Book Title: Jain Prabodh Pustak 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 788
________________ ( ७१८ ) कांतरें पारणां करीने बत्रीश श्रायंबिल पूर्ण करीयें. नजमणे पोतानी शक्तिने अनुसारें श्रीवीतरागदेवने योग्य मुकुट तिलकादिक भूषण चढावीयें. २३ खायतिजनक तप कहे बेः- जेणें करी या यतिशब्दे परजवें जे विशिष्टफलनुं जनक एटले न पजावनार थाय, तेथी एनु नाम पण प्रायतिजनक तप बे. एमां पण पूर्वोक्त रीतें लागत बत्रीश आयंबिल करीयें, जो लागठ न थाय तो एक दिवस पारं अने एक दिवस आयंबिल एम करीने बत्रीश पूरा करे, अने समस्त वंदनक पडिक्कमण, स्वाध्याय, साधु साध्वीनं वेयावच्च, इत्यादिक धर्मक्रियाने विषे बल ने वीर्यनी प्रवृत्ति सहित रहे, बल वीर्य गोपवे नही, ए रीतें करे. जमणे देवपूजा, पडिक्कमण, संघवेयावच्च करे. २४ सौभाग्यकल्पवृक्ष नामा तप कहे बेः- जे सौभाग्यफलना दानने विषे कल्पवृक्ष समान होय तेने सौभाग्यकल्पवृक्ष तप कहीयें. एकांतरें उपवास, पन्नर उपवास ने पन्नर एकासलां करियें, एकास यांना दिवसें सर्वरस कामगुणित जमवुं. नजम चैत्रमासें करी कल्पवृनां फल ढोकियें, तथा ए तप पूर्ण थये थके पोतानी शक्तिने अनुसारें एक था लमां नानाप्रकारनां फल तेणें कर विलसित जे शा खा, तेणे युक्त एवं चोखानुं कल्पवृद्ध करीने श्री वीतराग प्रागल मूकीयें. २५ तीर्थकर मातृतप कहे बेः- श्रीतीर्थकरनी मा

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