाण नपाया रे ॥ वंदो०
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(२००)
॥४॥ तीन नुवनमें आण मनाया, दश दोय बत्र धराया रे ॥ रूप कनक मणि गढ विरचाया, निरग्रंथ नाम धराया रे ॥ वंदो० ॥ ५ ॥रयण सिंहासण वेसण ताया, उंकुनि नाद बजाया रे ॥ दानव मान व दो सुख पाया, नक्तें शीश नमाया रे ॥ दो ॥ ६ ॥ प्रनु गुण गण गंगाजल नाह्या, पावन तेह नी काया रे ॥ पंमित खिमाविजय सुपसाया, सेवक जिन गुण गाया रे ॥ वंदो० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ पुरुषने परस्त्रीत्र गधाश्रयी शाखामण ।
॥ सुण चतुर सुजाण, परनारीशं प्रीति कबू नव कीजियें ॥ए अांकणी॥ हारे जेणें परनारीयुप्रीति करी, तेने हैडे रुंधण थाय घणी, नवं कुल मरजादा का न गणी॥ सु०॥१॥ तारी लाज जाशे नात जातमां, तुं तो हलु पडीश सदु साथमा, ए धुंबाडो न आ वे हाथमां ॥ सु० ॥ २ ॥ हारे सांज पडे रेवि ाथ मे, ताहारो जीव जमरानी परें जमे, तुने घरनो धं धों कां न गमे ॥ सु० ॥ ३॥ हारे तुं जश्ने मलीश दूतीने, ताहारुं धन लेशे सर्वे धूतीने, पो रही है हूं कूटीने ॥सु॥४॥तो बेठो मूबो मरडीने, ताहा रुं कालजें खाशे करडीने, तारुं मांस लेशे नजरडीने ॥ सु० ॥ ५ ॥ हारे तुने प्रेमना प्याला पाइने, ता हारां वसतर लेशे वाइने, तुने करशे खो खाइ ने ॥ सु० ॥ ६ ॥ हारे तुंतो परमंदिरमा पेसीने, ति हां पारकी सेजें वेसीने, तें जोग कस्खा घणुं हेंसीने ॥
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(२१) सु० ॥ ७ ॥ हारे जेम नुयंगथकी मरता रेहवं, तेम परनारीने परिहर,, हारे नवसायर फेरोनवि फर बुं ॥ सु० ॥ ॥ वाला परणनारीथी प्रीत सारी, ए माथु वढावे परनारी, तुमें निचे जाणजो निरधा री॥ सु० ॥ ॥ ए सद्गुरु कहे ते साचुं , ता हारी कायानुं सरवे काचुं , एक नाम प्रनुनु साचुं ॥ सु० ॥१०॥इति शिखामणसद्याय संपूर्ण ॥
। अथ महावीर जिनस्तवनं ॥ ॥ आज महारे आनंद थयो, प्रेमनां वादल वर श्यां दहाडो सफल थयो॥ ए आंकणी ॥ सुणो साहेली, वीर जिनेसर जनम्या धन्य दिन आजनो ॥आज ॥ १ ॥ तमें सिदारथ कुल्लें आया, तमें त्रि शला माताना जाया, बपन्न दिगकुमरीयें दुलराया ।
आज ॥ २ ॥ चोशठ इंश मली आवे, मेरुशिखर प्रनुने लावे, ए तो सुगंधिजलें करी नवरावे ॥ आज ॥३॥ सखी आज महारे घेर दीवाली, महारा प्र नुजी अाव्या पोतें चाली, मेंतो उसावी शेव ने सुंहा ली ॥ आज ॥ ४ ॥ सखी टोली मली मंगल गा वे, ए तो रत्नत्रयीनां सुख पावें ॥ ए तो बार वर्ष ना वना नावे ॥ आ ॥५॥श्म कर जोडी सेवक गावे, ए तो अक्ष्य पदवीने पावे, गुन वीर प्रनुजीने परजावें ॥ आज ॥ ६ ॥ इति श्री महावीरस्तवनं ॥
॥ अथ मनशिदानुं पद ॥ कल्याण रागमां ॥ ॥ रे मन लोनी तारो कोण पतियारो॥रे मन ॥
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(२०) आठ गांठको सांतो मीठगे, गांठ गांठ रस न्यारो ॥ रे मन ॥१॥ बिनमें और पलकमें दूजो, घडी घडी दिलसें न्यारो ॥ रे मन ॥ ५ ॥ चंचल मन व रज्यो नहि माने, प्रनु नव पार उतारो॥रेमन॥३॥ ॥ अथ वईमानजिन स्तवनं ॥राग वेलावल ॥
॥रे मन क्युं जिन नाम रिसायो ॥क्युं॥ रे म न०॥ विषय विकार महानद धास्यो, जनम जुन्या ज्यु हास्यो ॥ रे मन॥१॥ जिने तोकुं नरदेही दीनी, गर्न की आंच नहायो ॥ ता प्रनुजीकू तें शत सूरख, एक घडी न संजास्यो ।। रे सन० ॥ २नहिं कबू दान शियल तप पूजा, नहिं जिन नाम नचायो । जैनधर्म चिंतामणि सरिखो काच जाण कर माथो ॥ रे मन ॥ ३ ॥ करु ले सुरत. दया नहर ले, जो नव चाहत सुधाखो ॥ हरखचंद वर्षमान जिनेसर, अवसर मांहे न संनास्यो ॥ रे मन ॥४॥ इति ॥
॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं। तुमरीमा॥ ॥ सहसफणा रे मोरा साहिबा, तेरी सामरी सूर तपर वारी जा रे ॥ तेरी मधुरी मूरत परवारीजा - रे ॥ सहस० ॥ १ ॥ ए अांकणी ॥ तन मन लगन लगी एक तोमु, मेंतो देव अवर नहिं ध्यानं रे ॥ सह स० ॥ ॥ सफल नइ आज घडीअ हमेरी,मेंतो देखी दरस सुख पाउं रे ।। सहस० ॥३॥ वदन कमल बबी देखत सुंदर, मेंतो रोम रोम उलसावं रे ॥ सहस० ॥४॥ तुम गुणको कबू पार न आवे, उपमा क्या मैं ब
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(२३) ताचं रे॥सहस॥॥कीर्तिसागर कहे जव जव तोरी, मोज महिर नित पानं रे॥ सहस ॥ ६ ॥ इति ॥
॥अथ समेतशिखरस्तवनं ॥ ॥ चालो चालो शिखरगिरि जयें रे ॥ चा० ॥ वीश जिणंद मुगतें गया ॥ चा० ॥ ए अांकणी॥पा लगंजमें सफल बोलाइ, मधुबनमें जश् रहिये रे ॥ वीश जिणंद ॥१॥ आठ मंदिर है श्वेतांबरका, ती न दिगम्बरी लहियें रे॥वी॥सीतानाले निर्मल थश्नें, केशर प्याला ग्रहीये रे ॥वी ॥२॥ विपम पाहाड की कुंज गलनमें, शीतलता बदु लहिये रे ॥ वी० ॥ पश्चिम भाउ पूर्वदिशि बारे,वीश टुंक जिन पद लहियें रे॥ वी० ॥३॥ शामलीया पारसको मंदिर, बिच शिख रपर सोहिये रे ॥ वी॥वीश-ट्रंके जिन पूजन करकें, नरजव लाहो तहियें रे॥ वी० ॥ ४ ॥ उगणीशे गी यारा माहावदि, एकादशी विधु कहीयें रे ।। वी० ॥ संघ सहित यात्रा नइ सफली, विनय नमत गुण गहि ये रे ॥ वी० ॥ ५ ॥ इति शिखरजीनी॥
॥ अथ श्रीशजयस्तवनं ॥ घोलनी देशीमां॥
॥ शत्रुजे जश्य ने पावन थश्य, यात्रा नवाणुं क रिये रे ॥ चालो शेजेजे जयें ॥ ए अांकणी ॥डूंगर चडतां ने हरखज धरतां,जश्ने गंजारामां रहिये रे ॥ चालो ॥१॥ सूरज कुंझमां देह पखाली, नाइने नि मल थये रे ॥ चालो॥नीमज कुंममां कलशज नरि यें, सोनानी शिरियें वधावो रे॥ चालो० ॥॥पाना
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(२४) मंगावोने अंगी रचावो, घणों अबिर चडावो रे ॥चा लो० ॥ फूल मगावोने हार गुंथावो, प्रनुजीने कंठे चढावो रे ॥चा० ॥३॥ सुखड केशर चंदन घसावो, नवे अंगें पूजा करावो रे ॥ चा ॥ अगरनवेवो ने नावना जावो, नीचं नी शीश नमावो रे ॥ चा लो० ॥ ४ ॥ वेता सिंहासण दुकुम चलावे, नपर बत्र धरावे रे ॥चालो॥ खिमा विजय मुनि गुरु सुप साया, रुपन तणा गुण गाया रे ॥ चा ॥५॥
॥अथ श्रीसिमाचलस्तवनं ॥ ॥ चालो सखी सिमाचल जयें, चालो सखी वि मला चल जयें ॥ के गिरिवर देखी सुख लश्ये, के पा लिताणे जइ रहियें ॥चालो १॥के ए गिरि यात्रायें जे आवे, के नव जीजे सिदि जावे, के अजरामर पदवी पावे ॥ चालो ॥२॥ के यात्रा नवाणुं करियें, के नवकार लाख खरा गणियें, के नवसागर सहेजें तरिये ॥ चालो ॥ ३ ॥ के बह अहम काया कसि यें, के मोहराजा सामे धसियें, के वेगें शिवपुरमा वसियें ॥ चालो० ॥ ४ ॥ के सर्व तीरथनो ए रा जा, के सूरज कुंकमां जल ताजां, के रोगीया नर होय ते साजा ॥ चालो ॥ ५ ॥ के केशर चंदन घशी घोजी, के कस्तूरी बरास नेली, के पूजो सर्व मली टोली ॥ चालो० ॥ ६ ॥ के पूजीने जावना नावो, के केवलझान युगल पावो, के जो होये शिव पुरमां जावो ॥ चालो० ॥ ॥ के अढार अमोत्तेरा
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(२
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वरसें, के महावदि पंचमीने दिवसें, के नेट्या श्रीया दीसर उलटें ॥चालो० ॥ ७ ॥ के एह उत्तम पदनी सेवा, के देजो मुने देवाधिदेवा, के शिवरूपी लखमीने सुख मेवा ॥ चालो ॥ ॥ इति ॥
॥ पद राग कल्याण ॥ ॥ मोहे कैसे तारोगे दीन दयाल ॥ मोहे ॥ तारो तो पिया नित तुम तारो, बिन तरवेळू लीयो संजा ल ॥ मोहे ॥ १ ॥ कंचनको कहा कंचन करवो, मलिन कंचन परजाल ॥ मोहे ॥ कामक्रोध मदत पट रह्यो नित, महा मोहजंजाल ॥ मोहे ॥ २ ॥ मोय पापीकू पावन करवो, बहोत कठीन कृपाल ॥ मोहे ॥ मल्लिनाथ प्रनु मोहनी मूरति, रूपचंद गुण माल, करत निहाल ॥ मोहे ॥३॥ इति ॥ ॥ अथ झपन स्तवनं ॥ राग बिनास चरचरीमां ॥
॥ जाग जाग मुकुटमणि, नानिनृपनंदा ॥जा ॥ ए आंकण॥हार नगढे नर अमर सेवा करे,उच्चरे मुख जै जै जै जै नंदा ॥ जाण ॥ १ ॥ कमलदल मुकुल मांहि, मधुप रणजण करता, पिबत प्रीति धर सरस मकरंदा ॥ जा० ॥२॥ तिमिरहर सुख करण प्रग ट्यो, तरण मागध मधुर धुनी, पढत गुणबंदा ॥ जाम् ॥ ३ ॥ जायो मात मरुदेवी अलियत तुम जा वना, खेले उबंग ज्युं होत आनंदा ॥ जा ॥४॥ विमलगिरि मंमन छुःख विहंमन, कवि महिमराज के काटि फुःखफंदा ॥ जा० ॥ ५ ॥ इति ॥
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(२७६) ॥ अथ श्रीशत्रुजय स्तुति ॥ ॥ श्रीशत्रुजय गिरि तीरथ सार, गिरिवरमां जेम मेरु उदार, ठाकुर राम अपार ॥ मंत्रमाहे नव कारज जाणुं, तारामां जेम चं वखापुं, जलघर मां जल जाणुं । पंखीमांहि जिम उत्तम हंस, कुल मांहि जिम खननो वंश, नानि तणो जे अंश ॥द मावंतमांहि जिम अरिहंता, तपशूरा मुनिवर महंता, शत्रुजय गिरि गुणवंता ॥ १ ॥ ऋषन अजित संनव अनिनंदा, सुमतिनाथ मुख पूनमचंदा, पद्म प्रन सुख कंदा ॥ श्रीसुपाव चश्मन सुविधि, शीतल श्रे यांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्य मति शुदि॥ विम ल अनंत जिन धर्म ए शांति, कुंथु अर मनि नमुं एकांति, मुनि सुव्रत शुद्ध पंथि ॥ नमी पासने वीर चोवीश, नेम विना ए जिन वीश, सिगिरि अाव्या ईश ॥ ॥जरतराय जिन साथें बोले, स्वामी शत्रुजय गिरि कोण तोले, जिन, वचन अमोले ॥षन कहे सुणो नरत राय, बहरी पालता जे नर जाय, पातक नको थाय ॥ पशु पंखी जे णगिरि श्रावे,नव त्रीजे ते सिज थावे, अजरामर पद पावे ॥ जिनमतमें शेव॒जो वखाण्यो, ते में आगम दिलमांहि पाण्यो, सुणतां सुख नर आएयो ॥३॥ संघपति जरत नरेसर यावे, सोवन तणा प्रासाद करावे, मणिमय मूरति गावे ।। नाजिराया मरु देवी माता, ब्राह्मी सुंदरी वे हिन विख्याता,मूर्ति नवाणुं नाता ॥ गोमुख ने चक्के
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(२७) सरी देवी, शत्रुजय सार करे नित्यमेवी, तपगड ऊपर हेवी ॥ श्रीविजयसेन सूरीश्वर राया, श्रीविज यदेव सूरि प्रणमी पाया, षनदास गुण गाया ॥४॥
॥ अथ सिगिरिराज स्तवनं ॥ ॥गिरिराजकुं सदा मेरी वंदना,जिनको दर्शन दुर्लन देखी,कीधी कर्म निकंदना रे॥गिरि॥१॥ ए अांकगी। विषय कपाय ताप नपशमीयो, जिम मले बावन चंद ना रे ॥ गिरि ॥ २ ॥ धन धन ते दिन कबही रे हो शे, थाशे तुम मुख दर्शना रे ॥गिरि॥३॥ तिहां वि शाल नाव पण होवे, जिहां तुज पदकज फरस ना रे॥गिरि० ॥ ४ ॥ वली वली दरिसन वेहेनुल हीयें, एहं विरह नित नावना रे ॥गिरि॥५चित्त माहेथी कबद न विसारूं, तुम गुण गणनी ध्याव ना रे ॥ गिरि० ॥ ६ ॥ जव जव एहिज चित्तमां चाहूं, मेरे.र नही विचारणा रे ॥ गिरि०॥॥ चित्त रमे दिन मावतनी परें, बहोरी न होय उत्तारणा रे ॥ गिरि० ॥ ॥ छानविमल प्रनु पूरण कृपाथी, सुश्रेणिक बोध सुवासना रे ॥ गिरि० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ कल्याणरागनुं पद ॥ ॥ उरनसुं रंग न्यारा न्यारा, तुमगुं रंग करारी है। तुं मनमोहन नाथ हमारा, अब तो प्रीति तुमारी हे ॥ 3 ॥ १ ॥ योगी होय के कान फडाये, मोटी मुश मारी हे ॥ गोरख कहे तृष्णा नहिं मारी, घर घर नमत निवारी हे ॥3॥२॥ जंगम आवे
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(२८) नाद बजावे, आले तान मिलावे हे॥ सबका राम स रिखा नही ग्या, काहेकू नेख सजावे हे ॥1॥३॥ जती दुधा इंशी नहिं जीती, पंचनूत नहिं लीना है। जीव अजीवकू बूग्या नांही, नेख लेहीकें हीना हे ॥ ३० ॥॥ वेद पढया ब्राह्मण कहलावे, ब्र ह्मदशा नहिं पाया है॥ आत्मतत्त्वको अर्थ न जा न्यो, फोकट जन्म गुमाया हे ॥ ३० ॥ ५ ॥ जंगल जाये नस्म चढाये, जटा वधारी केशा हे । परनव की आशा नहिं मारी, फिरि जैसा का तैसा है।। ॥ ६॥ काजी किताब खोल कर बैठा, क्या किताब में देरख्या हे ॥ वकरीके गले बरी चलावे, क्या देवें गा लेखा है॥10॥॥ जिने कंचनका महेल ब नाया, उनकुं पीतल कैसा हे॥माख्या गने में हार हीरे का, सब जुग काच सरीसा है 15॥७॥ रूपचंद रंग मगन नया हे, नाथनिरंजन प्यारा है॥ जटम मरनका मर नहिं याकू, चरण शरण तीहारा है ॥3॥णा
॥अथ सिमाचल स्तवनं ॥ ॥ विवेकी विमलाचल वसीयें, तप जप करी का या कसीयें, खोटी मायाथी खसीयें ॥ वि० ॥ वसी उनमारगथी खसीयें ॥ वि० ॥१॥ माया मोहनी यें मोह्यो, कोण राखे रणमा रोयो ॥ आ नरजव ए लें खोयो ॥ वि० ॥ २ ॥ बाललीलायें दुलरायो, जोवन युवतीयें गायो, तोहे तृप्ति नवि पायो । वि० ॥ ३ ॥ रमणी गीत विषय राच्यो, मोहनी
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(२ए) मदिरायें माच्यो, नव नव वेश करी नाच्यो ॥ वि० ॥ ४ ॥ आगमवाणी समीश्राशी, नवजलधि मांहि वासी, रोहित मत्स्य समो थाशी ॥ वि० ॥ ५ ॥ मो हनी जालने संहारे, आप कुटुंब सकल तारे, वरण वीये ते संसारें ॥ वि० ॥ ६॥ संसारें कूडी माया, पंथ शिरें पंथी आया ॥ मृग तृष्णा जलने धाया ॥ वि० ॥ ॥ नवदव ताप लही आया, पांमव परि कर मुनिराया, शीतल सिमाचल बाया ॥ वि० ॥ ७ ॥ गुरु नपदेश सुणी नावें, संघ देशो देश थी आवे, गिरिवर देखी गुण गावे ॥ वि० ॥ ए ॥ संवत अढार चोराशीयें, माघ उज्ज्वल एकादशीयें, वांद्या प्रनुजी विमल वसीयें ॥ वि०॥ १० ॥ जात्रा नवाणुं अमें करीयें, जव जव पातिकडां हरियें, ती र्थ विना कहो किम तरीयें ॥ वि० ॥ ११ ॥ हंस म यूरा इणे में, चकवा शुक पिक परिणामें, दर्शने देवगति पामे ॥ वि० ॥ १२ ॥ शेव्रुजी नदियें नाइ, कप्टें सुर सानिधदायी, पणसय चाप गुहा ठाई॥ ॥ वि०॥ १३॥ रयणमय पडिमा पूजे, तेनां पातिक डां ध्रजे, ते नर सीके नवे त्रीजे ॥ वि० ॥१४॥सा सय गिरि रायण पगलां, चन्मुख आदें चैत्य ननां, श्रीशुन वीर नमे सघलां ॥ वि०॥ १५॥ इति ॥
॥ अथ पद राग पंजाबी ॥ ॥ खतरा दूर करनां दूर करना,एक ध्यान साहेबका धरनां ॥ खतरा॥१॥ जब लगयातम निर्मल करना,
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तब लग जिन अनुसरनां ॥ खतरा ॥ २ ॥ धन क कंचनकूं क्या करनां, आखर एक दिन मरनां ॥ खत रा० ॥ ३ ॥ मोह मिथ्यात माहा मद हरनां, सुमति गुपति चित्त धरनां ॥ खतरा० ॥ ४ ॥ संवर नाव स दा मन धरनां, तम इर्गति हरनां ॥ खतरा० ॥ ॥ ५ ॥ ग्यान उद्योत प्रभु पाये परनां, शिव सुखकूं अनुसरना || खतरा० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अथ प्रजातियुं ॥
॥ वाणी हे विशाल, तेरी अगम अगोचरी ॥ द शमे द्वार ऐसे, कारध्वनि उच्चरी ॥ वा० ॥ १ ॥ शब्द एक अनेक अर्थ, बूऊत हे हरी ॥ चनदराज लोकमांहि, धौरधार विस्तरी ॥ वा० ॥ २ ॥ नगर मध्यें नदी वहे, जरी लीयो जन गगरी ॥ मत मतां तर ऐसे नये, एक अंग अनुसरी ॥ वा० ॥ ३ ॥ बी ज तैसो वृक्ष नयो, बरखा बरखत जुरी ॥ रूपचंद आत्म बुद्धि, तैमी समजण परी ॥ वा ॥ ४ ॥
॥ अथ शत्रुंजय पद ॥
॥ में नेट्या नानिकुमार, अखीयां सफल नइ ॥ में व्या० ॥ नेंना सफल नइ ॥ में नेट्या० ॥ ए यांक णी ॥ तीरथ जगमां ने घणां रे, तेहमां ए वे सार ॥ शेगुंजा सम तीरथ नही रे, तुरत तरत जवपार ॥ अखी यां० ॥ १ ॥ जुगला धर्म निवारिया रे, तीन जुवन तुं सार || सोवन वरणी देह बे रे, पन लांबन मनोहार ॥ अखीयां ॥ २ ॥ सोरठ मंगल तुं
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(२१) प्रनु रे, सकल करम करे दूर ॥ केवल लखमी पाम वा रे, वंबित लीला पूर ॥ अखीयां० ॥ ३ ॥ गिरि वर फरस्यो नावणुं रे, सफल कीयो अवतार ॥ श्री जिनहरख पसायथी रे, संघ सदा सुखकार ॥ अ खीयां ॥४॥ घणा दिवसनी चाह हती रे, देख न प्रजु दीदार ॥ रत्नसुंदर पाठक कहे रे, अविचल लीत अपार ॥ अखीयां ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीशांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ शांतिकरण प्रनु शांतिजिनेश्वर, शांतिकरण न कुलमें हो जिनजी, तुं मेरे मनमें, तुं मेरे दिल में । ध्यान धरूं पलपलमें हो जिनजी ॥ तुं० ॥ १ ॥ तुं० ॥ निर्मल ज्योति वदनपर शोजत, निकस्यो ज्यु चंद बादलमें ॥हो जिगातुं०॥ जिनरंग कहे प्रनु शांति जिनेश्वर, देख्योज्युं देव खलकमें हो॥ जिन॥॥॥
अथ श्रीसमेतशिखरनुं स्तवन ॥ ॥ शिखरजीकी जात्रा क्युं न करे ॥ जाके बंधे करमकी रेख ॥शिखर ॥१॥ पालगंजमें सफल हो त हे, मधुवन पाप टरे ॥ सीतानाल अनोपम सोहे, निर्मल नीर जरे ॥ शिखर॥ २ ॥ वीश टुक पर वी श जिनेसर, मुनिजन ध्यान धरे ॥ कर्म खपावी मु गतिकुं पोहोंचे,शिव रमणीकू वरे ॥ शिखर० ॥३॥ इंशदिक सुर नृत्य करत हे, नाना नाव धरे ॥ इंश
णी मिली मंगल गावे, मोतीना थाल नरे ॥ शिख र० ॥ ४ ॥ मन वच तन करी प्रनुजीकू ध्यावे, उर्ग
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ति दूर हरे ॥ लक्ष्मी रेन जो जात्रा करियें, ताके का ज सरे ॥ शिखर० ।। ५ ॥ इति ॥
॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥ राग काफी ॥ ॥तुमहीं जाके अश्म खेलावो, राउके रीत चलावो रे ॥ तु०॥ हम जोगीसर जे तप साधे, ते तुम नेद न जानो रे ॥ तु०॥९॥ स ग रे कमठ तुं महा तप सा धे, तपको नेद न जान्यो रे ॥ तन तापे मन नाऐ नांहीं, कहा ताप अढ़ानो रे ॥तु॥॥ पन्नग काहे कू अग्नि जलावे,हित चित्त दया न आवे रे । पासप्र नु नवकार सुणावे, धरणीधर पद पावे रे ॥7॥३॥
॥अथ स्तवनं ॥राग कल्याण ।। ॥ऐसे शेहेर विच कोन दिवान हेरें ॥ऐसे ॥ पानीके कोट पवनके कंगने. दश दरवाजेको मंमान हे रे ।। ऐसे० ॥१|| इसनगरोमें त्रेवीश तस्कर, नग रीकू करत हेरान हे रे ।। ऐसे० ॥ २ ॥ प्रजापोकार सुनी तब जाग्यो, चेतन राय सुजान हे रे ॥ ऐसे ॥३॥ नाथ निरंजन नक्ति तेरी, हाथमें ज्ञान कबा न हे रे ॥ऐसे ॥ ॥ रूपचंद कहे तेहने वारो, पे लो उशमन मान गुमान हे रे ॥ ऐसे ॥५॥ इति ॥
॥अथ वीरजिन आमलक्रीडानुं स्तवन । ॥ राग प्रजाती॥ तथा वेलावल॥आदि अंत जानुं नही, तुम हो अविनाशी ॥ रामत शामली पीपली, खेल करे विलासी ॥ आदि० ॥ ॥ इंइ सनामें बेठकें, मुख युं जस बोले ॥ तीन जुवनमें को नही,
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(ए३) प्रनु धीरज तोले ॥ आदि० ॥ २ ॥ वात न मानत देव एक,सर्प को वेश बनावे ॥ प्रनु पकरके मार दे, चित्त नांहीं मरावे ॥ आदि० ॥ ३ ॥ बालक हो प्रनुयुं रमे, हास्यो खंध चढावे ॥ बीनत्स होकें बढ्यो, गगनें ने जावे ॥ आदि० ॥ ४ ॥ हसत दयालु देख कें, मुख युं जस कहावे ॥ धन्य धन्य महा वीरजी, रूपचंद मन नावे ।। आदि० ॥ ५ ॥इति ॥
अथ झपनजिन स्तवनं । राग नैरव ॥ ॥ उठत प्रनात नाम, जिनजीको गायें ॥1॥ नानिजीके नंदके, चरण चित्त लायें ॥ १० ॥ १ ॥
आनंदके कंद, जाकुं पूजत सुरिंद द्वंद, एसो जिनरा ज बोड, उरकुं न ध्याश्ये ॥ 7 ॥ २ ॥ जनम अयोध्या ठाम, मात मरूदेवा नाम, संडन वृषन जाके, चरण सोहायें ॥ उठ० ॥ ३ ॥ पांचशे धनु पमान, दीयत कनक वान, चोराशी पूरव लाख, आ यु स्थिति पायें ॥ न० ॥ ४ ॥ आदिनाथ आदि देव, सुर नरहि सारे सेव, देवनको देव प्रनु, गुन सु ख दायें ॥ उठ० ॥ ॥प्रनुको पादारविंद, पूजत हरखचंद, मेटो कुःखदंद सुख संपद बढायें ॥६॥
॥अथ पद ॥ राग विनास ॥ ॥प्रनुजीको दरिसन पायोरी, आज में ॥ प्रनु० ॥ वंबित पूरण पास चिंतामणि, देखत उरित गमायो री॥ आज में ॥१॥ मोहनी मूरत महिमा साग र, तीरथ सब जग बायो री॥॥ नानचंद प्रनु
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(ए४) सकल संघकू, जय जयकार कहायो री॥धा॥३॥
॥ अथ पार्श्वनाथ गीतं ।। राग काफी॥ ॥को न गमे चित्त को न गमे, प्रनु पासजी वि ना चित्त को न गमे । परम निरंजन देवने मूकी, दूषण सहितने कोण : मे ॥ प्रनु० ॥१॥ संदर रख टरस जोजन बांकी, कुत्सित अशनने कोण जसे ॥ ।। प्रनु० ॥ २ ॥ जे तुम आण लिहूणा मानव, मो ह नृपतिने केम दमे ॥ प्रनु० ॥३॥ जे नुऊ पद पंकजनें न सेवे, तेह अनंत संसार जमे ॥ प्रन० ॥ ॥४॥ जे तुफ पूजे नाव धरी तस, नव नव संचि त पुरित शमे ॥प्रनु० ॥ ५॥ करुणा सागर तुक विण दूजो, मुफ अपराधने कोण खमे ॥ प्रनु० ॥ ॥ ६ ॥ ध्याने ध्यावे जे कोई तुऊने, अमृत पदमां ते रंगें रमे ॥ प्रनु० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ नेमिजिन स्तवनं ॥राग काफी॥ ॥नां करीये रे नेडो नां करीयें, निगुणागुंरे नेडो नां करियें ॥ अमें रोइ रोइ अांखडीमां नीर जरीयें जी ॥ निगुणा ॥ प्रेम निरव हि वाल्हा प्रेमी जननो, अविचाऱ्या नवि मग जरीयें जी ॥ ॥ निगुणा ॥१॥ जादव जान सजीने यउपति, तोरण आवीने केम फरिये जी ॥ निगुणा० ॥ २ ॥ संयम नारी वाल्हे कीधी प्यारी, राजुल मूकी नर दरीयें जी ॥ निगुणा ॥३॥ अम अबलानी सा हामुं निरखो, विरह जलधिथी केम तरी जी ॥
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(२५) ॥ निगुणा ॥४॥ यौवन वय केम करी निर्गमियें, लोकलाजथी घणुं मरिये जी ॥ निगुणा ॥५॥ दिलरंजन प्रनु दीलमां धरीयें, निशदिन अवटाई म रीयें जी ॥ निगुणा ॥ ६ ॥ चतुर थ अवसर गं चूको, अमृतसुख रंगें वरीयें जी॥ निगुणा ॥ ७॥
॥अथ धर्मजिननुं स्तवन ॥ ॥श्म करीयें रें नेडो इम करीयें रे, सुगारां नेडो इम करीयें। हारे चित्त अटक्युं प्रनुनी चाकरी यें, जिम जवसायर सुखथी तरिय रे ॥ जिनजीगुं नेडो इम करीयें ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ एकने मूकी बेने खंमी, त्रणनो संग ते परिदरिये रे ॥ सु०॥ चार जणा शिर चोट करीने, पांचनी सेवा अनुसरीयें रे ॥ सु॥२॥ बसत अठ नव दशने उमी, एकादश दिलमां धरीयें रे ॥ सु०॥ बारनो आदर करीयें अहो निश, तेरथी मनमां घणुं मरिये रे ॥ सु॥ ॥ ३ ॥ पांच आठ नव दश तेरने, बांधी नारखीयें जर दरीयें रे ॥ सु०॥ सत्यावीशनो संग करीने, पच्च वीशनी प्रीतें तरी रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ बत्रीश तेत्रीश चोराशी उगणीश, टाली चारथी नवि फरीएं रे ॥ ॥ सु० ॥ सुडतालीशथी दूरे रहीयें, एकावन मनमां जरीये रे ॥ सु०॥ ५ ॥ वीशने सेवी बावीश बांधी, त्रेवीशथी निशदिन लरीये रे ॥ सु० ॥ धर्म प्रनुगुं स्नेह करंतां, अमृत सुख रंगें वरीयें रे॥ सु॥६॥
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( २०६ )
॥ अथ मन जमरानी वैराग्य सवाय ॥ ॥ नूलो मन जमरा कां नमे, नमे दिवसने रात ॥ मायानो बांध्यो प्राणीय नमे परिमल जात । नू० ॥ ॥ १ ॥ कुंन काचो का कारमी, तेहनां करो रे जतन्न ॥ विषसंतां वार लागे नहीं, निर्मल राखो रे मन्न ॥ ० ॥ २ ॥ कोनां बोरू कोनां वारू, कोनां माय ने बाप || आणी जावुं वे एकनुं, साधें पुष्य ने पाप ॥ ० ॥ ३ ॥ अशा ते मुंगर जेवडी, मरखं पगलां रे हे धन संची संची कां मरो, करवी दैवनी वेठ || नू० ॥ ४ ॥ धंधो करी धन जोडीयुं, लाखा उपर कोड || मरधनी वेला मानवी, लीयो कदोरो बोड || नू० ॥ ५ ॥ मूरख कहे धन माह रुं, धोखें धान्य न खाय । वस्त्र विना जइ पोटशे, लखपति लाकडा मांय || जू०॥ ६ ॥ नवसागर दुःख जल नस्यो, तरवो बे रे तेह ॥ विचमां जय सबलो
बे, कर्म वायने मेह ॥ ० ॥ ७ ॥ लखपति बत्र पति सब गये, गये लाख वे लाख ॥ गर्व कर गोरखें वेसतां, नये जली बली राख ॥ नू० ॥ ८ ॥ धमण धूखंती रे रहि गई, बुज गई लाल अंगार ॥ एरणको dast मिठ्यो, ठ चल्यो रे लुहार ॥ नू० ॥ ए ॥ कवट मारग नदी चालतां, जावु पहेले रे पार ॥
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गल नहि हट वाणीयो, संबल लेजो रे सार ॥ ॥ ० ॥ १० ॥ परदेशी परदेशमें, कोण करो रे सनेह ॥ याया कागल उठ चल्या, न गणे यांधी ने
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(२७) मेह ॥ ४० ॥ ११ ॥ के चाल्या रे के चालशे, के चालण हार ॥ केश बेग बूढा बापडा, जाए नरक मकार ॥ ४० ॥ १२ ॥ जिण घर नोबत वाजती, दुता बत्रीशे राग ॥ ते मंदिर खाली पड्यां, बेठण लागा रे काग॥ नू ॥ १३॥ नमरो आव्यो रे कम लमां, लेश कमलनुं फूल ॥ कमलनी वांडगयें मांहे रह्यो, जेम आथमते सूर ॥ नू ॥१४॥ महमद कहे वस्तु वोरिये, जे कोइ आवे रे साथ ॥ आपणो लान नगारीयें, लेखु साहिब हाथ ॥ नू० ॥ १५ ॥
॥अथ अरिहंत स्तुति प्रारंजः॥ ॥ श्री अरिहंत नमीजें. चतुरनर! श्री अरिहंत नमीजें । ए आंकणी॥ बारस गुणशोनित जगमो हित, सुर नर नमित कहीजें ॥ अतिशय चार प्रथ म वली पाठे, प्रातिहार जस लहीजें ॥ च ॥ श्री० ॥ १०॥ चार सहज एकादश खायिक, उगणी श दैव्य ग्रहीजें ॥ उत्तर अतिशय चोत्रीश पांत्रीश, वाणी समीप रहीजें ॥ च ॥ श्री० ॥ २॥ तीर्थक र पद जोगी सयोगी, गुणगाणे प्रणमीजें ॥ जावस्व रूप रमण अनिलाष्यो, तेहनी आग वहीजें ॥च० ॥ श्री० ॥३॥ इत्यर्हतां स्तुतिः समाप्ता ॥
॥अथ अतींश्यि स्वरूपसि स्तुति प्रारंजः॥
परमेष्ठी पाराधी सुगुणिजन ! परमेष्ठी पारा धी॥ शिव अविचल अरु जानत पदवी, अक्ष्य अ व्याबाधी॥ अपुनर्नव सिदि गति सुख पूरण, ठाण
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(ए) संपत्ति अबाधी ॥ सुगु० ॥ पर० ॥ १॥ दर्शन ज्ञान वीरिय सुख संपट, अनंत चतुष्ट निरुपाधि ॥ तस नावादि निखेप नजनथी, थाए स्वरूप समाधि ॥ सुगुणापर॥२॥ इत्यतीश्यि स्वरूपस्तुतिः साप्ता॥ ॥अथ आचार्योपाध्यायानगाराणां॥
॥युग पत्स्तुति प्रारंजः॥ आचारिज पदसेवा, चहत मन! आचारिज प दमेवा ॥ सुरपति सेवित त्रिपदी अन्यासें, शीश धरे वासखेवा ॥ तीर्थकर देवनंद विराजित गणधर दे शना देवा ॥ च ॥ आ० ॥१॥ अंग वादश च नदश पूरव, मुहर्तमांहे करेवा ॥ नपगारी उवकाय मुनिने, अंग उपांग धरेवः ॥ च ।। आ ॥ २ ॥ निजगुण अधिक नपासक चारो, सिदि अनीह क हेवा ॥ नाव स्वरूपचंइ जिम ननसे, सिविरमण सुख मेवा ॥ च ॥ श्रा० ॥३॥ इति ॥
॥अथ आत्मगुण स्तवन प्रारंजः।। ॥ आतमगुण अनिलाख्यो, अनुनवी! आतमगु ण अजिताख्यो । दर्शन झान चारित्र तपोगुण, वी रज उपयोग दाख्यो ॥ पुजल गंधादिकथी अलगो, श्री जिनराजे नांरख्यो ॥अनुनवी० ॥ आ॥१॥ तेहनु लक्षण मूलचेतनता, पुजल जड गुण पारख्यो। जिनमत शुक्षस्वरूप नन्नासें, स्वगुण रमण रस चा ख्यो । अनुजवी० ॥ आ॥शाश्त्यात्मगुणस्तुतिः।।
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(एए) ॥अथ सुपार्श्वजिन स्तवन प्रारंजः ।। ॥रातडीया रमीने रे किहां थकी याविया ॥
॥रे।। ए देशी ॥ ॥मुक मन नमरो प्रचुगुण फूलडे रे ॥ रमण करे दि नरात रे ॥ सुणजो स्वामि सुपास सोहामणा रे॥क र जोडी कढं वात रे ॥ १ ॥ मनडुं ते चाहे रे, प्र नु मनवा नणी रे, पण दोसे ने अंतराय रे ॥ जी व प्रमादी रे कर्म तणे वशे रे, ते केम मल, थाय रे ॥ म ॥२॥ लाख चोराशी जीवा योनिमां रे, जव अटवी गति चार रे॥ काल अनादि अनंत नमतां थकां रे, किमही न आवे पार रे ॥ म ॥ ३ ॥ मारग बतावो रे साहेब माहेरा रे, जेम आईं तु म पाय रे ॥ लाज वधारो रे सेवक जाणीने रे, यो दरिसण जिनगय रे ॥म॥ ४ ॥ मूर्ति ताहारी रूपें रूअडी रे; अनुनवपद दातार रे ॥ नित्यलान प्रनु शुं प्रेमें वीनवे रे, तुमथी लडं सुखसार रे ॥ म॥५॥
॥अथ पार्श्वजिन स्तवनं ।। ॥रायजी अमें तो हिंडवाणी के, राज गराशी॥
॥या रे लोके ॥ ए देशीले ॥ ॥ जिनजी गोडीमरण पास के, विनति सजिलो रेलो। जिनजी अरज करुं सुविलास के, मूकी श्रा मलो रे लो ॥ जिनजी तुम दर्शनने काज के, जीव डो टलवले रे लो॥ जिनजी महेर करो माहाराज के, आशा सवि फले रेलो ॥१॥ जिनजी मननमरो
राज गराशी,
१॥जिनजी मारलो के
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( ३०० )
दूरथ
ललचाय के, प्रजुनी उलगें रे लो ॥ जिनजी जेम ते म मेलो याय के, ते करजो वगें रे लो ॥ जिनजी कां पण नेह के, साचो मानजो रे लो ॥ जिनजी तुम श्री नहुं गुणगेह के, अमृत पानजो रे लो ॥ २॥ जि नजी प्रभुशुं बांध्यो प्रेम के, ते केम तीसरे रे लो ॥ जिनजी बीजे जावा नियम के, प्रभुर्थी दिल ठरे रे लो ॥ जिनजी जोतां ताहारं रूप के, अनुभव सां रे रे लो ॥ जिनजी ताहरी ज्योति अनूप के, चिंता दुःख हरे रे लो ॥ ३ ॥ जिनजी खुं जोजन खाय, मिठानी लाजचें रे लो ॥ जिनजी खातमने हित थाय के, प्रभु ना गुण रुचे रे लो ॥ जिनजी कर्म तणां वन जोर के, तेही तारियें रे लो ॥ जिनर्जी समकेतना जेो र के, तेहने वारियें रे लो ॥ ४ ॥ जिनजी निज सेव क जाणीने, मुक्ति बतावीयें रे लो ॥ जिनजी करुणा रस याणीने, मनमां लावीयें रे लो || निजी वाच क सहज सुंदरनो, सेवक एम कहे रे लो ॥ जिनजी पंमित श्रीनित्यलान के, प्रभुथी सुख लहे रे ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्री श्रेयांस जिनस्तवनं ॥
॥ रंगीले यातमा ॥ ए देशी ॥ सहेर बडा संसा रका, दरवाजे जसु चार ।। रंगिले खातमा || चोराशी लख घर वसे, यति महोटे विस्तार ॥ रं० ॥ १ ॥ घरघरमें नाटक बने, मोह नचावण हार ॥ रं० ॥ वेश बने केई नांतके, देखत देखनहार ॥ रं० ॥ ॥ २ ॥ चनद राजके चोकमें, नाटक विविध प्रकार ॥
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( ३०१) रं० ॥ जमरी दे दे करती थे, फिर फिर ए अधि कार ॥२०॥३॥ नाचत नाद अनादिको, ढुं नाच्यो निरधार।। २० ॥ श्रीश्रेयांस कृपा करो, आनंदके आधार ॥ रंगी० ॥४॥इति श्रेयांसजिन स्तवनं ॥
॥अथ उपदेश पद ॥ ॥ में दुं मुसाफर आया हो प्यारा, नहिं को मेरा ॥ नहिं ॥ जनम दुवा तब अपना कहावे, नहिं रहेणेला मेरा हो प्यारा ॥ नहिं० ॥ ॥ स ऊन कुटुंब सब अपना कहावे, ज्युं तीरथका मेला हो प्यारा ।। नहिं० ॥ २ ॥ धन कंचन कबु स्थिर नहिं रेणां, ज्युं वादलका घेरा हो प्यारा निहिं ।। ॥३॥ रूपचंद कहे प्रेमकी बातां, ज्युं घानीका फेरा हो प्यारा ॥ नहिं॥४॥ इति ॥
॥ अथ प्रजाती रागमां पद ॥ ॥ जोबनीयांनी मोजां फोजां, जाय नगारां देती रे ॥ घडि घडिनां घडियालां वागे, तोय न जागे तेथी रे ॥ जो० ॥१॥ जरा रासी जोर करे , फे लावी फजेती रे ॥ यावी अवधे उनशे जाशे, लख पतिने लेती रे ॥ जो० ॥ ॥ मालें बेगो मोज करे ने, खांतें जूवे खेती रे ॥ जमरो नमरो ताणी लेशे, गोफण गोलासेंती रे ॥ जो० ॥ ३ ॥ जम राजाने शरणे जावं, जोरालो को जेहथी रे ॥ उनियां दूजो दीसे नांहिं, आखर तरशो तेहथी रे ॥ जो॥४॥ दां त पड्याने मोसो थयो, काज न सयं कहेथी रे॥नदय
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( ३०२ )
रत्न कहे या समजो कहियें वातो केती रे ॥ ज० ॥ ५॥ ॥ अथ गांति रथ स्तवन प्रारंभः ॥ || शांति जिणंद सुखकारी, सकलजन ! शांति जिणंद सुखकारी ॥ स्वस्तिश्री ऋद्धि वृद्धि अयंकर, मंगलान्युदय विहारी ॥ स० ॥ ० ॥ १ ॥ पूजि त गढ तीन मनोहर प्रातिहारज सहचारी । वृद अशोक परम मुददाता, कुतुमवृष्टि वरधारी । स० ॥ ॥ शां० ॥ २ ॥ दिव्यध्वनि चनविध वाजित्रसुर यो जनमान उदारी || चिहुं दिशि चमर बत्र त्रिदु शो नित, सिंहासन पदसारी स० ॥ शां० ॥ ३ ॥ ना मंगल रवि कोटि विजंता, डुंडनिध्वनि बलिहारी ॥ ऐसी सनामें श्री जिनसेवा स्वरूपचंद मन प्यारी ॥ स० ॥ शां० ॥ ४ ॥ इति श्री शांतिनाथ स्तवनम् ॥ ॥ अथ सीमंधर स्तवन प्रारंभः ॥
॥ चित्तडुं संदेशो मोकले, महारा वाल्हा जीरे ॥ मनडा साधें रे नेह, जड़ने कहेजो महारा स्वामी जीरे ॥ सीमंधर नित्य हुं जपुं, महारा स्वामी जीरे ॥ जेम बापईयो रे मेह ॥ ज० ॥ म० ॥ १ ॥ दूर शांतर जइ रह्या ॥ म० ॥ मायां लगाडीने देव || ॥ ज० ॥ म० ॥ पांखड जो महारे होवे ॥ म० ॥ कमी खावुं ततखेव ॥ ज० ॥ म० ॥ २ ॥ प्रीत ते अधिकी हो गई ॥ म० ॥ हवे केम बांकी रे जाय ॥ ज० ॥ म० ॥ उत्तम जनशुं प्रीतडी ॥ म० ॥ क दीनी रे थाय ॥ ज० ॥ म० ॥ ३ ॥ निःस्नेही
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(३०३)
तुम सारिखा ॥म॥ मेंतो कोई न दीठ ॥जगाम॥ हडामां चाहे नहिं ॥ म ॥ मोढे बोले ते मीठ ॥ ज० ॥ म०॥४॥ आशा तो तुम नपरें ॥म० ॥ मेरु समान में कीध ॥ ज० ॥ म ॥ जो क्षण एक कृपा करो। म ॥ तो सदु होवे रे सिम ॥ ज० ॥ ॥ म० ॥ ५ ॥ जे अक्ष्य सुख शाश्वतां ॥ म ॥ जे सहु चाहे रे लोक ॥ ज० ॥ म ॥ नहिं आपो माग्युं थकुं॥ म ॥ जाणपणुं सदु फोक ॥ ज०॥ ॥ म ॥ ६ ॥ घणुं युं कहियें जागने ॥ म० ॥ देजो स्वामीरे सेव ॥ ज० ॥ म ॥ कवि ते रूप प सायथी॥ म॥दि कहे नित्यमेव ॥जम॥७॥
॥ अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ शांति जिणंद जजो सदा, नवियण बहु नावें ॥ जगत शिरोमणि जेहना, गुण ज्ञानी गावे ॥ शां० ॥ ॥॥१॥ दूषण काई न देखियें, मूरती अतिसारी॥ मोहनगारी मुज मनें, प्रनु लागे प्यारी ॥ शां० ॥ ॥ ॥ गर्नथकां पण गजपुरे, करुणा जिरो कीधी॥ जनम समय त्रण जगतमें,दील शाता दीधी॥ शां० ॥ ॥३॥ नाम जपे मुख निरखीने, होए खुशियाली॥ मंगलमाला मंदिरें, दिन दिन दीवाली ॥ शां॥ ४ ॥ समकितधारी समझीने, साचे दिल सेवे ॥ कहे ला वण्य कृपा करी, बदु दोलत घर देवे ॥ शां० ॥ ५ ॥
॥ अथ बालचंद बत्रीश। प्रारंजः ॥ ॥ कवित ॥ अजर अमर पद परमेसरकों ध्या
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(३०४) यें ॥ सकल पातिक हर विमल केवल धर, जाको वासो शिवपुर तासुं लय लायें ॥ नाद बिंद रूप रंग पाणि पाद नुत्तमंग आदि अंत मध्यनंग जाकू नाहिं पायें ॥ संघेण संताण जाण, नहिं कोई अनु मान, ताहोंको करत व्यान शिवपुर जायें ॥ जणे मुनि बालचंद सुनो हो भविक सुंद,अजर अमर पद परमेसरकों ध्यायें ॥ १ ॥ एक अरिहंत दे देव करि जानियें ॥ जाकों कोध नाहिं मूर पान माया लोन दूर, कर्म किये चकचूर जिने मोह नागारों ।। जाकों नमे इंद चंद मुरनर मुनि सुंद,अनंत गुणहिं जि वंद त्रिभुवन मानियें ॥ जाकों हे अनंत झाद देत हे मुगति दान, अहोनिश ताको ध्यान मनमांहि था नियें ॥ जणे मुनि ॥ एक ॥ २ ॥ तरन तारन गुरु तारे जव पार ए ॥ पांचे इंशी संवरत नव विधि ब्रह्मव्रत, धरत तजत नित कोधादिक चा र ए ॥ महाव्रत पंच बार पाले हे पंच याचा र,सुमति गूपति सार, माता जयकार ए एसे गुने गुरु होय खट काय पाले जोय, गौतम नप म सोय मुगति दातार ए ॥ जरो० ॥ तरनर ॥ ३ ॥ जग एक जीव दया धर्म सुख दाइए ।। धर्महिंतें इदि वृद्धि धर्महितें नवनिदि, धर्मतें सकल सिदि बदु जीव पाएं ॥ धर्महिंतें देव लोक धर्महिंतें सब थोक, यह लोक परलोक धर मही सखाएं ॥ ताकू नमे सुरवर नरवर बहू पर,
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(३०५) धर्महिंसुं जेण नर एक लय लाएं ॥ नणे० ॥ जग॥ ४ ॥ उठ उठ धर्म कर सोवे मूढ कहा रे ॥ उस्तर सागर तर कोइ तट पार कर, सोवे तिहां निं द जर फिरि आवे उहां रे ॥ संसार सागरमांहिं जाको
आदि अंत नांहिं, चमत चम, ताहिं पुदगल जिहां रे ॥ कांगे हे मानव नव नीत मूढ पायो अब, सोवे मति खीन लव चेत चेत इहां रे॥जणे ॥ नत ॥ ५ ॥ सुरतरु काट कर आक वावे तेह रे ॥ चिंता मणि पाय कर मूढ ताकुं परहर, काच ग्रहे रंगनर ता सों करे नहरे ॥ गजपति वेच कर सो तो मूढ लेत खर, पावे नहिं फेर फेर मुह परें खेह रे ॥ महामूढ होत सोयं काम नोग रक्त होय, हारे हे रतन जोय मनुष्यको देह रे ॥जणे ॥ सुरतरु० ॥ ६ ॥ उत्तम को संग कर नीच संग टानकें ॥ देखो हो सागर संग खारी होत महा गंग, निंब ज्युं चंदन संग चंदन ज्युं नालकें ॥ जातें खीर होत नीर ताकुं मिले जसु वीर, सोनी बेठ जात खीर निजगुण गालकें ॥ पात्र बिन तारे वार टाले रक्तको विकार, तुंब नेद जये चार निन्न संग चालकें॥ जो० ॥ उत्तमको॥ ७ ॥ घडी घडी मूढ तेरो आयुजल जायें ॥ कारमो कुटंब एह. काहेकुं करत नेह, हारे हे मनुष्यदेह फेर कहां पायें ॥ माय ताय घर बार बेटा बहू परीवार, आवे नहिं तोरी लार, जासों मन लायें ।। एक मेरी सी ख सुन धर्म कर एक मन मानव नव रतन काये
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(३०६ )
कों गमाइयें ॥ ज० ॥ घडी० ॥ ॥ जनमत कहा जयो करे क्युं न ग्यान रे ॥ उपनो तुं गर्नवास बसियो सवा नवमास नर्ककी उपम जास दुःख दिवाण रे ॥ नंठ कोडी सोइ होम चांपे कोइ रोम रोम, आठ गुणो प्रतिलोम गर्न दुःख जाए २ ॥ ब तुं जनम पाय संसारको लागो वाय, फेर रह्यो क्यों लुनाय तुं तो हे अभ्यान रे ॥ नणे० !! जन भत० ॥ ए ॥ जरा दूर जब लगे तब लगे जग रे || जरा जब श्राय लग लाल पमें मुख मग, दंत गये सबे जग मग मग पग रे ॥ जरा आइ गर बुद्धि रही नही कबु शुद्धि, रोग लगे वीध वीध जरा पडो धीग रे ॥ को कोई माने नाहिं दुःख घरे मनमांहि, यौ वनको दीस जाहि उठी धर्म नगरे ॥ ज० ॥ जरा ० ॥ १० ॥ यमको विसास नांहिं मूढ तुं संजाल रे ॥ काइ नू लो देख जाल चेते क्यों न प्रानी लाल, गहेगो पुर्ज न काल बालदी गोपाल रे || सरग पाताल जाय औषध नेषध खाय, करे बहूही उपाय तोही ग्रहे काल रे || घट घटत जात पल घडी दिनरात, या खो गलत जात करत जंजाल रे ॥ ज० ॥ यम० ॥ ११ ॥ संसार असार तामें सार एक धर्म रे ॥ सं सार प्रसार एह दीसत प्रजात जेह, सांज समे नां ह्रीं तेह कांहिं पड्यो नर्मरे । मेरो मेरो कांहिं करे सगो नांहिं कोई तेरे, जीवही एकीजो फिरे गुंजे नीज कर्म रे ॥ संसारसागर घोर जम्यो जीव गेर ठोर, कोइ
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(३०७ )
होत एक ठोर कबु नांहिं शर्म रे ॥ ज० ॥ सं सार० ॥ १२॥ श्रापसम राखो प्राणी हिंसा दूर टालकें ।। हिंसा हे अनर्थखान हिंसा तिहां पाप जान, जीव हिं सा बोड प्रान राग द्वेष टालकें ॥ हिंसाहीतें रोग शो ग खान पान हीन जोग, बहु दुःख सहे लोग हिंसा हितें नालकं ॥ सुनूम चक्रवरत देखो जमदग्नि पूत, सातमी नर पत्त हिंसा पंथ चालकें ॥ ज० ॥ आपसम० ॥ १३ ॥ खने दान खट काय जीवनकूं दीजीयें ॥ दान बडो धर्म टाले हे डुःकृत कर्म, ओर हे मिथ्यात नर्म काहेकुंज कीजियें ॥ शरणें रा ख्यो पारापति मेघरथ नरपति, सिंचानेकुं कहे व्रत्ति मेरो मांस लीजियें || दान दियो तिन्न चक्रवर्त्ति दुवो जिन्न, शांति नाथ दिन्नदिन्न त्रिभुवन पूजियें ॥ न ऐ० ॥ अ० ॥ १४ ॥ काहेकों बोलत हे तुं जूठ निराताल रे ॥ जूठ जांखे महापुष्ट पापहीकों करे पुष्ट, लोक सहू करे खष्ट तुंतो हे लबाड रे ॥ जूठा बोलो कहे लोय माने न वचन कोय, तिरियंच होत सोय आगम संजाल रे || देखो राजा वसुनोज मी सर वचन बोल, सातमी नरक घोर गयो करी काल रे ॥ ज० ॥ काहेकों ० ॥ १५ ॥ विमल वचन सत्य सदू सुखकार हे || विमल वचन जम्म सुखदायी सहु जन्न, जिनकी सुनत कन्न अमृतको धार हे || सिद्ध जे साधक नर ताकी विद्या सिद्ध कर, सुसेवित मुनि वर सत्य जग सार हे ॥ सत्यतें पावक जल महो
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(३००) दधि होत थल, उष्ट विष विषधर (अमृत अपार है) सबहींकी खार है। जरो ॥ विमल ॥ १६ ॥ चोरी करो को मन चोरीतें विनाश रे ।। चोरीतें से राजा दंम मार करे शन खर, गधे चाडे शिर मुंम फेरवत तास रे ॥ मार मार कहे जन आरत करत मन्न, राजा जाणे ततरिन दे. गलफास रे ॥ देखो हो अनं ग सेन चोरी बंध पायो जेन, कुटुंबसहित तेन कि यो नरकाबास २॥ जणे ॥ चरी ॥ १७ ॥ पायें अमरपद दत्तव्रत पालतें ॥ देखो ज्यं अंबड सीस संख्या वीस पांतरीन, जेठ मास एक दीस पंथ शिर चालतें ।। तृपा लागी परिवल पियो नांहिं गंग जन, व्रत पाठ्यो निरमल पणके टालतें ॥सत सय काल कर दुआ महर्दिक सुर.सुख लाने इनपर आ गम संजालतें ॥जणे० ॥ पायें ॥ १७ ॥ मम कर मम कर परनारी संग रे ।। परनारी देख कर कटाद नयन जर, आपद पावत नर दीप ज्युं पतंग रे ॥ खिमात होत सुख देखे नव सत उःख, करत वि पम विष मूरतिको नंग रे॥ फिट फिट करे लोय अज स कीरति होय, रमणि कारण जोय होत मोहोटा जंग रे॥जरो० ॥ मम कर० १.१॥ शील व्रत पालो जिम शिवपूर जायें ॥ शीलहीतें नमे देव सुरनर सारे सेव, शीलवंत नित्यमेव देवहीज्यूं ध्यायें ॥ देखो हो सुदरशन शील पाट्यो एक मन, शीलहीतें त्रिनु वन जस गुण गायें ॥ शीलतें संकट टले संपतकुं
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श्राय मिले, मांहे समकित जले तो कहा पाइयें ॥ ज० ॥ शीलवत० ॥ २० ॥ अति घणो परिग्रह 5: वहींको हेत रे || कोइ नर नरपति चलत परतगति, परिग्रह देख मति साथ नांहि लेत रे || देखो क्युं न ब्रह्मदत्त सयंनूम चक्रवर्त्त, सातमी नरक पत्त सूत्र साखी देत रे || खात पीत नाइ बंध पाप चडे तोरे खंध, कां मूढ होत अंध दिये कबु चेत रे ॥ नये ॥ प्रति० ॥ २१ ॥ संतोष करत जीव नित्य सुख पाइयें ॥ संतोष करत नर दुःखको सागर तर, परम यानं द घर ततक्षण पाइयें || देखो हो कपिल मुन संतोष करत जिन, पायो हे केवल धन धन्य गुण गाइयें ॥ जिनवर गणधर गणिवर मुनिवर, परम संतोष कर शिवपुर जाइयें || नणे० ॥ संतोष० ॥ २२ ॥ क्रोध हे अनर्थ मूल को दूर बोड रे ॥ क्रोधहीतें नरक जा क्रोध य वाघ सिंघ सर्प थाय, क्रोधहीतें नरम लाय नव कोडाकोड रे ॥ क्रोधहीतें प्रीत जाय क्रोधहीतें विष खाय, क्रोध बहू दुःखदाय जीव खाणे खोड रे ॥ क्रोधकी उपनी काल जू तुमें ततकाल, करी नाखो खाल माल पीठा मन मोड रे ॥ ज० ॥ क्रोध ० ॥२३॥ दमा करो नरपूर म म करो रीश रे ॥ दमाहींते वेर जाय डुषमन लागे पाय, त्रिभुवन जस थाय सही विश्वावीश रे || देखो गजसुकुमाल दमा करी क्रोध मार, संसारको पायो पार वंदो निश दीस रे ॥ राय परदेशी धन्न दमा करि एक मन्न, देवलोक पायो तिन्न
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(३१०) पूरी हे जगीश रे ॥नणे॥दमा ॥ २४ ॥ काहेकुं करत हे तुं मूढ अहंकार रे ॥ लक्ष्मी तो नांही थिर
आत जात फिर फिर, यौवननी जात खीर तुं तो हे गमार रे ॥ जाहिंको करत गर्व सोय बिगस जात स र्व, पावे नांहि नहि सर्व सो तो वार वार रे ॥ राव हीतें रंक होय रंकहीतें राव जोय, थिर रह्यो नांहिं कोय अथिर संसार रे ॥ नणे काहेकुं० ॥२५॥ म म कर मूढ माया कूडही कपट्ट रे ॥ मायातें नरक घोर मायाहीतें होत ढोर, मायाहीतं पावे जोर दुःख हींको थट्ट रे ॥ जो करत परोह मंमत कपट मह, आपकुं शोषण खोह कां होत जट्ट रे॥ हियांदसुं चेत नर मोहमाया परिहर,संसार सागर तर पायो हे तट्ट रे ॥जणे ॥ म म कर ॥ २६ ॥ सुख होत लोन वश करत करत रे ॥ लोनहितें रातदिन्न चिंतें मेलुं मेलुं धन्न,कुःख होत लोन मन धरत धरत रे ॥ जोरे धन्न रल रल आयु घटे पल पल, जात ज्युं अं जल जल करत करत रे ॥ सुनूम प्रमुख नूप करत जे दोर धूप, बोड गये लोज कूप जरत जरत रे॥ जणे ॥ सुख होत ॥ २७ ॥ काहेकुं करत लोन देत क्युं न दान रे ॥ दान शिव सुखदाय दानथें दा रिझ जाय, घरें नवनिधि थाय माने राय रान रे ॥ दान देवो चित्त लाय दानें धन वृद्धि थाय, जेसें वा डी कूप पाय होत वृद्धिमान रे ॥ देखो हो सुमुख जिन प्रतिलान्यो महामुन, कुमर सुबाहू तिन रू
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पको निधान रें॥जणे॥काहेकुं० ॥ २७ ॥ बडो व्रत व्रतमांहे शीलवत जान रे ॥ सागर आगर मां हिं स्वयंच उदधि मांहि, वडो दान दान मांहि अ जय ज्युं दान रे ॥ चंद ग्रहगणमांहि, ब्रह्मलोक कल्प मांहि, बडो झान झान मांहि केवल ज्युं ज्ञान रे ॥ अरिहंत मुनि मांहे मनोरम गिरिमांहे, बडो ध्यान ध्यानमांहे सुकल ज्युं ध्यान रे ॥ नणे० ॥ बडो० ॥२ए ॥ नवकोटि कृतकर्म तपहीतें टालियें ॥ तपतें वांडित फल होत जीव निरमल, तप रूप दा वानल कर्म वन बालियें ॥ देखो धनो अणगार उक्कर तपको कार बोडकें बतीस नार जिनव्रत पालियें ॥ सागर तेत्रीश वर दूळ अणुत्तर सुर, जाके गुणरूप जल आतम पखालियें ॥ ज०॥नवकोटि॥३०॥ नावहीतें होत सिम नावहीं प्रधान रे ॥ बहू विधे व्रत लीध तप कीध दान दीध, नाव विना नांहिं सि ६ होत फल हान रे ।। सुन नाव नावे जेह नव निधि तरे तेह, पायो ज्युं मुगति गेह जरत राजान रे ॥ मरुदेवी मात धन उक्करह तप बिन, शिव पद पायो जिन ध्याई गुन ध्यान रे ॥ नणे ॥ नावही ॥३१॥धर्म हे मंगल मूल धर्महीकुं सेव रे ॥ धर्म हे कलप वृद देखो जातें परतद, जोगवेहे लोक सद सौख्य नित्यमेव रे ॥ धर्मके उत्तम फल जाति कुल रूप बल, विकट संकट टल जाते ततखेव रे ॥ धर्महीं पुष्कृत दहे इंशादिक पद लहे, धर्मे शिव सुख
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(३१३) कहे अरिहंत देवरे ॥ ॥धर्म ॥३॥ महानंद सुख कंद रूपचंद जानियें ॥ श्रीयरूपजीवगणि कुं अर श्रीमल्न मुनि, रतनसीस जस धनी त्रिनुवन मानियें ॥ विमल शासन जास मुनि श्रीय गंगदास, हस्त दीक्षित तास बत्रिशी बरखानियें ॥ बाण वसु रस चंद (१६७५) दीवाली मंगल वंद, अहम्मदावाद इंद रंग मन बानियें ॥ नणे मुनि बालचंद सुनो हो नविक वृंद, महानंद सुखकंद रूपचंद जानियें ॥३३॥ इति श्री बालचंद बशी संपूर्णा ॥
॥ अथ वीर जिन स्तवनं ॥ ॥ विमलाचल वेगें वधावो ॥ ए देशी ॥ ॥चनमासी पारपुं यावे. करि वीनति निज घर जावे ॥ प्रिया पुत्रने वात जणावे, पटकूल करी पथ रावे रे ॥ महावीर प्रनु घरें आवे जीरण शेठजी ना वना नावे रे ॥ महा० ॥ १ ॥ ए आंकमी ॥ उनी शेरीयें जल बटकावे, जाई केतकी फूल बिबावे ॥ निजघर तोरण बंधावे, मेवा मिठाइ थाल नरावे रे ॥ महा० ॥ २ ॥अरिहाने दानज दीजें, देतां जे देखीन रीॐ ॥ षटमासी रोग हरीजें, सीके दायक नव त्रीजे रे ॥ महा० ॥ ३ ॥ जिनवरनी सनमुख जावं, मुफ मंदिरीयें पधरावू ॥ पारगुं नली जातें क रावं, युगतें जिनपूजा रचावू रे ॥ महा० ॥ ४ ॥ पनी प्रजुने वोलावा जश्गुं, कर जोडीने सनमुख रहि गुं॥ नमी वंदीने पावन था, विरति अति रंगें व
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(३१३) हीयुं रे ॥ महा० ॥ ५॥ दया दान दमा शील धर झुं, उपदेश सऊनने करयुं ॥ सत्यज्ञानदिशा अनु सरगुं, अनुकंपा लक्षण वरयुं रे ॥ महा० ॥ ६ ॥ एम जीरण शेठ वदंता,परिणामनी धारें चढंता॥श्रा वकनी सीमें परंता, देवउँनि नाद सुणंता रे ॥ महा० ॥ ॥ करी आयु पूरण शुननावें, सुरलोकें अच्युतें जावे ॥शाता वेदनी सुख पावे, गुन वीर व चन रस गावे रे ॥ महा० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ रुपनजिनस्तवनं ॥ ॥ जयो जयो नायक जग गुरु रे, आदीसर जिन राय ॥ तुज मुख देखी साहेबा, मुफ आनंद अंग न माय ॥ षनदेव तुं मोरो महाराज, ताहरु द शन दीतुं में आज, प्रनु मुफ सीधां वंबित काज ॥ ३० ॥ १.॥ आंखडी कमलनी पांखडी रे, जाणीयें अमोरसकंद ॥ दिन दिन मुखडं दीपतुं जाणे, न यन चकोरा चंद ॥ ३० ॥ २ ॥ मूरति जिनजीनी मोहनी रे, साची मोहन वेल ॥ मनना मनोरथ पू रती जाणे, कल्पतरूनी वेल ॥ २० ॥३॥ एकण जीने ताहेरा रे, गुण कहेतां न कहेवाय ॥ जिम गंगा रज कण तणी कहो, केणी परें संख्या थाय ॥ ३० ॥ ४ ॥ शेजा गिरिनो राजियो रे, नानिराया कुल चंद ॥ केसर विमल एम वीनवे प्रनु, यो दर्शन सु खकंद ॥ २० ॥ ५ ॥ इति षनजिन स्तवनं ॥
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(३१४) ॥ अथ सीमंधर जिन स्तवनं ॥ ॥ धन धन खेत्र माहाविदेह जी, धन्य पुंमरिगि णी गाम ॥ धन्य तिहांनां मानवी जी, नित नठी करे रे प्रणाम ॥ सीमंधर स्वामी कश्ये रे ढुं महाविदेह
आवीश, जयवंता जिनवर कश्य रे हुँ तुमने वांदिश ॥१॥चांदलीया संदेशडोजी, केहेजो सीमंधर स्वाम॥ जरत देवनां मानवी जी, नित उठी करे रे प्रणा म ॥ सी० ॥ २ ॥ समवसरण देवें रच्युं तिहां, चो शठ नरेश ॥ सोना तणे सिंहासन बेग, चामर बत्र धरेश ॥ सी० ॥ ३ ॥ इंशणी काढे गहूंली जी, मोतीना चोक परेश ॥ रती रती लीये खूबणां जी, जिनवर दीये उपदेश ॥ सी ॥ ४ ॥ एहवे समे में सांजल्युं जी, हवे करवां पञ्चरकाण ॥ पोथी ग्वणी तिहां करो जी, अमृत वाणी वरखाण ॥ सी० ॥५॥ रायने वाहालांघोडला जी,वेपारीने वाहाला दाम॥ अमने वाहाला सीमंधर स्वामी, जिम साताने श्रीरा म ॥ सी० ॥ ६ ॥ नही मागुं प्रनु राज दि जी, नही मागु गरथ नंमार ॥ ढुं मागं प्रनु एटर्बु जी, तुम पासें अवतार ॥ सी० ॥ ७ ॥ दैव न दोधी पांख डी जी, केम करी आईं रे हजूर ॥ मुजरो माहारो मानजो जी, प्रह गमते सूर ॥ सी० ॥ ७ ॥ समय सुंदरनी वीनति जी, मानजो वारंवार ॥ बे कर जोडी वोनवू जी, वीनतडी अवधार ॥ सी० ॥ ए॥ इति ।।
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(३१५)
॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ।। प्रनाति रागमां ॥ ॥ वहाणलां वाह्यां रे प्रनु, वहाणलां वाह्यां॥ जू ने जागो रे प्रनु, वहाणलां वाह्यां ॥ माता वामा देवी एम, बोले रे वाणी ॥ तमारूं मुख जोवा आ व्यां, इं इंझणी॥ वहाणलां ॥१॥तान मान पंच शब्द, वाजां रे वाजे ॥ गीत गायन थातां प्रनु, अंबर गाजे॥ व ॥२॥ देव गाये ने ारें नना, बिरुद बोले ॥ कोई अमारा प्रनुजीने, नावे रे तोलें। व० ॥३॥ माताजीनां वचन सुणी, पास कुमर जा ग्या ॥ नविक जीवनां वंडित फव्यां, मुहनां मांग्यां। व०॥४॥ प्रनु मुख जोयाना रंग, कह्या न जाये ॥ देखा रे नयणे उलट, अंग न माये ॥व० ॥ ॥ ५॥ नित्यलान कहे स्वामी, अंतरजामी॥जले रे में नेट्यो आज, गोडीचों स्वामी ॥ व ॥प्रनु० ॥ ६ ॥
.. ॥ अथ वीर जिन स्तवनं ॥ ॥वीरजिणेसर साहिब मेरा, पार न लडं तेरा॥म हेर करी टालो महाराजजी,जनम मरणना फेरा हो। जिनजी अब ढुं शरणें बायो ॥ १ ॥ गर्नावास तणां उःख मोहोटां, गंधे मस्तक रहियो ॥ मल मूतर मांहे लपटाणो, एहवो कुःख में सहियो हो ॥ जि० ॥ ॥२॥ नरक निगोदमां उपनो ने चवियो, सूक्ष्म बादर थश्यो॥ वेहेंचाणो सुश्ने अपनागें, मान तिहां किहां रहियो हो ॥ जि० ॥ ३॥ नरकतणी वेदना अति न नसी, सही ते जीवें बद॥ परमाधामीने वश पडी
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(११६) यो, ते जाणो तमें सद हो ॥ जि॥४॥तिर्यच तणा नव कीधा घरोरा, विवेक नहींय लगार ॥ निशि दिननो व्यवहार न जाण्यो, केम उतराये पार हो ॥ जि० ॥ ५ ॥ देव तणी गति पुण्यें दुं पाम्यो, विष यारसमां नीनो॥व्रत पञ्चरकाण उदय नवि अाव्यां, तान मानमांहे तीनो हो ॥ जि ॥ ६॥ मनुष्य ज नम ने धर्मसामयी, पाम्यो यूँ बहु पुण्यं ॥ राग ष मांहे बहु नलियो, न टली ममता बुद्धि हो ॥ जिन ॥७॥ एक कंचन ने बीजी कामिनी, तेहा मनडुं बाधुं ॥ तेना जोग लेवाने हुं शूरो, केम करी जिनधर्म साधु हो ॥ जि ॥6॥ मननी झोड कीधी अति जाजी, ढुंबनं कोक जड जेहवो ॥ कलि काले कल्प में जन्म गमायो, पुनरपि पुनरपि तेहवो हो। जिन ॥ ए॥ गुरु उपदेशमां दुं नर्थ। नीनो, नावि स दहणा स्वामी ॥ हवे वडाइ जोश्यें तमारी, खिजम तमांहि ने खामी हो ॥ जि॥१०॥ चार गतिमा हे रड वडीयो, तोए न सीधां काज ॥ झपन कहे ता रो सेवकने, बांहे ग्रह्यानी लाज हो ॥ जि०॥११॥
॥अथ पार्श्वजिन प्रजाति स्तवनं ।। ॥ मेरे ए प्रनु चाश्य, निन उठी दरिसण पानं ॥ चरणकमल सेवा करूं, चरणे चित्त लायं ॥ मेरे ए प्र० ॥१॥ मन पंकजके महेलमें, प्रनु पास बेग लं ॥ निपट नजिक में दुइ रहूं, मेरो जीव रमाउं ॥ ॥ मे ॥ २॥ अंतरजामी एक तुं, अंतरिक गुण
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(३१७) गावं ।। आनंद कहे प्रनु पासजी, कबु र न चाहुँ। ( में तो अवर न ध्यावं)॥ मे ॥३॥ इति ॥
॥अथ सिहाचलस्तवनं ॥ ॥ए तो सकल तीरथनो राय,मोहोटो गिरिवर कहे वाय ॥ एहनी जात्रा पुण्ये थाय ॥ मनोहर मित्र ए गिरि सेवो, उनियामां देव नही एवो । म ॥ ए यांकणी॥१॥ सुर नर विद्याधर यावे, एतो जात्रा करे मन नावें ॥ हारे एहनुं समकित निरमल थावे ॥ मम् ॥ २॥ सोनाने रूपानां फूल, मोती मागक रत्न अमूल ॥ गिरि वधावो बदु मूल ॥ म ॥३॥ केसर सूरखड ने कपूर, गिरि पूजे जगमते सूर ॥ तेनां कर्म थाये चकचूर ॥म० ॥४॥ सूरज कुंममा जे नाये, नवोनवनां पातक जाये ॥ एनी देही कनक मय थाये. ॥म० ॥५॥ मेंतो पूज्या श्रीषन जि वंदा, मुफ हाडे अतिही आणंदा ।। मुख सोहे पून मकेरो चंदा ॥ म० ॥ ६॥ मन जाणीने लान अ नंत, आव्या त्रेवीशे जगवंत ॥ कीधो सकल कर्मनो अंत ॥ म ॥७॥ शेर्बुजो जे नयणें निहाले, नर क तिर्यच गति निवारे ॥ तेनो शिवरमणी कर काले ॥ म० ॥ ७॥ संघवी ताराचंदनो संघ, नूषणदास मच्या मनरंग ॥ एतो जात्रा करे सर्व संघ ॥म॥ ॥॥ श्रीविधिपद गजपति राया, उदयसागर सूरि सुपसाया॥ शिष्य तिलकचंदें गुण गाया॥ म० ॥१०॥
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(३१७) ॥ पार्वजिन स्तवन कही नाषामां ॥ ॥ सुघड पास प्रनु रे, दरिसण वेलडोनी दिऊ ॥ दरिसण तोजो लाख टकनजो, लाख टकनजो लाख ट कनजो रे, कामगारा तोजा नेण ॥ सु० ॥ सांही असांजो तुं अंश्ये तुं अंश्ये तुं अंश्ये रे, मिठडा ल गेंता तोजा वेण ॥ सु०॥ द॥१॥ अंघाथकी असी बाविया आविया आविया रे, सफल जनम थेयो अऊ ॥सु० ॥द ॥ मेहेर कज जजी मुंमथे मुंमथे मुंमथे रे, बांहे ग्रहेजी ला ॥ सु०॥ द० ॥ ॥ २ ॥ दिल लगो मुंजो तोमथे तोमथे तोमथे रे, थे से वेंधो कीह ॥ सु० ॥ द० ॥ सजोदी तोके सं नारीयां संनारीयां संजारीयां रे, मीह बापीयडा जीह ॥सु०॥ द० ॥३॥ जगमे देव दठा जजा दग जजा दग जजा रे, तेंमें तुं वमो पीर ॥सुाद ॥ असी वामाजीजे नंदके नंदके नंदके रे, दरिसणे थे यासुं खलो खीर ॥ सु० ॥ ॥४॥ घोरजी वं का तोजे नामथा नामथा नामथा रे, मुगतीजो दा तार ॥ सु० ॥ द० ॥ थरजो गकुर नेटेयो नेटेयो नेटेयो रे, नित्य लानजो आधार ॥ सु॥द ॥५॥
॥अथ शीतलजिनस्तवनं ॥ ॥ शीतल जिनवर सोनलो रे, गुणनिधि गरीब निवाज ॥ देखी दरीसए ताहेरुं रे, सफल थयो दि न आज ॥ शी॥१॥ सूरत ताहारी सोहामणी रे, लाल अमूलक नंग ॥ जाणीयें कल्पाम सारखो रे,
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(३१ए) कीधी प्रीति अनंग ॥ शी॥२॥ हेजाले नयरों क र। रे, मलजो मुझने स्वाम ॥ अंतरजामीबो माह रा रे, नवकुःख नंजण ठाम ॥ शी० ॥ ३ ॥ साचो साजन तुं मिट्यो रे, प्रीति कीधी परमाण ॥ हियडे नीतर तुं वस्यो रे, नावें जाए म जाण ॥ शी० ॥ ॥ ४ ॥ धरणीतलमां जोवतां रे, अवर मिट्या मुक लाख ॥ पण ते दुं नहीं आदरुं रे, श्रीपरमेसर साख ॥ शी० ॥ ५॥ सीताने मन रामजी रे, राधाने मन कान ॥ नमरो मालति फूलडे रे, तिम प्रनुगुं मुफ तान ॥ शी० ॥ ६ ॥ रोहिणीने मन चंदलो रे, जिम मोरामन मेह ॥ इंशणीने मन दलो रे,तिम प्र जुगुं मुऊं नेह ॥ शी० ॥ ७॥ अमने तमोरो आ शरो रे, नहि कोई बीजाणुं वाद ॥ साचो सेवक जा
शो रे, तो सवि पूरशो लाम ॥ शी० ॥ ७ ॥ अ चलगबने..देहरे रे, मुदरा नगर मजार ॥ महिमा वंत मया करो रे, जवख नंजणहार ॥ शी० ॥ ॥ ए॥ सानिधकारी बो साहेबा रे, प्रणम्यां पातक जाय ॥ सहज सुंदर गुरुरायनो रे, नित्य लान प्रनु गुण गाय ॥ शी० ॥ १० ॥ इति ॥
॥अथ प्रजातीरागमां स्तवन ॥ ॥प्रनातें उठीने माता मुखडं जोवे ॥ ए देशी ।।
॥ावी रूडीजगति में, पहेला न जाणी॥ पहे लां न जागी रे प्रनु, पहेला न जाणी ॥ संसारनी मायामां में, वलोव्युं पाणी ॥आ॥ ए अांकणी ॥
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(३२०) कल्पतरुनां फल लावीने, जे जिनवर पूजे ॥ काल अनादि कर्म ते संचित, सत्ताथी धूजे॥आ० ॥ १ ॥ स्थावर तिरि निरयालय उग, इंगविगला लीजें ॥ सा धारण नवमे गुणगणे, धुरनागें बीजे॥आ॥२॥ केवल पामीने शिवगति पामी, शैलेशी टाणे ॥ चरम समय दोयमांहे स्वामी, अंतिम गुणगणे ॥ ॥ आ० ॥३॥बाकी नाम करमनी पयडी, सघली तिहां जावे ॥ अजर अमर निकलंक स्वरूपें, निःक ा थावे ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ जे सिकेरी पडिमा पूजे, ते सिमय होवे ॥ नाई छोई निरमल चितें, आरी सो जोवे ॥ आ० ॥५॥ कर्मसूमण तप केरी पूजा, फल ते नर पावे ॥ श्रीशुन वीर स्वरूप विलोकी, शिववतु घर आवे ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अथ पार्शजिनस्तवनं ॥ ॥ पास जिणंद सदाशिव गामी, वालोजी अंतर जामी रे ॥ जगजीवन जिनजी ॥ मुहूरत ताहारी मो हनगारी, नवियणने हितकारी रे ॥ ज० ॥ १ ॥ वामा रे नंदन सांजलो स्वामी, अरज करुं शिर ना मी रे॥ ज० ॥ देव घणा में तो नयणे रे दीठा, तुमें घणु लागो बो मीठा रे ।। ज० ॥॥ में तो मनमां तुंहीज ध्यायो, रत्नचिंतामणि पायो रे ॥ ज० ॥रा त दिवस मुफ मनमांहे वसियो, हुंडं तुम गुण र सियो रे ॥ ज०॥३॥ महेर करीने साहेबा नजरें निहालो, तमें बो परम कपालो रे ॥ ज० ॥ गोडी रे
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(३१) गाममां तुंहीज सोहिये, सुर नरनां मन मोहियें रे॥ ज० ॥॥बे कर जोडीने प्रच पाये लागु, नित नि त दरिसण मागु रे ॥ ज० ॥ देव नही कोय ताहा रीतोलें, नितलान एणि परें बोले रे ॥ ज० ॥ ५ ॥
॥ अथ श्रीमहावीरजिनस्तवनं ॥ ॥ महावीर स्वामी मुगतें पोहोता, गौतम केवल झान रे ॥ धन दीवाली धन अमावास्या, वीरत| निर्वाण ॥ प्रनुमुख जोवाने, महारे दीवाली थई
आज ॥प्र० ॥ मोहि मोहि रे मीठडा लाल, जिन मुख जोवाने ॥१॥ ए आंकणी॥ चारित्र पाली निरम लुं ने, टाली विषय कषाय रे॥ एवा मुनिनें वांदीयें तो, तारे नंवपार ॥ प्र० ॥ म ॥ २ ॥ बाकुला वहो या वीरजी ने,तारी चंदनबाला रे ॥ केवल लहीने मु क्तं पोहोता, पाम्या नवनो पार ॥प्र० ॥ म० ॥३॥ एवा देवनें. वांदीयें, जे पंचम झानने धरता रे॥समो सरणे दर देशना, प्रनु तास्यां नर ने नार ॥ प्र० ॥ म० ॥४॥ चोवीशमो जिन जिनेसरु ने,मुक्ति तणो दातार रे ॥ कर जोडी कवियण श्म नणे, मारो नव नो फेरो टाल ॥ प्र० ॥ मम् ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ दानशीयलतप अने नाव- चोढालियुं प्रारंजः॥
॥दोहा॥ ॥ प्रथम जिणेसर पाय नमी, पामी सुगुरुप्रसा द॥ दान शियल तप नावना, बोलिश बदु संवा द॥ १ ॥ वीर जिणंद समोसस्या,राजगृही उद्यान ।।
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(३२२) समवसरण देवें रच्यु, बेग श्रीवईमान ॥ २ ॥ बेठी बारे परखदा, सुगवा जिनवर वाण ॥ दान कहे प्र नु ढुं वडो, मुझने प्रथम वरखाण ॥ ३ ॥ सांजलजो सदुको तुमें, कुण ने मुज समान ॥ अरिहंत दी दा अवसरें, आपे पहिलुं दान ॥४॥ प्रथम पहो र दातारनु, लीये सदु कोइ नाम ॥ दीधारी देउल च ढे, सीके वंबित काम ॥ ५॥ तीर्थकरने पारणे, कुण करशे मुफ होड ॥ वृष्टि करूं सोवन तणी, साडी बा रह कोड ॥ ६ ॥ढुं जग संघलुं वश करूं, मुज मोहो टी डे वात ॥ कुण कुए दानथकी तस्या, ते सुजो अवदात ॥ ७ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ लज़नानी देशी ॥ ॥ धन सारथवाह साधुने, दीधुं घृतदान ॥ ललना ॥ तीर्थकर पद में दीयुं, तिणे मुझने अनिमा न ॥ ललना ॥ १ ॥ दान कहे जग हुँ: वर्ल्ड, मुफ सरि नही कोय ॥ललना ॥ ऋदि समृद्धि सुख संप दा, दाने दोलत होय ॥ ललना ॥ दा० ॥२॥ सुमु ख नामें गाथापति, पडिलान्यो अणगार ॥ ललना॥ कुमर सुबाहु सुख लद्यु, तेतो मुफ उपगार ॥ लल ना ॥ दा० ॥ ३ ॥ पांचशे मुनिने पारj, देतो वो होरी आण ॥ ललना ॥ जरत थयो चक्रवर्ति जलो, ते पण मुफ फल जाण ॥ ललना ॥ दा० ॥ ४ ॥ मास खमणने पारणे, पडिलान्यो इषिराय ॥ लल ना ॥ शालिनइ सुख जोगवे, दान तणे सुपसाय ॥
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(३२३)
ललना ॥ दा ॥ ५॥ आप्या अडदना बाकला, उत्तम पात्र विशेष ॥ ललना ॥ मूलदेव राजा थयो, दानतणां फल देख ॥ ललना ॥ दा० ॥ ६ ॥प्रथम जिरोसर पारणे, श्री श्रेयांस कुमार ॥ ललना ॥ से लडीरस वोहोरा वियो, पाम्यो नवनो पार ललना॥ दाम् ॥ ७ ॥ चंदनबाला बाकुला, पडिलान्या महा वीर ॥ ललना ॥ पंचदिव्य प्रगट थयां, सुंदररूप शरीर ॥ ललना ॥ दा० ॥ ७ ॥ पूरव नव पारेवडुं, शरणे रारव्युं सूर ॥ जलना ॥ तीर्थकर चक्रवर्ति प गे, प्रगटयो पुण्यपमूर ॥ ललना ॥ दा० ॥ ५ ॥ गजनवें शशलो राखियो, करुणा कीधी सार ॥ लल ना ॥ श्रेणिकने घरे अवतस्यो, अंगज मेघ कुमार ॥ ललना ॥ दा० ॥ १० ॥ एम अनेक में उदया, कहे तां नावे पार ॥ ललना ॥ समयसुंदर प्रनु वीरजी, मुज पहेलो अधिकार ॥ ललना ॥ दा० ॥११॥
॥ दोहा ॥ ॥ शियल कहे सुण दान तुं, किस्यो करे अहंकार॥ आमंबर आते पहोर, याचकगुं व्यवहार ॥ १ ॥ अं तराय वलि ताहरे, नोग करम संसार ॥ जिनवर कर नीचा करे, तुऊने पडयो धिक्कार ॥ २ ॥ गर्व म कर रे दान तुं, मुफ पू सदु कोय ॥ चाकर चाले अागले, तो युं राजा होय ॥३॥ जिन मंदिर सोना तणुं, न निपावे कोय ॥ सोवन कोडी दान दिये, शियल समुं नहि कोय ॥॥ शियलें संकट सवि
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(३२४) टने, शियनें सुजस सोनाग ॥ शियलें सुर सानिध करे, शियल वडो वैराग ॥५॥ शियः सर्प न प्रानडे, शिया शीतल आग ॥ शीलें अरि करी केशरी, जय जाये सवि नाग ॥ ६ ॥ जनम मरगना नयथकी, में बोडाव्या अनेक ॥ नाम कहुँ हवे तेहनां, सान लजो सुविवेक ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ पास जिणंद जुहारीयें ॥ ए देशी॥ , ॥शियल कहे जग हुं वडो, मुफ वात सुगो अति मीठी रे॥ लालच लावे लोकने, में दान तणी वात दी ती रे ॥ शि॥१॥ कलह कारण जग जाणीयें, वली विरति नही पण कां रे ॥ ते नारद में सीऊव्यो, मुफ जुन ए अधिकाइ रे ॥ शि ॥ २ ॥ बांहे पहेया बेर खा, शंखराजायें दूषण दीधो रे ॥ काप्यो हाथ क लावती, ते में नवपन्नव कीधो रे ॥ शि॥३॥ रावण घर सीता रही, तो रामचंई घर याणी रे ॥ सीतार्नु कलंक उतारीयुं, में पावक कीधो पाणी रे ॥ शि० ॥ ॥४॥ चंपा बार उघाडवा, वली चारणीये काढीयु नीरो रे ॥ सतीय सुनश जस थयो, में तस कीधी जीरो रे ॥ शि॥ ५॥ राजा मारण मांमोयो, राणी अनयायें दूषण दाख्यो रे ॥ शूली सिंहासण में की यो, में शेत सुदर्शन राख्यो रे ॥ शि॥ ६ ॥ शील सन्नाह मंत्रीसरें, आवतां अरिदल थंन्यो रे ॥ तिहां पण सानिध में करी, वली धरम कारज आरंन्यो रे ॥ शि० ॥ ७ ॥ पहेरण चीर प्रगट कीयां, में अ
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(३२५) होत्तरशो वारो रे ॥ पांझवनारीपदी, में राखी मा म उदारो रे ॥ शि० ॥ ७ ॥ ब्राह्मी चंदनबालिका, व ली शीलवंती दमयंती रे ॥ चेडानी साते सुता, राजि मती सुंदरी कुंती रे ॥ शि ॥ ए ॥ इत्यादिक में न इयां, नर नारीनां वृंदो रे ॥ समयसुंदर प्रनु वीर जी, पहेलो मुफ आणंदो रे ॥ शि ॥ १०॥
॥दोहा॥ ॥ तप बोल्युं त्रटकी करी, दानने तुं अवहील ॥ पण मुफ बागल तुं किस्युं, सोनल रे तुं शील ॥१॥ सरसां नोजन तें तज्यां, न गमे मीठा नाद ॥ देह तणी शोना तजी, तुऊमां किस्यो सवाद ॥२॥ नारीयकी मरतो रहे, कायर किश्युं वखाण ॥ कू ड कपट बहु केलवी, जिम तिम राखे प्राण ॥३॥ को विरलो तुफ आदरे, बंमी सदु संसार ॥ आप ए क तुं नांजतो, बीजा जांजे चार ॥ ४ ॥ करम निका चित तोडवा, जांजु जव जय जीम ॥ अरिहंत मुक ने आदरे, वरस मासी सीम ॥ ५ ॥ रुचक नंदी सर ऊपरें, मुफ लब्धं मुनि जाय ॥ चैत्य जुहारे शाश्वतां, आनंद अंग न माय ॥६॥ मोहोटा जोय ण लाखना, लघु कंथु आकार ॥ हय गय रथ पायक तणां, रूप करे अगार ॥ ७ ॥ मुफ कर फरसे न पशमे, कुष्टादिकना रोग ॥ लब्धि अविश ऊपजे, उत्तम तप संजोग ॥७॥ जे में तास्या ते कहूं, सु
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(३२६) गजो मन नन्नास ॥ चमत्कार चित पामशो, देशो मुफ शाबास ॥ए॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ नणदलनी देशी॥ ॥ दृढप्रहार अति पापीयो, हत्या कीधी चार हो। सुंदर ॥ ते पण तिण नव नदस्यो, मूक्यो मुक्ति म कार हो ॥ सुंदर ॥ १ ॥ तप सरि जग को नही, तप करे कर्मनुं सूड हो ॥ सुंदर ।। तप करवू अति दोहिनु, तपमां नही को कूड हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ ॥२॥ सात माणस नित मारतो, करतो पाप अघो र हो ॥ सुंदर ॥ अर्जुनमाली में नस्यो, जेद्यां कर्म कठोर हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥३॥ नंदीपेणने में कि यो, स्त्रीवघ्नन वसुदेव हो ॥ सुंदर ॥ बलुतेर सहस अंतेनरी, सुख जोगवे नित्यमेव हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ ॥ ४ ॥ रूप कुरूप कालो घणो, हरिकेशी चंमाल हो ॥ सुंदर ॥ सुर नर कोडी सेवा करे, ते में कीधी चाल हो। सुंदर ।। तप०॥५॥ विष्णुकुमर लब्धे कीयुं, साख जोयगनुं रूप हो ॥ सुंदर ॥ श्रीसंघ केरे का रणे, ए मुफ शक्ति अनूप हो ॥ सुंदर ॥ तप ॥ ६ ॥ अष्टापद गौतम चढ्या, वांद्या जिन चोवीश हो ॥ सुंदर ॥ तापस पण प्रति बजव्या, तेणें मुफ धिक जगीश हो ॥ सुंदर ॥ तप॥ ७ ॥ चौद सह स अणगारमा, श्रीधनु अगार हो ॥ सुंदर ॥ वीर जिणंद वखाणीयो, ए पण मुफ अधिकार हो । सुंद र ॥ तप० ॥ ७ ॥ कृष्ण नरेसर ागलें, उक्कर कार
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(३७) कहेय हो ॥ सुंदर ॥ ढंढण नेमी प्रशंसीयो, मुफ म हिमा सवि तेह हो ॥ सुंदर ॥ तप ॥ए ॥ नंदीषण वोहोरण गयो, गणिकायें कीधी हास हो ॥ सुंदर ॥ वृष्टि करी सोवन तणी, में तसु पूरी आस हो । सुंदर ॥ तप० ॥ १० ॥ एम बलन प्रमुख बडु, तास्या तपसी जीव हो। सुंदर ।। समयसुंदर प्रनु वीर जीअपहेलो मुफ प्रस्ताव हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥११॥
॥दोहा॥ ॥नाव कहे तप तुं किश्युं, लेडयुं करे कषाय ॥ पूर्व कोडि जो तप तपे, दणमा खेरु थाय ॥ १ ॥ खंधक आचारज प्रतें, तें बाल्यो सविं देश ॥ अशुन निया| तुं करे, दमा नही लव लेश ॥ २॥ पा यन ऋषि दूहव्या, सांब प्रद्युम्ननेसाहि ॥ ते तप क्रोध करी तिहां, दीधो द्वारिका दाह ॥३॥ दान शियल त प सांजलो, म करो फूठ गुमान ॥ लोक सदुको साख दे, धर्मे नावं प्रधान ॥४॥ आप नपुंसक बोत्रणे, ये व्याकरण ते साख ॥ काम सरे नहि कोर्नु, नाव नणे मुं पाख ॥५॥ रस विण कनक न नीपजे,जल वि । तरुअर वृद्धि॥ रसवति रस नहि लवण विण, तिम मुंज विण नहि सिदि॥६॥ मंत्र जंत्र मणि औ षधि, देव धर्म गुरु सेव ॥ नाव विना ते सवि वृथा, नाव फले नितमेव ॥ ७ ॥ दान शियत तप जे तुमें, निज निज कह्यां वृतंत ॥ तिहां जो नाव न ढुंत तो, को सिदि नवि दंत ॥ ७ ॥ नाव कहे में एकले,
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(३२) तास्यां बदु नर नार ॥ सावधान थइ सांजलो, नाम कढुं निर्धार ॥ ए॥ ॥ ढाल चोथी॥ कपूर होये अति कजलो रे॥ए देशी॥
॥ काननमांहे काउस्सग्ग रह्यो रे, प्रश्नचंद ऋषि राय ॥ते में कीधो केवली रे, ततहण करम खपा य॥१॥सोनागी सुंदर, नाव वडो संसार ॥ एतो बीजो मुफ परिवार ॥ सो० ॥ दानादिक विण एकलारे, पोहोंचाहुं नवपार ॥ सो० ॥२॥ए अांकणी ॥ वंश नपर चढी खेलतो रे, एला पुत्र अपार ॥ केवल झानी में कीयो रे, प्रतिबोध्यो परिवार ॥ सो॥३॥ नख तृषा खमे अति घणी रे, करतो क्रूर थाहार ॥ केवल महिमा सुर करे रे, कूरगडू अगार ॥ सो०॥४॥सानथीलोन वाधे घणो रे, आण्यो म न वैराग ॥ कपिल थयो मुनि केवली रे, ते ए मुझने सोनाग ॥ सो० ॥ ५॥ अनिका सुत गबनो धणी रे, दीगजंघा बलि जाण ॥ कीधो अंतगड केवली रे, गंगाजल गुणखाण ॥ सो० ॥ ६ ॥ पन्नरशें ताप स नणी रे, दीधी गौतमें दिरक ॥ ततहण कीधा केवली रे, जो मुफ मानी शीख ॥ सो० ॥ ७॥ पा लक पापीयें पीलिया रे, खंधक सरिना शिष्य ॥ ज नम मरणथी बोडव्या रे, आपे मुफ आशीष ॥ सो० ॥ ॥ चंइ रुने चालतां रे, दीधो दंम प्रहार ॥ नव दीक्षित थयो केवली रे, ते गुरु पण तिणि वार । सो० ॥ ए॥ धन रथकारक साधुने रे, पडिलान्यो
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(३२) नत्नास ॥ मृगलो नावना जावतो रे, पोहोतो स्वर्ग आवास ॥ सो० ॥ १०॥ निज अपराध खमावती रे, मूक्यो मनथी मान ॥ मृगावतीने में दीयुं रे, नि मैल केवल झान ॥ सो० ॥ ११ ॥ मरुदेवी गज ऊपरें रे, देखी पुत्रनीति ॥ मुझने मनमांहे ध स्यो रे, ततदण पामी सिदि॥ सो० ॥ १२ ॥ वीर वंदण चाल्यो मारगें रे, चांप्यो चपल तुरंग ॥ दरनामें देवता रे, तेह थयो मुफ संग ॥ सो ॥१३॥ प्रनुपाय पूजन नीसरी रे, उर्गला नामें नार॥ कालधर्म वचमां करी रे, पोहोती स्वर्ग मकार ॥ सो ॥ १४ ॥ कायानी शोना कारमी रे, रूप किस्यो अनि मान॥जरत आरीसा नुवनमां रे, पाम्यो केवल ज्ञान ॥ सो ॥ १५॥ आषाढनूति कलानिलो रे, प्रगट्यो जरत सरूप ॥ नाटक करतां पामीयो रे,केवलज्ञान अ नूप ॥सो॥१६॥ दीक्षा दिन कानस्सग्ग रह्यो रे, ग जसुकमार मशाण ॥ सोमल शीश प्रजालियो रे, सिदि गयो शुन जाण ॥ सो० ॥ १७ ॥ गुणसागर थयो के वली रे, सांजली टथिवी चंद॥पोतें केवल पामीयो रे, सेव करे सुर इंद ॥ सो० ॥१७ ॥ एम अनेक में 35 स्खा रे, मूक्या शिवपुर वास ॥समयसुंदर प्रनु वीरजी रे, मुझने प्रथम प्रकाश ॥ सो० ॥ १ ॥
॥दोहा॥ वीर कहे तुमे सांजलो, दान शियल तप जाव ॥ निंदा ने अति पापिणी,धर्म कर्म प्रस्ताव ॥१॥ पर निंदा करतां थकां, पापें पिंम नराय ॥ वेढ राढ
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(३३०) वाधे घणी, उर्गति प्राणी जाय ॥ ३ ॥ निंदक सरखो पापियो, नूंमो को न दीव ॥ वलि चंमालसमो कह्यो, निंदक मूख अदित॥३॥आप प्रशंसा आपणी, करतो इंद नरिंद ॥ लघुता पामे लोकमां, नासे निजगुण वृंद ॥ ४ ॥ को कहेनी म करो तुमें, निंदा ने अहं कार ॥ आप आपणे ठामें रहो, सदुको जलो सं सार ॥ ५॥ तो पण अधिको नाव , एकाकी समर ब ॥ दान शियल तपत्रणे जलां, पण नाव विना अकयब ॥ ६ ॥ अंजन अांखें आंजतां, अधिको आ गी रेख ॥ रजमांही तज काढतां,अधिको नाव विशे प॥ ७ ॥ जगवंत हत नंजण नणी, चारे सरिख गणंत ॥ चारे करी मुख आपणां, चनविध धर्म जवंत ॥ ७ ॥
॥ ढाल पांचमी॥ वीरजिणेसर एम नणे रे, बेनी परखदा बार ॥ धर्म करो तुमें प्राणीया. रे, जिम पामो नव पार रे ॥ धर्म हैये धरो॥ १ ॥ धर्मना चार प्रकारो रे, नवियण सांजलो ॥ धर्म मुक्तिसुख कारो रे ॥धर्माए आंकणी॥ धर्म थकी धन संपजे रे, धर्मथकी सुख होय ॥ धर्मथकी आरति टले रे, धर्म समो नही कोय रे ॥ धर्म० ॥ ॥ उर्गति पडतां प्राणीया रे, राखे श्री जिनधर्म ॥ कुटुंब सदको कारि मुं रे, मत नूलो नवि नर्म रे ॥ धर्म ॥३॥ जीव जिके सुखीया दया रे, वली होशे जे जेह ।। ते जिन वरना धर्मथी रे, मत कोइ करो संदेह रे ॥ धर्म ॥
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( ३३१ )
॥ ४ ॥ सोलरों बासइसमे रे, सांगानेर मजार ॥ पद्म प्रभुं सुपसाउने रे, एह नएयो अधिकार रे ॥ धर्म० ॥ ॥ ५॥ सोहम साभी परंपरा रे, खरतर गड कुलचंद ॥ युगप्रधान जग परगडो रे, श्री जिनचंद सुरिंदरे ॥ ॥ धर्म० ॥ ६ ॥ तास शिष्य प्रतिदीपतो रे, विनय वंत जसवंत || याचारिज चढती कला रे, जिन सिंह सूरि महंत रे ॥ धर्म० ॥ १ ॥ प्रथम शिष्य श्री पूज्यना रे, सकलचंद तस शिष्य ॥ समयसुंदर वाचक जो रे, संघ सदा सुजगीश रे ॥ धर्म० ॥ ८ ॥ दान शियज़ तप जावना रे, सरस रच्यो संवाद ॥ जपतां गुणतां नाव रे, ऋद्धि समृद्धि सुप्रसादो रे ॥ धर्म० ॥ ए ॥ इति दानं शियल तप नावनुं चोढालीयुं संपूर्ण ॥ ॥ अथ प्रजाती रागमां स्तवन ॥
॥ कहा रे अज्ञानी जीवकूं, गुरु ज्ञान बतावे ॥ कबहुं न विषय विष तजे, कहा दूध पिलावे ॥ कहा० ॥ ॥ १ ॥ कवर ईख न नीपजे, कहा बोवन जावे ॥ रा सन बार न बांहीं, कहा गंग जिलावे ॥ क० ॥ २ ॥ काली कन कुमाणसां, रंग दूजो न खावे ॥ श्रीजिन राज कटुं कहा, वाको सहज न जावे ॥ क० ॥ ३ ॥ ॥ अथ सुविधिजिनस्तवनं ॥ राग प्रजाती ॥
॥ मुजरा साहेब मुजरा साहेब, साहेब मुजरा मेरा रे || साहेब सुविधि जिनेसर प्यारा, चरण पखालुं प्रभु तेरा रे ॥ मु० ॥ १ ॥ केशर चंदन चरचुं अंगें, फूल चडा सेरा रे || घंट बजावुं ने अगर उखेवुं, करूं
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(३३२) प्रदक्षिण फेरा रे ॥ मु० ॥॥ पंच शब्द वाजां वज डावं, नृत्य करुं अधिकेरां रे ॥ रूपचंद गुण गावत हर्वित, दास निरंजन तेरा रे ॥मु० ॥३॥ इति ॥
॥अथ प्रजाती रागमां स्तवन ॥ ॥प्रनु तोरी ठकुराकू, गढ तीन बिराजे ॥ रतन रचित मानुं देहकी, दूती मंमल बाजे ॥प्र० ॥ १ ॥ कलकत उहुं दिशि तेजमें, विच कंचन कोटा ॥ तेरे प्रबल प्रतापका, मानुं मंगल महोटा ॥प्र० ॥ २ ॥ अतिउज्ज्वल रूपें वन्या, तीजा गढ तेरा॥ तीन नुव नमें विस्तस्या, जस सुजस घणेरा ॥ प्र० ॥ ३ ॥ वा मानंद जिनंदकी, कहा कहुँ रे वडाई ॥ आनंद व दत लघु बुद्धि, बी बरनी न जाई ॥ प्र० ॥ ४ ॥
॥ अथ पार्श्वजिन स्तवन ॥पनाती रागमां ॥
॥तुम विना कौन मेरी,गुह लेनहार हे ॥ तुम॥ निशिदिन ध्यान धरूं, कीजे क्युं अवार ॥पारसनाथ साहेवजीको, नाम साचो सार दे ॥ तु०॥१॥प्रा त ताही सेवा करूं, पुप्फनके हार हे ॥ अगर सुवास वास, खेवत सवार हे ।। तु०॥३॥ मरपत हुँ सेवा करूं, नूल चूक माफ हे॥ मेंतो हुँ अजान प्रनु, आ पही सफार हे ॥तु॥३॥ मेरे तो प्रनु एक तूंऊ, सेवक हजार हे ॥ अश्वसेन नंदनजीगुं, मेरो पूरा प्यार हे ॥ तु ॥ ॥ इति ॥
॥आदि जिनस्तवनं ।। ॥अंग उमाहो मुझने अतिघणो, अलबेला जिनवर
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(३३३) जी॥नेटवा ऋषन जिणंद,मारा वहाला श्रीजिनवर जी॥१॥ पालीता| नगर सोहामj॥अ॥ रूडी ललिता सरनी पाल ॥मा०॥ जिहां रे थांबा वडला घ गा॥अ॥ फूकी रश् चंपा केरी माल ॥ मा० ॥२॥ धन ते पंखी रे पारेवडां ॥अशेर्बुजे वसी रह्या मोर ॥ मा० ॥ उमाहो करीने जे घरें रह्या ॥ अ॥ ते मा एस नही ढोर ॥मा॥३॥.शेठेजा मारग चालतां, ॥अ॥ नमे ने जीणी जीणी खेह ॥मा०॥ मेला था शे रे महारां कापडां॥अ॥ निर्मल थाशे मारी देह ॥ ॥मा० ॥ ४ ॥ कंचुं देहेरुं रेयादिनाथर्नु॥०॥ आ गल चोक विशाल ॥ मा० ॥ जिहां मेले मेले घणा मानवी ॥ अ० ॥ गावे प्रनुगुणमाल ॥ मा० ॥ ॥ ५ ॥ केशर घसी जया वाटका ॥ अ० ॥ पूजवा आदि जिणंद ॥ मा॥ फूलडानो हार कंवें सोहियें ॥ अ॥ दीवडानी ज्योति अवंम ॥ मा० ॥ ६ ॥ गिरिवर दीते माहरे ॥०॥ दिलमां नपजे आणंद ॥ मा० ॥ नेटवानो रे मुकने कोम घणो ॥५०॥प्रेम घणो जिनचंद ॥ मा० ॥ ७ ॥इति संपूर्ण ॥
॥अथ सामायिकलान सजाय॥ ॥ कर पडिक्कमणुं जावरां, दोय घडी शुनध्या न ॥ ताल रे ॥ परनव जातां जीवने, संबल साचुं जाण ॥ लाल रे ॥ कर ॥ १ ॥ श्रीमुख वीर श्म कचरे, श्रेणिक रायप्रतें जाण ॥ला॥लाख खामी सोना तणी, दीये दिन प्रत्ये दान ॥ लाल रे ॥
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(३३४) क० ॥ ॥ लाख वरस लगें ते वली, एम दीये इव्य अपार ॥ ला ॥ एक सामायिकने तोलें, नावे तेह जगार ॥ ला॥क० ॥३॥ सामायिक चनविसबो, नखं वंदन दोय दोय वार ॥ लाल रे ॥व्रत संनारो रे आपणां, ते नवकर्म निवार ॥ लाल रे ॥ कर॥ ॥ ४ ॥ कर कानस्सग्ग शुज ध्यानथी, पञ्चरकाण सू धुं विचार ॥ लाल रे ॥ दोय सजायें ते वत्ती, टालो टालो अतिचार ॥ लाल रे॥कर॥ ५॥ श्रीसामायिक प्रसादथी, लहीयें अमर विमान ॥लाल रे ॥धर्मसिंह मुनि एम नणे, ए डे मुक्ति निदान ।। लाल रे॥क०॥६॥
॥अथ पार्श्वजिनस्तवनं ।। . ॥ कृपा करो ने गोडी पास जिनेसर, तुम साहिब अंतरजामी ॥ ॥ ऊंचे ऊंचे गिरिपर प्रनुजी विराजे, आस पास ग्यानी ध्यानी ॥ ॥१ ॥ नील वरण प्रनु अंगीयां बिराजे, सूरतकी जाउं बलि हारी॥ कृ०॥ बांहे बाजुबंध बेहिरवा बिराजे, कुंम लकी बबि है न्यारी ॥ ७ ॥ २ ॥ ढूंढत ढूंढत प्रनु जीकु पायो, पूरण पदवी अब आई॥०॥ नाथ नि रंजन नाम तुमारो, रूपचंद पदवी पाई ॥७॥३॥
॥अथ समेतशिखरगिरिस्तवनम् ॥ ॥ तुंही नमो नमो समेतशिखर गिरि, आदीश्वर अष्टापद सिदा, वासुपूज्य चंपापुरी॥ तुंगा नेम गया गिरनारें मुक्ते, वीर पावन पावापुरी ॥ तुं० ॥१॥ वीशे टूंके वीश जिनेसर, सिक्षा अणसण आदरी॥
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(३३५) ॥ तुं० ॥ ज्योतिस्वरूपें दुश्रा जगदीश्वर, अष्ट कर्म नो क्य करी ॥ तुं०॥ ॥ पश्चिम दिशि शत्रुजो ती रथ, पूरव समेत शिखर गिरि ॥ तुं० ॥ मोद नग रना दोये दरवाजा, नविक जीव रह्या संचरी ॥ ॥ तुं० ॥३॥ जगव्यापक जे अदर साहेब, पाप संताप काटन गिरि ॥ तुं॥ मोहोटुं तीरथ मोहोटो म हिमा, गुण गावत सुरासुरी ॥ तुं० ॥४॥ विषम पाहाड उजाडमें चिटुं दिशि, चोर चरड रह्या संचरी ॥ तुं० ॥ नयंकर डूंगर जूमि मरावण, देखत मंगर थरहरी ॥ तुं० ॥ ५॥ संवत सत्तरशें चुम्माले, चै त्र शुदि चोथें धरी॥ तुं० ॥ कहे जिनहर्ष वीशे टू कें, नावयुं चैत्यवंदन करी ॥ तुं० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अभिनंदन जिनस्तवनं ॥ ॥अनिनंदन नाथ जुहारूं जी॥तीरथना रसिया ॥ प्रनु आवतां पाप निवारुं जी॥ मुफ हाडे वसि या ॥१॥प्रनु आगल पाप प्रकाशुं जी ॥ ती० ॥ प्रनु पुण्यथी पाम्या आ गुंजी।मु० ॥ २ ॥ में तो रसमां बदुरस नेव्यो जी ॥ ती० ॥ आरंन करी प रिग्रह मेट्यो जी॥ मु० ॥३॥ में तो क्रोधगुं मधु र स पीधा जी॥ती० ॥ रागरूष करी कूडां आल दी धांजी।मु०॥॥ में तो कूड कपट घणां कीधां जी ॥ ती० ॥ में तो लोनगुं परधन सीधां जी ॥ मु० ॥ ५ ॥ हुँ तो परनारीशुं रंगें रम्यो जी॥ती० ॥ व्रत नांगीने रातें जम्यो जी।मु०॥ ६ ॥ ज्यारें लेशे प्र
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(३३६ ) नुजी ने जी॥ ती॥ पग मांमयानी जग्या न दे जी। मु० ॥ ७ ॥ प्रनु दीठी अगदीठी करजो जी ॥ ती० ॥ मारी वीनतडी चित धरजो जी ॥ मु० ॥ ॥ ७ ॥ एवी पदासनी वाणी जी॥ ती० ॥ स्तव न जोडयु डे अमृत वाणी जी॥ मु॥ए॥
॥ अथ श्रीवीरजिन स्तवन ॥ फतमलनी देगी।
॥जगपति तारक श्रीजिनदेव, दासनो दास ७ ता हरो ॥ जगपति तारक तुं किरतार, मन मोहन प्रनु माहरो ॥१॥ जगपति ताहारे तो नक्त अनेक, मा हारे तो एकज तुंधणी ॥ जगपति वीरामां तुं सहा वीर, सूरत ताहारी सोहामणी ॥ २ ॥ जगपति त्रि शला राणीनो तुं तन, गंधार बंदर गाजीयो॥ जग पति सिदारथ कुल शणगार, राज राजेसर राजी यो॥ ३ ॥ जगपति जगतांनी नांगे ले जीड, नीड पडे रे प्रनु पारिखें ॥ जगपति तुंही प्रनु अगम अ पार, समज्यो न जाये मुफ सारिखे ॥ ॥ जगपति उदय नमे कर जोड, सत्तर नेव्याशी समे कियो । जग पति खंनायत जंबूसर संघ,नगवंत नावलॅनेटियो॥॥ ॥ अथ राणकपुरनुं स्तवन ॥ फतमलनी देशी ॥
॥ जगपति जयो जयो षन जिणंद, धरणासाहे धन खरचीयो । जगपति प्रौढ कराव्यो प्रासाद, उलट जर सुर नर अरचियो ॥ १ ॥ जगपति बानगुं मांगे वाद, सोवन कलशे फल हले ॥ जगपति चोबारो चोशाल, पेवंतां पातक गले ॥ २॥ जगपति अति
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( ३३७ )
