Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 818
________________ ( ७४८ ) ३३ विमाननुं स्वामिपणुं न पामे. ३६ समकित सम्यक्ज्ञान तथा सम्यक् चारित्रपपुं. ३० तपादिक गुणना बाह्याभ्यंतर नाव तेने न पामे ३० नुनवसहित गुणगुणीनी नावसहित नक्ति. ४१ श्री जिनाशा पूर्वक समान धर्मीनी तथा श्री संघनी वात्सल्य सेवा जति सहाय साधी शके नही. ४३ संसार दुःखनी खाए बे एवो संविज्ञ पणा नो नाव नही थाय. तथा शुक्लपक्षीयां न याय. ४ श्रीतीर्थकरना पितापणे, मातापणे, स्त्रीपणे. यह यणी पणे न थाय, तथा युग प्रधान न याय. ५१ प्राचार्य, उपाध्याय, साधु, चतुर्विध श्रीसंघ, श्रविर, कुल, गण, ए दशनो विनय न करें, तथा ए दशनुं परमार्थ उत्कृष्ट गुणें अधिक पणुं न पामे. 3 ५३ अनुबंधहिंसा, हेतुहिंसा ने स्वरूपहिंसा एज त्रण प्रकारें वली हिंसा श्रीतीर्थकरें कही बे. ते aणे प्रकारनी अहिंसाने इव्यथी तथा जावथी एवा वे प्रकारें नव्य जीव न पामे. ए सर्व वात नव्य कुलक उपरथी लखी बे ॥ इति अनव्य कुलकं समाप्तम् ॥ ७) COCO 7 () OCAC ॥ इति श्री जैनप्रबोध पुस्तकस्य प्रथम नागः समाप्तः ॥ UNOGLODDSON P ong go

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