Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
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तथा अथाणादिक जे बोळादि होय छे, ते तथा अभक्ष्य वस्तुनो, भक्ष्यादिक वस्तुनो, अरसपरस स्पर्शादिक थयेल होय तो | तेनो पण त्याग करवो. जीवोथी व्याप्त मधुकबिल्वादि फलो होय तेमने त्याग करवा. तथा पुष्पो, अरणि, सरगवो, मध, मधुक, इत्यादिक पण त्याग करवा. तेम ज वर्षाकालने विषे तांजलियादिक शाक पत्रनी भाजी थाय छे. ते पण अभक्ष्य । होवाथी खावी नहि, कारण के तेमां बहु सूक्ष्म त्रस जीवो रहेला होय छे, ए प्रमाणे योगशास्त्रने विषे कलिकाल सर्वज्ञ भगवान् श्री हेमचंद्र सूरीश्वर महाराजे कुमारपाल महाराजादिक महाजन पासे सभासमक्ष कथन करेल छ, वली फागण पूर्णिमाथी आरंभीने कार्तिक पूर्णिमा सुधी प्रायः करीने जीवोने पत्र शाकादिकनुं भक्षण करवू न जोइये. एटले के भाजिपालादिक पत्रमय शाकोने त्याग करवा जोइये. भाजीपालाना पत्रोमां बहु ज सूक्ष्म जीवो होय छे, ते भक्षण करवाथी घणा जीवोनो संहार थाय छे, तथा घणु ज पाकी गयेलं होय, तथा बहुज शिथिल एटले-चुंथाइ गयेल होय, तथा जेना रसमां फेरफार थयेल होय, एवा चीभडा आदिक फलोने विषे बहु जीवोनी उत्पत्ति होवाथी तेने त्याग करवा जोइये, वळी छिद्रवाला, नहि पाकेला फलोने विषे पण घणां जीवोनो सद्भाव होवाथी तेनुं भक्षण नहि करता त्याग करवो जोइये. ए प्रमाणे नहि जेना नाम ठाम गुण दोषो जाणेला होय ते आदि समग्र अभक्ष्य वस्तुनो श्रावक वर्गने परिहार करवो जोइये. कथु छ के.
अज्ञातकं फलमशोधितपत्रशाकं, पूगीफलानि सकलानि च हद्दचूर्ण'।
मालिन्यसर्पिरपरीक्षकमानुषाणा-मेते भवन्ति नितरां किल मांसदोषाः॥१॥ भावार्थ:-अजाण्यु फल, तथा नहि जोयेला एटले सूक्ष्म दृष्टिथी बारीकताथी नहि तपास करेला, पत्रादिकना शाको,
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