सुंदर नद्दाम, नलिनी गुल्म विमान श्यो ॥ जगपति उत्तम पुण्य अंबार, निरुपम धनद निधान श्यो ॥ ३ ॥ जगपति उलें लें यंन, कीधी अनुपम कोरणी ॥ जग पति करती नाटारंन, पूतलीयो चित्त चोरली ॥ ४ ॥ जगपति नाजिनरेसर नंद, राणकपुरनो राजीयो ॥ जगपति सहुरयां शिरदार, जगमांहे जस गाजीयो ॥ ५ ॥ जगपति देव तुं दीनदयाल, नक्तवत्सल नलें जेटीयो ॥ जगपति देखतां तुऊ देदार, मोह त यो मद मेटी || ६ || जगपति उदयरतन नवजा य, संवत सत्तर त्राएं समे ॥ जगपति फागलवदि प डवे दिन्न, सादडी संघ सहित नमे ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ शियन विषे शीखामपनी सवाय ॥ ॥ प्रभु सायें जो प्रीत वंडो तो, नारीसंग निवा रोरे ॥ कपटनी पेटी कामणगारी, निश्वय नरक ज्वारो रे ॥ १ ॥ एहनी गति एहिज जाणे, रखे कोई संदेह आणे रे ॥ ए ॥ ए आंकणी ॥ अबला एवं नाम धरावे, सबलाने समजावे रे || हरि हर ब्र ह्म पुरंदर सरिखा, ते पण दास कहावे रे ॥ ए ॥ २ ॥ एक नरने आंखें समजावे, बीजाशुं बोले करारी रे ॥ त्रीजाशुं कर्म करे तक जोई, चोथो धरे चित्त मजा री रे ॥ ए० ॥ ३ ॥ व्यसन विलुद्धि न जुवे विमासी, घटता घटती वातें रे ॥ मूंक परदेशीनी परें जोश, मलजो एह संघातें रे ॥ ए० ॥ ४ ॥ जांघ चिरीने मांस खवाड्युं, तो पण न थइ तेहनी रे ॥ मोहनी
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(३३०) मीठी दीलनी जूती, कामिनी न होये केहनी रे ॥ ए० ॥ ५ ॥ पगले पगले मन ललचावे, श्वासो सथी जूदी रे ॥ गरज देखीने घहेली थाये, काज के रे जाये कूदी रे ॥ ए८ ॥ ६ ॥ करणी एहनी कली न जाये, नयण तणी गति न्यारी रे ॥ गावं एहनु जेणें गायुं, तेणें निज सजति हारी रे ॥ ए० ॥ ७ ॥ लाख नाते ललचादे लंपट,विरु ने विपनी क्यारी रे॥ एहना पासमां जे नर पडिया, ते हास्या जमवारी रे ॥ ए० ॥ ७॥ कोडि जनन करी कोइ राखे, मान नी महोल मकारी रे ॥ तो पण तेहने सूतां वेचे, धडे न रहे धूतारी रे ।। ए॥ए॥ जो लागी तो सर्व स्व लूंटे, रूठी राक्षसी तोल रे ॥ एम जाणीने अल गा रहेजो, उदयरतन इम बोले रे ॥ ए० ॥ १० ॥
॥ अथ संजवजिनस्तवन ॥ ॥ मोहन तारा मुखडाने मटके ॥ मोहन ॥ ए आंकणी ॥ नयण रसाला ने वयण सुखालां, चि तडं लीधुं चटके ॥ मोह ॥ प्रनुजी केरी नक्ति क रंतां, कर्मनी कस तटके ॥ मोह ॥ १ ॥ मुफ मन लोनी जमर तणी परें, जिनगुण कमलें अटके ॥ मो ह॥ रत्नचिंतामणि मूकीने राचे,कहो कोण काचतणे कटके ॥मोह॥॥ ए जिन थुणतांक्रोधादिक सङ,
आस पासथी पटके मोहा केवलनाणी बदु सुख दानी, कुमतिकू दूर पटके ॥मोह ॥३॥ ए जिनने जे दिलमां नाणे, तेतो नूच्या नटके ॥मोह॥ नाव
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(३३ए) नक्तिशुं उलग करतां, वंबित सुखडें सटके ॥ मोहन ॥ ४ ॥ मूरत संनव जिनेश्वर केरी, जोता हैयहूं ह टके ॥ मोह ॥ नित्यलान कहे ए जिन साचो, गु ण गावं हूं लटके ॥ मोह ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ दानविषे स्वाध्याय ॥ ॥ चोत्रीश अतिशयवंत, समवसरणे दो बेसी ज गगुरु ॥ उपदिशे अरिहंत, दान तणा गुण हो पहेले सुख करु ॥ १ ॥ दान दोलत दातार, दाने नांजे हो नवनो आमलो ॥ दानना पांच प्रकार, उलट आणी हो नवियण सोनलो ॥ २ ॥ पहेलुं अनय सुदान, दया हेतें हो निज तनु दीजीयें ॥ जेम मेघरथ रा जन्न, जीव सदुने हो निर्नय कीजीयें ॥३॥बीजुं दान सुपात्र, तृण मणि कंचण हो अदत्त जे परिहरे ॥ निर्मल व्रत गुणगात्र, सत्तर नेदें हो संयम जे धरे ।। ॥४॥आहारादिक सुविचार, तेहने दीजें हो हाजर जे होवे ॥ जिम शालिन कुमार, सुपात्र दानें हो महा सुख जोगवे ॥ ५॥ अनुकंपादान विशेष, त्रीजुं देतां हो पात्र न जोश्य ॥ अन्ननो अर्थी देखी, तेहने आपी हो पुण्यवंत होयें ॥ ६ ॥धन पामी ससनेह, कारण पांखे हो नात जे पोपीयें ॥ नचित चोथु ए स्वजन, कुटुंब सहेजें हो जे संतोपीयें ॥ ७॥ पांचमुं कीर्तिदान, जाचक जनने हो जे कां आपीयें ॥ तेणें वाधे जस वान, जगमां सघने हो जलपण थापीयें ॥ ७ ॥ पामे चिंतवित पात्र, जेहथी प्राण
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( ३४० )
हो निर्मल सुख लहे ॥ दान देतां दण मात्र, विलंब न कीजें हो उदयरतन कहे ॥ ए ॥ इति ॥ ॥ अथ शियल स्वाध्याय ॥
॥ धन्य धन्य ते दिन माहरो || ए देशी ॥ ॥शियल समं व्रत को नही, श्रीजिनवर जाखे रे ॥ सुखापे जे शाश्वतां, दुर्गति पडता राखे रे ॥ शी० ॥ ॥ १ ॥ व्रत पञ्चरकाण विना जुने, नव नारद जेह रे || एकज शियल तणे बचें गया मुक्ते तेह रे ॥ शि० ६२ ॥ साधु ने श्रावक तयां, व्रत बे सुखदायी रे ॥ शियल विना व्रत जाणजो, कुशका सम जाई रे ॥ शि० ॥ ३ ॥ तरुवर मूल विना जिस्यो, गुण विण लाल कुमान रे ।। शियल विना व्रत एहनुं, कहे वीर भगवान रे ॥ शि० ॥ ४ ॥ नव वाडें करी निर्मलुं, पलं शीलज धरजो रे ॥ नद रत्न कहे ते पी, व्रतनो खप करजो रे ॥ शि ॥ ५ ॥ ॥ अथ तपःस्वाध्याय ॥
॥ ईमर यांबा यांबली रे || ए देशी ॥
॥ कीधां कर्म निकंदवा रे, लेवा मुक्ति निदान ॥ हत्या पातक छूटवा रे, नहीं कोई तप समान ॥ न विक जन, तप सरिखुं नही कोय ॥ १ ॥ उत्तम तपना योगथी रे, सुर नर सेवे पाय ॥ लब्धि हा वीश कपजे रे, मनवंबित फल थाय ॥ नवि० ॥ ॥ तप० ॥ २ ॥ तीर्थकर पद पामीयें रे, नासे सघ ला रोग ॥ रूप लीला सुख साहेबी रे, नहीयें तप संयोग ॥ नवि० ॥ तप० ॥ ३ ॥ ष्ट करमना उघने
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( ३४१ )
रे, तप टाले ततकाल ॥ अवसर जहीने तेहनो रे, खप करजो जमाल ॥ नवि०॥ तप० ॥ ४ ॥ ते शुं बे संसारमां रे, तपथी न होवे जेह ॥ मनमां जे जे कामियें रे, सफल फले सही तेह || नवि० ॥ तप० ॥ ॥ ५ ॥ बाह्य अभ्यंतर जे कह्या रे, तपना बार प्रका र ॥ होजो तेहनी चालमां रे, जिम धन्नो अणगार ॥ ॥ नवि० ॥ तप० ॥ ६ ॥ उदथरतन कहे तपथकी रे, वाधे सुजस सन्नूर | स्वर्ग होये घर प्रांगणुं रे, दुर्गति नासे दूर || नवि० ॥ तप० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ नाव स्वाध्याय ||
॥ धुन धन ते दिन माहरो ॥ ए देशी ॥ | रे नवि नाव हृदय धरो, जे बे धर्मनो धोर ॥ एकलमन खंम जे, कापे कर्मनी दोरी || रे नवि० ॥ १ ॥ दान शियल तप त्रण ए, पातक मन धोवे ॥ नाव जो चोथो नवि मजे, तो ते निष्फल होवे ॥ रे नवि० ॥ २ ॥ वेद पुराण सिद्धांतमां, पटदर्शन नांखे ॥ जाव विना जव संतति, पडतां कोण राखे ॥ | रे नवि० ॥ ३ ॥ तारक रूप ए विश्वमां, ऊंपे जग जाण ॥ जरतादिक शुन नावथी, पाम्या पद निर वाण | रे नवि ॥ ४ ॥ औषध श्राय उपाय जे, मंत्र यंत्र ने मूली ॥ जावें सि६ होवे सदा, जावविष सदु धूली | रे नवि० ॥ ५ ॥ नदयरत्न कहे नावथी, कोल कोण नर तरिया || शोधी जो जो सूत्रमां, सकन गुएादरिया || रे नवि० ॥ ६ ॥ इति ॥
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( ३४२ )
॥ अथ दान शील तप नाव स्वाध्याय ॥ ॥ श्रीमहावीरें जांखीया, सखी दानना चार प्र कार रे ॥ दान शीयल तप नावना, सखि पंचम ग तिदातार रे || श्रीमहावीरें० ॥ १ ॥ दानें दोलत पा मीयें, सखि दानें कोड कव्यागो रे ॥ दान सुपात्र प्र जावथी, सखि कयवन्नो शालिन जाणो रे ॥ श्रीमहा० ॥ २ ॥ शियलें संकट सथि टले, सखि शीलें बंबित सिद्ध रे || शियनें सुर सेवा करे, सखि शोल सती परसिद्ध रे || श्रीमहा० ॥ ३ ॥ तप तपो नवि जाव शुं तपें निर्मल तन्न रे ॥ वर्षोपवासी कृषनजी, सखि धन्नादिक धन धन्न रे ॥ श्रीमहा० ॥ ४ ॥ जरता दिक शुन नावथी, सखि पाम्या पंचम ठाम रे ॥ उदय रतनमुनि तेहने, सखि, नित्य करे प्रणाम रे || ॥ श्रीमहा० ॥ ५ ॥ इति नावस्वाध्याय ॥
॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥ नांजी नांजी नांजी बेडो नांजी ॥ ए देशी ॥ तें मुफ मोह महामद पायो, तेणें हुं थयो मतवालो ॥ तृ ष्णा तरुणी प्राणी मिलावी, वच्चमां करी दला लो ॥ लगी रहेने, रहेंने रहेने रहेने ।। अलगी० ॥ हांरे कां कुमति पडी बे केडें ॥ अलगी ॥ तु दूतीने कोराज तेडे || लगी० ॥ १ ॥ कर्म नटावो तुं तेडी यावी, तेणें पण मांगी बाजी ॥ मिथ्या गीत तणे जलकारे, मुकने कीधो राजी ॥ ० ॥ २ ॥ नरक निगोद तथा मंदिरमें, पातक पलंग बिठायो ॥ मुऊने
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( ३४३ )
नोलवी तिहां बेसाड्यो, पण सुमतें समजायो ॥ अ० ॥ ३ ॥ जब में मदिरा बाक निवारी, समकित सुखडी चाखी ॥ उपशम रस सुधारस पीयो, चित्त चेतनने दाखी ॥ ० ॥ ४ ॥ श्रीशंखेश्वर चरण सरोरुह, जागी ध्याननी ताली । रूपविबुधनो मोहन पनणे, जिनमत स्तुति लटकाली ॥ श्र० ॥ ५ ॥
॥ अथ सुविधिजिन स्तवनं ॥ कही नषामां ॥ ॥ वो सीं गमण वेंधा, वमेके पेर पोंधा ॥ केशर जो घोर घोरिंधा, वो वमी पूजा कंधा ॥ य चो० ॥ १ ॥ दीवबंदिरमें दिठो साहेब, सच्चो सुबुद्धि
देव || नांइयां अना पाणजो अना, जी का सेव ॥ ० ॥ २ ॥ को चे अल्ला को चे कंथड, को चे जे सर पीर ॥ को चे पो को चे दावल, को चे बावो धीर ॥
० ॥ ३ ॥ एडा देव में दिना जता, विद्या गमो गम ॥ मूंके साहेब तुंहीज गम्यो, आशाजो विसरा म ॥ ० ॥ ४ ॥ सर्ग मृत्यु पातालमें एडो, बेड नांए कोए नाथ ॥ मिली माडुयेंजी यास्या पूरे, सच्चो सिजो साथ ॥ ० ॥ ५ ॥ तोजी अंगी चंगी दि डी, सोवनमें जरपूर ॥ मडे मोड फलामल दीपे, नरकें उग सूर ॥ ० ॥ ६ ॥ तोजे देवलमें दीया जका, जका फूलेंजा ढग्ग ॥ तोजो देवल दिहे नांयो, हेडो हुंथो सग्ग ॥ ० ॥ ७ ॥ मुंजी आस्या पूरजहा
, सच्चा सुविधिबुधिनाथ ॥ जिनविजय चे साहेब मुंजा, तुंही तुंही जगनाथ ॥ ० ॥ ॥ इति ॥
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(३४४) ॥अथ स्तवनं ॥ राग अनाती॥ ॥आजको लाहो लीजीयें, काल केणे रे दीठी ॥रह ण न पावे पाघडी, जब आवे चीठी ॥ आ ॥१॥ मनसा वाचा कर्मणा, बालस सब बंमी ॥ ध्यान धरूं अरिहंतनु, स्थानक वि.र मंमी ॥ ॥॥ विनय मूल जे पालीयें, श्रीजिनवर धर्म ॥ नावें शुरू ारा धतां, लूटे निजकृत कर्म ॥ आप ॥३॥ दान शि यल तप नावना, ए चार प्रकार ।। ठया शु६ आरा धीयें, पामीयें नवपार ॥ श्रा० ॥ ४ ॥ धर्मनो म मै ए जाणजो,राग ष ने वारो ॥ केवल ज्ञान निपा क्ने, देवचंद पद सारो॥आ ॥ ५॥ इति ॥
॥अथ प्रजातीरागमां स्तवन ॥ ॥ में परदेशी दूरका, प्रन दरिसणकू याया ॥ लाख चोराशी देश फखा, तेरा दरिसन पाया ॥में॥ ॥१॥ सूक्ष्म बादर निगोदमां, वनसपति बसाया ॥ अप तेन वान कायमां, काल अनंत गमाया ॥ में ॥२॥ स्वर्ग नरक तियेचमें, केता जन्म गमा या ॥ मनुष्य अनारय में नम्या, तिहां नही दरिसन पाया ॥ में०॥३॥ तेरो मेरे दरसा अब नयो, पू रण पुण्य पसाया ॥ रूपचंद कहे नाग्य खुले, निरंज न गुण गाया ॥ में ॥ ॥ इति ॥
॥अथ पार्श्वनाथस्तवन ॥ कबीनाषामां ॥
अमां अांचं नेहडो कंधी, गोडीचे पेर वेंधी॥ केसरजो घोर घोरींधी, विकि अांखें पूजा कंधी ॥ इन
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(३५) वामाजीजो नीगरो एडो, बेयो नाए जुगमें तेडो॥ अमां ॥ १ ॥ सरग मरत पातालजा माडु, जड़ा सेवी पाय ॥ कामणगारो पासजी आयल, मुफे दि समें जाय ॥ अमां ॥ २ ॥ सर्पि सर्पा जेरे बरंधा, दिनो जे नवकार । पासजीजो नालो गिनी दुया, इंश इंशणी सार ॥ अमां ॥३॥ वेत्रा देव दिहा जड़ा, देव न केडे कम्म ॥ तुं निरागी गति निवारण, अछे कमैजो दम्म ॥अमां ॥४॥ जेमां विंका ते मां इनके नजियां, जगमें वमो पीर ॥ जेहर्षजो सां मी मल्यो, खीनी दुआ खीर ॥ अमां ॥५॥
॥अथ सिमाचल स्तवनं ॥ ॥ चालो चालो सिमाचल जयें रे, ऋषनदेव सुखकारीयां ॥ चालो चालो सिमा० ॥ ए आंकणी॥ नानिराया मरुदेवीको नंदन, हारे एतो जुगला धर्म निवारियां रे ॥ ३० ॥ १ ॥ आदि जिन नेट्यां सवि फुःख मेट्यां, हारे में तो पाप करम सब टालियां रे॥ ३० ॥ २ ॥रायण रूख समोसस्या स्वामी, हारे ए तो देखी नविक मन मोहियां रे ॥ ३० ॥३॥ के शर घोली जरी रे कचोली, हारे मेंतो विधियुं अंगियां रचावियां रे ॥२॥४॥ कर जोडी दलिचंद गुण गावे, हारे में तो नवोनव शरण तुमारियां रे ।। २० ॥५॥
॥अथ अनंतजिन स्तवनं॥ ॥ चित्त लागो अनंतजिन चरननसें, चरननमें जिन चरननसें ॥ चि०॥१॥ ए आंकणी ॥ अनंत
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(३४६) नाथजिको दरिसन करकें, मन जयो हम मनननसें ॥ चि॥ ॥ प्रनु दरिमनसें पाप कटत हे, तिमिर कटे जैसें अरुननसें ॥चि ॥३॥ आस करी दा स सरणें आयो, घेलचंद पाये परननसें ॥ चि॥
॥अथ पार्श्वजिन सवनं ।।रागकाफी॥ ॥आज रे में मुख देख्यो गोडी पारसको, मेरो स फल नयो दिन आज ॥जला जी मेरो सफल नयो ॥ अांकणी ॥ अश्वसेन राजाजीको नंदन, माता वामाजीको लाल ॥ आ॥ १ ॥ कमठ हठावर नागकू तारन, संजलाव्यो नवकार ॥ आ० ॥ २ ॥ नवोनव जटकत शरणे ढुंआयो, अब तो राखोजी मोरी लाज ॥ ॥३॥ उर देवकू बोहोत में ध्याया, किनसें न सस्यो मेरो काज ॥ आ० ॥ ४ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन,कतारों नवपार॥आगा।
॥ अथ अनजिनस्तवनं ।। राग काफी ।। ॥घणु मोवू नाम रे,मारे तो केसरीया वालानुं घणुं मोडूं नाम ॥ ए आंकणी ॥ कोई सेवे ब्रह्मा वाला कोई सेवे शंकर, कोईने विष्णु कोईने राम रे ॥ मारे तो० ॥ १ ॥ काल कंटक करूर जय टाल ण, सबल ए शरणर्नु ठाम रे ॥ मा० ॥ २ ॥ मू लचंद कहे प्रनु जे जगतारण, धुलेवा मंमण मोहोटुं धाम रे ।। मा० ॥३॥
॥अथ पार्श्वजिनस्तवनं॥ ॥ प्रगट्या ते पूरण अविनाशी, जीरे काम क्रोध
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सर्वे गया नासी ॥ सुखदायकना बो स्वामी, जीरे पल पल रूपी प्रत्रु अंतरजामी ॥ १ ॥ कवदेश प श्चिम धाम, जीरे पावन कीधां बे सुथरी गाम ॥ धन धन नाग्य उदय कीधां, जीरे पार्श्व प्रभुजीयें दर्शन दीघां ॥ २ ॥ घृतकल्लोल प्रत्र परताधारी, जीरे देरुं चणाव्यं प्रति नारी ॥ देश परदेशना संघ श्रावे, जी रे पूजा रचावे प्रभुजीनी जावें ॥ ३ ॥ यांगी रचावे घरी माला, जीरे रत्न करे बे रूडा ऊपकारा ॥ मुकुट कुंमल शिर बत्रधारी, जीरे चंकना शुभ ह ष्टितारी ॥ ४ ॥ जावी जावनाने प्रभु पूजो, जीरे नाथ विना देव नही दूजो ॥ प्रभु पूजेथी नवजल तरियें, जीरे नाम लेतां नव निधि वरियें || ५ || ढार बयाशी चैतर मास, जीरे पूनमें प्रभुजी पूज्या पास || प्रेमचंद गुरु ज्ञानी नावें, जीरें घृतकल्लोलजीना गुण गावे ॥ ६ ॥ ॥ अथ चंप्रनजिन स्तवनं ॥ राग काफी ॥
॥ चंदा प्रभुजीसें लाल रे, मोरी लागी लगनवा ॥ चंदा प्रभुजीसें० ॥ ए यांकणी ॥ लागी लगनवा बो डी न लूटे, जब लगे घटमें सास रे | मोरी० ॥ १ ॥ दान शियल तप जावना जावो, जैन धर्म प्रतिपाल रे | मोरी० ॥ २ ॥ हाथ जोड कर खरज करत वंदत शेठ खुशाल रे || मो० ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ अथ कषन जिनस्तवनं ॥
॥ केशरिया वाला, जो लका राखशो तो रेहेशे ॥
॥ एकली ॥ साहेब कलिजुग केरा कूड कपटमें,
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(३४७) साच नही लवलेशे ॥ केश॥१॥ जूता बोला कोण धारशे, गिरुग्राना गुण गाशे ॥ केश॥ २॥ साहेब तमे हमारे हमें तमारे, प्रीत सदा निर्वहेशे ॥ के० ॥ ॥३॥ आसंघातें देह हशे तो, फरि फरिने केशे ॥ के ॥ ४ ॥ साहेब डेल बोगाला देवदयाला, धुलेवा धणीने ध्याशे ॥ के॥॥षनदासनी अाशा फलशे, नवनवनां सुःख टलशे । केश ॥ ६ ॥ इति ॥
॥अथ वैराग्योपदेशक सद्याद ॥ ॥हक मरना हक जानां यारो, मत को करो गुमा ना॥हा॥ ए अांकगी। उढा माटी पेरण माटी,मा टीका सराना॥ वसतीमेंसें बार निकाला, जंगल किया ठिकाना॥हा॥१॥ हाथ! चडते घोडे चडते, र आगें नीसाना ॥ नीली पीली बरख चलती,उत्तर कि या पयाना ॥ ह ॥ २ ॥ नरपति हो के तखत पर बेठे, नरिया नारि खजाना ॥ सांऊ सकारे मुजरा लेते, ऊपर हाथ वेकाना ॥ ह० ॥३॥ पोथी पढ पढ हिंदू जूले, मुसलमान कूराना ॥ रूपचंद कहे अ रे नाई संतो, हर्दम प्रनु गुण गानां ॥ ह ॥४॥
॥ अथ श्री अनंतजिन स्तवनं ॥ ॥हारे लाल राम पूरा बाजारमा॥ ए देशी॥
॥ हारे लाल चतुर शिरोमणि चौदमा, जिनपति नाम अनंत मेरे लाल ॥ गुण अनंत प्रगट कस्या, कस्यो विनावनो अंत ॥ मेरे लाल ॥ चतुर शिरोमणी चित्त धरो ॥ ए आंकणी ॥ ॥ हारे लाल चार
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(३४ए) अनंता जेहना, आतम गुण अनिराम ॥ मे० ॥ झान दर्शन सुख वीर्यता, कर्मे संथ्यां गम ॥ मे॥ ॥ च ॥ २॥ हारे लाल चतुर धरो निज चित्तमां, ए जिनवरनुं ध्यान ॥ मे ॥ अर्थो अर्थ निवासने, सेवे धरी बदु मान ॥ मे० ॥ च ॥३॥ हारे लाल झानावरणी क्ष्य करी, लघु अनंतुं ज्ञान ॥ मे ॥ दर्शनावरण निवारतां, दर्शन अनंत विधान ॥ मे॥ ॥ च ॥ ४ ॥ हारे लाल वेदनीय विगमे थयुं, सुख अनंत विस्तार ॥ मे ॥ अंतराय उलंघतां, वीर्य अनंत नदार ।। मे० ॥ च ॥ ५॥ हारे लाल एम अनंत निज नामनी, स्थिरता थापी देव ॥ मे० ॥ जिम तरंस्यां सरोवर नजे, तिम स्वरूप जिन सेव ॥ ॥ मे॥ च ॥ ६ ॥ इति अनंतजिन स्तवनं ॥
॥ अथ शांति जिन स्तवनं ॥ ॥सेवरे नवि शांतिजिणंद सनेहा, शांतरस गेहा, समामृत गेहा ॥सेवो नवि शांति जिणंद सनेहा ॥ए आंकणी ॥ राग शेष नव पाप संतापित, त्रिविध ताप हर मेहा ॥ माया लोन राग करी जानो, शेष क्रोध मद रेहा ॥ से० ॥ १ अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यानी, पञ्चरकाण संजल हा ॥ निज अन्योन्य सदृशथी चसह, संख्या वासित देहा ॥ से० ॥ ३ ॥ नोक पाय नव हास्य अरति रति, शोक जुगुप्सा नय वे हा ॥ मन वच काय तपावत ताथे, कहियें ताप अहा ॥ से० ॥ ३ ॥ जैसें वनदव तरुगए बाले,
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(३५०) त्यों अंतर्गत एहा ॥ खम शम दम नपशम शीत लता, करि जल लहेरी नेहा ॥से॥४॥ यातमराय राज्य अनिसंच्यो, पूजित त्रिजुवन गेहा ॥ तुम शिर बत्रकी बांह अमासिर, यो स्वरूप अनुपेहा॥से॥५॥
॥अथ मनिजिन स्तवनं ॥ ॥ जीरे सफल दिवस थयो आजनो॥ए देशी॥
॥ जीरे महिमा मनि जिणंदनी, मानी माहरे मन्न ॥ मोह महीपति जीनियो, वली तर पुत्र मद न ॥१॥ नित नमीएं नीरगता, नमतां होए जव बेह ॥ कुःख दोहग दूरें टले, एहमां नहिं संदेह ॥ जागो निःसंदेह ॥ नि ॥ २ ॥ जीरे मनि जिणं दनी साहेबी, देखीने रति प्रीति ॥ वचन कहे निज कंतने, पति प्रेमदानी रीति ॥6॥३॥ जीरे नाथ कहो ए कुण अडे, कहे ए जिनदेव ॥ जिन ते किम तुम वश नहिं, कहे एम सत्यमेव ॥ नि॥४॥ जीरे नहिं प्रताप इहां माहरो, तो वृथा पौरुष तुऊ ॥ हरव्यो मोह माहारो पिता, तो शो आशरो मुक ॥ ॥नि ॥५॥ जीरे ते सांनति रति प्रीति बे, त्रीजो काम सबाण ॥ मलीने मनि जिणंदनी, शिर धारी ने आण ॥ नि ॥ ६ ॥ जीरे तेमाटे तुम वीन,, वारो तेह अशेष ॥ यो सौनाग्य स्वरूपनें, सुखलब्धि विशेष ॥ नि ॥ ७ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥अथ स्तवनं राग प्रजातीमा ।। ॥ जागे सो जिननक्त कहावे, सोवे सो संसारी
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हे ॥ कर्म कलंककी कीच नई है, ताथें जयो चम नारी है ॥जा॥१॥ त्रस जीवकी हत्या न करे, स्था वर करुणा कारी है। कूडी साख कथन नही कूडा, बोले बोल विचारी है ॥ जाण ॥ २ ॥ थापण मोसो अदत्त न लेवे, चोरी मारी निवारी है ॥ पंच साखें पाणिग्रहण करीने, अवर स्त्रीया ब्रह्मचारी है ॥ ॥ जा ॥३॥ स्नान प्रमित जल जिनकी सेवा, परियह संख्या धारी है ॥ रूपचंद समकितके सबन, ताकू वंदना हमारी है ॥ जा० ॥४॥इति ॥
॥ अथ जीवने समताविषे शिखामण ॥ .॥हो प्रोतमजी प्रीतकी रीत अनीत तजी चित्त धारीयें, हो वालमजी वचन तणो अति ऊमो मरम विचारीयें ॥ हारे तुमें कुमतिके घर जावो बगे, तुमें कुलमां खोट लगावो बो, धिग एठ जगतनी खावो बो॥ दो० ॥ १ ॥ अमृत त्यागी विष पीयो डो,कुम तिनो मारग लीयो बो,ए तो काज अयुक्त कीयो बो॥ ॥ हो ॥ ॥ ए तो मोहरायकी चेटी ने, शिवसंपत्ति एहथी बेटी ने, एतो साकर गलती पेटी में ॥ ॥ हो ॥३॥ एक शंका मेरे मन आवी , किणी विध ए चित्त नावी , एतो दाहण जगमां चावी २ ॥ हो ॥ ४ ॥ सदु ऋदि तमारी खाए , करी काम चित्त जरमाए , तुम पुण्ययोगें ए पाए
॥ हो ॥ ५ ॥ मत अांब काज बाग्ल बोवो, अनुपम नव विरथा नवि खोवो, अब खोल नयण
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(३५२) प्रगट जोवो ॥ दो० ॥ ६ ॥ इणविध समता बहु समजाए, गुण अवगुण का सदु दरसाए ॥ सुगी चिदानंद निज घर आए ॥ हो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अय प्रजातीरागमां स्तवन ॥ ॥ देव निरंजन नव जय नंजण, तत्त्व ज्ञानका दरिया रे ॥ मति श्रुत अवधि ने मनःपर्यव, केवल झाने नरिया रे ॥ देव ॥ १ ॥ काम क्रोध लोह म बर मारण, अष्ट करमळू हतीयां रे ॥ चारे नारीद्र र निवारी, पंचम सुंदरी बरिया रे ॥ देव ॥ २ ॥ दरिसन झान एक रस जाकू, दीरोदधि ज्युं नरिया रे ॥ रूपचंद प्रनु नामकी नावां, जो बेता सो तरि या रे ॥ देव ॥ ३ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥ जीरे आज दिवस जलें उगीयो, जीरे आज थयो सुविहाण ॥ पास जिणेसर नेटीया, थयो आ नंद कुशल कल्याण हो साजन ॥ सुखदायक जाणी सदा, नवि पूजो पास जिणंद ॥ १ ॥ए अांकणी॥ जीरे त्रिकरण शुदिये त्रिदु समे, जीरे निसिही त्र ण संनार ॥ तिढुं दिशि निरखण वर्जीनें, दीजें ख मासमण त्रण वार ॥ हो साजन ॥ ॥ जीरे चैत्य वंदन चोवीशनो, जीरे स्वरपद वर्ण विस्तार ॥ अर्थ चिंतन त्रिदुं कालनां, जिन नाथ निदेपा चार हो॥ साजन ॥ ३ ॥ जीरे श्रीजिन पद फरसे लहे, कलि मलिनतें पद कल्याण ॥ ते वलि अजर अमर
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(३५३) दुवे, अपुनर्नव गुन निर्वाण हो ॥ सा ॥ ४ ॥ जी रे लोह नाव मूकी परो, जीरे पारस फरस पसाय ।। थाय कल्याण कुधातुथी, तिम जिनपद मोद उपाय हो ॥ सा० ॥ ५ ॥ जीरे उत्तम नारी नर घणा, जी रे मन धरी नक्ति उदार ॥ बाराधी जिनपद नहुँ, थाये जिन करे जग उपगार हो ॥ सा० ॥ ६ ॥ जी रे एहदुं मन निचल करी, जीरे निशिदिन प्रनुने ध्या य ॥ पामे सौजाग्य स्वरूपनें, निवृत्ति कमलावर था य हो ॥ सा ॥ ७ ॥ इति पार्श्वजिन स्तवनं ॥
॥अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥शांति जिनेसर साहिबा रे, शांति तणो दातार ॥ सला ॥ अंतरजामी बो माहरा रे, बातमना
आधार ॥ स० ॥ शांति ॥ १ ॥ चित्त चाहे प्रनु चाकरी रे, मन चाहे मलवाने काज ॥ स० ॥ नयण चाहे प्रनु निरखवा रे, यो दरिसण माहाराज ॥स॥ शांति ॥ २ ॥ पलक न विसरो मनथकी रे, जेम मोरा मन मेह ॥ स ॥ एक पखो केम रा खीयें रे, राज कपटनो नेह ॥ स ॥ शांति ॥३॥ नेह नजर निहालतां रे, वाधे बमणो वान ॥ स० ॥ अखूट खजानो प्रनु ताहरो रे, दीजियें वंबित दा न ॥ स ॥ शांति ॥४॥ आश करे जे कोइ आ पणी रे, नही मूकीयें नीराश ॥ स ॥ सेवक जा एगी ने यापणो रे, दीजियें तास दिलास ॥ स०॥ शांति ॥ ५॥ दायकने देतां थकां रे, दण नवि
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( ३५४ )
लागे वार ॥ ८० ॥ काज सरे निज दासनां रे, ए मो होटो उपगार ॥ स०॥ शांति ॥ ६ ॥ एवं जालीने जग धणी रे, दिलमांहि धरजो प्यार ॥ स० ॥ रूपविजय कवि रायनो रे, मोहन जयजयकार ॥ ०॥ शांति ० ॥ ७ ॥ ॥ अथ वीरजिन स्तवनं ॥
॥ रे बंदन आयो ॥ ए आंकणी ॥ बाजत नेरी जंगल सुर एंडुनि, नाद सुरपति नायो रे । वंदन आयो० ॥ १ ॥ ऐरावत गज सप्तसूंढ शिर, कम लहि बायो || कमल कमल जिन जुवन नुवन, नाट क बनायो रे ॥ बं० ॥ २ ॥ सुधर्म ईशान सनत म हैं, यदिदश सवायो ॥ वीश जुवनपति त्रीश दोय, व्यंतर बनायो रे ॥ बं० ॥ ३ ॥ चं सूरंज दोय ज्योतिषि चोराह, याय वीर वधायो || बंदत सुरप ति विधि जेई, जावना जायो रे ॥ बं० ॥ ४ ॥ सम वसरण श्रीवीर जिणंद, त्रिदं कोट रचायो । देशना सरस सुधारस देई, नविक मन लोभायो रे ॥ बं० ॥ ५ ॥ इत नरपति सार्णनड् नड, तेज सवायो ॥ देखन सु र ऋद्धिमान बोडी, निज संजम पायो रे ॥०॥ ६ ॥ धनधन शासन जैनधर्म, धनवीर जिनरायो ॥ संघ सकल सुखदाय पाय, जयरामें गायो रे ॥ बं० ॥ ७ ॥ ॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥
॥ सद्गुरुने चरणे नमी, गायचं गोडी राय ॥ माहारा वाला ॥ एकल मल्ल यलरो धणी, देखतां सुख याय ॥ माहारा० ॥ १ ॥ वामाजीनो कुंअर लाडलो, जोवा
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( ३५५)
मुफ़ मन थाय ॥ मा० ॥ ए आंकणी ॥ देवघणा धरणी तजें, ते दीवा न सुहाय ॥ मा० ॥ वा० ॥ २ ॥ श्र खीयां प्यासी थइ रही, देखण प्रतु मुख लाल ॥ मा० ॥ अंतरजामी माहेरा, महेर नजरशुं निहा ल ॥ मा० ॥ वा० ॥ ३ ॥ यात्रा करानी होंश बे, बहु दिननी मनमांहे ॥ मा० ॥ हुकम करो प्रभुजी हवे, वुं धरिय चाहे ॥ मा० ॥ वा० ॥ ४ ॥ दूर देशांतर जइ रह्या, तेनां दरिसण सरज्यां थाय ॥ मा० ॥ यास विलु मानवी, रात दिवस गुण गा य ॥ मा० ॥ वा० ॥ ५ ॥ समरथ साहिबजी दवे, लिंग कीजें तास ॥ मा०॥ प्रापति होय तो पामीयें, नाग्य फले सुविलास ॥ मा० ॥ वा० ॥ ६ ॥ तुम वि ए कहो कोण सांजे, सेवकनी अरदास ॥ मा० ॥ जाणुं बुं सही पशो, मनवांबित सुख वास ॥ मा० ॥ वा० ॥ ७ ॥ कूडा कलियुगमां प्रभु, परता पूरण हार ॥ मा० ॥ मारगमां सानिध करो, आप थई अ सवार ॥ मा० ॥ वा० ॥ ८ ॥ नक्तिना रंग अनेक बे, साहिब सुगुण सुजाण ॥ मा० ॥ मन मोहन जगजी वना, प्रभुजी मुऊ महिराण ॥ मा० ॥ या० ॥ ॥ प्रत्य द गोडी पासजी, अरिदल चंजणहार ॥ मा० ॥ वाचक सहज सुंदर तणो, नितलान जय जय कार ॥ मा० ॥ वा० ॥ १० ॥ इति संपूर्णम् ॥ ॥ अथ सुविधिजिन स्तवनं ॥
॥ सुरत सुविधि जिणंदनी रे लो, महिमावंत प्र
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( ३५६ )
धान ॥ माहारा वालाजी रे ॥ तुमने श्रमारी वंदना रे लो ॥ नर्यण पावन थयां देखतां रे लो; गुण अनंत नगवंत ॥ मा० ॥ हवे न बोडुं तहारी चाकरी रे लो ॥ १ ॥ वामा राणीना नंदना रे लो, सांजल दीनना नाथ ॥ मा० ॥ तुम० ॥ प्रेम धरी सेवा करूं रे लो, हवे न बो डुं तारो साथ ॥ मा० ॥ हवे० ॥ २ ॥ सोना रूपानां फूलनी रे लो, यांगी बनाडु सार ॥ मा० ॥ तु० ॥ नाच करूं प्रभु यागनें रे लो, मादलना चौंकार ॥ ॥मा || हवे ॥ ३ ॥ अमने ते शिवसुख आपजो रे लो, सुं कहुं वारोवार ॥ मा० ॥ तु० ॥ श्रातम अ नुनव ध्यानथी रे लो, लहीयें वंबित सार ॥ मा० ॥ || हवे ॥ ४ ॥ मनना मनोरथ माहरा रे लो, सफल थया सहु याज || मा० ॥ तु० ॥ नित्यलान प्रभु पद सेवतां रे लो, सीधां सघलां काज ॥ मा० ॥ हवे ० ॥ ५॥ ॥ अथ सिद्धस्वरूप परिकर विपक्षत्याग स्तवनं ॥
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॥ अविनाशीनी सेजडीयें. रंग लागो मोरी सज नी ॥ एकली ॥ केली करंतां गइ नवि जाली, प्रा जूनी रजनी जी ॥ अवि० ॥ १ ॥ मान सरोवर हंस तणी परें, मुक्ति तथा गुण चुगताता ॥ ज्ञान वन की कुंज गलिन में, तमराम रमताता । श्रवि॥ ॥ २ ॥ सासू र्मति कामणगारी, ससरो लोन धू तारो जी ॥ पिता मोह बे महापापियो, माया मात गारी जी ॥ ० ॥ ३ ॥ क्रोध पाडोस केड न मेले, कंदर्प देवर मीठग जी ॥ विषय वासना गइ दे
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(३५७) राणी, तिहां अविनाशी दीवा जी ॥अवि० ॥४॥ एटलाने अलगाज करीने, कंत तणा कर काव्या जी॥ अविनाशी वाहलायुं रमतां, मोह महर मद गाल्या जी ॥ अवि० ॥५॥ बावना चंदनथी अति शीतल, नाथ निरंजन वाणी जी ॥ रूपचंद रस प्रेमें पीतां, तिहांथी प्रीति बंधाणी जी ॥ अवि० ॥६॥
॥अथ श्रीपार्श्वजिन प्रजाती स्तवनं॥ ॥ नतो उठो रे मोरा आतमराम, जिनमुख जोवा जयें रे॥ए अांकणी॥प्रनुजीनुं दरिस ने अति दो हेढुं, ते किम सोहेलुं जाणो रे ॥ वार वार मानव नव जेहवो, मलवो मुशकिल टाणो रे॥ठो० ॥१॥ चार दिवसनो चटको मटको, देखीने मत राचो रे॥ विणसी जातां वार न लागे, काया गढ जे काचो रे ॥ उदो० ॥ २ ॥ हीरो हाथ अमूलक पायो, मूढ पणे मत गमजो रे ॥ सहज सलूगा पास जिणंद गुं, राजी थइ चित्त रमजो रे ॥ उदो० ॥३॥ अ नंतगुणें करीनरिया जिनवर, पूरव पुण्य पायो रे ॥ ते देखीने महारा मनमां,आनंद अधिक सोहायो रे ॥ उदो० ॥ ४ ॥ मनगत मोरा बातम, राम करजो सुरूत कमाई रे ॥ लान उदय जिगचंद लश्ने, वरते सिम सवाई रे ॥ वर्ने आनंद वधाई रे ॥ १० ॥ ५॥
॥अथ शत्रुजय स्तवनं ॥राग प्रनाती॥ ॥ चालोने प्रीतमजी प्यारा, शेजे जयें। शेजे जय रे स्वामी, शेजेजे जयें ॥ चालो० ॥ ए आंक
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(३५७ ) णी ॥संसारें रह्या बो मूंजी, दिन दिन तन बीजे ॥ आथ आननी बाया सरिखी, पोतानी कीजें ॥ चा० ॥१॥ जे करवू ते पेहेला कीजें, कालें शी वातो॥ अणचिंतवी आवी पडशे, सबलानी लातो॥चा०॥ ॥ २॥ चतुराईझुं चित्तमां चेती, हाथे ते साथें ॥ मरण तणा नीशाणां महोटां,गाजे ने माथे। चा० ॥ ॥३॥ मात मरुदेवानंदन निरखी. जव सफलो कीजें॥ दान विजय साहेबनीसेवा, ए संबन लीजें ॥चा॥४॥
॥अथ पद्मनप्रजिन स्तवनं ।। ॥षन जिनेसर प्रीतम माहरा रे ॥ ए देशा॥
॥ कागलीयो किरतार नणीशी परें लिखु रे,कवि प्रो कर जोड ॥ जिम तिम लवतां हाथ वहे नही रे, लखवानो पण कोम ॥ का॥ १ ॥ सैंगो माण स शिवपुर चालतो रे, न मने इण कलि काल॥प्रनु लगे सपगो पोहोंची सके नही रे, निपगानो जंजाल ॥का ॥ ॥ हाथ न जाले कागल केहनो रे, कहो केम वाधे नेह ॥ अलवे ते पाडो उत्तर नवि लखे रे, साहेबीयो निसनेह ॥ काम् ॥ ३॥ एह निरंजन ते किम रंजीयें रे, जो लिखुं विनती लाख ॥ दूरथकी सेवक हुँ थइ रढुं रे, लेइ सहुनी साख ॥ का ॥४॥ एक परखी जो जागो पालगुं रे,पदम प्रनुलॅप्रीत ॥ तो कागल जिनराजमां मूकजो रे, श्ण घर एहीज रीत ॥ का० ॥ ५ ॥ इति पद्म प्रनजिन स्तवनं ॥
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(३५)
॥ अथ पार्थ जिन बंद ॥ ॥ सकल सुखाकर जिनवरराय, नवियण वंदो पासजीना पाय ॥ नामें नवनिधि होये वली, पूज्यां पातक जाये टली ॥१॥ नयरी वणारसी अश्वसेन राय, वामादेवी जेहनी माय ॥ सतीय शिरामणि रूपनिधान, जिणे जन्म्या प्रनु पार्श्व प्रधान ॥ २ ॥ अंगे यांगी दीपे अति सार, रत्नजडित शिर मुकुट उदार ॥ काने कुंमल बांहे बेरखा, हार हीये सोहे नवलखा ॥ ३ ॥ इंड्नील सम तनु दीपंत, तेजें शशिहर रवि जीपंत ॥ वदनकमल जस पूनम चंद, नयन कमल दीठे अानंद ॥ ४ ॥ वाघ सिंह गज जय सवि टले, नूत प्रेत व्यंतर नवि बले ॥ रोग सोग कुःख वारणहार, पासजीने नामें नित जय जयकार ॥ ५ ॥ अंचलगो उदयो जाण, धर्म मूर्ति सूरि जगजाण ॥ तास तणा वाचकवर शिष्य, वंदूं राजमूर्ति गणि मुख्य ॥ ६ ॥ तास शिष्य पंमित कलट धरी, स्तवन रच्युं में खंतें करी ॥ विजयसागर मुनि पनणे मुदा, स्तवन नणे तस घर संपदा ॥ ७ ॥
॥अथ वैराग्यसबाय ॥ ॥ ईथा मेवासमें बे, मरदो मगन जया मेवासी॥ कायारूप मेवास बन्यो है, माता ज्युं मेवासी॥ साहे बकी शिर आए न माने, पाखर क्या ले जासी ॥ई० ॥ १ ॥ खाई अति उन्ध खजाना, कोटमा बढुंतेर कोठा ॥ वणसी जातां वार न लागे, जैसा
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(३६०) जल पपोटा ॥ ई० ॥॥ नव दरवाजा वहे निरंत र, उखदायी गधा ॥ क्या उसमें तल्लीन नया हे, रे रे बातम अंधा ॥ ई० ॥ ३ ॥ बिनमें बोटा बिनमें मोहोटा,जिनमें बेह दिखानी ॥ जब जमरेकी नजर ल गेगी, तब बिनमें उड जारी॥ई॥४॥मुलक मुलक की मली लुगाई, बोहोत की फरीयादी॥ पण मुजरो माने नही पापी, अति गक्यो नन्मादी॥ई ॥ ॥॥ सारा मुलक मेव्या संतापी, काम करोडी कोटो लोन तलाटी लोचा वाले, तो किम नावे को टो॥ ई० ॥६॥ नदयरत्न कहे प्रातम मेरा,मेवासीपणुं मेलो ॥ नगवंतने नेटो नली नांतें, मुक्तिपुरीमें खे लो ॥ ई० ॥ ७ ॥ इति सबाय ॥
॥अथ पार्श्वजिनस्तवनं ॥ ॥रातां जेवां फूलडांने, सामंल जेवो रंग ॥आज तारी अंगीनो काई, रूडो बन्यो रंग ॥ प्यारा पास जी हो लाल, दीनदयाल मुने नयों निहाल ॥१॥ ए बांकणी ॥ जोगीवाडे जागतो ने,मातो धिंगड म हन ॥ शामलो सोहामणो ने, जीत्या पाठे मन ॥ ॥ प्या० ॥ २ ॥ तुंबे मोरो साहिबो ने, दुं तारो दास ॥ आश पूरो दासनी कांई, सांजली अरदास ।। प्या॥३॥ देव सघला दीठा तेमां, एक तुं अवन्न । साखेणुं ले लटकुं तहारूं, देखी रीके दिन ॥ प्या० ॥ ॥ ४ ॥ कोइ नमे पीरनेने,कोई नमे राम ॥ नदयरत्न कहे रे प्रनु, मारे तुमयुं काम ॥ प्या० ॥५॥इति॥
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( ३६१ )
॥ अथ शांतिजिन स्तवनं ॥
॥ सकल सुखाकर, शांति जिनेसर राय ॥ हरषें गुण गाइश, वांदीश प्रभुजीना पाय ॥ १ ॥ हबिया नर •नयरी, विश्वसेन नूपाल || राणी चिरा देवी, शियलगुणें सुविशाल ॥ २ सुविशाल ॥ २ तस कूखें उपना, स्वामी ते शांति जिणंद ॥ जन्ममहोत्सव श्राव्या. सुर नर चोशठ ड् ॥ ३ ॥ नर जोबन पाम्या, रायनी ऋषि अनंत || दइ दान संववरी, दीक्षा ले नगवंत ॥ ४ ॥ वली केवल पाम्या, लाख वरषनी प्राय || अणसं पोहोता, समेत शिखर सिद्ध थाय ॥ ॥ ५ ॥ नमो शांति जिनेश्वर, नविक जीव हितका री ॥ जणे वाचक शंकर, देजो सेव तुमारी ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीग़ाबूजीनुं स्तवन ॥
॥ श्राबू पर्वत रुडो रे लाल, ऊंचो ते गानडा बार रे || यादीसर देव ।। पाए चढतां दोहिलो रे ला ल, जिहां नयी पुण्यनो पार रे ॥ था० ॥ श्राबू ॥ ॥ १ ॥ ए कणी ॥ पहेलां यादीसर जुहारीयें रे ला ल, पढें सहु परिवार रे ॥ ० ॥ वलता नेमीस र जुहारीयें रे लाल ॥ मुक्ति तणो दातार रे ॥ श्र० ॥ आबु ॥ २ ॥ देरा सामां दोय जोडलां रे लाल ॥ विमल महतो चड्या तुरंग रे ॥ श्रा० ॥ वस्तुपाल तेज पालना जोडलां रे लाल, चामर ढने दोय अंग रे ॥ ॥ श्र० ॥ आबू० ॥ ३ ॥ देराणी जेठगणीना यारीया रे लाल, खरच्या ते लाख अढार रे ॥ ० ॥ रूपा ब
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(३६२) रोबर कोरणी रेलाल, सोनुं घडे सोनार रे ॥ा० ॥ श्राव० ॥ ४ ॥ एकावन उरसीया जला रे लाल, सूखड केशर चंग रे ॥ आ॥ चंपा सेवंत्रीना जा डुवां रे लाल, जाणे प्रियगुं प्रीतम रंग रे ॥ आ ।। ॥ आबू॥५॥ अचल गिरि वधामणा रे लाल, चौमु ख प्रतिमा चार रे ॥आ॥ वलि वलि सेवक वीनवे रे साल, आवागमण निवार रे ॥आ॥बाबू॥६॥
॥अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥लागो मेरो पारस प्रनुजीसें ध्यान ॥ लागो॥ मुगता गिरि पर आप बिराजे, फरकत फरीय निशा न ॥ ला॥१॥ बारा व्रत तप बाह्य अन्यंतर, समकित नाव धरान ॥ला ॥ २ ॥ नेमीचंद कहे सुनो नाश् श्रावक, पापहीं आप पीडान ॥ ला॥३॥
॥अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ शांति मिलनकी आश हो ॥ जीया मानुवे ॥ शांति ॥ शांति मेरा वारी में शांतिको, ज्युरे फूलन बिच बास हो । जीया मा॥१॥ निशि दिन प्रनु जीको ध्यान धरत हुँ, जब लग घटमें सास हो ॥ जी० ॥ ॥ शांति जिणंदजीके चरनकी सेवा, गावे गुलाबचंद दास हो ॥ जी० ॥३॥इति ॥
॥अथ षनस्तवनं ॥ ॥ नैना सफल नई, में निरख्या नानि कुमार, अ खीयां सफल नई ॥ में ॥ नवो नव नटकत सर न हूँ आयो, अब तो राखोने मोरी लाज ॥ नैना॥
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(३६३) में॥१॥ रोम रोम आनंद नयो मेरे, अगुन करम गये नाज ॥नैनाणामें॥२॥ और चाहन कबू रह्यो नही मेरे, पायक गजरथ वाज ॥ नैना ॥में॥ ३ ॥ रामचंइ प्रनु एह मागत है, लोक शिखरको राज ॥ ॥ नैना ॥ में ॥ ४ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीसिदाचलस्तवनं ॥ ॥विमलाचल विमला प्राणी, शीतल तरु बाया ठेराणी, रस वेधक कंचन खाणी, कहे इं सुणो इंज्ञणी ॥ सनेही संत ए गिरि सेवो, चौद खेत्रमा ती रथ न एहवो ॥ सनेही संत ए गिरि सेवो॥१॥ए अांक णी ॥ बरी पालीने ननसीयें, बह अम्म काया क सीयें, मोह मन्नने सामा धसीयें, विमलाचल वेहेला वसियें ॥ सनेही० ॥.२ ॥ अन्य थानक कर्म जे करीयें, ते हेमगिरि हेगा हरीयें, बे पोलें प्रदक्षिणा फरीयें, जवजलधि हेला तरीयें ।। सनेही० ॥ ३ ॥ शिवमंदिर साधवा काजें, सोपाननी पंक्ति बिराजे, चढंता दृढ समकित बाजे,उनव्य अजव्य ते लाजे ॥ सनेही० ॥ ४ ॥ पांव पमुहा केई संता, आदीसर ध्यान धरंता, परमातम नावें नजंता, सिमाचल सी धा अनंता ॥ सनेही० ॥ ५॥ षट मासी ध्यान धरा वे, शुकराजा राज्य ते पावे, देहांतर शत्रु हरावे, शत्रु जय नाम धरावे ॥ सनेही० ॥६॥ प्रणिध्यान धरो ए गिरि साचो, तीर्थकर नाम निकाचो, मोहरायने लागे तमाचो,गुनवीर विमलगिरि साचो।सनेही॥ ७
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(३६४) ॥अथ श्रीसिदाचल स्तवनं॥ ॥ सिमाचल सिम सुहावे, अनंत अनंत कहावे, नेद पंदरथी शिव जावे. गुण अगुरु लघु निपजावे रे॥ विमलाचल वेगें वधावो॥ गिरिराज तणा गुण गावो रे, जो होवे शिवपुर जावो ॥ विम० ॥१॥ ए यां कणी ॥ जितारी अनियह लीधो, दिन सातमे जोजन कीधो ।। शुक राजायें राज तेलीधो, शत्रुजय नाम ते दीधो रे ।। वि० ॥ २ ॥ देव दानव इण गिरि आवे, जिनराजने शीश नमावे, सूत्रमांहे नाच नचावे, जोगावंचक फल पावे रे ।। वि० ।। ३ । विद्याचार ए मुनि वरिया, मर्कट फल जल संचरिया, आका शे पवनसें चलिया, देखी हेमगिरि हेठा उतरिया रे ॥ वि० ॥ ४ ॥ प्रनु देखीने यानंद पावे, जिनराजने शीश नमावे, देव साथें नावना नावे, पनी इडित स्थानकें जावे रे ॥ विज्॥ ५ ॥ ग्यान दर्शन जेहथी लहिये, नवमो श्रावकगुण वहियें, संसारनी रीतें र हियें, जिन शासन तीरथ कहियें रे॥ वि० ॥ ६ ॥ सदु तीरथनो ए राजा, सूर्यकुंममां जल ताजां, ना हातां जिन आनंद नाजा, दु कूकडो ते चंदराजा रे ॥ वि० ॥ ७ ॥ए तीरथ नेटण काजें, गुजरात नो संघ समाजें, पंथें पंथें विसामो बाजे, गिरि दे खी वधावे नन्नासें रे ॥ वि० ॥ ७॥ अढार तिर्भुते रा वरसें, मार्गशिरवदि तेरश दिवसें, नेट्या आदीस र उनसे, जाणुं नवजल पार उतरशे रे ॥ वि० ॥
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( ३६५ )
॥ ए ॥ गिरि देखी लोचन वरियां, चक्केसरी वीर केश रीया, जाय केतकी वृक्ष लहेरीयां, शेत्रुंजे नदी जल जरीयां रे ॥ वि० ॥ १० ॥ राय नरत रतन बिंब वा वे, चक्केसरी यात्रा करावे, ते त्रीजे नवें शिव जावे, शुन वीर वचन रस गावे रे ॥ वि० ॥ ११ ॥ इति ॥
॥ अथ कर्म उपर साय प्रारंभः ॥ ॥ देवदारणव तीर्थकर गएणधर, हरिहर नरवर सबला ॥ कर्म संयोगें ते सुख दुःख पाम्या, सबल हुआ म हा निबला रे ॥ प्राणी कर्म समो नही कोय ॥ कीधां कर्म विना जोगवीयां, लूटक बारो न होय रे ॥ प्राणी कर्म० ॥ १ ॥ ए की | यादीसरने अंतरा य विटंव्यों, वर्ष दिवस रह्या नूखें ॥ वीरने बार वर्ष दुःख दीधुं, उपना ब्राह्मणी कूखें रे ॥ प्राणी कर्म० ॥ २ ॥ शाव सहस सुत मूया एक दिन, सामत सुरा जैसा || सगर दू महा पुत्रे डखीयो, करम त यां फल एसा रे ॥ प्राणी० ॥ ३ ॥ बत्रीश सह स देसांरो साहेब, चक्री सनतकुमार ॥ शोल रोग शरीरें उपना, करमें कीयो तस खुवार रे ॥ प्राणी० ॥ ॥ ४ ॥ सुनूम नामें श्रावमो चक्री, कर्मे सायर ना ख्यो । पच्चीस सहस यदें बना दीठो, पण किल ह्रीं नवि राख्यो रे ॥ प्राणी० ॥ ५ ॥ ब्रह्मदत्त नामें बारमो चक्री, कर्मे कीधो धो ॥ एम जाणी प्राणी वि कामें, कर्म कोई मत बंधो रे ॥ प्राणी० ॥ ६ ॥ वीश जुजा दश मस्तक हूता, जखमणे रावल मा
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(३६६) खो॥ एकलडे जग सहने जीत्यो, कर्मथी ते प ण हास्यो रे ॥ प्राणी ॥ ७ ॥ लखमण राम म हा बलवंता, वली सत्यवंती सीता ॥ बार वरस लगें बनमांहे नमिया, वीतक तस बहु वीतां रे ॥ प्रा णी ॥ ॥ तपनकोड यादवरो साहेब, कृष्ण म हाबलि जाण ।। अटवीमांहे एकलडो मून, वा व लतो विण पाणी रे॥ प्राणी ॥ ए॥ पांव पांच म हा नजारा, हारीशेपदी नारी ॥ बार वरस लगें व न कुःख दीवां, नमिया जेम निखारी रे ॥ प्राणी ॥ ॥१०॥ सतीय शिरोमणी झपदी कहिये, ए सम अवर न कोय ॥ पंच पुरुषनी थई ते नारी, घरव क मगुं होय रे ॥ प्राणी ॥११॥ कमै हलंको कीधो हरिचंदने, वेची तारा राण। । बार वरस लगे माये आएयुं, नीच तणे घर पाणी रे ॥ प्राणी ॥१२॥ दधिवाहन राजानी बेटी, चावी चंदन वाला ॥ चो पदनी परें चग्टे वेचाणी. करम तणा ए चाला रे॥ प्राणी ॥ १३ ॥ समकितधारी श्रेणिक राजा, बेटे बांध्यो मुसके ॥ धर्मी नरपति कम दबाया, करमथी जोर न किसके रे ॥ प्राणी ॥ १४ ॥ ईश्वरदेवने पार्वती राणी, करता पुरुष कहेवाय ॥ अहोनिशि समसाणमांहे वासो, निदा नोजन खाय रे॥प्राणी ॥ १५॥ सहसकिरण सूरज परतापी, रात दिवस रहे नमतो ॥ शोलकला ससिहर जग जाचो, दिन दिन जाये घटतो रे ॥ प्राणी ॥ १६ ॥ एम अने
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( ३६७ )
क नर खंरुघा कर्मे, जल जलेरा जे साज ॥ कविहर ख करजोडिने कहे, नमो कर्म महाराज रे ॥ प्राणी० ॥ १७ ॥ इति कर्म सबाह
॥ अथ आत्मप्रबोध सवाय ॥
॥ जीव क्रोध म करजे, लोन म धरजे, मान मला ईशना ॥ कूडां करम में बांधीश, धर्म म चूकीश, विनय म मूकीश ॥ नाई रे जीवडा | दोहिलो मानव नव लाधो ॥ तुमे कांई करी तत्त्वने साधो रे नाला ॥ दोहि० ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ घर पढवाडे देरास र जातां, वीश विमास थाय ॥ नूख्यो तरश्यो रावल रातें, माथे सहेतो घाय रे ॥ जीवडा दो दि० ॥ २ ॥ धर्म ती पोसालें चाल्या, सुवा सद् गुरु वाणी ॥ एक बात करे बीजो नठी जाये, नयणे निंद नराणी रे || जींव० ॥ ३ ॥ नामें बेठो लोनें पेठो, चार पोहोर निशि जाग्यो || बे घडीनुं पडिक्क मणुं करतां, चोखो चित्त न राख्यो रे ॥ जीव० ॥ ४ ॥ ग्राम चनदश पूनम पाखी, पर्व पर्यूषण सारो ॥ बे घडीनुं पञ्चरका करंतां, एक बीजाने वारो रे || जीव||५|| कीर्त्ति कारण पगरण मांगी, अरथ गरथ सवि लूंढें, पुण्यने काजें पारकुं पोतानुं, गांवडीयें न वी बूटेरे ॥ जीव० ॥ ६ ॥ घर घरणीने घाट घडा व्यां, पहेरण या वाघा || दश यांगुली दश वेढ ज पया, निर्वाणें जावुं बे नागां रे ॥ जीवडा० ॥ ॥ ७ ॥ वांको अक्षर माथे मींरुं, नीलवट याधो
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(३६) चंदो। मुनि वण्य समय इम बोले, ए त्रण कालें वंदो रे ॥ जी डा० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ रहने मिनी सद्याय प्रानः ॥ ॥ कानस्सग्गथकी रे रहने मि, राजुल निहाली॥ चित्तडं चलियुं तव बोले नार रे ॥ देवरिया मुनिवर, ध्यानमा रेजो ॥ ध्यान थकी होये नवनो पार रे ॥ ॥ देव ॥१॥ उत्तम कुलना यादव कुल रे अजुआ ली, लोधो ने संयम नार॥ देव ॥ हुँ रेवती रे तुं ने संयम धारी, जाशो सरवे व्रतहारी रे॥ देव ॥ ॥ ध्या० ॥ २ ॥ विषधर हिष वमी आप न लेवे, क रे पावक परिचार रे ॥ देव ॥ तुफ रे बांधत नेमजी यें मुजने रे वामी, वम्यो न घटे तुमने आहार के ॥ देव ॥ ध्या० ॥ ३॥ नारी अ रे जगमां विपनी रे वेली, नारी अवगुणनो नंमार रे ॥ देव॥नारी मोहें रे मुनिवर जेह विगृता, ते नवि लहे नव पार रे॥ देवाध्या॥॥नारीनुं रूप देखी मुनिने न रहे,, ए बागममा अधिकार रे ॥ देव ॥ नारी निःसं गीतेतो मुनिवर कहीयें, न करे फरी संसार रे॥ ॥ देव० ॥ ध्या० ॥ ५ ॥ एरे सतीनां मुनिवर व यण सुणीने, पाम्या नव प्रतिबोध रे ॥ देव ॥ ने मजी नेटीने फरी संयम लीधो, कस्यो ने आतम शो ध रे ॥ देव ॥ ध्या० ॥ ६॥ धन्य रे सती रे जेणें मुनि प्रतिबोध्या, धन धन ए अगार रे॥ देव ॥
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(३६ए) ए रे वसता रे मुनिवर वयण सुगीने, फरी न करे संसार रे ॥ देव ॥ध्या ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीशालिननी सबाय प्रारंन । ॥ प्रथम गोवालिया तणे नवें जी रे, दीधुं मुनिव र दान ॥ नयरी राजगृही अवतखो जी, रूपें मयण समान ॥ सोनागी रे शालिन नोगोरे होय ॥१॥ ॥ ए आंकणी ॥ बत्रीश लक्षण गुणें जयो जी रे,पर एयो बत्रीश नार ॥ माणसने नवें देवनां जी रे, सु ख विलसे संसार॥ सो० ॥ ॥ गोनशेत तिहां पूरवे जी रे, नित नित नवला रे जोग ॥ करे सु नश नवारणां जी रे. सेव करे बदु लोग ॥ सो० ॥ ॥३॥ एक दिन श्रेणिक राजियो जी रे, जोवा आ व्यो रे रूप ॥ अंग देखी सकोमलां जी रे, थयो मन हर खित नूप ॥ सो० ॥ ४ ॥ वह वैरागी चिंतवे जी रे, मुफ शिर श्रेणिक राय ॥ पूरव पुण्य में नवि कि यां जी रे, तप आदरयुं माय ॥ सो० ॥ ५ ॥णे अवसरें श्रीजिनवरू जीरे, आव्या नयरी उद्यान । शालिन मन जम्यो जी रे, वांद्या प्रनुजीना पाय ॥ सो० ॥ ६ ॥ वीरतणी वाणी सुणी जी रे, वूतो मेह अकाल ॥ एकेकी दिन परिहरे जी रे, जिम जल बंसे पाल ॥ सो० ॥ ७ ॥ माता देखी टल वले जी रे, माउनडी विण नीर ॥ नारी सघली पायें पडे जी रे, म म बंमो साहस धीर ॥ सो० ॥ ॥ वदुअर स
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घली वीनवे जी रे, लाजल सासु विचार ॥ सर बांकी पालें चड्यो जी रे,हसलो कमण हार ।। सो॥॥ इण अवसर तिहां नावतां जी रे, धना शिर अांसु पडंत ॥ कवण कुःख तुज सांनझुं जी रे, ऊंचुं जो कहंत ॥ सो० ॥ १० ॥ चंमुखी मृग नोचनी जी रे, बोलावी जरतार ॥ बंधव वात में सांजली जी रे.ना रीनो परिहार ॥ सो० ॥ ११ ॥ धनो जणे सुण ये लडी जी रे, शालिन पूरो गमार ॥ ज. मन श्रा ण्यं बंमवा जी रे, विलंब न कीजें लगार ॥ सो० ॥१२॥ कर जोडी कहे कामिनी जी रे, बंधव समो नही कोय ॥ कहेतां वातज सोहली जी रे,.मूकतां दोहली होय ॥ सो ॥१३॥ जारे जातें श्म कह्यो जी रे, तो में बंमी रे आठ ॥ पिडा में हसतां कह्यु जो रे, कुणगुं करगुं वात ॥ सो० ॥ १४ ॥णे व चनें धनो नीसखो जी रे, जाणे पंचायण सिंह ॥ ज सालाने साद कस्यो जी रे,घेला कठ अबीह ॥ सो० ॥ १५ ॥ काल आहेडी नित नमे जी रे, पूंठे म जो इश वाट ॥ नारीबंधन दोरडी जी रे, धव धव उमे निराश ॥ सो० ॥ १६ ॥ जिम धीवर तिम माबलो जी रे,धीवरें नाख्यो रे जाल ॥ पुरुष पड़ी जिम माब लो जीरे, तिमहिं अचिंत्यो काल ॥ सो० ॥ १७ ॥ जोबन नर बिहुँ नीसया जी रे, पोहोता वीरजीनी पास ॥ दीक्षा लीधी रूअडी जी रे, पालें मन नना स ॥ सो॥१७॥ मास खमणने पारणे जी रे,पूछे श्री
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(३७१) जिनराज॥यमने गुरुज गोचरीजी रे,लान देशे कुरा
आज ॥सो॥१॥ माता हाथे पारणु जी रे,याशे तु मने रे आज ॥ धीर वचन निश्चय करी जी रे, आव्या नगरीमांज ॥सो॥२०॥ घरे आव्या नवि उत्लख्या जीरे, फरिया नगरी मकार ॥ मारग जातां महिया रडीजी रे, मामी मलि तेणि वार ॥ सो० ॥ १ ॥ मुनि देखी पन ननस्युं जी रे, विकसित थइ तल देह ॥ मस्तक गोरस सूजतो जी रे, पडिलान्यो धरि नेह ॥ सो० ॥ २२ ॥ मुनिवर वोहोरी चालिया जी रे, आव्या श्रीजिनपास ॥ मुनि संशय ज पूडियो जी रे, माय न दीधुं दान ॥ सो ॥ २३ ॥ वीर कहे तुमें सांजलो जी रे,गोरस वोहोखो रे जेह ॥ मार ग मली महियारडी.जी रे, पूर्व जन्म माय एह ॥ सो ॥ २४ ॥ पूरव नव जिनमुखें लही जी रे, ए कत्र नावें रे दोय ॥आहार करी मुनि धारियो जी रे, अणसण गुचज होय ॥ सो० ॥२५॥ जिन आ देश लही करी जी रे, चढिया गिरि वैनार ॥ शिला ऊपर जश् करी जी रे, दोय मुनि अणसण धार ॥ ॥सो॥२६॥ माता नश संचयां जी रे, साथे बद् परिवार ॥ अंतेनर पुत्रज तणो जी रे, लीधो सघलो सार ॥ सो॥ २॥ समवसरणे आवी करी जी रे, वांद्या वीर जगतात ॥ सकल साधु वांदी करी जी रे, पुत्र जोवे निजमात ॥ सो० ॥ २७ ॥ जोई सघली परषदा जी रे, नवि दीठा दोय अणगार ॥ कर जोड़ी
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( ३७२ )
करे वीनति जी रे, जांखे श्रीजिनराज ॥ सो० ॥२॥ वैनार गिरि जाइ चड्या जी रे, मुनिदरिसण कमंग ॥ सहु परिवारें परवखा जी रे, पहोता गिरिवरशृंग ॥ ॥ सो० ॥ ३० ॥ दोय मुनि सण उच्चरी जी रे, जीने ध्यान मकार ॥ मुनि देखी विलखा थया जी रे नयणें नीर अपार ॥ सा० ॥ ३१ ॥ गदगदशब्दे बोलती जी रे, मली बत्री नार ॥ पिडा बोलो बो लडा जी रे, जिम सुख पामे चित्त । सो० ॥ ३२ ॥
में तो अवगुणें नया जी रे, तुं सही गुण जंमार ॥ मुनिवर ध्यान चूका नही जी रे, तेहने वचने लगार ॥ सो० ॥ ३३ ॥ वीरा नयरों निहालियें जी रे, जिम मन थाये प्रमोद ॥ नयण नघाडी जोइयें जी रे, मांता पा मे मोद | सो० ॥ ३४ ॥ शालिन माता मोहनी जी रे, पोहोता अमर विमान || महाविदेहें सीऊशे जीरे, पामी केवल ज्ञान ॥ सो० ॥ ३५ ॥ धनो धर्मी मुक्के गयो जी रे, पाम शुक्ल ध्यान ॥ जे नर नारी गावशे जी रे, समयसुंदरनी वाल || सो० ॥ ३६ ॥
॥ अथ चोत्रीश अतिशयनो बंद ||
|| श्री सुमतिदायक डुरितघायक, ज्ञान अनुभव श्रीवरी ॥ तसु सुगुरु केरा चरण प्रणमुं युगम कर जोडी करी ॥ बहु जाव न थुद्धं जिनवर, चोत्रीशे अतिशय करी ॥ जे सुगुरु मुखथी सुल्या ते कहुं, श्रागम शास्त्र अनुसरी ॥ १ ॥ तिहां प्रथम प्रतिश य श्री जिन केरा, रोम नख वाधे नही ॥ नीरोग निर्म
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( ३७३ )
ल गात्र जेहनुं, द्वितिय अतिशय ए सही ॥ गोदूध सरिखां मांस लोही, तृतिय एह वखाणियें ॥ चोथो ते उत्पल गंध सरिखो, श्वासोवास सो जागियें ॥ २ ॥ आहार ने नीहार प्रबन, एह अतिशय पांचमो ॥ श्राकाशगत धर्मचक्र बहो, गगन बत्र ए सातमो ॥ रह्यां ते अंबर श्वेत चामर, युग्म अष्ट म ए को ॥ स्फटिक सिंहासन सुनिर्मल, नवमो अतिशय ए जह्यो ॥ ३ ॥ श्राकाशगत ध्वज सहस मंमित, इंइध्वज आगल चने ॥ ए दशम अतिशय को श्रुतमां, देखी परमत खलनले ॥ इग्यारमे वलि स्वामी ऊना, रहे वली बेसे जिहां ॥ सहाय स ध्वज देव ततक्षण, अशोकतरु विरचे तिहां ॥ ४ ॥ द्वादश व्यतिशय प्रनामंगल, पूठें रविकर जी पियें ॥ रमणीय सुंदर भूमि नागसो, तेरमो ए दीपियें ॥ अ धोमुख होये सर्व कंटक, चौदमे प्रतिशयवरु ॥ नुकून थइने प्रणमे ऋतु सब, पंचदशमो सुखकरू ॥ ५ ॥ संवर्त्तपवनें भूमि पूंजे, योजन लगें ए शो लमे ॥ सुगंध वर्षा तिहां वरसे, प्रगट अतिशय सतर मे || जानुप्रमाणे बीट नीचां पंचवर्ण सोहामणां ॥ चलना फूल वरसे, अढारमे अतिशय घणां ॥ ६ ॥ मनोज्ञ शब्दादिकही नासे, जंगलीशमे प्रतिश यें वली ॥ विशमे अतिशयें सुनद थाये, एम कहे प्रभु केवली || एकवीशमे प्रभु तणीय देशना, योजन लगें सवि जन सुणे ॥ बावीसमे धर्म ई मागध, ना
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( ३७४ )
पायें जिनजी नये ॥ ७ ॥ त्रेवीशमे जिनवाणि जन ने, हेतु शिवनणी परिणमे ॥ चोवीशमे प्रभु चर ए मूले, वैर जंतुनां उपशमे ॥ अन्यलिंगी नमे जि नने, पंचविंशति यतिशयें || अन्य तीर्थी मोन था ये, वीशमे प्रभुं निश्वयें || ८ || पणवीश जोयण लगें जिनथी,ईती ने मारी नहीं ॥ स्वचक्र ने परचक्र न होए, त्रीश अतिशय ए सही || अतिवृष्टि ने अनावृष्टि 5 जिंक, त्रण ए नवि ऊपजे ॥ चोत्रिशमे वलि व्याधि पीडा, आदि दुःख न संपजे ॥ ए ॥ चोत्रीश प्रति शय एह कहिया, सूत्र समवायांगमां ॥ ते जातां rai हिये धरतां, रहे यातम रंगमां ॥ निज शुद्ध तम रूप प्रगटे, नावसुं जो ध्याइयें ॥ दर्शनादिक रत्न लहियें, परम पद सुख पाइयें ॥ १० ॥ श्रत नगवंत तणा अतिशय, जणो याणी श्रासता ॥ बहु पुष्य करियें ध्यान धरियें, सूख लहियें साश्वतां ॥ श्रीसूरिविद्या नदधि सेवक, शिष्य इणि परें संस्तवे ॥ मुनि ज्ञानसागर कहे प्रभुपद, सेवा मागुं नवो नवें ॥ ११ ॥ अथ पद्मावती आराधना प्रारंभ ||
॥ हवे राणी पदमावती, जीवराशि खमावे ॥ जाए पणुं जग ते ननुं, इस वेला यावे ॥ १ ॥ ते मुज मिठामि एक्कडं, अरिहंतनी सांख ॥ जे में जीव विरा धिया, चनराशी लाख ॥ ते मुज० ॥ २ ॥ सात ला ख ष्टथिवीतला, साते अपकाय ॥ सात लाख ते कायना, साते वली वाय || ते मुऊ० ॥ ३ ॥ दश
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(३७५) प्रत्येक वनस्पति, चनदह साधार ॥ बी ति चरिंदी जीवना,बेबे लाख विचार ॥ ते ॥ ४ ॥ देवता ति बैंच नारकी, चार चार प्रकाशी॥ चनदह लाख मनुष्य ना, ए लाख चोराशी ॥ ते ॥ ५॥ ण नवें परन वें सेवियां, जे पाप अढार ॥ त्रिविध त्रिविध करी परिहरूं, मुर्गतिनां दातार ॥ ते० ॥ ६ ॥ हिंसा की थी जीवनी, बोल्या मृषावाद ॥ दोष अदत्तादानना, मैथुन उन्माद ॥ ते० ॥ ७ ॥ परिग्रह मेट्यो कारि मो, कीधो कोध विशेष ॥ मान माया लोन में की यां, वली राग ने शेष ॥ ते ॥ ७ ॥ कलह करी जी व हव्या. दीधां कूडां कलंक ॥ निंदा कीधी पार की, रति अरति निशंक ॥ ते ॥ ५ ॥ चाडी कीधी चोतरे, कीधो थापणमोसो ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म नो, ननो प्राण्यो जरोंसो ॥ ते० ॥१०॥ खाटकीने नवें में कीया, जीव नानाविध घात ॥ चडीमार नवें चरकलां, मावां दिन रात ॥ ते० ॥ ११ ॥ का जी मुनाने नवें, पढी मंत्र कोर ॥ जीव अनेक ऊ ज्ने कीया, कीधां पाप अघोर ॥ ते ॥ १२ ॥ मा बीने नवें माउलां, जाव्यां जलवास ॥ धीवर नील कोली नवें, मृग पाड्या पास ॥ ते० ॥१३॥ कोटवालने नवें में कीया, आकरा करदंग ॥ बंदी वान मराविया, कोरडा बडी दंम ॥ ते० ॥ १४ ॥ परमाधामीने नवें, दोधां नारकी उरक | बेदन ने दन वेदना, ताडन अति तिरक ॥ ते ॥१५॥ कुं
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( ३७६ )
जारने नवें में किया, नीमाह पचाव्या || तेली नवें तिल पीलिया, पापें पिंक जराव्या ॥ ते० ॥ १६ ॥ हाली नवें हल खेडीयां, फाड्यां पृथ्वीनां पेट ॥ सू म निदान घणां कियां, दीधा बलद चपेट ॥ ते० ॥ १७ ॥ मालीने नवं रोपिया, नानाविध वृक्ष ॥ मूल पत्र फल फूलनां, लागां पाप ते लक्ष् ॥ ते० ॥ १८ ॥ अधोवायाने नवें, नखा अधिका चार ॥ पोठी पूठें कीडा पड्या, दया नाली लगार || ते० ॥ १९ ॥ बीपाने नवें बेतस्था, कीधां रंगा पास ॥ अनि श्रारंभ कीधा घणा, धातुर्वाद अन्यास ॥ ॥ ते० ॥ २० ॥ शूरपणे रण जूऊता, माखां माण सवृंद ॥ मदिरा मांस माखण नख्यां खाधां मूल ने कंद ॥ ते० ॥ २१ ॥ खाण खणावी धातुनी, पाणी नल्लेच्यां ॥ प्रारंभ कीधा प्रतिघणा, पोतें पापज सं च्यां ॥ ते ॥ २२ ॥ कर्म अंगार कीया वली, धर में दव दीधा ॥ सम खाधा वीतरागना, कूडा कोसज कीधा ॥ ते ॥ २३ ॥ बिल्लीनवें नंदर लीया, गिरो ली हत्यारी ॥ मूढ गमार तो नवें, में जू लीख मा तणे री ॥ ते० ॥ २४ ॥ नाडनुंजा तणे नवें, एकेंयि जी व ॥ ज्वारि चला गहूं शेकिया, पाडता रीव ॥ ॥ ० ॥ २५ ॥ खांमण पीसा गारना, आरंभ अ नेक ॥ रांधण इंधण अग्निनां कीधां पाप नदेक ॥ ते ॥ २६ ॥ विकथा चार कीधी वली, सेव्यां पां च प्रमाद ॥ इष्टवियोग पाड्या कीया, रूदन विपवा
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(३७७) द ॥ ते० ॥ २७ ॥ साधु अने श्रावक तणां, व्रत ल हीने नांग्यां ॥ मूल अने उत्तर तणां, मुफ दूषण ला ग्यां ॥ ते ॥ २७ ॥ साप वीबी सिंह चीवरा, शक राने समली॥ हिंसक जीव तणे नवें, हिंसा कीधी सबली ॥ ते ॥ ए॥ सूवावडी दूषण घणां, वली गर्न गलाव्या ॥ जीवाणी ढोल्यां घणां, शील व्रत नंजाव्यां ॥ ते ॥ ३० ॥ जव अनंत जमतां थकां, कीधा देह संबंध ॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसिलं, ति पशुं प्रतिबंध ॥ ते॥३१॥नव अनंत जमतां थकां, कीधा परिग्रह संबंध ॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसिलं, तिणगुं प्रतिबंध ॥ ते ॥ ३२ ॥ नव अनंत नमतां थकां, कीधा कुटुंबसंबंध ॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसि रु, तिणगुं प्रतिबंध ॥ ते ॥ ३३ ॥ इणि परें शह नव परनवें, कीधां पाप अखत्र ॥ त्रिविध त्रिविध करि वोसिलं, करुं जन्म पवित्र ॥ ते० ॥ ३४ ॥ ए गि विधे ए आराधना, जावें करशे जेह ॥ समय सुंदर कहे पापथी, वली बूटशे तेह॥ ते ॥३५॥राग वेराडी जे सुणे, एह त्रीजी ढाल ॥ समयसुंदर कहे पापथी, लूटे ततकाल ॥ ते ॥ ३६ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री आत्मशिदानावना ॥ ॥दोहा ॥ श्रीजिनवरमुरववासिनी, जगमें ज्यो तिप्रकाश ॥ पदमासन परमेश्वरी, पूरे वंबित आश ॥ १ ॥ ब्रह्मसुता गुण आगली, कनक कमंमलु सा र ॥ वीणापुस्तकधारिणी, तुं त्रिनुवन जयकार ॥ २ ॥
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(३७) श्रीसरसति जिन पाय नमी, मन धरि हर्ष अपार ।। आतम शिदा नावना, ना सुणो नर नार ॥३॥ रे जिव सुण तुं बापडा, हिये विमासी जोय ॥ श्रा प स्वारथी सदु मल्युं, ताहारुं नहि जग कोय ॥४॥ धर्म विना सुण जीवडा, तुं जम्यो जव अनंत ॥ मू ढ पणे नव तें किया, श्म बोले नगवंत ॥ ५॥ लाख चोराशी योनिमां,फरी लियो अवतार ॥ एकेकी होनी वली, अनंत अनंती वार ॥६॥ चनद राज परमाए श्रा, सूई अयनाय नाम॥ कर्मवशे जिव तुं न यो,मूरचे तन ताम ॥७॥ निगोद सू न बादरें, पुजल अनंत अ पार ॥ एतो काल तुं तिहां रह्यो, हवे कर हैये विचार ॥॥ श्वास नश्वासा एकमां, मरण सतर अंध कीध । सूक्ष्म निगोदमाहे वली,ए जि, वचन प्रसीध एनर य विगलेंडी तिर्यगति, नव कीया बद्ध हेव ॥ नुवन पति व्यंतर जोतिषी, नर विमानिक देव ॥ १० ॥ इम जमतां नमतां लियो, मनुथ जनम अवतार । मिथ्यात्वपणे नव निगम्या. काज न सीध लगार ॥ ॥ ११॥ जगमां जीव अडे बदु, एकगुं अनंतीवा र ॥ विविधप्रकार सगपण कियां, हैया साथ वि चार ॥ १२ ॥ तो कुण आपणुं पारकुं, कुण वेरी कुण मित्त ॥ राग हेप टाली करी, कर समता क चित्त ॥ १३ ॥ पूर्व कोडिने आउखें, ग्यानी गुरुह अपार ॥ नुत्पति कहि जिताहरी, कहेतां नावे पार ॥ १४ ॥ पुत्र पिता पण अवतरे, पिता पुत्र पण
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(३७ ) जोय ॥ माता सगपण नारि मली, नारामा ता होय ॥ १५॥ सूतो सुपन जंजालमां, पाम्यो जाणे राज ॥ जब जाग्यो तब एकलो, राजन सीके काज ॥ १६ ॥ तिम ए कुटुंब सद मल्यु, खोटी मा या जाल ॥ प्रायू पहोंचे आपणे, खिण थाये वि सराल ॥ १७ ॥ सोदो लेयण जण मिले, जिहां जोडी सहि हाट ॥ ाथ सारु विवसाय करी, फरि चाव्या निजवाट ॥ १७ ॥तिम जव जमतां सवि मल्या, कुटुंब जोडि जो हाट ॥ पुण्य पाप विवसाय करी, जो कतरियें घाट ॥ १५ ॥श्म कुटुंब मिल्यु कारिमुं, माय अने वलि ताय ॥ बंधू नगिनी नार जा, को केनो न कहाय ॥ २० ॥ नव नव नाट क तुं वली, नाच्यो करि बदु रूप ॥ नाटक एकगुं नाचियो, जो लूटे नवं कूप ॥ १ ॥ उत्तम कुल नर नव लही, पामि धर्म जिनराय ॥ प्रमाद मू की कीजियें, खिण लाखीणो जाय ॥ २२ ॥ जिसुं कीजे तिसुं पायें, करे तैसा फल जोय ॥ सुख उख
आप कमायें, दोष न दीजें कोय ॥ २३ ॥ दो पदीजें निज कर्मने, जिण नवि कीधो धर्म ॥ धर्म विना सुख नवि मले, ए जिन शासन मर्म ॥२४॥ वावी कूरी कोदरी, तो क्युं लुपीयें शाल ॥ पुण्य वि ना सवि जीवडा, आशा आल पंपाल ॥ २५ ॥ आय पहोती आतमा, कोइ नवि राखण हार ॥ इंश चंद जिनवर वली, गया सवी निरधार ॥२६॥
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(३८०)
मोहोढा मोढ न कीजियें, न किजें मोहोटी वात ॥ कोडी अनंत में वेचियो, त्यारे किहां गई जात ॥२७॥
आपसरूप विचार तुं, जो दुइ हियडे शान ॥ करणी तेहवी कीजियें, जिम वाधे जग वान ॥ २७ ॥ वमपण धर्म थाये नही, जोबन एजें जाय ॥ तरु ण पणे धसमस करी, पडे फरी परताय ॥ २ ॥ जरा आवी जोबन गयुं, शिर पलिया ते केश ॥ ल लुता तो बोडी नहीं, न कस्यो धर्म लवलेश ॥३०॥ पश्यि जिहां परवडा, रोग जरा नावंत ॥ जो बन चंचल आवे सदा, कर तुं धर्म महंत ॥ ३१ ॥ बते हाथ न वावस्यो, संबल न कियो साय ॥ प्राय गई मन चेतियो, पडे घसे निज हाथ ॥ ३२ ॥ध न जोबन नर रूपनो, गर्व करे ते गमार ॥ कृष्ण बल नहारिका, जातां न लागी वार ॥ ३३ ॥ आठ पहोर तुं धसमसी, धनार्थ देशांतर जायः॥ सो धन मेट्युं ताहरूं, उरज कोई खाय ॥३४॥ आंख त णे फरुकडे, कथल पाथल थाय ॥ इस्युं जाणी जिव बापडा, म करिश ममता माय ॥ ३५ ॥ मा या सुख संसारमां, ते सुख सहिय असार ॥ धर्म प सायें सुख मले, ते सुख नावे पार ॥ ३६ ॥ नय न फरुके जिहां लगें, तिहां तहारु सङ कोय ॥ नयन फरूकत जब रही, तब तहारूं नहि होय ॥ ॥ ३७ ॥ पाप कियां जिव तें वद, धर्म न कियोस गार ॥ नरग पड्यो यम कर चड्यो, तिहां करे
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(३७१) पोकार ॥ ३८ ॥ कोई दिन राणो राजियो, को दि न जयो तुं देव ॥ को दिन रांक तुं अवतस्यो, क रतो नरज सेव ॥३॥कोदिन कोडी परिवस्यो, को दिन नहि को पास ॥ को दिन घर घर एकलो, नमे सही ज्युं दास ॥४०॥ को दिन सुखासन पालवी, जेठमची चकमोल ॥ रथपाला आगल चले, नित नित करत कलोल ॥ ४१ ॥ को दिन कूर कपूर तुं, जावत नही लगार ॥ को दिन रोटी कारणे, न मतो घर घर बार ॥ ४२ ॥ हीर चीर अंग पहेरि यां, चुत्रा चंदन बदु जाय ॥ सो तन जतन करत यौं, दिणमांही विघटाय ॥४३॥ सातम गोख तुं शो नतो, कामिनि नोग विलास ॥ इक दिन उही प्राव शे, रहेणोही वनवास ॥४४॥ रूपें देव कुमार स म, देख मोहे नर नार ॥ सो नर खिण कमां व ली, बलि नलि होवे बार ॥ ४५ ॥ जे विन घडि य न जायती,सो वरसां सो जाय ॥ ते वन्नन विसरी गयो, र हिंसुं चित लाय ॥ १६ ॥ देखत सब जुग जातुही, थिर न रही सवि कोय ॥ इस्युं जाणी नलु कीजियें, हियड विमासी जोय ॥ ४७ ॥ सुरपति स वि सेवा करे, राय राणा नर नार ॥ आय पहोते आ तमा, जात नलागे वार ॥ ४ ॥ देखत नर अंधा दुआ, जे मोह विंट्या बाल ॥जण्या गण्या मूरख व ली, नर नारी बाल गोपाल ॥४ए॥ रात दिवस नि ज नारिद्यु, तुं रमतो मनरंग ॥जे जोश्ये ते पूरतो,क
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(३२) लट आणी यंग ॥ ५० ॥ सो रामा जीनं ताहरी, हणमांही विघटाय ॥ स्वारथ पहोंचत जब रह्यो, तब फरि वैरी थाय ॥ ५१ ॥ समुहीप सायर स बे, पामे को नर पार ॥ नारी नि चरित्रनो, को न वि पाम्यो पार ॥ १२॥ ब्रह्मा नारायण ईश्वर, इंश चं नर कोड ॥ लना वचनें लालची. ते रह्या वे कर जोड ॥ ५३ ॥ ना. वदन सोहामापुं, पण वाघण अवतार ॥ जे नर एहने वा पड्या, तस लूंट्यां घर वार ॥ ५४॥ हसतमुखी दीसे नली, क रति कारमो नेह ॥ कनकलता बाहिर जिसी, अं तर पित्तल तेह ॥ ५५ ॥ पहलि प्रीत करि रंगा, मी ठा बोली नार ॥ नरने दास करि आपणो, मूके टाकर मार ॥ ५६ ॥ नारी नदन तलावडी, बड्यो सयल संसार ॥ काढणहारो को नही, ब्रमा बूंब न वार ॥ ५७ ॥ वीश वसाना जे नरा, कोई नही त स वंक ॥ नारी संगति तेहने, नि. चढे कलं क ॥ ५७ ॥ मुंज ने चंप्रद्योतना, दासीपति पा म्या नाम ॥ अजय कुमार बुधि आगलो, तेह ठग्यो अनिराम ॥ ५॥ नारी नहि रे बापडा, पण ए विष नी वेल ॥ जो. सुख वांजे मुक्तिनां, नारी संगति मेल ॥ ६० ॥ नारी जगमां ते जली, जिण जायो पु रुष रतन्न ॥ ते सतिने नित पाय नमुं, जगमां ते ध न धन्न ॥ ६१ ॥ तुं पर काम करी सदा, निज का ज न करिय लगार ॥ अदत्र नत्र करिय तुं, किम
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(३३) बूटिश नव पार ॥ ६ ॥ पाप घडो पूरण जरी, तें ली शिर नार ॥ ते किम बूतिश जीवडा, न करी ध में लगार ॥ ६३ ॥ सुं जाणो कूड कपट, बल नि इतुंबांम ॥ ते बांमीने जीवडा, जिन धर्म चित मांग ॥ ६४ ॥ जिण वचने पर मुख हुए, जिण हो य प्राणी घात ॥ क्लेश पडे निज प्रातमा, तज न त्तम ते वात ॥ ६५ ॥ जिम तिम पर सुख दीजियें, पुःख न दीजें कोय ॥ मुख देई उरख पामियें, सुख दे ई सुख होय ॥ ६६ ॥ पर तांत निंदा जेरे. कूडां देवे घाल ॥ मर्म प्रकासे परतणा, तेथि नलो चं माल ॥ ६७ ॥ पटमासीने पारणे, इक सिथ लहे याहार ॥ फरतो निंदा नवि टले, तस मुर्गति अव तार ॥ ६ ॥ बार उपर जिम लीप', तिम को) तप कीध ॥ तस तप जप संजम मुधा, एके काज न सीध ॥ ६७ ॥ पूर्व कोडिने आनखे, पाली चारित्र सार ॥ सुरूत सुणो सवि तेहy, मां होवे बा र ॥ ७० ॥ पर अवगुण सरशव समो, अवगुण नि ज मेरु समान ॥ कां करे निंदा पारकी, मूरव आप ण शान ॥ ७१ ॥ पर अवगुण जिम देखियें, तिम परगुण तुं जोय ॥ परगुण लेतां जीवडा, अखय जरामर होय ॥ ७२ ॥ क्रोधी नर अ सदा, कहिये जे उलटी रीश ॥ ते डोडी उर आतमा, रहे जोय ण पणवीस ॥ ७३ ॥ गुण कीधा माने नही, अ वगुण मांमी मूल ॥ ते नर संगति बांझियें, पग पग
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(३७४। मां घासूल ॥ ४ ॥ निंदा करे जे आपणी, ते जीवो जगमांय ॥ मल मूत्र धोए परतणां, पडे अधोगति जाय ॥ ७५ ॥ जे प्रल मूत्र धोए सदा, गुणवतना निश दिस ॥ ते पुर्जन जीवो घj, जगमां कोडि वरी म ॥ ७६ ॥ सजन पुर्जन किम जाणियें, जब मुख बोले वाण ॥ सज्जन मुख अमृत लवे, उर्जन विप नी खाण ॥ ७७ ॥ नरनव चिंतामणि लही, आले तुं मम हार ॥धर्म करीनं जीवडा, सफल करो अव तार ॥ ७० ॥ सकल सामग्री तें लही, जिण तरि यें संसार ॥ प्रमाद वशे नव कां गमे, कर निज दये विचार ॥ ७॥ ॥ दी उपदश लागे नही, जो नदि चिंते आप ॥ आप सरूप विचारता, लूटी जे सधि पाप ॥ ७० ॥ जिण रस पार कियां तुमें, तिण रस तुं कर धर्म ॥ अदत्र नत्र नव अनंतना, लूटीजें सवि कर्म ॥ ७१ ॥ जिम आउखा दिन गुणी, वर स मास घडि मान ॥ चेति सके तो चेतजे, जो दो ए हियडे शान ॥ ७२ ॥ धन कारण तुं फल फल्ने, धर्म करि थाये सूर ॥ अनंत नवनां पाप सवि, दणमां जाये दूर ॥ ७३ ॥ जे रचना दिन कंग ती, ते रचना नहिं सांऊ ॥ इस्युं जाणी रे जीवडा, चेतहि हियडा मांऊ ॥ ७ ॥ आशा अंबर जेव डी, मरवू पगला हे ॥ धर्म विना जे दिन गया, तिण दिन कीधी वेठ ॥ ५ ॥ रे जिव सुण तुं बाप डा, म करिश गर्व गमार ॥ मूल स्वरूप देखी करी,
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(३५) निज जीवातुं विचार॥६॥ कर्मे को नवि टियें, इंश चंद नरदेव ॥ राय राणा मंमलिक वली, अवर नरज कुण हेव ॥७॥ वरस दिवस घर घर जम्या,
आदिनाथ जगवंत ॥ कर्म वशे उख तिणे लह्यां, जे जगमां बलवंत ॥ ७ ॥ पास जिणंद प्रतिमा र हि, नपसर्ग कियो सुरिंद ॥ ते उपसर्गने टाहियो. पद्मावति धरणिंद ॥ नए ॥ काने खीला घातिका, च रणे रांधी खीर ॥ तेदुंने कम नड्यो, चोविशनो श्री वीर ॥ ॥ मन्त्री माया तप करी, पाम्या स्त्री अवतार ॥ सुरपति कोडि सेवा करी, कर्मनो एह प्रकार ॥ १ ॥ पुरुषविपे चूडामणि, जरत नरेस र राय ॥ बाहुबलि हार मनावियो, आज लगें कहे वाय ॥ २ ॥ कीधां कर्म न बूटिये, जेहनो विषमो बंध ॥ ब्रह्मदत्त नर चक्कवई, सोल वरस लगें अंध ॥ ३ ॥ आहमो सुनूम चकवी, झदि तगो नहिं पार ॥ कर्मवशे परिवारशुं, बूमा समुइ मका र ॥ ए ॥ पांच पांव अतुली वली, तेह नम्या वनवास ॥ इस्या पुरुष जगमां वली, दिनपणे फस्या निराश ॥ एए ॥ राम लखमण जगमां वली, जेह नुं जपे सदु नाम ॥ ते वनवासमाहे रह्या, जे बदु गुणना धाम ॥ ए६ ॥ रावण विकट रामें ह एयो, कृष्णे हण्यो जरासंध ॥ जराकुमर हरिने हण्यो, देखो कर्मनो बंध ॥ ७ ॥ निज पुत्री तातें वरी, तस कूरखें सुत देव ॥ कर्मवशे जिव कप
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(३७६) नो, त्रिप्टष्ठ वासूदेव ॥ ए ॥ जमतां जमतां अव तस्यो, देवानंदानी कूरव । व्यासी रात्रि तिहां रही, क मैं लडं वलि दुःख ॥ ८ । ॥ इंश अहिव्याशुं जुन, लुब्ध हुन सुरदेव ॥ ईश्वर देव नचावियो, पारवती पियु हेव ॥ १०० ॥ लाल खमणने पारणे, कुल वालु अगार ॥ चित बलर संग नारियें, चुकत न लागी वार ॥ १०१ : गंचेशे रामा तजी, लीयो संयम नार ॥ दश दश नंदिपेण बूफ़वी, नर कोश्या दरवार ॥ १०२ ॥ वाधी तांतणा सूत्रना, वीट्यो आईकुमार ॥ सुत मोहनी वशे रही, पनि लियो संज म जार ॥ १०३ ॥ पंचसया मुनि नेमना, उर श्री पासना बार ॥ जोग कारण संयम तजी, ममियो तिणें घरबार ॥ १०४ ॥ नवाणुं कोडि कंचन तजी, उर तजि यावे नार ॥ ते फुःकर नित वंदियें, श्रीजंब त्रण काल ॥ १०५ ॥ एक कन्या कोडी कंचन, तजि जेणे वलि दूर ॥ वहेरस्वामि ते वंदीयें, नित गम ते सूर ॥ १०६ ॥ नवाणुं पेटी सुरतणी, नित नित होय निर्माल्य ॥ नरजव सुरसुख जोगवे, ते शालि न कुमार ॥ १०७ ॥ रत्न कंबलने कारणे, श्रेणि क आव्यो बार ॥ गोखथकी बोली रह्यो, लीयो संजम नार ॥ १०७ ॥ आठ नारी जेणे तजी, ते धन्नो धन धन्न ॥ नारी हास्य संयम लीयो, राख्यु ठाम जिणें मन ॥ १० ॥ खट नंदन देव कि तणा, नदिलपुर सुलसा नार ॥ तास घरे ते उडया, रूपें
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(३७७) देव कुमार ॥ ११ ॥ बत्रीश बत्रीश पदमणी, बत्रि श बत्रिश हेम कोड ॥ नेम समीप संयम वरी, ते वंदूं कर जोड ॥ १११ ॥ सहस पुरुषगुं संजम लि यो, श्रीनेमीसर हाथ ॥ ते थावच्चो वंदियें, मोचव कस्यो यनाथ ॥ ११२ ॥ बार वरष बह आंबिल, कीधां शिवकुमार ॥ शीयल व सदा धरी, ए पण छ करकार ॥ ११३ ॥ कोश्या मंदिर चोमासुं रही, चो राशी चोवीश ॥ ते शुलिन मुनि वंदिये, अश्वादु गुरुशिष्य ॥ ११ ॥ कपिला संगें नवि चल्यो, शेठ सुदर्शन चंग ॥ शूली सिंहासन थई, सुर करे मनने रंग ॥ ११५ ॥ शिवरमणीने कारणें, जिण सुख बंमयां देह । तिस नाम दोय चार लीजियें, नवि जन सुगजो तेह ॥ ११६ ॥ वरस दिवस कानसग किन, बाहूबल अणगार ॥ मानगजेंथी कृतस्यो, तब लियो केवल सार ॥ ११७ ॥ गजसुकमाल शिर शो मने, देखि धस्या अंगार ॥ समता पसायें ते वली, पाम्या जवनो पार ॥ ११॥ मेतारज शिर सोनि ये, वाधर वीट्यो धरि खेद ॥ निजमन गमज रा खयुं, कियो संसारनो वेद ॥ ११ए । सक्कोसल सुक माल मुनि, बलुओँ वाघण अंग ॥ बापनी जामि मा जखी, शिवपुरि वरि मनरंग ॥१२॥पूर्व जव घि या शिवालणी, तिण जख्यो अवंति सुकुमाल ॥ न लिनीगुल्म विमानमां, पाम्यो सुख ततकाल॥११॥ पंचशत शिष्य खंधक तणा, घाणी पील्या सोय ॥
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(३७) शिवनयरी शिव पापिया, ए समता फल जोय ॥ १२२ ॥ चिलायति पुत्र नारि शिर, बेदीने कर लीध ॥ उपशम संवर विवेकथी, कृतकर्म दरें कीध ॥ १२३ ॥ दिन प्रति सात हत्या करी, अर्जुनमा ली नाम ।। परिसह देशि दाधरी, पाम्या शिवपुर गम ॥१२४॥ मुनिपति मनि कानुलग रहे, अगनी दाधी देह ॥ परिसह साह पदवी वरी, अमर वधू धरि नेह ॥ १२५ ॥ वंश उपर नाटक करी, एला पुत्र कुमार ॥ जाति ममरण कपनु, ज्ञान अनंत अपार ॥ १२६ ॥ कर्म कों आपाढमुनि, जन्त नाटक कीध ॥ अनित जावना नावतां, तिणे तिहां केवल लीध ॥ १२७ ॥ सुशिष्य पंथकजी मुनि, गुरु प्रमाद कियो दूर ॥ शत्रुजय अणसण करी, ते वंदं गुण सूर ॥ १२ ॥ चंझोड़ गुरु खं, करी, रजनी कियो विहार॥ शिष पण केवल पामियो, तिम गुरु केवल धार !! १२ए ॥ षटमासीने पारणे, ढंढ ण नाम कुमार ॥ मोदक चूरत पामियो, केवल ज्ञा न नदार ॥ १३॥ पट खंम राज हेला तजी, लीधो संजम जार ॥ पटदश रोग इहां सह्या, श्रीश्रीसनत कुमार ॥१३१॥ कुर नरवतां केवल लघु, कूरगड अणगार ॥ दमा खग हाथे धरी, जे मुनिमां सिण गार ॥ १३ ॥ पंखी प्राणज राखवा, करि खंमो खंम देह ॥ मेघरथ राय तणे नवें, प्रसन्न दु सुर तेह ॥ १३३ ॥ वंदी वीर गुमानगुं, दशान
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( ३८५ )
नरसिंह || सुरपति पाय लगाडियो जग राखी जिल लीह ॥ १३४ ॥ प्रसन्न चंद काउस गमां, कोपी युद्ध करंत ॥ कोप शम्यो केवल लघुं, मोहटो ए गुणवंत ॥ १३५ ॥ अश्मंतो सुकुमाल मुनि, वखाएयो वीर जिणंद || इरियावदी पडिक्कमतां केवल लघुं श्राणंद ।। १३६ ।। विरजिनवचनें थिर रह्यो, श्रेणिक सुत मे घ कुमार ॥ जातिसमरण पामियो, करि दो नयणां सार ॥ १३७ ॥ हाट वेचाणी चंदना, सुना चढयुं कलंक ॥ दमयंती नल विजोग लह्यो, एह कर्मनो वंक ॥ १३७ ॥ कलावती कर बेदिया, शैपदी का दयां चीर । अनि शितल सीता कस्यो, शील गुणें थयुं नीरं ॥ १३९ ॥ चंदना चरण मृगावती, खमा विनिज अपराध || केवल जहि गुरुणी दियो, दो जीव टयो विषवाद ॥ १४० ॥ चंद कलंक सायर कस्यो, खारो नीर किरतार || नवसो नवाणुं नदी त पो, देखो ए जरतार ॥ १४१ ॥ हरिचंदराय करम वरों, शिर वसुं कुंब घर नीर ॥ कर्म वशें नर सवि नम्या, जे जग बावन वीर ॥ १४२ ॥ गन ब्राह्मण स्त्री बालका, दृढप्रहारें हत्या कीध ॥ चार पोल का उसग रही, पटमास केवल लीध ॥ १४३ ॥ मेरु ढने ने ध्रुव चजे, सायर लोपे लीह ॥ कीधां कर्म न तूटियें, जो नगे पश्चिम दीह ॥ १४४ ॥ कीधां कर्म तो बूटियें, जो कीजें जिनधर्म ॥ मन वच कायायें करी, ए जिन शासन मर्म ॥ १४५ ॥ कर्म प्रकाशी
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( ३०० )
आपणां, मन शुध आणंद पूर ॥ सह गुरु पास बेवली, जाय पाप सवि दूर ॥ १४६ ॥ बल वंत अनंता जे नरा के सुर सुनट जूजार ॥ क मे सुनट जुन एकले. सी मनाव्या हार ॥ १४७ ॥ कर्म सुनट विषम विकट ते वश कियो न जाय ॥ जे नर एहने वश करे, हुं वंदूं तस पाय ॥ १४८ ॥ म जाणीने कीजियें जिम यातन सुख धाय । प रजिव दुःख न दीजियें, इम बोल्या जिनराय ॥ १४९ ॥ दान शियल तप जावना, धर्मनां नर ए मूल || पर अवगुण बोलत सही, ए सब था धू ल ॥ १५० ॥ दान सुपात्रें दीजियें, तस पुण्यना नहि पार ॥ सुख संपति लहियें घणी, मणि मोती नंमार ॥ १५१ ॥ धन्नो सारशपती जुवो, वृत वोह राव्यं मुनि हाथ ॥ दानप्रनावें जीवडो, प्रथम हु वो आदिनाथ ॥ १५२ ॥ दान दियो धन सार थी, आनंद हर्ष पार || नेमनाथ जिनवर दुवा, यादव कुल सिणगार ॥ १५३ ॥ कलथी केरा रोट जा, दीधुं मुनिवर दान ॥ वासुपूज्य जव पाढले, जिनपद लघुं निदान ॥ १५४ ॥ मुनी नलो एक मारगें, वोहराव्यो तस आहार ॥ साथ मव्यो ते सारथी, ते विर जगदाधार ॥ १५५ ॥ सुलसा रेव ति रंगशुं दान दियो महावीर ॥ तीर्थकर पढ़ पाम शे, लदेशे ते जवतीर ॥ १५६ ॥ दानें जोगज पामि यें, शियजें होय सोनाग ॥ तप करि कर्मज टालिये,
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(३९१) जावना शिव सुख माग ॥ १५ ॥ जावन डे नव ना शिनी, जे आपे नवपार ॥ नावन वडि संसारमा, जस गुणनो नहि पार ॥ १५७ ॥ अरिहंत देव सु साधु गुरु, केवलिनाषित धर्म ॥ मुं समकित श्रा राधतां, बूटीजें सवि कर्म ॥ १५ ॥ नव पद जाप ज कीजियें, चनद पुरवनो सार । इम्या मंत्र गणियें सदा, जे तारे नर नार ॥ १६० ॥ सकल तिरथ नो रा जियो, कीजें तेहनी यात्र ॥ जस दरिसरों उर्गति टले, निर्मल थाये गात्र ॥ १६१ ॥ अष्टापद अर्बुद गिरि, समेत शिखर गिरनार ॥ पंचे तीरथ वंदियें, मन धरि हर्ष अपार ॥ १६॥ झपन शांति जग नेमिजिन, पार्श्व अने वईमान॥ पांचे तीरथ प्रणमतां, नित वाधे जिवं वान ॥ १६३ ॥ उत्तम नर नारी तणां, नाम कह्यां एमांय ॥ नाम निरंतर लीजियें, जिम सहि आणंद थाय ॥ १६४ ॥ प्रातम शिदा नाव ना, गुण मणि रयण नंमार ॥ पाप टले सवि तेह ना, जेह नणे नर नार ॥१६५ ॥ प्रातमशिदा जावना, जे सुणे हर्ष अपार ॥ नवनिधि तस घर संपजे, पुत्र कलत्र परिवार ॥ १६६ ॥ ए सुगतां सु ख कपजे, अंग टले सवि रीस ॥ समता रसमां जीव डो, जीले ते निशदीस ॥ १६७ ॥ इण नव परन व जव जवें, जिन मागू हुँ हेव ॥ मन वच काया यें करी, यो तुम चरणनि सेव ॥ १६७ ॥ ए गुण जिहां नावगुं, तिहां रान वेलाउन थाय ॥ आत
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(३९२) म शिदा नामर्थं सुर नर लागे पाय ॥ १६ ॥ वीर शासन दीपारतो, आणंद विमल सुरिंद ॥ प्रमाद पंथ दरें कस्यो, प्रगमुं तेह आणंद ॥ १७८ ॥ तास शिष्य मुनिसर धणी, श्रीविजय दान सरी श ॥ प्रगट महिम तस जागतो, पाय नमे नर ईश ॥ ॥ १७१ ॥ उपदाम रसनो कूपलो, तास पट्टधर ही र ॥ सकल सूरि शिरोमणि, सायर जिम गंनी ॥ १७ ॥ हीरवि तय गुरु हीरलो, प्रतिबोध्यो ३ कबर नूप ॥ राय राणा सेवा करे, जेहy अकल स रूप ॥ १७३ ॥ म्लेबराय जिणे वश कस्य, जग वाघि अमार ॥ विमलाचन मुक्तो कियो, शासन शोनाकार ॥ १७ ॥ कुमारपाल प्रतिबोधियो, श्रीश्रीहेम सुरिंद ॥ तिम अकवर गुरु हीरजी, मन धरि अति आणंद ॥ १७५ ॥ ध्यानवशे निज पद दियो,निज मन हर्ष अपार ॥ विजयसेनसुरि नाम थी, नित होय जय जय कार ॥ १७६ ॥ कामकुं न चिंतामणि, कल्पतरू अवतार ॥ ते सविथी जेह सिदिनी, अधिक ए नवि विचार ॥ १७७ ॥ वि जयसेन गुरुराय वर, विजयदेव सूरिंद ॥ विजय मान गुरु वंदिये, जिम सूरज उर चंद ॥ १७ ॥ त पगल वाचकमें वरू, विमल हर्ष शिरताज ॥ नामें नवनिधि संपजे, दरिसण सीके काज ॥ १७ ॥ आतमशिदा नावना, तास शिष्य मनरंग ॥ प्रेमवि जय प्रेमें करी, कलट आणी अंग ॥ १७० ॥ श्रीरत्नह
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(३९३) र्ष विबुध मुफ, बंधू तास पसाय ॥ तासु सानिध ग्रंथ में कस्यो, मन धरि हर्ष अपार ॥ ११ ॥ मू ढ मतीने माहरी, कवि मत करजो हास ॥ कृपा क री मुफ कपरें, शोधी करजो खास ॥१२॥ संब त शोल. बाशहिए, वैशाख पूनम जोय ॥ वार गुरु सहि दिन जलो, एह संवत्सर होय ॥ १३ ॥ नय र नलेणीमा वली, यातमशिदा नाम ॥ मन नाव धरिने तिहां करी, सीधां वंडित काम ॥ १४ ॥ एक शत एंशी पांच ए, दोहा अति अनिराम ॥जणे गुणे जे सांजने, नेह लहे शिवताम ॥ १५ ॥ इति ॥
॥ अथ नपदेश सित्तरी प्रारंन । ॥ उतपति जो जो पापणी, मन मांहि विमास ॥ गरनावासें जीवडो, वसियो नव मास ॥ उतपति जो जो आपणी ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ नारी तणे नानि तलें, जिन वचनें जोय ॥ फूल तणी जिम नालि का, तामें नाडी छे दोय ॥ न० ॥ ॥ तसु तलें यो नि कहीयें, वर फूल समान ॥ अांब तणी मांजर जिस्यो, तिहां मांस प्रधान ॥ 3 ॥३॥ रुधिर स्त्रवे तिण ठामथी, ऋतुकाल सदैव ॥ रुधिर शुक्र जोगें करी, तिहां पजे जीव ॥ 3 ॥ ४ ॥ जे अपाव न पवनें करी, वासित उरगंध ॥ तिणे थानक तुं उप नो, हवे दून मदंध ॥ १० ॥ ५ ॥ नाली वांस तणी घj, नरियें रू घाल ॥ ताती लोह शीलाक ते, जाले तत काल ॥ १० ॥ ६ ॥ तिम महिलानी यो
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(३४)
निमें, जे नवलख जीव ॥ पुरुषप्रसंगें ते सद्, मरी जाय सदेव ॥ न० ॥ ७ ॥ उपजे नर नारी मले, पं चेंश्यि जेह ॥ तेह तणी संख्या नहिं, तजो कारज ए ह ॥ न० ॥ ॥ नव लख जीव टके तिहां, नत्क ष्टी वार ॥ जीव जघन्यपणे टके, एक दो त्रण चार ॥ न० ॥ ॥ जीव जघन्य तिहां रहे, मुहूरत प रिमाण ॥ बार वरसनी स्थिति तिहां, नत्कृष्टीज ण ॥ न० ॥ १० ॥ तिणे गरने को जीवडो, श्म क हे जगदीश ॥ फरी मरी आवे तो रहे, संवत्सर चो वीश ॥ न० ॥ ११ ॥ महिला वरस पंचावनें, कहियें निर्बीज ॥ पंचोतेर वरस प., थाए पुरुप अबीज ॥ न० ॥ १२ ॥ जिमणि कूखें नर वसे, तिम वामी नार ॥ वच्चें नपुंसक जाणियें, जिनव चनें विचार ॥ न० ॥ १३ ॥ हवे सामान्य पणे इहां, आव्यो गर्नावास ॥ सात दिवस ऊपर रहे, नरगति नव मास ॥ न० ॥ १४ ॥ आठ वरस तिर्यंच रहे, नल्लष्टो काल ॥ गर्नावासें जोगव्या, इम बदु जंजाल ॥ १० ॥ १५ ॥ कार्मणका यें करि लीयो, पहिलो ते आहार ॥ शुक्र अने शो णित तणो, नहि जूठ लगार ॥ १० ॥ १६ ॥ पर्यापति पूरी नही, तिहां विसवा वीश ॥ तिणे आहारें तनु थयो, आदारिक अरु मीस ॥ न० ॥ १७ ॥ पवन आवे उदरथकी, उपजावे अंग ॥ अग्नि करे थिर तेहने, जल सुरस सुरंग ॥ १० ॥
