Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 798
________________ (७२) ढोकवां, तथा यथाशक्तियें श्रीसंघनी पूजा करवी. १३ मोद दंगकतपः-गुरुना हाथमा दामो हो य, तेने मुष्टियें करी जरीयें, जेटली मुष्टि थाय, तेटला एकांतरें उपवास करवा. अथवा बीजो विधि कहे :-एकासए वार, नीनी नव, आयंबिल पांच, नपवास एक. एवं सत्ताधीश दिवस तप करवं. बेहडे उपवासने दिवमें परिधायनिका चोखानो था ल तथा नालिकेरादिक फलनी,दांमानी पूजा करवी. उजमणे गुरुने वस्त्रदान आपy. ... .४४ दमयंती तपः--ए तप नलराजानी स्त्रीयें प्रा गल्या वीरमतीने नवें यादमुदतुं, ते भावी रीतें केःएकेक जिन आश्री वीश आयंबिलनी एकेक लो करीयें. तेवी चोवीश उनी थाय अने ए महोटुं तप ने ते जणी एनी साथें एक उती शासन देवतानी मली पच्चीश उत्तीनां पांचशे आयंबिल थाय, पार गाना दिन चोवीश थाय, उजमणे चोवीश जिन पूजा पूर्वक चोवीश तिलक तथा स्नात्रादि पूजा विशेष कर वी. श्रीजिन ागल पांचशे ने चार मोदक ढोकवा, अथवा चोवीश जिन प्रत्ये एकेक मोदक ढोकवो. ४५ कणोदरी तपः-शहां पुरुषने बत्रीश कवलनो आहार, अने स्त्रीने अहवीश कवल आहार कह्यो जे, तेमांथी न्यून करीने बाहार लीये, ते लोक प्रवा हें कणोदरी तप जाग. तिहां पुरुषे प्रथम दिवसें बात कवल. बीजे दिवसें बार कवल, त्रीजे दिवसें शोल,

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