Book Title: Yogkalpalata
Author(s): Girish Parmanand Kapadia
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ योगकल्पलता चिदानन्दमयत्वाद्धि गुणातीतदशा सदा। अखण्डैकरसत्वञ्च नमस्कारान्न संशयः।।१८।। नमस्कार महामन्त्र चिदानन्दमय है अतः उसके प्रभाव से गुणातीत दशा तथा अखण्ड एक रसात्मक (ज्ञान) दशा प्राप्त होती है इसमें कोई संदेह नहीं।।१८।। मोहशक्तिविनाशेन प्राप्यते क्रमशः खलु। शुद्धसत्त्वैकवृध्दिस्तु नमस्कारान्न संशयः।।१९।। निश्चित ही नमस्कार महामन्त्र से मोहशक्ति के विनाश द्वारा क्रमशः शुद्ध सत्त्व की वृद्धि होती है इसमें कोई संदेह नहीं।।१९।। त्यागः सर्वविकल्पानां समतारसवर्धनात्। स्वरूपानुभवश्चैव नमस्कारान्न संशयः।।२०।। नमस्कार महामन्त्र के प्रभाव से समताभाव में वृद्धि होती है जिससे सभी विकल्पों से मुक्त साधक तुरंत ही अपने रूप का अनुभव करता है इसमें कोई संदेह नहीं।।२०।। यान्ति सर्वाणि कर्माणि विलयं सञ्चितान्यपि। आत्मैकाकारचित्तेन नमस्कारान्न संशयः।।२१।। नमस्कार महामन्त्र (का ध्यान करने) से चित्त (शान्त होकर) आत्मा के साथ एकाकार हो जाता है उसके कारण सभी सञ्चितकर्म क्षीण हो जाते है इसमें कोई संदेह नहीं।।२१।।। ब्रह्मसंस्पर्शसौख्येन वासनावंशनाशतः। धर्ममेघः समाधिः स्यान्नमस्कारान्न संशयः।।२२।। नमस्कार महामन्त्र से वासना की परंपरा का नाश होता है अतः ब्रह्मस्पर्श का सुख प्राप्त होता है जिससे धर्ममेघ समाधि होती है इसमें कोई संदेह नहीं।।२२।। सर्वेषां पुण्यपापानां विध्वंसो जायते क्षणात्। स्वयं प्रकाशिते तत्त्वे नमस्कारान्न संशयः।।२३।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145