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(३५) ॥ १७ ॥ कठिनपणुं पृथिवी रचे, अवगाह आका श ॥ पांचे नूत शरीरनो, एम करे प्रकाश ॥ न० ॥ ॥ १५ ॥ बार मुहूर्त कतु प., विलसे नर नार ॥ गर्न तणी नत्पति तिहां, नही अवर प्रकार ॥ ॥ १० ॥ २० ॥ कलिल दुवे दिन सातमे, खरबुद दिन सात ॥ खरबुदथी पेशी वधे, घन मांस कहा त ॥ १० ॥ २१ ॥ मांस तणी गोटी दुवे, अडताली श टांक ॥ प्रथम मासें जिनवर कहे, मन म धरो शं क ॥ न० ॥ २२ ॥ रुधिर मांस बीजे दुवे, हवे त्रीजे मास ॥ कर्मतणे योगें करी, माता मन प्राश ॥ ॥ न० ॥ २३ ॥ चोथे मासें मातना, परिणमे सदु अंग ॥ हाथ अने पग पांचमे, तिम मस्तक संग ॥ ॥ न० ॥ २४ ॥ पित्त रुधिर बहे पडे, सातमे इम संच ॥ नव धमणी नस सातशे, पेशी सय पंच ॥ ॥ १० ॥ २५ ॥ रोमराइ पण सातमे, साडी तिन क्रोड ॥ उपजे कणा केटने, इम अागम जोड । न० ॥ २६ ॥ आठमे मासें नीपर्नु, एम सकल शरीर ॥ कंधे शिर वेदन सहे, ऊंपे जिन वीर ॥ ॥ न० ॥ २७ ॥ शोणित शुक्र संलेषमा, लघु ने व डि नीत ॥ वात पित्त कफ गर्नमें, ए थाये ण रीत ॥ ॥ १० ॥ २७ ॥ मात तणी डूंटी लगे, बालकनुं नाल ॥ रस आहार तणो तिहां, आवे ततकाल ॥ ॥ न० ॥ २ए ॥ जननी से बाहार ते, जाए नाडो नाड ॥ रोम इंडी नख चख वधे, तिम मज्जा ने हा
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( ३०६ )
इ ॥ ० ॥ ० ॥ सविहूं अंगें नन्न, सर्वांग या हार ॥ कवल प्रहार करे नही, गंजे इस्यो विद्या ॥ ० ॥ ३१ ॥ ते गर्ने किए ज बने, थाय झा न विनंग ॥ श्रथवा अवधि कहीजियें, तिरो ज्ञान प्रसंग ॥ ज० ॥ ३२ ॥ कटक करी वैक्रिय पणे, जू जी नरकें जाय ॥ को जिनवचन सुणी करी, मरी सुर पण थाय ॥ ज० ॥ ३३ ॥ बंधे मुखें गुमा हि ये, सहेतो बहु पीड दृष्टि गत बिहुं हाथगुं, रहे मूठी नीड ॥ ० ॥ ४ ॥ नर बिए वस्त्र जला दिकें, उपजे उधान ॥ वा बिहूं नारी मल्यां, कह्यो गर्न विधान ॥ उ० ३५ ॥ कोई उत्तम चिंत वे, देखी दुःख राश || पुए करूं परो नीकली, नां गर्भावास ॥ ० ॥ ३६ ॥ नंठ कोडी सूई अंगमां, कोइ चांपे समकाल ॥ तिष्णथी गर्नमां श्रगुणी. स हे वेदना बाल ॥ उ० ॥ ३७ ॥ माता नूखी नूखी 3, सुखिणी सुख याय ॥ माता सुते ते सुते, परवश दिन जाय ॥ ० ॥ ३८ ॥ गर्नथकी दुःख लखर शुं जनमे जिस वार ॥ जनम थये दुःख बिसयुं, धग मोह विकार || न० ॥ ३५ ॥ उपज्यो अशुचि पणे तिहां, मल मूत्र कलेश | पिंम अशुचि करी पूरि यो, नवि शुचि लव लेश ॥ उ० ॥ ४० ॥ तुरत रुद न करतो थको जनमे जिस वार ॥ माता पयोधर मुख ठवे, पिये दूध तेवार ॥ ज० ॥ ४१ ॥ दीसे दिन दिन दीपतो, करे रंग अपार ॥ लाम कोम माता पिता,
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(३७)
पूरे सुविचार ॥ २० ॥४२॥ बि बारह नारीने, नरनां नव जाण ॥ रात दिवस वहेतां रहे, चेतो चतुर सुजाण ॥ न० ॥ ४३ ॥ सात धातु साते त्व चा, डे सातशे नाड ॥ नवशे नारां पिंममा, तिम त्रणशे हाम ॥ १० ॥ ४५ ॥ संधि एकसो साउने, सत्तोतेर सो मर्म ॥ तिन दोष पेशी पांचशे, ढांक्यां ने चर्म ॥ १०॥४५ ॥ रुधिर शेर दश देहमें, पेसाब सरीष ॥ शेर पांच चरबी तिहां, दोय शेर पूरीष ॥ न ॥ ४६ ॥ पित्त टांक चोश, वीरज बत्री श॥ टांक बत्रीश सलेषमा, जाणे जगदीश ॥ ॥ न० ॥ ४५ ॥ण परिमाणथकी जदा, उदो अधिको थाय ॥ व्यापे रोग शरीरमें, नवि चले तव काय ॥ ॥ ४ ॥ पोष्यो पहिले दायके, इम वाध्यो अंग ॥ खान पान नूषण जलां, करे नव न व रंग॥ न० ॥ ४ए ॥ हवे बीजे दशके जणे, विद्या विविध प्रकार ॥ त्रीजे दशके तेहने, जाग्यो काम विकार ॥ न० ॥ ५० ॥ जिण थानक तुं उपन्यो, तिणमें मन जाय ॥ चोथे दशके धन त णा, करे कोडि नपाय ॥ न० ॥ ५१ ॥ पहोतो दशके पांचमे, मनमां ससनेह ॥ बेटा बेटी ने पो तरा, परणावे तेह ॥ न ॥ ५५ ॥ बठे दशके प्राणियो, वली परवश थाय ॥ जरा प्रावी यौवन गयुं, तृष्णा तोय न जाय ॥ १० ॥ ५३ ॥ याव्यो दशके सातमें, हवे प्राणी तेह ॥ बल नांग्युं बूढो थ
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(३७) यो, नारी न धरे नेह ॥ १० ॥ ५५ ॥ अाठमे द शके मोसलो, खुलीया सदु दांत ॥ कर कंपावे शि र धुणे, करे फोकट वात ॥ न ॥ ५५ ॥ नवमे दशके प्राणियो, तन शक्ति न कांय ॥ साले वचन सद तणां, दिन फूरतां जान ॥ १० ॥ ५६ ॥ खाट पड्यो खू खू करे सुगाली देह । हाल दुकम हाले नही, दिये परिजन तह ॥ २० ॥ ५७ ॥ ख गले वे पड मिले, पडे मुहडे लाल ॥ वेटा वे टी ने वर्, न करे संजाल ॥ १० ॥ ५७ ॥ दशभे दशके आवियो, तव पूरी प्राय ॥ पुण्य पाप फल नो गवी, प्राणी परजव जाय । न० ॥ एए ॥ दश ह टांतें दोहिलो, सही नरनव सार ॥ श्रीजिनधर्म स माचरे, ते पामे नवपार ॥ ८ ॥ ६० ॥ तरुणपणे जे तप तपे, पाले निर्मल शील ॥ ते संसार तरी करी, लहे अविचल लील ॥ न० ॥ ६१ ॥ कोडी रतन कवडी सटे. कां गमें रे गमार ॥ धर्म विना ए जीवने, नही को आधार ॥ न० ॥ ६२ ॥ काया माया कारिमी, कारिमो परिवार ॥ तन धन जोबन कारिमो, साचो धर्म संसार ॥ १० ॥ ६३ ॥ चनदे राज प्रमाण ए, लोक महंत ॥ जनम मरण करी फरसीयो, जीव वार अनंत ॥ १० ॥ ६४॥आप स बारथीयो सदु, नही केहनो कोय ॥ निज स्वारथ वि ण पूगतां, सुत पण रिपु होय ॥ १० ॥ ६५ ॥ ज रा न आवे जिहां लगें, जिहां लगें सबल शरीर ॥ध
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र्म करो जीव तिहां लगें, होइ साहस धीर ॥ न० ॥ ॥ ६६ ॥ प्रारज देश लह्यो हवे, लाधो गुरु संजो ग ॥ अंगथक आलस तजो, करो सुकत संजोग ॥ ॥ उ० ॥ ६७ ॥ श्रीने मिराज ती परें, चेतो चित्त मांहि ॥ स्वारथनो सदु को सगो, कोइ किरो नांहि ॥ ॥ उ० ॥ ६८ ॥ जोग संजोग जी सहु, थया जे ख
गार || धन धन तसु माता पिता, धन धन अव तार ॥ ज० ॥ ६९ ॥ सुरतरु सुरमणि सारिखो, से वो श्रीजिनधर्म || जिपथी सुख संपति वधे, कीजें तेहज कर्म ॥ उ० ॥ ७० ॥ तंदूलि व्याजी में बे, एहनो अधिकार ॥ तिथी उद्धरीने कह्यो, नही जू व लगार ं ॥ उ० ॥ ७१ ॥ कलश || एह जैनधर्मवि चार सांगली, लहियें संजम जार ए ॥ वली सिंहनी परें सदा पाले, नियम निरतीचार ए ॥ संसारनां सु ख सकल जोगवी, ते लहे नव पार ए ॥ श्रीरत्नहर्षसु शिष्यरंगें, इम कहे श्रीसार ए ॥ ७२ ॥ इति नर्नवेली जीवनी उत्पत्तिनुं स्तवन संपूर्ण ॥
॥ अथ कुमात्रीशी प्रारंभः ॥
|| आदर जीव दमागुण यादर, म करिश राग ने द्वेष जी ॥ समतायें शिव सुख पामीजें, क्रोधें कुगति विशेष जी ॥ या० ॥ १ ॥ समता संजम सार सुणी जें, कल्पसूत्रनी साख जी ॥ क्रोध पूर्वकोडि चारित्र बाजे, नगवंत इणी परें जाख जी ॥ ० ॥ २ ॥ कुण कुण जीव तथा उपशमथी, सांजल तुं दृष्टांत जी ॥
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(४००) कुण कुण जीव नम्या नवमांहे, कोध तणे विरतंत जी ॥ ॥ ३ ॥ सोमल ससरे शीश प्रजात्यु, बांधी माटीनी पाल जी ॥ गजसुकुमाल दमा मन ध रतो, मुगति गयो तत काल जी। या ॥४॥कुलवा लु साधु कहातो,कीधो कोष अपार जी॥कोणिकनी गणिका वश पडियो, रडवा यो संसार जी ॥ आ० ॥ ५ ॥ सोवनकार करीति रेदन, वाध्रगुं वींटियुं शीश जी ॥ मेतारज इपि मुग पोहोतो, उपशम ए ह जगीश जी ॥ श्राः ॥ ६ ॥ कुरुड तुरुड वे साधु कहाता, रह्या कुणाला खाल जी॥क्रोध कराते कुगतें पहोता, जनम गमायो पाल जी ॥ प्रा० ॥ ७ ॥ कर्म खपावी मुंगतें पहोता, खंधक सूरिना शिष्य जी ॥ पालक पापीयें पाणी पीव्या, नाणी मन मां रीश जी ॥ प्रा०॥ ७ ॥ अचंकारी नारी अचुं की, त्रोड्यो पीयुगुं नेह जी ॥ बब्बर कुल सह्यां फुःख बदुला, क्रोध तणां फल एह जी॥ प्रा० ॥ ॥ ॥ वाघणे सर्व शरं वलस्यं, ततहण बो ड्यां प्राण जी ॥ साधु सुकोशल शिव सुख पाम्या, ए ह दमा गुण जाण जी॥ आ० ॥ १० ॥ कुण चं माल कहीजें बिटुमें, निरति नही कहे देव जी ॥ पिचंमाल कहीजें वडतो, टालो वेढनी टेव जी॥ ॥ आ ॥ ११ ॥ सातमी नरक गयो ते ब्रह्मदत्त, काढी ब्राह्मण आरव जी ॥ क्रोध तणां फल कडयां जाणी, राग क्षेप द्यो नाख जी ॥ आ० ॥ १२॥ खं
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(४०१)
धक रुपिनी खाल उतारी, सह्यो परिसह जेण जी॥ गरनावासना दुःखथी लूट्यो, सबल दमा गुण ते ण जी ॥ श्रा० ॥ १३ ॥ क्रोध करी खंधक आचारि ज, दु अग्निकुमार जी ॥ दमक नृपनो देश प्रजा व्यो, जमशे जवह मकार जी॥० ॥ १४ ॥ चंझौ इआचारिज चलतां, मस्तक दीध प्रहार जी॥द मा करंतां केवल पाम्यो, नर दीक्षित अगार जी ॥ प्रा० ॥ १५ ॥ पांच वार पिने संताप्यो, प्रा पी मनमां ष जी ॥ पंच नव सीम दह्यो नंद नावि क, क्रोध तणां फल देख जी॥ा ॥ १६ ॥ साग रचंद, शीस प्रजाली, निशि ननसेन नरिंद जी ॥ समता नाव धरी सुरलोकें, पदुतो परमानंद जी ॥ ॥ आ ॥ १७ ॥ चंदना गुरुपीयें घणु निबंडी, धिग धिग तुऊ अवतार जी॥ मृगावती केवलसिरि पामी, एह दमा अधिकार जी ॥ आ ॥१॥ सांब प्रद्युम्न कुंअर संताप्यो, कृष्ण पायन साह जी ॥ क्रोध क री तपनुं फल हास्यो, कीधो धारिकादाह जी ॥ ॥ आ० ॥ १ए ॥ जरतने मारण मूठी उपाडी, बा दूबल बलवंत जी ॥ नपशम रस मनमांहे प्राणी, संजम ले मतिमंत जी ॥ आ० ॥ २० ॥ कासग मां चडियो अतिको), प्रश्नचंड शषिराय जी ॥ सा तमीनरक तणां दल मेल्यांकडु तेण कषाय जी॥ ॥ आ ॥ २१ ॥ आहारमाहे कोधे कृषि yक्यो, आण्यो अमृत नाव जी ॥ कूरगडूयें केवल पाम्यु,
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(४०२ ) मातणे परगाव जो ॥आ ॥ २२ ॥ पार्श्वनाथने उपसर्ग कीधा, कमठ नवांतर धीठ जी ॥ नरक तिर्य च तणां फुःख लाधां,क्रोध तणां फल दी जी॥आ॥ ॥२३॥ मावंत दमदंत मुनीश्वर, वनमा रह्यो का नसग्ग जी ॥ कौरव कटक हण्यो इटालें, त्रोड्या क मना वर्ग जी॥श्रा०॥४॥ सज्यापालक काने तरु न, नाम्यो क्रोध नदीर जं.॥देदु कानें खीना ठोका गा, नवि लूटा महावीर जी ॥ श्रा० ॥ २५ ॥ चार हत्यानो कारक दुतो, दृढप्रहार अतिरेक जी। दमा करीने मुक्तें पहोतो,उपसर्ग सह्या अनेक जी। ॥ आ० ॥ २६ ॥ पदुरमांहे नपजतो हास्यो, को धे केवल नाण जी ॥ देखो श्रीदमसार मुनीसर, सू त्र गुण्यो नहाण जी ॥ आः॥ २७ ॥ सिंह गुफावा सी पि कीधो, थूलिन ऊपर कोप जी ॥ वेश्या वचन गयो नेपालें, कीधो संजम लोप जी ॥आ॥ ॥ २७॥ चंशवतंसक काउसग रहियो, दमा तणो नंमार जी॥ दासी तेल जयो निशि दीवो, सुरपदवी लहे सार जी ॥ आ० ॥२॥ इम अनेक तस्या त्रि नुवनमें, दमागुणे नवि जीव जी॥ क्रोध करी कुग तें ते पहोता, पाडता मुख रीव जी ॥ या ॥३॥ विप हलाहल कहीयें विरुढ, ते मारे एक वार जी ।। पण कषाय अनंती वेला, आपे मरण अपार जी ॥ ॥आ॥३१॥ क्रोध करंतां तप जप कीधां, न पडे कांई ठाम जी ॥ आप तपे परने संतापे, क्रोधरां के
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(४०३)
हो काम जी॥आ॥३२॥ दमा करंतां खरच न लागे, नांगे कोड कलेश जी ॥अरिहंत देव पारा धक थाये, व्यापे सुजस प्रदेश जी ॥ ० ॥ ३३ ॥ नगरमांहे नागोर नगीनो, जिहां जिनवर प्रासाद जी॥ श्रावक लोक वसे अति सुखिया, धर्मतणे पर साद जी ॥ प्रा० ॥३४॥ दमा बत्रीशी खांतें की धी, आतम पर नपगार जी" सांजलतां श्रावक पण समज्या, उपशम धस्यो अपार जी ॥ आ० ।। ३५॥ जुगप्रधान जिणचंद सुरीसर, सकलचंद तसु शिष्य जी ॥ समयसुंदर तसु शिष्य नणे इम, चतुर्विध सं घ जगीश जी ॥ आ॥३६ ॥ इति माउत्रीशी॥
॥अथ वैकुंठपंथ लिख्यते ॥ ॥वैकुंठ पंथ बीहामणो, दोहिलो ने घाट । था पणनो तिहां कोई नही, जे देखाडे वाट ॥१॥ मार्ग वहे रे नतावलो, मे जीरी खेह ॥ को इ केहने पडखे नही, बांकी जाए सनेह ॥ मा० ॥ २ ॥ एक चाव्या बीजा चालशे, त्रीजा चालण हार ॥ रात दिवस वहे वाटडी, पडखे नही ल गार ॥ मा० ॥३॥ प्राणीने परिया' आवियुं, न गणे वार कुवार ॥ना नरणी योगिणी, जो होय सामो काल ॥ मा०॥ ॥ जम रूपें बिहामणो, वाटें दीये रे मार ॥ रुत कमाई पूबशे, जीवनो किर तार ॥ मा० ॥५॥लोनें वाह्यो जीवडो, करतोब दु पाप ॥ अंतरजामी आगलें, केम करीश जबा
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(४०४)
प॥ मा० ॥ ६ ॥ जे विण घडी सरतो नही, जीव न प्राण प्राधार ॥ ते विण वरस वही गयां, शुरू नहि समाचार ॥ मा० ॥ ७ ॥ आव्यो तुं जीव एकि लो, जातां नहि कोई साथ ॥ पुण्य विना तुं प्राणि या, घसतो जाइश हाथ ॥ मा० ॥ ७ ॥ मग कोरी मांहे पेशीयें, तोहि न मेले मोत ॥ चेतणहारा चेतजो, जाशे गोफण गोला सोत ॥ मा०॥ ए॥ त्रपति नूप केइ गया, सिह साधक लाख ॥ कोड गमे करण आवट्या,अमर कोइ जीव दाख ॥मा०॥ ॥ १० ॥ आपण देखतां जग गयो, आपणे पण जाणादि मेली रहेशे नही,मोहोटा राय ने राणा॥ ॥ मा०॥११॥ दाहाडे पहोते आपणे, सदु कोई जाशे ॥ धर्म विना तुमें प्राणिया, पडशो नरकावा सें ॥ मा० ॥ १२॥ संबल होय तो खायें, नही तो मरीयें नूख ॥ आपणडो तिहां कोई नही, जेहने कहियें दुःख ॥ मा० ॥ १३॥ आगल हाट न वाणी या, न करे कोई नधार ॥ गांठे होय तो खायें, न हि कोई देअपहार ॥ मा० ॥ १४ ॥ निश्चल रहे Q ले नही, म करो मोडा मोड ॥ परस्त्री प्रीत न मां मियें, ए तो महोटी खोड ॥ मा० ॥ १५॥ वस्तु पी यारी मत लीयो, म करो तांत पियारी ॥धर्म विना जग जीवने, होशे अंतें खुधारी॥मा०॥ १६ ॥ कूड कपट तुमें मत करो, जीव राखजो गम ॥ जीवदया प्रतिपालजो, जो होय वैकुंठ काम ॥ मा० ॥१७॥
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(४०५) मोहोटां मंदिर मालीयां, घर पण घणेरी आथ॥हीरा माणक अति घणा, पण कांश नावे साथ ॥ मा० ॥ ॥ १७ ॥ कोडी गमे कुकर्म कियां, केतां कहूँ तुम था गल ॥ लेखे किणि परें पोहोंचीयें, प्रनुजीशु कागल॥ ॥ मा०॥ १५ ॥ आगल वैतरणी वहे, तिहां कोई न तारे ॥धर्मी तरी पार पामशे, पापी जाशे पायालें। ॥ मा०॥ २० ॥ दीवे मारग चालीयें, न जरियें कूडी साख ॥ काल काया पडि जायशे, मशाणें नमशेरा ख ॥ मा० ॥ २१ ॥ जतन करंतां जायशे, नमी जा शे सास ॥ माटी ते माटी थायशे, ऊपर गशे घास ॥ ॥मा॥२॥ माय बाप ए केहनां, केहनो परिवार ॥ पुत्र पौत्रादिक केहनां, केहनी घरनार ॥ मा० ॥१३॥ कोइम करशो गारवो, धन जोबन केरो ॥ अंतें उग यो कोई नही, आपणंथी जलेरो ॥ मा० ॥ २४॥ महारुं महारुं करतो थको,पड्यो माया ने मोहालो चन बे मीचागडां, तव घणी अनेरा होय ॥मा॥ ॥ २५ ॥ जे जिहां ते तिहां रह्यु, चाल्यो एकलो या प॥ साथै संग ते बे थयां, एक पुण्य ने पाप ॥मा०॥ ॥२६॥ सुगुरु सुसाधु वंदियें, मंत्र महोटो नवकार ॥ देव अरिहंतने पूजीयें, जेम तरीयें संसार ॥ मा० ॥ ॥ २७ ॥ शालिनइ सुख जोगव्यां, पात्र तणे अधि कार॥खीर खांमघृत वहोरावीयां,पोहोता मुक्ति मका र ॥ मा०॥॥ तस घर घोडा हाथीया, राजा दी ए बदु मान ॥ दान दया करी दीजियें, नावें साधु
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(४०६) ने मान ॥ मा० ॥ २॥ धर्मे पुत्रज रुघडा, धर्म रूडी नार ॥ धर्मं लवमी पामीयें, धर्म जय ज यकार ॥ मा० ॥ ॥ नवनंद मत्ता मेली गया. y गर केरा पाणा ॥ समुश्मां थया शंखला, गना नं दनां नाणां ।। मा० ॥ ३१ ॥ पूंजी मेली मरि जाय शे, खावे खरचवे खोल ॥ ते कडाह पर थई. अब तस्या मणिधर महोटा ॥मा० ॥ ३२ ॥ माल मेली करी एकग, खरचे नवि खाय ॥ईकारे नूमिमां. तिहां कोई काढि जाय मा० ॥ ३३ ॥ मूंजी लख मी मेलशे, केहने पाणी न पाय ॥धर्म कार्य या न ही, ते धूल धाणी थाय ॥ मा० ॥ ३४ ॥ जीवता दा न जे आपशे,पोतें जमणे दाथ॥ श्रीनगवान एमजा खियुं, सदु अावशे साथ । मा० ॥३५॥ दया करी जे आपशे, उलटें अन्ननुं दान ॥ अडश तीर्थ हां अडे, वली गंगास्नान ॥ मा० ॥ ३६ ॥ जोगी जंगम घणा थायशे, मुखिया ण संसार ॥ खीचड़ी खाए खांतरां, साचो जिन धर्मसार ॥ मा० ॥३७ ॥ खांमानी धारें चालवू, सुगजो ए सार ॥ परस्त्री मात करि जाणवी, लोन न करवो लगार ॥ मा० ॥३७॥ कनक कामिनी जेरों परिहरी, तेतो कर्मथी बटा ॥ नीवारी नमे घणा, बीजा खीचड खूटा ॥ मा० ॥ ॥ ३॥ पाथरणे धरती जती, उढण नखं आका श ॥ शणगारें शीयल पहेरवु, तेहनें मुक्तिनो वास ॥ मा०॥॥ ४० ॥ उपवास आंबित नित करे, नित
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(४०७) अरिहंत ध्यान ॥ काम क्रोध लोन परिहरे, तेहनें मु क्ति निधान ॥ मा० ॥ ४१ ।। मनुष्य जनम पामीक री, जे करशे धर्म ॥ सुख सघलांए संपजे, छूटे सर वे कर्म ॥ मा० । ४२ ॥धमै धनज पामीयें, ध में सवि सुख थाये ॥ अरिहंत नाम आराधियें, पाप परले थाये ॥ मा० ॥ ४३ ॥ खाट पथरणे सुई रहो, खा नित्य खाणां ॥ एक अरिहंत नाम संनारतां, कियां बेसे तुफ नाणां ॥ मा० ॥४४॥ मनसा वाचा कायथी, लीजें जगवंत नाम ॥ सुख स्वर्गनां संपजे, सीफे वंडित काम ॥ मा० ॥ ४५ ॥ खातां पीतां ख रचतां, हाटा म करे खलखंच ॥ काया माया कारि मी, जोबन दहाडा पंच ॥ मा० ॥ ४६॥ केही सुचं गी वाढीयो, केही सुचंगी नार ॥ केते माटी होई रही, केते जए अंगार ! मा० ॥ ४७ ॥ हंसराजा जब उमी यो, तव कोई न करे सार॥ सगां कुटुंब सदु एम नणे, वहि काढो बार ॥ मा० ॥ ४ ॥ मित्र मंत्रादिक तिहां लगें, तिहां लगें स्नेह नरपूर ॥ हंसराजा जव चालिया, तव थया सदु दूर ॥ मा० ॥४ए ॥ जेवो जाण्यो तेवो काढियो, नवि मागीयो जाग ॥ आगल खोखर हामली, मांहे अधबलती याग ।। मा॥५॥ पतित पावन प्रचजी तुमें, सुणो हो दीननाथ ॥ सं सार सागरमांहि ब्रूडतां, देजो तुमें हाथ ॥मा॥१॥ सांनलो स्वामी शामला, मोरी अरदास ॥ हुँ मागुं प्रनु एटलुं, देजो वैकुंठवास ॥ मा० ॥ ५२ ॥ अहं
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(४०) कार चित्त न आणीयें, केहनें गाल न दीजें ॥ काम क्रोध लोन मारियें, तो अमर फल लीजें ॥ मा० ॥ ॥५३॥ करत कमाई जोडियें, केहनें दोष न दीजें। विपनां फल जो वावियें, तो अमृत फल किम लीजें। ॥ मा० ॥ ५४॥ बति कहें खरचे नही, ते पण मूरख महोटा ॥ वालो आव्यो नूलो जायशे, आगल पडशे खोटा ॥ मा० ॥ ५५ ॥ चाराशी लख जीवा जोनि मां, फिरिया वार अनंत ।। मुनि नीम जणे अरिहंत जपो, जिम पामो नव अंत ॥ मा० ॥ ५६ ॥ संवत शोल नवाणुयें, बीज ने बुधवार ॥ आसोमासे गाश्यो, बीकारी नगरी मकार ॥ मा० ॥ ५५ ॥ नीम नणे सद सांजलो, मत संचो दाम ॥ जिमणे हाथे वाव रो, तो सहि प्रावशे काम । मा० ॥ ५० ॥ नीम जणे सद् सनिलो, नवि कीजें पाप ॥ उबो अधिको जे में कह्यो, ते तमें करजो माफ ॥ मा० ॥ ५५ ॥
॥ अथ माहावीरस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥मुने ते दिननो विशवास , प्रनुजी तुमारो॥ साहेबजी तुमारो ॥ मु० ॥ दास तुमारो वोनवे, प्रनु पार उतारो ॥ मु० ॥ ॥ चोशल इंज था पिया, इंासन आप्युं ॥राज ६ि सुख संपदा, स मकित लइ थाप्यु ॥मु० ॥२॥ नक्त नली परें उ ६खो, तें तो शेठ सुदर्शन ॥ शूलि नांजी साहिबा, की धुं सिंहासन ॥ मु० ॥ ३॥ चारित्रथी चूकी करी, गणिका घर वसिया ॥ आषाढ नंदिषेण नस्या, तु
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(४०) में नक्तिना रसिया ॥ मु० ॥ ४ ॥ बारे व्रतमा एको नही, कांश नियम न लीधुं ॥ श्रेणिक नक्ति जाणी करी, तेहने निज पद दीधुं ॥ मु० ॥ ५ ॥ चंदनवा ला बारणे, प्रनु चालीने आव्या ॥ बेडी नांजी नेचर थयां, सोल शणगार पहेराव्या ॥ मु० ॥ ६ ॥ अ निज्वाला अंगें वसे, विषधर विकरालो ॥ चरणे म स्यो चकोशीयो, उदस्यो नाग कालो ॥ मु० ॥ ७ ॥ नक्त नला बुरा नदस्या, तेतो शास्त्र वखाणे ॥ नाथ निरंजन लहेरमां, रूपचंद रस माणे ॥ मु० ॥ ७ ॥
॥ अथ शंखेश्वरपार्श्वजिनस्तवनं ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ कडखो ॥ पास शंखेश्वरा सार कर सेवका, देव कां एवडी वार लागे । कोडि कर जो डि दरबार आगे खडा, ताकुरा चाकुरा मान मागे॥ पा० ॥ १ ॥ जगतमां देव जगदीश तुं जागतो, एम झुं आज जिनराज कंधे ॥ महोटा दानेश्वरी तेहने दाखियें, दान दिये जेह जग काल मूंघे॥ पा ॥२॥ जीड पडि जादवा जोर लागी जरा, तिणे समेत्रीक में तुज संजायो ॥ प्रगटि पातालथी पलकमां तें प्र नु, नक्तजन तेहनो नय निवाखो ॥ पा ॥३॥प्रगट था पासजी मेलि पडदो परो, मोड असुराणने आप बोडो ॥ मुफ महीराण मंजूषमां पेसिने, खलकना नाथजी ! बंध खोलो ॥ पा० ॥ ४ ॥ आदि अनादि अरिहंत तुं एक बे, दीनदयाल डे कोण दूजो ? ॥
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(४१०) नदयरतन कहे प्रगट प्रनुपासजी, पामी जयनंजनो एह पूजो ॥ पा० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ श्रीनेमनाथ स्तवनं ॥ ॥नेम मिले तो वातां कीजीयें,वो प्यारो नेम मिले तो बातां कीजीयें रे॥ ए आंकणी॥ में दुं प्यारी ने खिजम तगारी, प्रेमका प्याला पीजी रे ।। वोप्या० ॥ में हूँ केतकी तुम होजो जमरा, फरि फरि वासना लीजी ये रे।। वोप्या० ॥ १ ॥ में हुँ धरणी तुम होजो मेछ ला, कवहीक मिलनां कीजीये रे ॥ वोप्या० ॥रा जुन नेम दोनुं मुगति सीधाये, रूपचंद पद दीजीयें रे ॥ वोप्या० ॥२॥
॥ अथ पार्श्वजिनस्तवनं ॥ ॥निर्मल होइनजले प्रनु प्यारे, सब रे संसारमें है जिन न्यारे ॥ निर्मल ॥१॥ पार्श्वप्रनुजीको दर्शन कर ले, नवजल पार उतारण हारे ॥ निर्मल ॥२॥ जाके अविचल ज्योति बिराजे, अकल अगोचर रूप नदारे ॥ निर्मल ॥ ३ ॥ वाके गुनको पार न लहि यें, कहि न शके कोइ जग आधारे ॥ निर्मल ॥४॥ वाके नजन सुख पावत प्राणी, शुद्ध दमा कल्याण नदारे ॥ निर्मल ॥ ५॥ इति पार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥अथ प्रनातीयुं ॥ ॥आतमतत्त्व विचारो रे जोगी, आतमतत्त्व विचा रो रे ॥ ए आंकणी॥ थावर जंगम व्यापारज होवे, करुणा दृष्टि तिहां कारी रे ॥ वचन विशासको उत्र
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(४११)
न फरसे, सत्यसिंहासन धारी रे ॥ आतम ॥१॥ कोडी कनक रतन नहि लेवे, घर घर निदा हारी रे ॥ कंदर्पदेवकुं जेर कीयो है, त्रिया जोग निवारी रे ॥ भात ॥ २ ॥ स्नान मऊन अरु परिग्रह त्यागी, वैरी मित्र न यारी रे॥ परमहंसकी पदवी लीनी, जा जोगीपर वारी रे ॥ातम ॥ ३ ॥ महीमंझ लमें विचरे जोगी, देह दिशा वीसारी रे ॥ रूपचंद चरणे शीस नामी, तेरी नक्ति न्यारी रे ॥ श्रा०॥४॥ ॥ अथ संप्रतिराजानुं स्तवन ॥राग आशावरी॥
॥धन धन संप्रति साचो राजा, जेणे कीधां नत्तम काम रे.॥ सवा लाख प्रासाद करावी, कलियुग राख्यु नाम रे ॥ धन॥१॥ वीर संवत्सर संवत बीजे, ते रोत्तरें रविवार रे ॥ माहागुदि आतमी बिंब जरावी, सफल कियो अवतार रे ॥ धन ॥२॥ श्रीपद्मप्रन मूरति थापी, सकल तीरथ शणगार रे ॥ कलियुग क स्पतरु ए प्रगट्यो, वंबित फल दातार रे ॥ धन ॥ ॥३॥ नपासरा बे हजार कराव्या, दानशाला शय सात रे ॥ धर्म तणा आधार आरोपी, त्रिजग दुवि ख्यात रे ॥ धन ॥ ४ ॥ सवा लाख प्रासाद करा व्या, बत्रीश सहस नकार रे ॥ सवा कोडी संख्यायें प्रतिमा, धातु पंचागुं हजार रे॥धन०॥ ५ ॥ एक प्रा साद नवो नित नीपजे, तो मुखशुद्धीज होय रे ॥ एह अनियह संप्रति कीधो, उत्तम करणी जोय रे ॥ ॥धन ॥ ६ ॥ आर्य सुहस्ति गुरु उपदेशे, श्रावकनो
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( ४१२ )
आचार रे || समकित मूल बार व्रत पाली, कोधो जग उपगार रे || धन० ॥ ॥ जिनशासन उद्योत करें। ने, पाली त्रण खंम राज रे ॥ ए संसार असार जाली नें, साध्यां यातम काज रे ॥ धन० ॥८ ॥ गंगाणी न यरीमां प्रगट्या, श्रीपद्मन देव रे ॥ विबुध कानजी शिष्य कनकने, देहो तुम यसेव रे ॥ धन ॥ पद ठुमरी मां गीत ॥
॥ ए॥
॥ सहसफला रे मोरा साहेबा, तोरी स मरी सुरत पर वारी जावं रे ॥ सह० तन मन लगन लगो 5 क तोशुं, हांरे में तो देव यवर नही ध्यानं रे ॥ स० ॥ १ ॥ सफल खाजकी घडी हे मेरी, हांरे में तो देखी दरश सुख पानं रे || सह० || २ || वदन कमल बबि देखत सुंद र, हांरे हुं तो रोम रोम उलसानं रे ॥ सह ॥ ३ ॥ तुम गुनको कबु पार न यावे, हीरे हुं तो उपमा कहा बतानं रे ॥ सह० ॥ ४ ॥ कोर्त्तिसागर कहे. जव जव तोरी, हांरे में तो मोज महिर नित पानं रे ॥ स०॥५॥ ॥ अथ पद राग पट ॥
॥ स्वारथकी सब हे रे सगाई, कुण माता कुण वेनड नाइ ॥ स्वा० ॥ १ ॥ स्वारथ नोजन मुक्त सगा 5. स्वारथ बिन कोई पाणि न पाइ ॥ स्वा० ॥ २ ॥ स्वा रथ मा बाप शेठ बडाइ ॥ स्वारथ बिन नदु होत स हाइ ॥ स्वा० ॥ ३ ॥ स्वारथ नारी दासी कहाइ, स्वा रथ बिन जाती ले धाइ ॥ स्वा० ॥ ४ ॥ स्वारथ चेला गुरु गुरु नाई, स्वारथ बिन नित होत जराइ ॥ स्वा०
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( ४१३ )
॥ ४ ॥ समयसुंदर कहे सुणो रे लोकाइ, स्वारथ हे नलि परम सगाई || स्वा० ॥ ५ ॥ इति ॥
|| पद राग पट ॥
॥ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ, बेरन निश कहांसें रे याइ ॥ सो० ॥ निश कहे में तो बाली रे जोली, बडे बडे मुनिजनकं नाखुं रे ढोली || सो० ॥ १ ॥ निश कहे में तो जमकी दासी, एक हाथे मूकी बीजे हायें फांसी ॥ सो० ॥ २ ॥ समयसुंदर कहे सुनो नाइ ब नीया, याप मूए सारी मुब गइ डुनीयां ॥ सो० ॥ ३ ॥ ॥ अथ पंचपरमेष्टी प्रारति ॥
॥ इहविध मंगल आरति कीजें, पंच परमपद नजि सुख लीजें ॥ इह० || पहेली आरति श्रीजिनरायजा, नविजन पार उतार जीहाजा ॥ इ६० ॥ १ }! बीजी प्रारति सिधस्वरूपी, ध्याने उपजे परम रस कूपी ॥ इह० ॥ २ ॥ त्रीजी आरति सूरि मुलिंदा, जनम जनम दुःख दूर हरंदा ॥ इह० ॥ ३ ॥ चोथी आरति श्रीवाया, दरिसण देखत पाप नसाया ॥ इह० ॥ ४ ॥ पांचमि आरति साधु बताइ, मोह मान ममताकुं हटाइ ॥ इह० ॥ ५ ॥ बही आरति हे सुखदाइ, कुमति विदारण शिव अधिकाई ॥ इह० ॥ ६ ॥ सातमि आरति श्रीजिनबानी, ध्यान धरत मुगती सुखदानी ॥ इह० ॥ ७ ॥ इति प्रारति ॥
॥ अथ नेमजीना साते वार लिख्यते ॥ ॥ सखि नमीयें ते नेम जिनराज, गढ गिरनारें
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(४१४) रे ॥ राणी राजुल जूए वाट, साते वारें रे ॥ १ ॥स खि आदित्यें अरिहंत,अम घर आवो रे ।। महारा श्या म सलूणा नेम, दिलमां नावो रे ॥ २ ॥ सखि सो में ते गुन शणगार, सजियें अंगें रे ॥ मारा जगजी बन जिनराज, रमीयें रंगे रे ॥ ३ ॥ सखि मंगल शुनदिन आज, मंगल चारो ! महारो नवनव केरो नेद, स्वामी संनारो रे ॥४॥ सखि बुधे ते घरे बाबो नाथ, बुद्धिना दरियारे। तमें एक सहस्त्र ने आत, ल खणे नरिया रे॥५॥ सखि गुरु गिरुवा गुणवंत, शि वा देवीना रे ॥ तमें समुविजय कुलचंद, नेम न गीना रे ॥ ६ ॥ सखि शुक्रे सहसावन्न, चालो सज नी रे ॥ महारे प्रगट थयो रे प्रजात, वीती रजनी रे ॥ ७ ॥ सरिख शनिये ते संयम लीध, प्रीत वधारी रे ॥ वेदु पोहोतां मुक्ति मकार, नर ने नारी रे ॥ ७ ॥ कहे मूलचंद मन रंग, आशा फलशे रे ॥ जे नज्ज्व ल पाले शील, नवोदधि तर रे ॥ ए ॥ इतिसं ॥
॥अथ परकीखामणा प्रारंन ॥ ॥अरिहंतजीने खमावीयें रे, जेहना गुण ने बा र ॥ खमोनवि खामणां रे॥१॥ सिह जीवने खमावी ये रे, गुण आठोएं मनोहार ॥ खमो नवि० ॥॥
आचारजने खमावीयें रे, जेहना गुण बत्रीश ॥ ख मोनविण॥३॥ उपाध्यायने खमावीयें रे, जेहना गुण पचवीश ॥ खमो नवि० ॥४॥ साधु सरवे खमावी यें रे, शोने गुण सत्तावीश ॥ खमो नवि०॥ ॥ श्राव
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... (४१५) क श्राविकानें खमावीयें रे, जेहना गुण एकवीश ॥ खमो नवि० ॥ ६ ॥ आठम पाखी खमावीयें रे, चो मासुंत्रण वार ॥ खमो नवि० ॥ ७॥ संवत्सरी गुंफ ख मावीयें रे, खमावीयें वारं वार॥ खमोनवि०॥७॥ रूतडो संघ मनावीयें रे, मनावीयें वारं वार ॥ खमो नवि०॥ ॥ मुक्तिसागर सूरिखमावीयें रे, अचलगड शणगार ॥ खमो नवि० ॥१०॥ चोमासी गुरुने ख मावीयें रे, वांचे सूत्र सिद्धांत ॥ खमो नविण॥११॥
॥ अथ श्रीजीवविचारनुं स्तवन प्रारंन ॥ ॥ ढाल ॥ श्रीसरसती जी, वरसति वचन विलास रे॥ थुगयुं त्रिनुवन जी, तारण श्रीजिन पास रे ॥ सुणो समरथ जी, सुंदर श्रीजिन देव रे॥मुक देजो जी,नव नव तुम पयसेव रे ॥ १ ॥ त्रुटक ॥ तुज सेव पा खे सहिज नमियो, तुं निगमियो जिनवरू ॥ बक्का यमांहे जीव सहियो, बेदन नेदन आकरूं ॥ नत्कृष्ट आयु अवगाहना जे, ईणे जीवें जोगवी ॥ लाख चो राशी जीवा योनि, तेह पण श्म जोगवी ॥ २ ॥ ढाल ॥ मणि स्फटिक जी,हिंगलो रयण प्रवाल रे॥ पारो अबरख जी, गेरु खडी हरियाल रे ॥ उस सुर मो जी,माटी पाषाण सात धात रे॥ लूणादिक जी, थिवी नेद बहु जात रे ॥ ३ ॥ त्रुटक ॥ अनेक नेद वति पाणी जणीयें, कुप सरोवर धूअरू ॥ सा हि म घणोदधि करा कहीयें, समुश् अनेक पाणी ख रू॥ अंगाल जाल मुम्मूर विजली, उत्तकापात अमि
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(४१६)
कणा ॥ सिद्धांतमाहे में विशेषे, नेद अनेक अनि त एगा ॥ ४ ॥ ढाल ॥ एक वायरो जी, हलु हलुवा य रे॥गुंजारव जी,करतो चिहुं दिशि धाय रे ॥ पाडे न कली जी,वली वंटोलीयो एक रे ॥ घनवातें जी,वायु नेद अनेक रे ॥ ५ ॥त्रुटक ॥ श्म दोय नेद वनस्प ति केरा, साधारण प्रत्येक तरू ॥ कंद कोमल फल अंकूरा, फूल सेवाल सेखरू । अनेक नेद साधारण सुगोयें, लक्षण तस शास्त्रे सही। एहथी जे होय वि परीत, तेह प्रत्येक वनस्पति कही॥६॥ ढाल ॥ टथिवी पाणी जी,तेक वान काय रे॥ वसई पांचमीजी, था वरकाय कहेवाय रे ॥ विकलेंडी जी, नारळी तिर्यच मानवी ॥ वली देवता जी, बही त्रसकाय पालवी ॥ ७ ॥ त्रुटक ॥ पहेली टथिवीकाय आयु, वरस सहस बावीश ए ॥ सात सहस अपकाय जणीयें, अ नित्रण दिन दीस ए ।। वरस सहसत्रण वायु मुणी ये, वसई दस सहस जागीयें ॥ नारय देव विण जघन्य आयु, अंतर मुहूर्त प्रमाणीयें ॥७॥ ढालाअंगु लतणो जी,नाग असंख्यातमो नपुं॥ स्वानाविक जी, जघन्य दुवे सदुनो तनु ॥ चार थावर जी,गुरु लघु स म तनु जोय रे ॥ वनस्पति जी,सहस योजन जाजी होय रे ॥ए ॥ त्रुटक ॥ श्म होय समूर्डिम मनुष्य साधारण, सूक्ष्म जेह निगोद ए॥ तस आयु अंतर मुहर्त होवे,चौदराज अनेद ए॥ पांच थावर कहिये एक इंशी, शास्त्रे नेद तस ने घणा ॥ एम कहे कवि
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(१७)
यण सुगो नवियण, नाम मात्रज ए नएयां ॥ १० ॥
॥दोहा॥ नव साढा सत्तर कह्या, श्वासोवास मका र ॥ एकेंडी नव नोगवी, वलतो विगल विचार ॥११॥ ॥ ढाल बीजी।बे कर जोडी ताम रे, ना वीनवे ॥
॥ए देशी॥ ॥शंख बीप कोमा सरमीयां रे, मेहर थापना सा र ॥ जलो पूराने अलसीयां रे, ए बेडी विचारो रे ॥धन जिनवयणडां, उतारे नव पारो रे, ते ज गमा वडा॥ ए अांकणी॥१॥ कान खजूरा माकडि जूया रे, गद्दहीयां घीमेल ॥ कीडी गिंगोडा कातरा रे, गोकीड मकोडा चूडेल रे॥धन ॥ १३॥ सावा जूवा धान कीडला रे,ईली अने इंगोप ॥ नदेही ने वली कुंथुप्रा रे, म करो तेंडीनो लोप रे ॥ धन ॥ ॥१४॥ वीठी कसारी खडमाकडी रे, नमरा जमरीने तीड ॥ मावी मसा मंसा पतंगीया रे, टाली चोरिं हीनी पीड रे ॥ धन ॥ १५ ॥बेंडी वरसज बारनुं रे, हवे तेंडी प्रकाश ॥ दिवस गणपञ्चाशनो रे, चौ रिंडी पट् मास रे ॥ धन ॥ १६ ॥ शंख प्रमुख जे बेशी रे, तस तनु जोयण बार ॥ कान खजूरा गान त्रणनो रे,नमर होये गान चार रे॥धन॥१॥ बेंडी तेंडीचोरिंडी रे,ए विगलेंडीरे नाम ॥कहे कवियण तुमें सांजलो रे, हवे पंचेंडी अनिराम रे ॥ध॥१॥
॥दोहा॥नहि विवेक विकल पणे,नही तस तत्त्व वि चार॥नव नवांतरें जोगव्या, उपनो नरक मजार॥१॥
२७
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(४१ ) ॥ ढाल त्रीजी॥ जंवहिप मकार रे ॥ ए देशी।।
॥ रत्नपना पहेली जेह रे, सागर एकनुं । एक त्रीश हाथ बांगुला ए ॥शक प्रना बीजी होय रे, त्रण सागर तिहां ॥ हाथ बाशठ बार बांगुला ए॥२॥ वालुपना पुहवी त्रीजी रे, सात सागर आयु ॥ए कत्रीश धनुष एक हाथर्नु ए ॥ पंकप्रन चोथी नाम रे, दश सागर सही ।। बाशठ साढा धनुष तनु ए ॥१॥ पंचमी धूमप्रनायें रे, सत्तर स गर सुगो । धनुष सवासो जाणीयें ए । तमप्रना बड़ा जाणो रे, बावीश सागर ॥ धनुष अढीशे नापीयें ए॥ २२ ।। तम तमा सातमी नाम रे, तेत्रीश सागर ॥ धनुष शं चशे देह रचे ए॥ पांच कोडी अडश लाख रे, सहर नवाणुं ए॥ रोगें नारकी नित्य पचे ए॥२३॥परमा धामी पचावे रे, वत्ती दश वेदना ॥ कीधां कर्म ते जोगवे ए ॥ राज राज प्रत्ये पोहवी रे, श्म सात रा जनी ॥ सातमी प्रथिवी योगवी ए॥ २४ ॥
॥दोहा॥ सात प्रकारें नारकी,बोल्यो तास विचार ।। जलचर थलचर खेचरू, तिर्यच त्रस्य प्रकार ॥ २५॥
॥ ढाल चोथी॥त्रिपदीनी देशी ॥ ॥ नरपुरी चुजपुरी गर्नज थाय, गर्न समूर्बिम मह कहेवाय, वरस पूरव कोडी आय होनविका ॥ वरस पूर्वकोडी आय ॥ २६ ॥ सहस योजन तस काया दीसे, नुजपुरिकोश पृथक्त वली कहीसे, जि न वचनें चित्त हीसे हो ॥ नवि० ॥ जि० ॥२७॥
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(४१) त्रेपन सहस समर्जिम व्याल, चुजपुरि सर्प सहस बायाल, योजन पृथक्त तनु जाल हो ॥ नवि०॥ ॥ यो० ॥ २७ ॥ गर्न तिर्यच चतुष्पदनी जात, त्रण पत्योपम आयु विरव्यात, काया कोश सुणो ज्ञात हो ॥ नवि० ॥ काया० ॥ ए॥ चतुष्पद संमू लिम कहियें जास, आयु सहस चोरासी वास ।। कोश पृथक्त तनु तास हो ॥नवि०॥ कोश॥३०॥ पंखी गर्नज आयुनो माग, पव्योपम असंख्यातमो नाग, धनुष पृथक्त तनुलाग हो ॥ नवि० ॥ धनु० ॥ ॥ ३१ ॥ संमूर्बिम पंखी बढुंतेर सहस, ए पहेले आ रे कहेश, चनपद विवरीलहेश हो ॥ नवि०॥च०॥ ॥ ३२ ॥ जेणे आरे जे मानव आयु धार, तेह तणा नाग कीजें नदार, नाग चोथे अश्व सार हो ॥ नविन ॥जाग० ॥ ३३ ॥ अज आयु नाग आठमे वखाj, गाय नेंष मे उंट खरादिक जाणुं, पांचमे नाग प्रमा गुं हो ॥ नवि० ॥ पांच० ॥ ३४ ॥ श्वानादिक नाग दशमे कहीयें, हस्ति आयु मानव पदें लहीयें, जिन आणा शिर वहीयें हो ॥ नवि०॥ जिन ॥३५ ॥
॥ दोहा ॥ पशुअपणे परवश पड्यो, पाम्यो कुःख अपार ॥ कर्म केतां तिहां निर्जरी, धरीयो मनुज अवतार ॥ ३६॥ ॥ ढाल पांचमी॥कपूर होवे अतिकजलो रे॥ ए देशी॥
॥चार कोडाकोडी सागरू रे,सुसम सुसमा नाम॥ त्रण्य पढ्योपम आयुखं रे, त्रण गान अनिराम रे ॥
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(४२०) प्राणी मानव नव अवतार, नरीयें सुस्त नंमार रे ॥ प्राणी मान ॥ ३७॥ ए अांकणी ॥ सागर कोडा कोडी त्रएयनो रे, सुसम बीजो जेह ॥ दोय पव्योपम आनखं रे, युगल गान दोय देह रे ॥ प्राणी मान ॥ ३८ ॥ त्रीजो सुसम उसमा रे, सागर कोडा कोडी दोय ॥ एक पल्योपम युगलनो रे, कोश काया एक होय रे ॥ प्राणी मान० ॥ ३ ॥ पे हेले तुअर बीजे बोर समो रे, त्रीजे आमलधार ॥ अहम बह एकांतरो रे, सुर तरु पूरे आहार रे ॥ प्राणी मान० ॥ ४० ॥ उसम सुसम कोडा कोडी नो रे, सहस बेंथालीश कण ॥ पूर्व कोड। वरस मा नथी रे, पांचशे धनुष प्रमाण रे ॥ प्राणी मान ॥ ॥४१॥ वरस सहस एकवीशनो रे, उसमा कलियुग नाथ ॥ एकशो वीश वर्ष आनखं रे, मानव काया सात हाथ रे ॥ प्राणी मान ॥ ४२ ॥ बहो सह स एकवीशनो रे, उसमाउसम अपार ॥ वीश वरस दोय हाथना रे, मबाहारी नरनार रे ॥ प्राणी मान ॥४३॥ ए बारे अवसर्पिणी रे, नत्सर्पिण वि परीत जाण ॥ कालचक्र ए दोय मली रे, बार बारे प्रमाण रे ॥ प्राणी मान ॥४४॥ पांच नरत पांच ऐरवतें रे, तिहां सदा सरिखो काल ॥ पांचविदेह परं परा रे, चोथो अारो सुविशाल रे॥प्राणीमान॥४॥
॥दोहा॥ दश दृष्टांतें दोहिलो, मानवनो अवता र॥ शुननावें सुस्त पणे, उपनो देव मजार ॥१६॥
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( ४२१ )
॥ ढाल बही ॥ नंदनं त्रिसला दुलरावे ॥ ए देशी ॥ ॥ दश प्रकारें जवनपति कहीयें, व्यंतर यात प्र कारो रे || ज्योतिषी पांच प्रकारें सुणजो, दोय विमा निक सारो रे || दश० ॥ ४७ ॥ असुर कुमार साधि क एक सागर, सात हाथ तस काय रे ॥ देशें कणा दोय पल्योपम, नव निकाय कहेवाय रे ॥ दश० ॥ ॥ ४८ ॥ लाख सहस वरस एक पल्योपम, चंद सु र्य विचार रे | व्यंतर त्र्यायु एक पल्योपम, तनु सम
सुर कुमार रे ॥ दश० ॥ ४५ ॥ नारकी जवन प ति ने व्यंतर, दश सहस वरस जघन्य रे || ज्योतिषी पव्योपम ड जागें, पत्योपम विमान रे ॥ दश० ॥ ॥ ५० ॥ युग्म सौधर्मने ईशानें, इहांथी होय एक राजे रे ॥ सागर वे बीजे वे जाजा, सात हाथ वि राजे रे ॥ दश ॥ ५१ ॥ सनतकुंमार जुगम मा हैंवें, दोय राज हवे जालो रे ॥ त्रीजे सात चोथे सात जाजा, ब हाथ काया प्रमाणो रे ॥ दश० ॥ ॥ ५२ ॥ पांच ब्रह्म श्रायु दस सागर, लांतक बहे चौद रे || पांच हाथ तस काया कहीयें, त्रय राज
नेद रे || दश ॥ ५३ ॥ शुक्र सातमे सत्तर सा गर, वली सहसारें अदार रे ॥ चार हाथ तनु सुर देह सोहे, राज होवे तिहां चार रे ॥ दश० ॥ ५४ ॥ नवमे यानत जंगलीश सागर, प्राणत दशमे वीश रे ॥ एकादश ारण्य एकवीश, बारमे अच्युत बा वीश रे ॥ दश० ॥ ५५ ॥ ए चारे त्रण हाथनी का
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( ४ २२ )
या, पांच राज्य इहां सोहे रे || नव ग्रैवेयक एक उपर उपे दीठे नवि मन मोहे रे ॥ दश० ॥ ५ ॥
"
॥ दोहा ॥ बार स्वर्ग हे सदा, तिहां राज्य नीति प्र धान ॥ नेद बीजो वैमान तो, नव ग्रैवेयक विधः ॥ ५७ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ माइ धन सुपन तुं ध् ॥ ॥ जीवो तोरी प्राश || देशी ॥
"
॥ सुदर्शन पहेले, सागर तिहां त्रेवीश || सुप्रति बंध चोवीश, मनोरमें पंचवीश ॥ ५७ ॥ सर्व वीश, सुविशालें सत्तावीश ॥ सुमनसें अडावीश, ह वे त्रिक चीजे जगी ॥ ५५ ॥ गणत्रीश सोमनसें. प्रियंकर यात त्रोश ॥ श्रादित्यें एकत्रीश, दोय हा य तनु दश ॥ ६० ॥ ए नव ग्रैवेयकें, उए राज प्र धान ॥ सातमें सिद्ध बेहडे, हवे अनुत्तर विमान ॥ ॥ ६१ ॥ विजय विजयंतें, जयंत पराजीत ॥ सरवा रथ सिवें, नहीं तिहां राजनी नीत ॥ ६ ॥ सागर या यु तेत्री, काया कर एक वारू ॥ एका अवतारी, सुख अनंत तस चारू ॥ ६३ ॥ तिहांथी बार योजन, सिद्ध शिला महंत ॥ जोजनने अंतें, सिद्ध हवा अनं त ॥ ६४ ॥ खायु अवगाहना, कहि सामान्य प्रका र ॥ जघन्य संदेपें, बोल्या तास विचार ॥ ६५ ॥
॥ दोहा ॥ नवस्थिति इणि परें जोगवी, तुजविण त्रिभुवन देव || कुण स्थानक काया स्थितें, रह्यो कहूं सु देव ॥ ६६ ॥
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(४२३)
॥ ढाल बातमी॥जरतनृप नावगुं ए॥ ए देश।।
॥सात हेवल सात उपरें ए, चउद राजलोक ना व ॥ नविक जिन जावा ए॥ पुरुषाकार लोक पूरीयो ए, षट पदारथ नाव ॥ नवि०॥६॥ नयर जवनपति देवता ए,अधोलोक निःशंक॥नवि०॥ व्यंतरनर तिरि गिरिवरू ए, बीप समु असंख्य ॥ नवि० ॥ ६ ॥ अनि विकलेंडी ज्योतिषी ए, ए सवि ती लोक ॥ ॥ नवि०॥ स्वर्ग 7वेयक पांच अनुत्तरू ए, सर्व सि ६ ऊर्ध्व लोक ॥ नवि०॥ ६ए ॥ असंख्याती उत्स पिणी ए, सर्व एकेंझ्यि स्थितिकाय ॥ नवि० ॥ का ल अनंतो अनंतकायमां ए, नपजे ने वली जाय । ॥ नवि ॥ ७० ॥ विगल संख्या वरस सहस्सनी ए, नर तिरि नव सात आठ॥ नवि० ॥ नारकी देव च वीय न उपजे ए, जघन्य अायु परिपाठ ॥ नवि० ॥ ॥७१॥सात सात लाख चार थावरू ए, वनस्पति दश लाख ॥नवि०॥यनंतकाय चौद लाख सुणो ए, विगलें ही दो दो लाख ॥ नवि० ॥ ७२ ॥ नारकी तिर्यच देवता ए, चउद लाख होये तेह॥नवि०॥ चनद लाख वली मानवीए, संख्या जीवायोनि एह ॥ नवि०॥ ॥७३॥ इंशी पांच त्रण बल कह्यां ए, श्वासोवास वती याय ॥ नवि० ॥ दश प्राण होये सन्निया रे, नव असन्निया थाय ॥ नवि०॥ ४॥ सात आठ विकलेंश्यि तणा ए, एकेडी प्राण चार ॥ नवि० ॥ नर तिरियंच त्रण वेद सुगो ए, देवता दोय वेद सार ॥
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(४२४) नवि० ॥ ७५ ॥ थावर विकलेंडी ने नारकी ए,एक न पुंसक वेद ॥ नवि० ॥ पऊमणुं अधिक बादर अग्गी ए, वैमानिक नुवणेद ॥नवि० ॥ ७६ ॥ निरय व्यंतर ज्योतिषी चनरिदिए, तिरियंच बितिडीक ॥ नवि०॥ पृथिवी पाणी वायु वसई ए, एक एक जीवथी अधि क ॥ नविण ॥ ७७ ॥ चिटुं गति नमी नमी उपनो ए, संप्रति प्रनु पद लोध ॥ नवि०॥ शास्त्रथकी जे विरु६ कह्यु ए, ते पंमित करजो गुच॥ नवि० ॥ ७७ ॥ हार हश्ये रयणनो ए, धरजो चतुर सुजाण ॥नवि०॥जणे गणे जे सांजले ए, तस घर कोडि कल्याण ॥न॥७॥
॥ ढाल नवमी ॥ कडखानी देशी॥ ॥ चनदराजमांहे जीव के के जुग जम्यो, सूक्ष्म वलीबादर अनंतीवारू॥ कर्मनीकोड नरीवकाम नि जर करी, पामीयें पास त्रिनुवन्नं तारू ॥ ७० ॥ नेट रे नेट प्रनु पास चिंतामणि, एहिज मुक्तिनो मार्ग सा चो। कुगुरु कुदेव कुधर्मने परिहरो, मोह मिथ्यामतें केम राचो ॥नेट० ॥१॥ नयर गुण दीव गुण वेलि वाघे सदा, पुष्करावर्त पास मेघ देवा ॥ श्रीसं घ मंझप तलें वेलि ते विस्तरे, कपजे आनंद सुकत मे वा॥नेट ॥ २ ॥ संवत ससी सायर चंश्लोचन (१७१२) स्तव्यो, श्राशोशुदि दशमी रविवार राजे॥सू रि शिर ताज गुरु राज आणंदजी, तस पटें सूरि वि जयराज बाजे ॥ने० ॥ ७३ ॥ धन धन हर्ष गुरु विबुध चूडामणि, जास दीक्षित जगें कीर्ति सारी ॥
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( ४२५ ) रत्नविजय बुध सत्यविजय तो, वृद्धिविजय नणे श्रानंदकारी ॥ नेट० ॥ ८४ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ श्रीजिनप्रतिमा उपर स्तवन ॥ ॥ चोपानी देशीमां ॥
॥ जेहने जिनवरनो नहीं जाप, तेहनुं पासुं न मेले पाप || जेहने जिनवरशुं नहीं रंग, तेहनो कदी न कीजें संग ॥ १ ॥ जेहने नहीं वाहाला वीतराग, ते मुक्तिनो न लहे ताग || जेहने भगवंतयुं नहीं जाव, तेहनी कुण सांजलशे राव ॥ २ ॥ जेहने प्रतिमाशुं नहीं प्रेम. तेहनुं मुखडुं जोइयें केम || जेहने प्रति माशुं नहीं प्रीत, तेतो पामे नहिं समकित ॥ ३ ॥ जेहने प्रतिमायुं ने वेर, तेहनी कहो शी थाशे पेर ॥ जेहने जिनप्रतिमा नहीं पूज्य, यागम बोले तेह अ पूज्य ॥ ४ ॥ नाम थापना इव्य ने नाव, प्रजुने पूजो सही प्रस्ताव ॥ जे नर पूजे जिननां बिंब, ते लहे अविचल पद विलंब ॥ ५ ॥ पूजा बे मुक्तिनो पंथ, नित नित नांखे इम जगवंत ॥ ४ ॥ सहि एक नर कविना निरधार, प्रतिमा बे त्रिभुवनमां सार ॥ ६ ॥ सतर हाणुं आषाढी बीज, नज्ज्वल कीधुं बे बोध बीज ॥ इम कहे उदयरतन नवकाय, प्रेमें पूजो प्रभुना पाय ॥ ७ ॥ इति जिनप्रतिमा स्तवनं ॥ . ॥ अथ नवतत्त्वनुं स्तवन प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥ सरसतिनें प्रणमुं सदा, वरदाता नित्य मेव ॥ मु मुख यावी तूं वसे, करुं निरंतर सेव ॥ १ ॥
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(४२६) आदीसर अरिहंत नमुं, जुगला धर्म निवार ॥ गुरु श्रुत देवी चंदलो, एहिज मुफ आधार ॥ २ ॥ जास तणां पदयुग नमी, वर्णवं तत्त्व विचार ॥ नवियण एक चित्तें करी, नाम कहुँ हितकार ॥ ३ ॥ जीव अ जीव पुण्य पाप ने, संवर आश्रव जेह ॥ निर्जरा बं ध ने मोद जे, जिनजीये नांख्या एह ॥ ४ ॥ एहना नेद डे नव नवा, आगममा अनुरूप ॥ गुरुमुखथी ते सांजली, नां एह स्वरूप ॥ ५॥ ॥ ढाल पहेली। शोलमा श्रीजिनराज, उलंग॥
॥सुणो अम तणी ललना ॥ ए देशी॥ ॥ जीव तत्त्वना नेद ते, चनदें जाणीयें ॥ला॥ चन्द अजीवना नेद, ते मनमां आणीयें ॥ ल॥ नेद बहेंतालीश पुण्यना, नदियण चित्त धरोल॥ व्यासी नेद ते पापना, मनी संवरो॥ल ॥ १ ॥
आश्रवना बहेंतालीश, नेद ते नावियेला संवरना सत्तावन, चित्तमां लावीयें ॥ल॥बार नेदें ले निर्ज रा, कर्म ते निरे ॥ल॥जेहथी प्राणी मोद, रमणी सुखने वरे ॥ लम् ॥ २ ॥ बंध तत्त्वना चार, ते बंध ने तोडीयें॥ल॥मोद तत्त्वना नव, ते सुखथी जो डीयें ॥ लम्॥ सर्व मती नव तत्त्वना, नेद ते जाण जो ॥ल॥ बशे ने बहोतेर ते, मनमां याजो॥ ॥ल॥३॥ तेमां अध्याशी अरूपी, नेद ते सुख करू ॥ल॥ एकशो अध्यासी रूपी, कहे ते जिनवरू ॥ल ॥ मुंगर गुरु ध्यानया, सुरखने अनुसरे ॥ल॥
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( ४ २७ )
विवेक कहे नविलोक, ते नव सायर तरे ॥ ते ० ॥ ४ ॥ ॥ दोहा ॥ हवे प्रथम जीव तत्त्वना, नेद करूं हितकार ॥ विवरीने ते वर्णयुं, एक एक सुखकार ॥ १ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ नदी यमुनाके तीर, नमे ॥ ॥ दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥
॥ एक दें कह्यो जीव, हुविध ने वली ॥ त्रय प्रकारें जाण, चनविह कदे केवली ॥ पंच पटविध जीव बे, बए नांखीया ॥ रिहा जिनवर एह के, मु खथी दाखीया ॥ १ ॥ चेतना लक्षण जीव ते, एक अ नेद बे ॥ त्रस ने बीजो स्थावर, इहां नवि खेद वे ॥ स्त्री पुरुष नपुंसक, वेद त्रये सही ॥ देव ग मनुष्य तिर्यच, वली नारक कही ॥ २ ॥ पांच प्रका रें जीव, पंचेंप्रिय परखीयें ॥ ब प्रकारें जीव, बकायने निरखीयें ॥ इणेविध व नेदें जीव, धारो तुमें एक म ना ॥ हवे खागल दश प्राण, कहे त्रिभुवन जिना ॥ ३ ॥ पांच इंदी त्रण बल, श्वासोच्छ्वास श्रनखुं ॥ ए दश प्राणीने होय, विवरी कहुं पारिखुं ॥ एकेंडीने चार प्राण, बेंदीने कह्या ॥ तें सात जाणो, चौरिंडीयें या जह्या ॥ ४ ॥ सन्नी पचेंड़ी ने नव, संज्ञी दश धारजो ॥ ए विना अवर न होय, संदेह मन वारजो ॥ हवे एकेंप्रिय सूक्ष्म, बादर दोय बे ॥ पंचेंप्रिय संज्ञी संज्ञी, दोय नेद जोय बे ॥ ५ ॥ बें तेंड़ी एक, चौरिं जाणजो ॥ ए साते नेद होय के, गुन मन चाणजो ॥ पत अपऊ ए दोय, चन्द नेद जीवना ॥
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(२७) धारो चित्तमें जेह के, जवि जन एकमना ॥ ६॥श्रा हार शरीरने इंडिय, श्वास वचन सही॥ मननी बही जाण, एकेश्यि चन कदी ॥ बिति चौरिंख्यि अस नी,ने होये पंच ए॥ पट् सन्नी ने जाणवी, विशेष कहे संच ए॥ ७ ॥
॥दोहा॥ जीव तत्त परण थयुं, हवे अजीव वि चार ॥ निन्न निन्न करीने कद्, सांजलजो नर ना ॥॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥वीरजीने वचनें र अमृत रस ऊरे र॥ए देद।।।
॥ धर्मास्तिकाय खंध देश प्रदेश के रे, नेम अधर्मा स्तिकाय ॥ एहना पण ए त्रण नेदज कह्या रे, एम
आकाशना त्रण थाय ॥ नवि तुमें जाणो रे अजीव न त्वना रे॥ए अांकणी॥१॥ एत्रनामली नव नेद सुंदरू रे, दशमो नेद डे काल ॥ खंध देश प्रदेश प्रमा पुन रे, अजीवना चौद कह्या सुविशाल ॥ नवि० ॥ ॥ २ ॥ धर्मास्ति अधर्मास्ति पुजला रे, आकाश काल सुविहाण ॥ ए पांचे अजीव ते जिन कह्या रे, कह्या कह्या त्रिनुवन जाण ॥ नवि० ॥३॥ चलण स्वनाव धर्मास्तिकायमां रे, अधर्मास्ति थिर गण॥अवकाश
आपे पुजप्त जीवने रे, हवे पुजलना चार विनाण ॥ नविण ॥४॥ खंध देश प्रदेश प्रमाणुन रे, पुजलना ए चार नेव ॥ हवे आवलिका नेद तुमें लहो रे, श्र संख्य समय एक आवलि मेव ॥ नवि०॥ ५॥ एक को डीने सडस लाख के रे, उपर सीतोत्तर सहस्सज जो
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( ए) य॥बरों ने शोल बावलिका कही रे, एटली आवलि यें एक मुहर्त होय ॥नवि०॥६॥त्रीश मुहूर्ते दिवस रात्रि कही रे. पंदर अहोरात्र एकज पद ॥बे पदें ए कमासज नावियें रे, बार मासें एक वर्षज दद॥ नविन ॥ ७ ॥ एहवं वरसें हवे पूर्व कहुं रे, सितेर लाख को डी वरसज जाय ॥ बपन्न स स कोडी वरस मान कहूं रे, पूर्व एटले वरसें थाय ॥ नवि ॥॥ असंख्या त पूरवें एक पत्य जाणीयें रे, दश कोडा कोडी पल्ये सागर एक ॥ सागर दश कोडाकोड। उत्सर्पिणी रे, अवसर्पिणी कोडाकोडी दश बेक ॥ नवि० ॥ ए॥ वीश कोडाकोडी सागरें काल चक ने रे, काल अनंतें पुजल परावर्त जाण ॥ मुंगर गुरुना पद गुन ध्यानथी रे, नित्य नित्य विवेक लहे कल्याण ॥ नवि० ॥१०॥
॥ दोहा ॥ पुण्य तत्त्व तणा कहुँ, नेद बहेंतालीश जेह ॥ एकमना थश्सांनलो,आणी अधिको नेह ॥१॥ ॥ ढाल चोथी॥ साहेबजी श्रीविमलाचल ॥
॥नेटीयें हो लाल ॥ ए देशी॥ ॥ बहेंतालीश नेद पुण्य तत्त्वना हो लाल, शाता वेदनी नंच गोत्र ॥ साहेबजी ॥ मनुष्यगति मनुष्यानु पूर्वी हो लाल, चार नेद ए युक्त ॥ सा ॥ पुण्य तत्त्व हवे सांजलो हो लाल ॥ ए आंकणी ॥१॥ साहे बजी सुरजग पंचेंशियपणुं हो लाल, पांच देह मनो हार ॥ सा० ॥ औदारिक वैक्रिय आहारकें हो लाल, अंगोपांगें युक्त धार ॥ सा ॥ पु० ॥ ॥
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(४३०) ॥ सा० ॥ प्रथम संघयण संस्थान' हो लाल, शुन वरण शुन गंध ॥ सा० ॥ गुन रस गुज स्पर्शने हो लाल, अगुरु लघु अदंन ॥ सा० ॥ पु० ॥ ॥ ३ ॥ सा० ॥ पराघात श्वासोलासने हो लाल, लेवाने जेहनी सक्त ॥ ॥ आताप नेद पच वीशमो हो लाल, नद्योत कर्मनी व्यक्त ॥ सा० ॥ ॥ पु० ॥ ४ ॥सा॥ शुनवगई गुनगति करे होला ल, निर्माण नाम अगर्व ॥ सा० ॥ त्रस दशको दश नेदनो हो लाल, आगलें कहे ते सर्व ॥ सा ॥ ॥ पु० ॥ ५ ॥ सा ॥ सर नर तिरि अानवू हो लाल, तीर्थकर नाम कर्म ॥सा ॥ हवे त्रस दशको वर्णवू हो लाल, जेदथी लहे शिवं शर्म ॥ ॥ सा० ॥ पु० ॥ ६ ॥ सा० ॥ त्रस बायर पर्याप्ता हो लाल, प्रत्येक स्थिर गुन नाम ॥ सा० ॥ सौना म्य नामकर्मथी हो लाल, जीव लहे शुन ठाम ॥ ॥ सा० ॥ पु० ॥ ७ ॥ सा० ॥ सुस्वर आदय जस नामथी हो लाल, जीव लहे सुख नित्य ॥ सा० ॥ डूंगर गुरु पद सेवतां हो लाल, विवेक लहे जग जीत ॥ सा० ॥ पु० ॥ ७ ॥
॥ दोहा ॥ पाप तत्त्वथी कुःख होये, पामे नरक दू वार ॥ ते माटे चेतन तुमें, मनथो एह निवार ॥१॥
॥ ढाल पांचमी ॥ सुरति महीनानी देशी ॥
॥आवरण पंचने तिम वली, अंतराय ने पंच॥पंच निश कहि दर्शन, चारे ते खल खंच ॥ नीच गोत्र
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(४३१) आशाता, तेम वली मिथ्यात्व ॥ थावर दशको बागल कहे, सांजलो एह विख्यात ॥१॥नरक त्रिक अने व ली, पणवीस कषाय ॥ तिरिय ग मली कह्या, नेद बासठ ए थाय ॥ईग बि ति चन जाई, कुरखगई नपघा त ॥ होये प्राणीने ते सही,नीच कर्मनी ख्यात ॥॥ अगुन वरण अगुन रस, गंध असून तेम जाण ॥ फरस अशुन तेमज कह्यो, बागममां जिन नाण ॥ पढम संघयण विनाहीज, मूकी पढम संस्थान ॥ बहोंत्तेर नेद ए थया, जागो एहनुं मान ॥ ३ ॥ थावर सुदुम अपऊ, साधारण अस्थिर ॥ अगुन मुनग दुःस्वर, अनादेय अपजश धीर ॥ आगममां पाप तत्वना, नेद ए व्यासी जाण ॥ मूंगर गुरुनो से वक, तेहने नित्य कल्याण ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ पाप तत्त्वने ए कह्यु, हवे आश्रवनुंगा म ॥ पाप यावे जे जीवने,थाश्रव एहनुं नाम ॥१॥ ॥ ढाल बही॥ देखी कामिनी दोय के,कामें व्यापोयो
रे के ॥ कामें व्यापियो॥ ए देशी॥ ॥ पांच इंशी कषाय चार के, अव्रत पण कह्या रे के ॥ अव्रत ॥त्रण योग त्रण नेद के, गुरु मु खथी लह्या रे के ॥ गुरु० ॥ हवे किरिया ते जोय के, पणवीश अनुक्रमें रे के ॥ पण ॥ तजीयें जेहथी हो यके, पुस्य सुसंक्रमे रे के ॥ पुण्य ॥१॥ पहेली का यिकी जाण के, बीजी अधिकरणकी रे के ॥बीजी॥ त्रीजी परषकी होय के, चोथी पारितापनकी रे के
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(४३२) ॥ चो० ॥ प्राणातिपातनी पांचमी, बही आरंजकी रे केही॥ परिग्रहकी कही सातमी,ाठमी कायिकी रे के ॥ आ० ॥२॥ मिथ्यादसण अपच्चरकाणकी, नव दस एक कह। रे के। नव ॥ दिति पुति पारचकी, त्रयोदश ए सही रे के ॥त्रो० ॥ सामंतोनपात निः शस्त्र, स्वहस्तकी शोलमी रे ॥ स्व० ॥ सत्तरमी पाणव गी, विदारण अढारमी रे॥ वि०॥३॥अगानोग अ गनख के, बे मती वीश थरे के वे ॥ अपनप योग समुदायकी, बावीश ए लश् रे के॥ बा० ॥वी शमी ते रागकी, चोवीशमी हेरकीरे के ॥ यो ॥ पण वीशमी पिथिकी, कही विशेषकी रे के ॥ कही० ॥ ॥ ४॥ नेद बेहेंतालीश आश्रय, तत्त्वना ए कह्या रे के ॥ तत्त्व० ॥ सम्यक्दृष्टि जीव के,मनथी सह्या रे के॥ ॥ मन ॥ ॐगर गुरु शुनध्यानथी, आश्रवने तजो रे के ॥ आश्रव० ॥ विवेक कहे नविलोक के, शिव र मणी नजो रे के ॥ शिव ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ ढाल सातमी॥ प्राणी वाणं। जिन तणी॥ ए देशी॥
॥संवर तत्त्व ते सांजलो, संवरीयें यातमा नित्य रे॥ अरिहा जिनवरें जांखियो, आगममांहे शुनरी त रे.॥ आगममांहे शुनरीत सूचित, सुनित जगत गुरु नासियो सुख कंद रे ॥ सुख कंद अमंद आनं द ॥ जगत गुरु नासीयो सुख कंद रे ॥ ए आंकणी ॥१॥ पांच समिति त्रण गुप्ति जे, परिसह बावीश निवारो रे ॥ दशविध मुनिवर धर्म जे,ते मुनिजन नित्य
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(४३३) तुमें धारो रे॥ते मुनि॥सु॥ ॥ज॥॥पांच स मिति विवरी कहूं, O समिति प्रथम वखाण रे ॥ बक्काय रहा जे करे, या कही तेह सुजाण रे ॥ ॥ो० ॥ सु०॥सु०॥ज॥३॥नाषा समिति बीजी हवे, सदुने सुख उपजे सोय रे ॥ एषणा बहेंतातीश दोष , मुनिने आहार एम होय रे॥ मुनि ॥ सु० ॥ सु॥ज॥४॥अदान निदेपणा, समिति ले मूके योग रे॥ पारिष्टापनिका कही, मल मूत्र नाखे नप योग रे ॥ मल ॥सु०॥सु०॥ज॥५॥त्रण गुप्ति हवे चित्त धरो, मन वचन काया करे गुंछ रे ॥ आठ प्रव चन मात जे, मुनि धारे तेहिज बुम रे॥ मुनि ॥ ॥सु॥सुं०॥ ज० ॥६॥दुधा पिपासा शीत जे, नुष्ण मंसा परिसह चेल रे ॥ रती स्त्रियादिक ते वली, चरि या निसि दियादिक मेल रे॥च ॥ सु० ॥ सु० ॥ ज० ॥ ७ ॥ सया आक्रोश वह जायणा, अलान रोग त ण फास रे ॥मल सकार परिसह जे, पन्ना अन्नाण सं मत्त रे॥पन्ना०॥सु० ॥ सु॥ज ॥७॥खंति मद्दव अ ऊव, मुत्ति तव संजम मेहरे ॥ सचं सोहं अकिंचण, ब्रह्मचर्य ए दशविध जेह रे॥ ब्रह्म॥सु॥ सु०॥ज०॥ ॥ए॥ प्रथम अनित्यह नावना, अशरण संसार ए कत्व रे॥अन्यत्त्व जावना पंचमी, अशुचि जावना त त्त्व रे॥अशु॥सु॥सु॥ज॥१०॥ आश्रव संवर निर्जरा, लोक बोधि उर्लन नाव रे ॥धर्म ध्यान ते बारनी, ए ले जवजल जंतु नाव रे ॥ ए ० ॥ सु० ॥
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(४३४) ॥ सु०॥ ज०॥११॥ पांच नेद चारित्रना, सामायि क दोपस्थान रे ॥ परिहार सूक्ष्म चारित्र जे, यथा ख्यातथी मोद निदान रे ॥ यथा ॥सु०॥सु॥ ज० ॥१२॥ यथारख्यात चरण जे आचरे, रे पामे मु क्तिनुं ठाए रे ।। झूगर गुरुना ध्यानथी, विवेक लहे बदु नाण रे ॥ विवे॥सु० ॥ सु० ॥ ज० ॥ १३ ॥
॥दोहा॥बार प्रकारे तप तपे, निर्जरा जेहन ना म॥यात्म प्रदेशह तेथकी, कर्म पुजल खिरे ताम:॥ ॥ ढाल आठमी॥ दुचारित्र युत्तो समितिले
गुत्तो, विश्वनो तारु जी ॥ए देशी॥ ॥पहेलुं अनशन ते अन्न पाणी लेवे नही। सोना गी॥ वली बग्ने अहम तप लेह जाणो सहीं ॥सो॥ पुरुषने बत्रीश कवल स्त्री अहावीश लहे ॥ सो० ॥ नपुंसकने चोवीश कवल जिनवर कहे ॥ सो॥१॥
व्य देत्र कालने जाव अनियह जे वरे॥सो॥जेम चंदनबाला वीरनो अनिग्रह पूरण करे ।। सो॥ वृत्ती संदेप पण तप ए त्रीजो कह्यो ॥ सो० ॥खट रस नो करे त्याग एह चोथो लह्यो ।सो॥शा लोच क रावे ने अलुवाणे पगे संचरे । सो॥ इत्यादिक नली नाता काय कष्ट तप आदरे ॥ सो० ॥ पांच इंदि चार कषाय योगने शोधवा ॥ सो॥ स्त्रीयादिक सं सर्ग ते सर्वथी रोधवा ॥सो॥३॥ षटविध बाह्य ए तप तुमें जाणवो ॥सो० ॥ गुरुमुखथी सही जाव संदेह मन नाणवो ॥सो०॥ हवे षविध अन्यंतर
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(४३५) नवि तुमें सांजलो ॥सो॥धरीयें चित्तमां ए मूकीने मन आमलोसो॥४॥पोतानी कीधा वातने लोक ते नवि लहे ॥सो० ॥ हेलामांहे ते बहु कर्मने खेपवे॥ ॥ सो॥ पाप लागां होय ते गुरु मुखथी बालवे ।। ॥सो॥ इणिविध प्रायश्चित्त तपने जालवे ॥सोए नाण दंसण चारित्रनो विनय घणो करे ॥ सो० ॥ अरिहंत सिह चैत्य विनय मनमां धरे ॥ सो॥वै यावन तप त्रीजो प्रश्न व्याकरणें कह्यो । सो० ॥ चौदे नेदें वैयावच गुरु मुखथी लह्यो । सो॥ ६ ॥ हवे चोथु तप सद्याय ध्यानने मन खरे ॥ सो० ॥ सिक्षांत वांचे पूछे सिद्धांतने नित्य गणे ॥ सो॥ चिंतवे धंमापदेश दीये नवि चित्तने ॥सो॥ जेहथी पामे सद्याय तप वित्तने । सो० ॥ ७ ॥ समता नावें मनने आणे ध्यानमें ॥ सो०॥ निरामय निराकार अवस्था झानमें ॥सो॥ शुक्ल ध्यानने ध्यावे रौ इने परिहरे ॥ सो० ॥ए पांचमुं तप नवियण चित्तें धरे ॥ सो० ॥ ७ ॥बहुं हवे काउसग्ग, तपने या दरे ॥सो० ॥ क्रोध अने मान माया, लोजने परिहरे ॥सो॥ए अन्यंतर पट नेद ने प्राणी मनधरो।सो॥ विवेक कहे नवियण, नवसायर तरो ॥ सो॥ए॥
॥ दोहा ॥ बंध तत्त्व दरें तजो,बंधन ते नित्यमेव ।। गतिनां कुःख पामे घणां, कहे इम जिनवर देव ॥१॥ ॥ ढाल नवमी॥ कपूर होवे अति कजलो रे॥ए देशी॥
॥ बंध तत्त्व हवे सांजलो रे, नवियण तुमें उमे
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( ४३६ )
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द ॥ चार प्रकारें बंध ते रे, जापे जिन वेद रे ॥ प्रा ली सांजलो तेह सुजाण ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ प्रकृतिबंध पहेलो कह्यो रे, सहावा कहेतां स्वभाव ॥ स्थिति ते कालने जाणजो रे, एहिज एहनो जाव रे ॥ प्राणी० ॥ सां० ॥ २ ॥ अनुनागबंध ते शुं क हियें रे, कटुक मिष्ट जेम रस | प्रदेश बंध चोथो ह वे रे. दल संचय जाणो तस रे ॥ प्रा० ॥ सां० ॥ ॥ ३ ॥ ज्ञानावरणी कर्मनुं रे चतुबंधन जेह ॥ दर्श न ते कहीयें बीजुं रे, पोलीया सरिखुं एह दे ॥ प्रा० ॥ सां० ॥ ४ ॥ वेदनी लित्त प्रसि सारि खं रे, मोहनी मदिरा समान ॥ हड सरिखं आयु जाणीयें रें, चितारा सरिखुं नाम रे ॥ प्रा० ॥ सां० ॥ ॥ ५ ॥ गोत्र ते कुंजार जेहवं रे, जंमारी सम अंतरा य ॥ आठ करम जाव जाणजो रे, जेहथी दुर्गति जाय रे ॥ प्रा० ॥ सां० ॥ ६ ॥ नाएा दंसण वेयणी अंतरायनुं रे, त्रीश कोडाकोडी मान ॥ मोहनी सितेर कोडा कोडीनुं रे, सागर एह निदान रे ॥ ॥ प्रा० ॥ सां० ॥ ७ ॥ वीश कोडाकोडी नाम गोत्रनुं रे, प्रायु यर तेंत्री ॥ काल उत्कृष्ट पूरो थयो रे, जाखे श्रीजगदीश रे ॥ प्रा० ॥ सां ॥ ८ ॥ जघन्य काल दवे कहूं रे, आठ कर्मनो जेह ॥ वेदनी कर्मनो जालीयें रे, बार मुहूर्त्त को एह रे ॥ प्रा० ॥ ॥ सां० ॥ ९ ॥ नामकर्म गोत्र कर्मनो रे, या मुहूर्त्त तिम होय ॥ पांच कर्मनो यागल कहे रे, जघन्य
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(४३७) काल स्थिति जोय रे ॥ प्रा० ॥सांग ॥ १० ॥ झानावरणी कर्मनी रे, दर्शनावरणी अंतराय ॥ मोह नी आयु कर्मनी रे, अंतर मुहूर्त कहेवाय रे ॥ प्राण ॥सांग ॥११॥आठ कर्मथी अलगा रहो रे, जिम लहो सुख निरवाण ॥ मूंगर गुरुना पदथकी रे, वि वेकने कोडि कल्याण रे ॥ प्रा० ॥ सांग ॥ १२ ॥
॥दोहा॥ बंध तत्त्व पूरण थयुं, मोदतत्त्व सुवि चार ॥ तेमाटे नवियण तुमें, आराधो हितकार ॥१॥ ॥ ढाल दशमी॥ नविका सिचक्र पद वंदो॥ए देशी॥
॥बता पदनुं प्रथम प्ररूपण, इव्य प्रमाण ए बीजुं ।। खेत्र प्रमाण ते त्रीखं जाणो, फरसना हारें रीजो रे ॥ प्राणी॥ मुक्ति पद आराधो॥ाराधी शिव साधो रे ॥ प्राणी ॥ मुक्ति ॥ ए अांकणी ॥१॥ काल चार ते पांचमुं थुपीयें, अंतर बहुं धीर । सातमुं नागने घाउमुं नाव, अल्प हार कहे वीर रे ॥प्रा० ॥ मुक्ति० ॥ ॥ चारगतिमाहे मनु ष्य गतियें, मोद होवे निरधार ॥ पांच इंशीमांहे पं चंडीथी, शिवपद लहे सुखकार रे॥ प्रा० ॥ मुक्ति ॥ ३ ॥ पृथिवी आदि पांचे थावर, एहने मोह न लहीयें॥त्रसकायथी मोदें जावे, एह आणा सह हीयें रे ॥प्रा० ॥ मुक्ति ॥ ४ ॥ जव्य अने अनव्य ए दोविध, जव्यने होय शिव गण ॥ सन्नी अस नी बे पदमांहे, सन्नीयो लहे निर्वाण रे ॥ प्राणी ॥ मुक्ति० ॥ ५ ॥ चारित्र पांच प्रकारे नांरव्यां, श्री
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( ४३८ )
जिन श्रागममांहि ॥ यथाख्यात चारित्रं ते मोह, बीजे चरणें मोह नांहि रे ॥ प्रा० ॥ मुक्ति० ॥ ६ ॥ पांच प्रकारें समकित जाणो, पंचांगीना जाए || वी जे समकीतें नवि लहीयें, कायिके मोह होय प रे ॥ प्रा० ॥ मुक्ति ॥ ७ ॥ आहार ने नवम हे न माडे, अणाहार दिये मोह ॥ दर्शन चार कह्यां नराजें, केवल मोहने मांगे रे ॥ प्रा० । ० ॥ मति श्रुत अवधि ज्ञानह, मनःपर्यव ते जं ॥ केवल ज्ञानथी केवल ज्योति, प्रथम द्वार एम होने रे ॥ प्रा० ॥ मु० ॥ ए ॥ सिद्धना जीव इव्य अनंता, अनंता जीवसिद्धि पाम्या | लोक संख्यातमे जा गें, सिद्ध ते सवि दुःख वाम्यां रे ॥ प्रा० ॥ मु० ॥ १० ॥ aar फरसना अधिकी जाणो, एक आकाश प्रदेशें ॥ एक सिद्ध प्राश्रित यादि बे, अनंतें अनादि रे ॥ प्रा० ॥ मु० ॥ ११ ॥ पडवाना अनावथी जा पो, अंतर सिने नहीं ॥ सर्व जीवने अनंतमे जागें, सिद्ध रह्या गुचि सही रे || प्रा० ॥ मुक्ति० ॥ १२ ॥ कायिक ने परिणामिक नावें, वे जावें होवे सिद्ध ॥ सर्व थकी थोडा नपुंसक, संख्यातगुणी स्त्री सिद्ध रे ॥ प्रा० ॥ मुक्ति ॥ १३ ॥ तेहथी संख्याता पुरु पज जाणो, समयें नपुंसक दश || स्त्री सीके एक स मयें वीश, पुरुष अष्टोत्तर ईश रे ॥ प्रा० ॥ मुक्ति० ॥ १४ ॥ अल्प बहुत्त्व ए नवमुं द्वार, कयुं गुरुमुखथी में
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(३ए) आज ॥ मूंगर गुरु पद कमलनो सेवक, विवेकना सी धां काज रे॥ प्रा० ॥ मुक्ति० ॥१५॥
॥ ढाल अगीयारमी ॥राग धन्याश्री॥ ॥ गिरथा रे गुण तुम तणा ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे पंदर नेद सिघना, वर्ण, ते सुखकार। रे ॥ जिण सिह ते अरिहंतजी, पुमरिक अजिण ब लिहारी रे ॥ वारी जावं हूं सिनी ॥ ए आंकणी ॥१॥ विहरमान ते तीर्थ सिह, अतीर्थ सिम म रुदेवी माय रे ॥ गृहस्थावासें कूर्मापुत्र ाि , अ न्यलिंगें वजकल शिवजाय रे ॥ वारी० ॥ २ ॥ स्व लिंगें साधु ते सिम कह्या, स्त्रीलिंगें चंदन बाला रे ॥ पुरुषलिंगे गौतम जाणवा, नपुंसकसिंगे गांगे या रे ॥ वा ॥३॥ प्रत्येकबुध ते नमि थया, पो तानी मेलें स्वयंबुम रे ॥ बुद्ध बोधित सिम ते उपदे शें, जरतादिक बुधबोधि रे ॥ वा० ॥॥ एक जी व ते एक सिह, घणा सिमें अनेक रे॥इम पंदर नेद सिना, वरणव्या सुविवेक रे ॥ वा० ॥ ५ ॥ जीवादिक नव तत्त्वने, प्राणी सदहे जे नावें रे ॥ ते नर समकित सुरतरु, पामीने शिव जावे रे ॥ वा ॥ ६ ॥ जीव संवर निर्जरा मोद, ए चारे होवे अ रूपी रे ॥ बंध आश्रव पुण्य पाप जे, एहने कहिये रूपी रे ॥ वा० ॥ ७ ॥ मिश्र जावें अजीव , बंध श्राश्रव पुण्य पाप रे ॥ ए चारेने बांगवा, जेहथील हे प्राणी संताप रे ॥ वा० ॥ ७ ॥ जीव अजीव वे
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(४४०) जाणवा, संवर निर्जरा मोद रे ॥ आदरवां ए त्रण तत्त्वने, प्राणी लहे शिव शर्म रे ॥ वा॥ ए॥ काल अनंत गये जिन मार्गे, सिमनीटला उनासें रे ॥ गो लाने अनंतमें नागें,सि६ थया सुविलासें रे ॥ वा० ॥ १० ॥ ए नव तत्त्व तणा गुण गाया, दिन दिन चडत सवाया रे ॥ श्रीविला मंगर गुरु सुपसाया, विवेकें नित सुख पाया रे । वा ॥ ११ ॥
॥ कलश ॥ जगजंतु तारण पुरव निवारण, या दि जिनवर में शुण्यो । संवत अढार वहोतेरा वर्षे, न विक हित हेतें नण्यो । दमण पूरव विजय दशमी,
आश्विन मास सु पद ए॥ सुरगुरुवार सुखवधा रे, कहे कवि जन दद ए॥ १ ॥ तपगब राजे वड दीवाजे, श्रीविजय दया सुरीमरू ॥ तस चरण सेवी मुक्ति विजयें, नविक जन मन सुखकरू ॥ तस शि ष्य सुंदर गुगपुरंदर, पंमित मुंगर मुणिंद ए॥ तस शिष्य सेवक जग जावें, विवेक लहे आणंद ए॥२॥ ॥ इति नवतत्त्व स्तवनं समानम् ॥
॥ अथ श्री जिनदासजी कृत घन ॥ ॥ अरे तुम जपो मंत्र नवकार, उनसे उतरोगे नवपार ।। होवे तेरी कायाको उधार, सफल कर ले अपनो अवतार ॥ध्यान तुम मनसें धरो नर नार, खा
कुःखकी यह हे संसार ॥ करो प्रनु न्याल अबे जि नदास, रखो प्रनु मुफ चरणोंके पास ।। १ ॥
॥ सरक जा कुमति नार काली, तेरी संगतसे गा
नम् ॥
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(४४१) लाली ॥ सोबत समताकी में टाली, पातमा तपमें नही घाली ॥ अनंत नव वीत गया खाली, वेदना निगोदकी काली ॥ अमरपद जिनदास मागे, सदा पद प्रनुजी कुं लागे ॥ ॥
॥सीस नित नमुं नानिनंदन, चरण पर चढे के सर चंदन ॥ करत सब इंसादिक बंदन, कटत हे क मौका फंदन ॥ साध्यो तें शिवपुरको साधन, सर्व जीवनकुं सुख कंदन ॥ जिनद गुण जिनदास गावे, सीस चरणोंसं नमावे ॥३॥
॥ बोलत हैया मेरा हस कर, चढावं चंदन चूवा घस कर ॥ पेठा में धर्मोमें धस कर, पाप दल दूर गया खस कर ॥ चेतन दुवा खडा कमर कस कर, हाया काँका लसकर ॥ श्रीजिनराज जिहाज खासा, श रण जिनदास लिया बासा ॥ ४ ॥
॥ समज मन मेरा मतवाला, तुळं नहिं को ह टकणवाला ॥ वस्या तेरे दईए कुगुरु काला, दिया तें सुरगतिकुं ताला ॥ फेरतो ममताकी माला, वालतो जगवंत पर नाला ॥ दयाकू दे दिया ताला, देखो जिनदासका चाला ॥ ५॥
॥ किया में गणधर प्रेमपती, मुजे वरदायक हे स रसती ॥ करी निर्मल निर्यथ मति, पूत पर खडे जा गता जती ॥ मुफे बलवंत न सोल सती,मिटी मेरी उर्गतिकी सब गति ॥ एसा घन जिनदास गावे, अच ल पद नक्तिसें पावे ॥ ६ ॥
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(४२) ॥ बिकट घट मुर्गतिका जारी, नीर जिहां नरतिकु मति नारी ॥ बरजी उन नैनोंकी मारी, मुख्या के कामी संसारी॥ इनोंकी हो रइ खूधारी, जित्या को
सत्य धरमधारी ॥ प्रनु तुम परमारथ पाया, शरण अब जिनदास आया । ७ ॥
॥चेत नर निगोदका बासी, कराई जगमें तें हा सी॥ कुमतिकी पडी गले फांसी, सुमति सुं रखी है उदासी ॥ कुमतिकी बसी सेज खासी, मान रह्यो पम ताकू मासी ॥ हियो खोल अरिहंतकों परखो, करो जिनदास आप सरिखो ॥ ५ ॥
॥ अफल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रोंकी न ही मानी॥ किया नही गुरु निर्यथ ग्यानी, कानसं लगी कुमति रानी॥ जगतमें उतर गया पानी, गति तेरी मुर्गतिकी ठानी। सेवक तोरा जिनदास बाजे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ ए॥
॥ सफल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रोंकी तें मानी ॥ किया निज गुरु निग्रंथ ग्यानी, कानमें ल गी सुमति रानी ॥ जगतमें अधिक चढयो पानी, ग ति तेरी सुरगतिकी गनी ॥ सेवक तेरा जिनदास बा जे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ १० ॥
॥अथ पहेली जीवशीखामनी लावणी ॥ ॥ चल चेतन अब उठ कर अपनें, जिनमंदिर ज यें ॥ किसीकी नूंमी नां कहीयें, किसीकी बूरी नां क हीयें ॥ चल ॥ ए अांकणी ॥ चरण जिनवरजीका
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(४४३)
नेट्या ॥ चर ॥ नव नव संचित पाप करम सब, तन मनका मेव्या ॥ सुकृत कीजें,महाराज ॥सुक०॥ जिनवरका गुण नज लीजें, समकित अमृत रस पी जे, लाज जिन नक्तिको लहीये रे ॥लान ॥ चला ॥१॥ करो जी मत मुखसे बडाई ॥ करो० ॥ तज तामस तन मनकी सुमता, रेनां ना ॥ रीतसे बोलो, मेरी जान ॥रीत ॥ आतम समतामें तोलो, मत मरम पारका खोलो, मौन कर तन मनसें रहि ये रे॥ मौन ॥ चल ॥२॥ जोबन दिन चार तणो संगी रे ॥ जोबन ॥ अंत समय चेतन उठ चाले, काया पडि नंगी॥प्रीत सब तूटी, मेरी जान प्रीत ॥ आउखाकी खरची खूटी, चेतनमें काया रू ती, सुख दुःख आप किया सहियें रे ॥ सुख० ॥ चल ॥ ३ ॥ जगतसें रहेनां नदासी रे ॥ जग० ॥ परख्या में जिनराज, हरो मेरी उर्गतिकी फांसी ॥ त जो सब धंधा, मेरी जान ॥ तजो० ॥ जिनवर मुख पूनम चंदा, जिनदास तुमारा बंदा,मेरे एक जिन दर्श न चहिये रे ॥ मेरे ॥ चल ॥ ४ ॥इति ।।
॥बीजी जीवशिखामणनी लावणी ॥ ॥ तुम जजो जिनेसर देव, मुगति पद पाय॥मुग०॥ अब अचल अखंमित ज्योत, सदा सुखदाइ॥ ए आं कणी ॥ में रुट्यो चोराशी मांहे, नूट्यो में नरम ॥ नूट्यो० ॥ महारे उदये अनंतां कुःख, बांध्यां जब करम ॥ में कदिएक दुळ रंक, फियो तजी शरम ॥
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( ४४४ )
फियो० ॥ अरु कदिएक राजा जयो, गरथकी गरम ॥ जब गरव याणकर वायो, पारका मरम ॥ पार० ॥ पण निर्मल जुगमें जैन, कीयो नही धरम ॥ अब मनख जनममें चेत, घडी गुन याइ ॥ घडी० ॥
० ॥ १ ॥ में सुर नर का सुख वार, अनंती पाया ॥ अनं० ॥ महारे शिव समताका सूरा, हाथ नही या या ॥ में कुगुरु ने कुदेव, चना कर ध्याया ॥ जा ॥ में उलज्यो अनादि अयान विषय जोग जाया ॥ में पड्यो लोनके फंद, जोडतो माया | जोड़ | प ए लग्यो यंत जब खाय, कालने खाया ॥ अव प रिहर सब परमाद, धर्म कर नाइ ॥ धर्म० ॥ श्र० ॥ २ ॥ अब दुर्लन अवसर नहीं, तुं सुंकृत कर रे ॥ तुं सुकृ० ॥ ब दान शियल तपनाव, हियामें धर रे ॥ तुं कर्मकी माला काट, पाप परिहर रे ॥ पाप० ॥ अब वार वार कहुं तोहे, जगतसें तर रे ॥ तुं निर्मल नयरों देख, नरकसुं कर रे ॥ नर० ॥ तुं शीख सुगुरुकी मान, अग्यानी नर रे । अब पर त्री या कर जान, वेन ने माइ ॥ बेन० ॥ अब० ॥ ३ ॥ अब जिनवर मुफ मन जायो, सदा गुण गानं ॥ सदा || अब इतनी किरपा करो, नरक नहिं जाऊं ॥ अब जव जव मांही देव, जिनेसर पाउं ॥ जि० ॥ में मन वच काया करी, चरण चित लानं ॥ ए दया ध रम हितकार, सदा में चानं ॥ सदा० ॥ ए चोराशी के मांहे, फेर नहिं खानं ॥ युं धरज करे जिनदास,
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(४४५) कीरत ए गाइ॥ कीरत ॥ अब० ॥४॥इति ॥
॥त्रीजी जीवशिखामणनी लावणी॥ ॥ कब दे जिनवर देव, जगत गुरु ग्यानी ॥ जग०॥कोआप समो नहीं न, जो अंतरध्यानी॥ ए बांकणी ॥ अब विषम वन संसार, जगतमें नट क्यो ॥ जग ॥ मुके अनमतने ले जाय, नरकमें प टक्यो । अब लहुँ दरिसन जिनवरका, दिन कब नगे ॥ ॥ मुफ मनकी वंबित पास, अधिक सब पूगे ॥अब जिनदरिसन बिन नयन, फरे मुजपानी॥ जरे ॥ कोइ० ॥ ॥ थारे कुगुरुको उपदेश, हि यामें नायो ॥हिया ॥ पण सरस नेद समकितको, जीव नंही पायो ॥ अब जैनधर्म निज माल, मूरख मत खोवे ।। मूरख ॥ ए सुमति सुरगको पंथ, अ मर गत होवे ॥ यब उलन जिन नक्तिकी, लही नि ज टानी ॥ लही० ॥ को० ॥ ॥ अब सुर नर गा वे गीत, अजब जड लागी ॥ अजब० ॥ जिहां ना चत नृत्य अनेक, अलसकू त्यागी॥अब मोहत म न नरपतिका, गगनधुनि गरजे ॥ गग० ॥ ए जिनवर महिमा अनंत, ध्यान दिल धरजे ॥ एसी अधिक ब बी जिनजीकी, मेरे मन मानी ॥मेरे॥कोई॥३॥ अब जिनचरणोसें रंग, अधिक दिल लागो ॥ अ०॥ में पेहेयो जिन गुण अजब, सुरंगी वाघो॥या सफ ल घडी समकितकी, हाथ अब आइ॥ हाथ ॥ में गगन गमनकी पारख, अमूलक पाइ॥ अब बोलत यु
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(४१६) जिनदास, सुनो जिनबानी ॥ सुनो।कोइ० ॥४॥
॥चोथीजीव शिखामणनी लावएगी॥ । एक जिनवरका निज नाम, हियामें जनां ॥ ॥ दिया। अब लग हागन जिनवरसें, आप खुश रहेन। सदा खुश रहेन । ए अांकणी॥अब निरखं जिन दीदार, दरस कब प नं ॥ दर ॥ जगमें जिन वर निज नाम, निरंजन ध्यावं ॥अब रहे नयन लो जाय, हियो नित्य फरके ॥ दियो ! मोहे जिनदर्श नकी घास, पाप सब लरके ॥ अब सुरगति निरग्वा रूप, नजर नर नेनां ॥ नजर ॥ अब० ॥१॥ अत्र मिट्यो नरण नव नवको, अास मुफ पूरो॥पास ॥ में जपुं जिणंदको नाम, मेलुं नही दूरी ॥ ए घनघा ति घाले घेर, करम सब चूरो ॥ कर ॥ में उर्गति नमतां आयो, आप हजूरो ॥ अब गुन नजरां मुज निरख, मुगति पद देनां ॥ मुग॥ अब० ॥ ॥ अब हे हीराकी खान, ग्यान निज करणी ॥ ग्यान॥ ए मुगति पंथ दातार, सुमतिकी घरणी॥अब शुकल ध्यानकी पेडी, चढा नीसरणी ॥ चढा०॥ एसा जगमें संत सुजान, मुगति पद वरणी ॥ अब आपो मया कर कर कें, अमर सुख चेनां ॥अमर॥अब॥३॥ अब बैठ करूं में मोज, आनंदके घरमें ॥ या॥ में परख्या श्रीजिनराज, जगत कुण जरमें ॥ में कुःख जोगता हे अनंत, करे कुण लेखो ॥ करे॥ में अरज करूं तन मनसें, नजर जर देखो ॥ अब बोलत
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(४४७) युं जिनदास, सरव रस बेनां ॥ सरव०॥ अब० ॥ ४ ॥
॥पांचमी जीव उपदेशनी लावणी॥ ॥ खबर नहीं था जुगमें पलकी रे ॥ खबर ॥ सुकत करना होय तो कर ले, कोन जाने कलकी । ए आंकणी॥ या दोस्ती हे जगवासकी, काया मंगल की ॥काया ॥ सास नसास समा ले साहेब, आयु घटे पलकी ॥ खबर ॥ १॥ तारा मंगल रवी चं मा, सब हे चलनेकी ।। सब० ॥ दिवस चारका च मत्कार ज्युं, वीजलिया जलकी ॥ खबर ॥ २ ॥ कूड कपट कर माया जोडी, करि बातां उसकी ॥ करि०॥ पापकी पोटली बांधी सिर पर, कैसे होय ह लकी ॥ खबर ॥३॥ या जुग हे सुपनेकी माया, जैसी बुंदा जलकी ॥ जैसी०॥ विणसंतां तो वार न लागे, उनीयां जाये खलकी ॥ खबर० ॥ ४ ॥ मात तात सुत बंधव बाई, सब जुग मतलबकी ॥ सब०॥ काया माया नार हवेली, ए तेरी कबकी ॥खबर॥५॥ मन मावत तन चंचल हस्ती, मस्ती हे बलकी ॥ ॥ मस्ती० ॥ सतगुरु अंकुश धरो सीसपर, चल मारग सतकी ॥ खबर ॥ ६॥ जब लग हंसा रहे देहमें, खुशियां मंगलकी ॥ खुशि० ॥ हंसा बोड चव्या जब देही, मटीयां जंगलकी ॥ खबर ॥ ७ ॥ दया धरम साहेबको समरन, ए बातां सतकी॥ए बातां ॥राग शेष उपजे नही जिनकुं, बिनति अखमलकी॥ख॥॥
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(४४७) ॥बही सुमति कुमतिनी लावणी ॥ हारे तुं कुमति कलेसण नार, लगी क्युं केडे ॥ लगी० ॥ चल सरक खड़ी रहे दूर, तुजे कुण डे ॥ ए आंकणी ॥ हारे तुं सुमतिको नरमायो, मुके क्युं बोडी ॥ मुके० ॥ मेरी सदा शाश्वती प्रीत, बी नकमें तोडी ॥ तुज बिन सुन मेरी सेज, कढं कर जोडी ॥ कहुं० ॥ न चलो हमारे संग, सुखें रहो पहोडी ॥ युं जुर जुर कुमति आंसुं, अांखसें रेडे ॥ यांख० ॥ चल ॥१॥ हारे तेरी नरक निगोदकी सहेज, सेंतिमें रूग्यो ॥ सेंति॥पकड्यो साचो जिन राज, संग तेरो ठ्यो ॥ तेरी मूरख माने बात, हैया को फूट्यो ।हैया॥ में सहज दुवो टुं दूर,तार तेरो त्रूट्यो।तुं कर दूरसें बात, आव मत नेडे॥ आ० ॥ च॥शातेरी अनंत कालकी प्रीत,पलक नही पाली॥ पलक ॥ सुमतिके लागो संग, मुके क्यों टाली ॥ तुं सुमतिको सिरदार, सुणावे गाली॥सुमातेरी हम दोनुं हे नार, गोरी र काली ॥ तूं हमकुं तेले दूर, सुमतिकुं तेडे ॥ सुम० ॥ चल ॥ ३ ॥ अब कुमतिको लल चायो, रति नहीं मगियो॥ रति ॥ सुन कर सूत्रकी शीख, लान होय लगीयो ॥ चेतन कुमतिके सेहज, दूरघु नगीयो ॥ दूर ॥ जिनराज बचनको ग्यान, हैयेमें जगीयो ॥ जिनदास कुमत तुं बात, खोटीम त खेडे ॥ खोटी० ॥ चल सरक० ॥ ४ ॥ इति ॥
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(४४) ॥ आत्मोपदेश लावणी सातमी॥ ॥ तुम तजो जगतका ख्याल, इसक्का गानां ॥ इस० ॥ तेरी अल्प उमर खुट जाय, नरक उठ जा नां ॥ तें दिनो चार जुग बीच, लिया हे वासा ॥ लिया० ॥ तेरे सिरपर बेठा काल, करे हे हांसा ॥ में बोलुं साची बात, जूठ नही मासा ॥ जूत ॥ तुं सूता हे कुण निंद, किसी कर बासा ॥ अब सेव दे व जिनराज, खलकमें खासा ॥ खल० ॥ तेरा जोब न पतंगका रंग, जून सब आसा ॥ अब हिये धरो मेरी सीख, समज रे दिवाना॥सम ॥ तुम॥१॥ अब बुरी जली सब बात, मौन कर रीजें ॥ मौन॥ ए मुख मीठा संसार, नेद नहिं दीजें ॥ कर वीतरा ग विसवास, हिये धर लीजें॥हिये ॥ पण नीच ना रिका संग, मांहे मत नीजें ॥अब सात बिसनको सं ग, प्रीति मत कीजें ॥ प्रीति॥ तोहे उगति दे पहों चाय, तेरो तन बीजे ॥ तुं सुख दुःखका सिरदार, रं क नही राणा ॥ रंक ॥ तुम ॥ २ ॥ तुं बिसर ग या जुग बीच, नाम जिनवरका ॥ नाम ॥ पच रह्या कुटुंबके काज, किया फंद घरका ॥ तें दया धर्म बि न खोया, जनम सब नरका ॥ जनम ॥ तें पच्ने बांध्या पाप, कसाई सरवा ॥ अब लीया नही तें ला ज, बखत पर करका ॥ बखत ॥ तेरी वीति बात सब जाय, जनम ज्युं खरका ॥ अब सुणो सीख सू तरकी, सुलट रे शाणा ॥ सुलम् ॥ तुम० ॥ ३ ॥
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( ४५० )
तेरी चरण सहेज पर पोढ्या, आनंद दिल आया ॥ ॥ श्रानं ॥ मेरी नगी नूख सब प्यास, सुधारस पाया ॥ मेरे शिरपर तुम शिरदार, जिनेसर राया ॥ जिने० ॥ में चाहूं चरकी सेव, सफल कर काया । अब यो दोलत दरसनकी, मेरे एहि माया ॥ मेरे० ॥ युं अर ज करे जिनदास, अलप गुन गाया || अब बुरा कु गुरु उपदेश, धरो मत काना || धरो० ॥ तुम० ॥ ४ ॥ ॥ जीवोपदेश लावणी ग्रामी ॥
सुगुरु
॥ सुगुरुकी शीख हिये धरनां रे ॥ मरापुरको पंथ सदा, श्रीजैनधर्म करनां ॥ सु० ॥ प रम परमारथ तें टाल्यो रे ॥ पर० ॥ सार जगतमें जैनधर्म, जुगती में नही पाल्यो || प्रभुको नाम नही लीनो रे ॥ प्रभु० ॥ महा हलाहल विषय विकट, मिथ्यामतसें जीनो ॥ चेतन युं बहुविध दुःख पावे रे ॥ चेत० ॥ लपट्यो लालचमांहे पांच, इंडीके सुख चावे ॥ जीव ब पाप परीहरनां रे ॥ जी० ॥ अमरा पुर० ॥ १ ॥ दया चेतनकुं सुखकारी रे ॥ दया० ॥ श्री जिनराज प्ररूपी जैसी, केसरकी क्यारी ॥ जगतमें तीर थ हे चारी रे ॥ जग ० ॥ साधु साधवी श्रावक श्राविका, दू व्रतधारी ॥ इनूंकूं कहियें ब्रह्मचारी रे ॥ इनूंं० ॥ समता संयम सार करीने, कर्म हयां जारी ॥ इनूंने मेट्या जनम मरणां रे ॥ इनूं० ॥ श्रमरा ॥ २ ॥ पं च इंडियसें लपटायो रे | पंच॥ दुःख अनंतां सह्यां रे बहुलां, प्राणी पडतायो । बहु दुर्गतिमें नमिया
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(४५१)
यो रे ॥ बहु० ॥ गुन मंत्र नवकार सार, उर्लन अब में पायो । मेरो मन जिनवरसुंजायो रे ॥ मेरो० ॥ कुगुरुको सब संग अशुन, मिथ्या मत बटकायो ॥ नविध जवजलसें तरनां रे ॥ इन ॥ अ ॥३॥र हो जिनवाणीमें राता रे ॥ रहो ॥ अनंत सुखकी खाण, सदा शिव मंगलकी दाता ॥ सदा जिनवर न क्ति करजो रे ॥ सदा ॥ चिन धारी हैयामें नवि तुम, पाप परां हरजो॥ अल्प जिनवरका गुण गाया रे ॥ अल्प०॥ कर जोडि जिनदास कहे, जिन नक्तिसें न्हाया ॥सदा में चाहुँ जिन चरनां रे। सदा ॥अ॥४॥
॥ अथ चोवीश दमकनुं स्तवन प्रारंनः ॥ ॥दोहा॥वंद जिन चोवीशने, तसुभाषित श्रुतनेद।। दंमक पद कही तस थुगुं, अहो नवि सुणो नमेद ॥१॥
॥ ढाल पहेली ॥ देशी जटीयाणीनी ॥ ॥ साते नरकें एक, नवनपति दस दंझक हो ॥ पुढ वी आदि पंच जाणीया, विकलेंडीना त्रण ॥ गर्नज तिरियंचने नर हो, व्यंतर जोईस वेमाणीया ॥ १ ॥
॥ ढाल बीजी ॥ ताहारा मेहेला उपर मेह,
करूखें वीजली॥हो लाल फ० ॥ ए देशी॥ ॥जीव दंमाए ज्यांहि, दमक नाम जेहनो॥ होताल ॥ दंगक० ॥ संदे लवलेश, संग्रह करूं तेहनो ॥ हो लाल ॥ संग्रह ॥ नरकादिक चोवीश, दमक पद जे लहे ॥ होलाल ॥ दंगक० ॥ दंमाये नही तेह, वाचक उदय कहे हो लाल ॥ वाच ॥१॥
