Book Title: Chandrayash Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020143/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Swahili na konci A Sh a mandi FORHIVA resonate only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirm.org A K amand शेठ देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड. NATATAAAAA जह्वेरी बजार-मुंबई.. ६०००-४-२८. संवत् १९८४ गोपीपुरा-सुरत. श्रीकृष्ण कलींग प्रेस. मुसाफा मास्फेट, धनगी स्ट्रीट, मुंबई. TOP Vale And Personal setemy Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Swahil an kendte An yament OOOOOOOOOooooeeeeeee ॥ श्रीजिनाय नमः ।। (सान्वये गुर्जरभाषांतरसहितं च) ॥श्री चंद्रयशः चरित्रं॥ (मूलका-श्रीवर्धमानसरिः) अन्वय तथा भाषांतर करनार तथा छपाबी प्रसिद्ध करनार--पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (अन्वय तथा भापतिरना प्रसिद्ध काए सर्व हक खाधीन राख्या छे.) संवत १९८४ सने १९२८ वीर संवत् २४५४ किमत रु.१-४० .OOOOOOOOOOOOOOOOOO TIVACAnd personauseonly Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Swahil an kendi A n ka mandi ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ श्रीजैनभास्करोदय मिटींग प्रेसमा छाप्यु. जामनगर. ब्रांच नं. ३. ५ ReckoolcodCABCSCRACCONScotooschoot ORPTIVITAId personaluseonly Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Sh Kailasagers Gym सान्वय मापान्तर चंद्रयशः ॥ जिनाय नमः ॥ चरित्रं ॥ श्रीचारित्रविजय गुरुभ्यो नमः ।। (सान्वयं गूर्जरभाषांतरसहितं च) ॥ अथ श्री चंद्रयशः चरित्रं प्रारभ्यते ॥ (मूसकर्ता-श्रीवर्धमानसरिः) अन्वय तथा भाषांतर करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा) श्रीसूर्यपुरमित्यस्ति पुरं यत्रास्तिको जनः । धत्ते धर्मनृपक्रीडाकल्पद्रुमवनश्रियम् ॥१॥ अन्वयः-श्रीसूर्यपुरं इति पुरं अस्ति, यत्र आस्तिकः जनः धर्म नृप क्रीडा कल्पद्रुम वन श्रियं धते ॥ १ ॥ अर्थ:-श्रीसूर्यपुर एवा (नामर्नु) नगर , के जेमा (रहेला) आस्तिक लोको धर्मरूपी राजाने क्रीडा करवाना कल्पवृक्षोना बन 18| सरखी लक्ष्मीने धारण करे . ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय चंद्रयशः चरित्रं भाषान्तर ॥ २ ॥ इहाजनि महीजानिमहेन्द्र इति विश्रुतः। अन्तर्बहिर्दिषजैत्रं शास्त्रं शस्त्रं च यो दधौ ॥२॥ अन्वयः-इह महेंद्रः इति विश्वतः महीजानिः अजनि, यः अंतः बहिः द्विषत जैत्र शाखच शख दधौ. ॥२॥ अर्थ:-ते नगरीमा "महेंद्र" एवा (नामवी) प्रसिद्ध थयेलो राजा इतो, के जे अंतरंग तथा बहारना शत्रुओने जीतनारा (अनु क्रमे) शाख तथा शखने धारण करतो हतो. ॥ २॥ कुलोचितासु विद्यासु गुरुभिः कारितश्रमः । तस्याहं नन्दनश्चन्द्रयशा इत्यभिधामधाम् ॥३॥ अन्वयः-कुलोचितामु विद्यासु गुरुभिः कारितश्रमः अहं तस्य नंदनः, चंद्रयशाः इति अभिधा अधां ॥३॥ अर्थः-कुलने लायक एवी विधाओमा गुरुओए करावेल छे अभ्यास जेने, एवो आ ९ ते मद्रराजानो पुत्र छ, तथा "चंद्रयशाः" एवो नामने हुं धारण करु छ. ॥३॥ हर्षी षोडशवर्षीयं सुधावर्षी गिरां भैरैः । भवतापी कदापीदं मामुपांशु नृपो जगौ ॥ ४ ॥ ___ अन्वयः-६षी, गिरा भरैः सुधावर्षी, भवतापी नृपः कदापि षोडशवर्षीयं मां उपांशु जगौ. ॥४॥ अर्थ:-हर्ष पामेला, वचनोना समूहथी अमृतवर्षनारा, अने संसारथी विरक्त धयेला एवा ते राजाए एकदिवसे शोळ वर्षांनी का चयचाळा एका मने पासे बेसाडी को के, ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Sasager a ndi दा सान्वय भाषान्तर ॥३ ॥ चंद्रयशः । राज्यं संसारकान्तारे शृङ्गाटोऽयमटन्निह । कलितस्खलितः श्रीभिः पिशाचीभिः प्रपात्यते ॥५॥ चरित्रं ___ अन्वयः-संसारकांतारे राज्यं शृंगाटः, इह अटन् अयं पिशाचीभिः श्रीभिः कलितस्खलितः प्रपात्यते ॥५॥ अर्थः-आ संसाररूपी वना राज्य (एक) चोवटा सर छे, तेमां फरनारा आ जीवने पिशाची सरखी लक्ष्मी ठोकर खवरावी पाडी नाखे छे. ॥ ५ ॥ I वहन्ति मणयो मोहमहीपमहदीपताम् । यल्लोभलोलुभा नाधः के पतन्ति पतङ्गवत् ॥ ६॥ ___अन्वयः-मणयः मोह महीप मह दीपतो वहंति, यल्लोभ लोलुभाः के पतंगवत् अपः न पतंति ॥६॥ अर्थः-रत्नो मोहराजाना तेजस्वी दीपकपणाने धारण करे छे, जेना लोभथी ललचायेला कया माणसोनो पतंगोनीपेठे अधःपात नथी थतो ॥६॥ तितीर्षवो भवाम्भोधिं बोधिबोहित्थवाहिताः । त्यजन्ति दूरतो मध्यभूधरानिव सिन्धुरान् ॥ ७॥ अन्वयः-बोधि मोहित्य वाहिताः भवाभोधि तितीर्षवः मध्यभूधरान इस सिंधुरान दूतः त्यति.॥७॥ अर्थः-मानरूपी वहाणमा वेठेला (डाह्या माणसो) संसारसमुद्रने तरी जवानी इच्छाथी बचे रहेला खराबाओसरखा, हाथीओ. 18/ ने दूवीज वजी दे छे. ॥७॥ KAKARAOKAKAKAR For Private And Personal use only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चंद्रयशः चरित्रं ॥ ४ ॥ www.kobatirth.org. भवाटवीकुरङ्गाणां तुरङ्गाणां चलात्मनाम् । मोहश्रीहग्विलासानां गोचरे नो घरेत्कृती ॥ ८ ॥ अन्वयः - भव अटवी कुरंगाणां चलात्मनां मोहश्री दृग्विलासानां तुरंगाणां गोचरे कृती नो चरेत् ॥ ८ ॥ अर्थः- आ संसाररूपी वनमा दरिणसरखा, चपल तथा मोइलक्ष्मीनी आंखोना कटाक्षोसरखा एवा घोडाओनी नजीक (पण) चतुर माणस आवतो नथी. ॥ ८ ॥ मोहभूमिभुजङ्गस्य जङ्गमास्थानमण्डपम् । छायाछलात्तले व्याप्तं पातकैस्तस्य सेवकैः ॥ ९ ॥ छत्रं विवेकमार्तण्डप्रकाशभरनाशकम् । न कोऽपि सेवते तादृग्जडतावकितः कृती ॥ १० ॥ युग्मम् ॥ अन्वयः - मोह भूमिञ्चजंगस्य जंगम आस्थान मंडपं, छायाछलात् तले तस्य सेवकैः पातकैः व्याप्तं ॥ ९ ॥ विवेक मार्तंड प्रकाश भरनाशकं छत्रं तादृक् जडता चकितः कः अपि कृती न सेवते ॥ १० ॥ युग्मं ॥ अर्थ ः— मोहरूपी राजाना जंगम सभामंडप सरखा, तथा नीचेना भागमां छायाना मिषथी ते मोहराजाना सेवको सरखा पापोवडे व्याप्त वेला || ९ || अने विवेकरूपी सूर्यना प्रकाशना समूहने आच्छादित करनारा, एवा छत्रने तेवी रीतनां (तेनां) जडपणाथी चकित थयेलो, एवो कोइ पण चतुर माणस सेवे नही. ॥ १० ॥ युग्मं ॥ रत्नान्यगाधवतींनि स्त्रियो भान्ति भवार्णवे । पुमान्मज्जत्यनुन्मज्जो यत्पाणिग्रहणाग्रही ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir আনতন * 9* छत सान्वय भाषान्तर ॥ ४ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Kala m ander चंद्रवक्षः चरित्रं भाषान्तर ॥ ५ ॥ ASSALANANHNAXHIUNEA अन्वया-भव अर्णवे अगाधवर्तीनि रत्नानि खियः भांति, यत् पाणि ग्रहण आग्रही पुमान् अनुन्मजः मजति. ॥ ११ ॥ अर्थ:-आ संसाररूपी महासागरमा अत्यंत उंदा रहेला रत्नोसरखी खीमो शोमे के, के जेना कानमाटे (हाथमा लेवामाटे) आग्रह युक्त थयेलो पुरुष पाछो उपर न आची शके, ए रीते (तेमा) बुडी जाय छे. ।। ११ ॥ एतदीदग्विधं मोक्तुमशक्तः सकलः कृती। असक्त एव सेवेत शीतभीत इवानलम् ॥ १२ ॥ ___ अन्वया-वरग्विधं एतत् मोक्तुं अशक्तः सकलः कृती, शीतभीतः अनलं इस बसक्तः एव सेवेत. ।। १२ ॥ | अर्थ:-एवी रीतना आ सांसारिक विषयोने छोटवाने अशक्त थयेला सपळा डाद्या माणसो, ठंडीथी डरेलो माणस (टेयी) जेम अग्निने सेवेळे, तेम तेमा मासक्ति राख्या विनाज (विषयोने) सेवे . ॥ १२ ॥ तदिदानीमहं मोहादतो निर्गन्तुमुद्यतः । राज्ञां राज्यश्रमः सूनुयौवनान्तो हि नः कुले ॥ १३ ॥ ____ अन्वयः-त् इदानीं अहं अतः मोहात् निर्गतुं उद्यतः, हि नः कुले राज्ञा राज्यश्रमः धनु यौवन अंतः ॥१३ ।। अर्थः-माटे हवे हुँ (संसारनी) आ मोहजाळमाथी निकळवाने उत्सुक थयेलो छु, केमके आपणा कुळमां थयेला राजाओ पुत्रना यौवनसुधी राज्यनो श्रम उगवे छे. ॥ १३ ॥ तातो मामिव वत्स त्वां स्वस्थानेऽस्मिन्निवेश्य तत् । मोहवीरस्य कारातः संसारान्निरयेऽधुना ॥१४॥ ASSESSOUS For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चंद्रयशः चरित्रं ॥ ६ ॥ www.kobatirth.org. अन्वयः -- तत् ( है ) वत्स! मां इत्र तातः त्वां अधुना अस्मिन् स्वस्थाने निवेश्य मोहवीरस्थ कारातः संसारात् निरये ॥ १४ ॥ अर्थ:-माटे (t) वत्स ! मने जेम (मारा) पिता, तेम तने हमणा आ मारी गादीपर बेसाडीने मोहसुभटना केदखाना सरखा (आ) संसारमांथी निकळी जाउं छु. ॥ १४ ॥ इत्युक्त्वा बलतो राज्याभिषेकं विरचय्य मे नृपो लक्ष्यसपोलक्ष्मीयौवनं प्रययी वनम् ॥ १५ ॥ 1 अन्वयः --- : -- इति उक्त्वा बलतः मे राज्य अभिषेकं विरचय्य नृपः लक्ष्य तपः लक्ष्मी यौवनं वनं प्रययौ ॥ १५ ॥ अर्थः- एम कहीने बळात्कारे मारो राज्याभिषेक करावीने ते राजा, ज्यां तपरूपी लक्ष्मीनुं यौवन देखाय छे, एवा वनप्रत्ये चालया गया. ।। १५ ।। परिपालयतो राज्यं ममापि क्ष्मापशिक्षया । राज्ञी रत्नावली नाम प्राणेभ्योऽपि प्रियाभवत् ॥ १६ ॥ अन्वयः - क्ष्माप शिक्षया राज्यं परिपालयतः मम अपि प्राणेभ्यः अपि प्रिया रत्नावलीनाम राज्ञी अभवत् ॥ १६ ॥ अर्थ:- राजानी (मारा पिताजीनी) शिखामण मुजब राज्यनुं पालन करता एवा मने पण, पाणथी पण बहाली रत्नावली नामनी राणी थइ. ।। १६ । भवानुबन्धिनीं जानन्नपि तां तद्गतं मनः । आक्रष्टुं न क्षमोऽभूवं पङ्गमन्नमिव द्विपम् ॥ १७ ॥ For Private And Personal Use Only . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सान्वय भाषान्तर ।। ६ ।। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय भाषान्तर ॥ ७ ॥ चंद्रयशः दा अन्वयः--ता भवानुवंधिनी जानन् अपि, पंकमग्नं द्विपं इव तद्गतं मनः आक्रष्टुं क्षमः न अभूवं. ॥१७॥ चरित्रं अर्थ:-तेणीने संसार (बधवानां) कारणरूप जाणतां छतां पण कादवा चुडेला हाथीनीपेठे, तेणीमा चोटेला (मारा) मनने खेंची कहावाने (९) समर्थ थयो नही. ॥ १७॥ ॥ ७॥ लग्नं तस्यां तथा प्रेमवज्रलेपेन मन्मनः । न यथाकर्षि राज्यश्रीधुरीणैरपि वारणैः ॥ १८ ॥ अन्वयः-तस्मा मेम पत्र लेपेन मन्मनः तथा लग्नं, यथा राज्य श्री धुरीणेः वारणेः अपि न आकर्षि. ॥ १८॥ अर्थ:-ते राणीमा प्रेमरूपी वनपथी मारु मन एवं तो चोटी गयु के, राज्यलक्ष्मीना भारने खेचनारा हाथीसरखा ( मंत्रीओ) पण तेने खेचीने कहाडी शक्या नहीं. ॥ १८॥ तस्यामुच्छूङलं कामपिशाचेन मनो मम । गृहीतं हन्त नामोचि मन्त्रज्ञैरपि मन्त्रिभिः ॥१९॥ अन्वयः-ईत तस्या उच्खलं कामपिशाचेन गृहीतं मम मनः मंत्रज्ञैः मंत्रिभिः अपि न अमोचि. ॥१९॥ अर्थः-अरेरे! ते राणीमांज आसक्त थयेला, अने कामदेवरूपी पिशाचे वश करेला मारा मनने मंत्रोना जाणनारा मंत्रीओ पण छोडावी शक्या नही. ॥ १९ ॥ | तदेकायत्तचित्तस्य राज्यश्रीरीjया मम । परहस्तं यती तस्थौ वृद्धामात्यह्रिया यदि ॥ २० ॥ For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रयशः सान्वय चरित्रं भाषान्तर ॥८ ॥ अन्वयः तत् एक आयत्त चित्तस्य पम राज्यश्रीः ईर्पया परहस्तं यती यदि पद अमात्य दिया तस्यो. ॥ २०॥ अर्थः-तेणीमान फक्त आसक्त छे मन जेनु, एवो जे हुँ, तेनी राज्यलक्ष्मी ईर्ष्याथी परना हाथमा जती जती फक्त पद्ध मंत्रीनी शरमथी रही गइ. ।। २० ।। मानसे मानसेविन्या तया नित्याश्रितेऽविशन् । स्त्रीसंघभयेनेव न धर्मगुरवोऽपि मे ॥ २१ ॥ __ अन्वयः-मानसेविन्या तया नित्याश्रिते मे मानसे स्त्रीसंघट्ट भयेन इव धर्म गुरवः अपि न अविशन् . ॥ २१ ॥ अर्थ:-सन्मानपूर्वक सेवाती एवी ते राणीवडे हमेशा वशीभूत थयेला मारा मनमा, जाणे स्त्रीना स्पर्शना भयथी होय नही ! तेम गुरुओ पण प्रवेश करी शक्या नही. ।। २१॥ इत्यनन्यमना धन्यंमन्यस्तन्न्यस्तलोचनः । अमन्ये मान्मथं पर्व निर्वाणपदमप्यदः ॥ २२ ॥ अन्वयः-इति अनन्यपनाः तन्न्यस्त लोचनः (अहं) धन्यंमन्यः निर्वाण पदं अपि अदः मान्मयं पर्व अमन्ये. ॥ २२॥ अर्थ:-ए रीते पीजे क्योय पण मन राख्या विना फक्त ते राणीमाज दृष्टि राखीने ९ (पोताने) भाग्यशाली मानतो थको मोक्षने पण आ कामसेवार्नु पर्व मानवा लाग्यो. (अर्थात् आ कामभोगज मोक्ष छे, पम मानवा लाग्यो.) ॥२२॥ अन्यदा मदनानन्दरसनिद्रावशंवदः । खमपश्यमहं स्वप्ने मुक्तागिरिशिरश्चरम् ॥ २३ ॥ SARKAAKAARAKOT For Private And Personal use only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya K ager ande सान्वय भाषान्तर ॥ ९ ॥ चंद्रयशः दा अन्वषा-अन्यदा मदन आनंद रस निद्रा वशंवदः अहं स्वमे मुक्तागिरि शिरः चरं अपश्यं । २३ ।। चरित्रं अर्थः-एक दिवसे कामविलासना आनंदरसथी निद्रावश धयेलो हुं स्वप्ना पोताने सिद्धगिरिना शिवरपर चालतो जोवा लाग्यो. तस्यामुन्निद्रनिद्रायामुन्निद्रोऽहं तदा हृदा । अचिन्तयमिदं चिन्तान्तरावसरशालिना ॥