Book Title: Yogkalpalata
Author(s): Girish Parmanand Kapadia
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 82
________________ नमस्कारस्मृतिः आत्मप्रकाशके मन्त्रे देहविनाशके त्वयि। प्रसादात्ते नमस्कार! पुद्गलेषु न मे रतिः।।३०।। हे! नमस्कार, तुम आत्मज्ञान के प्रकाशक हो तथा देह (संबंध) के विनाशक हो, तुम्हारे प्रसन्न होने पर पुद्गल में मेरी रति नहीं है।।३०।। त्यक्तैव वासनाः सर्वा भवसन्ततिसञ्चिताः। ध्यानात्ते हि नमस्कार! सिद्धाः सर्वेऽपि तत्त्वतः।।३१।। हे! नमस्कार! वस्तुतः तुम्हारे ध्यान से ही भव में, परंपरा में संचित सभी वासनाओं का त्याग करके सिद्ध हो गये।।३१।। परमानन्दरूपस्त्वं भवभ्रमणनाशकः। गतिस्तस्मान्नमस्कार! त्वमेवाऽत्र सदा मम।।३२।। हे! नमस्कार तुम परमानन्द स्वरूप हो, तुम भवभ्रमण को रोकनेवाले हो, अतः तुम्ही सदा मेरी गति हो।।३२।। सार्थजापेन ते शीघ्रं प्रशान्तेनान्तरात्मना। संवेद्यते नमस्कार! स्वस्वरूपं यथार्थतः।।३३॥ हे! नमस्कार! शान्त मन से अर्थानुसन्धान के साथ जो आपका जप करता है उसे शीघ्र ही यथार्थरूप से अपने स्वरूप का ज्ञान होता है।।३३।। त्यक्त्वा रागादिजं विश्वं कायोत्सर्गे सुसाधकैः। आश्रयात्ते नमस्कार! परमात्मा विलोक्यते।।३४।। हे! नमस्कार सांसरिक राग वगैरे का त्याग करके कायोत्सर्ग में स्थित सुसाधक तुम्हारे ही आश्रय से परमात्मा को देखते हैं।।३४।। आत्मानं चिन्तयामीह मुक्ताभिमानसंयुतः। सम्प्राप्य त्वां नमस्कार! ब्रह्मरूपमिवापरम्।।३५।। हे! नमस्कार तुमको ही प्राप्त करके मैं मुक्त हूँ ऐसे अभिमान से युक्त होकर अपने आपको दूसरा ब्रह्म समझता हूँ।।३५।।

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