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(५२) ॥ ढाल त्रीजी॥ गौतम समुश् कुमार रे ॥ ए देशी॥
॥शरीरने शरीरनुं मान रे,संघयण ने संझा,संस्थान कपाय लेश्या वली ए॥ इंश्यि ने समुद्घात रे, दृष्टि में दरिसन्न, ज्ञान अने योगावली ए॥१॥ उपयोग ने उपपात रे, चवन स्थिति पर्यापति, श्राहार ने संज्ञा त्रिक ए॥ गति आगति वेद अल्प रे, हार चोवीश ए, दमकप्रत्ये जणो नवि ए॥२॥ ॥हार पहेलुंढाल चोथीसिक्ष्चक्र पदविंदो एदेशी।
॥गर्नज तिर्यच वानकाय ने, शरीर कह्यां ने चा र ॥ोदारिक वैक्रिय तैजस कार्मण, नर ने पांच नि रधार रे, श्रोता क्षार एणी परें जाणो ॥ बीजा सर्वेने त्रण जाणो,यागम मनमां बायो रे ॥श्रोताहा॥१॥ ॥हार बोर्जु॥ ढाल पांचम ॥सोरठी चालमा वनस्प ति विण थावर चार, तनु जघनोत्कृष्ट विचार ॥ अंगु लनो असंख्यातमो नाग, वदे मान एहवं वीतराग ॥ ॥१॥ बीजे पण दंमक वीशे, जघन्य एमज कह्यो जगदीशे ॥ उत्कष्टुं कहुँ हवे आगें, धनुष पांचशे ना रकी नागें ॥३॥ सुरने सात हाथ वखाएं, जोयण सहस गर्नज तिरिय जाणुं ।। वनस्पतिने जाजेलं,त्र ए गान नर तेंहि नजेरूं ॥ ३ ॥ बेंडी चौरिदि बार एक, जोयण जाणो सुविवेक ॥ देह उंचपणे ए न णियो, वैक्रिय सूत्रे श्म थुणियो ॥४॥ अंगुलनो असं ख्यातमो नाग, प्रारंन समय लहो लाग ॥ सुर नरने साधिक लाख, जोयण नवशे तिरिय सुनाख ॥ ५॥
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( ४५३ )
मूलथी नारकीने बमणुं, अंतर मुहूर्त्त रहे एम पनं ॥ तिरि नरने मुहूर्त्त चार, देवने एक पक्ष उदार ॥ ६ ॥ ॥ द्वार त्रीजुं ॥ ढाल बही ॥ रह्यो रे यावास डवार ॥ ए देश ॥ ॥
॥ वज्रकपननाराच, कृषननाराच रे, नाराच नाराच बेरे ॥ किलिका बेवहुं ए सूत्रे, जिनवर देवेंरे, संघयण व जाख्यां वे रे ॥ १ ॥ थावर नारकी देव, संघयणा रे, बेवडा विकलेंड़िया रे ॥ मनुष्य ने तिर्यच, ब संघया रे, समय विषे नि वेदीया रे ॥ २ ॥
॥ द्वार चोथुं ॥ ढाल सातमी ॥ वृषभानु नवनें गई दूती ॥ ए देशी ॥ चार दश संज्ञा हुए सहूनी, आहार नय मैथुन पंरिग्रहनी ॥ क्रोध मान माया लोन लोक, जय दशमी संज्ञा थोक ॥ १ ॥
॥ द्वार पांचमुं ॥ ढाल श्रामी ॥ सेला मारूनी देशी ॥
॥ समचतुरस्र हो न्यग्रोध निसादिक, वामन कू ब्ज हो हुंमक ए ब कह्यां ॥ सर्वे सुरने हो पहेलुं होय संस्थान, नर तिर्यचमां हो सघलां ए जह्यां ॥ १ ॥ विकलेंड़ीनें हो नरकमां कुंमक होय, नानाविध धजहो सूई बुब्बु वसई ॥ वान तेन हो अपचनक्के ए चार, पुढवी मसुर हो चंदाकारें कही ॥ २ ॥
॥ द्वार बहुं ॥ ढाल नवमी ॥ सिरोईनो सेलो हो के ॥ ए देशी ॥
॥ क्रोध मान माया हो के, वली लोन सूत्रे लह्या ॥ दमक चोवीरों हो के, कषाय ए चार कह्या ॥ १ ॥
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(४५४)
॥हार सातमुंढाल दशमी।देखीकामिनी दोय॥एदेशी
॥ कृष्ण नील कापोत तेजो, पद्म शुकल कही। के तेजो॥ ए बलेश्या नर तिर्यच, गर्नजमां लही ॥ के गर्न० ॥१॥ नारक रेक वान, के विगल वेमागी या ॥ के वि० ॥त्रण गलेश्यावंत, के नीच नच जाणीया ॥ के नीच० ॥ २॥ ज्योतिषी पांचे माहे, तेजोलेश्या घणी॥ के तेजो० ॥ बाकी चनद दंमकें चार, लेश्या सूत्रे जणी ॥ के जेश्या० ॥३॥ ॥धार आठमुं॥ ढाल अगीयारमी। बिमलीनी देव: ॥
॥ आठमुं॥ इंडिया हारने, सुगम तेहनो विचार हो ॥ जो नवि नावें हो ॥ जेहने इंडिय.होय जे ती, तेमजगणी लेजो तेती हो ॥ नो नवि० ॥ १ ॥ ॥धार नवमुं॥ ढाल वारमी ॥ फतमलनी देशी ॥
॥ वेदनाकषायने मरण, वैक्रिय तेजस वली॥ थाहारकने केवलीसात, ए हो मननी रली ॥ १ ॥ संझी नरने होय सात, तिरि सदु सुर पदें । आहार कने केवल वर्जित, पांच आगम वदे ॥ २ ॥ नारक वाउमा पहेलां चार, बाकी सात दंम ॥ वेदनादि पहेलांत्रण होय, कह्यां श्रुतमां जिके ॥३॥
॥हार दशमुं॥ ढाल तेरमी ॥ प्रनु ताहारो प्रनु ताहारो महेर करी मुने जी ॥ ए देशी ॥ ॥ विकलेंडी विकलेंडीमांहे दृष्टि बे वदी जी ॥ समकितने समकितने मिथ्या दृष्टि सोय हो ॥ पांच
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( ४५५ )
यावर पांच यावर मिठदिठि कह्या जी, बीजा सर्वे बीजा सर्वे दृष्टि होय हो । विकलें० ॥ १ ॥ ॥ द्वार बगीयारमुं ॥ ढाल चौदमी ॥ सुरती महीनानी ॥
॥ पंच यावर बि तिडीने, खचक्कु दर्शन एक ॥ चक्कु चक्कु चरिंई ने बे जाणो सुविवेक ॥ १ ॥ चक्षु चतु अवधि केवल दर्शन चार ॥ नरमां बीजे सर्व दंमकें, केवल विण त्रण धार ॥ २ ॥
॥ द्वार बारमुं ॥ ढाल पंदरमी ॥ कोई सुध लावे दिनानाथनी || ए देशी ॥
॥ त्रण त्रण सुर तिरि निरयमां, ज्ञान ने अ ज्ञान ॥ थावरमां अज्ञान वे, विकलें दो दो मान ॥ १ ॥ ज्ञान ज्ञान ल्यो उलखी, त्रण पंच प्रधान ॥ अनु क्रमें मनुजना कह्या, समजो सावधान ॥ ० ॥ २ ॥ ॥ द्वार तेरमुं ॥ ढाल शोलंमी ॥ शारद बुधदायी ॥ ए देश ॥ ॥
॥ सत्य सत्य ने मिश्र, असत्य मृषा संयोग ॥ मन वचनने योगें, आठ थया ए योग ॥ वैकियने आहारक, दारिक मिश्र सोय ॥ तैजस कार्यल साते, काय तया योग होय || नारक सुर सहुने, नुक्रमें योग इग्यार ॥ तेर तिर्यचने जाणो, नरने पंदर निरधार || विकलेंड़ीने चार वली, वायुकायने पंच ॥ त्रण थावरमां जोजो, सिद्धांतें ए संच ॥ १ ॥ ॥ द्वार चौदमुं ॥ ढाल सत्तरमी ॥ सोहमपतिज ॥ ए देश | ॥॥
॥ त्रण ज्ञानजी, ज्ञान पांचनी श्रावली ॥ चार दर्शनजी, उपयोग बार सदुमली ॥ मानवमांजी, बा
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४५६ )
रे लहो मननी रली || देव तिरियने जी, नव नार कने कह्या वली ॥ थलो ॥ वली पांच कह्या विकलेंड़ी मांहे, चरिं मां बो कह्या ॥ पांच थावरमां त्रण प्रकाश्यां, सूत्र मार्गे सह्यां ॥ १ ॥
॥ द्वार पंदरमुं उपपातनुं ॥ तथा शोलमुं च्यवननुं ॥ ढाल अदारमी || एक अनोपम शीखामण खरी ॥ ए देशी ॥
॥ गर्नज तिरिय, विगल सुर नारकी ॥ असंख्य सं ख्याता, व्यो तमें पारखी ॥ नर संख्याता, सन्नी अ संख्याता ॥ तेमज थावर, हवे वणसई ख्याता ॥ ढाल ॥ वनस्पतिमां विख्यात जाणो. अनंता उपजे चवे ॥ उपजे जेता चवे तेता, बीजो नेद नहीं नवे ॥ १ ॥ ॥ द्वार सत्तरमुं ॥ ढाल जंगली शमी ॥ काढबानीं॥ देश ॥
नर
॥ पुढवी अपने वायु, वनस्पतिमांहे हो, उत्कृष्टुं यायु नहो ॥ वरस बावीशने सात, त्रण दश सहस हो, साधुं सदहो ॥ १ ॥ त्रण दिवस ते काय, तिरि केरुं हो, त्रण पव्य सारिखो || सुर निरय साग र तेत्री, व्यंतर आयु हो, पव्य एक पारिखो ॥ २ ॥ साधिक पव्य चंद सुर, असुर निकायें हो, सागर जा जेरहूं || पव्य दोये देशूल, निश्वय जाणो हो, निका य नव केरडूं ॥ ३ ॥ बे इंडियनुं वरस बार, तेंशिय नुं दिन हो जंगल पचाश बे ॥ चनरिंडियनुं ब मास, अनुक्रमें आयु हो उत्कृष्ट एह बे ॥ ४ ॥ जघन्य श्रा यु एक मुहूर्त, पुढवी यादें हो दमक दशमां कह्यो । दस सहस वरस प्रमाण, नवनपति नरकें हो, व्यंत
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(४५७) र गति सह्यो ॥ ५ ॥ एक पत्योपम मान, वैमानिक सुरनु हो, ज्योतीषीनो जाणजो वली ॥पल्योपमनो आतमो नाग, आगममांहे हो कहे एम केवली ॥६॥ ॥धार अढारमुं॥ ढाल वीशमी ॥ वूतां दल
वादल ॥ ए देशी ।। ॥ श्राहारने शरीर इंडिय हो, सासोसास नासा मण ॥ सुर नर तिरि निरयने हो, ए ब पर्याप्ति गण ॥१॥ पांचे थावरमांहे हो, पर्याप्ति चारे कही ॥ वली पंच पर्याप्ति हो, विकलेंडीयमांहे लही ॥ ५ ॥ ॥हार उगणीशमुं ॥ ढाल एकवीशमी ॥ राम
चंदके बाग ॥ ए देशी॥ ॥ षट दिशिनो ले थाहार, सघला जंतु सदा ॥ लोकने खूणे जीव, पंच चार त्रण दिशि तां ॥१॥ ॥हार वीशमुं ॥ ढाल बावीशमी ॥ राम सीताने
धीज करावे रे ॥ ए देशी॥ ॥ हवे संज्ञा त्रण कहेशे रे, दीर्घकालिकी पहेली दीसे ॥ हितोपदेशिकी बीजी रे, दृष्टिवादोपदेशिकी त्रीजी ॥ १ ॥ देवताना दमक तेर रे, तिर्यच नारक नहिं फेर ॥ संझा ए पहेली दाखी रे, दीर्घकालिकी सूत्र ने साखी ॥२॥ विकलेंश्यिमां हितोपदेशा रे, सं झा रहित थावर अशेषा ॥ नरने पहेली बे नाखी रे, कोईकने त्रीजी पण दाखी ॥ ३ ॥
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(४५) ॥धार एकवीशमुं तथा बावीशमुंगति अगतिनुं ढाल त्रेवीशमी ॥धण समरथ पीयु नानडो॥ ए देशी॥
॥ पर्याप्ता पंचेंश्यि जेह, तिर्यचने मानव मरी तेह ॥ चार निकायमांहे नपजे. सुरनी योनि जाणो ससनेह ॥ १ ॥ गति जागति लहो जीवनी, असं ख्याता आउरवावंत ॥ चेंघिय पर्याप्त, तिरियंचने नर ए बे तंत ॥ गति ॥ २ ॥तिम पर्याप्ता वली, न जल ने जे तर प्रत्येक । अमर मरीने अवतरे, स मजो ए पांच पर्दै सुविवेक ॥ गति० ॥३॥ संस्था
आयु पर्याप्ता, गर्नज नरने तिर्यंच जेह ॥ साते नरके उपजे, तिहांथी आवे नर तिरियमा तेह। गति॥४॥ नू जल वसई योनिमां, नारकीने वर्जी सर्व जीव ॥
आवी यावी उपजे, निज निज कर्म प्रमाणे सदीव ॥ गति ॥ ५ ॥ दृथिव्यादिक दश दमकें, जू जल वण सश्ना जीव जाय ॥ वली ते दश दंगक विना, तेत वान पण नवि थाय ॥ गति ॥ ६ ॥ तेक वान तिम वली, एथिव्यादिक नव दंम जति ॥ दश पदना विग सेंश्यिमांहे, विगलेंडी दश पद उपजंति ॥ गति॥७॥ गर्नज तिरियंच नपजे, मरी चोवीशे दंझक मांय ॥ चोवीश पदना जीव ते, गर्नज मरी तिरियंच थाय ॥ गति ॥ ७ ॥ चोवीश पदने शिव पदें, मानव मरी सघने जाय ॥ तेकने वाक विना, बावीश पदना मा नव थाय ॥ गति ॥ ७ ॥
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(एए)
॥हार त्रेवीशमुं॥ ढाल चोवीशमी॥ थांपर वारी॥
॥ महारा साहेबा ॥ ए देशी ॥ ॥ गर्नज नर तिरि योनिमां, वेदत्रण्य वखाण्या॥ स्त्री पुरुष वेद के देवमां, नव न' तक जाण्या ॥१॥ ॥धार चोवीशमुं अल्प बदुत्वनं । ढाल पञ्चीशमी॥
॥ शुं करीयें जो मूलज कूडं ॥ ए देशी ॥ ॥ सदु जीवथी थोडा संसारी, पर्याता मानव नि र्धारी ॥ बादर अनि वैमानिक देवा, नुवनपति व्यंत र नारकलेवा ॥१॥ज्योतिषी चौरिंडी पंचेंडी तिरिया, वेंडी तें नू जल वान कहीया ॥ चढते पदें एक एक थ कां, असंख्य गुणा लहो अधिकां अधिकां ॥ २ ॥ स दुथी वधता वनस्पति जीव, अनंतगुणा जाणो स दीव ॥ जिनजीयें कह्या नाव में जोया, तुम खिज मत विना नव खोयां ॥३॥ ॥ ढाल बबीशमी। सुण करुणानिधि हंसता॥ए देशी॥
एणी परें चोवीश दंगकें,नवमांहे प्राणी जमियो रे ॥ अनंत चोवीशी वही गई, पण जिन मारग नवि गमियो रे ॥१॥धन धन दिन महारे आजुनो। मुने त्रिनुवन नायक तूठो रे॥श्री जिनशासन पामी यो, आज मेह अमीरस व्रतो रे ॥धन ॥३॥ सत्तर एक्याशियें चैत्रमा, वारु वदि 6 मंगल वार रे ॥ वीतराग एम वीनव्या, सूरय पुर नगर मोकार रे ॥ धन ॥ ३ ॥ श्रीवासुपूज्य पसानले, हीररत्न सूरि सान्निध्ये रे ॥ वाचक उदय रतन वदे, कृमि
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(४६०) वृद्धि वाधि सर्व सिरे ॥ धन ॥ ४ ॥ राग धन्या श्री ॥ षन अजित संनव अभिनंदन, सुमति पद्म सुपास जी ॥ चंदप्रन सुविधि शीतल श्रेयांस, वासुपू ज्य विमल जिन खास जी ॥ अनंत धर्म शांति कुंथु अर, मनि मुनिसुव्रत नमी नेम जी ॥ पार्श्व वीर चोवीशे प्रणमुं, परम उदय लही प्रेम जी॥ १ ॥ ॥ इति चतुर्विंशति दमक नर्नित श्रीचतुर्विशति व। तराग स्तवन ॥ ढाल सत्यावंश ॥ गाथा चोशन ले ॥ ॥ अथ श्री आनंदघनरूत चोवीश जिनस्तुति ॥
॥ तत्र प्रथम श्री पनजिनस्तवनं ॥ ॥राग मारू॥करम परीक्षाकरण कुमर चल्यो रे॥ए देशी
॥ पन जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे,र न चाहुं रे कंत ॥रीज्यो साहेब संग न परिहरूं रे, नांगें सादि अ नंत ॥ वनम् ॥ १॥ प्रीति सगाई रे जगमां सदु करे रे, प्रीत सगाई न कोय॥प्रीत सगाई रे निरुपाधिक क ही रे, सोपाधिक धन खोय ॥षन ॥२॥को कंत कारण काष्ठ नदण करे रे, मलगुं कंतने धाय ॥ ए मेलो नवि कहियें संनवे रे, मेलो ठाम न गाय ॥षन ॥३॥ को पति रंजन अति घणुं तप करे रे, पति रंजन तन ताप ॥ ए पति रंजन में नवि चित्त धरघु रे, रंज न धातु मिलाप ॥ षन ॥ ४ ॥ कोइ कहे लीला रे अलख जलख तणी रे, लख पूरे मन ग्रास ॥ दोष रहितने लीला नवि घटे रे, लीला दोष विला स ॥ ऋषन ॥ ५ ॥ चित्त प्रसन्ने रे पूजन फल कह्यु
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(४६१) रे, पूज अवंमित एह ॥ कपट रहित थई आतम अरपणा रे, आनंदघन पद रेह ॥ षन ॥ ६ ॥
॥ अथ श्री अजितजिन स्तवनं ॥ ॥राग आशावरी॥ मारुं मन मोडुं रे श्रीविम ॥
लाचलें रे ॥ ए देशी ॥ ॥ पंथडो निहालूं रे बीजा जिन तणो रे, अजित अजित गुण धाम ॥जे तें जीत्या रे तेणें दुं जीतियो रे, पु रुष किश्युंमुज नामापंथ॥१॥ चरम नयण करी मा रग जोवतो रे, नूलो सयल संसार ॥ जेणें नयणें करी मारग जोश्थे रे,नयण ते दिव्य विचारापंथ॥॥पुरुष परंपर अनुनव जोवतां रे, अंधो अंध पुलाय ॥ वस्तु विचारे रे, जो आगमें करी रे, तो चरण धरण नहीं गय॥पंथ ॥३॥ तर्क विचारे रे वाद परंपरा रे, पार न पहोंचे कोय ॥ अनिमतें वस्तु वस्तुगतें कहे रे, ते विरला जग जोय ॥पंथ ॥ ३॥ वस्तु विचारें रे दिव्य नयणतणो रे, विरह पड्यो निरधार ॥ तरत म जोगें रे तरतम वासना रे, वासित बोध आधार ॥ ॥ पंथ ॥ ५॥ काल लब्धि सही पंथ निहालगुं रे, ए आशा अविलंब ॥ ए जन जोवे रे जिनजी जा एजो रे, आनंदघन मति अंब ॥ पंथ ॥६॥ इति ॥
॥अथश्रीसंनवजिनस्तवन प्रारंजः ॥ ॥ राग रामग्री ॥ रातडी रमीने किहांथी॥
॥आविया रे ॥ ए देशी ॥ ॥ संनवदेव ते धुर सेवो सवे रे, लहि प्रनु सेवन
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(४६) नेद ॥ सेवन कारण पहेली नूमिका रे, अनय अहे ष अखेद ॥ संनव ॥ ॥जय चंचलता हो जे प रिणामनी रे, ष अरोचक नाव ॥ खेद प्रवृत्ति हो करतां थाकीयें रे, दोष अबोध लखाव ॥ संजय० ॥ ॥ २ ॥ चरमावर्त हो चरम करण तथा रे, नव परि गति परिपाक ॥ दोष ट वलि दृष्टि खुने नली रे, प्रापति प्रवचन वाक ॥ संजा० ॥३॥परिचय पाति क घातिक साधुगुं रे, अकुशल अपचय चेत ॥ ग्रंथ अध्यातम श्रवण मनन करी रे, परिशीलन नय हे त ॥ संजव० ॥४॥ कारण जोगें हो कारज नीपजे रे, एमां कोई न वाद ॥ पण कारण विण कारज सा धीयें रे, ए निज मत उनमाद ॥ संनव ॥५॥ मु ग्ध सुगम करी सेवन आदरे रे, सेवन अगम अनू प॥ देजो कदाचित् सेवक याचना रे, आनंदघन रस रूप ॥संनव० ॥ ६ ॥ इति ।
॥ अथ श्रीअनिनंदन जिनस्तवनं लिख्यते ।। ॥राग धन्यश्री सिंधु ॥ आज निहेजो रे
दीसे नाहलो ॥ ए देशी॥ ॥अभिनंदन जिन दरिसण तरसीयें, दरिसण उर्तन देव ॥ मत मत ने रे जो जई पूबीये, सदु थापे अह मेव ॥ अनि ॥ १ ॥ सामान्य करी दरिसण दोहे खू, निर्णय सकल विशेष ॥ मदमें घेखो रे बांधो केम करे, रविशशि रूप विलेख ॥ अनि ॥ २ ॥ हेतु विवादें हो चित धरि जोश्ये, अति उर्गम नय वाद ॥
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( ४६३ )
श्रागमवादें हो गुरुगम को नहीं, ए सबलो विषवा द || अनि ॥ ३ ॥ घाती मूंगर खामा प्रति घणा, तुज दरिसण जगनाथ ॥ धीठाई करी मारग संचरूं, स गूं कोइ न साथ ॥ अनि० ॥ ४ ॥ दरिसण दरिसरा रटतो जो फरूं, तो रण रोऊ समान ॥ जेहने पीपासा हो अमृत पाननी, किम जांजे वषपान ॥ अनि ॥ ॥ ५ ॥ तरप न यावे हो मरण जीवन तणो, सीके जो दरिस काज ॥ दरिसण दुर्लन सुलन कृपा थकी, यानंदघन महाराज || अनि ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ यश्री सुमति जिनस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग वसंत तथा केदारो ॥
॥ सुमति चरण कज श्रातम अरपण, दरपण जिम अविकार || सुग्यानी ॥ मति तरपण बहु सम्मत जाणियें, परिसरपण सुविचार || सुग्यानी ॥ सुम ति० ॥ १ ॥ त्रिविध सकल तनुधर गत प्रातमा, बहिरातम धुरि नेद ॥ सु० ॥ बीजो अंतर श्रातम तीसरो, परमातम प्रविवेद ॥ सु० ॥ सुमति० ॥ २ ॥
तम बुद्धे कायादिकें ग्रह्यो, बहिरातम रूप ॥ ॥ सुग्यानी ॥ कायादिकनो हो साखी धर रह्यो, अंत रामरूप ॥ सुग्यानी ॥ सुमति० ॥ ३ ॥ ज्ञाना नंदे हो पूरण पावनो, वर्जित सकल उपाधि ॥ सु ग्यानी ॥ तय गुण गण मणि खागरू, एम पर मातम साध ॥ सुग्यानी ॥ सुमति० ॥ ४ ॥ बहिरातम तजी अंतर यातमा, रूप थ थिर नाव ॥ सु० ॥
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(४६४) परमातमनुं हो पातम नावचूं, बातम अर्पण दाव ॥ सु० ॥ सुमति ॥ ५ ॥ आतम अर्पण वस्तु वि चारतां, नरम टले मति दोष ॥ सु० ॥ परम पदारथ संपति संपजे, आनंदघन ग्स पोष ॥ सु॥सु० ॥६॥
अथश्री पद्मप्रन लिन स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग मारु ॥ तथा सिंधु ॥ चांदलीया संदेशो
॥कहेजे मारा कंतने ॥ ए देशी॥ ॥ पद्मप्रन जिन तुम मुफ अंतरू रे, किम जाजे जगवंत ॥ कर्म विपाकें कार जोड्ने रे, कोई कहे मतिमंत ॥ पद्म ॥ १ ॥ पय हि अणुनाग प्रदे शथी रे, मूल उत्तर बदु नेद वातीअघाती हो बंधू दय उदीरणा रे, सत्ता कर्म निछेद ॥ पद्म ॥ २ ॥ कनकोपलवत पयडि पुरुष तणी रे, जोडी अनादि स्वनाव ॥ अन्य संजोगी जिहां लगें आतमा रे, सं सारी कहेवाय ॥ पद्म० ॥३॥ कारण जोगें हो बंधे बंधने रे, कारण मुगति मूकाय ॥ आश्रव संवर ना म अनुक्रमें रे, हेय उपादेय सुणाय ॥ पद्म ॥ ४ ॥ युंजन करणे हो अंतर तुक पड्यो रे, गुण करणे क रीनंग ॥ ग्रंथ उकतें करी पंमित जन कह्यो रे, अं तर नंग सुअंग ॥ पद्म ॥ ५ ॥ तुज मुज अंतर अं तर नांजशे रे, वाजशे मंगल तूर ॥ जीव सरोवर अ तिशय वाधशे रे, आनंदघन रस पूर ॥ पद्म ॥६॥
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( ४६५ )
॥ अथ श्री सुपार्श्व जिनस्तवन प्रारंभः ॥
॥ रागसारंग ॥ तथा मल्हार ॥ ललनानी देशी ॥ ॥ श्री सुपास जिन वंदियें, सुख संपतिने हेतु ॥ ललना ॥ शांति सुधारस जलनिधि, नव सागरमांहे सेतु ॥ ल लना ॥ श्रीसु० ॥ १ ॥ सात हा जय टालतो, स तम जिनवर देव ॥ ललना ॥ सावधान मनसा क री, धारो जिनपद सेव ॥ ललना ॥ श्रीसु०॥ २ ॥ शि वशंकर जगदीश्वरू, चिदानंद भगवान ॥ ललना ॥ जिन रिहा तीर्थंकरू, ज्योति सरूप समान ॥ ॥ ज० ॥ श्रीसु ॥ ३ ॥ अलख निरंजन वबलू, स कल जंतु विशराम ॥ ल० ॥ श्रनयदान दाता सदा, पूरण तमराम ॥ ल० ॥ श्रीसु० ॥ ४ ॥ वीतराग मंद कल्पना, रति अरति जय शोग ॥ ललना ॥ नि शतंश रदशा, रहित अबाधित योग ॥ ललना ॥ श्री सु० ॥ ५ ॥ परम पुरुष परमातमा, परमेश्वर पर धान ॥ ललना ॥ परम पदारथ परमेष्ठी, परमदेव परमान ॥ ल० ॥ श्रीसु० ॥ ६ ॥ विधि विरंचि विश्वं जरू, ऋषीकेश जगनाथ ॥ ज० ॥ अघहर यघ मोच न धणी, मुक्ति परमपद साथ || ल० ॥ श्रीसु०॥ ७ ॥ एम अनेक निधा धरे, अनुभव गम्य विचार ॥ ल० ॥ जेह जाणे तेहने करे, आनंदघन अवतार ॥ ल णा श्रीमान ॥ ॥ अथ श्री चंप्रन जिनस्तवनं लिख्यते ॥
॥ राग केदारो ॥ तथा गोडी ॥ कुमरी रोवे याद करे. ॥ मुने कोइ मूकावे ॥ ए देश ] ॥
३०
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( ४६६ )
|| देखा दे रे सखि मुने देखा दे, चंप्रन मुख चंद ॥ सखि० ॥ उपशम रसनो कंद ॥ सखि० ॥ सेवे सुरनर इंद ॥ सखी० ॥ गत कलिमल डख ढ़ंद ॥ सखी ॥ मु० ॥ १ ॥ सुहम निगोर्दे न देखियो ॥ सखि ० ॥ बादर प्रतिहि विशेष ॥ स० ॥ पुढवी याव न लेखि यो ॥ स० ॥ तेन वाचन क्षेत्र ॥ स० ॥ २ ॥ वनस पति प्रति घण दिहा ॥ स० ॥ दीवो नही दीदार || स० ॥ बिति चरिंदी जल लिहा ॥ स० ॥ गति सन्नी पण धार ॥ स० ॥ ३ ॥ सुर तिरि निरय निवा समां ॥ स० ॥ मनुज अनारज साथ ॥ स० ॥ अप ऊता प्रतिनासमां ॥ स० ॥ चतुर न चढीयो हाथ ॥ स० ॥ ४ ॥ एम अनेक थल जालियें ॥ स० ॥ द रिसा विणु जिन देव ॥ स० ॥ आगमयी मत जा लियें ॥ स० ॥ कीजें निर्मल सेव ॥ स० ॥ ५ ॥ निर्मल साधु जगति नहीं ॥ स० ॥ योग प्रवंचक होय ॥ स० ॥ किरिया अवंचक तिम सही ॥ स० ॥ फल प्रवंचक जोय ॥ स० ॥ ६ ॥ प्रेरक अवसर जि नवरू ॥ स० ॥ मोहनीय दय जाय ॥ स० ॥ कामि त पूरण सुरतरू ॥ स० ॥ श्रानंदघनप्रनु पाय ॥ स ० ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्री सुविधिजिनस्तवन प्रारंभः ॥
॥ राग केदारो ॥ एम धन्नो धणने परचावे ॥ ए देशी ॥ || सुविधि जिसेसर पाय नमिने, शुन करणी एम कीजें रे || प्रति घणो उलट अंग धरीने, प्रह उठी पू जीजें रे || सुवि० ॥ १ ॥ इव्य नाव शुचि नाव धरी
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(४६७) ने, हरखें देहरे जश्य रे ॥ दह तिग पण अहिगम साचवतां, एकमना धुरि थश्य रे । सु० ॥ ॥ कु सुम अदत वर वास सुगंधो, धूप दीप मन साखी रे॥धंग पूजा पण नेद सुणी एम, गुरु मुख आगम नारखी रे॥सु० ॥३॥ एहनु फल दोय नेद सुगी जे, अनंतर ने परंपर रे ॥आणा पालण चित्त प्रस न्नी, मुगति सुगति सुर मंदिर रे ॥ सु० ॥४॥ फूल अदत वर धूप पईवो, गंध नैवेद्य फल जल नरी रे॥ अंग अय पूजा मलि अड विध, जावें नविक शु जगति वरी रे॥सु ॥ ५॥ सत्तर नेद एकवीश प्र कारें, अझोत्तर सत ने रे ॥ नाव पूजा बहुविध निरधारी, दोहग उर्गति दे रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ तुरि य नेद पडिवत्ती पूजा, उपशम खीण सयोगी रे ॥ चन्हा पुजा इम उत्तरायणे,नाखी केवल जोगी रे॥ सु० ॥ ॥ एम पूजा बदु नेद सुणीने, सुखदायक शुन करणी रे ॥ नाविक जीव करशे ते लेहेशे, आनं दघन पद घरणी रे ॥ सु० ॥ ७ ॥इति ।।
॥ अथ श्रीशीतलजिनस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ मंगलिक माला गुणह विशाला ॥ ए देशी ॥
॥शीतल जिनपति ललित त्रिनंगी, विविध नंगी मन मोहे रे ॥ करुणा कोमलता तीक्ष्णता, उदासी नता सोहे रे ॥ शी० ॥१॥ सर्व जंतु हितकरणी करुणा, कर्म विदारण तीक्ष्ण रे ॥ हानादानरहि त परिणामी, उदासीनता वीक्षण रे ॥ शी० ॥२॥
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(४६७) पर उख बेदन इजा करुणा, तीक्षण पर उख रीके रे॥ उदासीनता उनय विलक्षण, एक तामें केम सीके रे ॥ शी ॥३॥ अनय दान ते मलक्ष्य करु गा, तीक्ष्णता गुण नावें रे ॥प्रेरण विषु कृत न दासीनता, इम विरोध मति नावे रे ॥शी॥४॥श ति व्यक्ति त्रिनुवन प्रनुता, निग्रंथता संयोगें र ॥ यो गी जोगी वक्ता मौनी, अनुपयोगि उपयोगें रे॥शीन ॥५॥ इत्यादिक बदु नंग त्रिनंगी. चमतकार चित्त देती रे ॥ अचरिज कारी चित्र विचित्रा, आनंदघन पद लेती रे ॥ शी० ॥ ६॥ इति ॥
॥अथ श्री श्रेयांसजिन स्तवन प्रारंजः॥ ॥राग गोडी॥अहो मतवाने साजना ॥ ए देशी ॥
॥श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी, आतमरामी ना मी रे॥अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुगति गति गामी रे ॥श्रीश्रेण ॥ १ ॥ सयल संसारी इंडि यरामी, मुनिगुण बातम रामी रे ॥ मुख्य पणे जे
आतम रामी, ते केवल निःकामी रे ॥श्रीश्रेण ॥ ३ ॥ निज स्वरूप जे किरिया साधे, तेह अध्यातम लहियें रे॥जे किरिया करि चरगति साधे, ते न आध्यातम कहिये रे ॥ श्रीश्रे॥ ३ ॥ नाम अध्यातम उवण अध्यातम, इव्य अध्यातम बंमो रे॥ नाव. अध्यात म निजगुण साधे, तो तेहगुंरढ मंमोरे॥ श्रीश्रे॥ ॥४॥ शब्द अध्यातम अरथ सुगीने, निर्विकल्प आदरजो रे ॥ शब्द अध्यातम नजना जाणी, हान
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( ४६९ )
ग्रहण मति धरजो रे ॥ श्री श्रे० ॥ ५ ॥ अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाएण लबासी रे ॥ वस्तुगतें जे वस्तु प्रकासे, खानंदघन मतवासी रे ॥ श्रीश्रे० ॥ ६ ॥ ॥ श्रथ वासुपूज्य जिन स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग गोडी तथा परजीयो || तूंगिया गिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी ॥
॥ वासुपूज्य जिन त्रिभुवन स्वामी, घननामी पर नामी रे || निराकार साकार सचेतन, करम करम फल कामी रे ॥ वासु० ॥ १ ॥ निराकार ने सं ग्राहक, नेदग्राहक साकारो रे ॥ दर्शन ज्ञान हुनेद चेतना, वस्तु ग्रहण व्यापारो रे ॥ वासु ॥ २ ॥ कर्त्ता परिणामी परिणामो, कर्म्म जे जीवें करियें रे ॥ एक अनेक रूप नय वादें, नियतें नर अनुसरियें रे ॥ वासु०॥ ॥ ३ ॥ दुख सुख रूप करम फल जाणो, निश्चय एक
नंदो रे | चेतनता परिणाम न चूके, चेतन कहे जिन चंदो रे ॥ वासु ॥ ४ ॥ परिणामी चेतन परिणामो, ज्ञान करम फल नावी रे ॥ ज्ञान करम फल चेतन कहियें,
जो तेह मनावी रे ॥ वासु ॥ ५ ॥ खातम ज्ञानी श्रमण कहावे, बीजा तो इव्यालिंगी रे ॥ वस्तुगतें जे वस्तु प्रकाशे, आनंदघनमति संगी रे ॥ वा ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीविमलजिन स्तवनं प्रारभ्यते ॥
॥ राग मल्हार ॥ इमर आंबा खांबली रे ॥ ए देशी ॥ ॥ ख दोहग दूरें टव्यां रे, सुख संपदशुं नेट ॥ धींग | माथे किया रे, कुण गंजे नर खेट ॥ विम
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(४७०) लजिन, दीठा लोयण आज ॥ मारा सीधां वंबित काज ॥ विमलजिन ॥ दीठा ॥ १ ॥ चरण कमल क मला वसे रे, निर्मल थिर पद देख ॥ समल अथिर पद परिहरी रे, पंकज पामर पेख ॥ वि० ॥ दी॥ ॥ २ ॥ मुफ मन तुऊ पद पंकजें रे, तीनो गुण म करंद ॥ रंक गणे मंदिरधरा रे, इंद चंद नागिंद ॥ ॥ वि० ॥ दी० ॥ ३ ॥ साहिब समरथ तुं धणी रे, पाम्यो परम उदार ॥ मन विशरामी वालहो रे,प्रा तमचो आधार ॥ वि० ॥ दी० ॥ ४ ॥ दरिसण दी ठे जिन तणुं रे, संशय न रहे वेध ॥ दिनकर कर जर पसरंता रे, अंधकार प्रतिषेध ॥ वि०॥ दी॥५॥ अमीय नरी मूरति रची रे, उपम न घटे कोय ॥ शांति सुधारस जलती रे, निरखत तृप्ति न होय ॥ ॥ वि० ॥ दो० ॥ ६ ॥ एक अरज सेवक तणी रे, अवधारो जिनदेव ॥ कृपा करी मुफ दीजीयें रे, या नंदघन पद सेव ॥ वि० ॥ दी० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री अनंत जिनस्तवनं लिख्यते ॥
॥ राग रामग्री ॥ देशी कडखानी॥ ॥धार तरवारनी सोहली दोहली, चनदमा जि नतणी चरण सेवा ॥धार पर नाचतां देख बाजीग रा, सेवना धार पर रहे न देवा ॥धा० ॥ १ ॥ए अांकणी ॥ एक कहे सेवियें विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे ॥ फल अनेकांत किरि या करी बापडा, रडवडे चार गतिमाहे लेखे ॥धा०॥
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(४७१) ॥ २ ॥ गहना नेद बहु नयण नीहालतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे ॥ उदर जरणादि निज काज कर तां थकां, मोह नडिया कलिकाल राजें ॥ धा० ॥ ॥ ३ ॥ वचन निरपेक्ष व्यवहार जूगे कह्यो, वचन सापेद व्यवहार साचो ॥ वचन निरपेद व्यवहार संसार फल, सांगली आदरी कां राचो ॥ धा॥ ॥ ४ ॥ देव गुरु धर्मनी गुदि कहो केम रहे, केम रहे गुड़ श्रदान आयो " गुरु श्रमान विषु सर्व किरिया करी, बार पर लीपणुं तेह जाणो ॥ धा॥ ॥ ५ ॥ पाप नही कोई उत्सूत्र नाषण जिस्युं, धर्म नही को जग सूत्र सरिखो ॥ सूत्र अनुसार जे न विक किरिया करे, तेहनुं शुक्ष त्रारित्र परिखो ॥ ॥ धा० ॥ ६ ॥ एह नपदेशनो सार संदेपथी, जे न रा चित्तमें नित्य ध्यावें ॥ ते नरा दिव्य बहु काल सुग्व अनुनको, नियत आनंद घन राज पावे ॥धा०॥७॥ ... ॥ अथ श्रीधर्मजिनस्तवनं लिख्यते ॥
॥राग गोडी सारंग ॥ रसीयानी देशी॥ ॥धर्मजिनेसर गावं रंगरां, नंगम पडशोहोप्रीत ॥ जिनेसर ॥ बीजो मनमंदिर आणुं नही, ए अम कु लवट रीत ॥ जिनेसर ॥ धर्म० ॥१॥ धरम धरम करतो जग सदु फिरे, धरम न जाणे हो मर्म॥ जि०॥ धरम जिनेसर चरण ग्रह्या पली,कोइन बांधे हो कर्म॥ जि० ॥ धर्म० ॥ ॥ प्रवचन अंजन जो सदगुरु करे, देखे परम निधान ॥ जि ॥ हृदय नयण नि
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(४७२) हाले जग धणी, महिमा मेरु समान ॥ जि० ॥धर्म० ॥३॥दोडत दोडत दोडत दोडीयो, जेती मननी रे दोड ॥ जि ॥ प्रेम प्रतीत विचारो दकडी, गुरुगम लेजो रे जोड ॥ जि ॥ ध० ॥ ४ ॥ एक पखी केम प्रीति वरे पडे, उजय मिल्या दुए संधि ॥ जि० ॥ हुँ रागी हुँ मोहें फंदियो, तुं नीरागी निरबंध ॥जि० ॥ ध० ॥ ५ ॥ परम निधान प्रगट मुख बागलें, जग त उलंघी हो जाय ॥ जि० ॥ ज्योति विना जु जग दीशनी, अंधो अंध पलाय ॥ जि० ॥ ध० ॥६॥ निर्मल गुण मणि रोहण नूधरा, मुनिजन मानस हं स ॥ जि० ॥धन ते नगरी धन वेला घडी, माता पिता कुलवंश ॥ जि ॥ धर्म ॥ ७ ॥ मन मधुकर वर कर जोडी कहे, पदकज निकट निवास ॥ जि ॥घन नामी आनंदघन सनिलो, ए सेवक अरदास।जि॥धर्म॥
॥अथ श्रीशांतिजिनस्तवन प्रारंजः ॥ ॥राग मल्हार ॥ चतुर चोमासुं पडिकमी॥ए देशी॥
॥शांति जिन एक मुफ वीनति, सुणो त्रिनुवन राय रे ॥ शांति सरूप किम जाणियें, कहो मन परखाय रे ॥ शांति० ॥१॥ ए बांकणी ॥ धन्य तुं आतमा जेहने, एहवो प्रश्न अवकाश रे ॥ धीरज म न धरी सांजलो, कहुं शांति प्रतिनास रे ॥ शां ति० ॥ २ ॥नाव अविशुद्ध सुविगुरू जे, कह्या जिन वर देव रे ॥ ते तेम अवितथ सद्दहे, प्रथम ए शांति प द सेव रे ॥ शांति ॥३॥आगमधर गुरु समकिती,
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(४७३) किरिया संवर सार रे ॥ संप्रदायी अवंचक सदा, गु चि अनुनवाधार रे॥शांति॥४॥ शुरुआलंबन आद रे, तजी अवर जंजाल रे ॥ तामसी वृत्ति सवि परि हरी, जजे सात्विकी शाल रे ॥ शांति ॥ ५ ॥ फल विसंवाद जेहमां नही, शब्द ते अर्थ संबंधि रे॥ सकल नय वाद व्यापी रह्यो, ते शिव साधन संधि रे ॥ शांति ॥ ६ ॥ विधि प्रतिषेध करि पातमा, प दारथ अविरोध रे ॥ ग्रहण विधि महाजनें परिय ह्यो, इस्यो बागमें बोध रे ॥ शांति ॥ ७ ॥ उष्ट ज न संगति परिहरी, नजे सुगुरु संतान रे ॥ जोग सा मर्थ्य चित्त नावजे, धरे मुगति निदान रे ॥ शांति॥ ॥ ॥ मान अपमान चिन सम गणे, सम गणेक नक पाखाण रे ॥ वंदक निंदक सम गणे, इस्यो हो ये तुं जाण रे॥शांति ॥ए ॥ सर्व जगजंतुने समग णे, गणे तृण मणि नाव रे ॥ मुक्ति संसार बेदु स म गणे, मुणे नवजल निधि नाव रे ॥ शांति ॥ ॥ १० ॥ आपणो यातमनाव जे, एक चेतनाधार रे ॥ अवर सवि साथ संयोगथी, एह निज परिकर सार रे ॥ शांति० ॥११॥ प्रनु मुखथी एम सांन ली, कहे तमराम रे ॥ ताहरे दरिसरों निस्तस्यो, मुफ सीधां सवि काम रे ॥ शांति ॥ १२ ॥ अहो अहो हुँ मुजने कहूं, नमो मुज नमो मुफ रे ॥ अमित फल दान दातारनी, जेहन नेट थ तुज रे ॥ शां तिम् ॥ १३ ॥ शांति सरूप संदेपथी, कह्यो निज
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(४७४) पररूप रे ॥ आगममांहे विस्तर घणो, कह्यो शांति जिन नूप रे ।। शांति ॥ १४ ॥ शांति सरूप एम नावशे, धरी गुम प्रणिधान रे ॥ आनंदघन पद पा महो, ते नेहेशे बदु मान रे ॥ शांति ॥ १५ ॥
॥ अथ श्रीकुंथुजिनस्तवन प्रारंनः ॥ ॥राग गुर्जरी॥अंबर देहो मुरारी. हमारो॥ए देशी॥
॥ कुंथुजिन मनटुंगिमही न बाजे हो ॥ कुं० ॥ जिम जिम जतन करीने सखू, तिमतिम अनगुना जे हो ॥ कुं० ॥ १ ॥ रजनी वासर वसति उजड, गयण पायालें जाय ॥ साप खायने मुखडं थोथु ए ह उखाणो न्याय हो ॥ कुं० ॥॥ मुगति तणा अभिलाषी तपीया, झानने ध्यान अन्यासें ॥ वयरीडं कांश एह चिंते, नाखे अवले पासें हो ॥ कुं० ॥३॥
आगम आगमधरने हाथें, नावे किणविध अांकू ॥ किहां कणे जो हठ करी हटकूँ, तो व्याल तणी परें वांकू हो ॥ कुं० ॥ ४ ॥ जो ठग कहुँ तो ठगतो न दे, शाहुकार पण नांदी ॥ सर्व माहे ने सदुथी अ लगुं, ए अचरिज मन मांही हो ॥ कुं० ॥ ५॥ जे जे कहूं ते कान न धारे, आप मतें रहे कालो ॥ सु र नर पंमित जन समजावे, समजे न माहारोसालो हो ॥ कुं० ॥ ६ ॥ में जाण्यु ए लिंग नपुंसक, सक ल मरदने तेले ॥ बीजी वातें समरथ ले नर, एहने कोइ न जेले हो ॥ कुं० ॥ ७ ॥ मन साध्युं तेणे स घऱ्या साध्युं, एह वात नहि खोटी ॥ एम कहे साध्यु
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(४७५) ते नवि मानु, ए कहि वात के महाटी हो ।कुं॥6॥ मनहुं मुराराध्य तें वश आणु, ते आगमथी मति आ j॥ आनंदधन प्रनु माहरु आगो, तो साचुं करी जाणुं हो ॥ कुं० ॥ ए ॥ इति ॥
॥अथ श्री अरजिनस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग परज ॥ षननो वंश रयणायरु ॥ ए देशी ॥
॥धरम परम धरनाथनो केम जाणुं नगवंत रे ॥ स्वपर समय समजावियें, महिमावंत महंत रे ॥ धo ॥ १ ॥ ए आंकगी। शुमातम अनुजव सदा, स्वस मय एह विलास रे ॥ परबडी बांहडी जेह पडे, ते परसमय निवास रे ॥ ध० ॥ २ ॥ तारा नत्र ग्रह चंदनी, ज्योति दिनेश मकार रे ॥ दर्शन झान चरण थकी, शकति निजातम धार रे ॥ध ॥३॥ नारी पीलो चीकणो, कनकं अनेक तरंग रे ॥ पर्याय दृष्टि न दीजियें, एकज कनक अनंग रे ॥ ध० ॥ ४ ॥ द रिसन झान चरणयकी, अलख सरूप अनेक रे ॥ निर्विकल्प रस पीजियें, गुरू निरंजन एक रे ॥ध ॥ ५॥ परमारथ पंथ जे कहे, ते रंजे एक तंत रे ॥ व्यवहारें लख जे रहे, तेहना नेद अनंत रे ॥ ध० ॥ ६ ॥ व्यवहारें लखे दोहिला, कांइन आवे हाथ रे ॥ शुभनय थापना सेवतां, नवि रहे सुविधा साथ रे ॥ध० ॥ ७ ॥ एकपखी लखि प्रीतिनी, तुम साथें जगनाथ रे ॥ कृपा करीने राखजो, चरण तलें ग्रही हाथ रे ॥ध ॥ ॥ चक्री धरम तीरथ तणो,
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(४७६) तीरथ फल तत सार २॥ तीरथ सेवे ते लहे, यानंद घन निरधार रे ॥ध॥ ए ॥ इति अरनाथस्तवनम् ॥ ॥ अथ श्रीमनिजिन स्तवन प्रारंजः ॥रागकाफी॥
॥सेवक किम अवगणियें हो, मनिजिन ॥ एत अब शोना सारी॥ अवर जेहने अादर अति दीये. तेहने मूल निवारी हो ॥ पनि। ॥ १ ॥झान स्वरू प अनादि तुमालं, ते लीयुं तुमें ताणी ॥ जुन अज्ञा न दशा रीसावी, जातां काण न आणी हो । म नि० ॥ २ ॥ निज्ञ सुपन जागर उजागरता, तुरिय अवस्था आवी ॥ निश मुपन दशा रीसाणी, जाएगी न नाथ मनावी हो । मनिल ॥ ३ ॥ समकेत सा थें सगाई कीधी, सपरिवारलॅ गाढी ॥ मिथ्यामति अ पराधण जाणी, घरथी बाहिर काढी हो ॥ मनि ॥ ॥ ४ ॥ हास्य अरति रति शोक उगंबा, जय पामर क रसाली॥नोकपाय श्रेणी गज चडतां, श्वान तणी गति जाली हो ॥ मनि ॥ ५॥ राग ष अविरति नी परिणति, ए चरणमोहना योदा ॥ वीतराग परि गति परिणमतां, नठी नाग बोबा हो ॥मनि ॥६॥ वेदोदय कामा परिणामा, काम्य करम सदु त्यागी॥ निःकामी करुणा रस सागर, अनंत चतुष्क पद पा गी हो ॥ मनो० ॥ ७ ॥ दान विघन वारी सदु ज नने, अनय दान पद दाता ॥ लान विघन जग वि घन निवारक, परम लान रस माता हो ॥ मनि ॥ ७ ॥ वीर्य विघन पंमित वीर्य हणी, पूरण पदवी
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( ४७७ )
योगी ॥ नोगोपनोग दोय विघन निवारी, पूरण जोग सुनोगी हो ॥ मत्रि० ॥ ए ॥ ए अढार दूषण वर्जि त तनु, मुनिजन वृंदें गाया || अविरति रूपक दोषनिरू पण, निर्दूषण मन जाया हो ॥ मलि० ॥ १०॥ इणविध परखी मन विशरामी, जिनवर गुण जे गावे ॥ दीनबंधुनी महेर नजरथी, श्रानंदघन पर पावे हो ॥ म० ॥ ११ ॥
मु०
॥ अथ श्रीमुनिसुव्रत जिनस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग काफी ॥ श्राघा ग्राम पधारो पूज्य ॥ ए देशी ॥ ॥ मुनिसुव्रत जिन राय, एक मुक्त विनति निसुलो ॥० ॥ श्रातम तत्त्व क्युं जाएंयुं जगत गुरु, एह वि चार मुऊ कहियो ॥ श्रातम तत्त्व जाण्या विल नि रमल, चित्त समाधि नवि लहियो । मुनि० ॥ १ ॥ ए की ॥ कोई अबंध आतम तत माने, किरि या करतो दीसे ॥ क्रियातणुं फल कहो कुण जोग वे, इम पूढधुं चित रोशें ॥ मुनि० ॥ २ ॥ जडचेतन ए श्रातम एकज, स्थावर जंगम सरिखो । दुःख सु ख संकर दूषण यावे, चित विचारी जो परिखो | मुनि० ॥ ३ ॥ एक कहे नित्यज यातम तत, या तम दरिस जीनो ॥ कृत विनाश अकृतागम दूप ए, नवि देखे मतिहीणो ॥ मु० ॥ ४ ॥ सौगत म तिरागी कहे वादी, दणिक ए खातम जाणो ॥ बंध मोख सुख दुःख न घटे, एह विचार मन प्राणो ॥ मुनि० ॥ ५ ॥ नूत चतुष्क वर्जित श्रातम तत, स त्ता अलगी न घटे | अंध शकट जो नजर न देखे,
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( ४७८ )
तोशुं कीजें शकटें ॥ मुनि० ॥ ६ ॥ एम अनेक वा दिमत विज्रम, संकट पडियो न लहे ॥ चित्त समा ध ते माटे पूनुं, तुम विण तत कोइ न कहे ॥ मुनि ० ॥ ७ ॥ वतुं जगगुरु इणि परें जाखे, पक्षपात सब मी | राग द्वेष मोह पख वर्जित, श्रातमधुं रढ मं मी ॥ मुनि० ॥ ॥ श्रातम ध्यान करे जो कोन, सो फिर इसमें नावे | वाग जाल बीजुं सहु जाणे, एह तत्त्व चित्त चावे ॥ मुनि० ॥ ॥ जिणें विवेक धरी ए पख ग्रहीयें, ते तत ज्ञानी कहियें || श्रीमुनि सु व्रत कृपा करो तो, आनंदघनपद लहियें ॥ मुनि ० ॥ १० ॥ अथ श्रीनमिजिन स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ धनधन संप्रति साचो ॥ ॥ राजा ॥ ए देगी ॥
॥ पटदरिसण जिन अंग नलीजें, न्यास षडंग जो साधे रे || नमि जिनवरना चरण उपासक, पट दरि सण राधे रे ॥ पट० ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ जिन सुर पादप पाय वखाणुं, सांख्य जोग दोय नेर्दे रे ॥ यातम सत्ता विवरण करतां, लहो डुग अंग अखे दें रे ॥ पट० ॥ २ ॥ नेद खनेद सौगत मीमांसक, जिनवर दोय कर जारी रे || लोकालोक अवलंबन नजियें, गुरुगमथी अवधारी रे || पट० ॥ ३ ॥ लो कायतिक कूख जिनवरनी, अंश विचारी जो कीजें रे ॥ तत्त्व विचार सुधारस धारा, गुरुगम विण केम पी जें रे ॥ षट ॥ ४ ॥ जैन जिनेसर वर उत्तम अंग,
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( ४७७ )
अंतरंग बहिरंगें रे || अक्षरन्यास धरा आधारक, या राधे धर । संगें रे ॥ षट ॥ ५ ॥ जिनवरमां सघलां द रिस बे, दर्शन जिनवर नजना रे ॥ सागरमां सघली तटिनी सही, तटिनी मां सागर नजना रे ॥ पट० ॥ ॥ ६ ॥ जिनस्वरूप थई जिन खाराधे, ते सही जिन वर होवे रे || भृंगी ईलिकाने चटकावे, ते भृंगी जग जोवे रे ॥ पट० ॥ ७ ॥ चूर्णी नाष्य सूत्र नियुक्ति, वृत्ति परंपर अनुभव रे ॥ समय पुरुषनां अंग कह्यां ए, जे बेदे ते डुर्नवरे ॥ षट ॥ ८ ॥ मुझ बीज धा रणा अक्षर, न्यास अरथ विनियोगें रे ॥ जे ध्यावे ते नवि वंचीजें, क्रिया अवंचक जोगें रे ॥ पट० ॥ ए ॥ श्रुत अनुसार विचारी बोलुं, सुगुरु तथा विधि न मिले रे ॥ किरिया करी नवि साधी शकीयें, ए विष वाद चित्त सघजे रे ॥ पट० ॥ १० ॥ ते माटे उजा कर जोडी, जिनवर यागल कहीयें रे ॥ समय चरण सेवा शुद्ध देजो, जेम श्रानंदघन लहीयें रे ॥ प० ॥ ११ ॥
॥ अथ श्रीनेमनाथ जिन स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ राग मारुणी ॥ धारा ढोला | ए देशी ॥ ॥ ष्ट नवंतर वालही रे, तुं मुऊ तमराम ॥ मनरा वाला ॥ मुगति स्त्रीसुं यापणे रे, सगपण कोइ न काम ॥ म० ॥ १ ॥ घर आवो हो वालम घर आ वो, महारी आशाना विशराम ॥ म॥ रथ फेरो हो साजन रथ फेरो, साजन महारा मनोरथ साथ ॥ ॥ म० ॥ २ ॥ नारी पखो श्यो नेहलो रे, साच कहे
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(890) जगनाथ ॥ म ॥ ईश्वर अरधंगें धरी रे, तुं मुफ जा ले न हाथ ॥ म० ॥ ३॥ पशु जननी करुणा करी रे, प्राणी हृदय विचार ॥ म० ॥ माणसनी करुणा न ही रे, ए कुण घर आचार ॥ म० ॥ ४ ॥ प्रेम कल पतरु दीयो रे, धरियो जोग धतूर ॥ म० ॥ चतुरा शरो कुण कहो रे, गुरु मिलियो जग सूर ॥म० ॥ ॥ ५॥ मारूं तो एमां क्युंदी नही रे, आप विचारे राज ॥ म ॥ राजसनामें बेसतां रे, किसडी बंधसी लाज॥ म० ॥ ६ ॥ प्रेम करे जग जन सद्ध रे, नि
हे ते उर ।। म ॥ प्रीत करीने बोडी दे रे, तेहा न चाले जोर ॥ म ॥ ७ ॥ जो मनमां एह, हतुं रे, निसपत करत न जाण ॥म०॥ नसपत करी ने बांदतां रे, मागस दुवे नुकशान ॥ म० ॥ ७ ॥ देतां दान संवत्सरी रे, सलहे वंडित पोष ॥ म० ॥ सेवक वंडित नविलहे रे, ते सेवकनो दोष ॥ म ॥ ॥ ए॥ सखी कहे ए शामलो रे, हुं कहुँ लक्षण सेत ॥ म० ॥ण लक्षण साची सखी रे, आप विचारे हेत ॥ म ॥ १० ॥ रागीशुं रागी सद्ध रे, वैरागी श्यो राग ॥ म० ॥ राग विना किम दाखवो रे, मुगति सुंदरी माग ॥ म०॥ ११ ॥ एक गुह्य घट नथी रे, सघलोई जारो लोक ॥ म०॥ अनेकांतिक जोगवो रे, ब्रह्मचारी गतरोग ॥ म ॥१२॥ जिण जो णी तुमने जो रे, तिण जोणी जोवो राज ॥ म ॥ एक वार मुझने जुन रे, तो सिजे मुज काज ॥ म० ॥
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॥ १३॥ मोहदशा धरी नावना रे, चित्त लहे तत्त्व विचार ॥ म० ॥ वीतरागता आदर रे, प्राणनाथ नि रधार । म ॥१४॥ सेवक पण ते आदरे रे, तो रहे सेवक माम ॥ म० ॥ आशयसाथें चालीयें रे, एहीज रूडं काम ॥म ॥ १५॥ विविध योग धरी आदस्यो रे, नेम नाथ जरतार ॥ म० ॥ धारण पोष ण तारणोरे, नव रस मुगता हार ॥ म० ॥ १६ ॥ कारणरूपी प्रनु नज्यो रे, गण्यं न काज अकाज ॥ ॥ म ॥ कृपा करी मुफ दीजीयें रे, आनंदघन पद राज ॥ म ॥१७॥ इति हाविंशतिजिन स्तवनं ॥
॥ अथ समकेतनुं स्तवन प्रारंन ॥ ॥ समकित हार गंनारे पेसतां जी, पाप पमल गयां दूर रे ॥ माता मरु देवीनो लाडिलो जी, दीवां आनंद पूर रे ॥ सम॥ १ ॥ आयु वर्जित सात क मनी जी, सागर कोडा कोडी हीन रे ॥ स्थिति प्रथ म करणे करी जी, वीर्य अपूर्व मोघर लीन रे ॥स म० ॥ ॥ मुंगल नांगी आदि कषायनी जी, मिय्या मोहनी सांकल साथ रे॥ बार उघाड्यां स्वामी संवेग नां जी, दीपा श्री अनुनव नवियण नाथ रे ॥स म० ॥३॥ तोरण बांध्यां जीवदया तणां जी, सा थीयो पूस्यो श्रदा रूप रे ॥ धूप घटा प्रनु गुण अनुमो दना जी, दीप मंगल आठ अनूप रे ॥ सम० ॥४॥ संवर पाणीयें अंग पखालियां जी, केशर चंदन उत्तम ध्यान रे ॥ बातमरुचि मृग मद महमहे जी, पंचा
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(४७२) चार कुसुम प्रधान रे ॥ सम० ॥ ५॥ नावें पूजो रे पावन आतमा जी, पूजो परमेसर परम पवित्र रे ॥ कारण जोगें कारज नीपन जी, दमा विजय जिन आगम रीत रे ॥ सम० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥अथ श्री वीरनगवाननुं स्तवन ॥ ॥ श्रीसीधशरथ नंदन देवा, प्रनु सेव करूं नित्य . मेवा ॥ देजो मुफ नव नव सेवा ॥ जगत गुरु वीर परम नपगारी ॥ प्रनु करुणा निधि दातारी ।। जग त० ॥ए आंकणी ॥ १ ॥ शाल पहार प्रनु देशना वरसे, सांजली नवि हृदयमा धरशे ॥ तोरा चरण कमल नित्य फरसे ॥ ज । २ ॥ ब्राह्मण देवशर्मा जाणे, प्रतिवोधवा मोकलिया ते टाणे । गौतम चाव्या गुण खाणे ॥ ज० ॥३॥प्रतिरबोधीने पाला वलिया मारग मांहे श्रवणे सांनलिया ।। प्रनुमोद मारग संच रिया ॥ ज० ॥ ४ ॥ ते सांननी दिलमा वात, गौतम ने थाये वजघात ॥ विवेके गुण मणि ख्यात ॥ ॥ ज० ॥ ५ ॥ हवे केहने दं कहीश वीर, गौतम चिंतवे साहस धीर ।। कर्म शत्रुना जोड्या जंजीर ॥ ॥ जग ॥ ६॥ काती कृष्ण दुआ निर्वाण, प्रना ते इंश्नति केवल नाण ॥ जयो जयो नणे गुण खाण ॥ ज० ॥ ७ ॥ अढार देशना राजा मलिया, जाव दीपक मोहमा नलिया॥ इव्य दीपक गुणमणि नरिया ॥ ज० ॥ ७॥ प्रनु वरिया शिव लटकाली, धरधु ध्यान पद्मासन वाली॥ तिहां प्रगटी लोक दीवाली
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( ४८३)
॥ ज० ॥ ए ॥ मुऊ मंदिर सुरतरु फलियो, परमातम गौतम मलियो, गई जावत शुभदिन वलियो ॥ ज० ॥ ॥ १० ॥ संवत जंगलीश पचलोतेरा वर्षे, दीवाली दिन मन हर्षे ॥ प्रनुं मोह वया गुन दिवसें ॥ ज० ॥ ११ ॥ ॥ अथ कलियुगनी स्वाध्याय ||
॥ सरसती सामिनी पाय नमीने, उलट मनमांहे प्रायो॥ तीरथ नहिं को इस संसारें, ते ए कलियुग यायो || देखो वे यारो कूडो कलियुग प्रायो । ए यां hi || बाबो कहे महारी नानडी बेटी, दिन दिन मूल्य सवायो || वे यारो कूडो कलियुग थायो ॥ १ ॥ राजा ते परजाने पीडे, कुनर काम चलायो । बोल बंध नही मंत्रीने, गोचर खेत्र खेडायो ॥ वे यारो कू० ॥ २ ॥ गुरुने गाल दीये निज चेलो, वेद पु राण पढायो ॥ सासु चूजेने वढु खाटलडे, फुर्के श रीर जलायो ॥ वे यारो कृ० ॥ ३ ॥ एंशी वर्षनो हींमे होंगें, मूछें हाथ घलायो ॥ पंच तली साखें परली ने, अबला अर्थ गमायो । बे यारो कू० ॥ ४ ॥ जोगी जंगम ने संन्यासी, जांग नखे मदवायो ॥ चोर चाड परधनने खाये, साधुजन सीदायो | बेयारो कू० ॥ ॥ ५ ॥ निर्धनने बहु बेटा बेटी, धनवंत एक न पायो || नीच तणे घर प्रति धणी लखमी, उत्तम जन सीदायो ॥ बे यारो कृ० ॥ ६ ॥ न मजे बाप सं घातें बेटो, घणे रे मनोर्थे जायो ॥ हाथ नपाडे माय नें मारे, परणीभुं नमाह्यो || बे यारो कू० ॥ ७ ॥ घर
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(४७४) डाने घहेलो कहे बेटो, बाप तणो मद वाह्यो ॥ बहू सूतीने वर हिंमोले, सासरे सूवाने धरायो॥ बे यारो कू० ॥ ॥ हल खेडे बांजण गो जुत्ति, निय नाक फडायो ॥ मा बा बेटी वेचीने, बेटाने पर गायो । बे यारो कू० ॥ ए ॥ राग तणे वश गुरुने गुरुणी, काम करे परायो॥ कांगानी पेरें कलहो मां मी, कुलगुरु नाम धरायो॥ बे यारो कू० ॥ १० ॥ बैयर बार वरसनीने बेटो, दीठो गोद खेलायो । मा ग्या मेह न वरसे महीयल. लानें धयो सवायो । यारो कू० ॥११॥ कूडा कलियुगनी ए माया, देखी गीत गवायो । पनणे प्रीतिविमल परमारथ, जिन वचनें सुख पायो । बे यारो कू० ॥१॥इति ॥
॥अथ जंबूस्वामीनी सद्याय प्रारंनः ॥ ॥सरसति सामिणी वीनवं, सहगुरु लागुंजी पाय॥ गुण रे गायुं जंबु स्वामीना, हरख धरी मन मांय ॥ ॥१॥ धन धन धन जंबु स्वामीने ॥ए आंकणी॥चा रित्र के वत्स दोहिखें,व्रत खांमानी धार॥पाये अणु आणेजी चालवू, करवोजी न्यविहार ॥ धन ॥२॥ मध्यान्ह पड़ी करवी गोचरी, दिनकर तपे रे निल्लाड ॥ वेलु कवल समा कोलिया, ते किम वाल्या रे जाय ॥ ॥धन ॥ ३ ॥ कोडी नवाणुं सोवन तणी, तमा रे ले आते जी नार ॥संसार तणां सुख सुएयां नही, जोगवो जोग रसाल ॥ धन ॥ ॥ रामें सीताने विजोगडें, बहोत किया रे संग्राम ॥ बती रे नारी
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( ४८५ )
तुमें कांइ तजो, कांइ तजो धन ने धाम ॥ धन० ॥ ५ ॥ परणीने झुंजी परिहरो, हाथ मव्यानो संबंध ॥ प बीने करशो स्वामी उरतो, जिम कीधो मेघमुलिंद ॥ ॥ धन० ॥ ६ ॥ जंबू कहे रे नारी सुणो, श्रम मन संयम नाव ॥ साचो सनेह करी लेखवो, तो संयम व्यो म साथ ॥ ६० ॥ ७ ॥ तेणे समें प्रनवोजी यावियो, पांचों चोर संघात ॥ तेने पण जंबुस्वामियें बूजव्या, बुधव्या माय ने बाप ॥ धन० ॥ ॥ सा सु ससराने बृजव्या, बुजवी आठे नार॥ पांचों सत्तावी शशुं, लीधोजी संयम नार॥धन || सुधर्मास्वामी पा सें विया, विचरे बे मनने उल्लास ॥ कर्मखपावी के वल पामीया, पोहोताजी मुक्ति मोकार ॥ ध० ॥ १ ॥ ॥ अथ एकादशीनी सचाय प्रारंभः ॥
|| आज महारे एकादशी रे, नणदल मौन करें। मुख रहियें || पूढयानो पडुत्तर पाठो, केहने कांइ न कहियें ॥ ० ॥ १ ॥ माहारो नणदोइ तुमने वाल्हो, मुकने ताहारो वीरो ॥ धूडाना बाचका नरतां, हाथ न यावे हीरो ॥ ज० ॥ २ ॥ घरनो धंधो घणो को पण, एक न याव्यो चाडो || परनव जातां पालव जाले, ते मुऊने देखाडो ॥ प्रा० ॥ ३ ॥ मागशिर गुदि गीयारश महोटी, नेवुं जिनना निर खो || दोहोदशो कल्याणिक महोटां, पोथी जो ने हरखो || ० ॥ ४ ॥ सुव्रत शेठ थयो शुद्ध श्राव क, मौन धरी मुख रहीयो ॥ पावक पूर सघलो पर
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(४७६)
जाल्यो, एहनो कोई न दहीयो ॥ ॥ ५ ॥ पहोर पोसा ते करियें, ध्यान प्रनुनु धरिये ॥ मन व च काया जो वश करियें, तो नव सायर तरियें ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ र्या समिति नापा न बोले, आउँ अवलुं पेखे ॥ पडिकमणाशुं प्रेम न राखे, कहो के म लागे लेखे ॥ या० ॥ ॥ कर उपर तो माला फिरती, जीव फरे मनमांदी ॥ चितडं तो चिटुंदिशि मोने, णे नजने सुख नांह। ॥ श्रा० ॥ ७ ॥ पौष ध शालें नेगां थश्ने, चार कथा वली सांधे ॥ कांक पाप मिटावण आवे, बारगणुं वलि बांधे ॥ श्रा० ॥ ५ ॥ एक ती बालस मोडे, बीजी नंघे वेठी ॥ नदियोमांथी कांक निसरती, जई दरियामां पेठी ॥ आ ॥ १० ॥ आई बाई नणंद नोजाई, न्हानी मोहोटी वदने । सासु ससरो मा ने मासी, शीखा मण ने सहुने ॥ प्रा० ॥ ११ ॥ उदय रतन वाचक नपदेशे, जे नर नारी रहेगे ॥ पोसामांहे प्रेम धरी ने, अविचल लीना ने ॥ प्रा० ॥ १२ ॥ ॥ अथ वैराग्यसजाय ॥ मननमरानी देशीमां ॥ ॥ उंचा मंदिर मालीयां, सोड्य वालीने सूतो ॥ काहाडो काहाडो एने सद् करे, जाणे जनम्योज नो तो॥ १॥ एक रे दिवस एवो आवशे, मने सबलो जी साले ॥मंत्रीमच्या सर्वे कारिमा,तेनुं कांइन चाले॥ एक रे दिवसाए अांकणी ॥ साव सोनांनां रे सांक लां, पहेरण नव नवा वाघा ॥धोखं रे वस्तर एना
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( ४८७ )
कर्मनुं, तेतो शोधावा लागा ॥ एक रे० ॥ २ ॥ चरु कढाईया प्रति घणा, बीजानुं नही लेखूं ॥ खोखरी हांमी एना कर्मनी, तेतो आागल देखूं || एक रे० ॥ ॥ ३ ॥ केनां बोरु ने केनां वाबरु, केनां माय ने बाप ॥ अंतकालें जावं जीवने एकलुं, साथै पुष्यने पाप ॥ एकरे० ॥ ४ ॥ सगीरे नारी एनी कामिनी, ननी ट ग मग जूवे ॥ तेनुं पण कांई चाले नही, वेठी धूसके रुवे ॥ एक रे० ॥ ५ ॥ वाल्हां त वाल्हां शुं करो, वाल्हां वो लावी वलशे | वाल्हां ते वननां लाकडां, तेतो साधें जी बनशे ॥ एक रे० ॥ ६ ॥ नहीं तापी नही तुंबडी, नयी तरवानो यारो ॥ उदयरतन प्रभु इम नणे, म ने पार उतारो | एक रे० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ मल वर्जन स्वाध्याय ॥ कंत तमाकू परिह || ए देशी ॥
॥ श्रीजिनवाणी मन घरी, सहगुरु दीये उपदेश || मेरे लाल || बावीश अनमांहे कयुं, अमल न * विशेष ॥ मे० ॥ श्रमल म खाजो साजनां ॥ १ ॥ मल विगोवे तन्न ॥ मे० ॥ नंघ बगासां घेरणी, यावे
खो दिन्न || मे० ॥ ० ॥ २ ॥ अमली श्रमलने सारिखो, यावे यानंद थाय ॥ मे० ॥ उतरतां आर ति घणी, धीरज जीव न धराय ॥ मे० ॥ अ० ॥ ॥ ३ ॥ प्रालस ने उजागरो, वेगे ढबकां खाय ॥ मे० ॥
कल न कांइ उपजे, धर्म कथा न सुणाय ॥ मे० ॥ ॥ ० ॥ ४ ॥ काला हिथी ऊपनुं, नामें जे अ
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(४ ) हिफीण ॥ मे ॥ संग करे कोण एहनो, पंमित लो क प्रवीण ॥ मे ॥ अ॥ ५ ॥ पहेलु मुख कडवू दुए, वली घांटो घेराय ॥ मे ॥ उदर व्यथा नि त्य आफरो, इणथी अवगण थाय ॥ मे ॥ अ० ॥ ॥ ६ ॥ नाक बंधायें बोलला, आधुं वचन बोलाय ॥ मे ॥ अमीय सुकाये जीननं, एहनी खाय बला य॥ मे० ॥ अ॥ ७ ॥ दाढोने मूबांदिशि. नगे नही अंकूर ॥ मे० ॥ काया काली मश हुए, गाब डी गाले नूर ॥ मे ॥ अ ॥॥ पलक अवेसं जो लोए, तो प्रातम अकुलाय ॥ मे० ॥ नाक चूए नयणां करें, काम करी न शकाय ॥ मे० ॥ अ॥ ॥ए ॥ अधविच मारगमां पडे, जीवन मृत्यु समा न ॥ मे० ॥ हाथ पगोनी नस गले, अमली यावी शान ॥ मे ॥ अ० ॥ १०॥ आगराई पालो कह्यो, मालवी मांहे नेल ।। मे० ॥ आप इस्युं सखरूं नही, मिशरीगुं मन मेल ॥मे॥ ॥११॥ नवटांक जेनर जीरवे, तसु अहि विष न जणाय ॥ मे० ॥ अमल घणुं खाधाथकी, कंदर्प बल मिट जाय ॥ मे॥4॥ ॥१॥ अमलीने उन्हुँ रुचे, टाटुं नावे दाय ॥मे । खोजी रोटी खांम घी,नपर दूध सुहाय ॥मे॥०॥ ॥ १३ ॥ कुलवंती जे कामिनी, जाणे जुगति सुजाण ॥मे॥ वस्तु वेची किए करी, अमलीने दीए आग ॥मेगाअ॥१४॥ प्रीतम याशा पूरती,न करे रीश ल गार ॥मे॥ कथन न लोपे कंतनु,ते विरली संसार ॥मे०
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(४८)
॥ ० ॥ १५ ॥ डुर्नागणी नारी जिका, बोले कर्कश वाणी ॥ मे० ॥ रे रे अधम फीलिया, खालसवंत जा एए ॥ ० ॥ ० ॥ १६ ॥ परणी जाई पारकी, शुं कीधुं तें धीठ ॥ मे० ॥ पोतानुं पण पेट ए, निठुर जराय न नीठ ॥ मे० ॥ ० ॥ १७ ॥ कान कोट नूपण सदु, वेची खाधुं तेह || मे० ॥ निर्लज तुफ घरवासमां, कहे सुख पाम्यु जेह ॥ मे० ॥ ० ॥ ॥ १८ ॥ अमल समो सुगो नहीं, मानो ए मुफ शीख ॥ मे० ॥ बाले सुंदर देहडी, त्र्यंत मगावे जीख ॥ ॥ मे० ॥ ॥ १९ ॥ दालिीने दोहिनुं, सूर नग्यानुं शाल ॥ मे० ॥ श्रीमंतने पण नहीं ननुं, जोतां ए जंजाल ॥ मे० ॥ ० ॥ २० ॥ सासु बहु वढतां बतां,
शें मल खंत || मे० ॥ बालक खाये जाणतां. जो घर अमल हवंत ॥ मे० ॥ ० ॥ २१ ॥ प्राणी वध जिगुं दुवे, ते तो तजीयें दूर ॥ मे० ॥ कर्मा दान दशमं कयुं, विष व्यापार पर || मे० ॥ श्र० ॥ ॥ २२ ॥ चतुर विचार ए चित्त घरी, कीजें अमल परिहार || मे० ॥ खिमा विजय पंमित तणो, कहे माणिक मनोहार ॥ मे० ॥ ० ॥ २३ ॥ इति ॥
अथ
॥ श्रीजिनहर्षजीकृत पांचमा यारानी सवाय ॥ ॥ वीर कहे गौतम तुलो, पांचमा आराना नाव रे ॥ खीया प्राणी प्रति घणा, सांनल गौतम स्व नाव रे || वीर० ॥ १ ॥ सहेर होशे रे गामडां, गाम
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(ए०) होशे समशान रे ॥ विण गोवा रे धण चरे, ज्ञानी नहिनिरवाण रे ॥वीर॥ २ ॥ मुफ केडे कूमति घणा, होशे ते निरधार रे ॥ जिनमतिनी रुची नवी गमे, थापशे निजमति सार रे ॥ वीर० ॥ ३ ॥ कुमति जाजा कदाग्रही, थापशे आपणा बोल रे ॥ शास्त्र मारग सवि मूकशे, करशे लिन मत मोल रे ॥ वी र० ॥ ४ ॥ पाखंमी घणा जागशे, नांगशे धरमना पंथ रे ॥ आगम मत मरडी करी, करशे नवा वनी ग्रंथ रे ॥ वीर० ॥ ५ ॥ चारणीनी परें चालशे, धर्म न जाणे लेश रे ॥ आगम शारखाने टालशे, पालश निज नुपदेश रे ॥ वीर० ॥ ६ ॥ चोर चरड बदुला गशे, बोली न पाले बोल रे ॥ साधुजन सीदायशे, पुऊन बदुला मोल रे ॥ वीर ॥ ७॥ राजा प्रजाने पीडशे, हिंम निरधन लोक रे ॥ माग्या न वरस मेहुला, मिथ्या होशे बदु थोक रे ॥ वीर ॥ ७ ॥ सं वंत जंगणीश चौदोत्तरें, होशे कलंकी राय रे ॥ मात ब्राह्मणी जाणीयें,बाप चंमाल क हेवाय रे॥वीर॥॥ ब्यासी वरषy ान, पामलीपुरमा होशे रे ॥ तसु सुत दत्त नामें नलो, श्रावककुल गुन पोषे रे ॥ ॥ वीर० ॥ १० ॥ कोतुकी दाम चलावशे, चर्म तणा ते जोय रे ॥ चोथ लेशे निदा तणी, महा अकरा कर होय रे ॥ वीर० ॥ ११ ॥ अवधियें जोयतां, देखशे एह स्वरूप रे ॥ हिज रूपें आवी करी, हणशे कलंकी नूप रे ॥ वीर॥१॥दत्तने राज्य थापी करी,
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(४१) इंश सुर लोकें जाय रे ॥ दत्त धरम पाले सदा, नेटशे शेजेज गिरिराय रे॥ वीर ॥ ॥ १३ ॥ पृथ्वी जिन मंमित करी, पामशे सुख अपार रे ॥ देव लोकें सुख नोगवे, नामें जयजयकार रे ॥ वीर० ॥ १४ ॥ पांच मा आराने डेडले, चतुर्विध श्रीसंघ होशे रे ॥ बहोत्रा रो बेसतां, जिनधर्म पहिलो जाशे रे ॥वीर० ॥१५॥ बीजे अग्नि जागशे, त्रीजे राय न कोय रे ॥चोथे प्रहरें लोपना, बारे ते होय रे ॥ वीर० ॥१६॥ इति ॥
॥ दोहा ॥ बरे आरे मानवी, बिलवासी सवि होय ॥ वीश वरसनु आनखं, पटवर्षे गर्नज होय ॥ ॥ १७ ॥ सहस चोराशी वर्षपणे, नोगवशे नवि कर्म ॥ तीर्थकर होशे ननो, श्रेणिक जीव सुधर्म ॥ ॥ १७ ॥ तसु गणधर अति सुंदर, कुमारपाल नूपा ल ॥ आगम वाणी जोक्ने, रचीयां रयण रसाल ॥ ॥ १ ॥ पांचम प्राराना नाव ए, प्रागमें नारख्या वीर ॥ ग्रंथ बोल विचार करा, सांजलजो नवि धीर ॥ २० ॥ जणतां समकित संपजे, सुणतां मं गल माल ॥ जिनहर्षे कही जोड ए, नारख्यां वयण रसाल ॥ १ ॥ इति पांचमा आरानी सद्याय ॥ ॥ अथ मरुदेवाजीनी सद्याय ॥राग धन्याश्री॥
॥ तुज साथें नहीं बोलुं रे खनजी, तें मुझने वीसारी जी ॥ अनंत ज्ञाननी तुं शशि पाम्यो, तो जननी न संनारी जी ॥ तु ॥१॥ मुझने मोह ह तो तुऊ नपर, ऋषन षन करी जपती जी॥ अन्न
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( ए ) उदक मुझने नवि रुचतुं,तुज मुख जोवाने तृपती जी ॥ तु० ॥ ॥ तुं वेठो शिर उत्र धरावे, सेवे सुर नर नारी जी ॥ तो जननीने केम संजारे, जाणी जाणी प्रीति तहारी जी॥ तु० ॥३॥ तुं कहेनो ने ढुं वली कहेनी, नथी इहां कोई कहेनुं जी॥ ममता मोह धरे जे मनमां, मूर्ख पणुं सहि तेहy जी ॥ तु० ॥४॥ अनित नावनायें चढ्या मरु देव्या, बेगां गयवर खंधो जी ॥ अंतगड केवजी थई गया मुक्ते, कानने मन आणंदो जी ॥ तु० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ शीखामणनी सद्याय ॥ ॥ श्रीगुरु चरण पसानने, कहिगुंशीखामण सार॥ मन समजावो रे आपणुं, जिम पामो नव पार ॥१॥ कहे नारूडं तें झुं कां,प्रातमने हितकार ।। इह नव परनव सुख घणां, लहिये जय जय कार ॥ कहे॥॥ लाख चोराशी योनि तुं नमि, पाम्यो नर अवतार ॥ देव गुरु धर्म न उलव्या, न जप्यो मन नवकार ॥ कहे ॥३॥ नव मसवाडा नदर धस्यो, पाली पोढो रे कीध॥माय ताय सेवा कोधी नहीं, न्यायें मन नवि दीध ॥ कहे० ॥ ४ ॥ चाडी कीधी रे चोतरें, दंमाव्यां जला लोक ॥ साधु सदुने संतापिया, आल चढाव्यां तें फोक ॥ कहे० ॥ ५॥लो लाग्यो रे प्राणीयो, न गणे रात ने दीस ॥ हाहो करतां रे एकलो, जई हाथ घशीश ॥ कहे ॥ ६ ॥ कपट बल नेद तें कस्यां, जांख्या परना रे मर्म ॥ साते व्यसनने सेवियां, नवि
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(४५३) कीधो जिनधर्म ॥ कहे॥॥दमा न कीधी तें खांतरां, दया न कीधी रेख ॥ परवेदन तें जागी नहीं, तो गुं लीधो तें नेख ॥ कहे ॥७॥ संध्यारंग समा न, जल पंपोटो रे जेम ॥मान अणी उपर बिंउन, अथिर संसार जे एम ॥ कहे० ॥ ए॥ अनशन तकाय वावस्यां, पीधां अगल नीर ॥रात्रि नोजन तें कयां, कम पामीश नवतीर ॥ कहे० ॥१०॥ दान शीयल तप नावना, धर्मना चार प्रकार ॥ ते तें नावें नादस्या, रजनीश अनंतो संसार ॥ कहे ॥११॥ पांचे इंशी रे पापिणी,मुर्गति घाले जे जेह ॥ तेतो मेली रेमोकली, किम पामिश शिव गेह ॥ कहे ॥१२॥ कोधे वींट्यो रे प्राणीयो, मान न मूके रे केड ॥ माया सापणीने संग्रही, लोनने लीधो तें तेड ।। कहे ॥ १३ ॥ पररमणी रस मोहियो, परनिंदानो रे ढाल ॥ परव्य तें नवि परिहां, परने दीधी रे गाल ॥ कहे ॥ १४ ॥ धर्मनी वेला तुं बालसु, पाप वेला उजमाल ॥ संच्युं धन कोइ खायशे, जिम मध माखी माल ॥ कहे ॥ १५॥ मेली मेली मूकी गया, जे नपार्जी रे ाथ ॥ संचय कीजें रे पुण्यनो, जे आवे तुऊ साथ ॥ कहे ॥१६॥ शुरु देव गुरु उत्तरखी, कीजें समकित शुरु ॥ मिथ्या मति दूरें करी, राखी निरमल बुद्ध ॥ पाठांतरें।गुरु शिखामण ए सही,ए जाणो हित बुदि॥कहे॥१॥ गोडीदास संघवी तिरों, भादरें कीध सद्याय ॥ शांति
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( ए ) विजय उवद्यायनो,रूपविजय गुण गाय ॥क० ॥१॥
॥अथ नेमिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥सुनो मेरे नेमजी प्यारे, इगनसें मत रहो न्यारे ॥ सुनो० ॥ १ ॥ ए आंकणी॥ पचरंगी पाग सिर सोहीयें, गले फूल माल मन मोहियें । सुनो। ॥ २ ॥ दया करी दरिमन मुफ दीजें, मयः करी अ पनो कर लीजें ॥ सुनो० ॥ ३॥ जिनदान नंदा हे तेरा, लगा जिनराज में नेता ॥ सु० ॥४॥ इति ॥
॥ अथ स्तवन ॥ ॥लाल तेरे नैनोकी गत न्यारी, एतो नपशम र सकी क्यारी ॥लाल तेरे ए आंकणी ॥ काम को धादि दोष रहितसें, नयन नये अविकारी ॥ निका सुपन दिशा नही यामें, दर्शनावरण निवारीलाल ॥१॥ और नेनुमें काम क्रोध है, बहोत जरी हे खुमा री॥परधनादि हरनकी श्बा,एही है दुशियारी ॥जाना ॥॥एता लक्षण है नैर्नुमें, क्युं पामे नव पारी॥और विचार करो दिल अपने,ए तो है करमुसें नारी लाल ॥३॥धर्मबिना कोई सरणां नही है, ऐसो निश्चय दिल धारी ॥ विनय कहे प्रनु जक्ति कर ले, एहि हे तार गहारी॥ लालम् ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ अथ वीरजिन पूजानुं स्तवन प्रारंन ॥
॥ गोकुल मथुरां रे वाहला ॥ ए देश ॥ ॥ त्रिशला नंदन रे देहें, रचीयें पूजा अधिक स नेहें ॥ नवनव जातें रे करीयें, जिम जव सायर हे
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(४५) लें तरी ॥ चेतन प्यारा रे महारा, जिन पूजा करि लहो जवपारा ॥ चेतन० ॥१।। ए यांकणी ॥ न मण करीये रे मन रंगें, चर्ची केशर प्रनु नव अंगें ॥ फूलनी फुटरी रे माला, कंठ वो पंच रंग रसाला ॥ चेतन ॥॥ धूप दीप रे मनोहार,अक्त नैवेद्य फल सुरसालाश्रीजिनवरजी जग शणगार, गावो गीत झा न मनोहार ॥चेतन ॥३॥ दरिसण चरणने रे नाण, तप ए चनहा पूजा जाण ॥ आराधक तेहने रे कही यें, पूजा बादश ने लहीयें। चेतन ॥४॥ पादो प गमन पदधारी, वरिया जिन उत्तम शिवनार॥तस पद पद्मने रे वंदो,रूपविजय पद लही यानंदो ॥चे॥५॥
॥अथ नेमराजुल स्तवनं ॥ ॥मत जा रे पिया तुमें पाहाडमां ॥ पाहाड मां पाहाडमां पाहाडमां ॥ मत॥ तुम तो कहो ह म नारी त्यागी, किम जा गिरनारिमां ॥म ॥१॥ बकाय के रक्क हो तुम, तो केम जाउ जाडिमां ॥ म ॥ ॥ कठिन गिरिवरकी वांकी ट्रंको, वसवू ज ३ कजाडिमां ॥म ॥३॥राजिमतीकी वीनति मा नो, रहे संघनी हारमा । म ॥४॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, नेम मन नयो संजमनारमां ॥म॥५॥
॥ अथ नेमजिन पदं ॥राग काफी॥ ॥ महारा सामतीयानी वात रे, दुं कहने पूर्व ॥ महारा० ॥ जेने पूर्बु ते दूर बतावे, पिया बिन रह्यो न जाय रे॥ढुं॥ महा० ॥१॥तोरण आए चले रथ
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( ४०६ )
फेरी, पशुन सुली पोकार रे ॥ हुं० ॥ महा० ॥ यांबा मोखा केसुडां फुल्यां, यायो मास वसंत रे ॥ हुं० ॥ महा० ॥ २ ॥ दार मोर बपैया रे बोले, कोयल शब्द सुगावे रे || हुं० ॥ महा० ॥ ऊरमर ऊरमर मेदुला रे बरसे, बंद पडे रंग रोज रे || हुं० ॥ महा० ॥ ३ ॥ लख्यो संदेशो पिया मिलवेको, कोइ बढान न जाय रे ॥ ढुं० ॥ महा० ॥ ऋषि कुशल बुध शिष्य इम जंपे, वालम ध्यान धराय रे || डुं० ॥ महा० ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ अथ जीडनंजन जिन स्तवनं ॥
॥ जिनराज जोवानी तक जाय बे रे, खरां दुःख डां खोवानी तक जाय ले रे ! हलुकर्मि होवानी त क जाय ले रे, जगवंत जज्यानी तक जाय बे रे ॥ ब हु लोनें ते लान लूंटाय बेरे ॥ जिन० ॥ १ ॥ इनि या रंग दोरंगी दीसे, पलक पक पलटाय बेरे ॥ ॥ जि० ॥ खोटे नरोंसे खोटी यावं, गांठनो ग्रंथ लुं टाय बे रे ॥ जि० ॥ २ ॥ सकन सगां सहु स्वार थ सूधी, गरजें घहेलां याय ने रे ॥ जिन० ॥ पुण्य विना एक परजव जातां, संसारी सीदाय बेरे ॥ ॥ जि० ॥ ३ ॥ रामा रामा धन धन करतो, धव जिहां तिहां धाय बे रे ॥ जि० ॥ कनक बीजी कामिनी लुब्धा, केई प्राणी कूटाय बे रे ॥ जि० ॥ ॥ ४ ॥ पंच विषयना प्रवाहमांहे, तृष्णा पूरें तणा य बेरे ॥ जि० ॥ नाव सरिखा नाथने मूकी, पापने नारें नराय बे रे ॥ जि० ॥ ५ ॥ मोहराजाना राजमां
धव
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( ए ) वसतां, परमाधामी पासें जाय ले रे ॥ जि० ॥ जिन मारग विण जमनो जोरो, कहोने केणें जीताय ने रे ॥ ॥ जि० ॥ ६ ॥ श्रीसद्गुरुने उपदेशे, सूधो जवेरी जणाय ने रे॥ जि० ॥ पाखंममांहे पड्या जे प्राणी, काचमलामां कहेवाय ने रे ॥ जि० ॥ ७ ॥ नीडनं जन प्रजु पास जिनेसर, पूजतां पाप पलाय डे रे ॥ ॥ जि० ॥ नदयरत्ननो अंतरजामी, बूडतां बांहे साहे रे ॥ जि० ॥ ॥ इति ।। ॥ अथ त्रेशठ शिलाका पुरुषर्नु प्रजातीयुं ॥
॥ चोपाईनी देशीमां ॥ ॥ प्रह समे प्रणमुं सरसति माय, वली सहगुरुने लागुं पाय ॥ त्रेशठ शिलाकानां कहुं नाम, नाम ज पंतां सिके काम ॥ १ ॥ प्रथम चोवीश तीर्थकर जा ण, तेह तणे ढुं करीश प्रणाम ॥ कपन अजित ने संजव स्वाम, चोथा अभिनंदन अनिराम ॥२॥ सु मति पदमप्रन पूरे प्रास, सुपार्श्व चंप्रन ये सु ख वास ॥ सुविधि शितलने श्रेयांस नाथ, ए सा चा शिवपुर साथ ॥३॥ वासुपूज्य जिन विमल थ नंत, धर्म शांति कुंथु अरिहंत ॥ अर मन्नि मुनि सु व्रत स्वाम, एहथी लहिये मुक्ति सुगम ॥ ४॥ नमी नाथ नेमीसर देव, जस सुर नर नित सारे सेव ॥ पार्श्वनाथ महावीर प्रसिद, तूता आपे अविचल रि ६॥ ५॥ हवे नाम चक्रवर्ती तणां, बार चक्री जे शास्त्रे जण्या ॥ पहेलो चक्री नरत नरेश, मुखें सा
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(४ ) ध्या जिणें पट खम देश ॥ ६ ॥ बीजो सगर नामें नूपाल, त्रीजो मघव राय सुविशाल ॥ चोथो कहीयें सनतकुमार, देव पदवी पाम्या ने सार ॥ ७ ॥ शां ति कुंथु अर व राय, तीर्थकर पण पद कहेवा य ॥ सुनूम आठमो चक्री थयो, अति लोनें करीन रकें गयो ॥ ७ ॥ महापद्म राय बुद्धि निधान, हरि पेण दशमो राजान ॥ अग्यारमो जय नाम नरेश, बारमो ब्रह्मदत्त चक्रेश ॥ ॥ ए बारे चक्रीसर क ह्या, सूत्र सिद्धांतथकी में लह्या ॥ हवे वासुदेव क ढुं नवनाम, त्रण खंम जेणें जीत्या गम ॥ १० ॥ वीर जीव प्रथम त्रिष्टष्ठ, बीजो नृप जाणो हिटष्ट ॥ स्वयंनू पुरुषोत्तम महाराय, पुरुपसिंह पुरुष पुमरि क राय ॥ ११ ॥ दत्त नारायण कृष्ण नरेश, ए नव हवे बलदेव विशेष ॥ अचल विजय जइ सुप्रन नूप, सुदर्शन आनंद नंदन रूप ॥ १२ ॥ पद्म राम ए नव बलदेव, प्रतिशत्रु नव प्रतिवासुदेव ॥ अश्वग्रीव तारक राजें, मेरक मधु निॉन बलें ॥ १३ ॥ प्रल्हाद ने रावण जरासंध, जीत्यां चक बल्लें तस सं ध ॥ त्रेशन संख्या पदवी कही, माता एकशठ ग्रंथें लही ॥१४॥ पिता बावनने शाठ शरीर, गणशात जीव महाधीर ॥ पंच वरण तीर्थकर जाण, चक्री सोवन वान वखाण ॥ १५ ॥ वासुदेव नव शामल वान, उज्ज्वल तनु बलदेव प्रधान ॥ तीर्थकर मुक्ति पद वस्खा, आठ चक्री साथे संचया ॥ १६ ॥ बल
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(एए) देव आठ वली तेनी साथ, शिवपद लीधुं हाथो हा थ॥ मघवा सनतकुमार सुर लोक, त्रीजे सुख विल से गतशोक ॥ १७ ॥ नवमो बलदेव ब्रह्म निवास, वासुदेव सद् अधोगति वास ॥ अष्टमो बारमो चकी साथ, प्रतिवासुदेव समा नरनाथ ॥ १७ ॥ सुरवर सुख शाता जोगवी, नारकी फुःख व्यथा अनुनवी॥ अनुक्रमें कर्म सैन्य जय करी, नर वर चतुरंगी सुख वरी॥ १५ ॥ सद्गुरु जागें दायिक नाव, दर्शन झान नवोदधि नाव । आरोही शिव मंदिर वसे, अ नंत चतुष्टय तव उनसे ॥२०॥लेशे अदय पद नि वाण, सि६ सवे मुज द्यो कल्याण ॥ उत्तम नाम जपो नर नार, स्वरूपचं लहे जय जयकार ॥ १ ॥ ॥अथ अजितजिन स्तवन ॥ निडीनी देशी॥
॥ उलंग अजित जिणंदनी, नवि कीधी हो जेणे एक वार के ॥ दश नपनय करी दोहिलो, पाम्यो पण हो एलें अवतार के ॥ नंग ॥१॥ असासय सासय इस्यो, कोइ कुमति हो देखाडे संद के ॥ पुत्र पिता गुरु शिष्यनो, केम तेहने हो घटशे संबंध के ॥ नलंग ॥ २ ॥ अदरथी जेम झाननो, गुण प्रगटे हो टले सयल विरु६ के ॥ तिम वाहाला जिनजी तणा, दरिसणथी हो होय देसण गुरू के ॥ तंग ॥ ३ ॥ परम साधन जिन सेवना, कोइ तेहमां हो कहे हिंसा दोष के ॥ गमन अशन गुरु वंदना, जल क्रमणादि हो किम कियापोष के ॥ उलंग ॥४॥
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(५००) सुर करणी संजायें, जो वारीयें हो नर करणी की ध के ॥ घट पट आगम लीपि कला, इत्यादिक हो सवि थाये निषेध के ॥ उलंग॥५॥ बनमबादि न्हव णादिकें, अवबा हो तिहां होय सुप्रसाद के ॥ जिहां अनुनव संभावना, ते पूजा हो किम करवो प्रमाद के ॥ उनंग ॥ ६ ॥ वृक्षानुगत नवि चर्चियें, लो जीने हो लोनीले सिके॥ मोहन कहे कवि रुपनो, गज लंडन हो नामें नवनिध के ॥ उलंग ॥ 3 ॥ ॥ अथ रुपनजिन स्तवन ॥ निड्डीनी देशीम ॥
॥ तृपन संबन दिन । टला,अति पावन हो की, पाताल के ॥ नाग्य योगें हवे नक्तिने, दीधुं दरिसण हो एह दीन दयाल के ॥ १ ॥ सौनगी साहेब सेवी यें॥ए अांकणी॥जक्त वत्तल महिमानिधि, करुणा कर हो उपशम रस पूर के ॥प्रगट थया नूपति पुरें, जिम प्रहरमें हो निषिधाचलें सूर के ॥ सोनागी० ॥ ॥॥अतिशयवंत जिनेसरू, जगजीवन हो नरदेव पर के ॥ पुग्यवशें सुप्रसन्न थया, समकितथी हो अनुनव अंकूर के ॥ सोनागी० ॥ ३ ॥ आज परम यानंद दु, आज वूठा हो अमिय जलधार के ॥ नवनय नंजण तुम तणो, जेह निरख्यो हो उतन दीदार के ॥ सोनागी० ॥ ४ ॥ सुर नायक सेवा करे, तुम मूरति हो सहि मोहनवेल के ॥ रस तीणा गुण बालवे, स्वर जीणा हो नारी गजगेल के॥सोनागी० ॥५॥ स्वाम नाम प्रनावथी, सवि संपद हो नवनिधि
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(५०१)
दि गेह के ॥ चरण कमल नेट्याथकी, महामंग ल हो मन मान्यो नेह के ॥सोजागी० ॥ ६॥ संवत सत्तर अडश, फागुण शुदि हो तेरश तिथि सार के ॥ मोहन कहे कवि रूपनो, जिन प्रणम्या हो होये जयजयकार के ॥ सोनागी० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ अजितजिन स्तवनं ॥ ॥अजित निणंद जुहारीयें, साहेबा विजया राणीना नंद ॥ जिणंमोरा हे ॥ सुर नर किन्नर तुम तणा, साहेबा सेवे पय अरविंद ॥ जिणं ॥ अजि० ॥ ॥ १ ॥ जितशत्रु नृप लाडिलो ॥ सा ॥ जितशत्रु नगवान ॥ जि ॥ जितशत्रु मुफ कीजियें ॥सा० ॥ दीजियें वंटित दान ॥ जि० ॥ अजि० ॥ २ ॥ अंत राय पंचक टल्युं ॥स॥ हास्य पटक अज्ञान ॥ जि०॥ अविरति काम निज्ञ तंजी, तेम राग देष अंतवान॥ जि० ॥ अजि० ॥३॥ मिथ्यात्य दोप अढार ए॥ सा० ॥ त्यजी करवो तुम गुणसंग ॥ जि ॥ केव लझान बिराजता ॥ सा० ॥ सादि अनंत अनंग ॥ जि० ॥ ४ ॥ तुं सकल परमेसरू ॥सा ॥ तुं निज शिव पद नूप ॥ जि० ॥ तुम पद पद्मनी चाकरी ॥ सा०॥ चाहे चित्त नित्य रूप ॥ जि० ॥ ५॥ इति ॥ ॥अथ अजितजिन स्तवनं ॥ सुरतीमहीनानी देशी॥
॥ कोशल देश सोहामणो, नयरी अयोध्या रेठा म ॥ राज करे तिहां राजवी, जीतशत्रु एनुं नाम ॥ ॥ विजया रे राणी तेहनी, शीलवती अनिरा
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( ५०२ )
म ॥ तेहनी कूखें प्रवतस्था, अजित जिनेसर स्वाम ॥ २ ॥ साडा रे चारों धनुषनी, कंचन वर्णी काय ॥ बहोंतेर लाख पूर्व खानखं, श्रीजिनवरनी आय ॥ ३ ॥ पुण्यसंयोगें हुं पामियो, तमने श्री जिनराज ॥ पाप गयां सर्वे माहरा, फलिया मनोरथ श्राज ॥ ४ ॥ दीन दयाल दया करी. देजो अविचल राज || नितलाज कहे प्रभु माहरा सारजो वंबित काज ॥ ५ ॥ ॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥ संदेशो जड़ लावे वागड देशनो रे ढोला ॥ ए देशी ॥
॥ साहेवा श्री संखेसर पासजी, प्रभुजी नवोदधि तरण ऊहाज ॥ संदेशो सुणजो वामानंदजी ॥ साहि बा धारक तारक विरूदनो, प्रभुजी ग्रहो हो गरीब निवाज || संदेशो० ॥ १ ॥ साहिबा प्रतीत चोवीशीमा वर्तता, प्रजुजी दामोदर जगवंत ॥ सं० ॥ साहिबा तेसजी जीव गणधर तेणें, प्रभुजी बिंब जराव्यो गुणवंत ॥ सं०॥ || २ || साहिबा ध्यान धयुं जब यापनुं, प्रभुजी श्रीशं खेश्वर राय ॥ सं० ॥ साहिबा प्रगट थया पातालथी, प्रभुजी विघ्न हस्यां सहु जाय ॥ सं० ॥ ३ ॥ साहिबा जनम मरण जय सवि हरो, प्रभुजी तो ए उपव कु ए मात्र ॥ सं० ॥ साहिबा इंड् चंद नागेंइथी, प्रभुजी रूप अनंतगणुं गात्र || सं० ॥ ४ ॥ साहिबा प्रातिहार्य सवि सुंदरू, प्रभुजी शोजित गुण गण वृंद ॥ सं० ॥ साहेवा सुरपति नरपति मुनिवरा, प्रभुजी सेवित पद अरविंद ॥ सं० ॥ ५ ॥ साहिबा ग्रहो निशि पदकज से
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(५०३) वना, प्रनुजी चादं दरिस देदार ॥ सं० ॥ साहेबा दीपविजय कहे दीजिये,प्रनुजी तुम दरिसन सुखकार ॥ सं० ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीनेमनाथनी स्वाध्याय ॥
॥साते वारनी देशीमां ॥ ॥ तोरण आवी कंत, पाबावलिया रे ॥ मुफ फर के दाहिण अंग, तेणें अटल लिया रे॥१॥ कुण जो शीयं जोया जोप, चुगल कुए मनिया रे ॥ कुण अव गुण दीठा आज, जिणथी टलिया रे ॥ २ ॥जा जा उरे सहियरो दूर, शाने डो रे ॥ पातलीयो श्यामल वान,वालिम तेडो रे ॥ ३ ॥ यादव कुल तिलक समा न,एम न कीजें रे॥ एक हांसुं ने बीजी हाण,केम खमी जे रे ॥४॥ इहां वाये जाजो समीर,वीज बुकेरे ॥बाप यो पीन पोकारे, हैयंडं चमके रे ॥ ५ ॥ मर पावे दाउर सोर,नदीयो माती रे॥धन गरिवने जोर,फाटे बाती रे॥६॥हरितांगुक पहेस्यां नूमि,नवरस रंगें रे।वा वलीया नवरस हार,प्रीतम संगें रे॥७॥में पूरण कीधां पाप, तापें दाधी रे ॥ पडे आंसुधार विषादें, वेलडी वाधीरे ॥ ॥ मुने चडावी मेरु शीश, पाडी हेठी रे ॥ केम सहेवाये महाराज, विरह अंगीठी रे ॥॥ मुने परणी प्राण आधार, संयम लेजो रे ॥हुँ पतिव्र ता ढुं स्वामी, साथें वहेजो रे ॥ १० ॥ श्म आवे न वनीप्रीत, पिनडा वलशे रे। मुज मनना मनोरथ नाथ, पूरण फलशे रे ॥ ११ ॥ हवे चार महाव्रत सा
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(५०४) र, चुंदडी दीधी रे ॥ रंगीली राजुलनारें, प्रेमें लीधी रे ॥ १२ ॥ मैत्र्यादिक जावना चार, चोरी बांधी रे॥ दे ध्यानानल सलगाय, कर्म उपाधि रे ॥ १३ ॥ थ यो रत्नत्रयी कंसार, एकी नावें रे ॥आरोगे नर ने नार, गुड़ वनावें रे ॥ १४ ॥ तजी चंचलता त्रिक योग, दंपती मलियां रे॥त्र खिमाविजय जिन नेम, अनुनय कलिया रे ॥१॥
॥अथ केशरीयाजीनुं स्तवन ॥ ॥प्रनुनी मूरति माहन बेलडी, जी तुमारी मूरति मोहन वेलडी ॥ चालो सखी धुलेवे रे जश्य, प्रनुनी सामरी सूरत सेलडी ॥ जी तु० ॥१॥ केशर चंद न नयां रे कचोलां, प्रचुजीनी पूजा करूं सदु पहेलडी ॥जी तु॥२॥जाईजुई वर कमरोजी मरुवो, प्रनुजीने पूजी चडाचं चंवेलडी॥जीतु॥३॥सुर नर मुनिवर जो ने मोह्या, कांपनदास गुण वेलडी॥जीतु ॥४॥ ॥ अथ उपदेश विषे सद्याय ॥ देशी फतमलनी॥
॥ पडजो कुमतिगढना कांगरा, मर जो रान मोह राव ॥ वालो महारो निज घरे नावीयो, एणे परघरे कीधां प्रयाग ॥ वा० ॥ एम कहे सुमति सुजाण ॥ वा ॥ १ ॥ ए आंकणी॥ दांत पाडूं रे दूती त गा, पाडोसणनां रेल प्राण ॥जेणे महारो जीवन जोलव्यो, लइ नाख्यो नरकनी खाण ॥ वा० ॥ २॥ मायायें मद पाश्ने, एतो वास्यो पोताने वास ॥ मा हारोने वासो टालीने, एवं मुझने कीधी निराश ॥
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(५०५) ॥ वा० ॥ ३ ॥ गुणवंतना गुण गोपवी, गुण हीणा गुं मांगी गोठ ॥ आप स्वरूप न उलखे, एतो पाप नी चलवे पोत ॥ वा० ॥ ४ ॥ अबुक साथें धरे अ. सकी, एतो पूजे न पूज्यना पाय ॥ परम महोदय पामशे, ज्यारें आवशे आपणे नाय ॥ वा० ॥ ५ ॥ श्रीदादा पास पसाना, में तो कुमतिनो पाड्यो को ट ॥ घर आएयो निज घरधणी, में तो चुकवी शो कनी चोट ॥ वा ॥ ६ ॥ वाचक नदयरतन वदे, जे पूजशे प्रनुना पाय ॥ ते परमपदें पद धारशे, वली संपत्ति लहेशे सवाय ॥ वा० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ धर्मजिन स्तवनं ॥ ॥ केशर वरणो हो काढ कसुंबो माहारा लाल॥ए देशी॥
॥ धर्मजिणंदा हो, में तुज बंदा ॥ माहारा लाल ॥ तुज गुण वृंदा हो,गावे इंदा ॥ मा० ॥ शिवतरु कंदा हो, तुं कुलचंदा ॥ मा० ॥ तेज दिणंदा हो, अति आनंदा ॥मा० ॥ १ ॥ मोहन गारी हो, मूरति तारी ॥ मा० ॥ प्राण पियारी हो, जानं बलिहारी ॥मा० ॥ यो शिवनारी हो, रंग करा ॥ मा० ॥ तें जग तारी हो, जे मुज वारी ॥ मा० ॥ दिल अटकाणो हो, दास कहाणो ॥ मा० ॥ तुं जग राणो हो, सुजश गवाणो ॥ मा० ॥ करुणा आगो हो, सेवा जागो ॥ मा० ॥ हवे न ताणो हो, मलियो टाणो ॥ मा० ॥ ॥ ३ ॥ नेह नवेली हो, सुमति सहेली ॥ मा० ॥ रंगें खेली हो, थई मुफ बेली ॥ मा० ॥ माया वेली
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(५०६) हो, मूल उखेली ॥ मा० ॥ कुमति अकेली हो, दूरें मेली ॥ मा० ॥ ४ । तुं जिनराया हो, सुजस सवा या ॥ मा०॥ दिलमें आया हो, पाप गमाया ॥ मा०॥ वंबित पाया हो, विमल पसाया ॥ मा० ॥ गुण मन नाया हो, रामें गाया। मा० ॥ ५॥ इति ॥ ॥अथ मनिजिन स्तवन ॥ होरी खेलेंगे॥ए देशी॥
॥ मन मोहन मनी नाथको, जस बोलेंगे ॥ शिव रमणीको रंग, धुंघट पट खोलेंगे। मोह्यो मन घन मोर ज्युं ॥ जस ॥ अब और न चाहुँ संग ॥ ७ ॥ ॥१॥ चिंतामणिकू पाश्कं ॥ ज० ॥ कुएग राचे काचे काच ॥ धुं० ॥ को चाहै खर केलिकू॥ ज० ॥ तजी सुर कुमरीको नाच ॥ पुं० ॥ ५ ॥ बाग्लकू सेवे नहीं ॥ ज० ॥ तजी मधुकर मालती फूल ॥ धुं० ॥ कोमल शय्या बोर के ॥ ज० ॥ कुण बैते धरिके शूल ॥ धुं० ॥३॥प्रनुको मूरति मेरे मन वसी ।। ज० ॥ सो तो विसरा विसरै न ॥ध्रु० ॥ दरसन प्रनु मुख देखकें ॥ ज० ॥ हम पावन कीने नैन ॥ धुं० ॥४॥ जनम कृतारथमें कस्यो ॥ ज० ॥ जब पायो ऐसो ईश ॥ धुं० ॥ विमल विजय नवद्यायको ॥ ज० ॥ एम राम कहे गुन शीश ॥ धुं० ॥ ५ ॥
॥ अथ नेमिजिन स्तवनं ॥ राग जंगलो ॥ ॥संयम नेनंगी साथ, पिया में तो संयमलेगी। माय बाप मेरे काम न आवे, जूठो ए संसार ॥ पि या० ॥ १ ॥ तोरणसें रथ फेर चलायो, सुण पशु
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(५०७) अन पोकार ॥ पि ॥२॥ सहसावन जई संयम तीनो, नेम चढे गिरनार ।। पी०:३॥ मोतन लाल कहे अपने प्रीमसे, उतारो जव पार ॥ पी० ॥ ४ ॥ ॥अथ श्रीदेवचंजीकृत चोवीशी प्रारंनः ॥ तत्र प्रथम श्रीषनजिन स्तवनं ॥ निडी वेरण दुई रही ए देशी॥
॥ षन जिणंदरां प्रीत, किम कीजें हो कहो चतुर विचार ॥ प्रनुजी जर अलगा वग्या, तिहां किणे नवि हो कोई वचन उच्चार ॥ १ ॥ ३० ॥ कागल पण पोहोंचे नहि, नवि पोहोंचे हो तिहां को पर धान ॥जे गोहोंचे ते तुम समो, नवि जांखे हो कोनुं व्यवधान ॥ २ ॥ २० ॥ प्रीत करे ते रागीया, जिन वरजी हो तुमें तो वीतराग॥प्रीतडी जेह अरागीथी, नेलववी हो लोकोत्तर माग ॥३॥ ३० ॥ प्रीति अनादिनी विष नरी, ते रीतें हो करवा मुफ नाव ॥ करवी निर्विष प्रीतडी, किण नांते हो कहो बने ब नाव ॥ ४ ॥ २० ॥ प्रीति अनंती परथकी, जे तोडे हो ते जोडे एह ॥ परम पुरुपथी रागता, एकत्वता हो दावी गुण गेह ॥ ५ ॥ २० ॥ प्रनुजीने अवलं बतां, निज प्रजुता हो प्रगटे गुण राश ॥ देवचंनी सेवना, आपे मुफ हो अविचल सुखवास ॥६॥२०॥
॥अथ श्रीअजितजिन स्तवनं ॥ ॥ देखो गति देवनी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ ज्ञानादिक गुण संपदा रे, तुज अनंत अपार ॥ ते सांजलतां उपनी रे, रुचि तेणें पार उतार ॥१॥
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(५०७) अजित जिन तारजो रे, तारजो दीनदयाल ॥ अ जि० ॥ ए अांकणी ॥ जे जे कारण जेहनो रे, सा मग्री संयोग ॥ मलतां कारज नीपजे रे, कर्त्ता तणे प्रयोग ॥॥ अ॥ कार्यसिदि कर्ता वसु रे, लहि कार एण संयोग ॥ निज पद का प्रनु मिल्या रे, होय निमित्तह नोग॥३॥ अजकुल गत केसरीलहे रे, निज पद सिंघ निहाल । तिम प्रनु नक्तं नवि लहे रे, आतम शक्ति संनाल ॥ ४ ॥ अ० ॥ कारण पद कर्ता पणे रे, करी आरोप अनेद ॥ निजपद अ रथी प्रनुथकी रे, करे अनेक उमेद ॥ ५॥ अ० ॥ एहवा परमातम प्रनु रे, परमानंद स्वरूप ॥ स्यादवा दसत्ता रसी रे, अमल अखंम् अनूप ॥ ६ ॥ अ० ॥ आरोपित सुख नम टल्यो रे, जास्यो अव्याबाध ॥ समयुं अनिताखीपणुं रे, कर्त्ता साधन साध्य ॥ ॥ ७ ॥ अ० ॥ ग्राहकता स्वामित्वता रे, व्यापक नो ता नाव ॥ कारणता कारज दिशा रे, सकल ग्रह्यु नि ज नाव ॥ ॥अ॥ श्रदा नासन रमणता रे, दाना दिक परिणाम ॥ सकल थया सत्ता रसी रे, जिनवर दरिसण पाम ॥ ए॥ अ० ॥ तिणे निर्यामक माह यो रे, वैद्य गोप आधार ॥ देवचं सुख सागरु रे, नाव धरम दातार ॥ १०॥ य० ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीसंनव जिन स्तवनं ॥धारा ढोला॥ए देशी॥
