Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 753
________________ (६७३) त्याचारांगसूत्रपठनगुणयुक्तायश्रीनपाध्यायायनमः २ सूयगडांगसूत्रपतनगुण ३गणांगसूत्रपठनगु० ४ समवायांगसूत्रपठन ५ जगवतीसूत्रपतनगुण ६ झातासूत्रपतनगुण ७ नपासकदशासूत्रपठन G अंतगडदशासूत्रपठन एअणुत्तरोववाश्सूत्रप० १० प्रश्नव्याकरणसूत्रप० ११ विपाकसूत्रपठनगुण १२ उत्पादपूर्वपतनगुण १३ अग्रायणीपूर्वप० १४ वीर्यप्रवादपूर्वप० १५ अस्तिप्रवादपूर्वप० १६ ज्ञानप्रवादपूर्वपत १७ सत्यप्रवादपूर्वप० १७ आत्मप्रवादपूर्वप० १ए कर्मप्रवादपूर्वप० २० प्रत्याख्यानप्रवादपू० २१ विद्याप्रवादपूर्वप० २२ अविंध्यप्रवादपूर्व २३ प्राणायामप्रवादपूर्वक ५४ क्रिया विशालपूर्वप० २५ लोकबिंडसारपूर्व इति पंचविंशति उपाध्याय गुणाः॥ एम पच्चीश नम स्कार करी उना थइ अन्नबनससिएनो पात कही पच्चीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करी एक लोगस्स प्रग ट कही पारीने पूर्वोक्त करणी अनुक्रमथी करे॥इति। ॥ अथ पंचमदिवस विधि प्रारंजः ॥ ॥पूर्वती रीतें प्रनातविधि करी “ की मो लो ए सबसाहूणं” ए पदनु बे हजार गुणगुं गुणे. सा धुपद काले वर्णे , माटे अडदनुं आयंबिल करे, बने सर्व साधुपंदना सत्तावीश गुण चिंतवतो सत्ता वीश नमस्कार करे, ते या प्रमाणे:

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