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प्राचीन भारत में देश की ओकता
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, एम. ए., पीएच. डी., डी. लिट्
भौगोलिक एकता राष्ट्रीय एकता का मूल आधार है और राष्ट्रीय एकता । उसका आवश्यक फल है । पुराणों के भुवन कोश नामक अध्यायों में सप्तद्वीपी भूगोल का वर्णन मिलता है । मेरु को केन्द्र में मानकर उसके उत्तर में उत्तर कुरु, पूर्व में भद्राश्व, दक्षिण में भारतवर्ष और पश्चिम में केतुमाल इन चार वर्षों की कल्पना की गई है । इन चारों का सम्मिलित नाम जम्बूद्वीप था । अर्वाचीन भूगोल के अनुसार मेरु पामीर के ऊंचे पठार की संज्ञा है जो पृथ्वी रूपी कमल के केन्द्र में कर्णिका के समान स्थित है । " उत्तर कुरु साइबेरिया और भद्राश्व चीन है। केतुमाल पामीर के पश्चिम में फैला हुआ वह प्रदेश है जिसमें चक्षु व या वर्तमान श्रौक्सस नदी बहती है । मेरु के दक्षिण की ओर स्थित हिमालय और दक्षिणी समुद्र के बीच का भूप्रदेश पुराणों के अनुसार एक भौगोलिक इकाई मानी जाती थी । उसी की संज्ञा भारतवर्ष थी । जैसा पूर्व में कहा जा चुका है, भुवनकोश के लेखक भारतवर्ष की उत्तरी और दक्षिणी सीमाओं के विषय में निश्चित और स्पष्ट उल्लेख करते हैं । उत्तर में जहां तक गंगा के उत्तरी स्रोत या शाखा नदियां हैं और दक्षिण में समुद्र तट पर जहां कन्याकुमारी है वहां तक भारत की सीमाएं है। इसके पूर्व की सीमा पर किरात जाति के लोग बसे थे जिन्हें आजकल की भाषा में मौन ख्मेर कहा जाता है। भारत पश्चिम में यवन अर्थात् यूनानी बसे
हुए थे” ।
यवनों से यहां तात्पर्य बाल्हीक ( आधुनिक बल्खु, प्राचीन बैक्ट्रिया) के यूनानी राजाओं से है जिन्होंने तीसरी शती ई. पू. के मध्य भाग में मौर्य साम्राज्य के निर्बल होनेपर यवन राज्य की वही नींव डाली थी। इससे यह भी ज्ञात होता है कि भारतवर्ष के भौगोलिक विस्तार की यह कल्पना शुंग काल से पूर्व ही स्थिर हो चुकी थी । पाली साहित्य के दीघनिकाय ग्रंथ में भारत की भौगोलिक और राजनैतिक एकता का बहुत ही सुन्दर उल्लेख मिलता है—
" तो कौन है जो उत्तर में श्रायताकार और दक्षिण में शकटमुख के समान संकीर्ण इस महापृथ्वी को सात बराबर भागों में बांट सकता है ? महागोविन्द को छोड़ कर भला और दूसरा कौन ऐसा करने में समर्थ है ? कलिंग में दन्तपुर, अश्मक में पोतन, अवन्ति में माहिष्मती, सौवीर में रोरुक, विदेह में मिथिला, अंग में चम्पा, और काशी में वाराणसी इन्हें महागोविन्द ने बसाया । "
१. जम्बूद्वीपः समस्तानामेतेषां मध्य संस्थितः । तस्यापि मेरुमैत्रेयमध्ये कनकपर्वतः । भूपद्मास्यास्य शैलोऽसौ कर्णिकाकार संस्थितः ॥ विष्णुपुराण २ / २२६,१० |
वायु
२. आयतो ह्याकुमारिक्यादा गंगाप्रभावाच्च वै । पूर्वे किराता यस्यान्ते पश्चिमे यवनाः स्मृताः ॥ ४५।८१-८२ । “ आयतस्तु कुमारीतो गंगायाः प्रवहावधिः । " भारतवर्ष की यह भौगोलिक परिभाषा थी।
३. को नु खो भो पहोति इमं महापठविं उत्तरेन आयतं दक्खिणेन सकटमुखं सप्तधासमं सुविभत्तं विभजितुं ति । तत्र सुदं मज्झे रेणुस्य रज्ञो जनपदो होति । दन्तपुरं कलिंगानां अस्सकानं च पोतनं । माहिती अवन्तीनं सोवीरानं च रोरुकं । मिथिला च विदेहानं चम्पा अंगे मापिता । वाराणसी च कासीनं एते गोविन्दमा पिता ति । ( दीघनिकाय, महागोविन्दुसुत्त)
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