॥ श्रीसंनवजिन राजजी रे,ताहरु अकल स्वरूप॥ जिनवर पूजो ॥ स्वपर प्रकाशक दिनमणि रे, समता
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(५०) रसनो नूप ॥ जि०॥ १ ॥ पूजो पूजो रे नविक जिन पूजो, प्रनु पूज्या परमानंद । जि ॥ ए ग्रांकणी॥ अविसंवाद निमित्त बो रे, जगत जंतु सुखकाज॥ जिन हेतु सत्य बहुमानथी रे, जिन सेव्यां शिवराज ॥ ॥ जि० ॥ ॥ उपादान आतम सही रे, पुष्टालंबन देव ॥ जि० ॥ नपादान कारण पणे रे, प्रगट करे प्रनु सेव ॥ जि० ॥३॥कारजगुण कारण पणे रे, कारण कारज अनूप ॥ जिा सकल सिहता ताह री रे, माहारे साधन रूप ॥ जि ॥ ४ ॥ एक वार प्रनु वंदना रे, यागमरीतें थाय ॥ जि० ॥ कारण सत्यें कार्यनी रे, सिदिप्रतीति कराय॥जि ॥ ५ ॥ प्रनुपणे प्रनु उत्तरवी रे, अमल विमल गुण गेह ॥ ॥ जि० ॥ साध्यदृष्टि साधकपणे रे, वंदे धन नर तेह ॥ जि० ॥ ६ ॥ जन्म कतारथ तेहनो रे, दिवस सफल पण तास ॥ जि ॥ जगतशरण जिन चरणने रे, वंदे धरिय नन्नास ॥ जि० ॥ ७ ॥ निज सत्ता निज जावथी रे, गुण अनंतनुं वाण । जि० ॥ देवचं जिन राजजी रे, शुद्धसिसुख खाण ॥ जि॥ ॥ इति ॥
॥ अथ श्रीअनिनंदन जिनस्तवनं ॥ ॥ ब्रह्मचरिज पद पूजीयें ॥ ए देशी।। ॥ क्युं जाणुं क्युं बनी आवशे, अनिनंदन रस रीत हो मित्त । पुजल अनुनव त्यागथी, करवी जसु परतीत हो मित्त । क्युं ॥१॥ परमातम परमेश्वरू, वस्तुगतें ते अलिप्त हो मित्त ॥ इव्ये इव्य मिले
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(५१०) नहीं,नावें तें अन्य प्रयाप्त हो मित्त ।। क्युं०॥ ॥ शुभ स्वरूप सनातनो, निर्मल जे निःसंग हो मित्त ॥ आतम विनति परिणम्यो, न कर ते परसंग हो मित्त ॥ क्युं ॥३॥ पण जाणुं आगम बलें, मलवो तुम प्रनु साथ हो मित्त ।। प्रनुलो स्वसंपत्तिमयी, शुद्ध स्व रूपनो नाथ हो मित्त ॥ क्युं ॥४॥ पर परिणामि कता अजे, जे तुझ पुगल जोग हो मित्त ॥ जड चल जगनी एठनो, न घटे तुमने नोग हो मित्त ॥ क्युं०॥५॥ शुभ निमित्त प्रनु ग्रहो, करी अशुभ पर हेय हो नि त॥अत्मालंबी गुण लही, दु साधकनो ध्येय हो मित्त ॥ क्युं॥६॥ जिम जिनवर आलंबनें, वधे सधे एक तान हो मित्त ॥तिम तिम आत्मालंबनी,ग्रहे स्व रूप निदान हो मित्त ॥ क्युंग॥ ७॥ स्व स्वरूप एकत्वता, साधे पूर्णानंद हो मित्त ॥रमे नोगवे आतमा,रत्नत्रयी गुणवंद हो मित्त । क्युं ॥ ॥ अनिनंदन अवलंबने, परमानंद विलास हो मित्त ।। देवचं प्रनु सेवना, क रि अनुनव अन्यास हो मित्त ॥ क्युं ॥ए ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीसुमतिजिनस्तवनं ॥ कडखानी देशी॥
॥ अहो सिरी सुमतिजिन शुद्धता ताहरी, स्वगुण पर्याय परिणाम रामी ॥ नित्यता एकता अस्तिता इतरयुत, जोग्यजोगीथको प्रनु अकामी॥१॥अ॥ उपजे व्यय लहे तहवि तेहवो रहे, गुण प्रमुख बहुलता तहवि पिंकी॥ आत्मनावें रहे अपरता नवि ग्रहे, लोक प्रदेश मित पण अखंमी॥ ॥
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( ५११) ॥अ०॥ कार्य कारण पणे परिणमे तहवि ध्रुव, कार्य नेदें करे पण अनेदी ॥ कर्तृता परिणमे नव्यता नवि रमे, सकल वेत्ता थको पण अवेद ॥ ३ ॥ अ०॥ शुद्धता बुद्धता देव परमात्मता, सहज निज नाव नोगी अयोगी॥ स्वपर उपयोगि तादात्म्य सत्तारसी, शक्ति प्रयुंजतो न प्रयोगी ॥ ४ ॥ ॥ वस्तु निज परिणते सर्व परिणामकी, एटले कोइ प्रनुता न पामे ॥ करे जाणे रमे अनुनवे ते प्रनु, तत्त्व स्वा मित्व शुचि तत्त्व धामे ॥ ५॥ अ० ॥ जीव नवि पु ग्गली नैव पुग्गल कदा,पुग्गलाधार नहीं तास रंगी॥ पर तणो ईश नहीं अपर ऐश्वर्यता, वस्तुधर्मे कदा न परसंगी ॥ ६ ॥ अ० ॥ संग्रहे नहीं आपे नहीं पर जणी, नवि करे आदरे न पर राखे ॥ शुस्या छाद निज नाव नोगी जिके, तेह परजावने केम चाखे ॥ ७ ॥०॥ ताहरी शुद्धता नास आश्चर्यथी, नपजे रुचि तेणे तत्त्व ईहे ॥ तत्त्वरंगी थयो दोषथी ननग्यो, दोष त्यागे टले तत्त्व लीहे ॥ ७ ॥ अ॥ गुरू मार्गे वध्यो साध्य साधन सध्यो, स्वामी प्रतिबंदे सत्ता आराधे ॥ आत्म निष्पत्ति तिम साधना नवि टके, वस्तु उत्सर्ग आतमसमाधे ॥ ए ॥ अ० ॥ माहरी शुद्ध सत्तातणी पूर्णता, तेहनो हेतु प्रनु तुंहि साचो ॥ देवचंई स्तव्यो मुनिगणें अनुजव्यो, तत्त्व नक्तं नविक सकल राचो ॥ १०॥ अ॥ इति ॥
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(५१२) ॥ अथ श्रीपद्मप्रनजिन स्तवन ॥ ॥ढुंतुज पागल शी कहुँ केशरीया लाल ॥ए देशी॥
॥ श्रीपद्मप्रन जिन गुणनिधि रेलाल, जग तारक जग दीस रे॥ वाल्हेसर ॥ जिन उपगारथकी लहे रे लाल, नविजन सिदि जगीस रे ॥ वा० ॥ ॥ तुऊ दरिसण मुफ वालटुं रे लाल, दरिसण शुभ पवित्त रे ॥ वा० ॥ दर्शन शब्द नये करे रे लाल, संग्रह एवं नूत रे ॥ वा० ॥२॥तु ॥ वीजें वृद अनंतता रे लाल, पसरे नू जल योग रे।। वा ॥तिम मुफ प्रा तम संपदा रे लाल, प्रगटे प्रनु संयोग रे ॥ वा० ॥ ॥३॥ तु० ॥ जगत जंतु कारज रुची रे लाल, साधे उदयें जाग रे॥वा॥ चिदानंद सुविलासता रेलाल, वाधे जिनवर जाण रे ॥ वा ॥ ४ ॥ तु० ॥लब्धि सिदि मंत्रादरें रेलाल, उपजे साधक संग रे॥वा॥ सहज अध्यातम तत्त्वता रे लाल, प्रगटे तत्त्वी रंग रे॥ वा०॥ ५॥ तु०॥ लोह धातु कंचन दुवे रे लाल, पारस फरसन पामि रे ॥ वा० ॥ प्रगटे अध्यातम दिशा रे लाल, व्यक्त गुणी गुण ग्राम रे ॥ वा० ॥६॥ ॥ तु० ॥ आत्मसिदि कारज नगी रे लाल, सहज निर्यामक हेतु रे ॥ वा० ॥ नामादिक जिनराजनां रे लाल, नवसागरमांहे सेतु रे । वा० ॥७॥ तु० ॥ थंजन इंख्यि योगनो रे लाल, रक्त वरण गुण राय रे ॥ वा० ॥ देवचं तूंदें स्तव्यो रे लाल, आप अवर्ण अकाय रे ॥ वा० ॥ ७ ॥ तु० ॥ इति ॥
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( ५१३ )
॥ अथ सप्तम श्रीसुपार्श्व जिनस्तवनं ॥ ॥ हो सुंदर तप सरिखो, जग को नहीं । ए देशी ॥ ॥ श्री सुपास श्रानंदमें, गुण अनंतनो कंद हो ॥ जि जी || ज्ञानानंदें पूरणो, पवित्र चारित्रानंद हो ॥ ॥ जि० ॥ १ ॥ श्री० ॥ संरक्षण विल नाथ बो, इव्य विना धनवंत हो ॥ जि० ॥ करता पद किरिया विना, संत अजेय अनंत हो ॥ जि० ॥ २ ॥ श्री० ॥ गम अगोचर अमर तुं, अन्वय ऋद्धि समूह हो । जि० ॥ व गंध रस फरस विणु, निज नोक्ता गुण व्यूह हो ॥ जि० ॥ ३ ॥ श्री० ॥ यदय दान श्रचिंतना, लान यने नोग हो । जि० ॥ वीर्य शक्ति प्रयासता, शुद्ध स्वगुण उपनोग हो ॥ जि० ॥ ४ ॥ श्री० ॥ एकांतिक आत्यंतिको, सहज अकृत स्वाधीन हो ॥ ॥ जि० ॥ निरुपचरित निर्द६ सुख, अन्य अहेतुक पीन हो ॥ जि० ॥ ५ ॥ श्री० ॥ एक प्रदेशें ताहरे,
व्याबाध समाय हो । जि० ॥ तसु पर्याय प्रवि जागता, सर्वाकाश न माय हो । जि० ॥ ६ ॥ श्री० ॥ एम अनंत गुणनो धणी, गुण गुणनो श्रानंद हो ॥ ॥ जि० ॥ जोग रमण श्रास्वाद युत, प्रभु तुं परमानंद हो ॥ जि० ॥ ७ ॥ श्री० ॥ अव्याबाध रुचि थई, साधे अव्याबाध हो । जि० ॥ देवचं पद ते लहे, परमानंद समाध हो ॥ जि० ॥ ८ ॥ श्री० ॥ इति ॥
३३
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( ५१४ )
॥ अथ अष्टम श्रीचं प्रनजिनस्तवनं ॥ ॥ श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीचं प्रन जिनपदसेवा, हेवायें जे हलिया जी ॥ श्रातम गुण अनुभवथी मलिया, ते जवजयथी टलिया जी ॥ १ ॥ श्री० ॥ इव्य सेव वंदन नम नादिक, अर्चन वलि गुरुग्रामो जी ॥ नाव नेद थावानी ईहा, परजावें निःकामो जी ॥ श्री० ॥ २ ॥ ॥ श्री० ॥ जावसेव अपवादें नेगम, प्रनुगुणने संकल्पें जी ॥ संग्रह सत्ता तुल्यारोपें, नेदानेद वि कल्पें जी ॥ ३ ॥ श्री० ॥ व्यवहारें बहु मान ज्ञान निज, चरणे जिनगुणरमणा जी ॥ प्रभु गुण या लंबी परिणामें, ऋजु पद ध्यानस्मरणा जी ॥ ४ ॥ ॥ श्री० ॥ शब्दे शुक्लध्यानारोहण, समनिरूढ गुण दशमे जी ॥ बी शुकल विकल्प एकत्वें, एवंनूत ते ममें जी ॥ ५ ॥ श्री० ॥ उत्सर्गे समकित गुण प्रगट्यो, नैगम प्रभुता श्रंशें जी ॥ संग्रह श्रातम सत्तालंबी, मुनिपद जाव प्रशंसे जी ॥ ६ ॥ श्री० ॥
जुसूत्रे जे श्रेणिपदस्यें, आतमशक्ति प्रकाशे जी ॥ यथाख्यात पद शब्द स्वरूपें शुद्ध धर्म उल्लासे जी ॥ ॥ ७ ॥ श्री० ॥ नाव सयोगि प्रयोग शैलेसें, अंति म डुग नय जाणो जी ॥ साधनतायें निज गुणव्यक्ति, तेह सेवना वखाणो जी ॥ ८ ॥ श्री ॥ कारण नाव तेह अपवादे, कार्यरूप उत्सर्गे जी ॥ श्रात्मजाव ते नाव इव्य पद, बाह्य प्रवृत्ति निसर्गे जी ॥ ए ॥
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(५१५) ॥ श्री० ॥ कारण जाव परंपर सेवन, प्रगटे कारज नावो जी॥कारज सिमें कारणता व्यय, शुचि परिणा मिक नावो जी ॥ १० ॥ श्री० ॥ परम गुणी सेवन तन्मयता, निश्चय ध्याने ध्यावे जी॥ शुभातम अनु नव आस्वादी, देवचं पद पावे जी॥११॥ श्री॥
॥ अथ नवम श्रीसुविधिजिनस्तवनं ॥ ॥ थारा महेला ऊपर मेह, फरूखे वीजली ॥
॥हो लाल ॥ ए देशी ॥ ॥ दीठो सुविधि जिणंद, समाधिरसें नस्यो होला ल ॥ समाधिरसें नयो ॥ नास्युं आत्मस्वरूप, अना दिनो वीसयो हो लाल ॥ अ० ॥सकल विनाव नपा धि, थकी मन उसस्यो हो लाल ॥ थ० ॥ सत्ता सा धन मार्ग, नणी ए संचयो हो लाल ॥॥१॥ तुम प्रनु जाएंग रीति, संरव जग देखता हो लाल ॥ स० ॥ निज सत्तायें शुरू, सदुने लेखता हो लाल ॥ स० ॥ पर परिणति अप,पणे नवेखता हो लाल॥ पणें ॥ जोग्यपणे निज शक्ति, अनंत गवेखता हो साल ॥अ० ॥ २ ॥ दानादिक निज नाव, हता जे परवशा हो लाल ॥ हता० ॥ ते निजसंमुख नाव, ग्रही लही तुज दशा हो लाल ॥ ग्र० ॥ प्रनुनो अञ्ज त योग, स्वरूप तणी रसा हो लाल ॥ स्व० ॥ नासे वासे तास, जास गुण तुज जिसा हो लाल ॥ जाण ॥३॥ मोहादिकनी चूमि, अनादिनी ऊतरे हो लाल ॥ अ० ॥ अमल अवंम अलिप्त, स्वनावज सांजरे
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(५१६) हो लाल ॥ स्व०॥ तत्त्व रमण शुचि ध्यान, नणीजे
आदरे हो लाल॥न ॥ ते समतारस धाम, स्वामी मुज्ञा वरे हो साल ॥ स्वा० ॥४॥प्रनु नो त्रिनुवन नाथ, दास हुँ ताहरो हो लाल ॥ दा० ॥ करुणानिधि अनिलाख, अडे मुफ एरो हो लाल ॥ 7 ॥ आ तम वस्तु स्वनाव, सदा मुऊसाजरो हो लालसि॥ नासन वासन एह, चरगव्याने धरो हो लाल ॥ च ॥ ५ ॥प्रनु मुझने योग, प्रनु प्रनुता लखे हो नाल ॥ प्र० ॥ इव्य तणे साधम्य, स्वसंपति उलखे हो जान॥ स्व० ॥ लवतां बहुमान. सहित रुचि पण वधे हो लाल ॥ स ॥ रुचि अनुयायी वीर्य, चरण धारा सधे हो लाल॥च॥६॥ दायोएशमिक गुण सर्व, थया तु ऊ गुण रसी हो लाल ॥२०॥ सत्ता साधन शक्ति. व्य क्तता ननसी हो लाल ॥ व्यं० ॥ हवे संपूरण सिह, तणीशी वार ने हो लाल॥त॥ देवचं जिनराज, जगत आधार उ होलान ॥ जग ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ दशम श्रीशीतलजिनस्तवनं ॥ ॥ आदर जीव मागुण आदर ॥ ए देशी ॥
॥ शीतलजिनपति प्रजुता प्रनुनी, मुफथी कहिय न जाय जी ॥ अनंतता निर्मलता पूरणता, ज्ञान वि ना न जणाय जी॥१॥शी ॥ चरम जलधि जल मिणे अंजली, गति कींपे अति वाय जी ॥ सर्व श्रा काश उलंघे चरणे, पण प्रनुता न गणाय जी ॥ ।। २ ॥ शी० ॥ सर्व इव्य प्रदेश अनंता, तेहथी गु
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(५१७) ए पर्याय जी ॥ तास वर्गथी अनंत गुणुं प्रनु,केवल झान कहाय जी ॥३॥शी० ॥ केवल दर्शन एम अ नंतो,ग्रहे सामान्य स्वनाव जी॥ स्वपर अनंतथीच रण अनंतो, स्वरमण संवर नाव जी ॥४॥शी॥ व्यदेव ने काल नाव गुण,राजनीति ए चार जी॥ त्रास विना जड चेतन प्रनुनी,कोइ न लोपे कार जी ॥ ५॥ शी०॥ गुदाशय थिर प्रनु उपयोगें, जे समरे तुज नाम जी॥ अव्याबाध अनंतो पामे, परम अमृ त सुख धाम जी ॥ ६ ॥ शी० ॥ आणा ईश्वरता नि नयता,निर्वाडकता रूप जी ॥ नाव स्वाधीन ते अव्य य रीतें,इम अनंत गुण नूप जी॥ ७ ॥शी॥ अव्या बाध सुख निर्मल तेतो, करण झाने न जणाय जी॥ तेहज एहनो जाणंग जोक्ता, जे तुम सम गुण राय जी ॥ ७ ॥ शी ॥ एम अनंत दानादिक निजगुण, वचनातीत पंकुर जी ॥ वासन नासन नावें उर्तन, प्रापती तो अति दूर जी ॥ए॥ शी॥ सकल प्रत्यद पणे त्रिजुवन गुरु, जाणुं तुज गुण ग्राम जी ॥ बीजुं कांश न मागुं स्वामि,एहिजडे मुफ काम जी॥१०॥शी एम अनंत प्रनुता सर्दहतां,अर्चे जे प्रनु रूप जी॥देव चंड पनुता ते पामे,परमानंद स्वरूप जी॥११॥शी॥
॥ अथ एकादश श्रीश्रेयांसजिनस्तवनं ॥
॥ प्राणी वाणी जिनतणी॥ ए देशी॥ ॥ श्रीश्रेयांस प्रनु तणो, अति अनुत सहजानंद रे॥ गण एकविध त्रिक परणम्यो, एम गुण अनंत
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( ५१८ )
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नो वृंद रे ॥ १ ॥ मुनिचंद जिणंद मंद दिांद परें, नित्य दीपतो सुख कंद रे ॥ ए यांकणी ॥ निज ज्ञा नें करी ज्ञेयनो, ज्ञायक ज्ञाता पद ईश रे || देखे नि ज दर्शन करी, निज दृश्य सामान्य जगीश रे || ॥ २ ॥ मु० ॥ निज रम्यें मण करो, प्रजु चारित्रे रम ता राम रे ॥ जोग अनंत जोगवो. जोगें तेणें जो का स्वाम रे ॥ ३ ॥ मु० देय दान नित दीजते, प्रति दाता प्रभु स्वयमेव रे ॥ पात्र तुम्हें निज शक्ति ना, ग्राहक व्यापकमय देव रे ॥ ४ ॥ मु० ॥ परिपा मिक कारज तणो, करता गुण करणे नाथ रे ! कि यय स्थितिमयी निकलंक त्र्यनंती प्राथ रे || ॥ ५ ॥ मु० ॥ परिणामिक सत्ता तणो, याविर्भाव वि लास निवास रे ॥ सहज रुत्रिम पराश्रयी, नि विकल्प ने निःप्रयास रे ॥ ६ ॥ मु० ॥ प्रभु प्रभुता संना रत, गातां करतां गुणग्राम रे ।। सेवक साधनता वरे, निज संवर परिणति पाम रे ॥ ७ ॥ मु०॥ प्रगट तत्त्वता ध्यावतां, निज तत्त्वनो ध्याता याय रे ॥ तत्त्वरमण एकाग्रता, पूरण तत्त्वें एह समाय रे ॥ ८ ॥ मु० ॥ प्रभुं दीवे मुक्त सांजरे, परमातम पूर्णानंद रे ॥ देवचं 5 जिन राजना, नित्य वंदो पय अरविंद रे ॥ ॥ मु० ॥ ॥ अथ द्वादश श्रीवासुपूज्य जिनस्तवनं ॥ | पंथीडो निहालुं रे बीजा जिनतणो रे । ए देशी ॥
11 पूजना तो कीजें रे बारमा जिन तणी रे, जसु प्रगट्यो पूज्य स्वनाव | परकृत पूजा रे जे वे नहीं
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( ५१५)
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रे, साधक कारज दाव ॥ १ ॥ पू० ॥ इव्यथी पूजा रे कारण जावनुं रे, जाव प्रशस्त ने शुद्ध ॥ परम 5 ष्ट वल्लन त्रिभुवन धणी रे, वासुपूज्य स्वयंबु-६ ॥ २ ॥ पू० ॥ अतिशय महिमा रे प्रति उपगारता रे, निर्म
प्रभु गुण राग ॥ सुरमणि सुरघट सुरतरु तुं बते रे. जिन रागी महाभाग ॥ ३ पू० ॥ दर्शन ज्ञाना दिक गुण आत्मना रे, प्रभु प्रज्ञता लय लीन ॥ शु 5 स्वरूपी रूपें तन्मयी रे, तसु यास्वादन पीन ॥ ॥ ४ ॥ ० ॥ शुद्ध तत्त्व रस रंगी चेतना रे, पामे आत्म स्वभाव ॥ आत्मानंवी निज गुण साधतो रे, प्रगटे पूज्य स्वभाव ॥ ५ ॥ पू० ॥ श्राप कर्त्ता से वाथी दुवे रे सेवक पूरण सिद्धि || निज धन न दी ये पण आश्रित लहे रे, य र क६ि ॥ ६ ॥ पू० ॥ जिनवर पूजा रें ते निज पूजना रे. प्रगटे न्वय शक्ति || परमानंद विलासी नुनवे रे, देवचंद पद व्यक्ति ॥ ७ ॥ पू० ॥ इति ॥
॥ अथ त्रयोदशश्री विमलजिनस्तवनं ॥
॥ दास अरदास शी परें करे जी ॥ ए देशी ॥ ॥ विमलजिन विमलता ताहरी जी, अवर बीजे न कहाय ॥ लघु नदी जिम तिम लंघीयें जी, स्वयंनू रमण न तराय ॥ १ ॥ वि० ॥ सयल पुढवी गिरिज ल तरुजी, कोइ तोले एक हाथ ॥ तेह पण तुज गु ण गण नणी जी, जांखवा नही समरथ ॥ २ ॥ वि० सर्व पुजल नन धर्मना जी, तेम धर्म प्रदेश ||
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(420)
तास गुण धर्म पक्व सहु जी, तुऊ गुण एक तणो देश ॥ ३ ॥ वि० ॥ एम निज नाव अनंतनी जी, अस्तिता केटली थाय ॥ नास्तिता स्वपर पद अस्ति ताजी, तुक समकाल समाय ॥ ४ ॥ वि० ॥ ताह रा शुद्ध स्वनावने जी, यादरे धरी बहु मान ॥ तेह ने तेहीज नीपजे जी, ए कोई अद्भुत तान ॥ ५ ॥ वि० ० ॥ तुम्ह प्रभु तुम्ह तारक विजुजी, तुम समो अवर न कोय ॥ तुम दरिसथकी हूं तस्यो जी, शुद्ध आलंबन होय ॥ ६ ॥ वि० ॥ प्रनुतणी विमलता लखी जी, जे करे थिर मन सेव ॥ देवचं पद ते लहे जी, विमल यानंद स्वयमेव ॥ ७ ॥ वि० ॥ इति ॥ ॥ अथ चतुर्दश श्री अनंत जिन स्तवनं ॥ ॥ दीठी हो प्रभु दीवी जगगुरु तुक | ए देश । ॥ ॥ मूरति हो प्रभु मूरति अनंत जिणंद, ताहरी हो प्रभु ताहरी मुक नयणे वसी जी ॥ समता हो प्रनु समता रसनो कंद, सहेजें हो प्रभु सहेजें अनुभव रस लसी जी ॥ १ ॥ जवदव हो प्रतु नवदव तापित जी व, तेहने हो प्रभु तेहने अमृतघनसमी जी ॥ मि च्याविष हो प्रभु मिथ्याविषनी खीव, हरवा हो प्रभु हरवा जांगुलि मन रमी जी ॥ २॥ नाव हो प्रभु नाव चिंतामणि एह, खतम हो प्रभु खातम संपति या पवा जी ॥ एहिज हो प्रभु एहिज शिवसुखगेह, तत्त्व हो प्रभु तत्वालंबन थापवा जी ॥ ३ ॥ जाये हो प्रभु जाये याश्रव चाल, दीठे हो प्रतु दीठे संवरता वधे
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( ५२१ ) जी ॥ रत्न हो प्रभु रत्नत्रयी गुणमाल, अध्यातम् हो प्र अध्यातम साधन सधे जी ॥ ४ ॥ मोठी हो प्रभु मीठी सूरत तुऊ, दीवी हो प्रभु दीठी रुचि बहु मानथी जी ॥ तुऊ गुण हो प्रभु तुऊ गुण जासन यु क्त, सेवे हो प्रभु सेवे तसु जव जय नथी जी ॥ ५ ॥ नामें हो प्रभु नामें अद्भुत रंग, ठवणा हो प्रनु ठवणा दीठे नसें जी ॥ गुण यास्वाद हो प्रभु गुण यास्वा द अनंग, तन्मय हो प्रनु तन्मयतायें जे धसे जी ॥ ६ ॥ गुणअनंत हो प्रभु गुणनंतनो वृंद, नाथ हो प्रभु नाथ अनंतने यादरे जी ॥ देवचंद हो प्रभु देवचंइने खानंद, परम हो प्रनु परम महोदय ते वरे जी ॥ 9 ॥ इति ॥
॥ अथ पंचदश श्रीधर्म जिन स्तवनं ॥ ॥ सफल संसार अवतार ए हुं गणुं ॥ ए देशी ॥ ॥ धर्म जगनाथनो धर्म शुचि गाइयें, आपणो या तमा तेहवो जावियें || जाति जसु एकता तेह पलटे नहिं, शुद्ध गुण पड़वा वस्तु सत्तामयी ॥ १ ॥ नि त्य निरवयव वलि एक व्यक्क्रिय पणे, सर्व गत तेह सामान्य जावें जणे || तेहथी इतर सावयव विशेष ता, व्यक्तिनेर्दे पडे जेहनी नेदता ॥ २ ॥ एकता पिं मने नित्य विनाशता, अस्ति निज ऋद्धिथी कार्य गत जेदता ॥ नाव श्रुत गम्य अनिलाप्य अनंतता, जव्य पर्यायनी जे परावर्त्तता ॥ ३ ॥ क्षेत्र गुण नाव विभाग अनेकता, नाश उत्पाद अनित्य पर नास्तिता ॥ क्षेत्र व्याप्यत्व खनेद अव्यक्तता, वस्तु
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(५२२) ते रूपथी नियत अनव्यता ॥ ४॥ धर्म प्रागजावता सकल गुण गुरुता, नोग्यता कर्तृता रमण परिणा मता ॥ शुक्ष स्वप्रदेशता तत्त्व चैतन्यता, व्याप्य व्या. पक तथा ग्राह्य ग्राहक गता ॥ ५॥ संग परिहारथी स्वामी निज पद लघु, शु३ आत्मिक आनंद पद संग्रह्यं ॥ जहवि परजावर्थ हूं नवोदधि वस्यो. परत गो संग संसारतायें ग्रस्यो॥ ६॥ तहवि सना गुणें जीव ए निर्मलो, अन्य संश्लेष जिम फिटक नवि शामलो ॥ जे परोपाधिथी दुष्ट परिणति ग्रही, नाता दात्म्यमां माहरूं ते नहीं॥ ७ ॥ तिणे परमात्म प्रनु नक्ति रंगी थई, शु६ कारणरसं तत्त्व परिणति मयी। आत्मग्राहक थये तजे पर ग्रहणता, तत्त्व जोगी थयेटले परनोग्यता ॥ ७ ॥शु निःप्रयास निजनाव जोगी यदा, आत्मदेत्रे नही अन्य रण तदा ॥ एक असहाय निस्संग निहता,शक्ति नुत्सर्गनी होय सदु व्यक्तता॥णातेरो मुफ पातमा तुकथकी नीपजे, मा हरी संपदा सकल मुफ संपजे॥ तिणे मन मंदिरें धर्म प्रनु ध्यायें,परम देवचं निज सिदिसुख पाईयें॥१०॥ ॥अथ षोडश श्रीशांति जिन स्तवनं ॥
माला किहां रे ॥ एदेशी ॥ ॥ जगत दिवाकर जगत कृपानिधि, वाल्हा मारा समवसरणमां बेठा रे॥चनमुख चनविह धर्म प्रकासे, ते में नयणें दीवा रे॥१॥ नविक जन हरखो रे, नि रख शांतिजिणंद ॥ न ॥ उपशमरसनो कंद, नहिं
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( ५२३ )
इस सरिखो रे ॥ ए प्रकरणी ॥ प्रातिहारज प्रतिश य शोना ॥ वा० ॥ ते तो कहिय न जावे रे ॥ घूक बालकथी रवि करनरनुं, वर्णन के लि परें थावे रे ॥ ॥ २ ॥ ज० ॥ वाणी गुण पांत्रीश अनोपम ॥ वा ॥ विसंवाद सरूपें रे । जव डख वारण शिव सुख कारण, सुधो धर्म प्ररूपे रे ॥ ३ ॥ ज० ॥ दक्षिण प श्चिम उत्तर दिशि मुख ॥ वा० ॥ ववणाजिन नपगा रीरे ॥ सुप्रालंबन लहिय अनेकें, तिहां थया स मतिधारी रे ॥ ४ ॥ ज० ॥ खट नय कारय रूपें ठ वा ॥ वा० ॥ सग नय कारण ठाणी रे ॥ निमित्त समान थापना जिन जी, ए श्रागमनी वाणी रे ॥ ५॥ ॥ ज० ॥ साधक तीन निदेपा मुख्य ॥ वा० ॥ जे वि
नाव न लहीयें रे || उपगारी डुग नाष्यें नांख्या, जाव वंदकनो ग्रहीयें रे ॥ ६ ॥ ज० ॥ ववणा समव सरणें जिनसेंती ॥ वा० ॥ जो अनेदता वाधी रे || ए तमना स्वस्वनाव गुण, व्यक्त योग्यता साधी रे ॥ ७ ॥ ज० ॥ ननुं ययुं में प्रभु गुण गाया || वा० ॥ रसनानुं फल लीधो रे ॥ देवचंद कहे माहरा मननो सकल मनोरथ सीधो रे ॥ ८ ॥ ज० ॥ इति ॥
॥ अथ सप्तदश श्री कुंथुजिनस्तवनं ॥ चरम जिनेसरू || ए देश | ॥
॥ समवसरण बेसी करी रे, बारह परखद मांहि ॥ वस्तु स्वरूप प्रकाशता रे, करुणाकर जग नाहो रे ॥ १ ॥ कुंथुजिनेसरू ॥ निर्मल तुऊ मुख वाली रे, जे श्रव
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( ५२४ )
मेें सु ॥ ते हिज गुणमणि खाणी रे ॥ कुं० ॥ ए यांकणी ॥ गुण पर्याय अनंतता रे, वली स्वभाव अगाह ॥ नय गम जंग निदेपना रे, हेयादेय प्रवाहो रे ॥ २ ॥ कुं० ॥ कुंथुनाथ प्रभु देशना रे, साधन साधक सिद्धि ॥ गौण मुख्यता वचनमां रे, ज्ञान ते सकल समृद्धि रे ॥ ३॥ ॥ कुं० ॥ वस्तु अनंत स्वभाव बे रे, अनंत कथक त सुं नाम ॥ ग्राहक अवसर बोथी रे, कवे अर्पित कामो रे ॥ ४ ॥ कुं० ॥ शेष नर्पित धर्मने रे, सापे द श्राबोध ॥ जय रहित नासन दुवे रे, प्रगटे के वल बोधो रे ॥ ५ ॥ कुं० ॥ बति परपति गुण वर्त्तना रे, जासन जोग यानंद ॥ समकालें प्रभु ताहरे रे, र म्य रमण गुण वृंदो रे ॥ ६ ॥ कुं० ॥ निजनावें । अस्तिता रे, परनास्तित्व स्वभाव ॥ यस्तिपणे ते नास्तिता रे, शीय ते उजय स्वभावो रे ॥ ७ ॥ कुं० ॥ अस्ति स्वभाव जे आपणो रे, रुचि वैराग्यसमेत ॥ प्रभु सन्मुख वंदन करी रे, मागिश यातमहतो रे ॥ ८ ॥ कुं० ॥ अस्ति स्वभाव रुचि थई रे, ध्यातो अस्ति स्वाव ॥ देवचं पद ते लहे रे, परमानंद ज मावो रे ॥ ए ॥ कुं० ॥ इति ॥
॥ अथ अष्टादश श्रीअर जिनस्तवनं ॥ राम चंडके बाग ॥ ए देश । ॥
॥ प्रणमो श्री अरनाथ, शिवपुर साथ खरो री ॥ त्रिभुवन जन आधार, जव निस्तार करो री ॥१॥ क र्ता कारण योग, कारज सिद्धि लहेरी ॥ कारण चार
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(५२५) अनूप, कार्यार्थि तेह ग्रहे री॥॥ जे कारण ते का र्य, थाए पूर्ण पदें री ॥ उपादान ते हेतु, माटी घट ते वदे री ॥ ३ ॥ उपादानथी निन्न, जे विषु कार्य न थाये ॥ न दुवे कारज रूप,कर्त्ताने व्यवसाये ॥ ४ ॥ कारण तेह निमित्त, चकादिक घट नावें ॥ कार्य तथा समवाय, कारण नियत ने दावे ॥ ५॥ वस्तु अनेद स्वरूप, कार्यपणुं न ग्रहे री॥ते असाधारण हेतु, कुंनें स्थास लहे री॥६॥ जेहनो नवि व्या पार, निन्न नियत बहुनावी ॥ नूमि काल आकाश, घट कारण सदनावी ॥ ७ ॥ एह अपेदा हेतु, या गममांहि कह्यो री ॥ कारण पद उतपन्न, कार्य थये न लह्योरी॥॥कर्ता आतम इव्य,कारज सिदिपणो री॥ निज सत्तागत धर्म, ते नपादान गणोरी॥॥ योग समाधि विधान, असाधारण तेह वदे री॥ विधि आचरणा नक्ति, जिणे निज कार्य सधे री॥१०॥ नरगति पढम संघयण, तेह अपेदा जाणो ॥ निमि ताश्रित नपादान, तेहने लेखे आणो ॥११॥ निमित्त हेतु जिनराज,समता अमृत खाणी ॥ प्रनु अवलंबन सिदि.नियमा एह वखाणी॥१शा पुष्ट हेतु अरनाथ, तेहने गुणथी हलियें ॥रीफ नक्ति बहुमान,नोग ध्या नथी मलियें ॥ १३॥ मोहोटाने नत्संग, बेगने शी चिंता ॥ तिम प्रनु चरण पसाय, सेवक थया निचिंता ॥ १४ ॥ अर प्रनु प्रनुता रंग,अंतर शक्ति विकासी॥ देवचंने थानंद, अक्ष्य नोग विलासी॥१५॥इति॥
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(५२६) ॥अथ एकोनविंश श्रीमत्रिजिनस्तवनं ॥ देखी कामिनी दोय, के कामें व्यापीयो रे के का० ॥ए देशी॥
॥ मन्निनाथ जगनाथ, चरण युग ध्यायें रे॥ ॥च० ॥ शुभातम प्रागनाव, परम पद पाश्ये रे ॥ प०॥साधक कारक पट्क करे गुण साधना रे ॥२०॥ तेहिज शुभ स्वरूप, थाये भरावाधना रे ॥ था० ॥ ॥१॥ कर्ता आतम इव्या, कारज निज सिहता रे॥ ॥ का० ॥ नपादान परिणाम, प्रयुक्त त करणता रे ॥ ॥प्र॥आतम संपद दान, तेद संप्रदानता रे ॥१०॥ दाता पात्रने देय, त्रिनाव अनेदता रे॥त्रि ॥२॥ स्वपर विवेचन करण, तेह अपादानथी रे ॥ ते ॥ सकल पर्याय आधार, संबंध प्रस्थानथी रे॥ सं॥ बाधक कारक नाव, अनादि निवारवा रे॥०॥साध कता अवलंबी, तेह समारवा रे ॥ ते०॥३॥ शुद्ध पणे पर्याय, प्रवर्तन कार्यमें रे॥प्र० ॥ कर्तादिक परि गाम, ते आतम धर्ममें रे ॥ ते॥चेतन चेतन नाव, करे समवेतमें रे ॥ क० ॥ सादि अनंतो काल, रहे निज खेतमें रे ॥ २० ॥४॥ परकर्तृत्व स्वनाव, करे तां लगि करे रे ॥क० ॥ शुभ कार्य रुचि नास, थये नवि आदरे रे ॥ थ० ॥ शुभातम निज कार्य, रुचि कारक फिरे रे ॥ रु०॥ तेहिज मूल स्वनाव, ग्रहे निज पद वरे रे ॥ ग्र० ॥ ५ ॥ कारण कारज रूप, अछे कारक दशा रे ॥०॥ वस्तु प्रेगट पर्याय, ए ह मनमें वस्या रे ॥ ए०॥ पण शुसरूप ध्यान, ते
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(५२७) चेतनता ग्रहे रे ॥ते॥ तव निज साधक जाव, सक ल कारक लहे रे ॥ स०॥ ६ ॥ माहरूं पूर्णानंद, प्र गट करवा जणी रे ॥प्र॥ पुष्टावन रूप, सेव प्रनु जी तणी रे ॥से० ॥ देवचंद जि चंड, जगति मनमें धरो रे ॥०॥ अव्याबाध अरत, अक्ष्य पद आद रो रे ॥ अ ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ विश श्रीमुनिसुव्रतजिनस्तवनं ॥ लंगडी उलं
गडी सुहेली हो श्रीश्रेयांसनी रे ॥ ए देशी॥
॥उलंगडी लंगडी तो कीजें श्रीमुनिसुव्रतस्वामि नी रे, जेहया निज पद सिदि॥ केवल केवल झा नादिक गुण उनसे रे, लहीयें सहज समृदि॥१॥ ।।०॥ उपादान नपादान निज परिणति वस्तुनी रे, पण कारण निमित्त आधीन ॥ पुष्ट अपुष्ट छविध ते नपदिस्यो रे, ग्रादक विधि आधीन ॥२॥३०॥सा ध्य साध्य धर्म जेमांही दुवे रे, ते निमित्त अति पुष्ट ॥ पुष्प पुष्पमांहि तिल वासक वासना रे,नवि प्रध्वंसक उष्ट ॥ ३ ॥ ३० ॥ दंम दंम निमित्त अपुष्ट घडा त यो रे, नवि घटता तसु मांहि ॥ साधक साधक प्र ध्वंसकता थडे रे, तिणे नही नियत प्रवाह ॥ ४ ॥ ॥॥खट कारक खट कारक ते कारण कार्यनां रे,जे कारण स्वाधीन ॥ ते कर्त्ता ते कर्त्ता सदु कारक ते वसु रे, कर्म ते कारण पीन ॥ ५ ॥30॥ कारण कारण संकल्प कारक दशा रे, बति सत्ता सदनाव ॥ अथवा अथवा तुल्य धर्मने जोयवे रे, साध्यारोपण दाव ॥६॥
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(५२) ॥३०॥ अतिशय अतिशय कारण कारक करणता रे, निमित्त अने नपादान ॥ संप्रदान संप्रदान कार । पद नवनथी रे, कारण व्यय अपादान ।। ७ ॥ ॥10॥ नवन नवन व्यय व कारज नवि दुवे रे, जिम दृषदें न घटत्व ॥ शुधार शुझाधार स्वगुण नुं इव्य रे, सत्ताधार सुतच ॥ ७ ॥10॥ आतम आतम कर्ता कारज सिना रे, तसु साधन जिन राज ॥ प्रनु दीप्रनु दीठे कारज रुचि नपजे रे, प्रगटे आत्म समाज । ए॥॥ वंदन वंदन से वन नमन वलि पूजना रे, समरण स्तवन वली ध्या न ॥ देवचंड देवचंद कीजें जिनराजनी रे, प्रगटे पू निधान ॥ १० ॥ ३० ॥ इति ॥ ॥अथ एकविंश श्रीनमिजिन स्तवनं ॥ पीबोलारी
पाल, उना दोय राजवी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीनमिजिनवर सेव, घनाघन उनम्यो रे॥१॥ दीनां मिथ्यारोर, नविक चित्तथी गम्यो रे ॥नम् ॥ श्रुचि आचरणा रीति ते, अन वधे वडां रे ॥ ते ॥
आतम परिणति गुरू,ते वीज बूकडा रे॥ते वी॥१ वाजे वाय सुवाय, ते पावन नावना रे॥ ते ॥ धनुर त्रिक योग, ते नक्ति इक मना रे ॥ ते० ॥ नि मल प्रनु स्तव घोष, ध्वनि घनगर्जना रे ॥ ध्व०॥ तृ षणा ग्रीपम काल, तापनी तर्जना रे ॥ ता० ॥२॥ शुन लेश्यानी आलि, ते बगपंकति बनी रे ॥ ते ॥ श्रेणी सरोवर हंस, वसे शुचि गुण मुनी रे ॥ व०॥
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( ५१५)
चनगति मारग बंध, नविक जन घर रह्या रे ॥ ज० ॥ चेतन समता संग, रंगमें उमद्या रे ॥ रं० ॥ ३ ॥ स म्यक् दृष्टि मोर, तिहां हरखे धणुं रे ॥ ति० ॥ देखी अद्भुत रूप, परम जिनवर तणुं रे ॥ प० ॥ प्रनुगुण नो उपदेश, ते जलधारा वही रे || ते० ॥ धरम रु चि चित्त भूमि, मांहि निश्चल रही रे || मां० ॥ ४ ॥ चातक श्रमण समूह, करे तव पारणो रे ॥ क० ॥ अनुभव रस यास्वाद, सकल दुःख वारयो रे || स० ॥ अनाचार निवारण, तृण अंकूरता रे ॥ तृ० ॥ विरतितला परिणाम, ते बीजनी पूरता रे ॥ ते० ॥ ५ ॥ पंच महाव्रत धान्य, तणां कर्षण वध्यां रे ॥ त० ॥ साध्य जाव निज थापी, साधनताएं सध्या रे || कायिक दरिस ग्यान, चरण गुण उपना रे ॥ च० ॥ प्रादिक बहुगुण सस्य, आतम घर नीपना रे ॥ खा० ॥ ६ ॥ प्रनुदरिस महामेह, तणे परवेश में रे ॥ त० ॥ परमानंद सुनिन्छ, थया मुऊ देशमें रे ॥ ८० ॥ देवचंद जिनचंद, तणो अनुभव करो रे ॥ त० ॥ सा दि अनंत काल, खातम सुख अनुसरो रे ॥ श्र० ॥ ७ ॥ ॥ अथ द्वाविंशश्रीने मनायजिन स्तवनं ॥ ॥ पद्मप्रनजिन जइ लगा वस्या | ए देशी ॥ ॥ नेम जिलेसर निज कारज करयुं, बांमयो सर्व विनात्रो जी ॥ प्रातमशक्ति सकल प्रगटी करी, या स्वाद्यो निजनावौ जी ॥ १ ॥ ने० ॥ राजुल ना री रे सारी मति धरी, अवलंब्या अरिहंतो जी ॥ उत्त
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(५३०) म संगें रे उत्तमता वधे, सधे आनंद अनंतो जी॥ २ ॥ ने ॥धर्म अधर्म अाकाश अचेतना, ते विजा ती अग्राह्यो जी॥ पुजल ग्रहवे रे कर्मकलंकता, वा घे बाधक बाह्यो जी॥३॥ ने॥रागी संगें रे रागदशा वधे, थाये तिणे संसारो जी॥ नोरागीथी रे रागर्नु जोडवू, लहीयें नवनो पारो जी ॥ ४ ॥ ने ॥ अप्र शस्तता रे टालि प्रशस्तता,करतां आश्रव नासे जी॥ संवर वाधे रे साधे निर्जरा, आतमनाव प्रकासे जी॥५॥ने । नेमिनु ध्याने रे एकत्वता, निज तत्त्वें एकतानो जी॥ गुक्तध्याने रे साधि सुसिहता, सहियें मुक्ति निदानो जी ॥ ६ ॥ ने० ॥ अगम अ रूपी रे अलख अगोचरू, परमातम परमीशो जी । देवचं जिनवरनी सेवना, करतां वाधे जगीशो जी॥७ ॥अथ त्रयोविंश श्रीपार्श्वजिनं स्तवन।कडखानी देशी।
॥सहज गुण आगरो, स्वामी सुख सागरो, ज्ञान वैरागरें प्रनु सवायो ॥ शुद्धता एकता, तीक्ष्णता जावथी, मोह रिपु जीति जय पडह वायो॥ १ ॥ ॥ स ॥ वस्तु निज नाव,अविनास निकलंकता,परि गति वृत्तिता करि अनेदें ॥ जावतादात्म्यता, शक्ति नहलासथी, संतति योगने तुं उल्लेदे ॥ २ ॥ स० ॥ दोष गुण वस्तुनी, लखिय यथार्थता, लहि उदासी नता अपर जावें ॥ ध्वंसितङन्यता, नाव कर्त्ताप, परम प्रनु तूं रम्यो निज स्वनावें ॥३॥ स० ॥ गुन अशुन जाव, अविनास तहकीकता, गुन अशुन
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(५३१) नाव तिहां प्रनु न कीयो । गुरु परिणामता, वीर्य कर्ता थई, परम थकीयता अमृत पीधो॥४॥ स॥ शुक्ता प्रनु तणी, यात्मनावें रमे, परम परमात्मता तास थाये ॥ मिश्र नावें अने, त्रिगुणनी निन्नता, त्रि गुण एकत्व तुऊ चरण आये ॥५॥स ॥ उपशम रस नरी, सर्व जन संकरी, मूर्ति जिनराजनी आज नेटी॥ कारणें कार्य निष्पत्ति श्रदान ने, तिणे नव चमणनी जीड मेटी ॥ ६ ॥ स ॥ नयर खंजायतें, पार्श्वप्रनु दर्शनें, विकसते हर्ष उत्साह वाध्यो ॥ हेतु एकत्वता रमण परिणामथी, सिदि साधकपणो आ ज साध्यो ॥ ७ ॥ स० ॥याज कृत पुण्य, धन दोह माहारो थयो, आज नर जनम में सफल नाव्यो । देवचं स्वामि त्रेवीशमो वंदीयो, नक्ति जर चित्त तुऊ गुण रमाव्यो ॥ ॥ स० ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीमहावीर जिन स्तवनं ॥ कडखानी देशी॥
॥तार हो तार प्रनु, मुफ सेवक नणा, जगतमां एटर्बु सुजश लीजें ॥ दास अवगुण जयो, जाणी पोता तणो,दयानिधि दीन पर दया कीजें ॥१॥ता॥ राग थे नस्यो, मोह वैरी नज्यो, लोकनी रीतिमां घणुये रातो॥क्रोधवश धमधम्यो, गुम गुण नवि र म्यो, जम्यो नवमांहि हुँ विषय मातो॥२॥ता०॥ आदरयुं आचरण, लोक उपचारथी, शास्त्र अन्यास पण काई कीधो । शुक्ष श्रदान वत्ति, अात्म अवलंब विनु, तेहवो कार्य तिणे को न सीधो ॥३॥ ता० ॥
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(५३२) स्वामि दरिसण समो, निमित लही निर्मलो,जो उपा दान ए शुचि न थाशे ॥ दोष को वस्तुनो, अहवाल यम तणो, स्वामी सेवा सही निकट लाशे ॥ ४ ॥ ॥ ता० ॥ स्वामि गुण उलखी, स्वामिने जे नजे,दरि सण शुक्ता तेह पामे ॥ ज्ञान चारित्र तप, वीर्य न नासथी, कर्म जीपी वसे मुक्तिधामें ॥५॥ ता० ॥ जग त वत्सल, महावीर जिनवर सुणी,चित्त प्रनु चरणने शरण वास्यो॥ तारजो बापजी, बिरुद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो ॥ ६ ॥ ता० ॥ वीनति मानजो, शक्ति ए यापजो, नाव स्याहादता शुरू ना से ॥ साधि साधक दशा, सिता अनुनवी, देवचं विमल प्रनुता प्रकासे॥ ७ ॥ ता० ॥ इति ॥
कलशाचोवीसे जिनगुण गायें, ध्याश्य तत्त्वस रूपो जी ॥ परमानंद पद पायें,अक्ष्य ग्यान अनुपो जी॥१॥ चो० ॥ चवदहमें बावन जला, गणधर गु ग नंमारो जी ॥ समतामयि सादु साहुणी, सावय सावई सारो जी॥ २ ॥ चो० ॥ वईमान जिनवर तणो, शासन अति सुखकारो जी ॥ चनविह संघ वि राजतां, दूसम काल वाधारो जी॥३॥ चो० ॥ जि न सेवनथी ज्ञानता, लहे हिताहित बोधो जी ॥ थ हित त्याग हित चादरे, संयम तपनी शोधो जी॥ ॥ ४ ॥ चो० ॥ अनिनव कर्म यग्रहणता, जीर्ण क मै अनावो जी ॥ निःकर्मीने अबाधता,अवेदन अना कुलनावो जी॥ ५ ॥ चो॥जावरोगना विगमथी,
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(५३३) अचल अक्ष्य निराबाधो जी ॥ पूर्णानंद दशा सही, विलसे सिम समाधो जी॥ ६ ॥ चो० ॥ श्री जिनचं इनी सेवना, प्रगटे पुण्यप्रधानो जी ।। सुमति सागर अति उनसे, साधुरंग प्रनुध्यानो जी॥ ७ ॥ चो० ॥ सुविहित गब खरतरवरू, राजसागर उवकायो जी ॥ ज्ञानधर्म पाठक तणो, शिष्य सुजस सुखदायो जी ॥ ७॥ चो॥ दीपचंद पाठक तणो, शिष्य स्तवे जि नराजो जी ॥ देवचंद पद सेवतां, पूर्णानंद समा जो जी ॥ए ॥ चो० ॥ इति देवचंजीकत चतुर्विश तिजिन स्तवनं समाप्तम् ॥
॥अथ खंधकमुनिराजनुं चोढालियुं ॥ ॥ ढाल पहेली॥ नमूं वीर शासन धणी जी, गण घर गोयम स्वाम॥ कथाअनुसारें गायगुंजी,खंधकना गुणग्राम ॥ १ ॥मावंत जोय जगवंतनो जीझान ।। ॥ ए आंकणी ॥ अति दमा अधिकी करी जी,संजम धारी जी जान॥शिवमारगने कारणें जी,रहेता धरमने ध्यान ॥२॥ ० ।। त्वचा उतारी देहनी जी, रहेता समताजीनाव ॥ जिनधर्म कीधो दीपतोजी,महोटा ए मुनिराव ॥३॥०॥सावथि नगरी शोनतीजी, कनक केतु तिहां नूप ।। राणी मलयासुंदरी जी, खंधक कु मर अनूप ॥ ४ ॥६० ।। सघना अंगें सुंदर जी,इंडी नही एक हीण |प्रथम वयें चढती कला जी, चतुर कला प्रवीण ॥ ५ ॥ २० ॥ विजयसेन गुरु प्रावी या जी,साधु तणे परिवार ॥ ज्ञानगुणें कर आगला
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(५३४) जी, तपसी मारग सार ॥ ६ ॥ १०॥ नर नारि बदु तिहां मिली जी,साधू वांदण कोड । केशपाला केशपा लरव्यां जी, वंदे होडाहोड ॥७॥६० ॥ खंधक कुमर पण आवीयो जी,बेगे परखदा मांय ॥ मुनिवर दीधी देशना जी,सघलाने चितलाय॥॥॥आगारनेत्रण गारना जी, धर्म तणा दोय नंद ॥ समकित सहित व्रत आदरो जी, राखो मुगति उमेद ।। ए॥०॥ मान अणी जलबिंवो जी,पाळूपीपल पान॥ अथिर तन धन ए आन जी,तजो कपट ने मान ॥१०॥१०॥ विहडे सुतने बांधवो जी,विहडे सऊन पर्म ॥ कुटुंब पण विहडे सदु जी,नवि विहडे जिनधर्म ॥ ११ ॥ ॥६॥ आव्यो बे जीव एकिलो जी, वली एकिलो जी जाय॥बांध्यां कर्म जीवें जिस्यां जी,तिस्यां उदय दुवे प्राय ॥ १२ ॥ ६० ॥ पुण्यजोगें नरनव लह्यो जी, सदगुरुनो संयोग ॥ हवे टालो राखो मती जी,तजो जहेर जिम जोग ॥ १३ ॥ १० ॥ चारु गति संसा रना जी, लग रहि खांचाजी ताणाचल वस्तु सघली कही जी, निश्चल ने निरवाण ॥ १४ ॥ १० ॥ उदा सुखने कारणे जी,यो कंझी रांग ॥ नवनव मांहे काढिया जी,नटुवे वाला सांग ॥१५॥१०॥अथिर ए सुख संसारनां जी, कांई अलुको जाल ॥ वचन सुणी सदगुरु तणां जी, चेतो सुरत संजाल ॥१६॥ १० ॥ पं चमाहाव्रत आदरोजी, श्रावकनां व्रत बार ॥ कष्ठ प ज्या गाढा रहोजी, जिम पामो नव पार ॥ १७ ॥
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( ५३५) ६० ॥ धन धान्य घर हाटडी जी, ममता म करोजी कोय ॥ काचा सुखने कारणेजी, हासो जनम म खोय ॥ १७॥६० ॥ सगपण सदु संसारनां जी, थया अनंतीजी वार ॥ मिल मिलने विडडी गयांजी, करमज लागां सार ॥ १ए ।। ६० ॥ सगपण सद्ध संसारनां जी, स्वारथना बेजी एह ॥ जो स्वारथ पूगे नही जी, तटके तोडे नेह ॥ २० ॥६० ॥ नरक निगोदमें कुःख सह्यां जी, दन नेदन ऽनेक ॥ तोप ण धोठा जीवने जी, सुरत नहीं ले रेक ॥ १ ॥ ॥ १० ॥ उगबाजी मामी घणी जी, चाडी चुगली जी खाय ।। करम उदय बायां थकांजी, पडे गलामां आय ॥ २२ ॥ ॥ इस्या उखें करपे नही जी, चेतो तुमें जव्य जीव ।। झानादिक आराधीने जी,तुमें व्यो मुगतनी नीव ॥२॥ १० ॥ दिलमा दया विचा रीने जी,बांमोजी खांचा ताण॥ाझा सहित किरिया करो जी, ए जीवित परमाण ॥२॥ ॥ मुगति तो निश्च मिले जी,कदा रे रहे जाय ॥ देवलोक वासो वसे जी, सुख घणां तिए ताय ॥ २५ ॥ १० ॥ वाणी सुणि साधु तणी जी, कुमर जोड्या बेदु हाथ ॥ वचन तुमारां सर्दयां जी, जली करी कृपा नाथ ॥ २६ ॥ ॥ १० ॥ मातपिताने पूजीने जी, लेगुं संजम नार ।। वलता मुनिवर श्म कहे जी, म करो ढील लगार ।। ॥२७॥॥ घरे आवो कहे मातने जी,यो अनु मति आदेश ॥ संजम लेई हूं सुखी जी, काटूं करम
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कलेश ॥ २८ ॥ ६० ॥ वचन सुयां सुतनां इस्यां जी, धरणि ढली बेजी माय ॥ सावधान हुने करयुं जी, इसी म काढो वात ॥ कुमरजी, संजम विषम अपार ॥ १|| संजम बे व दो हिलो जी, जिसी खांमानीजी धार ॥ पाय नवराणें चालवुं जी, लेवो शुद्ध श्राहार ॥ ३० ॥ || कु० ॥ सं० ॥ सुवचन कुवचन लोकनां जी, सहणा पडशेजी मार ॥ राजकुमर सुकुमाल बो जी, एह न करणी सार ॥ ३१ ॥ कु० ॥ सं० ॥ साधपं दोहिलुं कयुं जी, तिलमें फेर न कोय ॥ कायरने बे दोहितुं जी, शूराने नहि होय ॥ ३२ ॥ कु० ॥ सं० ॥ उत्तर पडुत्तर बहु दुवा जी, बाप बेटानेजी माय ॥ सूत्रमहे विस्तार बेजी, देजो चतुर लगाय ॥ ३३ ॥ || कु० ॥ सं० ॥ चितशुं दीधी यागना जी, करी महोटे मंा ॥ शिबिकामां बेसाडीने जी, सोंप्यो साधुने आए ॥ ३४ ॥० ॥ इष्ट त्यंत वालो हुतो जी, स्वामी महारे ए पुत्र ॥ मरियो जामण मरणथी जी, सोंप्यो तुम कर सुत ॥ ३५ ॥ ० ॥ सिंहपणे व्रत याद रोजी, पालजो सिंहनी जेम ॥ घणुं पराक्रम फोरजोजी, मात पिता कहे एम ॥ ३६ ॥ ० ॥ इम शीखामण देश कर जी, छाया जिस दिशि जाय ॥ खंधकने जने नावगूंजी, दीक्षा दिनी मुनिराय || ३७ ॥ ६० ॥ श्रागन्या मागी साधु तणी जी, सूत्र खरथ लिया धा र || जिनकलपी पणुं यादयुं जी, एकलमल अण गार॥ ३णाक्षणा मिलि शिरदार रायने कह्युं जी, ए नान
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(५३७) डियोजी बाल ॥ सिंहादिकना जय तणा जी,करवावो रखवाल ॥३॥०॥ पांचशे जोधा बोलावीने जी, दीया कुमरनेजीला।। ते साधुने खबर नहि जी,साथें वहे शिरदार ॥४०॥ १० ॥ सावथि नगरीयं चालियो जी, कुंती नगरीजी जाय ॥ नगरी बहिनोई तणी जी, शंक नाणी काय॥४१॥दाहा।। पां चेशे तिण अवसरें, खावा पीवा काज ॥ वलो वलीच लता रह्या, एकल रह्या मुनिराय ॥१॥ हवे किम करे गोचरी, उपसर्ग व्यापे केम ॥ एकमना था सांजलो, मुनी करे ने जेम ॥ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ तिण अवसर मुनिराय, कुंति नगरीमांहे,सकोमल साधु। वि हरण विरियां पांगुस्सा ए॥१॥ वाजे खूवर जाल, दाऊ पग सुकमाल ॥ सु० ॥ दो पहेराने तावडे ए ॥२॥ निरमोही निरमाय, रजा जोवंता जाय ॥ सु० ॥ गन तणी परें गोचरी ए॥३॥ सुसत उतावला नांहि, धीरज धरे मनमांहि ।। सु० ॥ गयवरनी परें मलप ताए ॥ ४ ॥ राय राणी तिण वार,रमतां पासा सा र ॥ सु० ॥ महेल तले मुनि श्राविया ए॥ ५ ॥प ड्यो हे रागीनी दिछ, खंधक महेलनी हे ॥ सु० ।। एतो दुवे माहरो बंधुवो ए ॥ ६ ॥ चिंता आवी पि हीर, नयरों छूटुं नीर ।। सु॥ विरह व्यापी चिंता थईए ॥ ७ ॥ राजा साहमो जोय, राणी श्म किम रोय ॥ सु० ॥ सुखमांहे उख किम दुवां ए ॥॥ साधुने जावतो देख, राजाने जाग्यो शेष ॥ सु० ॥
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(५३) ए ए करम एणे कियां ए॥ए । राणी दूती सुख मांय, रोवाडी ण ाय ॥ सु०॥ तो ए खबर साधु तणी ए॥१०॥राय विचारी गैर, जाग्यो पूरव वैर ।। ॥ सु० ॥ पाल नव काचर तणोए ॥ ११ ॥ मातुं विचार राय, मसाण नमि ले जाय ॥ सु० ॥ त्वचा उतारो एहनी ए॥ १२ ॥ राजा नफर बोलाय, वेगा जावो धाय । सु० ॥ण साधुने पकडी लीयो ए ॥ ॥ १३ ॥ मत करजो कांश कांण, ले जायजो सम साण ।। सु० ॥ सघली खाल उतारजो ए॥ १४ ॥ नफर सुगी श्म वाण, करी लीधी परमाण। सु० ॥ अजाण चक रा जायने ए ॥ १५॥ पकड्या मु निना हाथ, मसाण नूमि ले साथ ।। सु० ॥ खाल उतारवा देहनी ए ॥ १६ ॥ माहरो नही छे दोष,मुनि म करो को रोष ॥ सु० ॥ मरप्या षन समीकरें ए॥ १७ ॥ मसाण नूमिका मांय, काया दीधी वो सिराय ॥ सु०॥ चारू आहार त्यागी दीया ए॥१७॥ करडो आवी बन्यो काम, न कयुं आपणुं नाम ॥ सु० ॥ सगपण को दाव्युं नहि ए॥१॥रा ख्यो समता जाव, संजम ऊपर चाव ।। सु० ॥ मने करीने मोठ्या नही ए॥२०॥ तीखा पाबणानी धार, मसतक ऊपर प्रहार ॥ सु० ॥ खाल उतारी देहनी ए ॥ १ ॥ पगां सूधी खाल, रहिता संजममां नाल ॥ सु० ॥ नाके सल घाट्यो नही ए ॥ २३ ॥ रह्या ते रूडे ध्यान, पाम्यो केवल ज्ञान ॥ सु० ॥ क
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(५३) रम खपावी मुगतें गया ए ॥ २३ ।। केवल महिमा होय,धन धन करे सदु कोय ॥सुगा जिनमारगकियो दीपतो ए ॥ २४ ॥
॥ उहा ।। कुंती नगरीनी मध्ये, दुवोज हाहाका र ॥ देखो राय मरावीयो, विना गुने अपगार ॥१॥ लोक दुवा सदुथागला, जोर न चाले कोय॥मुनिने मोद सिधावणो, पण वैर न बोडे कोय॥ ॥ किम बफे पांचशे सुनट,वलि राणी ने राय ॥ वैर खबर कि ए विध पडे, ते सुजो चित्त लाय ॥ ३ ॥
॥ढाल त्रीजी॥धरम हिये धरो॥ए देशहजी साधु आयो नहारे, जोवे पांचशे वाट ॥ नलामण दोनी रायजी रे, दण दण करे उच्चाटो रे ॥ धन्य महोटा मुनी॥ नित्य कीजें गुण ग्रामो रे॥ध० ॥सीफे सघलां कामो रे ॥१॥ध नगर गली फरी जोयता रे, किहां न दीगे रे साध ॥ सुण्यो साधु मास्यो गयो रे, तव परमारथ साधो रे ॥२॥ध० ॥ राजा पूजे कुण तुमें रे, तव वलता कहे जोध ॥ कनककेतुना रजपूत बांरे,तुमें करी वात अयुक्तो रे॥शोधावंधक कुमर दीक्षा लेइरे, अमें रखवालाजीलासो मुनिवर तें मारीयो रे, न सरी गरज लगार रे ॥ ४ ॥ध०॥ वचन सुगी जोधा तणां रे,राय दुवो दिलगीर ।। हाहा पाप जामां कीयां रे, माखो राणीनो वीर रे ॥ ५ ॥ ॥ध० ॥ राणी वात सुपी तिसें रे, लागो मरम प्र दार ॥ मूरबागत धरणी ढली रे,लूटी आंसूडानी धार
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( ५४० )
रे ॥ ६ ॥ ६० ॥ बंधव नव सफलो कीयो रे, तोब्या मोहना रे फंद ॥ ढुंपापणी किम लूटचं रे, इम ते करे प्राकंद रे॥ ७ ॥ ० ॥ लोहीयें खरडी मुहपती रे, समली मलमां राज || बहिन सुनंदा देखीने रे, ऊठे मोहनी फाल रे ॥ ॥ ध० ॥ जिम जिम जाई सांजरे रे, थाणे रागने द्वेष ॥ वीरा वेगो आवजे रे, हुं नजरें लेनं देख रे ॥ ए ॥ ६० ॥ कुण वीरो कुण बहिनडी रे, जोजो मोहनी वात ॥ इण जव मुगति सिधावणुं रे, एम करे विलपात रे ॥ १० ॥ ० ॥ इम जाणीने मानवी रे, मोह न करशो रे कोय ।। मोह कियां दुख नपजे रे, करमबंध बहु होय रे || ११|| २० ॥ सालो सगो न वी जाणीयो रे, तपसी महोटो रे साध ॥ पुरुषसिंह राजा फूरे रे, बहोत लग्यो अपराध रे ॥ १२ ॥ ध० ॥ पां चरों जोधा इम चिंतवे रे, मारयो गयो मुनिराय ॥ कनक केतु राजा कने रे, कां कहेगुं तिहां जाय रे ॥१३॥ ॥ ध० ॥ चारित्र व्यो हवे चोंपशुं रे, किसो सास वीश वास ॥ काल कितो इक जीवष्णोरे, राखो मुगतिनी आश रे ॥ १४ ॥ ६० ॥ निवें करी संजम लीया रे, पांचों जोधा शिरदार | चोखो पाली सुरगति नही रे, वलि करशे जब पार रे ॥ १५ ॥ ध० ॥ डुहा ॥ हवे राजा मन चिंतवे, एहवो खून न कोय ॥ साधु मा रण मन ऊपनुं, ए संशय बे मोय ॥ १ ॥ इमवि चारी वंदा गयो, साधु जी कहे एम ॥ विष्णा गुनहें महोटो मुनि, में मायो कहो केम ॥ २ ॥ ढाल ॥
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(५४१)
चोथी । वीर सुणो मोरी वीनत ॥ ए देशी ॥ साधु कहे राय सांगलो, तूंतो दूतो हो काचरनो जीव ।। ए खंधक मानव हतो, चतुराई हो धरतो रे अतीव ॥ ॥सा॥१॥ करम न बोडे केहने, नीखारी हो कुंण राणो राव ॥ कुंण साधुने कुंण चोरटो, जला नूंमा हो स होवे नाव ॥ ३ ॥ क० ॥ पुतला जव इण खंध,कतारी हो काचरनी साल ॥ विचलो गिर का हाडी लीयो, सराय हो घणी करिय कितोल ॥३॥ ॥ क० ॥ पहि पबतायो नही, बंध पडियो हो ति गरे नग गय ॥ तिणे करमें करी खालडी,नतारी हो तें साधूनी राय ॥ ४ ॥क० ॥ वचन सुणी राय मरपीयो, करमोनी हो घणी विषमी वात ॥राय राणी दोनूं कहे, घरमांहे हो घडी अफली जात ॥ ५ ॥ ॥ क० ॥ पुरष सिंह राजा तिहां, सुनंदा हो रागी सु विनीत ॥ राज बोडी चारित्र लियो,आराध्यो हो दोनुं रूडीरीत॥६॥ क० ॥ करम खपावी मुगतें गयां, व धारी हो जग धरमनी सोह ॥ अजर अमर सुख शा श्वतां, एहवी करणी हो करजो सदु कोय॥७॥ क०॥ अढारशें श्यारोत्तरें, चैत्र मासें हो शुदि सातम जो य ॥ साडगं गाम सुखी सदा, उडो अधिको हो मि डाकुक्कड होय ॥ ७ ॥ क० ॥ इति चोढालियुं संपूर्ण ॥ अथ श्रावक नीचें लखेला त्रण मनोरथने चिं॥
॥तवती माहा मोहोटी निर्जरा करे॥ ॥संसारनो अंत करे,ते लखियें डेयें।
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(५४२) ॥ किवारें हूं, बाह्य तथा अन्यंतर परिग्रह जे माहापापर्नु मूल उर्गतिने वधारनारो, काम, क्रोध, मान, माया, लोन. विषय अने कषायनो स्वामी, माहाकुःखनुं कारण, महा अनर्थकारी, उर्गतिनी शि ला, माठी लेश्यानो परिणामी, अज्ञान, मोह, मत्स र, राग अने षनुं मूल, दशविध यति धर्म रूप कल्प वृदनो दावानल, झान, क्रिया, दमा, दया, सत्य, संतोष तथा बोधबीज रूप समकेतनो नाश करनारो, संयम अने ब्रह्मचर्यनो घात करनारो, कुमति तथा कुबुद्धिरूप सुःखदारिनो देवा वालो, सुमति अने सुबुदिरूप सुखसोजाग्यनो नाश करनारो, तप संय म रूप धनने लूंटनारो, लोन क्वेश रूप समुश्नो व धारनारो, जन्म जरा अने मरणनो देवावालो, कप टनो नंमार, मिथ्यात्व दर्शन रूप शल्यनो नरेलो, मो दमार्गनो विघ्नकारी, कडवा कर्म विपाकनो देवावा लो, अनंत संसारनो वधारनारो, महा पापी, पांच इंडियना विषयरूप वैरीनी पुष्टिनो करनारो, मोहो टी चिंता शोक गारव अने खेदनो करनार, संसार रूप अगाध वनिनो सिंचवावालो, कूड कपट बने क्ले शनो आगार,मोहोटा खेदनो करावनारो,मंदबुदिनो आदस्यो, उत्तम साधु निर्यथोयें जेने निंद्यो ने, अने सर्व लोकमां सर्व जीवोने एना सरिखो बीजो कोई विषम नथी, मोहरूप पाशनो प्रतिबंधक, श्लोक तथा परलोकना सुखनो नाश करनार, पांच आ
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(५४३) श्रवनो आगार, अनंत दारुण कुःख अने जयनो देवा वालो, महोटा सावध व्यापार कुवाणिज्य कुकर्मादा ननो करावनारो, अध्रुव, अनित्य, अशाश्वतो, असा र, अत्राण, अशरण, एवो जे आरंन अने परिग्रह तेने दुं केवारें बांझीश जे दिवसें बांमिश, ते दिवस महारो धन्य ! ॥ ए प्रथम मनोरथ ॥
२ केवारें हूं मुंम थइने दश प्रकारे यतिधर्म धारी, नववाडें विशु६ ब्रह्मचारी, सर्व सावद्य परिहारी, एणगारना सत्तावीश गुणधारी, पांच समिति त्रण गु प्तियें विशुद्धविहारी, मोहोटा अनियहनो धारी, बे हेंतालीश दोष रहित विशुद्ध आहारी, सत्तर ने संय म धारी, बार ने तपस्याकारी, अंत आहारी, प्रांत
आहारी, अरस आहारी, विरस बाहारी, लुरक आ हारी, तुब थाहारी, अंतजीवी, प्रांतजीवी, अरसजी वी, विरसजीवी, सुरकजीवी, तुबजीवी, सर्व रस त्या गी, बकायनो दयाल, निर्लोनी, निःस्वादी, पंखी तु व्य, वायरानी परें अप्रतिबंध विहारी, वीतरागनी या झासहित, एहवा गुणोनो धारक जे अणगार ते ढुं केवारें थश्श! जे दिवस हुँ पूर्वोक्त गुणवान थाइश ते दिवस धन्य ॥ए बीजो मनोरथ ॥ ____३ केवारें दुं सर्व पापस्थानक आलोई, निःशल्य थश, सर्व जीवराशी खमावीने, सर्व व्रत संनारीने, य ढार पापस्थानकथी त्रिविधं त्रिविधं वोसरीने, चारे आहार पञ्चरकीने, शरीरने, नेहेले श्वासो
सिवास
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(५४४) रावीने, त्रण आराधना आराधतो घको, चार मंग लिक रूप चार शरण मुखें उच्चरतो थको, सर्व संसा रने पूंठ देतो थको, एक अरिहंत, बीजा सिह,त्री जा साधु, अने चोथो केवलि प्ररूपितधर्म, तेने ध्याव तो थको, शरीरनी ममता रक्षित थयो थको, पादोप गमन संथारा सहित, पांच अतिचार टालतो थको, मरणने अणवांबतो थको. एह पंमित मरण यंत काले मुझने कराविश ॥ ए बीजो मनोरथ ॥३॥ ___एत्रण मनोरथने श्रावक, मन,वचन यने कायायें करी शुक्षपणे ध्यावतो थको सर्व कर्म निर्जरीने संसा रनो अंत करे, मोदरूप शाश्वत स्थानक प्रत्यं पामे॥ ॥अथ वसंत धमाल वगेरे होरीमा गावानां पद
प्रारंन ॥ तत्र प्रथम वसंत ॥ ॥ए ऋतु रूडी रुडी माहारा वाला, रूडो मास वसंत ॥ रूडो समकित केसू फूल्यो, गुंफत मधुकर संत माहारा वाला ॥ ए० ॥ १ ॥ संवेग रंग पखाव ज बाजे, उविध दया कर नाल ॥ उपशम जर पिच कारी मारी, नवनिरवेद्य गुलाल माहारा वाला ॥ ॥ए॥२॥ आस्तिक आप सुबागमें बेते, खेलत खे ल रसाल ॥ ज्ञान नद्योत प्रनु फगुवा मांगत, दीजें शांति कृपाल माहारा वाला ॥ ए० ॥३॥ इति ॥
॥धमाल॥ ॥सुमति सदा सुख दाई हो, खेलन आई दोरी॥ खेलन थाई प्यारे खेलन आई ॥ सुमति ॥ ए टे
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क || पूर्णानंद सुखद पियु संगें, सब सखीयन मि लाई हो || खेल | निज गुन बागमें सहज बसंतें, मौज मच। मन जाई हो ॥ खेल ॥ १ ॥ ध्यान स माधि जवनमें बेठे, रस नरी खेजे गोसांई हो ॥ खे ॥ प्रभु आणा शिर बत्र बिराजे, बिद्धुं नय चमर ढला ई हो ॥ खे० ॥ २ ॥ श्रागम वचन संगीते बहुगम, वाजित्र विविध बजाई हो । खे० ॥ शांति सुधारस प्याले पीवत, श्रानंद लील जमाई हो ॥ खे० ॥ ३ ॥ या विधपीठ प्यारी मिलि खेलत, सब सुख संपत्ति पाई ॥ खे० ॥ जानुचंद प्रभु पास पसायें, शिव सुखहर्ष वधाई हो || खे० ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ राग धमाल ॥
॥ होरी खेलावत कानईयां, नेमीसर संगें ले न ईयां ॥ एकणी । रेवत गिरि पर एकता मिले सब, सहस बत्रीश तेंवरीयां ॥ होरी० ॥ १ ॥ कोई संग पिचकारी लीए कोई, अबिर गुलालसें फो नरईयां ॥ हो० ॥ २ ॥ नेमकुमर खेजें उत होरी, विवाह मनावत गोपी मिलईयां ॥ हो० ॥ ३ ॥ मौन रह्या प्रभु बात विचारी, परणो देवर नारी नलईयां ॥ ॥ हो० ॥ ४ ॥ तोरण यावी पशुओं बुडावत, राजुन नारी विचार करईयां ॥ हो० ॥ ५ ॥ मुक्ति धूतारी शोक्य हमारी, इनसें क्युं मेरो चित्त जलश्यां ॥ ॥ हो० ॥ ६ ॥ सहसावन जई संयम लीनो, शुकल ध्यानसें केवल पईयां ॥ हो० ॥ ७ ॥ नेम राजुल
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(५४६) दोए मुकि सिधाए, रूप कहे हम लेत बलईयां ॥ ॥ हो ॥ ॥ इति ॥
॥राग वसंत ।। नहींरे नाहार नवरं। बनायो, अपने नेमजीको घर रे ॥ १ ॥ हारे नहीं २ नाहार ॥ ए टेक ॥
आंबो मोस्यो केसू फूटयां, फूल्युं सघलुं वन्न रे ॥हां० ॥ ॥ ॥ उपशम रसको रंग जयो हे, अबिर अरगजा घर रे ॥ हां ॥३॥पंच समिति खेले सब सहीयो, शील सदाकों धर रे ॥ हां० ॥ ४ ॥रास मच्यो हे -गुनमति सखीको, कुमति सखीकों मर रे ॥ हां ॥
॥ ५॥ फगुथा दो नर जोली अविचल, माहानंदको घर रे ॥ हां ॥ ६ ॥ इति ।
॥राग धमाल ॥ ॥ वामा नंदन अंतर जामी, जीवन प्राण था धार ललना ॥ दरिसण देखी ताहारुंहो, सफल कस्यो अवतार ॥ मन मोहन गोडी पासजी हो, अने हो मेरे ललना, तुम समो नहि कोई देव ॥ मन ॥ ॥१॥ तुम साथें मुज प्रेम बन्यो हे, न गमे बीजानो संग ललना ॥ तुम पसायें पामीयें हो, अति घणो । त्सव रंग॥म० ॥ ॥ अमने मोटी होंश मुक्तिनी, ते
आपो मुफ स्वामि ललना ॥ तुं प्रनु सुरतरु सारिखो हो, पूरण वंडित काम ॥ म०॥३॥ महेर घणी प्रनु राखीयें हो, गुंकडं वारो वार ललनां। नेह कीधो तु मा खरो हो, नवि जाऊं बीजे दरबार ॥ म० ॥
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(५४७) ॥४॥ जिहां तिहां संग न कीजियें हो, रहीयें सहेजा नंद ललना॥ नित्यलान कहे प्रनु सेवियें हो, लीजिये शिवसुरख कंद ॥ म० ॥ ५॥ इति ।।।
॥धमाल ॥ नयरी वणारसी जाणीयें हो, अश्वसेन कुल चं द ललना ॥ वामानंदन वंदीयें हो, पासजी सुरतरु कं द॥ परमेश्वर नित्य गुण गायें हो,अहो मेरे ललना गावत शिवसुख पायें हो ॥१॥ ए टेक ॥ फणि घर संबन नव कर जिनजी, सबल घनाधन सार ललना ॥ संयम लेई शत तीनगुं हो, सवि कहे तुं. धन्य धन्य ॥ पर० ॥२॥ वरस शत एक ान हो, सीधा समेत गिरीश ललना ॥ शोल सहस मुनी तुम तणा हो ॥ समणी सहस अडत्रीश ॥ पर० ॥ ॥३॥ धरणीधर पदमावती हो, प्रनु शासन रख वाल ललना ॥ रांग सोग संकट टले हो, नाम ज पतो जयमाल ॥ पर० ॥ ४ ॥ पास वाश पूरो अब मेरी, अरज एक अवधार ललना ॥ श्रीनय विजय वि बुध पसायथी हो, जस कहे नवजल तार ॥ पर॥५॥
॥राग वसंत ॥ ॥श्रीचिंतामणि पास प्रनु तारा, मंदिर बरसे रंग रे ॥ ए टेक ॥ ग्यान गुलाल अबिर उडावत, समता नीर सुचंग रे ॥ श्रीचिं० ॥ मंदिर ॥१॥ अनुनव लहेर फूली फूलवाडी, फबकती नव नव रंग रे ॥ ॥श्री० ॥२॥ उपशम वाघा अंग अनोपम, गुकल
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( ५४७) ध्यानसें चंग रे॥श्री॥ अमरचंद चिंतामणि चित्तध र, लागो अविहड रंग रे ॥ श्री० ॥३॥ इति ।
॥काफी होरी॥ ॥ ऐसें होरी तो होय रही चंपा नगरीमें, फागुनके दिन आए ॥ ऐमें ॥ एक ॥ वासपूज्यजीके नव ल मंदिरमें, होई रही हो सुखदाई ॥ ऐसें ॥१॥ केसर घोलोनरी रे कचोली, प्रनु पूजो नले जावें ॥ ऐसें ॥ २ ॥ अनुपम प्रेम पिचरको अदनुत, ना वना अवीर सुवासे ॥ ऐसें ॥ ३ ॥ परमानंद पर म सुख दायक, कीरति जग कहाय ॥ ऐसें ॥ ४ ॥
॥राग काफीहोरी ।। ॥ आदिजिनेसर प्रनुजी, साहिव तेरी रे, जानें में बलिहारी॥॥॥ए देक ॥ नानिके नंदन पाप निकंदन,तीन नवन हितकारी गजानं में बलिहारी? सिमगिरि सोहन जिन मन मोहन,पेखत मूरति प्या री रे ॥ जा० ॥ ५ ॥ पूर्व नवाणुं वार प्रजुजी, रह्या रायण निरधारी रे ॥ जा ॥ ३ ॥ जात्रा नवाणुं कीनी युक्ते, उर्गति दूर निवारी रे ॥जा॥॥अढार अहवन चैत्री पूनम, जात्रा नवाणुं जुहारी रे॥जा॥ ॥५॥ सुरत संघ सदा सुखदाता, कहत कल्याण जय कारी रे ॥ जा ॥ ६ ॥ इति ॥
॥राग काफी होरी॥ ॥ नेमि निरंजन ध्यावो रे, वनमें तप कीनो ॥ नेमि ॥ सहसावनकी कुंज गलनमें, पंचमहाव्रत ती
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नो रे ॥ वनमें ॥ १ ॥ उपशम अबिर गुलाल न डावत, खेलत नेम नगीनो रे | उनमें० ॥ २ ॥ रेव त गिरि पर इकता मिले सब, सहस वत्रीशे लीनो से ॥ वनमें ॥ ३ ॥ श्रात्मग्यानकी जरी पिचकारी, प्रभु लहे ज्ञान नगीनो रे ॥ वनमें० ॥ ४ ॥ रूप चंदए प्रभु गुण गावत, नेम राजुल शिव लीनो रे ॥ ॥ वनमें ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ धमाल ॥
॥ सोरीपुर नगर सोहामणुं हो, समुड् विजयराजें || शिवादेवी राणी तेहनो हो, अंगज नेम जिणंद, वृंदावन फाग सोहामणो हो । हो मेरे ललना, गावत नेम जिणंद ॥ ० ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ समुड् विजयको चातलो हो, श्रीवसुदेवकुमार ॥ जास सो हाग गुणें करी हो, मान तजे हरि हार ॥ वृं ॥ २ ॥ बहुतेर सहस त्रिया रस रसधर, मधुकर सुख मकरंद || अंगज सकज बे तस दोन, गुण जा राम गोविंद ॥ वृं० ॥ ३ ॥ सोज सहस गोपी मनमोहन, मनोहर रूप मोरार ॥ मेघश्याम मुरली नैनीके, बाजत वेणुविशाल ॥ ० ॥ ४ ॥ चंग मृदंग
पंग बजावत, गावत हे जनार ॥ नेम कुमर हन घर गिरिधर मिल, करत हे केलि पार ॥ वृं० ॥ ५ ॥ टोजें मिली मिली तान मचावत, जीलत सुरजी गु लाल ॥ मारत केसर कमल पिचकारी, रंग करत हे नर नार ॥ ० ॥ ६ ॥ जब लाल तनु वेष बन्यो हे,
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(५५०) नयन लाल मुख लाल ॥ पंच पीतांबर उढत नीके, जादव बेल बोगाल ॥ ॥॥ अंबअंब कोकिलरव प्रातापित, गावत गीत रसाल ॥ चढी कदंब श्रीकृष्ण बजावे, मधु बसंतकी ढाल ॥ तुं० ॥ GR नटिका नंदी करुणानिधि, हरिकुल पंकज नाण ॥ करत केलि श्रीनेम मुरारी. रवि शशि उपमा प्राण ॥ ॥ तुं० ॥ ए ॥ यादव कुमर जले एकेकथे, गुणवंत अरु रूपवंत ॥ नेमीसर सरिखो नहीं कोई, त्रिनुवनके बलवंत ॥ तुं० ॥ १० ॥ वृंदावनमें एगिपरें खेलत, -सब यादवके वृंद ॥ नेमीसर जिनचंद पसायें, प्रत्यद परमानंद ॥ तूं ॥ ११ ॥ इति ॥
॥ अथ प्रजाति स्तवनं ।। ॥ जाग जाग जीव तुं, ॐ थयो प्रजात रे ॥प्रनु जीको नाम जज, पावे ज्युं शिव सात रे ॥जा॥१॥ पूरव दिशि नदित सूर, धरि प्रवाल रंग गात रे ॥ विबु धद्वंद पठत पाठ, नाउ गई रात रे ॥ जा ॥ २ ॥ मोह गहेली नींद गंमी,दूर करि मिथ्यात रे ॥ सुगुरु वचन बोध करि, धर्मगुं धरि धात रे ॥जा॥३॥दान शील तपो जाव, नावनगुंबद नांत रे॥ चार मंगल चार बुदि,होत नामथी विख्यात रे॥जापापंच पद को ध्यान करी,गुणियल गुण गात रे॥आपहीमें दोष देखि,टाल पराइ तांत रे।।जा॥५॥चरण करण विवेक शुरू,मनहुं करि थिर शांत रे॥कहत 'मुनि मलुक चंद, होत सदा सुख शात राजा॥६॥इति आत्मशोदापद॥
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(५५१) ॥ अथ पुंमगिरि स्तवन प्रारंजः ॥ ॥ वीरजी यारे विमलाचलके मेदान, सुरपति नाया रे, समवसरण मंमाण ॥ ए अांकणी ॥ देश ना देवे वीरजी स्वाम, शत्रुजय महिमा वरणवे ताम॥ जाखे अाठ उपर सो नाम, तेहमांजांख्युं रे, पुंगरगिरि अनिधान ॥ सोहम इंदो रे, तव पूडे बदु मान ॥ किम थयुं स्वामी रे, नांखो तास निदान ॥ वीर ॥ १ ॥ प्रनुजी नाखे सांनल इंद,प्रथम जे दुया षन जिणं द । तेहना पुत्र ते जरत नरिंद, नरतना दुधा रे ष नसेन पुंमरिक ॥ षनजी पासें रे, देशना सुणी ते. उत्तंग ॥दीदा लीधी रे,त्रिपदी झान अधिक ॥वीर॥ ॥ ॥ गणधर पदवी पाम्या जाम, हादश अंगी गुंथी अनिराम ॥ विचस्या महियलमां गुण धाम, अनु क्रमें ाव्या रे श्रीसिमाचल सार ।मुनिवर कोडि रे, पांच तणे परिवार ॥ अनशन की, रे,निज बातमने उपगार ॥ वीर॥३॥ तेणे ए प्रगट पुंगरगिरि नाम, सांजल सोहम देवलोक स्वाम ॥ एहनो महिमा अ तिहि उद्दाम, इरोदिन कीजें रे, तप जप पूजा ने दान ॥ व्रत वली पोसो रे, जेह करे निदान ।। फल तस पामे रे, पंच कोडी गुण मान ॥ वीर० ॥४॥ चैत्री पूनम दिवसें जेह, पाम्या केवल झान अह । शिव सुख वरिया अमल अदेह ॥ पूर्णानंदी रे, अगुरु लघु अवगाह ॥ अज अविनाशी रे, निजगुण जोगी अबाह ॥ निज गुण करता रे,पर पुनल नही चाह ॥
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(५५२) ॥वीर॥५॥ नक्ते नव्य जीव जे होय, पंच नवें मु क्ति लहे सोय ॥ एहमा बाधक ले नही कोय, व्यव हार केरी रे, मध्यम फलनी ए वात ॥ उत्कृष्ट योगें रे, अंतरमुहूर्त विख्यात ॥शिव सुख साधे रे,बातमने अ वदात ॥ वीर ॥६॥चेत्री पूनम महिमा देख, पू जा पंच प्रकार विशेष ॥ तहमा कणिम नही कांरे ख, इणी परें नांखे रे,जिनवर उत्तम वाण ॥ सांजली बड्या रे, केश्क नविक सुजाण ॥ इणि परें गाया रे, पश्मविजय सुप्रमाण । वीर ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ प्रस्ताविक दोहा कवित्त सवैया वगेरे प्रारंनः॥
॥ दोहा ॥ सत्य म बोडीश चतुर नर, लही चिदु गणि होय ॥ सुख दुःख रेखा कर्मकी, मेट न शके कोय ॥१॥ हिंसा उखनी वेलडी,हिंसा पुरखनी खाण ॥ जीव अनंत नरकें गया,हिंसा तणे प्रमाण ॥ २॥ दया ते सुखनी वेलडी, दया ते सुखनी खाण ॥ जीव अनं त स्वर्गे गया, दया तणे परिमाण ॥ ३ ॥ जीव मा रंतां नरक डे,राखंतांजे सग्ग ॥ ए बेद वाटडी, जि ण नावे तिण लग्ग ॥४॥ विण कपास कपडं नही, दया विना नहि धर्म ॥ पाप नही हिंसा विना,जो एहज मर्म ॥ ५ ॥ धन वंडे एक अधम नर, उत्तम वंजे मान ॥ ते थानक सदु मीयें, जिहां लहियें अप मान ॥ ६ ॥ बार बुलावण बेसणुं, बीडी बेकर जो ड ॥ जिणघर पांच बब्बा नहि, ते घर दूरे बोड ॥७॥
बप्पय ॥ हरखे किश्युं गमार, देखि धन संपत ना
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(५५३) री॥प्रौढ पुत्र परिवार, लोकमांहे अधिकारी॥यौव न रूप अनूप, गर्व मनमांहे नमावे ॥करतो मोडामो ड, जगत तृण सरिखो जावे ॥ अखियां मूढ देखे न ही, आज काल मरवू अ॥ जिनहर्ष समज रे प्रा गीया, नहितर फुःख पामोश पडे ॥१॥संक सरी खी पुरी,विकट गढ जास ऊरंगम ॥ पारखली खाई स मुझ, जां पहुंचे नही विहंगम ॥ विद्याधर बलवंत, खंत्रण केरो स्वामी ॥ सेव करे जसु देव, नवग्रह पाये नामी॥ दशकंध वीश नुजा लहे,पार पाखें सेना बदु ॥ जिनहर्ष राम रावण हण्यो, दिन पलटयो ए. लटया सदु ॥ २ ॥ सवैयो ॥ रूप घट्यो रस रंग घ टयो, नघटयो मन पाप विकारनथें, तेज घटयो तरु पाप घटयो न घट्यो, चित्त कामविलासनथें ॥ सा र घटयो अब सीर घटयो, न घटयो चित्त लोन रसा यनथें, नसेन कहे जुग जात घट्यो, न घटयो कोन कोध कषायनथें ॥१॥
॥कवित्तापहेलुं सुखजे दीलें नरा,बीजु सुख जे घर दीकरा ॥त्रीजुं सुख जे ऋण विण वरा,चोथु सुख जे पोतें घरा ॥ पांचमुं सुख जे नक्ति नारि,बहुं सुख जे प्रतिष्टा बार ॥ सातमुं सुख जे आंगण जुत्त, पुण्ये ल हीयें ए घरसुत्त ॥ १ ॥ पहेलुं सुख जे न जईये गा म, बीजं सुख जे वसीयें वाम ॥त्रीजुं सुख जे माने नू प, चोयुं सुख जे रूप सरूप ॥ पांचमुं सुख जे शबा यें रमें, बहुं सुख जे वेलो जमे ॥ कवि कहे सातमुं
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( ५५४ )
सुख गमे, सकल लोक घर यावी नमे ॥ २ ॥ पहेनुं दुःख पडोशी चाड, वीजुं दुःख घर जग्युं जाड ॥ त्री जुं दुःख नित सहीयें मार, चोयुं दुःख जे नजरें या हार ॥ पांचमुं दुःख पाला चालवं, बहुं दुःख नित नित मागवुं ॥ कवि कहे मांचे माकड बहु, ए साते दुःख सुएजो सहु ॥ ३ ॥ पहेलुं दुःख जे परनी चा श, बीजुं दुःख जे बो वास ॥ त्रीजुं दुःख जे बहु कण चडे, चोयुं दुःख परने वश पडे ॥ पांचमुं दुःख जे न टजे रोग, वांड्यो न मले जेहने नांग ॥ कवि जन कहे नित्य खारूं नीर, एसाते इःख सहे शरीर ॥ ४ ॥
॥ गुणविन निसी कबाण, ज्ञान बिन ब्रह्म योगी सर || पति विण जुवती नेह, दीप विन अनुपममंदिर ॥ लूण विना रसवती, पत्र बिन जिस्यां तरुव र ॥ वदन नेत्र विद्रण, नीर विंण सार सरोवर ॥ वि या चतुराई विन, चंद विना रजनी जिसी ॥ विनयमेर गणि इम कहे, तिम दान विना लबी किसी ॥ ५ ॥
॥ दोहा ॥ ते जाएयां माणसां, रूपें जे राचंत ॥ दीप ज्योति पतंग जिम, पंख सहित दाजंत ॥ १ ॥ नर जो कडवां तुंबडा, गुणे करीने मीठ ॥ ते माणस के म वीसरे, जेह तणा गुण दीठ ॥ २ ॥ राति गमाई सोवते, दिवस गमाया खाय ॥ हीरा जैसा मनुष्य न ब, कवडी बदलें जाय ॥ ३ ॥ पठन गुनख कवि चा तुरी, ए तीनो बातां सहेल ॥ काम दहन मन बस क रन, गगन चढन मुसकेल ॥ ४ ॥ प्रीत नली पंखेरु
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(५५५) आ, उडी जेह मिलंत ॥ माणस परवश बापडां, दूर रह्यां पूरंत ॥ ५ ॥ संपति सतु वेंचे मली, विपत्ति न वेंचे कोय ॥ संगत उनकी कीजीयें,नांग्या नेरु होय ॥ ६ ॥ सर सूके सूके कमल, पंखी दह दिसी जंत ॥ आपणा सोही आपणा, पर आपणा न हुँ त ॥ ७॥ सऊन एसा कीजियें, जैसा ज्वारिकाखेत ॥ थडे कटे टोचे लणे, तो धरा न मेने देत ॥ ७ ॥ स ऊन एसा कोजीयें, जामें लखन बत्तीस ॥ नीड पडे जाजे नहीं, सूंपे अपनो सीस ॥ ५ ॥ सो सऊन लख मित्र कर, ताली मित्र अनेक ॥ सुख दुःख जासुं कीजियें, सो लाखूमें एक ॥ १०॥ सऊन ऐसा कीजीयें, जैसी निशि उर चंद ॥ चंद बिना निशि अांधली, निशि बिनु चंदा अंध ॥ ११ ॥ केबिध चतु रकू धन दीयो, के चतुराई सबीन ॥ एक चतुर और निर्धना, दोनुं दुःख क्या कीन ॥ १२ ॥ इति ॥ ॥ अथ यात्महित स्वाध्याय ॥ वालम ॥
॥ वेहेलारे आवजो ॥ ए देशी ॥ ॥ माहारुं माहारु म कर जीव तुं,जगमां नहीं ता हरु कोय रे ॥ आप सवारथें सदु मल्या, हृदय वि चारीने जोय रे ॥ माहरुं० ॥१॥ दिन दिन आयु घटे ताहरूं, जिम जल अंजलि होय रे ॥ धर्म वेला नावे ढकडो, कवण गति ताहारी होय रे ॥ महारु०॥ ॥ २ ॥ रमणीशुं रंगें राचे रमें, कांई लीये बावल बाथ रे ॥ तन धन यौवन थिर नही, परनव नावे
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(५५६) तुऊ साथ रे ॥माहरुं०॥३॥ एक घेर धवल मंगल हुवे, एक घेर रोवे बद नार रे ॥ एक रामा रमे कं तरां, एक बोडे सकल शणगार रे ॥माहरुं० ॥ ४ ॥ एक घर सदु मली बेसतां, नित नित करता वि लास रे ॥ ते रे साजनीयो उठी गयो, थिर न रह्यो एक वास रे ॥ माहरूं० ॥ ५॥ एहवं स्वरूप संसा नु, चेत चेत जीव गमार रे ॥ दश दृष्टांतें रे दोहिनो, पामवो मणु अवतार रे ॥ साहरूं ॥ ६ ॥ हर्षवि जय कहे एहवं, जे नजे जिनपद रंग रे ॥ ते नर नारी वेगें वरे,मुक्ति वधू केरो संग रे।मा०॥ ॥इति।।
॥ अथ नेमजीना बार मास प्रारंजः ॥ ॥स्नेही वीरजी जयकारी रे॥ए देशी॥ ॥ चैत्र मासें ते चतुरा चिंत रे, नेम जई वस्या एकांत रे, मननी किम नांगे ब्रांत ॥ दयालु नेमजी दिल वसीयो रे, एतो शिवरमणीनो रसीयो ॥ दया॥ ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ वैशाखें वनिता विलखे रे, पुःख देखीने मनडुं कलखे रे, पीयु मलवाने तनहुं तलखे ॥ दयालु० ॥ २ ॥ जेठे योवनें युवती लाजे रे, तडका लुमना वाजे रे ॥ विरही दील जीतर दा जे ॥ दयालु ॥३॥ अबला एकेली आषाढ़ें रे, वेलडी वलगी जे वाडें रे ॥ कस्या पंखीयें माला जा डें ॥ दयालु ॥ ४ ॥ श्रावण सुंदर सोनागी रे, व रसे फरमर फरमर जड लागी रे ॥ पिक मोर मधुर स्वर रागी ॥ दयालु० ॥ ५ ॥ नलीनामिनी नाव
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(५५७) मासें रे, पीयुने मलवानी आशे रे ॥ दिन रेन गमे वीशवासें ॥ दयालु ॥ ६ ॥ आशोयें तो अवनी पे रे, तरुणीनी शोना लोपे रे ॥ राणी राजुन रतीय न कोपे ॥ दयालु० ॥ ७ ॥ कहे कार्तिक कामिनी काती रे, पीयु विरहें दाधी नाती रे ॥ दीसे गुंजा तणी पेरें राती ॥ दयालु । ॥ मागशिरें माननी मदमाती रे, कोकिल सम कंठे गाती रे ॥ दीपे क नकलता तनु जाती ॥ दयालु० ॥ ॥ पो प्रेम सवायो कीजें रे, अबलानो अंत न लीजें रे ॥ उप शम रस अमृत पीजें ॥ दयालु ॥१०॥ माहा म हिने मनोहर नारी रे, उग्रसेन धूया कनी सारी रे॥ वालम तमें जूट विचारी ॥ दयालु०॥ ११ ॥ फाल गुणे केशुवन फलीयां रे, नेमजी राजुलने मलीया रे ॥ नव नवनां पातक टलीयां ॥ दयालु० ॥१२॥ वार मास नली परें गाया रे,याज अधिकानंदमें पाया रे॥राज रतन रसुल पुर गया। दयालु॥१३॥ इति ।। ॥ अथ नेमजीना साते वार ॥ देशी उपरनी॥
॥ रविवारे ते हो रढीयाला रे, आदित्यनी याक री जाला रे ॥ एम राजिमती कहे बाला ॥ प्रनुजी मानियें अरदास रे, विसारी न मूको निराश ॥ प्रनु ॥१॥ए बांकणी ॥ सोम शोल कलायें वे पूरो रे, शशी चंद नहीं अधूरो रे, ॥ ते माटे चिंता चूरो ।। ॥ प्रनु० ॥ ॥ नोम मंगल नाग्य निधान रे, जेणे दूर कयं अनिमान रे ॥ नमीयें नेमजी जगवान ॥
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(५५७) ॥प्रनु० ॥३॥ बुझे प्रनुबोध वधायो रे, जेणे संसा रनो नय वास्यो रे, नव्य जीवने पार उतायो । ॥प्रनु०॥४॥ गुरुथी वृहस्पति हास्यो रे, जेणे मोह मत्सर मद मास्यो रे ॥ जीवने जम जयर्थ। नगायो॥ ॥प्रनु० ॥ ५॥ नृगु शुक्रथकी जय नागा रे, जिम नाहर आगे डागा ॥ निज थानक जोवा लागा। ॥प्रनु०॥ ६ ॥ शनिश्चर चीड कहीजें रे, स्थिरथा रक वास लहीजें रे ॥ प्रनु गुण अवगुण परवीज ॥ ॥ प्रनु० ॥ ७ ॥ सात वार ए राजुल राणी रे, कह राजरतन एम वाणी रे ॥प्रनु गुण गाये मुखिया प्राणी ॥ प्रनु० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥अथ राजुननी पंदर तिथि प्रारंजः ॥देशी नपरन।
॥पडवे पियु प्रीतज पालो रे, प्रेमदायुं अबोला टालो रे ॥ नेह करीने नजरें जालो ॥ मनोहर मलद्वं सुधारस तोलें रे, राणी राजुल एणि पेरें बोले मनो हर ॥१॥ए यांकणी ॥बीजे बीजो नेह न कीजें रे, बोगाला ह न दीजे रे ॥ खोटी वातनो अंत न लीजें ॥ मनो० ॥॥त्रीजें ते तमने नमीयें रे,पीयु परदेशे केम नमीयें रे॥ निज स्वामिनी संगें रमीयें ॥ मनो० ॥३॥चोथें चित्त चो की, रे, जेणें दान अनय जग दीधुं रे॥ तेणें जीवितनुं फल लीधं ॥ ॥ मनो० ॥ ४ ॥ पांचमे पंचम गति जोई रे, जाणे केशरनी खसबोई रे ॥ किम काढीनं खाए धोई॥ ॥ मनो० ॥ ५॥ बछे षड्विध जीवना त्राता रे, जि
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(444)
म याठे प्रवचन माता रे ॥ ए तो साचो करम विधा ता ॥ मनो० ॥ ६ ॥ गयो शोक सातम तिथि सारी रे, नेम निरंजन ब्रह्मचारी रे ॥ तेना नामनी जाउँ बलिहारी ॥ मनो० ॥ ७ ॥ श्रावी श्राग्म यानंद का री रे, ढुंतो व जवांतर नारी रे ॥ वालम मत मू को विसारी ॥ मनो० ॥ ८ ॥ नवमें नवमो जव सा रोरे, नेम राजननो धारो रे || नेह निर्वही पार उतारो || मनो० ॥ ए ॥ दशमे प्रभुदया धरीजें रे, अबलानी आशीष लीजें रे ॥ ते माटे दरिसन दीजें ॥ मनो० ॥ १० ॥ अगीयारशें एकली नारी रे, पी यु मेली तो निरधारी रे || प्रीतम तमें पर उपका री ॥ मनो० ॥ ११ ॥ बारसना बोल संजारो रे, या डो याव्यो वरसालो रे | मोहन किम जरीयें उचा लो ॥ मनो० ॥ १२ ॥ तेरशें तोरणथी फरिया रे, गिरनार जणी संचरीया रे || नेम राजिमती नहीं वरीया ॥ मनो० ॥ १३ ॥ चौदशथी चिंता नांगी रे. सुत समु विजय लय लागी रे ॥ प्रभु थई बेठा नी रागी ॥ मनो० ॥ १४ ॥ पूनमें तो परम पद धारी रे, थया जनम मरण जय वारी रे ॥ प्रभुयें राजुलने तारी ॥ मनो० ॥ १५ ॥ पन्नर तिथि पूरी गाई रे, कहे राजरतन सुखदाई रे || तेज खेटक पुरम स वाई | मनो० ॥ १६ ॥ इति ॥
॥ अथश्री शत्रुंजयनी गरबी ॥ जे कोई अंबिकाजी ॥ ॥ मातने याराधशे रे लो || ए देशी ॥
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(५६०) ॥जे कोई सिद्धगिरिराजने पारधशे रे लोल, तेनी संपदा मनोरथ वाधशे रे लोन ॥ गिरिराज ने नवो दधि तारणो रे लोल. माहा ने सर्व कुःख वार गो रे लोल ॥ १॥ पुंकर गिरि ने मनोरथ पूरणो रे लोल, सिध्देत्र ने नवोदधि पुरणो रे लोल ॥ एनां एकवीश नाम ले सोहामणां रे बोल, हुँतो वंदना क रीने लहुं नामा रे लोल ॥ ॥ एना साधनथी तप जप आकरे रे लोल, मुनि सिक्षा ले कांकरे कांकरे रे लोल ॥ मुनिराजजी अनंत मुगतें गया रे लोल, सिम राज थइ अविनाशी थया रे लोन ॥३॥ तेहनों नाम कदंने विनंति करुं रे लोल, एना नामथी पाप सरखें हलं रे लोल ॥ पांच पांमव ने नारद मुनिवरा रेलोल, सोलंग सूरि सुदर्शन मुनि तस्या रे लोल॥४॥इविड वारीखेण देवकीना नंदजीरे लोल, महीपालजीने मही पति चंदजी रेलोल॥थावच्चा कुमरने मुनि विद्याधरा रे लोल, सिदि सांवने प्रद्युम्नजी जिहां वस्या रे लोल॥ ॥ ५ ॥ (वली जालि मयाली नवालीने रे लोल) ध्या न धरियां में चित एक आसनें रे लोल, जोगी तस्या ले चंप्रन शासने रे लोल ॥ जरत रामचंजी ने नं दिखेणजी रे लोल,सिम सीला चढ्या ले पकश्रेणि जीरे लोल ॥६॥ नमि विनमी ने मुनि शुकराजजी रे लोल, झातासूत्रमा सास्यांचे सर्व काजजी रे लोल ॥ केतां नाम कहुं ते मुनिराजनां रे लोल, जीन एकनें अनंत नाम साजना रे लोल ॥७॥ एवा अनंत अनंत
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(५६१) मुनिजी तस्खा रे लोल, तेतो दर्शन ज्ञानथकी नया रे लोल ॥ नमोबु| ते सात पदमें मव्या रे लोल, तेतो चार अनंत सुखमां नव्या रे लोल ॥ ॥ जई व सीया ने सि६ शिला उपरी रे लोल, तेनी सादि अनंत स्थिति दे रखरी रे लोल ॥ हुँतो जाणुं गणधर वाणी ये रे लोल, सदु सिदगिरि महातम जापीय रे लोल । ए॥वार पूरव नवाणुं आदिनाथजी रे लोल, समो सया ने पुंमरिक साथजी रेलोल ॥ गिरि फरस्यो त्रेवी श जिनराजजी रे लोल, अनशन कीधां अनंत मुनिरा जजी रे लोल ॥ १०॥सेवो सेवो ए गिरि सुख कंदने रे लोल, सेवो सेवो मरुदेवी नंदने रे लोल ॥ वंदो वंदो इक्ष्वाकु कुल सूरने रे लोल, पूजो पूजो श्रीकृषन हजूरने रे लोन ॥ ११ ॥(नानी राजाना कुलमांहि दिनकरू रे लोल) षंन नाथजीनो वंश ने गुणाकरु रेलोल, आदिनाथजीना पाटवी प्रनाकरू रे लोल॥ जेहना आठ पाट धारीसा नुवनमा रे लोल, पाम्या केवल ग्यान शुन ध्यानमा रे लोल ॥ १२ ॥ जेहना पाटवी असंख्य मुगतें गया रे लोल, तेतो सिम में मिकामां सरवे कह्या रे लोल ॥ जरत रायथी उदार शोल के सदु रे लोल, विच अंतरें उदार थया ने बदु रेलोत ॥१३॥ जे कोई गिरराज दरिसन नाविया रे लोल, इहां संघवी असंख्य संघ लाविया रे लोल ॥ माता चक्केसरीजी सुखदामिनी रे लोल, नुजा पाउने गरुड सिंह वाहिनी रे लोल ॥ १४ ॥ विक्रमराजथी
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( ५६२) अढारशे सत्योत्तरें रे लोल,मार्गशिर मास ने त्रयोदशि वासरें रेलोलागरबी गाने कवि दीपराजजीरे लोल, जे सांजले तेहनां सरशे काजजी रे लोल॥१५॥ इति॥
॥ अथ चोवीश तीर्थकरनुं स्तवनं ।। ॥ रिसह जिणेसर प्रणमी पाय, बीजा अजित जिणेसर राय ॥ संनव स्वामी सख नंमार, अनि नंदन नामें जयकार ॥ ॥ सुमति पद्म पनु देव सुपास, चंप्रन जिन पूरे आस ॥ सुविधि शीतल श्रेयांस जिणंद, वासुपूज्य दीट आणंद ॥ ॥ विमल अनंत धरम जगदीश, शांति कुंथु अर नामुं शीश !! मल्लिनाथ मुनि सुव्रत देव, नमि नेमीसर सारे सेव ॥३॥ पास वीर नित प्रणमे जेह, दि सिदि नर पामे तेह ॥ चोवीशे गुण तणा निवास, नाव मुनि कहे पूरो आश ॥ ४ ॥ इति ॥
॥अथ शांतिजिन स्तवन ॥धोलनी देशी॥
॥ शांति जिनेसर साहेव वंदो, अनुनव रसनो कंदो रे ॥ मुखने मटके लोचन लटके, मोह्या सुर नर वृंदो रे ॥ शांति ॥ १ ॥ अांबे मंजरी कोयल टदुके, मेघ घटा जेम मोरो रे ॥ तेम जिनवरने देखी हर, वली जिम चंद चकोरो रे ॥ शांति ॥ २ ॥ जिन प्रतिमा श्रीजिनवर नांखी, सूत्र घणां ने साखी रे ॥ सुर नर मुनिवर वंदन पूजा, करतां शिव अनि लाखी रे ॥शांति॥ ३ ॥ रायप्पसेणी प्रतिमा पूजी, सूरियान समकेत धारी रे ॥ जीवानिगमें प्रतिमा
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(५६३) पूजी, विजयदेव अधिकारी रे ॥शांतिगाथा जिनवर बिंब विना नवि वंडं, आणंदजी एम बोलें रे ॥सा तमे अंगें समकित मूलें, अवर नहि तस तोले रे॥ ॥ शांति ॥ ५ ॥ ज्ञातासूत्रे झैपदी पूजा, करती शिवसुख मागे रे ॥ राय सिदारथ प्रतिमा पूजी, कल्पसूत्रमाहे रागें रे ॥ शांति॥ ६ ॥ विद्याचारण मुनिवर वंदी, प्रतिमा पांचमे अंगें ॥ जंघाचारण मुनिवर वंदी,जिन पडिमा मन रंगें रे॥ शांति॥७॥
आर्य सुहस्ती सूरि उपदेशें, चावो संप्रतिराय रे ॥ सवा कोडी जिनबिंब जराव्यां, धन धन एहनी माय रे॥ शांति ॥ ७ ॥ मोकली प्रतिमा अनय कुमार, देखी आईकुमार रे ॥ जातिस्मरणें समकित पामी. वरियो शिववधु सार रे ॥ शांति॥ए॥ इत्यादिक बद्ध पाठ कह्या जे, सूत्रमांहे सुखकारी रे ॥ सूत्रतणो एक वरण नबाचे, ते कह्यो बदुल संसारी रे ॥ शांति ॥ १० ॥ तेमाटे जिन आणा धारी, कुमति कदाग्रह निवारी रे ॥ नक्ति तणां फल उत्तराध्ययनें, बोध बीज सुखकारी रे ॥ शांति ॥ ११॥ एक नवें दोय पदवी पाम्या, शोलमा श्रीजिनराय रे ॥ मुक मन मंदिरिये पधारावो, धवल मंगल गवराय रे ॥ ॥ शांति ॥ १२ ॥ जिन उत्तमपद रूप अनुपम, कीर्ति कमलानी शाला रे॥जिनविजय कहे प्रनुजीनी नक्ति, करतां मंगल माला रे ॥ शांति ॥१३॥ इति ॥
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( ५६४ )
॥ अथ नेम जिन स्तवनं ॥ राग कल्याण ॥ ॥ घरें वो तो पूढं एक वातडली रे || घरे० ॥ ताहारेनें माहारे साहेबा प्रीत घणेरी, पडिय पटोले जातडली रे ॥घरे ० ॥ १ ॥ तोरणथी रथ फेर चलायो, जाणी तुमारी जानडली रे ॥घरे ॥ २॥ महेर करीने माहारे मंदिर पधारो, रहोने जुनी रातडली रे ||घरे || ३ || नेम राजुल ये सरग सीधाए, मुक्तें गया नली जातडली रे ||घरे | ४ || रूपचंद कहे नाथ नि रंजन, तुमचं बांधी मारी प्रीतडली रे || घरे ० ॥ ५॥इति ॥ ॥ अथ नेभजिन स्तवनं ॥
॥ तोरण यावी रथ पाठो केम फेरो रे ॥ त्रा० ॥ संयम व्यो तो सायें अमने तेडो ॥ मारा वा० ॥ उनां वनां अरज करे सहु लोक रे ॥ वा ॥ बोल कोल किम करीने थारो फोक ॥ मारा० ॥ १ ॥ नेमजी तमें तो लीलाना बो साथी रे ॥ वा० ॥ कीडीना रोक्या केम रहेशो हाथी ॥ मारा० ॥ नेमजी तमें तो धरी रह्या एक ध्यान रे ॥ वा० ॥ आवडलुंते किहांथी ग्राव्यं ध्यान || माहा० ॥ २ ॥ नोधारां ते केने थें रेहेचं रे ॥ वा० ॥ हियडलानां दुःखडां केने केहेशुं ॥ मारा० ॥ उदयर तनना रसिया बालम नेम रे ॥ वा० ॥ राजि मतीना सीधा वंबित प्रेम ॥ माहारा वा० ॥ ३ ॥ ॥ प्रस्ताविक हो ।
॥ सबे न सब युग सरस हे, ज्यां लिंग न परत का म | हेम हुताशन पर खियो, पीतल निकसत श्याम ॥ १
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( ५६५ )
॥ अथ कर्मनी मूलोत्तर प्रकृतिनां नाम ॥
॥ तेमां प्रथम या
मूलप्रकृतिनां नाम ॥
१ ज्ञानावरणीय कर्म. २ दर्शनावरणं । य कर्म.
