Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ७३४ )
सुवर्ण दरें पंचपरमेष्टि लिखित, प्रणव नमः पूर्वक ढोक, तेमज लाडु ६७ तथा शासन अधिष्ठायिकने मोदक एक, एवं ६८ मोदक टोकवा ॥
६ दश प्रकारें यतिधर्म नपः- शुक्लपढ़ें एकांतरें दा उपवास करवा. देवपूजा करा. साधुने त विगय.
७० पंच परमेष्टि तपः- प्रथम दिवसें उपवास, बी जे दिवसें एकलवाएं, त्रीजे दिवसं ग्रायंबिल, चोथे दिवसे एकास, पांचमे दिवसें नीवी, बहे दिवसें पु रिम, सातमे दिवसें वियासणं, ए सात दिवसें एक उली याय. एवी पांच जनी करवायी पत्रीश दिवसें तप पूर्ण थाय. उजमणे पंचतीर्थी विंब जराव. रि हंत, सिद्ध, प्राचार्य उपाध्याय ने साधुनी नक्ति कर वी. मोदक पांत्री तथा बीजी वस्तु पांच पांच ढोकवी.
७१ चतुर्विध श्रीसंघतपः- प्रथम वे उपवास क रीने पी एकांतरें गाव उपवास करवा, नजमणे चतुर्विध श्रीसंघनी पूजा करव!.
७२ निर्वाण दीपक तपः- ए तप त्रण वर्ष पर्यंत प्र त्येक दीवालीयें चौदश तथा अमावास्यायें मली वे वे उपवास करवा, एवं व उपवास याय. अहोरात्र श्रीवीर यागल घृतनो दीपक सूर्यास्तथी नदय ने उदयथी
स्त पर्यंत करवो. रात्रि जागरण करवो, नजमणे साधर्मिकनुं वात्सल्य करवुं. साधुने दान यापधुं, ए तप करनार जन्मांतरें पण ग्रंथ थाय नही.
१३ घन तपः - तिहां द्वि पर्यंत घन तपमां प्रथम

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