Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 7
________________ ओसनो कहेवाय छे. तेना पण वे भेद छे. १ देशथी एटले आवश्यक प्रतिक्रमण पठन-पाठनादि तथा पडिलेहण मुखवस्त्रिका वस्त्रपात्रादि भिक्षा ध्यान अभक्तार्थ आगमन निसीहिया निर्गमन स्थान निशिदिन शयनादि दसविध साधु सी समाचारी तथा ओघपद विभाग समाचारी प्रमुख विधियुक्त न करे, तेम ज ओछी अधिकी करे, राजानी वेठना माफक करे, मा गुरु आदिना वचन सांभली दुमणो थइ वचन खंडन करे, गुरुने आक्रोश करे विगेरे करनार ओसन्नो देशथी कहेवाय. व्या हवे सर्वथी जे ओसन्नो होय तेनुं स्वरूप कहे छे. जे चौमासा विना शेषकाले कारण विना पाट बाजोठ विगेरे बापरे तेना उपर संथारो करे, स्थापना पिंड आहार करे तथा सदाकाल संथारो पाथर्यो राखे, प्राभृत एटले कोइए भेट तरीके लावी आपेल दोषित आहारनुं भक्षण करे, इत्यादिक प्रकारना लक्षणयुक्त होय ते सर्वथी ओसन्नो कहेवाय. २. हवे त्रीजा कुशीलीयानुं स्वरूप कहे छे. जे ज्ञान, दर्शन ने चारित्रनी विराधना करतो होय ते तथा खराब आचारवालो तथा खराब शीयलवालो होय ते कुशीलीयो कहेवाय छे अने तेना त्रण भेद कहेला छे. १ ज्ञानकुशील एटले अकाले अविनयथी अबहुमानथी गुरुने ओळखीने योग उपधानहीन सूत्र अर्थ तदुभय हीन इत्यादि प्रकारे आशातना करतो ज्ञान भणे तथा आजीविका माटे पठनपाठन करे, संभलावे, लखे, लखावे, भंडार करे- करावे. नंदी समाचारी आदिना स्वार्थने माटे उपदेश करे तथा आजीविका षां माटे धर्मकथा कहे ने आजीविका माटे ज ज्ञान भणे, घरे घरे धर्म संभलाववा जाय तथा तेमने पोताना करवा निमित्ते तेमनी स्त्री बालकादिकोने भणावे, बीजाना ज्ञान भंडारोने ओळवे, ज्ञानने ओळवे तथा पुस्तको लखी लखावी वेचे, तेनी लेणदेण श्रद्ध करे करावे पुस्तको वेचे वेचावे इत्यादिक लक्षणयुक्त जे होय ते ज्ञानकुशील कहेवाय छे. १. हवे बीजा दर्शन कुशीलना स्वरूपने रू भा 9554555555 का प

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