३ वेदनीय कर्म. ४ मोहनीय कर्म.
५ श्रायुःकर्म.
६ नाम कर्म.
७ गोत्र कर्म. अंतराय कर्म.
॥ पहेला ज्ञानावरणीयकर्मनी उत्तर प्रकृति पांच ॥
१ मतिज्ञानावरणीय.
धमनः पर्यवज्ञानावरणीय. ५ केवलज्ञानावरणीय.
२ श्रुतज्ञानावरणीय. ३ अवधिज्ञानावरणीय.
॥ बीजा दर्शनावरणीयकर्मनी उत्तर प्रकृति नव ॥
१ चतुर्दर्शनावरणीय. २ चकुर्दर्शनावरणीय. ७ प्रचला. ३ अवधिदर्शनावरणीय
४ केवलदर्शनावरणीय.
५ निश.
६ निश निश.
प्रचलाप्रचला. एथील श्री.
॥ त्रीजा वेदनीय कर्मनी उत्तर प्रकृति वे ॥ | २ शातावेदनीय.
१ शातावेदनीय.
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(५६६) ॥ चोथा मोहनीयकर्मनी उत्तर प्रकृति अपवीश ॥ १ सम्यक्त्वमोहनीय. । १५ संज्वलन माया. २ मिश्रमोहनीय. १६ अनंतानुबंधीलोन. ३ मिथ्यात्वमोहनीय. १७ अप्रत्याख्यानो लोन. ४ अनंतानुबंध क्रोध. १७ प्रत्याख्य नी हाल. ५ अप्रत्याख्यान क्रोध. १ए संज्वलन लोन ६ प्रत्याख्यानी क्रोध. २० हास्य नोकपार . ७ संज्वलन क्रोध. १ रति नोकपाय. G अनंतानुबंधीमान. १२ अरति नो कषाय. ए अप्रत्याख्यानीमान. ५३ शोक नोकपाय. १७ प्रत्याख्यानी मान. | २४ नय नोकषाय. ११ संज्वलन मान. जुगुप्सा नोकषाय. १२ अनंतानुबंधी माया. २६. पुरुषवेद नोकपाय. १३ अप्रत्याख्यानीमाया २७ स्त्रीवेद नोकषाय. १४ प्रत्याख्यानी माया. | २७ नपुंसकवेद नोकपाय.
॥ पांचमा आयुः कर्मनी उत्तर प्रकृति चार ॥ १ देवायु.
३ तिर्यगायु. १ मनुष्यायु. । ४ नरकायु.
॥ बहा नामकर्मनी उत्तर प्रकृति ॥ १०३ ॥ १ नरकगति नामकर्म. | ४ देवगति नामकर्म. २ तिर्यग्गति नामकर्म. ५ एकेंयि जातिनाम. ३ मनुष्यगति नामकर्म.। ६ बेंझ्यि जातिनाम.
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( ५६५ )
२० श्राहारक तैजसबंधन.
9 तेंयि जातिनाम. ८ चतुरिंडियजातिनाम २ज्याहारककार्मणबंधन पंचेंप्रिय जातिनाम, १९ खाहारक तैजस का १० औदारिकशरीरनाम. मण बंधन. ११ वैक्रिय शरीरनाम.
ए
३० तैजस तेजस बंधन.
१२ श्राहारकशरीरनाम. ३१ तैजस कार्मण बंधन.
३२ कार्मणका
बंधन.
१३ तैजस शरीरनाम. १४ कार्मल शरीरनाम. १५ श्रदारिक अंगोपांग १६ वैकिय अंगोपांग. १७ आहारक अंगोपांग १८ चौदारिक प्रौदारिक
३३ दारिक संघातन. ३४ वैक्रिय संघातन. ३५ श्राहारक संघातन. ३६ तैजस संघातन. ३७ कार्मण संघातन. ३८ वज्रकूपन नाराचसं
घयण.
३ एकषन नाराचसंघयण.
२१ प्रदारिकतैजसकार्म ४० नाराच संघयण.
४१ ई नाराचसंघयण. ४२ कीलिका संघयण. ४३ बेवहु संघयण. ४४ समचतुरस्त्र संस्थान. ४५ न्यग्रोध संस्थान. ४६ सादि संस्थान.
बंधन.
१ एयौदारिकतेज सबंधन. २० प्रौदारिककार्म एबंधन
ए बंधन.
२२ वैक्रियवैक्रियबंधन. २३ वैक्रियतैजसबंधन. २४ वैक्रियकार्मणबंधन. २५ वैक्रिय तेजसकार्मण बंधन. २६ आहारक आहारक ४७ वामन संस्थान. ४८ कुब्ज संस्थान.
बंधन.
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( ५६८ )
४७ हुए संस्थान. ५० कृष्णवर्ण नाम५१ नीलवर्ण नाम. ५२ लोहितवर्ण नाम. ५३ दारिश्वर्ण नाम५४ श्वेतवर्ण नामकर्म. ५५ सुरनिगंध. ५६ डरनिगंध.
५७ तिक्तरस नामकर्म. ५८ कटुकरस नामकर्म. ५० कषायरस नामकर्म. ६० श्राम्लरस नामकर्म ६१ मधुररस नामकर्म. ६२ कर्कशस्पर्श नामकर्म. ६३ मृस्पर्श नामकर्म. ६४ गुरुस्पर्श नामकर्म. ६५ लघुस्पर्श नामकर्म.
८ शुन नामकर्म. ६६ शीतस्पर्श नामकर्म. ५० सौभाग्य नामकर्म.
७३ देवानुपूवी. ७४ शुनविहायोग ति. शुविहायोगति.
७५
06
१६ पराघात नामकर्म.
७ तास नामकर्म. ७८ धातप नामकर्म. ७ नद्योत नामकर्म.
GO
०० गुरुलघु नामकर्म. ८१ तीर्थकर नामकर्म. ८२ निर्माण नामकर्म. ८३ उपघात नामकर्म. त्रस नामकर्म.
G५ बादर नामकर्म. ८६ पर्याप्त नामकर्म. ८७ प्रत्येक नामकर्म. ८० स्थिर नामकर्म.
६७ ऊष्णस्पर्श नामकर्म. ९१ सुस्वर नामकर्म. ६८ स्निग्धस्पर्श नामकर्म. ९२ श्रादेय नामकर्म.
ए ३ यशः कीर्त्ति नामकर्म.
६० रुस्पर्श नामकर्म. नरकानुपूर्वी. ७१ तिर्यगानुपूर्वी. ७२ मनुष्यानुपूर्वी.
४ स्थावर नामकर्म. सूक्ष्यं नामकर्म. ६ अपर्याप्त नामकर्म.
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(५६९) ए७ साधारण नामकर्म. | १०१ :स्वर नामकर्म. ए अस्थिर नामकर्म. १०२ अनादेय नामकर्म. एए अगुन नामकर्म. १०३ अयशोऽकीर्ति १०० कुर्नाग्य नामकर्म. । नामकर्म.
॥ सातमा गोत्रकर्मनी उत्तर प्ररति बे॥ १ नच्चैर्गोत्र.
३ नीचैर्गोत्र. ॥ आठमा अंतराय कर्मनी उत्तर प्रकृति पांच ॥ १ दानांतराय.
४ उपनोगांतराय. २ लानांतराय.
५ वीर्यातराय. ३ नोगांतराय. एवं आठ कर्मनीएकशो अहावन उत्तर प्रकृति जाणवी.
॥ अथ नव तत्त्वना नाम ॥ १ जीवतत्त्व- ४ पापतत्त्व- ७ निर्जरातत्त्व. २ अजीवतत्त्व-५ आश्रयतत्त्व बंधतत्त्व. ३ पुण्यतत्त्व- ६ संवरतत्त्व-ए मोक्तत्त्व.
॥ हवे ए नव तत्त्वमांहेला प्रत्येकें एकेका तत्त्व ना जुदा जुदा नेदोनी संख्या विवरीने लखीयें .यें. तिहां प्रथम जीव तत्त्वना चौद नेद , ते लखीयें बैयें.
१ सूक्ष्म एकेंख्यि पर्याप्ताः २ बादर एकेंश्यि पर्याप्ताः ३ संझी पंचेंख्यि पर्याप्ताः
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(५७०) ४ असंझी पंचेंश्यि पर्याप्ताः ५ बेंघिय पर्याप्ताः ६ तेंख्यि पर्याप्ताः
७ चरिंघिय पर्याप्ताः ए सात नेद पर्याप्ताना तेनी साथें एज सात नेद अपर्याप्ताना नेलीयें, तेवारे सर्व मली जीवत वना चन्द नेद थाय, ते अरूपी जाणवा.
॥ बीजा अजीव तत्त्वना चौद नेद कहे जे ॥ धर्मास्तिकायस्कंध. !: आकाशास्तिकायदेश. २ धर्मास्तिकायदेश. ए आकाशास्तिकायप्रदेश, ३ धर्मास्तिकायप्रदेश. १० कालवर्तनालण. ४ अधर्मास्तिकायस्कंध. ११ पुजलास्तिकायस्कंध, ५ अधर्मास्तिकायदेश. १२ पुजलास्तिकायदेश. ६ अधर्मास्तिकायप्रदेश. १३ पुजलास्तिकायप्रदेश. ७ आकाशास्तिकायस्कंध. १४पुजला स्तिकायपरमाणु
एमां. धर्मास्तिकायादिकना दश नेद अरूपी अने पुजला स्तिकायना चार नेद रूपी जावा. ॥त्रीजा पुण्यतत्त्वना बेहेंतालीश नेद कहे ॥ १ शातावेदनीय. ५ देवगति. २ उच्चैर्गोत्र.
६ देवानुपूर्वी. ३ मनुष्यगति. ७ पंचेंड्यिजातिनामकर्म ४ मनुष्यानुपूर्वी. ज्यौदारिकशरीरनामकर्म
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(५७१) ए वैक्रिय शरीरनामकर्म २६ उद्योत नामकर्म. १० आहारक शरीरनाम. २७ गुन विहायोगति ना ११ तैजसशरीरनामकर्म. मकर्म. १श्कार्मणशरीरनामकर्म. २७ निर्माण नामकर्म, १३ औदारिक अंगोपांग. २ए त्रस नामकर्म. १४ वैक्रियधंगोपांगनाम ३० बादर नामकर्म. १५ आहारक अंगोपांग. ३१ पर्याप्ति नामकर्म. १६ वजषजनाराच सं ३२ प्रत्येक नामक घयण.
३३ स्थिर नामकर्म. १७ समचतुरस्त्रसंस्थान. ३४ गुन नामकर्म. १७ गुनवर्ण.
३५ सौजाग्य नामकर्म. १ए गुनगंध.
३६ सुस्वर नामकर्म. २० गुनरस.
३७ आदेय नामकर्म. २१ गुनस्पर्श. ३८ यशकीर्ति नामकर्म. २२ अगुरु लघुनामकर्म. ३ए देवायु. २३ पराघात नामकर्म. ४० मनुष्यायु. २४श्वासोवासनामक० ४१ तिर्यंचायु. २५ घातप नामकर्म. ४२ तीर्थकर नामकर्म.
ए बेहेंतालीश नेद रूपी जाणवा. ॥ चोथा पाप तत्वना व्याशी नेद कहे जे ॥ १ मतिज्ञानावरणीय. धमनःपर्यवज्ञानावरणीय २ श्रुतझानावरणीय. ५ केवलझानावरणीय. ३ अवधिज्ञानावरणीय. | ६ दानांतराय.
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(५७२) ७लानांतराय. | ३१ अनादेयनामकर्म. ७ नोगांतराय. ३२ अयशनामकर्म. ए उपनोगांतराय. ३३ नरकगति. १० वीतराय. |३४ नरकायु. ११ चक्षुर्दर्शनावरणीय. ३५ नरकानुपूर्वी. १२ अचदुर्दर्शनावरणीय ३६ अनंतानुबंधी क्रोध. १३ अवधिदर्शनावरणीय ३७ अनंतानुबंधी मान. १४ केवलदर्शनावराीय. ३७ अनंतानुबंधी माया. १५ नि.
३ए अनंतानुबंधी लोन. १६ निशानिशा. ४० अप्रत्याख्यानी क्रोध. १७ प्रचला.
|४१ अप्रत्याख्यानी मान, १७ प्रचलाप्रचला. १२ अप्रत्याख्यानीमाया. १ए थीगड़ी.
४३ अप्रत्याख्यानी लोल. २० नीचर्गोत्र
४४ प्रत्याख्यानी कोध. २१ आशाता वेदनीय. ४५ प्रत्याख्यानी मान. २२ मिथ्यात्वमोहनीय. ४६ प्रत्याख्यानी माया. २३ स्थावरनामकर्म. ७ प्रत्याख्यानी लोन. २४ सूझनामकमें.
संज्वलन क्रोध. २५ अपर्याप्तनामकर्म. ४ए संज्वलन मान. २६ साधारणनामकर्म. ५० संज्वलन माया. २७ अस्थिरनामकर्म. ५१ संज्वलन लोन. २७ असुननामकर्म. ५२ हास्यनो कषाय. शए उर्जाग्यनामकर्म. ५३ रतिनो कषाय. ३० फुःस्वरनामकर्म. ५४ अरतिनो कषाय.
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(५७३) ५५ शोकनो कषाय. ६ए अप्रशस्त वर्ण. ५६ नयनो कषाय. ७० अप्रशस्त गंध. ५७ गंडानो कषाय. ७१ अप्रशस्त रस. ५७ पुरुषवेदनो कषाय. ७२ अप्रशस्त स्पर्श. एए स्त्रीवेदनो कषाय. ७३ षननाराचसंघयण ६० नपुंसकवेदनो कषाय ७४ नाराचसंघयण. ६१ तिर्यचगति. ७५ अईनाराच संघयण. ६२ तिर्यचानुपूर्वी. ७६ कीलिकासंघयण. ६३ एकेंश्यिजाति. ७७ वहुं संघयण. ६४ बेंझ्यिजानि. ७७ न्यग्रोधपरिमंमलसं० ६५ तेंड्यिजाति. पए सादिसंस्थान. ६६ चतुरिंडियजाति, वामनसंस्थान. ६७ अगुनविहायोगति.७१ कुब्जसंस्थान, ६७ उपघात नामकर्म. २ ढुंमकसंस्थान.
ए व्याशी नेद रूपी जागवा. ॥ पांचमा आश्रव तत्वना बेहेंतालीश नेद कहे ॥ १ स्पर्शनेंश्यि. G माया कषाय. २ रसनेश्यि .
ए लोन कषाय. ३ घ्राणेंश्यि. १० प्राणातिपात अव्रत. ४ चढुरिझिय. २१ मृषावाद अव्रत. ५ श्रोत्रंडिय.
१२ अदत्तादान अव्रत. ६ क्रोध कषाय. १३ मैथुन अव्रत. ७ मान कषाय. | १४ परिग्रह अव्रत.
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(५७४) १५ अगुनमनोयोग. | ए टष्टिकी क्रिया. १६ अशुनवचनयोग. ३० पाडुच्चकी किया. १७ अगुनकाययोग. ३१ सामंतोपनिपातिकी. १७ कायिकी क्रिया. ३२ नैशस्त्रिकी क्रिया. १७ अधिकरणकी किया. ३३ स्वहस्तकी क्रिया. २० प्रक्षेषिकी क्रिया. ३५ आझापनिकी क्रिया. २१ पारितापनकी क्रिया. ३५ विदारणिकी क्रिया. २२ प्राणातिपातकी क्रिया ३६ अनानोगिकी क्रिया. २३ आरंनकी क्रिया. ३७ अनवकांप्रत्ययिकी .२४ पारियहिकी क्रिया. क्रिया. २५ मायाप्रत्ययिकीकिया ३७ प्रयोगिकी किया. २६ मिथ्यात्वदर्शनप्रत्ययि ३७ समुदायिकी किया. की क्रिया.
४० प्रेमकी क्रिया. अप्रत्याख्यानकी क्रिया १ देषिकी क्रिया. २७ दृष्टिकी क्रिया. ४२ ईपथिकी किया.
ए बेहेंतालीश नेदरूपी जाणवा.
॥ बहा संवरतत्त्वना सत्तावन नेद कहे जे ॥ १ यसमिति.
५ उच्चारपासणखेलसिं २ नापासमिति.
घाणजलपारिष्ठापनि ३ एषणासमिति.
कासमिति. ४ आदान नंम्मतनिदे ६ मनोगुप्ति. पणासमिति. ७ वचनगुप्ति.
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(५७५) G कायगुप्ति. ३२ माईवधर्म.
ए दुधापरिसह. ३३ आर्यवधर्म. १० पिपासापरिसह. ३४ मुक्तिधर्म. ११ शीतपरिसह.
| ३५ तपोधर्म. १२ नुष्णपरिसह. ३६ संयमधर्म. १३ मंशमशकपरिसह. ३७ सत्यधर्म. १४ अचेलक परिसह. ३७ शौचधर्म, १५ अरतिपरिसह. ३ए अकिंचनधर्म. १६ स्त्रीपरिसह. ४० ब्रह्मचर्यधर्म. १७ चर्याप रिसह. ४१ अनित्यनावना, . १७ नैपेधिकीपरिसह. ४२ अशरगनावना. १० शय्यापरिसह. ४३ संसारनावना. २० आक्रोशपरिसह. ४४ एकत्वनावना. २१ वधपरिसह. | १५ अन्यत्वनावना. २२ याचनापरिसह. ४६ अशुचिनावना. २३ अलानपरिसह. ४७ याश्रवनावना. २४ रोगपरिसह. ४७ संवरनावना, २५ तृणफरसपरिसह. पए निर्धारानावना. २६ मलपरिसह. ५० लोकस्वरूपनावना. २७ सत्कारपरिसह. . ५१ बोधि जनावना. २८ प्रज्ञापरिसह. ५२ धर्मनावना. शए अज्ञानपरिसह. ५३ सामायिक चारित्र. ३० सम्यक्तत्वपरिसह. ५४ वेदोपस्थापनीय चा ३१ माधर्म.
रित्र.
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(५७६)
५५ परिहारविशुद्धिचारित्र. ५७ यथाख्यातचारित्र. ५६ सूक्ष्यसंपरायचारित्र..
ए सत्तावन्न नेद अरूपी जाणवा. ॥ सातमा निर्जरा तत्त्वना बार नेद कहे २ ॥ तेमां प्रथम प्रकारे प्रकारे अन्यंतर बाह्य तप कहे .
तप कहे . १ अनशन तप.
७ प्रायश्चित्त तप. ५ कणोदरी तप. G विनय तप. ३ व्रतिसंदेप तप. (ए वैयावज तप. ४ रसत्याग तप. (0 सजाय तप. ५ कायक्लेश तप. ११ ध्यान तप. ६ संलीनता तप. १२ उपसर्ग तप.
ए बार नेद अरूपी जावा. ॥ आठमा बंधतत्त्वना चार नेद कहे ॥ १ प्रतिबंध.
३ अनुनागबंध. २ स्थितिबंध. । प्रदेशबंध.
ए चार नेद अरूपी जावा. ॥ नवमा मोदतत्त्वना नव नेद कहे ॥ १ बतापदनीप्ररूपणा । ३ देत्रछार. मुंहार.
४ स्पर्शनाचार. २ व्यप्रमाणहार. ५ कालछार.
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( ५७७) ६ अंतरशार.
दायिकादिकनावधार. नागधार.
ए अल्पबदुत्वधार. ए नव नेद अरूपी जाणवा. अथ चार गतिमा रहेला समस्त संसारी जीव,चोवीश दंझकोने विपे परिचमण करे , ते दमकनां नाम कहे ने. तिहां प्रथम सात नारकी गो एक दमक ने, ते साते नारकीनां नाम तथा गोत्र, नीचे प्रमाणे .
नाम. गोत्र. ४ अंजणा. पंकप्रना. १ घमा, रत्नप्रना. ५ रिहा. धूमप्रना. २ सा. शकरप्रना. | ६ मघा. तमप्रना. ३ सेला. वालुकप्रना. | माघवती.तमतमप्रना हवे दश जवनपतिना दश दमक तेनां नाम कहे जे. १ असुरकुमार निकायनो दमक. २ नागकुमार निकायनो दमक. ३ सुवर्णकुमार निकायनो दमक. ४ विद्युत्कुमार निकायनो दमक. ५ अग्निकुमार निकायनो दमक. ६ दीपकुमार निकायनो दंमक. ७ नदधिकुमार निकायनो दंगक. G दिशिकुमार निकायनो दंझक.
ए वायुकुमार निकायनो दंझक. १० स्तनितकुमार निकायनो दमक.
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( ५७८ )
बारमो पृथिवी कायनो दंमक, तेना मूलनाम ब
बे, ते कहे बे.
३ वालुया. ६ खरपुढवी.
॥ हवे ए पृथिवी कायना नेद कहे बे ॥
१ स्फाटिकरत्न. १ मणिरत्न. ३ रत्ननी सर्वजाति. ५ हिंगनो.- ६ हरताल. ८ पारो. - ए सोनुं.
१० रूपुं.
११ त्रांबुं.- १२ लोढूं. १४ सीसं. १५ कथिर.
१३ जसत.
१६ खडीमाटी.१ ७हरमजीवानी. १ पारणेटोपापा. १९ पजेवोपापा. १० बरख. २१ तूरीमाटीनीजाति. २२ खारीमाटीनीजाति. २३ माटीनी सर्वजाति. २४ पाषाणनी सर्वजाति. २५ सुरमानी जाति. २७ लूगनी जाति.
२६ अंजननी जाति.
इत्यादि पृथिवी कायना अनेक भेद जाणवा.
कायनो ढंक बे, तेना नेद कहे बे.
५ रोयेडानुं पाणी. ६लीली वनस्पतिनुं पा० 9 मांकनुं पाणी.
घनोद धि ते पृथ्दीनो
१ सुना. ४ मणशिल.
२ सुधा. ५ शर्करा.
४ परवालां. -
७ मणशिल. -
तेरमो १ जमीननुं पाणी. २ प्रकाशनुं पाणी
ने नदीसमुड् कूपा दिकनुं जल.
३ गरनुं पाणी. ४ हिमनुं पाणी.
आधारभूत श्री एयाघृ तसमानजल पिंग.
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(५७५) alanidaaraat inक बे, तेना नेद कहे बे.
१ अंगारानो अमि.
४ उल्कापातनो अमि.
२ ज्वालानो अमि.
५ कलियानो अमि.
३ चासडनो अमि.
६ विजलीनो अमि.
परमो वाकायनो दंमक बे तेना नेद कहे बे.
·
१ उद्भ्रामक वायु. २ मंदवा.
८ तनवात.
३ उत्कलिकवायु. ४ मंमलिकवायु. शोजमो वनस्पतिकायनो दमक छे. तेनी मूलजाति वे बे, तिहां जे एकशरीरमां अनंता जीव होय ते साधा रण वनस्पति ने जे एक शरीरमां एक जीव होय, प्रत्येक वनस्पति कहेवाय, तेना नेद कहे बे.
५ मुखशुं वायु. ६ गुंजवायु.
७ घनवात.
१ गुब्बा, २ वृक्ष, ३ गुल्म, ४ लता, ५ वल्ली, ६ तृण, ७ जलरुह, औषधि, ए कुहन, १० पर्वग, ११ हरि. इत्यादिक ना अनेक भेद बे.
मत्तरमो डियो inक बे, तेना जेद कहे बे.
१ शंख. २ कोमा.
३ गंफोला.
५ अलसीया. ६ जारीया.
४ जलु. ७ मेहरी. ऋमिया. पाणीना पूरा. ढारमो तेंयिनो दमक बे, तेना नेद कहे बे.
१ कानखजुरा. ४ की डियो.
२ मांकड.
५ उदेही.
३ जू. ६ मक्कोडा.
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(५०) ७ न.
७ घीमेल. ७ घामल. पता
ए सावा. १० गोकीडा. ११ गदहीया. १२ विष्टाना कीडा. १३गोबरना कीडा.१४ धनेरियां. १५ कुंथुप्रा. १६ गोपालिक. १७ इंगोप. उगणोशमो चोरिश्यिनो दंक , तेना नेद कहे . १ वींजी. ४ चमरी. मांस. १० कंसारी. २ ढंकण. ५ टीड, मत्सर.११ खडमांकडी. ३ चमरा. ६ मारखी. ए पतंगीया. वीशमो तिर्यंचपंचेंयिनो दमक .तेनात्रणनेद कहे. १ जलचर. २ स्थलचर., खेचर. ४ तर परिसर्प, ५ नुजपुरिसर्प, ए वे स्थलचर मांहेला . एकवीशमो मनुष्यनो दमक जे. तेना नेद कहे . जरतादिक पंदर कर्मभूमि देवनां मनुष्य. देवकुरादिक त्रीश अकर्मनूमि देवनां मनुष्य. बप्पन्न अंतर छीपनां मनुष्य. ए सर्व मती एकशोने एक नेदो थया. वावीशमो वाणव्यंतर देवोनो दंमक नेते बे प्रकारें.
एक व्यंतरनी निकाय , तेना बाठ नेद कहे . १ पिशाच. ३ यद. ५ किन्नर. ७ महोरग. २ नूत. ४ रादस.६ किंपुरुष. गंधर्व. बीजी वाणव्यंतरनी निकाय तेना पण पाठ नेद जे. १ अणपनि. ३ हृसिवादि. ५ कंदी. ७ कोहंम. २ पणपनि. ४ नूतवादि. ६ महाकंदी. पतंग.
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(५७१) त्रेवीशमो ज्योतिषी देवोनो दंमक पांच प्रकारे जे.
१ चं. २ सूर्य: ३ ग्रह. ४ नत्र. ५ तारा. चोवीशमो वैमानिक देवोनो दमक.तेना मूल बे नेद ले.
एक कल्प एटले आचारवाला देवो ते वार देव लोकना लेदें करी बार प्रकारें ले. तेना नाम कहे . १ सौधर्म देवलोक. ७ महाशुक्र देवलोक. २ ईशान देवलोक. सहस्रार देवलोक. ३ सनत्कुमार देवलोक. ए पानत देवलोक. 8 माहें देवलोक. १० प्राणत देवलोक. . ५ ब्रह्म देवलोक. ११ ारण देवलोक. ६ लांतक देवलोक. १२ अच्युत देवलोक.
बीजा कल्पातीत एटले जेने विपे स्वामी सेवक संबंध नथी, एवा देवों तेना मूल वे प्रकार बे. एक न ववेयक वासी, बीजा पांच अनुत्तर विमान वासी तेमां प्रथम नवयैवेयकनां नाम कहे . १ सुदर्शन. ४ सर्वतोन. ७ सौमनस्य. २ सुप्रतिबद. ५ सुविशाल. प्रीतिकर. ३ मनोरम. ६ सुमनस. ए आदित्य.
हवे पांच अनुत्तर विमानना नाम कहे ले. १ विजय. ३ जयंत. ५ सर्वार्थसिदि. २ विजयंत.. ४ अपराजित. ए रीतें ए चोवीश दमकनां नेद सहित नाम कह्यां.
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(५७२) हवे प्रत्येक दंमकें चोवीश चार कहेवाय, तेनां नाम.
पहेलुं शरीर हार पांच प्रकारें . १ औदारिकशरीर,श्याहारकशरीर, एकार्मणशरीर. २ वेक्रिय शरीर, ४ तैजस शरीर, बीजं अवगाहना धार. ते प्रत्येक दंमकें जघन्य तथा उत्कृष्ट एवा वे नेदें शरीरनु प्रमाण कहेवं.
त्रीजुं संघयण हार ब प्रकारें . १ वजषजनाराच संघयण. ४ अईनाराचसंघo '२ रुपननाराचसंघयण. ५ कालिका संघयण.
३ नाराच संघयण. ६ वहुँ संघयग. हवे ए संघयणवाला जीवो कर्ध्वगति गमन करे, तो कया संघयवाला क्यां सुधी जाय? ते कहे जे.
१वज झपन नाराच संघयणवाला,मोहपर्यंत जाय. श्वननाराचसंघयवाला,बारमादेवलोकपर्यंतजाय ३ नाराच संघयणवाला, दशमादेवलोक पर्यंत जाय. ४ अईनाराचसंघयणवाला,याउमादेवलोकपर्यंतजाय ५ कालिका संघयणवाला, बहा देवलोकपर्यंत जाय. ६ वहा संघयावाला, चोथा देवलोक पर्यंत जाय.
हवे अधोगति गमन करे, तो कया संघयणवाला जीव क्यां सुधी जाय ? ते कहे जे. १ वज झपन नाराच संघयावाला सातमी नरक दृथिवी पर्यंत जाय.
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(५७३) २ पजनाराच संघयावाला, बही नरक एथिवी ___ पर्यंत जाय; ३ नाराचसंयवाला, पांचमीनरकप्टथिवीपर्यंतजाय ४ अर्धनाराचसंघयवाला,चोथीनरकप्रथिवीपर्यंत ५ कालिकासंघयणवाला,त्रीजीनरकप्टथिवीपर्यंतजाय. ६ वहा संघयवाला, बीजीनरकप्टथिवीपर्यंत जाय. चोथु संझा हार, दश प्रकारें बे. तेनां नाम कहे . १ आहारसंज्ञा. ५ क्रोधसंझा. लोन संझा. २ नयसंझा. ६ मानसंझा. ए लोकसंझा, ३ मैथुनसंझा. ७ मायासंझा. १० उघसंझा. ४ परिग्रहसंझा. तथा नीचें लखेली ब संझा साथें मेलवतां शोलप्रकार पण थाय . १ सुख सहा. २ ख संझा, ३ मोहसंझा. ४ उगंबा संझा. ए शोक संझा. ६ धर्म संझा. पांचेमुं संस्थान हार, ब प्रकारें , तेनां नाम कहे . १ समचतुरस्त्र संस्थान. ४ कुब्ज संस्थान. २ निग्गोहपरिमंगल संस्थान. ५ वामन संस्थान. ३ सादि संस्थान. ६ ढुंमक संस्थान.
अहीं पांच इंश्योनां संस्थान कहे जे. १ स्पर्शेडियनुं नाना प्रकारचें संस्थान होय जे. २ रसेंझ्यिनुं खुरपा सर संस्थान होय . ३ घ्राण इंडियनुं तिलना फूल सर संस्थान होय .
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(५७४) ४ चरिंडियनुमसरनीदालसर अचंशकारें सं० ५ श्रोत्रंश्यितुं कपटदना फूल सरखं संस्थान . बहुं कषाय हार, चार प्रकारें बे. तेनां नाम कहे . १ कोध, २ मान, ३ माया, लोन,
सातमुं लेश्या चार ब प्रकारें . १ कृष्णलेश्या. ३ कापोतलेश्या. ५ पद्मनेश्या. ६ नीललेश्या. तेजोलेश्या. ६ शुक्नेश्या.
आठमुं इंडिय हार पांच प्रकारें ले. १ स्पर्शनेंडिय. २ रसेंश्यि. ३ घ्राणे श्य. '४ चदुरिंघिय. ५ श्रोत्रश्यि.
नवमुं समुद्धात झार सात प्रकारें . १ वेदनासमुद्घात, वैक्रियममुद्घात, केवालसमु २ कषाय समुद्घात, ५ तजस समुद्घात. ३ मरण समुद्घात. ६ आहारक समुद्घात.
दशमुं दृष्टिधार त्रण प्रकारें . १ सम्यकदृष्टि, ५ मिथ्यादृष्टि, ३ मिश्रदृष्ठि, .
यगीयारमुं दर्शन ार चार प्रकारें बे. १ चतुर्दर्शन. २ अचकुर्दर्शन. ३ अवधिदर्शन. ४ केवलदर्शन. बारसुंझानतथातेरमुंअज्ञान हार मली आठ प्रकारे . १ मतिज्ञान. २ श्रुतझान. ३ अवधिज्ञांन. ४ मनःपर्यवझान. ५ केवलझान. ६ मतिअज्ञान. ७ श्रुतबझान. विनंगझान. ए रीतें पांच शान ने त्रण अज्ञान, चार कह्यु.
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(५५) तेरमुं योग झार पंदर प्रकारे जे. १ सत्यमनोयोग. ए औदारिक काययोग. २ असत्यमनोयोग. १औदारिकमिश्रकाययोग ३ सत्यमृषामनोयोग. ११ वैकियकाययोग.
असत्यामृधामनोयोग. १२ वैक्रिय मिश्रकाययोग. ए सत्यवचनयोग. १३ आहारककायाग. ६ असत्य वचनयोग. १४ाहारकमिश्रकाय सत्यमृपावचनयोग. १५ कार्मणकाययोग. असत्यामृषावचनयोग.
चौदमुं नपयोग हार बार प्रकारे जे. १ मतिज्ञान, २ श्रुतझान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनःपर्यवझान, ५ केवलज्ञान, ६ मतिअज्ञान, ७ श्रुतझान. विनंगझान. ए चकुर्दर्शन. १० अचलुर्दर्शन. ११ अवधिदर्शन. १५ केवलदर्शन. पन्नरमुं उपपात चार ते प्रत्येक दमकने विपे एक स
मयमां केटला जीव यावी उपजे, तेनी जघन्य
तथा उत्कृष्टथी संख्या कहेवानुं धार. शोलमुं च्यवनहार, ते प्रत्येक दमकने विपे एक सम
यमा केटला जीव चवे, तेनी जघन्य तथा न
कृष्टथी संख्या कहेवा, हार. सत्तरमुं आयुष्य चार ते चारगति आश्री चार प्रकारे ने. तेमां कया कया दंमकें केटलु केटलुं आयुष्य ? तेनुं प्रमाण कहेवानुं धार.
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( ५८६ )
अढारमुं पर्याप्तिनुं द्वार. व प्रकारें बे. २ शरीरपर्याप्ति. ४ श्वासोबास पर्याप्ति. ६ मनःपर्याति.
जंगलीश दिन आहार द्वार व प्रकारे बे.
१ अधोदिशि श्राहार.
२ ऊर्ध्वदिशि हार.
१ आहारपर्याप्ति. ३ इंडियपर्याप्त.
५ जापापर्याति
४ पश्चिमदिशि श्राहार. ५ दक्षिणदिशि प्रहार. ६ उत्तरदिशि प्रदार.
३ पूर्वदिशि श्राहार.
वीश संज्ञा द्वार त्रण प्रकारें टे. १ दीर्घकालिक संज्ञा. २ हीतोपदेशिकी संज्ञा. ३ दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा.
एकवीशमं गति द्वार. ते कया दंमकनो जीव मरी ने कया कया कमां जाय ! ते कहेवानुं द्वार. बावीशमं प्रागति द्वार ते प्रत्येक ढंकने विषे केटला दमकना जीव, वी उपजे ? ते कहेवानुं द्वार. वीशमं वेद द्वार त्रण प्रकारें बे. १ पुरुषवेद. २ स्त्रीवेद. ३ नपुंसकवेद. चोवीशमं अल्पबहुत्वनुं द्वार हाणुं प्रकारें बे.
अथ चौद मार्गणानां नाम उत्तर नेद सहित. पहेली गति मार्गणा चार प्रकारें बे.
१ देवगति, शमनुष्यगति, ३ तिर्यचगति, ४ नरकगति. बीजी इंडियमार्गणापांच प्रकारें बे.
१ एकेंड़ी. १ वें . ३ तेंड़ी. ४ चोरिंडी. ५ पंचेंड़ी.
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( ५७७) त्रीजी कायमार्गणा प्रकारें . १ पृथिवीकाय- २ अपकाय. ३ तेनकाय. ४ वायुकाय, ५ वनस्पतिकाय. ६ त्रसकाय.
चोथी योग मार्गणा त्रण प्रकारे जे. १ मनोयोग. २ वचनयोग. ३ काययोग.
पांचमी वेद मार्गणा त्रण प्रका: . १ पुरुषवेद. २ स्त्रीवेद. ३ नपुंसकवेद.
बही कषाय मार्गणा चार प्रकारें . १ कोध. २ मान. ३ माया. ४ लोन.
सातमी झान मार्गणा आठ प्रकारें . १ मतिदान. २ श्रुतझान. ३ अवधिझान. ४ मनःपर्यवझान. ५ केवलझान. ६ मतिअज्ञान. ७ श्रुतबझान. विनंगझान.
प्रातमी संयम मार्गणा सात प्रकारे ले. १ सामायिक चारित्र. २ वेदोपस्थापनीय. ३ परिहार विशुदि. ४ सूक्ष्क्षसंपराय चारित्र. ५ यथारख्यात चारित्र. ६ देश विरति चारित्र. ७ असंयम अविरति.
नवमी दर्शन मार्गणा चार प्रकारें बे. १ चदुर्दर्शन. २ अचदुर्दर्शन. ३ अवधिदर्शन. ४ केवलदर्शन.
दशमी लेश्या मार्गणा प्रकारें . १ कृष्णलेश्या. २ नीललेश्या. ३ कापोतलेश्या ४ तेजोलेश्या. ५ पद्मलेश्या. ६ शुक्ललेश्या.
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(५७) अगीयारमी जव्य मार्गणा बे प्रकारें . १ नव्य.
२ अनव्य. बारमी सम्यत्व मार्गणा ब प्रकारे ने. १ उपशम. २ कायोपशम. ३ दायिक. ४ मिश्र.
स्वादन. ६ मिथ्यात्व तेरमी सन्नी मार्गणा बे प्रकारे ने १ सन्नी.
२ असती. चौदमी आदार माणा बे प्रकारें . १ आहारक.
२ अण्णाहारक. बत्रीश अनंत कायनां नाम. १ सर्व कंदनीजाति. १४ गाजर. २ सूरणकंद. ! ए लूणो साजी वृद. ३ वजकंद.
२६ लोढो पद्मनी कंद. ४ लीली हलदर. १७ गिरिकर्णिका एटले ५ लीलुं आउं.
सर्व वनस्पतिना नवा ६ लीलोकचुरो.
गतां कुंपलपान. ७ सत्तावरीवेली. १७ खरसुधाकंद. G विरालीवेली. १ए थेगकंद. ए कुंधारि.
२० नीलीमोथ. १० थोहरिकंद. २१ लूणक्नी बाली थ ११ गलो.
नंतकाय जाणवी, प १२ लसण कली.
रंतु एना बीजाधव १३ वांसना कारेला. यव अनंतकायनहीं.
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(५७ए) २२ खीलुडा कंद विशेष. नस्पति पहेलु कग्यु २३ अमृतवेलि.
तेहज, बीजुं नही. २४ मूलानी पाड. २७ सूअरवेली. २५ जूमिफोडा जे वर्षाका शए पनंकशाक विशेष.
लें बत्राकारें नगे ते. ३० कुवली यांविली. २६ विरुहाअंकृयाधान्य. ३१ घालुकंद. २७ टंक वबुलशाक ते व ३२ पिंमालुकंद.
बावीश अनदयनां नाम. १ वडनी पीपु अनद. ११ विष ते सामलप्रमुख. २ पिंपलनी पीपु. एथी उदर गत जीवो ३ नंबरनां फल.
नो विनाश थाय . ४ पीपरीनी पेपडी. १२ करहाबदुजीवमय जे. ५ कतुंबरना फल. . १३ सर्व माटीनी जाति. ६ मधुएमांत्रस जीवनी १४ रात्रिनोजनअनदयले ___ उत्पत्ति थाय. १५ वटुबीजतेपंपोटादिक ७ मद्य एमां तेवाज व १६ बत्रीश अनंतकाय.
ना जीव उपजे जे, १७ बोलानु अथाj. ७ मांस एमां त्रसजीव १७ घोलवडांजे काचा गो
नी उत्पत्ति थाय. । रसमाहेकस्यांहोय ते. एमाखणएमहासावद्य १ए वेंगण ते रीगणा. १० हिम ए बदु अपकाय २० जेने उलखीयें नही. मय . .
एवा अजाण्यां फूल फल पान प्रमुख.
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( ५५० )
२१ तु फल ते कुली २२ चलित रस थयेली वस्तु प्रति काचांफल मदुडां जांबू प्रमुख.
जीवजाती. हस्तिया यु.
मनुष्यायु.
अश्वत्र्यायु.
व्याघत्र्यायु.
कागग्रायु.
गर्दनायु.
बालीयायु.
हरणप्रायु.
हंसप्रायु. मांजारीयु.
सूडाप्रायु.
मायायु.
सारसत्र्यायु.
वस्तु ते सडेलुं नादिक जाणवुं.
अथ प्रायुर्नाब लिख्यते,
त्र्यायुवर्ष - सर्पायु. १२० कीडीयायु. १२० नंदरायु.
1
१०० स्वरत्र्यायु६४ वागोलप्रायु. १६ बपैयाप्रायु. १२ सिंहखायु.
श्वानयायु.
शियालखायु. २४ माढलायायु.
२४ नंटत्र्यायु. १०० नेंसग्रायु.
३२- ४८ ससलायायु. ६४ | देवीच्या यु.
१२ | गायत्र्यायु. १३ घेटाश्रायुवर्ष
१००-१२०
१
२-१०
१०-१४
५०
५०
५०
३०
१०००
१०००
२५
२५
२५
१६
३
क्रौंच आयु.
२० जूायु मास ५० कंसारीत्र्यायु- मास. ६० वींबी आयु मास. ६० चौरिंडिया मास. संमूर्छिम गर्प्रज जलचरनुं उत्कृष्टायु पूर्वकोडी वर्षनु
६
बगला आयु.
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( ५५१) अथश्रीजिननुवनने विषे चोराशी आशातना न करवी, तेनां नाम लखीये डेयें. १ बडखो न नाखवो.| श्श्यांखनोमेलननाखवो २ हिंचोलादि क्रीडान २३ नखनोमेलननावो. ३ कलहप्रमुखन करवो.| २धगंमस्थलनो मेल न
धनुष्कलादि न करवी. २एनाकनोमेलननाखवो. ५ पाणीना कोगला न० २६माथानोमेलननाखवो ६ तांबलादिक न खावां. २७ काननोमेलननाखवो. ७ तांबूल धुंकवां नही. | २७ शरीरनी चामडीनो G मुखथीगालो न देवी. मेल न नाखवो. ए मूत्रविष्टा न नाखवी. शए मित्रसाथेमसलतन १० शरीर न धोएं. | ३०विवादाथैएकानथq. ११ वाल न उतराववा. ३१ नामुं न लखq. १२ नख न उतराववा. ३श्कोश्चीज वेचवी नही. १३ रुधिर न नाखवु. ३३ थापण न मूकवी. १४ सुखडी न खावी. | ३४मावेयासने न बेसबुं. १५ चामडी न नाखवी. ३५ बाणां थापवां नही. १६ पित्त वमन न कर. ३६ कपडांसूकववांनही. १७ वमन न करवू. |३७ धान्य सूकववां नही. १७ दांत नाखवा अथवा ३७ पापड सूकववा नही.
समारवा नही. ३० वडीयो करवी नही १५ विश्रामण न करवो. राजनयादिकेंपवून २० गाय प्रमुख म बांधवी. ४१ सदन करवू नही. २१ दांतनोमेलननाख वो ४२ विकथा करवी नही.
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( एए)
४३ शस्त्र घडवां नही. ६४जुहारसलामनकरवी. ४५ तिर्यंच बांधवा नही. ६५ नांम चेष्टा नकरवी. ४५ तापणी करवी नही. ६६तुंकार रेकार नकहेवो ४६अन्नादिक रांधवू नही. ६७ धरणे वेसवू नही. ४७ नाणुं परखवू नही. ६७ यु६ करवू नही. ४७ निसिहीनांगवी नही. ६एचोटलादिसमारवान ४ए बत्र धरवू नही. 30 पलोतीयें बेसबुं नही ५० खासडां मूकवां नहीं ! ७१ चांखडीपेहेरवी नही ५१ शस्त्र मूकवां नही. १२ लांबे पगे वेसवुनही ५२ चामर धरावq नही. ७३ पुडपुडीवगाडवी नही ५३ मन एकाग्र करवू. J कादव न करवो. ५४ तेलादिकनचोपड़वां. ७५अंगनी रज नमावीन. एए सचित्तनोग त्यजवो. ५६ मैथुन सेववू नही. ५६ अयोग्यअचेतत्यजवो ७७ जुगुटुं रमवू नही. ५७ जिनपीठेहाथजोडवा ७७ नोजन करवू नही. एएकसाडीउत्तरासणक. Yए मनयुक करवूनही. एए मुकुटधारण न करवो. ७० वैद्यकर्म करवू नही. ६० पाघडीनो अविवेक. ७१ व्यापार करवो नही. ६१ तोरादिक न घालवा. ७२ शय्यापाथरवीनही. ६२ होड न करवी. ७३ अाहार राखवो नही ६३ गेमीदडे रमवू नही. ७४ स्नान करवू नही.
ए चोराशी आशातना ते जिनप्रजादिक कार्यविना शरीर शुश्रूषादिकने अर्थे करे तो याशातना जाणवी.
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..
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(एए३) माटे तेनो त्याग करी बाझारुचि थइ आशातना र हित थका जिनमंदिरने विषे प्रवर्त.
सात नयनां नाम. १ नेगम नय, २ संग्रह नय. ३ व्यवहार नय. ४ जुसूत्र नय. ५ शब्द नय. ६ समनिरूढनय. ७ एवंचूत नय.
चार निदेपनां नाम. १ नाम निदेप. ३ इव्य निदेप. २ स्थापना निदेप. ४ नाव निदेप.
चार कारगनां नाम. १ नपादान कारण. ३ असाधारण कारण. २ निमित्त कारण. ४ अपेक्षा कारण.
यात मदनां नाम. १ जातिमद. २ कुलमद. ३ बलमद. ४ रूपमद. ५ श्रुतमद. ६ तपोमद. ७ लानमद, ऐश्वर्यमद.
अष्ट मांगलिकनां नाम. १ आरीसो. २ नशसन. ३ वर्षमान. ४ श्रीवत्स. ५ मत्स्ययुग्म. ६ प्रधानकुंन ७ साथीन. ७ नंदावर्त.
श्रावकनां बारव्रतनां नाम. १ स्थूलप्राणातिपातवि० ३ स्थूलथदत्तादानवि० २ स्थूलमृषावादविरमण ४ मैथुन विरमण व्रत.
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(५४) ५ परिग्रह परिमाण व्रत. ६ दिक् परिमाण व्रत. ७ नोगोपनोगपरिमाण. अनर्थदंमविरमणव्रत ए सामायिक व्रत. १० देशावगाशिकव्रत. ११ पौषधोपवास व्रत. १२ अतिथिसंविनागवत.
चौद गुणठाणानां नाम. १ मिथ्यात्व गुणतागुं. ८ निवृत्तिबादर गुणाणु २ सास्वादन गुणगां ए अनिवृत्तिबादर गुण ३ मिश्र गुणतागुं. १० सूनसंपराय गुणगणु. ४ अविरतिसम्यग्दृष्टि ११ उपशांतमोह गुणगाणु ' ५ देशविरति गुणगाणुं १५ की मोह गुणाणु. ६ प्रमत्त गुणतागुं. १३ सयोगीकेवली गुणवाणु ७ अप्रमत्त गुणगणुं. श्ययोगीकेवली गुणगाणु समूर्बिम मनुष्यने उपजवाना चौद स्थानक. १ वडिनीतिमांहे. रक्तमांहे. २ लघुनीतिमाहे. ए शुक्रपुजलमांहे. ३ श्लेष्ममांहे. १० साडेसुवा वीर्यमांहे. ४ नासिकानामलमांहे. ११ मृतकलेवर मांहे. ५ वमनमांहे. १२ स्त्रीपुरुषनेसंयोगें. ६ पत्तमांहे. १३ नगरनाखालमांहे. ७ पिरूमांहे. १४ सर्वअशुचिस्थानमांहे.
साधुना सत्तावीस गुणनां नाम. ५ प्रणातिपात विरमणादिक पांच महाव्रत. ६ रात्रिनोजनविरमण व्रत.
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( ५ए५)
१२ बक्कायना जीवोनी रक्षा करे, ते ब गुण. १७ पांच इंडियोनो निग्रह करे, ते पांच गुण. १७ लोचनो जय.
१५ दमा राखे.
२० नाव विशुद्धि एटले चित्तनिर्मलता. २१ पडिलेहण प्रजार्जन करवायी विशुद्धि याय. २२ संयमयोगयुक्तता.
२५ अकुशल मन वचन अने कायानुं संधयुं, ए त्रण. २६ शीतादिक वेदनानुं सहन करवुं.
२७ मरणांत उपसर्ग सहन करवा.
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त्रीश खकर्मभूमि क्षेत्रनां नाम. ५ हेमवंत क्षेत्र. | ५ हरिवर्ष क्षेत्र. ५ देवकुरु क्षेत्र. ५ उत्तरकुरु क्षेत्र. ५ रम्यक क्षेत्र. ५ऐरण्यवत क्षेत्र. पंदर कर्मभूमि क्षेत्रनां नाम.
५ नरतक्षेत्र. ५ ऐवतक्षेत्र. ५ महाविदेहक्षेत्र. सिद्धना एकत्री शगुणनां नाम. ३ त्रण वेद रहितं. १ शरीर रहित. १ संग रहित.
५ पांच संस्थान रहित. ५ पांच वर्ण रहित. २ बे गंध रहित. ५ पांच रस रहित. पाठ फरस रहित.
१ जन्म रहित.
प्रकारांतरें वली सिद्धना एकत्रीश गुण कहे बे. ५ पांच प्रकारनं ज्ञानावरणीय कर्मथी रहित.
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(एए६) ए नव प्रकारनां दर्शनावरणीय कर्मथी रहित. २ बे प्रकारना वेदनीय कर्मथी रहित. २ बे प्रकारना मोहनीय कर्मथी रहित. ४ चार प्रकार-ग थायु कर्मथी रहित. २ बे प्रकारना नाम कर्मथी रहित. २ बे प्रकारना गोत्र कर्मथी रहित. ५ पांच प्रकारना अंतर य कर्मथी रहित.
सात जयनां नाम. १ हस्तिनो नय. २ सिंहनो जय. ३ सपनो जय. ४ अाग्रनो नय. ५ समुादि जलनो जय. ६ राजानो जय. ७ चोरनोनय. संसारी जीवने सात महोटां सुख कह्यांबे, तेनां नाम. १ रोगरहित शरीर होय. २ कोश्नो देणदार न होय. ३ यात्रादिकविनाआजीविकार्येपरदेश न जाय. ४ घरमां स्त्री सुपात्र होय. ५ पुत्रपौत्रादिक-सुख होय. ६ सगा कुटुंबादिक चारे पदेंकरी सहित होय. ७ पंच महाजनमा प्रतिष्ठावान् होय.
दर्शननां नाम. १ जैनदर्शन. ५ मीमांसकदर्शन. ३ बौदर्शन. धनैयायिकदर्शन.५ वैशेषिकदर्शन. सांख्यदर्शन
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(५७)
सात नयनां नाम. १ इहलोक नय. २ परलोक नय. ३ आदान जय. ४ अकस्मात् जय.५ वेदना जय. ६ मरण नय. ७ अपजश अपकीर्त्तिनो नय.
नापानां नाम, १ संस्कृत २ प्रारूत. ३ शौरसेनी. ४ मागधी. ५ पैशाचिकी. ६ अपभ्रंशी. चक्रवर्तिनाचौदरत्नमां सात एकेंझ्यिरत्न,तेनां नाम. १ चकरन्न. २ बत्र रत्न. ३ चर्म रत्न. ४ दंम रत्न ५ असि रत्न. ६ मणि रत्न. ७ कांगणी रत्न.
मात पंचेंश्यि रत्ननां नाम. १ सेनापति रत्न. २ गाथापति रत्न. ३ सूत्रधार रत्न. ४ पुरोहित रत्न. ५ स्त्री रत्न. ६ अश्व रत्न. ७ गज रत्न.
॥ हवे जीवना प्रकार कहे ॥ १ चेतना लक्षणे करी सर्व जीव एक प्रकारें ; केम के, कीडी कुंजर सर्वमां चैतन्य सर जे, माटे.
हवे सर्वजीवना बेबे प्रकार कहे . १ सिघना जीव. १सकषायीजीव ते संसारी २ संसारीजीव. श्अकषायीजीव सिना. १ इंझ्यिसहित ते संसारी. १ सयोगीजीव ते संसारी २ इंभियरहित ते सिमना. २ अयोगीतेसिभनाजीव
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(५ ) १ सशरीरीजीवसंसारी. १ आहारीजीव ते संसारी २ अशरीरी जीवसिचना. २ अगाहारोजीव सिना १ सवेदीजीवसंसारी. १ जासगाजीव. २ अवेदीतेसिझना जीव. २ अनासगाजीव. हवे संसारी जीवना बे वे प्रकार अनेक रीतें कहे जे. १ त्रस बेंझ्यिादिकजीव. २ जेणे स्वयोग्यपर्याप्तिहजी २ स्थावर एकेंख्यि जीव लीधी नथी पण लेशे, ते १ सूक्ष्मजीव.
करण अपर्याप्ता जीव. २ बादरजीव. १ जेणे स्वयोग्यपर्याप्ति सर्व १ पर्याप्ताजीव. सीधी नथी पण लेशे ते २ अपर्याप्ताजीव. लब्धिपर्याप्ता जीव. १ नव सिदियाजीव. जे स्वयोग्य पर्याप्ति. २ अनवसिद्धिया जीव. पूर्ण पाम्यो ते करण १ जेस्वयोग्यपर्याप्ति नहीज पर्याप्ता जीव. लीयेतेलब्धिअपर्याप्ताजीव.
हवे संसारी जीवना त्रण त्रण प्रकार कहे जे. १ पुरुषवेदी. २ स्त्रीवेदी. ३ नपुंसकवेदी. १ मन योगी. २ वचन योगी. ३ काययोगी. १ संयति. २ असंयति. ३ संयतासंयति १ सम्यगदृष्टि. २ मिथ्यादृष्टि. ३ मिश्रदृष्टि. १ रुजुजड. श्रु जुप्राज्ञ. ३"वक्रजड. १ नव्यजीव. २ अनव्यजीव. ३ जातिनव्यजीव.
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(एएए)
सर्व जीवना त्रण प्रकार. १ नवसिदिया. २ अनवसिध्यिा . ३ नोजव सि
दिया अने नो अनव सिध्यिा ते सिघना जीव. १ पर्याप्ता. २ अपर्याप्ता. ३ नोपर्याप्ता, नो अपर्याप्ता ते सिमना जीव. १ सूक्ष्मजीव. २ बादरजीव. ३ नोसूझ नो बादर ते सिझना जीव.
॥ गतिभाश्री सर्व जीव चार प्रकारें ले ॥ १ देवगति, २ मनुष्यगति, ३ तिर्यचगति, ४ नरकगति.
॥इंख्यि आश्री सर्व जीव पांच प्रकारे ने ॥ .. १ एकेश्य बेंश्यि, ३ तेंश्यि न चौरिंख्यि एपंचेंश्यि.
॥ कायाश्री सर्व जीव प्रकारें ॥ १ पृथिवीकाय. २ अप्काय. ३ तेनकाय. ४ वाकाय. ५ वनस्पतिकाय, ६ त्रसकाय. ॥ हवे पूर्वोक्तथावर जीवना पांच प्रकार कहे ॥ १ पृथिवी. २ अप ३ तेन, ४ वान, ५ वनस्पति,
॥त्रस जीव चार प्रकारना २ ॥ १ बेश्यि. २ तेंश्यि. ३ चौरिंख्यि.४ पर्चेश्यि.
तिहां बेंश्यि तेंश्यि अने चौरिंघियना नेदो संदे पथी आगल दंझकना बोलोमां लखाइगया , तथा पंचेंश्यि जीव नारकी, तिर्यच, मनुष्य अने देवता मली चार प्रकारना डे; तेना नेद पण संदेपें आगल दमकना बोलोमां लखाइ गया. अहीयां तेनुं देह मान तथा आयु कहे . तेमां प्रथम चार प्रका
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(६००) रना देवोनुं नत्कृष्ट देहमान तथा आयु कहे ॥
प्रथम दश नवनपतिनी निकायमा पहेली असुरकु मार निकायना ददण श्रेणि तथा उत्तरश्रेणिना मली बे इंशेने, तेमां उत्तरश्रेणिनो अधिपति बलीइले, ते नुं आयु एकसागरोपम जाजेलं , अने दहण श्रेणि नो अधिपति चमरें ,तनुं आयु एक सागरोपम, बाकी नवनिकायना उत्तर श्रेणिना इंशेर्नु आयु बे पव्योपम कांक उछेलं जाणवू, अने दहण श्रेणिना नवनिकायना इंशेनुं आयु दोढ पट्योपम जाणवू. तथा ए सर्व दशेनिकायना देवोनुं देहमान सात हाथ प्रमाण जाणतुं. रत्नप्रना दृथिवीनो पिंग ( १60000) योजन जाडो , तेमांथी हजार यो जन नीचें अने हजार योजन उपर मूकी बाकीना ( १७०००० ) योजनमा ए दश निकायना देवो ने.
बीजा व्यंतर निकायना देवो बे प्रकारना , ए सर्व देवोनुं देहमान सात हाथर्नु , तथा जघन्यायु दश हजार वर्षनुं अने उत्कृष्टायु एक पल्योपमनुंडे, ए रत्न प्रनाष्टथिवीना नपरला हजार योजनमाथी शो योजन नीचे तथा शो योजन उपर मूकी बाकीना आवशो योजनमां व्यंतरदेवो वसे ले. तथा नपरनाम् केला शो योजनमांथी वली दश योजन नीचे तथा दश योजन नुपर मूकीयें, तेवारे बाकीना एंशी योज नमां वाणव्यंतर देवो वसे ले. "
त्रीजी ज्योतिषी देवताउनी निकाय पांच प्रकारें जे.
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(६०१) ते संनूतल पृथिवीथकी उपर उए. योजनथी मां मीने नवसो योजन पर्यंतना एकशो ने दश योजनमा एमनां विमान में, ते सर्वनुं देहमान सात दाथ प्रमा ण जे. अने उत्कृष्टायु नीचे प्रमाणे ने. १ चश्मानुं एक पल्योपम उपर एक लाख वर्षायु . २ सूर्यनुं एक पल्योपम उपर एक हजार वर्षायु . २ ग्रहमंगला दिकएक पल्योपमायु जे. ४ आश्विन्यादिक नत्रनो अई पट्योपमायु दे. ५ तारानुं एक पल्योपमनो चोथो नाग आयु . चोथी वैमानिक देवोनी निकाय बे प्रकारे तेमांप्रथम कल्पवाला देवोनुं उत्कृष्ट देह मान अने बायु कहे . देवलोकनां नाम देहमान आयु. १ सौधर्म. सात हाथ.बे सागरोपम. २ ईशान. सांत हाथ.बे सागरोपमजाजेरा, ३ सनत्कुमार. बहाथ. सात सागरोपम. ४ माहें. बहाथ. सात सागरोपम जाजेरा ५ ब्रह्म पांच हाथ. दश सागरोपम. ६ लांतक. पांच हाथ. चौद सागरोपम. ७ शुक्र. चार हाथ. सत्तर सागरोपम. G सहस्त्रार चार हाथ. अढार सागरोपम.
ए बाणत. त्रण हाथ. उगणीशसागरोपम. १० प्राणत. त्रण हाथ. वीश सागरोपम. ११ आरण. त्रणहाथ. एकवीशसागरोपम. १२ अच्युत. त्रणहाथ. बावीशसागरोपम.
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( ६०१ )
हवे बारमा देवलोक सुधी चोरात इंझे बे. ते श्रावी रीतें २० दशभुवनपतिनी दश निकाय मांहेली एकेकी निकायने विषे दक्षिण तथा उत्तर श्रेणिनो प्रत्ये के एकेक गणता वीरा इंझे चुवनपतिना बे. ३२ व्यतर तथा वाणव्यंतरनी शोल निकाय मांहेली एकेक निकायने विषे दक्षिण तथा उत्तर श्रेणिनो प्रत्येकें एकेक इंड् गणतां बत्रीश इंडव्यतर देवोनाबे. १ पांच ज्योतपीना चंद ने सूर्य ए वे इं . १० बार देवलोकमध्ये आठमा देवलोक सुधी तो एकेका देवलोकनो एकेक इंड् बे, तेवार पढ़ी न वमा तथा दशमा मलीने बे देवलोकनो एकज अने गीयारमा तथा बारमा मली बे देवलोकतो एकज इंड् बे. ए रीतें दश इंड् वैमानिक देवोना बे. ए सर्व मली चोराठ इंड् थया.
हवे उपर ग्रैवेयक तथा अनुत्तर विमानने विषे स्वामी सेवकपणुं नथी, तेथी तिहां इंड् पण नथी, ए कल्पातीत देवो बे. ग्रैवेयकना देवोनुं देहमान तथा खायु कहे बे.
पहेला कोठामां ग्रैवेयकनुं नाम बीजा कोठामां जे अंक मांघो बे, तेटला सागरोपमनुं श्रायु जाणवुं; शरीर तो सर्व ग्रैवेयकें बे हाथ प्रमाण जाली लेवुं. प्रथम त्रिक. बीजुं त्रिक. त्रीजुं त्रिक. सुदर्शन. २३ सर्वतोन. १६ सोमनस्य. सुप्रतिब-६ २४ विशाल. २७ | प्रीतिकर. मनोरम. २५ सुमनस. २८ खादित्य.
१
३०
३१
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( ६०३ )
हवे पांचे अनुत्तर विमानें एक हायतुं शरीर त था जघन्य एकत्रीश धने उत्कृष्ट तेत्रीश सागरोपमनुं आयु चार विमानाने विषे जाणं, अने पांचमा स वार्थ सिद्धिने विषे जघन्योत्कृष्ट तेत्रीश सागरोपमायु. हवे तिर्यचनः उत्कृष्ट देहमान तथा श्रायु कहे बे.
जीवजाति. देहमान आयु. पृथिवीकाय अंगुलनो असंख्यनाग २२००० वर्ष. अप्कायप्राणी अंगुलनो असंख्यनाग ७००० वर्ष. निकाय अंगुल संख्यनाग त्रण दिवसनुं यायु. वायुकाय गुल संख्यनाग ३००० वर्षायु. साधारण वनस्पति गुलासंख्यनाग अंतरमुहूर्त. प्रत्येकवनस्पति हजारयोजनजाजेरां १०००० वर्ष. बार योजन.
बेंझियजीव. तेंड्यजीव. चौरिंडिय जीव. संमूर्तिममत्स्यादि. हजार योजन.
त्रण गाउ. चारगाउ.
सं० चतुष्पदादि. सं० खेचरनुं. सं० नरः परिसर्प. सं०नुजपरिसर्प गर्न जमत्स्यादिक. गर्नजथलचर. गर्नजखेचरपंखी. गर्नजवरः परिसर्प. हजारयोजन कोडपूर्व.
बार वर्ष.
४५ दिवस. ब महिना. क्रोड पूर्व. ८४०००) वर्ष. ७२०००) वर्ष.
बेथी नव गाउ बेथी नवधनुष बेथ नवयोजन. ५३०००) वर्ष. बेथी नवधनुष ४२०००) वर्ष . हजार योजन. कोड पूर्व
त्रण पत्योपम.
·
उ गाव.
बेथी नवधनुष पल्योपमासंख्य ०
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(६०४) गर्नजनुजपरिसर्प. बेथी नवगान क्रोडपूर्व.
नारकीनां उत्कृष्ट देहमान तथा आयु.
नाम. देहमान. आयु. १ रत्नप्रना. धनुषने ६ अंगुल एकसागरोपम २ शर्करप्रना.१५॥धनुको श्अंगुलत्रण सागरोपम ३ वालुप्रना. ३१। धनुष. सात सागरोपम. ४ पंकप्रना. ६श धनुष. दश सागरोपम. ५ धूमप्रना. १२५ धनुष. सत्तर सागरोपम. ६ तमप्रना. २५० धनुष, बावीश सागरोपम. .७ तमतमप्रना.५०० धनुष. तेत्रीश सागरोपम.
मनुष्यनुं उत्कृष्ट देहमान त्रण गाउनु तथा उ लष्टायु त्रस्य पढ्योपमनुं जाणवू. मनुष्य कर्मभूमि, अकर्मनूमि तथा अंतरछीपना मलीने त्रण प्रकारना ने ते विषे किंचित् विस्तारें वात लखीयें बैयें. ती लोकने विषे अढीसागरोपम कालना जेटला समय थाय ते प्रमाणे असंख्याता छीप अने समु
बे, ते सर्व दीप समुनी वचे आपणे जेमां वसी ये बैयें तेनुं नाम जंबुदीप ,ते एकलाख योजननुं , तेने फरतो लवण समुह बे लाख योजननो ने, तेने फरतो चार लाख योजन प्रमाण धातकी खंझनामा हीप चूडीने आकारे ले, तेने फरतो आठ लाख यो जन प्रमाण कालोद समुह, तेने फरतो शोल लाख योजन प्रमाण पुष्करवर हीप डे, ते हीपना अर्दा नागना आठ लाख योजनमां मनुष्यनी वस्ति ने, एब
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(६०५) वा अढाहीपना बेहु बाजुना मली पिस्तालीश लाख योजनमां मनुष्य वसे ने, उपरांत बीजा सर्व दीप स मुशेने विषे तिर्यचगतिना जीवोनो निवास ,ते जंबू छापनो तथा अढोहीपनो जूदो जूदो नकाशो या पुस्त कनी यादिमां ने ते जोवाथी तरत समजाश्यावशे.
हवे ए अढीझोपने विषे जे खेत्रमा मनुष्यो रहे जे, तेनां नाम प्रत्येक दीप याश्रयी लवीयें .यें.
तिहां जंबुद्दीपमां एक नरत, बोजो महा विदेह अने त्रीजो ऐरवत, एत्रण खेत्र, तेमज धातको खंग मां बेनरत, बे महाविदेह अने बे ऐरवत, मलीने.न खेत्र तथा तेवाज नामें उ खेत्र पुष्कराईमां डे, सर्व मलीने पंदर खेत्रमा कर्मनमि मनुष्य वसे . ए दे त्रोने विषे चोवीश तीर्थकरादिक त्रिषष्टिशिलाका पुरुषो उत्पन्न थाय , तेना वर्तमान नाम, आयु तथा देहमा ना दिकनुं यंत्र या पुस्तकना अंतमा दाखल कयुंडे.
वली जंबुछीपमां, १ हिमवंत, २ ऐरण्यवत, ३ हरि वर्ष, ४ रम्यक, ५ देवकुरु,६ उत्तरकुरु, एब देत्र तथा वली एवाज नामें बेबे देत्र धातकी खंमने विषेत था बेबे खेत्र पुष्कराईने विषे ने तेथी बार देत्र धा तकीखमना तथा बार देत्र पुष्कराना तेनी साथे जंबुछीपना मेलवीयें,तेवारें त्रीश खेत्र अकर्म नमिते युगलीया मनुष्योने वसवानांबे,जेमां असीमसीअने कृषि, एत्रए प्रंकारना उद्यम नथी.ए मनुष्योनी स्थि ति विषे हालमा अढीछीपनो नकाशोडापेलो, तेनी
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(६०६) साथे तेनी हकीगत, पण एक पुस्तक बाप्युं ,तेमांस विस्तर अधिकार दे, तेथी अहीयां स्वल्प वात लखी डे.
वली जंबुछीपनां दहण बाजुना हिमवंत प वंत अने उत्तर तरफना शिखरी पर्वत, ए बे पर्वतनी हाथीना दांतना जेवी चार चार दाढा लवण समु इमां गई , ते एकेकी दाढ पर सात सात अंतर हीप , तेवारें बेदु पर्वतनी बात दाढा उपर पन्न अंतरहीप डे, तेमां पण पूर्वोक्त असि मसि अने कृषि ए त्रण प्रकारना उद्यम रहित युगलिक मनुष्यो वसे जे, ए रीतें सर्व मली (१०१) प्रकारना मनुष्यो . हवे बीजा सिना जीव पंदर नेदे ले, तेनां नाम. १ जिनसिक ते षनादि तीर्थकर पोतें जाणवा. २ अजिनसिह ते पुंडरीकादि गणधर जाणवा. ३ तीर्थ सिह ते प्रसन्नचंशदिक तथा गणधरादि. ४ अतीर्थ सिह ते मरुदेव्यादिक जाणवा. ५ ग्रहस्थलिंगसिह ते जरत चक्रवर्त्यादि. ६ अन्यलिंगसिह ते तापसादिवेशे वल्कलचीरी. ७ स्वलिंगसिह ते साधुवेशे जंबुस्वामी प्रमुख. G स्त्रीलिंगसि ते स्त्रीलिंगे राजिमत्यादि. एपुरुषलिंगसिर ते गुणाढ्यराजादिक. १० नपुंसकलिंगसि ते कृत्रिमनपुंसक गांगेयादिक. ११ प्रत्येकबुद्धसिम ते करकंराजाधादिक जाणवा. १२ स्वयंबुसि ते कपिला दिक.
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( ६०७ )
१३ बोधवोधित सिद्ध ते पंदरशें त्रण तापसादिक १४ एक सिद्ध ते गजसुकुमालादिक.
१५ अनेक सि६ ते भरतपुत्रादिक घणा सि5.
॥ अथ काल प्रमाण ॥
१ प्रथम प्रति सूक्ष्मकालने एक समय कहियें. २ तेवा संख्याता समयें एक श्रावलिका थाय. ३ तेवी (१६१७७२१६) प्रावलियें एक मुहूर्त्त याय. ४ त्रीश मूहूर्ते दिवस एटले एक अहोरात्र याय. ५ पंदर अहोरात्रें एक पखवाड्युं याय. ६ वे पखवाडीयें एक महिनो थाय. ७ बार महीने एक वर्ष थाय
तेवा (७०५६००००००००००) वर्षे एक पूर्व याय. एतेवा संख्याता पूर्वे एक पल्योपम थाय, ते श्रा वीरीतें चार गाव मोनें चार गान पोहलो वाट लाकारे त्रण योजन जाजेरी परिधिवालो एक पल्य कल्पवो, तेंमां उत्तर कुरु खेत्रसंबंधी युगलियाना रोम एवा सुबे के ते ४००६ रोम एकठां करीयें, तेवारें क र्मभूमि मनुष्यनो एक वाल याय. एवा ते युगलीयाना सूक्ष्म रोम बे, ते रोम लंबा इयें एक तसुनो लइने तेना सात वखत याव व कटका करायें, तेवारें (२००७१५२) कटका थाय, तेवा कटके करी पूर्वोक्त पालो जरीने पी ते एकेक कटको शो शो वर्षने अंतरे काढतां जे वारें ते पल्य खाली थाय, तेवारें संख्याता
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(६०७) वर्ष थाय, तेने बादर पट्योपम कहीये,अने ते पूर्वोक्त एकेका रोम खमना असंख्याता खंम करीने तेवा खं में, ते पूर्वोक्त कूप एवीरीतें सीने नरवो, के तेना न परथी चक्रवर्तिनी सेना चाली जाय, तोपण ते दबा य नहीं, पडी ते एकेको सूक्ष्म खेम शो शो वर्षे का दाढतां असंख्याता पूर्व व्यतिक्रमें बते ते पट्य खा ली थाय, तेवारें एक पल्योपम थायजे. १० दश कोडाकोडी पल्योपमें एक सागरोपम थाय. ११ दशकोडाकोडी सागरोपमें एक अवसर्पिणीथाय. १.२ दशकोडाकोडी सागरोपमें एक उत्सर्पिणीथाय. १३उत्सर्पिणीअवसर्पिणी मती एक कालचक्र थाय, १४ अनंता कालचकें एक पुगतपरावर्त थाय.
एवा अनंता पुजलपरावर्त, संसारमा परिन्रमण करता जीवें व्यतिक्रम्याः
श्रावकने नित्यप्रत्ये चौद नियम धारवा, तेनां नाम. १ सचेत परिमाण. वाहन परिमाण. २ इव्यं परिमाण. ए शय्या परिमाण. ३ विगय परिमाण. १० विलेपन परिमाण. ४ उपानह परिमाण. ११ ब्रह्मचर्य परिमाण. ५ तंबोल परिमाण. १२ दिशि परिमाण. ६ वस्त्र परिमाण. १३ स्नान परिमाण. ७ पुष्पलोग परिमाण. १४ नातपाणीनुंपरिमाण.
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(६०ए) दश पञ्चरकाणनां नाम तथा ते पञ्चरकाण
कसाथी केटबुं नरकायु त्रूटे, ते कहे . पञ्चरकाणनां नाम. नरकायु त्रूटवानी संख्या. १ नवकारसीथी. एकशो वर्ष नरकायु त्रूटे. २ पोरिसीथी. एकहजार वर्ष नरकायु त्रूटे. ३ साट्रपोरिसीथी. दशहजार वर्षनरकायु त्रूटे. ४ पुरिमथी. एकलाख वर्ष नरकायु त्रूटे. ५ एकाशनथी. दशलाख वर्ष नरकायु त्रूटे. ६ नीवीथी. एककोड वर्ष नरकायु त्रूटे. ७ एकलठाणाथी. दशकोड वर्ष नरकायु त्रूटे.. G एकलदांतिथी. शो कोड वर्ष नरकायु त्रूटे.
ए आयंबिलथी. हजार कोड वर्ष नरकायु त्रूटे. ९० नपवासथी. दशसहस्रकोडवर्ष नरकायु त्रूटे.
अथ समवसरण मध्येनी बार परिषदानां नाम. ३ एक गणधरनी, बीजी विमानवासी देवांगनानी.
त्रीजी साध्वीनी.एत्रण परिषदा अग्निकूणे वेसे. ३ एक ज्योतिषीनी देवीनी,बीजी व्यंतरनी देवीनी,
त्रीजी नुवनपतिनी देवीनी. एत्रण पर्षदा नै ३ एक ज्योतिषी देवोनी,बीजी व्यंतर देवोनी,त्रीजी
नुवनपति देवोनी.एत्रण पर्षदा वायव्य कूणे बेसे. ३ एक वैमानिक देवतानी,बीजी मनुष्यनीत्रीजीम
नुष्यनीस्त्रीनी.एत्रण परखदा ईशान कूणे बेसें.
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(६१०) अथ तथा पांच सम्यक्त्वनां नाम. १ इव्यसम्यक्त्व. श्नावसम्यक्त्व. ३ निश्चयसम्यक्त्व. ४ व्यवहारसम्यक्त्व. ए निसर्गसम्यक्त्व. ६ उपदेशसम्यक्त्व. १ दायोपशमिक २ उपशमिक०३दायिक० ४ सास्वादनसम्यक्त्व. ५ वेदकसम्यक्त्व.
अथ चार विकथानां नाम. १ स्त्रीकथा. २ नोजनकथा.३ देशकथा. ४ राजकथा.
पांच समवायनां नाम. १ कालवादी. २ स्वनाववादी. ३ नियतिवादी. ४ पूर्वरूतकर्मवादी. ५ पुरुषकार ते उद्यमवादी. दश श्रावकनां तथा तेमना ग्रामादिकनां नाम. श्रावकनाम.ग्रामनाम.धनसंख्या.गोकुल,नार्यानाम. १ आनंद. वाणिज्ययाम.१२ कोड. ४ शिवनंदा. २ कामदेव. चंपानगरी. १ कोड. ६नशनार्या. ३ चुलणिपित्ता.वणारसी. २४कोड. सोमानार्या ४ सुरादेव. वाराणसी. १७ कोड. ६धन्नानार्या. ५ चुल्नशतक.आलंनिका. १७ कोड. ६बहुलाना ६ कुंमकोलियो.कंपिल्लपुर. १७ क्रोड. ६ पूसानार्या ७ सदालपुत्र. पोलासपुर. ३ कोड. १ अग्निमित्रा. महाशतक.राजगृही. २४क्रोड. रेवतीआदिकतेर ए नंदिनीपिता. सावजी.१२ कोड.' अश्वनीनार्या. १० तेतलीपिता.सावजी. १२ कोड. ४ फगुणीनार्या.
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(११) ॥ए दश श्रावकना चार, इत्यादिक जे गायनां मोकुल कह्यां ने, ते एक गोकुल दश सहस्त्र संख्यानुं जाणवू, तेमज ए दशेना धर्मगुरु श्रीमहावीर स्वामी जे, अने एमरों श्रावक धर्म वीश वर्ष पाल्यो, तेमांसा डाचौद वर्ष घरे रह्या, अने साडापांच वर्ष पौषधशा लामा रह्या हतां, अगीयार प्रतिमाधर हता, अंते एक मासनी संलेषणा करी सौधर्मदेवलोकें जूदा जूदा विमानोमां चार चार पव्योपमायुयें उपना ले. तिहांथी महाविदेहमां सीऊशे.
धर्ममां अंतराय करनारा तेर काठीयानां नाम.. १ अालस. २ मोह. ३ अवर्णवादबो० ४ अहंकार आणवो.एकोध करवो. ६ प्रमाद करवो. ७ कृपणता. गुरुनय. ए शोक राखवो. १० अझान. ११ अथिरता. १२ कुतूहल जो. १३ तीवविषयानिलाप.
पांच प्रकारें मिथ्यात्वनां नाम. १ बानियाहिक ते जे पोतानी मतिमांबाव्युं ते साचं. २ अनानियाहिक ते सर्व धर्म सारा डे, एवी बुदि. ३ आनिनिवेशिक ते जाणी बूजीने जूतुं बोलवं. ४ सांशयिक ते सिद्धांतविचारविषे संदेह राखवो. ५ अनाजोगिक ते अजाणपणे कांइ समजे नही,
अथवा एकेंशियादिक सर्व जीवने ए मिथ्यात्व जे.
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( ६१२ ) स्वाध्यायनां पांच प्रकार कहे बे.
१ जे गुरुसमीपें शिष्यें वांचवं ते वांचना. २ जे गुननावें सूचना विचार पूढियें ते पृबना. ३ नणेला सूत्रनुं गुणवं, ते परियट्टा.
४ जे हृदयमांहे सूचना विचार चिंतववा, ते अनुप्रेक्षा. ५ जे परने धर्मकथा संजलावीयें ते धर्मकथा.
पांच प्रकारना देव कह्या ले, तेनां नाम. १ पंचेंप्रिय, तिर्यच अथवा मनुष्य जेणें देवायु बांध्युं होय, ते देवतापणें उपजशे तेने व्यदेव कहीयें. २ जे चक्रवर्त्ती होय तेने नरदेव कहीयें. ३ श्री अणगार साधुने धर्मदेव कहीयें. 8 श्री अरिहंत देवने देवाधिदेव कहीयें. ५ जुवनपत्यादिक चार निंकायना देव ते जावदेव. ए पूर्वोक्त पांच प्रकारना देवोनुं श्रायुष्य लखे बे. १ इव्यदेवनुंजघन्य अंतरमुहूर्त्त नत्कृष्टत्रणपल्योपम. २ नरदेवनुंजघन्यसातसेंवर्ष उत्कृष्टचोरासी लाखपूर्व. ३धर्मदेवनुंजघन्यत्र्यंतर मुहूर्त उत्कृष्टदेशेक एपी पूर्व कोडी. ४ देवाधिदेवनुं जघन्यवहोत्तेरवर्ष उत्कृष्टचोराशी लाख ० ५ जावदेवनुं जघन्य दश हजार वर्ष, उत्कृष्ट तेत्रीश सागरोपम.
त्रण प्रकारें जीवनुं अल्पायु थाय, ते कहे बे. १ जीव हिंसा करतो थको. २ जूठे बोलतो थको. ३ श्री साधुने नेपणीयफासु श्राहारादिक देतोयको.
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( ६१३ )
पांच प्रमादनां नाम.
१ मद्यपान, २ विषय, ३ कषाय, ४ निशा, ५ विकथा. पांच श्राश्रवनां नाम.
१ मिथ्यात्व, २ अविरति, ३ प्रमाद, ४ कषाय, ५ योग. पांच संवरनां नाम.
१ सम्यक्त्वसंवर. २ विरनिसंवर. ३ अप्रमत्तसंवर. ४ प्रकषायसंवर. ५ प्रयोगसंवर. पांच यनिगमनां नाम.
१ सचित्त इव्य जे शरीरनोगसंबंधि होय ते बां. २ चित्त मुझादिक बांगे. ३ मन एकत्र स्थानकें राखे४ एक साडि उत्तरासंग करे.
५ जिन दीठे मस्तकें करपांजली करे.
पांच राजचिन्ह जिनप्रासादें जतां मूकियें तेनां नाम. १ खड्ग, २ बत्र, ३ वाणही, ४ मुकुट, ए चामर. पांच स्थानकथी जीव नीकले बे ते कहे बे.
१ पग थकी नीकले, ते जीव नरक गतियें जाय. 2 जंघा थकी निकले, ते जीव तिर्यच गतियें जाय.. ३ पेट थकी निकले, ते जीव मनुष्य थाय.
४ मस्तक थकी निकले, ते जीव देवता थाय. ५ सर्व अंग की निकले, ते जीव मोदें जाय. पांच स्थानकें जीव दुर्जन बोधि पणुं करे, तेनां नाम. १ श्री अरिहंतनो वर्णवाद बोलतो थको.
२ श्री रिहंतनाषित धर्मनो वर्णवाद बोलतो थको.
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(६१४) ३ आचार्यादिकनो अवर्णवाद बोलतो थको. ४ चतुर्विध श्रीसंघनो अवर्णवाद बोलतो थको. ५ जे तप अने ब्रह्मचर्य पालीने देव थया ले, ते दें
वोनो अवर्णवाद बोलतो थको. __ एज श्रीअरिहंता दिव पांचनी स्तवना करतो यको जीव सुलनबोधीपणुं पण उपार्जन करे.
त्रण मुशनां नाम. १ योगमुश. २ जिनमुश. ३ मुक्ताशुक्तिमश.
• संसारी जीवनो आहार त्रण प्रकारें . १ उजाहार. श्लोमाहार. ३ प्रदेपाहार.
संसारी जीवनी योनिना त्रण प्रकार. १ सचित्तयोनि. २ अचित्तयोनि. ३ मिश्रयोनि.
॥अथ साडा पच्चीश आर्यदेशनां नाम । देशनाम. मुख्यनगर. ग्रामनी संख्या. १ मगधदेश. राजगृहनगर. ६६00000 २ अंगदेश. चंपानगरी. ३ वंगदेश. ताम्रलिप्तिनगर. ५०००० ४ कलिंगदेश. कांचनपुरनगर. १००००० ५ काशीदेश. वणारसीनगरी. १ए२००० ६ कोशलदेश. साकेतपुरनगर. एए000 ७ कुरुदेश. गजपुरनगर. . G७३२५ G कुशावर्तदेश. सौरीपुरनगर.
१४००३ ए पांचालदेश. कांपिलपुरनगर. ३७३०००
000
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(६१५) १० जंगलदेश. अहिजत्रानगरी. १४५००० ११ सौराष्ट्रदेश. धारावतीनगरी. ६७०५००० १२ विदेहदेश. मिथिलानग ।. G००० १३ वत्यदेश. कोसंबीनर । २००० १४ शांमिव्यदेश. नंदीपुरनगर. १०००० १५ मलयदेश. नहिलपुरनगर. 300000 १६ मत्स्यदेश. वैराटनगरी. १७ वरुणदेश. अबापुरी.
२४००० . १७ दशार्ण देश. मृत्तिकावतीनगरी. १०ए०० १ए चेदिदेश. गुक्तिकावतीनगरी. ६०० २० सिंधुसौवीरदेश. वीतजयपत्तननगर. ६५०० २१ शूरसेनदेश. मथुरानगरी. ६७००० २२ मंगदेश. पावापुरीनगरी. ३६००० २३ मासदेश. पुरिवहानगरी. १४२५ २४ कुणालदेश. सावजीनगरी. ६३०५३ २५ लाटदेश. कोटीवर्षनगर. २१०३००० २पाकेकश्देश.श्वेतांबिकानगरी.ए देशनोवार्य छ । __ ए साडापच्चीश थार्यदेश ते था नरत देवना द दिवाई नागना मध्य खमने विषे जाणवा, एमांती थैकरादिक त्रेशन उत्तम पुरुषोनुं उपजq थाय , ते मज शक अने यवनादिक ३१७॥ अनार्य देश , तेमां बा अनार्य लोको वसे .
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( ६१६ )
दश दृष्टांतें मनुष्य जन्म पामवो डुर्लन बे, तेनां नाम.
१ जोजननो दृष्टांत. २ पासानो दृष्टांत. ३ धान्यनो दृष्टांत. ४ जुवानो दृष्टांत. ५ रत्ननो दृष्टांत.
६ स्वप्ननो दृष्टांत. 9 राधावेधनो दृष्टांत. इहसेवालनो दृष्टांत. ए धोंसरानो दृष्टांत. । १० परमाणुनो दृष्टांत.
या नीचे लखेला बार वानां पामवां उर्लन. १ मनुष्यनव. २ यार्यक्षेत्र ३ मातापितानोपशु5. ४ मार्गानुसारी. ५ रूपवंतपणुं. ६ नीरोग्गता. ७ पूर्णायु नली बुद्धि. धर्म सांजलवो. १० धर्मनी रुचि. ११ सदहणा. १२धर्मने विषे उद्यम. अथ लूटक शीखामण.
१ कार्यने विषे खालसु थंं.
२ प्राणवधने विषे सदैव पांगला थj. ३ पारकी तांतने विषे बहेरा यवुं. ४ परस्त्री निरीक्षणने विषे जातिगंध यवुं. ५ कीर्त्ति, कुल, सुपुत्र, कला, मित्र, गुण ने सु शील, ए सात वानां वधारवाथी धर्मवृद्धि थाय. ६ माननो त्याग, गुरुनक्ति, सुशीलता, दयाधर्म, स त्य, विनय ने तप ए सात वानां न मूकवां. ७ खल माणसनी संगति, कुस्त्री, सात व्यसन, कुमार्गे धनागम, समाधि, राग द्वेष ने कषा य, ए सात वानां त्यागवां.
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( ६१७ )
उपकार, गुरुवचन, सुजनता, नली विद्या, नियम, वीतराग ने नवकार. ए सात वानां हृदयें धरवां. ए व्यसनासक्त, सर्प, मूर्ख, युवती, जल, अमि, ने पूर्वविरु, ए सातनो विश्वास न करवो. १० विनय, जिननक्ति, सुपात्रदान, सुसंयमने विषे राग, माहापण, निःस्पृहता अने परोपकारपणुं, ए सात गुण महोटा जाणवा.
या रकमा काल पांचमो यारो प्रवर्त्तते थके त्रीश बोल प्रगट थशे, तेनां नाम कहे बे.
१ नगर ते गाम सरिखा था.
२ गाम ते समशान सरखां थाशे.
३ राजा ते यमदंम सरखा थाशे.
४ कुटुंबी पुरुष दास सरखा थाशे.
५ प्रधान मंत्री लांचग्राही थाशे.
६ सुखी जन निर्लज थाशे.
9 केटली एक कुलवती स्त्रीयोने पण वेश्यानां श्राच रण प्रिय थशे.
८ पुत्र स्वछंदाचा थशे.
ए शिष्य ते गुरुने प्रत्यनीक थशे.
१० र्झन पुरुष सुखी ने ऋद्धि सन्मान पामशे. ११ सऊन जन ते दुःखीया अल्पक दिवाला अने अल्प मान महत्त्व पामवाना धणी थशे.
१२ देश ते परचक्र ममर र्निदाक्रांत थशे.
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(६१७) १३ पृथ्वी उष्टसत्त्वाकुल थशे. १४ ब्राह्मण अस्वाध्यायी तथा अर्थलुब्ध थशे. १५ श्रमण महात्मा गुरुकुलवासत्यागी थशे. १६ यति मंदधर्मी तथा कपायकलुषितचित्तवाला० १७ समकेतदृष्टी देव, मनुष्य अल्पबली थशे. १७ मिथ्यादृष्टी देव ने मनुष्य घणा बलवंत थशे. १५ मनुष्यने देवदर्शन नही थशे. २० विद्या, मंत्र तथा औषध्या दिकना प्रनाव अल्प २१ गोरस, कपूर, शर्करादिश्व्य वर्णादिहीन थशे. २२ बल, धन, आयुष्य, घणा हीन थशे. २३ मासकल्पयोग्य क्षेत्र को रहशे नही. २४ अगीयार प्रतिमा रूप श्रावकधर्मनो विजेद थशे. २५ आचार्य, शिष्य प्रत्यें सम्यक् श्रुत नणावशे नही. २६ शिष्य पण कलहना करनार, ममरना करनार,
असमाधि अनिवृत्तिकारक, मंदबुद्धिवाला थशे. २७ मुंह घणा अने श्रमण स्वरूप थशे. २७ आचार्य सदु पोतपोताना गबनी सामाचारी
जुदी जुदी प्रवर्त्तावशे, तथाविध मुग्धजनने मोह पमाडता उत्सूत्र नांखतां पोतानी प्रशंसा अने
पारकी निंदा करता एवा केटलाएक कुमति थशे. शए म्लेबनां राज्य बलवंत थशे. ३० आर्यदेशना राजा अल्पबलवंत थशे.
ए नाव श्रीकल्पसूत्रनी नियुक्तिमां कहां डे.
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(६१ए) अथ पच्चीश राज घरनां नाम, १ प्रासाद,
१४ अलंकारसना, २ विहार,
१५ नायकगृह. ३ हर्म्य,
१६ शत्रुकार, ४ हस्तिशाला, | १७ पानीयशाला, ५ अश्वशाला, १७ आश्रमकीडागृह, ६ नांमागार,
ए महानसनोजनशाला ७ कोष्ठागार, २० शांतिगृह, G नूमिगृह, २१ उटज अपवरकचं०
ए धर्मशाला, २२ सूतिकागृह, १० दानशाला, २३ गोशाला, ११ सनाशाला, २४ पाकपूटिगतिकावपनी १२ आयुधशाला,
शल्यशाला, १३ स्नानगृह, २५ गंजापक्कणघोषनिष
___ द्यामन्शुचिस्थानम्. अथ सात राज्यस्थानकनां नाम. १ कुमार, २ आमात्य, ३ महांत, . ४ मंत्रीक, ५ बुद्धिपुरुष. ६धर्माधिकारस्था. नसादीददपुरुष. ७ अवसरझसेवक.
अथ सप्तांग राज्यनां सात थंग. हाथी, घोडा, रथ, पायक, नंमार, कोठार, गढ.
अथ बारप्रकारनां वाजितनां नाम. हक्का, इक्का, ममरु, काहली, नेरि, नाण, ढोल, शंख, करड, पोग्रय, मादल, कंसाल,
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(६०) अथ बत्रीश राजकुलनां नाम. १ सूर्यवंश. १ए विदकवंश. २ सोमवंश.
२० गुहिल वंश. ३ यादववंश.
२१ गुहिलपुत्तवंश. ४ कंदबवंश.
२२ पौतिक. ५ परमारवंश. २३ मकुधागवंश. ६ श्वाकुवंश. २४ धान्यपालकवंश. ७ चहुआण. २५ राजपालवंश. G चौलुक्य.
२६ अनंगलवंश. 'ए मौरिकवंश. २७ निकुंजवंश. १० शोलारवंश. २७ दहिकरवंश. ११ सैंधववंश.
। केलातुर १२ बिंदकवंश. ३० हूणवंश. १३ चापोत्कटवंश. ३१ हरिवंश. १४ प्रतिहारवंश ३२ ढोढारवंश. १५ जुडकवंश. ३३ शकवंश. १६ राष्ट्रकूट.
३४ चंदेलवंश. १७ करटकवंश.
३५ शोलंकीवंश. १७ करटपालवंश. । ३६ मारववंश.
अथ बत्रीश विनोदनां नाम, १ दर्शनविनोद. . ४ नृत्यविनोद. २ श्रवणविनोद. ५ लिखितविनोद. ३ गीतविनोद. . वक्तृत्वविनोद.
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(६१) ७ शास्त्रविनोद. २२ फलविनोद.
शस्त्रविनोद. २३ पुष्पविनोद. ए करविनोद. २४ चित्रविनोद. १० बुद्धिविनोद. २५ पतितविनोद. ११ विद्या विनोद. २६ यात्रा विनोद. १२ गणित विनोद. २७ कलत्रविनोद. १३ तुरंगमविनोद. २७ कथा विनोद. १४ गजविनोद.
ए युद्धविनोद. १५ रथविनोद. ४० कला विनोद. १६ पदिविनोद, ३१ समस्या विनोद. १७ आखेटर विनोद. ३२ विज्ञान विनोद. १७ जलविनोद. ३३ वार्ता विनोद, १ए यंत्रविनोद. ३४ क्रीडाविनोद. २० मंत्रविनोद. ३५ तत्त्व विनोद. २१ महोत्सव विनोद. ३६ कवित्व विनोद.
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॥ अथ चोराशी गलनां नाम ॥ १ दो वंदनिक गब. चित्रावाल गंड. २ धर्मघोषा गब. ए सवाल गहथी त ३ संमेरा गह.
पागल थयो. । किन्नरसा गह. १० नाणावाल गह. ५ नागोरी तपा गब. ११ पन्निवाड गह. ६ मनधारा गड. | १२ आगमिया गल. ७ खडतपा गज. १३ बोकडीया गल.
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१४ निन्नमालिया गव. १५ नागेश गड. १६ सेवंतरीया गड. १७ नंमेरा गब.
( ६२२ )
१८ जश्नवाल गब. १९ वडा खरतर गठ.
२० लडुडा खरतर ग. २१ नाणसोलिया गड. २२ वड गथी विधिप गव थयो.
२३ तपाबिरुद गब्ब.
२४ सुराणा गठ. २५ वडी पोशाल गठ.
२६ नरुअठा गब्ब. २७ कत्तबपुरा गब्ब. २८ संखला गड .
१ नावडहरा गब. ३० जाखडीया गब. ३१ कोरंटवाल गब्ब. ३२ ब्राह्मणिया गब.
३३ मंमाहडा गब्ब. ३४ नीबलीया गब्ब. ३५ खेलाहरा ग. ३६ उचिंतवाल गठ.
३७ रुदोलिया गन३८ पंथेरवाल गठ. ३० खेजडिया गड. ४० वा बितवाल गड४ १ जीरान लिया गठ. ४ २ जेसलमेरा गब्ब. ४३ जलवा लिया गठ. ४४ तातड गठ. ४५ बाजहड गड. ४६ खंजायता गब्ब. ४७ शंखवालीया गठ.
४८ कमलकलशा गब. ४५ सोजंतरिया गष्ठ. ५० सोजतिया गब्ब.
५१ पांप लिया गब. ५२ खीमसरा गब. ५३ चोरवेडीया गब्ब. ५४ प्रामेचा गड. ५५ बजलिया गब्ब. ५६ गोयलवाल गब्ब.
५७ वग्घेरा गब्ब. ५० नट्टेरा गब्ब. ५५ नाबरिया गठ. ६० बाडमेरा गठ.
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(६५३) ६१ ककरिया गब. ७३ वाडियगण गह. ६२ रंकवाल गह. ७४ उडवाडियगगड. ६३ बोरसवा गड. ७५ माणवगण गड. ६४ वेगडा गड. ७६ उत्तरवालसह गब. ६५ वीसलपुरा गड. ७७ नदेहगण गड. ६६ संवाडिया गह. G७ चारागण गब्ब. ६७ धुंधुकिया गब. 'ए आकोलिया गड. ६७ विद्याधरा गड. ७० लूणिया गढ. ६ए आयरिया गड. ७१ साधुपूनमिया गड. ७० हरसोरा गब. २ त्रांगडिया गन. ७१ कोटिकगणकुलगब. ७३ नीबजीया गल. ७श्वजीशारखाना बिरुद० ७४ साचोरा गह.
अथ सात निन्हव थयां तेनां नाम तथा मत. १ श्रीवीरनगवानने केवलज्ञान उपन्या पली चौदमे
वर्षे जमाली निन्दव थयो, जेणें एक समयें वस्तु नपजे नही, परंतु वस्तु उपजतां घणा समय लागे,
एवी सदहणा राखी ते प्रथम निन्दव जाणवो. २ श्रीवीरने केवल उपन्या पनी शोलमे वर्षे तिष्यगुप्त
थयो, जेणे आतमाना सर्व प्रदेशमां बहेले प्रदेशे
जीव रहे ;एवीसहहणा राखी ते बीजो निन्हव. ३ श्रीवीर निर्वाण पत्री १४ वर्षे आषाढाचार्य य
व्यक्तवादी थयो. जेणें संयत तथा असंयत इत्या दिक सर्व पदार्थ निश्चय नय करी अव्यक्त के, एवी सहहणा राखी एत्रीजो अव्यक्तवादी निन्हव.
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(६२४) ४ श्रीवीर मीण पजी २२० वर्षे अश्वमित्र नारा निन्हव र बेदवादि थयो. जेणे सर्व पदार्थ नु पन्या पली मनो नन्द थाय ,एनी प्ररूपणा कर सद्दहणा राखी, ते चोथो निन्हव जाणवो. ५ वीर निर्वाणथी २२७ वर्षे एक समयें जीव वे किरिया वेदे,एवी सद्दहणानो करनार एवो दो कि
यावादी गंगसूरि नामे पांचमो निन्हव थयो. ६ वीर निरवाणथी:४४ वर्षे जीवराशि, अजीव
राशि अने नोजीव शि एवा त्रण राशि मतनो स्थापक बहो निन्हव यो. ७ श्रीवीर निर्वाणथी ५ वर्षे अब स्पष्ट कर्मवा
दी सातमो निन्दव थयो. एटले कर्मजे ले ते अ त्माना प्रदेश साथे (अब के०) मल्या नथी, परंतु सर्पकंचुकीनी पेरें फरसमात्र डे, एवी प्ररूपणानो करनार हतो. ए सर्वनी कथा ग्रंथांतरथी जाणवी. हवे अयोध्यानगरीनुं प्रमाण लखियें यें.
नत्सेधांगुल थकी प्रमाणांगुल अढीगणु महोटं थाय , ते प्रमाणे वार योजन लांबी अने नव योज न पहोलो एवी नगरीना पांचशे पांचशे धनुष्यना च नरखूणा चोशाला १७४३२०) थाय तेवा एक चन शाला मांहे पांचशे धनुष्यना देहधारी मनुष्य दश जण सूझ रहे तो १७४३२०० मनुष्य समाइ शके, एवी रीतें गणतां चक्रवर्तीनी सेन्यादिक परिवारनी गणनानो समावेश थ शकतो नथी.
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(६२५) माटे नत्सेधांगुल थकी प्रमाणांगुल एक हजार गुणुं महोटुंबे, तेनी साथै बार योजन लांबी अने नव योजन पहोली नगरीनो हिसाब गणीयें, तो नत्सेधांगुले पांच पांचशे धनुष्यना चोखूणा चोशाला २७६४७000000) एटले सत्तावीश अन चोशन कोडने एंशी लाख खांमुवा थाय. एवं नगर होय तो चक्रवर्तिनी सेन्या आदिक बीजी पण सर्व शक्निो समावेश था शके. एवीरीतें अयोध्या नगरीनुं मान श्रीतीर्थकरने वचने श्रीअनुयोगधार तथा जंबुझीपपन्न त्ति ए सूत्र साथें मलतुं थावे .
तथा वलीको एक एम कहे जे के, नत्सेधांगुल थकी प्रमाणांगुल बशे पञ्चाश गणुं महोटुंडे, तेमना मते अयोध्या नगरीना चनखूणा चोशाला गपीयें तो पण १७२७००0000 एक अज बहोत्तेर कोड ने एंशी लाख खंमुवा थाय. ए मानें गणता पण ठीक मलतुं नथी. कारण के,चक्रवर्त्तिना उन्नु कोड तो एक ला पायकज होय. ते एकेका पायकनो परिवार स्त्री,पुत्रादिक गणीयें तो घणा जनोनो समूह थाय. ते सर्वने बेसवा उठवाने तथा सूवाने कीडा करवाने बाहेर नूमिकायें जवाने तेटती जगा पूरी पडे नही, माटे जाणीये बैये.जे एक प्रमाणांगुलना योजने एक हजार उत्सेधांगलथाय , अने एक प्रमाणांगुलना योजने एक हजार उत्सेधांगुलना योजन थाय जे. ए प्रमाणे सूत्रोक्त वात खोटी था शके नही. उत्सेधांगुल
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(६२६) थकी श्रीवीरनगवाननी अंगुली बमणी महोटी जाण वो, अने श्रीवीरनगवाननी अंगुलीथी श्रीषनदेव जगवाननी अंगुली बशे गुणी महोटी जाणवी, अने श्रीषजनी अंगुलथी प्रमाणांगुलीयढी गुणो महोटी जावी.
