Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 6
________________ चौमासी व्याख्यान । चे. इंहां आषाढ, कात्तिक, फागण चौमासी मध्ये अन्य बीजु कोइ चौमासी पर्व आव्यु होय त्यारे अन्योअन्य सापेक्ष व्यवहार अने निश्चय युक्त श्री जैनशासनने जाणीने, तथा एकांत वादने दूर करीने, श्री आवश्यक ग्रंथने विषे कहेल समाहित अक्षर शुद्ध | काठीयार्नु टंकरुप्य लक्षण, चोथा भांगाना समान द्रव्य भावलिंग संयुक्तनी इच्छा करनारा अने स्याद्वादनी रुचिवाला धर्मार्थी प्राणियोयेर खरूप॥ सम्यक् प्रकारे धर्मकार्य करवू, इहां निश्चय चार भांगा कहेला छे ते देखाडे छे. अशुद्ध रुप्य छे ने छाप पण अशुद्ध छे १, रुप्य। अशुद्ध छे पण छाप शुद्ध छे २, रुप्य शुद्ध छे पण छाप अशुद्ध छे ३, रुप्य पण शुद्ध छे ने छाप पण शुद्ध छे ४, आवा प्रकारना चार भांगाओ कहेला छे. तेमा पहेला भांगाने विषे चरकपरिव्राजकादिको कहेला छे, कारण के तेओनो धर्म पण अशुद्ध रुप्य जेवो छे, ने तेमनो वेष पण अशुद्ध छे १, बीजा भांगाने विषे पासत्थादिको कहेला छे, कारण के तेमनी करणी अशुद्ध रुप्य जेवी छे, अने साधुनो वेष पण शुद्ध रुप्य जेवो छे. पासत्थादिकोनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे छे. पासत्थो एटले ज्ञानदर्शननी समीपे रहेनारो, अथवा मिथ्यात्वादि बंध हेतुरूप पाशने विषे बंधायेलो होय ते. तेना बे भेदो कहेला छे. १ देशथी एटले कांइपण कारण विना शय्यातरनो पिंड ले. सामो आणेलो पिंड ले, राज पिंड ले, तेम ज अग्रपिंडादि ले, तथा देशने विषे, नगरने विषे, गामडाने विषे, कुलने विषे, श्रावकादिकनी ममता राखे, ते पासत्थो कहेवाय छे १. अने बीजो सर्वथी एटले ज्ञान-दर्शन -चारित्रथी जे सर्वथा अलगो रहेलो, तथा केवल लिंगधारी होय, तथा वेष विडंबक होय अने गृहस्थना आचारने धारण | करवावालो होय छे, ते सर्वथी पासत्थो कहेवाय छे १ हवे बीजा ओसन्नानुं स्वरूप बतावे छे. जे साधु समाचारीने विषे | प्रमाद करतो होय ते ओसन्नो कहेवाय तथा क्रिया मार्गने विषे शिथिलपणुं धारण करे अने खेद पामे ते पण रुप्य जेवी छे, अ -4543349卐卐 卐卐卐卐卐卐卐卐卐. मिथ्यात्वादि बंध हेतुपाणलो पिंड ले, राज पिंड लपाय छ १. अने बीजो संस्था आचारने धारण

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