Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 755
________________ (६५) णमो दंसस्स” ए पदनु बे हजार गुणणुं गुणे, तथा दर्शनपद सपेत वर्णे ,माटे तांदूलनुं आयंबिल करे, अने सम्यक्त्वना सडशव गु चिंतवतो सडश नमस्कार करे ते कहे . १ परमार्थ संस्तवरूप श्रीसद्दर्शनाय नमः २ परमार्थझानसेवनरूप श्रीस ३ व्यापन्नदर्शनवर्षानरूप श्रीस० ४ कुदर्शन वर्षानरूप श्रीस० ५ शुश्रूपारुप श्रीस . ६ धर्मरागरूपत्रीस० ७ वैयाहत्त्यरूपश्रीस ७ अर्हनियरूप स० ए सिविनयरूप स १० चैत्य विनय रूप स० ११ श्रुतविनय रूप स० १२ धर्मविनय रूप स० १३ साधुवर्ग विनय रूप १४ आचार्य विनयरूप० १५ उपाध्याय विनयरूप स० १६ प्रवचनविनयरूपस० १७ दर्शनविनय रूपस १७ संसारे श्री जिनसार मिति चिंतनरूप स० १५ संसारे श्रीजिनमति सारमितिचिंतन २० संसारे जिन मतिस्थित साध्वादिसार मितिचिंतक २१ शंकादूषणरहिताय २१ कांदादूषणरहिताय । २३ विचिकित्सारूपदूषणरहिताय सदर्शनायनमः ॥ २४ कुदृष्टिप्रशंसादूषणरहितायसदर्शनायनमः ॥ २५ तत्परिचय दूषण रहितायसदर्शनायनमः ॥ २६ प्रवचनप्रनावकरूपस० २७ धर्मकथाप्रनावकरू २८ वादिप्रनावकरूपस ए नैमित्तिकप्रनावकरूप

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