Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ (२) तेमज या ग्रंथ, सर्व श्रावक मंमलने नपयोगी होवाथी एमां कांइ पण फायदो थवानी आशा न राखतां पुस्तक बापतां जे खरच लाग्यो , तेटलीज रकम उपजाववा माटें हालमा मात्र एनी किंमत स०३) अंके त्रज राखेली ले. ए वातनो निश्चय करवा माटें प्रथम जे रत्नसार नामें पुस्तकनो बीजो नाग बार रुपैयानी किंमतवालो बपायो हतो, तेमां जेटला लोकसंख्यानो समावेश करेलो , तेटलाज लोकसंख्यानो आमां पण समावेश कस्खा बतां तेना चतुर्थाश जेटली किम्मत राखीने. ते उपरथीज सऊ नोना मनमा महारुं लख, रखरेखलं समजाइ जशे. ___ माटे ढुं आशा राखंबू के जे साहेबो या पुस्तक मां आवेली सर्व बाबतो बांची जशे, तेमने या ग्रंथ अवश्य प्रिय लागशे, तेथी ते उपकारी सऊनो वीजा पण पोताना निकटवर्ती बंधुन्ने या पुस्तक खरीद क रवानीजलामण करी पोतानी सुजनता प्रदर्शित करशे. __ या पुस्तक बापतां आगल माफक अजितनाथन एक स्तवन तथा श्रीपार्श्वनाथनु एक स्तवन वे वखत पाइ गयेखें , तेमज अफ तपासतां नजरदोषथी तथा स्थल बुदिना प्रसंगथी महाराथी जे कांइ आ ग्रंथमां अशुद्धता रहेली होय, ते गुणझोयें महारा नपर दमा राखी सुधारीने वाचवू. या ग्रंथमां थ येली अशुता संबंधी समस्त वांचक वर्गनी साथें मि हामि मुक्कडं करूं बूं. ते स्वीकारशो.किंबद विलेखनेन.

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