२४॥ ___अन्धयः-तस्यां चिद निद्रायां तदा उभिद्रः अहं चिंता अंतर अवसरशालिना हृदा अचिंतयं. ॥ २४ ॥ अर्थ:-ते राणी हजु भर उपमा हती, त्यारे जागी उठेलो हूं, बीजां चितवनमाटे (मळेला) अवसरथी शोभता एवा हृदयवडे हु विचारखा लाग्यो के, ।। २४ ॥ ___ स्वप्नः सर्वोत्तमस्तावन्मुक्तेर्लाभ दिशत्यसो । किं तु कान्तावशहृदः क्व तत्संभावनापि मे ॥ २५॥ अन्वयः-सर्वोत्तमः असौ स्वप्नः तावत् मुक्तेः लाभ दिशति, किंतु कांता वश रदः मे तत्संभावना अपि क्व ॥ २५ ॥ अर्थ:--सर्वथी उत्तम एवं आ खम तो मुक्तिनो लाभ सूचवे छे, परंतु स्त्रीने वश हृदयवा एवा मने ते मुक्तिना लाभनो संभव पण क्याथी होय ? ॥ २५ ॥ किंकुर्वत्काञ्चना कान्तिस्तृणन्मत्तगजा गतिः । दासदश्वा दृगुल्लासाः कर्करन्मणयो नखाः ॥ २६ ॥ चेटत्कर्पूरकस्तुरीमुख्यगन्धो मुखानिलः । यस्या रेणुकणाद्दव्यदुकूला दशनद्युतिः॥ २७॥ युग्मं ॥ अन्वयः-यस्याः कांतिः किंकुर्वकांचना, गतिः तृणन्मत्तगजा, गुल्लासाः दासदश्वाः, नखाः कर्करन्मणयः, ॥ २६ ।। मुखा-3 ROSHANGAISTAS 35453 For Private And Personal use only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Sun Kaisager Gamandi सान्वय ॐॐ भाषान्तर चंद्रयशः II निल: चेटकपूर कस्तूरीमुख्य गंधः, दशनयुतिः रेणुकणत दिव्यदुकूला ॥ २७ ।। युग्मं ॥ अर्थ:-जे आ राणीनी कांति तो सुवर्णने कई हिसाबमां गणती नथी, तेणीनी गति तो मदोन्मत्त हाथीने पण तृणसमान लेखेछे, चरित्रं तेणीना नेत्रोना (चपल) विलासो तो घोडाओने पण नोकर गणे छे, अने तेओना नखो तो मणिोने कांकरासरखा लेखेछे, ॥२६॥ ॥१०॥ तेना मुखना वायुए तो कपूर तथा कस्तूरीआदिकनी सुगंधिने पण चाकररूप गणी छे, तथा तेना दांतनी कातिए तो दिव्य श्वेत रेशमी साडीने पण रजकणसरखी लेखी छे. ॥ २७ ॥ युग्मं ॥ युक्तं तयैकया हृन्मे राज्यभोगे श्लथीकृतम् । एतद्भोगं श्लथीकतु कोऽभ्युपायोऽस्तु मेधुना ॥ २८॥ अन्वयः-तया एकया युक्तं मे हृद् राज्य भोगे इलथीकृतं, एतद्भोग श्लथीकतु अधुना मे कः अभ्युपायः अस्तु. ।।२८॥ अर्थः–ते एक राणी साथे जोडायेलं मारुं मन राज्यकार्यमां नरम पड़ी गयुं छे, (माटे ) तेणीना भोगविलासने नरम पाडवा माटे हवे मारे कयो उपाय शोधको ।। २८ ।। किमस्या न महानीलीलीलां दधतु कुन्तलाः । हृद्वर्तिभिः कलुषितं श्रुतं मे क्षीरहारि यैः ॥ २९ ॥ अन्वयः-अस्याः कुंतलाः किं महानीली लीला न दधतु ? हद्वातिभिः यैः मे क्षीरहारि श्रुतं कलुपितं ॥ २९ ॥ अर्थः-आ राणीना (मस्तकपरना) केशो शुं पाकी गळीनी क्रीडाने (श्यामपणाने) नधी धारण करता? (केमके मारा) हृद51 यमा रहेला एवा जे केशोए मारुं दूधसरखं मनोहर ( उज्ज्वल ) ज्ञान मलीन कर्य छे. ॥ २९ ।। For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय चंद्रयशः चरित्रं भाषान्तर ॥११॥ किममुष्या मुखं नेन्दुर्यल्लीलामीलितं मम । विवेकमब्जवद्वीक्ष्य हंसगौरैर्गतं गुणैः ॥ ३०॥ अन्वयः-अमुष्याः मुखं कि इन्दुः न? यल्लीला मीलितं अब्जवत् मम विवेक वीक्ष्य हंस गौरैः गुणैः गतं. ।। ३०॥ अर्थ:-आ राणीनुं मुख शुं चंद्र नथी? (छे) केमके जेना प्रभावथी मीचाइ गयेला कमल सरखो मारो विवेक जोइने हंससरखा निर्मल गुणो ( मारामाथी) चाल्या गया छे. ॥ ३० ॥ अस्या नीलाब्जसदृशो दृशो नित्यधृतस्मिताः । शंसन्ति तत्त्वविज्ञानभानुमस्तमितं मयि ॥ ३१ ॥ अन्वयः-नित्य धृत स्मिताः नीलाब्ज सदृशः अस्याः दृशः मयि तत्त्व विज्ञान भानु अस्तं इतं शंसंति ॥ ३१ ॥ अर्थ:-हमेशा विकस्वर रहेती, तथा (चंद्र विकासी) लीला कमलो सरखी आ राणीनी आंखो, मारा तत्त्वज्ञानरूपी सूर्यने अस्त पामेलो सूचवे छे. ।। ३१॥ अधरो मधुमाधुर्यधुर्योऽस्या यद्वशं भृशम् । प्रमत्तं मन्मनोऽमुश्चन्दूरतः सूरयो रयात् ॥ ३२ ॥ अन्वयः-अस्था: अपर: मधु माधुर्य धुर्यः, यद्वशं भृशं पमत्तं मन्मन खरयः स्यात् दूरतः अमुचन्, ।। ३२ ॥ अर्थ:-आ राणीना होठ मधनी पेठे ( मदिरानी पेठे) मीठाशमा अग्रेसर छे, के जेने वश थइ अत्यंत उन्मत्त (प्रमादी) थयेला मारा मनने धर्माचार्योए तो दूरथीज तजी दीधुं छे, ॥ ३२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Kaisagens and सान्वय चंद्रयशः चरित्रं भाषान्तर ॥१२॥ एतस्याः कम्बुवत्कण्ठो गम्भीरमधुरस्वरः । कृत्स्नानां मम कृत्यानां प्रयाणायैव कल्पितः ॥ ३३ ॥ अन्वयः-एतस्याः कंबुवत् गंभीर मधुर स्वरः कंठः मम कृत्स्नानां कृत्यानां प्रयाणाय एव कल्पितः ॥३३॥ अर्थ:-आ राणीनो शंख जेबो गंभीर, अने मनोहर नादवाळो कंठ मारा सघळा (उत्तम) कार्योनां प्रयाणमाटेज जणायेलो छे. (केमके प्रयाणसमये शंख बगाडवामां आवे छे.) ।। ३३ ।। अप्येतन्मृदुदो लपाशबद्धं निजं मनः । नाहं मोचयितुं शक्तो धिगसारनराग्रणीम् ॥ ३४ ॥ अन्वया--एतत् मृद दोनाल पाश बद्धं अपि निजं मनः अहं मोचयितुं शक्कान, असार मर अग्रणी धिक ॥ ३४॥ अर्थः-आ राणीना कोमल हस्तनालरूपी पाशथी बंधायेला, एवां पण मारा मनने हुँ छोडववाने शक्तिमान यतो नथी, माट निर्बल माणसोना सरदार एवा (मने) धिकार . ।। ३४ ॥ लीलयैव विलोऽहमहो भवमहाटवीम् । तस्यामस्यास्तु दुर्लयो वेणिदण्डो हृदापि मे ॥ ३५॥ ___ अन्वयः-अहो! भवमहाटवीं अहं लीलया एव विलंबे, तस्यां अस्याः चेणिदंडः तु मे दा अपि दुर्लध्यः ॥ ३५ ॥ अर्थ:-अहो ! संसाररूपी (आ) महावनने तो हुँ रमतमात्रमाज ओळंगी जाउं एप छउं, (परंतु) तेमां रहेलो आ राणीनो का वेणीदंड( गुंथेलो लांचो चोटलो) तो मारां मनवडे पण भोळं गावो मुश्केल छे. ॥३५॥ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Sh Kailasager Gamandi चंद्रयशः चरित्रं सान्वय भाषान्तर सर्वतोऽपि भवाम्भोधिः सुतरः सुतरामसौ । इहैतन्नाभिगम्भीरावर्तबन्धस्तु दुस्तरः ॥ ३६॥ अन्वयः-असौ भव अंभोधिः सर्वतः अपि सुतरी सुतरः, इह एतत् नाभि गंभीर आवर्तबंधः तु दुस्तरः ॥ ३६॥ अर्थ:-आ संसाररूपी महासागर तो सर्व बाजुएथी पण सहेजमा सुखे तराय एवो छे, परंतु तेमां रहेलो आ राणीनी नाभिरूपी ॥१३॥ उडो भमरीओ (बंध कुओ) तो तरावो मुश्केल छे. ॥ ३६ ॥ एतत्सिञ्जानमञ्जीरगतचित्तस्य विस्मृतौ । हंसस्येवामलो पक्षी धिग्ममोर्ध्वगतिक्षमौ ॥ ३७॥ अन्वयः-धिक । एतसिंजान मंजीर गत चित्तस्य मम हंसस्य इव ऊर्ध्व गति क्षमो अमली पक्षौ विस्मृतो. ॥ ३७॥ अर्थः-धिक्कार छे! के, आ राणीना झमकता झांझरोमां आसक्त मनवाळा एवा मने, हंसनीपेठे उंचे गमन करवामां समर्थ एवा मारा माता पिता संबंधी बन्ने निर्मल पक्षो (पक्षे-पाखो) विस्मरण थया. ॥ ३७ ।। इत्यादिभ्यानसंलीने मयि स्वं निन्दति स्वयम् । अपठन्प्रातरुत्तालस्वरं वैतालिका बहिः ॥ ३८॥ अन्वयः-इत्यादि ध्यान संलीने मयि, स्वयं स्वं निंदति, प्रातः बहिः बैतालिकाः उत्तालस्वरं अपठन ॥ ३८ ॥ अर्थः-इत्यादिक विचारमा गरकाव थइने हुं पोतानी मेळेज पोताने (ज्यारे) निंदतो हतो, त्यारे प्रभात थबाथी बहार रहेला स्तुतिपाठको उंचे स्वरे बोलवा लाग्या के, ॥ ३८॥ 18 निद्रां नरेन्द्र मुञ्चाशु बोधस्य समयो ह्यसौ । हन्तुं तमोऽभ्ययाद्भानुः संमोहमिव सद्गुरुः ॥ ३९ ॥ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Sun Kaisager Gamandi सान्वय चंद्रयशः चरित्रं का LOCA+ भाषान्तर ॥१४॥ ॥१४॥ +CA अन्धयः-(हे) नरेन्द्र ! आशु निद्रा मुंच, हि असौ बोधस्य समयः, सद्गुरुः समोई इव तनातुं भानुः अभ्ययात् ।। ३९ ।। अर्थः हे राजन् ! तुरत निद्रानो त्याग करो ? केमके आ जागवानो समय छे, सद्गुरु जेम मोहने, तेम अंधकारने हणवाने सूर्य नजीक आवेलो छे. ॥ ३९ ।। ऐनामुपश्रुति मुक्तिसूचिनी बन्दिना गिरम् । खप्नसंवादिनी जानन्नानन्दमहमासदम् ॥४०॥ ___अन्वयः-एना उपश्रुति चंदिना गिरं मुक्तिचिनी स्वप्नसंवादिनी जानन् अहं आनंदं आसदं. ॥ ४० ॥ अर्थः-(एवी रीतनी) आ कानमा पडेली ते स्तुतिपाठकोनी वाणीने मुक्ति सूचकनारी, तथा स्वप्नने मळती आवती जाणीने हुँ आनंद पाम्यो. ॥ ४०॥ क्षणेऽस्मिाग्रती साग्रे प्रेक्ष्य मां प्रथमोत्थितम् । हीनम्रास्या वचः किंचिन्नोचे मयि चट्टचितम् ॥४१॥ अन्वयः-अस्मिन् क्षणे जाग्रती सा प्रथम उत्थितं मां अग्रे प्रेक्ष्य ही नम्र आस्या मयि किंचित् चितं चटु न ऊचे. ॥४१॥ अर्थ:-ते वखते जागी उठेली एवी ते राणी, (पोताथी) पहेलो उठेला एवा मने आगळ (वेठेलो) जोइ, शरमने लीधे नीचे जोइ रही, तथा मारापते कई पण योग्य चाटु वचन बोली नही. ॥ ४१ ॥ अगाधबोधिदुग्धाब्धिसंमुखान्तरचक्षुषा । समभाषि मयाप्येषा न किचिन्नर्मभाषया ॥ ४२ ॥ अन्वयः-अगाध बोधि दुग्ध अब्धि संमुख आंतर चक्षुषा मया अपि एषा नर्मभाषया किंचित् न समभाषि. ॥४२॥ ANCE For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय भाषान्तर ॥१५॥ चंद्रयशः ।। अर्थ:-ज्ञानरूपी उंडा क्षीरसमुद्रनी सन्मुख थयेल छे अंतरंग चक्षु जेनां, एवा में पण तेणीने रमुजी भाषावडे कई पण वचन चरित्रं कयु नही. ।। ४२ ।। अथाग्रभागमागत्य प्रणिपत्य च मां मुदा । व्याजहार प्रतीहारी हारीकृतरदद्युतिः॥४३॥ ॥१५॥ ____ अन्वयः -अथ हारीकृत रद द्युतिः प्रतीहारी अग्रभागं आगत्य, च मां मुदा पणिपत्य व्याजहार. ।। ४३ ॥ अर्थः-एवामां मनोहर करेल छे दांतोनी कांति जेणीए एवी प्रतीहारीए आगळ आवीने, तथा मने नमीने कयुं के, ॥ ४३ ॥ देव विज्ञपयत्येवममात्यो मतिसागरः । चिराद्भवन्मुखालोककौतुकी सेवको जनः ॥४४॥ ___ अन्वयः-(हे) देव! मतिसागरः अमात्यः एवं विज्ञपयति, सेवकः जनः चिरात् भवन्मुख आलोक कौतु की. ॥ ४४ ॥ ___ अर्थ:-हे खामी ! मतिसागर मंत्री एम विनंति कहेवरावे छे के, (सर्व) सेवकलोको घणा समयवी.आपना मुखनुं दर्शन करवाने उत्कंठित थया छे. ॥ ४४ ॥ इति तद्वचनान्तेऽहं नित्यप्रत्यूषकृत्यकृत् । सेवितां सेवकस्तोमैः सभाभुवमभासयम् ॥४५॥ अन्वयः-इति तद्वचन अंते नित्य प्रत्यूषकृत्यकृत् अहं सेवकस्तोमैः सेवितां सभाभुवं अभासयं. ॥ ४५ ॥ अर्थः-एवी रीतना तेणीना वचनने अंते (ते प्रतीहारीनु बचन सांभळ्याबद) प्रभातकाळर्नु नित्यकर्म करीने हुँ सेवकोना समू| होथी सेवायेली राजसभाने शोभाववा लाग्यो, (त्यां गयो.) ॥ ४५ ।। For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सान्वय चंद्रयशः चरित्रं भाषान्तर ॥१६॥ ततः प्रणमतः सर्वानुर्वीनाथान्निरूपयन् । वीक्ष्य कस्यापि हस्तेऽब्जं तामब्जदृशमस्मरम् ॥ ४६॥ अन्वया-ततः भणपतः सर्वांन ऊर्शनाथान निरूपयन्, कस्य अपि हस्ते अब्ज वीक्ष्य अन्जर तो अस्मरं ॥ ४६॥ अर्थः-पछी नमता एना सघळा जमीनदारोने जोतोथको, कोइकना हाथर्मा कमलने जोइने कमलसरखां नेत्रोवाळी एवी ते है | (मारी) राणीने (९) याद करवा लाग्यो. ॥ ४६॥ वचोवीचिषु पीयूषसध्रीचीषु मनीषिणाम् । तदा तद्विरहोत्तप्तं न रेमे तत्र मे मनः ॥ १७ ॥ ___ अन्वयः तदा तब मनीषिणा पीयूषसधीचिषु वचोवीचीषु तद्विरह उत्तप्तं मे मनः न रेमे ।। ४७॥ अर्थः-वळी ते बखते त्या विद्वान कविओनां अमृतसरखां वचनरचनारूप मोजाओमा (पण) ते राणीना बिरहथी तपी निकळेल माझं मन आनंदित (शीतल) थयुं नही. ।। ४७॥ उत्कः क्षिपाम्यहं चक्षुर्याबदन्तः पुरं प्रति । तावच्चारुतर्नु कंचिदुदश्चदतुलद्युतिम् ॥ ४८ ॥ गाढग्रन्थिपरीधानं कटिवेष्टोत्तरीयकम् । अंसलम्बितनिस्त्रिंशमुरोबद्धासिधेनुकम् ॥ ४९ ॥ बिभ्राणं दक्षिणे पाणी ताम्बूलदलमण्डलीम् । वामे तया तु हर्षिण्या कृतहस्तावलम्बनम् ॥ ५॥ चक्षुषा धैर्यधुयेंण पश्यन्तं मामवज्ञया । नरं निरूपयामास निर्गच्छन्तं द्रुतैः पदैः ॥ ५१ ॥ CALCURRESS For Private And Personal use only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चंद्रयशः चरित्रं ॥ १७ ॥ www.kobatirth.org. अन्वयः - उत्कः अहं यावत् अंतः पुरं प्रति चक्षुः क्षिपामि तावत् कंचित् चारु वनुं, उदचत् अतुलपुर्ति ॥ ४८ ॥ गाढ ग्रंथि परीधानं, कटि वेष्ट उत्तरीयकं, अंस लंबित निखिशं, उरः बद्ध असिधेनुकं ।। ४९ ।। दक्षिणे पाणौ तांबूल दल मंडलीं विभ्राणं बामे तु हर्दिया तथा कृत हस्त अबलंबनं ॥ ५० ॥ धैर्य घुर्येण चक्षुषा अवज्ञया मां पश्यंतं, द्रुतैः पदैः निर्गच्छंतं नरं निरूपयामास. अर्थः- उत्कंठित थयेलो एवो हुं जेवामां जनानखाना तरफ नजर करूं हूं, तेवामां कोइक मनोहर शरीरवाळा, देदीप्यमान अनुपम कांतिवाळा, ॥ ४८ ॥ मजबूत गांठ बांधीने पहेरेल धोतीवाळा, केडे वीटेल दुपट्टावाळा, खमे लटकावेल शमशेरवाळा, छातीपर बांधेल कटारवाळा, ॥ ४९ ॥ जमणा हाथमां तांबूल पत्रोनी श्रेणिने धारण करनारा, हर्ष पामेली एवी ते राणीए पोताना हाथथी पकडेलो छे डालो हाथ जेनो एवा ॥ ५० ॥ हिम्मत भरेली दृष्टियी तिरस्कारपूर्वक मारीतरफ जोता, तथा उतावळे पगले (त्यांथी) निकळता एवा एक पुरुषने में जोयो. ॥ ५१ ॥ चतुर्भिः कलापकं ॥ क एक नयत्येतामिति कोपारणेक्षणम् । मामित्यूचे हसन्ती सा तं स्थिरीकृत्य सत्वरम् ॥ ५५ ॥ अन्वयः - एषः कः ? एतां क्व नयति ? इति कोप अरुण ईक्षणं मां हसंती तं सत्वरं स्थिरीकृत्य सा इति ऊचे. ।। ५२ ।। अर्थ---आ कोण हशे ? आ मारी राणीने क्यां लेइ जाय के ? एवा विचारथी क्रोधवडे लाल आँखोवाळो जे हुँ, तेनी हाँसी करती थकी, ते पुरुषने तुरत हिम्मत आपीने ते राणी (मने) एम कहेवा लागी के, ।। ५२ ।। अहं महापातकिना बन्दी के चिरं त्वया । प्रयामि संप्रति न्यस्य त्वदीयहृदये पदम् ॥ ५३ ॥ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सान्वय भाषान्तर 1120 11 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharyan ka mandi सान्वय चंद्रपशः चरित्रं भाषान्तर ॥१८॥ ॥१८॥ अन्वयः-महापातकिना त्वया अहं चिरं बंदीचक्रे, संपति त्वदीय हृदये पदं न्यस्य प्रयामि. ॥५३॥ अर्थः-महा पापी पवा तें मने घणा काळथी केद करीने राखी हती, हवे आ वखते तारी छाती पर पग मूकीने हुं नाशी जाउं छं. ईदृकृतद्वचनक्रुद्धो भटानित्यहमभ्यधाम्। ध्रियतां ध्रियतामेष हन्यतां हन्यतामयम् ॥ ५४॥ ___ अन्वयः-ईदृक् तत् वचन क्रुद्धः अह भटान् इति अभ्यधां, एषः ध्रियतां ध्रियता ? अयं हन्यता हन्यता ? ॥ ५४॥ अर्थः-एवीरीतना तेणीना वचनोथी क्रोध पामेला एवा में, (मारा) सुभटोने एको हुकम कयों के, आने पकडो पकडो ? तथा एने मारो मारो ॥ ५४॥ ततो मरुत्त्वरातारप्रचरचरणः क्षणात् । तया सह स हर्षिण्याऽगमगृहबहिर्महीम् ॥ ५५॥ अन्वयः-ततः मरुत् त्वरा तार प्रचर चरणः सः हर्षिण्या तया सह क्षणात् गृहबहिर्मही अगमत् . ॥ ५५ ॥ अर्थः-एछी वायु सरखा वेगथी उतावळी चालवाळो ते पुरुष, खुशी थयेली एवी (मारी) ते राणीसहित क्षणवारमा तो घरनी (अंतःपुरनी) बहार निकळी गयो. ॥ ५५ ॥ एष यात्येष यातीति प्रध्वानैरनुधावताम् । पुरःस्था अपि पौरास्तं न धर्तुं शेकुराहताः ॥ ५६ ॥ अन्वय:-एपः याति, एषः याति, इति प्रध्वानः अनुधावतां पुरःस्थाः आरताः पौराः अपि तं धतुं न शेकः ॥ ५६ ।। का अर्थ:-आ जाय, आ जाय, एम बूमो मारीने तेनी पाछळ दोडनाराअोमाना अगाडी रहेला, अने तैयार थइ उमेला, एवा ) For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय भाषान्तर ॥१९॥ चंद्रयशः टा नागरीको पण तेने पकडी शक्या नही. ॥ ५६ ॥ चरित्रं उत्फुल्लफेनया धावद्धयानां सेनया मया। मनसेवेन्द्रियग्रामः सोऽन्वगामि प्रवेगिना ॥ ५७॥ __ अन्वय:-उत्फुल्छ फेनया पावत् हयाना सेनया-(सह) मनसा इन्द्रिग्रामः इव, प्रवेगिना मया सः अन्वगामि. ॥ ५७ ॥ अर्थः-मुखमां आवेला फीणवाळी, एवी दोडता घोडाओनी सेना सहित, मन जेम इन्द्रियोना समूहनी पाछळ जाय, तेम अ-है स्यंत वेगवाळो एचो हुँ तेनी पाछळ जवा लाग्यो. ॥ ५७॥ पर्यन्तं पर्यटन्पुर्यास्तदन्वेषपरः पुरः । आलोकयं चमूं कांचित्काञ्चनोद्भासिभूषणाम् ॥ ५८॥ अन्वय:--तत् अन्वेषपरः पुर्याः पर्यतं पर्यटन् ( अहं) पुरः कांचन उद्भासि भूषणां कांचित् च आलोकयं ॥ ५८॥ अर्थः-तेने शोधवामा तत्पर थयेला, (अने तेथी) नगरनी आसपास भमता एवा में आगळ सुवर्णना तेजस्वी आभूषणोवाळी कोइक सेनाने जोइ. ।। ५८ ॥ तदन्तर्भद्रदन्तीन्द्रपृष्ठारूढस्य कस्यचित् । करे तेनार्पि सा सोऽपि तां वामाले न्यवीविशत् ॥ ५९॥ ___ अन्वय:-तत् अंतः भद्र दंतींद्र पृष्ठ आरूढस्य कस्यचित् करे तेन सा अर्पि, सः अपि ता वामांगे न्यवीविशत ।। ५९ ॥ अर्थ:-ते सेनानी वचमा रहेला भद्रजातिना गजराजनी पीठपर बेठेला कोइक माणसना हाथमा ते माणसे तेणीने सौंपी, अने Bा तेणे पण ते मारी राणीने (पोताना)खोळाना डाबी तरफना भागपर बेसाडी. ॥ ५९ ।। For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Sun Kaisager Gamandi हा सान्वय चंद्रयशः चरित्रं सा भाषान्तर ॥२०॥ ॥ २०॥ सा च वाचः सुदूरस्थं मां वीक्ष्य स्त्रीत्वलम्पटा। तदङ्गालिङ्गिनी वामकराङ्गुष्ठमनर्तयत् ॥ ६॥ ___ अन्वयः-च मां वाचः मुद्रस्थं वीक्ष्य स्त्रोत्वलंपटा सा तत् अंग आलिंगिनी वाम कर अंगुष्ठं अनर्तयत् . ।। ६० ॥ अर्थ:-वळी मने वचनथी पणे दूर रहेलो जोइने खी चरित्रमा प्रवीण एवी ते राणी ते पुरुपना शरीरने आलिंगन करीने (मा. रातरफ पोताना) डावा हाथनो अंगुठो नचाक्वा लागी. ॥६॥ तन्निरीक्ष्य विलक्षोऽहमेतच्चेतस्यचिन्तयम् । अहो महोदधिर्मोहमहिम्नां महिलाजनः ।। ६१ ॥ अन्वयः-तत् निरीक्ष्य विलक्षः अह चेतसि एतत् अचितयं, अहो ! महिलाजनः मोह महिम्ना महोदधिः! ।। ६१॥ अर्थः-ते जोइ विलखो थयेलो हुं मनमा एम विचारवा लाग्यो के, अहो ! खीओ तो मोहना प्रभावोना महासागर सरखी जणायछे मदिराया गुणज्येष्टा लोकद्वयविरोधिनी । कुरुते दृष्टमात्रापि महिला अहिलं जनम् ॥ ६२॥ अन्वयः-महिला मदिरायाः गुण ज्येष्टा, लोक द्वय विरोधिनी, दृष्टमात्रा अपि जन अहिलं कुरुते ।। ६२ ।। अर्णः-स्त्री (खरेखर) मदिराथी पण चडीयाता प्रभाववालो, तथा बन्ने लोक गाडनारी छे, (केमके) दर्शनमात्रथीज (ते) पुरुष ने गांडो बनावी मेले छे. ।। ६२ ।। परापकाराहंकारि किं विषं सन्ति हि स्त्रियः । यत्सेवनभवस्तापः परत्रापि न शाम्यति ॥ ३॥ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharyan ka mandi चद्रयशः सान्वय चरित्रं भाषान्तर ॥२१॥ ॥२१॥ अन्वयः-पर अपकारी अहंकारि विषं किं? हि स्त्रियः संति, यत् सेवन भवः तापः परत्र अपि न शाम्यति. ॥ ६३ ॥ अर्थ:-परनुं बुरुं करवामा गर्व धारण करनारु कयु झेर छे? तो के खरेखर स्त्रीओ (तेवां झेर रूप छे), के जेने सेववाथी उत्पन्न थयेलो ताप परलोकमां पण शांत यतो नथी. ॥ ६३॥ स्त्रियां विषतनौ दक्षा लक्षणावैपरीत्यतः । सुधाकराद्यैरोपम्यं ददुस्तन्न जडा विदुः ॥ ६४ ॥ अन्वयः-दक्षाः लक्षणा वैपरीत्यत: विपतनौ खियां सुधाकराद्यैः औपम्यं ददुः, तत् जडान विदुः। ॥ ६४ ॥ अर्थः-कविओए तो विपरीत संबंधरूपे मेरी शरीरवाळी खीने (पण) चंद्रआदिकनी उपमाओथी अलंकृत करेली छे, ते हकीकतने अज्ञानी मूों जाणी शक्या नथी. ।। ६४॥ विश्वासघातिनां मौलिरत्नं जानामि योषितः । नरकाब्धी नरं प्रेम्णा परिरभ्य क्षिपन्ति याः॥६५॥ ___अन्वयः-जानामि, योषितः विश्वासघातिनां मौलिरत्नं, याः नरं प्रेम्णा परिरभ्य नरक अब्धौ क्षिपति. ॥ ६५ ॥ अर्थ:-हुँ पम जाणुं छु के, स्त्रीओ विश्वासघात करनारामां शिरोमणिसरखी छे, के जेओ पुरुषने प्रेमथी वळगी पडीने नरक रूपी महासागरमा फेंकी दे ळे. ॥६५॥ अबला इति न स्त्रीभिः कर्तव्यं हस्तमेलनम् । हरन्ति जीवितं पुंसां संशये च क्षिपन्ति याः॥६६॥ अन्वय:-"अबला" इति स्त्रीभिः हस्तमेलनं न कर्तव्यं, याः पुंसां जीवितं हरंति, च संशये सिपंति. ।। ६६ ॥ RSHASHASSASSAS For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharyan ka mandi सान्वय चंद्रयशः चरित्रं भाषान्तर ॥ २२ ॥ ॥ २२ ॥ KARAAAAAAR टू अर्थ:-आ "अबला" (निर्बल छे) एम धारीने स्त्रीओनी साथे हस्तमेलाप करचो नही, केमके तेओ पुरुषोना जीवितने (वीर्यने) हरे छे, तथा तेओने (माणसंबंधि) संशयमा नाखे छे. ॥ ६६॥ इयं हि मम रक्तस्य प्रतीचीव विवस्वतः । मानम्लानिं ददो कां तु गतिं दातेति वेत्ति कः ॥ ६७॥ ___अन्वयः-विवस्वतः प्रतीची इव हि इयं रक्तस्य मम मानम्लानि ददौ, गति तु का दाता? इति का वेति ? ॥ ६७ ॥ अर्थ:-सूर्यने जेम पश्चिम दिशाए, तेम खरेखर आ राणीए आसक्त (पक्षे-लाल रंगना) एवा मने मानहानि आपी छे, अने (हजु) गति तो केवी आपशे? ते कोण जाणी शके एम के ? ॥ ६७ ।। धिग्मामेतशित्वेन शिवोदयनिरादरम् । घूकनेत्रमिव ध्वान्तमित्रत्वेनार्कनिःस्पृहम् ॥ ६८॥ अन्वयः-ध्यांत मित्रत्वेन अर्क नि:स्पृहं घूकनेत्रं इव, एतदशित्वेन शिव उदय निरादर मा धिक् ।। ६८॥ अर्थ:-अंधकारनी मित्राइथी सूर्यनी इच्छा नही राखनारा घूबडना नेत्रनी पेठे, आ राणीने वश थइ मोक्षमाप्तिमाटे बेदरकार रहेला पवा मने धिक्कार छे. ।। ६८ ॥ एतद्वैराग्यतो नैतद्वैरं मुश्चेऽधुना पुनः । कुलस्यापि कलङ्कः स्यादपमानो हि मानिनाम् ॥ ६९ ॥ ___ अन्वयः-पुनः एतद् वैराग्यतः अधुना एतद्वैरं न मुंचे, हि अपमानतः मानिनां कुलस्य अपि कलंक: स्यात् ।। ६९ ॥ अर्थः-परंतु आवीरीतना वैराग्यथी हमणा तो आ वैरने छोडीश नही, केमके अपमान ( सहन करवायी) मानी माणसोना For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय भाषान्तर ॥ २३॥ चंद्रयशः । कुलने कलंक लागे छे. ॥ ६९ ॥ चरित्रं यः प्रदत्ते हृदि पदं तमूर्ध्वं गिलति क्षणात् । अपमानेऽप्यनुद्योगी पङ्कादप्यधमः पुमान् ॥ ७० ॥ अन्वयः-अपमाने अपि अनुद्योगी पुमान् पंकात् अपि अधमः, यः हृदि पदं दत्ते तं ऊर्व क्षणात् गिलति. ॥ ७० ॥ ॥२३॥ अर्थः-अपमान थयां छतां पण जे माणस तेनुं वेर लेवामाटे उद्यम नथी करतो, तेने कादवधी पण अधम (जाणवो), केमके जे कोइ | तेनाहदयपर पग मुके छे, तेवा उंचा माणसने पण (ते कादव) क्षणवारमा गळी जाय छे. ॥ ७० ॥ क्षुद्रोष्युपद्रवं कुर्यान्निःकाममपमानितः । विदधुर्मधुहर्तारं विधुरं मधुमक्षिकाः ॥ ७१ ॥ अन्वय:-नि:कामं अपमानितः क्षुद्रः अपि उपद्रवं कुर्यात्, मधुमक्षिकाः मधुहर्तारविधुरं विदधुः ॥ ७१।। | अर्थ-नाहक अपमान पामेलो क्षुद्र पाणी पण (अपमान करनारने ) हेरान करे छे, केमके मधमाखो (पण पोतान) मध लेनारने व्याकुल करे छे. ॥ ७१।। गृह्णन्तं रससर्वस्वं भावन्तं प्रत्यपक्रियाम् । कांचित्कर्तुमशक्तस्य पङ्कस्यापि स्फुटत्युरः ॥७२॥ ___अन्वयः-रस सर्वस्वं गृह्णांत भास्वंतंप्रति कांचित् अपक्रियां कर्तुं अशक्तस्य पंकस्य अपि उरः स्फुरति ॥ ७२ ।। अर्थः-(पोतानां ) तमाम रसने चूसी लेता एवा सूर्यपतेनु कई पण वैर वसुल न करी शकता एवा कादवर्नु हृदय पण चीराइ 18 जाय छे. ॥७२॥ For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Sh Kailasager Gamandi सान्वय चंद्रयशः चरित्रं भाषान्तर ॥ २४॥ ॥२४॥ BANANACES दूरे त्यजति मातापि परावज्ञासहं नरम् । क्षममप्यक्षमैर्बद्धं गजं विन्ध्याटवी यथा ॥ ७३ ॥ __अन्वयः-क्षम अपि अक्षमैः बदं गजं यथा विध्याटवी, (तथा) पर अवज्ञा सई नरं माता अपि दूरे त्यजति. ॥७३॥ अर्थ:-समर्थ छतां पण असमाए (मनुष्योए) बांधेला हाथीने जेम विंध्याचलनी अटवी (तजी दे छे, तेम) परनु अपमान सहन करनारा पुरुषने ( तेनी) मावा पण दूर तजी दे छे. ।। ७३ ।।। तदेतस्यापमानाब्धेः पारं गत्वासिनोकया । संसारार्णवपाराय भजिष्ये पोतवद्वतम् ॥ ७४ ॥ ___ अन्वयः-तत् असि नौकया एतस्य अपमान अन्धेः पारं गत्वा संसार अर्णव पाराय पोतवत् व्रतं भजिये. । ७४ ॥ अर्थः-माटे खड्गरूपी वहाणथी आ अपमानरूपी समुद्रनो पार पाम्याबाद, संसाररूपी समुद्रनो पार पामवामाटे (९) नावसरखा चारित्रनो स्वीकार करीश. ।। ७४॥ अपमानेऽपि चेद् गृहे व्रतं तन्मे निदर्शनात् । मत्पूर्वेषामपि भवत्येषा संभावना व्रते ॥ ७५॥ अन्वयः-चेत् अपमाने अपि व्रत गृहणे, तत् मे निदर्शनात् मत्पूर्वेषां अपि व्रते एपा संभावना भवति. ।। ७५ ॥ अर्थ:-कदाच अपमान यया छतां पण जो हुं चारित्र लेउ, तो मारा दाखलाथी मारा पूर्वजोना चारित्रमाटे पण (लोकोमा) एवीरीतनीज संभावना थाय. ॥ ७ ॥ यावदित्युद्धतध्यानस्त्यानचित्तोऽस्मि युद्धधीः । सैन्यसर्वाभिसारेण मन्मन्त्री तावदागमत् ॥ ७६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय भाषान्तर ॥२५॥ चंद्रयशः दा अन्वयः-इति उद्धत ध्यान स्त्यान चित्ता यावत् युद्धधीः अस्मि, तावत् मन्मनी सैन्य सर्व अभिसारेण आगमत् ॥७६|| चरित्रं अर्थः-एवी रीतना उद्धत विचारोमा चोटेला मनवाको (हु) जेवामां युद्धमाटे चितवन करुं हुं, तेवामा मारो मंत्री सैन्यनी सर्व 18| सामग्रीसहित (त्या) आवी पहोंच्यो. ॥ ७६ ॥ ॥२५॥ ततोऽन्तरस्फुरदूताविर्भूताद्भुतवैरयोः । मम तस्य च सेनाभिः समरः समवर्तत ॥ ७७॥ ___ अन्वयः-ततः अंतर स्फुरत् दूत आविर्भूत अद्भुत वैरयोः मम च तस्य सेनाभिः समरः समवर्तत. ॥ ७७॥ अर्थः-पछी बच्चे जताआवता दूतोथी प्रगट ययेल छ घणु वैर जेओने, एवा मारां अने ते पुरुषना सेन्योवच्चे युद्ध यवा मांडयुं. मिथो रथो रथं नागं नागोऽश्वोऽश्वं भट भटः। समियाय समीकाय स्वकायव्ययनिर्भयः॥ ७८॥ ____ अन्वय:-स्वकाय व्यय निर्भयः रथं रथः, नाग नागः, अश्व अश्वः, भटं भटः मिथः समीकाय समियायः ॥ ७८ ॥ अर्थ:-(पछी) पोतानां शरीरना विनाशनो भय राख्याविनाज रथसामे रथ, हाथी सामे हाथी, घोडासामे घोडो, अने सुभटसामे सुभट, एम परस्पर युद्ध करवामाटे गोठवाइ गया. ॥ ७८ ॥ समनम्यत कोदण्डैः खड्गण्डैरकम्प्यत । तत्र रौद्रे रणोद्रेके न तु शोयोटै टैः॥ ७९ ॥ ___ अन्वयः-तन रौद्रे रण उद्रेके कोदंडैः समनम्यत, खड्गदडैः अकंप्यत, तु शौर्य उभटः भटैः न. ॥ ७९ ॥ अर्थ:-ते भयंकर रणसंग्राम होते छते धनुष्यो नमवा लाग्यां, तया तलवारो कंपवा (चमकवा) लागी, परंतु शौर्यना आवेशवाळा *6*6*6*6*6468 For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi चंद्रयशः सान्वय चरित्रं भाषान्तर ॥ २६ ॥ सुभटो नम्या के कंप्या नही. ७९ ॥ वपुषो निखिलस्यापि शक्त्या मुष्टिप्रविष्टया । दृढयन्तः प्रहरणान्यहितान्प्राहरन्भटाः ॥ ८॥ अन्वयः-निखिलस्य अपि वपुषः मुष्टि प्रविष्टया शक्त्या महरणानि दृढयन्तः भटाः अहितान् पाइरन्. ।। ८०॥ अर्थ:-आखाये शरीरनी मुठीमा आवेली शक्तिवडे हथीयारोने मजबूत पकडीने सुभटो शत्रुओने महार करवा लाग्या. ॥८॥ ताहग्युद्धश्रिया धन्यंमन्यो मन्योर्वशं गतः । प्रहारेषु लगत्वङ्गं भटः कण्टकितं दधौ ॥८१॥ अन्वयः-ताहग युद्ध श्रिया धन्यमन्या, मन्योः वशं गतः सुभटः प्रहारे लगत्सु कंटकितं अंगं दधौ. ।। ८१॥ अर्थ:-तेवा प्रकारनी युद्धलक्ष्मीथी (पोताने) भाग्यशाली मानतो, तथा क्रोधने वश थयेलो सुभट (शखोना) प्रहारो लागत! रोमांचित शरीरने धारण करवा लाग्यो. ॥ ८१ ॥ विलठत्तुरगनातं पतन्मातङ्गमण्डलम् । त्रुटच्छकटसंधानबन्धं नृत्यत्कबन्धकम् ॥ ८२॥ लोलत्कीलालकल्लोलमालिनीमण्डलं ततः । पक्षद्वयक्षयकरं प्रावर्धत रणक्षणम् ॥ ८३ ॥ युग्मम् ॥ ___अन्वयः-ततः विलुठत् तुरग वातं, पतत् मातंग मंडलं, त्रुटत् शकट संधान बंध, नृत्यत् कबंधक, 1८२॥ लोलत् कीलाल कल्लोल मालिनी मंडलं, पक्ष द्वय क्षय कर रणक्षणं भावर्धत. ।। ८३ ।। अर्थ:-पछी (त्यां घोडाओना समूहो (घायल थइ ) लोटवा लाग्या, हाथीओनो टोल पडवा लाग्यो, साल, बंधनो विगेरे For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Kagera Gyanmandi चंद्रयशः दि तुटी जबाथी रयोनी चूरेचरा थवा लाग्या, धडो नाचवा लाग्यो, ।। ८२ ॥ अने रुधिरनीन दीओ चालवा लागी, एवी रीते बोला चरित्रं Pा पक्षोनो विनाश करनारो रणसंग्रामनो महोत्सव वृद्धि पामवा लाग्यो ।। ८३ ॥ पुग्म. ॥ भाषान्तर भ्राजिष्णुभूरितेजस्कैः क्रमान्मत्पृतनाः परैः । कर्शयामासिरे ग्रीष्मवासरैरिव रात्रयः ॥ ८४ ॥ ॥२७॥ अन्वय:-क्रमात् प्राजिष्णु भरि तेजस्कैः परः ग्रीष्मवासरः रात्रयः इच मत्पृतनाः कर्शयामासिरे. ।। ८४॥ ॥२७॥ अर्थः-अनुक्रमे घणा चळकता तेजवाळा एवा ते शत्रुओए, उनाळाना (लांबा) दिवसो जेम रात्रिओने (टुंकी करे ) तेम मारी सेनाओने टुंकी करी नाखी. ॥ ८४ ॥ राजवाह्यमथारुह्य जवादिभविभुं विभीः । अहं तेन सह क्रुद्धो द्वन्द्वयुद्धोत्सुकोऽमिलम् ॥ ८५॥ अन्वयः-अथ जवात् राजवाय इभविभुं आरुह्य, विभीः क्रुद्धः अहं द्वंद्व युद्ध उत्सुकः तेन सह अमिलं. ।। ८५ ॥ अर्थः-पछी एकदम राजाने चटवाना पट्टहस्तीपर चढीने, निर्भय थइने, सथा क्रोध पामीने हुं द्वंद्वयुद करवामाटे उत्कंठित धइ तेनी साथे मळ्यो. ॥ ८५ ॥ मयि मुश्चति नाराचवीचीर्दक्षेण रक्षितः । तेनात्मा च गजेन्द्रश्च तलवर्गश्च मार्गणैः ॥८६॥ ___ अन्वयः-मयि नाराचवीचीः मुंचति, तेन दक्षेण मार्गणैः आत्मा च गजेंद्रः च तलवर्गः च रक्षितः ॥ ८॥ अर्थः-९ (ज्यारे ते शत्रुतरफ) चाणोनी श्रेणिओ छोडवा लाग्यो, त्यारे ते चतुर शत्रुए (पोते छोडेला ) बाणोबडे (पोताना) For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय भाषान्तर ॥२८॥ चंद्रयशःद आत्मानु, हस्तिराजनु, तथा नीचे रहेला सैन्यसमूह अथवा बख्तरचं रक्षण कयु. (तलवर्ग एटले धनुर्घरोनु चामडा मुंबखतर) चरित्रं | स तु निर्नाशयामास मार्गणानां गणैः क्षणात् । मद्दलं सकलं भानुर्भचक्रमिव भानुभिः॥८७॥ अन्वया-भानुः भानुभिः भचक्र इव, सातु मार्गणानां गणैः सकलं मनलं क्षणात निर्माशयामास. ॥८७॥ ॥ २८॥ अर्था-(पछी) सूर्य (पोताना) किरणोपडे जेम ताराओना समृहनो (नाश करे छे) तेम तेणे तो बाणोना समहोबडे मारा सर्व सैन्यनो क्षणवारमा विनाश करी नाख्यो. ॥ ८७ ।। । यद्यदस्त्रं मयामोचि तत्तदेष क्षणादपि । छेकश्चिच्छेद सद्यस्कं भवत्कमेव केवली ॥८८॥ अन्वयः-मया यत् यत् अत्र अमोचि, तत् तत् छेकः एषः, केवली सद्यस्कं भवत्कर्म इव क्षणात् अपि चिच्छेद. ॥ ८८॥ अर्थ:-में जे जे शस्त्र फेंकयु, ते ते शखने ते चालाक शत्रुए, केवली जेम तुरत भवोपनाही कर्मने छेदे, तेम क्षणवारमा छेदी नाख्यु. ॥८॥ पतत्यथ तदस्त्रातें गजे क्षीणाखिलायुधः । अस्त्रयन्मुष्टिमुत्प्लुत्यागमं तदिभमूर्धनि ॥ ८९॥ अन्वयः-अथ तत् अख आर्ते गजे पतति, क्षीण अखिल आयुधः, मुष्टिं अस्रयन् उत्प्लुत्य तत् इभ मूर्धनि आगमं ॥८९॥ अर्थ:-पछी तेना शस्रोनी वेदनाथी (मारो) हाथी पड्याचाद, सर्व शस्त्रो खलास यइ जवाथी, मूठीने शत्ररूप करी, उछळीने का (९) तेना हाथीना मस्तकपर आव्यो. ।। ८९ ।। For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Sh Kailasager Gamandi चंद्रमशः चरित्रं ॥२९॥ धृत्वाथ हस्तयोस्तेन क्षिपन्पादाहतीरहम् । उत्क्षिप्तः पतितो दूरे यन्त्रोत्थयावगोलवत् ॥ ९॥ सान्वय ____ अन्वयः-अथ पाद आहतीः क्षिपन् अहं तेन हस्तयोः धृत्वा उक्षिप्तः, यंत्र उत्य ग्राव गोलवत् रे पतितः ।। ९० ॥ भाषान्तर अर्थ:-पछी लातो मारता एवा मने ते शत्रुए वे हाथे पकडीने उंचे उछाल्यो, (अने तेथी) गोफणमाथी उछाळेला पत्थरना ॥२९॥ गोळानीपेठे हुँ दूर जइ पज्यो. ॥१०॥ सहसा सह सेनाभिः प्राविशन्मत्पुरं स तत् । तन्वन्साकं तयोत्तालहस्ततालः कथा मिथः ॥ ९१ ॥ अन्वयः-तया साकं उत्ताल हस्त ताल: मियः कथाः तन्वन् सः सहसा सेनाभिः सह तत् मत्पुरं पाविशत् ॥ ९१ ॥ अर्थ:-(पछी मारी) ते राणीनी साथे म्होटा अवाजथी हाथवडे ताडीओ देह परस्पर वातो करतो ते शत्रु एकदम (पोताना) सेन्यसहित मारा ते नगरमां दाखल थयो. ।। ९१॥ एवमालोकमानोऽहमपमानोच्चयाकुलः । इष्टमिष्टतमेभ्योऽपि गणयन्मरणं तदा ॥ ९२ ॥ यद्यस्ति सुकृतं किंचिन्मम तत्तन्निदानतः। मा भूद्भवान्तरेऽपि स्त्रीसङ्गः सत्पथभङ्गकृत् ॥ ९३ ॥ इत्यालपन्पुरः प्रेक्ष्य कूपं तत्र पपात च । सभान्तर्भद्रपीठस्थं स्वं ददर्श च पूर्ववत् ॥ ९४ ॥ अन्वया-तदा एवं आलोकमानः, अपमान उचय आकुल: अहं मरणं इष्टतमेभ्यः अपि इष्ट गणयन्, ।। ९२ ॥ यदि मम 115 RSSB For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharyan ka eramandi सान्वय भाषान्तर ॥३०॥ चंद्रयशः | किंचित मुकृतं अस्ति, तत् तन्निदानतः भवांतरे अपि सत्पथ भंगकृत् स्त्रीसंगः माभूत् ॥ ९३ ॥ इति आलपन च पुरः कूपं प्रेक्ष्य चरित्रं तत्र पपात, च स्वं पूर्ववत् सभातः भद्रपीठस्थं ददर्श. || ९४ ।। त्रिभिर्विशेषकं ।। अर्थ:-ते समये आवी रीते जोतो, तथा अपमानना समूहथी व्याकुल थयेलो हुं मृत्युने व्हालामा व्हालुं गणतोथको, ॥१२॥ ॥३०॥ जो मारुं (हजु) कईक पुण्य (चाकी) होय, तो तेना नियाणाथी भवांतरमा पण, उत्तम मार्गनो विनाश करनारो स्त्रीसंग (मने) न धजो, ॥ २३ ॥ एम बोलतो थको आगळना भागमा कुवाने जोइ तेमां पड्यो, परंतु (हुं) पोताने पूर्वनीपेठेज राजसभानी अंदर सिंहासनपर बेठेलो जोबा लाग्यो. ॥ ९४ ॥ त्रिभिर्विशेषकं ।। ये युधि क्रुधि दुर्धर्षाः क्षताः प्रपतिता मृताः । तानक्षतानहं संसद्यपश्यं पार्श्वतो भटान् ॥ ९५॥ अन्वयः-धि दुर्धर्षाः ये युधि क्षताः, पतिता, मृताः तान् भटान् अहं संसदि पाचनः अक्षतान् अपश्यं. ९५ ॥ अर्थ:-क्रोधने लीधे न पकडी शकाय एवा जे मुभटो युद्धमा घायल थया हता, मूर्छित थया हता, तथा मरण पाम्या हता, ते सुभटोने हुं सभामा चोतरफ अक्षत शरीरवाळा (जीवता) जोवा लाग्यो. ॥ ९५ ।। ये दृष्टाः संगरे पिष्टास्तेषामशृणवं रवम् । हस्तिनां हस्तिशालासु वाजिशालासु वाजिनाम् ॥ ९६॥ अन्वयः-ये संगरे पिष्टाः दृष्टाः, तेषां हस्तिनां हस्तिशालामु, वाजिना वाजिशालामु रवं अशृणवं. ॥ ९६ ॥ 137 अर्थ-जेओने रणसंग्राममा में नाश पामेला जोया हता, ते हाथीओना हस्तिशालाओमां, तथा ते घोडाओना घोडाशालोमां EOSISESSASSASSAS CALCCASSECXRBANKA For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya Sh Kailasager Gamandi सान्वय भाषान्तर ॥३१॥ चंद्रयशदा (थता) शब्दोने हुँ सांभळवा लाग्यो. ॥१६॥ चरित्रं अन्तरन्तःपुरं यावक्षिप्ता दृक्तावदेक्ष्यत । तदालिमाला तादृक्तत्प्रतिकर्मक्रियोन्मुखी ॥ ९७ ॥ अन्वयः-यावत् अंतः अंतःपुरं दृक् क्षिप्ता, तावत् तारक तत् प्रतिकर्म क्रिया उन्मुखी तत् आलिमाला पेक्ष्यत. ॥ ९७ ॥ अर्थः-(पछी) जेवामा में अंतेउर तरफ नजर करी, तेवामा तेवी तेज राणीनी आसनावासनानी क्रिया करती एवी तेणीनी सखीओनी श्रेणि मारा जोवामां आवी. ॥९७ ।। इत्यद्भुतधुतवान्ते मयि कान्तेन तेजसा । अर्क कर्करयन्कश्चिदाविरासीत्पुरः सुरः ॥१८॥ ___ अन्वयः--इति अद्भुत धुत स्वांते मयि, कांतेन तेजसा अर्क कर्करयन् कश्चित् सुरः पुरः आविरासीत्. ॥ ९८ ॥ अर्थः-एवी रीतना आश्चर्यमा मारु हृदय व्याकुल यता, मनोहर तेजवी सूर्यने पण कांकरासरखो करतो कोइक देव मारी आगळ प्रगट थयो. ॥ ९८॥ तद्विलोकादहं जातजातिस्मृतिरचिन्तयम् । प्राग्जातो धनधन्याख्यौ सुहृदावहमेष च ॥ ९९ ॥ अन्वयः-तद्विलोकात् जात जाति स्मृतिः अहं अचर्तियं, पाग जातो अहं च एपः धन धन्याख्यो सुहदी. ।। ५९ ॥ अर्थ:-तेने जोवाथी थयेल छे जातिस्मरण शान जेने, एवो हुं विचारवा लाग्यो के, पूर्वभवमा हुं अने आ देव धन अने धन्यनामना मिलो हता. ॥ ९९ ॥ 545-545454 For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय चंद्रयशः चरित्रं ॥३२॥ भाषान्तर ॥३२॥ अनेन सह संसारनिःसारत्वविचारवान् । व्रतान्निरर्गलवर्गलक्ष्मीभोगमुपार्जयम् ॥ १० ॥ अन्मयः-अनेन सह संसार निःसारत्व विचारवान व्रता निरर्गल स्वर्ग लक्ष्मी भोग उपार्जयं. ॥१०॥ अर्थः-आ मित्रनीसाथे संसारना असारपणानो. विचार करी चारित्र लेबाथी में अस्खलित वर्ग लक्ष्मीनु मुख मेळव्यू हतुं १०० अभ्यर्थितोऽयमाश्लिष्य दिवः प्राक् च्यवता मया । उद्धर्तव्यस्त्वया सोऽहं भवे मोहार्णवादिति ॥१०१॥ ___ अन्वयः-दिवः पाक च्यवता मया अयं आश्लिष्य इति अभ्यर्थितः, सः अहं भवे मोद्द अर्णवात् त्वया उद्धर्तव्यः ॥ १.१॥ अर्थः-देवलोकर्माथी प्रथम चवता एवा में आ मित्रने मेटीने एवी प्रार्थना करी हती के, मने आ संसारमाना मोहरूपी महा. सागरमाथी तारे ओधरचो. ॥१०१॥ तन्नूनममुनैवाहं घटयित्वेति नाटकम् । बोधितो बोधदुग्धानामन्धुना बन्धुनाधुना ॥ १०२ ।। अन्वय:-तत् नूनं अधुना बोध दुग्धानां अंधुना अमुना बंधुना एव इति नाटकं घटयित्वा अहं बोधितः ॥ १० ॥ अर्थ:-माटे खरेखर इमणा ज्ञानरूपी दूधना कुचा सरखा एचा आ बंधुएज आवा प्रकारचें नाटक भजबीने मने बोध पमाख्यो . इत्युत्थाय मया प्रीत्या सत्कृतः स तिरोऽभवत् । अहं च प्रावज मच भवारण्यं विलड्डितुम् ॥१०३ ॥ मन्वयः-इति उत्थाय मया मीत्या सत्कृतः सः तिरोऽभवत्, च अहं भव अरण्यं विलंषितुं मंक्षु मात्रजं. ॥ १०३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Swahil an kendte A Sha y amandi 00000000000000 अर्थ:-एम विचारी उठीने में आनंदयी सरकार कांवाद ते देव अदृश्य थयो, अने में आ संसाररूपी अटवीने ओळंगी जवा माटे तुरत चारित्र ग्रहण कर्युः ॥ ४७८ ॥ ॥ इति श्रीस्त्रीविषयपरित्यागोपदर्शने चंद्रयशोनृप चरित्रं समाप्तं. आ चरित्र श्रीवर्धमानसूरिविरचित श्रीवासुपूज्यचरित्रनामना महाकाव्यमांथी स्वपरना श्रेय माटे तेना अन्वय तथा गुजराती भाषांतर सहित जामनगर निवासी पंडित श्रावक हीरालाल हंसराजे पोताना श्रीजैनभास्करोदय छापखानामां छापी प्रसिद्ध कयु छे. ॥ श्रीरस्तु ॥ ॥ समाप्तोऽयं ग्रंथः गुरुश्रीमच्चारित्रविजय सुप्रसादात् ॥ श्रीरस्तु ॥ GOOOOOOOOOO @@ FORPTIVDIEAnd personaluseonly Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Swahilan kendi Ah Kalamand ॥ इति श्रीचंद्रयशः चरित्रं समाप्तम ॥ Jeeeeeeeeeeeeeeeo CCCCCCCOOOOOOOOOOOOO Ole And Fersonal use only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Swahilan kendte A k amand FOR FIVE A Fonse only