Book Title: Yogkalpalata
Author(s): Girish Parmanand Kapadia
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 33
________________ २० योगकल्पलता नमस्कारेण मन्त्रेण गुणानुरागसम्भवात्। गुणशालिप्रमोदाच्च गुणवृद्धिर्भवेत्सदा।।६।। नमस्कार मंत्र से गुणों का अनुराग उत्पन्न होता हैं। गुणसंपन्न आत्माओं को देखकर प्रमोद होता है, उसके कारण निरन्तर गुणों की वृद्धि होती है।।६।। नमस्कारेण मन्त्रेण लोके पूज्यतमा हि ये। जायन्ते पूजिताः सर्वे मोक्षमार्गे प्रतिष्ठिताः।।७।। नमस्कारमन्त्र से जिस लोक में जिन लोगों द्वारा आदर के पात्र होते हैं तथा मोक्षमार्ग में प्रतिष्ठित होते हैं और पूज्य बनते हैं।।७।। नमस्कारेण मन्त्रेण सर्वं शक्यं जगत्त्रये। महाश्चर्यकरं मन्ये नात्र कार्या विचारणा।।८।। नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से तीनों लोक के असंभव कार्य संभव हो जाते हैं, अतः इस मन्त्र को महान् आश्चर्यकारी कहा गया है। इसकी उपासना हेतु विचार नहीं करना चाहिए, अर्थात् मन आगे-पीछे नहीं करना चाहिए ऐसा मेरा मानना है।।८।। नमस्कारेण मन्त्रेण शुभध्यानपरायणः। लोके सर्वं मनोऽभीष्टं ध्याता प्राप्नोति सत्वरम्।।९।। __ शुभध्यान में अभ्यस्त ध्यानी नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से इस लोक में शीघ्र ही अपने सभी अभीष्ट वस्तुओं को प्राप्त करता है।।९।। नमस्कारेण मन्त्रेण साधकस्य प्रजायते। ऐश्वर्यं परमं लोके सौभाग्यं न च विस्मयः।।१०।। नमस्कारमन्त्र की साधना से साधक के सौभाग्य का उदय होता है, जिससे लोक में परम ऐश्वर्य की प्राप्ति निःसन्देह रूप से होती है।।१०।। नमस्कारेण मन्त्रेण भवरोगविनाशकः। भव्यानां भवनिर्वेदः सर्वदैव विवर्द्धते।।११।। नमस्कारमन्त्र से भव्यों के भवरूप रोग को नाश करने (मिटाने) वाला, भव का निर्वेद संसार के ऊपर उदासीनता का भाव सदा बढता है।।११।।

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