Book Title: Chandrayash Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 19
________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi सान्वय भाषान्तर ॥१५॥ चंद्रयशः ।। अर्थ:-ज्ञानरूपी उंडा क्षीरसमुद्रनी सन्मुख थयेल छे अंतरंग चक्षु जेनां, एवा में पण तेणीने रमुजी भाषावडे कई पण वचन चरित्रं कयु नही. ।। ४२ ।। अथाग्रभागमागत्य प्रणिपत्य च मां मुदा । व्याजहार प्रतीहारी हारीकृतरदद्युतिः॥४३॥ ॥१५॥ ____ अन्वयः -अथ हारीकृत रद द्युतिः प्रतीहारी अग्रभागं आगत्य, च मां मुदा पणिपत्य व्याजहार. ।। ४३ ॥ अर्थः-एवामां मनोहर करेल छे दांतोनी कांति जेणीए एवी प्रतीहारीए आगळ आवीने, तथा मने नमीने कयुं के, ॥ ४३ ॥ देव विज्ञपयत्येवममात्यो मतिसागरः । चिराद्भवन्मुखालोककौतुकी सेवको जनः ॥४४॥ ___ अन्वयः-(हे) देव! मतिसागरः अमात्यः एवं विज्ञपयति, सेवकः जनः चिरात् भवन्मुख आलोक कौतु की. ॥ ४४ ॥ ___ अर्थ:-हे खामी ! मतिसागर मंत्री एम विनंति कहेवरावे छे के, (सर्व) सेवकलोको घणा समयवी.आपना मुखनुं दर्शन करवाने उत्कंठित थया छे. ॥ ४४ ॥ इति तद्वचनान्तेऽहं नित्यप्रत्यूषकृत्यकृत् । सेवितां सेवकस्तोमैः सभाभुवमभासयम् ॥४५॥ अन्वयः-इति तद्वचन अंते नित्य प्रत्यूषकृत्यकृत् अहं सेवकस्तोमैः सेवितां सभाभुवं अभासयं. ॥ ४५ ॥ अर्थः-एवी रीतना तेणीना वचनने अंते (ते प्रतीहारीनु बचन सांभळ्याबद) प्रभातकाळर्नु नित्यकर्म करीने हुँ सेवकोना समू| होथी सेवायेली राजसभाने शोभाववा लाग्यो, (त्यां गयो.) ॥ ४५ ।। For Private And Personal Use Only

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