हवे एके प्रमाणांगुल्ने एक सहस नत्सेधांगुल थाय. तिहां श्रीषनदेवतुं शरीर श्रीषनदेवनी यांगुली थी एकशोने वीश चंगुलनी उंचपणे डे, अने तेने नत्सेधांगुलीयें गणतां पांचशे धनुष्यनी चंचाइ श्रीक्ष पनदेवना शरीरनी थाय, जे कारणे श्रीषनदेवनी एक थांगुलीयें चारशे नत्सेधांगुल थाय, अने चारशें नत्सेधांगुलीयें चार धनुष्यने शोल आंगुल थाय, तेने एकशो वीश गुणा करीये तेवारें पांचशे धनुष्य पूरण थाय, तथा श्रीवर्धमानं स्वामीनु शरीर श्रीवई मानने हाथे साडा त्रण हाथ चपणे,ते एके हाथ उत्सेधांगुलनी गणतीना बे हाथ थाय, तेवारें श्रीम हावीरनुं शरीर सात हाथ उच्चपणे जाणवू. इति.
॥ अथ अयोध्यावर्णन ॥ विनीता नगरी नव बारही देवतायें नीपजावी.ते सर्व देवना योजन जागवा, अने तेनो कोट बारशे धनुष्य नंचो तथा श्रावशे योजन धरती मांहे , त था गढ प्रकार एकशो धनुष्यना जाणवा, कोशीशा पांचशे धनुष्यना जाणवा. तथा ४०० पोल जाणवी. शोल हजारने थारशें बारी, पांच योजन तलदही,
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(६७) बहोंतेर लाख कोग, चोराणुं लाख विजेहरा, बारशें धनुष्य उमी खाइ, गढमांहे ईशानकूणे नानीराजा नो समचउरत्र सुवर्णमय सातनूमि आवास कस्यो, पूर्वदिशे वर्ताकारि सुवर्णमय, सर्वन मंदिर एवे नामें सातनूमि आवास ते जरतेश्वरने अर्थ श्रावास क स्यो, तथा अग्निरखूणे बादुननो यावास जाणवो, बीजा अणुं नाश्ना अणुं आवास कस्या,तेनी वञ्च मां एकवीश नूमिमय त्रैलोक्यसुंदर नामें यावास श्रीयादीश्वर नगवाननो कस्यो तेमा एक हजारने पाठ महोटा गोंख जाणवा. तेनी शंखावर्त पोल करी तथा राणी सुमंगला बने सुनंदा जेटलो राजवर्ग तेटलो मां हेलो गढ रच्यो. नुत्तरादिशियें वणिकनो वास कस्यो,द क्षिण दिशे दत्रीयोनो वास कस्यो, पश्चिम दिशें कारी गर लोकोनो वास कस्यों, कारू, नारूग सर्व मध्यम तलहट्टीयें वास्या, दक्षिणपोलें अयोध्या पूर्वती वि नीताथी वसाव्यो. ए विनीता अने अयोध्या बेहुने आठ पहोरमांहे विश्वकर्मायें नीपजाव्या. .
नगरीनी चारे दिशायें चार वन कस्यां. तेमां पूर्व दिशे सिवन, दक्षिण दिशे श्रीवासवन, पश्चिम दि. पुष्पाकर वन बने उत्तर दिशें नंदनवन जाणवं. नग रीना वनमांहे चारेदिशे चार पर्वत रच्या. तिहां पूर्व दिशायें अष्टापद पर्वत, दक्षिण दिशे महाशैल पर्वत, पश्चिम दिशें पोडेढो पर्वत अने उत्तरदिशें उदयाचल पर्वत रच्यो, तथा जरतनी बहेन ब्राह्मीने शास्त्रना
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(६७) नंमार सोंप्या, अने बाहुबलिनी बहेन सुंदरीने नव निधि सोप्या, तथा चोराशी विज्ञान अने बहोंतेर क सा इत्यादिक सोंप्या इत्यादि अधिकार घणो ने ते शास्त्रांतरथी जाणवो.
अथ श्रीसिजगवानना चार निक्षेपा. १ नामसि ते नमो सिक्षाणं. २ थापनासि ते सिकायतन सिमर्नु घर. ३ इव्यसि ते जे केवलि थशे ते जीव. भनावसि ते जे कर्म खपावी मोद पहोता ते जाणवा ' अथ श्रीअरिहंत नगवंतना चार निदेपा. १ नाम अरिहंत ते षनदेवथी श्रीमहावीर पर्यंत
चोवीश तीर्थकरनां नाम जाणवां. २ थापना अरिहंत ते काष्ठ, पित्तल, पाषाण, सुवर्ण, __ रूप्य, रत्न,लेपादिकनी श्रीतीर्थकर प्रतिमा जाणवी. ३ इव्य अरिहंत बे ने जे.१ नगवान् मोद पहोता पबीजे तेमनुं शरीर रहुं ते जाणंग इव्य शरीर कहीये. ४ जे तीर्थकर थवानो ने तेनुं शरीर ते नविय व्य शरीर कहीये.
॥ लेश्यानी कालस्थिति प्रारंजः ॥ . १ कृष्णलेश्या काल जघन्य अंतर मुहर्त अने उत्क
टा तेत्रीश सागरोपम अंतर्मुहूर्ते अधिक जाणवी. २ नीललेश्यानो काल जघन्य अंतरमुहर्त बने उत्कृष्टा
दश सागरोपम पल्योपमा संखेय नाग अधिक. ३ कापोत लेश्यानो काल जघन्य अंतरमुहूर्त उत्कृष्ट
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(६२ए) त्रण सागरोपम पल्योपमना असंख्यातमे जागेअधिक. ४ तेजोलेश्यानो काल जघन्य अंतरमुहूर्त अने नत्कृष्ट
बे सागरोपम पल्योपमने असंख्यातमे नागें अधिक ५ पद्मलेश्यानो काल जघन्य अंतरमुहर्त अने उत्कृष्ट दश सागरोपम पल्योपमना असंख्यातमे नागें अधिक. ६ शुक्तलेश्यानो काल जघन्य अंतरमुहर्त अने उत्कृष्ट . तेत्रीशसागरोपम अंतरमुहूत अधिक.
त्रण जना करेला उपकार वालीने उशीगण न थ शकीयें, तेनां नाम कहे . ज एक तो पोताना माता पिता होय तेमने प्रनातें
उठीने सहस्त्र पाकादिक उत्तम प्रकारना तेलें क रीमर्दन करीयें, सुगंधित इव्यें करी उवटणुं क रीयें, सुगंधी पाणी, नन्दं पाणी तथा टाटुं पा पी एवा त्रण प्रकारना पाणीयें करी न्हवरावी ये, पत्री वस्त्रानरणादिकें करी विजूषा करीयें, म न गमतां मधुरां जोजन करावीयें, जावळीव प र्यंत बापणी पीठ उपर खांधे चडावी फरावीयें तेमनी आझामां खरा अंतःकरण पूर्वक चालीयें, थने बीजा पण जे जे सेवा करवाना उत्तम पाय ने ते सर्व उपायें करी नाव नक्ति सहित सेवा चाकरी करीयें, तो पण तेमनां शीगण थ
शकीयें नही; परंतु जो पोताना माता पिताने केवलिप्रणीतं धर्म बृजवीने धर्म पमाडी धर्मने विषे स्थापायें, तो उशीगण थायें.
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(६३०) ए कोई एक महर्डिक पुरुष होय ते कोइ दारिडी पु
रुपनी उपर उपकार बुद्धि आगीने तेने महोटो महर्दिक करे, पनी कालांतरें कदापिथगुन कर्मना योगें ते उपकारनो करनार पुरुष दरिडी अवस्था ने पामे,तेवारे तणें जेना उपर प्रथम उपकार क री महार्दिक कीघोडे,ते पुरुष पोताना स्वामीने द रिझ्याव्युं जाणी जो पोतानी समस्त लक्षीसप्तांग सहित यापी दीये तो पण तेनो उशीगण न थाय,
परंतु केवलिप्रीत धर्म पमाडे तो उसीगए थाय. १. कोश्क पुरुष साधु चारित्रीयादिकनी पासेंथी को
न धर्ममय सुवचन सांजली ते मनमांहे धरी गुनध्यानमा रह्यो थको काल करी देवता पणे नपजे; पबीते देवता पोताना धर्माचार्य प्रत्ये 5 कालमांहे पड्यो जाणी तिहांथी अपहरी सुका ल मांहे लावी मूके अथवा कांतार अटवी माहे पड्यो जाणीने वस्तिने स्थानकें यापी मूके,थ थवा रोग आतंक पीडायें परानव्यो जाणीने रोग आर्तकरहित निराबाध पणे करे, तो पण ते देव ता पोताना धर्माचार्यनो उसीगण न थाय; परंतु कदापि ते धर्माचार्य अगुन कर्मना योगें केवलि प्रणीत धर्म थकी चष्ट थाय, तेवारें तेने केवलित णीत धर्म बुझवे,धर्ममा थापे, तो उसीगण थाय.
॥अंगस्फुरण विचार. सबाय ॥ ॥ चोपाश्नी देशी॥ श्रीश्रीहर्ष प्रनु गुरु वंदि, जो
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(६३१) डी करीश हूं चोपाई बंदि ॥ नर नारीनां अंग उपंग, फुरके तास फलाफल चंग ॥१॥ माथे फुरके पुह वीराज, पामी अविचल सारे काज ।। जालें फुरके साजन वृद्धि, दिन दिन थाये ऋदि समृदि॥२॥ पांपण फुरके सुख संपजे, थानक बेठा थाये वि जे ॥ नाक यांख विच फरके जेह, प्रियसंगम हो ये अविहड नेह ॥३॥ बेहू यांख्यो फुरके आम, मित्र मले अणचिंत्यो ताम ॥ नयण विचार कहुँ हवे जून, वेदागमनो लेई हो ॥४॥ जमणी अांख्यो ऊपर फुरे, तो जस लानने सुख अनुसरे ॥ हाण श्र ने क्षय जय नीचले, फुरके व्रत आंखे महीयले ॥ ५ ॥ सुख जोग संगम माबियें, नीचली फुरके फ सनावीयें ॥ उपरलीयें दय उःख थाय, इणि परें नयण कह्यां विगताय ॥ ६ ॥ नाक तणी मामी जव फुरे, बातम संतोषी सुख करे ॥ टीगसी फुरके जब नासिका, दीये नव जसनी तवि आसिका ॥ ७ ॥ल मणा फुरके लखमी साड, पामे दूध दही घी बाश कान फुरके तो सुवचन सुणे,रूडी वात दिशों दिश सु गे॥॥ गाल फुरके तो सयला नोग,अथवा नोजन सासुर जोग । होठ फुरके जब ऊपरे, तव अचिंत कलियल नर करे ॥ ए॥ मुख मिष्टान्न फुरके लहे, स्त्रीसंगम थिर गह गहे ॥ नोग लहीजें हिडकी फुरी, होते फुरके वोली खरी ॥१॥ गट्टे फुरके जब नर नार, वस्त्राजरण लहे तेणि वार ॥ गावड फुरके
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( ६३१ )
जय मरणरो, दाखवीयो फल शास्त्रे खरो ॥ ११ ॥ कलह फुरके दुवे तेहवे, लान जोग जसु फुरके खवे ॥ कारख फुरके होवे धन हाण, वात कही बे एहवी पुरा ण ॥ १२ ॥ पसवाडा करके जिन जिसे, वन वात सुणावे तसे || पूंठ फुरके तो वयरी मरे, काज सर्वी घर बेठां सरे ॥ १३ ॥ बांह फुरके प्रिय जो मले, कुं ही फुरके जयपद भजे ॥ कर फुरके टाले आपदा, फुरके हथेली दीये संपदा ॥ १४ ॥ पोहोचे फुरके चितारे मित्त, अथवा किंपि वधारे प्रीत ॥ प्रांगुली या पण तेह विचार, नख फुरके वयरी जयकार ॥ १५ ॥ ही ये फुरके लान प्रमाण, या फुरके वि शेष तसु जाए । पेट फुरके वाधे तसु जंकार, ना नि फुरके पाय विहार ॥ १६ ॥ श्रासन फुरके स्त्री संतान, एवं सुणीयें लौकिक ज्ञान ॥ ढीचण फुरके हरख निधान, अथवा पदवी लहे परधान ॥ १७ ॥ गुह्य फुरकतां रमणीरंग, पामे निर्श्वे उत्तम संग ॥ कटि यें फुरके पहेरे वस्त्र, साथल फुरके बंधन शस्त्र ॥ १८ ॥ गूमे फुरके वाहण चडे, जंघा फुरके पंथे खडे ॥ गी री फुरके संपदा वघे, अथवा केइ अचिंतित सधे ॥ ॥ १५ ॥ पग उपर झुरके धन होय, पग तलीये सवि शेषो जोय ॥ पग यांगुलीयें जिसें फुर फुरे, तव जीष्ट घर आवी नरे ॥ २० ॥ पुरुष अंगुल लीजें जिमलो, वाम यांगुल फल नारी तणो ॥ तुरत फल आपे सुनगने, मध्यम फल थापे वीहिवने
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(६३३) ॥१॥ दिवस तणुं फल बोल्युं कमें, वली विपरीत कडं निशि समे ॥ ब्रह्मचारी ने बाल कुमार, राजा प्रमुख फलापति सार ॥ ॥ संवत नंद लवण र स चंद, दसराह दिन महिमाणेद ॥ कही वात तन फरकन तणी, आगम वाणी जिसि गुरु नणी॥२॥ ॥ इति अंग फुरकन विचार मद्याय समाप्त ॥ बींक विचार स्वाध्याय प्रारंनः ॥ देशी चोपानी॥
॥ठीक शुकननो कहुँ विचार, सुगुरु समीप सुण्यो में सार॥ आगलमां जो बींकज होय,अशुन तणी जाणे जे कोय ॥ १ ॥ पहेला गुकन दुखांगुन घणां, बींक दुध निःफल तेह तणां ॥बींकज दूया पडी जे जाण, झुकन दुयां ते करो प्रमाण ॥ २ ॥माबी बींक होय अफल कहे, जमणी बींक बुरी सदु कहे ॥
ठे बींक सुखदायक सही, घणी बीक ते निःफलक ही॥३॥ हांसे नय नपाधियें करी, हठ घणो मन मांहे धरी ॥ एह बींक ते निःफल जाण, कुतर बींक तो निःवर प्राण ॥॥मंजार डींक ते मराज करे, इसी बींक कष्टकारी सरे ॥ वस्तु वेचतां बीकज होय, आण्युं कियामोधू होय ॥ ५ ॥ वस्तु लेता बींकज होय, बमणो लान सघतानो जोय ॥गश्वस्तु जो जोवा जाय, बीक होय तो लान न थाय ॥६॥ नवां वस्त्र वली पहेरतां, बींक होये आगल अण बतां ॥ जोजन होम पूजानुं काम, मंगलिक जे धर्म सुगम ॥ ७ ॥ काम एटला कीधानी अंत, वली
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(६३४) क्रिया करावे खंत ॥ रति स्नान करीने रहे, बींक होय तो पुत्रज लहे ॥ ॥ ऋतुवतीने दीधे दान, पनी होवे पुत्र निदान ॥ वैरी जीती जाणुं जोय, के वैरी सबलो होय ॥॥ रोगीकाज वैद्य तेडवा, जातां बीके जो नवनवा ॥ ते रोगीने मृत्यु जाणीयें, काम विना वैये नाणी ॥ १० ॥ वैद्य रोगीने घरें याव तां, बीक होय औषध आपतां ॥ रोगी तणो रोग ते समे, थाहार ले ते जमर्रा गमे ॥ ११ ॥ व्यापार सीधे व्यापार, बींक होय तो दि अपाराले गुरू दीधं रायने, बीके फोक थाये तेहने ॥१२॥ पाणी पीतां अथ प्रीसंवाद, बींक दृष्टि दोष अनिवाद । नवे घरें वसवा यावीयें,बींक होये तो उचालीयें॥१० व्याजें इव्य केहने आपतां, वली पृथिवीमा धन दाटतां ॥ कर्षण जोवा जातां वली, वृष्टि होय पुहवी मन रुनी ॥ १४ ॥ बींक गुकन नर जाणे जेह, पग पग संपद पामे तेह ॥ बींक विचार जाणे जो कोई, दि वृद्धि कल्याणक हो॥१५॥इति बींक विचार ॥ दिशापरत्वें बींकना फल जोवानो यंत्र.
ईशाने । पूर्वदिशें | बानिखुणे १हर्षे. एलान. । एलान. २ नाश. ६ धनलान. १०मित्रदर्शन. ३ मित्रलान. ७ मित्रलान./११ गुनवा . ४ अभिनय. अग्रिनय. | १२ अग्रिनय.
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उत्तर
१ शत्रुनय यावदिशा उने वि २ रिपुसंगम पे प्रहर प्रहरनी बिकोनुं गुना गुन
फल.
३ लान. ४ नोजन.
वायव्य
१ स्त्रीलान.
( ६३५)
२ लान.
३ मित्रलान.
४ दूरगमन.
पश्चिम
५ दूरगमन.
६ हषे.
७ कलद.
० चोरनय.
दक्षिण
५ लान.
६ मृत्युजय.
७ नाश.
८ कलि.
नैकत
ए लान.
१० मित्रदर्शन.
११ शुभवार्त्ता.
१२ लाज..
अथ चक्रवर्तीनी ऋद्धि समृद्धिनुं प्रमाण.
१ भरत क्षेत्रना व खं. २ नव निधान. ३ चौद रत्न ४ शोल हजार यह इत्यपरे पच्चीस हजार.
५ बत्रीश हजार मुकुटब 5 राजा.
६ चोराठ हजार अंतेनरी राजकन्या परली. 9 एकेक अंतेवर सायें बेबे वारांगना तेवारें १२८००० वारांगना होय सर्वमली १७२००० G चोराशी लाख हाथी.
ए चोराशी लाख घोडा सामान्य उत्तम नागें. १० श्रढार कोडी महोटा अश्व.
११ चोराशी लाख रथ. १२ बन्नुकोड पायक.
१३ बत्रीश हजार बत्रीश बदक नाटक.
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(६३६) १४ बरीश हजार महोटा देश. १५ बरीश हजार वेलाय . १६ चौद हजार जलपंथा १७ एकवीश हजार सन्निवेश १७ शोल हजार राजधानी. १ए बपन्न अंतर हीप. २० नवाणुंहजार शेणमुष. २१ बन्नु क्रोड गाम. '२२ उगणपचाश हजार उद्यान. २३.अढार हजार श्रेणिकारू. २४ अढार हजार प्रश्रेणिकारुकरदाता. २५ एंशीहजार पंमित. २६ सात कोड कौंटुबिक. २७ बत्रीश कोडी कुल. २७ चौद हजार महोटा मंत्रीश्वर. शए चौद हजार बुदिनिधान. ३० बत्रीश हजार नवबारही नगरी. ३१ गणपञ्चाशशें कुराज्य आपातसंपातप्रत्यंतरराजा ३२ शोल हजार म्लेड राजा. ३३ चोवीश हजार कर्बट. ३४ चोवीश हजार मटब. ३५ चोवीश हजार संबाधन. ३६ शोल हजार रत्नाकर. ३७ वीश हजार बागर पत्यंतरें १६०००
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(६३७) ३० चोवीश हजार खेडाशून्य प्रत्यंतरे चौद हजार. ३ए सतावीश हजार नगर अकर. ४० शोल हजार हीप. ४१ बहोंतेर हजार पत्तन. ४२ अडतातीश हजार पाटण प्रत्यंतरे. २४००० ५३ पांच लाख दीवीधर दीवीया पांचक्रो. १४ चोराशी लाख महोटा नीशान, ४५ दश कोड पंचरंगी ध्वजापताका. ४६ त्रण कोड नियोगी. ४७ चोशठ हजार महाकल्याणकारक.
बतीश कोड अंगमर्दक. ४ए बत्रीश कोड आजराधारक. ५० बत्रीश हजार सूपकारक ते रसोश्ना करनार
त्रीशकोडी. ५१ त्राशे साठ मूल सूपकार तें पोताना रसोश्या. ५श्त्रणलाखनोजनस्थानक त्रणलाखसाथेनोजनकरे ५३ एक कोड गोकुल. ५५ त्रएकोड हलहल. ५५ नवाणुं क्रोड माटंबिक. ५६ नवाणुं क्रोड पौतार. ५७ नवाणुं कोड दासीदास. ५७ नवाणुं कोड ना यात ५ए नवाएं साख अंगरक्क. ६० नवाणुं क्रोड नोइ कावडीया.
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( ६३८ )
६१ नवाणुंक्रोड मसूरिया. ६२ नवाणुंक्रोड पश्यायत. ६३ नवाणुंक्रोड पटलतारक. ६४ नवाणुंक्रोड पंमव. ६५ नवाणुंक्रोड मीठगबोला. ६६ एकक्रोड एंसीहजार रासन. ६ ७ बारलाख नेजा.
६० त्रण क्रोड पायक विनोदी. ६५ बार कोड सुखासन.
७० साठ क्रोड तंबोली.
७१ पञ्चाश कोड पखालीया पाणीनापोठीया. तथा प्रतिहार इत्याद्यनेक ऋद्धि चक्रवर्त्तिनी जाणवी. अथ पल्लीपतनफलं लिख्यते.
तत्रप्रथमावयवपतनफलम्.
अवयवना० फलानि अवयवना० फलानि.
धनहानि सु०
राज्यलान ऐ० हृदये ऐश्वर्यवृद्धि.
मस्तके
ललाटे
नेत्रे २ जय उपजे.
कर्णे २ नासिका. २ सौभाग्य.
मुखे
कंठे
स्कंधे २ जे २
•
उदरे नानौ
अलंकार मिले. पृष्ठे
पुत्रलान. सुखवृद्धि.
महालाच. पसवाडे जयउपजावे.
मिष्टान्ननोजन. कटौ
प्रियसमागम, गुह्ये जय पामे.
धनलान.
वस्त्रलान.
मित्रसमागम.
जांघ पर इव्यनाश. सायलव ० वाहन पामे.
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करे २ स्तने २
तिथिनाम. पडवो०
बीज०
त्रीज०
चोय ०
पांचम०
ਡਰ
व्यव्यय.
सौभाग्य पामे. पगउपर अथ तिथिफलम्.
(६३९)
फलम्
रोग करे.
शुन करे.
लाज करें.
रोग करे.
धनप्राप्ति.
कष्ट उपजे.
सातम०
इव्य मत्रे. आठम ० | कष्ट करे.
गोठण परव्यनोसंचय. पग पर भ्रमण करावे.
रविवार० कष्ट करे. सोमवार शुभ करे. मंगलवार कष्ट करे. बुधवार० शुन करे.
तिथिनाम.
नवम०
जयकष्ट०
दशम०
कष्ट०
अग्यारस पुत्रलान करे.
बारस ०
तेरस० चौदश ०
धनलान थाय.
हानि पाय. धनहानि थाय.
पूनम ० बंधुनाश करे. अमावस० धननाश करे.
अथ वार फलम्
फलम्
गुरुवार० | जय पामे. शुक्रवार० धन पामे. शनिवार जय उपजे.
अथ नक्षत्रफलम्.
नक्षत्र नाम. फलम् नक्षत्र नाम. फलम् अश्विनी० रोगनाश करे. स्वाती० पुत्रप्राप्ति थाय. नरणी० रागादिक थाय विशाखा० धनहानियाय.
धनपुत्रादि पामे
कष्ट पामे. संतान सुखपा
कृत्तिका ० धननाश. अनुराधा रोहिणी० सत्कार पामे. मृगशिर० सुख पामे. ० मूल०
ज्येष्ठा ०
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(६४०) आर्श. रोग,कलहकरे पूर्वाषाढा सोनाग्यप्राप्ति पुनर्वसु. धन पामे. उत्तराषाढायामांतरथीलान पुष्य. पुत्रसुख पामे अनिजित्. सुख करे. अश्लेषा. जुमीवात सां० श्रवण हर्ष उपजावे. मघा. कल्याणथायधनिष्ठा नय नपजावे. पूर्वा. कार्यसिदि. शततारका चोरनय उत्तरा. प्रियसमागम. पूर्वाना सुखलान. हस्त. मित्रसमागम. उत्तराना धन पामे. चित्रा. रोग नपजे. रेवती रोगनाश थाय.
'उपर कह्याप्रमाणे गिरलाइ अंगनपर पड़े तो त रत स्नान करवू. तथा तिल अने अडदनुं दक्षिणास हित दान आपq. तेथी अनिष्ट मटे.इतिपनिपतन।
अथ अढार वर्णनां नाम. १ कंदोइ. २ पटेल. ३ कुंभार. ४ सोनार. ५ माली. ६ तंबोली. ७ गंधर्व. वैद्य. ए सतुआरा. १० नारू. ११ घांची. १२ मोची. १३ गांबा. १४ बीपा.१५ लंगरा. १६ ग्वाल. १७ दरजी. १७ कैवर्तक निन,
अथ वणिक्जातिनांनाम. प्रथम सामान्यथी गा थायें करी कहीने तथा प्रकारांतरें कवित कहीने प बी विशेषथी सर्व मली १०ए जातिनां नाम लव्यां ने.
श्रीमाले नवएस नाम नगरे पल्लीपुरे मेडते, वग्घेरे तहडी मुयाण नगरे खोमके पुष्करे ॥ राज न हर्षपुरे नराण नगरे टिंटोडके जायले, खंभे खं
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(६४१) मिलके स्थिता दशमिता साध्यः पंक्तयः॥१॥ एवं बार एक पांति॥ कवित्त ॥ श्रीश्रीमालिसवाल, प्रगट पोरवाल जपीजें॥ गुर्जर नागर मोढसो,रतीया ढुंबड सुगीजें ॥ जालोहरा जगनला, वली वायडा वखाj॥ मीसावाल दीपि अधिक,ताहिं उपम य j॥ मिंज लाड तिहां दीपता,दान सदा दूती दीये, सारिज वार नातिसर,कवित एम कविजन कहे ॥१॥
वणीकनी १०७ जातिनां नाम. १ श्रीश्रीमालि. १६ बंबेरवाल. ३१ चित्रावाल. २ श्रीमालि. १७ गुणदवाल. ३ सवाल. १० सरवाल. ३३ ढुंबड. ४ पोरवाड. १ए ढीलीवाल. ३४ मोढ. ५ गुर्जरपोर०२० ढोडवाल. ३५ मी. ६ जांगडा पो० २१ मेडतवाल.३६ वायडा. ७ सोरठीयापो. २२ नोरणवाल. ३७ कंथार.
गुर्जर. २३ नराणावाल. ३० आंबिला. ए पन्निवाड. २४ जाइलवाल.३ए करिहा. १० देवणवाल. २५ महेशरवाल. ४० दसोरा. ११ अगरवाल. २६ टिंटोडवाल. ४१ इंदोरा. १२ धीरवाल. २७ पुष्करवाल. ४२ नरसिंघोरा. १३ मंकवाल.. २ सिंसवाल. ४३ हरसोरा. १४ वग्घेरवाल. २ए खंमेलवाल. ४४ सिंदूरा. १५ जसवाल. ३० मीसावाल. एयणहिलपुरा
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(६४२) ४६ जीराउला. '६७ कुंकुम्या. धूल्याकंथारा. १७ वडोघा. ६७ रोड. ए मरहठा. ४७ नजेम्या. ६ए पूरवीया. ए० श्रीगौड. ४ए बोड. ० गोलाराडा. ए१ वधगोरा. ५० केस्रा. ७१ शंख. ए अनोला. ५१ पठाणा. ७२ सोणिया. ए३ मादुरा. ५२ गराज. ७३ चित्रोडा. नीमा. ५३ साला. ७४ ननेरा. एए वराड. ५४ लाड. ७५ नागदहा. ए६ कंब. ५५ पंचोरा. ७६ वीजापुरा. ए७ धाकड. ५६ संवेचा. ७७ मालोधा. ए नमीयाडा. ५७ माघरा. ७ कानडा. एएनट्टेनरा. ५७ गंगराडा. ___Yए कनोज्या. १०० खटवड. ५ए मेम. G० लवणावत्या १०१ जहन. ६० खोहर. ७१ पदमावत्या. १०१ चनसखा. ६१ विहारा. ७२ जोजाहुत्या. १०३ उसखा. ६ सिहारा. ७३ श्रीखंमा. १०४ बाउसखा. ६३ चंदेल. ७४ अष्टवर्गी. १०५ खडाश्ता. ६४ निलोधा. ए राहावी. १०६ लिंगाश्ता. ६५ नागर. ६ वीजावर्गी. १०७ ढोसर. ६६ रोहण्या. हबिणारा. १०७ कुंगरवाल.
ט
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॥ इति वणिगजाति नेदः॥
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(६४३) ॥ अथ सूतक विचार प्रारंनः॥ ॥ प्रथम कोइने घरे जन्म थाय ते विषे ॥ १ पुत्रजन्मे दिन दश, सूतक तथा पुत्रीजन्मे दिन __ अगीयार अने रात्रं जन्मे तो दिन बार- सूतक. २ बार दिवस घरना माणस देव पूजा करे नही. ३ न्यारा जमता होय, ते बीजाना घरना पाणीथी जिन पूजा करे अने सूवावड करनारी तथा क
रावनारीने तो नवकार गणवो पण सूजे नही. ४ तथा प्रसववाली स्त्री, मास एक सुधि जिनप्रतिमा
ना दर्शन करे नही. तथा दिन (४०) सुधि जिन प्रतिमानी पूजा न करे,अने साधुने पण वोहोरा वे नही, एम विचारसारप्रकरण मध्ये कह्यु बे. ५ घरना गोत्रीने दिन पांचनुं सूतक जाणवू. ६ व्यवहार नाष्यनी मलयगिरिकत टीका मध्ये
जन्मनुं सूतक दिन दशनुं कडं जे. ७ गाय, घोडी, उंटणी, नेप, घरमां प्रसवे, तो दिन बे
मुं सूतक घने वनमां प्रसवे,तो दिन एकनुं सूतक. G नेष प्रसवे, तो दिन पंदर पनी तेनुं दूधं कल्पे. ए गाय प्रसवे, तो दिन दश पनी तेनुं दूध कल्पे. १० बाली बकरी प्रसवे तो,दिन यात पडीतेनुं दूध कल्पे. ११ उंटणी प्रसवे, तो दिन दश पनी तेनुं दूध कल्पे. १२ दास दासी के जेनो पापणेज आश्रयें जन्म थाय,
अने अापणीज नजर आगल रह्यां होय, तो ते नुं चोवीश पहोर सुधी सूतक जाणवु.
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(६४४) ॥तुवंती स्त्री संबंधि सूतक निर्णय ॥ १ दिन त्रण सुधी नांमादिकने वे नही. दिन चार
लगें पडिक्कमणादिक करे नही पण तपस्या करे, ते लेखे लागे. दिन पांच पड़ी जिनपूजा करे.रोगादि क कारणें त्रण दिवस वीत्या पली पण जो रुधि र दीवामां आवे,तो तेनो दोष नथी. विवेकें करोप वित्र थई जिन प्रतिमादिक जिनदर्शन अग्रपूजादि क करे,तथा साधुने पडिलाने,पण जिनप्रतिमानी अंग पूजा न करें. एम चर्चरीग्रंथमां कडं जे.
॥मृत्यु संबंधी सूतकनो विचार ॥ १ घरनुं को मरण पामेलुं होय तो सूतक दिन बारनू.
तेने घरे साधु थाहार लिये नही,तेना घरना थ नि तथा जलथी जिन पूजा थाय नही,एम निशीथ चूर्णीमां कडं . निशीथ सूत्रना शोलमा नहे शामां जन्म तथा मरण- घर जुर्गनिक कथु जे. २ मृत्युवाला पासें सुए तो दिन त्रण पूजा न करे. ३ कांधिया, देवदर्शन पडिक्कमणादिकत्रण दिन न ___ करे. परंतु जो नवकारनुं ध्यान मनमा करे,तो तेनो
कां पण बाध नथी. ४ मृतने अडक्या न होय तो स्नान कीधे शुध्थाय. ५ अन्य पुरुष जो मृतने अडक्या होय तो ते शो
ल पहोर पर्यंत पडिक्कमणादि न करे. ६ जेने घरे जन्म तथा मरण- सूतक थाय, तेने घरे जमनारा दिन बार सुधी जिनपूजा करे नही.
माला पासें सुए हमणादिक जानतेनो
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( ६४५ )
9 वेषना पालटनारा आठ पोहोर सूतक पाले. जन्मे ते दिवसें मृत्यु थाय अथवा देशांतरें मर
पामे अथवा जति मरे तो दिन एकनुं सूतक. ए आठ वर्षथी नानुं बालक मरण पामे, तो दिन श्रावनुं सूतक, विचारसार प्रकरणमां कयुं बे. १० गाय प्रमुखनुं मृत्यु थाय तो कलेवर घरथी बा हेर नहि गया पढ़ी दिन एक लगें सूतक अने अन्य तिर्यचनुं कलेवर पड्युं होय, तेने तो घरथी बाहेर लइ जाय, तिहां सुधी सूतक, पी नहीं. ११ दास दासी जे आपली निष्ठायें घरमा रह्यां दोय तेनुं मृत्यु थाय, तो त्रण दिवस सूतक लागे. १२ जेटला महिनानो गर्न पडे, तेटला दिवस सूतक. १३ परदेश गयेलानुं मरण थयुं सांनजे तो एक तथा
बे दिवसनुं सूतक लागे, एम कल्पनाष्यमां कत्युं छे. १ गोमूत्रमां चोवीश पहोर पढी, जेंषना मूत्रमां शोल पहोर पछी, गामर, गधेडी तथा घोडीना मूत्रमां यात पहोर पी धने नर नारीना मू मां चार पहोर पढी संमूर्तिम जीव 'उपजे बे.
॥ अथ पीस्तालीश यागमनां नाम तथा तेनी मूल श्लोक संख्या अने ते प्रत्येकनी उपर जुदा जुदा याचा यनी करेली वृहद्वृत्तियो तथा लघुवृत्तियो, चूर्णियो, निर्युक्कियो तथा नाष्यो वगेरेना श्लोकोनी संख्यानुं प्र माण ए सर्व नीचें लखी यें बैयें.
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(६४६) प्रथम श्रीसुधर्मा स्वामिनां करेला बगीयार अंग नां नाम लखीयें छैयें. १ श्रीपाचारांग सूत्र अध्ययन २५, मूल श्लोक २५००, शीलंगाचार्य कृत टीका १२०००, चूमि३००,नथा श्रीनबादुस्वामीकृत नियुक्ति नी गाथा३६७, श्लोक ४५०, नाष्य तथा लघुर ति नथी. सरवाजे श्लोक २३२५० के. ५ श्रीसूयगडांग सूत्र अध्ययन २३. पाखंम्मत
निर्दलन रूप. मूल श्लोक २१००, शीलंगाचार्य • कृत टीका १२५ तथा चूमी १0000 श्लोक जे, अने श्रीनश्बाहु स्वामिरुत नियुक्तिनी गा था २०७, श्लोक २५० , नाष्य नथी, सरवा ले श्लोक २५२०० तथा १५७३ नी शालमां आधुनिक श्रीहेमविमलसूरिये ७००० श्लोकने बाशरे दीपिका करेलीने. पण ते जूनी टीपोमां पूर्वाचार्योनी गणतीमां नथी. ३ श्रीवाणांग सूत्र.एनां दश अध्ययन जे.एना मूल श्लोक ३७७० ,तेनी टीका संवत् ११२० मां श्रीअनयदेवसूरिस्त १५२५० श्लोकनी .सर वाले १०२० श्लोक . ४ श्रीसमवायांग सूत्र. एना मूल श्लोक १६६७ ने, तेनी टीका श्रीअनयदेवसूरिकृत ३७७६ श्लोकनी जे. एनी चूमि पूर्वाचार्य कृत ४०० श्लोक ने. सरवाले ५७५३ नी संख्या थई.
मा
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(६४७) ५ श्रीविवाहपन्नत्ति जगवतिसूत्र शतक ४१ ने, ए
मां बत्रीश सहस्त्र प्रश्न गौतमना . मूल श्लोक १५७५२, टीका संवत् ११२७ मां श्रीअनयदे वसूरिनी करेली शेणाचार्ये शोधेली १७६१६ श्लोकनी जे. एनी चूर्मि 1000 श्लोक पूर्वाचार्य कृत ने. सरवाले ३३६ नी संख्या. तथा ए नी लघुवृत्ति संवत् १५६८ ना वर्षमा दानशेख र नपाध्यायनी करेली १२००० श्लोक संख्या जे. ६ श्रीज्ञाताधर्म कथांग सूत्र अध्ययन १ए, कथा
नगणीश सांप्रत देखाय . प्रथम साडीत्रण.को टि कथा प्रसिह ,एनी श्लोक संख्या ५५००, तेनी टीका श्रीअनयदेवसूरि कृत २५श्श्लोकजे. ७ श्रीनपासक दशांग सूत्र दश अध्ययन.मूल श्लोक
१२ एनी टीका श्रीअजयदेवसूरि कृत ए०० श्लोक , सरवाले १७१२. G अंतगड दशांग सूत्र एण्अध्ययन . मूल श्लोक
ए00, तथा श्रीअनयदेवसूरिकृत टीका ३०० श्लोक ले. सर्वसंख्या १२०० ए अणुत्तरोववाई सूत्र तेत्रीश अध्ययन मूल,श्लोक. २ए. तथा श्रीअजयदेवमूरिकत टीका १00,
श्लोक , सर्वसंख्या ३ए. १० श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्र दशयध्ययन रूप, मूल
श्लोक १२५०,श्रीअजयदेवसू रिकत टीका४६०० सर्व संख्या ५७५०.
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(६७) ११ श्रीविपाक सूत्र वीश अध्ययन . मूल श्लोक
१२१६,श्रीअनवदेवसूरि कृत टीका ए०० सो कले. सर्वसंख्या २११६. सर्व मली अगीधार अंगनी मूल संख्या ३५६५ए तथा टीका ७३५४४ घने चर्मि २२७०० तथा निर्य क्ति ७०० मली १३२६०३. तथा सूयगडगनी दीपि कानी संख्या जुदीने.एमां आचारांग तथ सूयगडांग नी टीका श्रीशीलंगार्य कृत ने. बाकी नव अंगनी टी का अनयदेवसूरिकत ,मा श्री अजयदेवसूरि, नवां गीवृत्तिकारने नामें उलखाय ने.
हवे बार उपांगन। संख्या लखे . १ श्रीनववा नपांग आचारांग प्रतिब.एनी मूल संख्या १२०० तथा श्रीयन्यदेवसूरि कृत टीका संख्या ३१२५ सर्व संख्या ४३२५. २ श्रीरायप्पसेणी उपांग सूयगडांग प्रतिबद्ध, एनी मूल संख्या २८ १७ तथा श्री मलयगिरि कृत टीका
३७००,सर्व संख्या ५७७७. ३ श्रीनीवानिगम अपांग गणंग प्रतिबद्ध,एनी मूल संख्या ४७०० तथा श्री मलयगिरिकत टीका १४००० तथा लघुत्ति ११०० तथाचूी श्लोक १५०० ३.सर्व संख्या १३००. ४ श्रीपन्नवणा नपांग, श्रीश्यामाचार्यरुत समवा यांग प्रतिब,एनी मूल संख्या • ७७७ तथा श्रीमलयगिरि महाराजनी करेली टीकार ६०००
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(६४) तथा हरिनसरि कत लघुत्ति३७२७ श्लोक , सर्व संख्या२७५१५. ५ श्रीजंबूहीप पन्नत्ति उपांग नगवति प्रतिबद एनी मूल संख्या १४६ मलयगिरिकत टीका २००० तथा चूर्णी १७६० . सर्व संख्या १७००६. ६ चंपन्नत्तिसूत्रज्ञाताप्रतिबदमूल संख्या १२०० तथा मलय गिरिकत टीका ए४११ तथा लघु
वृत्ति १000 श्लोक जे. ए सर्व संख्या १२६११. ७ सुरपन्नत्ति उपांग पूर्वोक्त चंदपन्नति तथा ए वेदु । मली ज्ञाता प्रतिबद ने एनी मूल संख्या १२०० तथा श्रीम नयगिरि कृत टीका ए००० घने चूमा
१००० सर्व संख्या १२२००. १२ निरयावलिका सूत्र अथवा नामांतरे एक कप्पि
या अध्ययन १७, बोजु कप्पवर्मिसिया अध्यय न १२,त्रीजुं पुफिया अध्ययन १०, चोथु पुप्फ चूलिया अध्ययन १०, अने पांचमुं वन्हि दिसा ए पांच उपांगनुं नाम निरयावलिका कहेवाय . ए कप्पिया प्रमुख पांच नपांगनी अध्ययन संख्या ५२ जे, ते अनुक्रमें सातमा नपासक दशां गादिक पांच अंग प्रतिब.ए पांचेनीमलीश्लो कसंख्या ११०ए ले ए पांचेनी वृत्ति ७०० श्लोक प्रमाण श्रीचंसूरि कतले. सर्व संख्या १०० एमबार नपांगनी सर्व मलीमूल संख्या २५४२०, तथा टीकानी संख्या ६७५३६ भने लघु टीकानी
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(६५०) संख्या ६७२७ तथा चूर्णीनी संख्या ३३६०, ए कंदर सरवाले संख्या १०३५४४.
हवे दश पयन्नानां नाम कहे ने. १ चनसरणपश्नो गाथा. ६३ २ आनरपञ्चरकाण पश्नो गाथा. ७४ ३ जत्तपश्नो गाथा. १५३ ४ संथारग पश्नो गाथा. १२२ ५ तंउलवेयाली पन्नो गाथा. ४०० .६ चंदा विऊग पश्नो गाथा. ३१० ७ देविंदब पन्नो गाथा. २०० ७ गणिविद्या पश्नो गाथा. १०० ए महापच्चरकाण पश्नो गाथा. १३४ १० मरणसमाधि पश्नो गाथा. ७२० ।
ए दश पन्नानी गाथा संख्या २३०५ थ. प्रत्ये कनां अध्ययन दश दश . ए दश पन्ना पीस्ताली श यागमनी गगतिमां . उपरांत केटलीक लखेली प्रतोमां महापञ्चरकाणने स्थानकें वीरस्तव पश्नो गा था ४३ नो लखेलो . हवे उपर कहेला दशथी उ परांत पन्ना पण हालमां ने, तेनुं इहां प्रयोजन न थी, तथापि वांचनारने वाकेब थवा माटे नाम सबुं . १ वीरस्तव पश्नो गाथा. ४३ २ ऋषिनाषितसूत्र संख्या ७५० ३ सिक्षिप्रानृतसूत्र संख्या १५०,एनी७५ण्टीका ने.
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(६५१) ४ दीवसागरपन्नत्ति संग्रहणी संख्या २५०, एनी
टीका २५०० जे. ६ अंगविद्यापश्नो संख्या 1000 एकटीपमालव्युंडे. ७ ज्योतिषकरंमक पश्नो संख्या ५००, एनी टीका श्रीमलयगिरि महाराजनी करेली ५००० संख्या नी. तेमज गन्हाचार प्रकरण प्रमुख पण . अंग चूलिकानी वृत्ति 300 श्लोक ले, परंतु ए चूलिका सूत्रमा ने किंवा बीजा कोश्मा डे, ते मज उपर लखेला ऋषिनाषित सूत्र तथा सिदि प्राज़त सूत्र थने दीवसागर पन्नत्ति ए पण जे सूत्रोना अंगमां होय तेमां गणवां.
हवे उ बेद ग्रंथनां नाम कहे . १ श्रीनिशीथल्द सूत्र, अध्ययन २०, मूल जुनी टीपमा ७१५ श्लोक जे. एनुं लघुनाष्य७४०० श्लोक ने, तथा चूरी 26000 श्लोक ने. महोटुं नाष्य १२००० श्लोक . ते टीकाने नामें पण कहेवाय ने. सर्व संख्या ४७११५ . २ महा निशीथलेद सूत्र, अध्ययन १३,मूल ४५०० श्लोक , तथा मतांतरें एनी त्रण वांचना ने, एक लघुवाचना ४२००, बीजी मध्य वा
चना १५००, अने वृहछाचना ११600 . ३ बृहत्कल्पच्छेदसूत्र. अध्ययन २४, एनी जुनी टी पमा संख्या ४७३ नी जे. एनी वृत्ति संवत् १३३२ ना वर्षमा बृहबालीय श्रीदेमकीर्तिसूरि
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(६५२) कृत ४२००० संख्यानी . तथा एनुं नाष्य जुनी टीपमां श्लोक १२००० संख्यानुं जे. तथा लघुनाष्य 3000 श्लोकनुं , अने एनी चूर्णि १४३२५ श्लोकनी ने.सर्व संख्या ७६७एन्थइ. ३ व्यवहार दशाकल्पबेदमत्र. एनां दश अध्ययन जे. एनी मूल संख्या जुनी टीपमा ६०० नी बे. एनी टीका श्रीमनयगिरि सूरिकत श्लोक ३३६२५ नी . तया चूमि १०३६१ श्लोकनी
बे.एनुं नाष्य जुनं। टीपमां६००० श्लोक, जरव्यु . . सरवाले संख्या ५०५७६ थर. ४ पंचकल्पलेद सूत्र. शोज अध्ययन जे. एनी मूल संख्या ११३३ नी. एनी चूमी १३० श्लो कनी जे. बीजी टीकामां एनी संख्या ३३०० नी पण लखी जे. तथा एन नाष्य ३१२५ श्लो कनुं . सर्व संख्या ६३७७ तथा एमां गाथासं ग्रह. २००. ५ दशाश्रुतस्कंधलेद सूत्र. जेनुं बाग्मुं अध्ययन क ल्पसूत्र ने. तेनी मूल संख्या १७३५ डे, तथा चूी २२४५ श्लोकनी ने, थने नियुक्ति संख्या १६७ श्लोक . सर्व संख्या थ. ६ जितकल्पछेदसूत्र. एनी मूल संख्या १०७ , एनी टीका १२००० श्लोक ले. तथा सेनकत चूर्सिस १००० श्लोक , अने नाष्य. ३१२४ श्लोक ले. सर्व संख्या १६२३२ श्लोक तथा
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(६५३) एनी चूर्मिनुं व्याख्यान ११२० . तथा एनी लघुत्ति श्रीसाधुरत्नरूत श्लोक ५७०० . त
था तिलकाचार्य कृत वृत्ति १५०० श्लोक ले. ६ साधुजित कल्प विस्तारें ३७५ श्लोक जे. एनी
श्रीधर्मघोषसूरि कृत वृत्ति २६५० श्लोक . तथा दशाश्रुतस्कंधन बाग्म अध्ययन कल्पसूत्र १२१६ श्लोक प्रमाण श्रीनश्बादुस्वामिळत जे. तेनी पृथ्वीचंइसरि कत टिप्पणी ६७० श्लो क ले, अने नियुक्तिनी १६७ गाथा नश्बादुस्वा मिळत . तथा एनी चूर्मि अने टीका पस घणी . परंतु ते घj करी विक्रम संवत् १२०० ना पसीनीले माटे टीपमां लखी नथी.
हवे चार मूल सूत्रनां नाम लखियें यें. १ श्रावश्यक सूत्र. मूल १२५ गाथा ले. एनी टीका
श्रीहरिनसरि कृत १२००० श्लोक . तथा एनी नियुक्ति श्रीनबादुस्वामिळत ३१०० श्लो क. तथा चूर्णि १७000 श्लोक जे. तथाबीजी आवश्यकत्ति (चतुर्विशति स्तव) २२००० ३. तथा एनीलघुत्ति तिलकाचार्य कृत १२३२१ श्लोक ले, घने अचलगहाचार्यरुत दीपिका १२००० श्लोक . तथा एनुं नाष्य 8000 श्लोक .तथा यावश्यक टीप्पणिका महनधारी श्रीहेमचंइसरि कृत श्लोक ४६०० एकठा करतां
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(६५४ ) सरवाले श्लोक संख्या ए७१४६ थाय जे. तथा नियुक्तिनी टीका २२५००, हरिनश्सरिकत . १ विशेषावश्यकसूत्र. ए यावश्यक मूल सूत्रनुं वि
शेष परिकर रूप जे. मूल ग्रंथ. ५००० श्लोक श्रीजिननगणिक्षमाश्रमण कृत , एनी लघर त्ति. १४०००, नोकनी ग्रंथना अंतमां कोटाचा र्य कृत लखी , भने टीपमा शेणाचार्यनुं नाम ने. तथा एनी वृह त्ति १७००० श्लोक प्रमाण महनधारी श्रीहेमचंसूरि कृत ने. तेनी टीका न
र्कानुविद्या जैनस्थापनाचार्य कृत ने. १ पारखी सूत्र मूल ३६० संग्ख्या ,एनी टीका संव
त् ११७० मांश्रीयशोदेव सरिये करेली तेनी श्लो
क संख्या २७००,तथा चूणि ५०० श्लोक जे. १ यतिप्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति श्लोक संख्या८० जे. २ दशवैकालिक सूत्र. श्रीसिचंनवसूरिकत मूल श्लो कनी ७०० संख्या जे. एनी वृत्ति तिलकाचार्य कृत 3000 श्लोक प्रमाण जे. तथा बीजी वृत्ति श्रीहरिनासूरि कृत ६१० श्लोक ले. तथा श्रीमलय गिरि महाराज कृत तृत्ति. ७७०० श्लो क. तथा चूर्णि ७५०० श्लोक जे. लघुवृत्ति ३७०० श्लोक ने, तथा नियुक्तिनी गाथा ४५०
. तेमज अाधुनिक श्रीसोमसुंदर सूरिकत लघु टीका ४२००, तथा श्रीसमयसुंदर उपाध्याय कृत लघुटीका २६०० जे.
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(६५५) २ श्रीपिनियुक्तिसूत्र श्रीनाबादस्वामिकत एनी मूल संख्या ७०० नी जे. एनी टीका श्रीमलय गिरिकत 3000 श्लोक जे. प्रत्यंतरें ६६०० नी जे. तथा संवत् ११६० मां श्रीवीरगणि रुत टी का ७५०० नोकनी,तथा महासूरिकत लघु
वृत्ति ४००० श्लोकनी .सर्व संख्या १२०० ३धनियुक्ति श्रीनवादुस्वामिकत मूल गाथार १७०
श्लोक १४५० मे. टीका शेणाचार्यकृत 3000 श्लोकनीले एनुं नाष्य ३००० श्लोक तथा
चूर्णि 1000 श्लोक जे. सरवाले संख्या ४५० ४ श्रीनत्तराध्ययन सूत्र. एना बत्रीश अध्ययन वैरा ग्यमय में, एनी मूल संख्या २००० , तथा हहहत्ति वादिवेताल श्रीशांतिसू रिकृत १७००० . प्रत्यंतरें १७६४५ पण , तथा लघुत्ति सं वत् ११२ए मां श्रोनेमिचंइसरिहत १३६०० श्लोकनी ले. एनी नियुक्ति श्रीनबाद स्वामि कत गाथा६०७ श्लोक ७०० तथा एनी चूर्णि ६००० श्लोकनी .सरवाले संख्या ४०३०० जे.
हवे बे चूलिका सूत्रनां नाम कहे जे. ५ नंदीसूत्र श्री देवर्दिगणिक्षमाश्रमण मूलश्लोक ७००, एनी वृत्ति ७७३५ श्लोक प्रमाण श्रीम लय गिरिकतं , एनी चूाणे संवत् ७३३ मांक रेली २००० श्लोकनी डे एनी लघुटीका श्रीहरि
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(६५६) जसरिकत श्लोक २३१२ , सरवाले संख्या १२७४७ . तथा एनी टिप्पणी श्रीचंइसरिकत ३००० श्लोकनी. ६श्री अनुयोगहार सूत्र.गाथार ६०० श्लोक १७००
ने तथा मनधारी श्रीहेमचंसरिकत वृत्ति संख्या ६०००, तथा श्रीजिनदास महत्तरकत चूर्णि ३००० श्लोकनी ,तथा श्रीहरिनस रिकतल घुवृत्ति संख्या ३५०० ३. सर्व संख्या १४३०० ॥ए प्रमाणे अगीयार अंग, बार उपांग, दशपय ना, बदसूत्र, चार मूलसूत्र अने बे चूलिकासूत्र, मली पीस्तालीशनी संख्या हाल गणतीमां. तेनी मूल श्लोक संख्या ७०३४० तथा मुख्य महोटी एकेक टीकाउनी सरवाले संख्या ३३४३४० , अने लघ टीकाउनी संख्या १७२६१, तेमज चूर्णीनी संख्या ए५१ ए६ तथा नियूक्ति ५११७ अने जाष्य ५०६४ .ए सर्व एकठा करीये तेवारे सर्व संख्या ६२००४ थाय. तेनी साथे श्रीमहानिशीथ सूत्रनी लघुवाचना ४२००,मध्यवांचनाए००,अनेबृहछाचना११000 एत्रण वाचनाना श्लोक नेलीयें तो ६४१४०४ थाय. ए मतांतर जाग. या कहेली संख्या मात्र पूर्वाचा ोयें प्रमाण कीधेलीज समजवी. तेथी विशेषावश्य कनी लघु टीका १४००० . ते एमां श्रावी नथी, तेमज आवश्यकनी टिप्पणी 1000 श्लोक ले, ते पण आमां गणी नथी, थने वाली घणा सिद्धांतोनी
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(६५७) बीजी नवी टीका तो अनेक डे, परंतु ते आधुनिक ,माटेपूर्वाचार्योयें ते प्रमाण करेली समजवी नही. यामां मात्र पुरातन टीकाज प्रमाण करेली . ते मज एने लगता कल्पसूत्रादिकनी संख्या पण एमां गणी नथी, माटे तेनी संख्या सर्व जूदी जाणवी.
आमां आवश्यक, आचारांग, सूयगडांग, दशवै कालिक, उत्तराध्ययन तथा कल्पसूत्र, ए बनी निर्यु क्ति श्रोनबादुस्वामित डे. _तथा निशीथनाष्य,बृहत्कल्पनुं लघुनाष्य तथा वृह भाष्य, व्यवहारनाष्य, जितकल्पनाष्य, पंचकल्पनाष्य अने उघनियुक्ति नाष्य, ए सात नाष्य पूर्वाचार्यकृत ने.
तथा याचारांग, सूयगडांग, नगवती, जंबुछीप पन्नति, आवश्यक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, पा खीसूत्र, अनुयोगहार, नंदी, निशीथ, वृहत्कल्प, व्य वहार, दशाश्रुतस्कंध, पंचकल्प, जितकल्प, ए शोलनी चूर्णि पूर्वाचार्यकृत ने.
अने टीकामांब सूत्रनी टीका श्रीहरिजइसरि कृत , नव अंग तथा नववा नपांगनी टीका श्री अजयदेव सूरिकत, आचारांग अने सूयगडांग ए बे अंगनी टीका शीलंगाचार्य कृत ने, पांचनी टीका मलयगिरिजीमहाराजकृत , तथा बीजी टीका पृथक् पृथक आचार्यकृत डे. सरवालानी संख्यामां सर्व सूत्रनी पहेली महोटी, रत्ति तथा लघुत्ति जे पूर्वा चार्यकत , तेज लीधेली . बीजीलीधी नथी. ए
४२
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संदेपथी आगमसंख्या बालजीवने समज माटे .
अथ नारकीनी वेदनानुं स्वरूप कहे . ॥तिहां पहेली रत्नप्रना, बीजी शर्करप्रना, त्रीजी वालुकाप्रना, चोथी पंकप्रना, पांचमी धूमप्रना, ब ही तमःप्रना, सातमी तमरपःप्रना, एम सात प्र कारनी नूमियो नारकी जीवोन रहेवा माटे जे. एने विषे जिहां सुधी ते नारकी जीवो जीवे, तिहां सुधी सदा सर्वदा निरंतर पणे अत्यंत दुःख वेदे ले, परंतु अांख वींचीने उघाडीये तेटली वार पण वेदना जो गव्या विना रहेता नथी. कारण के, तिहां एकांत ः खज बांध्यु ले, ते वेदे . बीजो उद्यम कां नथी. . हवे ते नारकियोने एक देवेदना, बीजी अन्यो ऽन्यवेदना, त्रीजी परमाधामिकत वेदना. एम त्रण प्रकारनी वेदना होय छे. तेनुं किंचित् स्वरूप कहे जे.
प्रथम त्रिवेदना कहे . के एक रत्नप्रनाना तथा बीजा शर्करप्रनाना त्रीजा वालुकाप्रनाना नार की जीवों शीतयोनिया ,अने योनिस्थानविना बीजी जे नरकनूमिका ले ते सर्व जेवा याग्निवर्ण खेरना अं गारा होय ते करतां पण अत्यंत नष्ण ने माटे ते शीत योनिया जीव ते नष्णवेदना वेदे ले. एम बीजा पण नरकोनेविषे नावना जाणवी. पंकप्रना नरकनूमिना उपरना घणा नरकावासा तो नष्ण , अने नीचला थोडा नरकावासा शीत जे. धूमा नामा नरकनू
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( ६५५ )
मिने विषे नरकावा सामां ऊाजा शीतल बे ने उष्ण थोडा बे; तथा बडी अने सातमी एबेहुनी एकांत शीतल भूमिकार्ड बे. अने तेमां रहेला नारकीयो उष्णयोनिया होय बे. परंतु एक एक जूमिनी नीची नीची भूमियोमां अनुक्रमें तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम वेदना बे, तेनुं स्वरूप कहे बे.
ग्रीष्मकतुने अंतें मध्यान्हसमयें सूर्य प्राप्त थये a ने आकाश मेघ रहित बने अत्यंत पुष्ट पित्त प्रकोपें करी व्याकुल ने बत्ररहित चारे दिशियें प्र दीप्त थयेली जे अग्निज्वाला तेणेंकरी व्याप्त एवा कोई पुरुपने जेवी वेदना याय, तेथी अनंतगुणी नष्णवेद ना नरकावासाने विषे रहेला नारकी जीवोने जाणवी.
शीतयोनिया नारकीने उष्णवेदनारूप नरकावा साथी लइने खेरजा अंगारामां नाखीने कोइ धमे, तेवारें तो ते नारकी चंदन जेवी शीतलता पामी अत्यंत सुखी यया बता ते अग्निमां निश पामे. वली पोप तथा माघ महिनामां रात्रिने समयें शीतल वायु वाय, तेणें कर जेम हृदयादि कंपे, तथा हिमाचलमां वस्त्ररहि त बेठा थकां उपरथी हिम पडतां जेवी शीतवेदना होय. तेथी अनंतगुणी शीतवेदना नरकावासामां होय. तें शीतवेदनायुक्त नरकवासामांथी ते नारकीने बा हेर काहाडी पूर्वोक्त हिमाचलादिक शीतल स्थलें जो स्थापन करीयें तो ते नारकी निरुपम सुखीया थया ता निाने पामे.
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(६६०) हवे ते नारकीना दुःखदायी पुजलना परिणामो दश प्रकारें , ते कहे . प्रथम जे जे आहारादिक नानाप्रकारना पुजलनुंजे बंधन ते प्रदीप्त थयेला अनि करतां पण अत्यंत दारुण होय. बीजी ते नारकीनी गति पण उंट सरखी होय, ते गतिनुं कुःख तपावेला लोहसरवो नूमिपर चलाव्याथो पण अत्यंत वधारे था य.त्रीजुं हुंमकसंस्थान ते पांव बेदन थयेला पदी स .मान दुःखदायी थाय. जेने जोवाथकी जोनारने अयं त नग नत्पन्न थाय डे, चोथा निंतप्रमुखना पुजल जे उडीने शरीरें लागे, ते शस्त्र अने खड्गधारा सरोरखा लागे. पांचमो ते नरकावासानो वर्ण सर्वत्र अंधकार मय अने विष्ठा, मूत्र, श्लेष्म, मल, लोही, वसा, परु, अने मेदथी जखो एवो तेना तलीयानो नाग ने, तथा स्मशाननी पर्नु वेकारों काणे मांस, केश, हाड, नख, दांत, चर्म, पड्यांबे, एवो वर्णने, बहो जेमां कुतरां, शीयाल, सर्प, मार्जार, नोलीया प्रमु खनां मृत कलेवर पडयां होय, तेना गंध करतां पण अत्यंतघणो पुजलनो सुगंध होय. सातमो नारकीना पुगतनो रस, ते कडवी तुंबडी करतां पण अत्यंत कडवो होय. आठमो नारकोना पुजलनो स्पर्श ते विंबीना कांटा सरखो अने क्रौंचना रोम करतां पण अत्यंत जुमो जाणवो. नवमो अगुरुलघु परिणाम ते पण अत्यंत दुःखना आवासरूप जावो. दश मो अत्यंत विलाप, आनंद कुःखकारी शब्दना पुजल
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(६६१) होय. एम दश प्रकारें नारकीना पुजलपरिणाम होय.
हवे नारकीयोने दशप्रकारनी वेदना होय, ते कहे ने. तेमां शीतवेदना अने नष्णवेदना, ए बे पूर्व कही ते जाणवी. वली त्रीजी वेदना ते अढीहीपनां अन्न तथा घृत जो यापीयें, तो पण नारकीने नूख मटे नहिं अने चोथी वेदना ते समस्त समुझ अने न दीनां पाणी पायें, तो पण तृषा मटे नहिं, तथा ता लq होठ सूकातां रहे नहिं. पांचमी वेदना ते बरी, करवत, तेणें करी खणतां पण जेनी खरज मटे नहिं. बही वेदना जे निरंतर परवश रहे. सातमी वेदना जे अहियां रहेनारा पुरुषो करतां अनंतो ज्वर सदा होय, आतमी वेदना ते शरीर तापमय होय, दाघज्वरमय होय. नवमी वेदना ते अनंतो जय होय. दशमी वेदना ते शोक, अत्रत्य मनुष्यं करतां अनंतगुणो होय, अने विनंगझान पण सर्वत्र कुखदायी होय; अने परमा धामी लोक पण जाला तलवार, तीर, प्रमुख हथीया र देवाडीने महापुःख देनारा त्यां होय . तेणें करीने अत्यंत दुःखी होय: अने निरंतर शोक करता रहे. एम नारकीने दश प्रकारनी देत्रवेदना कही.
हवे नारकीमा अन्योऽन्यकृत वेदना कहे . नार कीना बे नेद जे. एक मिथ्यादृष्टि अने बीजा सम्य गदृष्टि , ते जेम निन तथा वणजारा प्रमुखनो कुतरो बोजा कुंतराउने देखी क्रोधांध थयो थको लडवा यावे, ते परस्पर दांत तथा नखें कर युद
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( ६६२ )
करे. ते जे मिथ्यात्वी नारकी होय, ते पण विनंग ज्ञानें करी बीजा नारकीने दूरथकी यावतो देखी ata यंत रौड़ एवं नवं वैक्रिय रूप करे, अ ने पोतपोताना नरकावासमा पृथ्वीना स्वनावोत्पन्न हथीयार अथवा नवां विवृ एवां त्रिशूल अने जालां प्रमुख अथवा हाथ, पग, दांत, अने नखें करी मांहो मांहे प्रहार करे. ते प्रहारें पीडा पा मेला एवा ते लोहीना कादवमां थालोटता याकंद करे ने जे सम्यगदृष्टि नारकी होय, ते पाताना पूर्वनवकृत पापने स्मरण करी बीजायकी उत्पन्न थयेनुं एवं दुःख सम्यक्प्रकार सहन करे. परंतु बी जाने पीडा उपजावे नहिं. ए रीतें नारकीने अन्योऽन्य वेदना कही.
हवे नारकीयोने परमाधामी देवताकृतवेदना कहे a. नरकावासनी पहेली नित्तिने विषे निःकूट श्राजा बे, ते याला नारकीने उपजवानी योनि जाणवी. तिहां नारकी उपना पबी अंतरमुहूर्ते आलो न्हानो ने शरीर महोद्धुं तेथी तेमां समाय नही. तेवारें नीचें पडे. जेवो ते नीचें पडे के तुरत तेने पड्यो जालीने परमाधामी त्यां यावे, ते प्रवीने पूर्वकृत पापक मैने अनुसारे कर्मोपचारीने दुःख आपे. ते कहे बे.
मद्यपान करनारने तपावेलो तरुन पीवरावे. श्र ने जे परस्त्रीसंगी होय, तेने अनिमय लोहनी पूत लीनुं श्रलिंगन करावे; कूट शिमलाना वृक्ष उपर
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( ६६३ )
बेसाडे. लोढाना घणा प्रकारना घात करे. वांसला यें करी बेदे, छत पर हार मूके. उष्ण तेलमांहे तजे; कुंत, नालामां शरीरने प्रोवे, तथा अमिनी ज हिमांदे शेके, घाणी मांहे पीले, करवतें कर बेदी नाखे; काक, घुड़, कुतरा ने सिंह प्रमुखें विकू afने कदर्थना करावे, वैतरणी नदीमांहे ते नारकीने जोजे, सिपत्र वनमांहे वेश करावे, तप्तवेलुमां हे दोडावे. एवी विविध प्रकारनी वेदना उत्पन्न करी नारकीने दुःख खापे पडी वज्रमय चंचूर्येकरी तें नारकीने पक्षीयो तोडे, तथा कांही धरतीयें पड्या रहेजा नागने वाघ चूंटे, खाय एवा ते परमाधामी अधम, महा पापिष्ठ, क्रूरकर्मा के जेमने पंचानि प्र मुख कष्ट क्रिया करवा थकी नपनुं एवं जे क्रूर सुख बे एवा असुर परमाधामी ते कदर्थ्यमान एवा नार की मांहोमां पाडा, कूकडा ने मेंढानी पेरें जू ऊता देखी युद्ध प्रेक्षक मनुष्यनी पेरें ते परमाधामी हर्ष पामे, अट्टहास्य करे, चेलोत्देप करे, पटह व गाडे, दादरी वजावे, जेम अहियानां लोको नाटक देखी खुशी याय, तेवा परमाधामी त्रणे जातनी कढ़
ना नारकी ने देखी खुशी थाय. घणुं गुं कहियें ! परंतु नारकीयोने दुःख देवामां तथा दुःखी देखीने खुशी वामां परमाधामीयोने जेवी प्रीति होय वे, तेवी प्रीति अत्यंतरंम्य वस्तुने जोइने पण होय नही.
हवे पूर्वोक्त क्षेत्रवेदना, अन्योन्यवेदना, तथा
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( ६६४ )
परमाधामीकृतवेदना मांदेली कई कई वेदना कये कये नरकें होय? ते कहे बे. साते नरकने विषे क्षेत्र वेदना ते स्वनावें क्षेत्रथकी वेदना होय. बीजी अन्योन्य कृतवेदना ते बे प्रकारें एक शरीर थर्की ने बीजी प्रहरणथकी तेमां रीरें करी अन्योन्यवेद ना साते नरक नृमिने विषे बे घने प्रहरण कृत वे दना पहेला पांच नरकने वियेले, तेमज पहेलां त्रण नरकने विषे परमाधाम कृतवेदना बे; बघा तथा सातमा नरकना नारकीयो राता कुंथुप्रा जेवा अने जेनां मुख वज्रमय होय बे; वली बाणना कीडा सर खा विकूने अन्योऽन्य शरीरमां प्रवेश करावे. ते वेदना नदीरे, अने शरीरमांहे प्रवेश करी खाय वली कोइक ठेकाणे अन्योऽन्यकृतवेदना बही नरक पृथ्वी सुधी बे. एवं कयुं बे. ते परमार्थ नथी जाण ता! गुंजाणी यें तेणे कया हेतुथी कयुं हो ? एनां हावे दुब चित्र, या पुस्तकनी श्रादिमां बे, तिहांनी जोवां. पहेली रत्नप्रना पृथ्वीनुं गोत्र अर्थ सहित नाम ते गोत्र कहियें. तिहां पहेले कां घणां रत्नो बे. ते थी ते नरक मिनुं रत्नप्रनागोत्र कहियें; खने ते पी नी व नरकभूमि पृथ्वीमय जागवी. तिहां बीजी न रकमियें शर्करा कांकरा घणा बे, तेथी तेनुं गोत्र, शर्करप्रना बे. त्रीजी वालुकप्रनायें वेलु घणी बे, माटे तेनुं वालुकप्रना गोत्र बे. चोथों पंकप्रनायें क चरो घणो बे, तेथी तेनुं गोत्र पंकप्रना बे. पांचमी
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(६६५) धूमप्रनायें धूम घणो ने, माटे तेनुं गोत्र धूमप्रना ३. बही तमःप्रनायें अंधकार घणो ने तेथी तेनुं गो त्र तमःप्रना पडयु . सातमी तमस्तमःप्रनायें अंध कारनुं बदुलपणुं ने, माटे तेनुं गोत्र तमस्तमः प्रना .ए साते नरकनमिनांगुणनिष्पन्न गोत्र कह्यां.
॥ अथ पुरुषना शोन शणगार ॥ ॥दौरं मऊनवस्त्रनालतिलकं, गात्रे सुगंधार्चनं, कर्णे कुंमलमुश्केि च मुकुटं, पादौ च पादृयुतौ ॥. हस्ते खड्गपटांबराणि रिका विद्याविनीतं मुखं, तां बुलं शुचि शीलकं च गुणिनां शृंगारकाः षोडश ।
॥अथ स्त्रीना शोल शणगार ॥ ॥ आदौ मऊनचारुचीरतिलकं नेत्रांजनं कुंमले, नासामौक्तिकपुष्पहारसरणं ऊंकारको नूपुरौ ॥ अं गे चंदनलेपकं कुचमणिकुशवली घंटिका, तांबू लं करकंकणं चतुरता शृंगारकाः षोडश ॥१॥ इति॥
॥सवैयो॥ योगी सिम कलंदर तापस, होत दि गंबर मार कसोटी॥ पीर मुरिद मुसाफर मीरा, सेख वसे वनमांहि तंगोटी ॥ जे जपियां जप जाप जपे हैं, जांहिंकी कीरति देश महोटी ॥ सेवक हे स्वामि दास निरंजन, रोटि बिना सब बात हे खोटी ॥१॥ ___ योगि धरे योग ध्यान, पंमीत पढे पुराण, ज्ञानी कहियानपें, उदास नेख लोया हे ॥ केते शाह पात शाह, केते शाहजादे केते,वासुदेव चक्री पुनिकरण दा
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न दीया हे ॥ कवि कहे गंगदास, गंगा के निकट बी च, एक सेर अनाजने जगत जेर कीया हे ॥ १ ॥ ॥ प्रास्ताविक संग्रह ॥ ज्ञानवंतने केवली, व्यादिक हिना ॥ वृहत्कल्पनी नामां सरखा जाष्या जाण ॥ १ ॥ क्रिया मात्र कृतक मैक्य, दडरचुन्न समान ॥ ग्यान कह्युं उपदेश पद, तास बार सम जान खजुप्रासम किरिया कही, ज्ञान जानसम जो कलियुग एह पटंतरो, बूऊ विरला कोय ॥ ३ ॥ हुं. तुज पूनुं हे लम्बी, कृपया घरे कां जाय ॥ सूरा दाता चतुर नर, ते तुऊ कां न सुहाय ॥ ४ ॥ सूरा घर रंगापणुं, दाता दे परहब || चतुरां घर मुऊ सोकडी, तिले कृपण तो लियो सब ॥
॥ सवैयो ॥ धीरज तात कुमा जननी, परमारथ मित्त महारुचि मासी ॥ ज्ञान सुपुत्त सुता करुणा मति, पुत्र वधू समता प्रतिनासी ॥ उद्यम दास वि वेक सहोदर, बुद्धि कलत्र गुनोदय दासी ॥ नावकु टुंब सदां जिन्हके ढिग, सो मुनिकुं कहियें गृहवासी ॥
दोहा ॥ जीवदया गुणवेलडी,रोपी रुपन जिणंद !| श्रावक कुन मारग चढी, सींची जरत नरिंद ॥ १ ॥ क्रोध मान माया करी, लोन लग्यो महिलार ॥ वीतराग वाणी विना, किम पामे जव पार ॥ २ ॥ ॥ उप्पो ॥ मधुमाखी महुयाल, रातदिन जतने राखे ॥ सदा करे संजाल, चांच नरि कढ़िय न चाखे ॥ नम
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१ ॥
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(१७) तो आयो जिन्न,अग्नि करी माख माडी ॥ सघलो लीयो सहेत, मीण कज मालो पाडी ॥२॥ पस्तावो करती प., घणुं हाथ माखी घसे ॥ कवि गंग कहे हो गुणियणो, कृपण तेम माया कसे ॥३॥
अथ अष्ट महासिदि स्वाध्याय ॥ ॥ श्रुतदेवीनो लही पसाय,श्रीसगुरुना प्रणमी पा य ॥ लक्ष्ण अष्ट महासिदि तणां, कढं शास्त्रथी सो हामणां ॥ १ ॥ महिमा सिदिथी मेरुसमान, रूप करण मामर्थ वखाण ॥ त्रिनुवनने पूजित पण होय, विष्णु कुमार तणीपरें जोय ॥ ॥ वशिता सिद्धि जग वश करे. जो मनमांहे तेहQ धरे ॥ वायु थकी पण लघुतर रूप, लघुता सिद्धिथी करे अनूप ॥३॥ नमिपरें जल ऊपर जाय, जलपरें में सुब की खाय ॥ विविध विषय नोक्ता पण कह्यो, प्राका म्य सिदिनो गुण ए लह्यो ॥ ४ ॥ अंगुलि अग्र क री रविचंद, मेरु अग्र फरशे यानंद ॥ प्राप्तिसिदि प्र गटे जेहने, एहवी शक्ति होवे तेहने ॥ ५॥ सूक्ष्म था विचरे आकाश, अणिमा सिदि तणो सुविलास ॥ जिहां वा तिहां विचरे सही, कामावसायि सिदि बल लही ॥६॥ तीर्थकर इंसादिक तणी, ऋदि वि कुर्वण शक्ति जणी॥ सिदि ईशिता नामें वली,त्रण लोक प्रनुतागुं फली ॥ ॥ अष्टप्रकारे ए ऐश्वर्य, नामनेद नाखे मुनिवर्य ॥ योगसिदिनु ए फल स दु, सिदि नाम पण नाखे बदु ॥ ७ ॥लब्धितणे अ
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(६६७) धिकारें ग्रही, लब्धि नाम पण तेणें सही ॥ योग त णां फल एम अनेक, योगीश्वर जाणे सुविवेक ॥॥ योगवंत बदुलब्धिमहंत,श्रीगौतमगणधर उलसंत॥प्र हउठी तस ध्यावो रंग,जिम लदो लीलालजीसंग१०॥
॥ मुंबटुं नही रमवा आश्रयी उपदेश स्वाध्याय ॥ सुगुण सनेहा सांजल शीखडी, जाण विचारी जोय रे रसिया ॥ चतुर विचरण धर्म कला तणी, रामत रमीयो सोय रे रसीया ॥ १ ॥ मत को रमजो रे सा जन जवटे, रमतां लागे रे पाप रे रसीया ॥ धर्म क रमनां हो कारज वीसरे,खोजे माय ने बाप रे रसीया ॥म॥॥व्यसनी रात दिवस रामत रमे,नविलीये प्रनुनुं नाम रे रसीया ॥ उघ बगाइ ने निा नवि करे, घरना विरासे हो काम रे रसीया ॥म०॥३॥ व्यसन विगूतो नलराय कुबेरा, रमतापासा सार रें रसीया॥धण कण कंचण राज गमावीयुं, होडे हारी नार रे रसीया ॥ म ॥ ४ ॥ पांमवे कौरवा कीडा करी, जूवटे मीठी हार रे रसीया ॥म॥५॥ वनवासें रह्या वात अघणी,केहेतां न लाने पार रे रसीया ॥ रंग रंगीला हो पासा सोगां, सरस बनावे दाव रे रसीया ॥ बयल बबीला खेले खांता, होश धरी मन मांय रे रसीया ॥ म ॥ ६ ॥ फटकें पटकें कीडी कुंथुश्रा, थाये एहनी घात रे रसीया। मुख थकी मार शबद वली उच्चरे, निगमे पुण्यनी वांत रे रसीया ॥ म० ॥ ७ ॥ जूतुं बोले हो रामत रमतायुं, कपटो
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(६६ए) मेले दो तान रे रसीया ॥ चोरी शीखे निज पर घर तणा, पर रमणीनुं हो ध्यान रे रसीया ॥ म ॥७॥ पासे रमतां हो वली मानवी, होवे जूधारी हो तेह रे रसीया ॥ सात व्यसन मांहे ए मुख्य ने, धन्य जे वरजे रे तेहरे रसीया ॥ म० ॥ ए ॥ रमतां कलेश करी ने सही, राजा मागे दंम रे रसीया ॥आरंन लागे हो वायुकायना, पापें जराये पिंक रे रसीया ॥ म० ॥१०॥ रामत मत मांगो घर अापणे, वदीयें न को\ होड रे रसीयानजन करो तमे श्रीनगवंतनो,या पंद कहे करजोड रे रसीया ॥म ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ अजितजिनस्तवनं । सुरती महीनानी देशी॥
॥सरसति सामणी विनq.मागुंअविरलवाण ॥बी जा जिनवर गायघू, हरख घणो मन आण ॥ १ ॥ कोशल देश सोहामणो, नयरी अयोध्या रे नाम । राज करे तिहां राजवी, जितशत्रु एनुं नाम ॥२॥ विजया रे राणी तेहनी, शीलवती अनिराम ।। तेह नी कूखें अवतस्या, अजित जिनेसर स्वाम ॥ ३ ॥ साडा रे चारशें धनुष्यनी, कंचन वरणी काय ॥ बहों । तेर लाख पूरव कही,श्रीजिनवरनीयाय ॥॥ गज लं बन सोहामणुं, सेवे ने नित पाय ॥ सुर नर मली सेवा करे, आनंद अंग न माय ॥ ५ ॥ पुण्यसंयोगें हूं पामियो, तुमने श्रीजिनराज ॥ पाप गयां सवे माह रां, फलिया मनोरथ आज ॥ ६ ॥ दीन दयाल
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(६७०) दया करी, दीजें अविचल राज ॥ नित्य लान कहे प्र नु माहरां, सारजो वंबित काज ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ रहनेमीनी सिद्याय प्रारंन ॥ ॥ निंदा म करशो कोश्नी पारकी रे ॥ए देशी॥ ॥ संजम ला ध्यान रह्या रे, ताणे रहनेमी गढ गिर नार रे ॥ चीर नीचोवतां महासती रे, देखी व्याकु ल थया मुनिराय रे ॥१॥ रे रे रहनेमीने राजुन बू जवे रे॥ अहो रे नत्तम अणगारने रे, चारित्रं लागे अतिचार रे ॥ रे रे ॥ ए आंकणी ॥ ढुं रे नारी नेमजी तणी रे, ताणे तुमें बो देवर मुनिराज रे ॥ एरे वात जुगती नही रे, ताणे एवं केम कीजें अकाज रे॥रे रे ॥ २॥ एम सुणी रहनेमी बोलिया रे, ताणे तुं नारी हुँ जरतार रे ॥ राज करीयें जुनागढ तणुं रे, ताणे सुख विलसो सहि सार रे ॥रे रे॥३॥ हां हां रे ए शुं मूरख बोलीया रे,ताणे जादव कुल ला गेलाज रे ॥ तुंरे बंधव ढुं वेनडीरे,ताणे जुगमां हां सी थाय रे ॥ रे रे० ॥ ४ ॥ नारीनो संग नवि कीजि ये रे, ताणे नारी ने मोहनो पास रे ॥ नारीथको 5 गति लहे रे, ताणे नीच पामो नरकावास रे ॥रे रे॥ ॥ ५॥ रत्न चिंतामणि पामीने रे, ताणे ककर ग्रहे कोण हाथ रे ॥ गज बोडी खर नवि चडे रे, ताणे पय मूकीने पिये कुण बाबरे ॥रें रे॥६॥ विषयमां मराचो मुनिवरु रे, ताणे विष सम विषय विकार रे ॥ विष खावाथी मरीयें एकदा रे, ताणे विषय
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(६७१) अनंती वार रे ॥रे रे ॥ ७ ॥ अतिचारें बालोव तां रे, ताणे मनथकी मुनिराज रे ॥ निरतिचार पणे करी रे, मुनि ध्यान चड्या सजी साज रे ॥ ॥ रे रे ॥ ७ ॥ रहनेमा हृदय विचारीने रे, में तो कीधो महा अपराध रे ॥ ए नारी बंधव तणी रे, ताणे धिक धिक ए हूं तो साध रे ॥ रे रे ॥ ए॥ एही वखत खमावतां रे, ताने राजीमतीने तेणि वार रे॥नरकें पडतो मुझने राखीयो रे, तुं तो सर्व सतीमां शिरदार रे ॥ रे रे ॥ १० ॥ इति ॥ (आमां नेत्री गां थामां कर्त्तानुं नाम नथी तेथी अधूरी जाय .)
॥सऊन विषे दोहा ॥ ॥ सऊन होरासें अधिक, मूल न जाको होत ॥क हूं परायो होत नहीं, कुःखमें होत न्योत. ॥१॥ स ऊनऐ अंतर नहीं,राखे कोई सुजान । सऊनसें सुख होत है, यह निश्चे मन मान ॥२॥ सऊन जगमें व दु नहिं, बिरलो कई दिखात ॥ तिहि पिलान कीजें सुखद,जातें सब कुःख जात ॥३॥ सजान पर उपकार करि, लेत न क इह दाम ॥ देत सदा जो चाहियें, समयसू आवत काम ॥॥ सऊन सम जगमें नहीं, अवर सु कोइ पुमान ॥ आप बहुत कुःख देखिकें, देत और सुख जान ॥५॥ सजान स्वभाव देखि के, आपदु ता सम होन॥ सङनता सबतें अधिक,या सम और न कोन ॥६॥ संऊन नाम धरायकें, नटकत जगमें और ॥ पैलहन युत देखि के,संग कीजियें गैर ॥७॥
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॥अथ चोवीश तीर्थकर, बार चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव प्रतिवासुदेव अने नव बल जड पद्म, ए त्रेशठ शिलाका पुरुष माहेला जे चक्रवर्ती अथवा वासुदेवादिक जे तीर्थ करना वारामां थया, अथवा जे तीर्थकरने अांतरें थया, तेमनां नाम तथा शरी रनी चाइनु मान तथा तेना आयुष्यना प्रमाणनो यंत्र जूदा जूदा कोठा सहित नव्य जनोने नामस्मरण राखवा माटे नीचे दाखल कस्यो ने. | जिन चक्री१२ केशव ए प्रतिवासु०, तनुमान. प्रायुमान. बलदेव " १ षन १ नरत १
धनु, ५00 पूर्व नद राम २ अजित २ सगर २ ।
घ० ४५० पूर्वलद ७२० ३ संनव ३०
घ० ४०० पूर्वलद ६० ० ४ अनिनं०४०
ध० ३५० पूर्वलद ५०० ५ सुमति ५०
ध० ३०० पूर्वलद १०० ६ पद्मप्रन ६०
ध० २५० पूर्वनद ३० | सुपार्श्व ७ ०
० ध० २०० पूर्वलद २० ।
(६७२)
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जिन चक्री१२ केशव ए प्रतिवसु० तनुमान. आयुमान बलदेव, G चंप्रन
. ध १५० पूर्वलद १00 ए सुविधि ए 0 0 0 ध० १०० पूर्वलद २० १० शीतल १0 0 0 ध० ए० पूर्वलद १० ११ श्रेयांस ११ । त्रिप्टष्ट १ अश्वग्रीवर ध० वर्षलद अचल ७५ १२ वासुपूज्य टिष्ठ २ तारक २ ध० ७० वर्षलद ७२ विजय १३ विमल १३ ० स्वयंनु ३ मेरक ३ ध० ६० वर्षलद ६० सुनश्व ६५ १४ अनंत १४. पुरुषोत्तम मधु. ४ ध० ५० वर्षल्क ३० सुप्रन ५५ १५ धर्म १५ ० पुरुषसिंह५ निघुन. ५ ध० ४५ वर्षलद १० सुदर्शन १७ १६ . मघवा ३ .
ध ४॥ वर्षलद ५ १७. सनत 0 0
ध० ४१॥ वर्षलद ३ १७ शांति १६ शांति
ध० ४० वर्षलद १ १ ए कुंथु १७ कुंथु० ६ ० . ध ३५ वर्षस० ५ ० २० अर १७ अर०७०
ध० ३० वर्षस ७४
(६७३)
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जिन चक्री१२ केशव ८ प्रतिवसु तनुमान, आयु मान बलदेव. २१ ० ० .पुरुषपुमा बनें. ६ ध० २५ वर्षस० ६५ आनंद ७१ २२ ० सुनूम 0 0 ध० वर्षस० ६० ०
- दत्त ७ प्रल्हाद, ७ ध० २६ वर्षस० ५६ नंदन ६५ २४ महिनजिए . . . ध २५ वर्षस० ५५ ० . २५ मुनिसुव्रत. महापद्म ० . ध २० वर्षस० ३० ० २६ . . लखमण रावण, ७ घ० १६ वर्षस १२ पद्म १५ २७ नमि १ हरिषेण . . ध १५ वर्षसः १०० २ . जय ११
0 ध० १२ वर्षल० ३ ० शए नेमनाथ २ ० कृष्ण ए जरासंध. ध १० वर्षस १राम १२ ३०. ब्रह्मदत्त 0 0 ० ७ वर्षस० ७००० ३१ पार्श्व २३ ० 0
हाथ ए वर्ष १००० ३२ महावीर
हाथ वर्ष ७२ ०
(६७४)
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( ६७५ )
॥ अथ श्रीप्रायंबिल तपनी उलिनो विधि ॥ ॥ ए तप प्रथम प्राशोशुदि सातमना दिवसथी मां मीने शोदि पूर्णिमा पर्यंत नव दिवस सुधी, तेम ज चैत्रशुदि सातमयी मांमी पूर्णिमा पर्यंतना नव दि वस लगें नव नव आयंबिल करवां, एवी रीतें साडा चार वर्ष पर्यंतमां एक्याशी यायंबिल करे थके ए तप पू र्ण थाय . हवे यायंबिल करवाना नव दिवस पर्यंत ब ह्मचर्य पालतुं प्रतिदिन सांऊ, सवार मली वे वार पडि . कमणां करवां, तथा एकेका दिवसें अनुक्रमें एकेका प दनी क्रिया करवी, तिहां जे पदना जेटला गुण होय, ते पदना तेटला साथीया काढवा, अने तेटलाज ते पदना । पद सहित खमासमण देवां, तथा तेट लाज लोगस्सनो काउस्सग्ग पण करवो, अने एकेक पदनां नामनी वीरा वीश नोकरवाली गणवी, तथा ते ते पदना गुणनी स्तुति जावना पूर्वक नाववी जो इयें, माटे ते नव पदनां नाम तथा गुण अने गए गणवानी संख्या लखीयें हैयें.
नव पदनां नाम. गुणनी संख्या. गणणुं गणवं. न की नमो अरिहंताणं. नी नमो सिद्धाणं.
१२
१२००
Ե
GOO
ॐ नमो थायरियाणं.
३६
नी नमो वद्यायाणं.
२५
झी नमो लोए सबसाहूणं. २७ नझी नमो नापस्स.
५१
३६००
१५००
१७००
५००
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(६७६) ही नमो दसणस्स.
१००० ही नमो चारित्तस्स. १७ ५०० ने ही नमो तवस्स.
२०० ॥ हवे नव पदनां खमासमण देवानो पाठ कहे ॥ १ जामि खमासमणो वंदीनं जावणिकाए निसी हिवाए मबएण वंदामि ॥ न झी नमो अरिहं ताणं,ए प्रथम पदें श्रीयरिहंतजी बार गुणें शोजित मध्यनागें बिराजमान, उज्ज्वल वर्ण सहित एवा
श्रीअरिहंत नगवंतने महारी त्रिकाल वंदना होजो २ हामि ॥ ॐ ही नमो सिक्षाणं, ए बीजे पढ़ें
श्रीसिहपरमात्मा आठ गुणें शोनित, पूर्व दिशे बि राजमान, रक्तवर्ण सहित, एवा श्रीसिम जगवंत
ने महारी त्रिकाल वंदना होजो. ३ बामि ॥ झी नमो आय रियाणं एत्रीजेप दें श्रीश्राचार्यजी बत्रीश गुणे शोनित, दक्षिण दिशे विराजमान, पीतवर्ण सहित, एवा श्रीश्राचार्य न
गवानने महारी त्रिकालवंदना होजो. ४ लामि ॥ ही नमो नवद्यायाणं ए चोथे प दें श्री उपाध्यायजी पच्चीश गुणे शोनित, पश्चिम दिशें विराजमान, नीलवर्ण सहित एवा श्री नपा ध्यायजीने महारी त्रिकाल वंदना होजो. ५ इजामि ॥ ने ही नमो लोए सबसादणं ए पां चमे पदें श्रीसाधुजी सत्तावीश गुणे शोनित, उत्त
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(६७७) रदिशें बिराजमान, कृष्ण वर्ण सहित. एवा सर्व
साधुने महारी त्रिकाल वंदना होजो. ६ बामि ॥ न ही नमो नाणस्स ए बहे पदें श्री म्यक्झान एकावन ने शोनित, अनिखूणे बिरा जमान, श्वेत वर्ण सहित, एवा श्री ज्ञान पदने महारी त्रिकाल वंदना होजो. हामि ॥ ही नमो दसणस्स, ए सातमे पढ़ें श्रीसम्यक् दर्शन सडशन बोलें शोनित, नैक्तव णे बिराजमान, श्वेतवर्णसहित, एवा श्री दर्शन पदने महारी त्रिकाल वंदना होजो. . श्वामि न ही नमो चारित्तस्स, ए आतमे पदें श्रीचारित्र सत्तर नेदें, शोनित, वायव्यखूणे बि राजमान, श्वेतवर्णसहित एवा श्री चारित्र पदने महारी त्रिकाल वंदना होजो. ए बामि ॥ ही नमो तवस्स, ए नवमे पढ़ें श्रीतप बारनेदें शोनित, ईशानरखूणे बिराजमान, श्वेत वर्ण सहित, एवा श्रीतपपदने महारी त्रि काल वंदना होजो. ए रीतें नव दिवस पर्यत विधि करवो, ते अहीं संपें कह्यो. विस्तारें गुर्वादि कथी जाणवो ॥ इति उलिनो संदेपविधि समाप्त ॥
हवे विशेषथी नवपद उलि करण आयंबिल तपनो विधि कहे .आश्विन तथा चैत्र शुक्ल सप्तमीथी मां मीने पूर्णिमा पर्यंत नव दिवस लगण तप करें. तिहां
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(६७०) प्रथम तो न शुरू करिने मांझणादिकथ। चित्रित करे, पनी बात पर श्रीसिचक्रजीनी स्थापना करे, तिहां प्रातसमयें रात्रि पडिक्कमणुं करी वस्त्र डिलेही सिक्रजीनी स्थापना पामें आवी पांच शक्रस्तवें देव वांदे, पनी नव देरासरें अथवा नव प्रति माजी पागल नव चैत्यवंदन करे,वासदेप पूजा करे, केसरचंदनथी पूजा करे, पनी मध्यान्ह समयें पांच शकस्तवें देव वांदे, पडी गरुनी पासें आव। अहिल मि खमावीने आयंबिलवं पञ्चरकाण करे, तिहांप्रथम दिवसें अरिहंत पदनो वासपेत ,माटे आयंबिलमां चोखा अने गरम पाणी ए से इव्य लेगुं, एम पञ्च स्कीने श्रीअरिहंत पदना बार गुणो बे. ते मांहेल प्रत्येक गुणने चिंतवतो थको एकेक गुणें हामि खमासमणो वंदिनं० इत्यादि कहेतो बार गुणना बार नमस्कार करे, ते या प्रमाणे:१ श्रीअशोकवृक्षप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरिहंतायनमः २ सुरपुष्यवृष्टिप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि० ॥ ३ दिव्यध्वनिप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि० ॥ ४ चामरयुगनप्रातिहार्यसंयुताय श्रीयरि॥ ५ स्वर्ण सिंहासनप्रा तिहार्य संयुताय श्रीअरि० ॥ ६ नामंगलप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि० ॥ ७ उनिप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरिन् । G त्रत्रयप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि०॥ एकानातिशयप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरिहंताय नमः
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(६७ए) १० पूजातिशयसंयुताय श्रीअरिहंताय नमः ॥ ११ वचनातिशयसंयुताय श्रीअरिहंताय नमः ।। १२ अपायापगमातिशय संयुताय श्रीयरि० ॥ ___इति हादश अरिहंतगुणाः॥ नमस्कार ॥ ए बार गुणोने नमस्कार करीने अन्नब उससिएणं कहीने बार लोगस्सनो कानस्सग्ग करे,पढी एकलोगस्स प्रगट कहे, पजी स्वस्थानकें जईचैत्यवंदन करी पच्चरकाण पारीने
आयंबिल करे, पहेलुं जेवारें पाणी पिये,तेवारें चैत्यवं दन करीने पीये, पडी फरी चैत्यवंदन करीने तिविहा र पञ्चरकाण करे, अने णमो अरिहंताणं ए पदनुं गु गणुं १००० गुणे. तथा नवपद महात्म्य आश्रयी श्रीश्रीपालराजाजीनु चरित्र सांजले, अने जेवारें तें संपूर्ण एक प्रहर दिवस रहे, तेवारें त्रीजी वखत पांच शकस्त देव वांदे, पडी सामायिक लश्ने दिवस बते पडिक्कमणुं करे, आरतिने समयें धूप दीप कुसुम पूजा करे,अथवा प्रथमथीज धारति अने पूजा प्रमुख करीने पडी पडिक्कमणुं करे,तेवार पडी सूवानी वरखतें वली इरियावहि पडिकमी चैत्यवंदन करी राइ संथारानी गाथा गुणीने सूवे, अने जिहां सुधी निश न आवे तिहां सुधी नवपदना गुण स्मरण करे॥इति॥
_अथ इितीय दिवस विधि प्रारंजः ॥
॥पहेला दिवसमां कहेली रीति प्रमाणे बीजा दिव से पण प्रजातनी सर्व करणी करीने, श्रीसिपदनो
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(६०) लाल वर्ण ,माटे गहुँनीरोटलीचं आयंबिल करे,अने "नही" णमो सिवाणं एपदनुं गुणगुंबे हजार गुणे, तथा श्रीसिपदना पाठ गुण जे. तेने चिंतवतो घाउ नमस्कार करे, ते या प्रमाणे:१ श्रीअनंतझानसंयुताश्री सिक्षाय नमः।। २ श्रीअनंतदर्शनसंयुताय श्रीसिदाय नमः॥ ३ श्रीअव्याबाधगुणसंयुताय श्रीसिहाय मः॥ ४ श्रीअनंतसम्यक्त्वचारित्रगुणसंयुतायश्री.स० नमः॥ '५ श्रीअक्ष्य स्थितिगुणसंयु राय श्रीसिदापनमः॥ ६ श्रीधरूपिनिरंजनगुणयुताय श्रीसिदाय नमः।। ७ श्रीगुरुलघुगुणसंयुताय श्रीसिदाय नमः। 5 श्रीअनंतवीर्यगुण संयुता श्रीसिदाय नमः॥
इति सिमस्याष्टौ गुणाः॥ए आठ नमस्कार करी, अन्नबनससिएनो पाठ कही यात लोगस्सनो कान स्सग्ग करी एक लोगस्स प्रगट कही पारीने पडी प्र थम दिवसना विधिमां कह्या मुजबनी करणी सर्व थ नुक्रमथी करे । इतिहितीय दिवस विधिः ॥
॥अथ तृतीय दिवस विधि प्रारंनः ॥ ॥पूर्वोक्त विधि पूर्वक प्रजातनुं कर्तव्य करी श्रीया चार्यपद पीले वर्णे जे, माटे चणानी दालन आयंबि ल करे. “ी णमो आयरियाणं” ए पदनुं गुण गुंबे हजार गुणे, अने आचार्य पदना बत्रीश गुण याद करीने त्रीश नमस्कार करे, ते या प्रमाणे.
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(६७१) १ प्रतिरूपगुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः ॥ २ सूर्यवत्तेजस्विगुणसंयुताय श्रीप्राचार्याय नमः॥ ३ युगप्रधानागमसंयुताय श्रीअाचार्याय नमः। ४ मधुरवाक्यगुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः ॥ ५ गांनीर्यगुणसंयुताय श्रीयाचार्याय नमः ॥ ६ धैर्यगुणसंयुताय श्रीआचार्याय नमः॥ ७ उपदेशगुणसंयुताय श्रीयाचार्याय नमः॥ G अपरिश्राविगुणसंयुताय श्रीअाचार्याय नमः॥ ए सौम्यप्रकतिगुणसंयुताय श्रीप्राचार्याय नमः॥ १० शीलगुणसंयुताय श्रीधाचार्याय नमः ॥ ११ अविग्रहगुणसंयुताय श्रीप्राचार्याय नमः ॥ १२ अविकथकगुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः॥ १३ अचपलगुणसंयुताय श्रीयाचार्याय नमः॥ १४ प्रशांतवदनगुणसंयुताय श्रीप्राचार्याय नमः। १५ मागुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः॥ १६ जुगुणसंयुताय श्रीप्राचार्याय नमः॥ १७ मृगुणसंयुताय श्रीयाचार्याय नमः॥ १७ सर्वसंगमुक्तिगुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः॥ १० हादश विधतपोगुणसंयुताय श्रीआचार्याय नमः २० सप्तदश विधसंयमगुणसंयुताय श्रीराचार्याय २१ सत्यव्रतगुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः ॥ २२ शौचगुणसंयुताय श्रीप्राचार्याय नमः॥ २३ अकिंचनगुणसंयुताय श्रीयाचार्याय नमः ॥ २४ ब्रह्मचर्यगुणसंयुताय श्रीयाचार्याय नमः ॥
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(६७२) २५ अनित्यनावनानावकाय श्रीश्राचार्याय नमः॥ २६ अगरगनावनानावकाय श्रीयाचार्याय नमः। २७ संसारस्वरूपनावनानावकाय श्रीअाचार्याय २७ एकत्वस्वरूपनावनानावकाय श्रीश्राचार्याय शए अन्यत्वनावनावकाय श्रीप्राचार्याय नमः॥ ३० अशुचिनावनागवकाय श्रीधाचार्याय नमः। ३१ आश्रवनावनानावकाय श्रीप्राचार्याय नमः ॥ ३२ संवरनावनानावकाय श्रीश्राचार्याय नमः। ३३ निर्जरानावनानावकाय श्रीयाचार्याय नमः ॥ ३४ लोकस्वरूपनावनावकाय श्रीप्राचार्याय ३५ बोधिउर्जननावना वकाय श्रीधाचार्याय ॥ ३६ धर्मउलेननावनानावकाय श्रीश्राचार्याय नमः
इति षट्त्रिंशदाचार्यगुणाः॥ए बत्रीश नमस्कार क री अन्नब नससिएनो पाठ कही उत्रीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करी एक प्लोगस्स प्रगट कही पारीने बी जी पण पूर्वोक्त करणी सर्व अनुक्रमथी करे ॥ इति।।
॥अथ चतुर्थदिवस विधिप्रारंजः ॥ ॥हां पण प्रनात संबंधि कर्तव्य करी" ही मो उवद्यायाणं” ए पदनुं बे हजार गुणणुं गुणे श्रीनपा ध्यायजीनो हरितवर्ण डे माटे हरितवर्णे मगनी दा ल प्रमुखनुं आयंबिल करे, अने उपाध्यायजीना प चीश गुण याद करीने पच्चीश नमस्कार करे, तेल खीयें बैयें.
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(६७३) त्याचारांगसूत्रपठनगुणयुक्तायश्रीनपाध्यायायनमः २ सूयगडांगसूत्रपतनगुण ३गणांगसूत्रपठनगु० ४ समवायांगसूत्रपठन ५ जगवतीसूत्रपतनगुण ६ झातासूत्रपतनगुण ७ नपासकदशासूत्रपठन G अंतगडदशासूत्रपठन एअणुत्तरोववाश्सूत्रप० १० प्रश्नव्याकरणसूत्रप० ११ विपाकसूत्रपठनगुण १२ उत्पादपूर्वपतनगुण १३ अग्रायणीपूर्वप० १४ वीर्यप्रवादपूर्वप० १५ अस्तिप्रवादपूर्वप० १६ ज्ञानप्रवादपूर्वपत १७ सत्यप्रवादपूर्वप० १७ आत्मप्रवादपूर्वप० १ए कर्मप्रवादपूर्वप० २० प्रत्याख्यानप्रवादपू० २१ विद्याप्रवादपूर्वप० २२ अविंध्यप्रवादपूर्व २३ प्राणायामप्रवादपूर्वक ५४ क्रिया विशालपूर्वप० २५ लोकबिंडसारपूर्व
इति पंचविंशति उपाध्याय गुणाः॥ एम पच्चीश नम स्कार करी उना थइ अन्नबनससिएनो पात कही पच्चीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करी एक लोगस्स प्रग ट कही पारीने पूर्वोक्त करणी अनुक्रमथी करे॥इति।
॥ अथ पंचमदिवस विधि प्रारंजः ॥ ॥पूर्वती रीतें प्रनातविधि करी “ की मो लो ए सबसाहूणं” ए पदनु बे हजार गुणगुं गुणे. सा धुपद काले वर्णे , माटे अडदनुं आयंबिल करे, बने सर्व साधुपंदना सत्तावीश गुण चिंतवतो सत्ता वीश नमस्कार करे, ते या प्रमाणे:
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( ६७४) १ प्रागातिपातविग्म "व्रतयुक्ताय श्रीसाधवे नमः ॥ २ मृषावादविरमए वतः ३ अदत्तादानविरमगत ४ मैथुनविरमणव्रत। ५ परिग्रहविरमणव्रतः ६ रात्रिनोजनविग्म व्रत ० ७ पृथ्वीकायरदाय ७ अप्पकायरदकाय तेकायरदकाय १० वानकायरदकायः ११ वनस्पतिकायरदकाय ९२ त्रसकायरदकाय १३ केंझ्यिजीव रदकाय १४ बेंझियजीवरदकाय १५ यिजीवरदाय १६ चौरिंझ्यिजीवरदकाय० १७ पंचिंडियजीवरका १७ लोननिग्रहकायश्रीसा १एमागुणयुक्तायश्री २० शुजनावनानावकाय० २१प्रतिलेखनादिक्रियागुड़ २२ संयमयोग्ययुक्ताय २३ मनोगुप्तियुक्ताय २४ वचनगुप्तियुक्ताय २५ कायगुप्तियुक्ताय श्रीसा २६ शीतादि धाविंशति परिसह सहन तत्परायश्री० २७ मरणांतनपसर्ग सहन तत्परायश्रीसाधवे नमः
॥इति सप्तविंशति साधु गुणाः॥ए रीतें सत्तावीश नमस्कार करी उनो थइ अन्नबनससिएनो पाठ कही सत्तावीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करी एक लोग स्स प्रगट कही पारे. पबी पूर्वोक्त करणी क्रमथी करे. ए पांच परमेष्टीना सर्व मती एकशो अहवीश गुण थाय माटे नोकारवालीना पण १०७ मणीया होय ॥
॥ अथ पष्ठदिवस विधिप्रारंजः ॥ ॥पूर्वती रीतें प्रनातसंबंधि विधि करीने " ही
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(६५) णमो दंसस्स” ए पदनु बे हजार गुणणुं गुणे, तथा दर्शनपद सपेत वर्णे ,माटे तांदूलनुं आयंबिल करे, अने सम्यक्त्वना सडशव गु चिंतवतो सडश नमस्कार करे ते कहे . १ परमार्थ संस्तवरूप श्रीसद्दर्शनाय नमः २ परमार्थझानसेवनरूप श्रीस ३ व्यापन्नदर्शनवर्षानरूप श्रीस० ४ कुदर्शन वर्षानरूप श्रीस० ५ शुश्रूपारुप श्रीस . ६ धर्मरागरूपत्रीस० ७ वैयाहत्त्यरूपश्रीस ७ अर्हनियरूप स० ए सिविनयरूप स १० चैत्य विनय रूप स० ११ श्रुतविनय रूप स० १२ धर्मविनय रूप स० १३ साधुवर्ग विनय रूप १४ आचार्य विनयरूप० १५ उपाध्याय विनयरूप स० १६ प्रवचनविनयरूपस० १७ दर्शनविनय रूपस १७ संसारे श्री जिनसार मिति चिंतनरूप स० १५ संसारे श्रीजिनमति सारमितिचिंतन २० संसारे जिन मतिस्थित साध्वादिसार मितिचिंतक २१ शंकादूषणरहिताय २१ कांदादूषणरहिताय । २३ विचिकित्सारूपदूषणरहिताय सदर्शनायनमः ॥ २४ कुदृष्टिप्रशंसादूषणरहितायसदर्शनायनमः ॥ २५ तत्परिचय दूषण रहितायसदर्शनायनमः ॥ २६ प्रवचनप्रनावकरूपस० २७ धर्मकथाप्रनावकरू २८ वादिप्रनावकरूपस ए नैमित्तिकप्रनावकरूप
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६८६ )
३०
० तपस्वि प्रभावक रूप स०
३१ प्रत्यादि विद्यानृन प्रभावक रूप स० ३२ चूर्णजनादि सिद्ध प्रावक रूप स० ३३ कविप्रभावक रूप दर्शनायनमः ॥ ३४ जिनशासने कौशल्यरण रूप स० ३५ प्रभावनानूषण रूप
३६ तीर्थसेवा भूषण रूप० ३७ स्थैर्यनूषण रूप स
३८ जिनशासने नक्ति नूपण रूप स०
३७ उपशम गुणरूप स०
४० संवेग गुणरूप स० ४१ निर्वेद गुणरूप स ४२ अनुकंपा गुणरूप० ४३ आस्तिक्य गुण रूप० ४४ परतीर्थिकादि वंदन वर्जनरूप स० ४५ परतीर्थिकादि नमस्कार वर्जनरूप स० ४६ परतीर्थिकादि आलाप वर्जनरूप सद्दर्शनाय ० ४७ परतीर्थिकादि संलाप वर्जनरूप स० ४८ परतीर्थिकादि अनादि दानवर्द्धनरूप स० ४९ परतीर्थिकादि गंध पुष्पादि प्रेषण वर्द्धन रू० ५० राजा नियोगाकार युक्त स०
५१ गणानियोगाकार युक्त स०
0
५१ बलानियोगाकारयुक्त० ५३ सुरानियोगाकारयुक्त ० ५४ कांतारवृत्त्याकारयुक्त० ५५ गुरुनिग्रहकारयुक्त ५६ सम्यक्त्व चारित्रं धर्मस्य मूलमिति चिंतनरूप० ॥ ५७ चारित्रं धर्मपुरस्य द्वारमिति चिंतनरूपस०
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(६७७) ५७ चारित्रं धर्मस्य प्रतिष्ठानमिति तन रूप एए चारित्रं धर्मस्याधार इति चिंतन रूपस ६० चारित्रं धर्मस्य जाजन मिति तनरूप० ६१ चारित्रं धर्मस्य निधिसन्निना ते चिंतनश्रीस ६२ अस्ति जीव इतिश्रदानस्थानयुक्ताय श्रीस ६३ सच जीवो नित्य इति श्रदानस्थानयुक्ताय । ६४सच जीवः कर्माणि करोतीति श्रमानस्थानयुक्ताय ६५ स च जीवः कतकर्माणि वेदयतीति श्रदानस्था ६६ जीवस्यातिनिर्वाणमितिश्रमानस्थानयुक्तायस० ६७ अस्तिपुनर्मोदोपाय इति श्रदानस्थानयुक्तायस
इति सप्तषष्टिदर्शनस्य गुणाः। ए रीतें सडशन नम स्कार करी उनो थर अन्नब उस सिएनो पात कही सडशह लोगस्स अथवा शक्तिने अनावें सात लोगस्स नोकानस्सग्ग करी एकलोगस्स प्रगट कही पारीने पली पूर्वोक्त करणी करे ॥ इति पष्ठदिवस विधिः ॥
॥ अथ सप्तम दिवस विधि प्रारंनः॥ ॥प्रनात संबंधि विधि करी “नकी णमो नाणस्स" ए पदनुंबे हजार गुणगुं गुणे,झानपद उज्ज्वल वर्णे. माटे तंदूलन आयंबिल करे, पबी ज्ञानपदना एका वन नेदचिंतवतो नमस्कार करे, ते लखीयें बैयें. १ स्पर्शनेयिव्यंजनावग्रहमतिझानाय नमः ॥ २ रसनेश्यिव्यंजनावग्रह मतिझानाय नमः ॥ ३ घ्राणेंश्यिव्यंजनावग्रह मतिज्ञानाय नमः॥
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(६८) ४ श्रोत्रेयिव्यंजनावग्रह मतिज्ञानाय नमः ॥ ५ स्पर्शनेंश्यिअर्थावग्रह मतिझानाय नमः ॥ ६ रसनेश्यि अर्थावग्रह मतिझानायनमः ॥ ७ घ्राणेंश्यि अर्थावग्रह मतिझानायनमः॥ ७ चदुरिंख्यि अर्थावग्रद मतिझानायथमः ॥ ए श्रोत्रेयि अर्थावग्रह मतिझानायनमः ॥ १० मनोरथावग्रहमति० ११ स्पर्शनेंश्यि हामति १२ रसनेश्यि ईहामति १३ घ्राणेंश्यिहामति १४ चटुरिंश्यि ईहा मति० १५ श्रोत्रंडियईहामति १६ मनोरिंझ्यिाहामति : स्पर्शनेंयिअपायम १७ रसनेश्यिअपायमति १ए घ्राणेंयिअपायम २० चरिंयिअपायमति २१ श्रोत्रंयिअपायम २२ मनोरिंयिअपायमति २३स्पर्शनेंख्यिधारणा २४ रसनेंझ्यिधारणाम २५ घ्राणेंश्यिधारणाम २६ चटुरिंख्यिधारणाम २७ श्रोत्रंडियधारणा म २७ मनोधारणामति० अरश्रुतझानायनमः ३० अनदश्रुतझाना० ३१ संझिश्रुतझानायनम ३१ असंझिश्रुतझा० ३३ थम्यक् श्रुतझाय ३४ मिथ्याश्रुतझानायन ३५ सादिश्रुतझानायन ३६ अनादि श्रुतझाना० ३७ सपर्यवसितश्रुतज्ञा ३७ अपर्यवसित श्रुतझा० ३ए गमिक श्रुतझाना० ४० अगमिक श्रुतझा० ४१ अंगप्रविष्ट श्रुतझा०
श्अनंगप्रविष्टश्रुत० ४३धनुगामिअवधिज्ञानायनमः ४४ अननुगामि अवधि ४५ वट्रमाण अवधि
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(६७) ४६ हीयमान अवधिज्ञा प्रतिपाति अवधिज्ञान
अप्रतिपाति अव०४ए जुमति मनःपर्यव झा० ५० विपुलमति मनःपर्यवझानाय नमः ॥ ५१ लोकालोकप्रकाशक श्रीकेवलझानाय नमः॥
॥ इति एकपंचाशत् झाननेदाः॥ए रीतें एकावन न मस्कार करी ऊना थइ अन्नब उस सिएनो पाठ कही एकावन लोगस्सनो कानस्सग्ग करी प्रगट लो गस्स कही पारीने पनी सर्व पूर्वोक्त करणी करे.इति ॥
॥अथ अष्टमदिवस विधिप्रारंनः ॥ ॥प्रथम प्रजात संबंधि विधि करीने “नही मो चारित्तस्स" ए पदनु बे हजार गुणगुं गुणे,अने चारित्र पद उज्ज्वलवर्णेने, माटे तंउलनु आयंबिल करे,तथा सित्तेर नेदना सित्तेर नमस्कार करे, ते कहे . १ प्राणातिपात विरमण रूप चारित्राय नमः ।। २ मृषावादविरमणरूपचारित्राय नमः ॥ ३ अदत्तादानविरमणरूपचारित्राय नमः॥ ४ मैथुनविरमणरूपचारित्राय नमः॥ . ५ परिग्रहविरमणरूपचारित्राय नमः ॥ ६ माधर्मरूपचारित्राय नमः॥ ७ आर्यवधर्मरूपचारि० मृताधर्मरूपचारिक
ए मुक्तिधर्मरूपचारि० १० तपोधर्मरूपचारि० ११ संयमधर्मरूपचारि० १२ सत्यधर्मरूपचारिक १३ शोचधर्मरूपचारि० १४ अकिंचनधर्मरूपचारिक
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( ६५० )
१५ बंजधर्मरूपचारि०१६ पृथ्वीरासंयमचारि० १७ नदगरदासंयमचारि० १० तेनरकासंयमचारि० १९ वानरका संयमचारि० १० वनस्पतिरकासं० चा० २१ वें दियरा संचारि० २२ तेंयिरकासं०चा० २३ चौरिंडियरका सं०चा० २४ पंचेंशियरका सं० २५ जीवरकासंचा० २६ प्रकासंयमचारित्रा० २७ उपेक्षासंयमचारित्रायनमः ॥
२० अतिरक्तवस्त्रक्तादिपरत पणत्यागरूपसंयमचा० २९ प्रमानरूप सं०चा० ३० मनःसंयम चारि० ३१. वचनसंयम चारि० ३२ कायसंयम चारि० ३३ प्राचार्यवैयावृत्यरूप संयमचारित्रायनमः ॥ ३४ उपाध्यायवैयावृत्यरूपसंयमचारित्रायनमः ॥ ३५ तपस्विवैयावृत्यरूपसंयमचारित्रायनमः ॥ ३६ लघुशिष्यादि वैया० ३७ गिलाणसाधुवैया ० ३० साधुवैयावृत्यरूप० ३० श्रमणोपासकवैया० ४० श्रीसंघवैयावृत्यरूप० ४१ कुलवैयावृत्यरूप० ४ २ गणवैयावृत्यरूप चारित्रायनमः ॥ ४३ पशुपैमगादिरहितवसतिवसान ब्रह्मगुप्तचारि० ४४ स्त्री हास्यादिविकथावर्जन ब्रह्मगुप्तिचारित्राय ० ४५ स्त्रीयासन वर्जनब्रह्मगुप्त चारित्राय नमः ॥ ४६ स्त्री अंगोपांग निरीक्षण वर्जन ब्रह्मगुप्त चारि० ४७ कुमतरसहित स्त्री हाव जाव श्रवण वर्जनत्र ० ४८ पूर्वी संजोग चिंतनवर्जन ब्रह्मगुप्तचारित्रा ० ४० प्रतिसरसयाहार वर्जन ब्रह्मगुप्तचारित्राय नमः॥
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( ६०१ )
५० प्रतिश्राहारकरणवर्द्धन ब्रह्मगुप्तचारित्राय नमः ॥ ५१ अंग विनूषावन ब्रह्मगुप्तचारित्राय नमः ॥ ५२ प्रणसणतपोरूपचा० ५३ कणोदरी तपोरूपचा० ५४ वित्तिसंखेवतपोरू० ५५ रसत्यागतपोरूप ० ५६ काय किलेसतपोरूप० ५७ संक्षेपणातपो रू० ५० प्रायश्चित्ततपोरूप० ५० विनयतपोरूपचा० ६० वेचावच्च तपोरूपचा० ६१ सझायतपोरूपचा० ६२ ध्यानतपोरूप चा० ६३ उपसर्गतपोरूप चा० ६४ अनंतज्ञानसंयुक्तचा० ६५नंतदर्शनसंयुक्तचा० ६६ अनंतचारित्रसंयुक्तचारित्राय नमः ॥ ६७ क्रोधनिग्रहकरणचा० ६० माननिग्रहकरणचा० ६९ मायानिग्रहकरणचा० १० लोननिग्रहकरणचा०
॥ इति सप्ततिश्चारित्रनेदाः ॥ ए रीतें सित्तेर नमः ॥ स्कार करे; पढी ननो यइ अन्नवस सिएरांनो पाठ कही सित्तेर लोगस्सनो काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कही, पारीने पूर्वोक्त करणी सर्व करे॥ इत्यष्टम दिवस विधिः ॥
॥ अथ नवमदिवस विधिप्रारंभः ॥
८८
॥ प्रथमप्रनात संबंधि विधि करी रह्या पढी झी एमो तवस्स" ए पदनुं वे हजार गुणणुं गुणे, तथा तपपदनो उज्ज्वल वर्ण बे, माटे तनुं प्रायंबिल करे, ने तपना पच्चास भेदना नमस्कार करे, ते लखें बे. १ यावत्कथकंतपसे नमः २ इत्वरतपोनेदतपसे नमः ३ बाह्यकणोदरितपोनेदतपसे नमः ॥
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( ६०२ )
४ अन्यंतर कणोदरि तपोनेद तपसे नमः ॥ ५ इव्यतपो वृत्तिसंदेष तपोनेद तपसे नमः ॥ ६ क्षेत्रतपोवृनिसंदेष तपोनेद तपसे नमः ॥ ७ कालतपोवृत्तिसंक्षेप तपोनेद तपसे नमः ॥ ८ जावतपोवृत्तिसंदेष तपोनेद तपसे नमः ॥ " कायक्लेश तपोनेद तपसे नमः ॥
१० रसत्याग तपोनेद तपसे नमः ॥
११ इंडियकपाययोग विषयकसंलीनता तपसे नमः ॥ १२ स्त्रीपशुपंकादिवर्जितस्थानत्र्यवस्थित संलीनता० १३ बालोयण प्रायश्चित्त तपसे नमः ॥
१४ प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त तपसे नमः ॥ १५ मिश्रप्रायश्चित्ततपसेन० १६ विवेक प्रायश्चित्ततप० १७ उपसर्गप्रायश्चित्ततप० १८ तपःप्रायश्चित्ततप० १९ नेदप्रायश्चित्त तप० २० मूलप्रायश्चित्ततप० २१ अनवस्थितप्रायश्चित्ततप० २२ पारंचियप्रायश्चित्त० २३ ज्ञान विनयरूप तप० २४ दर्शन विनय रूप तप० २५ चारित्र विनयरूप० २६ गुर्वादिकमनोविनयरूपत ० २७ वचनविनयरूपतपसे ० २७ काय विनयरूपतपसे ० २९ उपचारक विनयरूपत० ३० याचार्यवेयावञ्चत० ३१ उपाध्यायवेयावच्च त० ३२ साधुवेयावच्च त० ३३ तपस्विवेयावच्चत० ३४ लघु शिष्या दिवेयावञ्चत० ३५ गिलाणसाधुवेया० ३६ श्रमणोपासकवेया ० ३७ संघवेयावच्च त० ३८ कुलवेयावच्च त० ३ गणवेयावच्च त० ४० वायणातपसे नमः ॥
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(६ए) ४१ पृबनातपसे नमः ४२ परावर्तनातपसे नमः ॥ ४३ अनुप्रेक्षातपसे नमः ४४ धर्मकथातपसे नमः ४५ वार्तध्याननिवृत्त त०४६ रोऽध्याननिवृत्त त ४७ धर्मध्यानचिंतन त० ४ शुक्त ध्यान चिंतन त पए बाह्य उपसर्ग त ५० अन्यंतर उपसर्ग त
॥ इति पंचाशत् तपोजेदाः ॥ ॥ए रीतें पच्चास नमस्कार करे, पनी उनो थक्ने अन्नब उससिएनो पाठकही पच्चास लोगस्सनो का. नस्सग्ग करी एक लोगस्स प्रगट कही पडी प्रथम दिव समां लख्या मुजब सर्व विधि अनुक्रमें करे. ए विधि लखवामां दृष्ट ६७७ मध्ये प्रथम दिवसें श्रीअरिहंत पदमां नवमो नमस्कार करतां झानातिशय संयुताय जोश्य तेने ठेकाणे जूलथी झानातिशयप्रतिहार्यसंयुता य एम उपाइगयेनुं . तथा गुणणुं वे हजारने स्था नकें १000 बपाई गयुं , ते सुधारी वांचवू ॥
॥ हवे ए नवपदनुं तप ग्रहण करवा माटे गुरु पासें केवी रीतें जर्बु, तेनो विधि कहे .
