Book Title: Chandrayash Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चंद्रयशः चरित्रं ॥ ४ ॥ www.kobatirth.org. भवाटवीकुरङ्गाणां तुरङ्गाणां चलात्मनाम् । मोहश्रीहग्विलासानां गोचरे नो घरेत्कृती ॥ ८ ॥ अन्वयः - भव अटवी कुरंगाणां चलात्मनां मोहश्री दृग्विलासानां तुरंगाणां गोचरे कृती नो चरेत् ॥ ८ ॥ अर्थः- आ संसाररूपी वनमा दरिणसरखा, चपल तथा मोइलक्ष्मीनी आंखोना कटाक्षोसरखा एवा घोडाओनी नजीक (पण) चतुर माणस आवतो नथी. ॥ ८ ॥ मोहभूमिभुजङ्गस्य जङ्गमास्थानमण्डपम् । छायाछलात्तले व्याप्तं पातकैस्तस्य सेवकैः ॥ ९ ॥ छत्रं विवेकमार्तण्डप्रकाशभरनाशकम् । न कोऽपि सेवते तादृग्जडतावकितः कृती ॥ १० ॥ युग्मम् ॥ अन्वयः - मोह भूमिञ्चजंगस्य जंगम आस्थान मंडपं, छायाछलात् तले तस्य सेवकैः पातकैः व्याप्तं ॥ ९ ॥ विवेक मार्तंड प्रकाश भरनाशकं छत्रं तादृक् जडता चकितः कः अपि कृती न सेवते ॥ १० ॥ युग्मं ॥ अर्थ ः— मोहरूपी राजाना जंगम सभामंडप सरखा, तथा नीचेना भागमां छायाना मिषथी ते मोहराजाना सेवको सरखा पापोवडे व्याप्त वेला || ९ || अने विवेकरूपी सूर्यना प्रकाशना समूहने आच्छादित करनारा, एवा छत्रने तेवी रीतनां (तेनां) जडपणाथी चकित थयेलो, एवो कोइ पण चतुर माणस सेवे नही. ॥ १० ॥ युग्मं ॥ रत्नान्यगाधवतींनि स्त्रियो भान्ति भवार्णवे । पुमान्मज्जत्यनुन्मज्जो यत्पाणिग्रहणाग्रही ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir আনতন * 9* छत सान्वय भाषान्तर ॥ ४ ॥

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