Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 10
________________ चौमासी चोथो भांगोज ग्रहण करवा लायक छे. हवे शास्त्रकार महाराजा प्रथम श्रावकोने निरंतर करवाना कर्त्तव्योने देखाडे छे. यतःदेवपूजा गुरुपास्ति, स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थानां, षङ्कर्माणि दिने दिने ॥ १ ॥ भावार्थ:- निरंतर ख्यान ॥ सी परमात्मानी पूजा करवी १, गुरुमहाराजनी सेवा करवी २, स्वाध्याय ध्यान करवुं ३, तथा संयम इंद्रियोनुं संवरण व्या ॥ ३ ॥ व्या करवुं, मन वचन कायाना योगोने एकत्र करवा ४, तथा शक्ति अनुसारे विविध प्रकारे तप करवो ५ अने सत्पात्रने विषे दान देवु ६ ए छ प्रकारना कार्यों निरंतर करवाने माटे भव्य जीवोने शास्त्रकार महाराजा फरमान करे छे, निरंतर ए छ ध प्रकारना कार्यने धारण नहि करनारा जीवोने महादुःखे करी जेनो अंत आवे एवा कठोर कर्मथी अनंत भवो सुधी संसारमां ख्या परिभ्रमण करवुं पडे छे. एम जाणी भवभ्रमणथी त्रास पामेला अने जैन मार्गमां प्रीति करी सवर्त्तन करनारा श्रावक वर्गे ठी निरंतर जेना अंदर बहु ज असत्य अने पापादिकनुं आववापणु होय तेवा पापमय व्यापारोने त्याग करवा जोइये, कारण के पापमय व्यापारथी बुद्धि भ्रष्ट थाय छे, ने तेथी आत्मा अधोगतिने पामे छे, वली विशेषथी फागण मासथी उपरांत तिलादि धान्य राखनुं न जोइये. कारण के तेने विषे घणा त्रस जीवोनी उत्पत्ति अने नाशनी संभावना रहेली छे. जो के उत्तम जीवने तो अनाज मात्रनो व्यापार करवो जोइये नहि. तेमां असंख्याता जीवनी हानि छे, एम करतां कदाच ते धंधो करवो पडे तो फागण शुदि पूर्णिमा सुधी तिलादिकनो राखी पछी बंध करी दे. अनाजने पण अशाड मास सुधीमां वेची दे पण चोमासामां वेचे नहि, व्यापार पण करे नहि, जेठ मास सुधीमां लेवुं देवं विगेरे जे कर होय ते करी दे. आ शिवाय चोमासामां धान्यनो संग्रह राखे नहि. कारण के चोमासामां जीवोनी उत्पत्ति विशेष थाय छे, माटे श्रावकनो धर्म नहि. न 5硑∑5 षां तेर काठीयानुं र स्वरूप ॥ ते का स्व ॥ ३ ॥

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