Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 14
________________ चौमासी व्याख्यान ॥ साथे कठोळभक्षण ऋतुने विषे जे द्रव्यो.पणखावा नहि. ए त्याग करवा वादिकनी फेरफारजणवन विषे, भव्य जीवधानि, देवार्चन काठीयार्नु स्वरूप॥ 卐ि卐ESS卐SE. करा, १२ मुलीया, १३ माटी, १४ रात्रीभोजन, १५ बोळ अथाणु, १६ सर्व अनंतकाय, १७ विदल, (काचा दहीं, दुध, काची छाश साथे कठोळ भक्षण, १८ वेंगण, १९ सर्वे तुच्छ फल, २० बेइफल, २१ बहुबीज फल, २२ चलितरस, ए बावीश अभक्ष्यने पण त्याग करवा, वली ग्रीष्म ऋतुने विषे जे द्रव्यो जल्दीथी बगडनारा होय तेवा द्रव्योने शीघ्रताथी उपयोगपूर्वक वापरी जवा. परंतु वर्ण, रस, स्वादादिकनो फेरफार जणाया छतां पण खावा नहि. ए उपरोक्त प्रकारे चोमासामा प्रतिपालन करवा भव्य जीवोने उजमाल थq. हवे आ चोमासीना पर्वने विषे, भव्य जीवोने विशेषताये शुं करवू ते शास्त्रकार महाराजा देखाडे छे. कडुं छे के, सामायिकावश्यकपौषधानि, देवार्चनस्नात्रविलेपनानि । ब्रह्मक्रियादानतपोमुखानि, भव्याश्चतुर्मासकमंडनानि ॥१॥ भावार्थः-शास्त्रकार महाराजा कहे छे के, हे भव्य प्राणि जीवो ! सामायिक १, आवश्यक २, पौषध ३, देवपूजा ४, स्नात्र विलेपनादि ५, ब्रह्मचर्य ६, विविध प्रकारनी क्रिया ७, सत्पात्रदान ८, नाना प्रकारनां तप कर्मादि वगेरे धर्मकर्त्तव्यो ९, चौमासीना आभूषणो-अलंकारो कहेला छे. माटे श्रावक वर्गने ते अवश्य सेवन करवा लायक छे. यद्यपि जो के | चौमासी त्रण छे, तोपण जे चौमासीने उद्देशीने व्याख्यान करवामां आवे तेनुं नाम ग्रहण करवं. तेमां कोइ पण दोष गणी शकातो नथी. कारण के आ चौमासीना अंदर कोइक पुरुष सामायिकने करे छे, कोइक प्रतिक्रमणने करे छे. कोइ पौषधने | करे छे, इत्यादि प्रकारना धर्म कर्तव्यो करेछे, माटे इंहां कांइ विरोध आवतो नथी. इंहां प्रथम तिथियोनुं अवलोकन करवू | जोइये. ते तिथियो त्रण प्रकारे कहेली छे. तथाहि-'चाउद्दस मुद्दिष्ट पुणमासिणीत्ति' सिद्धांते उक्तत्वात् चौदश, आठम,

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