Book Title: Dharmratna Prakaran Part 03
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 12
________________ सात क्षेत्रमां ज्ञान क्षेत्रनो प्रभाव दिव्य छे, तेना प्रभावथी चर्म चक्षु पण दिव्य चक्षु थइ जाय छे, तेवा सर्वोत्तम क्षेत्रने पुष्टि आपवामां जेनुं द्रव्य उपयोगी थाय, ते द्रव्यवाळा गृहस्थना जीवितने सहस्रवार धन्यवाद घंटे छे. तेवा धन्यवादने पात्र थएला कच्छी दशा ओशवाळ ज्ञातिना शिरोमणिरुप शेठ खेतशी खीअसी छे. तेमना उत्तम श्रथ आ ग्रंथरत्न बाहेर पडेलो छे. प्राचीनकाळे जैन वर्ग उपर उपकार करनारा ग्रंथकारोए जे श्रम कर्यो छे, ते श्रमने सफळ करवो, ए ज्ञानक्षेत्र ने पुष्टि आपनारा धनवंतोनो मुख्य धर्म छे. अने ते धर्म आवा ग्रंथ रत्नो प्रकट कराववा एमांज चरितार्थ छे. कार्त्तिक पूर्णिमा, संवत् १९६२ . · श्री जैन धर्म विद्या प्रसारक वर्ग. पालीताणा.

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