Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 5
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1439
________________ (१४१६) भरह अभिधानराजेन्द्रः। भरह ओ दीहियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतीश्रो | त्थियासणाई सव्वरयणमयाई अच्छाई सरहाई लण्हाई बिलपंतीओ अच्छाओ सरहाओ रयतामयफूलाओ वा- घट्ठाई मट्ठाई णीरयाई णिम्मलाई निप्पकाई निकंकडच्छारामयपासाणाश्रो तवाणिज्जमयतलाओ वेरुलियमणिफालि- याई सप्पभाई सम्मिरीयाई सउज्जोयाई पासादीयाईदयपडलपच्चोयडाओ णवणीयतलाओ सुवरणसुम्भ (ज्झ)। रिसणिज्जाई अभिरुवाई पडिरूवाई। तस्स णं वणसंडरययमणिवालुयाओ सुहोयाराश्रो सुउत्ताराओ णाणामणि- स्स तत्थ तत्थ देसे २ तहि तहिं बहवे आलिघरा मातित्थसुबद्धाओ चारुचउक्कोणाश्रो समतीराओ श्रा- लिघरा कयलिघरा लयाघरा अच्छणघरा पेच्छणघरा मणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संचरणापत्तभिसमु- जणघरगा पसाहणघरगा गम्भघरगा मोहणघरगा सालघणालाओ बहुप्पलकुमुयगलिणसुभगसोगंधितपोडरीयसय- रगा जालघरगा कुसुमघरगा चित्तघरगा गंधव्वधरगा पत्तसहस्सपसफुल्लकेसरोवस्याओ छप्पयपरिभुज्जमाणकम- आयसघरगा सम्वरयणामया अच्छा सराहा लण्डा घट्ठा लाओ अच्छविमलसलिलपुरणाश्रो परिहत्थभमतमच्छकच्छ मट्ठा णीरया णिम्मला णिपंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा भअणेगसउणमिहुणपरिचरितानो पत्तेयं पसेयं पउमघरधे-। सस्सिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पदियापरिक्खित्तानो पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्तानो अ- डिरूवा । तेसु णं आलिघरपसु० जाव आयसघरपसु बहुई प्पेगतियाओ प्रासबोदामो अप्पेगतियाश्रो वारुणोदाओ हंसासणाई० जाव दिसासोवत्थियासणारं सव्वरयणामयाई० अप्पेगतियाओ खीरोदाओ अप्पेगतियानो घोदामो जाव पडिरूवाई। तस्स णं वसंडस्स तत्थ तत्थ देसे २ तहिं अप्पेगतियाओ खोदोदाश्रो अमयरससमरसोदाओ अ- तहिं बहवे जाइमंडवगा जूहियामंडवगा मल्लियामंडवगा णवप्पेगतियाश्रो पगतीए उदग ( अमय ) रसेणं मालियामंडवगा वासंतीमंडवगा दधिवासुयामंडवगा सूरिपण्णताओ पासाइयाओ० ४। तासि ण खुड़ियाणं लिमंडवगा तंबोलीमंडवगा मुद्दियामंडवगा णागलयामंडवगा वावीणं० जाव विलपंतियाणं तत्थ तत्थ से तहिं २ अतिमुत्तमंडवगा अप्फोतामंडवगा मालुयामंडवगा सामलजाव बहवे तिसोवाणपडिरुषया पएणत्ता । तेसि णं तिसो यामंडवगा णिचं कुसुमिया० जाव पडिरूवा । तेसु णं... वाणपडिरूवाणं अयमेयारुवे वरणावासे पराणते । तं जहा जातीमंडवएसु बहवे पुढविसिलापट्टगा पराणता । तं जहावरामया नेमा रिटामया पतिढाणा घेलियामया खंभा हंसाऽऽसणसंठिता कोंचासणसंठितागरुलासणसंठिता उराणसुवरणरुप्पामया फलगा पदरामया संधी लोहितक्खमइयो यासणसंठिता पणयासणसंठिता दीहासणसंठिता भहाससूईश्रो-णाणामणिमया अवलंबणा अवलंबणवाहाश्रो । ते णसंठिता पक्खासणसंठिता मगरासणसंठिता उसभाससिणं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं तोरणा प. णसंठिता सीहासणसंठिता पउमासणसंठिता दिसासोत्थिएणत्ता। तेणं तोरणा णाणामणिमयखंभेसु उवणिविट्ठसरिण यासणसंठिता पण्णत्ता । तत्थ बहवे बरसयणासणविट्ठविविहमुत्तरोवता विविहतारारुवोवचिता ईहामि