Book Title: Chandrayash Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ चंद्रयशः सान्वय चरित्रं भाषान्तर ॥८ ॥ अन्वयः तत् एक आयत्त चित्तस्य पम राज्यश्रीः ईर्पया परहस्तं यती यदि पद अमात्य दिया तस्यो. ॥ २०॥ अर्थः-तेणीमान फक्त आसक्त छे मन जेनु, एवो जे हुँ, तेनी राज्यलक्ष्मी ईर्ष्याथी परना हाथमा जती जती फक्त पद्ध मंत्रीनी शरमथी रही गइ. ।। २० ।। मानसे मानसेविन्या तया नित्याश्रितेऽविशन् । स्त्रीसंघभयेनेव न धर्मगुरवोऽपि मे ॥ २१ ॥ __ अन्वयः-मानसेविन्या तया नित्याश्रिते मे मानसे स्त्रीसंघट्ट भयेन इव धर्म गुरवः अपि न अविशन् . ॥ २१ ॥ अर्थ:-सन्मानपूर्वक सेवाती एवी ते राणीवडे हमेशा वशीभूत थयेला मारा मनमा, जाणे स्त्रीना स्पर्शना भयथी होय नही ! तेम गुरुओ पण प्रवेश करी शक्या नही. ।। २१॥ इत्यनन्यमना धन्यंमन्यस्तन्न्यस्तलोचनः । अमन्ये मान्मथं पर्व निर्वाणपदमप्यदः ॥ २२ ॥ अन्वयः-इति अनन्यपनाः तन्न्यस्त लोचनः (अहं) धन्यंमन्यः निर्वाण पदं अपि अदः मान्मयं पर्व अमन्ये. ॥ २२॥ अर्थ:-ए रीते पीजे क्योय पण मन राख्या विना फक्त ते राणीमाज दृष्टि राखीने ९ (पोताने) भाग्यशाली मानतो थको मोक्षने पण आ कामसेवार्नु पर्व मानवा लाग्यो. (अर्थात् आ कामभोगज मोक्ष छे, पम मानवा लाग्यो.) ॥२२॥ अन्यदा मदनानन्दरसनिद्रावशंवदः । खमपश्यमहं स्वप्ने मुक्तागिरिशिरश्चरम् ॥ २३ ॥ SARKAAKAARAKOT For Private And Personal use only

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