॥प्रथम गुन दिवस गुन घडी शुन मूहूर्त जोड्ने सुं दर वस्त्र आनूषण पहेरी ललाटें तिलक करी मान अने सरशव मस्तकें धारण करी हाथमां मौलि बांधी अद त, सोपारी, श्रीफलादिक अने यथाशक्ति रोकड ना | लेइ नवकार गुणतो थको श्रीगुरुनी पासें जा छादशावर्त वंदन करी ज्ञान पूजा करे,पडी घणोज प्र
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( ६०४ )
मोदवंत थ गुरुना मुखथकी उली तप ग्रहण करे. ए तपस्याग्रहणवखतपोशानें गुरुपासेंजवानोविधिको.
॥ अथ श्रीवीशस्थानक तपनो विधि सामान्यथी लखीयें ढैयें ॥
॥ तिहां प्रथम वैशाख, आषाढ, मार्गशीर्ष ने फागुण ए चार महिना मांहेला कोइ पण महिनामां शुन नि दोष मुहूर्त्त जो गुन दिवसें नंदीस्थापनापूर्वक सुवि हित गुरुनी समीपें वीशस्थानक तप विधिपूर्वक उच्चरे.
एनी एक ली वे महीने अथवा व महिने पू र्ण करे, कदाचित् उ महीनामां पूर्ण करी न शके तो तेली गणती मां न गएणाय, फरीथी नवी करवी पडे.
हवे एक नली करतां एना वीश पद बे, माटे कोइक तो वीश दिवसमां वीश पद प्रत्येक दिवसें जूदां जूदां गणे, अने कोइक तो वीशे दिवस सुधी एकज पद गणे, ने वली बीजा वीश दिवसमां बीजुं पद गणे, एवी रीतें वीश पढ़नी वीश उली करे.
तेमां पद आराधननादिवसें जो प्रबल शक्तिमान् होय तो हम तप करीने प्राराधे, एवी वीश यह में एक उनी पूर्ण करे, तेनी चारशो में वीशे उली पूर्ण थाय. एवी रीतें उत्कृष्टतप श्राराधे. तेथी हीनशक्तिवालो होय तो वह वह तप करी ने राधे, वली तेथी हीनशक्तिमान होय तो चन विहार उपवासेंकरी याराधे, तेथी हीनशक्तिमंत
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(६५) होय तो तिविहार उपवासें करी आराधे, तेथी दीन शक्तिवालो होय तो आंबिले करी आराधे, तेथी ही नशक्तिवालो होय तो नीवीयें करी बाराधे, तेथी हीनशक्तिवंत एकासणे करी आराधे.
तिहां शक्तिमान प्राणी सर्व पदाराधनने दिवसेंब होरात्र एटले आठ पहोर पोसह करे, तेथी हीन श क्तिवालो दिवसनो चार पहोरनो पोसह करे.एवी रीतें वीशे पद पोसहथी आराधे,अने जो सर्व पदोने आ. राधवाना दिवसें पोसह करवानी शक्ति न होय तो पण एक आचार्य पदें, बीजा उपाध्याय पदें, त्रीजा थिविर पदें, चोथा साधु पदें, पांचमा चारित्र पदें ब छा गौतम पदें, अने सातमा तीर्थपदें. ए सात थान के तो पोतें पोतानी हीनता जावतो पोसह करीनेज अाराधे, ते पण शक्ति न होय तो ते दिवसें देशावका शिक करे, सावद्य व्यापारनो त्याग करे, ते पण न था शके तो यथाशक्ति तप करी आराधे.
तथा मृतक जातकना सूतकमां जे उपवासादिक तप करे ते गणतीमां गणे नही; अने स्त्री पण तुस मयें तप करे ते गणतीमांगणे नहीं. तथा तपस्याने दि वसें जो पोसहसहित करे, तो बहुज श्रेयस्कर जाण p. तेम न बनी शके तो उनयटक पडिक्कमणा करे.
त्रणे टंक देववंदन करे, एक पदना बे हजार जा प करे, ब्रह्मचर्य पाले, जूमिशयन करे, तपस्याना दि
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(६६) वसें अत्यंत सावध आरंन न करे, असत्य न बोले, आखो दिवस तपपदनुं गुणकीर्तन करतो रहे.
तथा तपना दिवसें पोसह करे, तो पारणाना दि वसें श्रीजिननक्ति करीने पारणुं करे, अने जो तपना दिवसें पोसह न करे तो ते दिवसे श्रीजिननक्ति करे, करावे जावना नावे तथा तपना दिवसें जे पदमुंआ राधन करतो होय ते पदना जेटला गुणनेद होय ते संख्या प्रमाणे कानस्सग्ग करे,अने तावन्मात्र तद्गुण स्मरणपूर्वक खमासमण देश वंदना करे ते पदनो महि मा गुण याद करीने उदात्त स्वरें स्तवना करे, हर्षित थको रहे. एवा प्रकारना विधिथी वीरे उनी क रवी, तथा वीशे उनीमां एकेका पदना उत्सव.महो त्सव,प्रनावना, उजमणां वगेरे श्रीजिनशासननी न नतिना हेतुयें करवां जोयें, पण जो पर्दे पदें उज मणादि करवानी शक्ति न होय; तो एक उजी तो विशेप उत्सव नजमणादिक सहित अवश्य करवी जोयें. ए सामान्यथी विधि कह्यो.
हवे इहां स्थानक पद आराधक सऊनोने जाण वाने अर्थे प्रथम श्रीअरिहंत पद आद्यमां ने, माटे तेने आराधवानो विशेष विधि लखी देखाडियें बैयें.
जे दिवसें श्रीवीशस्थानक तप सामान्य प्रकारें न चरे, ते दिवसेंज प्रथम श्रीअरिहंत पद विधिपूर्वक नच्चरे, माटे ते दिवसें श्रीजिनेश्वरनी महोटी नक्ति करे.
इहां प्रथम पदें “मो अरिहंताएं” ए पदनी
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(६७) वीश नोकरवाली गुणी बे हजार गुणगुं गुणवू, अने पूर्वोक्त विधि सर्व करवो, तथा श्रीअरिहंतना बार गु गले ते एकेका गुणने याद करी ते ते गुणना ना मोच्चारपूर्वक खमासमणा देई बार नमस्कार करवा, ते आवी रीतें:१ श्रीअशोकवृद प्रातिहार्यशोनिताय श्रीमदर्हते २ जानुदनपंचवर्ण पुष्पप्रकरप्रातिहार्यशोनिताय ३थतिमधुरव्यमाधुर्यतोपि मधुरतमदिव्यध्वनिप्राण ४ हेमरत्नमस्थितजडितअत्युज्ज्वलचामरयुगल
वीजितव्यजनक्रिया युक्तसत्प्रातिहार्यशोनिताय ५ सुवर्णरत्नजडित सदासहचारिसिंहासनसत्प्राति ६ तरुणतरणितेजसोऽप्यतिनास्वरतरतेजोयुक्तनामं
मलसत्प्रातिहार्यशोनिताय श्रीमदर्हते नमः ॥ ७ इंनिप्रनृत्यनेकाकाशस्थितवादितवाजित्रवाद
नरूपसत्प्रातिहार्यशोनिताय श्रीमदर्हते नमः॥ ७ मुक्ताजालकुंबनकयुक्तमत्रत्रयसत्प्रातिहार्यशो ए स्वपरापायनिवारकातिशयधराय श्रीमदर्हते नमः १० पचत्रिंशत्रुणयुक्तायसुरासुरदेवेंश्नरेंशणां पूजाति
शयधराय श्रीमदर्हते नमः॥ ११ सर्वनाषानुगामिसकलसंशयोबेदकवचनातिशयध
राय श्रीमदर्हते नमः ॥ १२ लोकालोकप्रकाशकेवलझानरूपझानातिशयैश्वर्य
धराय श्रीमदर्हते नमः ॥
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(६७) एवी रीतें बार खमासमण देने वांदे. पड़ी थरि हंतनी स्तवना करे. ने कदे .
जय, श्रीअरिहंत, रुहंत, अर्हत, देवाधिदेव, परमे श्वर, परमकरुणानिधान महागोप, महामाहण, महा निर्यामक,महासबवाह, जगद्य, जिनेश्वर, तीर्थकर, विश्वंजर, विश्वपति, विश्वोत्तम, त्रिकालवित्, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, देवाधिदेव, एरुपातम, वीतराग, जगन्नाथ जगबंधु, जगत्तारण, वुद्ध, जगवंत. विश्वानंदी, सहजा नंदी, गुइचेतनाधर्ममय, सक्तस्वनावमय,धर्मरत्नरत्ना कर. धर्मदेशक, जावधर्मदातार, परमात्मा, परमदशी परमगुरु,परमोपकारी,परममंसारतारक,अशरणशरण तरणतारण, नवनयहरण. इत्यादि श्रीअरिहंतनां स हस्र नाम जे, तेनो पाठ करे. . एम अगणितगुणगणालंकृत एवा श्रीमदर्हत जीने प्रतिदरों महारी वंदना हो; त्राण शरण गति मति स्थिति सर्व श्रीअरिहंतजी जे. एहज श्रदा म हारी सफल हो, एवी रीतिथी स्तवना करे. ___ तथा तेज दिवसें बार गुण माटे बार लोगस्स नो कानस्सग्ग करे, रात्रि दिवस व्यवहारे ए श्रीअरि हंतनो श्वेतवर्ण ध्यावे, अरिहंतना गुण कीर्तनमा रहे, पारणाने दिवसें बदुश्व्य निष्पन्न यथाशक्ति अ टप्रकारी, सत्तरप्रकारी, एकवीशप्रकारी, अष्टोत्तरी प्र मुख पूजा जक्तिपूर्वक करे, नवा मुकुटकुंमलादि नूषण चढावे, रत्नतिलक चढावे, अंगलूहगां, चंपुथा
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(६एए) चढावे, समवसरण रचना करे, त्रिगडा उपर प्रनु जीने बिराजमान करे, मंत्रपवित्र धान्यें करी प्राकार समवसरण रचना करे, इंध्वजा चढावे, रूप्यमय अदतमय अष्टमांगलिक चढावे,गुनवर्ण शुनगंधवाला पुष्पादिक च डावे, इव्यनंमारामां मूके, केवलझाननो नत्सव करे, विविध प्रकारनां पक्कान्न ढोवे, जिनबिंब जरावे, चैत्य करावे, एवा विधियें करीब मासपर्य त श्रीअरिहंत पदने आराधे. इति प्रथम पदाराधना॥. ___ए प्रथम पदनो विधि कह्यो. एवीज रीतें विधि प्रपायंथ नपरथी अत्यंत विस्तारपूर्वक चौदमा पद सु धीनो विधि तोपर्व को महापुरुषनो रचेलो ग्रंथ महा री पामें ने, नेमां लखेलो;अने पाबलाब पदनो विधि को गीतार्थना सहायथी लखी तैयार करत, पण तेटलो विधि आमां दाखल करवाथी आ पुस्तकना सुमारे १२५ पृष्ठ जरा जात; तेथी ग्रंथ घणो म होटो थइ जाय; तेमज एटला विधि पूर्वक तपश्चर्या करनार श्रावक नाइननी संख्या पण स्वल्प.ने, माटे थोडानेज खपमां आवे; एवा हेतुथी ते विधि प्रा. पुस्तकना पाबल बापवामां आवनारा बीजा अथ वात्रीजा नागमा दाखल करवानो विचार राखी ने हालमां वीशे पदनो संदेपविधि नीचे दाखल करे लो . विस्तार विधिना इनक नव्यजीवोएं पद पद नो विधि गुरुमुखथी धारीने तप आराधन कर,.
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(900)
॥ अथ वीश स्थानकनुं गुणणुं तथा काउस्सग्ग प्रमाण यादिक संक्षेप विधि प्रारंभः ॥ १ ' णमो अरिहंताणं' ए पदनुं गुणणुं बेहजार गुणवुं. श्री अरिहंतजीनी त्रिकाल अष्टप्रकारी, सत्तरप्रका री, एकवीशप्रकारी, अष्टोत्तरी, स्नात्र प्रमुख पूजा यथाशक्ति करवी, नवीन प्रतिमा जराववी, चोवी श अंगनूहणां चोवीश वालाकूंची प्रमुख मूकवी, प्रतिमाजीनो नकरो करवो; तथा श्रीअरिहंतजी ना बार गुण बे, माटे बार लोगस्सनो काउस्सग्ग - करवो, ने बारगुण चिंतवी बार नमस्कार करवा. २ ' णमो सिद्धाणं' ए पदनुं गुणएं बेहजार गुणवुं, श्री सिद्धगवाननुं ध्यान करवुं, त्रिकाल पूजा करवी, उजय काल पडिक्कमणुं कर, पुंमरीकादिक गौत मप्रमुखनी पूजा करवी; तथा श्रीसिद्धक्षेत्र तीर्थ निमित्तें इव्य खरच, अने श्रीसिद्ध पन्नर प्रकार ना बे, माटे पन्नर लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो; य थवा श्री सिद्धना व गुण बे, माटे आठ लोगस्स नो का सरग करवो. स्नात्रपूजा वासदेप पूजा करे. ३ 'रामो पवयणस्स' ए पदनुं गुणणुं वे हजार गुएा बुं, सिद्धांत जक्ति करवी, पुस्तक लखाववां, वींटां गण पाठां प्रमुख ज्ञानोपकरण द्वावीश उपवासें थापवा, ज्ञाननी नक्ति करवी, विद्यमान श्रागम नी बसें करी क्ति करवी, यागमोनां नाम ल दर्शन करवां, अथवा जो पुस्तक होय तो पुस्तको
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( ७०१ )
नां दर्शन करवां, गुरुने सिद्धांत वहोराववा, सात लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, ने सिद्धांतनी पांच गाथा नित्य गुरुमुखें सांनलवी. ४ ' णमो
यरियाएं' ए पदनुं वे हजार गुणणुं गु रावं, आचार्यनी नक्ति वीसामणा करवी; तथा वस्त्र पात्रादिक यापवां; अने आचार्यनो विनय करवो, थापनाचार्यनी बरासें पूजा करवी; तथा थापनाचार्यने माटे उपकरण मूकवां; अने या चार्यजीना बत्रीश गुण बे, माटे बत्रीश लोग स्सनो काजस्सग्ग करवो.
५ 'रामो थेराणं' ए पदनुं वे हजार गुणणं गुणवं, थिविर गिलान तपोधनादिक वडेरानी भक्ति वीसा मण करवी, प्रशन पान खादिम स्वादिम औष धादिक याणी यापवुं; तथा दश प्रकारना थिविर बे, माटे दश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. कोइ प्र तमां पन्नर लोगस्सनो काउसग्ग करवो कह्यो ले. ६ ' णमो उवद्यायाणं' ए पदनुं वे हजार गुणं ग
rg, बहुश्रुत श्रीउपाध्यायजीनी नक्ति करवी, गु रुनी आज्ञा रूडी रीतें मानवी, अंगपूजा करवी, अने एमना पञ्चमेश गुण बे, माटे पच्चीश लोग स्सनो काउस्सग्ग करवो.
७ ' णमो लोए. सबसाहूणं' ए पदनुं गुणणुं वे हजा र गुणवं. तपस्वी सर्व साधु साधवीनी अन्न वस्त्रा दिर्के विशेषक्ति करवी, विसामण करवी, अ
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(७०२)
तिथि संविनाग करवो; तथा एमना सत्तावीश गु एने,माटे सतावीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करीयें. G ‘मो नाणस' ए पदनुं बे हजार गुण| गु
गवं, झान जगवूनणावq, झाननीनक्ति विशे ष करवी, वखाण सांजलवां, पाठादिक धागल नां पदोनुं आगधन करती वखतें लइ राखेलां होय ते तिहांस देवाएगां होय तो या प: प्रा राधननी वखतें धापी देवां. झाननो विनाग क हाडवो, तथा झानना मत्यादिक पांच नेद . माटे पाच लोगस्सनो कानस्सग्ग करवो. ए ‘णमो दसएस्स', पदनुं बे हजार गुणाj गुणवू, शंकादि दूपण टाली हमनें शु६ सम कित पालवू, आरंन वडवो, कायायें करीने स चित्त वस्तु यानडवी नह।, अन्य तीर्थीना देव, गुरु अने धर्मना सन्मान सत्कार पूजा अनुमो दना करवानो त्याग करवो, यथाशक्ति मोदक देवा, तथा ए पदना सडशठ नेद , माटे सड
श लोगस्सनो कानस्सग्ग करवो. १० ‘मो विएणय संपन्नाणं' ए पदनुं वे हजार गु
गणुं गुणवं. याचार्य, नपाध्याय, साधु, तप स्वी,गिलाण प्रमुख वडेरानो अन्युबानादिकें विन
य करवो, कानस्सग्ग दश लोगस्सनो करवो. ११ ‘मो चारित्तस्स' ए पदनुं बे हजार गुणां
गुणवं, उन्नयकाल पडिक्कमj करवू, वारंवार
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(७०३) सामायक विशेष पञ्चरकाण करवू, चारित्रनां उप करण जे उघो, मुहपत्ति,दशी, पडघा प्रमुख ते य थाशक्तियें आपवां,कानस्सग्ग बलोगस्सनो करवो. १२ ‘मो बनवयधारिणं , ए पदनुं गुणगुंबे हजा
र गुणीयें तथा नववाड विशुभ त्रिकरण शु करी ब्रह्मचय पालिये, सूधुं शील पालीयें, स्त्री साहामुं दृष्टं पण जोवू नही, विकथा निशा लवी, ब्रह्मव्रत धारकने जमाडवा, तथा य नाश क्तियें वस्त्रादिकनी पहेरामणी करवी, कानस्सग्ग
नव लोग्गस्सनो करवो. १३ 'एमो किरियाणं' ए पदनुं गुणणुं बे हजार
गुणवू, अहोरात्र खरो पोसह पालवो, निश विकथा न करवी, पारणे गुरुने किरियापुं देवं,
कानस्सग्ग पञ्जीश लोगस्सनो करवो. १४ ‘मो तवस्सीएं' ए पदनुं गुणां वे हजार
गुणवं, विशेष तप करवू, पारणें सचित्त वस्तु टालवी, तपस्वीनी नक्ति वीसामणा करवी; का
नस्सग्ग बार लोगस्सनो करवो. . १५ ‘मो गोयमस्स' ए पदनुं गुणj बे हजार
गुणवं, सात दे यथाशक्तिये इव्य खरचवू, गु रुने पडगो वोहोराववो, श्रीगौतमस्वामीनी पूजा वासदेपथी करवी, प्रथम पारणे पडगो पूजीने खीर खांमनुं नोजन करवू, यथाशक्तियें साहामि वात्सल,संघपूजा करवी,तथा अहवीश लब्धि,
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( ७०४ )
माटे द्यावीश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, अथवा चारित्रना गुण श्राश्रयी सत्तर लोग्गस्स नो काउस्सग्ग करवो.
१६ ' लमो जिलाएं ' ए पदनुं गुणं बे हजार गु एवं, देव, गुरु, तथा पोसना करनार वडा प्र मुखनुं वेयावच्च करवुं, सत्तरनेदी पूजा करवी, देव आागल साथीया दश करवा, जिनवर था दिक दशना वेयावच्च श्राश्रयी दश नेद बे, माटे दश लोग्गस्सनो काउस्सग्ग करवो.
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१७ ' रामो चरणस्स ए पदनुं गुणं वे हजार गु एवं इहां सर्व समाधिविशेष समताभाव ना तां खरूं सामायिक करीयें, बीजाने करावीयें, काउस्सग्ग लोग्गस्स अगीयारनो करवो. १८' रामो नापस्स ए पदनुं गुणणुं वे हजार गु वं, ए पद खाराधन करतां नवा नवा ग्रंथ श्रव श्य जावा. पूर्व पूर्व ज्ञान नावं, जो वधु न जाय तो वे चार गाथाज जावी. नव नवा तवनादिकनी रचना करवी, श्रुतज्ञाननुं श्राराध न कर, एमां काउस्सग्ग पांच लोगस्सनो करवो. १५ ' एमो सुयनापस्स' ए पदनुं वे हजार गुणं गुणवं, ए पद राधतां थकां साधु, साधवी, श्रावक, श्राविका, ए रीतें चतुर्विध श्रीसंघनी न क्ति करवी, यथाशक्तियें पुस्तकोनी पूजा करवी. पुस्तकना वीटांमणां २०, पाठां २०, चाबखी
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(७०५) २४ उवणी आदिक देवां, कानस्सर्ग दश सो गस्सनो करवो, अने सूत्रना पीस्तालीश नेद था श्रयी पीस्तालीश लोगस्सनो कानस्सग्ग जो थई
शके तो उत्कृष्ट नांगे ते पण करवो. २० ‘मो तिबस्स' ए पदनुं गुणगुं बे हजार गुण
Q. श्रीजिनशासननी प्रनावना करवी, सिद्धांत ना व्याख्यानावसरें प्रनावना करवी, दिवसनो पोसह करवो, पुंमरीक गिरिकादिक पांच तीर्थ माटे पांच लोगस्सनो कानस्सग्ग करवो. ए रोतें जो गुरुनो योग होय तो तेमना मुखथी समजण लश्ने विस्तार सहित वीश स्थानक पदनुं आराधन विधि पूर्वक करे, अने जो गुरुनो योग न होय तो महोटा विवेक सहित या प्रमाणेंनी लखे ली सूचनाने अनुसारें विधि जोड्ने करे, वीश स्थान कना तवन जणे अथवा सांजले, वीश स्थानकनी पूजा करे, वीश वीश बधी जातिनां झानना पुस्तको तथा झानना नपकरणो करावे, जे देवपदसंबंधि हो य ते देवपदखाते खरचे, अने झानपदनुं होय ते झानखाते लगावे, तथा गुरुपदनुं गुरुवाते लगा वे. सर्व तीर्थोनी यात्रा यथाशक्ति करे, नही कां पण उलीयो पूर्ण थाय पडीब महिनामांहे तो तीर्थ यात्रा अवश्य करे,साहामीवात्सल्य करे. ए रीतें इव्य नावयुक्त शुरू नावथी जेजव्य जीव वीश स्थानक प दनुं सेवन करे, ते जीव श्रीजिननामकर्म नपार्जन
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करीत्रीजे नवें अनंत सुख जिहां डे एहवं मोक्षरूप स्थानक पामे ॥इति वीसस्थानक तप विधिःसमाप्तः॥
अथ नव्यजीवोने आदरवा योग्य बीजा पण
केटलाएक तपना प्रकार लखीयें बैयें. ॥जे अगुनकर्मोने तपावे,तेने तप कहिये. ते तप अनेक प्रकारे , तेमार्थ! केटनाएक प्रकार इहां ल खीयें बैयें. सर्व तपमा मूल इंघियजयनामा तप जे. कारण के, श्रीवीतरागनो धर्म पण एवेज नामें ले, यद्यपि श्रीजिनशासनने विपे जे जे प्रकारनां तप , ते ते सर्व इंडियना जयनां करनाराज बे, तथापि पू
चार्य सर्व तपमा प्रथम इंघियजय एवे नामें तप क ह्यु ने, माटे तेनुं स्वरूप आदिमां लखीयें बैयें.
इंझ्यिजयतपः- ए लोकप्रसिह जे. एमां पहेले दिवसें पुरिमद, बीजे दिवसें एकासगुं, त्रीजे दिवसें नीवी, चोथे दिवसें आयंबिल, अने पांचमे दिवसें न पवास, ए पांच दिवसें एक इंडियना जयने माटे एक ली थाय. एवीज रीतें पांचे इंडियनुं दमन करवा माटे पांच ली करवाथी ए तप पञ्चीश दिवसें पूर्ण थाय जे. उजमणे पच्चीश लाडु पुस्तक आगल मू कीयें, यथाशक्तियें पुस्तकने पहेरामणी करीये.'
ए रीतें इंडियजय कस्या नपरांत मनादिक त्र ण योगना व्यापारनी शुदि एटले निरवद्य पणुं क र, जोश्ये, माटे बीजुं योगगुझिनामा तप कहे जे.
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२ योगशुद्धि तपः - पहेले दिवसें नीवी, बीजे दिवसें प्रायं बिलखनेत्री जे दिवसें उपवास, एवी त्रण जेली ला गद्य करियें,तेवारें नव दिवसें तप पूर्ण थाय, उजमणें देवपूजा तथा पुस्तकपूजा करवी. अष्टमांगलिक करवां. वे योग येथी ज्ञान, दर्शन खने चारित्रनी प्राप्ति थाय, तो जली जाणवी, माटे ज्ञानादिक त्रानुं तप कहे बे. तेमां ज्ञान मुख्य ले माटे ते प्रथम कहियें बे.
३ ज्ञान तपः- हम तप कर, ने शक्ति न होय तो एकांतरे त्रण उपवासनी उली एक करवी. नज म सिद्धांत पुस्तकनी पूजा करवी, पुस्तकने वींट या प्रमुखनी पहेरामणी करवी. ज्ञानवंत पुरुषनी वस्त्र पात्र अन्नपानादिकें भक्ति करवी. सूत्र सिद्धांत प्रकरण लखाववाने माटे इव्य खरचj.
४ दर्शन तपः - हम तप कर, शक्तिने नावें एकांतरे त्रण उपवासनी एक नली करवी, उजमणे जगवंतनी पूजा करवी. दर्शन प्रभावक संमत्यादि क महान् ग्रंथोनी पूजा करवी.
५ चारित्र तपः- हम तप करवुं, शक्तिने अना वें एकांतरे त्रण उपवासनी एक नली करवी; उजमणें गुरुनी नवांगें पूजा करवी, चारित्रीयानी नक्ति करवी.
हवे ज्ञानादिक त्रणनो धणी क्रोधादिक चार कषायनो जय करे, तो ननुं, माटे कषायजयनामा तप करे, ते कहे बे.
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(306) ६ कषायजय तपः- प्रथम दिवसें एकास', बीजे दिवसें नीवी, त्रीजे दिवसें आयंबिल अने चोथे दि वसें उपवास, एवी एक उत्तीयें एक कषायनो जय कर तां चार उलियें चतुःकषायजयनामा तप शोल दिवसें पूर्ण थाय. जमणे देवनी वागल शोल लाडु मूकवा.
हवे झानादिक त्रनो धणी चार कषायनो जय करीने पनी विविध प्रकारनां तप करे, ते मांहेलु प्र थम कर्मसूदननामा तप कहे .
७ अष्टकर्मसूदन तपः- पहेले दिवसें नपवास, बीजे दिवसें एकासगुं,त्रीजे दिवमें एकल सीधु, चोथे दिवमें एकला', पांचमे दिवसें एकलदत्ति, बहे दि वसें नीवी, सातमे दिवसें आयंबिल, बाग्मे दिवसें
आठ कवल, एवी आठ कर्मने सूडवाने आठ उली करीये तेवारें चोशठ दिवसें ए तप पूर्ण थाय. एना नजमणामां रूपानुं वृद तथा सोनानो कूहाडो देव नी आगल कर्मरूप तरुवर दवाने अर्थे ढोयें, पुस्तकपूजा करिये, यतिने दान आपियें. __लघुसिंह निःक्रीडिततपः- जेम सिंह चाट्यो जतो होय ते वली कांश्क दूर जश्ने फरी पाडो या गला प्रदेश तरफ महोड़े करीने जूए ,तेनी परें इहां पण जे तप प्रथम करयुं होय, तेनुं पारणुं करीने वली पण फरी आगला तपनुं प्रासेवन करे, माटे एने सिंहनिःक्रीडित तप कहिये.अने एनीागलें जे महा सिंहनिःक्रीडित तप कहेशे तेनीअपेदायें ए न्हामुंजे,
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(७०) माटे ए लघुसिंहनिःक्रीडित कहियें, ते या प्रमाणेःप्रथम एक उपवास करी पारj करे, वली बे उ पवास करी पार| करे, एम सर्वत्र उपवासें आग ल पारणुं समजी लेवु. पनी एक उपवास, त्रण, बे, चार, त्रण, पांच, चार, ब, पांच, सात, ब, पाठ, सात, नव, बात, नव, सात, आठ, ब, सात, पांच, ब, चार, पांच, त्रण,चार, बे,त्रण,एक, बे,एक, एवी रीतें नपवासो करवाथी एकशोने चोपन दिवस उप वासना थाय, अने तेत्रीश पारणाना दिवसो थाय. जुमले दिन १७७ नाब महीना अने सात दिवसें एक परिपाटीयें एक श्रेणी थाय. एवी चार श्रेणी क रीये तेवारे बे वर्षने अहावीश दिवसें ए तप पूर्ण थाय . तिहां पारणाने दिवसें पहेली श्रेणियें वि गयसहित सर्वकामगुणित रसोपेत जमे, बीजी श्रे पियें नीवी जमे, त्रीजी श्रेणिये जे चोज खातां थ कां हस्त पात्र प्रमुखने लेप लागे नही, एवी अलेप कारी चीज वाल चणकादिक जमे,अने चोथी श्रेणि ना पारणाने दिवसें आयंबिल करे. इति लघुसिंह॥ ___ए महासिंहनिःक्रीडिततप कहे जेः-एमां पण पू
ोक्त लघुसिंह निःक्रीडित तपनी पेठे एक,बे,एक,त्रण, बे, चार, त्रण, पांच, चार, ब, पांच,सात, ब,आठ, सात, नव, बाव, दश, नव, अगीधार, दश, बार, अगीयार, तेर, बार, चौद, तेर, पन्नर, चौद, शोल, पन्नर अने शोल उपवास. एनेज वली पाबा विपरीत
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(७१०) करवा, एटले जेम चडता कख्या तेमज वली पूर्वली रीतें चौदथी पाबा वलतां पण करवा. एम करतां बेहडे एक नपवास आवे.श्हा एकथी चढतां अने चौदथी पा बा वलता एवीरीतें नपवास करतां एक परिपाटीयें ब दायांक चार चार वखत यावे .मात्र शोलनोक वे वखत यावे,तथा पन्नरनो यांक त्रण वखत आवे . बझा मली ४ए दिवस उपवासना थाय. तथा ६१ दिवस पारणाना थाय, सर्व मली ५५ दिवसें एक लता थाय. एवी चार लता करतां ए तप वर्ष बेमासने बार दिवसें पूर्ण थाय.
१० मुक्तावलीनामा तप कहे :-एक नपवास.करी पारपुं करीयें,पढीबे उपवास करी पार' करीयें, वली एक नपवास करी पारपुं करीयें,पबीत्रण उपवास क री पारपुं करीयें, पढी वली एक उपवास करीयें, पड़ी चार उपवास,पबी वली एक उपवास,पली पांच उपवा स,वली एक उपवास,एम चढतां चढताएकेकने आंत रेयावत शोल उपवास सूधी करिये.पी शोल उपवास नुं पारj करी पाबा फरीयें, ते यावीरीतें के, शोल उपवास करी पारj करीयें, वली एक उपवासने पा रj करीयें, वली पन्नर उपवास, वली एक उपवास फरी चौद उपवास, फरी एक उपवास, फरी तेर न पवास, फरी एक नपवास, बार उपवास, वली एक उपवास, एवी रीतें पाबा आवतां हेडे एक उपवा सने पारणुं करीयें, एम एक उपवासने अांतरें वध
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(७११) तां शोल उपवास सुधी चढतां करीयें, तेवारें अईमु क्तावली एटले अर्धमोतीनी माला थाय, अने पाला फरतां पूर्ण मुक्तावली थाय. एमां सर्व मली त्रशे उपवास अने शाठ पारणां ए एक परिपाटी थाय. एवी चार परिपाटी करतां पूरा चार वर्षे ए तप पूर्ण थाय.जमणे मोतीनोहार जिनेसर आगल ढोकवो.ए मोतीना हारनी पेरें मुक्तावली तप ने ते कडुं.
११ रत्नावली नामा तप कहे जे-जेम रत्नावली ने बानरणविशेष कहे . तेम रत्ननी पंक्ति समान जे तप करवू, तेने रत्नावली तप कहियें. एटले अम रत्ननी पंक्ति बे बाजुयें प्रथम सूक्ष्म अने पडी स्थल एवा विनागें करी काहलिका नामें थानरण सुवर्ण ना बे अवयवें करी युक्त होय , तेमज दाडिमना पुष्पोयें करी बन्ने बाजुयें शोनित उता बन्ने तरफनी बाजुनी जे सयो तेणें करी शोजनाकै अने नीचे ना नागने विषे स्थापन करेला पदकें करी अत्यं त अलंकृत एवं जे पट्टकादिकने विषे बतावेला आ कारने धारण करनारूं तप तेने रत्नावली तप कहिये..
हवे ए तप केवीरीतें करीयें ? के जेथकी पूर्वोक्त या नूषणना आकारने धारण करे एवी स्थापना सिह था य, ते कहे जे. प्रथम एक उपवास करीने पारणुं क रीयें, तेवार पड़ी बे उपवास, पनी त्रण उपवास एवं करी एक काहलिका नपरना नागनी उत्पन्न थाय. ते पनी आठ अज्म एटले आठ वखत त्रण
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(७१२) त्रण उपवास करवा. एवं करी काहलिकानी नीचे दाडिम पुष्प उत्पन्न थाय . त्यार पड़ी एक उपवा स करीये. पडी बे, त्रण, चार, पांच, ब, सात,यान, नव, दश, अगीयार, बार, तेर, चौद, पन्नर अने शो ल, एवी रीतें एकथी मामीने चडते चडते शोल पर्य त उपवास करवा थकी दाडिमना पुष्पनी नीचें एक सेरिका थाय ने. त्यार पली चोत्रीश अहम एटले चोत्रीश वखत त्रण त्रण नपवास करवा थकी नी चेनुं एक पदक उत्पन्न थाय ने. तेवार पनी वली शोल नपवास, पन्नर, चौद, तेर, बार, अगीयार, दश, नव, आठ, सात, ब, पांच, चार, त्रण, वे अने एक पर्यंत उपवास करवाथकी बीजी बाजुनी सेर थाय ने, तेवार पड़ी वली पाठ अहम करवाथकी बीजा दाडमनां पुष्प उत्पन्न थाय ने, पडी वलीत्रण नपवास, वे उपबास अने एक उपवास करवाथकी बीजी काहलिका उत्पन्न थाय जे. एवा आजूषणाकार थये बते परिपूर्ण रत्नावलीतप सिम थाय ने. ए तपने विषे सर्व मली काहलिकाना तपना दिवस बा र, तथा बे बाजुना दाडिमना पुष्प संबंधि तपना दि वस अडतालीश, तथा बे बाजुनी बे सेर संबंधित पना दिवस २७२ थाय . तथा पदकने विषे चो त्रीश अमना दिवस १०२ ए सर्व एकठा करतां ४३४ दिवस तपना थाय जे. तथा 10 दिवस पार पांना थाय ने, सर्व मली ५२२ दिवसें एक परिपाटी
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( ७१३ )
थाय. एवी चार परिपाटीयें ए तप पूर्ण थाय. तेवारें पांच वर्ष, नव मास ने खदार दिवसनी संख्या थाय d. उजमणे रत्नमय हार यापवो ॥ इति ॥
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१२ कनकावलि तप कहे बेः- ए पण सुवर्णमय मणिथी उत्पन्न ययेनुं नूषण होय तेने कनकावली कहीयें. एनी थापना पण रत्नावलिना तपनी पेठेंज करवी; परंतु एटलुं विशेष जे मात्र दाडिमना पुष्प अने पदकने विषे जे त्रण त्रण उपवासनी स्थापना करीं बे, ते स्थानकें यामां बे वे उपवासनी स्थापना कर वी. एनी पण चार परिपाटी करतां पांच वर्ष बे मास ने हावीश दिवस उपर थतां ए तप पूर्ण थाय उज मणे सुवर्णमय हार ने सुवर्ण अक्षर मय पुस्तक करवां. इहां प्रथम लघु सिंह निःक्रीडित तथा महासिं हनिःकीडित नामा जे तप कयुं, तेमां जे प्रमाणें पा रानो विधि कह्यो, तेहज विधि ए मुक्तावलि तथा रत्नावलि ने कनका वलि ए त्रणे तपने विषे जाए वो. ए पांचे तपनो पारणासंबंधि विधि सरखो जावो.
१३ हवे प्रतिमा संबंधि तप कहे :- प्रथम. एक उपवास पढी वे, त्रण, चार घने पांच, एम पन्नर उपवासें एक लता थाय. हवे बीजी उलीमांत्र ए, चार, पांच, एक, बे, एवं पन्नर उपवास थाय. तथा त्रीजी उनीमां पांच, एक, बे, त्रण, चार एम पन्नर उपवास थाय, तथा चोथी लतामां बे, त्रण, चार, पांच ने एक एवं पन्नर उपवास थाय. तेम
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(७१४) ज पांचमी उलीमा चार, पांच, एक, बे अने त्रण, एवं पन्नर उपवास थाय, सरवाले पांच उत्तीना पंचो तेर नपवास अने एकेकी लतायें पांच पांच पारणां थाय, तेथी पच्चीश पारणां थाय. मली एकशो दिव में नश्प्रतिमातप पूर्ण थाय.
१४ महानश्प्रतिमा तप कहे :-एक, बे,त्रण, चार, पांच, अने सात, ए २७ दिवसें प्रथम उत्ती था. पनी चार, पांच, उ, सात, एक, बे अने त्रण ए २७ दिवसें बीजी उली थाय; पठी सात, एक, वे, त्रण, चार, पांच अने ब, ए त्रीजी उत्ती. पबीत्रण, चार, पांच, ब, सात, एक अने बे ए चोथी उली थ. पली ब, सात, एक, बे, त्रण, चार अने पांच ए पांचमी उत्ती. ते पनी वे, त्रण, चार, पांच, ब, सात अने एक, ए बही उत्ती. ते पनी पांच, ब, सा त, एक, बे, त्रण, अने चार ए सातमी ली था. ए सात उली तपनी करीयें, तेवारें एकेक उत्तीमां अहावीश अहावीश उपवास अने सात सात पार णांना दिवसो गणतां सर्व १ए६ उपवास तथा ए पारणांना मली २५३ दिवसें तप पूर्ण थाय.
१५ हवे नशेत्तरप्रतिमा तप कहे जेः-तिहां पोंच, ब, सात, आठ, अने नव, ए पांत्रीश उपवासें प्रथ म ली जावी. तथा सात, आठ, नव, पांच अ ने ब, एटला उपवासें बीजी उती जाणवी. तथा न व, पांच, उ, सात अने आउ, एटला उपवासें त्रीजी
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(७१५) उत्ती जागवी. तथा व सात, पाठ, नव अने पांच, ए चोथी उली जाणवी. तथा आत, नव, पांच, 3 अने सात, ए पांचमी उत्ती जागवी. एम एकेक उत्तीयें पांत्रीश उपवास अने पांच पांच पारणां थाय. तेवार १७५ नपवास थाय. पच्चीश दिवस पारणांना मली बसो दिवसें ए तप पूर्ण थाय ॥ इति ॥
१६ सर्वतोनइ प्रतिमान तप कहे :-एने विषे पांच, ब, सात, आठ, नव, दश अने अगीयार, ए बपन्न नपवासें प्रथम पंक्ति जाणवी. तथा आठ, नव, दश, अगीपार, पांच, ब अने सात, ए बीजी पंक्ति जाणवी; तथा अगीधार, पांच, ब, सात, आठ, न व अने दश, ए त्रीजी पंक्ति जाणवी. तथा सात,
आठ, नव, दश, अगीधार, पांच, अने ब, ए चोथी पंक्ति जाणवी; तथा दश, अगीयार, पांच, ब, सात, आठ अने नव, ए पांचमी पंक्ति जाणवी; तथा ब, सात, आठ, नव, दश, अगीधार अने पांच, ए बही पंक्ति जाणवी. तथा नव, दश, अगीयार,.पांच, ब, सात अने आठ ए सातमी पंक्ति जागवी. एमां ए केक पंक्तियें बपन्न बपन्न नपवास अने सात सात पारणां करतां सात उत्तीमा ३ए उपवास तथा ४ए पारणांना दिवस मली ४४१ दिवसें तप पूर्ण थाय. ए नदिक तपने विषे जे पारणां करवां, ते पू वोक्त पांचे तपनी पेरें प्रत्येके जाणवां. अने चतुर्वि धपणुं पण प्रत्येके जाणवू.
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१७ हवे सर्वसंपत्तिसुख नामा तप कहे बेः- जेना सेवा की सर्व कोइ वस्तुनी संपत्ति थाय, सम स्त प्रकारनां सुख संपत्तिनी प्राप्ति थाय, माटे एने सर्व संपत्ति सुख एवे नामें तप कहियें. ए तपनो शुक्लपक्ष अथवा कृष्णपचना पडवाना दिवसथी यारंभ करी यें, तिहां पडवाने दिवसें एक उपवास करीयें, वली बीजा पना बीजना दिवसथी वे उपवास करियें, वली त्रीजा पहना त्रीजना दिवसथी त्रण उपवास करवा. एम ज्यांसुधी बहेला पूर्णिमाना अथवा श्रमावास्या ना दिवसथी जेवारें पन्नर उपवास करियें, तेवारें सर्व मली एकशोने वीश उपवासें ए तप पूर्ण थाय. एमां जे तिथी चूले ते तिथीने विषे फरीथी उपवास करवो. नजमणें १२० लाडू मंदिरें चढ़ावे; स्नात्रमहोत्सव करे.
१८ रोहिणी नामें तप कहे बे:- सत्तावीश नक्षत्र बे, तेमां प्रथम अश्विनी नक्षत्रयी रोहिणी नामा न छत्र ते चोधुं बे, ए रोहिणी नक्षत्र जे दिवसें यावे, ते दिवसें रोहिणी नामक देवता विशेषना श्राराधवा नेर्थे सात वर्ष ने सात महिना सुधी श्रीवासुपू ज्य स्वामीनी प्रतिमानी प्रतिष्ठा पूजा पूर्वक जे जे दिवसें रोहिणी नक्षत्र यावे, ते ते दिवसें उपवास करीने ए तप करीयें. ए तप अक्षय तृतीयाने दिवसें रोहिणी नक्षत्र यावे, ते दिवसथी कराय बे. उजमणे x शोकवृयुक्त श्रीवासुपूज्यस्वामिनी प्रतिमा करावीप्रति ष्टित करी देवगृहे स्थापवी. एकशोने एक मोदकढोकवा.
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(७१७) १ए मौनएकादशी नामा तप कहे जे:-अगीया र शुक्ल एकादशी सुधी निरंतर एक उपवासें करीश्रु तदेवतानी पूजा पूर्वक मौनपणुं धारण करी श्रुतदेवी आराधवाने अथै ए तप करीयें, उजमरों रूपाना घंट अगीयार तथा जातिजातिनां फल ढोयें.
२० सर्वांगसुंदर नामा तप कहे जे-जेनुं धारा धन करवाथी समस्त अंगने विषे प्रधान सुंदर पणुं होय तेने सर्वांगसुंदर तप कहियें. एने विषे चांदरडा पदने विपे श्रीवीतरागनी पूजापूर्वक पाठ नपवासं एकांतरें यायंबिल सहित करीयें, अने दमा, माईव, आर्जवादिक नियमोनो पण परिचय करीयें. जम णे चतुर्विध श्रीसंघ, देव, अने ज्ञाननी नक्ति करवी.
१ निरुजशिख नामा तप कहे :-निरुज एट ले नीरोगपणुं तेज जेना फलनी विवदायें शिखा ए टले चोटलीनी पेरें,अर्थात जेनाथी निरोगीपणानी प्राप्ति थाय तेने निरुजशिख नामा तप कहीयें.एने विषे अंधारा पखवाडीयामां एकांतरेंा आयंबिल अने उ पवास आठ करीयें,शोल दिवसें तप पूरूं थायं, अने गि जाननुं वेचावच करवानो अनिग्रह करीयें.
२२ परमनूषण तप कहे जे-जेना करवा थकी चक्रवर्ती आदिक महा पुरुषोने पहेरवा योग्य एवा उत्कृष्ट हार, कुंमल, केयूरादिक आनरण पामी यें, तेने परमनूषण तप कहीयें. एनेविपे निरंतर ब त्रीश आयंबिल करीयें, जो निरंतर न थइ शके, तो ए
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कांतरें पारणां करीने बत्रीश श्रायंबिल पूर्ण करीयें. नजमणे पोतानी शक्तिने अनुसारें श्रीवीतरागदेवने योग्य मुकुट तिलकादिक भूषण चढावीयें.
२३ खायतिजनक तप कहे बेः- जेणें करी या यतिशब्दे परजवें जे विशिष्टफलनुं जनक एटले न पजावनार थाय, तेथी एनु नाम पण प्रायतिजनक तप बे. एमां पण पूर्वोक्त रीतें लागत बत्रीश आयंबिल करीयें, जो लागठ न थाय तो एक दिवस पारं अने एक दिवस आयंबिल एम करीने बत्रीश पूरा करे, अने समस्त वंदनक पडिक्कमण, स्वाध्याय, साधु साध्वीनं वेयावच्च, इत्यादिक धर्मक्रियाने विषे बल ने वीर्यनी प्रवृत्ति सहित रहे, बल वीर्य गोपवे नही, ए रीतें करे. जमणे देवपूजा, पडिक्कमण, संघवेयावच्च करे.
२४ सौभाग्यकल्पवृक्ष नामा तप कहे बेः- जे सौभाग्यफलना दानने विषे कल्पवृक्ष समान होय तेने सौभाग्यकल्पवृक्ष तप कहीयें. एकांतरें उपवास, पन्नर उपवास ने पन्नर एकासलां करियें, एकास यांना दिवसें सर्वरस कामगुणित जमवुं. नजम
चैत्रमासें करी कल्पवृनां फल ढोकियें, तथा ए तप पूर्ण थये थके पोतानी शक्तिने अनुसारें एक था लमां नानाप्रकारनां फल तेणें कर विलसित जे शा खा, तेणे युक्त एवं चोखानुं कल्पवृद्ध करीने श्री वीतराग प्रागल मूकीयें.
२५ तीर्थकर मातृतप कहे बेः- श्रीतीर्थकरनी मा
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तानी पूजापूर्वक ए तप नादरवा शुद्धि सातमथी मांगी ने जादरवा गुंदि तेरश सूधी लागठ सात एकासयां करवां. एम सात वर्ष पर्यंत करवां. कोइक आचार्य त्रण वर्ष लगए सात एकासयां करवां कहे बे नजमणामां प्रधान चोवीश पक्कान्नना थाल यापवा. जे पुत्र स हित स्त्री होय, एवी चोवीश श्राविकाउने जमाडवी. पीलां वस्त्र करी पवां, मोटो महोत्सव करवो. ए जिनमाता नामा तप जादरवा महिनामां करियें. २६ समोसरण तप कहे बेः- ए तपमां एक एका सणुं, उपर एक नीवी पी एक प्रायंबिल, पबी उप वास करवो. एम करवाथी एक श्रेणी थाय. एवी चार ली करवी तेवारें शोल दिवस थाय. एमां बेल्लो न पवास पंजोसणना दिवसें यावे, एवी रीतें ए तप क खुं, ए तप समोमरणनी पूजा पूर्वक चार वर्ष पर्यंत की ते चोव दिवसें पूर्ण थाय. एवी रीतें समोसर
ना एकेक धारनो आश्रय करीने प्रत्येक हारने स्था नकें चार चार दिवसनुं तप श्रावणवदि १ श्री करे | उजमणे समोसरण पूजा, नवेद्य यालचार 'ढोके.
२७ नंदीश्वर नामा तप कहे बेः- नंदीसर डीप संबंधि जे प्रासाद बे, ते पट्ट उपर लखीने नंदीश्वरना पहनी पूजा पूर्वक पोतानी शक्ति माफक तप करवुं. ए मां दीवालीनी अमावस्याथी आरंजी उपवास करीयें. एम प्रत्येक श्रमावास्यायें तप करतां फरी दीवालीनी अमावस्या सूधी नंदीश्वरीपनां एक दिशानां तेर चै
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त्यनी अपेक्षायें तेर उपवास याय. फरी त्रीजी दीवा लीनी श्रमावास्याथी बीजी दिशिनी अपेक्षायें तेर उप वास करवा, माटे प्रत्येक महिनानी अमावास्यायें एकेको उपवास करे. एवी रीतें चार दिशाना बावन चैत्य श्री सात वर्षने वे महीने ए तप पूर्ण याय. हमणांना काले दीवालीनी अमावास्या तथा पूनम नावे वे उपवास करी एक वर्षमां पण ए तप पूर्ण करे बे. नजमणे नंदीश्वर हीपनुं मंगल बनावे, पूजा करावे, ज्ञानपूजा करे, गुरुनक्ति करे, मंगलनी पूजा करे, बावन बावन फल नालीयेर पूगी फलादिक व स्तु ढोके, बावन्न लोगस्सनो काउस्सग्ग करे.
२० पुंमरीकनामें तप कहे बेः- चैत्री पूनमना दिवसें पुंमरीक गणधरने केवलज्ञान उपनुं बे, माटे ए दिवसें एक उपवास अथवा एकासादिक तप करियें. यथाशक्तियें श्रीपुंमरीक गणधरनी पूजापूर्वक जक्ति क
यें. ए तप सात वर्ष पर्यंत करवानुं कहे बे. उजम ऐ नगद पुत्रिकाने अथवा अन्यने अगणित मंम क जमाडवा, साधु साध्वीने उधो, मुहपत्ति, वस्त्र त था गणित मंमक वहोराववा, सात घरने विषे अगणित मंमकनी लाणी करवी.
२५ प्रनिधि तप कहे बे:- घर देरासरें श्रीजिन देव पागल अथवा बीजा कोइ उत्तम स्थानकें चित्र स हित घट या पियें. पी तेमां प्रतिदिवसें मूठि जर चोखा नाखतां जश्यें ने प्रति दिवसें पोतानी शक्तिने अनु
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(७१) सारें एकासणुं बियासणुं प्रमुख तप करीयें. श्रीपर्युष पथकी पन्नर दिवस आगल ए तप मांझियें. ते पन्न र दिवस पर्यंत करतां पंजोसणने दिवसें ते कलश पू राइ जाय, अने तप पण पूर्ण थाय, तेवारे ते कलश उपर नालियेर राखी महोत्सव पूर्वक मंदिरमा लावी देव बागल राखी स्नात्र पूजा करे, झानपूजा करे. एम चार वर्ष पर्यंत करे. उजमणे त्रिपक्षिणी करी देव बागल मूकियें. गीतवाजिन करियें.
३० हवे चांायण तपः-ते यवमध्य अने वन म ध्य एवा वे नेदें . तिहां जेम चंमा शुक्लपदमा ए कमना दिवसथी प्रतिदिवस एकेकी कलायें वधतो जाय , तेम पडवाना दिवसे एक केवल, बीजना दि वसें बे कवल, एम चांडणे परववाडे प्रतिदिन एकेको कवल वधारतां पूनमना दिवसें पन्नर कवलनो थाहा र थाय. पडी अंधारिये पखवाडीयें चंमा पण प्रतिदि वस एकेक कलायें हीन थतो जाय. तेम इहां पण पडवाना दिवसें पन्नर कवल लही बीजना दिवसें चौद कवल लहीये, तेमज त्रीजना दिवसें तेर कवल.. एवीरीतें प्रतिदिवसें एकेको कवल उबो करतो अमा वास्यायें एक कवलनो थाहार करे.ए यवमध्य प्रति मा एक मास प्रमाणनी थाय. उजमणे रूपानो चं मा अने सोनाना बत्रीश यव ढोयें.
३१ हवे वजमध्य प्रतिमा तप कहे :-अंधारे पखवाडिये पडवाना दिवसें पन्नर कवल, बीजना दि
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(७२२) वसें चौद कवल, त्रीजना तेर, एम एकेकनी हानि करतां अमावास्यायें एक कवलनो आहार थाय. फरी अजवालिये पखवाडिये पडवाना दिवसें एक केवल, वोजना वे केवल, जीजे त्रण कवन, एम दिवसें दि चमें एकेका कवलनी क्षि करतां पूर्णिमायें पन्नर कवलनो याहार थाय. एम एक मासें वजमध्य प्र तिमा तप पूर्ण थाय. नुजन रूपानो चंमा अने सोनानुं वज आपq. कक्लनी संख्या प्रमाणे मोदक यापवा. देवपूजा, पुस्तकपूजा अने श्रीसंघy वात्स ल्य व तपमध्ये यथाशक्तियं करवू.
३२ आयंबिल वईमान नामा तप कहे :-प्र यम एक यांविल करीबीजे दिवसें पारण नपवास करे, पबी वे आंबिल उपर एक नपवास पनी त्रण
आंबिल पर एक उपवास, पनी चार आंबिल न पर एक उपवास,एम वधतां वधतांबेना एक शो आयं विल करीने तेने पारणे एक उपवास करे. तेवारें सर्व मनी एक शो नपवास थाय, अने पांच हजार ने प चास यायंबिल थाय. ए महातपर्नु आसेवन चौद वर्ष नपर त्रण महीनाने वीश दिवसें पूर्ण थाय.
३३ गुणरत्न संवत्सर नामा तप कहे जेः-ए तपन आसेवन करतां दिवसें नकडू आसनें रहेg, यने रात्रि वीरासने रहे, वस्त्र रहित थर्बु, ए तप शोल मास पर्यंत करवू. तिहां प्रथम महीने एकांतरें नप वास करवा, एटले एकेक उपवास अने उपर पार|
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(७२३) करवू, एम बीजामासें वे वे उपवासनी उपर पार' करवू, त्रीजा मासें त्रण त्रण उपवासनी नपर पार| करवू, चोथा मासें चार चार नपवासनी नपर पार| करवू, तेवारें याखा चोथा महीनामां चोवीश दिवस नपवासना याय, अने बदिवस पारणांना थाय. एम मासें मामें एकेका चढता उपवासें पारणुं करतां या वत् शोल महीना सुधी ए तप करीयें, तेवारें पन्नर,. वीश, चोवीश, चोवीश, पच्चीश, चोवीश, एकवीश, चोवीश, सत्तावीश,त्रीश, तेत्रीश, चोवीश, नवीश, अ हावीश, त्रीश, वत्रीश, ए अनुक्रमें शोल महीनांने विपे १०७ तपना दिवसो थाय ने. हवे पारणाना दिवसो प्रत्येक महीना महीनाना कहे . पनर, दश,
आत, ब, पांच, चार, त्रण, त्रण, त्रण, त्रण, त्रण, बे, वे, वे, वे, वे, सरवाले ७३ पारणां शोल मही नामां थाय. जे महीनामां अष्टमादिक तपना दिवस पूराय नही, तेवारें पागला महीनाना दिवसो लेवा. सरवाने ४० दिवसना शोल महीना थाय. निर्जरादि जे गुण तप जे रत्न ते एने विपे रह्या , माटे एने गुणरत्नसंवत्सर तप कहीयें ॥इति ॥
३४ श्रीचोवीश तीर्थकरना च्यवन, जन्म, दीदा, झान अने निर्वाण, ए पांच कल्याणिकना एकशो ने वीश दिवसोने विपे उपवासादि तप यथा शक्तियें क रवू. ए तप पूर्ण थयाथी उजमणे कनकसिंहराजानी परें चोवीशे जिनोनी प्रतिमा कराववी, तिलक चो
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वीश करावai, पक्वान्न चोवीश, बाजी, कूंपी, कचो ली प्रमुख पूजानां उपकरण ढोकवां च्यवन कल्या
के परमेष्ठिने नमः ए जाप १००० करवो. जन्में ईते नमः एनो जाप १००० करवो, दीक्षायें नाथाय नमः एनो जाप १००० करवो. ज्ञानें सर्वज्ञाय नमः एनो जाप १००० करवो ने निर्वाणने दिवसें पारंग ताय नमः ए जाप १००० करो तथा च्यवने साधर्मि कनी वात्सल्यता. जन्में गोल घृत यापीयें. दीक्षायें टोपरा गोल वेचीयें. ज्ञाने संघपूजा ने निर्वाणने दिवसें महोटी पूजा रचावीयें ॥
·
३५ लघु पंचमी तपः - पोप ने चैत्रमास वर्डिने अन्य महीना मांहेला गमे ते महीनामां साधु, सा ध्वी, श्रावक तथा श्राविकायें लघु पंचमी तप ग्रह
करी शुक्ल तथा कृष्ण पंचमीना दिवसें उपवास करतां एक वर्षमां पच्चीश पंचमीयो करवी. नजमणुं ज्ञानपंचमीना तप प्रमाणें करवुं.
३६. ज्ञान पंचमी तपः- ए तप पांच वर्ष ने पांच मास पर्यंत प्रत्येक महिनानी शुक्ल पंचमीयें न पवास करवो. तेवारें पांशठ उपवासें ए तप पूर्ण थाय. ए तप मागशिर, माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ ने
पाढ, एब महीना मांहेली गमे ते मासनी युक्त पंचमीयें ग्रहण करवुं. उजमणे पञ्चीश पुस्तक, चोग ठग जोडा पच्चीश, मिशांजणां पच्चीश, उतरी, वाटी, कमजी, पाटी, नवकरवाली, पूंजणी, वासकूंपी, पीत
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(७२५) लनां वतरणां, फरमरजोला, जेवण,कातरणी, पाली, कांबी, चंऽथा,चित्रित पाठांनां जोडां,सोनेरी बिंब, पा नां, सूर्यकांत, उवणी, नेहरणी, ए सर्व पञ्चीश पञ्चीश तथा नाणामां सोनश्या, रूपश्या, वह फदियां, बक्कड, मुर्गा,सर्व पांच पांच करतां पच्चीश नाणां, पुस्तक पागल ढोकवां. तथा पट्टसूत्रना दोरा पच्चीश.इत्यादिक झानोप करण ढोकवां. तथा पक्वान्न, नीलां सूकां जाति जाति नां फल, नालियेर, कदली, दाडिम, शदा, साकर, खांम, अंगनूहणां, धूपधाणां, बत्र, चामर, कलश, प्रारतिमंगल, जानर, घंटा, पडह, नेरी, मृदंग, दांमियादिक, तथा शिलामय, पित्तलमय, रत्नमय, सुवर्णमय, मुक्तामय, विद्यममय, इत्यादिक धातुना न विन बिंब जरावां. ए सर्व वस्तु पांच पांच एकठी करीयें. ए देव आश्रयी कह्यु. हवे पोषधशाला करा बवी,तथा पांच दीदा महोत्सव कराववा, पांच ध्वजा रोपण, पांच कनककलश, पांच प्रतिष्ठा, पांच यात्रा, पांच वार संघपति पद, आचार्यपद, सिंहासन,त्रांवा कूमी, त्रांबाना हांमा, धोतीजोडा पच्चीश, तथा कचो ली, प्रारीसा, रशीया, दीवा, थाल, कंसाल, तिं लक, कुंमल, मुकुट, चदु, बहेरखा, कचोलां, बीजपू र, तंउल, पूगीफल, चरवला, मुहपत्ती, ए सर्व पच्चीश पच्चीश ढोकवां. संघपूजा, साधर्मिकवात्सल्य, रात्रिजा गरण, संघने वस्त्रदान, पहेरामणी, धवलगीत गान, श्राविकाने साडीनी पहेरामणी,शृंगारदान इत्यादिक
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(७२६) झानोपनोग्य तया देवोपनोग्य अने संघोपनोग्यने माटे सर्वसार सार वस्तु लेवी.तथा सर्व प्रकारनांधान्य अने सुवर्ण, रूप्य. मणि, आदिक इव्य, ढोकवां. मतिझान, श्रुतझान, अवज्ञान. मनःपर्यव झान अाराधनार्थ करेमिकास्मग्गं अन्नब॥कही पच्चीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करतो
३७ श्रीमहावीर तपः-होतेर अईमासी, नव घनमासी, एक न मासी, त्रिमासी, वे अढिमासी, बवे मासी, वे दोढ मानी, वार एकमासी, न प्रति मा.दिन वे, महानप्रतिमा दिन चार, सर्वननरिमा दिन दश, एम नादि प्रतिमाना नपवास शोल तथा अनियह सहित पांच दिवसे कणी बमासी एक, व शेने गणत्रीश बह, बार अहम, ए रीतें श्रीमहावी रस्वामी बद्मस्थावस्थामां बार वर्ष ने साडा मास तप कयुं, तेमां पारणां ३४ए कस्यां, ते रीतें तप करी ने पनी उजमणे अष्टप्रकारी पूजा, गोधूम मण एक, घृतमण अडधो,तथा यथाशक्तं श्रीसंघर्नु वात्सल्य करवं.
३० गौतम पडघो तपः-पन्नर पूर्णिमा पर्यंत ए काशनादि तप यथाशक्तियें करवां. गौतम स्वामीने द्र धपाकनुं नैवेद्य धरवं. अष्टप्रकारी पूजा करवी. श्री गौतमजीनी प्रतिमाने अनावें श्रीमहावीर प्रतिमानी पूजा करवी. नद्यापनें रूपानो पडघो खीरें जरीने श्री गौतम अथवा वीरनी प्रतिमा आगल ढोकवो. श्रीगु रुने जोली अने पात्रां आपवां.
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(७२७) ३ए श्रीतीर्थकर च्यवन जन्म कल्याणक तपः-ए केक तीर्थकरना च्यवन दिवसें एकेको उपवास करी यें. तेमज जन्म आश्रयी पण पृथक् पृथक् उपवास करतां चोवीश अडतालीश नपवास थाय.
४० श्रीतीर्थकर दीदा तपः-वीश तीर्थकरें बह तप करयां, माटे तेमनी दीदाने दिवसें बहबह तप करवां. नपवास चालीश थाय, अने श्रीवासुपूज्य आश्री नपवास एक तथा श्रीमनिनाय अने पार्टी नाथ आश्री नपवास त्रत्रण करवा. एवं ४ नप वास तथा श्रीसुमतिनाथ आश्री एकासाणं करवू. नजमणे एकासणा पूर्वक मोदक ४७ तथा फल ४७ ढोकवां, अने अष्टप्रकारी पूजा करवी.
४१ श्रीतीर्थकर केवलझान तपः-श्रीयादिनाथ, मन्निनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, ए चार तीर्थकर याश्री नपवास,त्रण त्रण करवा. अने श्रीवासुपूज्य
आश्री एक उपवास तथा शेप गणीश तीर्थकर आश्री वेबे नपवास करवा. सरवाले ५१ नपवास करवा. नजमणे मोदक बावन तथा नैवेद्य, बलि, फलादि, पट विकति ढोकवां. अष्टप्रकारी पूजा करवी. .
४२ तीर्थकर निर्वाणतपः-श्रीयादिनाथ निर्वा पने दिवसें उपवास न करवा. श्रीवीरप्रनु निर्वाणे उपवास वे, अने शेष तीर्थकरने निर्वाणे एकांतरे उपवास त्रीशं त्रीश करवा. नजमणे तिलक चोवीश, पक्वान्न चोवीश, फल चोवीश, श्रीजिन आगल
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(७२) ढोकवां, तथा यथाशक्तियें श्रीसंघनी पूजा करवी.
१३ मोद दंगकतपः-गुरुना हाथमा दामो हो य, तेने मुष्टियें करी जरीयें, जेटली मुष्टि थाय, तेटला एकांतरें उपवास करवा. अथवा बीजो विधि कहे :-एकासए वार, नीनी नव, आयंबिल पांच, नपवास एक. एवं सत्ताधीश दिवस तप करवं. बेहडे उपवासने दिवमें परिधायनिका चोखानो था ल तथा नालिकेरादिक फलनी,दांमानी पूजा करवी. उजमणे गुरुने वस्त्रदान आपy. ... .४४ दमयंती तपः--ए तप नलराजानी स्त्रीयें प्रा गल्या वीरमतीने नवें यादमुदतुं, ते भावी रीतें केःएकेक जिन आश्री वीश आयंबिलनी एकेक लो करीयें. तेवी चोवीश उनी थाय अने ए महोटुं तप ने ते जणी एनी साथें एक उती शासन देवतानी मली पच्चीश उत्तीनां पांचशे आयंबिल थाय, पार गाना दिन चोवीश थाय, उजमणे चोवीश जिन पूजा पूर्वक चोवीश तिलक तथा स्नात्रादि पूजा विशेष कर वी. श्रीजिन ागल पांचशे ने चार मोदक ढोकवा, अथवा चोवीश जिन प्रत्ये एकेक मोदक ढोकवो.
४५ कणोदरी तपः-शहां पुरुषने बत्रीश कवलनो आहार, अने स्त्रीने अहवीश कवल आहार कह्यो जे, तेमांथी न्यून करीने बाहार लीये, ते लोक प्रवा हें कणोदरी तप जाग. तिहां पुरुषे प्रथम दिवसें बात कवल. बीजे दिवसें बार कवल, त्रीजे दिवसें शोल,
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(७२) चोथे दिवसें चोवीश अने पांचमे दिवसें एकत्रीशक वसनो आहार करवो. एम एकाएं कवल पुरुषने तथा स्त्रीने ७७ कवल लेवा. नजमणे जिनपूजा पूर्वक कवल संख्या प्रमाणे मोदक ढोकवा.
४६ मौन एकादशी तपः-मार्गशिर गुदि ११ ने दिवसें एक नपवास करीयें, एवा अगीयार वर्ष पर्यंत अगीयार उपवास करीने नजमणे अगीयार अगीयार वस्तु अने फलादिक पण तेटलांज ढोईयें ॥
४७ अगीपार अंग तपः-अगीयार शुक्ल पक्ष्नी अगीयारशे एकेक नपवास अगीयार महिना पर्यंत श्रुतदेवता अाराधवाने अर्थे करीये. उजमणे रूपा ना घंट अगीयार तथा अगीयार अगीयार फल. झानपंचमीना तपमा जे लव्यां ले ते सर्व ढोकवां.
हादशांगी तपः-छादशांगी तप पण तेमज शुक्त पदनी बार बारश पर्यंत बार महीना करवू, न जमणे बार बार वस्तु ढोकवी.
४ए चौद पूर्व तपः-चौद शुक्ल चतुर्दशी पर्यंत एके क उपवास निरंतर करीयें, महीने महीने ज्ञान अने ज्ञानवंतनी पूजा करीयें, एम चौद मास तप कस्या पली नजमणे पाटी, पोथी, उवणी, कवली, वीटांग गां प्रमुख ज्ञानोपगरण सर्व चौद चौद आपीयें ॥
५० धर्मचक्रवाल तपः-चोवीश आयंबिल निरंतर करीयें, जमणे रौप्यमय चक्र आपीयें.
५१ अष्टापद तपः-श्राशोव दि अमावास्याथी ए
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(७३०) कांतरें आठ उपवास करीयें, पारणे एकासj करीयें, एम आठ वर्ष तप करीयें. नजमणे अष्टापदनी पूजा तथा घृत मय गिरिनी रचना. सुवर्णमय निसरणी आठ पावडीनी पाठ, तथा पक्कान्न चोवीश तथा फ लादि सर्व जातिनां चोवोश चोवीश ढोकवां. वीजी सर्व वस्तु संख्यायें आत आत ढोकवी॥
५२ वडं समोसरण तपः-प्रथम नपवास चार करी पारणे एकासणुं अथवा वेथासणुं करवं. एवा चार वखत चार चार उपवास करीयें, पंजोसणने दि वमें ए तप पूर्ण करीयें. एम चार वर्ष सीम करतां चोशठ उपवासें ए तप पूर्ण थाय.
५३ पंच मेरु तपः-एमां एकेका मेरु पाश्री पांच पांच नपवास एकांतरे निरंतर करतां पचीश नपवा स अने पच्चीश पारणां मनी पच्चास दिवसें ए तप पूर्ण थाय. नजमणे सोनानो मेरु करीयें, अने पच्ची श नेदें पक्कान्न ढोयें.
५४ अकुःख दुःखित तपः-प्रथम गुक्तपदना प डवाने दिवसें एक नपवास करवो, वली वीजा शुक्ल पदनी बीजने दिवसे एक उपवास करवो, वली त्री जा शुक्लपदनीत्रीजने दिवसें एक नपवास करवो. एम पांच वखत आराधन करवाथी पन्नर नपवास थाय. तपने दिवसें श्रीषनजिनने अखंम् माला चडाववी. नविन नविन नैवेद्य ढोकवू. अने जो ए पन्नर दिव सना उपवासमांथी कोइ पण उपवास नलीयें, तो ते
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(७३१) सर्व तप व्यर्थ थाय. फरीथी करवू पडे. उजमणामां रूपानुं वृद्ध करावयु, तेनी शाखामां सोनानुं पाल' करावीने मूकबुं. तेने रेशमनी पाटीथी नरी नपर रेशमी वस्त्रनी तलाइ नावीने तेमां सुवर्णमय पूतली करीने सुंवारवी.श्रीरुपनदेवनी पूजा करवी.
५५ सत्तरीसयजिन तपः-एकेका जिन अाश्रयी एकेका नपवास एकाशनादिक तप एकांतरें करतां १७० एकाशनादिक करवां, उद्यापने जिनपूजा पूर्व क १७० श्राविकाने जोजनादि आपबुं, तथा लाडु १७० ढोकवा. शक्तिने अनावें एकांतरें उपवास.अ थवा एकाशनादिक न थ शके तो चूटक करवा. ___ ५६ अमृताष्टमी तपः-गुक्तपदनी आठ अष्टमी योने दिवसें आयंबिल करवां. देवपूजा करवी, उजमणे दूधे नरेला घृतनो कलश एक, कापडं एक, एक मण मोदक, जल गाडु एक, ढोकवां.
५७ अखंझ दशमी तपः-दश गुक्तपदनी दश द शमीने दिवसें एकाशनादिक तप करवं. अखंम अ ननुं नोजन कर. उजमणे धान्य दश जातिनां तथा फलादि अखंम देवगृहे ढोकवां. कोरं वस्त्र, संघपूजा तथा यथाशक्ति साधुने दान वगेरे आपवां.
॥ हवे निदा नियम तप चार प्रकारे कहे जे ॥
५७ सप्त सप्तमिका तपः-एमां सात दिवसनी एक उली. एवी सात उली करवाथी ४५ दिवसें पूर्ण थाय. दाति १६ ए वे प्रकारे ने तेमां पहेला सप्त
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कमां प्रतिदिन एक निदा लेवी. वीजा सप्तकमां प्र तिदिन वे निदा लेवी. एम प्रत्येक सप्तकें एकेक नि का वधारतां सातमा सप्तवें प्रतिदिन सात सात नि का लेवी, तेवारें सरवाने ६ दाति थाय.
ए अष्टाष्टमिका तपः--एमां पण पूर्वोक्त रीतें प्र त्येक अष्टकें एकेक निदा वभारतां तप दिन ६. श्र ने दाति २ थाय. एब प्रकार जागवा. . ६० नवम नवमिका तपः-एमां पण नक्त ने तप दिन ७१ अने दाति ४०५ थाय. ए वे प्रकार ___ ६१ दशम दशमिका तर.-ए पण उक्त प्रकारे तप दिन १०० अने दाती ५५० ए चारे तपमा कह्या प्रमाणे निदा लेवी. नही कां तपनो जंग थाय.
६२ कर्म चतुर्थ तपः-प्रथम एक अहम करी पबी एकांतरें शात उपवास करीने वली बेहखं एक अह म एटले त्रण उपवास करी पारगुं करीयें, तेवारें बारा उपवास अने बारात पारणां मली चार मास ने आठ दिवसें तप पूर्ण थाय , नजमणे आठ शा ‘खा सहित रूपानुं रद तथा सोनानो कूहाडो मूकवो अने श्रीसंघर्नु वात्सल्य करवू.
६३ शिवकुमार बेला तपः-एमां बार वेला लागत अथवा लूटक करीयें. पारणें आयंबिल करीयें.
६४ कर्मचक तपः-प्रथम एक अहम करी पनी एकश उपवास एकांतरें करवा. अने अंतें एक अहम
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( ७३३ )
करीयें, तेवारें ६७ उपवास अने ६३ पारणें मली चार मास ने दश दिवसें ए तप पूर्ण थाय ॥
६५ बत्रीश कल्याणक तपः - प्रथम एक अहम क रीने पal एकांत बत्रीश उपवास करवा. वली यंत मां एक न करीयें, तेवारें आडत्रीश उपवास य ने चोत्रीश पारणां मली वे महीनाने बार दिवसें ए तप पूर्ण थाथ, उजमणे जिनगृह मध्ये बत्रीश बत्री श वस्तु ढोकवी. ए तप वसुदेवमिमां कयुं ले.
६६ लघुधर्मचक्रवाल तपः- एमां प्रथम एक प्र हम करी पक्षी साडीश एकांतरें उपवास करवा य ने वेडे पण एक ग्रहम करवुं. एम त्रेताली उपवास अने ३० पारणां मली ८२ दिवसें ए तप पूर्ण याय, नजमणे जिनपूजा पूर्वक रौप्य सुवर्णमय धर्मचक्र ढो कवुं, संघनक्ति, साधुदान, ज्ञानपूजा करवी.
६७ एकावलि तपः- दिन ३३४ पारणां ८८. ए त प रत्नावली तपना यंत्रनी पेतें करवुं, पण एटलुं वि शेप जे या आठ बहने स्थानकें चोथ करवी. तथा पदकनी चोत्रीश बहने स्थानकें एकेक उपवास करवो, ए तप शुक्पथी प्रारंभ कराय बे.
६० नवकार पदार मान तपः - प्रथम पढ़ें सात अक्षरना सात उपवास, बीजे पढ़ें पांच, त्रीजे सात, चोथे सात, पांचमे नव, बहे याव, सातमे याठ, या ठमेव, ने नवमे आठ एवं सर्व मली अडराठ उपवास, एकांतरें करवा. नजमणे रूपानां पत्रां उपर
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( ७३४ )
सुवर्ण दरें पंचपरमेष्टि लिखित, प्रणव नमः पूर्वक ढोक, तेमज लाडु ६७ तथा शासन अधिष्ठायिकने मोदक एक, एवं ६८ मोदक टोकवा ॥
६ दश प्रकारें यतिधर्म नपः- शुक्लपढ़ें एकांतरें दा उपवास करवा. देवपूजा करा. साधुने त विगय.
७० पंच परमेष्टि तपः- प्रथम दिवसें उपवास, बी जे दिवसें एकलवाएं, त्रीजे दिवसं ग्रायंबिल, चोथे दिवसे एकास, पांचमे दिवसें नीवी, बहे दिवसें पु रिम, सातमे दिवसें वियासणं, ए सात दिवसें एक उली याय. एवी पांच जनी करवायी पत्रीश दिवसें तप पूर्ण थाय. उजमणे पंचतीर्थी विंब जराव. रि हंत, सिद्ध, प्राचार्य उपाध्याय ने साधुनी नक्ति कर वी. मोदक पांत्री तथा बीजी वस्तु पांच पांच ढोकवी.
७१ चतुर्विध श्रीसंघतपः- प्रथम वे उपवास क रीने पी एकांतरें गाव उपवास करवा, नजमणे चतुर्विध श्रीसंघनी पूजा करव!.
७२ निर्वाण दीपक तपः- ए तप त्रण वर्ष पर्यंत प्र त्येक दीवालीयें चौदश तथा अमावास्यायें मली वे वे उपवास करवा, एवं व उपवास याय. अहोरात्र श्रीवीर यागल घृतनो दीपक सूर्यास्तथी नदय ने उदयथी
स्त पर्यंत करवो. रात्रि जागरण करवो, नजमणे साधर्मिकनुं वात्सल्य करवुं. साधुने दान यापधुं, ए तप करनार जन्मांतरें पण ग्रंथ थाय नही.
१३ घन तपः - तिहां द्वि पर्यंत घन तपमां प्रथम
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(७३५) एक उपवास, पबीबे नपवास, वली एक, पनी बे, वली बे, पबी एक, वली एक, पडी बे, एम बार उप वास अने आठ पारणां मली वीश दिवसें ए तप पूर्ण थाय, जिनपूजा पूर्वक तप करवं. मोदक वीश ढोक वा. एवीरीने त्रिपर्यतादिक अनेक प्रकारे घन तप करवं. ते सर्वयंत्रोनी स्थापना' जोड्ने करवां.
७४ श्रेणि तपः-एक नपवास करीन पारएं कर बुं. पनी वे उपवास करीने पारणुं करबु. तेवारें त्रण. उपवास अने वे पारणां प्रथम श्रेणियें थाय. वीजी श्रेणियें एक वे,त्रण, त्रीजी श्रेणियें एक,बे,त्रण,चार, चोथी श्रेणियें एक,वे,त्रण, चार,पांच, पांचमी श्रेणियें एक, वे, त्रण, चार, पांच, ब. बही श्रेणिये एक, वे, त्रण, चार, पांच, ब. सात. एवं ब श्रेणीना नपवास ७३ अने पारणां २७ मली ११० दिवसें तप पूर्ण यया पनी उजमणे रूपानुं सात खूणुं धवलगृह करवू अने सुवर्णमय निसरणी करवी.
७५ वर्ग तपः- एक, वे, वे, एक, वे, एक, एक, वे. ए बार उपवासें प्रथम ली जाणवी. पर। ५,१,१,२,१,२,२,१, ए बीजी पंक्ति जाणवी. पनी २,१,१,२,१,२,२,१,ए त्रीजी पंक्ति जागवी. पड़ी १,२,२,१,२,१,१,२, ए चोथी पंक्ति जाणवी. पड़ी २,१,१,२,१,२,२,१, ए पांचमी पंक्ति जाणवी. पनी १,२,२,१,२,१,१,२, ए बही पंक्ति जाणवी. पली १,२,२,१,२,१,१,२, ए सातमी पंक्ति जागवी. पडी
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( ७३६ )
२,१,१,२,१,२,२,१, ए आठमी पंक्ति जाणवी. एपि त वर्ग तपो दिन ए६ ने पारणां चोशठ, सर्व मली मा स पांच ने दिन दश याय. उजमणे जिनपूजा, करवी मोदक १६० ढोकवा. साधु ने संघनुं वात्सव्य करवुं.
७६ परतपालि तपः- पंच वर्ष यावत् श्रीवीरकल्या किथी आरंजी उपवास ऋण करवा. पबी बत्रीग़ नी वी करवी. बेहले उपवास त्रण करवा. वर्ष वर्ष प्रत्ये एक सनी लापसी स्थाले पोलि करीने तेमां विवि ध सुरनि घृत शेर एक प्रदेषीने ढोकj.
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७७ त्रिपर्यंत घन तपः- १,२,३ ए प्रथम पंक्ति २,१, ३. एबीजी पंक्ति, ३, २, १. एत्रीजी पंक्ति १,३.५. ए चोथी पंक्ति, २,३,१. ए पांचमी पंक्ति, ३.१,२. ए बही पंक्ति, १, २, ३ ए सातमी पंक्ति, ३, २,१. ए ग्रामी पंक्ति, २, ३.१. ए नवमी पंक्ति. सरवाजे तप दिन ५४ पारणां २७ सर्व दिन ८१ नजमणे साधु नी नक्ति तथा श्रीसंघनी जक्ति करवी.
७८ लाख पडवे तपः - श्री व ईमानना शिष्य गौत मनुं उपवासादिकें करी आराधन कर. कार्त्तिकशुदि एकमने दिवसें ए तप कर. ते प्रत्येक प्रतिपदायें एकवर्ष पर्यंत करवुं. उजमणामां चोखा माणां पांच
ने पाली वे, तथा मग सेई एक ने पाली बे, मठ सेइ एक उपर पाली वे, डद माणां पांच, जवार मां बने पाली वे, गोधूम सेइ वे, चोला से त्रण, चणा से पांच, तिल पाली सात, जब सेई सात,
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(७३७) . वाल से आठ, कांग माणांत्रण, कोश्वामाणांत्रण ढोकवां. यथाशक्ति दान पूजा वगेरे करवां.
ए लघु संसार तारण तपः-प्रथम त्रण आयं बिल करी चोथा दिवसें उपवास करवो, एवी रीतें निरंतर त्रण वार करतां, बार दिवसें तप पूर्ण थाय. ___७० वृक्ष संसार तारण तपः-नपवास त्रण करी ने पारणे आयंबिल करीयें, एम निरंतर त्रण वार करीयें, तेवारें नव नपवास अनेत्रण पारणां थाय,सर्व मलिने बार दिवसें तप पूर्ण थाय. नजमणे रूपामय वहाण दीर समुश्मांतरतुं मूकवाने बदले दूधमां त रतुं मूकवं. मांहे मोती विशुम नरवां.
७१ अहवदशमि तपः-प्रत्येकवर्षनी नादरवा शुदि दशमीना दिवसें यथाशक्तिये उपवासादिक करीने अं बिका देवी पासें संगीतादिकथी रात्रिजागरण करवू. नालियेर, केरी, मोदकादिक अंबाजी पासें ढोकवां,बी जे दिवसें साधर्मिकने जमाडी साधुने दान यापी पार
करे. अंबा देवीने कंकुनी पील करवी, अंजन करवं. तेम पोतानेपण अंजन करवू. अने रेशमी चरणीयो, कांचली, चंडु तथा चढु देवीने चडावीयें, दीपक करवा. तप करवू, ते दिवसें ब्रह्मचर्य पालवं. एम दश वर्ष पर्यंत करवू. तेमां एटलुं विशेष जे फलादिक पहेला वर्षे चडावीयें, ते करतां बीजे वर्षे बमणां,त्रीजे वर्षे त्रिगुणा एम यावत् दशमे वर्षे दश गुणां ढोकवां.
७२ हारतपः-प्रथम वे उपवास करीने पड़ी
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. (७३०) एकासणांतरित उपवास सात करवा, वली उपवास त्रण करीने फरी एकासणांतरित उपवास सात करवा. प्रांते नपवास बे करवा. एवं तपोदिन एकवीश अने पारणां सत्तर थाय, नजमणे सुवर्ण, माणिक, मुक्ता फल, विम, रजत, चोखला, पदक काहलिका संयुत हार श्रीवईमानजिन आगल ढोकवो. अथवा टंका वली आजूषण श्री माहावीरने कंठे धरQ. '७३ अष्टकोत्तर प्रगति तपः-आठ कर्ममांझाना वरणीयनी नुत्तर प्रकृति पांच, दर्शनावरणीयनीनव, वेदनीयनी वे, मोहनीयनी अमावीश, आयुःकर्मनी चार, नामकर्मनी एकशो नेत्रण,गोत्रकर्मनी बे,अंतरा यकर्मनी पांच,सर्व मली १५७ प्रकृतिना १५७ उपवास एकाशनांतरें करवा. एटले एक उपवास पनी एक एकासj एम १५७ नपवासें एक उली थाय. तेवी आठ उली करवी.नजमणे एक शो अहावन्न अहावन्न वस्तु तथार ५७ मोदक ढोकवा. झाननी पूजा करवी, साधुन दान आप.
G४ कंपन संवत्सरी तपः-एकाशनांतरित ३६० उपवास करवा, उजमणे रूपानो घट शेलडीना रसथी नरीने देव आगल ढोकवो.अने मध्यना बावीश तीर्थ कर प्राश्रयी २४० उपवास एकाशनांतरित करवा.
७५ अष्टमासिक तपः-एमां एकाशनांतरित २४० नपवास करवा, उजमणे २४० मोदक ढोकवा.
७६ पट्मासी तपः-एकाशनांतरित यथाशक्तं १७०
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( १३५) उपवास जेवीरीतें निर्वाह थाय, तेवीरीतें करवा,नद्या पनने विषे १७० मोदक ढोकवा. ____ दीरसमुश्तपः-ए तप पर्युषण पहेलां आ दरीयें एकासणां प्रात, उपर एक उपवास करवो. उज मणे खीर खांम अने घृतें नरेलो थाल ढोकवो, सा धर्मिकनुं वात्सल्य, साधुने दान तथा ज्ञानपूजा करवी. ____G सात सोरव्य, अाठ मोग्य तपः-एकासणां सात करी नपर एक उपवास करीये, उजमणे आठ मोदक अर्पण करवा. तेमां पाठमो मोदक चतुर्गुणो करवो. शोल खाद्य ढोकवां, झानपूजा करवी. .
नए शत्रुजय मोदक तपः-पुरीमट, एकासगुं, नी वी, आयंबिल, उपवास,ए पांच वानां पांच दिवसें करी तप पूर्ण करीयें, नजमणे पांच मांणाना मोदक पांच मुशसहित देव आगल ढोकवा, ज्ञानपूजा करवी.
ए० मतांतरें दश पञ्चरकाणतपः-एक उपवास, एकास', एकलशीथु, नीवी, एक कवल, एकलाj, एक दित्ति, आयंबिल, एक घरं, एक अलेवाडो नीवी, एम दश दिवस पर्यंत तप करवो नजमणे मोदक दश लावंवा, अष्ट प्रकारी पूजा करवी, झानपूज करवी.
ए स्वर्ग स्वस्तिक तपः-एमां चार एकासणां करी नपर एक उपवास करीयें. नजमणे पांच धान्यनो स्व स्तिक पूरवो,पांच धान्य मण मण सेवां.झान पूजा करी.
एश् मतांतरें घनतपः-हिपर्यंत दिन बार, पारणां आठ सर्व दिन वीश. त्रिपर्यंत दिन चोपन, पारणांस
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( ७४० )
तावीश, सर्वदिन एकाशी. चतुःपर्यंत दिन १६०. पा ६४. सर्व दिन २२४. पंचपर्यंत घनतप दिन ३७५. पारण १२५. सर्व दिन ५००. पटूपर्यंत दिन ७५६ ने पारणां २१६. सर्व दिन ९७२. पारणां नीविथी करवां.
३ मुकुटसप्तमी तपः- पाढ वदि सातमने दिवसें प्रथम उपवास करी श्री विमलनाथनी पूजा करवी. बीजो कार्त्तिक वदि सातमे उपवास करी श्री
दिनाथनी पूजा करवी. मागशिर वदि सातमे उ पवास करी श्रीमहावीरनी पूजा करवी. पोप वदि सात में उपवास करी श्रीपार्श्वनाथनी स्नात्रपूर्वक पूजा करवी. नजमणे लोकनालिनी पूजा करी उपर मुकुटस्थानें रहेला शिवक्षेत्रनी जिनावलीने सुवर्ण रत्नघडित मुकुट धराववो. जिनजिनप्रत्यें सात सात फोफल, तथा सात सात लाडु ढोकवा, गुरुनी पूजा करवी, तथा ज्ञानपूजा करवी.
ए४ अंबिका तपः-पांच कृष्ण पंचमीयें श्रीनेमी श्वर पूजा पूर्वक विकानी पूजा करी यथाशक्तियें एकाशनांदिक तप करवुं नैवेद्य तथा फल ढोकवां. उजमणे साधुने नवां वस्त्र, अन्न, पान, श्रापी प्रति लाजवा. अंबानी मूर्त्ति वे पुत्र सहित तथा श्राम्रवृक्ष सहित कराववी. पी तेनुं पूजन करवुं.
५ श्रुतदेवता तपः- शुक्लपदनी एकादशीने दि वसें उपवास करवो. एवी अगीयार एकादशी पर्यं त करवो. जे दिवसें तप करयुं, ते दिवसें मौन रहेवुं.
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( ७४१ )
श्रुतदेवतानी पूजा करवी. उजमणे पूजा परिधायनि का करवी. पोताने घेर श्रुतदेवतानी मूर्त्ति प्रतिष्ठित करीने पूजवी, ब विगय ढोकवां.
६ माणिक प्रस्तारिका तपः- शोशुदि प्रगीया रशें उपवास, बारशें एकासणं, तेरों नीवी, चौदरों आयंबिल, पूनमें उपवास करवो. ए प्रथमरीति कही. वे बीजी रीति कहे बे. शोशुद्धि वारशें खायंबिल, तेरशने दिवसें नीवी, चौदरों एकास ने पूर्णि मायें पण एकास कर. ते पूनमने दिवसें प्रजातें सूर्योदय यया पहेलां प्रातःकालमां स्नान करीने पोताना हाथना खोबामां नूपण, एक नालियेर, यत लइने महोत्सव पूर्वक जिनप्रासादने विषे प्रथम प्रदक्षिणा करीने जिनवरपासें खोबामां रहेली सर्ववस्तु ढोकवी. बीजी प्रदक्षिणामां बीजोरुं ढोकतुं, त्रीजी प्रदक्षिणामां सपत्र पूगीफल ढोकवुं. चोथी प्र दक्षिणामां बकको ढोकवो. सात धान्य ढोकवां तथा लवण, कापड, कुसुंब, कपास, सुंहाली १०८, बेहेडुं एक, एकशो शोल दीवा करवा. जमणे रूपानुं कोडियुं अने सोनानी वाट कराववी.
९७ गणधर तपः - श्री वर्धमान जिनना गौतम प्र मुख गीयार गणधरने अगीयार उपवास अथवा प्रगीयार यायंबिलें करी आराधवा. नजमणे गुरुने अगीयार वेश यावा. संघपूजा करवी.
८ पद्मोत्तरतपः- नव कमल एटले पद्म बे. ते ए
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( ७४२ )
केक पाठात उपवास करवा. नजमणे उ दलनुं सुवर्ण कमल कर । तेनी नपरें गौतमस्वामी या लेखीने देव श्रागत मूक्या. ज्ञानपूजा करवी. विवोधितः यायंबिल त्रण, नीवी उपवास एक करवो. न
त्रण. एकाणां त्रण
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जमणे तेर मोदक पुस्तक ग्रागल ढोकवा. १०० प्रागमोक्त केवल तप-प्रायंगल दश ने उपवास एक करवा. नजमणे मोदक गीवार, नाजीर गीयार, तथा कापडुं एक, ए सर्व पुस्तक आणल ढोकवां. श्रीजिनः अष्टप्रकारी पूजा करवी. १०१ रत्नरोहण तपः - एकाशन एक, नीवी एक. त्र्यायंबिल एक उपवास एक ए प्रथम जेली, प नीवी, प्रायंविल, उपवास ने एकाशन. एबीजी चली. पती श्रायंबिल, उपवास, एकासन, नीवी, ए त्रीजी नेली. पी उपवास, एकासण, नीवी, खायं बिल, ए चोथी उली य ने प्रांतें बेहली एक व पवास, एक विकृति एकासन, एक नीवीता रहित नीवी, एक आयंबिल, ए पांचमी उलीयें तप पूर्ण य या पती नजमणे रत्नमय नोकरवाली पांच, रत्नमय स्थापनाचार्य पांच, रत्नमय विंव पांच, मोदक वीश, एटलां वानां पुस्तक आागल ढोकवां. ए तप करवाने दिवसें ब्रह्मचर्यसहित ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनुं प्राराधन करवुं पारणाने विपे गुरुनी अंगपूजा य थाशक्तियें करवी तथा अष्टप्रकारी पूजा करवी. ए
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(७४३) तप करवाथी संतानप्राप्ति, निर्मलनेत्र अने तप कर नारनी स्त्रीने गर्नत्राव थाय नहिं ए तप त्रण वर्ष प यंत करवू. एनो आरंज आशो शुदि पंचमीथी करवो.
१०२ सिदिवधूकंठाजरण तपः-प्रथम वे नपवा स, पनी एक, त्रण, एक, बे, एम नव उपवास करी नजमणे नव मुक्ताफल ढोकवा. ज्ञानजक्ति करवी.
१०३ पदकडी तपः-प्रथम एक नपवास, पड़ी बे नपवास, पड़ी एक नपवास. एव चार नपवास करी उजमो मोती अने परवाला ढोकवा.
१०४ बह तपः-बह २२ए करवां तेवारे ४५७ पवास थाय उजमणे ४५७ मोदक ढोकवा.
१०५ कल्याणिक तपः-जिन जन्मकल्याणकथी प्रारंजीने एकांतरादि नपवास तेम दीदादिकल्याणकें पण करीयें. जेम हलो उपवास कल्याणक तिथियें
आवे. तेम करीयें. नजमणे थाल चोवीश, पहेरामणी चोवीश, नदुण चोवीश, तिलक चोवीश ढोकवां.
१०६ मेरु कल्याणक तपः-श्रीयादीश्वरनु. एमां ब उपवास एवी रीतें करीयें, के जे वर्षे मेरुकल्याणक करीये, ते वर्षे प्रथम तो लागत त्रण तेलां करीयें, ने पारणे पारणे बियासणुं करीये. पबी वली लागत एकांतरें उपवास न करीयें. जोत्रण तेलां पहेलां करी शके नही, तो,पहेला बे तेलां करीने पनी मेरु कल्या एक महाशुदि मध्ये त्रीजुं तेलु तेहीज वर्षे करे. १०७ कमलनी उनी तपः-एकांतरें आठ नपवा
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(७४४) सनी एक उली एवीनव मलि एकज वर्षमा करवी.न जमणे रूपानां तथा सोनानां नव नव कमल ढोयें.
१७ अशोकद तपः-याशो मासें उपवास पन्नर एकासणां पन्नर करीयें.गजमणे अशोकवृत करावीयें.
१०ए चायण तपः-शुक्ल पडवाथी आरंनीने दिन पनर सीम एकेक उपनाम अने एकेक आयंबिल करीयें. नजमणे लाडु पन्नर तथा रूपानो चंड्यापीयें.
११० सूरायण तपः-कृष्ण पडवाथी आरंनीने दिन पन्नर लगे एकेक नपवास अने एकेक आयंबिल करीयें. नजमणे लाडु पन्नर तथा रूपानो सूर्य आपीयें.
१११ तीर्थकर श्रीवईमान तपः-पहेला तीर्थक रनुं आयंबिल अथवा नीवी एक करवी. एम बीजा तीर्थकरनी बे करवी. एम अनुक्रमें वधारतां चोवीश मांनी चोवीश नीवी करवी. फरी पाबा वलतां चोवीश मानी एक करवी,तो पार्श्वनाथनी वे करवी.एम नत्कष्ट में वधारतां वधारतां यावत् प्रथम तीर्थकरनी चोवीश करवी. अने ते ते दिवसोमां ते ते तीर्थकरोनी विशेष पूजा करीयें, एम बसो नीवी अथवा आयंबिल थाय.
११२ लद नमस्कार जाप विधि कहियें .यें. पूर्वे अष्टप्रकारी पूजा करीने देव वांदिने जिननी पासें पंच परमेष्टिनां गुणणां गुणवानो प्रारंन करवो, प्रथमपद जप पूर्ण थाय, त्यारें चंदननुं तिलक नगवानने करवू, हितीय पदने विषे पुष्पमाला, तृतीयपदने विषे कपू रनी पूजा करवी. चतुर्थ पदने विषे अदत ढोकवा.
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(७४५) पंचमपदने विषे धूप धाणुं करवं. नमस्कार पूरा थाय त्यारे नगवानने तिलक करवं. एम ज्यारें हजार जप सं पूर्ण थाय,त्यारे शकस्तव पूर्वक अदत नैवेद्यादिक दान करवू. एम पच्चीश सहस्त्र पूर्ण थये बते साधु संविनाग अने साधर्मिक नक्ति करवी. एम नूमिशयन एकाशन पञ्चरकाण त्रिविधाहार, ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक सद जप करवो, अने ज्यारे सहस्त्र जप थाय, त्यारे नालि येर जगवान पासें ढोकवं. अक्त दान वगेरे करवं, साहामिवाबल्य तथा जागरण करवं.
११३ अष्टापद पादुडी तपः-अाशोशुदिाउमथी पूर्णिमा पर्यंत ते आठ दिवससुधी एकाशनादिक तप करवं. नजमणे पूजा करवी. नैवेद्य ढोकवां.
११४ जैनजनक तपः-निरंतर आयंबिल बत्रीश करवां, नजमणे जिनपूजा करवी.
११५ निगोदरस तपः-प्रथम एक उपवासन एका सगुं, पडी वे नपवासने एकासगुं, पबीत्रण उपवा सने एकासगुं, फरी बे उपवास ने एकासगुं, वली एक उपवास ने एकासगुं उजमणे चौद मोदक श्राप वा. एथी निगोदायु दय थाय ॥
११६ अष्टमी तपः-आठम आठमने दिवसें नप वास अथवा आयंबिल करीअाराधीयें, नजमणे दूधे नरेला कलशनी उपर धोढुं वस्त्र ढांकी ते उपर साक रना महोटा मोदक आठ तेने ज्ञानोपकरण सहित कर्मक्ष्य निमित्तें प्रतिमा वा पुस्तक पागल ढोकवा.
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(७४६) ११७ मोद करंग तपः-उपवास, आयंबिल, नी वी, एकास', पुरिम,ए एक उली थ६. एवी पांच उनी करतां पञ्चीश दिवमें ए तप पूर्ण थाय.
११७ स्वर्ग करंम तपः- एकासणांबार,नीवी नव, आयंबिल पांच,उपवास एक. एवं २७ दिवसें पूर्ण थाय.
११ए सोजाग्य सुंदर त-एक उपवास अने एक आयंबिल एम बत्रीश दिवस करवाथी तप पूर्ण थाय.
१२० चतुःषष्टि तपः-एक एकासण, एक यायं बिल, एम बत्रीश दिवस करवा,एकासणे फासु पाणी त्रिविहार पच्चरकाण करवु ॥
१२१ नादि प्रतिमा तपः-नप्रतिमा तपमां वे नपवास करीयें, अने महाजप्रतिमामां चार नप वास करीयें, सर्वतोनप्रतिमामां दश नपवास करीये.
१२२ अष्टाहिका तपः-एमां एकेक जिन आ श्रयी पांच कल्याणिक आदें देश चालीश चालीश ए कासणां करतां चोवीश जिननां ए६० एकासणां थाय, उजमणे पक्कान्न चोवीश, तिलक चोवीश, ढो कवा. अने संघ पूजा करवी.
१२३ बन्नुजिन तपः-एमां अतीत,अनागत अने वर्तमान मती त्रण चोवीश, तथा सीमंधरा दिक वीश विचरता जिन अने श्रीझपनानन, चंशनन, वईमान तथा वारीपेण ए चार शाश्वत जिन मली उन्नु जिन आश्रयी एकेक उपवास वखतने अनुकूले नृटा लूटा करतां बन्नु नपवासें तप पूर्ण थाय.
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(७४७)
अथानव्यकुलकं प्रारन्यते जे अजव्य जीव होय, ते नीचें लखेलां स्थानक क्यारे पण फरसे नही तेनां नाम कहे .
४ इंपणुं तथा पांच अनुत्तर विमानतुं देवपणुं. त्रेशन शिलाका पुरुषनी पदवी तथा नव नारद पहुं
६ केवली जगवान तथा गणधरजीने हाथे दीदा. ७ श्रीतीर्थकरजी वरसी दान आपे ते दान न पामे. १३ श्रीजिनशासनना अथवा प्रवचनना अधि ष्ठायिक जे देव देवीयो ,तेनी पदवी. तथा नव लो कांतिक देवपणुं अने देवर्नु स्वामीपणुं तथा तेंत्रीश गुरु स्थानकीयानुं देवपणुं वली पन्नर जातिना पर माधामि पj,अने युगलिक मनुष्यपणुं ए सर्व न पामें.
२२ संनिनश्रोत्रलब्धि तथा पूर्वधरनी लब्धि तथा याहारकलब्धि तथा पुलाक लब्धि. तथा मति ज्ञान, श्रुतझानादिकनी लब्धि न पामे.
ए नावसहित सुपात्रने दान आपवा पणुं तथा समाधिपणे मरण अने विद्याचारण तथा जंघाचार नीलब्धि, मधुरासव, खीरासव लब्धि,तथा अदी महाणसी गौतमजी जेवी लब्धि न पामे.
३१ श्रीतीर्थकर तथा तीर्थकरनी प्रतिमा संबंधि शरीरना जोगादिकना कारणमां पण नावे जो पृथ्वी कायादिकपणाना नाव पामे तोपण तीर्थकरना शरी रादिपणु न पामे अथवा नोगमा नावे.
३२ चक्रवर्तिना चौदरत्न पणुं न पामे.
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( ७४८ )
३३ विमाननुं स्वामिपणुं न पामे. ३६ समकित सम्यक्ज्ञान तथा सम्यक् चारित्रपपुं. ३० तपादिक गुणना बाह्याभ्यंतर नाव तेने न पामे ३० नुनवसहित गुणगुणीनी नावसहित नक्ति. ४१ श्री जिनाशा पूर्वक समान धर्मीनी तथा श्री संघनी वात्सल्य सेवा जति सहाय साधी शके नही. ४३ संसार दुःखनी खाए बे एवो संविज्ञ पणा नो नाव नही थाय. तथा शुक्लपक्षीयां न याय.
४ श्रीतीर्थकरना पितापणे, मातापणे, स्त्रीपणे. यह यणी पणे न थाय, तथा युग प्रधान न याय.
५१ प्राचार्य, उपाध्याय, साधु, चतुर्विध श्रीसंघ, श्रविर, कुल, गण, ए दशनो विनय न करें, तथा ए दशनुं परमार्थ उत्कृष्ट गुणें अधिक पणुं न पामे.
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५३ अनुबंधहिंसा, हेतुहिंसा ने स्वरूपहिंसा एज त्रण प्रकारें वली हिंसा श्रीतीर्थकरें कही बे. ते aणे प्रकारनी अहिंसाने इव्यथी तथा जावथी एवा वे प्रकारें नव्य जीव न पामे. ए सर्व वात नव्य कुलक उपरथी लखी बे ॥ इति अनव्य कुलकं समाप्तम् ॥
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॥ इति श्री जैनप्रबोध पुस्तकस्य
प्रथम नागः समाप्तः ॥
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(७४९)
एवंदिनती ४८मासती १६ नुनरिमनरेलगवायंगे।
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माया०५ से नदिनराशयावश्६ तयेदिन छिपाएवंद तपोदिन तपो दिन29
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१०॥ भयवमध्यचायतपतिए धारनेएककयादिरीत्याय तर एकोतरयाटातावंद्यावर्गमा नएनाककहान्यात्तारतमा याकवलयतहमतिपदिक चहाचतुर्दश्यावता
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(७५) दिवदवशमायातपो दिन५५०-१०० सर्वतोसत्योदिन ।
सर्वदि६५० ॥३२पाराम २३शन पर १/२/२/U /६ / बाबा/य/६७
याहजन २०६७ १२घानन चालपा
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चाहन ||पा६खाना
याबाद Lघाखाना 1227६७/२०
३. २०
प्रत्पादारेकोटीसदितताकोटी महितता करना तस वावजाविरकरन७ कवन एका क्ले
वजाप्राबिजरमजाक कावनाका कवजाकिरदाखिनमक करवाया कवना कवज२० माबिमारकवन२० कवनय एका १ कaaiवारल२२ आबिनाकारल२९|| कनका १Fav६॥ ॥ वावन२२अाबिकव२२॥ कवज एका कवनवावंजाबिनदाद २३ केवल एका कवनवनाबिनाकवल२४ इनागकोटीरक्षिततः॥ हिंदूनानकोटीसदितनयमा कवन नीवी कक्जए कवज२५उपवासरकवत२५ कुवन नीदी कवना |कवल२६नुपतासकरन२६ कजनीती १. कवन कम२७पवासरकवले कवन नीवी १ कवलर क्वज उपवासरकवल25|| कदलहनीवार कचजत॥ कवलएपदारवेलर रवल नीवी क्वज करन३०नपवासाकदन३० कवतए नीधी १कवल कवलेपवासाकवले३५ नवज नीवी १२वनकदजपवासाकदल
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९७५४) पर्यतपादियवस्थापनातयोदिन पयार जो२२६ नयवर्षमासम्दिन१२॥सर्वदिशा
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६|२|| माहारा
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४॥
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८७६) विपर्यतघनचिउपतिधनतयोपिंचपर्यंतघनत्योदिन। प्रोटिmaratiनपारा७५पारsauraमा
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रागरा प १२३ राजप१२३४
पंचपर्यंतवतरत पर्यततयोधि १२३४५ पदिनमानपतरापाराश्च यय संयमादि एवंमामदिन२६ ३४ प १ 1. न०
५/१२/२४ राजापाशशशशगया त्रितपाल
घराजपरि गरिजघरायशिर परित्रावपाशा
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