Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(७०२)
तिथि संविनाग करवो; तथा एमना सत्तावीश गु एने,माटे सतावीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करीयें. G ‘मो नाणस' ए पदनुं बे हजार गुण| गु
गवं, झान जगवूनणावq, झाननीनक्ति विशे ष करवी, वखाण सांजलवां, पाठादिक धागल नां पदोनुं आगधन करती वखतें लइ राखेलां होय ते तिहांस देवाएगां होय तो या प: प्रा राधननी वखतें धापी देवां. झाननो विनाग क हाडवो, तथा झानना मत्यादिक पांच नेद . माटे पाच लोगस्सनो कानस्सग्ग करवो. ए ‘णमो दसएस्स', पदनुं बे हजार गुणाj गुणवू, शंकादि दूपण टाली हमनें शु६ सम कित पालवू, आरंन वडवो, कायायें करीने स चित्त वस्तु यानडवी नह।, अन्य तीर्थीना देव, गुरु अने धर्मना सन्मान सत्कार पूजा अनुमो दना करवानो त्याग करवो, यथाशक्ति मोदक देवा, तथा ए पदना सडशठ नेद , माटे सड
श लोगस्सनो कानस्सग्ग करवो. १० ‘मो विएणय संपन्नाणं' ए पदनुं वे हजार गु
गणुं गुणवं. याचार्य, नपाध्याय, साधु, तप स्वी,गिलाण प्रमुख वडेरानो अन्युबानादिकें विन
य करवो, कानस्सग्ग दश लोगस्सनो करवो. ११ ‘मो चारित्तस्स' ए पदनुं बे हजार गुणां
गुणवं, उन्नयकाल पडिक्कमj करवू, वारंवार

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