विसिटसंठाणसंठिया पराणता । समणाउसो ! श्राइयउलभतुरगणरमगरविहगवालगकिरणररुरुसरभचमरकुंज राणगरूयधूरणवणीततूलफासा मउया सब्बरयणामया रषणलयपउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवहरवेदियापरिगता अच्छा० जाव पडिरूवा । तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य भिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ता विव अञ्चिसहस्स देवीश्रो य पासयंति. सयंति, चिटुंति. णिसीदति, तुयटृति, मालणीया मिसमाणा भिभिसमाणा चक्खुल्लोयणलेसा रमंति ललंति, कीलंति, मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिराणाणं सुहफासा सस्सिरीयरुवा पासादीया०४। तेसि णं तोरणा सुपरिकताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणं णं उप्पि बहवे अट्ठ मंगलगा पण्णत्ता-सोस्थियसिरिवच्छ फलवित्तिविसेसं पञ्चणुब्भवमाणा विहरति । तीसे णं जगगदियावत्तवद्धमाणभहासणकलसमच्छदप्पणा सव्वरतणा तीए उप्पि अंतो पउमवरवेदियाए एत्थ णं एगे मह वणसंडे मया अच्छा सराहा० जाव पडिरूवा । तेसि णं तोरणाणं पराणत्ते, देसूणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं घेण्यासमएणं परिउप्पि बहवे किराहचामरज्या नीलचामरज्झया लोहिय क्खेवण किराहे किरहोभासे वणसंडवगणो मणितणसदविचामरज्या हारिइचामरज्या सुक्किनचामरज्या अच्छा हुणो णेयव्बो । तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य सराहा रुप्यपट्टा वारदंडा जलयामलगंधीया सुरूवा पासा श्रासयंति. सयंति, चिटुंति. णिसीयंति, तुयदृति, रमति, ईया०४। तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइछत्ता प ललंति. कीडति, मोहति. पुरा पोराणाणं सुचिराणाणं सुपरिडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थया०जाव कंताणं सुभाणं कंताण कम्माणं कल्लाणं फलवित्तिविसेस पश्चसयसहस्सवत्सहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा० जाव पडि- गुम्भवमाणा विहरंति ॥ (सूत्र-१२७ । जी०३ प्रति०१ उ०) रूवा । तासि ण खुड़ियाणं वावीण जाव विलपंतियाणं तथा-( पव्वयसमियाश्रो आयामेणं ति ) पर्वतसमितत्थ तत्थ देसे दसे तर्हि तहिं बहवे उपायपव्यया णिय- काश्चतस्रोऽपि पनवरवेदिका श्रायामेन-दैर्येण पत्र इपव्वया जगतिपव्यया दारुपव्वयगा दगड़वगा दगमंच- तत्संबन्धानि वनखण्डान्यपि पर्वतसमान्यायामेनेति बोका दगमालका दगपासायगा ऊसड़ा खुल्ला खडडगा अं. ध्यम् । (आभियोगेत्यादि) प्रागधस्तनसूत्रे जगती पनवरवेदोलगा पक्वंदोलगा सव्वरणामया अच्छा० जाव पडिरू दिकं च येनैव गर्मेन व्यावर्णितं स एवात्र गम इति न पुनवा । तेसु णं उप्पायपव्वतेसु० जाव पक्खंदोलएसु बहवे ाख्यायते । (तासि णमित्यादि) तासु श्राभियोग्यथेणिषु हंसाऽऽसणाई कौचासणा गरुलासणाई उरणयासणारं पण- शकस्याऽऽसनविशेषस्याधिष्ठाता शक्रस्तस्य दक्षिणार्द्धलोयासणाई दीहासणाई भड़ासणाई पक्खासणाई मगरास- काधिपतेरित्यर्थः । देवेन्द्रस्य देवानां मध्ये परमैश्वर्ययुक्तपाई उसभासणारं सीहासणाई पउमासणारं दिसासोव- स्य देवराशः देवेषु कान्त्यादिगुणैरधिकं राजमानस्य सोमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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