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(४५) लें तरी ॥ चेतन प्यारा रे महारा, जिन पूजा करि लहो जवपारा ॥ चेतन० ॥१।। ए यांकणी ॥ न मण करीये रे मन रंगें, चर्ची केशर प्रनु नव अंगें ॥ फूलनी फुटरी रे माला, कंठ वो पंच रंग रसाला ॥ चेतन ॥॥ धूप दीप रे मनोहार,अक्त नैवेद्य फल सुरसालाश्रीजिनवरजी जग शणगार, गावो गीत झा न मनोहार ॥चेतन ॥३॥ दरिसण चरणने रे नाण, तप ए चनहा पूजा जाण ॥ आराधक तेहने रे कही यें, पूजा बादश ने लहीयें। चेतन ॥४॥ पादो प गमन पदधारी, वरिया जिन उत्तम शिवनार॥तस पद पद्मने रे वंदो,रूपविजय पद लही यानंदो ॥चे॥५॥
॥अथ नेमराजुल स्तवनं ॥ ॥मत जा रे पिया तुमें पाहाडमां ॥ पाहाड मां पाहाडमां पाहाडमां ॥ मत॥ तुम तो कहो ह म नारी त्यागी, किम जा गिरनारिमां ॥म ॥१॥ बकाय के रक्क हो तुम, तो केम जाउ जाडिमां ॥ म ॥ ॥ कठिन गिरिवरकी वांकी ट्रंको, वसवू ज ३ कजाडिमां ॥म ॥३॥राजिमतीकी वीनति मा नो, रहे संघनी हारमा । म ॥४॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन, नेम मन नयो संजमनारमां ॥म॥५॥
॥ अथ नेमजिन पदं ॥राग काफी॥ ॥ महारा सामतीयानी वात रे, दुं कहने पूर्व ॥ महारा० ॥ जेने पूर्बु ते दूर बतावे, पिया बिन रह्यो न जाय रे॥ढुं॥ महा० ॥१॥तोरण आए चले रथ